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श्रीसंघ-यात्रानां ढाळियां ॥ कर्ता : देवचंद श्रावक
___ - सं. विजयशीलचन्द्रसूरि अमदावाद कामेश्वरनी पोळना रहेवासी, वीशा श्रीमालज्ञातीय शाह बेहेचरदास जयचंदे, वि.सं. १९२७मां, श्रीशत्रुजय-गिरनार तीर्थनो पदयात्रासंघ काढेलो, तेमज पोताना नवा मकानमां श्रीशान्तिनाथ भगवानना घरदेरासरनी स्थापना, ते ज वर्षमां, करेली, तेनुं ऐतिहासिक वर्णन करतां आ ढाळियां, देवचंद नामे श्रावक गृहस्थे रचेला छे, जे कुल ३४० जेटली कडीओमां अने १७ ढाळोमां पथरायां छे.
आ रचनानी एक हस्तप्रति, अमदावादना श्रीचारित्रविजयजी ज्ञान मन्दिर (प्राच्य विद्या भवन)मां छे, तेनी धणां वर्षों पूर्वे मेळवेली झेरोक्स नकलना आधारे प्रस्तुत सम्पादन थयुं छे. प्रति २० पानांनी छे; तेना प्रान्ते लेखन वर्षनो निर्देश न होवा छतां, रचनाना सर्जन बाद तुरतना अरसामां ज ते लखाई होय तेवं सहेजे कल्पी शकाय.
कर्ता पोताने, वारंवार, शुभवीरना सेवक तरीके ओळखावे छे, ते तेमनी स्वगुरु प्रत्येनी अनन्य श्रद्धा तथा बहुमान- द्योतक छे. मात्र छेल्ली कडीमा ज पोतानुं नाम तेमणे आप्युं छे. आखी कृति एक रीते आंखे देख्या अहेवालसमी भासे छे. कर्ता पोते संघमां सामेल-साथे जनार यात्री होवाथी तेमनां वर्णनमा 'प्रतीति'नो अहेसास थई आवे छे. आम छता, कर्ता पूरेपूरा समय माटे सहयात्री नहि रही शक्या होय तेवू, १६७मी कडी (ढाल ८, २० मी कडी) वांचतां लागे छे. ते कडीमां तेओ लखे छे के, "शुभवीरना सेवकना अन्तराय कर्म बळियां छे, तेनुं मन ढीलुं पडी गयुं छे, अने ते अहींथी-शत्रुजयथी पाछो फर्यो छे तथा अमदावाद गयेल छे." जोके तो पण, बाकीनी ढाळो पण तेमणे ज रची तो छे; तेनो अर्थ एवो थई शके के तेमने माटे कोईके बधी वीगतोनी नोंध करी हशे अने तेने आधारे तेओए बाकीनो अंश बनाव्यो हशे. आथी साव विपरीत, छेल्ली ढाळनी २९मी (३३९मी) कडीमां तेमणे एम लख्युं छे के "जात्रा करि संघ नयने निहाली" आ
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अनुसन्धान-३१ उपरथी एम लागे के तेओ आखा संघमा साथे ज रह्या हशे. एटले, आ बाबते स्पष्टतः कोई निर्णय करवानुं सहेलुं तो नथी ज.
गमे तेम, पण कर्तानी कवित्वनी तथा रचनानी शक्ति खूब सरस अने समर्थ छे. शुभवीरना सेवकने छाजे तेवी कलम छे. शुभवीरनुं कवित्व तो जगविख्यात छे ज; तेमना श्रावक पण आटला सरस कवि होय ते आनन्ददायक तेमज आश्चर्यप्रेरक बीना छे.
__कविनी काव्यशक्तिनी जेमज, आ ढाळियांमां नोंधायेली केटलीक ऐतिहासिक वीगतो अने केटलीक जाणवा जेवी हकीकतो पण रसप्रद छे. ते वीगतो, अहीं अवलोकन करीशुं.
१. संघयात्रा वर्ष १९२७ नुं छे. आ वखतमा राजनगर (अमदावाद)मां १०५ जैन मन्दिरो हतां तेवू कर्ता अहीं नोंधे छे. (कडी ५). २. ए समयना जैन मुनिओ पीळां कपडां पण पहेरता अने श्वेत वस्त्र पण राखता (कडी ६). ३. बेहेचरभाईना पिता जयेचंद नामे हता, अने तेमनी ज्ञाति (वीशा) श्रीमाली हती (कडी २०). ४. बहेचरभाई अंग्रेज सरकारमां शिरस्तेदारनी पदवी भोगवता. अंग्रेज अधिकारीओ पोतानो अमल देशी प्रजामांथी पसंद करेला बुद्धिमान अने वफादार अधिकारीओ द्वारा चलावता, अने तेमां शिरस्तेदारनी सत्ता बहु मोटी-महत्त्वनी गणाती (क. २१). ते शुभवीरना भक्त श्रावक हता, तेमनां पत्नी इच्छा वहू नामे, पुत्र पोपटभाई नामे हता (२९,३१). ५. गुरुना उपदेशे तेमने संघ काढवाना भाव थवाथी जोशी शिवशंकर पासे मुहूर्त जोवरावीने मुनि हरखविजयजी द्वारा तेनी परीक्षा कराववापूर्वक मागशर शुदि ६नो दिवस नक्की करेल छे (३४-३५). ६. संघपति बन्या पछी तेओ कामेश्वरनी पोळे देरासरे जई त्यांथी शान्तिनाथ भगवान घेर लाव्या, अने पछी प्रभुप्रतिमाने विनंतिपूर्वक म्यानामां (पालखीमा) पधरावी वाजते गाजते संघ साथे समेतशिखर(नी पोळ)ना देरे आव्या (क. ४५-४८). ७. त्यां विविध पूजाओ भणावी तथा जमणवारो करीने संघनी तैयारीओ करे छे. तेमां महत्त्वनी वात ए छे के संघवण (इच्छावहू) शत्रुजयतीर्थनी आराधनाना बे अट्टम तथा सात छठन तप आदरे छे, अने समग्र राजनगरमांना ब्रह्मचर्यव्रत धरनारां श्रावक-श्राविकाओने आमंत्री जमण जमाडवापूर्वक तेमनुं बहुमान
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फेब्रुआरी-2005 करवामां आव्युं छे ( क. ५३-५४). ८. संघना प्रयाण-समये नगरशेठ प्रेमाभाई, शेठ उमाभाई (हठीसिंग), शेठ भगुभाई वगेरे मोभीओ आवीने संघपतिने तिलक-विधि करे छे. संघपति पण प्रतीकरूपे श्रीफलनो स्वीकार करे छे पण दाम-रोकडा पैसा नथी लेतां, ए वात बहु मार्मिक लागे छे (क, ६७-६८). ९. संघना प्रबंध माटे ईस्माल नामे मुस्लिम, सरकारी न्यायाधिकारीनो उल्लेख (क. ७१) तथा विलायती (बेन्ड)वाजां लाव्यानी नोंध (७३) अगत्यनां छे. संघ-प्रयाण-समये 'तल पडवा जेटली पण जगा बची नहोती' (७४). १०. संघवीनां पुत्रवधूनुं नाम जेकोरवहू छे (क. ७५). ११. संघनी रक्षा माटे भील लोको तथा तुर्की (पठाण) सैनिको उपरांत सरकारनी पलटण पण हती अने हथियारना परवाना पण संघवीए मेळवेला (७७).
१२. मा.शु. ८ना संघनो पहेलो पडाव मादलपुर गामे थयो, त्यांथी सरखेज गामे मुकाम कर्यो (८५). सरखेजमां आदिनाथ-देरासर हशे तेम क. ९० परथी लागे छे. त्रीजो पडाव मोरैया गामे थयो, त्यां विमलनाथनुं देरुं हतुं (९०). त्यांथी बावला गामे, त्यां वासुपूज्य-चैत्य हतुं. त्यांथी कोठ गामे पडाव थयो (९४). १३. चालु पदयात्रामां पण संघपति मौन ११नो पौषध लई आराधना करे छे (९२) ते वात प्रेरणादायी छे, तो संघमां रोजरोजना जमणनो प्रबन्ध जोईताराम नामे बालब्रह्मचारी श्रावकना हाथमा छे ते वात पण (९३) मजानी छे.
१४. संघमां, पं. रूपविजयजीना संघाडाना पं. रत्नविजयजी वगेरे, शुभवीरना परिवारना पं. हरखविजयजी वगेरे, पं. कीर्तिविजयजी वगेरे, पं. मणिविजयजी वगेरे, पं. दयाविमलजी वगेरे साधुगण साथे पधारेल हता (क. ९९-१०९). संघमां १६० गाडा हतां. (११३). १५. कोठ पछी गुंदी, बरोल, ओडवाल थई धंधुका संघ आव्यो, त्यां धर्मनाथनुं देरासर हां (क. ११४११५). त्यांथी पोलार (पोलारपुर) अने पछी बरवाला मुकाम कर्या. त्यांथी शत्रुजय पर्वतनां प्रत्यक्ष दर्शन थयांनो उल्लेख अति रोमांचकारी छे (११७). १६. संघमां छरी' पाळनारा यात्रिको ६२५ होवानो निर्देश पण नोंधपात्र छे (क. ११८). १७. त्यांथी पछेगाम, त्यांथी उंबराला (उमराळा), त्यां अजितनाथमन्दिर; त्यांथी रोईशाला (रोहीशाळा), त्यांथी आकोलाजी, अने मा.व. ११ना
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शत्रुंजयने उंबरे संघ पहोंच्यो छे (११८ - २१). १८. बारसे संघवी पहाड़ पर यात्रार्थे चडे छे त्यारे बे हजार यात्रीओ (१२२) साधे हता. १९. ढाळ ६ ने ७मां शत्रुंजयनुं अने उपरनां देरांनुं वर्णन विशद छे. २०. क. १४९-५०५१मां 'वद'ने बदले 'सुद' लखायुं छे ते लेखदोष जणाय छे. केमके मा.व. ११ना जो शत्रुंजये पहोंचे तो यात्रानी तिथि सुदमां क्यांथी आवे ? ते ज प्रमाणे क. १५३ मां 'वदि' थयुं छे त्यां 'सुदि' ज होवुं घटे
२१. व. १२, १३ यात्रा थाय, तो व १४ - ० ) ) नो छठ तप तथा पौषधव्रत संघवीदंपतीए कर्यो छे (१५१). शु. २ना शेत्रुंजी नदी पर जई स्नानपूर्वक जलकुंभ भरी पाछला रस्ते डुंगर पर चड्यां छे. ते रस्तो देवकीना ६ पुत्र - मुनिनी देरी आगळ नीकळ्यानी नोंध पण कविए लीधी छे (१५३). ते पछी शत्रुंजयनी १२ गाऊनी प्रदक्षिणा करवा संघ नीकळ्यो तेनुं वर्णन थयुं छे (१५७). २२. पहेलां कदमगिरि, त्यांथी चोक, त्यांथी हस्तगिरि थई पुनः शत्रुंजय पर संघ आवे छे अने शेत्रुजीनां जळ जे समग्र प्रदक्षिणामां साथे ज लीलां ते वती भगवाननुं स्त्रात्र वगेरे करे छे (१५८-६० ). प्रदक्षिणा प्रायः बे के त्रण दहाडामां ज करी छे. २३. पांचमे वीसस्थानकनी पूजा भणावी छे, ते माटे राजनगरनी टोळी खास आवी होवानुं निर्देशे छे (१६१). शु. ७ना नवकारशीजमण, रथयात्रा, ९९ प्रकारी पूजा थई (१६२-६३), तो दशमने दिने संघवी बेहेचरभाई अने गोकलदास परसोतमे संघमाळ पहेरी छे, अने ते पछी संघ नीचे उतर्यो छे (क. १६४). शु. १२ना १२ व्रत पूजा, जमण थयां, अने तेरसे संघे शत्रुंजयनी यात्रा पूर्ण थई (१६६ ) अने हवे गिरनारे नेमजीने भेटवानी तैयारी थाय छे.
२४. क. १६४ मां संघमाळ दशमे पहेर्यानी नोंध छे, तो क. १७६मां वळी माळनी तारीख अग्यारश होवानुं कर्ताए नध्युं छे. ते वखते मुख्य देरासर पर ध्वजा पण संघवीए चढावी छे, तेनी पण आमां नोंध छे. आ गरबड थवा पाछळनुं रहस्य, बे टुकड़े आ ढाळियांनी रचना थई होय ए होई शके.
