SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 113
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पाईणायरियविरइया 653. धम्म-ऽत्थ-काम-भोगाण हारणं, कारणं दुहसयाणं । मा कुणसु कयभवोहं कोहं जइ जिणमयं मुणसि ॥ ६५३॥ 654. इहलोए चिय कोवो सरीरसंताव-कलह-वेराई । कुणइ पुणो परलोए नरगाइसु दारुणं दुक्खं ॥ ६५४ ॥ 655. धम्मो सुहाण मूलं, मूलं धम्मस्स उत्तमा खंती। हैरइ महाविज्जा इव खंती दुरियाई सयलाई ॥ ६५५॥ 656. कोवम्मि खमाएँ वि य चंकारिय खुड्डुओ य आहरणं । कोवम्मि दुहं पता खमाए नमिओ सुरेहिं पि ॥ ६५६ ॥ इति कोपः॥ 657. माणी वेसो सव्वस्स होइ, कलह-भय-वेर-दुक्खाणि । पावइ माणी निययं इह-परलोए य अवमाणं ॥ ६५७॥ 658. सव्वे वि कोहदोसा माणवसायस्स हंति नायव्वा। माणेण चेव मेहुण-हिंसा-ऽलिय-चुज्जमायरइ ॥ ६५८॥ 659. सयणस्स जणस्स पिओ नरो अमाणी सया हवइ लोए । नाणं जसं च अत्थं लभइ सकजं च साहेइ ॥ ६५९ ॥ 660. न य परिहायइ कोई अत्थो मउयत्तणे पउत्तम्मि । इह य परत्त य लभई विणएण हु सव्वकल्लाणं ॥६६०॥ इति मानः २॥ 661. जे मुद्धजणं परिवंचयंति बहुअलिय-कूड-कवडेहिं । अमर-नर-सिवसुहाणं अप्पा वि हु वंचिओ तेहिं ॥ ६६१॥ 662. जइ वणिसुयाए दुक्खं लद्धं इक्कसि कयाए मायाए। तो ताण को विवागं जाणइ जे माइणो निचं? ॥६६२॥ इति माया ३॥ 663. कोहाइणो य सव्वे लोभाओ चिय जओ पयर्टेति । एसो चिय तो पढमं निग्गहियव्वो पयत्तेणं ॥ ६६३॥ 664. न य विहवेणुवसमिओ लोभो सुर-मणुय-चक्कवट्टीहिं। 'संतोसो चिय जम्हा लोभविसुच्छायणे मंतो ॥६६४॥ १. कोवं B.C. E.॥ २. खंती सुहा° F. ॥ ३. हणइ F. ॥ १. °ए वी चं° C. E. ॥ ५. कारी खु° C.॥ ६. रणे D.॥ ७. पत्तो F.॥ ८. °णकसा? A. विना ॥ ९. एसु च्चिय C. E. F. ॥ १०. संतोसु च्चिय C. E. F. ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001045
Book TitlePainnay suttai Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Amrutlal Bhojak
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1987
Total Pages427
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_anykaalin, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy