Book Title: Vartaman Sandarbh me Shakahar ki Upadeyata
Author(s): Kiran Siroliya
Publisher: Z_Mahasati_Dway_Smruti_Granth_012025.pdf
Catalog link: https://jainqq.org/explore/211894/1

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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वर्तमान संदर्भ में शाकाहार की उपादेयता . श्रीमती किरण सिरोलिया "जैसा खाये अन्न वैसा होय मन* ये कहावत जग प्रसिद्ध है। इसी प्रकार अंग्रेजी में भी कहावत है कि “यू आर, व्हाट यू ईट” अर्थात् आप वह है, जो खाते है। ये कहावतें इस तथ्य को उजागर करती है कि भोजन के अनुरूप व्यक्ति का व्यक्तित्व एवं उसके स्वभाव का निर्माण होता है। सरल सात्विक जीवन, क्रोधपूर्ण तामसिक प्रवृत्तियां, क्रूर-असहज व्यवहार, ये सब भोजन के स्वरूप एवं उसके प्रकार पर निर्भर करते है। राघवेन्द्र स्वामी मठ के श्री सुजयेन्द्र तीर्थ ने कहा कि सात्विक होने के लिए सात्विक भोजन अपेक्षित है और उसके लिए निरामिष आहार आवश्यक है। निरामिष आहार का अर्थ इतना ही नहीं है कि हमें आहार से आमिष-भोजन का त्याग करे, लेकिन हमारे मन में अमैत्री का भाव हो, हमारे व्यवहार में शोषण प्रतिष्ठित हो और हमारे वचन में हर्ष और कटुता हो। जिस प्रकार एक ओर चीनी को पानी खिलाना या मछलियों को तालाब में दाना देना तथा दूसरी ओर बेहिचक मुनाफाखोरी, जमाखोरी और शोषण करना अहिंसा का परिहास है, उसी प्रकार एक तरफ निरामिष आहार का व्रत लेना तथा दूसरी तरफ प्रपंच, विश्वासघात और विषमता में लगे रहना पाखंड है। निरामिष आहार का दर्शन है - मैत्रीभाव निरामिष आहार केवल आहार की ही एक शैली नहीं है। वह जीवन की भी शैली है, जिसका आधार है कि इस पृथ्वी पर ईश्वर-कृत प्राणियों से प्रेम करे और उन्हें मन, वचन एवं कर्म द्वारा किसी प्रकार का कष्ट नहीं पहुंचाये, इसलिए निरामिष आहार केवल शरीर को ही नहीं बल्कि मन और हृदय को भी विशाल उदार एवं प्राजल करता है। विनोबाजी के अनुसार निरामिष आहार तो भारतीय ब्रह्म-विद्या का विश्व को श्रेष्ठ आव्हान है। भले ही इसका मूल्य अभी प्रकट नहीं हो लेकिन जैस-जैसे मानव-सभ्यता का विकास होता जाएगा इसका महत्व और भी अधिक प्रकट होता जाएगा। मनुष्य एक विवेकशील प्राणी है। उसके हिंसा-अहिंसा, दया-करुणा, घृणा आदि विचारों के आधार पर प्रकृति की अंतःशक्तियों का संतुलन एवं नियमन होता है। विश्व के मनीषियों ने मनुष्य के श्रेष्ठ प्राणी के रूप में जीवन यापन करने के उद्देश्य से अनेक प्रतिबन्ध एवं नियमन लागू किये है जो मनुष्य को हैवान बनाने से रोकते है और भगवान बनने के लिए प्रेरित करते है इस प्रक्रिया में आहार का एक महत्वपूर्ण योगदान होता है। मानवीय आहार को निम्न श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है। अन्नाहार, फल एवं शाकाहार, दूध फल एवं शाकाहार, अण्डा सहित दूध-फल शाकाहार मांसाहार। इनमें