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________________ ५१२ श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनसप्ताध्यायीसूत्राणामकाराद्यनुक्रमः । समः पृचैपूज्वरेः ।५।२।५६|| समजनिपन्निषद-णः |५|३|९९|| समत्यपाभि-रः |५|२|६२|| समनुव्यवाद्रुधः | ५|२/६३|| समयात् प्राप्तः | ६|४|१२४|| समयाद्-याम् |७|२| १३७|| समर्थ: पदविधिः | ७|४|१२२|| समवान्धात्तमसः | ७|३|८०|| समस्ततहिते वा | ३ | २|१३९|| समस्तृतीयया | ३ | ३ |३२|| समांसमीना | ७|१|१०५ || समानपूर्व - तू | ६ |३|७९ ॥ समानस्य धर्मादिषु ||३|२|१४९|| समानादमोऽतः | १|४|४६|| समानानां - र्घः | १|२|१|| समानामर्थेनैकः शेषः | ३|१|११८|| समाया ईनः | ६ | ४|१०९ || : समासान्तः | ७|३|६९|| समासेऽग्नेः स्तुतः |२|३|१६|| समासेऽसमस्तस्य |२|३|१३|| समिणा सुगः | ५ | ३|२३|| समिध-न्यणू |६|३|१६२।। समीपे | ३|१|३५|| समुदाङ समुदोऽजः पशौ | ५ | ३ |३०|| समुद्रान्नृनावोः | ६ | ३ | ४८|| ग्रन्थे | ३ | ३|९८|| Jain Education International समूहार्थात्समेवते ||६|| ४ | ४६|| सर्मेंशेऽर्द्धं नवा | ३|१|५४|| समो समो गिरः 'गमृ-शः | २|३|८४|| |३|३|६६ || समझो वा | २/२/५१ || - ||३|५८|| मोवा | ५ | १ | ४६॥ सम्राजः क्षत्रिये | ६ | १|१०१ || सम्राट् |१|३|१६| सयसितस्य |२| ३ | ४७|| सरजसोप-वम् ।७।३।९४|| सरूपाद् द्रे:—वत् |६|३|२०९|| सरोऽनो-म्नोः | ७|३|११५|| सः स्थिर-मत्स्ये |५|३|१७|| सर्त्त्यर्त्तेर्वा | ३ | ४|६१ ॥ सर्वचर्मण ने सर्वजनाण्ण्येनञ | ७|१|१९|| सर्वपश्चा- यः | ३|१|८०|| |६|३|१९५|| सर्वाणो वा | ७|१|४३|| सर्वात् सहश्च |५|१|१११ ॥ सर्वादयोऽस्यादौ | ३|२|६१|| सर्वादिविष्वग्-ञ्चौ |३|२|१२२|| सर्वादेः प-ति |७|१|९४|| सर्वादेः सर्वाः |२|२|११९|| सर्वादेः स्मै-स्मातौ | १|४|७|| सर्वादेर्डस्पूर्वाः | १|४|१८|| For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001123
Book TitleSiddhahem Sabdanushasana sah swopagnya San Laghuvrutti
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorJambuvijay
PublisherHemchandracharya Jain Gyanmandir Patan
Publication Year1994
Total Pages678
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size9 MB
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