Book Title: Uvasagga hara thutta ni Samasya purti Author(s): Shilchandrasuri Publisher: ZZ_Anusandhan Catalog link: https://jainqq.org/explore/229530/1 JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLYPage #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'उवसग्गहर' थुत्तनी समस्या पूर्ति - सं. पं. शीलचन्द्रविजय गणि श्रुतकेवली श्रीभद्रबाहुस्वामी महाराजे रचेलु उवसग्गहर स्तोत्र जैन जगतमां अत्यंत प्रसिद्ध तथा प्रचलित छे. तेनी पांच गाथा छे. ए गाथाओनां प्रत्येक चरणने गुंथी लईने २२ गाथा प्रमाण समस्यापूर्ति स्तोत्र अत्रे प्रस्तुत छे. रचनाना कर्ता २२मी गाथामां प्राप्त निर्देश प्रमाणे उपाध्याय श्री हर्षकल्लोलगणिना शिष्य छे, जेमणे पोतार्नु नाम आप्युं नथी. रचना प्रगल्भ तथा प्रसादसभर छे. प्रास बहु सहजताथी गोठवातां जणाय छे. केटलाक तळपदा शब्दप्रयोगो पण बहु ज रूडा थया छे. दा.त. 'मलुक्कं' (गा. ३) - मुलक, 'यलिअ' (गा. ५) टाळेल वगेरे. ___ मारा विद्वान मित्र मुनिश्रीधुरंधर विजयजी पासेथी प्राप्त एक फुटकर पत्रमा आ कृति सचवायेली छे. तेमां थोडोक अंश तूटतो होवाथी ते नवो बनावी [ ] मां उमेयों छे. श्री पार्श्वस्तवनं समस्यापूर्तिरूपम् ॥ ॐ नमो जिनागमाय ॥ पणमिअ सुरवरपूइअ . पथकमलं पुरिसपुंडरियपासं । संथवणं भत्तिचणो भणामि भवभमणभीयमणो ॥१॥ उक्सग्गहरं पासं पणमिह(मह) नट्टकम्मदढपासं । रोसरिउभेअपासं विणिहयलच्छीतणयपासं ॥२॥ जं जाणइ तेलुक्कं पासं वंदामि कम्मघणमुक्कं । जो झाइऊण सुक्कं झाणं पत्तो सिवमलुक्कं ॥३॥ विसहरविसनिन्नासं रोगगइंदाइभयकयविणासं । मेरुगिरिसन्निकासं पूरिअआसं नमह पासं ॥४॥ मरगयमणितणुभासं मंगलकल्लाणआवासं । टालिअभवसंतासं थुणिमो पासं गुणपयासं उपगीतिः ॥ ||५|| Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [63] विसहरफुलिंगमंतं सच्चं निच्चं मणे धरिज्जतं । कुणइ विसं उवसंतं भविया ! इय मुणह निब्भंतं ॥६॥ पयपण[य] देवदणुओ कंठे धारेइ जो सया मणुओ । सो हवइ विमलतणुओ नामक्खरमंतमवि अ णुओ ॥७॥ तस्स गहरोगमारी पराभवं न य करेइ विसमारी । जो तुह समर सुमि?) रणकारी संसारी पत्तभवपारी ॥८॥ पथ्या ।। तस्स वि सिज्झइ कामं दुट्ठजरा जंति उवसामं । संथुणइ जो पगामं अभिरामं तुज्झ गुणगामं ॥९॥ उपगीतिः ॥ चिठ्ठह दूरे मंतो जो झा[य]इ निच्चमेव एगंतो । तुह नाममसंभंतो सो जायइ लच्छिमइमंतो ॥१०॥ न य डसइ दुट्ठभोई तुज्झ पणामो वि बहुफलो होई । तुह नामेण विओई न हवइ, ण पराहवइ कोई ॥११॥ नरतिरिएसु वि जीवा भमंति नरए य कायस कीवा । समिअजिणसमयदीवा जेहिं तुह न नामिआ गीवा ॥१२॥ रिद्धि आहेवच्चं पावंति न दुक्खदोगच्चं । जे तुह आणं सच्चं पालिति य भावओ निच्चं ॥१३॥ तुह सम्मत्ते लद्धे जीवेणं हवइ सासपइसद्धे(?) । अणुवमते असमिद्धे अणंत तुह नाणसंबद्धे ॥१४|| तुह सुरनरवरमहिए चिंतामणिकप्पपायवन्भहिए । पयकमले मलरहिए मणभसलो वसउ मह सुहि(ह)ए ॥१५॥ पावंति अविग्घेणं जीवा जय (जइ?) दुहुँदोसवग्घेणं । न नडिजंति अ सिग्घेणं भवपारं विहिअ विग्घेणं(?) ||२६|| सासयसुक्खनिहाणं जीवा अयरामरं ठाणं । लब्भंति तुह पयाणं जेसिं वट्टइ मणे झाणं ॥१७॥ उपगीतिः । Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 64] इय संथुओ महायस ! कित्तिं दितिं धिइं च मह पइस / वयणरसविजियपायस ! निन्नासिअदुरिअ ! हयअयस ! // 18 // कलिमलमइरहिएणं भत्ती(त्ति )भर निब्भरेण ही (हिअ) एणं / {सद्धाए सहिएणं मए थुओ जिण ! पणिहिएणं] // 19 // ता देव ! दिज्ज बोहिं [पत्थेमि अहं तहा हिययसोहि / तह मह दूरमबोहि कुणसु भवारण्णभमणोहि // 20|| अवगयपवयणनिस्संद ! भवे भवे पासजिणचंद ! / तुह पयपंकयमयरंद - भसलत्तं भवउ मह वंद! // 21 // उवझायहरिसकल्ोल - सीसेणं भद्दबाहुरइयस्स। संथवणस्स समस्सा विहिआ विबुहाण य पसंस्सा // 22 / / इति श्रीपार्श्वस्तवनं समस्यास्तोत्रम् // लिखितं दामोदर पुरुसोत्तमेन //