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अहिंसा के संदर्भ में धर्मयुद्ध का आदर्श
अपने मस्तिष्क में इस प्रकार की विचारधारा रखते हैं, तो उसके मुताबिक वह अवश्य ही राजकुमार को वापस लौटा देता । कह देता कि - " भाई, तू यहाँ चला तो आया है । लेकिन मैं तेरी रक्षा कैसे कर सकता हूँ? तेरी एक की रक्षा में, लाखों आदमी युद्ध में मारे जायेंगे। एक के बचाने में लाखों आदमी मारे जाने पर तो बहुत बड़ी हिंसा हो जायेगी ।" परन्तु राजा चेटक ने ऐसा कुछ नहीं सोचा, ऐसा कुछ नहीं कहा। उसने शरणागत की रक्षा के लिए युद्ध किया, जो महाभारत जैसा ही एक भयंकर युद्ध था ।
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अब सवाल यह है कि राजा चेटक बारह व्रती श्रावक है, उसका हिंसा-अहिंसा से सम्बन्धित चिन्तन काफी सूक्ष्म रहा है, प्रभु महावीर की वाणी सुनने का कितनी ही बार उसे सौभाग्य प्राप्त हुआ है । वह कोई साधारण नरेश नहीं है, तत्कालीन वैशाली के विशाल गणतन्त्र का चुना गया अध्यक्ष है । इसका अर्थ है कि वे अपने युग के एक महान् चिन्तनशील व्यक्ति थे । उन्होंने हिंसा-अहिंसा के प्रश्न को व्यक्तियों की संख्या पर हल नहीं किया । उन्होंने अपने धर्म - चिन्तन के प्रकाश में स्पष्ट देखा कि यह शरणागत है, साथ ही निरपराध है, उसका कोई अपराध नहीं है, और उस निरपराध के हक को छीन रहा है मदान्ध कूणिक | अतः यह एक शरणागत का प्रश्न ही नहीं है, अपितु निरपराध के उत्पीड़न का भी प्रश्न है । और इस तरह से शरण में आये को, पीड़ित जन को यदि कोई वापिस लौटा दे ठुकरा दे तो उसे कहाँ आश्रय मिलेगा ? कल्पना कीजिए, एक इन्सान चारों तरफ से घिर जाता है, सब ओर से मौत आ घेरती है, भयंकर निराशा के क्षण होते हैं । उक्त निराशा के क्षणों में वह एक बड़ी शक्ति के पास पहुँचता है कि उसे शरण मिलेगी। लेकिन वहां उसे ठुकरा दिया जाता है, फिर दूसरी जगह जाता है, वहाँ से भी ठुकरा दिया जाता है । अब कल्पना कीजिए, उसको कितनी पीड़ा हो सकती है ! उस समय उसका मन कितना हताश हो जाता है । आँखों से आँसू बह रहे हैं, पर कोई पूछने वाला नहीं कि क्या बात है, क्यों रोता है ? स्पष्ट है, ऐसी स्थिति में दुनियां में न्याय का कोई प्रश्न ही नहीं रहा, किसी पीड़ित की रक्षार्थ करुणा और दया का कोई सवाल ही नहीं रहा। तो, इस तरह पीड़ित एवं अत्याचार से त्रस्त लोगों को समर्थ व्यक्ति भी धक्के देते रहें तो आपके इस अहिंसा और दयाधर्म का इस धर्म और कर्मकाण्ड का क्या महत्त्व रह जाता है ?
अभिप्राय यह है कि जीवन का यह एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न है । यह एक का या हजार का सवाल नहीं है । यह एक व्यक्ति की हिंसा या दासता का सवाल भी नहीं है, बल्कि यह आदर्शों का सवाल है । यदि एक ओर एक उच्च आदर्श की हत्या होती है, दूसरी और आप हजार लाख प्राणी बचा भी लेते हैं, तो उनका कोई मूल्य नहीं रहता है । क्योंकि आदर्श की हत्या सबसे बड़ी हत्या है । यदि आदर्श की हत्या हो जाती है, तो हजारों-लाखों वर्षों तक वह एक उदाहरण बनता चला जाता है, अन्याय और अत्याचार का । और इस प्रकार के उदाहरण यदि संसार में बढ़ जाएँ, तो फिर तो संसार की कोई स्थिति ही नहीं रहेगी ।
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