Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 12
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास पथसूची जैन हस्तलिखित साहित्य (खंड-१.१.१२) KAILĀSA ŚRUTĀSAGARA GRANTHASUCI Descriptive Catalogue of Jain Manuscripts (Vol-1.1.12) हममाण। बुदाणावादावामा बदारमणामवमा वादमखराता नामाकाण्ड यश्री वशदावार ਟਰ आचार्य श्री कैलासरसागरसारि ज्ञानामांदिर में कोबा तीर्थता For Private and Personal Use Only कायानरमतारनपान सत्राग्राष्टा प Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न १२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची (१.१.१२) श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ संचालित आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागार में संगृहीत हस्तलिखित ग्रंथों की विस्तृत सूची आशीर्वाद व प्रेरणा 6 आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी सतत वि के प्रकाशक 6 श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ, गांधीनगर वीर सं. २५३८ ० वि.सं. २०६८ ० ई. २०१२ For Private and Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न १२ Ācārya Śhri Kailāsasāgarasūi Smrti Granthasūci - Ratna 12 कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची : १.१.१२ Kailāsa Śrutasāgara Granthasūci: 1.1.12 ० ग्रंथसूची निर्देशन समिति ० मुकेश एन. शाह (ट्रस्टी) श्रीपाल आर. शाह (ट्रस्टी) रजनीभाई एन. शाह (कारोबारी सदस्य) कनुभाई एल. शाह (नियामक) ० संपादक मंडल ० पं. नवीनभाई वी. जैन पं. संजयकुमार आर. झा ०सह संपादक० ० संपादन सहयोग ० पं. रामप्रकाश झा डॉ. हेमंत कुमार पं. अरुण कुमार झा परबत ठाकोर ब्रिजेश पटेल संजय गुर्जर दिलावरसिंह विहोल ० कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग ० केतन डी. शाह For Private and Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न १२ श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ संचालित आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर स्थित देवद्विगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागारस्थ हस्तलिखितग्रंथानां विस्तृतसूची विभाग - १ : हस्तप्रत सूची खंड - १२ वर्ग १ : जैन साहित्य - आशीर्वाद व प्रेरणा आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी Descriptive Catalogue of Manuscripts Preserved in Devarddhigani Kṣamāśramaṇa Hastaprata Bhāṇḍāgāra, Acharya Shri Kailasasagarsuri Gyanmandir under the auspices of Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth Section - I : Manuscripts' Catalogue Class - I : Jain Literature Volume - 12 Blessings & Inspiration Acharya Shri Padmasagarsurishwarji Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Published by Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth, Gandhinagar, India 2012 For Private and Personal Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailasasagarsuri Memorial Catalogue Series - 12 Kailasa Śrutasägara Granthasūci Descriptive Catalogue of Manuscripts-1.1.12 www.kobatirth.org Dēvarddhigani Kṣamāśramaṇa Hastaprata Bhāṇḍāgāra, Acharya Shri Kailasasagarsuri Gyanmandir © Copy rights: Reserved by Publisher o Vir Samvat 2538, Vikram Samvat 2068, A.D. 2012 Preserved in o Edition : First • प्रकाशन सौजन्य : श्री सांताक्रुज़ जैन श्वेताम्बर मूर्ति पूजक जैन संघ, मुंबई © Published by : Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra © Available at : Shruta Sarita Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth © Printed by : Navprabhat Printing Press, Ahmedabad ISBN: 81-89177-00-1 (Set) Koba Tirth, Gandhinagar 382007. INDIA Tel: (079) 23276204, 23276205, 23276252, 30927001 Fax: 23276249 Web site: www.kobatirth.org Email: gyanmandir@kobatirth.org © Price: Rs. 1500/ 978-81-89177-43-0 (Vol. 12) * उपलक्ष श्रुतोद्धारक आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. की पावन निश्रा में आयोजित श्री गोडीजी पार्श्वनाथ जिनालय के द्वि-शताब्दी महोत्सव Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir के पुनीत प्रसंग पर वि. सं. २०६८, वैशाख कृष्णपक्ष, अमावस्या, शनिवार, दि. २१-४-२०१२ श्रीगोडीजी महाराज जैन टेम्पल एन्ड चेरीटीज़, १२, पायधुनी, विजयवल्लभ चौक, मुंबई - ४००००३ For Private and Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir योगनिष्ठ आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरीश्वरजी आचार्य श्री कीर्तिसागरसूरीश्वरजी गच्छाधिपति आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी आचार्य श्री कल्याणसागरसूरीश्वरजी आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी For Private and Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org || अर्हम् नमः || * मंगल कामना ; तीर्थंकरों की वाणी में सरस्वती का निवास है. श्री तीर्थंकर परमात्मा के श्रीमुख से निकली वाणी, जिसे गणधर भगवंतों ने सूत्ररूप में गुंफित किया है ऐसे जिनागम की परंपरा को वाचना के द्वारा आज तक अविच्छिन्न रखनेवाले सभी आचार्य भगवंतों को वंदन. जिनागम को समर्पित नियुक्तिकार - भाष्यकार - चूर्णिकार - टीकाकार एवं ग्रंथों के प्रतिलेखक आदि श्रमण समूह का भी मैं ऋण स्वीकृतिपूर्वक पुण्य स्मरण करता हूँ. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनेक जैन संघों, श्रेष्ठियों तथा यतिवर्ग ने आज तक जैन साहित्य का संग्रह-संरक्षण करके अनुमोदनीय कार्य किया है, वे सभी धन्यवाद के पात्र हैं. समय परिवर्तन के साथ परिस्थितिवश लोगों का गाँवों से शहर की ओर जाना प्रारंभ हुआ. यतिवर्ग भी लुप्तप्राय हुए. इन सभी कारणों से ग्रन्थभंडारों की स्थिति चिंतनीय बन गई. बहुत-से ग्रन्थ विदेश जाने लगे, कुछ भंडार लोगों की उपेक्षा से नष्टप्राय होने लगे, ग्रन्थों की सुरक्षा भी एक समस्या बन गई. इन सब बातों को देखकर, सर्वप्रथम सन् १९७४ में, अहमदाबाद के चातुर्मास दौरान, ग्रन्थ भंडारों को सुव्यवस्थित करने का मुझे विचार आया. परम श्रद्धेय आचार्य भगवंत श्रीमद् कैलाससागरसूरीश्वरजी म.सा. से इस विषय में चर्चा करके, उनके मंगल आशीर्वाद से कार्य प्रारंभ करने का संकल्प किया. श्रेष्ठीवर्य स्व. कस्तुरभाई लालभाई आदि ने भी इस कार्य में सहयोग देने की भावना दर्शाई सन् १९७९ में श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र के नाम से, कोबा में संस्था की स्थापना हुई. अनेक स्थानों व विविध प्रान्तों में विहार करके ग्रन्थों को संग्रह करने का कार्य प्रारंभ हुआ और धीरेधीरे संग्रह समृद्ध बनता गया. आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर आज भारत का एक सुव्यवस्थित समृद्ध ज्ञानभंडार है. प्राचीन प्रणाली को कायम रखते हुए भी इस ज्ञानमंदिर में आधुनिक साधनों का सुभग समन्वय हुआ है. ज्ञानभंडार को व्यवस्थित करने के साथ-साथ इस सूची में समाविष्ट अधिकांश ग्रंथों की मूलसूची बनाने का भगीरथ कार्य हमारे मुनि श्री निर्वाणसागरजी ने किया है, जिनका आकस्मिक व अतिदुःखद कालधर्म गतवर्ष जेठ वद-२, ता. १७६-२०११, शुक्रवार को हो गया. उन्होंने अत्यंत समर्पित भाव से यह कार्य किया है तथा इस कार्य के लिए योग्य मार्गदर्शन देकर पंन्यास श्री अजयसागरजी ने जो सहयोग दिया है, वह कभी भुलाया नहीं जा सकता. अन्य मुनिराजों ने भी जो यथायोग्य बहुमूल्य सहयोग दिया है, उन सबको मैं हार्दिक अनुमोदना करता हूँ. ज्ञानमंदिर के निदेशक श्री कनुभाई शाह की देखरेख में पंडितवर्ग ने जिस सूझ व धैर्य के साथ अस्तव्यस्त हस्तप्रतों को व्यवस्थित करने एवं प्रतों के बारीक अध्ययनपूर्वक अतिविवरणात्मक सूचीकरण के इस कार्य को अंतिम रूप दिया है वह अपने आप में अनूठा व इतिहाससर्जक है. श्री नवीनभाई जैन, श्री संजयकुमार झा, श्री रामप्रकाश झा, डॉ. हेमंत कुमार, श्री अरुण कुमार झा आदि सभी पंडितवरों, प्रोग्रामर श्री केतनभाई शाह एवं सभी सहयोगी कार्यकर्ताओं को मेरा हार्दिक धन्यवाद है. ज्ञानमंदिर का कार्य सम्भालने वाले संस्था के ट्रस्टी श्री मुकेशभाई एन. शाह, श्री श्रीपालभाई आर. शाह एवं कारोबारी सदस्य श्री रजनीभाई एन. शाह आदि सभी को उनकी बहुमूल्य सेवाओं के लिए हार्दिक आशीर्वाद देता हूँ. अनेक श्रीसंघों, व्यक्तियों और जैन - जैनेतर लोगों ने भी इस कार्य में मुझे पूर्ण सहयोग दिया है, जिन्हें मैं धन्यवाद देता हूँ. ग्रन्थों के संरक्षण, सूचीकरण व प्रस्तुत द्वादशम खंड के प्रकाशन में आर्थिक सहयोग प्रदान करनेवाले श्री सांताकुल जैन श्वेताम्बर मूर्ति पूजक जैन संघ, मुंबई एवं समस्त ट्रस्टीगण के प्रति भी धन्यवाद देता हूँ.. परम गुरुभक्त श्री रविचंदजी बोथरा के सुपुत्र श्री वीरचंदजी बोथरा एवं श्री अजितचंदजी बोथरा परिवार का उदार सहयोग प्रस्तुत चार खंडों हेतु प्राप्त हुआ है, यह कार्य बहुत ही अनुमोदनीय एवं प्रशंसनीय है. बड़ी संख्या में पूज्य साधु-साध्वीजी तथा विद्वान - शोधकर्ताओं द्वारा यहाँ के ग्रंथसंग्रह का सुंदर लाभ लिया जा रहा है, जो बड़ी ही प्रसन्नता का विषय है. इस ज्ञानभंडार के हस्तप्रतों की अपने-आप में विशिष्ट प्रकार की कैलास श्रुतसागर ग्रन्थसूची के खंड ९ से १२ प्रकाशित होने जा रहे हैं, यह ज्ञानमंदिर के कार्य की सफलता का एक नया सोपान है. पद्मसागर यूटि मुझे विश्वास है कि विश्वभर के विद्वद्वर्ग इस ग्रंथसूची से महत्तम लाभान्वित होंगे. संस्था अपने विकास पथ पर उत्तरोत्तर आगे बढ़ती रहे, यही मेरी मंगल कामना है. For Private and Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सादर समर्पण - कल्याणस्वरूप तीर्थंकरों द्वारा स्थापित श्रमणप्रधान चतुर्विध श्रीसंघ के कर कमलों में... जिनकी बदौलत यह श्रुत परंपरा अक्षुण्ण रही. ००० मूक व समर्पित, अतिविरल श्रुतसेवक तपस्वी मुनिप्रवर श्री निर्वाणसागरजी म. सा. के चरणों में... जिनके अथक परिश्रम एवं कुशल मार्गदर्शन के फलस्वरूप यह ग्रंथसूची साकार हो सकी. For Private and Personal Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org श्रुतोपासक तपस्वी मुनि श्री निर्वाणसागरजी म. सा. का परिचय तारक तीर्थकर परमात्मा श्रीमहावीरस्वामी की यशस्वी पाटपरंपरा में सुप्रसिद्ध योगनिष्ठ आचार्य श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरजी महाराज की शिष्य परंपरा में श्रुतोद्धारक राष्ट्रसंत आचार्यदेव श्री पदमसागरसूरीश्वरजी महाराज के पट्टधर स्व. उपाध्यायजी श्री धरणेन्द्रसागरजी महाराज के शिष्यरत्न तपस्वी मुनि श्री निर्वाणसागरजी महाराज का चरित्र वर्तमान काल में एक सच्चे निर्विकारी व सन्निष्ठ साधु के रूप में सर्वविदित है. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आपश्री का जन्म दिनांक २२/९/१९५२ के दिन गुडा-बालोतान (राजस्थान) में माता स्व. सोनीबाई की कुक्षि से पिताश्री लालचंदजी हीराचंदजी जैन के परिवार में हुआ था. आपका सांसारिक नाम पारसमलजी था. आप बी. एस-सी. तक की लौकिक शिक्षा प्राप्त कर बेल्लारी (कर्नाटक) में चल रहे पिताश्री के व्यापार में सहयोगी के रूप में प्रवृत हो गये. श्रीसंघ में गुरुमहाराज श्रीपद्मसागरसूरीश्वरजी की निश्रा में आयोजित उपधान तप की आराधना में शामिल होकर पूज्य आचार्यश्री के परिचय में आए. इसी अवधि में आपश्री धर्माभिमुख हुए और मानवजीवन की सफलता प्रव्रज्याधर्म में ही जानकर विक्रम संवत २०३७ फाल्गुण शुक्ल सप्तमी के दिन बेल्लारी में पूज्य गुरुदेव की निश्रा में दीक्षित होकर पूज्य उपाध्याय श्रीधरणेन्द्रसागरजी के शिष्य के रूप में मुनिश्री निर्वाणसागरजी जैसे लोकप्रिय नाम से अपना संयम जीवन प्रारम्भ किया. दीक्षा के प्रथम दिन से ही अप्रमत्त भाव से संयमयात्रा शुरु कर अन्तिम दिन तक प्रभु-आज्ञामय संयम जीवन व्यतीत किया. वे नित्य एकासणा अथवा आयंबिल तप किया करते थे. कभी भी खुले मुंह आहार ग्रहण नहीं किया. साथ ही २०-२० घन्टों तक सतत प्रवृत्तिशील रहते थे. बाह्य तप के साथ-साथ स्वाध्याय तथा वैयावच्च उनके जीवन के खास पर्याय बन चुके थे. ३० वर्षों के दीक्षापर्याय में उन्होंने जिस प्रकार श्रुतज्ञान की आराधना की है, वह अद्भुत है. जोधपुर निवासी विरल श्रुतसेवक श्री जौहरीमलजी पारेख को आचार्य श्रीकैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर में स्थित विशाल हस्तप्रत संग्रह के सूचीकरण के प्रारम्भिक कार्य में उन्होंने हस्तप्रत के पत्र गिनने व आवरण चढ़ाने रूप सहयोग प्रदान किया और आगे जाकर श्रुतभक्ति के आदर्श के रूप में उन्होंने ६०,००० से अधिक हस्तप्रतों की विस्तृत सूचनाएँ १,००,००० फॉर्म में भरकर अपना अभूतपूर्व योगदान दिया है. अपने आप में विलक्षण ऐसे प्रत-दशा संकेत, विशेषता संकेत व प्रतिलेखन पुष्पिका श्लोकों का संकलन आदि सारगर्भित सूचनाएँ उनकी सूक्ष्मदर्शिता का परिचायक है. इतना ही नहीं, बल्कि आज ज्ञानमंदिर की अधिकांश हस्तप्रतों के आवरण पर लिखी गई प्रत नामादि संक्षिप्त सूचनाएँ उन्हीं की देन है. छोटी से छोटी सामान्यता व्यर्थ लगनेवाली अनुपयोगी वस्तुओं को भी उपयोग में लाना उनकी कार्यकुशलता का विशिष्ट परिचायक था. वीरविजयजी उपाश्रय, अहमदाबाद में स्थित ऐतिहासिक ज्ञानभण्डार में संगृहीत हस्तप्रतों की सूची स्वयं अकेले तैयार कर उन्होंने श्रुतज्ञान के प्रति समर्पण भाव का और एक परिचय दिया. पूज्यश्री ने वर्त्तमान समय की आवश्यकता को ध्यान में रखकर सर्वप्रथम रोमन लिपि में डायाक्रेटिक चिह्नों से युक्त दो प्रतिक्रमणसूत्र व पंचप्रतिक्रमणसूत्र हिन्दी शब्दार्थ, गाथार्थ तथा भावार्थ के साथ प्रकाशित कराके लोकोपयोगी बनाया. जिसे विश्वभर के श्रीसंघों द्वारा खूब आदर प्राप्त हुआ. इन दोनों पुस्तकों की प्रथम आवृत्ति हेतु पूज्यश्री ने महीनों तक दिन-रात मेहनत कर प्रत्येक अक्षर पर डायाक्रेटिक मार्क स्वयं चिपकाए थे. श्रुतभक्ति के जीवंत चमत्कार भी पूज्यश्री के जीवन में देखने को मिलते हैं. पूज्यश्री की सूत्रों की धारणा शक्ति प्रारंभ में कमजोर थी. मेहनत करने पर भी सूत्रों को पुनः पुनः भूल जाते थे. इसी कारण वे संस्कृत, प्राकृत भाषाओं का अध्ययन भी नहीं कर पाए थे. श्रुतभक्ति का खूब ही प्रभाव था कि बाद में बड़े-बड़े सूत्र भी उनको सरलता से याद रहने लगे थे. हस्तप्रतों में से ग्रंथों की सूचनाएँ निकालने के लिए जहाँ बड़ेबड़े विद्वानों को भी परिश्रम करना पडता है, वहीं पूज्यश्री का ध्यान सारे पन्नों में से जो उपयोगी पाठ होता था, उसी जगह सबसे पहले सहज ही चला जाता था, भले वह पाठ संस्कृत या प्राकृत में ही क्यों न हो ! उनके साधुजीवन में नम्रता, सरलता, समता, सजगता, तीव्र जिज्ञासा, निःस्पृहता, प्रभुभक्ति, ज्ञानभक्ति, अप्रमत्त स्वाध्याय, गच्छ मत के भेदभाव से रहित बाल-ग्लान की सेवा-सुश्रूषा, वैयावच्च आदि दुर्लभ गुण अपनी सोलह कलाओं के साथ खिले हुए थे. प्रत्येक व्यक्ति के लिए सहायक सिद्ध होना, 'वेस्ट से बेस्ट' बनाना, आरम्भ किए गए कार्य को जी-जान लगा कर पूर्ण करके ही दम लेना आदि अनेक गुणों से वे जीवन के अन्तिम महीनों में उन्होंने २२-२३ घन्टों तक सतत मीन रहकर आराधनाएँ करते हुए शासनदेवता की सहायता प्राप्त की थी. उसकी फलश्रुति के रूप में उन्होंने अत्यन्त चमत्कारी सर्वतीर्थार्हन् सिद्धमहायंत्र का संयोजन किया था. मोक्षमार्ग के विरल यात्री पूज्य मुनि श्रीनिर्वाणसागरजी महाराज ने अपने संयम जीवन को यशस्वी बनाकर दिनांक १७/६/२०११ को समाधिपूर्वक कालधर्म प्राप्त किया. धन्य है, हे मुनिवर आपको! धन्य है, आपके सफल जीवन को ! धन्य हैं, आपकी अपूर्व आराधनाएँ, हे मुनिवृषभ! आपके चरणों में हमारी कोटिशः वन्दना ! वन्दना !! वन्दना !!! समग्र श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र परिवार श्रद्धावनत For Private and Personal Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रकाशकीय जिनेश्वरदेव चरम तीर्थंकर श्री महावीरस्वामी, श्रुतप्रवाहक पूज्य गणधर भगवंतों, योगनिष्ठ आचार्यदेव श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरजी तथा परम पूज्य गच्छाधिपति आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी की दिव्यकृपा से परम पूज्य आचार्यदेव श्री कल्याणसागरसूरीश्वरजी के शिष्यप्रवर राष्ट्रसंत आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी की प्रेरणा एवं कुशल निर्देशन में आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर के श्री देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागारस्थ हस्तलिखित जैन ग्रंथों की सूची के द्वादशम खंड को मुंबई की पुण्यमयी धरा पर परम पूज्य आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी की शुभ निश्रा में श्री गोडीजी पार्श्वनाथ जैन मंदिर के द्वि-शताब्दी महोत्सव के पावन प्रसंग पर चतुर्विध श्रीसंघ के करकमलों में समर्पित करते हुए श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबातीर्थ परिवार अपार हर्ष की अनुभूति कर रहा है. विश्व में बहुत से ग्रंथालय तथा ज्ञानभंडार हैं, किन्तु प्राचीन परम्पराओं के रक्षक ज्ञानतीर्थरूप आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर में हस्तलिखित ग्रंथों का जो बेशुमार दुर्लभ खजाना पूज्य गुरुदेवश्री द्वारा भारत के कोने-कोने से एकत्र किया गया है, यह ज्ञानभंडार इस भूमंडल पर अब अपना उल्लेखनीय स्थान प्राप्त कर चुका है. ___ हस्तप्रतों की संप्राप्ति, संरक्षण, विभागीकरण, सूचीकरण तथा रख-रखाव के इस कार्य व मार्गदर्शन में पूज्य आचार्यदेव के अधिकतर शिष्य-प्रशिष्यों का अपना योगदान रहा है. तपस्वी मुनिप्रवर श्री निर्वाणसागरजी ने हस्तप्रतों की प्रथम कच्ची सूची एवं बाद में पक्की सूची हेतु एक लाख से ज्यादा फॉर्म भरने का वर्षों तक अहर्निश भगीरथ परिश्रम किया है. प्रस्तुत ग्रंथसूची के मूल आधार पूज्य मुनिश्री ही है. इस सूचीकरण की अवधारणा को और विकसित करने में तथा कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग के कार्य में ग्रंथालय विज्ञान की प्रचलित प्रणालियों के स्थान पर महत्तम उपयोगिता व सूझबूझ का उपयोग करने में तथा समय-समय पर सहयोगी बनने हेतु पूज्य पंन्यास श्री अजयसागरजी तथा यहाँ के पंडितजनों, प्रोग्रामरों और कार्यकर्ताओं ने अपनी शक्तियों का यथासंभव महत्तम उपयोग किया है. इसी तरह पूज्य आचार्य भगवंत के अन्य विद्वान एवं प्रज्ञाशील शिष्यों का भी इस पूरी प्रक्रिया में विविध प्रकार का सहयोग प्राप्त होता रहा है, जिससे ज्ञानमंदिर की प्रवृत्तियों को विशेष बल एवं वेग मिलता रहा है. इस अवसर पर संस्था ज्ञात-अज्ञात सभी सहयोगियों व शुभेच्छुकों की अनुमोदना करते हुए हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करती है. सभी के मिले-जुले समर्पित सहयोग के बिना यह विशालकाय कार्य संभव नहीं था. सात पंडितों के साथ करीब तीस कार्यकर्ताओं के माध्यम से, श्रीसंघ के व्यापक हितों से