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________________ बीयं परिसिटुं-सहाणुकमो मूलसहो सक्कयत्थो सुत्तंकाइ । मूलसहो सक्कयत्थो सुत्तंकाइ गब्भवकंतिय- गर्भव्युत्क्रान्तिकोरः- गन्भवतियजलय- गर्भव्युत्क्रान्तिकजलउरपरिसप्पथलयर-परिसर्पस्थलचर रतिरिक्खजोणिय- चरतिर्यग्योनिकपंचेंदियतिरिक्ख. पञ्चेन्द्रियतिर्यग्यो पंचेंदियोरा- पञ्चेन्द्रियौदारिकजोणिएहिंतो निकेभ्यः ६३९ लियसरीरे शरीरम् १४८४[१] [१३, १५] • गन्भवतिय- गर्भव्युत्क्रान्तिकजलचर जलयरपंचेंदिए- पञ्चेन्द्रियेभ्यः ६३९ गम्भवक्कंतियउर- गर्भव्युत्क्रान्तिकोरःपरिसर्प- हिंतो परिसप्पथलयर- स्थलचरपञ्चेन्द्रियतिर्यग्यो गब्भवतियजल- गर्भव्युत्क्रान्तिक जलपंचेंदियतिरिक्ख. निकानाम् यरपंचेंदिय- चरपञ्चेन्द्रियजोणियाणं ३८३ [१] तिरिक्खजोणिए- तिर्यग्यो,, ३८३ [२-३] हिंतो निकेभ्यः ६३९[४,६] गम्भवतियखह- गर्भव्युत्क्रान्तिकखेचरपञ्चे गन्भवतियजल- गर्भव्युत्क्रान्तिकजलचर यरपंचेंदियति- पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिका. यरपंचेंदियति- न्द्रियतिर्थम्योनिकेभ्यः । रिक्खजोणिएहिंतो ६३९ [१९, २१] रिक्खजोणियाणं नाम् ३७७ [१] , ६३९ [२२] , ३७७[२-३] गब्भवक्कंतियखह- गर्भव्युत्क्रान्तिकखे. गन्भवतिय- गर्भव्युत्क्रान्तिकजलचराः जलयरा यरपंचेंदियतिरि- चरपञ्चेन्द्रियतिर्य १४९८ [४] गब्भवक्कंतियति- गर्भव्युत्क्रान्तिकक्खजोणियाणं योनिकानाम् ३८९[१] रिक्खजोणिय- तिर्यग्योनिकपञ्चे,, ३८९ [२-३] पंचेंदियओरा- न्द्रियौदारिकगब्भवतिय- गर्भव्युत्क्रान्तिकचतुष्प लियसरीरे शरीरम् १४९७[३] चउप्पएहिंतो देभ्यः ६३९ [८] गब्भवतियतिरि- गर्भव्युत्क्रान्तिकगब्भवतियच- गर्भव्युत्क्रान्तिक क्खजोणियपंचें- तिर्यग्योनिकपञ्चेउप्पयथलयर- चतुष्पदस्थलचर दियवेउब्विय- न्द्रियवैक्रियतिरिक्खजोणिय- तिर्यग्योनिक सरीरे शरीरम् १५१८[१-२] पंचेंदियओरालिय- पञ्चेन्द्रियौदारिक ,, १५१८[२५] सरीरे शरीरम् १४८५ [२] गब्भवऋतिय- गर्भव्युत्क्रान्तिकतिर्यगन्भवतियच- गर्भव्युत्क्रान्तिक तिरिक्खजोणिया ग्योनिकाः ११८० [८] उप्पयथलयरपंचें- चतुष्पदस्थलचर. गब्भवतिय- गर्भव्युत्क्रान्तिकदियतिरिक्ख- पञ्चेन्द्रियतिर्यग्यो पंचेंदियतिरिक्ख- पञ्चेन्द्रियतिर्यजोणिएहितो ग्योनिकाः५८४, ६३४, निकेभ्यः ६३९ [१०] जोणिया ,, ६३९[१०.११] ११८० [५, ७] गब्भवतिय- गर्भव्युत्क्रान्तिकगब्भवतियच- गर्भव्युत्क्रान्तिक पंचेंदियतिरिक्ख- पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिउप्पयथलयर- चतुप्पदस्थलचर जोणियाण कानाम् ११८० [५] पंचेंदियतिरिक्व- पञ्चेन्द्रियतिर्यग्यो गब्भवतिय- , ३७४[१], जोणियाण निकानाम् ३८० [१] पंचेंदियतिरिक्ख- ७४७, ७६१, ११६३ . ३८०[२.३] - जोणियाणं [३], ११८० [३, ७.८] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001064
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorPunyavijay, Dalsukh Malvania, Amrutlal Bhojak
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1971
Total Pages934
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size16 MB
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