SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 5
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अहिंसा के भावना-सूत्र 'न कामयेऽहं गतिमीश्वरात् पराम्, अष्टद्धियुक्तामपुनर्भवं वा। आतिं प्रपद्येऽखिलदेहभाजाम्, अन्तःस्थितो येन भवन्त्यदुःखाः । -६।२१।१२ (राजा रन्तिदेव ने पीड़ित एवं बुभुक्षित प्रजा के कल्याण की कामना करते हुए कहा था-) मैं भगवान् से अष्टसिद्धियों के युक्त स्वर्ग की श्रेष्ठगति नहीं चाहता, और तो क्या, मैं मोक्ष की कामना भी नहीं करता। मैं तो केवल यही चाहता हूँ कि मैं विश्व के समस्त प्राणियों के हृदय में स्थित हो जाऊँ और उनका सारा का सारा दुःख मैं ही सहन कर लूं, ताकि अन्य किसी भी प्राणी को दुःख न हो। 'अहिंसाप्रतिष्ठायां तत्सन्निधौ वैरत्यागः' -योगदर्शन २।३५ अहिंसा की प्रतिष्ठा (पूर्णस्थिति) हो जाने पर उसके सान्निध्य में सब प्राणी अपना वैरभाव छोड़ देते हैं। _ 'अहिंसयैव भूतानां कार्यं श्रेयोऽनुशासनम् ।' --मनुस्मृति २।१५६ अहिंसा की भावना से अनुप्राणित हो कर ही प्राणियों पर अनुशासन करना चाहिए। 'सर्वभूतस्थमात्मानं सर्वभूतानि चात्मनि । ईक्षते योगयुक्तात्मा सर्वत्र समदर्शनः ॥' --गीता ६२६ अनन्तचैतन्य की व्यापक चेतना से युक्त योगी अपने आपको सबमें तथा सब को अपने आप में देखता है, वह सर्वसमदर्शी होता है। 'निर्वैरः सर्वभूतेषु यः स मामेति पाण्डव ! हे पाण्डव ! जो सभी प्राणियों के प्रति निर्वैर (वैररहित) है, वही मुझे प्राप्त कर सकता है। 'अहिंसा परमो धर्मः सर्वप्राणभृतां वरः ।' -महाभारत ११।१३ समस्त प्राणियों के लिए अहिंसा सर्वोत्कृष्ट धर्म है । यस्तु सर्वाणि भूतानि आत्मन्येवानुपश्यति । सर्वभूतेषु चात्मानं ततो न विजुगुप्सते॥ -- ईशोपनिषद् ६ जो अन्तनिरीक्षण के द्वारा सब प्राणियों को अपनी आत्मा में ही देखता है और अपनी आत्मा को सब भूतों में, वह फिर किसी से घृणा नहीं करता है। सव्वे सत्ता अवेरिनो होन्तु, मा वेरिनो । सुखिनो होन्तु, मा दुखिनो ॥ -बौद्धसूक्त सभी प्राणी वैर से रहित हों, कोई भी वैर न रखे, सभी प्राणी सुखी हों, कोई दुःख न पाए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001265
Book TitleAhimsa Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1976
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy