Book Title: Kobatirth Parichay
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्म श्रुतज्ञान व कला का त्रिवेणी संगम कोबातीर्थ श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र गांधीनगर (गुजरात) श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र जैनधर्म एवं संस्कृति का मूर्धन्य केन्द्र गुजरात प्रान्त की राजधानी गांधीनगर- अहमदाबाद उच्च राजमार्ग पर स्थित साबरमती नदी के समीप सुरम्य वृक्षों की घटाओं से घिरा हुआ धर्म, श्रुतज्ञान और कला का त्रिवेणी संगमरूप कोबातीर्थ प्राकृतिक शान्ति व आध्यात्मिकता का आह्लादक अनुभव करवाता ___पूज्य गच्छाधिपति महान जैना चार्य श्री मत् कैलाससागरसूरीश्वरजी के प्रशिष्य राष्ट्रसंत, युगद्रष्टा, श्रुतोद्धारक आचार्य श्रीमत् पद्मसागरसूरीश्वरजी के शुभाशीर्वाद से श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र की स्थापना 26 दिसम्बर 1980 के दिन की गई थी. आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी की यह इच्छा थी कि यहाँ पर धर्म, आराधना और ज्ञान-साधना की कोई एकाध प्रवृत्ति ही नहीं वरन् ज्ञान-धर्म की अनेकविध प्रवृत्तियों का महासंगम हो. एतदर्थ आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी ने पूज्यश्री की महान भावना को मूर्त रूप प्रदान करते हए धर्म, कला एवं श्रुतज्ञान के त्रिवेणी संगम रूप इस तीर्थ को विकसित कर उनके सपनों को साकार किया. श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा आज चार तथ्यों से जुड़कर निरन्तर प्रगति और प्रसिद्धि के शिखर की ओर अग्रसर है. (1) प्रतिवर्ष 22 मई को दोपहर दो बजकर सात मिनट पर महावीरालय में परमात्मा श्री महावीरस्वामी के ललाट पर सूर्यकिरणों से बनने वाला देदीप्यमान तिलक. (2) आचार्य श्री कैलाससागरसूरिजी का पावन स्मृति-मंदिर (3) अपने आप में अनुपम आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर. (4) जैन व भारतीय कला-संस्कृति की उत्कृष्टता का दर्शन करवाने वाला समाट संप्रति संग्रहालय. इनमें से किसी एक का भी नाम लेने पर ये चारों स्वरूप मानस पटल पर स्वतः उभर आते हैं. वर्तमान में श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र अनेकविध प्रवृत्तियों के द्वारा अपनी शाखाओं-प्रशाखाओं के साथ धर्मशासन की सेवा में तत्पर है. सम्पूर्ण परिकल्पना के स्वप्नद्रष्टा एवं शिल्पी: तत्कालीन गच्छाधिपति आचार्य भगवन्त श्रीमत् कैलाससागरसूरीश्वरजी के असीम आशीर्वाद व राष्ट्रसन्त जैनाचार्य श्रीमत् पद्मसागरसूरीश्वरजी के अथक परिश्रम, कुशल मार्गनिर्देशन एवं सफल सान्निध्य के फलस्वरूप श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबातीर्थ अपने आप में एक जीवन्त ऐतिहासिक स्मारक बन गया है. जैनधर्म व भारतीय संस्कृति को कण-कण में संजोए हुए यह धर्म, Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कला व ज्ञान का त्रिवेणीरूप तीर्थ आचार्य प्रवर के शिष्यरत्नों के अहर्निश सत्प्रयास, कार्यकर्ताओं की लगन एवं उदार दान-दाताओं के अविस्मरणीय सहयोग से निरंतर प्रगति के पथ पर अग्रसर है. धर्मतीर्थ महावीरालय : हृदय में अलौकिक धर्मोल्लास जगाने वाले जिनेश्वर श्री महावीरस्वामी का अतिभव्य प्रासाद शिल्पकलायुक्त महावीरालय दर्शनीय है. प्रथम तल पर गर्भगृह में मूलनायक श्री महावीरस्वामी आदि 13 प्रतिमाओं के दर्शन होते हैं तथा भूमि तल पर आदीश्वर भगवान की भव्य प्रतिमा, माणिभद्रवीर तथा भगवती पद्मावती सहित 5 प्रतिमाओं के दर्शन होते हैं. सभी प्रतिमाएँ इतनी मोहक एवं चुम्बकीय आकर्षणयुक्त हैं कि लगाता है, सामने ही बैठ रहें. जिन मंदिर को परंपरागत शैली में शिल्पांकनों द्वारा रोचक पद्धति से अलंकृत किया गया है, जिससे सीढ़ियों से लेकर शिखर के गुंबज तक तथा रंगमंडप से गर्भगृह तक का हर कोना जैन शिल्प कला को आधुनिक युग में पुन: जागृत करता हुआ दृष्टिगोचर होता है. 24 यक्ष, 24 यक्षिणिओं, 16 महाविद्याओं, विविध स्वरूपों मे अप्सरा, देव, किन्नर, पशु-पक्षी आदि सहित वेल-वल्लरी, परमात्मा श्री महावीर प्रभु, श्री आदिनाथ प्रभु व श्री पार्श्वनाथ प्रभु की जीवन झांकियों आदि से युक्त कलात्मक काष्ठ द्वार आदि इस मंदिर को जैन शिल्प एवं स्थापत्य के क्षेत्र में एक अप्रतिम उदाहरण के रुप में सफलतापूर्वक प्रस्तुत करते हैं. __ इस मंदिर की विस्मयकारी विशेषता है कि आचार्य श्री कैससागरसूरीश्वरजी के अन्तिम संस्कार के समय प्रतिवर्ष 22 मई को दोपहर, 2 बजकर 7 मिनट पर महावीरालय के शिखर में से होकर सूर्य किरणें श्री महावीरस्वामी के तिलक को देदीप्यमान करें, ऐसी अनुपम एवं अद्वितीय व्यवस्था की गई है. उस दिन इस आहृलादक दृश्य का बड़ी संख्या में श्रद्धालुजन भावविभोर होकर दर्शन करते हैं. गुरु मंदिर : पूज्य गच्छाधिपति आचार्यदेव श्रीमत् कैलाससागरसूरीश्वरजी के पुण्य देह के अन्तिम संस्कार स्थल पर पूज्यश्री की स्मृति में संगमरमर का कलात्मक गुरु मंदिर निर्मित किया गया है. गर्भगृह में स्फटिक रत्न से निर्मित अनन्तलब्धि निधान श्री गौतमस्वामीजी की मनोहर मूर्ति तथा रंगमंडप के मध्य में स्फटिक से ही निर्मित गुरु चरण-पादुका दर्शनीय एवं वंदनीय हैं. इस गुरु मंदिर में दीवारों पर संगमरमर की आठ जालियों में श्री गुरु चरण-पादुका तथा गुरु श्री गौतमस्वामी के जीवन की विविध घटनाओं को बड़े ही कलात्मक ढंग से प्रस्तुत की गई है. इस स्थान पर फर्श एवं गर्भगृह की चौकी आदि पर कीमती पत्थरों द्वारा बेल-बूटों की सुंदर पच्चीकारी का कार्य किया गया है. यहाँ पर आचार्यश्री के जीवन-प्रसंगों को स्वर्णाक्षरों में अंकित किया गया है. आराधना भवन : आराधक यहाँ धर्माराधना कर सकें इसके लिए दो अलग-अलग आराधना भवनों