अन्नाहार एवं फल शाकाहार शुद्ध शाकाहार की श्रेणी में आते है जबकि दुग्धाहार शाकाहार की श्रेणी में होकर भी भावानात्मक दृष्टि से अल्प तामसिक आहार में वर्गीकृत किया जा सकता है, क्योंकि दूध की उत्पत्ति शरीर से होती है। अण्डा एवं मांसाहार दोनो मांसाहार की श्रेणी में आते है। अण्डों को शाकाहारी कहना भ्रांतिपूर्ण दुःप्रचार है। (२४७) Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आज अमेरिका, इंग्लैड, जापान, यूरोप तथा विश्व के अनेक स्थानों से समाचार मिल रहे है कि वहा शाकाहारियों की संख्या प्रतिवर्ष बढ रही है। बद्धिजीवी व्यक्ति शाकाहारी जीवन-प्रणाली के ती को अधिक प्रगतिशील और वैज्ञानिक मानने लगे हैं। संसार के महान बद्धिजीवी उदाहरणार्थ अरस्त. प्लेटो. शेक्स आइंसटीन, जार्ज बर्नाड शॉ, श्रीमती एनीबेसेंट रुसो आदि सभी शाकाहारी थे किंतु भारत जो परम्परागत अहिंसा और शाकाहार का देश है वहाँ के पेंशन के नाम पर लोग अण्डे एवं मांस का अपने भोजन में समावेश करने लगे है जबकि वैज्ञानिक अंवेषण परीक्षण के पश्चात् यह सिद्ध हो चुका है कि मांसाहार स्वास्थ्य के लिए सर्वथा हानिकारक है और शाकाहार स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभदायक और दीघार्यु प्राप्त कराने वाला है फिर हमारा कोई धर्म नहीं जिसमें मांस भक्षण को प्रधानता दी गई हो। यदि गहराई से साथ अध्ययन मनन चिंतन किया जावे तो यह बात स्पष्ट हो जायेगी कि प्रत्येक धर्म का प्राण अहिंसा है। मांसाहार घोर हिंसापूर्ण आहार है। इसी कारण विश्व के सभी संत, महात्मा तथा महापुरुष इसे त्याज्य बताते हैं। ___ मनुस्मृति में लिखा है- “मारने की सलाह देने वाला, मांस बेचने वाला, पकाने वाला, परोसने वाला और खाने वाला ये सभी घोर पापी है"। गुरु नानक देव ने कहा है- “मांसाहारियों के हाथ का खाना-पीना भी घोर पाप है। भगवान बुद्ध ने कहा-"किसी भी प्राणी से हिंसा मत करो। शाकाहारी भोजन सर्वोत्तम है"। महात्मा गांधी ने कहा है- “हमारे लिए वही आहार सार्थक बनता है जो हममें स्वस्थ रक्त बनाये और वह है शाकाहार। कुरान शरीफ में कहा गया है- “जानवरों को मारना और खेती को तबाह करना जमीन में खराबी फैलाता है और अल्लाह खराबी पसंद नहीं करता"। इस प्रकार सभी विद्वानों ने मांस त्यागने की बात कही है और जैन धर्म में तो अहिंसा को परम धर्म ही माना गया है। आज आम लोगों की ये धारणा है कि अण्डे एवं मांस में प्रोटीन, जो शरीर के लिए एक आवश्यक तत्व है, अधिक मात्रा में पाया जाता है किंतु यह बात कितनी गलत है यह इससे साबित होगा कि सरकारी आंकड़ो के अनुसार ही, १०० ग्राम अण्डो में जहां १३ ग्राम प्रोटीन होगा, वहीं पनीर में २४ ग्राम, तो मूंगफली में ३१ ग्राम, दूध से बने कई पदार्थों में तो इससे भी अधिक प्रोटीन होता है। यदि हम कैलोरी की बात करें तो जहां १०० अण्डों में १६० केलोरियां, मुर्गे के गोश्त से १९४ कैलोरियां प्राप्त होती है, वही दालों में उसी मात्रा से ३३० कैलोरियां, मूंगफली से ४५० कैलोरियां और मख्खन-निकले दूध एवं पनीर से ३४८ कैलोरियां प्राप्त होती है। हमारे विद्वान डाक्टरों का मानना है कि अण्डे में अधिक प्रोटीन तो नहीं, अधिक विष अवश्य होता है। क्योंकि १८ मास परीक्षण के पश्चात अण्डों में ३० प्रतिशत डी.