Book Title: Uvahan Paittha Panchasaga Uparthi Falit thato Ek Muddo Author(s): Shilchandrasuri Publisher: ZZ_Anusandhan Catalog link: https://jainqq.org/explore/229676/1 JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLYPage #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "उवहाण पइट्ठा पंचासग" उपरथी फलित थतो एक मुद्दो ___पं. शीलचन्द्रविजय गणि अनुसन्धान-४मा प्रकाशित उपरोक्त रचना (सं. पं. प्रद्युम्नविजयजी) प्रसिद्ध आचार्य श्री हरिभद्रसूरिनी छे. जो के मुनि पुण्यविजयजी-संपादित "केटलोग ओव पाम-लीफ MSS. इन ध शान्तिनाथ जैन भण्डार, खंभात" भाग-२ मा प्रतिक्रमांक १२९ (२) मां आ कृतिनो अंत आ रीते नोंधायो छे : "उवहाणपंचासयं सम्मत्तं ।। श्रीमदभयदेवसूरेः कृतिरियम् ॥ " अने ते उपरथी ए पंचाशकना कर्ता आ अभयदेव होवानं कोई मानी ले तेम बने. परंतु आ प्रकरणनी अंतिम गाथामां आवता"विरह" शब्दने लीधे आ आशंका आपमेळे निर्मूल बने छे. तेथी ज श्रीपुण्यविजयजीए पण प्रतिवर्णन करतां कर्तानी कोलममां "Author- Abhayadevasuri (?)" आ रीते नोंघेल छे. आ तो आडमुद्दो थयो. मूल मुद्दो तो आ छे: जैन आगमोमा 'महानिशीथ' सूत्र एक स्वतंत्र आगम छे, जे आजे तेना मूल स्वरूपमा पूर्णतया अप्राप्त छे. परंतु श्री हरिभद्रसूरि महाराजे, पोताना समयमा प्राप्त जीर्ण तथा खण्डित पोथीना आधारे आजे प्राप्त आ आगमनुं संकलन कर्यु होवानी परंपरा-स्वीकृत धारणा छे. आ धारणाने घणा लोको भ्रान्त तेमज दन्तकथारूप गणावे छे अने ते रीते प्राप्त महानिशीथ सूत्रने कूट ग्रन्थ गणीने चाले छे. इतिहासविद् पं. श्री कल्याणविजयजी नोंधे छे के : "परन्तु एक दो का समर्थन मिल जाने मात्र से महानिशीथका हरिभद्रसूरि द्वारा उद्धार होना प्रमाणित नहीं हो सकता, हमने श्री हरिभद्रसूरि के लगभग ६० ग्रन्थ पढे है, पर उनमें महानिशीथ के उद्धार को बात तो क्या उसका नामनिर्देश तक नहीं मिलता । इस स्थिति में 'महानिशीथ सूत्र दीमकने खंडित कर दिया था और शासनवात्सल्य से आचार्य हरिभद्रसूरिने इसको अन्यान्य शास्त्रपाठों के आधार से व्यवस्थित किया और सिद्धसेन दिवाकर आदि ८ श्रुतधर युगप्रधान आचार्यों ने इसे प्रामाणिक ठहराया' इत्यादि दन्तकथा सत्य होनेमें कोई प्रमाण नहीं है। "(प्रबन्धपारिजात, जालोर, ई. १९६६, पृ.७२)". श्री कल्याणविजयजीना आ विधाननो उत्तर हवे आ उपधान पंचाशक मांथी मळी रहे छ । आ पंचाशकमां हरिभद्रसूरिजी महाराजे महानिशीथसूत्रनो स्पष्ट उल्लेख तो Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (53) को ज छे, तदुपरांत तेने प्रमाणभूत ठराव्युं छे. आनाथी जो के श्रीहरिभद्रसूरिए महानिशीथ सूत्रनो जीर्णोद्धार कर्यानुं फलित नथी थतुं, परंतु हरिभद्रसूरि अने महानिशीथसूत्रने काइ लेवादेवा जन हती ते वात हवे असंगत ठरे छे. बल्के महानिशीथसूत्रनी प्रमाणभूतता अंगे तेमणे जे रजुआत करी छे ते जोतां ते आगमना पुनरुद्धारना कार्य साथे तेओश्री जर संकळाया हशे, तेम अटकळ करवानुं मन थाय तेQ छे.