२५. सुद तेरसे के ते पछी - चौदसे संघे गिरनार तीर्थ भणी प्रयाण कर्यं हशे. पहेले पडाव पिंगलिगामे अने बीजो तालध्वज तीर्थे थयो. तालध्वजना
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डुंगर पर सुविधिनाथ छे तो नीचे-गाममां शान्तिनाथ होवानी नोंध छ (१८०). त्यांथी डाठा (दाठा) अने मउआ (महुवा), त्यां क्रमशः शान्तिनाथ अने महावीरस्वामीनां चैत्यो छे (१८१). त्यांथी डुंगर, बारपटोला, टीबी थई ऊना पहोंचे छे - संघ, ऊनामां पांच देरासर ने बे भोयरां होवानुं वर्णन छे (१८३). ऊनाथी आगळ जतां वाटमां हीरसूरिने वांद्यानो उल्लेख छ (१८४) ते शाहबागना समाधिमन्दिर परत्वे छे. ते पछी चिन्तामण तथा अमीझरा ने वन्दनानो उल्लेख ते क्रमश: देलवाडा तेमज अजारा परत्वे लागे छे (१८५). घोसला ते आजनुं घोघला ज होवू जोईए; ते काळे त्यां समुद्र होई नौका द्वारा त्यांथी दीवबंदरे संघ गयो हशे (१८५). दीवमा ३ देरा जुहार्यां (१८६).
२६. त्यांथी सिमास, कोडिनाल (कोडीनार), सुतरा थई प्रभासपाटण संघ गयो. त्यां नव देरां होवानो उल्लेख ऐतिहासिक छे (१८७). घणुं करीने ते नव देरा मेळवीने ज आजनो नव गर्भगृहवाळो महाप्रसाद बन्यो लागे छे. २७. त्यांथी वेरावल : अहीं ५ देरां होवानो उल्लेख (१८९-९०) महत्त्वपूर्ण छे. त्यांथी चोरवाड, त्यां पार्श्वनाथ; त्यांथी मांगरोल, त्यां ३ चैत्य : मुनिसुव्रत प्रभु, पार्श्वनाथ तथा चन्द्रप्रभस्वामीनां छे ( १९२-९३). २८. त्यांथी महाशुदि १ना केसाद (केशोद), त्यांथी वंथली अने त्यांथी गिरनार पहोंचे छे. त्यां महावीरजिनचैत्य हतुं. (१९४-९६) आ देरुं तळेटीए हशे ?
२८. ढाल १०मां केटलांक संशय-स्थानो रहे छे : क. २०० मां 'देव दीये उदी करीने' एनो मर्म शो होय ? 'देव दीये उडी करीने' एम हशे के 'देव दीये उ दीकरीने' एवं हशे ? स्पष्टता नथी थती. घटना तो रत्न श्रेष्ठीने देवे 'पार्छ वळीने न जोवा'नी शरते पुराणुं बिम्ब आपेलुं ते ज वर्णवाई जणाय छे. २९. दशमी ढाळमां गिरनारनुं विगते वर्णन थयुं छे. तेमां सहसावन (सहस्राम्रवन)नुं वर्णन उल्लासप्रेरक थयुं छे (२०४-७). ३०. बीजी अम्बादेवीनी ढूंकना प्रसंगे अम्बिकादेवीनो वृत्तान्त वर्णवायो छे (२०८२१५), तेमां कूवे पडती अम्बिकाना विलापनी कडीओ (२१४-१५) हृदयवेधी छे. ३१. सहेसावनमां नेमिनाथनां चरणपगलांने संघ पूजे छे (२१६). ३२. पांचमी ढूंक पर दत्त गणधरनां पगला होवानो उल्लेख ऐतिहासिक गणाय तेवो छे (२१९). गजवर-पगलां ते गजपद कुण्डनो संकेत जणाय छे. (२१९).
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(जूनागढ) शहेरमां आदिनाथनुं तथा महावीरनुं एम २ चैत्य हतां तेम नोंध छे (२२४).
३३. हवे संघ पाछो फरे छे. प्रथम जालरसन, पछी धोराजी, त्यां ४ जिनालयो होय तेम जणाय छे (२२५-२६). त्यांथी कनोडा: त्यां आदिनाथजी (२२८); त्यांथी बांभणवाडाः त्यां देरासर नथी (२२८); त्यांथी कालावड, मतबागाम थई जामनगर (२२९), त्यां तो अनेक मन्दिरो छे. त्यांथी धुंवार (२३१), त्यां सुपार्श्वनाथजी (२३२); त्यांथी फलां गामे; त्यांथी धोल : त्यां शान्तिनाथजी (२३३); त्यांथी लतीपर, त्यां पार्श्वनाथ प्रभु छे, पण ते परोणागत छे, अने मुहूर्त आवे पछी प्रतिष्ठा थवानी छे तेम कर्ता नोंधे छे (२३३). त्यांथी टंकारियाः त्यां पार्श्वप्रभु छे, पण प्रवेशविधि बाकी छे (२३४); त्यांथी मोरबी (२३४); त्यांथी मातक अने त्यांथी सरा गाम : त्यां चन्द्रप्रभुजी बिराजता हता (२३६).
३४. कविए लख्युं के अहीं सोरठदेश पूरो थयो, ने संघ हवे वढवाण आव्यो (२३७). आ 'सोरठ' एटले समग्र सौराष्ट्रना ४ विभागो पैकी सोरठ नामे एक विभाग - एक समजवानुं रहे छे. वढवाणमां पांच गभारानुं शामळा पार्श्वनाथनुं देरासर छे (२३७). त्यांथी त्रण विसामा (पडावो) करीने संघ (चोथे पडावे) साणंद पहोंच्यो छे (२३७). अने त्यां अमदावादथी घणां लोको-सगां-स्वजनो मळवा आव्यां होवानुं कर्ता नोंधे छे (२३७).
३५. ए पछीनो मुकाम शहेरमां सारंगपुरे थयो, त्यां महाजन सामु आव्यु (२४३). फा.शु -३ना संघर्नु सामैयुं थयु. वरघोडो मांडवीपोळमां समेतशिखरनी पोळे - देरासरे उतारवामां आव्यो (२४८-४९). आ उपरथी एम लागे छे के ते वखतमां संधनां प्रयाण तथा समापन समेतशिखरना देरेथी थतां हशे.
अहीं १२ ढाळोमां संघयात्रानुं वर्णन पूर्ण थाय छे. आ ढाळोमां केटलांक विशेष व्यक्तिनामो छे; जमणवार करनारानां नामो पण छे; जमणनी रसोईनुं पण मजानुं वर्णन छ; अने बीजी पण विविध विगतो सुपेरे वर्णवाई छे.
३६. तेरमी ढाळथी बेहेचरभाईए करावेला घरदेरासरनुं तथा तेनी प्रतिष्ठानुं वर्णन शरु थाय छे. देवमन्दिर काष्ठनिर्मित हशे तेवं तेना वर्णनथी
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समजाय छे (२५५-५८). तेने ९६० तोला चांदीथी मढावेलुं छे (२५९). तेमना आ धर्मकार्य परत्वे गाममां कोईक घसातुं बोलनारुं पण हशे, केमके क. २६० थी २६४ मां कविए दुर्जननी तथा निन्दा करनारनी कडक जबानमां खबर लई नाखी छे, वळी, आ मन्दिरमां आरीसा गोठवी तेने आरीसाभुवन जेवुं कराव्युं छे (२६७). ३८. सं. १९२७ना वै. शु. ६ बुधवारे शान्तिनाथ भगवानना बिम्बनो तेमणे गृह - ( मन्दिर - ) प्रवेश कराव्यो. (२६९). तेनुं सामैयुं सुरदास शेठनी पोळेथी चड्युं हतुं (२७५).
३९. १५मी ढालना प्रारंभे 'हवे सेठ....' एम बे पंक्तिनुं लखाण छे, ते वांचतां प्रस्तुत प्रत, ए कर्तानी नजर समक्ष लखायेली प्रत होय तेवो वहेम पडे छे.
४०. पंदरमी ढाळ वरघोडा जेटली ज लांबी थई छे. तेमां जलयात्राना वरघोडानुं हू-ब-हू वर्णन मळे छे, ते खूब उपयोगी थई पडे तेवुं छे. आ वरघोडामां नगरशेठ प्रेमाभाई वगेरेनी उपस्थिति छे (२८८-८९), तो वरघोडानी योजना संभाळनारानां नामो पण मळे छे (२८९-९०). आ वरघोडो पण समेतशिखर जुहारीने ज आगळ गयो छे (२८९). क. २९१ - ९३मां जे महाजनोनां नामो छे तेमां विद्यासा (शा) लानुं काम चलावनार सुबा रवचंदनुं पण नाम छे. ४१. वरघोडो हठीभाईनी वाडीए जाय छे, त्यां जलग्रहणविधि थई तेनुं पण सरस निरूपण आमां थयुं छे (२९७-९८). ४२. वरघोडो जल लई पाछो फरे छे अने बेहेचरभाईनां नवीन घर- महेलमां ते उतरे छे (२९९). ४३. ढाळ १६मां कं. ३०२मा पुनः गुंचवाडो ऊभो थाय छे. क. २६९ मां वै. शुद ६नी जिकर थई हती, ज्यारे आमां वै वद ६नी वात लखी छे. कर्ता सुद ने वदमां वारंवार अटवाया जणाय छे; अर्थात् शुदनुं वद के वदनुं शुद तेणे रभस वृत्तिमां चालवा दीधुं लागे छे. सं. १९२७, वै. वद ६, बुधवार, ३ घडी अने १७ पळ आ मुहूर्ते शान्तिनाथ प्रभुनी प्रतिष्ठा शेठे करी (३०२-३) ४४ प्रतिष्ठा प्रसंगे चोक्कस साधु महाराज कोण हता तेनुं नाम (के नामो) कर्ता नोंधता नथी. फक्त पोते राजनगरना, श्रीमाली ज्ञातिना, देवचंद पानाचंद छे, अने श्रीधरणेन्द्रसूरिजी (श्रीपूज्यपरम्परा ) ना राज्यमां आ रचना रच्यानुं जणावे छे (३१०).
४५. सत्तरमी कळशनी ढाळ छे. तेमां विजयसिंहसूरिए पोताना
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अन्त-समये सत्यविजयजीने सूरिपद लेवा जणाव्युं, एकठा मळेल संघोए पण खूब मनाव्या, पण तेमणे पदवीने बदले क्रियोद्धार करवानी संमति मागी. ते संमति आपवा छतां साधुगण तो सूरिजीए तेमने ज भळाव्यो, ए ऐतिहासिक घटनानी अहीं सरस नोंध थई छे (क. ३२१-२५).
४६. तेमणे स्वहस्ते विजयप्रभसूरिने गच्छपतिपदे वर्ताव्या, अने पोते गच्छनी निश्रामां रहीने ज संवेगमार्गे संचर्या; तेमणे श्वेतने स्थाने रंगेलां वस्त्रो ( संविग्नमार्गसूचक) धारण कर्यां; अने वाचक यशोविजयजी जेवा तेमना पडखे रह्या (क. २२६ - २८). क. २२८ तो यशोविजयजीकृत १२५ गाथाना स्तवनगत आवी ज एक कडीनी छायारूप लागे.
४७. आ पछीनी कडीओमां कर्ता पोताना गुरुनी पाटपरम्परा दर्शावे छे. तेमां पोताना गुरु पं. वीरविजयजी (शुभवीर) प्रत्येनुं पोतानुं बहुमान तेओ बुलंद अवाजे रजू करे छे, जे खरेखर ध्यानाह छे (क. ३३३-३४). प्रान्ते पोते सं. १९२७ना अषाड वदि सातमने रविवारे आ ढाळियां रच्यां होवानुं जणावी पूर्ण करे छे (३४०).
४८. पुष्पिकामां लेखक मोतीचंदे राजनग्र (नगर) मां प्रति लख्यानो निर्देश छे, छतां लेखन - वर्ष नथी लख्युं, ते नोंधवुं जोईए.
४९. एक महत्त्वनी वात ए के क. २८मां 'राणि विक्टोरिया राजे' एवी नोंध कविए करी छे ते, जे सरकारमा, संघवी बेहेचर भाई शिरस्तेदारअधिकारी हता, तेना प्रत्येनी तेमनी वफादारीनी सूचक छे, तो साथे साथे, आ संघ थयो त्यारे भारत पर कम्पनी सरकारनुं नहि, पण राणीनुं (अने अंग्रेज सरकारनं) राज हतुं तेवा इतिहासनी पण सूचक छे.
५०. आ ढाळियांनी प्रतिनी जेरोक्स परथी तेनी सुवाच्य नकल करी आपवा बदल भाई चेतन भोजकनो, तेमज प्रतिनी नकल आपवा बदल श्री प्राच्य विद्या भवनना तत्कालीन कार्यवाहकोनो आभार मानुं छं.
