Book Title: Shauchnirnay Trayambakiya
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir GST रिट लिलिDिAY JOOOOOOOOODe sees INVITIENTIFINITIENTIPTIOuririri अथाशौचनिर्णयः त्र्यंबकीयः OrigururuRITIENTrrrrrrrrruarius Serving Jinshasan to मूल्यं 4 आणकाः। CEO 073523 gyanmandir@kobatiith.org KAPOOR For Private and Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आ.॥ श्रीगणेशाय नमः॥ // गणाधिपं नमस्कृत्य प्रत्यूहाद्रिपति नि. कविम् // त्र्यंबकेणाशुबोधाय क्रियतेऽशौचनिर्णयः // 1 // अर्थतः शब्दतश्चेह पौनरुक्त्यं न दुष्यति // स्फुटबोधाय बालानां ग्रंथोऽयं रच्यते यतः // 2 // अत्र प्रागुपनयनात्कामचारकामवादकामभक्षा इति गौतमोक्तेरनुपनीतस्य पित्रादिसंस्कारं विनाऽशौचे नाधिकारः॥ उपनयनोत्तरमपि ब्रह्मचारिणः पित्रायंतकर्मकरण एवाशौचाधिकारो नान्यत्र // तस्माद्विजानां समावर्तनोसरं निरंकुशोऽशौचाधिकारः // स्त्रीशूद्रयोस्तु विवाहस्योपनयनस्थानापन्नत्वेन विवाहोत्तरमेवाशौचाधिकारः // 1 // अथ जननाशौचम् // // गर्भिण्या मासचतुष्टयपर्यंतं गर्भनाशः स्राव इत्युच्यते // तदा गर्भिण्या मासत्रयपर्यंतं त्रिरात्रं चतुर्थमासे चतूरात्रमाशौचं अस्पृश्यत्वम् // पित्रादिसपिंडानां सावमात्रे स्नानाच्छुद्धिः॥२॥ गर्भिण्याः पंचम For Private and Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 3 - - षष्ठमासयोर्गर्भनाशः पात इत्युच्यते // तत्र गर्भिण्या माससंख्यया पंच षट् च दिनानि क्रमेणास्पृश्यत्वावहमाशौचम् // पित्रादिसपिंडानां तु त्रिरात्रं जननाशौचम् , मृताशौचं तु नास्ति // इदमेतावत्पर्यंत सर्ववर्णसाधारणं वयोवस्थानिमित्तत्वात् // 3 // गर्भिण्याः। सप्तममासप्रभृति प्रसवे सर्वेषां मातृपित्रादीनां सपिंडानां विप्राणां दशाहम् // क्षत्रियाणां द्वादशाहम् // वैश्यानां पंचदशाहम् // शूद्राणां मासम् // सच्छूद्रस्य मासार्धम् , जननाशौचं मृताशौचं तु नास्ति // सापत्नमातुः सर्वत्र पितृवत् // 4 // जननाशौचे गर्भिण्याः दशाहमस्पृश्यत्वम् // पितुः सापत्नमातुश्च स्नानात्प्रागस्पृश्यत्वम् // स्नानोत्तरं स्पृश्यत्वमेव // किंतु सर्वत्र सपिंडानां कर्मानधिकारमात्रम् // तत्रापि नालच्छेदनात्पूर्व जातकर्मदानादौ पितुरधिकारः // एवं प्रथमषष्ठदशमदिवसेषु जन्मदाख्यदेवतापूजायां च पितुर्वच आ.२॥ For Private and Personal Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आ. नादधिकारः // कूटस्थमारभ्य सप्तपुरुषपर्यंतं सपिंडाः // ततः सप्त नि. सोदकाः॥ ततः सप्त सगोत्राः॥सोदकानां तु त्रिरात्रमाशौचम् // सगोत्राणां स्नानमात्रम् // 5 // गर्भिण्याः दशाहोत्तरं पुत्रोत्पत्तौ विंशतिदिनानि, कन्योत्पत्तौ मासपर्यंत कर्मानधिकारः॥६॥ इति जननाशौचम् // // अथ मृताशौचम् // // तत्र तद्वतामस्पृश्यत्वं कर्मानधिकारश्चेत्युभयं भवति // मृतजाते शिशौ सर्वेषां सपिंडानां दशाहं जननाशौचं मृताशौचं तु नास्ति // 7 // नालच्छेदनात्पूर्व शिशौ मृते मातुर्दशाहम् // पित्रादिसपिंडानां त्रिरात्रं जननाशौचं मृताशौचं तु नास्ति // 8 // नालच्छेदादूर्ध्वं शिशुमरणे दशाहं जननाशौचं सर्वेषां सपिंडानामस्ति // मृताशौचं तु नास्ति // 9 // 2 दशाहानंतरं नामकरणात्प्राक् शिशुमरणे स्नानमात्रेण सपिंडानां शुद्धिः // मातापित्रोस्त्रिरात्रं पुत्रमृतौ // कन्यामृतौ तु एकाहः // For Private and Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नाम्नः पूर्वं खननमेव नित्यं नोदकदानादि // अलंकरणं तु सर्वत्र भवति // 10 // नामकरणोत्तरं वर्षपर्यंतं दाहखननयोर्विकल्पः॥११॥ नामोत्तरं दंतोत्पत्तेः प्राक् पुत्रमरणे दाहे सपिंडानामेकाहः॥ खनने तु स्नानाच्छुद्धिः // मातापित्रोरुभयत्रापि त्रिरात्रम् // कन्यामृतौ तु त्रिपुरुषसपिंडानां उभयत्रापि स्नानाच्छुद्धिः // मातापित्रोरुभयत्रापि एकाहः // 12 // दंतोत्पत्तेरूवं वर्षत्रयपर्यंतं पुत्रमरणे दाहे खनने वा सपिंडानामेकाहः // मातापित्रोस्त्रिरात्रम् // कन्यामृतौ तु त्रिपुरुषसपिंडानां उभयत्रापि स्नानाच्छुद्धिः // मातापित्रोस्त्रिदिनमाशौचम् // 13 // प्रथमवर्षादौ कृतचूडस्य पुत्रस्य मरणे पित्रादिसपिंडानां त्रिदिनमाशौचं नियतम् // दाहश्च नियतः // 14 // त्रिवर्षोज़ कृतचूडस्याकृतचूडस्य वा पुत्रस्य मरणे प्रागुपनयनात्पित्रादिसपिंडानां त्रिदिनमाशौचम् // दाहश्च नियतः॥ Dow For Private and Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आ. उदकदानादि तूष्णीम् // कृतचूडस्य भूमौ पिंडदानं तूष्णीम् नि. // 15 // कन्यायाः वर्षत्रयानंतरं वाग्दानात्प्राअरणे त्रिपुरुषसपिंडानामेकाहः॥मातापित्रोस्त्रिदिनम् ॥दाहोदकदानादि तूष्णीमेव // 16 // वाग्दानोत्तरं विवाहात्प्राङ्मृतासु कन्यासु भर्तृकुले पितृकुले च सप्तपुरुषसपिंडानां पित्रादीनां सर्वेषां त्रिदिनमाशौचम् / दाहोदकदानादि तूष्णीम् // 17 // उपनयनोत्तरं मृतस्य पुरुषस्य सर्वेषां सपिंडादीनां विप्राणां दशाहम् // क्षत्रियाणां द्वादशाहम् // वैश्यानां पंचदशाहम् // शूद्राणां मासम् // सच्छूद्राणां मासार्धम् // सोदकानां त्रिरात्रम् // गोत्रजानां स्नानाच्छुद्धिः // 18 // विवाहोल कन्यायाः पितृगृहे मरणे मातापित्रोः सोदरभ्रातुश्च त्रिरात्रम् // पितृव्यादीनामेकाहः // 19 // ऊढायाः कन्यायाः पितृगृहे प्रसवे मातापित्रोस्त्रिरात्रम् // सोदरस्यैकरात्रम् // पितृव्यादीनामेकाह इति For Private and Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir केचित् // 20 // पतिगृहे प्रसवे पित्रादीनामाशौचं नास्ति // 21 // ऊढायाः कन्यायाः पतिगृहे मरणे मातापित्रोस्त्रिरात्रम् // 22 // मातापित्रोर्मरणे ऊढपुत्र्यास्त्रिरात्रं दशाहांतम् // दशाहोवं कालांतरे वत्सरांतेऽपि पक्षिणी // अत्रैव अतिक्रांताशौचं ब्राह्मणवचनाद्भवति नान्यत्र // 23 // भ्रातृभगिन्योः परस्परगृहमरणे परस्परस्य त्रिरात्रम् // गृहांतरमृतौ तु परस्परस्य पक्षिणी // 24 // मातुलमरणे भगिन्यपत्यस्य पक्षिणी // उपकारिमातुलमरणे तु त्रिरात्रम् // 25 // मातुलान्या मरणे भर्तृभगिन्यपत्यस्य पक्षिणी // 26 // उपनीतभागिनेयमरणे मातुलस्य मातुलभगिन्याश्च त्रिरात्रम् // अनुपनीते मृते तु मातुलस्य मातुलभगिन्याश्च पक्षिणी // 27 // मातामहमरणे दुहित्रपत्यस्य त्रिरात्रम् // 28 // अनुपनीतदौहित्रमरणे मातामहस्य मातामह्याश्च पक्षिणी // उपनीते मृते तु त्रिरात्रमिति - For Private and Personal Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आ. केचित् // 29 // मातामह्यां मृतायां दुहित्रपत्यस्य पक्षिणी // 30 // नि. श्वश्रूश्वशुरयोम॒तौ सत्यां जामातुः सन्निधौ त्रिरात्रमसन्निधौ पक्षिणी // ग्रामांतरे चैकरात्रम् // 31 // जामातरि मृते तु श्वश्रूश्वशुरयोः स्नानाच्छुद्धिः // एकाहमाशौचमिति केचित् // 32 // श्यालके मृते भगिनीभर्तुरेकाहः। श्यालकसुतमरणे तु स्नानमात्रम् // 33 // पितृष्वसरि मृतायां भ्रात्रपत्यस्य पक्षिणी // 34 // मातृष्वसरि मृतायां स्वस्रपत्यस्य पक्षिणी॥३५॥ आत्मनः पितृष्वसमातृष्वसृमातुलपुत्रा आत्मबांधवाः // पितुः पितृष्वस्मृमातृष्वस्मृमातुलपुत्राः पितृबांधवाः॥ मातुः मातृष्वसृपितृष्वस्मातुलपुत्रा मातृबांधवाः॥ एते त्रिविधा बांधवाः // बंधुत्रये एतेषु मृतेषु पक्षिणी // पितृष्व-४ सादिकन्यानामूढानां मरणे एकाहः // दत्तकमृतौ तु पूर्वापरपित्रोस्त्रिरात्रम् // सपिंडानामेकाहः॥ 36 // पूर्वापरपित्रोम॒तौ दत्तकस्य For Private and Personal Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir त्रिरात्रम् // 37 // दत्तकस्य पुत्रपौत्राणां मरणे जनने वा सपिंडानामेकाहः // 38 // सपिंडे पुत्रीकृते दत्तके मृते तु सपिंडानां दशाह एव // 39 // आचार्यमरणे शिष्यस्य त्रिरात्रम् // तत्पुत्रपन्योर्मरणे एकाहः // उपनीयाध्यापक आचार्य इत्युच्यते // वेदैकदेशाध्यापक उपाध्यायः // तन्मरणे शिष्यस्यैकरात्रम् // 40 // शिष्यस्योपनीतस्य मरणे गुरोस्त्रिरात्रम् // परोपनीतस्य मरणे तु एकरात्रम् // 41 // सहाध्यायिनो मृतौ एकग्रामीणयोरनूचानोत्रिययोम॒तौ चैकाहः॥ सांगवेदाध्यायी अनूचानः // वेदमात्राध्यायी श्रोत्रियः॥ अध्ययनशब्दार्थस्यार्थज्ञानपर्यवसायित्वं न्यायसिद्धम् // 42 // असपिंडस्यापि श्रोत्रियस्य मैत्रादिसंबन्धस्य यगृहे मरणं तद्गृहस्वामिन एकरात्रम् // 43 // वानप्रस्थे यतौ षंढे च मृते युद्धे च मृते सपिंडानां स्नानमात्रम् // 44 // ॥अथातिकांताशौचम् // तत्र जननेऽतिक्रांताशौचं For Private and Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आ. नास्ति // पितुः स्नानं तत्रापि भवति // मृतके तु अनुपनीतमरणादि- नि. | निमित्तकत्रिरात्रादिषु भगिनीमातुलादिमरणनिमित्तकत्रिरात्रादिषु चातिक्रांताशौचं नास्ति // किंतु दशाहादिमृताशौचविषयमेव // 45 // दशाहमध्ये जनने मरणे ज्ञाते पुत्रादीनां च सर्वेषां शेषेणैव शुद्धिः॥ संस्कारमपि शेषेणैव समापयेत् // अस्थिपर्णशरसंस्कारमपि शेषेणैव समापयेत् // 46 // आद्यत्रिरात्रमध्ये समानोदकमरणे ज्ञाते समानोदकानां शेषेणैव शुद्धिः // त्रिरात्रेऽतिक्रांते तु दशाहमध्ये ज्ञातेऽपि नाशौचं किंतु स्नानमात्रम्॥ अयमेव न्यायो मातुलादित्रिरात्रादिषु ज्ञेयः॥४७॥ मातापित्रोमरणे दूरदेशेऽपि संवत्सरांतरपि श्रवणे पुत्रो | दशाहादिपूर्णमेवाशौचं कुर्यात् // 48 // स्त्रीपुंसयोः परस्परमरणे | परस्परं देशांतरे वत्सरांतेऽपि पूर्ण दशाहादि भवति॥४९॥ सपत्नीषु परस्परमृतौ परस्परस्य देशकालावनपेक्ष्य दशाहं पूर्णमेवाशौचं भवति MARA - - For Private and Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | // 50 // सापत्नमातुर्मरणे संवत्सरोर्ध्वमपि देशान्तरेऽपि त्रिरात्रम् // 51 // औरसपुत्रे मृते संवत्सरोर्ध्वमपि मातापित्रोस्त्रिरात्रम् // 52 // दशाहोलमेकदेशे ज्ञातिमरणे ज्ञाते मासत्रयपर्यंतं त्रिरात्रम्॥षण्मासपर्यंतं पक्षिणी॥ नवमासपर्यंत एकदिनं तदनन्तरं स्नानमात्रमिति वृद्धवसिष्ठः॥ पक्षत्रयपर्यंत त्रिरात्रम् // षण्मासपर्यंतं पक्षिणी // वर्षपर्यंतमेकरात्रम् // तदूर्ध्वं स्नानमात्रमिति माधवे देवलः // अत्रापदनापद्विषयत्वेन व्यवस्था द्रष्टव्या॥५३॥ दशाहोय देशांतरे ज्ञातिमरणे ज्ञाते त्रिपक्षपर्यंत त्रिरात्रम् // ततो मासषटपर्यंतं अहोरात्रम्॥ ततो वर्षपर्यंतं दिवा श्रवणे आसायं रात्रिश्रवणे आप्रातराशौचम् // वत्सरांते तु स्नानाच्छुद्धिः // इदं सर्वमतिकांताशौचं सर्ववर्णसाधारणम् // अत्र देशांतरे ज्ञातिमृते ज्ञाते स्नानाच्छुद्धिरिति केचित् // तन्माधवोदाहृतविष्णुस्मृत्यज्ञानविलसितमिति ज्ञेयम् // देशांतरं तु man For Private and Personal Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - आ. विप्रस्य विंशतियोजनांतरं क्षत्रियस्य