संबद्ध ज्ञानमंदिर की अनेकविध प्रवृत्तियों के संचालन के लिए निरंतर बड़ी मात्रा में धनराशि की आवश्यकता रहती है. किसी भी प्रकार के सरकारी या अन्य किसी भी अनुदान को न लेकर मात्र संघों व समाज की ओर से मिलनेवाले आर्थिक व अन्य सहयोग के द्वारा कार्यरत इस संस्था में हस्तप्रत सूचीकरण व संलग्न अन्य विविध प्रवृत्तियाँ निरंतर गतिशील रहती है. इस भगीरथ कार्य हेतु भारत व विदेश के श्रीसंघों, संस्थाओं व महानुभावों का भी आर्थिक सहयोग यदि नहीं मिल पाता तो यह कार्य आगे बढ़ाना मुश्किल था. समस्त चतुर्विध संघ तथा संस्था के सभी शुभेच्छुकों को इस अवसर पर साभार-धन्यवाद दिया जाता है. ___आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर के श्रुतभक्ति के प्रत्येक कार्य में हमारे वर्तमान ट्रस्टीगण अत्यंत उत्सुक और गतिशील रहे हैं. विशेषतः ट्रस्टीवर्य श्री मुकेशभाई एन. शाह एवं श्री श्रीपालभाई आर. शाह तथा कारोबारी सदस्य श्री रजनीभाई एन. शाह का योगदान महत्वपूर्ण रहा है. तदुपरांत समय-समय पर ज्ञानमंदिर का तन-मन-धन से कार्यभार निर्वाह करनेवाले ट्रस्टीवर्य स्व. श्री शांतिलाल मोहनलाल शाह, स्व. श्री उदयनभाई आर. शाह, श्री हेमंतभाई राणा, श्री सोहनलालजी एल. चौधरी, श्री चांदमलजी गोलिया, श्री किरीटभाई कोबावाला, श्री कल्पेशभाई जे. शाह, श्री गिरीशभाई वी. शाह एवं कारोबारी सदस्य श्री मोहितभाई शाह का भी ज्ञानमंदिर को आज की ऊंचाईयों तक पहुंचाने के लिए सुंदर योगदान प्राप्त हुआ है, जिसे इस अवसर पर याद किये बिना नहीं रहा जा सकता. परम गुरुभक्त श्री रविचंदजी बोथरा के सुपुत्र श्री वीरचंदजी एवं श्री अजितचंदजी बोथरा परिवार का जो उदार सहयोग प्रस्तुत चार खंडों हेतु प्राप्त हुआ है वह अत्यंत अनुमोदनीय है. कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची-जैन हस्तलिखित साहित्य के इस द्वादशम खंड के वित्तीय सहयोग प्रदाता श्री सांताक्रुज जैन श्वेताम्बर मूर्ति पूजक जैन संघ, मुंबई के प्रति संस्था कृतज्ञता व्यक्त करती है. आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची के इस द्वादशम रत्न का समाज में स्वागत किया जाएगा, ऐसा हमारा विश्वास है. श्री सुधीरभाई यु. महेता - प्रमुख श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र ट्रस्ट - कोबातीर्थ, गांधीनगर iii For Private and Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्राक्कथन कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची प्रकाशन के अविरत सिलसिले में परम श्रद्धेय आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी की पावन निश्रा में हो रहे मुंबई, श्री गोडीजी पार्श्वनाथ जिनालय के द्वि-शताब्दी महोत्सव के ऐतिहासिक प्रसंग पर एक साथ प्रकाशित हो रहे रत्न चतुष्टय ९ से १२ में से इस द्वादशम रत्न का प्रकाशन हमारे लिए गौरव की बात है. सूचीकरण कार्य के परिणाम स्वरूप इस बार भी प्राकृत, संस्कृत व मारुगुर्जर आदि देशी भाषाओं में मूल, टीका, अवचूरी आदि व व्याख्या साहित्य की लघु कृतियाँ प्रचुर संख्या में अप्रकाशित ज्ञात हो रही हैं. इनमें से अनेक कृतियाँ तो बड़ी ही महत्वपूर्ण हैं. अनेक विद्वानों की कृतियाँ भी अद्यावधि अज्ञात व अप्रकाशित हैं, ऐसा स्पष्ट जान पड़ता है. इस खंड में लघु प्रतों की ही सूची है. सामान्यतः ऐसी प्रतों को अल्प-महत्त्व की समझकर जत्थे में बांधकर उपेक्षित सा रख दिया जाता है. लेकिन परिशिष्टों को देखने से पता चलेगा कि आश्चर्यजनक रूप से ऐसी प्रतों में से भी प्रचुरमात्रा में महत्व की अप्रकाशित लघु कृतियाँ प्राप्त हुई हैं. इन लघु प्रतों के वर्गीकरण से लेकर सूचीकरण तक का संपूर्ण कार्य बडा ही कष्टसाध्य होता है, लेकिन उसका यह सुंदर परिणाम बहुत संतोष दे रहा है. प्रकरण, कुलक व चरित्र आदि अनेक प्रकार के ग्रंथ अप्रकाशित प्रतीत हुए हैं. ऐसा ही देशी भाषा की कृतियों में भी है. इस सूचीपत्र में हस्तप्रत, कृति व विद्वान/व्यक्ति संबंधी जितनी भी सूचनाएँ समाविष्ट की गई हैं, उन सबका विस्तृत विवरण व टाइप सेटिंग सम्बन्धी सूचनाएँ भाग ७ के पृष्ठ vi एवं परिशिष्ट परिचय संबंधी सूचनाएँ भाग ७ के पृष्ठ ४५४ पर है. कृपया वहाँ पर देख लें. __ जैन साहित्य एवं साहित्यकार कोश परियोजना के अन्तर्गत शक्यतम सभी जैन ग्रंथों व उनमें अन्तर्निहित कृतियों का कम्प्यूटर पर सूचीकरण करना; एक बहुत बड़ा जटिल व महत्वाकांक्षी कार्य है. इस परियोजना की सबसे बड़ी विशेषता है, ग्रंथों की सूचना पद्धति. अन्य सभी ग्रंथालयों में अपनायी गई, मुख्यतः प्रकाशन और पुस्तक इन दो स्तरों पर ही आधारित, द्विस्तरीय पद्धति के स्थान पर, यहाँ बहुस्तरीय सूचना पद्धति विकसित की गई है. इसे कृति, विद्वान, प्रत, प्रकाशन, सामयिक व पुरासामग्री इस तरह छ: भागों में विभक्त कर बहुआयामी बनाया गया है. इसमें प्रत, पुस्तक, कृति, प्रकाशन, सामयिक व एक अंश में संग्रहालयगत पुरासामग्री; इन सभी का अपने-अपने स्थान पर महत्व कायम रखते हुए भी इन सूचनाओं को परस्पर संबद्धकर एकीकृत कर दिया गया है. प्रस्तुत सूची के पूर्व के सभी खंडों की तरह इस खंड में समाविष्ट अधिकांश प्रतों की मूल सूची तो श्रुतसेवी पूज्य मुनिप्रवर श्री निर्वाणसागरजी ने वर्षों की मेहनत से बनाई थी. उसी को आधार रखकर हमने यह संपादन कार्य किया है. मुनिश्री के हम अनेकशः कृतज्ञ हैं. समग्र कार्य दौरान श्रुतोद्धारक पूज्य आचार्यदेव श्रीमद् पद्मसागरसूरीश्वरजी तथा श्रुताराधक पंन्यास श्री अजयसागरजी की ओर से मिली प्रेरणा व मार्गदर्शन ने इस जटिल कार्य को करने में हमें सदा उत्साहित रखा है. साथ ही पूज्यश्री के अन्य शिष्यप्रशिष्यों की ओर से भी हमें सदा सहयोग व मार्गदर्शन मिलता रहा है, जिसके लिए संपादक मंडल सदैव आभारी रहेगा. इस ग्रंथसूची के आधार से सूचना प्राप्त कर श्रमणसंघ व अन्य विद्वानों के द्वारा अनेक बहुमूल्य अप्रकाशित ग्रंथ प्रकाशित हो रहे हैं, यह जानकर हमारा उत्साह द्विगुणित हो जाता है; हमें अपना श्रम सार्थक प्रतीत होता है. प्रतों की विविध प्रकार की प्राथमिक सूचनाएँ कम्प्यूटर पर प्रविष्ट करने एवं प्रत विभाग में विविध प्रकार से सहयोग करने हेतु, त्वरा से संदर्भ पुस्तकें तथा प्रतें उपलब्ध कराने हेतु आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर के सभी कार्यकर्ताओं को हार्दिक धन्यवाद. सूचीकरण का यह कार्य पर्याप्त सावधानीपूर्वक किया गया है, फिर भी जटिलता एवं अनेक मर्यादाओं के कारण क्वचित् भूलें रह भी गई होंगी. इन भूलों के लिए व जिनाज्ञा विरूद्ध किसी भी तरह की प्रस्तुति के लिए हम त्रिविध मिच्छामि दुक्कडं देते हैं. विद्वानों से करबद्ध आग्रह है कि इस प्रकाशन में रह गई भूलों की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट करें एवं इसे और अधिक बेहतर बनाने हेतु अपने सुझाव अवश्य भेजें, ताकि अगली आवृत्ति व अगले भागों में यथोचित सुधार किए जा सकें. - संपादक मंडल _iv For Private and Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra खंड ९ से १२ के विशि र ग्रंथसूची खंड ए विशिष्ट सहयोगी कैलास श्रुतसागर धन्यधरा व पुण्यतमा बंगभूमि के जाहनवीतट पर अवस्थित सुप्रसिद्ध अजीमगंज-मुर्शिदाबाद के धर्मनिष्ठ, संस्कारसमृद्ध, श्री-संपन्न एवं श्रीसंघ सेवापरायण श्रीबोथरा जैनकुल की उज्ज्वल परंपरा में स्वनामधन्य पितामह श्रीमान् प्रसन्नचन्द्रजी बोथरा, धर्मनिष्ठ पिता श्री गंभीरचंदजी बोथरा, उनके ज्येष्ठ बंधुद्वय श्री परिचंदजी एवं श्री श्रीचन्दजी बोथरा जैसे जाज्वल्यमान् नक्षत्रसम महानुभावों ने अपना जीवन सफल और यशस्वी बनाया. उसी गौरवमयी परंपरा में देवगुरुश्रुतभक्तिकारक श्री रविचन्द्रजी बोथरा एवं उनकी धर्मपलि सौभाग्यशालिनी श्रीमती कुमुदकुमारी ने भी अपने जीवन में अनेकविध शासन प्रभावना व धर्मप्रभावना के कार्य करके वीतराग परमात्मा के श्रद्धासम्पन्न एवं समर्पित सन्निष्ठ श्रावक-श्राविका के रूप में अपने-अपने नाम को यथार्थ करते हुए स्वजीवन को सही अर्थ में सफल बनाया है. उनके कार्य वास्तव में श्रीसंघ व समाज के लिये कल्याणकारी है. सुकृतसागर की झलक 24 तृतीय तीर्थंकर श्री संभवनाथ परमात्मा के गृहजिनालय का निर्माण. पोरुर (चेन्नई) में मूलनायक श्री मुनिसुव्रतस्वामी की प्रतिष्ठा. विशाखापत्तनम् (आन्ध्रप्रदेश) स्थित श्रीसंघमंदिरजी में कायमी ध्वजारोहण का लाभ एवं अजीमगंज से लायी गयी नयनरम्य व मनोहारी पार्श्वनाथ प्रभु की प्राचीन प्रतिमा की प्रतिष्ठा का भी लाभ प्राप्त किया. वहीं पर दादावाड़ी के प्रांगण में आपने अपनी मातामही-नानीमां परम सुश्राविका श्रीमती ताराबेन कांकरिया के साथ मिलकर समवसरण मंदिर की संरचना का लाभ लिया. कुंडलपुरतीर्थ (बिहार में) श्री अजितनाथ भगवान की प्रतिमा प्रतिष्ठापित की.. इस्वी सन् १९९३ में पूज्य गुरुदेव राष्ट्रसंत आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म.