Book Title: Nakhshikh Vidyapurush Author(s): Bhuvanchandravijay Publisher: ZZ_Anusandhan Catalog link: https://jainqq.org/explore/229724/1 JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLYPage #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 206 नरवशिरव विद्यापुरुष मुनि भुवनचन्द्र श्रीभायाणीसाहेबना प्रत्यक्ष परिचयनो लाभ मने नथी मळ्यो परंतु तेमनी कल्पनामूर्ति मारा मनमा २५-३० वर्षों पूर्वे स्थापित थई चूकी हती. वर्षों पहेलां तेओ 'शब्दनी सफर' के एवा ज कोई शीर्षक हेठळ 'कुमार'मां गुजराती शब्दोना भाषाकीय इतिहास विशे लखता हता . कुमारनी फाइलो वांचतां भायाणीजीनो आम शब्ददेहे परिचय थयेलो. भाषा अने शब्दो परनो मारो प्रेम एमनी ए लेखमाळाथी ज बंधायो एम कहुं तो चाले. भायाणी साहेबनुं स्थान विश्वना भाषाविदोनी हरोळमां आवे एवं छे ते तो बहु पाछळथी जाण्यु. आवी प्रखर प्रतिभा सारा एवा लांबा समय सुधी आपणी वच्चे रही अने भारतनी प्राचीन भाषाओना संशोधनना क्षेत्रे चिरंजीव प्रदान की गई ए वाते आपणे गौरव अने आनंद लई शकीए एम छोए. 'सिद्धहेम' तथा देशी भाषाओना विषयमां तेओ प्रमाणभूत हता. विद्वानो तेमने 'आधुनिक हेमचंद्र' कहेता ते भाषाना अध्ययनना संदर्भमां बिलकुल साचुं छे. श्रीहेमचन्द्राचार्ये तेमना समय सुधीना व्याकरण-काव्य-अलंकार वगेरे विषयोना बधा ज ग्रन्थोनु परिशीलन करी ते ते विषयना निष्कर्ष जेवा ग्रन्थो रचेला. भायाणी साहेबे पण एवं ज -कदाच तेथी पण वधु-अध्ययन कर पडेलु. भाषाशास्त्रीए आजे मात्र भारतीय भाषाओनुं ज नहि, विश्वनी भाषाओनुं अध्ययन कर पड़े छे. भायाणी साहेबर्नु आ क्षेत्रनुं ज्ञान आपणने अभिभूत करी दे ते, हतुं. जैन आगमोनी भाषा विशेना तेमना एक लेखमां प्राकृत भाषाओ पर काम करनारा देश-परदेशना विद्वानोना नामो नोंध्या हता तेनी यादी पण एक पार्नु भराय तेटली लांबी हती. ए संशोधकोना पुस्तको/ संशोधन लेखोनो आंक तो क्यांय पहोंचे, भायाणी साहेब जाणे आ बधुं पचावी गया हता. आ नखशिख विद्यापुरुषनी विद्या जेटली प्रकृष्ट हती, एवी ज उत्कृष्ट तेमनी नम्रता हती. तेमनी विद्याप्रीति अने विनम्रतानो मने जे आह्लादक अनुभव थयो हतो ते ज स्मरणांजलि तरीके अहीं प्रस्तुत करूं छु. Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 207 श्रीपार्श्वचन्द्रसूरि कृत 'जिनस्तवन चतुर्विशतिका'ना संपादन वखते केटलाक शब्दो विशे तेमने पूछाववानुं थयेलं, जेनो तेमणे त्वरित खुलासो मोकली आपेलो. ए पुस्तकमां वाचकोनी सुगमता खातर में मध्यकालीन गुजराती भाषानी समज आपती एक नोंध लखेली, ते वांचीने तेमणे प्रसन्नता व्यक्त करी अने ए नोंध म.गु.ना बधा प्रकाशनोमां मूकवा माटे भलामण पण करी. 'अनुसंधान'ना तेओ सहसंपादक हता. 'अनुसंधान'मां मुद्रण संबंधी क्षतिओ रहेती हती, ते विशे में श्रीशीलचन्द्रसूरिने लखेलुं. तेमणे ए पत्र भायाणीसाहेबने आप्यो. थोडा दिवसमां मारा उपर भायाणीजीनो पत्र आवी पड्यो, जेमां तेमणे प्रूफवाचननी क्षतिओ माटे दिलगीरी व्यक्त करी हती अने अंकनं आटलं ध्यानपूर्वक वांचन करवा बदल धन्यवाद पाठव्या हता. आवा पत्नी में अपेक्षा पण राखी न हती, परंतु तेमणे आवो खुलासो करवानुं आवश्यक मान्युं. तेमनी आ विनम्रता अने निष्ठा जोई तेमना प्रत्येनो मारो अहोभाव बेवडाइ गयो. - आवा विरल विद्यापुरुषनो अप्रत्यक्ष पण परिचय थयो तेने हुं मारु सद्भाग्य समजुं छु. विद्योपासनाना प्रतीक तरीके तेमनी स्मृति सदाने माटे मारा मनमां अंकित रहेशे. जैन देरासर नानी खाखर - 370435 जि. कच्छ, गुजरात