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________________ ५०० श्री सिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनसप्ताध्यायीसूत्राणामकाराद्यनुक्रमः । घोर्यपि | ४ | ३ |८६ ॥ लघ्वक्षरास-कम् ।३|१|१६०|| लङ्गिकम्प्यो- त्योः ||४|२|४७|| लभः |४|४|१०३॥ ललाटवात - कः | ५|१|१२५ || लवणादः | ६|४|६|| लषपतपदः |५|२|४१|| लाक्षारोचनादिकणू |६|२|२|| लिप्स्यसिद्धौ |५|३|१०|| लिम्पविन्दः | ५ | १|६०|| लियो नोऽन्तः - वे |४|२|१५|| लि लौ | १|३|६५|| लिहादिभ्यः | ५ | १|५०|| लीलिनो-पि | ३ | ३ | ९०|| लीलिनोर्वा | ४|२|९|| लुक् | १|३|१३|| लुक्चाजिनान्तात् | ७|३|३९|| लुक्युत्तरपदस्य कप्न् |७|३|३८|| लुगस्यादेत्यपदे |२| १|११३ ॥ लुगातोsनापः | २|१|१०७॥ लुप्यय्वृल्लेनत् |७|४|११२॥ लुबञ्चेः |७|२|१२३|| लुब् बहुलं पुष्पमूले |६|२|५७|| लुब्वाध्यायानुवाके | ७|२|७२|| लुभ्यश्चेर्विमोहा | ४|४|१४|| लूधूसू-त: |५|२|८७|| Jain Education International लूनवियतात् पशौ | ७|३|२१|| लोकंपूणम-नम् || ३ | २|११३|| लोकज्ञाते-र्ये | ७|४|८४|| लोकसर्व - |६|४|१५७|| लोकात् | १|१|३॥ लोमपिच्छादे: शेलम् |७|२|२८|| लोम्नोऽपत्येषु |६|१|२३|| लो लः |४|२|१६|| लोहितादिश-त् | २|४|६८|| लोहितान्मणौ | ७|३|१७|| वंशादेर्भा-त्सु |६|४|१६६।। वंश्यज्यायो - वा | ६ | १|३|| वंश्येन पूर्वार्थे | ३|१|२९| वचोऽशब्दनाम्नि | ४|१|११९|| वञ्चस्रंसध्वंस-नी |४|१|५०|| वटकादिन् | ७|१|१९६॥ वतण्डात् |६|१|४५ || वत्तस्याम् |१|१|३४|| वत्सशालाद्वा | ६ |३|१११|| वत्सोक्षाश्व-पित् |७|३|५१|| वदव्रजलः | ४|३|४८ || वदोऽपात् । ३।३।९७।। वन्यापञ्चमस्य |४/२/६५|| मि वा | २|३|८३ ॥ म्यविति वा |४| २|८७|| वय: शक्तिशीले |५|२|२४|| For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001123
Book TitleSiddhahem Sabdanushasana sah swopagnya San Laghuvrutti
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorJambuvijay
PublisherHemchandracharya Jain Gyanmandir Patan
Publication Year1994
Total Pages678
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size9 MB
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