Book Title: Vivad Pariwad ke Samadhan Hetu Anekantvad Author(s): Sanjavi Prachandiya Publisher: Z_Kusumvati_Sadhvi_Abhinandan_Granth_012032.pdf Catalog link: https://jainqq.org/explore/211930/1 JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLYPage #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विवाद-परिवाद के समाधान हेतु अनेकान्तवाद -प्रो. डॉ. संजीव प्रचंडिया 'सोमेन्द्र' 364 सर्वोदय नगर, अलीगढ़ नासमझी में न जाने कितनी लड़ाइयाँ लड़ी गयीं / अनेक विवाद और परिवाद हुए / मन-मुटाव हुए और वे खण्ड-खण्ड हो गये / आज चारों तरफ जो हिंसा का तांडव नृत्य हो रहा है चाहे वह पंजाब क्षेत्र हो या आसाम या श्रीलंका या इराक-ईरान हो / कोई भी भूमण्डल हो सकता है इसका आबजेक्ट / पर सबसे महत्वपूर्ण बात है, वह यह, कि यह सब घटनाएँ दुर्घटनाएं हो क्यों रही है ? क्या दुर्घटनाएँ। घटनाएँ विकासशील होने का प्रतीक हैं या हमारी मानसिक स्थिति इतनी संकुचित हो गयी है कि हम सोच-विचार की स्थिति से पलायन कर गये हैं ? या हम निरे मूढ़ बन गये हैं। बुद्धि की प्रयोगशाला में PSI क्या जंग लग गयी है या विचार मंथन का व्याकरण हमसे छट-सा गया है। आखिर इस खण्ड-खण्ड होने का, लड़ाई और हिंसा का कोई तो आधार होगा ही। है, आधार है / लेकिन वह बिल्कुल ही अस्थायी और अस्पष्ट / उसका स्थायीपन तब तक ही है जब तक कि हम, हमारा बौद्धिक पहलू निष्क्रिय है। वैचारिक क्रान्ति होते ही हममें सोच की पहल प्रारम्भ हो जायेगी। फिर जो हम करेंगे उसमें सकारात्मक रूप होगा तब फिर निम्न पंक्तियाँ अपने आप ही उभरने लगती हैं "बिना बिचारै जो करे, सो पाछै पछिताय / काम बिगारे आपनो, जग में होत हँसाय // " इसलिए सोच का सकारात्मक रूप ही अनेकान्त का पर्याय माना जा सकता है / और अनेकान्तवाद ही एक ऐसा टॉनिक है जो विवाद-परिवाद के समाधान हेतु आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य भी है। आँख खोलकर जब हम किसी वस्तु की जानकारी लेते हैं तो वह जानकारी अपेक्षाकृत सही के ज्यादा निकट होगी और आँख बन्दकर जब हम जानकारी लेते हैं तो हो सकता है कि वह मिथ्या जानकारी हो / हाथी का दृष्टान्त इस अर्थ की समीचीनता को सपाट उद्घाटित करता है। यहाँ 'ही' की दृढ़ता / / नहीं रहती। यहाँ तो केवल 'भी' की उपयोगिता उजागर होती है। तब समस्या चाहे घर को हो या समाज की या देश की, उसके लिए समाधान का पैमाना कोई छोटा-बड़ा नहीं होता। हाँ, समाधान हेतु 'विकल्प' एक से अनेक हो सकते हैं। हम जब एकपक्षीय होकर निष्कर्ष ले लेते हैं तो उसमें झगड़े की सम्भावना बनी रहती है और यदि हम किसी समस्या को अनेक पहलू से सोचते हैं, खोजते हैं तो हम झंझट की सीमा समेट देते हैं / तब फिर झगड़े-टंटे का द्वार खुलने की बात ही नहीं उभरती / उदाहरण के लिए भूतपूर्व प्रधानमन्त्री श्री राजीव गाँधी को ही लीजिए-वे देश की इन तमाम समस्याओं को हल करने के लिए जो समझौता करते हैं वह समझौता ही तो उभय मार्ग है और यही पथ तो अनेकान्त का पथ है। इसीलिए अनेकान्त एक से (शेष पृष्ठ 458 पर) / 448 षष्ठम खण्ड : विविध राष्ट्रीय सन्दर्भो में जैन-परम्परा की परिलब्धियाँ C साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ Folderivate &Personal use only