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________________ पाईणायरियविरइया 162. दसनहमंजलिमारोविऊण सक्कत्थएण जिणनाहे । वंदइ 'नमोऽत्थु णं जा संपत्ताणं' ति अंतेण ॥१६२॥ चिंइवंदणदारं १४॥ [गा. १६३-२१८. पन्नरसमं आलोयणदारं] 163. अह सल्लुद्धरणत्थं खवगो काऊण वंदणं विहिणा । आलोयणं पउंजइ गुरूण संविग्गगीयाणं ॥ १६३॥ 164. अग्गीओ न वियाणइ सोहिं चरणस्स देइ ऊणऽहियं । तो अप्पाणं आलोयगं च पाडेइ संसारे ॥१६४॥ 165. तम्हा उक्कोसेणं खित्तम्मि उ सत्त जोयणसयाई । काले बारस वरिसा गीयत्थगवेसणं कुज्जा ॥१६५ ॥ 166. आलोयणापरिणओ सम्मं संपट्टिओ गुरुसयासे । जइ अंतर्रालि कालं करिज्ज आराहओ तह वि ॥ १६६॥ 167. दव्वाईसु सुभेसुं उक्कुडुगो पंजली तदुवउत्तो । आलोयणदोसजढो चउकन्नं वियडणं दावे ॥ १६७॥ 168. इत्थी पुण उद्धठिया अवणयकाया अछन्नठाणठिया । गुत्तिंदिओवउत्ता अडकन्नं सम्ममालोए ॥ १६८॥ 169. सुगुरूण अलाभम्मि आलोएज्जाऽववायओ। पासत्थाणं पि गीयाणं काउं. सव्वं पि तं विहिं ॥१६९॥ 170. तदभावे उ अन्नेसिं जा सिद्धे काउ माणसे । आराहणा ससल्लाणं जओ नत्थि ति सासणे ॥ १७० ॥ 171. आलोएज्जा य संविग्गो अगोविंतो य दुक्कियं । आरम्भ बालकालाओ जं जहा विहियं पुरा ॥ १७१॥ 172. जह बालो जपंतो कजमकजं च उज्जयं भणइ । तं तह आलोएज्जा माया-मयविप्पमुक्को य ॥१७२ ॥ १. नमु त्थु A. विना ॥ २. चैत्यवन्दनाद्वारम् १४ ॥ सर्वासु प्रतिषु ॥ ३. सगासं F.॥ १. रा वि का E. F.|| ५. गात्तं दिया य तह अटकन्नमालोयए सम्मं A.विना ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001045
Book TitlePainnay suttai Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Amrutlal Bhojak
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1987
Total Pages427
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_anykaalin, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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