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________________ ६६ पाईणायरियविरहया 719. उम्मग्गदेसणा १ मग्गदसणं २ मग्गविपडिवत्ती ३ य। मोहो य ४ मोहजणणं ५ एवं सा हवइ पंचविहा ५ ॥ ७१९॥ 720. जो संजओ वि एयासु अप्पसत्थासु वट्टइ कहंचि । । सो तविहेसु गच्छइ सुरेसु भइओ चरणहीणो ॥ ७२०॥ 721. एयाओ भावणाओ भाविता देवदुग्गई जंति । तत्तो वि चुया संता भमंति भवसायरमणंतं ॥ ७२१॥ 722. एयाओ विसेसेणं परिहरई चरणविग्घभूयाओ। एयनिरोहाओ चिय सम्मं चरणं च पाविति ॥ ७२२॥ ॥ कुभावना त्याग]द्वारम् १४ ॥ [गा. ७२३-२८. पन्नरसमं संलेहणाइयारपरिहरणअणुसट्ठिपडिदारं] 723. इह-परलोगाऽऽसंसप्पओग १-२ मरणं ३ च जीवियासंसा ४ । कामे भोगे य ५ तहा पंचऽइयारे विवजिज्जा ॥ ७२३॥ 724. इह इहलोगाऽऽसंसा जं चक्कित्ताइरिद्धिपत्थणयं १ । परलोगाऽऽसंसा पुण जं इंदत्ताइअभिलासो २ ॥ ७२४ ॥ 725. विहियाणसणो खवगो वियणं सोढुं अचायमाणो उ। सिग्धं मरणं पत्थेइ एस मरणे य आसंसा ३॥ ७२५॥ 726. लोए पूयं दट्टण अप्पणो किन्जमाण तो चिंते। 'जीवामि जइ चिरं सुंदरं'ति इय जीवियाऽऽसंसा ४ ॥७२६॥ 727. इह-परलोइयसद्दाइएसु विसएसु होइ जा मुच्छा। खवगस्स उत्तमढे पंचमओ एस अइयारो ५ ॥ ७२७॥ 728. संलेहणाए सम्मं अइयारे पंच वी परिहरिजा। खवगो विसुद्धभावो आराहणविजविग्घकरे ॥ ७२८॥ ॥संलेखनातिचारद्वारम् १५॥ १. °गणं ५ सम्मोहा पंचहा एवं ५ ॥ A. ॥ २. पच्छेइ A. ॥ ३. 'नाद्वारम् C. E. ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001045
Book TitlePainnay suttai Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Amrutlal Bhojak
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1987
Total Pages427
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_anykaalin, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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