Book Title: Vachak Pramodchandra Bhas
Author(s): Vinaysagar
Publisher: ZZ_Anusandhan
Catalog link: https://jainqq.org/explore/229376/1

JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ December-2004 11 वाचक प्रमोदचन्द्र भास सं. म. विनयसागर संग्रहगत स्फुट पत्रों में यह एक-पत्रात्मक कृति प्राप्त है । साईज २४ x १० x ५ से.मी. है । पंक्ति १५ है और अक्षर ४३ से ४६ है । प्रति का लेखन सं. १७४५ है । इस कृति के कर्ता करमसीह है, जो सम्भवतः वाचक प्रमोदचन्द्र के शिष्य हो या भक्त हो । इस कृति का महत्त्व इसलिए अधिक है कि वाचक प्रमोदचन्द्र का स्वर्गवास वि. संवत् १७४३ में हुआ था और यह पत्र १७४५ में लिखा गया है । सम्भवतः लेखक का वाचकजी के साथ सम्बन्ध भी रहा हो । इस भास का सारांश निम्नलिखित है : भासकार करमसीह जिनेन्द्र भगवान् और प्रमोदचन्द्र वाचक को नमन कर कहता है कि इनके नाम से पाप नष्ट हो जाते हैं और निस्तार भी हो जाता है। वाचक प्रमोदचन्द्र का जीवनवृत्त देते हुए लेखक लिखता है - मरुधर देश में रोहिठ नगर है, जहाँ ओसवंशीय तेलहरा गोत्रीय साहा राणा निवास करते हैं और उनकी पत्नी का नाम रयणादे है । इनके घर में विक्रम संवत् १६७० में इनका जन्म हुआ और माता-पिता ने इस बालक का नाम पदमसीह रखा । श्रीपूज्य जयचन्द्रसूरि वहाँ पधारे । साहा राणा ने अपने पुत्र प्रमोदसीह के साथ विक्रम संवत् १६८६ में दीक्षा ग्रहण की । दीक्षा का महोत्सव जोधपुर नगर में हुआ । निरतिचार पञ्च महाव्रत का पालन करते हुए राणा मुनि का स्वर्गवास वि.सं. १७०० में हुआ । पदमसीह मुनि श्रीजयचन्द्रसूरि के शिष्य थे । सम्भवतः इनकी माता ने भी दीक्षा ग्रहण की और लखमा नाम रखा गया । मुनि पदमसीह वि.सं. १६३१ में वाचक बने, वि.सं. १७४३ में मुनि पदमसीह अन्तिम चातुर्मास करने के लिए जोधपुर आए और उन्होंने अनशन ग्रहण किया । ढाई दिन का अनशन पाल कर पोष दशमी सम्वत् १७४३ में इनका स्वर्गवास हुआ । देवलोक का सुख भोगकर अनुक्रम से भव-संसार को पार करेंगे। प्रमोदचन्द्र १६ वर्ष गृहवास में रहे, ४५ वर्ष ऋषिपद में रहे और १२ वर्ष तक वाचकपद को शोभित किया । इनकी पूर्ण आयु ७३ साल थी । इन्हीं के चरण सेवक करमसीह Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 12 अनुसंधान-३० ने यह भास लिखा है । नागपुरीय तपागच्छ पट्टावली के अनुसार भगवान् महावीर से ६२वें पट्टधर श्रीजयचन्द्रसूरि हुए । यह बीकानेर निवासी ओसवाल जेतसिंह और जेतलदे के पुत्र थे । वि.सं. १६७४ में राजनगर में इन्हें आचार्यपद मिला था और वि.सं. १६९९ आषाढ़ सुदि पूनम को जयचन्द्रसूरि का स्वर्गवास हुआ था । इस पट्टावली के अनुसार यह निश्चित है कि वाचक प्रमोदचन्द्र ऋषि नागपुरीय तपागच्छ/पार्श्वचन्द्रगच्छीय थे और श्रीजयचन्द्रसूरि के शिष्य थे । श्रीजयचन्द्रसूरि के पट्टधर श्रीपद्मचन्द्रसूरि (आचार्य पद १६९९ और स्वर्गवास १७४४) ने ऋषि पदमसीह को सम्वत् १७३१ में आचार्य पद प्रदान किया था । . वाचक प्रमोदचन्द्र की कोई रचना प्राप्त नहीं है। इनके सम्बन्ध में और कोई जानकारी प्राप्त हो तो पार्श्वचन्द्रगच्छीय मुनिराजों से मेरा अनुरोध है कि वे उसे प्रकाशित करने का कष्ट करें । इस भास के दूसरी और मिष्टान्नप्रिय जोध ‘नामक यति ने नागौर की प्रसिद्ध मिठाई पैडा का गीत १५ पद्यों में लिखा है । ॥ ढाल-अलवेला री ॥ श्री जिन पय प्रणमी करी रे लाल । गाइस गुरु गुणसार, सुखकारी रे । श्री प्रमोदचंद वाचकवरु रे लाल । नाम थकी निसतार ॥ सु० १ ॥ श्री प्रमोदचंद पय प्रणमीयइ रे लाल । नाम थकी निसतार । सु० । सुख संपति सहितै मिलै रे लाल । दरसण दुरित पुलाई ॥ सु० २ ॥ मरुधर देस सुहामणौ रे लाल । रोहिठ नगर विख्यात । सु० । साह रांणा कुल चंदलौ रे लाल । रयणादे जसु मात ॥ सु० ३॥ सौलैसै सितरै समै रे लाल । जनम दिवस सुद्ध मास । सु० । मात पिता हरखै घणुं रे लाल । उछव करै उल्हास ॥ सु० ४ ।। बीया चंद तणी परै रे लाल । वधता बहु गुणवंत । सु० । पदमसीह मुख पेखता रे लाल । सजन सहु हरखंत ॥ सु० ५ ॥ Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ December-2004 सु० । सु० । श्रीपूज्य पधार्या प्रेमसुं रे लाल । श्री जयचन्द सूरिन् । साह रांणौ वयरागीया रे लाल । पुत्र पुत्र सु आणंद ॥ सु० ६ ॥ जोधपुर नगर सुहामणौ रे लाल । दिक्षा महोछव सार । संघ जीमावी हरखसुं रे लाल । विलसी धन विस्तार ॥ पंच महाव्रत पालता रे लाल । चारित्र निरतिचार | सु० । रांणै मुनि सुरगति लही रे लाल । सतरसईकै सार ॥ सु० ८ ॥ सु० ७ ॥ श्री पदमसीह मुनि परगडा रे लाल । श्री जयचंदसूरि सीस । सु० । सोहै लखमां साधवी रे लाल । शिख शिखणी सुं जगीस || सु० ९ ॥ महिमंडल विचरता रे लाल । तारण तरण जिहाज । सु० । सुमति गुपति व्रतधर सदा रे लाल । साधु गुणे सिरताज ॥ सु० १० ॥ नयर जोधाणै आवीया रे लाल । जांणी चरम चोमास । सु० । सतरतयाल संवछरै रे लाल । श्रीमुख अणसण जास || सु० ११ ॥ अढी दिवस पाली करी रे लाल । पोस दिसम जगिसार । सु० । सुरगति सुर सुह भोगवै रे लाल । अनुक्रमि भवनौ पार || सु० १२ ॥ सोल वरस गृहवास मै रे लाल । रिख पद वरस पैताल । सु० । बार वरस वाचक पदै रे लाल । सर्वायु तिहोत्तर पाल | सु० १३|| धन ओसवंश अतिदीपतौ रे लाल । धन तेलहरा गोत । सु० । मात पिता धन जनमीया रे लाल । धन सुगुरु जगि जोत ॥ सु० १४ ॥ चरण कमल सेवक भणै रे लाल । प्रणमुं बे कर जोडि । सु० । करमसीह कृपा करी रे लाल । पूरौ वंछित कोडी | सु० १५ || 13 इति श्रीप्रमोदचंद्रवाचकभास सम्पूर्ण: सं १७४५ वर्षे लिखतं पं. श्री आसकरण जी । कठिन शब्दों के अर्थ : वाचकवरु राणा रयणादे वाचक- श्रेष्ठ प्रमोदचन्द्र के पिता का नाम प्रमोदचन्द्र की माता का नाम Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 14 अनुसंधान-३० सौलेसै सितरै बीया चंद सतरसईकै सतरतयाल रिख तेलहरा विक्रम संवत् 1670 द्वितीया के चंद्र के समान संवत् 1700 संवत् 1743 ऋषि ओसवाल जाति का एक गोत्र C/o. प्राकृत भारती १३-ए. मेन मालवीयनगर जयपुर-३०२०१७