सा. की निश्रा में मधुपुरीतीर्थ (महुडी) से तारंगातीर्थ का छरी पालित पदयात्रा संघ का सुंदर आयोजन किया. पूज्य गुरुदेव की प्रेरणा से कोबातीर्थ के मूलनायक चरम तीर्थपति श्री महावीरस्वामी परमात्मा को रत्नजड़ित स्वर्णहार अर्पण का धन्यतम लाभ लिया. कोबा तीर्थ में ही आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर में तृतीय तल पर स्थित आर्य रक्षितसूरि शोधसागर (कम्प्यूटर कक्ष) का सुंदर एवं अनुमोदनीय लाभ लिया है. श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा में नूतन श्राविका उपाश्रय का भव्य एवं यशस्वी लाभ लिया है. पूज्य आचार्यश्री की ही पावन निश्रा में उज्जैन से नागेश्वर तीर्थ का ऐतिहासिक छरी पालित संघ का भव्य आयोजन कार्य आपश्री ने पूज्य गुरुदेवश्री की प्रेरणा पाकर जीवदया, साधर्मिकभक्ति, अनुकंपा, जीर्णचैत्योद्धार, श्रुतसंरक्षण इत्यादि बहुविध सुकृतों की सुवास से अपने जीवन को सार्थक किया. आपश्री ने जीवन का सही मर्म समझकर अंतिम साँस तक धर्म को हृदयस्थ किया. अपने परिवार को सद्धर्म-सद्गुरु व सुसंस्कार की संपत्ति विरासत में देते हुए धर्मवैभव को समृद्ध किया. परिवार को समर्पण-सरलता एवं सदाचार के पथ पर चलने का अनमोल शिक्षापाठ देकर धर्मरसिक बनाया. जिनशासन के प्रति श्रद्धान्वित एवं पूज्य गुरुदेव के प्रति समर्पित आपश्री के जीवन का प्रत्येक कार्य परिवार और श्रीसंघ को सदैव नया संदेश, नई शक्ति व नई प्रेरणा देता है. आज भी आपके द्वारा बतलाए गए इस उज्ज्वल पथ पर चलते हुए आपके दोनों सुपुत्र श्री वीरचंदजी एवं श्री अजितचंदजी बोथरा सपरिवार श्री जिनशासन की सेवा और धर्मप्रभावना के अनेक सुकृत करने के लिए अग्रसर और उत्सुक है. For Private and Personal Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुक्रमणिका मंगलकामना.. समर्पण ........ प्रकाशकीय प्राक्क थन ................................................................................... ....................iv अनुक्रमणिका. ...................V प्रस्तुत सूची में प्रयुक्त संक्षेप व संकेत .................................. ..... vi-vil हस्तप्रत सुचीकरण सहयोग सौजन्य... ............ viii हस्तप्रत सूची. .........१-४७४ परिशिष्ट : कृति परिवार अनुसार प्रत-पेटाकृति अनुक्रम संख्या........................ ४७५-५९६ १. संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - १........... ....४७५-५१५ २. देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २.... .५१५-५९६ इस सूचीपत्र में हस्तप्रत, कृति व विद्वान/व्यक्ति संबंधी जितनी भी सूचनाएँ समाविष्ट की गई हैं, उन सबका विस्तृत विवरण व टाइप सेटिंग संबंधी सूचनाएँ भाग ७ के पृष्ठ vi एवं परिशिष्ट परिचय संबंधी सूचनाएँ भाग ७ के पृष्ठ ४५४ पर है. कृपया वहाँ पर देख लें. प्रस्तुत खंड १२ में निम्नलिखित संख्या में सूचनाओं का संग्रह है. 0 प्रत क्रमांक - ४८१३६ से ५२०५० ० इस सूचीपत्र में मात्र जैन कृतियों वाली प्रतों का ही समावेश किए जाने के कारण वास्तविक रूप से ३४८१ प्रतों की सूचनाओं का समावेश इस खंड में हुआ है. ० समाविष्ट प्रतों में कुल ४००६ कृति परिवारों का समावेश हुआ है. ० इन परिवारों की कुल ४४१४ कृतियों का इस सूची में समावेश हुआ है. ० सूची में उपरोक्त कृतियों कुल ६४९३ बार आई हैं. For Private and Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रस्तुत सूची में प्रयुक्त संक्षेप व संकेत # कृति नाम के अंत में विभिन्न अज्ञात विद्वान कर्तृक, अनेक अस्थिर टबार्थ व श्लोक संग्रह जैसी समान कृतियों के समुच्चय रूप या फुटकर कृति दर्शक संकेत. कृति/प्रत/पेटांक नाम के बीच : का, की, के, इत्यादि विभक्ति सूचक. प्रत क्रमांक के अंत में छोटे उर्ध्वाक्षरों में - दुर्वाच्य, अवाच्य, अशुद्ध पाठ - सूचक. प्रत क्रमांक के अंत में छोटे उर्ध्वाक्षरों में - प्रत की महत्ता सूचक. - इस हेतु प्र.वि. में निम्न सूचनाएँ हो सकती हैं. कर्ता-कर्ता के शिष्य-प्रसिद्ध व्यक्ति द्वारा लिखित, रचना के समीपवर्ती काल में लिखित, संशोधित - शुद्धप्राय - टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पाठ में सुगमता हेतु विविध प्रकार के चिह्नयुक्त प्रत यथा- अन्वय दर्शक अंक युक्त, पदच्छेद - संधि सूचक - वचन विभक्ति - क्रियापदसूचक चिह्न आदि वाली प्रत. कृति नाम के बाद प्रयुक्त होने पर संयुक्त कृति की पहचान - यथा आवश्यकसूत्र सह नियुक्ति, भाष्य व तीनों की लघुवृत्ति. प्रत क्रमांक के अंत में छोटे उर्ध्वाक्षरों में. प्रत की अवदशा, पाठ नष्ट हो जाने से प्रत की उपयोगिता में कमी का सूचक. इस हेतु प्र.वि. में निम्न सूचनाएँ हो सकती हैं. मूल पाठ का, टीकादि का, मूल व टीका का, टिप्पणक का अंश नष्ट है. अक्षर फीके पड़ गये हैं, मिट गये हैं, पन्नों पर आमने-सामने छप गये हैं. अक्षर की स्याही फैल गई है. पत्र जीर्णतावश नष्ट होने लगे हैं, हो गये हैं. ..... कृति परिशिष्टों में प्रत क्रमांक के अंत में उर्ध्वाक्षरों से प्रत की अपूर्णता सूचक. अपूर्ण, त्रुटक, प्रतिअपूर्ण हेतु. आदिवाक्य अनुपलब्ध. अप.............अपभ्रंश (कृति भाषा) अंतिः ........ अंतिमवाक्य (कृतिमाहिती) आ. ......... आचार्य (विद्वान स्वरूप) आदि......... आदिवाक्य (कृतिमाहिती) उप. ............ प्रत प्रतिलेखन उपदेशक. (प्र. ले. पु. विद्वान) उपा......... उपाध्याय (विद्वान स्वर उपाध्याय (विद्वान स्वरूप) ऋ. ......... ऋषि (विद्वान स्वरूप) क........... कवि (विद्वान स्वरूप) ..............कुंडली (कृति स्वरूप) कुल ग्रं........ मूल व टीका आदि का संयुक्तरूप से सर्व ग्रंथाग्र परिमाण - प्रत व पेटाकृति विशेष में. कुल पे......... कुल पेटाकृति (प्रतमाहिती स्तर) क्रीत............ प्रत को खरीदनेवाला. (प्र. ले. पु. विद्वान) को..............कोष्टक (कृति स्वरूप) गणि (विद्वान स्वरूप) गडी............गडी किए हुए पत्रों वाली प्रत. गद्य............ गद्यबद्ध (कृति प्रकार) गा..............गाथा (कृति परिमाण) गु. ............. गुजराती (कृति भाषा) गुटका ........बंधे पत्रों वाली प्रत. (प्रतमाहिती स्तर) For Private and Personal Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गृही. .......... गृहीत. आदान-प्रदान में प्रत को प्राप्त करने | वाला (प्र. ले. पु. विद्वान) गोल ........... गोल कुंडलाकार प्रत. (प्रतमाहिती स्तर) ग्रंथाग्र (कृति परिमाण) जै.............. .जैन कृति (कृति परिशिष्ट) जै.क........जैन कवि (विद्वान स्वरूप) जैदे............जैन देवनागरी (प्रत लिपि) ते... ..जैन श्वेतांबर तेरापंथी कृति. (कृति परिशिष्ट) दत्त............ आदान-प्रदान में प्रत देनेवाला. (प्र. ले. पु. विद्वान) दि............. ..जैन दिगंबर कृति. (कृति परिशिष्ट) देना............देवनागरी (प्रत लिपि) पं. ..............पंजाबी (कृति भाषा) पं. .......... पंन्यास, पंडित (विद्वान स्वरूप) पठ. ...... पठनार्थ. जिसके पढ़ने हेतु प्रत लिखी या लिखवाई गई हो. (प्र. ले. पु. विद्वान) प+ग .......... पद्य व गद्य संयुक्त (कृति प्रकार) पद्य............पद्यबद्ध (कृति प्रकार) पा........... पाठक (विद्वान स्वरूप) पु. हिं.......... पुरानी हिंदी (कृति भाषा) पू. वि. ........ पूर्णता विशेष (प्रतमाहिती, पेटाकृति माहिती व कृतिमाहिती स्तर) कृतिमाहिती में वर्ष प्रकार सूचक 'वि.' 'श.' आदि के बाद संवत् प्रवर्तन के पूर्व का वर्ष दर्शक. पृ. ............. .. पृष्ठ सूचना (प्रत माहिती स्तर पर व पेटाकृति स्तर पर) पे. नाम........ पेटाकृति नाम पे. वि.......... पेटाकृति विशेष पै.............. ..पैशाची प्राकृत (कृति भाषा) प्र. वि.......... प्रत विशेष. प्रले........... प्रतिलेखक, लहिया, Scribe (प्रतिलेखन पुष्पिका. प्रत, पेटाकृति, कृति माहिती स्तर पर.) प्र. ले. पु..... प्रतिलेखन पुष्पिका की - (प्रत/पेटाकृति/कृति स्तर) ('सामान्य, मध्यम' आदि उपलब्धता सूचक.) प्र.ले.श्लो. .... प्रत, पेटाकृति व कृति हेतु प्रतिलेखक द्वारा लिखित प्रतिलेखन श्लोक (जलात् रक्षेत्... इत्यादि) .............. ..प्राकृत (कृति भाषा) प्रे. .............. प्रतलेखन प्रेरक. (प्र. ले. पु. विद्वान) बौ..............बौद्ध कृति (कृति परिशिष्ट) म...............मराठी (कृति भाषा) महा............महाराष्ट्री प्राकृत (कृति भाषा) मा..............मागधी प्राकृत (कृति भाषा) मा. गु..........मारुगुर्जर (कृति भाषा) मुनि (विद्वान स्वरूप) मु..............मुस्लिम धर्म (कृति परिशिष्ट) मूपू. ...........जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक कृति (कृति परिशिष्ट) य......... .यंत्र (कृति स्वरूप) रा........... राजा (विद्वान स्वरूप) .............राजस्थानी (कृति भाषा) राज्यकाल.... जिस राजा के राज्य शासनकाल में प्रत लिखी गई हो. राज्ये........... जिस आचार्य के गच्छनायकत्व काल में प्रत का लेखन हुआ हो. लिख........... प्रत लिखवाने वाला. (प्र. ले. पु. विद्वान) ले. स्थल...... लेखन स्थल (प्रतिलेखन पुष्पिका) वा........... वाचक (विद्वान स्वरूप) वि........... विक्रम संवत् (वर्ष माहिती) (प्रे. ले. पु., कृति रचना वर्ष) विक्र........... विक्रेता - प्रत का. (प्र. ले. पु. विद्वान) वी..............वर्ष संख्या के पूर्व होने पर 'वीर संवत' यथा वी. २०००. वर्ष संख्या पश्चात् होने पर 'वी सदी'. यथा- ८वी सदी. (७१०-८००) (प्र. ले. पु., कृति रचना वर्ष) वै. .......... वैदिक कृति. (कृति परिशिष्ट) व्याप.......... व्याख्याने पठित -विद्वान द्वारा. (प्र. ले. पु. विद्वान) श............. शक संवत् (वर्ष माहिती - प्र. ले. पु.) श्राव......... श्रावक (विद्वान स्वरूप) श्रावि........ श्राविका (विद्वान स्वरूप) श्रु.............. श्रोता द्वारा व्याख्यान में श्रुत. (प्र. ले. पु. विद्वान) श्वे.............. जैन श्वेतांबर कृति (कृति परिशिष्ट) .............संस्कृत (कृति भाषा) सम............ समर्पक. ज्ञानभंडार को प्रत समर्पित करनेवाला. (प्र. ले. पु. विद्वान) सा.......... साध्वीजी (विद्वान स्वरूप) स्था............