SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 205
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५२ सिरिवीरभद्दायरिय विरइया 1740 अट्टे चउप्पयारे रोद्दम्मि चउव्विहम्मि जे भेया । ते सव्वे परियाणा संथारगओ तओ खवओ ॥ ८०८ ॥ 1741 तो भावणाहिं भावियचित्तो झाएइ धम्मझाणं सो । सुद्धा हिं नाण- दंसण-चरित - वेरग्गरूवाहिं ।। ८०९ ॥ 1742. पढमं आणाविचयं १ अवायविचयं २ विवायविचयं ३ च । संठाणविचय४ चरिमं धम्मज्झाणं झियाइ मुणी ॥ ८१० ॥ *1743. पउणमणवज्जमणुवममणाइनिहणं महत्थमवहत्थं । हियमजियममियम वितहमविरोहममोह मोहहरं ॥ ८११ ॥ 1744. गंभीरममयसुहयं सुइसुहयमबाहयं महाविसयं । निउणं जिणाण आणं चिंतेइ अर्चितमाहप्पं १ ॥ ८१२ ॥ 1745 इंदिय - विसय - कसायाऽऽसवाइकिरियासु वट्टमाणस्स । नरयाइभवावासे विविहावाए विचिंतेइ २ ।। ८१३ ॥ 1746. मिच्छत्ताइनिमित्तं सुहाऽसुहं पयइमाइ बहुबंधं । कम्मविवागं चिंतइ तिव्वं मंदाणुभावं सो ३ ।। ८१४ ॥ 1747 पंचऽत्थिकायमइयं लोगमणाइनिहणं जिणक्खायं । तिविहमहोलो गादी दीव - समुद्दाइ चिंतेइ ४ ॥ ८१५ ॥ 1748. होइ य झाणोवरमे निच्चमणिच्चाइभावणाणुगओ । ताओ य सुविहियाणं पवयणविहिणा पसिद्धाओ ।। ८१६ ॥ 1749. भावेइ भावियप्पा विसेसओ नवर तम्मि समयम्मि । पess निग्गुणत्तं संसारमहासमुहस्स || ८१७ ॥ 1750 जम्म- जरा - मरणजलो अणाइमं वसणसावयाइण्णो । जीवाण दुक्खहेऊ कट्ठे रोद्दो भवसमुद्दो || ८१८ ॥ 1751. धण्णो हं जेण मए अणोरपारम्मि भवसमुद्दम्मि | भवसयसहस्सदुलहं लद्धं सद्धम्मजाणमिणं ॥ ८१९॥ 1752 एयस्स पभावेणं पालिजंतस्स सइ पयत्तेणं । जम्मंतरे वि जीवा पाविति न दुक्ख - दोहग्गं ॥। ८२० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001045
Book TitlePainnay suttai Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Amrutlal Bhojak
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1987
Total Pages427
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_anykaalin, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy