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शाकाहार है संतुलित आहार
शाकाहार अब एक स्थापित जीवन-शैली है; अतः उससे होने वाले फायदों को अलग से सिद्ध करना आवश्यक नहीं है।
सब जानते हैं कि शाकाहार मानवीय गुणों को विकसित समृद्ध करने वाला आहार है। उसके उत्पादन में न तो कोई जीवहत्या होती है और न ही कोई क्रूर कर्म। वह मांसाहार जिस तरह खून की नींव पर खड़ा है, अवस्थित नहीं है।
दुनिया के सारे देश अब यह भलीभाँति जानने लगे हैं कि हमें ऑक्सीजनयुक्त / स्वास्थ्यप्रद वायु चाहिये और चाहिये धरती की कोख में जल तो शाकाहार हर हालत में अपरिहार्य है।
यह एक दुश्चक्र है कि पहले पशुओं का संवर्द्धन करो अर्थात् उन्हें वनस्पति खिलाओ, और ऑक्सीजन के उर्वर स्रोत बंद करो, कत्लखानों का मलवा - रक्त, मांस, मज्जा - बहाने के लिए पेय जल की बर्बादी करो, और फिर बूंद-बूंद के लिए तरसो नदियों में गंदगी डालो और फिर उनके निर्मलीकरण के लिए एड़ी-चोटी एक करो।
तय है कि मांसाहार हिंसा के बगैर संभव नहीं है। जिन लोगों ने कत्लखानों की मानसिकता का अध्ययन किया है उनका निष्कर्ष है कि मांसाहार मनुष्य को बर्बर, रक्त-पिपासू और नृशंस बनाता है नतीजतन युद्ध, रक्तपात, लड़ाई तकरार, कलह तबाही के अलावा उसका कोई और परिणाम निकल ही नहीं सकता।
प्रकृति ने स्वयं मनुष्य को शाकाहारी अस्मिता प्रदान की है। उसने उसके शरीर की रचना भी तदनुरूप की है। शाकाहार और मानवता का परस्पर गहन संबन्ध है।
शाकाहार के बारे में कुछ सकारात्मक तथ्य इस प्रकार हैं
१. शाकाहार सात्विक आहार है; अतः वह सहज की अहिंसा, भ्रातृत्व, विश्वास, मैत्री आदि मानवीय गुणों को विकसित करता है।
२. प्रकृति ने मांसभक्षी और शाकाहारी जीवधारियों की शरीर रचना अलग-अलग तरह से की है : यथा-मांसाहारियों के दाँत नुकीले और पंजे / नाखून लम्बे तेज होते हैं उनके जबड़े सिर्फ ऊपर-नीचे चलते हैं; वे अपना आहार निगलते हैं; उनकी जीव खुरदरी होती है; वे जीभ से पानी पीते हैं; उनकी आँतें छोटी होती हैं; उनका जिगर उनके गुर्दे अपेक्षाकृत बड़े होते हैं; उनकी लार में हाइड्रोक्लोरिक अम्ल होता है दूसरी ओर शाकाहारी जीवधारियों के दाँत और नाखून नुकीले नहीं होते उनके जबड़े सभी दिशाओं में चलते हैं; वे अपना आहार चबाते हैं; उनकी जीभ चिकनी / स्निग्ध होती है वे होठ से पानी पीते हैं उनकी आँते बड़ी होती हैं; उनका
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उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति ग्रन्थ
- डॉ. नेमीचन्द जैन, इन्दौर
जिगर और उनके गुर्दे छोटे होते हैं उनकी लार में अल्केलाइन होता है-प्रश्न उठता है कि आखिर यह अन्तर क्यों है ?
३. आर्थिक दृष्टि से भी शाकाहार सस्ता और पर्यावरण/ परिस्थिति के अनुरूप है।
४. शाकाहार में प्रोटीन जितना चाहिये, उतना है। चिकित्साशास्त्र के अनुसार एक किग्रा वजन पर एक ग्राम प्रोटीन चाहिये। अधिक प्रोटीन से एक तो शरीर में कैल्शियम का भण्डार घट जाता है, दूसरे नाइट्रोजनिक उत्पादों को निकाल फेंकने में गुर्दों को काफी श्रम करना पड़ता है। ध्यान रहे, अतिरिक्त प्रोटीन को एकत्रित रखने की क्षमता मानव शरीर में नहीं है। प्रोटीन की प्रचुरता का नारा मात्र व्यापारिक पैंतरा है, इसे समझना चाहिये।
५. वस्तुतः संतुलित आहार का दुनिया में कोई सानी नहीं है। एमीनो अम्ल का समायोजन शाकाहार में परस्पर पूरकता द्वारा संपन्न होता है। दाल-रोटी इसी समायोजन का प्रतीक है। गेहूँ में लायसिन नहीं है, दाल में मेथोसिन अनुपस्थित है; किन्तु इनकी पूरकता कमी को पूरा कर लेती है।
६. शाकाहार में विटामिन 'बी' के न होने का आरोप भ्रामक है। शाकाहारियों का शरीर स्वयं इसका प्रबन्ध करता है। 'बी' विटामिन से होने वाली बीमारियों का शाकाहारियों को प्रायः न होना इसका जीवन्त प्रमाण है।
७. शाकाहार में 'कार्बोहाइड्रेट्स' का होना आँतों के लिए सुखद निर्विघ्नता है। इससे कब्ज से रक्षा होती है और पेट कई गंभीर/असाध्य रोगों से बच जाता है।
८. शाकाहार में विटामिन 'सी' है, जो मांसाहार में बिल्कुल
नहीं है।
९. कुछ शाकाहारी पदार्थों में लौहतत्त्व सर्वाधिक है। गुड़ में ११.४, मेथी में वह १६.९ प्रतिशत है, जबकि मांसाहारी पदार्थों में से किसी में भी वह ६.३ से अधिक नहीं है।
१०. विटामिन ए की सर्वाधिक समृद्ध स्रोत पत्तीदार सब्जियाँ हैं। बंदगोभी, करमकल्ला, धनिया और आम में क्रमशः २,००; १०,४६०; और ४,८०० अन्तर्राष्ट्रीय इकाई (आईयू) विटामिन होता है। विटामिन 'ए' की इतनी इकाइयाँ किसी मांसाहारी पदार्थ में उपलब्ध नहीं है। विटामिन 'ए' अधिक मात्रा में लेने पर विषैला भी साबित हो सकता है।
११. विटामिन 'ई' अंकुरित गेहूँ और सोयाबीन में प्रति १०० ग्राम क्रमशः १४.१ मिग्रा तथा १४.00 मिग्रा होता है। किसी भी
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| जन-मंगल धर्म के चार चरण
६०१ ।। मांसाहारी पदार्थ में यह इतना नहीं है। गेहूँ को विटामिन 'ई' का । १९९२) के पृष्ठ पर स्पष्ट शब्दों में कहा गया है कि यदि हमने सर्वश्रेष्ठ/सर्वोपरि स्रोत माना जाता है।
अपनी व्यक्तिगत आहार आदतों में परिवर्तन नहीं किया और मांस, जहाँ तक कैलोरियों (ऊर्जाक) का प्रश्न है, मांसाहार को
पोल्ट्री तथा डेअरी उत्पादों की हमारी माँग इतनी ही या इससे कैलोरियों का अच्छा स्रोत नहीं माना गया है। गेहूँ, चावल और
अधिक बनी रही तो संसार क्रमशः विनाश की ओर बढ़ जाएगा सोयाबीन से क्रमशः प्रति १०० ग्राम ३५०, ३४६ और ४३२
और यदि हमने अपनी खानपान की आदतों में परिवर्तन किया तो कैलोरियाँ मिल सकती हैं, जबिक किसी भी मांसाहारी पदार्थ में ।
हम धरती के घाव भर सकेंगे और आने वाली पीढ़ी के लिए एक १२५ कैलोरी प्रति १०० ग्राम से अधिक प्राप्य नहीं हैं।
संपुष्ट जगत् की रचना कर पायेंगे। अब यह लगभग पूरी दुनिया ने मान लिया है कि मांसाहार से
। इन तमाम कारणों से स्पष्ट है कि शाकाहार आज सबमें भू-क्षरण (इरोजिन), मरु-स्थलीकरण (डेजर्टिफिकेशन), वर्षा वनों।
अधिक प्रासंगिक है और वही इस धरती को विनाश से बचा की बर्बादी (डीफॉरेस्टेशन ऑफ रेनफोरेस्ट्स), पृथ्वी की उष्णता में सकता है। वृद्धि (ग्लोबल वार्मिंग), जल-प्रदूषण (वाटर पॉल्यूशन) तथा
पता : कीटनाशी विषों के फैलाव जैसे दुष्परिणाम प्रकट हुए हैं, इसीलिए
दुष्पारणाम प्रकट हुए है, इसलिए ६५, पत्रकार कालोनी, सेव्ह अर्थ फाउंडेशन (७०६ फ्रेडरिस स्ट्रीट सान क्रूझ सीए ९५०६२) ३ द्वारा प्रकाशित 'अवर फूड अवर अर्थ' (मार्च इन्दौर (म.प्र.)
