Book Title: Parmatma ke Tin Pradakshina Dohe
Author(s): Ajaysagar
Publisher: Z_Aradhana_Ganga_009725.pdf
Catalog link: https://jainqq.org/explore/229249/1

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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 17 सूचना- क्रमशः तीन अंग-लुछनीयों से प्रतिमा के उपर के जलादि को साफ करें. परमात्मा की तीन प्रदक्षिणा में बोलने के दोहे काळ अनादि अनंतथी, भव भ्रमणानो नहीं पार; ते भ्रमण निवारवा, प्रदक्षिणा दउंत्रण वार भमतिमां भमतां थकां, भव भावठ दूर पलाय; दर्शन ज्ञान चारित्र रूप, प्रदक्षिणा त्रण देवाय 2 जन्म मरणादि भय टळे, सीझे जो दर्शन काज; रत्नत्रयी प्राप्ति भणी, दर्शन करो जिनराज ज्ञान वडुं संसारमा, ज्ञान परम सुख हेत; ज्ञान विना जग जीवडा, न लहे तत्त्व संकेत 4 चय ते संचय कर्मनो, रिक्त करे वळी जेह; चारित्र नाम निर्युक्ते कह्यु, वंदो ते गुण गेह दर्शन ज्ञान चारित्र ए, रत्नत्रयी निरधार; त्रण प्रदक्षिणा ते कारणे, भवदुःख भंजनहार - - - निसीहि... निसीहि... निसीहि... अर्थात्.... निषेध संसार संबंधी समस्त पापकार्यों.... विचारों का त्याग तीन निसीहि कहाँ बोलनी चाहिए? 1. मंदिर में प्रवेश करते समय. 2. गर्भगृह में प्रवेश करते समय. 3. चैत्यवंदन (भावपूजा) का प्रारंभ करने से पहले... मंदिर के उपर कौए चील आदि बैठे रहते हो तो समझना कि चैत्य की प्राण ऊर्जा | | कमजोर हुई है, चैत्य बिमार हुआ है. उसे पुनः प्राणवान करने के तीन उपाय है. 1. विधि सह 18 अभिषेक कराने. 2. कोई योगी पुरुष चैत्य में बैठ प्रभु का ध्यान करें. / 3. शुद्ध घी झरते नैवेद्य से भावपूर्वक प्रभु की पूजा करनी. - - - - - - - - - - - - *ज्ञानी के पाम भावाह मुक्त खुले मन जाने पर जिज्ञासा शांत होती है व पूठा फायदा मिलता है.*