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३. पज्जंताराहणा 2168. कम्मस्स य निजरणं १० उत्तमगुणभावणा ११ दुलहबोहिं १२ । __इय भावणाओ बारस भावेसु तुमं सुदढचित्तो ।। २४७॥
[गा. २४८-५२. एगूणवीसइमं कवयदारं]
कवयं ति2169. जइ कह वि वेयणत्तो छुहिओ सो चलइ नियपइन्नाओ।
तो सुगुरू उच्छाहं सुपइन्ने महुरवयणेणं ॥ २४८॥ 2170. सुण सोम ! अणन्नमणो एयं परिपालियं अणेगेहिं ।
उवसग्गेहिं न भग्गं ते दिटुंते मणे धरसु ॥ २४९ ॥ 2171. जिणवर-गणहर-मुणिवर-समणी-सावय-सुसावियाईहिं ।
हय-गयतिरियाईहि य बालतवस्सीहिं नो चत्ता ॥ २५०॥ 2172. तिन्नो य भवसमुद्दो इमेण जम्मेण होइ दहछेओ ।
___ अट्टविहकम्ममुक्को अइरेणं लहसि निव्वाणं ॥ २५१ ॥ 2173. इय उवसमसंजुत्तो सरीरपीडाइ झाइ अटै वा । तो सुगुरू एगंते कवयं उववाइयं देइ ॥ २५२ ॥
[गा. २५३-५७. वीसइमं नवकारदारं] नवकार त्ति2174. तेण कयसदिढचित्तो मोहबलं हणइ सुगुरुवयणेणं ।
पंचपरमिट्ठिसारं नवकारं झायई खवगो ॥ २५३॥ 2175. पंचनमुक्कारसमा अंते वचंति जस्स दस पाणा ।
सो जइ न जाइ मुक्खं अवस्स वेमाणिओ होइ ॥ २५४ ॥ 2176. हिययगुहाए नवकारकेसरी जाण संठिओ निचं ।
कम्मट्टगंठिदोघट्टघट्टयं ताण परिनटं ॥ २५५॥ 2177. जिणसासणस्स सारो चउदसपुव्वाण जो समुद्धारो।
जस्स मणे नवकारो संसारो तस्स किं कुणइ १ ॥ २५६॥ 2178. नवकारपभावेणं जीवो नासेइ दुरियसंघायं ।
नंदमणियारसिट्ठी दिद्रुतो इत्थ वत्थुम्मि ॥२५७ ॥
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