विशेषज्ञों ने माँसाहार के दुष्प्रभावों का जो विवरण दिया है, उसमें दो टूक कहा गया है कि माँसाहार के कारण वन मरुस्थल बन रहे हैं, पानी ज़मीन में गहरे उतरता जा रहा है, पृथ्वी की उपजाऊ परत (टॉप्सॉइल) निरन्तर नष्ट हो रही है, समुद्र-धरती-आकाश तीनों रासायनिक विष से पटते जा रहे हैं। इस तरह मनुष्य जीवन की गुणवत्ता को हर पल कम कर रहा है और खुद को तथा आगामी पीढ़ी को आँख मूंद कर अत्यन्त बेरहमी के साथ मृत्यु के मुँह में धकेल रहा है।
आम आदमी संभवतः यह नहीं जानता कि जल की कमी का सबमें बड़ा कारण माँसाहार है। जो आँकड़े इस संदर्भ में हमारे सामने हैं, उनसे हम चकित न हों, बल्कि उनकी समुचित व्याख्या करें। विशेषज्ञों का अभिमत है कि एक पौंड माँस के उत्पादन में २,५00 गैलन पानी की खपत होती है। पानी का यह परिमाण एक पूरे परिवार के लिए महीने-भर के लिए पर्याप्त होता है। कहाँ एक पौंड माँस और कहाँ पूरे परिवार के लिए महीने-भर पानी!
अमेरिका से जो आँकड़े हमें मिले हैं उनके अनुसार एक माँसाहारी के पूरे दिन के आहार के उत्पादन में ४,000 गैलन पानी लगता है, जबकि एक शुद्ध शाकाहारी के भोजन पर दिन-भर में मात्र ३00 गैलन पानी पर्याप्त होता है। है कोई तुलना? एक अन्य सर्वे के अनुसार १00 पौंड गेहूँ पैदा करने में जितना जल लगता है, उतना सिर्फ एक पौंड माँस के उत्पादन में लग जाता है।
-डॉ. नेमीचन्द जैन (शाकाहार मानव-सभ्यता की सुबह : पेज ८१-८२ से)
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उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ ।
शाकाहार : एक वैज्ञानिक जीवन शैली
-मुनि नवीनचन्द्र विजय
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संसार के प्रत्येक प्राणी का जीवन आधार आहार है। प्रत्येक । देवताओं का आहार चार प्रकार का कहा है-(१) अच्छे वर्ण प्राणी किसी रूप में आहार ग्रहण करते हैं। उन आहारों के प्रकार | वाला। (२) अच्छे गन्धवाला। (३) अच्छे रसवाला। (४) अच्छे भिन्न हो सकते हैं। पेड़ और पौधे जमीन के भीतर से आहार लेते स्पर्शवाला। हैं। पानी में रहने वाले प्राणियों के लिए पानी ही आहार है।
आहार प्रत्येक प्राणी की प्रथम आवश्यकता है। संसार का कोई सूत्रकृतांग और स्थानांग आदि कई जैन सूत्रों में आहार के भी प्राणी बिना आहार ग्रहण किए जीवित रहने का दावा नहीं कर भेद-उपभेदों का विस्तृत वर्णन है। द्रव्य आहार के अन्तर्गत सचित्त, । सकता। जैन दर्शन के अनुसार ‘आहार संज्ञा' प्रत्येक जीव के साथ अचित्त और मिश्र आहारों का प्रतिपादन हुआ है। भाव आहार के चिपकी हुई है। अन्तर्गत ओज आहार, लोम आहार और प्रक्षिप्त आहार आते हैं।
मनुष्य का प्रमुख आहार अन्न है। यह अन्न उसके जीवन का ओज आहार अर्थात् जो जन्म के प्रारंभ में लिया जाता है। लोम
आधार है। ब्राह्मण-ग्रन्थों ने इस अन्न को ब्रह्म कहा है। तैत्तरीय आहार अर्थात् जो त्वचा या रोम के द्वारा लिया जाता है। प्रक्षिप्त