जैन श्वेतांबर स्थानकवासी (कृति परिशिष्ट) हिं. ............. हिंदी (कृति भाषा) पूर्व........ vii For Private and Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ० सुकृत के सहभागी ● हस्तप्रत सूचीकरण में विशिष्ट आर्थिक सहयोगियों की नामावली अहमदाबाद १. शेठ आणंदजी कल्याणजी (धार्मिक धर्मादा ट्रस्ट), पालडी २. श्री शांतिलाल भुदरमल अदाणी परिवार अहमदाबाद ३. बाबु श्री अमीचंद पन्नालाल आदीश्वर ट्रस्ट, वालकेश्वर मुंबई ४. शेठ श्री झवेरचंद प्रतापचंद सुपार्श्वनाथ जैन संघ, वालकेश्वर मुंबई ५. श्री प्लेजेंट पैलेस जैनसंघ मुंबई ६. श्री गोवालिया टैंक जैनसंघ मुंबई ७. श्री प्रेमलभाई कापडिया मुंबई ८. श्री जवाहरनगर जैन श्वे. मू. पू. जैन संघ, गोरेगांव मुंबई अमेरिका ९. जैन सेन्टर ऑफ नॉर्दर्न केलिफोर्निया १०. श्री श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैन बोर्डिंग ११. श्री शंभुकुमार कासलीवाल अहमदाबाद मुंबई १२. शेठ मोतीशा जैन रिलीजियस एन्ड चेरीटेबल ट्रस्ट मुंबई १३. फेडरेशन ऑफ जैन एसोसिएसन इन नॉर्थ अमेरिका, अमेरिका "जैना" हस्ते डॉ. प्रेमचंदजी गडा १४. श्री एम. जे. फाउन्डेशन मुंबई १५. श्री कल्याण पार्श्वनाथ जैन संघ, चौपाटी मुंबई १६. श्री सांताक्रुज जैन तपगच्छ संघ, श्री कुंथुनाथ जैन देरासर मार्ग, सांताक्रूज़ (वे.) मुंबई १७. श्री महावीर जैन श्वे. मू. पू. संघ, पालडी अहमदाबाद १८. श्री श्वे. मू. पू. जैन संघ, नानपुरा, सुरत १९. श्री आंबावाडी मू. पू. जैन संघ अहमदाबाद गोरेगाँव | २०. श्री चिंतामणी पार्श्वनाथ श्वे. मू. पू. जैन संघ, आरे रोड, मुंबई २१. श्री राजस्थान जैन श्वे. मू. पू. संघ, जयनगर, बेंग्लोर २२. श्री आदिनाथ जैन श्वे. मंदिर ट्रस्ट, चिकपेट, बेंग्लोर २३. श्री महुडी जैन श्वे. मू. पू. ट्रस्ट, महुडी | २४. श्री गोडीजी महाराज जैन टेम्पल एन्ड चेरीटीज़, मुंबई २५. श्री जुहु स्कीम जैन संघ, विलेपार्ले (वे.) मुंबई हस्तप्रत सूचीकरण में आर्थिक सहयोगियों की नामावली १. श्रीमद् यशोविजयजी जैन संस्कृत पाठशाला, श्री जैन श्रेयस्कर मंडल २. श्री अर्बुद गिरीराज जैन श्वे. तपागच्छ उपाश्रय ट्रस्ट ४. शेठ श्री शायरचंदजी नाहर ५. श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ जैन देरासर ट्रस्ट, पालडी ६. संघवी श्री पुखराजजी हंजारीमलजी दांतेवाडीया मांडवला ७. श्री रांदर रोड जैनसंघ श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ जैन देरासर, रांदेर रोड ८. श्री जिन आराधक मंडल, कांदीवली ९. श्री जयेशभाई हिरजीभाई शाह, नरीमान प्वाइंट १०. प. पू. आ. देव श्री जगव्चन्द्रसूरीश्वरजी महाराज की प्रेरणा से श्री सिद्धगिरि महातीर्थ चातुर्मास आराधना हेतु श्री बेतालीस के विशा श्रीमाली जैन ज्ञाति मंडल Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११. श्री आदिनाथ सोसायटी जैन टेम्पल ट्रस्ट, पूना-सातारा रोड १२. श्री बिरला एकेडेमी ऑफ आर्ट एन्ड कल्चर १३. दक्षिण - पावापुरी तीर्थ, चंद्रप्रभु जैन सेवामंडल ट्रस्ट viii For Private and Personal Use Only महेसाणा इन्दौर मुंबई अहमदाबाद चेन्नई सुरत मुंबई मुंबई मुंबई पुना कोलकाता चेन्नई Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra मुलनायक - श्री कुंथुनाथ भगवान श्री माणिभद्र वीर प्रस्तुत खंड सौजन्य श्री सांताक्रूज जैन तपगच्छ संघ सांताक्रुज (वेस्ट) श्री संघ की स्थापना फाल्गुन शुक्ल-२ विक्रम संवत १९९७ में हुई है, श्री प्रतिमाजी की स्थापना : श्री कुंथुनाथ भगवान की स्थापना विक्रम संवत १९९८ के फाल्गुल शुक्ल-३ की शुभ घड़ी में हुई है, श्री सांताक्रुज जैन तपगच्छ संघ के लगभग १००० जैन परिवारों में ४००० श्रावक-श्राविकाएँ हैं, श्री संघ के ट्रस्ट मंडल के माननीय ट्रस्टी गण निम्नलिखित हैं. श्री हीरजीभाई मोरारजीभाई शाह - प्रमुख श्री मनोजभाई महेन्द्रभाई देसाई - ट्रस्टी श्री चंद्रकान्तभाई चंपकलाल शाह - मेनेजिंग ट्रस्टी श्री प्रमोदभाई हिंमतलाल मणीआर - ट्रस्टी श्री बचुभाई दलीचंद शाह - ट्रस्टी श्री रमेशचंद्र फकीरचंद शाह - ट्रस्टी श्री जीवराजभाई दलीचंद महेता- ट्रस्टी श्री सतीशभाई मुलजीभाई सावला - ट्रस्टी श्री मोहनलाल धुलचंदजी जैन - ट्रस्टी श्री संघ में प्रतिवर्ष फाल्गुन शुक्ल - ३ के दिन जिनमंदिर का वर्षगांठ खूब हर्षोल्लास पूर्वक धार्मिक वातावरण में मनाया जाता है. For Private and Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ www.kobatirth.org ॥ श्री महावीराय नमः ॥ ॥ श्री बुद्धि कीर्ति - कैलास सुबोध-मनोहर-कल्याण- पद्मसागरसूरि सद्गुरुभ्यो नमः ॥ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ४८१३६. नववाडिगर्भित सज्झाच, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. ले. स्थल. सूर्यपुर, जैवे. (२५x११, १०४४१). ९ वाड सज्झाय, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: नववाडि मुनिसर मनधरो; अंति: ते साधूस्युं नेहो रे, गाथा-११. ४८१३७. पंचमी स्तवन ढाल - १, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. पेथापुर, प्रले. जेठालाल चुनिलाल लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., ( २४.५X११.५, १०X३३). सौभाग्यपंचमीपर्व स्तवन, मु. केशरकुशल, मा.गु, पद्य वि. १७५८ आदिः श्रीगुरु चरणे नमी अंति: (-) (प्रतिपूर्ण, पू. वि. मात्र प्रथम दाल है.) ४८१३९. शांतिजिन स्तवन व मेघकुमार सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २. वे. (२३४११.५, ११x२७). १. पे नाम, शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिजिन एक मुज विनत; अंति: मोहनविजय गुण गाय, गाथा- ७. २. पे. नाम. मेघकुमार सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. कवियण, मा.गु., पद्म, आदि धारणी मनावे रे मेघ अंति: मुज मन हर्ष अपार, गाथा-५. ४८१४०. शंखेश्वर पार्श्वजिन गीत व स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २९-२८ (१ से २८) = १, कुल पे. २, दे., (२१-२४.०X१०.५, ११X३३). १. पे नाम, पार्श्वजिन गीत, पृ. २९अ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र अंतिम पत्र है. पार्श्वजिन गीत- शंखेश्वर, मु. धनजी, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: धनजीकूं० संभारी हो, (पू. वि. गाथा ४ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २९अ-२९आ, संपूर्ण पार्श्वजिन लघुस्तवन- सोवनगिरि, ग. जिनहर्ष, मा.गु, पद्य, आदि: सोबनगिरवर मंडणो रे, अति: माहरी तुम्हने लाज, गाथा- ७. ४८१४१. थूई संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे. (२१x११, १५X३८). " १. पे. नाम. बीजतीथी थोय, पृ. १अ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज, अंति: कहे पुरो मनोरथ माय, गाथा-४. २. पे. नाम. पंचमी धोप, पृ. १अ १आ, संपूर्ण पंचमी तिथि स्तुति, मु. कृपाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सूचीपति सुरगुसा, अंतिः कृपाविजय० भरपूरो जी, गाथा-४. ४८१४५. आठम स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे. (२४.५x११, १०x३८). ४८१४३. वृद्ध पद्मावती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. मु. रामविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४X११.५, १२X३१). पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र, अंतिः तस्य पद्मावती स्वयं, गाथा ३२. ४८१४४. पार्श्वनाथरी निसाणी, संपूर्ण वि. १८८२ ज्येष्ठ कृष्ण, ३. गुरुवार, मध्यम, पृ. २, प्रले. रामप्रसाद यति पढ श्राव. दमल्ल, प्र.ले.पु. सामान्य, जै, ( २४.५४११.५ १४४४४). पार्श्वजिन निसाणी - घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: सुखसंपत्तिदायक सुरनर, अंति: जिणगुणहर्ष गावंदा है, गाथा-२७. १ o. अष्टमीतिथि स्तवन, ग. शुभविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जय हंसासणि सारदा, अंति : शुभविजय आनंद अति घणो, ढाल - २, गाथा - १२. For Private and Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४८१४६. (+) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२३.५४१०.५, १२४२७). १. पे. नाम. शंखेश्वर पार्श्वजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसंखेसर पासजिनेसर; अंति: जिनचंद० रिपुजीपतौ, गाथा-५. २. पे. नाम. मगसी पारसजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-मगसी, मु. सुखलाल, रा., पद्य, वि. १९१२, आदि: अश्वसेनजी ताता वामा; अंति: सकल सिघ सुख पाता, गाथा-९. ४८१४७. (#) सूरज सलोक, संपूर्ण, वि. १८९३, श्रावण कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. कोहीला, प्रले. मु. तीर्थसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १७४३७). सूरजदेव सलोको, मु. ऋषभसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमु सारदा गणपतरा; अंति: रिखभसुंदर दोलतदाई, गाथा-२८. ४८१४९. स्तोत्र, स्तुति व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९३४, वैशाख शुक्ल, १३, मंगलवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. लाडणु, प्रले. श्राव. तेजकर्ण ब्रह्मचारी; पठ. पनु, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. ३, दे., (२४४११.५, १२४३०-३६). १.पे. नाम. सरस्वती स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: वाग्वादिनी नमस्तुभ्य; अंति: बुद्धि मिंदिरम्, श्लोक-७. २. पे. नाम. पजुसण स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व स्तुति, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सतरैभेदी जिनपूजा; अंति: पूरे देवी सिद्धाइजी, गाथा-४. ३. पे. नाम. सुभाषित श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण, वि. १९३४, भाद्रपद शुक्ल, ७, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. सुभाषित श्लोक*,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अपुत्रस्य गृहे शून्य; अंति: सर्वशून्यं दरिद्रता, श्लोक-१. ४८१५०. नाकउडा पार्श्वनाथ लघु स्तवन, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, जैदे., (२४४१०.