का निर्माण किया गया है. प्राकृतिक हवा एवं रोशनी से भरपूर इस आराधना भवन में मुनि भगवंत एवं साध्वीजी भगवंत स्थिरता कर अपनी संयम आराधना के साथ-साथ विशिष्ट ज्ञानाभ्यास, ध्यान, स्वाध्याय आदि का योग Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राप्त करते हैं. साधु-साध्वीजी भगवंतों के उच्चस्तरीय अध्ययन के लिए ज्ञानमंदिर में अपने-अपने क्षेत्र के विद्वान पंडितजनों का विशिष्ट प्रबन्ध किया गया है. यह ज्ञान, ध्यान तथा आत्माराधना के लिये उत्तम स्थल सिद्ध हो सके इस हेतु यहाँ प्रयास किये गए हैं. मुमुक्षु कुटीर : देश-विदेश के जिज्ञासुओं, ज्ञान-पिपासुओं के लिए दस मुमुक्षु कुटीरों का निर्माण किया गया है. हर खण्ड जीवन यापन सम्बन्धी प्राथमिक सुविधाओं से सम्पन्न है. संस्था के नियमानुसार विद्यार्थी मुमुक्षु सुव्यवस्थित रूप से यहाँ रह कर उच्चस्तरीय ज्ञानाभ्यास, प्राचीन एवं अर्वाचीन जैन साहित्य का परिचय एवं संशोधन तथा मुनिजनों से तत्त्वज्ञान प्राप्त कर सकते हैं. धर्मशाला : इस तीर्थ पर यात्रियों एवं मेहमानों के ठहरने की सुविधा को ध्यान में रखते हुए आधुनिक सुविधा संपन्न यात्री भवन एवं अतिथि भवन का निर्माण किया गया है. धर्मशाला में वातानुकुलित एवं सामान्य मिलाकर 46 कमरे उपलब्ध हैं. भोजनशाला एवं अल्पाहार गृह : तीर्थ पर पधारने वाले श्राव कों, दर्शनार्थियों, मुमुक्षुओं, विद्वानों एवं यात्रियों की सुविधा हेतु जैन सिद्धान्तों के अनुरूप सात्त्विक भोजन उपलब्ध कराने के लिये विशाल भोजनशाला एवं अल्पाहार गृह में सुन्दर व्यवस्था है. विश्वमैत्रीधाम बोरीजतीर्थ : गांधीनगर स्थित बोरीज गाँव के बाहर अक्षरधाम के सामने उच्चपथ पर परम पूज्य राष्ट्रसंत आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी की प्रेरणा एवं शुभाशीर्वाद से श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र की शाखारुप विश्वमैत्रीधाम का निर्माण हुआ है. विश्वमैत्रीधाम के तत्त्वावधान में बोरीज, गांधीनगर स्थित श्री धनलक्ष्मी महावीरस्वामी जिनमंदिर का जीर्णोद्धार कार्य पूज्यश्री की ही निश्रा में फरवरी 2003 में सम्पन्न हआ है. यहाँ पर स्थित प्राचीन मन्दिर में इसी स्थान पर जमीन में से निकली भगवान महावीरस्वामी आदि प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा योगनिष्ठ आचार्य श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरजी महाराज के कर कमलों से हुई थी. 108 फूट उत्तुंग नवीन मुख्य मन्दिर स्थापत्य एवं शिल्प दोनों ही दृष्टि से दर्शनीय है. इसमें 135 इंच के परिकर युक्त भगवान महावीर की 81 इंच की 16 टन वजन की भव्य धातु प्रतिमा प्रतिष्ठित की गई है. यहाँ पर पश्चिम बंगाल के जगत शेठ के द्वारा निर्मित जैनसंघ की ऐतिहासिक विरासतरूप कसौटी पत्थर की देवकुलिका की पुनर्स्थापन भी की गई है, तो दूसरी तरफ दर्शनीय समवशरण जिनालय है. मुख्य मंदिर के तलघर में प्रभु महावीर के जीवन को प्रदर्शित करती मनोरम्य झाँकियाँ बनाई गई है. निस्संदेह इससे तीर्थ की शोभा में अभिवृद्धि हो रही है . यहाँ यात्रियों की सुविधा हेतु आधुनिक सुविधायुक्त धर्मशाला एवं भोजनशाला का भी निर्माण किया गया है. Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञानतीर्थ : आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर : करीब 450 वर्ष प्राचीन स्फटिकरत्न की प्रभु पार्श्वनाथ की प्रतिमा से सुशोभित रत्नमंदिर से युक्त आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र की आत्मा है. यह स्वयं अपने आप में एक विशाल संस्था है. वर्तमान में ज्ञानमंदिर के अन्तर्गत निम्नलिखित विभाग कार्यरत हैं : देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भांडागार : यहाँ लगभग 2,00,000 से अधिक प्राचीन दुर्लभ हस्तलिखित शास्त्र -ग्रंथ संगृहीत हैं. इनमें आगम, न्याय, दर्शन, योग, व्याकरण, इतिहास आदि विषयों से सम्बन्धित अद्भुत ज्ञान का सागर है. इस भांडागार में 3000 से अधिक प्राचीन व अमूल्य ताड़पत्रीय ग्रंथ विशिष्ट रूप से संगृहीत हैं. इतना विशाल संग्रह किसी भी ज्ञानभंडार के लिये गौरव का विषय हो सकता है. आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी ने अपनी भारत-भर की पदयात्रा के दौरान छोटे-छोटे गाँवों में असुरक्षित, उपेक्षित एवं नष्ट हो रही भारतीय संस्कृति के इस अनुपम धरोहर को लोगों को प्रेरित कर संगृहीत करवाई है. इनमें अनेक हस्तलिखित ग्रंथ सुवर्ण व रजत से आलेखित हैं तथा सैकड़ों सचित्र हैं. यहाँ इन बहमूल्य कृतियों को विशेष रूप से बने ऋतुजन्य दोषों से मुक्त कक्षों में पारम्परिक ढंग से विशिष्ट प्रकार की काष्ट-मंजूषाओं में संरक्षित किया गया है. क्षतिग्रस्त प्रतियों को रासायनिक प्रक्रिया से सुरक्षित करने का बृहद् कार्य किया जा रहा है. महत्वपूर्ण ग्रन्थों के माइक्रोफिल्म, कम्प्यूटर स्कैनिंग आदि भी करने का कार्य चल रहा हे. आर्य सुधर्मास्वामी श्रुतागार : ___ ज्ञानमंदिर में भूतल पर विद्वानों, संशोधकों, वाचकों आदि हेतु कक्ष/उपकक्ष सहित पाठकों के लिए अध्ययन की सुन्दर व्यवस्था युक्त यह ग्रंथालय है. यहाँ लगभग 1,35,000 से अधिक मुद्रित प्रतें एवं पुस्तकें संगृहीत हैं. ग्रंथालय में भारतीय संस्कृति, सभ्यता, धर्म एवं दर्शन के अतिरिक्ति विशेष रूप में जैनधर्म व प्राच्यविद्या से सम्बन्धित सामग्री सर्वाधिक हैं. संशोधन-अनुसंधान की इस सामग्री को इतना अधिक समृद्ध किया जा रहा है कि कोई भी जिज्ञासु यहाँ आकर जैनधर्म व प्राच्यविद्या से सम्बन्धित अपनी जिज्ञासा अवश्य ही पूर्ण कर सके. आर्यरक्षितसूरि शोधसागर : ज्ञानमंदिर में संगृहीत हस्तलिखित ग्रंथों तथा मुद्रित पुस्तकों की व्यवस्था करना एक बहुत