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________________ जाप शरु करतां पहेला एक नवकारपूर्वक नीचेनुं बोली शुभ संकल्प करो. -शिवमस्तु सर्व जगतः परहितनिरता भवन्तु भूत गणाः । दोषाः प्रयान्तु नाशं, सर्वत्र सुखी भवतु लोकः। सर्वया सहु सुखी थाओ, पाप कोई न आचरो। | राग देष थी मुक्त थई ने, मुक्ति ना सुख जग सहु बरो॥ | खामेमि सब जीवे, सब्वे जीवा खमन्तु मे।। मित्ति मे सबभूसु, वेर मज्झं न केणई। विगत चत्वारि मंगलं, अरिहन्ता मंगलं, सिदा मंगलं, साहू मंगलं, केवलीपन्नतो धम्मो मंगलं । चचारि लोगुचमा, अरिहन्ता लोगुचमा, सिदा लोगतमा, साहू लोगुत्तमा, केवलीपन्नत्तो धम्मो लोगुत्तमो। चत्वारि सरणं पवज्जामि, अरिहन्ते सरणं पवज्जामि, सिद्धे सरणं पवज्जामि, साह सरणं पवज्जामि, deri a R u n & Personalise, jaimelibrary.org पवना
SR No.001158
Book TitleShri 108 Navkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhayshekharsuri
PublisherArham Parivar Trust
Publication Year2006
Total Pages133
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size17 MB
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