Book Title: Malva Ek Bhaugolik Parivesh
Author(s): Basant Sinh
Publisher: Z_Munidway_Abhinandan_Granth_012006.pdf
Catalog link: https://jainqq.org/explore/211725/1

JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मालवा : एक भौगोलिक परिवेश डा० बसंतसिंह मालवा अपने स्थल विन्यास तथा ऐतिहासिक, सांस्कृतिक एवं राजनैतिक उपलब्धियों के कारण ऐतिहासिक समय से ही एक भौगोलिक इकाई के रूप में जाना जाता रहा है। इस प्रदेश का सम्पूर्ण क्षेत्रफल लगभग १५०,००० वर्ग कि० मी. है। २५-१० से २७-७० उत्तरी अक्षांशों एवं ७५-४५ और ७६-१४ पूर्वी देशान्तरों के मध्य तथा प्रायद्वीप के सबसे उत्तरी भाग में फैला हुआ यह प्रदेश भारतीय संघ के तीन राज्यों अर्थात् मध्यप्रदेश, राजस्थान एवं महाराष्ट्र के भू-भाग को आवृत किये हुए है। मध्य प्रदेश के १८ जिले तथा राजस्थान के बांसवाडा-झालावाड-प्रतापगढ तथा चित्तौडगढ जिलों और महाराष्ट्र के धुलिया एवं जलगाँव जिलों के सम्पूर्ण अथवा आंशिक भाग इसमें सम्मिलित किये जाते हैं । मालवा प्रदेश की कुल जनसंख्या लगभग १२ मिलियन है। इसका निर्माण बुन्देलखण्ड नीस-बसाल्ट तथा गोंडवाना शैलों एवं लावा से हुआ है। कर्करेखा मालवा के लगभग मध्य से होकर गुजरती है। __ ऐतिहासिक पृष्ठभूमि मालवा शब्द का प्रादुर्भाव संस्कृत के दो शब्दों 'मा' (MA) और 'लव' (LAV) से हुआ प्रतीत होता है। संस्कृत साहित्य में प्रथम का आशय देवी लक्ष्मी तथा द्वितीय का तात्पर्य भू-भाग से है। दोनों का सम्मिलित अर्थ सम्पदादायिनी लक्ष्मी के निवासस्थान से लिया जाता है। उपर्युक्त नामकरण यहाँ की उपजाऊ भूमि को देखते हुए किया गया होगा। प्रो० राजबली पाण्डे ने मालवा प्रदेश को उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में स्थित मल्ल राष्ट्र का एक भू-भाग बताया है। उनके कथनानुसार मल्ल से ही मलय और अन्त में मालवा शब्द का प्रादुर्भाव हुआ । पाणिनी के साहित्य में भी मालवों का प्रसंग अप्रधिजिवीन के नाम से आता है। जो सिकन्दर महान के आक्रमण के समय तक रावी तथा चिनाव नदियों के संगम के उत्तरी भाग में रहते थे। कालान्तर में उन लोगों ने चम्बल तथा नर्मदा नदियों के आबाद क्षेत्रों तथा राजस्थान में बस गये और आधुनिक मालवा का नामकरण हो पाया। प्रारम्भिक बौद्ध एवं जैन साहित्यों, हिन्दू कथाओं, रामायण तथा महाभारत में भी मालवों का सम्मानित प्रसंग आता है। बुद्ध काल में तो मालवा अपनी वास्तु कला (Architecture and Sculpture) की चरम सीमा पर पहुंचा हुआ बताया गया है। ईसा से ३२७ वर्ष पूर्व मालवा पर मौर्य साम्राज्य का आधिपत्य था। इसके Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१२ मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ अतिरिक्त विक्रमादित्य, चन्द्रगुप्त (द्वितीय), हर्ष, राजा भोज (द्वितीय), दिलावर खां गोरी, होशंगशाह, महमूद खिलजी, बाबर, बहादुरशाह, हुमायूं, शेरशाह सूरी तथा सुजातखाँ आदि ने भी मालवा पर समय-समय पर शासन किया है। सन् १६९० के आसपास