आरण्यक में कहा है-अन्नं ब्रह्मेत व्यजानात् अर्थात् यह अच्छी तरह आहार अर्थात् जो शरीर में इन्जेक्शन आदि के द्वारा प्रक्षिप्त किया
जान लीजिए कि अन्न ही ब्रह्म है। जाता है।
यह ब्रह्म अन्न, जल और फल है। जिसे हम शाकाहार कहते हैं। ___ स्थानांग सूत्र में नारक, तिर्यंच, मनुष्य और देवताओं के
वास्तव में वही ब्रह्म है। यह शाकाहार ही मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ और आहार के विषय में कहा गया है-णेरइयाणं चउव्विहे आहारे
प्राकृतिक आहार है। इसे हम यदि मनुष्य की एक वैज्ञानिक जीवन पण्णत्ते, तं जहा-इंगलोवमे, मुम्मुरोवमे, सीयले, हिमसीयले।
शैली कहें तो अतिशयोक्ति न होगी। सृष्टि के प्रारंभ काल से लेकर नरक में रहने वाले प्राणियों के आहार चार प्रकार के आज तक मनुष्य के जीवन का प्रमुख आधार शाकाहार रहा है। कहे हैं-(१) अंगारों के समान थोड़ी देर तक जलाने वाला। (२) यह धार्मिक और अहिंसक आहार है। मुमुरे के समान अधिक समय तक दाह उत्पन्न करने वाला। (३)
शाकाहार का विरोधी आहार मांसाहार है। शाकाहार की शीतल-सर्दी उत्पन्न करने वाला (४) हिमशीतल-हिम के समान
विकृति मांसाहार है। यह मनुष्य की अवैज्ञानिक और अप्राकृतिक अत्यन्त शीतल।
जीवन शैली है। बिना हिंसा के मांस नहीं बनेगा और हिंसा से ___तिरिक्खजोणियाणं चउब्विहे आहारे पण्णत्ते, तं जहा-कंकोवमे, .
बढ़कर कोई पाप नहीं है। विलोवमे, पाणमंसोवमे पुत्तमंसोवमे।
भारत की अहिंसक और सात्विक संस्कृति ने मांसाहार को तिर्यंचों का आहार चार प्रकार का कहा है-(१) कंक के
। मनुष्य के आहार के रूप में कभी स्वीकार नहीं किया। समान-सुभक्ष्य और सुखकारी परिणाम वाला। (२) बिल के
___ भारतीय संस्कृति ने 'आत्मवत् सर्वभूतेषु' की उद्घोष की है। समान-बिल में वस्तु की तरह (रस का स्वाद दिए बिना) सीधा पेट में जाने वाला। (३) मातंगमांस के समान-मातंगमास के समान घृणा
सभी जीवों को अपने समान मानो। जैसा हमें दुःख अनुभव होता है पैदा करने वाला। (४) पुत्रमांस के समान-पुत्रमांस के समान अत्यन्त
वैसा ही दूसरा अनुभव करता है। इसलिए कभी किसी को दुःख न
दो। यहीं से अहिंसा और शाकाहार का सूत्रपात होता है। यही दुःख से खाया जाने वाला।
कारण है कि हमारी संस्कृति ने मांसाहार को कभी प्रश्रय नहीं मणुस्साणं चउव्विहे आहारे पण्णत्ते, तं जहा-असणे, पाणे, दिया। मांसाहार यदि आया भी है तो वह संस्कति की विकति के खाइमे, साइमे।
रूप में आया है और इसे सदैव पाप ही माना गया है। लोग ___ मनुष्यों का आहार चार प्रकार का कहा है-(१) असन, दाल, मांसाहार को घृणा की दृष्टि से देखते हैं और इसे तिर्यंच एवं रोटी, भात आदि। (२) पान-पानी आदि पेय पदार्थ। (३) खादिम- राक्षसों का आहार मानते हैं। फल-मेवा आदि। (४) स्वादिम-पान-सुपारी आदि मुँह साफ करने की
इस वैज्ञानिक सत्य की कोई उपेक्षा नहीं कर सकता कि
आदमी जैसा आहार ग्रहण करता है वैसा ही बनता है। आहार का देवाणं चउबिहे आहारे पण्णत्ते, तं जहा-वण्णमंते, गंधमंते, प्रभाव व्यक्ति के समग्र व्यक्तित्व पर पड़ता है। उसका समग्र रसमंते, फासमंते।
जीवन व्यवहार और आचरण उसके आहार के अनुरूप ढला
चीजें।
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________________ SO900.03a0 .000 00SOYAPDOOPSPoppyara जन-मंगल धर्म के चार चरण DANA Y666 200 हुआ होता है। तामसिक आहार तामस व्यक्तित्व का जनक है जो मांस क्रुद्ध और आतंकित प्राणी का होगा। यदि उसी प्राणी और सात्विक आहार सात्विक व्यक्तित्व का। जिन संस्कृतियों, के मांस को मनुष्य खाएगा तो क्या वह क्रुद्धता और उग्रता से बच जिन धर्मों और जिन समाजों ने मांसाहार को वर्जित करके | सकता है। यदि मांसाहारी व्यक्ति के व्यक्तित्व में पशुता और शाकाहार को अपनाया है, वे अधिक सहिष्णु, शांतिप्रिय और राक्षसीपन की झलक मिलती है तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है। सात्विक रही हैं। जहाँ पर मांसाहार अधिक होगा वहाँ अपेक्षाकृत अधिक हिंसा और वर्तमान विश्व में आज जो इतनी हिंसा, आतंक, अंधाधुंधी, क्रूरता होगी। मांसाहारी व्यक्ति आत्मिक, हार्दिक और मानसिक असहिष्णुता, क्रूरता, हत्याएं, क्रोध, तनाव, उग्रता, छटपटाहट और संवेदना गंवा देता है। उस व्यक्ति से मृदुल, स्नेहिल और कोमल बेचैनी है, यदि इनका मूल कारण खोजेंगे तो ज्ञात होगा कि इसके स्वभाव तथा आचरण की आशा नहीं रखी जा सकती। यह सूक्ष्म बीज मांसाहार में हैं। कोई भी जीव स्वेच्छा से मरना नहीं चाहता। वैज्ञानिक कारण है। जिसकी कोई भी उपेक्षा नहीं कर सकता। सभी में दुर्वार जिजीविषा होती है। मरने से बचने के लिए जीव 1 इससे विपरीत वर्तमान विश्व में जो भी अव्यवस्था फैली है सबकुछ छोड़कर अपने मारने वाले से दूर भाग जाता है। जिसे उसका समाधान शाकाहार के पास है। मनुष्य ने जो शांति, संतुलन, मारा जाता है उसे बांधकर, बेबस और निरीह बनाकर ही मारा संवेदना और सहिष्णुता गंवा दी है वह शाकाहार के द्वारा पुनः जाता है। जिस समय उसकी गर्दन काटी जाती है उस समय वह लौटाई जा सकती है। मांसाहार से जो भी विकृतियाँ उत्पन्न हुई हैं चीखता है, चिल्लाता है, रोता है, आहे भरता है, छटपटाता है, उग्र / और उत्तेजित होता है, आतंकित और भयभीत होता है, क्रुद्ध / शाकाहार मनुष्य की जीवन शैली बन जाएगा उस दिन वह समस्त होता है। आन्तरिक और बाह्य वैभव से मंडित हो जाएगा। GopD.DDO इन्सानियत इन्सान कहलाने वाले हो॥ जिनवाणी का पीना प्याले हो।।टेर॥ मुश्किल में नर तन पाते हो। नहीं होश मोह में लाते हो। जीवन को बनाते काले हो|॥१॥ मोह माया में क्यों फूल रहे?। अपने कर्त्तव्य को भूल रहे। बन जाते मोह मतवाले हो॥२॥ यह बंगला माल खजाना है। नहीं संग तेरे कुछ आना है। तू इनसे चित्त हटाले हो॥३॥ तेरी नैय्या डगमग डोल रही। बिन धर्म तुम्हारी पोल रही। अब नैया पार लगाले हो॥४॥ "मुनि पुष्कर" तुम्हें चेताता है। गया वक्त हाथ नहीं आता है। नर-भव का लाभ उठाले हो॥५॥ -उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि (पुष्कर-पीयूष से) SHRS00000000000003 tos तहलवकर APRUDRAG DG00000000 Daas.25DSD0005DG 00000000000weariniverse