५, १०४४०). पार्श्वजिन छंद-नाकोडातीर्थ, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंति: कहै गुण जोडो, ___ गाथा-८, (पूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., प्रथम गाथा का प्रथम चरण नहीं है.) ४८१५१. मेघरथराजानी सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४११.५, १३४३०). मेघरथराजा सज्झाय-पारेवडाविनती, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: दसमे भवे श्रीशांतजी; अंति: दयाथी सुख नीरवाण, गाथा-१८. ४८१५२. पार्श्वजिन सप्रभावक स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४४११.५, १३४३४). पार्श्वजिन अष्टक-मंत्रगर्भित, सं., पद्य, आदि: श्रीमन्नागेंद्ररूद्र; अंति: जयति पार्श्वनाथोजिनः, श्लोक-११. ४८१५३. नोकारवाली १०८ गुण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४४११, ७X४०). पंचपरमेष्ठि गुणविवरण, प्रा.,सं., पद्य, आदि: बारस्स गुण अरिहता; अंति: साहु सत्तवीसंतु, गाथा-१. पंचपरमेष्ठि गुणविवरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: बार गुण अरिहंतना ते; अंति: १०८ गुण नोकारवाली. ४८१५४. बारमासो व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४४११, १३४४५). १. पे. नाम. राजिमती नेमजी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण.. नेमराजिमती बारमासो, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: राणी राजुल इण परि; अंति: पालै अविहिड प्रीत रे, गाथा-१३. २. पे. नाम. मुगतागिरी जिनवर स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: अरज सुणो अलवेसरुजी; अंति: केसर०अवसर करज्यो सार. गाथा-७. ३. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: सारद सार दया करी दया; अंति: हिवै प्रीती पुरो आस, गाथा-५. ४८१५५. (+) मल्लीनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, अन्य. हरिबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, १०४३४). For Private and Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ मल्लिजिन स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभोवन प्रभूरे मल; अंति: पसाइ सवि सुख लहइ, गाथा-३८. ४८१५६. ५६३ जीवभेदों के साथ मिच्छामि दुक्कडं भेद, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४४१०, १६४८-१७). ५६३ जीवों के साथ मिच्छामिदुक्कडं, मागु., गद्य, आदि: जीवना पांचसइंत्रिसठ; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. ४८१५७. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४.५४१०.५, १४४४२). १.पे. नाम. शांती स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: हम मगन भए प्रभुध्यान; अंति: जीत लीओ मेदान मे, गाथा-६. २.पे. नाम. शांति स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, उपा. विनयविजय, पुहिं., पद्य, आदि: शांति तेरे लोचन है; अंति: विनयी० अति प्यारे, गाथा-३. ३. पे. नाम. ऋषभजिन गीत, पृ. १अ, संपूर्ण.. आदिजिन स्तवन-सिद्धाचलमंडन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: तुम दरिसण भले पायो; ___ अंति: नयवि० समकित पूरण आयो, गाथा-४. ४८१५८. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४.५४११.५, १६४३९). १.पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, रा., पद्य, वि. १८वी, आदि: मरुदेवी मात केरा; अंति: मोहने प्रभु गुण गाया, गाथा-७. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. कृष्णविमल, मा.गु., पद्य, आदि: आदिजिणेसर साहिबो; अंति: कृष्णविमल गुण गाय, गाथा-१३. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पुहि., पद्य, आदि: इतला दिन हुंजाणति; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा २ अपूर्ण तक लिखा ४८१५९. गुणमाला, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४११, १४४३३). चोवीसजिन स्तवन, मु. लालविनोद, मा.गु., पद्य, आदि: जे जे आद नमो अरिहंता; अंति: लाल० वंछीत फल पाइइ, गाथा-१०. ४८१६०. रोहीणी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. पं. दोलतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११.५, १६४२९). रोहिणीतप स्तवन, मु. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, वि. १८५९, आदि: हां रे मारे वासुपूज; अंति: दिपविजय० तप गाइया, ढाल-६. ४८१६१. महावीरस्वामीनु पालj, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. पं. मोतीविजय; अन्य. मु. दोलतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. दोलतविजयजी की प्रति से प्रतिलिपि की गई है., दे., (२३.५४१२.५, १२-१३४२६). महावीरजिन हालरई, पं. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, आदि: माता त्रीसला झूलावे; अंति: होजो दीपविजय कविराज, गाथा-१८. ४८१६३. सझाय व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४१०.५, १५४५२). १.पे. नाम. श्रावकगुण सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. __उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: कहिए मिलस्ये रे; अंति: सफल जनम तेणे लीधो जी, गाथा-२१. २. पे. नाम. गाथा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह ,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ४ अपूर्ण तक लिखा है.) ४८१६४. नमस्कार महामंत्र पंचपद सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७५९, माघ शुक्ल, ६, मंगलवार, मध्यम, पृ. ३, प्रले. पं. अभयसोम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १३४३६). For Private and Personal Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नमस्कार महामंत्र, शाश्वत, प्रा., पद्य, आदि नमो अरिहंताणं; अंतिः नमो लोए सव्वसाहूणं, पद-५ (वि. प्रतिलेखक ने मात्र पांच पद ही लिखा है. ) नमस्कार महामंत्र-पंचपद बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीअरिहंतनि माहरु; अंति: भणी सिद्ध वडा कही . ४८१६५. सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., ( २४.५x१०.५, १५X४६). १. पे. नाम. भगवतीसूत्र सज्झाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. भगवतीसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि बंदी प्रणमी प्रेम अंतिः विनयविजय गुण गाय रे, गाथा - २१. २. पे. नाम. ज्ञाता अध्ययन सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सहगुरु पाय प्रणमी, अंति: लालविजय सुख थाय, गाथा - १२. ४८१६६. (+) परोपगार स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., ( २४.५X१०.५, ८x२८). औपदेशिक सज्झाव, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, आदिः करोड़ पर ऊपगार मुंकी, अंतिः सकल० सुधारस दीडवरे, गाथा-७ ४८१६७. सार वस्तु सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२३.५X११, -१X-१). औपदेशिक छंद, पंडित. लक्ष्मीकल्लोल, मा.गु., पद्य, आदि: भगवती भारती चरण नमेव; अंति: रंग मनि धरो कल्लोल, गाथा - १६. ४८१६८. सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २, जैवे. (२५x११, १४४४१). १. पे. नाम. नवधाक्रीया सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण. साधुगुण सज्झाव, ग. मणिचंद्र, मा.गु., पद्य, आदिः श्रवण कीर्तन सेवन ए अंतिः पदवी लहस्ये तेह, गाथा- ११. २. पे. नाम. रात्रीभोजन दोष सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, ग. मणिचंद, मा.गु, पद्य, आदिः सहइ गुरु चरण नमु निस, अंतिः मुगति कई अमर विमान, गाथा - १२. ४८१६९. समयसार नाटक भाषा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., ( २४.५X१०.५, १४X३६). समयसार नाटक, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९३, आदि: करम भरम जग तिमिर हरन, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा ६ तक लिखा है.) , , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८१७०. ऋषभदेव चउत्रीसइ अतिसइ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. दयारत्न; अन्य. आ. हीररत्नसूरि (तपगच्छ); पठ. मु. जगसी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २४.५X१०.५, १३x४०). आदिजिन स्तवन-३४ अतिशयगर्भित, मा.गु., पद्य, आदि; नाभिनरिंदमल्हार अंतिः अवर न कांइ इच्छिये ए गाथा - २१. ४८१७२. भावना, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, दे. (२४४१२, ११४३३). अध्यात्मभावना विचार, मा.गु., गद्य, आदि: धन्य हो प्रभु संसार, अंतिः करीने वंदना होजो. ४८१७३. जिन चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., ( २४४११.५, १०X२४). तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके; अंति: सततां सौख्यमानंदकारि, श्लोक-१०. ४८१७४. गौतम स्वामी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२४.५X१२, १०x३१ ). गौतमस्वामी अष्टक, सं., पद्य, आदि: श्रीइंद्रभूतिं वसु; अंति: लभते नितरां क्रमेण श्लोक - ९. ४८१७५. चक्रेश्वरी अष्टक, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. मुक्तिविमल, प्र. ले. पु. सामान्य, जैवे. (२४.५४९.५, १०x२५). 3 चक्रेश्वरीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीचक्रे चक्रभीमे, अंतिः चक्रदेव्याः स्तवेन, श्लोक ९. " ४८१७६. उपधानतप मालारोपणोपदेश, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., ( २४४११, १२X४८). उपधानतप मालारोपणोपदेश, सं., पद्य, आदिः यस्याः स्यात् फलममृत, अंतिः माला परिधीयते धन्यैः श्लोक-१७. For Private and Personal Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ४८१७७. सूरिमंत्र स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०२६, आश्विन शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. जोधपुर, प्रले. बालाराम; अन्य. आ. विजयोदयसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कदम्बगिरि में श्रीविजयोदयसूरीश्वरजी म.सा. की प्रत से प्रतिलिपि की गई है., दे., (२४४११, १२४४८). सूरिमंत्र स्तोत्र, आ. मानदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: रागादिरिउजइणं नमो; अंति: थुणताण सिद्धिसुह, श्लोक-१०, (वि. अंत में पाठांतर वाले श्लोक अलग से दिये गये हैं.) ४८१७८. धुलेवजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ., (२४४१२, २७७१९). आदिजिन स्तवन-धुलेवा, मु. रूपविजय, रा., पद्य, वि. १८९६, आदि: तुमे आतमरामी छो सामी; अंति: रूपविजय०सामलिया वाला, गाथा-११. ४८१७९. स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२३.५४९.५, १३४३३). १.पे. नाम. सरस्वत्या अष्टोत्तरनामगर्भित, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र-अष्टोत्तरशतनामगर्भित, सं., पद्य, आदि: धिषणा धीर्मतिर्मेधा; अंति: कल्मषं मे स्वाहा, श्लोक-१५. २. पे. नाम. अंबिकादेव्यष्टक, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. अंबिकादेवी स्तवन, आ. जिनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीदेविगंधर्वविद्या; अंति: प्रणिहत्वशिवं मम, श्लोक-८. ३. पे. नाम. जैन रक्षा, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. जिनरक्षा स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीजिनं भक्तितो; अंति: मान् संपदश्च पदेपदे, श्लोक-१८. ४८१८०. (+) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४-२(१ से २)=२, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४१०, १३४३९). १.पे. नाम. थंभण पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जाणी कुसललाभ पजपये, गाथा-१८, (पू.वि. गाथा १२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. शीतलजिन स्तवन-अमरसरपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, रा., पद्य, आदि: मोरा साहिब हो; अंति: समयसुंदर० जनमन मोहए, गाथा-१५. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ४आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उपधानतप स्तवन-वृद्ध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमहावीर धरम परकास; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ६ तक है.) ४८१८१. (-) सज्झाय व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२४.५४१०.५, १५४४७). १.पे. नाम. बावीसअभक्ष्य बत्रीसअनंतकाय सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: जिनसासन रे सूधी सद्द; अंति: प्राणी ते सविसुख लहइ, गाथा-१०. २. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: चंद्र मंडल दोइ मृगले; अंति: नेम बालाब्रह्मचारी, गाथा-३. ३.पे. नाम. अणखीया पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: माह मासनइ उंची मेडि; अंति: पत धुनइ पग चंपावि, गाथा-७. ४. पे. नाम. पद संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. मात्र २ गाथाएँ हैं.) ४८१८२. (#) वृद्धि चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १२४३२). शाश्वताशाश्वतजिन नमस्कार, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलउ त्रिकाल अतीत; अंति: लक्ष्मी साह्मी आवइ. ४८१८३. गुरुवंदन भाष्य व दुहा, संपूर्ण, वि. १८५०, पौष शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, ले.स्थल. वडोदरा, प्रले. मु. हीरवर्द्धन, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४१०, १०४२७). For Private and Personal Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ६ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. गुरुवंदन भाष्य, पू. १अ ३आ, संपूर्ण. गुरुवंदनभाष्य, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पच, आदि: गुरुवंदनणमह तिविहं अंतिः अणभिनिवेसी अमच्छरिणो, गाथा-४१. २. पे. नाम. दूहा संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. जैनदुहा संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि (-); अंति: (-), गाथा- १. ४८१८४. उठाणारी गाथा व्याख्यान, संपूर्ण वि. १८९२ आषाद कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. ३ ले, स्थल, नागोर, जैदे. (२४४११.५, १४X३०). व्याख्यान संग्रह *, प्रा., मा.गु., रा., सं., गद्य, आदि: अनित्यानि सरीराणी; अंति: परलोक सुखी होवे. ४८१८५. ४ मंगल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८३४, श्रावण कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. मु. रतना ऋषि (गुरु मु. दुलिचंद), प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२४.५x१०, १०x३३). ४ मंगल सज्झाय, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: अनंत चोवीसीजिन नमुं; अंतिः ऋष जैमलजी कहे एम तो, गाथा - ३८. ४८१८७. फाग संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२३.५X११.५, १०X३३). १. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ फाग, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ होरी, मु. मोहनविजय, मा.गु, पद्य, आदि: चालो सखि सेनुजागीर, अंतिः मोहन० जनम तारो दास, गाथा-५. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: होरी खेलो रे भविक; अंति: तें राख्या सबल थरके, गाथा-५. ४८१८८. सासरानी सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., ( २४१२, १४x२५). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आध्यात्मिकसासरीया सज्झाय, आ. खिमाविजयसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सासरडे ईम जयइ रे अंति: सिवपूरलहिइं रे बाई, गाथा - ९. ४८१८९. प्रतिमा थापनमत स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १८७६, माघ शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५X११, १४X३४). जिनप्रतिमा स्थापना सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि जिन जिन प्रतिमा वंदन, अंतिः किजै तास खाण रे, गाथा - १५. ४८१९०. स्तवन चौवीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., ( २४.५X१२.५, ११४३४). स्तवनचौवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जगजीवन जगवालहो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, अजितजिन स्तवन अपूर्ण तक लिखा है.) ४८१९१. विचार संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ४, जैदे., ( २४.५X११.५, ५X३४). १. पे. नाम. गोचरी दोष सह टबार्थ, पृ. १अ ३अ, संपूर्ण. , गोचरी दोष, प्रा., पद्य, आदि अहाकम्मु १देसिअ २ अंतिः निशीथे पारिवासीएय९६ (वि. प्रतिलेखक ने गाथा संख्या ५ के बाद संख्या नहीं दी है.) गोचरी दोष- बार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अ० आधाकर्मी आहार जे; अंति: सूत्रमांहि कह्यो छे. २. पे. नाम. ४७ दोषनो प्रायछित, पृ. ३अ, संपूर्ण. गोचरी ४७ दोष, मा.गु., गद्य, आदिः १ अहाकमे १ उपवा० वरा, अंति: ४७ कारणे १ आंबिल. ३. पे. नाम. साधु को त्याग करने योग्य १२ प्रकार के आधाकर्मि आहार, पृ. ३अ, संपूर्ण. पुहिं., गद्य, आदिः १आधाकर्मि २ उद्देशिक; अंति: ते परिठवणो साधु .. ४. पे. नाम. तीर्थकर धर्मतीर्थ आंतरादि विचार संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण, विविधविचार संग्रह गु., प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४८१९२. नंदीषेणमुनि सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, ये. (२४४१२.५, १४४३३). नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजगृही नयरीनो वासी, अंति: थयो शिववधुनो रागी है, (वि. दूसरी ढाल की गाथा संख्या ७ के बाद प्रतिलेखक ने गाथा संख्या नहीं लिखी है.) For Private and Personal Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ www.kobatirth.org (+-) ४८९९३. असझाइ सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल. अहमदुपुर, प्रले. मु. राघवजी ऋषि, पठ. मु. केसव ऋषि (गुरु मु. . राघवजी ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अशुद्ध पाठ., दे., ( २४.५X१२, १५x२९). असज्झाय सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: वंदीय वीरजिणेसर राय; अंति: रमणि जिम लीलई वरउ, गाथा - २४. ४८१९४. समयसार नाटक, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२४४१०५, ११४३६). समयसार नाटक, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९३, आदि : करम भरम जग तिमिर हरन, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ४ तक है.) ४८१९५. सिद्धचक्र स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. कुल ग्रं. १५, दे., ( २४.५X१०.५, १०X३१). सिद्धचक्र स्तुति, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: अंगदेश चंपापुरवासी; अंति: ते घरे नित्य दीवाली, गाथा-४. ४८१९६. नंदिषेण सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., ( २४.५X११.