Book Title: Pudgal Shattrinshika Ek Samikshatmaka Adhyayan
Author(s): Premlal Sharma, Shaktidhar
Publisher: Z_Kailashchandra_Shastri_Abhinandan_Granth_012048.pdf
Catalog link: https://jainqq.org/explore/211363/1

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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुद्गल षट्त्रिंशिका : एक अध्ययन - प्रेमलाल शर्मा और शक्तिधर शर्मा, पंजाबी विश्वविद्यालय, पटियाला (५०) भौतिक जगत्के सूक्ष्म तत्वोंको खोजनेमें जैन दार्शनिकोंने पर्याप्त प्रयत्न किये हैं। उनके अनुसार विश्व छह द्रव्यों-जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल-से बना है। इनमें पाँच अस्तिकाय हैं, बहुप्रदेशी हैं । कालद्रव्य इनसे भिन्न है। इन छह द्रव्योंमें पुद्गलके विषयमें रत्नसिंह सूरिने छत्तीस गाथायें लिखी थी जिसे 'पुद्गल षट्त्रिंशिका'के रूपमें जाना जाता है। पुद्गल कोशादिमें इस विषयमें विवरण दिया गया है, पर वह अनुवाद मात्र ही रह गया है। उन्हें समझानेके लिये जितना प्रयत्न चाहिये था, उतना नहीं किया गया । फलतः यहाँ उसे यथाशक्ति निरूपित करने का प्रयास किया गया है । द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावके सापेक्ष पुद्गल सप्रदेशी तथा अप्रदेशी होते हैं। जो पुद्गल परमाणु परस्पर असंयुक्त होते हैं, वे अप्रदेशी होते हैं। एक आकाश प्रदेशमें व्याप्त होने वाले पुदगल क्षेत्र सापेक्ष अप्रदेशी कहलाते हैं। एक समयमें स्थिति वाले पुदगल या पुद्गल स्कन्ध काल-सापेक्ष अप्रदेशो होते हैं । एक ही रक्तपीतादि परिणामको धारण करनेवाले पुद्गल भावसापेक्ष अप्रदेशी होते हैं । (२,३) भावसापेक्ष अप्रदेशी पुद्गलोंसे कालसापेक्ष अप्रदेशी पुद्गलोंका असंख्यातगुणत्व भाव सापेक्ष अप्रदेशी पुद्गलों से कालसापेक्ष अप्रदेशी पुद्गल असंख्यगुण होते हैं क्योंकि वर्ण, गंध, रस, स्पर्श और सूक्ष्म बादरादि परिणामोंमें परिणत प्रत्येक परिणाममें काल-प्रदेशत्व पाया जाता है। भावसापेक्ष अप्रदेशी पुद्गल कालसापेक्ष अप्रदेशी तथा सप्रदेशी हो सकते हैं । इसी प्रकार भावसापेक्ष सपदेशी पदगल कालसापेक्ष अप्रदेशी भी हो सकते हैं। यह सब एक समयमें स्थिति तथा दो-तीन आदि समयोंमें स्थितिके विचारसे होता है। काल-सापेक्ष अप्रदेशी पुद्गलोंकी अनन्त राशियाँ एक गुण कृष्णादि पुद्गलसे लेकर अनन्तगुण कृष्णादि पुद्गलोंके मध्य एक-एक गुणस्थानक बनते जाते हैं । इन गुणस्थानकों में कालसापेक्ष अप्रदेशी पुद्गलोंकी एक-एक राशि होती है । अतः गुणस्थानकों के अनन्त होनेसे काल-अप्रदेशियों की राशि भी अनंत ही होती है । (५-७) गुणस्थानकोंके अनन्त होनेपर भी काल-अप्रदेशियोंका असंख्य गुणत्व ही होता है यद्यपि गुणस्थानकोंके समान काल-अप्रदेशियोंकी राशि भी अनन्त ही होगी, तथापि इनका गुणत्व असंख्यात ही होगा क्योंकि एक गुण कृष्णादियोंके सापेक्ष जो अनंतगुणित कृष्णादियोंकी राशि है, वह भी 'अनन्त राशि' के अनन्ततम भागमें ही विद्यमान रहती है। अतः भावसापेक्ष अप्रदेशी पुद्गलोंसे कालसापेक्ष अप्रदेशी पुद्गल असंख्यातगुणे ही सिद्ध होते हैं । (८) अवगाहनाके विचारसे काल-अप्रदेशत्व स्तोक (अल्प) नभःप्रदेशोंमें अवगाहना करने वाले जो पुद्गल स्कंध 'एक समय में अवस्थिति करके फिर अनेकों नभःप्रदेशोंमें व्याप्त होते हैं और एक समयकी ही स्थितिवाले होते हैं, तथा जो पुद्गल अनेक नभःप्रदेशोंमें व्याप्त होकर एक समयमें स्थिति करते हैं और पुनः स्तोक नभःप्रदेशोंमें व्याप्त होते हुए Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक समयकी स्थितिवाले होते हैं, वे पुदगल स्कंध संकोच और विकोच रूप अवगाहनाके विचारसे कालसापेक्ष अप्रदेशी होते हैं / (11) जितने भी परिणाम होते हैं, उन सभीमें परिणत 'एक समय में स्थितिवाले पुद्गल स्कंध या पुद्गल काल-सापेक्ष अप्रदेशी होते हैं। अतः भावसापेक्ष अप्रदेशी पुद्गलोंसे कालसापेक्ष अप्रदेशी पुद्गल असंख्य गुण सिद्ध होते हैं / (12,13) काल-अप्रदेशी पुद्गलोंसे द्रव्य-अप्रदेशी पुद्गल असंख्य गुणे होते हैं काल-सापेक्ष अप्रदेशी पुद्गलों या पुद्गल-स्कंधोंसे द्रव्य-सापेक्ष अप्र देशी पुद्गल (परमाणु) असंख्य गुणे होते हैं / इन पुद्गलोंकी चार राशियाँ मानी गई हैं : 1. अणुओंकी राशि, 2. संख्यात-अणु-स्कंधोंकी राशि, 3. असंख्यात-अणु-स्कंधोंकी राशि, 4. अनंताणुस्कंधोंकी राशि / / अनन्त अणु-स्कंधोंकी ये चार राशियां हैं। जिन जिन संख्यात-अणु-स्कंधोमें प्रदेशरूप परमाणु हैं, वे उन संख्यात-अणुस्कन्धोंके संख्येयतम भागमें विद्यमान रहते हैं। इसी प्रकार, जिन स्कन्धोंमें असंख्येय अण विद्यमान रहते हैं, वे उन असंख्येयाणुस्कन्धोंके असंख्येयतम भागमें विद्यमान रहते हैं। कल्पना कीजिये कि परमाणुओंकी राशि एक-सौ है। उसका संख्येयतम भाग बीस, असंख्येयतम भाग दस तथा अनंततम भाग पाँच है। इस प्रक्रियासे द्वयणुक स्कन्धसे लेकर संख्याताणुस्कन्ध पर्यन्त उस स्कन्धके सापेक्ष संख्येयतम भागमें अणु विद्यमान रहता है / इसी प्रकार असंख्येयतमाणु-स्कंधके विषयमें जानना चाहिये / वस्तुतः परमाणु अनंत हैं। संख्याताणुस्कन्धसे असंख्यात या अनंत अणुस्कन्धोंकी उत्पत्ति परिकल्पित की जाती है / अन्यथा संख्याताणुस्कन्धके सापेक्ष असंख्येय भाग या अनंत भागमें अणु नहीं होंगे। अतः काल सापेक्ष अप्रदेशी पुद्गलोंसे द्रव्य सापेक्ष अप्रदेशी पुद्गल अनंत होते हैं / (17-19) द्रव्य-अप्रदेशी पुद्गलोंसे क्षेत्र-अप्रदेशी पुद्गल असंख्यगुण होते हैं द्रव्यसापेक्ष अप्रदेशी पुद्गलोंसे क्षेत्रसापेक्ष अप्रदेशी पुद्गल असंख्यगुणे होते हैं क्योंकि सभी पुद्गल “एक-एक आकाश प्रदेश में व्याप्त होनेकी स्थितिमें क्षेत्रसापेक्ष अप्रदेशी हो जाते हैं / इनसे क्षेत्र सापेक्ष सप्रदेशी पुद्गल असंख्यगुणे होते हैं क्योंकि सप्रदेशियोंके अवगाहनास्थान अधिक होते हैं। इनके अधिक होनेसे इनमें उतने ही अधिक परमाणु या पुद्गल स्कन्ध समा सकते हैं। अतः वे क्षेत्र-अप्रदेशियोंसे असंख्यगुणे हैं / (20-22) / वैपरीत्यसे सप्रदेशी पुद्गलोंका विशेषाधिकत्व ___अभी अप्रदेशी पुद्गल विवेचनमें 'भाव' को आदिमें रखा गया था। परन्तु सप्रदेशी पुद्गल विवेचनमें क्षेत्रको आगे रखा जाता है। अतः क्षेत्रसापेक्ष सप्रदेशी पुदगलोंसे द्रव्यसापेक्ष सप्रदेशी पुद्गल विशेषाधिक होते हैं। द्रव्यसापेक्ष सप्रदेशियोंसे कालसापेक्ष विशेषाधिक होते हैं। कालसापेक्ष सप्रदेशियोंसे भावसापेक्ष सप्रदेशी विशेषाधिक होते हैं। इसका कारण यह है कि भाव, काल, द्रव्य और क्षेत्र सापेक्ष अप्रदेशित्वमें क्रमशः जितनी संख्या बढ़ती है, उतनी ही संख्या सप्रदेशित्व अवस्थामें घट जाया करती है / कल्पना कीजिये-एक लाख पुद्गल हैं। उनमें भाव, काल, द्रव्य और क्षेत्र सापेक्ष अप्रदेशी पुद्गलोंकी सख्या क्रमश एक, दो, पाँच और दस हजार हैं। परन्तु सप्रदेशित्व अवस्थामें उतनी ही संख्याके घट जानेसे भाव, काल, द्रव्य और क्षेत्र सापेक्ष सप्रदेशी पुद्गलोंकी संख्या क्रमशः 99,98,95 और 90 हजार हो जायगी। इस दृष्टिसे जैसे भी संभव हो, सप्रदेशी-अप्रदेशी पुदगलोंका अर्थोपन्यास करना चाहिये / यहाँ केवल कल्पनाके रूप ही पुद्गलों की संख्या एक लाख मानी गई है / वस्तुतः वह तो अनंत ही है / (24-36) ब्रेकेटमें दी हुई संख्यायें गाथाक्रमांकके निर्देश हैं।