ही जटिल कार्य है. लेकिन वाचकों को वांछित ग्रंथ सरलता से उपलब्ध हो सके इसके लिये कम्प्यूटर आधारित बहुउद्देशीय श्रुत अनुसंधान केन्द्र , ज्ञानमंदिर के द्वितीय तल पर कार्यरत है. ग्रंथालय सेवा में कम्प्यूटर का महत्त्व वर्तमान समय में अत्यंत आवश्यक हो गया है. हस्तलिखित व मुद्रित ग्रंथों, उनमें समाविष्ट कृतियों तथा पत्र-पत्रिकाओं का विशद सूची-पत्र एवं विस्तृत सूचनाएँ अपने आप में अनोखी पद्धति से विश्व में प्रथम बार कम्प्यूटराइज़ की जा रही है. इसके परिणाम स्वरूप प्रकाशन, कृति, कर्ता, संपादक, प्रकाशक, प्रकाशन वर्ष, ग्रंथमाला, कृति के आदि व अंतिम वाक्यों, रचना स्थल, रचना वर्ष आदि से संबद्ध किसी की भी कम से कम दो अक्षरों की जानकारी होने पर इनसे परस्पर संबद्ध अन्य विवरणों की विस्तृत सूचनाएँ बहुत ही सुगमता से उपलब्ध होते देख विद्वद्वर्ग आश्चर्यचकित रह जाते हैं. Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विद्वानों एवं संशोधकों की सुविधा हेतु मैगजिन पेटांक की प्रविष्टि, कृति विषयांकन, चित्र पेटांक आदि कार्यों की योजनाएँ बनाई गयी हैं. इस कार्य के पूर्ण हो जाने से विद्वानों को उनकी वांछित सामग्री शीघ्रता से प्राप्त करने में काफी सहयोग मिलेगा. प्राचीन महत्त्वपूर्ण ग्रंथों को स्कैनिंग कर डी. वी. डी. तैयार करने का कार्य भी किया जा रहा है ताकी आने वाली पीढ़ी को भी उन ग्रंथों के अध्ययन-मनन का लाभ प्राप्त हो सके. वाचक सेवा : इस ज्ञानभंडार की मुख्य विशेषता यह है कि जो कहीं न मिले वैसी दुर्लभ पुस्तकें भी सहजता पूर्वक प्राप्त हो जाती है. अध्ययन स्वाध्याय के लिये उपयोगी अधिकांश पुस्तकों की अनेक प्रतियाँ यहाँ से वाचकों को उपलब्ध कराई जाती हैं. इस ज्ञानभंडार में स्वविकसित कम्प्यूटर प्रोग्राम की विशेषता यह है कि इसके द्वारा पुस्तकों की इतनी सूक्ष्मतम् माहिती भरी जाती है कि वाचक के पास यदि थोडी सी भी जानकारी हो तो उनकी वांछित पुस्तक शीघ्र उपलब्ध कराई जाती है. इससे वाचकों का समय बचता है. श्रुत अनुसंधान के लिये प्राचीन एवं नवीन पत्रिकाओं की सूक्ष्मतम माहिती भरने का कार्य, कृति विषयांकन जैसे की-वर्ड, की-सेन्टेंशिंग आदि भरने का कार्य शुरु किया जाएगा. इस प्रकार के विलक्षण कार्यों से वाचकों की सेवा में उल्लेखनीय सुधार होगा. जैसे वाचकों को अपनी आवश्यक विषय के अतिरिक्त अन्य पुस्तकों को देखने की जरुरत नहीं पड़े तथा उनकी आवश्यकता की पुस्तकें शीघ्रता पूर्वक दी जा सकेगी. जैन शिल्प स्थापत्य की सरलता से पहचान की जा सके तथा अन्य उपयोगी चित्रों की विगत शीघ्रता से प्राप्त की जा सके इसलिये चित्र पेटांक प्रोजेक्ट का कार्य प्रारम्भ करने की योजना है. इस प्रोजेक्ट के अंतर्गत ग्रंथों में उपलब्ध चित्रों की माहिती विषयांकन पद्धति से भरे जाएंगे जिससे कोई भी तीर्थ, भगवान के