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________________ प्रकाशकीय अहिंसा मानवजाति के लिए जन्म से ले कर मृत्युपर्यन्त जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में और प्रत्येक कदम पर अनिवार्य है, परन्तु उसके सम्बन्ध में जब तक स्पष्ट दर्शन न हो, उसके विविध पहलुओं पर जब तक सूक्ष्म दृष्टि से विचार न किया जाय, तब तक अहिंसा की साधना और अहिंसा के प्रयोग सफल नहीं हो सकते । इसी दृष्टिकोण से राष्ट्रसन्त कविरत्न उपाध्याय श्री अमरचन्दजी महाराज के अहिंसा-सम्बन्धी प्रवचनों का यह सुन्दर संकलन किया गया है। इसमें अहिंसा की जो विवेचना की गई है, उसमें कितनी मौलिकता, गम्भीरता और विशदता है, यह बात ध्यानपूर्वक पढ़ने वाले विवेकशील पाठक स्वयं समझ सकते हैं। जैनशास्त्रों में अहिंसा के सम्बन्ध में बहुत स्पष्ट व्याख्या मिलती है, परन्तु प्रथम तो शास्त्रों का गम्भीर अध्ययन करने वाले ही विरले हैं, फिर यत्र-तत्र बिखरी हुई और प्राकृत या संस्कृत भाषा में निबद्ध व्याख्या के अन्तस्तत्त्व को समझने और प्रतिपादन करने वाले विद्वानों की संख्या तो और भी कम है । राष्ट्रसन्त उपाध्यायश्रीजी महाराज ने शास्त्रों की शब्दावली के सहारे शास्त्रों की आत्मा का स्पर्श किया है, अहिंसा के तत्त्वज्ञान और सिद्धान्त के साथ-साथ उन्होंने अहिंसा के व्यवहारपक्ष को भी विशदरूप से स्पष्ट किया है । कहना होगा कि उनके द्वारा की गई अहिंसा की विस्तृत विवेचना अपूर्व और मौलिक बन पड़ी है। यह ब्यावर श्रीसंघ की सूझ-बूझ का फल है कि उसने कविरत्न उपाध्यायश्रीजी महाराज के वि० संवत् २००७ के ब्यावर-चातुर्मास में उपासकदशांग का अवलम्बन ले कर अहिंसा पर दिये गए युगस्पर्शी प्रवचनों का पं०शोभाचन्द्रजी भारिल्ल से सम्पादन करवा लिया था । अहिंसा-दर्शन के प्रथम संस्करण में उन्हीं प्रवचनों का प्रकाशन हुआ है । उसकी मांग इतनी अधिक हुई कि सन् १९५७ में शीघ्र ही उसका द्वितीय संस्करण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001265
Book TitleAhimsa Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1976
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size22 MB
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