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श्रीसंघयात्रानां ढाळियां ॥ ए०॥ श्रीवितरागाय नमः
॥ दूहा ॥ श्रीसंखेश्वरपासजी । समरि उठी सवार ।
वंछित पूरे दू:ख हरे । हुं वंदु वार हजार ॥१॥ २ सारदमात दया करि । सुद्ध अक्षर द्यो सार ।
संघ तणां गुण गायवा । मुज मन थयो उदार ||२|| सकल देशमाहे सीरे । गुजर धर गुंणगेह ।
सकल देश सिरसेहरो । राजनगरपूर एह ॥३॥ ४ च्यार वरणे करि सोभतो । नगरिमांहे निवास ।
सहू धरम धनवंत छे । विलसे लिलविलास ॥४॥ तस पूर श्रीजिनचैत्यवर । एकशत पंच उदार । अमर भुवन सम झलहले । वंदू वारंवार ||५|| गितारथ गुणवंत तिहां । माहामुनिश्वर जाण । पीत श्वेत अंबर धरा । गुरुकुल वासीत ज्ञान ॥६॥ आरज्या श्रावक श्राविका । चउविह संघ महंत । तास निवास थकी सदा । पुरनि सोभा अत्यंत ॥७॥ ते मांहे सुविहित गुरु | जिनमत परमत जाण ।
षटदरिसणमा दिपता । रवि उदयो जिम भांण ।।८।। ९ एहवा गुरु मुझने मल्या । विरविजे पंन्यास ।
राज सभाओ जय वर्या । कुंमति थया निरास ॥९॥ श्रुतवांणि वरसावता । मेघध्वनि जलधार । काल गयो नवि जाणतां । सांभले सहू नरनार ॥१०॥ तेह तणा सुपसायथी । गुंणि गुंण गावं सार । बालबुद्धि से वरणवू । हासी न करसो लगार ॥११॥
ढाल ॥१॥ १२ सेवो तुंमे सीद्धाचल प्रांणी । सास्वतु तिरथ अह जांणी ।
ओ छे तिर्थंकर वांणी ॥ सेवो तुमे सिद्धाचल प्रांणी ॥१॥
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१३ वनिता नगरिना राया । नाभि कुलधरमां आया ।
माता मरुदेवी जाया ||
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दोय नितिना अधिकारी ॥
१४ जुगलिक - धरम निवारी । करमभोंमि थया नरनारी ॥ से ॥३॥
अनुसन्धान- ३१
१५ जनमथी खीरोदक पांणी ॥ आदिजिन परण्या दोय रांणी । सुरतरु फल आपे सूर आंणी || से||४||
१६ विस लाख पूरव कुंमार । त्रेसठ लाख पूरव नृप सार || असी मसी कसी थयो वेपार || से || ५ ॥
१७ त्रासि लाख पूरव घरबारी । लाख पूरव समता धारी ॥ भवि जीव तार्या नरनारी ॥ से || ६ ||
१८ पूरव नवाणुं आदि जिनराया । सिद्धाचल गिरि फरसाया । अष्टापद गिरि वर सुख पाया || से||७||
१९ गुरु उपदेश वचन वासी । राजनगरना रहेवासि । सुरनर गावे साबासी ॥ से॥८॥
२० कुल उत्तम उत्तम जात । उत्तम श्रीमालि नात | जयेचंद सुत नामे विख्यात || || ९ ||
२१ बेहेचरभाइ नांमे गुंणवांन । साहेब आगे परधान । श्रस्तेदार पदनुं सनमांन ॥ ॥ १० ॥
१२ पुरण परभवसु कमाइ । भोगवे राजनि ठकुराई । आगल पण सुख छे भाई ॥ से ॥११॥
२३ धन पांमि धननो गरव करे । खाओ पीओ उजांणी फरे । ते भवसायरमांहे गरे || || १२ ||
२४ देव गुरु धरमे राता । धन खरचि तिरथें जाता । धन धन ते नरनि माता ॥से ॥ १३ ॥
२५ संघपति नांमनु तिलक धरे । सिद्धाचल पंच सनात्र करे । ते भवसायर सहेजे तरे ॥ से || १४ ||
२६ सांभलि देशना हरख थयो । मोह महिपति दूर गयो । पुन्य उदय मारे आज भयो || || १५ ||
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२७ आयु चंचल चपल चित्त । काया माया चपल वीत । समकीत दरिसण छे नित || से||१६||
आतम दरीसणने काजे । राणि विकटोरिया राजे । जिन सासन उनत छाजे ॥ से॥ १७ ॥
२८
२९ पतिव्रता घेर छे नार्य । ईछा वहू नांमे सिरदार । संतोस समता व्रत धार || से || १८ ||
३० संघ लेई सिद्धाचल जईओ । गिरि पूजीने पावन थई । संघवि पद धरि निरवहीओ ॥से ॥१९॥
३१ पोपटभाइ सुत पण तिहां आवे । सांभलि आतम हरखावे । भेटीओ गिरिवर सुभ भावे ॥ ॥ २० ॥
३२ वीरतणु शासन पांमि । खाओ पीयो न करो खांमी । थास्ये सिव वहूना गांमी ॥ ॥ २१ ॥
३३ सेनुंज गिरनार जात्रा भणी । संघवि पदनि हूंस घणि । श्रीशुभविरवचन सुंणी ॥से ॥ २२ ॥
३४ जोसि सीवसंकर तेडावे । महूरत - सुधि लगन लावे । हरखविजय पासे परखावे || से||२३||
३५ ओगणिस सताविस वरसे । उजल मागसिर छठ दिवसे । भेटवा आदि-जिन मन तरसे || से||२४||
३६ श्रीशुभवीर तणो रागि । सेवकनि ईछा जागी ।
गुंणि गुंण गावा ले लागी ॥से ॥ २५ ॥
॥ढाल ॥२॥
सांभलज्यो सजन नरनारी ॥ हेत सिखामण सारिजी रे ॥ओ देशी ।।
३७ सुविहित बोले वांणि मधुरि । निसुंणो संघपति वांणीजीरे । मधुर वयणे सहू स्यूं बोलो । तो वरस्यो सिवराणि ॥१॥ मनने मोजे जीरे ॥ टेक ॥
३८ मात पीता सुत बांधवने वलि । साधरमिक गुणवंताजीरे । कुटंब सहित संचरज्यो मारग । मुनिवर गुंण वसंता ||||२||
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मारग चालता मुनि देखी । वंदन करो भलि भांते जीरे । संघ भगति परभातें उठी । भोजन न करो राते ||म||३|| ४० साधरमिकने साधु साधवि । भावे भगति करज्यो जीरे ।
अनुसन्धान- ३१
भव- स्थिति लघु परिपाक करिनें । सिवरमणि जइ वरज्यो | | | | | ४ || ४१ जिनवरपूजा ने नित उछ्व । करज्यो नव नव भांते जीरे । संघतणि ठकुराई विलस्यो । चालो गिरि गुण गाते||म ||५|| ४२ मोकले हाथे धन वावरज्यो । संघ सहित गिरी पुजो जीरे । चउद खेत्रमां से समो तिरथ । अवर नहि कोइ दूजो ||म||६|| ४३ अ सिखामण रुदये धरिने । संघनुं तिलक करावे जीरे ।
शांतिनाथ प्रभु पास जिनेश्वर । पुजि घेर पधरावे ||||७|| ४४ कामेश्वरनि पोल भलेरी । त्रिभोवनस्वामि मलिया जीरे ।
संघवि बेहेचरभाइ मन जांणे । मनना मनोरथ फलिया || ||८| ४५ सामइयु भलि भांते करिनें । जिनमंदीर संचरिया जीरे ।
जल चंदन कुसुमें करि पुजा । भावस्तवमा भलिया || || ९ || ४६ विनति करवा आव्यो सेवक । साहेब चितमां धरज्यो जीरे । सेवक उपर मेहेर करिने । मुझ चित पावन करज्यो || || १०॥ ४७ रात दिवस तुंम समरण करतां । पाप करम सवि गलिया जीरे । संघपति नांम धराव्युं ज्यारे । सिद्धाचल गिरि मलिया || || ११ ॥ ४८ अणि विधिस्यूं प्रभु भावना भावि । म्यानामे प्रभुजी बिराजे जीरे । संघ मलि समेतसिखरजी लावे । जिनमत श्रावक गाजे || || १२ | ४९ सनात्र भणावि प्रभु पधरावि । अट्ठाइ महोछव मनरंगे जीरे । पंच कल्यांणक पास प्रभुना । गुणिजन गावे उमंगे || || १३ || ५० बिजे दिन आदेश्वर भगति । पुजा नवांणु प्रकारि जीरे ।
साम्हीवच्छल बहू पकवांनें । भगति करे नरनारि ||८||१४|| ५१ विसथांनिक पद सेवा करतां । जिनपद बांधे नांम' जीरे । बार व्रतनि पुजा भणावे । सारे वंछित कांम ॥ ||| १५ || ५२ नवपद ने वली सत्तरभेदी । करतानि पुजा भणावेजीरे । दूधपाक लाडुंने पूरी । भोगि नर सुख पावे ॥ मन ||१६||
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33 ५३ सिद्धाचल छठ करतां संघवीण । दोय अट्रम छठ सात जीरे ।
वरसि चोमासि ने छमासी बह्मचरजनि नात ॥म।।१७।। ५४ अनुक्रमे सहू वृति तेडे । भगति उभय मलि करता जीरे ।
तंबोलने वलि उपर श्रीफल | करे प्रभावना फरता ॥म॥१८॥ ५५ रातिजगे राजनगरनि टोली । बोले मधुरी वांणी जीरे ।
श्रीशुभवीरनो सेवक आदे । संघवि आपे लाहांणी ।।म।।१९।। ५६ त्रिजी ढाल हवे वरघोडानि । कहिस्यूं रंग रसाल जीरे । हरख धरिने जे सांभलसे । तस घर मंगल माल ||मनने मो॥२०॥
ढाल॥३॥ (जिम जिम ओ गिरी भेटीओ रे ॥ओ देशी।।) ५७ संघपति तिलक सोहामणुं रे । करति सोहागण नारि सलुणा।।
करम-कटक स्यूं झूझवा रे । चाल्या गिरि दरबार ॥सलुणा॥१।। ५८ पुजो पुजो गिरिराज भावसु रे ॥ पुजे पुज्यक थाय ॥ सलुणा ॥ टेक॥
शांतिनाथ प्रभु पासने रे । पूजा सनात्र कराय ।स।
बे बाजु चांमर ढले रे । सिर पर छत्र धराय ॥स।।२।। ५९ रथ रूपे कनके जड्यो रे । चके वागे खडताल स।
वृषभ जोतरिया सोभता रे । कंठे घुघरमाला सापु॥३|| ६० पोपटभाइ रथ-सारथी रे । पेहरी पीतांबर सार ।स।
हिरे जड्यां हाथ सांकला रे । कंठे मोतिनो हार ।सा।।।४॥ केढे कंदोरो हिमनो रे । कांने कुंडल मनोहार ।स।
सिरपेच मस्तक सोभतो रे । तेज तणो नहि पार ।सा।।।५।। ६२ आंगलिओ वेढ वेंढियो रे । पेहरि सुभ सणगार ।स।
स्नान करी सहू आवता रे । सनाथ थया छडीदार ॥सापु॥६।। ६३ केइ उपाडे पालखी रे । केई कर झाले धूप ।स।
दिपक केइना हाथमे रे । अष्ट मंगल धरे रूप ।सा।।।७।। ६४ प्रभु आगल इंद्र चालता रे । जाचक प्रभु गुण गाय ।सा
लेइ प्रभु निज घर थकि रे । रथमां जिन पधराय ॥सा।पु।।८।। ६५ पास प्रभुजी पालखी रे । करि नवपदनुं ध्यांन ।स।
मंगल वाजा वाजता रे । आपे अगणित दांन ।सापु॥९।।
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अनुसन्धान-३१
६६ जैनधर्मरागि घणां रे । श्रावक मलिया अपार ।स।
नगरसेठ पद छाजता रे । प्रेमाभाइ सिरदार ।साापु॥१० ६७. रूप कला गुंणे सोभता रे । नामे उमाभाइ सेठ ।स।
सेठ भगुभाई आवता रे । करे संघपतिने सेठ ।स।पु॥११॥ ६८ संघवि दाम लिइ नहि रे । श्रीफल लिए मनरंग ।स।
सेठ जोइताभाई आविया रे । जनमथी जीत्यो अनंग स||१२।। ६९ त्रिकमदास रागि घणा रे । भाणाभाई सुखवास ।स।।पु॥१३।। ७० श्रावक जन आव्या घणा रे । साजन सोभा अपार ।स।
गोकलभाई हीराभाइ मली रे । करे संघनो कारभार ।सा।।१४।। ७१ ईस्माल कोरठना धणि रे । सरकारि साहूकार ।स।
साबेला सणगारीया रे । देवकुंमर अवतार । सापु॥१५॥ ७२ संघपति मारग संचरे रे । कर धरि श्रीफल पांन ।स।
जिन गुण गाता चालता रे । वो(बो)ले मंगल ज्ञान(गांन) ।सापु।।१६।। ७३ वाजा वाजे विलातना रे । ढोलि भुंगल सार ।स।
नरनारि जोवा मली रे । बेसि झरुंखा मोझार ।सापु।।१७॥ ७४ तल पडवा जेति नहि रे । भोमि झीले नहि भार ।स।
रूपे कला गुंण आगली रे । ईछा वह रति-अवतार (सापु।।१८।। ७५ रामणदिवो करमा धर्यो रे । सोल सजि सिणगार ।स।
सासु आंणा लोपे नहि रे । जेकोर वहू सिरदार ।स।।।।१९।। ७६ कुटंब सहीत सखीयो मलि रे । जिन गुण गाति रसाल ।स।
मधुर कंठे मल्हावति रे । मलि जांणे सुरनि बाल ।सा।।।२०।। ७७ भिल पटण सरकारथी रे । वलि तुरकि असवार ।स।
