SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 6
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ॥ श्री प्रेम-भुवनभान-जयघोष-धर्मजितजयशेखर-अभयशेखर सूरिभ्यो नमः॥ उमरा मन पंचमहाभूतमय आ सचरायर सृष्टिमां जे कंई, ज्यां कशे सारुं छे, शुभ 'छे ते बधुं ज पंचपरमेष्ठीना प्रभावे छे. अने समग्र जीवसृष्टिने परस्पर अभयनुं वचन आ पंचपरमेष्ठीने नमस्काररूप नवकार मंत्रना ज प्रभावे छे. आम नमस्कार महामंत्र विश्वव्यापी प्रभाव धरावतो श्रेष्ठ मंत्र छे, तेनी झांखी करावती आ नानकडी पुस्तिका सौने गमशे ओवी आशा छे. संसार = तमाम मारक तत्त्वोनी भिषण पल्ली. अहीं बहार बनता तेवा प्रसंगो जीवने रंजाडे छे. तो क्रोध वगेरे अंदर दझाडे छे. अनादिकालथी जीव आ मारक तत्त्वोथी त्रस्त छे. 'पंचपरमेष्ठीओनी परमकरुणाथी आ बंनेना त्रासथी मुक्त करावतो पंच'परमेष्ठी महामंत्र पण अनादिकालथी a Ercoaton Hier RRETIK 183 184 Personalwbuse.jamelibrary.org
SR No.001158
Book TitleShri 108 Navkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhayshekharsuri
PublisherArham Parivar Trust
Publication Year2006
Total Pages133
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy