Book Title: Tapagaccha Gurvavali Swadhyaya
Author(s): Bhuvanchandravijay
Publisher: ZZ_Anusandhan
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 20 अनुसन्धान ३९ तपागच्छ गुर्वावली स्वाध्याय सं. उपा. भुवनचन्द्र पार्श्वचन्द्रगच्छ जैन संघ, मांडलना हस्तलिखित संग्रहनी प्रकीर्ण पत्रोनी पोथीमा एक पत्रमाथी मळेली त्रण रचनाओ अहीं रजू करी छे. तपागच्छ गुर्वावली सज्झायना कर्ता वि. हीरसूरिजीना शिष्य पण्डित विजयहंसना शिष्य मुनि विनयसुन्दर छे. पट्टावलीनां नामो तो प्रसिद्ध छे, परन्तु कविए केटलीक महत्त्वनी विगतो पण सांकळी छे ते इतिहासनो अभ्यासीओने रसप्रद जणाशे. जेमके २६मा पट्टधर समुद्रसूरि खुमाणकुलना हता; मानदेवसूरि हरिभद्रसूरिना मित्र हता; विमलचन्द्रसूरि सुवर्णसिद्धि जाणता हता; पेथडशाहे धर्मकीर्तिगुरुना उपदेशथी १०८ जिनालयोनो जीर्णोद्धार कराव्यो हतो; विजयदानसूरि वडलिपुरमां स्वर्गवासी थया हता; विजयहीरसूरिना समुदायमा त्रण उपाध्यायो मेरु समान गणाता हता इत्यादि. पट्टकमांकमां गरबड छे, प्रतिमा जेम छे तेम ज अहीं राख्या छे. गुर्वावली पछी वि. दानसूरिनी स्तुतिना श्लोको छे, ते अशुद्ध अने त्रूटक छे छतां अहीं लीधा छे. त्यार बाद हंसराज रचित वि. हीरसरिगीत छे ते पण अहीं आप्यु छे. हीरसूरिजी महाराज प्रत्ये तेमनी विद्यमानतामां ज सकल संघमां केवो उत्कृष्ट अहोभाव प्रवर्ततो हतो तेनुं प्रतिबिम्ब गुर्वावली तथा गीतमा जोइ शकाय छे. सकल सुरासुर सेवित पाय । प्रणमी वीर जिणेसरराय । तस शासनि गुरुपद पटधरू | भगतिइं थुणस्युं सोहाकरू ||१|| पहिलउं प्रणमडं गोतम स्वामि । १ सर्वसिद्धि हुइ जस लीधइ नामि । सुधर्म स्वामि २ पंचम गणधर । जंबूस्वामि ३ नामि जयकार ॥२॥ प्रभवस्वामि ४ तस पटधर ५ नमउ । शय्यंभव पटधर पांचमङ । यशोभद्र ६ भद्रबाहु ७ मुर्णिद । थूलभद्र ८ नमतां आणंद ॥३॥ Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अप्रिल २००७ तेहना शिष्य दोह पटधार । सूरीश्वर गुणमणि भंडार । आर्य महागिरि आर्य ९ सुहस्ति । संप्रति राजगुरु घणी प्रशस्ति ॥४॥ श्री कौटिक काकंदक सूरि | इंद्रदिन्न १० दिन (न्न ) सूरि १२ गुणभूरि । तस पाटे सीहागिरि १३ श्रीवयरस्वामी । १४ वज्रसेन १५ गुरु नमउं सिरनामि ॥५॥ नागेंद्रादिक कुल हूआ च्यार । पणि हुउ चंद्रगच्छ विस्तारि । चंद्रसूरि १६ चंद्र यम निर्मलउ । सामंतभद्रसूरि गुणनिलउ ||६|| देवसूरि अभिनवदेवसूरि १७ (१८) । प्रद्योतनसूरि १९ शमसुख पूरि । शांतिस्तवकर श्रीमानदेव २० । मानतुंग २१ सूरि कृतसूरसेव ॥७॥ वीराचार्य सूरि २२ जयदेव २३ । देवानंद गुरु २४ प्रणमउं हेव । विक्रमसूरि २५ सूरि नरसिंह २६ । सामुद्रसूरि खुमाण कुलसिंह ॥८॥ हरिभद्रसूरि मित्र मानदेव २७ । विबुधप्रभ गुरु २८ सारउं सेव । जयानंद सूरि २९ रविप्रभ वली ३१ | यशोदेवसूरि नमउं ३२ मनरली ॥९॥ विमलचंद्रसूरि ३३ सोवनसिद्धि । उद्योतनसूरि ३४ बहुत प्रसिद्ध । सर्वदेवसूरि महिमावंत पाटि ३५ । ज्ञानादिक गुणनई नही घाटि ॥१०॥ अर्बुदपरिसर टेलीगामि । शुभमुहुरति वड वडतरु ठामि । आठ पटयेधर गुरू थापनां । करतां भय भांगा पापनां ॥११॥ वडगच्छ नाम हुउं ते भणी । आज लगई तस महिमा घणी । रूपश्री गुरुश्री देवसूरि ३६ । सर्वदेवसूरि ३७ नमउं गुणभूरि ॥ १२ ॥ यशोभद्रसूरि ३८ श्रीनेमिचंद्र । तस पटि प्रणमउं श्रीमुनिचंद्र । ४० अजितदेवसूरि ४१ महिमावंत । वादीदेवसूरि अतिबलवंत ॥ १३ ॥ विजयसिंहसूरि ४३ करउं प्रणाम । सोमप्रभ ४५ सूरिनउं लिउं नाम । तास पट्टि गुरु श्रीमणिरत्न । सूरि ४६ सुगुरु मंडलि सिरिरत्न || १४ || वड तपगछ जलनिधि चंद्रमा । जगचंद्र विमलआतमा । 21 संवत बार पंच्यासी वरसि । तिणि तपगछ थापिउ मन हरसि ॥ १५ ॥ तस पाटे सूरी श्रीदेवेंद्र | विद्यानंदसूरि सदा अतंद्र ४८ । सुविहित यति गुरु श्रीधर्म्मघोष । धर्मकीर्त्ति गुरु कृतगुणपोष ||१६|| मालव मंडल मंडपिदुर्ग । पृथ्वीवर साह गुरु संसर्गि । अठहत्तर जिणहर उधरी । निज संपद सुकृतारथ करी ॥१७॥ सोमप्रभसूरि ४९ तस पटि भलउ सोमतिलकसूरि ५० गुणगण निलउ । Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसन्धान ३९ श्रीदेवसूंदरसूरि ५१ मुनिराय | ज्ञानसागरसूरि प्रणमउं पाय ॥१८॥ श्रीसोमसुंदर सरि ५३ तस पटि धणी | अष्टविध गणिसंपद जस घणी । मुनिसुंदरसूरि ५४ अतिगुणवंत । रत्नशेखरसूरि ५५ महिमावंत ॥१९॥ श्रीलक्ष्मीसागर ५६ सूरिंद । सुमतिसाधुसूरि ५७ नमउं मुर्णिद । हेमवरण जिम निरमल काय । हेमविमलसूरि ५८ नमउं मुनिराय ॥२०॥ तस पटि गुरु मुनिजनअवतंस । युगप्रधान सम जास प्रसंस । आनंदविमलसूरि ५९ आनंदकार । दूरि करिउं जेणई सिथिलाचार ॥२१॥ भव्यजीव प्रतिबोध्या घणा । गीतारथ मुनिनी नहीं मणा । उदयवंत शासन तिहां थयउं । कलि कसमल सवि दूरई गयुं ॥२२॥ विजयदान दायक सपराण । श्रीविजयदानसरि ६० शासन भाण । विजयवंत शासन तिहां करी । वडलिपुरि पामिउ सूरपुरी ॥२३।। संप्रति विजयमान गुरुराज । तस पटि ध्रुावाजिम अविचल राज । श्रीहीरविजयसूरि ६१ सुगुरु मुणिंद । तां प्रतपउं जां मेरू गिरिंद ॥२४|| श्रीआचारय पदवी धार । श्रीविजयसेनसूरि गुणधार । तस पट वर मणितिलक समान । उदयवंत हु जुगप्रधान ॥२५॥ श्रीधर्मसागर उवझाय प्रधान । विमलहरष निरमल अभिधान । कल्याणविजयगुरु करइ कल्याण । त्रिणिउ उवझाय गछि मेरु समाण ॥२६॥ श्रीविजयहंस पंडित धुरि लीह । इम अनेक पंडित धुरि सीह । सुविहित साधु साधवी जेह । दिनि दिनि उदयवंत हु तेह ॥२७॥ तपगछ गुरुनी गुर्वावली । भगति भणत पुहती मनरुली । अनु अनुक्रमि लेई नाम । विनयसुंदर करइ तास प्रणाम ॥२८॥ इति श्री तपागच्छ गुर्वावली स्वाध्यायः । कृत: पंडित विनयसुंदर गणिना। शुभंभवतु । कल्याणमस्तु ।। पंडित विजयहंस गणि शिष्य जयविजयेन लिपिकृतः स्वाध्यायः ।। कल्याणमस्तु । Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओप्रिल-२००७ 23 [गुरुस्तुति श्री नाभिनंदन जिनेष कुरुष्व शांते / शांति सतामभयदा करता गमार्हद्यक्ष: प्रभो विजयदान गुरोः प्रसन्न ||1|| श्रीतीर्थराजः पदपभ सेवा-हेवाकि देवासुर-किंनरेश / / ___गंभीरगीस्तारतरा वरेण्य / प्रभावदाता ददतां शिवं वः // 1 // कल्याणसारसविता नहरिक्ष मोह / कंतरवा रणसमान जवाद्य देव / धर्मार्थकामद महोदय वीरधार / सोमप्रभाव परमागम सिद्धिसूरे / / 1 / / (3) [विजयहीरसूरि गीत होरजी, तंबोले सोहइ नवरस रंगा / तेरे गुन बहु हीरविजयसूरि / पुरुषरयण तुंहि चंगा // 1 // तंबोले पान सुधारस वाणि तुम्हारी गाजति नई जउं गंगा रे / करण पवित करती दुख हरती / होवति निरमल अंगा // 2 // हीरजी तंबोले० सो प्यारी सारी तुम सेवा, अहनिसि करइ रही संगा रे / सो नर सुख संपति जय पामइ / कीरति आय अभंगा रे // 3 // हीरजी तंबोले० साईं नाथीनंदन कइसउ, उर काचउ सहु जाणउ रे / हंसराज कहइ मुगतिनउ अरथी / तंबोल या मुखि आणउ रे // 4 // हीरजी तंबोले०