परमाणा सवि हथियारना रे । मंगावे तेणि वार ।स।।पु॥२१॥ ७८ ओम मोटे मंडाणस्यूं रे । पंथे वलि छंटकाव सिलु० ।
सितल भोमिइं चालता रे । पुन्य उदयनो दाव ।सापु॥२२॥ ७९ डेरा तंबू कचेरियो रे । देखि देव विमांन सा
संघ सहित जई उतर्या रे । बेठा थई सावधांन ।स।।पु॥२३॥ ८० जिनमंदिर जिमणि दिसे रे । वामांगे मुंनि गुणवंत ।सा
प्रासाद प्रभुनो बनातनोरे । पवने ध्वज लहकंत सापु॥२४॥
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८१ समोवसरण रचना करि रे । थापे त्रिभोवनराय ।सा
स्नात्रपुजा करि भावस्यूं रे । स्तवना करी गुंण माय ।सापु।।२५।। ८२ भवियण भावे सांभलो रे । आगल वात रसाल ।स। जे नर भावे सांभले रे । तस घर रमे नित बाल ॥सलु।पुजो।।२६।।
ढाल॥४॥ (किहां गयो पेलो मोरलि वालो ॥ अमारा धुंघट खोलि रे ॥ओ देशी।।) ८३ मलपतो मारो संघवि चाले । सिद्धाचलनि वाटे रे ।
वाटे ने बहू घाटे ठाठे । सिववहू वरवा माटे रे ।।मलपतो॥१॥ टेका। ८४ हिराभाइ इस्माल कोरटना । ते पण साथे आवे जो ।
संघपति आगे कारभार चलावे । सहूने वली समजावे जो ॥म।।२।। ८५ मागसर सुद आठम परभाते । मादलपर मुकाम जो ।
रात रहि मारग संचरिया । आवे सरखेज गांम जो म||३|| ८६ श्रीसिद्धाचल भेटण काजे । जे जे जावे प्रांणि जो ।
विधि सहित जे जात्रा करसे । ते वरसे सिवरांणि जो म||४|| ८७ अकल-अहारि सचित-प्रहारी । पडिकमणा दोय कारि जो ।
अँमि संथारि ने ब्रमचारी । मुंनि साथे पय-चारि जो ।मा॥५॥ रवि उदये करता विहारी । उभये नेम अधिकारि जो । पाओ अडवांणे अष्टप्रकारि । पुजा रचे मनोहारि जो ।म।।६।। अणे विध संघवि संघविण चाले । मन वच काय समारि जो ।
बिजा पिण बहू श्रावक गुंणि जन । आचरे गुरुगम धारि जो |मा७|| ९० प्रथम जिणंदनें वांदि चलिया । मोरईये जई वासिया जो ।
विमल जिणेसर पूजा रचिने । जिन गुंण गावे रसिया जो म||८|| ९१ परसोतमभाई श्रीमालि । साम्ही-वत्छल शुभ भावे जो ।
पुंन्य उदय मुझ मोटो प्रगट्यो । अनुमोदना फल पावे जो ॥म।।९।। ९२ मौन अकादसी गुणनिसी । पोसो उचरे गुरु पासे जो ।
त्रण कालना तिरथपतिनो । जपतां दूरगति नासे जो ||म||१०॥ ९३ सेठ जोईतारांम बालब्रह्मचारी । भोजन जुगति सारि जो ।
बारस दिन कणसाइने साकर । जमण जमी तईयारी जो ।।म॥११॥
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अनुसन्धान-३१ ९४ सुखभर आव्या बावला ग्रांमे । संघपति करे विसरांम जो ।
बारस जिनवर वांदि चलिया । कोठ गांम अभिरांम जो ।।म।।१२।। ९५ चउविध संघ तणि ठकुराई । तेहमा मुनिवर मुख जो ।
आग्यमने अनुसारे चाले । करवा आतिम सुख जो ॥म।१३।। ९६ साधु साधवि परिवार सघलो । पणविस सोभे निग्रंथ जो ।
पणीयालिस निग्रंथी साथे । साधे मारग सीवपंथ जो ||म।।१४।। ९७ संवेगमारग मुनिवर रसिया । कनक कसोटी कसिया जो ।
तपगछ नाम धरी जिन आणा । ग्यांन-किरियामा रसिया जो |मा।१५।। ९८ सामाचारि आगम अनुसारे । करता उग्रविहारि जो ।
मुल-उत्तर-गुंण संग्रह करता । गोचरि सुद्ध आहारि जो ॥मा॥१६॥ ९९ सता त्य)-कपूर-खिमा-जिन-उत्तम । पदमविजय अधिकारी जो।
तस सिस रूपविजय मनोहारी । भव्य जीव पर उपगारी जो ।।म॥१७!! १०० सोभाग्यविजय तस पाटे सोभे । जोग-किरिया तस हाथे जो ।
तस पाटे दिये रत्नविजयमुनि । जोग वहे गुरु हाथे जो ।म।।१८।। १ सत-कपूर-खिमा-जसविजओ । शुभविजय मुंनिराया जो ।
तपगच्छ केरी बिजी साखा । संवेगमारग ध्याया जो ||मा।१९।। पंन्यास विरविजय श्रुतज्ञांनि । सासनमां अधिकारि जो ।
सिंह परे मलपता देखी । नाठा कुंमति हारी जो ॥म॥२०॥ ३ अनुकरमे तस गादि लायक । हरखविजय अणगार जो ।
गुरुकुलवास रहिने विचरे । वहेता संजमभार जो म||२१॥ जोग वह्या सघला सुतरना । मुंनि मणिविजयनि पासे जो । कारणे कारज विनयथी होवे । आतम सुद्ध अभ्यास जो ॥म।।२२।। त्रिजी साखा रूपविजयथी । किरतिविजय गुंणवंता जो ।
संसारत्यागि थया वयरागि । समताभाव उपसंता जो ॥म।।२३।। ६ आओसकार पोल पोषदसाले । संजम किरिया वादि जो ।
लक्षमि-जीव-उद्योतने तपसि । मणिविजय मुंनि गादी जो ।।मा॥२४॥ चोविहार ओकासण आंबील । चोविहार उपवास जो । चोविहार तप सघला करता । कलप करे ओक मास जो ।म।।२५।।
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फेब्रुआरी-2005 ८ ज्ञानविमलसूरीथी समाचारी । संवेगमारगधारि जो । ।
विमलगछनु बिरुद धरिने । नवकल्पी विहारी जो ॥मा|२६|| अनुकरमे तस पाटे सोभे । दयाविमल पंन्यास जो ।
ते पण संघपति साथे विचरे । मुनि मंडली गुंणरास जो ।।मा॥२७॥ १० सरवविरति मुंनि संयमरागि । सासनना सोभागि जो ।।
गोचरि करता मुनि पडिलाभे । श्रावक शुभ मन जागि जो 11म।।२८।। ११ संघ तणि रचना सांभलज्यो । आगल पंचमी ढाले जो । श्रीशुभविरनो सेवक रसियो । गुंणि गुंण गावा बाल जो ।।म।।२९।।
ढाल ॥५॥ (बारस दिन बार निकलियो रे । संघवि संघनि वाट जुवे ॥ओ देशी।।) १२ सेवो सेवो सिद्धाचल राया रे | जैन धरम जगमा रुडोरे ।
कहो आतिम निरमल काया रे ।जै! संघ रचना थइ छे जाडि रे जै। १३ मलि इगसयसाठ ते गाडि रे । जै । सुद तेरस नगिनदास रे ।जै। संघभगति करे उलास रे ।जौ॥१॥
सेवो सेवो सिद्धाचल राया रे ॥ टेका। १४ सिरो साकरने पाटवडियो रे । भोजन करि सहू संचरिया ।
अनुक्रमे पंथे चालंता रे । गुंदिगामे उतरिया । वरघोडो चढ्यो बहू ठाठे रे । प्रभु दरीसन फरसन काजे ।
संघवि साघरमिक साथे रे । त्रांसा भुंगल बहू वाजे ॥स|२!! १५ सहू चालो सिद्धाचल भाइ रे । पुजो आदेसर राया ।
भव भवना पातिक जाय रे । होस्ये निरमल तुम काया । तिहांथी आव्या बरोल रे । संघजमण संघवि करता । सुपात्रदांन शुभ आपे रे । लेता मुंनि गोचरि फरता । ओडवाल को विश्राम रे । धंधुके डंका दिधा ।
साम्हैयु मलि सहू लावे रे । धरमनाथ दरिसण किधा ।से॥३॥ १६ उदघोषणा संघमा करता रे । हिराभाइ संघजमण करे ।
संघभगति करता भावे रे । भव भव पातिक दूर हरे । वद चोथे पोलार गांमे रे । सामि वच्छल करता रागी । भीखा नागजीने खीमचंद रे । मलि भेगा सुभमति जागि ॥से॥४॥
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१७ तिहांथी चाल्या अनुकरमे रे । पांम्या नरभव जेम घरमें । बरवाले तंबू ताण्यां रे । थयो गिरिदरीसण जिम घरमे । गिरि देखी लोचन ठरिया रे । रोम रोम शीतल वांन । पुंजासेठ सांमीभगति रे । देता सहुने सनमांन ॥ ॥ ५ ॥ १८ तिहां रामचंद सिरमालि रे । श्रीफल आपे व्रतधार । छसें उपर पणविस रे । छहरि पाले नरनारी ।
अनुसन्धान- ३१
तिहांथी चाल्या पछेगांम रे । तिरथपति सांमि मलीया । उंबराले तंबु किधा रे । सांमीवछल मांहे मलिया || || ६ || १९ चउभागे संघ जमाडे रे । अजितनाथ स्वांमि सेवा ।
संघवि संघविण दोय पुजे रे । जांणे मलिया सुद्ध देवा । संघ परभाते संचरियो रे । रोईसाले मुकांम करे । एकासपनि तिहां टोलि रे । संघवि करता हरख भरे || से|॥ ७॥ २० आकोजालि विसरांम रे । कल्यांणक प्रभु पास तणा । पोस दसमे उछव करता रे । गावे मंगलगित घणा । दूरेथी गिरिवर निरखी रे । प्रीत धरि पाओ पडिया ! अवतार लीया अनमेखी रे | पुंन्ये पनोता पयचरिया ॥॥॥८॥ २१ मागसर वद एकादसीओ रे । सिद्धाचल जइ उतरिया । तेणि वेला संघ सवेरा रे । जमवाने सहू नुतरिया । शाकरनां कणसाई सार रे । संघपति समताना दरिया |
शुभवीर वडे साहमइये रे । कुरणिक राजा सांभरीया || || ९ ||
॥ढाल ॥६॥
(तुमे अजाण अमे जाणियेरे || ओ देशी || )
२२ हवे संघवि संघनि साथे रे । लेइ लगन ते सदगुरु हाथे रे । संघ संख्या दोय हजार रे ॥१॥ चउद खेत्रमा नहि शत्रुंजो || मारु ||
नरनारी धरि सणगार रे । मारुदेवानंदन जइ भेटो रे ।
२३ गीत ग्यांन प्रभु बहूमांन
। करता धरता प्रभु ध्यान रे ।
करि स्त्रांन पीतांबर पेहरी रे । गिरिराजनि सांकड सेरी रे ||मा॥२॥
आंकणी ।।
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फेब्रुआरी-2005 २४ चलिया वाजंते ढोल रे । जाचक बिरुदावली बोल रे ।
चालंता तलेटी आवेरे । सोना रुपाने फूलडे वधावे रे ।।म।।३।। २५ गिरि देखीने लोचन ठरिया रे । चित चोखे चतुर नर चढीया रे ।
इंम पगले पगले भावे रे । भव कोडना पांप गमावे रे ||४|| २६ आया आदेसर दरबार रे । दिई परदक्षणा त्रणवार रे ।
प्रभु दिठा नयण हजुर रे । आणंद लहेर भरपूर रे ।।म।।५।। २७ तारागणमा जेम चंद रे । देवसभामा जिम इंद्र रे ।
पंखीमा सोभे हंस रे । कुल उत्तम नाभिनो वंस रे ॥मा।।६।। २८ न्याइ राजामां जिम राम रे । रूपमा जिम सोभे काम रे ।
पर्वतमा मेरु छे धिर रे । क्षमावंतमा श्रीमाहाविर रे ||मा७ि। सहू तिरथमांहे छे राजा रे । सुरजकुंड जले भरि ताजा रे । गिरि फरसन सवि रोग जाय रे । मिटि कुरकट थयो चंदराय रे
मा।।८॥ ३० जोइ प्रेमला हरख महांणि रे । धन सुरजकुंडने जांणी रे ।
प्रभु पुजा करे नरनारी रे ! जांणे आव्या सुर अवतारी रे ॥मा।।९।। ३१ करी भेठ ने पूजा रचावे रे । नमि वंदि भावना भावे रे ।
सुभविरनो सेवक साथे रे । बोले संघविनो झालि हाथ रे ।।मा||१०|| ३२ पूरण थइ छठी ढाल रे । सुंणज्यो सह बाल गोपाल रे ! जे भणस्ये थइ उजमाल रे । नित भोगी सोवनथाल रे ।।मा।।११॥
ढाल॥७॥ (करनि फकिरि क्या दिलगिरि ॥ देशी।।) ३३ चोमुख चैत्य जुहारियेरे । मुल मंदिर सार । कुंमारपाल नरेसरे । किधो जिननो विहार ॥१॥
धन धन धन गीरिराजने ॥ टेका। ३४ ताराचंद जे संघवि रे । कर्यो चैत्य विहार ।
चालो चकेसरि भेटीइं । तिरथ रखवाल ॥धा।२।। ३५ माथे वेंणा छ वांकडि रे । सिंथे सोनानु बोर ।
कंचुवो पेहर्यो छे कारमो । साडि कसबि कोर ||धा।३।।