चतुर्विंशतियोजनांतरं वैश्यस्य नि. सच्छूद्रस्य च त्रिंशद्योजनांतरमसच्छूद्रस्य षष्टियोजनांतरं ज्ञेयम् // पक्षांतराणि तु उक्तपक्षानुसारेण ज्ञातव्यानि // 54 // अत्रायं निष्कर्षः-यानि एकगोत्रविषयकजननमरणातिक्रांताशौचानि तानि जायापतिभ्यामुभाभ्यामविशेषणानुष्ठेयानि // यानि पुनर्भगिनीमातुलादिभिन्नगोत्राशौचानि तेषु जायापतिमध्ये यत्संबंधं यत्तत्तेनैवानुष्ठेयं नोभाभ्यामिति // 55 // आहिताग्नेमत्रवद्दाहदिनमारभ्य पुत्रादिभिराशौचं कार्यम् // 56 // आहिताग्नौ प्रोषिते मृते मंत्रबहाहात्पूर्वं पुत्रादीनां नाशौचं संध्यादिकर्मलोपश्च नास्ति // 57 // अनाहिताग्नेस्तु मरणदिनमारभ्य पुत्रादिभिराशौचं कार्यम् // 58 // अथ 6 रात्रौ जनने मरणे वारात्रिं त्रिभागां कृत्वाऽऽद्यभागद्वये चेत्पूर्वदिनं तृतीयभागे चेदुत्तरदिनमारभ्याशौचं कार्यम् // अर्धरात्रात्प्राक् पूर्व For Private and Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दिनं परत उत्तरदिनम् // प्राक्सूर्योदयात्पूर्व दिनम् // ऊर्ध्वमुत्तर-1 मिति // पक्षत्रयं देशांतरतो व्यवस्थितम् // महाराष्ट्रदेशे तु आद्यपक्ष एव चरति॥५९॥ इति त्र्यंबकीये आशौचनिर्णयः॥अथाशौचसंपाते निर्णयः॥ तत्र दशाहमृतके दशाहं ततो न्यूनं वा मृतकमुपस्थित भवति तदा पूर्वशेषेण शुद्धिः // 60 // दशाहे सूतके दशाहं ततो न्यूनं वा सूतकं पतति तदा पूर्वशेषेण शुद्धिः // 61 // सूतकमध्ये दशाहं न्यूनं वा मृतकं पतति तदा तस्य न पूर्वेण शुद्धिः॥ तत्र सूतकस्यावशिष्टत्वे तु मृतकसमाप्त्या सूतकमपि समापनीयम् // 62 // त्र्यहादिरूपे मृतके सूतके च दशाहमृतकपाते च दशाह सूतकपाते च न पूर्वेण शुद्धिः॥६३॥ मृतके सूतकस्य समन्यूनस्य वा संपाते पूर्वेण शुद्धिः // 64 // अधिकस्यापि सूतकस्य शुद्धिरिति शुद्धिविवेककारः॥६५॥ पूर्वाशौचमध्ये उत्पन्नमपि पूर्वाशौचोत्तरं ज्ञातं For Private and Personal Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आ. चेदुत्तरमेव कार्यम् // दशाहांत्यरात्रौ यदि दशाहं सूतकं पतति नि. तदा दिनद्वयमधिकं कार्यम्, सा रात्रिः परेयुश्च // 66 // दशाहांत्यरात्रिचतुर्थयामे यदि दशाहमाशौचं पतेत्तदा दिनत्रयमधिकं कार्यम् // 67 // त्र्यहाद्याशौचानां परस्परं रात्रिशेषे संपाते पूर्वेणैव शुद्धिः न व्यहादिवृद्धिः // 68 // वर्धिते द्वित्रिदिनमध्ये आशौचांतरसंपाते च अधिकस्य न पूर्वेण शुद्धिः॥ समन्यूनयोस्तु पूर्वेण शुद्धिः॥६९॥ सपिंडाशौचेन मातृपितृभर्तृणामाशौचं नापैति // 70 // मात्राशौचमध्ये पित्राशौचपाते पूर्वशेषेण शुद्धिः // 71 // पितुः संपूर्णाशौचेन शुद्धिरित्यन्ये // तेषां शेषपदस्य पूर्णपरत्वं लाक्षणिकम् // पित्राशौचमध्ये मातृमरणे तु पित्राशौचं समाप्य पक्षिणी-७ मधिकं कुर्यात् // 72 // इदं दशमरात्रेरर्वाग्भवति // दशमराठ्यां तद्रात्रिचतुर्थयामे मातृमरणे तुझ्यहं त्र्यहं वेति न पक्षिणी // 73 // For Private and Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - मातुर्भसहान्वारोहणे तु नाधिका पक्षिणी॥ पूर्वाशौचेन शुद्धिः // 74 // सूतिकायां अग्निदे प्रेतपुत्रेषु च नास्ति // अत्र प्रेतपुत्रेति पुनर्ग्रहणं वचनांतरानुरोधेन // 75 // सूतके मृतकपाते न पिंडादाने प्रतिबंधः // मृतके सूतकसंपाते जातकर्मादि तदानीमाशौचांते वा कुर्यात् इति विकल्पः // 76 // मातुर्वाऽधिका पक्षिणी तन्मध्ये पितुरेकादशाहं श्राद्धं कुर्यात् // 77 // शवस्पर्शे दिवा चेन्नक्षत्रदर्शनाच्छुद्धिः // रात्रौ चेत्सूर्यदर्शनात् // तदन्नाशने तद्गृहवासे यावत्तेपामाशौचं तावदाशौचम् // 78 // संसर्गाशोंचे कर्माधिकारो नास्ति॥ किंतु अस्पृश्यत्वमात्रम् // 79 // तद्गृह्याणां तद्रव्याणां नाशौचसंबंधः // 80 // स्नेहेन सवर्णनिर्हारे तदन्नाशने तगृहवासे च दशाहः // तदन्नानशने तगृहवासे व्यहः // 81 // अगृहवासेऽन्नभक्षणे निर्हरणमात्रे कृते चैकाहः // 82 // भृतिग्रहणे सवर्णनिर्हारे दशाहे च | For Private and Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तजात्याशौचं दशाहादि ॥८३॥विजातीयनिहर्हारे विजातीयदाहे च नि. शवजातीयमाशौचम् // भृतिग्रहणे विजातीयनिर्हारे दाहे च शवजातीयाविगुणम् // 84 // सोदकनिर्हारे दशाहः॥ 85 // असपिडालंकरणे अज्ञानादुपवासः // अशक्तौ स्नानम् // ज्ञानतः पादकृच्छम् // 86 // धर्मार्थमनाथशवसवर्णनिहरणे क्रियाकरणेऽग्निदाने च द्विजस्य अनंतफलम् // स्नानाच्छुद्धिः प्राणायामोऽग्निस्पर्शश्च // 87 // धर्मार्थमनाथसवर्णनिर्हरणादावपि मातुलादिसंबंधे सति त्रिरात्रमाशौचम् // 88 // अनुगमने तु सपिंडे न दोषः, असपिंडेऽपि अनाथक्रियायां न दोषः॥८९॥ समोत्कृष्टवर्णीयशवानुगमने स्नात्वा हुताशं स्पृष्ट्वा सर्पिः प्राश्य पुनः स्नात्वा प्राणायाम कुर्यात् // 10 // हीनवर्ण-14 शवानुगमने क्षत्रिये एकाहः // वैश्ये पक्षिणी // शूद्रे त्रिरात्रम् // पूर्ववत्स्नानादि च // 91 // ब्रह्मचारिणः सपिंडमरणे नाशौचम् // For Private and Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नान्यस्प निर्हारदाहाद्यौर्ध्वदेहिकेऽधिकारः॥९२॥ तत्करणे पुनरुपनयनम् // कृच्छ्रप्रायश्चित्तम् // 93 // ब्रह्मचारिणः पितृमात्राचार्योपाध्यायमातामहानामंत्यकर्मकरणे न दोषः॥ तत्र दशाहमस्पृश्यत्वलक्षणमाशौचम् // 94 // दशदिनं संध्याग्निकार्यादिकर्माधिकारो|ऽस्त्येव // 95 // एकदिनमस्पृश्यत्वमिति माधवः // 96 // पित्राद्याशौचेऽपि नाशौचिनामन्नं ब्रह्मचारी भक्षयेत् // भक्षणे तु पुनरुपनयनम् // 97 // ब्रह्मचारिणः पित्राद्यन्त्यकर्माकरणे तु पित्रादिभरणेऽपि नाशौचम् // 98 // समावर्तनोत्तरं पूर्वमृतानां त्रिदिनाशौचं कार्यमेव // 99 // कृतजीवच्छ्राद्धेन किमप्याशौचन कार्यमिति हेमाद्रिः॥१००॥ वानप्रस्थयतिपतितयोरपि किमप्याशौचं न कार्यम् // तेषामपीतरैर्न कार्यम् // 1 // परेषां सर्ववर्णानामौर्ध्वदेहिककरणे तज्जात्याशौचं कृत्वा कृच्छ्रत्रयाच्छुद्धिः // 2 // हीनवोर्ध्वदेहिककरणे तु शवजातीयमा For Private and Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आ. शौचं कृत्वा कृच्छ्त्रयद्वैगुण्यागृह्यम् // 3 // आहिताग्नेरस्थिदाहे प्रति- नि. कृतिदाहे वा सर्वसपिंडानां दशाहाद्याशौचम् // 4 // अनाहिताग्नेस्तु अस्थिदाहे पर्णशरदाहे च पत्नीपुत्रयोः पूर्वमगृहीताशौचयोर्दशाहिक पूर्णमेव // 5 // गृहीताशौचयोस्तु तयोरपि संस्कारकाले त्रिरात्रम् // पत्नीसंस्कारे पत्युश्चैवम् // सपत्योमिथश्चैवम् // 6 // अन्यसपिंडानां पूर्वमगृहीताशौचानां अनाहिताग्निसंस्कारकाले त्रिरात्रम् // पूर्वमगृहीताशौचानां तु सपिंडानां संस्कारकाले स्नानमात्रम् // 7 // इदं त्रिरात्रादिकं दशाहोचं संस्कारकरणे ज्ञेयम् // दशाहमध्ये तु शेषदिवसैरेवाशौचसिद्धेरुक्तत्वात् ॥८॥रजस्खलायास्तु विंशतिदिनोत्तरं प्रायशो रजोदर्शनं भवति, तस्याः सप्तदशदिनपर्यंतं पुना रजोदृष्टौ स्नानमात्रम् // अष्टादशे एकरात्रम् // एकोनविंशे द्विदिनम् // विंशतिप्रभृति दिनत्रयम् // 9 // यस्यास्तु विंशतिदिनादर्वाक्प्रायशो For Private and Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रजोदर्शनं भवति तस्या दशदिनपर्यंत स्नानमात्रम् // एकादशे एकरात्रं द्वादशे द्विरात्रं त्रयोदशादारभ्य त्रिरात्रम् // 110 // इति त्र्यंबकीयेऽशौचनिर्णये दशोत्तरशतोऽशः // अत्र मूलवचनानि मिताक्षरादिनिबंधेभ्यो ज्ञेयानि // तानि विस्तरभिया बालानां दुरधिगमत्वाच्च न लिखितानि // इदं पुस्तकं नारायण राम आचार्य "काव्यतीर्थ" इत्यनेन संशोधितं तच्च मुम्बय्यां सत्यभामाबाई पाण्डुरङ्ग इत्येताभिः 'निर्णयसागरा' ख्यमुद्रणयत्रालये मुद्रापयित्वा तस्यैव कृते प्रकाशितम् / शके 1868, सन 1947. पब्लिशर-सत्यभामाबाई पांडुरंग, प्रिंटर-रामचंद्र येसू शेडगे. निर्णयसागर प्रेस, 26/28 कोलभाव स्ट्रीट, मुंबई. - For Private and Personal Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir % 3D पESARSSES इत्याशौचनिर्णयः त्र्यंबकीयः / HIRVANTAVAN For Private and Personal Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only