Book Title: Ketlak Bhasha Geeto
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan
Catalog link: https://jainqq.org/explore/229682/1

JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ केटलांक भाषागीतो - सं. विजयशीलचन्द्रसूरि व्रज भाषा - मिश्रित हिन्दीमां प्रभुभक्तिनां पदो अने गीतो, मध्यकालमां, जैन कविओए पण विपुल प्रमाणमां रच्यां छे. एवां थोडांक गीतो अत्रे प्रस्तुत छे. 'बिनयचंद' नामना (संभवत: गृहस्थ ) कविए रचेलां आ गीतो वर्षो पूर्वे कोई प्रकीर्ण पानां परथी उतारी लीलां. ते पानां आजे तो हाथवगां नथी, एटले पुनः वाचन के सुधारानो अवकाश नथी. गीतोनो क्रमांक आम गोठव्यो छे : १. अजारा पार्श्वनाथगीत, २ . नवपल्लवपार्श्वजिनगीत ( मांगलोर - मांगरोळ), ३. गिरनारमंडन नेमनाथगीत, ४ . ऊनामंडन नेमनाथगीत, ५. गच्छनायक श्रीविजयसेनसूरिगीत, ६. गच्छपति श्री विजयदेवसूरिंगीत. छेल्लां बे गीतोना आधारे, बिनयचंद, सत्तरमा शतकमां थया होवानुं मानी शकाय खरं. 'गुजराती साहित्यकोश' मां (पृ. ४०८) पांच विनयचंद्रनो उल्लेख थयो छे, परंतु मारी धारणा एवी छे के आ विनयचंद ते बधा करतां जुदा ज होवा जोईए. १ श्रीअजारा पार्श्वनाथ गीत रागः गूजरी ॥ पूजउ जीठ पारसनाथ दयार मन बच काय करी सुद्ध मेरे छ्योरी चितजंजार पू० १ भीषन घनघोर बोर जर जिसइ बरषती मूसरधार फुनि फनि फार धरी शिर उपरि ज्यानि छत्राकार पू० २ एक भगति एक दरद देखावत कमठइंद अहि सार बिनयचंद प्रभु पास अझारो सकल जंतु सुखकार पू० ३ इति गीतं समाप्तम् ॥ Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान - १५ • 91 २ मंगलपुर मंडन श्रीनवपल्लवपार्श्वनाथ गीत गीत ॥ रागः भयरव ॥ पूजउ पासजिनेसर देव नवपल्लव नित करीइ सेव नदीअ निवाण समुंद्र सवि नीर, न्हवण करु नवपल्लव सरीर १ पू० दीप सवे चंगेरी करी अढार भाव (र) वनफूलि भरी तरुवर जाति जगतमाहि जेह बावनचंदन कीजइ तेह सुरगिरि शैल अवर सम रूप अगर कपूर कस्तूरी धूप कोडि इंद्र मिली पूजइ सार, तुहि भगति अणुआइ लगार मंगलपुरमंडन जिन पास नवपल्लव नित नमु उल्लास भावसहीत जे पूजा करइ बिनयचंद भवसायर तरइ ३ गिरिनार मंडन श्रीनेमनाथ गीत राग : कनडु कल्याण ॥ २ पू० ३ पू० कागद कहु धुंकई सिकरी लषीइ लिखतई ए कागति न पाउं किनुं आगई दुख भषीइ १ कागद० कहा करूं लेख लखी आलोरुं मुखि नीसासा नीकलीइ as नीसासा फाससु आवइ कोर बिलोनुं जिलीइ २ कागद० फूनि लेखनको धरूं मनि आसा तउ मुख मूंद न खलीइ नयनां भरि भरि आंजू आवइ कागद छरु गिल भलीइ ३ कागद० ओरां पासइ ज्याई लखाउं मेरा दुख सुनीवइ दुख पावइ कुहेतिउं ओ होई यावइ ( ? ) उनका दुख किउं बलीइ ४ कागद० बिरह अनि हूं ज्याई बुझाउं गिरिनारिकं चिलीइ बिनयचंद प्रभु बिरह निवारी नेम राजीमति मिलीइ ५ कागद० || इति गीतं ॥ ४ पू० Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान - १५•92 ४ ऊनामंडन श्रीनेमीनाथ गीत राग : कनडु ॥ समुद्रविजइ सुत नयनइ देखे प्रीति पाई जिऊं चंद चकोर उन्नतपुरमि उन्नई आए शामघट घट जिउं घनमोर १ समुद्र० सिव... नयनि राजुल खरी लारि पशुअ पुकार करति तिउं सोर नेमकुमर रथ फेरि सिद्धारे दुःख पावती राजुल अति घोर २ समुद्र० बाउरी भईअ सुनत नही श्रवनि चाहति नेम चकित चिहुं और जित तित पूछती पीउं कित पाउं कोऊ बताओ नेमकी ठोर ३ समुद्र० गई गिरिनारी राजुल चित प्यारो नेमकुं पाय परत करज्योर कहइ बिनइचंद उन्नतपुर स्वामी नेम आगइ शिवपुर गई दोरि ४ समुद्र० गच्छनायक श्रीविजयसेनसूरिंगीत राग : गूजरी ॥ वंदउ श्रीविजयसेनसूरिराय जस पद पंकज भविजन - मधुकर अमृत बचन पीत आय वंदउ० अकबर भूप महामति सुंदर धरम करत चित्त लाय गुरु उपदेस सुणिउ जब तेरो छ्योरे पंखी सब गाय वंदउ० खान मिलक ऊबरे मिली आवत लागत गुरुके पाय गुरु मुखचंद देख्यो जब तेरो भवि चकोर सुख पाय वंदउ० साह कमा- कोडाईनंदन नरनारी गुण गाय बिनयचंद प्रभु विजयसेनसूरी चिहुं खंडि आन फिराय वंदउ० ४ Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसंधान-१५ . 93 गच्छपति श्रीविजयदेवसूरिंगीत राग : सारिंग मल्हार // अब मि पायोरी परम पटोधर श्रीविजइसेनकु श्रीश्रीश्री विजइदेवसूरीसर सुर नर के मनि भायोरी 1 परम० ढुंढत ढुंढत सब गछ देखे तुं मेरे चित्त आयो तप तप तपइ तेज तनुं रविकु तिनथई तुंहि सवायो री 2 परम० अंजन खंजन मीनमृग लोचनी मोतिन चठक बनायो कोकिल कंठि मयूर मधुरस्वरि श्रीतपगछ गुन गायो री 3 परम० ओशवंश अवतंस थिरासुत मात रूपाई जायो बिनइचंद सेवक के साहिब त्रिभुवनि तिला(क) सुहायो री 4 परम०