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३६ हाथे चूडो छे हेमनो रे । टिके निरमल नंग । हईडे हार सोहामणो । चुंदडि चलके रंग ॥६॥४॥ ३७ रंग सुरंगि प्रांणिया रे । तेना विघन करे दूर
आपण करस्यूं साची सेवना । नाभिनंद हजुर ||६||५|| ३८ वस्तपाल तेजपालना रे । बिजा चैत्य अनेक ।
सुरजकुंड सोहामणो । जस महिमा अतिरेक |||||६|| ३९ प्रेमावशी छिपावसहिमा रे | जिनवर मणिमाल ।
पांच पांडव जइ वांदि । कुंता द्रूपदी निहाल || ||७|| ४० सदासोमजी चोमुखे रे । मोटा जिनवर च्यार ।
मारुदेवा हस्ति सिरे चड्या । पांम्या भवनो पार ॥ध॥८॥ ४१ साकरचंद प्रेमचंदनीरे । टुंक बनि सिरदार ।
वांदि गया नंदिसरे । करे भगति उदार ॥ ६ ॥ ९ ॥ ४२ बालावसिमां आविया रे । भेट्या त्रिभोवननाथ |
अनुसन्धान-३१
कारण- सुधनो जोग छे । मल्यो सिवपूर साथ ||६|| १०|| ४३ प्रेमचंद मोदिनी टुंकमां रे । सहस्रफणा प्रभु पास ।
खीण खिण प्रभु मुझ सांभरे । रह्या हृदये निवास || || ११ || ४४ अमिचंद साकरचंदनो रे । सुत मोतिचंद नांम ।
संघ लेइ सेतुंजे आविया । सिद्धां वंछित कांम ॥ ६॥ १२ ॥ ४५ विरविजय उपदेशथीरे । गिरि उपर प्रासाद ।
सेठ मोतिसा बनावियो | मांडे स्वरगथि वाद || || १३ || धन अहना माता पीता रे । धन वंस उसवाल । अनुमोदना करता थकां । बांधे पुंन्यनि पाल ॥ध॥ १४ ॥ आ संसार समुद्रमारे । तिरथ तारण झाझ । श्रीशुभविरने शाशने । सिधा केइ मुनिराज ॥ध॥ १५ ॥
॥ढाल ॥८॥
(वालाजिनि वाटडि अमे जोता रे ॥ ओ देशी।।)
४८ बेहेचरभाई ते गिरि गुंण गावे रे । सोनारुपाने फूलडे वधावे । तलेटीई चैत्य वंदन करता रे । भवोभवना पातिक हरता ॥१॥
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भवीजन भावस्युं गिरि पूजो रे । दूनियामा देव न दूजो ।
भवि० अ आंकणी ।। ४९ सुद (वद) बारस उपर चढीया रे । जिन मुख देखीने ठरीया रे | जिनमुद्रा अनोपम निरखी रे | जिनप्रतिमा जिनवर सरिखी
॥भ॥२॥
५० सुद ( वद ) तेरस दिन घणो मीठो रे । प्रांणजिवन नयणे दिठो रे । आदि जिनवर कनकनि काया रे । छंडि सवि ममता माया | भ ||३|| ५१ सुद ( वद) चउदस तप आचरता रे । छठ भक्त करि ध्यान धरता रे । सोल पोहरनो पोसह जांणी रे । सुंणे गुरुमुख अमरित वाण | | | ४|| ५२ पडवे दिन पारणा किधां रे । सुपात्रे दांन ते सिद्धां रे ।
संघविण पण छे व्रतधारि रे । इछा नामे समता सारी ||५ ॥ ५३ वदि (सुदि) बीजे शेत्रुंजी आवेरे । त्रांन करिने कुंभ भरावे रे । कर कलश धरिने चलीया रे । देवकि षट सुत जइ मलिया || ||६|| आव्या आदेशर दरबार रे । जिन शिर पर कलशनि धार रे । धुर संघवि पाछल परिवार रे। नांमे कलश ते सहू नरनार |||७|| । केसर घनसार घसावे रे | । करता संघ आतिम सुद्धी |||ट फल नैवेद्य वली मनोहारा रे ।
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५५ पंच- अमरित स्यूं नवरावे रे जाइ केतकि फूल सुगंधि रे
५६ धूप दीप ने अक्षत सार रे
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आठ भेदे पुजा रचावे रे । जिन आगे धूम मचावे | भा||९||
।
५७ भावपूजा करि उतरिया रे । सेत्रुजि नदि जल भरिया रे । बार कोसनो डुंगर फरसे रे ५८ नमे कदमगिरि जइ पगले रे दरिसथि आणंद पावे रे । ५९ चोकगांमे स्वामि भगति रे
संघवि मन दरिसण तरसे ||| १० | । संघ चाले धिमे धिमे डगले रे । कदम गणधर गुंण गावे ||| ११ || । संघवि करता बहू जुगति रे । सिरो साकर साक ने भात रे । गावे जिनर्गुण गइ जब रात | भ॥ १२॥ ६० हस्तगिरि परभाते चढीया रे । वंदिने पाछा वलिया रे ।
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कणसाइना भातां आले रे । नारि जल भरि लेइ सिर चाले ||१३|| ६१ पांचमे विस थांनिक सेवा रे । करे पूजा सिव सुख लेवा रे । राजनगरनि टोलि आवे रे । प्रभु आगले भावना भावे रे || १४ ||
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अनुसन्थान-३१
६२ सांमिवछल धनपति किद्धो रे । सिरो पूरि जमण जस लिद्धो रे ।
नोकारसि करे बेहेचरभाइ रे । वद(सुद)सातमे करत सवाई ।भ॥१५॥ ६३ रथजात्रा आणंदकारि रे । करे पूजा नवाणुं-प्रकारि रे ।
द्रव्य भावे सुरपरे जादी रे । गावे टोलि अमदावादी भा१६॥ ६४ दसम सामीवछल खास रे । गोकल परसोतमदास रे ।
संधमाल पेहरे दोय भेला रे । संघ उतरियो तेणि वेला ।भा॥१७॥ ६५ सांमि-भगति बारस दिन थावे रे । बेहेचर सीवचंद नाम धरावे रे।
बारव्रतनी पुजा भणावे रे । राते मंगल छेलो वधावे ।भ।।१८।। ६६ तेरस दिन जात्रा पूरी रे । मन मंदिर हूंस अधुरि रे ।। हवें क्यारे विमलगिरि मलस्यूं रे । जई गिरनारे नेमस्यूं हलस्यूं
भा॥१९॥ ६७ शुभविरनो सेवक पाछो वलियो रे । अमदावाद संघमा भलियो रे। अंतराय करम बहू बलीओ रे । तेथी सेवक थयो मन गलियो
भा२०॥ ढाल॥९॥ (श्रीअनंतजिनसुं करो साहेलडीयो ॥ओ देशी।।) ६८ संघवि संघ लेइ उतर्या ॥सुंणो संताजी ॥आव्या निज नीज ठांम।।
गुणवंता[जी] ॥ देशी।। विमलाचल गुंण गावतां ।सुं। सिध्या वंछित काम |गुं॥१॥ ६९ कामनिओ कहे कंतने सुं। आज सफल सुविहांण |गुं।
घर मुंक्या दूख विसर्यां । सुं । न गमे घर मंडाण ||।।२।। ७० वसंतरुत आगल देखी ।सुं। विसरियो संसार ।गुं
लय लागि प्रभु नामनि ।सुं। मोटो आधार ||३|| ७१ नामे निरमल आतमा । सुं। जोतां नयणे नेह ।।
सेबूंजी जल झीलतां ।सुं। थाले निरमल देह |गुं||४|| ७२ पांणि निरमल गंगाना ।सुं। पुंन्य तणि परनाल (गुं|
आदेसर पदपंकजे । सुं। जांणे करवा पखाल ।गुं।॥५॥ ७३ स्वर्गथी गंगा उतरि ।सुं। संघवि हरि-अवतार |गुं।
देव देवी परिवारमा ।सुं। संघ तणि नरनार्य ।।६।।
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कल्पतरु कनकाचले । सुं। देखी तिरथ सार | गुं।
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सि गति होस्ये आपणी । सुं। नवि करता उपगार |||७|| ओम चिंति तरुवर थइ । सुं। संघनि सितल छाय ।गुं। अहवि शत्रुजी नदि । सुं। न्हाता धरि उछांय || ८ ॥ अकादशी पेहरता सुं। संघवि सिव वरमाल गुं। चैत्य धजा कलसें ठवि । सुं। मागो मुगति रसाल |||९|| कर जोडि प्रभुने कहे । सुं। सुंणो देवाधिदेव ||
तुझ नांमे सुखिया सदा । सुं। अणि रिते देज्यो सेव |||१०|| ७८ संघविण कहे सहू सखीयोने सुं। रमिई जिनर्गुणरास | गुं। रास रमि कहे नाथने सुं। रहेज्यो हइडा पास ||| ११ || ७९ संघवि हूकम करि सज्या सुं। संघ चाल्यो गिरनार ।गुं कुच करि गया पिंगलि सुं। साथे माहाव्रतधार ॥ १२ ॥ ८० तालधजा डुंगर चड्या || पुज्या सुविधिनाथ गुं शांतिनाथ बिंब गांममा सुं। मलियो सिवपूर साथ ||१३|| ८१ रवि - उदये संघ चालियो । डाठा मउआ अनुकूल ।गुं। शांतिप्रभु वली वीरस्वामि || पुजे सुगंधि फूल || १४ || ८२ डुंगर बारपटोलि सुं। टीबीओ त्रण सुवास गुं
ऊना देखी हरखीया सुं। जिन घर पण सुविशाल ||१५|| ८३ संभव शांति नेंम प्रभु सुं। पास ने आदि जिनराय । गुं
आदिजिन - घर दोइ भुइंरा । सुं। भेटे भवदूख जाय ||१६|| ८४ परभाते संघ हरखस्यूं । सुं । पंथे गमन कराय ।।
मारगे हिरसुरि वांदिया |सुं। ग्यांनि महामुनिराय ||| १७|| ८५ चिंतामण ने अमिझरा |सुं। बंदी घोस( घ? )ले मुकांम गुं नावे बेसी उतर्या ।। दिव बंदिर जिनद्वार ||| १८ || ८६ शांति चिंतामण नेम प्रभु सुं। वंदे सहु नरनारि ।गुं । जिहां जिनमंदिर निरखता सुं। मांने धन अवतार | ॥ १९ ॥ ८७ सिमास कोडिनाल सुतरा |सु। दस मुंकांम परभास | गुं। नव निधान सम नव देहरा सु। दरिसणथी दूखनास |||२०||
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अनुसन्धान-३१
८८ बिजा त्रिजा आठ सोलमां ।सुं| आदि अंत दो तेविस ।गुं।
नेम आदे मुगति गया ।सुं। मुंकि राग ने रिस |गुं॥२१॥ ८९ पंचमि गतिने पांमवा ।सुं। वेरावले जिनवर पंच ।गुं।
नव अंगे प्रभु पुजतां ।सुं! मुंकि माया परपंच गुं।२२।। ९० पासजि सुमति चंद्रप्रभु ।सुं। त्रेविसमा प्रभु पास ।गुं।
चोमुख छे धर्मनाथनो ।सुं। पुरे वंछित आस ।गुं।।२३।। सुखभर चोरवाड आविया ।सुं। दरिसण करि प्रभुपास ।गुं।
मांगरोल दूरथी देखीने सुं। जांणे पांम्या सुखवास ।||२४|| ९२ रतनत्रयी जेम पांमिने ।सुं। पांमे पूरणानंद गु॥
तिम जिनघर त्रण पांमिने ।सुं। सितल प्रभु मुखचंद गु॥२५।। ९३ मुनिसुव्रत जिन पासजी । सुं| आठमां चंद्र जिनराय ।गुं।
पूज्या सेव्या बहूभगति सुं। सुं। आतम हरखित थाय ।[२६।। ९४ सेठ धरमसी ते सेहरना ।सं। करे संघ जमण उदार ।।।
महासुद पडवे सधाविया ।सुं। केसाद वंथलि सार (गुं॥२७॥ शांतिनाथ प्रभु वांदिने ।सुं। सांतितणो दातार ।गुं। संघवि संघ लेई चालिया ।सुंआव्या श्रीगिरनार (गुं।।२८।। साम्हैये आव्या सहू सेठिया ।सुं। थइ घोडे असवार गुं। बहू आडंबरे आविया ।सुं। महाविरने दरबार |गुं।२९।। भावस्तव पूजा भलि । सुं। करता संघवि भुप |गुं।
साथीयो पुर्यो प्रभु आगले सुं। संघने मंगलरुप ।।।३०।। ९८ श्रीशुभविर पसायथि ।सुं। बोल्या नवमी ढाल |गुं। भवियण भावे सांभलो सुं।आगल वात रसाल ॥गुणवंताजी।।३१।।
ढाल।॥१०॥ (मोतिसा मुंबइथी आव्याने सुंदर मांड्या कांम ओ देशीII) बेहचरभाइ संघ जेइ चाल्यानें । गिरिवर भेटण काज ॥ओ आंकणि।। सिद्धाचल गिरनार समो नहि कोई । तिरथ तारण झाझ । नयणे निहालि नेमिनाथने नमिया । गमिया भव संताप । रतनमणिनि मुरति बनि छ । करलि जुग नयणनि छाप ॥बेह।।१॥
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२०० देव दीये उदी करीने । प्रगट्या गुफाथी आप ।
वयण चुके पछममुखे प्रभु । बेठा जपीओ जाप ॥२।। जन्मथी बेहूं कुंमारपणे रे । राजुलना भरतार ।
कौतुक सीरिखी वात बनि छ । अविचल सुख भंडार ।।३।। २ चरण हजारे केवल उजल ध्यांने । ज्ञाने दिये उपदेस !
