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________________ सहो " वियाहपण्णत्तिसुत्तंतग्गयाणं सद्दाणमणुक्कमो १४७५ पिट्ठ-पंतीए । सद्दो पि?-पंतीए ववगतचुय-चइय-चत्तदेह २७८-२३ वसुमित्ता-वसुमित्ताववगतमाला-वण्णगविलेवण ईशानेन्द्राग्रमहिषी ५०३-२२ ववगय ५४५-३, ५६२-२ वसुंधरा = वसुन्धरा* ववरोव चमरलोकपालाग्रमहिषी ४९८-२२ - ववरोवेति २०७-१९, २०८-९, = -ईशानेन्द्राग्रमहिषी ५०३-२३ ३१०-४, ७७४-१२,७७५-४ वसू = वसु- , ५०३२२ * ववस वह = वध २९४-१२, ३९३-२२, ७०१-- - ववसह ८०१-१४ २, ७०२-२, ७१९-९, ७२१ववसाअ ११२-१० ६, ७५०-१७ ववसिय ४६४-१६ वहणट्ठया=वहनार्थता २७९-४ ववहरमाण ३७२-२ वहत्ता=वधकत्व ६००-४ ववहार ३७१-१३, ३७२-१ वह[परीसह] ३७५-१७ ववहारवं = व्यवहारवान् १०६०-११ वहमाण = वहमान १४७-१३, १९७-८, * वस ७०४-७, ७११-१६ -वसाहि ४७३-३ वहय-वधक-वध ५९-१२ -वसित्ता ६९३-४ वहाए = वधार्थम् ५७-१२, ५८-१४, वस = वश ८२-१, १४८-१६, १४९-७, १५०-१०, १५३४६०-६,५१६-१९, ८३०-२ १२, ७२१-३ वसट्ट ५६६-६,५७१-२० वहिय = वधित ३०६-५, ३०७-८ वसहमरण ८४-१९ ५४८-११ वसण = व्यसन ४६१-४ २९४-१७, ८१२-२२,८१३-२ , वसन-वस्त्र ४६९-२०, ४७०-५ वंकनास २९४-१७ वसणब्भूय = व्यसनभूत-आपद्रूप १७१-८, वंग [जणवय] ७२१-४ १७३-४ वंग = व्यङ्ग पृ० २९४ टि. १६ वसभ=वृषभ ७६२-१९ वंचणया ५८८-१ " = "-महत ६०१-१२ वंजण = व्यन्जनाक्षर वसभवाहण १२९-१० ,, = व्यञ्जन-स्निग्धद्रव्य ५९५-१५ वसह-वृषभ ५४३-८ ,, = ,,-शरीरचिह्न ८१-१५, ४६१वसहि ६४०-२०,६४१-२, १२, ५४८-८ ६८३-१०, ६९२-८, ६९४- ,, ,,-शालनक, तकादि वा ३१५२, ८३०-१० १८, ३१६-१० वसंत ४-२२, ४५५-९ वंजणोग्गह ३३७-९ वसाकुंभ ७६६-४ वंतवान्त-त्यक्त ५९३-१९ वसिट्ठ = द्वीपकुमारदेवविशेष . १७७-१ ,, ,, - वमन ५३-५, ४६२-१४, ५९७-१३ वसुगुत्ता=वसुगुप्ता *वंद ईशानेन्द्राग्रमहिषी ५०३-२२ ज-वंदइ ७६-१६, १२२-८, २२१-२२, वसुधारा १७५-५, ६९४-२०, ६९५-६ । ३१४-३, ४१९-१९, ५६९-९ वहु वंक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001020
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi, Amrutlal Bhojak
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1982
Total Pages556
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_bhagwati
File Size24 MB
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