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________________ अहिंसा-दर्शन "यहाँ का नाश सबसे बड़ा नाश है ! यहाँ की हार सबसे बड़ी हार है !! यहाँ, यदि अच्छी बातें न हुईं तो यहाँ-वहाँ सर्वत्र सबसे बड़ा अनादर है, अपमान है ।"२ जीवन का चौराहा मानव, जीवन के चौराहे पर खड़ा है। यहाँ से एक रास्ता-स्वर्ग एवं मोक्ष को जाता है ; दूसरा-नरक को जाता है; तीसरा-पशु-पक्षी की योनि को ; और चौथा--मनुष्य-गति को जाता है। अब यह तय करना है कि किस रास्ते पर चलना है ? चारों रास्तों के दरवाजे खुले पड़े हैं । चारों ओर सड़कें चल रही हैं । एक ओर प्रकाश चमक रहा है, तो दूसरी ओर अन्धकार घिर रहा है। अब विचार करना है। कि अपनी जिन्दगी को किधर ले जाना है ! यदि आदमी सत्य और अहिंसा के सन्मार्ग पर चलेगा तो वह यहाँ भी आनन्द-मंगल पाएगा और आगे जहाँ कहीं भी जाएगा, जन-संसार को दुःख के बजाय सुख की ही जिन्दगी देगा। यह दिव्य-प्रकाश का आदर्श मार्ग है । यह वह प्रकाश है, जो कभी धुंधला नहीं पड़ता, अन्धकार से नहीं घिरता । समय प्रतीक्षा नहीं करता इस सम्बन्ध में भगवान् महावीर ने कहा है कि- 'हृदय में जब धर्म के आचरण करने की पवित्र भावना उत्पन्न हो और संकल्प भी पक्का हो, तो फिर टालमटोल करने की क्या आवश्यकता है ? ‘मा पडिबंध करेह'; अर्थात्-देरी मत करो' भूखे को जब भूख के समय भोजन मिल जाए, तब क्या भूखा इन्तजार करेगा ? नहीं; उसी समय खाएगा और दौड़ कर खाएगा। जब आध्यात्मिक भूख लगी हो, जीवन-निर्माण की सच्ची लालसा जागृत हुई हो तो उस समय जीवन का जो महत्त्वपूर्ण मार्ग है, सच्चाई का मार्ग है, समाज एवं राष्ट्र के हित का कल्याणपथ है, उसी पर सत्यनिष्ठ हो कर चलना चाहिए। तनिक भी इन्तजार मत करो! इस रूप में तत्क्षणकारिता ही जीवन-निर्माण का एक महत्त्वपूर्ण आदर्श है, जो साक्षात् रूप में हमारे सामने है। परन्तु लोग बहुधा कहा करते हैं"जी हाँ। बात तो ठीक है ! पर अभी अवकाश नहीं है।" यह क्या विचित्र चिन्तन है ? हृदय की इस अशोभन दुर्बलता को जितनी भी जल्दी हो, दूर कर देना चाहिए और जो कुछ भी सत्कर्म करना हो, उसे यथाशीघ्र कर लेना चाहिए। क्योंकि समय की गति तेज है, वह किसी की प्रतीक्षा नहीं करता, किन्तु अवसर को अवश्य प्रकट कर देता है । अवसर भी साकार रूप में प्रकट नहीं होता, पक्षी की माँति अपने पंख ही फड़फड़ाता है। जो अपनी कुशाग्रबुद्धि से अवसर के पंख को पहचान लेता है और अपने अभीष्ट कार्य को उस पंख से सुसम्बद्ध कर देता है, वह समय की द्रुतगामी गति के साथ प्रगति करता हुआ एक दिन अवश्य ही उन्नति के शिखर पर पहुँच जाता है। ___ अतः अहिंसा पर अन्तरंगबहिरंग सभी पहलुओं से चिन्तन-मनन करके द्रुतगति से आचरण की दिशा में आने बढ़ना चाहिए । २ "इह चेदवेदीदथ सत्यमस्ति, न चेदिहावेदीन्महती विनष्टिः ।" -केनोपनिषद् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001265
Book TitleAhimsa Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1976
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size22 MB
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