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________________ श्रावक और स्फोटकर्म ३५७ से ही हजार रुपये मिल रहे हैं, तब भी वह कृषक कीड़े को क्यों नहीं मारता ? श्रावक की अहिंसा निरपराध कीड़े को मारने के लिए तैयार नहीं होती, और बड़े से बड़े प्रलोभन को ठुकरा देती है। कहा जा सकता है कि खेती में तो वह प्रयोजन के लिए हिंसा करता है, तो यहाँ भी उसे हजार रुपए मिल रहे हैं। क्या यह प्रयोजन नहीं है ? परन्तु यहाँ तो वह प्रयोजन के लिए भी हिंसा करने को तैयार नहीं है। इसका कारण यही है कि हजार रुपए के प्रलोभन में पड़ कर निरपराध कीड़े को मारना 'संकल्पी हिंसा' है, और श्रावक ऐसी संकल्पी हिंसा नहीं कर सकता। किन्तु खेती-बाड़ी में जो हिंसा होती है, वह 'औद्योगिक हिंसा' है । हम संकल्पी और औद्योगिक हिंसा के भेद को यदि ठीक तरह समझ जाएं तो बहुत-सी समस्याओं का निपटारा हो सकता है और अनेक प्रकार की भ्रान्तियाँ दूर हो सकती हैं । विरोधी-हिंसा राजा चेटक और कोणिक में भयंकर संहारक युद्ध १२ हुआ था। कदाचित् कोणिक यह कहता कि अच्छा, हार और हाथी हल-विहल के पास रहने दें, मैं दोनों चीजें छोड़ सकता हूँ; परन्तु शर्त यह है कि तुम इस कीड़े को मार दो, तो क्या राजा चेटक ऐसा करने के लिए तैयार हो जाते ? जिस ऊपरी दृष्टि से साधारण लोग देखते हैं, यह सौदा महँगा नहीं, सस्ता ही था । लाखों मनुष्यों के बदले एक कीड़े की जान लेने से ही फैसला हो जाता । कितनी हिंसा बच जाती ? परन्तु नहीं, वहाँ कीड़े और मनुष्य का प्रश्न नहीं है। वहाँ प्रश्न है 'संकल्पी' और 'विरोधी' हिंसा का । वहाँ न्याय और अन्याय का प्रश्न है । यदि संघर्ष और विरोध है तो वह चेटक और कोणिक के बीच है, उस बेचारे कीड़े ने क्या गुनाह किया है कि उसकी जान ले ली जाए ? कीड़े को मारने में संकल्पजा हिंसा है और वह भी निरपराध क्षुद्र जन्तु की। उधर जहाँ लाखों मनुष्य मारे गए हैं, वहाँ संकल्पजा हिंसा नहीं है । जहाँ निरपराध की संकल्पजा हिंसा होगी, वहाँ श्रावक की भूमिका स्थिर नहीं रहेगी। इसी कारण युद्ध में इतने मनुष्यों को मारने के बाद भी राजा चेटक का श्रावकत्व सुरक्षित रहा । और यदि वे संकल्पपूर्वक एक निरपराध क्षुद्र कीड़ा मार देते तो उनका श्रावकत्व खंड-खंड हो जाता। फोडीकम्मे यह हिंसा और अहिंसा का मार्मिक दृष्टिकोण है। इस पर गम्भीरता एवं निष्पक्षता-पूर्वक विचार करना चाहिए। १२ मगधराज अजातशत्रु कोणिक के लघु-बन्धु हल-विहल बड़े भाई के अत्याचार से पीड़ित हो कर चेटक राजा की शरण में गए थे । कोणिक ने इस पर क्रुद्ध हो कर वैशाली पर आक्रमण कर दिया, फलतः चेटक को शरणागत की रक्षा के लिए युद्ध करना पड़ा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001265
Book TitleAhimsa Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1976
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size22 MB
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