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________________ ४७७] उवकमाणुओगदारे भावप्पमाणदारं । पएसो सिया जीवपएसो सिया खंधपएसो ३, जीवपएसो वि सिया धम्मपएसो सिया अधम्मपएसो सिया आगासपएसो सिया खंधपएसो ४, खंधपएसो वि सिया धम्मपदेसो सिया अधम्मपदेसो सिया आगासपदेसो सिया जीवपदेसो ५, एवं ते अणवत्था भविस्सइ, तं मा भणाहि-भइयव्वो पदेसो, भणाहि-धम्मे पदेसे से पदेसे धम्मे, अहम्मे पदेसे से पदेसे अहम्मे, आगासे पदेसे से पदेसे आगासे, जीवे ५ पदेसे से पदेसे णोजीवे, खंधे पदेसे से पदेसे णोखंधे। एवं वयंतं सद्दणयं । समभिरूढो भणति-जं भणसि-धम्मे पदेसे से पदेसे धुम्मे जाव खंधे पदेसे से पदेसे नोखंधे, तं न भवइ, कम्हा ? ऍत्थ दो समासा भवंति, तं जहा-तप्पुरिसे य कम्मधारए य, तं ण णजइ कतरेणं समासेणं भणसि ? किं तप्पुरिसेणं किं कम्मधारएणं ?, जइ तप्पुरिसेणं भणसि तो मा एवं भणाहि, अह कम्मधारएणं भणसि १० तो विसेसओ भणाहि-धम्मे य से पदेसे य से से पदेसे धम्मे, अहम्मे य से पदेसे य से से पदेसे अहम्मे, आगासे य से पदेसे य से से पदेसे आगासे, जीवे य से पदेसे य से से पदेसे नोजीवे, खंधे य से पदेसे य से से पदेसे नोखंधे । एवं वैयंतं संपयं समभिरूढं एवंभूओ भणइ-जं जं भणसि तं तं सव्वं कसिणं पडिपुण्णं निरवसेसं एगगहणगहितं देसे वि मे अवत्थू पदसे वि मे अवत्थू । से १५ तं पदेसदिटुंतेणं । से तं णयप्पमाणे । . ४७७. से किं तं संखप्पमाणे ? २ अट्ठविहे पण्णत्ते । तं जहा-नामसंखा ठवणसंखा दव्वसंखा ओवमसंखा परिमाणसंखा जाणणासंखा गणणासंखा भावसंखा। १. °पएसो सिया आगासपएसो सिया जीव सं० वा० । हारिवृत्तिसम्मतोऽयं पाठः ॥ २. 'पएसो सिया जीवपएसो सिया खंध सं० वा०। हरिवृत्चिसम्मतोऽयं पाठः॥ ३. °पएसो सिया जाव खंधपएसो ५ एवं अण° सं० वा० संवा० । हारिवृत्तिसम्मतोऽयं पाठः॥ ४. धम्मे, जाव खंधे पदेसे डे० वी० ॥ ५. वयंत संपतिसइं समभि सं० संवा० वी० हारि० ॥ ६. °णसि एवं-धम्मे खं० जे० वा.॥ ७. धम्मे, अधम्मे पदेसे से पदेसे अधम्मे, आकासे पदेसे से पदेसे भाकासे, जीवे पदेसे से पदेसे णोजीवे, खंधे पदेसे से पदेसे नोखंधे सं०॥ ८. इत्थं खलु दो मु०॥ ९. धम्मे जाव खंधपएसे खंधे । एवं भणंतं समभिरूढं संवा० वी०॥ १०. भणतं समभि सं०। वयंतं समभिरूढं संपइएवंभूमो मु०॥ ११. संखपामाणे संवा० ॥ १२. सं० विनाऽन्यत्र-- भावसंखा। नाम-ठवणातो पुब्ववन्नियातो जाव से तं भवियसरीरदब्वसंखा। से किं तं जाणयसरीरभवियसरीरवइरित्ता दव्वसंखा? खं० जे० वा० । भावसंखा। से किं तं नामसंखा? २ जस्स गं जीवस्स वा जाव से तं नामसंखा। से किं तं ठवणसंखा? २ जणं कटकम्मे वा पोत्थकम्मे वा जाव से तं ठवणसंखा । नाम-ठवाणाणं को पइविसेसो ? नाम पाएणं भावकहियं, ठवणा इत्तिरिया वा होजा आवकहिया वा। से किं तं दव्वसंखा? २ दुविहा पं०। तं०-आगमओ य नोआगमओ य जाव से किं तं जाणगसरीरभवियसरीरवइरित्ता दव्वसंखा संवा० वी० ॥ .. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001062
Book TitleNandisutt and Anuogaddaraim
Original Sutra AuthorDevvachak, Aryarakshit
AuthorPunyavijay, Dalsukh Malvania, Amrutlal Bhojak
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1968
Total Pages764
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_nandisutra, & agam_anuyogdwar
File Size14 MB
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