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पाईणायरियविरहया 719. उम्मग्गदेसणा १ मग्गदसणं २ मग्गविपडिवत्ती ३ य।
मोहो य ४ मोहजणणं ५ एवं सा हवइ पंचविहा ५ ॥ ७१९॥ 720. जो संजओ वि एयासु अप्पसत्थासु वट्टइ कहंचि ।
। सो तविहेसु गच्छइ सुरेसु भइओ चरणहीणो ॥ ७२०॥ 721. एयाओ भावणाओ भाविता देवदुग्गई जंति ।
तत्तो वि चुया संता भमंति भवसायरमणंतं ॥ ७२१॥ 722. एयाओ विसेसेणं परिहरई चरणविग्घभूयाओ। एयनिरोहाओ चिय सम्मं चरणं च पाविति ॥ ७२२॥
॥ कुभावना त्याग]द्वारम् १४ ॥
[गा. ७२३-२८. पन्नरसमं संलेहणाइयारपरिहरणअणुसट्ठिपडिदारं] 723. इह-परलोगाऽऽसंसप्पओग १-२ मरणं ३ च जीवियासंसा ४ ।
कामे भोगे य ५ तहा पंचऽइयारे विवजिज्जा ॥ ७२३॥ 724. इह इहलोगाऽऽसंसा जं चक्कित्ताइरिद्धिपत्थणयं १ ।
परलोगाऽऽसंसा पुण जं इंदत्ताइअभिलासो २ ॥ ७२४ ॥ 725. विहियाणसणो खवगो वियणं सोढुं अचायमाणो उ।
सिग्धं मरणं पत्थेइ एस मरणे य आसंसा ३॥ ७२५॥ 726. लोए पूयं दट्टण अप्पणो किन्जमाण तो चिंते।
'जीवामि जइ चिरं सुंदरं'ति इय जीवियाऽऽसंसा ४ ॥७२६॥ 727. इह-परलोइयसद्दाइएसु विसएसु होइ जा मुच्छा।
खवगस्स उत्तमढे पंचमओ एस अइयारो ५ ॥ ७२७॥ 728. संलेहणाए सम्मं अइयारे पंच वी परिहरिजा। खवगो विसुद्धभावो आराहणविजविग्घकरे ॥ ७२८॥
॥संलेखनातिचारद्वारम् १५॥
१. °गणं ५ सम्मोहा पंचहा एवं ५ ॥ A. ॥ २. पच्छेइ A. ॥ ३. 'नाद्वारम् C. E. ॥
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