Book Title: Vijay Hirsuri Swadhyaya Author(s): Vinaysagar Publisher: ZZ_Anusandhan Catalog link: https://jainqq.org/explore/229611/1 JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLYPage #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सप्टेम्बर २००९ श्री कुशलवर्द्धनरचित श्री विजयहीर सूरि स्वाध्याय म. विनयसागर स्फुट पत्र की साइज २५.८ x ११ है । कुल पंक्ति १४ है । प्रतिपंक्ति अक्षर लगभग ५३ हैं । लेखन १८वीं सदी है । पद्य २ का तीसरा चरण और पद्य ५ का प्रथम चरण काटा-पीटा के कारण अस्पष्ट आ हो गया हैं । प्रारम्भ में अज्ञात कर्ता कृत महावीर तप स्वाध्याय है । रचनाकार कुशलवर्द्धन है । 'पभणइ तेहनू सीस' शब्द से कुशलवर्द्धन का शिष्य प्रकट होता है अथवा कुशलवर्द्धन हीरविजयसूरि का शिष्य है । कुशलवर्द्धन के सम्बन्ध में कोई ज्ञातव्य जानकारी नहीं है । १२५ इस हीरविजयसूरि स्वाध्याय में आचार्यश्रीजी के गुणगणों का वर्णन किया गया है और तपागच्छ के नायक बतलाये गये हैं । ओस - वंशीय कुंरा नाथीपुत्र थे । बालवय में दीक्षा ग्रहण की थी। निर्मल चारित्र का पालन करते हुए गौतम, सुधर्म, जम्बू के समान उज्ज्वल कीर्ति वाले युगप्रधान हीरविजयसूरि भक्तों के संकट दूर करते हैं और शिव-सुख सम्पत्ति के दायक हैं एवं इसके साथ ही साधुओं के गुणगणों का वर्णन करते हुए उनको सागर सम गम्भीर, अन्तरङ्ग वैरियों से दूर, शोक सन्ताप, रोग-शोक से दूर, भव्यों का मनोवाञ्छित पूर्ण करने वाले बतलाया गया है और जङ्गम तीर्थ की उपमा दी गई है । प्रस्तुत है हीरविजयसूरि स्वाध्याय : पणमिय पास जिणिन्द देव मनवंछितकारी । समरिय सरसती देवी माय मुझ मति दिउ सारी || हीरविजय सूरिन्दराय तपसंयमधारी । थुणस्युं तपगच्छ तणउ राय लहुवय ब्रह्मचारी ||१|| सयल साधु सिर शेखरुए समता रस भण्डार विनयकरि अन्ते पामइ भव पार ||२|| गाम नगर पुर देसि देसि भविअण पडिबोहइं । निरुपण समकित सार बीज जाणी आरोहिई || Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 126 अनुसन्धान 49 अमीअ समाणि विशाल वाणि कविजन मन मोहिइं / निर्मल बुद्धि तणुं निवास सुर गुरु जिम सोहइ // 3 // सोमगुणे करी दीपतु ए जाणे पूनिम चंद / तपतेजइ दीपइ सदा भासुर जेम दिणिंद // 4 // नवनिधान .......... (?) वाडि रूड़ि परिपालई / चउदह विद्या रयणरासि परि इहि सम्भालइ / / विविध देश ऊपना भव्य समझावी लावइ / / 5 / / दूषमकालि अवतरिउ ए धर्मचक्रवर्ति एह / सुन्दर गणधर पदधरु मुझ मनि नहीं संदेह // 6 // गोअम सोहम जम्बु पमुह पूरव रिषि तोलइ / तुम्ह कीरती ऊजलि देखी कुमतीइ सवि डोलइ / सयल राय तुम्ह नमई सुरपति गुण बोलइ सायरसम गम्भीर चित्त परदोस न खोलइ |7|| रूप अनोपम तुम तणुं ए जोतां हरख अपार / युगप्रधान सोहाकरु जय जय जगदाधार // 8 // जो तुं आणा धरइ सोवि संसार न झूरइ / क्रोधादिक जे अन्तरङ्ग वैरी सवि मूरइ // रोग शोक संताप ताप भविअणना चूरइ / जो तुम्ह सेवा करई तास मनवंछित पूरइ |9|| शिव सुख सम्पद दायकू ए दर्शन तोरु सामि / अलिअ विघन दूरइ टलइ मुनिवर ताहरइ नामि // 10 // ओसवंश शृङ्गारहार कुंरा सुत सुणिइ / माता नाथी ऊयरि हंस सुरतरू सम गणीइ / / थावर तीरथ सिद्धक्षेत्र जङ्गम ए भणीइ / पूज्य तुम्हारा गुण अनेक मइ किणि परि थुणीइ // 11 // कुशलवर्द्धन पण्डित गुरुए पभणए तेहनु सोस / हीरविजयसूरीसरू प्रतिपउ कोडिवरीस // 12 // इति श्री हीरविजयसूरीश्वर स्वाध्याय सम्पूर्णः C/o. 13 ए, मेन गुरुनानक पथ, मालवीयनगर, जयपुर