________________
गोरक्षा का प्रश्न और अहिंसा
'अभी हमारे सामने वर्तमान में एक ताजा प्रश्न चल रहा है-'गौरक्षा' का । प्रश्न कोई अधिक पेचीदा नहीं था, किन्तु उसे इतना गहरा उलझा दिया गया है कि अब वह पेचीदा बन गया है।
जरा गम्भीरता से विचार कीजिए, 'गौरक्षा' का प्रश्न किस दृष्टिकोण से उठा है ? उसकी पृष्ठभूमि क्या है ?
'गौरक्षा' के सम्बन्ध में यह तर्क दिया जाता है कि “गाय हमें दूध देती है, इसलिए उनकी रक्षा होनी चाहिए।"
मैं पूछता हूँ यदि दूध देने के आधार पर ही गौरक्षा का नारा उठा है तो क्या भैस दूध नहीं देती ? बकरी दूध नहीं देती ? गाय की अपेक्षा भैस अधिक दूध देती है, और अधिकतर लोग भैस का ही दूध पीते हैं, फिर भैंस की उपेक्षा क्यों ? गाय को बचाएँ तो क्या भैंस को मरने दें ? बकरी का दूध भी गाय के दूध से अधिक पाचक एवं स्वास्थ्यप्रद माना गया है।
दूसरा तर्क यह है कि 'गाय हमारी माता है, उसके शरीर में देवताओं का निवास है । उसका दूध पवित्र है, वह पवित्र प्राणी है। इसलिए उसकी रक्षा होनी चाहिए।"
__ अभी कुछ दिन पहले अहमदाबाद के कुछ विद्वान् यहाँ आये थे । गौरक्षा का प्रश्न चला तो उनमें से एक विद्वान् श्री रतिलालभाई बोले-“गौ हमारी माता है, इसलिए उसकी रक्षा होनी चाहिए, तो उस मौसी का क्या होगा ?"
मैंने जरा आश्चर्य से पूछा- "मौसी'......?" तो उन्होंने कहा--"गौ माता है, तो भैस हमारी मौसी है, वह भी दूध देती है, उसका दूध भी हम सब पीते हैं।" मैंने कहा-"हाँ, माँ के साथ मौसी का ध्यान भी रखना चाहिए।" पवित्रता के विषय में जनदृष्टि
रहा पवित्रता का प्रश्न ! इस अर्थ में सभी प्राणी-देह या तो पवित्र हैं या अपवित्र हैं-यह विचार मूल में ही गलत है । हमारा दर्शन तो एकमात्र चैतन्य को ही पवित्र मानता है, जो सब में एक जैसा प्रतिष्ठित है। देह की पवित्रता या अपवित्रता के मिथ्या आधार पर अहिंसा का समाधान नहीं हो सकता।
इसलिए मैं सोचता हूँ-गौरक्षा के पीछे जो दृष्टिकोण है उसमें अहिंसा की दृष्टि से संशोधन होने की आवश्यकता है, जैसाकि हम चिन्तन करते आ रहे हैं,
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org