Book Title: Mahavir aur unki Samajik Kranti
Author(s): Chandanmal Vaidya
Publisher: Z_Tirthankar_Mahavir_Smruti_Granth_012001.pdf
Catalog link: https://jainqq.org/explore/211130/1

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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वैशाली के राजकुमार वर्द्धमान एक ऐसे क्रान्ति- वर्ष तक कठोर साधना के उपरान्त केवलज्ञान को दृष्टा युग पुरुष थे जो कठोर साधना के परिणाम प्राप्त वर्द्धमान ने देश के कोने-कोने में भ्रमण कर जनस्वरूप केवलज्ञान को प्राप्त कर आत्मविजयी हो मत जाग्रत किया और तत्कालीन समाज में व्याप्त दोषमहावीर बने जिन परिस्थितियों ने वर्द्धमान को महावीर पूर्ण व्यवस्था के विरुद्ध अहिंसक क्रान्ति का सूत्रपात बनने को प्रेरित किया उनके मूल में मुख्यतः तत्कालीन कर ऐसी सामाजिक क्रान्ति को जन्म दिया जिसने सामाजिक परिस्थितियां ही थीं, जिनमें राजनीतिक सम्पूर्ण देश की सामाजिक परिस्थितियों को झकझोर अस्थिरता, हिसा, कलह, तथा शोषण पर आधारित कर जन-जन में आत्म विश्वास की लहर जगा दी। समाज व्यवस्था, ईश्वरवाद, पाखंडवाद, अन्ध विश्वास व बलि प्रथा पर आधारित धार्मिक व्यवस्था तथा भगवान महावीर ने तत्कालीन समाज में, धार्मिक इनकी प्रतिक्रिया स्वरूप दास प्रथा, भेदभाव पूर्ण वर्ण क्षेत्र में धर्म प्रमुखों द्वारा प्रचलित उन समस्त विचार तीर्थंकर महावीर और उनकी सामाजिक क्रान्ति चन्दनमल वैद व्यवस्था का प्राधान्य था जिसके कारण सामाजिक धाराओं और अन्ध विश्वासों को खण्डित किया जिसके एवम चारित्रिक मानदण्ड चरमरा रहे थे । राज्य शासक अनुसार धर्मगुरुओं ने ईश्वरवाद की धारणा प्रचलित वर्ग में तीब्र विद्वष के कारण हिंसामय वातावरण कर राजा को ईश्वर का अवतार, ब्राह्मण को ईश्वर का व्याप्त था, दासी को पशु तुल्य तथा नारी को भोग्य प्रवक्ता तथा पराजित व्यक्ति को दास और विजेता को सामग्री समझा जाता था, जिसके कारण सम्पूर्ण देश स्वामी माना जाता था। महावीर ने कहा कि राजा और सभ्यता पतन के गर्त में समाती जा रही थी। देव या ईश्वरीय अवतार नहीं है, वह एक शक्ति सम्पन्न वर्तमान ने जब यह सब देखा तो उनका मन घृणा पुरुष मात्र है। ईश्वर या उसके अवतार जैसी किसी और ग्लानि से द्रवित हो उठा और वह राज परिवार चीज का कोई अस्तित्व नहीं है। विश्व में कोई दसरी छोड क्रान्तिपथ पर अग्रसर हो गए। निरन्तर बारह ऐसी शक्ति नहीं है जो व्यक्ति की गतिविधियों को Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शासित या निर्धारित करती हो अथवा संसार को चलाती उन्होंने नर के समान सम्मान एवम् स्थान प्रदान हो । मनुष्य स्वयं अपना स्वामी है, वह जो कुछ करता किया। है उसका परिणाम उसे स्वयं को ही जन्म जन्मान्तर में भोगना होगा। कोई दूसरी शक्ति उसे इससे मुक्त नहीं इस प्रकार भगवान महावीर ने साम्प्रदायिक भेदों करा सकती, इससे तो वह स्वयं के ही सदकर्मों से मुक्ति को समाप्त कर पाखंडवाद व वर्ण एवं वर्ग भेद की पा सकता है। जौंजीरों को तोड़कर प्राणी मात्र के सहअस्तित्व व लोककल्याण का; तथा मनुष्य की जन्मगत महानता के तीर्थंकर महावीर और उनसे पूर्व तीर्थकरों द्वारा स्थान पर सदकार्यों से उनकी महानता व ईश्वर अवतारवाद की धारणा का खण्डन कर उन पर मान- सम्ब म सम्बन्धी अवतार वादी विचार के स्थान पर शुद्ध आत्मा वीय मूल्यों की महत्ता, उनके धर्म का विशिष्ट गुण है। ही परमात्मा का विचार देकर मानव धर्म की स्थाअन्य संस्कृतियों में जहां विभिन्न महापुरुषों को धर्म पना कर मानवीयता को नई दिशा दी। गुरुओं ने ईश्वरवाद के चौखटे में जड़, मानव से अलग कर उन्हें ईश्वरीय अवतार के रूप में प्रतिष्ठित किया तीर्थकर महावीर ने अपने क्रान्तिकारी विचारों के और उनके व्यक्तित्व को विकृत कर अवतारवादी ढांचे कारण समाज व्यवस्था के सभी कारकों को आन्दोलित में जड़ दिया। वहां तीर्थकर महावीर के अनुयायीयों की कर नवीन स्वरूप प्रदान किया। उन्होंने प्रत्येक मनुष्य यह महत्वपूर्ण उपलब्धि ही कही जायगी कि उन्होंने को पुरुषार्थ प्रदर्शित करने को प्रेरित किया तथा श्रम को अपने को इससे मुक्त रख महावीर को तीर्थकर या महा जीवन का आवश्यक अंग बताते हुए उसकी अनिवार्यता मानव के रूप में ही प्रतिष्ठित किया जिसके कारण सिद्ध कर तत्कालीन समाज में आर्थिक विषमता के मानवीय मूल्यों की स्थापना में जैन संस्कृति अग्रणी कारण उत्पन्न वर्ग भेद पर भी प्रहार किया जिसके मानी जाती है। कारण तत्कालीन समाज दो वर्गों में बंट गया था, एक कुलीन तथा शोषक वर्ग और दूसरा निम्न तथा शोषित सालीन भारत जलित वर्ग। तीर्थंकर महावीर स्वयं राजपूत्र होने के नाते वर्ण व्यवस्था तथा दास व्यवस्था पर भी प्रहार किया संग्रहवृत्ति से उत्पन्न दोषों तथा समस्याओं से परिचित जिसमें मनुष्य की जन्मगत महानता स्थापित होती थी। थे । इस व्यवस्था के विकल्प में उन्होंने अपरिग्रह दर्शन उन्होंने कहा कि सभी मनुष्य एक से पैदा होते हैं, सभी दे, मनुष्य को अपनी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति को अपना विकास करने का समान अधिकार है । मनुष्य हेतु परिग्रह ब्रत धारण करने की शिक्षा दी। की प्रतिष्ठा और स्थान जन्मगत विशेषताओं के आधार पर नहीं वरन उसके गुणों एवम् सदकर्मों पर आधारित इस प्रकार जहां तीर्थंकर महावीर नं सामाजिक हो, इसलिये उन्होंने जन जागृति का माध्यम अपनाया व्यवस्था में मूलभत परिवर्तन कर आदर्श उन्होंने अनेकों शूद्रों को दीक्षित किया तथा दासों को स्थापना पर बल दिया वहां सम्पूर्ण जीवन दर्शन प्रदान मुक्त कराकर उन्हें सम्मान जनक स्थान दिया। उनके कर आदर्श परिवार पर भी बल दिया था तथा ग्रहस्थ उपदेशों के समय सभी जाति, वर्ग और वर्ण के नर- एव साधु के लिये प्रथक-प्रथक आचार संहिता दी। नारी ही नहीं वरन सभी प्रकार के जीव साथ बैठकर उन्होंने इकाई के सुधार पर बल देते हुए प्रत्येक व्यक्ति उपदेश सुनते थे । अनेकों नारियों को दीक्षित कर को दशलक्षण धम तथा पंच महाव्रतों के पालन का Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपदेश दे स्वयं अनुशासन वद्ध जीवन पद्धति के पालन असंतुलन तथा शोषकवृत्ति आज भी नवीन स्वरूपों में का उपदेश दिया। इसके लिये उनके सर्वाङ्गीण शिक्षा समाज के कोढ़ की तरह विद्यमान है, जिनके विरुद्ध पर बल दिया जिसके आधार पर धार्मिक सहिण्णुता की तीब्र किन्तु अहिंसक सामाजिक क्रान्ति की नितान्त स्थापना तथा आदर्श विश्व का निर्माण हो सकता हैं। आवश्यकता है। युग पुरुष महात्मा गांधी ने तीर्थंकर महावीर के विचारों को नवीन परिवेषों में स्थापित कर तीर्थंकर महावीर के सिद्धान्त और उपदेश पूर्ण वर्तमान भारत में जिस सामाजिक क्रान्ति को जन्म दिया शास्वत एवं मौलिक होने से आज भी उतने ही उप- तथा स्वाधीनतोपरान्त हमारे नवीन संविधान, में योगी हैं। जिन-सामाजिक दुर्व्यबस्थाओं ने उन्हें तत्का- वर्णित निर्देशक सिद्धान्तों ने जिसे गति दी है. उनकी लीन समाज में सामाजिक क्रान्ति को प्रेरित किया था पति के लिये तथा आदर्श समाज की स्थापना के लिये उनमें से अनेक दोष परिवर्तित परिवेषों में वर्तमान आज तीर्थंकर महावीर के सिद्धान्तों के प्रचार व प्रसार समाज में भी व्याप्त होते जा रहे हैं / आर्थिक अस- की जितनी आवश्यकता है उतनी पहले कभी नहीं थी। मानता, अस्प्रश्यता एवं भेदभाव, विद्वेष, सामाजिक A