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10 जनवरी 2011 जिनवाणी 148
युवा पीढ़ी को आध्यात्मिक गुरु की आवश्यकता
श्रीमती कमला सुराणा
सुसंस्कार विहीन युवापीढ़ी को जीवन-मूल्यों के प्रति सचेत करने एवं जीवन का सम्यक् निर्माण करने हेतु आध्यात्मिक गुरु की नितान्त आवश्यकता है। व्यावहारिक शिक्षा जहाँ आजीविका के लिए उपयोगी है वहाँ आध्यात्मिक शिक्षा जीवन को सरस बनाने के साथ सम्यक् दिशा प्रदान करती है। प्रस्तुत आलेख इसी प्रकार के चिन्तन से ओतप्रोत है।
-सम्पादक
चमक-दमक के चक्कर में, युवा पीढ़ी भ्रमित हो गई।
आत्म-गुणों को भूल, संसार भंवर में पड़ गई। सवेरे-सवेरे समाचार पत्र की प्रतीक्षा करते हैं। हाथ में लेते ही मुख पृष्ठ पर राजनेताओं के भ्रष्टाचार, लूट-खसोट, मार-पीट, चोरी, हत्या, आत्म-हत्या, बलात्कार आदि की घटनाएँ पढ़कर माथा ठनक जाता है। विज्ञापन ऐसे भद्दे कि युवतियों को अल्प-वस्त्रों में दिखाया जाता है। ऐसे चित्र देखकर युवा पीढ़ी जो अपरिपक्व है आकर्षित हो जाती है। भौतिकवाद इतना बढ़ गया है कि किसी भी व्यक्ति को परस्पर शंका समाधान करने का समय ही नहीं है। यहाँ तक कि माता-पिता भी बच्चों की सम्भाल नहीं लेते हैं। ऐसे समय में आत्म-रक्षा और विकृतियों को रोकने के लिए आध्यात्मिक गुरु की अत्यधिक आवश्यकता है, ताकि उन्हें मार्ग-दर्शन मिल सके।
रहे-सहे संस्कार पाश्चात्त्य लहर से लुप्त होते जा रहे हैं। अंग्रेजी भाषा के प्रभाव से हिन्दी, संस्कृत और प्राकृत भाषाओं का प्रभाव कम होता जा रहा है। युवा पीढ़ी में हिन्दी और संस्कृत भाषा से अलगाव पैदा हो रहा है, क्योंकि व्यावहारिक शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी है, इसलिए मातृ और शास्त्रीय भाषाएँ प्राणहीन हो रही हैं। जबकि हमारे शास्त्र और ग्रन्थ इन्हीं भाषाओं में उपलब्ध हैं। सदियों से संजोई हुई अमूल्य निधि को आध्यात्मिक गुरु ही बचा सकते हैं। हाय-हेलो का चलन हवा की तरह बढ़ रहा है। हाय! तो दुःख का सूचक है। ‘जय जिनेन्द्र' बोलना नव-पीढ़ी को रास नहीं आता है, यह शब्द तो पिछड़ेपन का चिह्न बन गया है। परिधान ने तो लज्जा को ताक पर रख दिया है। अंग-प्रदर्शन आधुनिकता और सुन्दरता की पहचान बन गई है। समय इतना उल्टा आया है कि लड़के तो पूरे अंगों को ढ़ककर दुपट्टा भी गले में डाल लेते हैं, लेकिन युवतियों की चुन्नियाँ हवा में उड़ गई हैं। कम सन्तान यानी एक या दो सन्तान होने के कारण बच्चों की गलत-सही सभी मांगें पूरी की जाती हैं। कोई भी युवा वर्ग
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जिनवाणी ऐसा न होगा जिसके पास मोबाइल नहीं है। मोबाइल होना बुरा नहीं है, पर वे उसका आवश्यकतानुसार प्रयोग नहीं करते हैं। घंटों-घंटों मित्रों और सहेलियों से बातें करने में पैसा और समय दोनों का अपव्यय हो रहा है।
सह-शिक्षा से भी समाज में विसंगतियाँ आई हैं। युवा वर्ग अपनी इच्छा से बिना सोचे समझे आपस में विवाह सम्बन्ध बांध लेते हैं। अधिकतर ऐसे सम्बन्ध टूटते देखे गए हैं।
भोजन की सात्त्विकता में घुन लग गया है। सब मंगल कार्य होटलों में होते हैं। घर का आंगन मुँह ताकता है। रोटी-साग अच्छे नहीं लगते हैं। बाहर के व्यजनों ने पैर पसार लिए हैं। बाहर के भोजन में न जाने ऐसी सामग्रियाँ काम लेते हैं जिससे मोटापा बढ़ जाता है। केक का चलन भी अधिक बढ़ गया है जिसमें अधिकतर अण्डे डाले जाते हैं। यह हमारा खान-पान नहीं है। राजस्थानी कहावत है-"जैसा खाओ अन्न वैसा होगा मन"।
दिनों-दिन युवा पीढ़ी गर्त में जा रही है। गुटखा, मद्य-पान एवं अन्य नशीली वस्तुओं का प्रेत लग गया है। इन नशीली वस्तुओं से कैंसर, रक्त-चाप आदि बीमारियाँ लग जाती हैं, धीरे-धीरे शरीर निढाल सा होता जाता है। यह प्रेत तो आध्यात्मिक गुरु ही निकाल सकते हैं।