राजुलने बहुराग किस्यो स्वामी । पुछे कृष्ण नरेस ||बे||४|| नेहना नव भव नेमि कहे सुंणो । राजुल चरण निवास । त्रण कल्याणक सहसावने रे । सिविमंदिरिओ वास ॥५॥ जिनघर वंदि जुवे नरनारि । रायण आंबा डाल ।
बेठी कोयल टहुका करे जाणे । गावे जिन गुंणमाल ||बे||६|| ५ हंस मोर सुक सारस बोले 1 फरता सरोवर पाल ।
दाडिम द्राख ने जांबू झरे छे । नारंगि फणसाल बा७।। ६ चंपक केतकि मालति तरुवर । केलं असोक तमाल ।
तरुतले बेठी नारियो जोति । खोले ठवि निज बाल ||बे॥८॥ ७ सरग थकि देवे रिसवि आवि । पांमि तिरथ रसाल ।
सरलोकथी जाणे उतरि रे । देवे रिसावि बाल ॥९॥ अंबादेवि बिजी टुंक सोहावे । विप्रनि अंबा नार्य । घर सघलु मिथ्यात भर्यु छे । अंबा समकितधार ॥॥१०॥ श्राद्धदिने कागवास विना रे ॥ पडिलाभ्या अणगार ।
सासु नणंद सहू क्रोध भरि रे । झगडो लाग्यो अपार ॥॥११॥ १० दोय पुत्रस्यूं अंबा नाठी । धान विटाल कढाय ।
कनकपात्र मुंनिदांनथी रे । वहू वालण द्विज जाय ॥ब।।१२।। ११ दूरथी देखि त्रासभरि ते । बालक भुख्या थाय ।
अंबा लुंबो आपिने रे । बालक दोइ समझाय ॥बे॥१३॥ १२ गिरि-ध्याने बोली विप्र-मलेछ ने । भील-कलंकि कुल ।
करपी-अधम-कुल-देशमां रे । कछ-सिंध-काबुल ||१४|| १३ जनम न थास्यो मोहरो प्रभु । कुपे पडि सहबाल ।
व्यंतर देवनि देवि थइने । मोटी च्यार भुजाल ||१५||
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अनुसन्धान-३१
१४ सुत दो अंकुस जमणे कर डाबे । नाग पास अंबा डाल ।
ब्राह्मण कूपे पडि थयो छे ! वाहन सिंह विसाज ॥॥१६॥ १५ ठकुराइंसुं प्रभु चरण नमिनें । देसना पेहलि रसाल ।
चउविह संघने थापि थापे । तिरथनि रखवाल ॥।॥१७॥ १६ सहेसावन प्रभुचरणने पुजे । केसरने बरास ।।
काल अनादि कुवासना छंडि । हूं आव्यो तुम पास ॥॥१८॥ १७ साहेब सांभलो विनति एक मुझ । लख वाते ओक वात ।
मेहेर करि आपो मुझ दरीसण । तुमे छो मात ने तात ॥॥१९॥ १८ काल अनादि चेतन भटक्यो । हजिओ न आव्यो पार ।
नेम प्रभु हवे तुं मुझ मलियो । यो दरिसण ओकवार ॥।॥२०॥ पंचमि टुंक दत्त गणधर पगलां । दरिसणथि दूख नास । गिरिगुण गाता गजवर पगले । आवंता शुभ वास ।।ब।।२१।। नेमनाथ प्रभुना लघु बांधव । पुरवे गुफामा आगे ।
मेरु परे रह्या काउसम ध्यांने | आतिमगुंण प्रगटाय ॥बे॥२२॥ २१ अणे अवसर राजुल गुफामे । पाउस भिजी जाओ ।
वस्त्र विना राजिमति देखीने । चरणे चतुर चपलाये ॥ब।।२३।। राजिमति उपदेश देईने । मोकले नेम प्रभु पास । आलोयण लेइ सीवपुर पोहता । सादि अनंत निवास ॥॥२४॥ ओणि परे संघवी भावना भावि । आवे तलेटी जांम । नोकारसि करता मन आणंद । हरख्यो आतिमराम ||२५||
आदि जीणंद ने माहावीर स्वामी । सेहरमाहे प्रासाद ।
मंडप उपर ध्वजा फरुके । बोले घुघरिनाद ॥ब।२६।। २५ कोशनि वृध्धी करी परभाते । आव्या जालरसंन ।
रात वसी धोराजी आव्या । करवा प्रभु दरसन ॥२७।। २६ प्रथम जिणंद ने पास प्रभु नमि । नमिया शांति जिणंद ।
चंद्रप्रभु दरिसन उलसे । जिन मुख सितल चंद ॥।॥२८॥ २७ संघवि संघ लेई जात्रा करता । पूरण दसमी ढाल ।
जे नरनारि कंठे करस्ये । वरस्ये सिव वरमाल ।बे||२९॥
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ढाल॥११॥ (विरजी आव्या रे चंपावन के मेदांन ॥ओ देशी ॥) २८ संघ लेइ चाल्या रे विमलाचल गिरनार ।
साथे लेइ रे सकल कुटंब परिवार ॥ओ आंकणि ॥ कनोडागांमे कर्यो विसरांम । रविउदये संघ चाल्यो जाम । भेट्या प्रथम जिणंद अभिरांम । रात दिवस जिन समरूं नाम । ध्यांनथी पाया रे । तुज दरिसण महाराज । मुज मन केरा रे । सिध्या वंछित काज । भावना भावि रे । पंथे गमन कराये ।
बांभणवाडे रे । जिनमंदिर नहि पाओ ||स।१।। २९ कालावड वली मतबागाम । अनुक्रमे जामनगर पूर ठाम ।
हरखता सहू आतिमरांम । संघपतिने करे सहू परिणाम । अनुक्रमे आव्या रे । जिनमंदिर दरबार । नयणे निहालि रे । विश्वंभर जयकार । चैत्य जुहार्या रे । सात परम उदार । साते सुद्धि रे । करे पूजा अष्टप्रकार ॥२॥ सांभलज्यो हवे जीनवर नाम | धर्मनाथ शांति अभिराम । धर्म नेम प्रभु पास जिणंद । संभव स्वामि जगदानंद । शांतिनाथ मुख पूंनिमचंद । मुलनायक प्रभु प्रथम जिणंद । कुंथु जिनराया रे । चंद्रप्रभु जीनराओ । धर्मनाथ स्वामि रे । भेटे भवदूख जाओ । सुमतिनाथ सेवा रे । रयणमा मुरति भराये । शुभ दिन वलिया रे । कारणे कारज थाले ||३|| अणि परे भावे सहू नरनार । संघ जमण करे नगर मोजार । करता श्रावक परम उदार । संघपति गया वलि संघ परिवार । जमि सहू आवे रे । भवि भेटे जिनराय । बहू जिन मेला रे । करवा निरमल काय । आवे गुरु पासे रे । पडिकमे पाप पलाओ । रंगभरे चाल्या रे | धुंवार गांम जब आय ।।सं|४||
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अनुसन्धान-३१
__ ३२ सातमा जिनवर पूज्या सुपास । भव भव सेवक ताहरो दास |
स्वामि आपो मुगति निवास । मोहजालरूप पडियो कुपास । भावना भावी रे । पंथे गमन कराय । दरिसण पांमि रे । अंगे हरख न माय । फलां गांमेरे संघ सवि सुखभर आय ।
स्नान करिने रे । जिनवर पुजवा जाओ |सं॥५॥ ३३ संघवि आव्या हरखे धोल । शांतिनाथ पुज्या रंगरोल ।
रंग बन्यो मजिठ रंग चोल । वागे भुंगल त्रांसा ढोल । सुविधे पुजे रे आवे लतीपर वास । परुणागते रे पधराव्या प्रभु पास । प्रतिष्ठा थास्ये रे । महूरत आवे जव खास ।
नांमे नव निधि पावे रे । दूख दोहग दूरे नास ||स||६।। ३४ टंकरिये आव्या चली देश । पास प्रभु नहि घर प्रवेस ।
श्रावक रागी छे सविसेस । राग ने रोस नहि लव लेस । पास प्रभु पुजी रे । मोरबीओ डंका दिध । सुंदरजी सेठे रे । हरखे सामइयं किध ।। संघभगति करवा रे । आगन्या संघपति लिध ।
सेठ मन जांणे रे । मननां मनोरथ सिद्ध ॥७॥ ३५ सांमिवछलनो अतिराग । करवानो मुझ प्रगट्या लाग ।
वसंतरितु वलि पसर्यो फाग । संतोस पांम्या थयो लोभनो त्याग । मुंनि पडिलाभि रे । आतिम आणंद थाय । संघपति साथे रे । सुंदरजी सेठ जाए ।
दरजा सठ जाए । मातक थइने रे । सरागामे उतराय ।
श्रावक रागि रे । लागे मुनिवर पाय ॥८॥ ३६ चंद्रप्रभु जिन नमण कराय । केसरमां घनसार घसाओ ।
नव अंगे पुजा करे संघराय । सामिवच्छल करे तन उलसाय । साकर सिरो रे । पापड़ साक बनाय । वणवा पुरीरे संघविण सखीयो बोलाये ।
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नेमनाथ विहवा रे । मंगलिक वर गित गाय ।
विहवा मनावो रे । नेम प्रभु तोरण आय |संष।।९।। ३७ सोरठ देश उलंघी जाओ । वढवांणे संघ सुखमा आय ।
पांच गभारे आदि जिनराय । सांमल पारस दरिसण थाय । त्रणविसामे रे सुखभर आव्या साणंद । चैत्य जुहारि रे पाम्या परमाणंद । सहेरथी सांमा रे । आवे नरनार वृंद ।
मातपिता मलिया रे । मलिया भाई वली नंद ॥सं॥१०॥ ३८ संघपति जांणो मनमां अम । मंगलीक कारण करिओ जेम ।
संघजमण करवा मुझ प्रेम । सांमिवछल जिम उत्तम हेम । साकर पोली रे । गोरस वलि कणसार । साक बहू ताजा रे । करवा हूस अपार । भोजन वेला आवे रे । संघ सकल परिवार । धन धन दाडो रे । धन संघपति अवतार सिं॥११॥ अकादशमि ढाल बनावे । श्रीशुभविरनो सेवक गावे । गुणि-गुण गातां गुंण प्रगटावे । करपी-कुंमतिनुं चित मुजावे । धननो लाहो रे । लेज्यो थइ सावधान । तिरथ जाज्यो रे । वये करि तजी अभिमांन । मुंनि घर तेडि रे । आपो सुपात्रे दांन । सुंणज्यो भाई रे । थीर चित्त करि दोय कांन ।सं||१२॥
ढाल॥१२॥
(मेदि रंग लागो ॥ देशी) ४० देव गुरु पूजा थकि रे बारमे सरग सधाय तिरथ रंग लागो ।
माहाविदेहे मुगति वरे रे । अगुरुलघु गुण पाय ति॥१॥ ४१ मिठी ज्ञाननि गोठडि रे । कष्ट विना करम पलाय ।ती।
ज्ञानि गुरु सेवा करो रे । ज्ञानथी सिवसूख थाय ।।ती॥२॥ ४२ संघवि संघविण दोय जणां रे । बोले हरख भराय ।ती।
धार्या मनोरथ सफला थया रे । देव गुरुने सुपसाय ॥ति॥३॥
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अनुसन्धान-३१
४३ गुंणिगुण गाता सेहेरमा रे । सारंगपर मुकाम ति।
सनमुख माहाजन आवतु रे । पांम्या सहू विसरांम ॥ति॥४॥ ४४ गुरु दीवो गुरु देवता रे । हितकारी श्रुतधार ।ति
श्रीमुंनिचंद्र मुनिसरेरे । मयणाने उपगार ॥ती।।५।। ४५ अरिहा देव आराधिये रे । त्रिभोवन जास अवाज ति।।
वीरप्रभुनि सेवा थकी रे । श्रेणिक होसे जीनराज ।ति।।६।। ४६ धर्म सरण सिद्धाचले रे । जात्रा करि पूंन्ये पूर ।ति।
