________________
३५२
पउमचरियं
[५३.७३भणिऊण एवमेयं, गेण्हइ चूडामणिं पवणपुत्तो । संथावेइ रुयन्ती, सीया महुरेहि वयणेहिं ॥ ७३ ॥ मा वच्चसु उबेयं, सामिणि ! अहयं दिणेसु कइएसु । आणेमि पउमनाहं, समयं चिय वाणरबलेणं ॥ ७४ ॥ काऊण तीऍ पणई, तस्सुद्देसस्स निग्गओ तुरिओ। दिट्ठो य पवणपुत्तो, उज्जाणगयाहि नारीहिं ॥ ७५ ॥ अन्नोन्नसमुल्लावं, कुणन्ति किं वा इमो विमाणाओ। अवइण्णो सुरषवरो, सोमणसवणाहिसङ्काए ? ॥ ७६ ॥ सुणिऊण निरवसेस, दसाणणो हणुवसन्तियं वर्त्त । पेसेइ किङ्करबलं, भणइ य मारेह तं दु8 ॥ ७७ ॥ सामिवयणेण पत्ता, बहवो च्चिय किङ्करा गहियसत्था । ते पेच्छिऊण हणुओ, उम्मूलेउं वर्ण लग्गो ॥ ७८ ॥
कुसुमफलभरोणया पायवाऽसोग-पुन्नाग-नाग-ऽज्जुणा कुन्दमन्दार-चूय-ऽम्बया दक्ख-रुहक्ख-कोरिण्टया कुज्जया सत्तवण्णा तला देवदारू हिन्ता दुमा मालई जूहिया सत्तली कन्दली मल्लिया सिन्दुवारा कुडङ्गा पियषे दुमा ।
बउल-तिलय-चम्पया रत्तकोरिण्टया नालिएरी कडाहा तहा धायई मायई केयई जच्चपूयप्फली रायणी पाडली बिल्लअकोल्लया-ऽऽसत्थ-नग्गोह-वम्हा तरू कश्चणारा-ऽऽसहारा बहू एवमाई दुमा मारुई भञ्जिऊणं पवत्तो कहं ।
चडुलकरपसारियायड्डिउम्मूलिया केइ पायप्पहाराहया खण्डखण्डा लहुं भामिया छिन्नभिन्ना तुडन्ता फुडन्ता ललन्ता बहू पल्लवा लोलमाणाउलोसुक्कसाहाफिडन्तप्फलोहा सुगन्धुधुरा पुप्फवुट्टि मुयन्ता महिं पाविया पायवा ।
पुणरवि मरुनन्दणो गिव्हिऊणं गया घायओ सुद्धउज्जाणवावीहरे हेमनम्बूणए सीहणायाउले पोमराइन्दणीलप्पमे भञ्जिऊणं तओ पेच्छए मारुई रक्खसाणं बलं मुक्कबुक्कारपाइककुल्लन्तवग्गन्तसेणामुहं ॥ ७९ ॥
तं मारुईण भगं, पउमुज्जाणं पणट्ठलायणं । कमलिणिवर्ण व नज्जइ, विलोलियं मत्तहत्थीणं ॥ ८०॥
इस प्रकार कहे जाने पर पवनपुत्र हनुमानने चूड़ामणि लिया और रोती हुई सीताको मीठे वचनोंसे शान्त किया। (७३) हे स्वामिनी ! आप उद्वेग धारण न करें। मैं कुछ ही दिनोंमें वानर सेनाके साथ रामको ले आऊँगा । (७४) तब सीताको प्रणाम करके उस प्रदेशसे वह बाहर आया। उद्यानमें रही हुई स्त्रियोंने हनुमानको देखा। (७५) वे एक-दूसरीसे कहने लगी कि नंदनवनकी शंकासे क्या यह उत्तम देव विमानमेंसे नीचे उतरा है ? (७६)
समग्र वृत्तान्त सुनकर रावणने हनुमानके पास नौकरोंकी सेना भेजी और कहा कि उस दुष्टको मारो। (७७) स्वामीके श्रादेशके अनुसार हाथमें शस्त्र लेकर बहुत-से नौकर आये। उनको देखकर हनुमान उद्यानको उखाड़ने लगा। (८) पुष्पों एवं फलोंके भारसे झुके हुए अशोक, पुन्नाग, नाग, अर्जुन, कुन्द, मन्दार, चूत, आम्र, द्राक्ष, रुद्राक्ष, कोरण्टक, कुब्जक, सप्तपर्ण, ताड़, देवदारु जैसे बड़े-बड़े पेड़, मालती, जूही, नवमालिका, कन्दली, मल्लिका, सिन्दुवार, कुटका तथा प्रियंगु वृक्ष; बकुल, तिलक, चम्पक, रक्तकोरण्टक, नालिकेर, कटाह तथा धातकी, मातकी, केतकी, उत्तम सुपारी, खिरनी, पाटली, बिल्व, अंकोठ, अश्वस्थ, न्यग्रोध, पलाश, कचनार, सहकार-ऐसे बहुत-से वृक्षोंको हनुमानने तोड़ डाला। चंचल हाथोंको फैलाकर और खींचकर कई वृक्षोंको उसने जड़से उखाड़ डाला। उसने पाद प्रहारसे आहत, टुकड़े-टुकड़े किये गये, जल्दी घुमाये गये, छिन्न-भिन्न तोड़े-फोड़े गये, मुलाये गये, बहुत पत्तोंवाले, जिनकी हिलती हुई तथा मोटी-मोटी शाखाओं परसे फलोंके ढेर नीचे गिर रहे हैं, प्रबल सुगन्धसे युक्त पुष्पोंकी वृष्टि करनेवाले वृक्ष ज़मीन पर गिरा दिये। फिर गदा लेकर प्रहार करनेवाले हनुमानने सोनेके बने हुए, सिंहनादसे आकुल तथा लाल और इन्द्रनीलकी प्रभावाले उद्यानके सुन्दर वापीगृहोंको तोड़-फोड़ डाला। उस समय गर्जना करनेवाले पैदल सैनिकों तथा कूदते और चिल्लाते सेनामुख वाले राक्षससैन्यको हनुमानने देखा । (६) मदोन्मत्त हाथी द्वारा तहस-नहस किये गये कमलिनीके वनकी भाँति मारुति द्वारा तहस-नहस किया गया पद्मोद्यान सौन्दर्यहीन मालूम होता था। (८०)
१. जिसमें नौ हाथी, नौ रथ, सत्ताईस घोड़े और पैंतालीस प्यादे हों उसे सेनामुख कहते हैं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org