Book Title: Prakrit ke Kuch Shabdo ki Vyutpatti Author(s): Vasant Rahurkar Publisher: Z_Agarchand_Nahta_Abhinandan_Granth_Part_2_012043.pdf Catalog link: https://jainqq.org/explore/211404/1 JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLYPage #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृतके कुछ शब्दोंकी व्युत्पत्ति डॉ० वसन्त गजानन राहूरकर, एम० ए०, पी-एच० डी०, बम्बई विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित तृतीय 'प्राकृत सेमिनार' में मैंने यह शोध निबन्ध प्रस्तुत किया था । इसमें मैंने प्राकृत के शब्दचतुष्टयकी व्युत्पत्ति देनेका प्रयास किया है। इन चार शब्दों का उल्लेख 'पाइयसद्दमहण्णव' में 'देशी शब्द के रूपमें किया गया है । 'धर्मोपदेसमालाविवरण', जो जयसिंहसूरिके 'धर्मोपदेसमाला' नामक ग्रन्थपर भाष्यरूप है, अनेक आख्यानोंका संग्रह है । इन आख्यानों में 'गामेल्लयअक्खाणयं' नामका जो आख्यान है, उसमें 'स अंबाडिऊण सिक्खविओ' इस वाक्यका बार-बार प्रयोग हुआ है । यहाँ 'अंबाडिऊण' शब्दको व्युत्पत्ति क्या है, यह विचारणीय है । इस शब्द के अन्तमें जो ऊण प्रत्यय है, उससे ज्ञात होता है कि यह 'अंबाड' धातुका पूर्वकालवाचक धातुसाधित अव्यय है । 'पाइयसह महणणब' में 'अंबाड' का पर्यायी धातु 'खरण्ट' दिया है । यहाँपर 'निशीथचूर्णि से एक उद्धरण भी दिया गया है - 'चमढेति खरंटेति अंबाडेति उत्तं भवति ।' अर्थात् चमढ, खरंट और अंबाड इस धातुत्रयका समान ही अर्थ हैं । खरण्टका अर्थ, अतएव, डाँटना फटकारना, दोषी ठहराना (to reprovc, to censure) होता है । दूसरी धातु 'अंबाड' का 'तिरस् + कृ' (विद्वेष करना, शब्दोंसे मनको विद्ध करना) अर्थ दिया है । यहाँ समस्या यह है कि 'अंबाड' की व्युत्पत्ति क्या है ? यह देशी शब्द है या नहीं, इसपर मेरा मत है कि संस्कृत शब्द 'आम्रातक' से प्राकृत नाम धातु 'अंबाड्य' बन सकता है । 'आम्रातक' का अर्थ है‘The fruit of the hogplum, Spondias Mongiferra', ( मराठी भाषा में इसे 'अंबाडा' कहते हैं) । इस फलका रस आम्रफल रसके समान दिखाई देता है ( देखिये - आम्रम् अतति इति आम्रातकम् ) । जब इस फलका रस निकालना होता है, तो फलको जोरसे दबाना होता है छेदकर रस निकाला जाता है । अतः इस प्रतीक के उपयोगसे 'अंबाड' धातुका अर्थ मर्दन करना' अथवा 'मनको विद्ध करना' ऐसा हो गया होगा । और बीजको अन्दर से 'शब्दोंके जोरसे मनका मराठी भाषा में 'ओवालणें' एक धातु है जिसका अर्थ अभिनन्दन करते समय या शुभेच्छा व्यक्त करते समय 'दीपसे चेहरेके समीप नीराजना करना' होता है । इस मराठी धातुकी व्युत्पत्ति क्या होगी, इस समस्यापर जब मैंने विचार किया तो प्राकृतका 'ओमालिय' (शोभित, पूजित ) शब्द ध्यान में आया । किन्तु यहाँ अर्थ में बहुत अन्तर है । संस्कृत में मङ्खक कत्रिका 'श्रीकण्ठचरित' नामक महाकाव्य । इसके प्रथम सर्गके तीसरे श्लोकमें शिवके तृतीय नेत्रकी अग्निका वर्णन है । इस वर्णन में 'उन्मालक' शब्दका प्रयोग किया गया है ।' यदि कोई व्यक्ति किसी अच्छी घटना या वस्तुको देखकर सन्तुष्ट हो जाता है तो किसी वस्तुकी नीराजना कर पारितोषिक दान करता है । इस पारितोषिक दानको यहाँ 'उन्मालक' कहा है । 