Book Title: Nishal garnu Bhumika
Author(s): Dharmkirtivijay
Publisher: ZZ_Anusandhan
Catalog link: https://jainqq.org/explore/229559/1

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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निशालगरणुं : भूमिका . सं. मुनि धर्मकीर्तिविजय 5-6 वर्ष पूर्वे थोडां फूटकल हस्तप्रतनां पत्रो प्राप्त थयां. तेमां 'निशालगरणो' नामनी संपूर्ण कृति प्राप्त थइ. तेना आधारे संपादन कर्यु छे. अन्त्य पंक्तिमा 'सुर' एवा उल्लेखथी जणाय छे के आ कृतिना कर्ता 'सुर' मुनि छे. 'गुजराती' साहित्यकोश-खंड - 1 मध्यकाल' पृष्ठक्रमांक- 470 पर 'महावीर निशालगरणुं पद'ना कर्ता तरीके 'सुर-सुरजी'नो उल्लेख छे. ते आ पद परत्वे ज होवार्नु लागे छे. कृतिने अन्ते संवत आदिनो निर्देश नथी. मुनि हेमविमलजीए आ पोथी लखी छे-एम जणाव्युं छे. आ कृतिमां प्रभु निशाले भणवा बेठा तेनुं वर्णन छे. प्रभु तीर्थंकर हता, सहज ज्ञानी हता, तेमने भणवानी आवश्यकता न हती. तथापि जैनकथा प्रमाणे माता-पिता प्रभुने निशाले भणवा मोकले छे. इन्द्र महाराजानुं आसन चलित थाय छे. सर्व वृत्तान्त जाणीने इन्द्र ब्राह्मण, रूप धारण करीने पंडित पासे आवीने महावीरने विविध प्रश्नो पूछे छे, अने तेओ तेना जवाबो आपे छे, तेना उपरथी 'जैनेन्द्रव्याकरण' बन्युं हतुं. निशाल एटले शाला-पाठशाला. 'गरणो' के 'गरणु' शब्द प्रायः 'गमन' उपरथी बनेलो लागे छे. गमननु गमण-गमणुं, तेना परथी गरणु-गय[ एवं अपभ्रंश रूप बनी गयुं होय. तीर्थंकर ज्यारे शालाए जाय त्यारे केवा शणगार सजावाय, केवो आडंबर रचाय, केवी शोभायात्रा नीकले, विद्यार्थीओने तथा अध्यापकोने केवां भेटणां अपाय वगैरे कियाओ- शब्दचित्र आ नानकडी कृति द्वारा उपसाववामां कर्ताए घणी कुशलता दर्शावी छे.