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________________ अणुभगद्दारे [ सु० २५८ कसाया खइयं सम्मत्तं पारिणामिए जीवे, एस णं से णामे उदइए उवसमिए खइए पारिणामियनिप्पन्ने २ २ । कतरे से णामे उदइए उवसमिए खओवसमिए पारिणामियनिप्पन्ने ? उदए त्ति मणूसे उवसंता कसाया खओवसमियाई इंदियाई पारिणामिए जीवे, एस णं से णामे उदइए उवसमिए खओवसमिए ५ पारिणामियनिप्पन्ने ३ कतरे से णामे उदइए खइए खओवसमिए पारिणाामयनिप्पन्ने ? उदए त्ति मणूसे खइयं सम्मत्तं खओवसमियाई इंदियाइं पारिणामिए जीवे, एस णं से नामे उदइए खइए खओवसमिए पारिणामियनिप्पन्ने ४ । कतरे से नामे उवसमिए खइए खओवसमिए पारिणामियनिप्पन्ने ? उवसंता कसाया खइयं सम्मत्तं खओवसमियाइं इंदियाई पारिणामिए १० जीवे, एस णं से नामे उवसमिए खइए खओवसमिए पारिणामियनिप्पन्ने ५ । - २५८. तत्थ णं जे से एक्के पंचकसंजोगे से णं इमे - अत्थि नामे उदइए उवसमिए खइए खओवसमिए पारिणामियनिप्पन्ने १ ११६ २५९. कतरे से नौमे उदइए उवसमिए खइए खओवसमिए पारिणामियनिप्पन्ने ? उदए त्ति मणूसे उवसंता कसाया खइयं सम्मत्तं खओवसमियाई १५ इंदियाई पारिणामिए जीवे, एस णं से णामे उदइए उवसमिए खइए खओवसमिए पारिणामियनिप्पन्ने। से तं सन्निवाइएँ । से तं छण्णामे । २० २६०. [१]. से किं तं सत्तनामे १ २ सत्त सरा पण्णत्ता । तं जहा - Jain Education International सज्जे १ रिसमे २ गंधारे ३ मज्झिमे ४ पंचमे सरे ५ । धे ६ चेव णेसाए ७ सरा सत्त वियाहिया ॥ २५ ॥ [२] एएसि णं सत्तण्हं सराणं सत्त सरट्ठाणा पण्णत्ता । तं जहासज्जं च अग्गजीहाए १ उरेण रिसहं सरं २ | कंटुग्गतेण गंधारं ३ मज्झजीहाए मज्झिमं ४ ॥ २६ ॥ १. पंचा सं° सं०॥ २. उदइय-उवसमिय खइय-खाभोवसमिय-पारि संवा० ॥ ३. नामे उदय जाव पारिणा संवा० वी० ॥ ४. नामे जाव पारि संवा० ॥ ५. 'ए णामे । से सं० ॥ ६. खं० विनाऽन्यत्र — धेवइए संवा० । रेवए सं० वा० जे० । वाचनान्तरमिदं निर्दिष्टमस्ति मलधारिपादैर्वृत्तौ । किञ्च श्रीहरिभद्रसूरिभिरिदमेव वाचनान्तरं मौलिकतयाऽऽदृतमस्ति ॥ ७. आगमेण वी० संवा० ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001062
Book TitleNandisutt and Anuogaddaraim
Original Sutra AuthorDevvachak, Aryarakshit
AuthorPunyavijay, Dalsukh Malvania, Amrutlal Bhojak
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1968
Total Pages764
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_nandisutra, & agam_anuyogdwar
File Size14 MB
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