'उन्मालक'का प्राकृत रूपान्तर क्रमश: इस प्रकार हुआ होगा - उन्मालक > उन्मालय > ओमालय > ओवाळ | मराठी भाषा में 'हातचा मल' नामका एक शब्द प्रयोग है । जो कार्य करने में सुकर मालूम पड़ता है १. भालस्थलीरङ्गतले मृडस्य हुताशनस्ताण्डवकृत् स वोऽव्यात् । यस्मिन् रतिप्राणसमः शरीरमुन्मालकायैव निजं मुमोच ॥ २० इतिहास और पुरातत्त्व : १५३ Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उसे हिन्दी, गुजराती तथा मराठीमें 'हाथका मैल' कहते हैं। इस शब्दकी व्युत्पत्ति संस्कृत भाषामें ढूँढ़नी पड़ेगी। आपाततः इस शब्द प्रयोगसे जैसा दिखाई पड़ता है, वैसा मल (dirt) का यहां कोई सम्बन्ध नहीं। संस्कृत शब्द 'हस्तामलक से ही उपर्युक्त शब्दका प्रत्यक्ष सम्बन्ध है, ऐसा निस्सन्देह कहा जा सकता है। 'हस्तामलक' शब्दका अर्थ है-'हाथपर रखा हुआ आँवलेका फल / ' हाथपर रखे हुए आमलक फलका सर्वांगीण दर्शन एवं ज्ञान बड़ी सरलतासे होता है। अतः यह प्रतीक संस्कृत भाषासे प्राकृत भाषामें और वहाँसे प्रादेशिक भाषाओं में संक्रान्त हुआ। संक्रान्त होते समय एक 'आ'का लोप स्वाभाविकतया हो जाता है। उदाहरणके लिए 'कादम्बरी'में जाबालिके वर्णन–'हस्तामलकवत् निखिलं जगत् अवलोकयताम्'की तुलना 'वसुदेवहिण्डी' तथा 'कुमारपालचरिय' में प्रयुक्त वाक्यांश 'मुख्खोवाओ आमलगो विअ करतले देसिओ भगवया से की जा सकती है। 'ज्ञानेश्वरी' की प्राचीन मराठीमें हम 'जैसा की हातिचा आमळे' प्रयोग मिलता है। यही मराठीमें 'हातचा मळ' हो गया। 'जोहार' शब्द 'प्रवचन-सारोद्धार' तथा 'धर्मोपदेसमालाविवरण में झुककर नमस्कार करनेके अर्थमें आता है / यथा-'वच्छ ! ता पढमं दूराओ दळूण माणणिज्ज महया सद्देन जोहारो कीरइ / ' मराठीमें भी 'जोहार' शब्दका प्रयोग इसी अर्थमें होता है / यथा-'जोहार मायबाप जोहार / ' 'पाइयसद्दमहण्णवो' तथा अनेक मराठी-शब्दकोशोंमें इस शब्दको 'देशी' माना गया है तथा मराठी-शब्दकोश इस शब्दको फारसी शब्द 'जोहार से जोड़ते हैं। मेरा ऐसा विचार है कि यह शब्द न तो देशी है और न फारसीका ही। किन्तु व्युत्पत्तिकी दृष्टिसे संस्कृत शब्द योद्ध (योद्धा)से अधिक समीप है। प्रजा द्वारा राजाओंका संबोधन 'हे वीर (हे योद्धा) ऐसा होता था और उनको नमन किया जाता था। संस्कृत शब्द 'योद्ध'को प्राकृत शब्द 'जोहार'में सरलतापूर्वक बदला जा सकता है-योद्ध>जोहा>जोहार-तथा नमस्कार करनेसे इसको जोड़ा जा सकता है। 1. प्रस्तुत निबन्धके हिन्दी रूपान्तर करने में मेरे शिष्य डॉ० उमेशचन्द्र शर्माकी मुझे सहायता मिली। अतः मैं उनका कृतज्ञ हूँ। 154 : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रन्थ .