डी.टी. विष पाया गया है और एक अण्डे में लगभग ४ ग्रेन कोलेस्टेराल की मात्रा पाई जाती है। इतनी अधिक मात्रा के कारण अण्डे दिल की बीमारी, हाई ब्लड प्रेशर, गुर्दे का रोग आदि पैदा कर देते है। चिकित्सा विशेषज्ञों की राय है कि शाकाहारी भोजन में कैंसर रोकने वाले तत्व होते है। आंतों और स्तनों का कैंसर अधिकतर मांसाहारी लोगों को होता है। शाकाहारी का स्वभाव उग्र नहीं बनता, इसके विपरीत मांसाहारी जल्दी ही उत्तेजित हो जाता है। हृदय रोगों की आशंका भी मांसाहारी व्यक्तियों में अधिक देखी गई है। शाकाहारी भोजन मनुष्य को दीघार्यु बनाता है। (२४८) Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इसके अलावा जानवरों के भी कुछ उदाहरण देकर हम इस बात को साबित कर सकते है कि शाकाहारी भोजन स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद है। जैसे गैंडा, हाथी, घोड़ा, ऊंट आदि ताकतवर जानवर है इनका मुख्य कारण यह है कि ये शुद्ध शाकाहारी है। इस प्रकार शाकाहारी भोजन स्वास्थ्यप्रद एवं पोषण प्रदान करने वाला है। ___ फूड एंड न्यूट्रीशन बोर्ड की राष्ट्रीय शोध परिषद ने यह सिद्ध किया है कि मांसाहार करने वाले व्यक्तियों को निरामिष व्यक्तियों की तुलना में 6 गुना अधिक भूमि चाहिए। मांसाहार के लिए पशुओं को चारा खिलाने के लिए कम से कम 30,00,00,000 एकड़ जमीन पर कोई अच्छी पैदावार नहीं होती। आज भी अन्न उपजाकर ही हमें अपना खाद्य संकट दूर कर पाये है न कि मांसाहार से। अनेक शोधों से यह प्रमाणित हो चुका है कि कृषि फल-फूल आदि के संवर्धन से ही देश की खाद्य समस्या को हल कर सकते है। अत: निरामिष भोजन तो हमारी सामाजिक-आर्थिक अनिवार्यता है। स्वास्थ्य विज्ञान की दृष्टि से भी देखा जाय तो हमारे शरीर की बनावट मांसाहार के उपयुक्त नहीं है। सुलभ पाचन की दृष्टि से निरामिष आहार उपयोगी है। विश्व में आज सबसे बड़ी समस्या है विश्व शांति की ओर बढ़ती हिंसा को रोकने की। वर्तमान में हिंसा और आतंकवाद के काले बादल मंडरा रहे है। उन्हें रोका जा सकता है तो केवल मनुष्य के स्वभाव को अहिंसा और शाकाहार की ओर प्रवृत्ति करने से। निरामिष आहार शाति के जीवन दर्शन पर आधारित है। पश्चिमी जगत मांसाहार को त्यागकर शाकाहार को अपना रहा है। आइये हम भी शाकाहार को अपने जीवन का अंग बनाकर प्रकृति के अन्य निरीह प्राणियों के प्रति दया करने का संकल्प लें तथा विश्वशांति के अपने स्वप्न को साकार करें। 103 इंदिरा गांधी नगर केसर बाग रोड़, आर.टी.ओ. कार्यालय के पास इंदौर (म.प्र), * * * * * (249)