खिण खीण तिरथ सांभरे रे । वसिये नित्य हजुर ॥ती|७|| ४७ जनमभोमि जीननि तथा रे । निद्रा पाछलि रात ति।
पंडित गोष्टी नवि नग्रीया रे । पण दिठे सुख पांमे ॥ती।।८॥ ४८ सेहेरथी साम्हैयु आवतु रे । सारंगपरने बार ति।
उछव मोछव ठाठसुं रे । फागण सुद विज बुधवार ॥९॥ ४९ निज निज गेह विसामता रे । संघपतिना गुण गाय ति।
वरघोडो मांडविनि पोलमां रे । समेतसिखर उतराय ति।।११।।(१०) ५० चैत्यवंदन भावे करि रे । सनमुख जोडि हाथ ति।
स्वामि तुम पसायथीरे । भेट्या तिरथनाथ ॥ती॥११॥ ५१ आगन्या लेइ प्रभु तुंम तणि रे । गयो हतो महाराज आति।
कुशलखेम संघ लेइ करि रे । सिद्धां सघलां काज ।।ती।।१२।। . ५२ परभावनां करता तिहां रे । आपे जाचेक दान ।ति।
गिरिवरना गुंण मन रमे रे । निसदिन गिरिवर ध्यांन ।ती॥१३॥ ५३ सेवक श्रीशुभविरनो रे । बोले बारमि ढाल ।ती। गुरुसेवा भगति करो रे । गुरुथी वरे सिवमाल |ति।।१४।।
ढाल॥१३॥ (सुंणो सेठ कहूं एक वात रे ॥ देशी ॥) ५४ मन चिंते बेहेचरभाई अम रे । रहिओ तिरथ विना कहो केम रे।
हरख हई घणो रे । पुजा नवाणु भेदे रचावि रे ।
॥गिरिराजतणो गुंण गावे रे ॥हा॥१॥ ५५ वलि निज घेर चैत्य करावे रे । कारिगर सुंदर लावे रे ।हा
करे गज उपर प्रासाद रे । जाणे स्वर्गथी मांडे वाद रे ॥ह।।२।।
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फेबुआरी-2005 ५६ रंगमंडप सोभा सारि रे । पूतलियो बनि चित्रकारी रे हा
रुपे जडियो मुल-गभारो रे । जोतां लहे नर वारो रे ॥हा॥३।। ५७ प्रभु पुंठे भामंडल छाजे रे । गज उपर महावत राजे रे ।हा
दोय थंभे दोय कमांन रे । जाणे शोभे देवविमान रे ॥हा॥४॥ चैत्य सोभा केति वखांणु रे । सुरभुवन जोइ लजवाणुं रे ।हा रंग कनक रजत मेनाकारि रे । जोतां थीर थया सुर अवतारि रे
॥हा॥५॥ ५९ रुपु चांदी नवसत साठ रे । तोले चढीयो बन्यो बहु ठाठ रे ।हा
पण दूरजन दोष उपाडे रे । ते तो पयमा पूरा काढे रे ॥हा॥६॥ ६० आंबलिनो कातरो खाटो रे । विष भरियो वेंछी-कांटो रे ।हा
स्वांन-पुंछने दूरिजन-रसना रे । च्यार वांकां विधाताई घटना रे ।।हा|७|| जिनवांणि अमरित तोले रे । पाखंडि अवगुण बोले रे ।हा।
चोर बलतो करे करतोड रे । करपि दाताने निंदे रे ||८|| ६२ नारि मांदि थइ जव रांक रे । धरे कंचूक दरजि वांक रे ।हा
हूंस झाझि न मले नाणुं रे । करम-कणु थोडु काणुं रे।हा।९।। ६३ दूरिजन वातो कहूं केति रे । करे करसण कष्टे खेति रे हा
कष्ट करीने द्रव्य कमावे रे । जिनमारग खेत्रे वावे रे ||१०॥ ६४ जे सजन तस गुंण गावे रे । सोभे मुख तंबोल खावे रे ।हा
प्याज लसण खेतर दूरगंधि रे । जाइ केतकि वाडि सुगंधि रे॥हा॥११॥ ६५ सुरति वासे(?) रहे ताजा रे । नमो तिरथपति महाराजा रे ।ह।
मेहेल सुंदर ओक बनावे रे । जाली मालि झरुंखे सोहावे रे ॥हा॥१२॥ जैनमंदिर ओक कराव्यूं रे । शांतिनाथ प्रभु पधरावे रे हा
जब पावन घर मुझ थाय रे । आवे दरिसण संघ मुंनिराय रे ॥हा॥१३॥ ६७ अरिसारुप भुवन करावे रे । थंभा दोय रुपे रसावे रे ।हा
हय गय रथ पालखी म्यांना रे । इंद्रध्वजा भील पलटण सेना रे ॥हा॥१४॥ ६८ रथमांहे त्रीभोवन राजा रे । ढोलि भुंगल गाजां वाजा रे हा
चित्रामण विविध प्रकार रे । द्वार आगे दोय छडिदार रे ॥हा॥१५॥ ६९. शुद्ध जोसि मूहुर्त प्रकासे रे । सुद छठ बुद्ध वैसाख मासे रे ।हा
ओगणिस सताविस साल रे । घर परवेस रंग रसाल रे ॥हा॥१६॥
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अनुसन्धान-३१
७० परुणागत प्रभु ते दीन रे । करे साम्हइयु आविछिन रे हिा ढाले तेरमि सेवक बोले रे । ज्ञान गुरुगम अमरित तोले शाह।१७।।
ढाल॥१४॥ (गोकुलनि गोवालणि महि वेचवा चाली ॥ओ देशी।) ७१ अचिरादेविनंदने तेडवाने काजे ।
सेठ बेचरभाइ चालिया । नर बोहोले साजे । देव सेरि जइ विनवे प्रभुने दरबारे ।
स्वामि साहिबने घणु । सेठजि संभारे ॥१॥ ७२ रात दिवस हियडा थकि । ओक पल ना विसारे ।
रागिने घर जाव→ । जुगतु संसारे । वेगला पण वाहलेसरी । जेम चंद चकोर ।
मेघ गाजे जेम देखिने । करे सोर बहू मोर ॥॥२॥ ७३ सकति अनंति सांभलि । जिनराज तुंमारी ।
भक्तिथी शक्ति वेगली । मन-घरमा धारि । भगति वसे भगवान छे । ओम पंडित बोले ।
भगति विना जग प्रांणिया । संसारे रोले ||३॥ ७४ साहेबसे अेक विनति । ओ दिलमा धारी ।
निज परसादे पधारता । हवें वार न करवि । ओम कहिने प्रभुजिने । पालखी पधराव्या ।
चालंता सूर सानिधे । पोल सनमुख आव्या ||४|| ७५ बेहचरभाइ मन चिंतवे । मन मोहन मेला ।
साम्हैयु सजतां तिहां । बोहोला साबेला । निज निज घर परिवारथी । सहू साजन भेला ।
पोल सुरदास सेठनि । जांणे धन धन वेला ||५|| ७६ पोपटभाई पूत्र ते । बेहेचरभाई केरो । . पूरव कमाई भोगवे । आगे पूंन्ये अनेरो । कुंभ भरी सिर पर धरी । आगे कंन्या कुमारी । पाछल नारिओ गावती । जाणे सूर-अवतारी ॥६॥
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फेबुआरी-2005 ७७ साहाजन मलिया सोभता । चाले मारग वहिया ।
ओ साम्हैयु देखतां । कुरणिक सांभरिया । निज घर प्रभुजी आवता । वांदिने वधाव्या । प्रासाद-मालि त्रिज ओ । जिनजी पधराव्या |||७|| नव नव भेट निवेदस्यूं । भगति करे झाझी । सेवक बोले विनोदस्यूं । बेहचरभाई मन राजी । आगल भवियण सांभलो । जल भरवा जास्ये ।
वरघोडे नरनारिओ । मुख मंगल गास्ये ||८|| ७९ श्रीशुभविर माहाराजनि । जे आणा पाले ।
सिवकंन्या तस कंठमे । आरोपे वरमाल । सादि अनंत सूख वासमां । पांमे भोग विसाल । तेह तणा गुंण गावतां । पामे मंगलमाल ||९||
ढाल ॥१५॥ ___ हवे सेठ बहेचरभाई ओ घर देरासर कराव्यु ॥ तिवारे जल जात्रानो वरघोडो चढाव्यो । ते सम[य]नि ढाल उतारि छ । (मारो ससरो आव्यो सासु सोती । मारो नाव्यो माडिजायो विर ।
में मांजग मांडियो ॥ देशी।।) ८० जल जात्रा सामग्री सज करि । चडे जल यात्रा वरघोडो ।
नमण जमण जल लावे छे । लावे लावे बेहेचरभाइ सेठ । तिरथ जल लावे छे । न्हवरावे अचिरानो नंद । प्रभु पधरावे छे । अ टेक ।
राजनगर तणा व्यवहारिया । वर वेस धरि रथ जोड ।ना।१।। ८१ साबेला घणा सणगारिया । जाणे देवकुमर अवतार ।
गाओ गित भलि गुणवंतियो । वर तोरण निज घरबार ना।२।। ८२ आठ मंगलधर आगल चाले । बोले जाचक मंगल नाथ ।ना
चाले कलश भरि जल-झारीओ। थाओ पंथे वलि छंटकाव ॥न।।३।। ८३ उंचि करि रे धजावज आंतियो(?) चारे ठ(छ) बगीयोनो बनाव न
मेडिमाल जुवे महिला चढी । जोया जेवो जाग्यो रे बनाव [न|४||
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अनुसन्धान-३१ ८४ केइ बालकुंमर गजसीर चढ्या । धरे महावत कर अंकुश ।न।
वाजा वाजे विलातना । भलि पडि रे नगारानि चूंस न।।५।। ८५ टहूके सरणाई टहूकड़ा । चाले भाला धरा झलकार ।ना
झणझणिओ निसान ते झगमगे । गारदि तुरकि असवार ।।नमा|६|| ८६ आठ छत्रधरा चांमरधरा । रुडो इंद्रध्वज संघात नि।
अलबेलि साहेलि साथमां । रामणदिवो इछा वहू हाथ ।ति। ८७ भेर भंगल वेंणा वाजति । वाजित्र विचित्र प्रकार निा
बहु धूपघटा गगनें चली | नवले वेसे नरनार ॥नमा|७|| ८८ नगरसेठ प्रेमाभाइ संचर्या । उमाभाइ हठीसंग पाट ।न।
भगुभाई भांणाभाई आविया । जोईताराम त्रिकमदास ||न||८|| ८९ परसोतम पूंजासा आविया । भेटी समेतसिखर महाराज ।न।
गोकलभाई हिराभाई दो जणा । आगेवांन थई करे काज नि१०॥ ९० नगिनदास बेहेचर गुंणरागिया । जिनआगम धरता टेक न।
श्रद्धावंत श्रावक टोलि मलि | काम करता धरि सुविवेक ।न।।११।। ९१ ललुभाइ मांणेकचंद आविया । रवचंद सुबा छेला हार ।न।
विद्यासालानु काम चलावता । भणता जिहां बालकुंमार ।न||१२॥ ९२ जेयसंगभाई मुलचंदभाइ दीपता । जांणे इंद्रतणो अवतार ।ना
भुराभाई डाह्याभाई सोभता । वरघोडे थया हूंसियार न॥१२॥ ९३ केवलभाइ बेहेचरभाई लस्करी । मलि श्रावक टोलि सरव ।ना
संवेगि साधु साधवि । जांणि आव्या सासनपर्व ना१३॥ ९४ गुरुआंणा-परंपरा चालता । ते संजमधर अणगार (ना
गुरुलोपि तत्त्व पांमे नहि । बोले आगम वचन उदार ना१४॥ ९५ साधु साधवि श्रावक श्राविका । जोवा मलियो सघलो साथ ।न।
चांमर ढलंता रथ सिर पालखी । मांहे बेठा जगतना नाथ ना१६।। ९६ कर जोडि करे सहू वंदनां । प्रभु रहेजो हईडा पास ।न।
देव देवी जूवे गगने चढी । कर तल पडवा नहि अवकास ||न||१७|| ९७ हाथि घोडाने पालखि । घोड वेहल्योनो नहि पार ।ना
हठिभाइ वाडि जई उतर्या । देव नुतरिया तेणि वार ।न।१८॥
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फेब्रुआरी-2005