____ आचार्य श्री हीराचन्द्र जी म.सा. का सन्देश है-“व्यसन मुक्त हो सारा देश" समय से छूता हुआ नारा है और अनेक युवाओं ने इस नारे से लाभ उठाया है।
विज्ञान का युग है। भौतिकवाद बढ़ गया है। बच्चे हों या युवा पीढ़ी, टी.वी. देखने में अपने जीवन का अधिक समय नष्ट कर देते हैं। कोई ऐसा सीरियल न होगा जिसमें मार-धाड़ और बन्दूकें न चली हों। इसी कारण आजकल आत्म-हत्याएँ और हत्याओं ने उग्र रूप धारण कर लिया है। युवा पीढ़ी स्वार्थ में डूब रही है, कर्त्तव्य विमूढ़ हो रही है।
आदर्शवाद, यथार्थवाद और समाजवाद सब दब गए।
स्वार्थवाद, हमवाद और अहंवाद में पड़ गए। इस समय राष्ट्र-कवि मैथिलीशरण गुप्त की अति सुन्दर पंक्तियाँ याद आती हैं
"हम कौन थे? क्या हो गए, क्या होंगे अभी, आओ. विचारें आज मिलकर ये समस्या समी"
"वे धर्म पर करते निछावर, तृण समान शरीर थे।" आचार्य श्री हस्तीमल जी म.सा. आध्यात्मिक गुरु थे। उनकी माताजी रूपादेवी जी ने पिता के न रहने पर पुत्र को ऐसी आध्यात्मिक शिक्षा दी जिससे जैन समाज और विश्व समाज दैदीप्यमान हैं। ऐसे सन्त विरले ही होते हैं।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी की मां पुतली बाई उनकी प्रथम गुरु थी। गांधी जी के विलायत
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________________ 150 जिनवाणी 10 जनवरी 2011 जाने से पहले जैन गुरु के पास ले जाकर मद्य-मांस आदि न खाने की शपथ दिलवाई थी। वीर शिवाजी की माँ जीजाबाई ने अपने वीर पुत्र को ऐसे सुसंस्कार दिए जिससे उनका जीवन हमारे लिए प्रेरणात्मक और आदर्श बन गया। शिवाजी ने कल्याण पर आक्रमण कर दिया। वे विजयी हुए। विजयी ही नहीं आत्मविजयी भी हुए। उनके सेनापति आबाजी कल्याण के सूबेदार, सुलतान अहमद की पुत्र-वधू 'गौहर बानू' को निसहाय अवस्था में शिवाजी की रानी बनाने के लिए उनके महल में ले आए। गौहर बानू अद्वितीय सुन्दरी के साथ गुणवती भी थी / महान् शिवाजी ने गौहर बानू को अपने राजसिंहासन पर बिठाकर 'मां' से सम्बोधित किया। आबाजी को फटकारा / तुमने इतना नीच कर्म अपने स्वार्थ वश क्यों किया? आबाजी को क्षमा मांगनी पड़ी। शिवाजी ने पूरी जनता को इकट्ठा कर गौहर बानू को प्रणाम से सम्मानित किया। युवा पीढ़ी में संवेदना और करुणा की कमी होती जा रही है। दर्शनशास्त्री 'रूसो' का मानना था कि बच्चों को अस्पताल और अनाथ-आश्रम ले जाया जाय, जिससे उनमें संवेदना और करुणा जागे। बचपन से ऐसे सुसंस्कार देकर आध्यात्मिक गुरु ही युवा पीढ़ी को सुपथगामी बना सकते हैं। उपर्युक्त उदाहरणों से ज्ञात होता है कि युवा पीढ़ी को आदर्श बनाने के लिए, उच्च स्तर के आध्यात्मिक गुरु की महती आवश्यकता है, ताकि वे उन्हें जीवन में आत्म-गुणों और मानव मूल्यों के प्रति सजग कर सकें। विद्यालयों में व्यावहारिक हिन्दी, अंग्रेजी, गणित, विज्ञान, सामाजिक ज्ञान आदि व्यावहारिक विषय पढ़ाए जाते हैं। इन्हीं विषयों के साथ आध्यात्मिक एवं नैतिक शिक्षा देकर युवा पीढ़ी . का उत्थान कर सकते हैं। उन्हें सही दिशा दिखाकर भटकने से बचा सकते हैं। आध्यात्मिक पुट देकर नई पीढ़ी को ऐसा ढाला जाए कि वह समाज, देश और विश्व के लिए कल्याणकारी बने। युवा पीढ़ी देश की आकांक्षा है समाज का सिरमौर है ज्ञान पुञ्ज है शक्ति का भंडार है साहस है, उमंग है, ढालने की आवश्यकता है आध्यात्मिक गुरु का आश्रय मिल जाए तो बेड़ा पार है। -ई-123, नेहरु पार्क, जोधपुर-342003 (राज.) Jain Educationa International For Personal and Private Use Only