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________________ मूलसड़ो फासादेसेणं सक्कत्थो सुकाइ स्पर्शादेशेन २५ [३],२८ [४], ३१ [४],३४[४], ५५ [३] स्पर्शावरणम् १६७९ स्पर्शेन्द्रियम् ९७३ ९७४ [५], ९७५ [२], ९७६ [४], ९७७ [२] ९७८ [२],९७९,९८३ [१-२], ९८५ [१७],९८७[१], ९८८, १०२८ [१], १०३२ [१], १०५६ फासिंदिभोवचए स्पर्शेन्द्रियोपचयः १००७, १००८ [१] फासिंदियअयोग्गहे स्पर्शेन्द्रियार्थावग्रहः १०१९, १०२१ [३] स्पर्शेन्द्रियोपयोगाद्धा फासिंदियउवगद्धा फासिंदियत्ताए फासावरणे फालिदिए १०१२ [१] स्पर्शेन्द्रियतया १८०५, १८०६ [१],२०५२[२] फासिंदिय निव्वत्तणा स्पर्शेन्द्रियनिर्वर्तना १००९ [१], १०१० [१] फासिंदियपरिणामे स्पर्शेन्द्रियपरिणामः ९२८ फासिंदियलद्धी स्पर्शेन्द्रियलब्धिः १०११ [9] फासिंदिय वंजणोग्ग हे स्पर्शेन्द्रियव्यञ्जनावग्रहः १०१८, १०२१ [२] • फासिंदियवेमाय स्पर्शेन्द्रियविमात्रतया ताए फासिंदियस्स फासिंदियं फासिंदियाणं बीयं परिसिहं - सहाणुकमो मूलसद्दो फासेण फासेणं फासे 39 Jain Education International १८१९, १८२२, १८२३ स्पर्शेन्द्रियस्य ९७९, ९८० [२], ९८१ [२], ९८२, ९८५ [७-८], ९९२[४] स्पर्शेन्द्रियम् पृ. २५३टि. १ स्पर्शेन्द्रियाणाम् ९७९, ९८२, १०१३ स्पर्शः १०२५, १०२८ [२-३] ८२९[२]गा. स्पर्शे १९१, २०३२ गा. २२४ फासेहि फासेहि सुत्तकाइ २१६९ ,, १७७, १७८ [१-२], १८८, १९६, १२३५ तः १२३७, २१६९ स्परौः ५०५ स्पर्शैः ५०९,५११, ५३० [१], ५३२ [१], ५३५ [१], ५३७ [१], ५३९ [१], ५४१ [१], ५४२ [१], ५४३ [१], ५५५ [१] *0 फासे हि ५३३ [१], ५३६ [१] फासेहिं ४४३, ५१९, ५३१ [१,३] फासेंदिए स्पर्शेन्द्रियम् ९८७[१-२], १०२७ [१], १०५७ फासेंदियभवाए स्पर्शेन्द्रियापायः १०१५ [9] फादियहा स्पर्शेन्द्रियेहा १०१६ [१] ० Q • फासेंदियाणं फासेंदियओगाहणा स्पर्शेन्द्रियावगाहना १०१४ फासेंदिवेमायत्ताए स्पर्शेन्द्रियविमात्रतया फासो फिडित्ता फुडत्ता फुडिया फुडे सक्कयत्थो स्पर्शन • फार्सेदियवेमायत्ताए फासेंदिस्स ० 37 स्पर्शैः For Private & Personal Use Only २७९ १८१२ १८२५ "" स्पर्शेन्द्रियस्य ९८५ [९], ९८७ [२४], १०१३ स्पर्शेन्द्रिययोः ९८७[२,४] स्पर्शः ५४७ [१] स्फिटित्वा पृ. २७१ टि. ८ स्फुटित्वा ૮૮૬ पृ. २१९ टि. ९ १००३ तः १००५, २१९६ स्पृष्टम् १००२, २१५३ [१-२], २१५६ [१-२], २१५७, २१५९ [१-२], २१६६ [१] " स्पृष्टः www.jainelibrary.org
SR No.001064
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorPunyavijay, Dalsukh Malvania, Amrutlal Bhojak
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1971
Total Pages934
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size16 MB
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