चित्र, जैन स्थापत्य आदि की जानकारी क्षणभर में उपलब्ध कराई जा सकेगी. अपना यह ज्ञानभंडार कम्प्यूटर जैसे आधुनिक संसाधनों से सुसज्ज होने से वाचकों को अपेक्षित सामग्री उपलब्ध करवाने में शीघ्रता पूर्वक सेवा दे रही है. जो कोई ग्रंथ कहीं भी न मिले वह ग्रंथ कोबा के भंडार में अवश्य ही मिलेगा ऐसी धारणा आज कोबा भंडार की विशिष्टता है. आने वाले वाचकों के द्वारा मांगी गई पुस्तक अल्पावधि में ही थोड़ी औपचारिकत के पश्चात् शीघ्रता से पढ़ने हेतु मिल जाती है, अन्यत्र ऐसी सुविधा भाग्य से ही कहीं देखने को मिले. ऐसी एवं इस प्रकार की अनेक विशेषताएँ अपने ज्ञानभंडार के विषय में लोकप्रचलित है. दर्शकों एवं विद्वानों ने यहाँ की व्यवस्था की भूरी-भूरी प्रशंसा की है तथा सुचारु एवं चिरकाल तक हस्तप्रतों को संरक्षित करने की व्यवस्था से प्रभावित होकर अनेक जैन संघों ने अपने यहाँ बंद पड़े ज्ञानभंडार एवं कई लोगों ने अपने व्यक्तिगत संग्रहों को यहाँ पर भेंट में दिया है. ज्ञानमंदिर के अन्तर्गत निम्नलिखित परिजोयनाओं का कार्य प्रगति पर है : (1) समग्र उपलब्ध जैन साहित्य की विस्तृत सूची तैयार करना. इसके तहत (क) समग्र हस्तलिखित जैन साहित्य का विस्तृत सूचीपत्र बनाना. (ख) समग्र मुद्रित जैन साहित्य का कोष बनाना. (ग) Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राचीन अर्वाचीन जैन श्रमण व गृहस्थ विद्वानों की परम्परा व उनके व्यक्तित्व-कृतित्त्व की जानकारी को संगृहीत करना. (घ) अप्रकाशित जैन साहित्य का सूचीपत्र बनाना. (2) अप्रकाशित व अशुद्ध प्रकाशित जैन साहित्य को संशुद्ध बनाकर प्रकाशित करना. (3) प्राचीन जीर्ण-शीर्ण, क्षतिग्रस्त एवं संस्था में अनुपलब्ध दुर्लभ पाण्डुलिपियों, महत्त्वपूर्ण हस्तप्रतों एवं संस्था में अनुपलब्ध प्रकाशनों का जेरोक्स, माईक्रोफिल्मिंग तथा कम्प्यूटर स्कैनिंग आदि के माध्यम से संशोधन के लिए उपलब्ध कराना. (4) जैन हस्तप्रत व मुद्रित पुस्तकालय व्यवस्थापन, प्राचीन लिपि पठन-पाठन का शिक्षण तथा समय समय पर कार्य-शिविरों, व्याख्यान आदि अनेकाविध प्रवृत्तियाँ करना. (5) प्रकाशन : हस्तलिखित ग्रंथों की सूची प्रकाशन योजना के तहत कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची हस्तलिखित जैन साहित्य खंड 1 से 7 तक का प्रकाशन हो गया है. इसी प्रकार क्रमशः 50 से ज्यादा खंडों में हस्तप्रतों से संबद्ध अलग-अलग प्रकार की सूचियाँ प्रकाशित करने हेतु कार्य जारी है. गुरुदेव आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी के प्रवचन व अन्य उपयोगी साहित्य का प्रकाशन समयसमय पर किये जा रहे हैं. आचार्य श्री भद्रगुप्तसूरिजी (प्रियदर्शन) के श्रेष्ठ साहित्य को शुद्धतापूर्वक पुनः प्रकाशन करने की शृंखला में अभी तक 20 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं तथा निकट भविष्य में अन्य पुस्तकें भी प्रकाशित करने का आयोजन किया जा रहा है. अहमदाबाद नगर में ज्ञानमन्दिर की शाखा : अहमदाबाद के जैन बहुल क्षेत्र पालड़ी विस्तार में आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर की कम्प्यूटर सेवा से सुसज्ज शाखा में स्थानीय वाचकों की सुविधा हेतु कोबा स्थित ज्ञानमंदिर की सभी सूचनाएँ सुगमता से प्राप्त होती हैं. यहाँ से पुस्तकों के आदान-प्रदान तथा जनसंपर्क का कार्य भी होता कलातीर्थ : सम्राट सम्प्रति संग्रहालय : ज्ञानमंदिर में प्रथम तल पर यह अवस्थित है. पुरातत्त्व-अध्येताओं और जिज्ञासु दर्शकों के लिए प्राचीन भारतीय शिल्प व कला परम्परा का गौरवमय दर्शन इस स्थल पर होते हैं. पाषाण व धातु मूर्तियों, ताड़पत्र व कागज पर चित्रित पाण्डुलिपियों, लघुचित्र, पट्ट, विज्ञप्तिपत्र, काष्ट आदि से बनी प्राचीन एवं अर्वाचीन अद्वितीय कलाकृतियों तथा अन्यान्य पुरावस्तुओं को बहुत ही प्रभावोत्पादक ढंग से धार्मिक व सांस्कृतिक गौरव के अनुरुप यहाँ पर प्रदर्शित किया गया है. इस संग्रहालय का विशिष्ट आकर्षण परमार्हत कुमारपाल खंड है, जहाँ विशेष रुप से जैन श्रुत की श्रवण परम्परा से प्रारम्भ कर शिला, ताम्रपत्र, भूर्जपत्र, ताड़पत्र तदनन्तर हाथ से बने कागज पर लेखन कला के विकास की यात्रा दर्शाई गई है, जिसे देख कर हमें अपने पूर्वजों द्वारा उपलब्ध किये गये आध्यात्मिक उत्कर्ष, सांस्कृतिक गौरव एवं कला की श्रेष्ठता के दर्शन होते हैं. संग्रहालय को और भी समृद्ध करने के प्रयास किए जा रहे हैं. संग्रहालय शीध्र ही नूतन भवन में स्थानान्तरित किया जाएगा. यहाँ समय-समय पर विशिष्ट प्रदर्शन भी आयोजित किये जाते हैं. Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रुत सरिता : कोबा तीर्थ में आने वाले दर्शनार्थियों एवं ज्ञान-पिपासुओं को यहाँ जैन धार्मिक व वैराग्यवर्द्धक साहित्य, आराधना सामग्री, धार्मिक उपकरण, सी. डी. कैसेट्स आदि उचित मूल्य पर उपलब्ध कराई जाती है। यहीं पर एस. टी. डी. एवं आई. एस. डी. टेलिफोन बूथ भी कार्यरत है. नम्र निवेदन : श्रीसंघ व समाज के विशिष्ट कार्यों हेतु संस्था के निरंतर विकास की विभिन्न परियोजनाओं के लिए आपका तन-मन-धन से सहयोग अपेक्षित है. श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र (रजि. नं. ए /2659, अहमदाबाद) को दिया अनुदान आयकर अधिनियम 80जी के अन्तर्गत कर मुक्ति का अधिकार रखता सम्पर्क सूत्र श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा, गांधीनगर 382007 गुजरात (भारत) Shi Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba, Gandhinagar-382007 (INDIA) Phone : 91-79-23276204,23276205, 23276252, 32927001 Fax : 91-79-23276249 E-mail : Kendra@kobatirth.org, gyanmandir@kobatirth.org Website : www.kobatirth.org