मराठों ने मालवा में प्रवेश किया और बाजीराव पेशवा, होल्कर तथा सिन्धिया आदि ने लगभग ५० वर्षों तक मालवा को खूब रौंदा और कर वसूल करते हुए समाप्त हो गए। इसके पश्चात् अंग्रेजों ने सारे देश की भांति मालवा में भी स्थायी प्रशासन प्रदान किया जो भारत की स्वतन्त्रता के पूर्व तक चलता रहा। सन् १९४७ में भारत के स्वतन्त्र होने के पश्चात् दो बार राज्यों का गठन किया गया। पहली बार सन् १९४८ में इन्दौर तथा भोपाल जैसी स्वदेशी रियासतें भारतीय संघ में मिलाई गईं, मालवा का विभाजन हुआ। मध्यप्रदेश, मध्य भारत, महाकौशल, भोपाल का निर्माण हुआ। झालावाड़, बांसवाड़ा, प्रतापगढ़ राजस्थान में तथा खानदेश बम्बई प्रेसीडेन्सी में सम्मिलित हुए। सन् १९५६ में दूसरी बार पुन: राज्यों का पुनर्गठन हुआ और फलस्वरूप सम्पूर्ण मालवा प्रदेश को तीन राज्यों-मध्यप्रदेश, राजस्थान तथा महाराष्ट्र में सामिल कर दिया गया। प्राकृतिक बनावट मालवा प्रदेश भारतीय प्रायद्वीप के सबसे उत्तर में स्थित है। इस प्रदेश के उत्तर-पूर्वी भाग में बुन्देलखण्ड नीस अधिकता से पाई जाती है। जोहरबाग तथा घार क्षेत्रों के जंगली क्षेत्रों में आचियन समय की चट्टानें पाई जाती हैं। इसके अधिकांश भाग में बसाल्ट चट्टानें पाई जाती हैं। नीमच से पूर्व में सागर तक विन्ध्याचल पहाड़ियां फैली हैं। ये पहाड़ियाँ कैमूर के साथ-साथ भानपुरा, झालरापट्टन, नोवर, भोपाल तथा सागर जिलों में सतह पर दिखाई देती हैं। ये पहाड़ियां नर्मदा नदी के उत्तर में एक दीवाल का निर्माण करती हैं। होशंगाबाद के दक्षिण में प्राप्त सतपुड़ा में गोंडवाना की चट्टानें पाई जाती हैं। इस प्रदेश के दक्षिण में डकन, लावा तथा नर्मदा की जलोड़ मिट्टियां पाई जाती हैं, जिनके उपजाऊपन के लिए मालवा जगत्प्रसिद्ध है। डकनलावा की गहराई ६०० से लेकर १५०० मीटर तक है। इसका निर्माण पृथ्वी के आंतरिक लावा प्रवाह से हुआ है । यह मिट्टी इस समय परिपक्वावस्था में पाई जाती है। भू-संरचना की दृष्टि से मालवा प्रदेश को निम्न प्राकृतिक विभागों में बाँटा जा सकता है। उपविभागों का नाम : मालवा पठार (१) विस्तार एवं नदी तंत्र-भोपाल गुना, विन्ध्याचल पहाड़ियाँ तथा मच्छलप घाट के बीच में फैला है। इसकी सामान्य ऊँचाई ५००-६०० मीटर है। माही-चम्बल, काली-सिन्ध, पारवती तथा बेतवा नदियों का ऊपरी भाग इसमें प्रवाहित होता है। (२) पश्चिमी विन्ध्यान पहाड़ियाँ-इस उपविभाग में तीव्र ढाल है। ६५० कि० Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मालवा : एक भौगोलिक परिवेश २१३ मी० लम्बा तथा ५०० से ६०० मीटर तक की ऊँचाइयों में स्थित है। नागदा, सिंगार, चोटी तथा गोमानपुर प्रधान ऊँची चोटियाँ हैं। (३) पश्चिमी नर्मदा ट्रफ-उदयपुरा और कुक्षी के बीच उपजाऊ भूमि पाई जाती है। यहां का ढाल क्षतिज परन्तु सान्तर है। उदयपुरा के नीचे हाडियातर होशंगाबाद मैदान पाया जाता है । इसके दक्षिण में क्वार्टजाइट की पहाड़ियाँ फैली हैं । (४) पश्चिमी सतपुड़ा-नर्मदा तथा ताप्ती जल विभाजक इसके पश्चिमी भाग का निर्माण डकन ट्रैप से हुआ है, यहाँ २०-४० कि० मी० चौड़ी असमान तथा सान्तर पहाड़ियां पाई जाती हैं । पूर्वी भाग का निर्माण, तालचीट, वरार तथा विजौरी प्रगों में हुआ है। इसमें कोयला धारक चट्टानें पायी जाती हैं। प्रवाह तन्त्र मालवा प्रदेश में पंचमढ़ी सबसे ऊंचा स्थान है। यहाँ अरब सागर तथा बंगाल की खाड़ी में प्रवाहित होने वाले जल प्रवाह स्थित हैं। नर्मदा, ताप्ती तथा माही प्रथम कोटि और चम्बल तथा बेतवा यमुना नदी में मिलकर दूसरी कोटि की नदियाँ हैं । ___टाल्मी ने नर्मदा को 'नमडोज' के नाम से पुकारा है। जबकि पुराणों में इसको 'रेवा' नाम से सम्बोधित किया गया है । यहां होशंगाबाद में ३०० मीटर ऊँचे अनेकानेक जलप्रपात, दीपिकाएँ तथा गह्वर पाये जाते हैं। विन्ध्याचल एवं सतपुड़ा की पहाड़ियों से बहुसंख्या में सहायक नदियाँ इसमें आकर मिलती हैं। माही नदी को पुराणों में मनोरमा नदी के नाम से पुकारा गया है । धार जिले के लगभग ६१७ मीटर की ऊँचाई से निकलकर यह नदी १६० कि० मी० मध्य प्रदेश में प्रवाहित होती हुई डूंगरपुर तथा बांसवाड़ा के मध्य सीमा बनाती है । इस प्रदेश की तीसरी प्रसिद्ध नदी चम्बल है। यह इन्दौर जिले के ४४ मी. ऊँचे मानपुर स्थान से निकलती है जो विन्ध्यान कगार के उत्तरी भाग में स्थित है। यह नदी ३२५ कि० मी० की लम्बाई तक एक गार्ज से प्रवाहित होती है। इस नदी का सबसे अधिक उपयोग चम्बल घाटी परियोजना बनाकर किया जा रहा है । गम्भीर, छोटी काली सिन्ध, नेवाज, परवान, पारवती, चमला तथा देतम चम्बल की प्रमुख लेकिन बरसाती नदियाँ हैं। जलवायु, मिट्टी एवं वनस्पति यहां की जलवायु उष्ण मानसूनी किस्म की एवं स्वास्थ्यवर्धक है। रातें शीतल एवं दिन गर्म होते हैं। यहां पर विन्ध्यान तथा सतपुड़ा के पूर्व-पश्चिम समानान्तर होने के कारण अरब सागर की मानसून इन्हीं के समानान्तर प्रवाहित होती है। इस प्रदेश में मुख्य रूप से तीन-शीत, ग्रीष्म एवं वर्षा-ऋतुएँ अनुभव की जाती हैं। इनका विस्तार भारतीय ऋतुओं की भांति देखा जाता है। ग्रीष्म महीनों में मानसून हवाएँ अधिक तेज एवं दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व की तरफ प्रवाहित होती है। यहाँ की औसत वर्षा ११० से०मी० है जबकि न्यूनतम एवं अधिकतम ८ से०मी० से २१० से०मी० तक है। होशंगाबाद Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१४ मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ में ११५, सागर में ११७ तथा भोपाल में १२६ से० मी० वर्षा अंकित की जाती है। जुलाई से सितम्बर तक सबसे अधिक तथा पूरे वर्ष की ९०% वर्षा होती है। वर्षा के दिनों को छोड़कर वायुमण्डल सामान्य रूप से शुष्क एवं स्वच्छ रहता है। इसमें भी प्रात: की अपेक्षा सन्ध्या समय अधिक शुष्क होता है । ग्रीष्म काल में धूल की आंधियाँ तथा जाड़े के दिनों में कभी-कभी कुहरा पड़ता है। पंचमढ़ी में जुलाई में लगभग २१ दिन कुहरा पड़ता है। लगभग सम्पूर्ण प्रदेश में काली मिट्टी पाई जाती है। इसमें चूने के कंकड़ तथा कैल्सियम, कार्बोनेट के टुकड़े मिले हुए पाये जाते हैं। ग्रीष्म में इसमें दरारें पड़ जाती हैं तथा वर्षाकाल में चिपचिपी हो जाती है। फास्फेट, नाइट्रोजन तथा वनस्पति अंशों की सामान्य रूप से कमी है। इस प्रदेश की मिट्टी को (१) गहरी काली (२) मध्यम काली (३) धुधली काली (४) लाल काली मिश्रित (५) लाल-पीली मिश्रित तथा जलोड़ आदि किस्मों में बाँटा जा सकता है। इनके क्षेत्रों तथा सम्मिलित पदार्थों को निम्न तालिका में दिखाया गया है मिट्टी का नाम मिश्रित पदार्थ उत्पन्न होने वाली फसलें क्षेत्र १. गहरी काली बालू मिश्रित कपास होशंगाबाद, सतपुड़ा पठार आदि २. मध्यम काली चूने के कंकड़, कैल्सि- लगभग सभी भारतीय सागर, सीहोर, नीमच, यम, कार्बोनेट फसलें रायसीन, मन्दसौर, साजापुर आदि ३. धुधली काली १५% मृतिका चावल, कपास बेतूल, झाबुआ, रतलाम, बांसवाड़ा ४. काली एवं चूना कंकड़ रहित, अधिकांश फसलें प० गुना, झालावाड़ लाल मिश्रित बालू मिश्रित, नाइट्रो- सिंचाई से उत्पन्न तथा शाजापुर जन, फासफोरिक एसिड, चूना तथा जीव पदार्थ रहित ५. जलोड़ मिट्टी लगभग सभी फसलें नदियों की घाटियों में प्राप्त मालवा प्रदेश में मुख्य रूप ने रसवन्ता किस्म की वनस्पति पाई जाती है। इसके अतिरिक्त पतझड़ किस्म के वन भी दक्षिणी भाग में फैले हुए हैं। श्री ए० जी० चैम्पियन के अनुसार उत्तरी भाग में शुष्क पतझड़ वन पाया जाता है। इन वनों को स्थिति के अनुसार पहाड़ी वन, नदीय वन तथा पठारी वनों में बाँटा जा सकता है। Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मालवा : एक भौगोलिक परिवेश २१५ इन वनों में सलई, खजूर, महुआ, जामुन, हरी टीक तथा बाँस मुख्य रूप से पाये जाते हैं । इनको आर्थिक उपयोग में लाने के लिए वैज्ञानिक ढंग से प्रयास किये जा रहे हैं। खनिज संसाधन मालवा प्रदेश जिस प्रकार उपजाऊ कृषि युक्त मिट्टी के लिए प्रसिद्ध है उसी प्रकार अनेक प्रकार की खनिज सम्पदा भी इस प्रदेश में पाई जाती है । कोयला, मैगनीज तथा अभ्रक विशेष महत्वपूर्ण खनिजें हैं । तांबा घाटी तथा बेतूल क्षेत्र; कोयला धार, झाबुआ, बांसवाड़ा तथा झालावाड़ में अयश अधिकता से पाई जाती है। झाबुआ और बांसवाड़ा, उदयपुर तथा पश्चिमी निमार में मैगनीज की खाने अधिक पाई जाती हैं। झाबुआ में ही अभ्रक तथा देवास, होशंगाबाद, बाँसवाडा तथा झालावाड में ताम्र अयश की अनेक खानें हैं । गुना तथा विदिशा में बाक्साइट पाई जाती है । चूना का पत्थर, मिट्टी, संगमरमर, काल्साइट, जिन्क, ग्रेफाइट की भी आर्थिक खदानें मालवा प्रदेश में ई जाती हैं। खनिज संपदा के साथ-साथ मालवा-प्रदेश जल-संसाधन की दृष्टि से भी बड़ा धनी है। नर्मदा, चम्बल, माही तथा काली सिन्ध नदियाँ इस प्रदेश की प्राकृतिक संपदा हैं जिनका उपयोग जल-विद्युत उत्पादन एवं सिंचाई के कार्यों में किया जाता है। जल-विद्युत परियोजनाओं में चम्बल घाटी विकास निगम तथा माही परियोजनाएँ विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। उपर्युक्त परियोजनाओं के माध्यम से मध्य प्रदेश तथा राजस्थान अपने-अपने प्रमुख नगरों में औद्योगिक विकास पर भी जोर दे रहे हैं। जनसंख्या व मानव बसाव मालवा प्रदेश कम घना (८१ व्यक्ति प्र० वर्ग कि० मी०) बसा हुआ है । जनसंख्या का वितरण भी असमान है। होशंगाबाद, राजपुर, उज्जैन तथा रतलाम आदि क्षेत्र जहाँ अधिक घने बसे हैं वहीं पर विन्ध्यान तीव्र ढाल एवं सतपुड़ा का वनाच्छादित भाग जनविहीन है। इन्दौर, भोपाल तथा रतलाम एवं उज्जैन क्षेत्रों का घनत्व क्रमशः ४४, ६७ तथा १०८ व्यक्ति प्र०व० कि० मी० है। यहाँ की ८१% जनसंख्या ग्रामीण है, जो २७६५० गांवों में निवास कर रही है। जल प्राप्ति के स्थानों पर संहत् तथा मालवा पठार पर अर्ध संहत् बस्तियाँ पाई जाती हैं। आदिवासियों की बस्तियाँ ऐसे क्षेत्रों में पाई जाती हैं जहाँ पहुँचना बड़ा कठिन है । इस प्रदेश के अधिकांश शहरों का प्रादुर्भाव गाँवों से हुआ है । अधिकांश शहर नदियों के तटों अथवा प्राचीन राजपथों पर स्थित हैं। शहरों का विकास विगत दो दशकों में अधिक हुआ है। उज्जैन (२०८५६१), इन्दौर (५६०९३६), खण्डवा (१८५४०३), भोपाल (३०४५५०), सिहोर (३६१३६) मालवा प्रदेश के कतिपय शहर हैं । मुसलमानों के शासनकाल में मालवा के अधिकांश शहरों को अपने विनाश अथवा ह्रास का सामना करना पड़ा था। कृषि उपज इस प्रदेश के लोगों के जीविकोपार्जन का मुख्य साधन कृषि है। इस प्रदेश की लगभग ६६% भूमि पर खेती की जाती है । ज्वार इस प्रदेश की सर्वप्रमुख फसल है। ज्वार Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१६ मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ ४०% के बाद गेहूँ ३१% तथा कपास १४% के नाम आते हैं। इस प्रदेश में भी दो फसलें पैदा की जाती हैं जिसमें से खरीफ की फसलें समस्त कृषि भूमि के लगभग ६३% पर पैदा की जाती है। उद्योग औद्योगिक दृष्टि से मालवा प्रदेश मुगलों के शासनकाल से ही बहुत प्रसिद्ध रहा है। मुगल साम्राज्य में गुजरात के पश्चात् इसका दूसरा औद्योगिक महत्व था। कपड़ा, चीनी तथा धातुओं एवं खनिजों पर आधारित अनेकानेक उद्योग वहाँ विकसित हुए थे। परन्तु यहाँ के अधिकांश उद्योग ग्रामीण एवं लघु कुटीर व्यवसायों के रूप में विकसित हुए हैं । अब चम्बल-विद्युत केन्द्र तथा पुनासा परियोजनाओं का विकास हो चुका है। इनसे उज्जैन, इन्दौर, भोपाल तथा खण्डवा आदि में नव-निर्मित औद्योगिक प्रतिष्ठानों का विकास हो रहा है। इनके साथ-साथ इन्दौर, उज्जैन, रतलाम, धार, मन्दसौर तथा देवास में ताप-विद्युत घरों की भी स्थापना की गई। मालवा प्रदेश में कृषि पर आधारित उद्योगों में से सूती वस्त्र व्यवसाय सबसे महत्वपूर्ण है। कुल मिलाकर मालवा प्रदेश में १८ मिलें हैं, जिनमें से अधिकांश इन्दौर में स्थित है। इन मिलों में २५,००० श्रमिक कार्य करके ३०७ मिलियन मीटर कपड़े का उत्पादन करते हैं। हथकरघा उद्योग प्रदेश में सर्वत्र बिखरा हुआ है। कपास ओटने की ७०मिलों में लगभग ५००० श्रमिक दिन-रात कार्य कर रहे हैं। इनके अतिरिक्त कपास दबाने की भी १४ मिलें हैं। मन्दसौर, उज्जैन, रतलाम, सीहोर तथा राजगढ़ की चीनी मिलों में २७०० मीटरी टन उत्पादन होता है। तेल निकालने की लगभग ७० मिलें, उज्जैन, धार, रतलाम, सागर, देवास तथा मन्दसौर आदि शहरों में कार्य कर रही हैं। इटारसी, झालावाड़ तथा मन्दसौर में वनों पर आधारित उद्योगों को विकसित किया जा रहा है। इनमें कागज बोर्ड, लकड़ी चीरने तथा सिल्क उद्योग अधिक उल्लेखनीय हैं। मध्य प्रदेश के होशंगाबाद, रतलाम तथा इन्दौर शहरों में कागज की फैक्टरियाँ संस्थापित की गई हैं। सीहोर में कार्डबोर्ड फैक्टरी तथा इन्दौर में ६ रेशम की मिलें कार्य करने लग गई हैं । भोपाल, रतलाम, नीमच में हड्डियों को पीसने की मिलें स्थापित की गई हैं जिनमें प्रतिदिन ३० टन हड्डी का चूरा होता है। भोपाल तथा उज्जैन में भारी इन्जीनियरिंग एवं विद्युत उपकरणों से सम्बन्धित उद्योग भी स्थापित किये गये हैं । इन्दौर तथा भोपाल में दुग्ध उद्योग भी प्रारम्भ किये गये हैं। मालवा प्रदेश के अन्य उद्योगों में औषधि, साबुन, रसायन, दियासलाई, क्रोकरी, जूता, लकड़ी, ईंट तथा सीमेन्ट उद्योग विशेष उल्लेखनीय है। परिवहन दिल्ली-मद्रास, दिल्ली-बम्बई तथा कलकत्ता-बम्बई को जोड़ने वाले अधिकांश परिवहन मार्ग मालवा प्रदेश से होकर गुजरते हैं । प्रमुख रेलवे लाइन (बम्बई-कलकत्ता) जो इलाहाबाद होती हुई बनाई गई है, इस प्रदेश में से होकर गुजरती है । इटारसी इस प्रदेश का सबसे बड़ा रेल जंक्शन है। यहां पर बम्बई-कलकत्ता तथा मद्रास-दिल्ली Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मालवा : एक भौगोलिक परिवेश २१७ रेल मार्ग आपस में कटते हैं । सागर, बीना, गुना भी इस प्रदेश का बड़ा रेलमार्ग है। दिल्ली-मथुरा, बड़ौदा-बम्बई प्रमुख रेल लाइन भी इस प्रदेश से गुजरती है। मालवा प्रदेश के प्रमुख नगरों से होकर न केवल बड़ी रेल लाइन बल्कि छोटी लाइनें भी अनेक शहरों को आपस में समीप लाती हैं। इसके प्रतिकूल कुछ जिलों जैसे-झाबुआ तथा खरगाँव में रेल सेवाएं उपलब्ध भी नहीं है । अनेक जिलों में रेल सेवायें नाम मात्र की हैं । धार-राजगढ़, बांसवाड़ा-प्रतापगढ़, अचनेरा-झालावाड़ ऐसे ही जिले हैं। इस प्रदेश में प्रत्येक १०० वर्ग कि० मी० पर केवल १.४२ कि० मी० रेलमार्ग का औसत आता है। यहाँ सड़क सेवायें अधिक उपलब्ध हैं। इस प्रदेश से होकर राष्ट्रीय महत्त्व की सड़कें नं० ३ (बम्बई-दिल्ली) नं० २६ (सागर-खरवन दोन) तथा नं० १२ (सामपुरभोपाल तथा बरेली) गुजरती है। मालवा में सड़कों का योग १३०० कि० मी० है । उपर्युक्त राष्ट्रीय सड़कों के अतिरिक्त राज्य स्तर की भी अनेक सड़कें इस प्रदेश की परिवहन सेवा में लगी हैं। इनमें से महू-नीमच (२६० कि० मी०) इन्दौर-उज्जैनझालावाड़ (२३६ कि० मी०) तथा देवास-भोपाल-सागर (२३५ कि० मी०) सबसे अधिक उल्लेखनीय हैं। मालवा प्रदेश के परिवहन मार्गों में वितरण पर स्थल की बनावट का सुस्पष्ट प्रभाव दिखाई देता है। यहाँ की अधिकांश सड़कें सतपुड़ा पहाड़ियों तथा नर्मदा घाटी के समानान्तर बनाई गई हैं । नर्मदा के उत्तर में अधिकांश सड़कें उपगमन मार्ग हैं, परन्तु झाबुआ, धार तथा पश्चिमी नीमच में सड़क सेवाएँ अच्छी हैं । नर्मदा घाटी में सड़कों का घनत्व कम है । हर्दा, हरसूद, खण्डवा, पश्चिमी बाँसवाड़ा, बड़वानी, उदयपुरा, रेहली, बेतूल, पश्चिमी गुना आदि क्षेत्रों में बहुत कम पहुँच है। मालवा में कुल मिलाकर १०५२६ कि० मी० पक्की तथा ५५२८ कि० मी० कच्ची सड़कें हैं। इनका घनत्व क्रमशः ७ कि० मी० तथा ५ कि. मी० प्रति १०० वर्ग कि. मी. है। मालवा प्रदेश पश्चिम में बम्बई तथा उत्तर में दिल्ली से जुड़ा हुआ है। इन्दौर तथा भोपाल वायुमार्गों द्वारा बम्बई तथा दिल्ली और देश के अन्य हवाई मार्ग से जुड़े समस्याएँ एवं भविष्य मालवा प्रदेश में कतिपय बहुत महत्वपूर्ण समस्यायें हैं। मिट्टी की उर्वरा शक्ति समाप्त होने ऊसर निर्माण, खर-पतवार वृद्धि, जल जमाव, वृक्षों के कटाव, अनियंत्रित चरागाही एवं घासों को जलाने आदि से उत्पन्न भूमि अपरदन की समस्या सबसे बड़ी है। भूमि प्रबन्ध एवं परिस्थितिकी सन्तुलन (Ecological Balance) फिर से बनाना आज की सबसे बड़ी योजना है। अनावृष्टि एवं फसल विनाश, उत्पादन वृद्धि, गहरी खेती, आये दिन के अकाल आदि जैसी समस्याओं पर विजय पाने के लिए सिंचाई परियोजनाओं की समुचित व्यवस्था इस प्रदेश की मांग है। नदियों की बाढ़ नियंत्रण एवं अतिरिक्त जल का उपयोग, जल-विद्युत उत्पादन एवं सिंचाई कार्यों का करना यहाँ की जनोपयोगी योजनायें होंगी। वनों एवं कृषि पर आधारित उद्योगों के विकासार्थ Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 218 मुनिद्वय अभिनन्दन ग्रन्थ परिवहन संसाधनों की प्रगति की तरफ से भी मुंह नहीं मोड़ा जा सकता है। नर्मदा पर प्रस्तावित अनेक बाँध जब तैयार हो जावेंगे तब जबलपुर से नवगांव तक कृत्रिम झीलों की एक कड़ी बन जावेगी। इन झीलों से सिंचाई एवं गमनागमन के लिए पर्याप्त जल प्राप्त होने लगेगा। सड़क विकास परियोजना (1961-81) के अन्तर्गत बरेलीभोपाल, इन्दौर-झाबुआ तथा नादिया-नागपुर, बेतूल-होशंगाबाद, खण्डवा-इन्दौर, रतलाम तथा नीमच को मिलाती हुई राष्ट्रीय महत्व की सड़कों का निर्माण विचाराधीन है / बम्बई-इन्दौर, इन्दौर-भोपाल, खण्डवा-इन्दौर के मध्य रेल लाइनें दोहरी की जाने का विचार है। उपर्युक्त विकास कार्यों के पूरा हो जाने पर इटारसी में उर्वरक एवं कागज उद्योग को स्थापित करके लाभप्रद ढंग से चलाया जा सकता है / इसके अतिरिक्त अनेक जगहों पर लाख, गोंद, स्ट्राबोर्ड तथा वनों पर आधारित अनेक उद्योग स्थापित किये जा सकते हैं। इन्दौर में दुग्ध, चीनी, अल्युमीनियम, फाउण्ड्री तथा फोर्जप्लान्ट, रोलिंग मिलों तथा कापर सल्फेट आदि व्यवसायों का भविष्य उज्ज्वल है। जबकि उज्जैन में कृषि यंत्रों, भोपाल में हार्डवेयर, नागदा में अल्युमीनियम, सल्फेट, ब्लीचिंग पाउडर, कास्टिक सोडा, होशंगाबाद में कागज बोर्ड, कांक्रीट पाइप तथा उर्वरक के कारखाने स्थापित किये जा सकते हैं / सम्पूर्ण मालवा में हैन्डलूम व्यवसाय को बढ़ावा दिया जा सकता है। इसके साथ-साथ विश्व के नवीनतम उद्योग पर्यटन व्यवसाय को भी सांची, पंचमढ़ी तथा अन्य स्थानों पर विकसित किया जा सकता है।