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________________ २०४ 2300. णिग्गंथं पावयणं सच्चं तच्चं च सासयं कसिणं । सारं गुरुसुंदर कलाणं मंगलं सेयं ॥ ११६ ॥ 2301. पावारिसलगत्तणसंसुद्धं सिद्धसुद्धसद्धम्मं । दुक्खारिसिद्धिमग्गं अवितहनिव्वाणमग्गं च ॥ ११७ ॥ 2302. एत्थं च ठिया जीवा सिज्झती, कम्मुणा विमुञ्चति । पालेमि इमं तम्हा, फासेमि य सुद्धभावेणं ॥ ११८ ॥ 2303. सम्मत्त - गुत्तिजुत्तो विलुत्तमिच्छत्त अप्पमत्तो य । पंचसमिईहिं समिओ समणो हं संजओ एहि ॥ ११९ ॥ 2304. कायव्वाइं जाई भणियाइं जिणेहिं मोक्खमग्गम्मि | जह तह ताई तइया न कयाई पडिक्कमे तस्स ॥ १२० ॥ 2305. पडिसिद्धाई जाई जिणेहिं एयम्मि मोक्खमग्गमि । जइ मे ताई कयाई पडिक्कमे ताइं सव्वाई ॥ १२१ ॥ 2306. दिवंत - हेउजुत्तं तेहिं विउत्तं च सद्देहेयव्वं । जर किंचि ण सद्दहियं ता मिच्छा दुक्कडं तस्स ॥ १२२ ॥ 2307. जे जह भणिए अत्थे जिणिंदर्यदेहिं समियपावेहिं । विवरीए जइ भणिए मिच्छा मिह दुक्कडं तस्स ॥ १२३ ॥ 2308. उस्सुत्तो उम्मग्गो ओकप्पो जो कओ अईयारो । तं निंदण - गरहाहिं सुझउ आलोयणेणं च ॥ १२४ ॥ 2309. आलोयणाए अरिहा जे दोसा ते इहं समालोए । सुज्झति पडिक्कमणे दोसाओ पडिक्कमे ताण ॥ १२५ ॥ 2310. उभरण वि अइयारा केवि विसुज्झंति ते विसोमि । पारिट्ठावणिएणं अहसुद्धी तं चिय करेमि ॥ १२६ ॥ सिरिउज्जोयणसूरिविरइय कुवलयमाला कहाअंतग्गयं 2311. काउस्सग्गेर्णे तहा अइयारा केइ जे विसुज्झति । Jain Education International अहवा तवेण अन्ने करेमि अन्मुट्ठिओ तं पि ॥ १२७ ॥ १. ता इहं सव्वे ॥ मुकु० प्रत्य० ॥ २. हे सव्वं । ज' खे० ॥ ३ ताई ॥ मुकु० प्रत्य० ॥ ४. 'ति ताई सो° मुकु० प्रत्य० ॥ ५ ण अहो अइ° मुकु० प्रत्य० ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001045
Book TitlePainnay suttai Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Amrutlal Bhojak
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1987
Total Pages427
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_anykaalin, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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