९८ तस आपे अनोपम बाकुला । भणे मंत्र आगम उपदेश न विधि जांणे श्रावक विधि साचवे । नवि भूल पडे लवलेश || १९ ॥ ९९ जलकुंभ भरि श्रीफल ठवि । सिर धरीया सोहागण नार्य न वरघोडी उतरियो नविन घरे । बेहेचर भाइ मोहोल मझार || न || २० | ३०० रातिजगो पुजा परभावना | कुंभथापना धरत विवेक ।न। शुभविरनुं सासन पामिने । सेवक ने गुरुगम टेक नम ||२०||
। ढाल ॥१६॥
( हवे विवाहनो वरघोडो रे || ओ देशी || )
।
ग्रहपूजा ने दस दिगपाल रे । छे सासनना रखवाल रे । भणे मंत्र आगम उपदेस रे । करे किरिया श्रावक सुविसेस रे । जयवंताजी ॥१॥ ओणिस सताविस वरसेरे । मास वैशाख वद छठ दिवसे रे । बुधवार घडि ऋण वेला रे । पल सतर झाकझमाला रे |||२|| शांतिनाथ तखत विराजेरे । ढोल भुगल वाजा वाजे रे । गित मंगल गावे नारि रे । सरपावनि करे तईयारि रे || || ३ ॥ सरपाव ते सहूने करिया रे । पछे सामीवच्छलमां भलिया रे सिरो पाक ने भजीया पूरि रे । बेहेचर भाइ मन हूंस अधूरि रे | ज || ४ || अठाई महोछव मंडावे रे । पुजा नव नव भांत रचावे रे । साहमिवछल नव नव भांत रे । नर नारि मंगल गावे राते रे ॥ज ॥ ५५ ॥ ६ सतरभेद वलि पंचकल्यांण रे । विसथांनिक ने पंचज्ञांन रे । नवभेदे नवांणुंप्रकारि रे । बारव्रत पूजा निरधारि रे जा | ६ || चुरमु ने वलि दूधपाक रे । बासुदी सीखंड बहू साक रे । वेसण चूरमां ने दूधपाक जुगति रे । साकर सिरो बहू भगति रे |||७॥ वद वैसाख तेरस आवे रे । संपूरण उछ्व थावे रे | बेहेचर भाइने हरख न मावे रे । शांतिनाथ प्रभु गुंण गावे रे ॥ ॥८॥ शुभविरनो सेवक रसीयो रे। गुंणि गुंण गावा उलसियो रे । शांतिनाथ प्रभु ध्यान धरस्यूं रे । सिवरमणी सहेजे वरस्युं रे|ज|| ९ || १० राजनगर मांहे विसरांम रे । देवचंद पानाचंद नांम रे । विसा श्रीमालि वंसे छाजे रे । धरणेंद्र सूरीश्वर राजे रे | जय || १० ||
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अनुसन्धान-३१
कलश॥ [ढाल १७]
(विर जिणंद जगत उपगारि ॥ओ देशी।।) । ११ श्रीसिद्धाचल गुंण में गाया । आदि जिन दरिसण पाया रे ।
चरम तिरथपति केवल पामि | विमलाचल फरसाया रे ।श्री॥१॥ १२ च्यार निकायना सुरपति मलिया । समोवसरण विरचाया रे ।
देसना देवधुनि वरसाया । भव(वि) जिव व्रत उचराया रे ।श्री।।२।। १३ सोहमपति विर सिस नमाया । कर जोडि प्रसन कराया रे ।
स्वामि गिरी गुंण केइ साथ पाया। भीन्न भीन्न नाम धराया रे । श्री||३|| १४ विर कहे सुंणो सोहमराया । अनंत ओ गिरि सुख पाया रे ।
शेर्बुजागिरि गुंणमहातम सुंणाया । इंद्र इंणि हरखाया रे ।श्री।।४।। १५ साधु साधवि श्रावक श्राविका । अणसण करि सिव पाया रे ।
घर बेठां पण गिरि गुंणध्याने । ते पण सिवसुख पाया रे ।श्री।।५।। १६ अहनिश गिरीगुंण ध्यान धरंता । मिथ्यात मेल हराया जि ।
प्राओ ओ गिरी सास्वतो कहिइं । आगमपाठ बतायाजी ।श्री।।६।। १७ बेहेचरभाइ जयचंद श्रीमालि । संघपति तिलक धरायाजी ।
थावर पंच तिरथ फरसाया । जिनशासन दीपाया जि | श्री।।७।। १८ संघविण ईछावहू पतिव्रता । संघविण पद निपजायाजी ।
धन संपदा सवि पूंन्ये पाया । पुंन्ये पुंन्ये जडायाजी ।श्री।।८|| १९ न्याइद्रव्य सुध मन वच काया । शुभ खेत्रे वित खरचायाजी ।
आतिमरांम अति आणंद पाया । दरिसणे दूख गमायाजी ।श्री||९॥ २० तपगच्छ नंदन सुरतरु प्रगट्या । विजयदेवसूरि रायाजी ।
नांम दसो दिस जेहनुं चावू । गुणिजन वृंद गवायाजी ।श्री॥१०॥ २१ विजयसिंहसूरी तस पटधर | कुंमति मतंगज सीहोजी ।
तास सीस सूरी पदवि लायक । लक्षणलक्षीत देहोजी ।श्री॥११॥ २२ संघ चतुरवीध देश विदेशी । मलिया तिहां संकेते जि ।
विविध महोछव करता देखी । निज सूरिपदने हेते जि श्री।।१२।। २३ प्राओ सीथलता संघमा देखी । चित वयरागे वासिजी ।
सुरिवर आगे विनय वइरागे । मननि वात प्रकासिजी !श्री।।१३।।
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फेब्रुआरी-2005 २४ सूरीपदवि नवि लेवि स्वामि । करस्यूं क्रियाउद्धार जी ।
कहे सूरि आ गादि छे तुम सिर । तुम वस सहू अणगारजी ।श्री|१४|| २५ अम कहि सरगे सधाव्या सुरिवर । संघने वात सूंणाविजी ।
सत्यविजय पंन्यासनि आंणा । मुंनिगणमां वरताविजी ।श्री।।१५।। २६ संघनि साखे तेणे निज हाथे । विजयप्रभसूरि थापिजी ।
गछ-निश्राओ उग्रविहारी । संवेगता गुंण व्यापिजी ।श्री।।१६|| २७ रंगित-चेल लहि जग वंदे । चैत्य धजाओ लक्षीजी ।
सूरिपाटे रहे सनमुख उभा । वाचक जस तस पक्षीजी ।श्री|१७|| २८ मुंनि संवेग, ग्रहि निरवेदि । विजो संवेगपखिजी ।
ओ त्रणे शिवमारग दाख्या । जिहां सिद्धांत छे साखीजी ।श्री॥१८॥ २९ आरज सूहस्तिसूरि जिम वंदे । आरज महागिरि देखीजी ।
दो-तिन पाट रहि मरजादा । पण कलियुगता विशेषिजी (श्री।।१९।। ३० सत्यविजय गुरु सीस बहुश्रुत । कपूरविजय श्रुतज्ञानिजी ।।
दोषरहित सुद्ध आहारनि वांछा । रमता आतिमध्यांनिजी ।श्री॥२०॥ ३१ तास सिस श्रीखेमाविजय बुध । विद्याशक्ति विशालजी ।
जास पसाओ जगतमां चावो । कपूरचंद भणसालीजी ।श्री।।२१।। ३२ तास सिस श्रीसुजसविजय बूध । तास सिस गुंणवंताजी ।
श्रीशुभविजय विजयसनांमे । जे महिमाइ महंताजी ।श्री॥२२॥ ३३ तेह तणा सिस विरविजय मुंनि । पंडित नांम धरावेजी ।
षट दरिषणमां ज्ञान गुण गाजे । जित निसांण वजडावेजी ।श्री।।२३।। ३४ वैष्णव-सीव-धरमि प्रतिबोध्या । किधा समकितवासीजी ।
विरविजय पंन्यासनि वांणि । सांभली दूरमति नाठिजी ।श्री॥२४॥ ३५ तेह तणा प्रतिबोधि श्रावक । विचरे गुरु आधारजी ।
भव(वि) जिव केई समकित पांम्या । केइ उचर्या व्रत बारजी ।श्री॥२५॥ ३६ सासन विर- अनंतर वरते । अकविस वरस हजारजी ।
गुरुकुल वासित सुविहित सेवो । भुलो मत उपगारजी ।श्री।।२६।। ३७ सुविहित गुरु जब स्वर्गे पोहता । तव थया आगमलोपीजी । · भदरिक-भावि जीव पासमा पडिया । निज मत आणा रोपिजी
।श्री॥२७॥
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अनुसन्धान-३१
३८ विरविजय पंन्यासनो श्रावक । देवचंद गुरुरागिजी ।
बेहेचरभाई संघपतिनि साथे । जावा सुभ मति जागिजी (श्री॥२८॥ ३९ जात्रा करि संघ नयणे निहाली । गुंणरुप गुंथी फूलमालजी ।
जे नर नारि कंठे धरस्ये । ते वरसे सिवमालजी । श्री।।२९।। ४० संवत ओगणिस सत्ताविस वरसे । मास असाड सुखकारिजी । क्रष्ण पक्ष सातम रविवारे । प्रगट्यो जयजयकारजी ॥
श्री सिद्धाचल गुण मे गाया ॥३०॥ ईति श्री सेठ बेहेचरभाई जयचंद ॥ श्री सिद्धाचलजी तथा गिरनारजी संघ लेइ जात्रा करवा गया ॥ तथा घर देहरासर कराव्यु ॥ ते समे जलजात्रानो वरघोडो चढाव्यो ॥ तेहनि ढालो संपूर्णं ॥ लपीकृतं ॥ मोतिचंद ॥ राजनग्रे ।।
परिशिष्ट केटलाक शब्दोना अर्थ
क्र.
कडी ६ गितारथ
आरज्या जुगलिक . करम-भोंमि
१४ जाति
गीतार्थ, शास्त्रज्ञ आर्या, साध्वी युगलिक-युगल कर्मभूमि, जेमां असि, मषी कृषिरूप व्यापार होय तेवू क्षेत्र पूर्व, जैनमते एक काळ-माप अंग्रेजी अधिकारी शिरस्तेदार जैन अनुष्ठान-विशेष; स्नात्र चौद राजलोक, सकल सृष्टि
१६
पूरव साहेब श्रस्तेदार पंच सनात्र चउद खेत्र
२६
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फेब्रुआरी-2005
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५२
करतानि
५४
वृति हिमनो सनाथ कोरठ
७१
विलात
पटण
परमाणा
८० ८७
९२ ९५
बनात सचितप्रहारी गुरुगम पोसो आग्यम जोगकिरिया सुतरना आएसकार कलप अनमेखी
कर्तानी, शुभवीरनी (?) के ते ते पूजाना प्रणेतानी (?) के 'कर तानि' एम विभक्तपदो हशे ? व्रती-व्रतधारी हेमनो-सोनानो स्नात्रियास्नात्र कोर्ट familia -(Band) पलटण (सैन्य-टुकडी) प्रमाण-परवाना जाडु ऊनी कापड सचित(सजीव)नो परिहारी-त्यागी गुरु-आम्नाय पौषध, जैन धर्मनी क्रिया जैन आगमशास्त्र योगक्रिया-जैन साधुनी विशिष्ट क्रिया सूत्रना आदेश (आज्ञा)ना करनार-पालक कल्प (मासकल्प) अनिमिष/देव भेटणां नाखे-नमावे झाझी, घणी जहाज महेमान तरीके विवाह नगरीओ
१०० १०४ १०६
१०७
भेठ
१३१ १५४ नामे १६३
जादी १९९ झाझ २३३ परुणागते २६६ विहवा २४७ नग्रीया
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________________ 60 अनुसन्धान-३१ 258 मेनाकारि 261 करपि 277 कुरणिक 312 देवधुनि 319 न्याइद्रव्य 323 सीथलता 327 रंगित चेल 328 ग्रहि मीनाकारी कृपण कोणिक राजा दिव्यध्वनि न्याय-अर्जित धन शिथिलता रंगेल वस्त्रो गृही-गृहस्थ