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________________ वियाहपण्णत्तिसुत्तंतग्गयाणं सहाणमणुक्कमो १२५९ सहो पिट्ठ-पंतीए सहो पिट्ठ-पंतीए उन्नय १३८-१४, ५३७-१६,५८७-२० उप्पयण २७९-२ उन्नयतर १३८-१० उप्पयणकाल १५२-१० उन्नाम= उनमन ५८७-२० उप्पल = उत्पल-कालमान- १८६-१४, * उपादा विशेष २६०-६, १०१२-१८ -उपादाय ६९३-५ उप्पल = उत्पल ९१-१७, ५३८-७, उप्पकड ८१८-९ ४७५-७,५०६-३, * उप्पज उप्पलउद्देसय ५१३-१४ - उप्पजंति २२७-१९ उप्पलकण्णियत्ता ५१३-१० - उप्पज्जित्ता १२८-१० उप्पलकंदत्ता - उप्पजिस्संति उप्पलकेसरत्ता - उप्पजिंसु २२७-१९ उप्पलजीव ५११-१२,५१२-३ * उप्पत उप्पलथिभगत्ता ५१३-११ - उप्पतति १५१-१४ उप्पलनालत्ता ५१३-१० - उप्पतित्ता १४९-२१, २४७-२० उप्पलपत्तत्ता ५१३-१० - उप्पतज्जा १६४-३ उप्पलमूलत्ता ५१३-९ उप्पतिय १४८-३, ७१८-२ उप्पलहत्थग ६५५-११ उप्पतियपुव्व १४३-२२ उप्पलंग = उत्पलाङ्ग-कालमान- २६०-६, उप्पत्ति १४०-११, १४२-६ विशेष १०१२-१८ उप्पत्तिया [बुद्धि] ५८८-१५, ७७९-१३, उप्पला= उत्पला - कालपिशाचेन्द्रा- ५०१-८ ८५७-१९ प्रमहिषी उप्पन्न २२८-१० उप्पलुद्देस +°ग, °य ५१४-४, ५१५-३, उप्पन्नकोऊहल्ल २-१४ १०-१६,८९१-२,८९३-८, उप्पन्न नाण-दसणधर ३३-१५, ३४-१०, ११४५-५, ११५५-५, ७७-१, ८१-५, २७४-१, उप्पलुद्देसगपरिवाडी ११४४-५ ३३६-१९, ४७८-१७,५६५- * उप्पाड २०, ६०२-१७, ७२३-६ - उप्पाडेइ ६९९-१६ उप्पन्नपक्ख = उत्पन्नपक्ष-उत्पन्न - उप्पाडेज ४१२-४,४२०-८ परिग्रह ३-११ - उप्पाडेति ७६६-१ उप्पन्नसड्ढ २-१४ उप्पाडित उप्पन्नसमत्तचक्करयणप्पहाण- उत्पन्नसम उप्पाडेमाण स्तरत्नप्रधानचक्र ६०२-१० * उप्पाय उप्पलसंसय २-१४ - उप्पाएजा १९६-१७,६८२-१८ * उप्पय - उप्पाएति २७५-२, ५३२-१३, ६८२-८ -उप्पइज्जा १६३-१८ - उप्पाएत्तए ७१९-२६ - उप्पएज्जा ६५३-५, ६५६-३ - उप्पाएंति ५३२-२ - उप्पयति १४९-२२, १५२-५ - उप्पायति ३५३-२१ -उप्पयंति १४३-८, १५४-६ | उपाय ८८०-६,८८१-७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001020
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi, Amrutlal Bhojak
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1982
Total Pages556
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_bhagwati
File Size24 MB
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