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५. आराहणापयरणं 2598. इय पंचनमुक्कारो पावाण पणासणोऽवसेसाणं ।
तो सेसं चइऊणं सो गेज्झो मरणकालम्मि ॥७९॥ 2599. अरहाइनमुक्कारो जीवं मोएइ भवसहस्साओ।
भावेण कीरमाणो होइ पुणोबोहिलाभाय ॥ ८०॥ 2600. पंचनवकारमंतो हिययम्मि पइट्ठिओ भवे जस्स ।
मोहपिसाओ न जिणेइ तं नरं, तरइ य भवोहं ॥ ८१ ॥ 2601. पंचनमुक्कारसुसिण्णसंजुओ परभवे पयाणम्मि ।
वट्टइ सो वरजोहो व्व, तं न विद्दवइ कम्मरिऊ ॥ ८२ ॥ 2602. पंचनमोक्कारवरत्थसंगओ अणसणावरणजुत्तो।
वयकरिवरखंधगओ मरणरणे होइ दुजेओ ॥८३॥ दारं ६॥
[गा. ८४-८५. उपसंहारो पयरणसमत्ती य] 2603. एवंविह वरमरणं सरणं सत्ताण दुक्खतत्ताणं ।
पाविति परमकल्लाणकारणं केवि भव्वजिया ॥ ८४ ॥ 2604. इय अभयसूरिरइयं आराहणपगरणं पढंताणं ।
सत्ताण होइ नियमा परमा कलाणनिप्फत्ती ॥ ८५॥
॥ आराधनाप्रकरणं समाप्तम् ॥
१. हवह ज जे २ ॥ २. कारणं नेव निप्पुण्णा ।। जे २ ॥
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