५, १२X३०). नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदिः राजगृही नवरीनो वासी; अंति: गुरुने कुण तोले हो, ढाल ३, गाथा - १६, ग्रं. २८. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८१९७. स्तवन व दुहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ४, जैदे., (२४X११.५, ११x२५). १. पे नाम वीरजिन पंचकल्याणक स्तवन, पृ. १अ-४अ संपूर्ण वि. १८८१ चैत्र कृष्ण, ८, ले. स्थल, आगलोड, प्र. मु.] मयासागर, प्र.ले.पु. सामान्य, पे. वि. श्रीसुमतिनाथजीप्रभु प्रशादात्. महावीरजिन स्तवन- ५ कल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: शासननायक शिवकरण वंदु अंतिः नामे लही अधिक जगीस ए, ढाल ३. २. पे नाम, गिरिराज स्तवन, पृ. ४-४आ, संपूर्ण शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: तुमे चालोने प्रीतम, अंति: दानवीजे० ए संवर लीजे, गाथा-५. ३. पे, नाम, शांतिजिन स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: तुं मेरा मनमांजी तु अति देव शकलमां हो जिनजी, गाथा-५. ४. पे. नाम औपदेशिक दुहा संग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण. औपदेशिक दूहा संग्रह, पुहिं., प्रा., मा.गु., पद्य, आदि: आप समा पर जीवडा; अंति: त्यो मुरख को हेत, गाथा-३. ४८१९८. स्तोत्रादि संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैवे. (२४.५x१०.५ १२४३१). १. पे. नाम. आदिजिन पारणा गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. सुपात्रदानफल स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदिः उसभस्सय पारणए इक्खुर, अंति: भरहे साहु न सीयंति, गाथा-५. २. पे. नाम. पंचपरमेष्ठि गुणविवरण, पृ. १अ संपूर्ण. प्रा. सं., पद्य, आदि अरिहंत गुणा बार सिद्; अंतिः साहुण सतवीसा, गाथा- १. ३. पे. नाम. गौतमस्वामी अष्टक, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदिः प्राह उठी गीतम प्रणमी, अंतिः समयसुंदर० परधान, गाथा-८. ४८२०० पार्श्वनाथ स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५४(१ से ४)= १, कुल पे. २, प्र. वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखा है.. जैवे. (२४४११.५, १०४३६). १. पे नाम. चिंतामणि पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ५अ- ५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- लोद्रपुरचिंतामणि, मु. धर्ममंदिर, मा.गु., पद्य, वि. १७३०, आदि: स्यांम सोभागी सांभलो; अंतिः जयी पास चिंतामणी, गाथा- ११. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तवन- चिंतामणि, मु. कनकमूर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: एक अरज अवधारीयै रे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ७ अपूर्ण तक है.) ४८२०१. पार्श्वनाथजीनी निसाणी, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३-१ (१)-२ प्रले. मु. नानुलाल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४१२, १३३७). For Private and Personal Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, म. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदिः (-); अंति: गुण जिनहरख गावंदा है, गाथा-२८, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा ९ अपूर्ण से है.) ४८२०२. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२२.५४११, २१४४६). १.पे. नाम. गौडी पार्श्वनाथजी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. __ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. कनकमूरत, मा.गु., पद्य, वि. १७६२, आदि: जैसाणे जिनराज हो लाल; अंति: __कनकमूरत जिन आगला भणे, गाथा-१५. २. पे. नाम. जिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पीउडा जिनचरणारी; अंति: मोहन अनुभव मांगे, गाथा-३. ३. पे. नाम. नेमराजीमति स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: म्हारा सांवलीया रे; अंति: सगली बात सुधारी, गाथा-६. ४८२०३. नेमनाथ तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२३.५४८.५, ८x२८). नेमराजिमति सज्झाय, मु. केवलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल गोरी बेठां छे; अंति: केवलविजय० शिववास, गाथा-११. ४८२०४. (+) आलोयणा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, १२४३६). आवश्यकसूत्र-श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह का श्राद्धपाक्षिक अतिचार, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रथम इरीयावही पडिकम, (२)विशेषतः श्रावक तणइ; अंति: तीर्थकर गोत्र बांधे. ४८२०५. कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १६४१, श्रावण कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. १३-१२(१ से १२)=१, कुल पे. २, ले.स्थल. वीनादेसर, प्रले. पं. विजयदेव, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४९.५, १५४५१). १. पे. नाम. पात्रदाणोपरि हंसपाल कथा, पृ. १३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. हंसपाल कथानक-दानोपरि, प्रा.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: मोक्ष्यं यास्यंति, (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ___'मतिसागरमुनि के आगमन वृत्तान्त' तक लिखा है.) २. पे. नाम. अंबिका दृष्टांत, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण. अंबिकादृष्टांत कथा, सं., गद्य, आदि: सोरठदेशमध्ये कोडीनार; अंति: जगति विख्याता बभूव. ४८२०६. चोवीसजिन परिवार सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२३.५४११, १०४२८-३०). तीर्थंकर परिवार सज्झाय, मु. सुखलाल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: राजाराणी कणबो घणो; अंति: सुखलाल मोहनी जीता जी, गाथा-१७. ४८२०८. षट् अट्ठाई स्तवन, संपूर्ण, वि. १८७२, भाद्रपद शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. वासा, प्रले. पं. गणपतसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१०.५, १६४४६). ६ अट्ठाइ स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८३४, आदि: श्रीस्याद्वाद सुधोदध; अंति: लक्ष्मीसूमंगल पाझ्या, ढाल-९, गाथा-५४. ४८२०९. (+) सीमंधरस्वामि स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, १४४४५). सीमंधरजिन स्तवन, ग. उत्तमसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर वीनमुरे; अंति: उत्तम० अधिक जगीसो जी, गाथा-२३, संपूर्ण. ४८२१०. पांचम स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२४.५४११.५, १३४२२). ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी श्रीगुरुपाय; अंति: वीरजिणवर इम कहै, ढाल-३, गाथा-२३. ४८२११. (+) पाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. पं. धीरविजय; पठ. श्राव. गोडीदा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२३.५४१०.५, १३४३२). साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: इच्छाकारेण संदेस्सह; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. For Private and Personal Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ४८२१२. (+) स्तवन व पद, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे ३, प्रले. पं. हुकमचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४९.५, २६१२). १. पे. नाम लोद्रपुर पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण वि. १८७८ आश्विन कृष्ण, १३. पार्श्वजिन स्तवन- लोद्रवपुर, मु. हरखनिधान, मा.गु., पद्य, बि. १७४४, आदिः प्रह सम पूजो सहीयां, अंति: हरषनिधान सपरिवार, गाथा-६, २. पे. नाम. चिंतामणिपार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ २आ, संपूर्ण वि. १८७८, आश्विन शुक्ल, १२. पार्श्वजिन स्तवन- लोद्रवपुरचिंतामणि, मु. धर्ममंदिर, मा.गु., पद्य, वि. १७३०, आदि: साम सोभागी सांभलो, अंतिः जयी पास चिंतामणी, गाथा- ७. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. राज, पुहिं., पद्य, आदि: मन भायो री मन भायो; अंति: सरणै राज तुमारै आयौ, गाथा-३. ४८२१३. चार गोला ढाल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., ( २४४११.५, १५X३७). ४ गोला पंचढाल, मा.गु., पद्य, आदि: अमृतवाणी साधुतणी रे; अंति: ते लहे धर्मना साका, ढाल-५, गाथा-५५. ४८२१५. तेवीस पदवी विचार, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १ वे. (२३.५X१२.५, १५४३७). २३ पदवी विचार, मा.गु., गद्य, आदि: चक्ररत्न पदवी १ छत्र; अंतिः ए आठ रत्न पदवी पामे. ४८२१६. (+) सझाव संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८०, चैत्र कृष्ण, ५. श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२४४११.५, १४४४१). १. पे. नाम. मृगापुत्र सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, मु. कानजी ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि पुर सुग्रीव सोहामणो, अंति: कानजी० सुध प्रणाम हो, गाथा १६. २. पे. नाम. रुक्मिणीसती सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण रुक्मणीसती सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु, पद्य, आदि: विचरता गामोगाम नेमि, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा २ अपूर्ण तक लिखा है.) ४८२१७. (#) पार्श्वनाथजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २४४१०.५, ९४२४). पार्श्वजिन स्तवन, मु. रूपचंद, पुहिं, पद्य, आदिः आज सफल दिन धन प्रते; अंतिः प्रभुजी हो थे भाव, गाथा- ९. ४८२१८. सझाय व कवित, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैवे (२५४११, १०x३९). १. पे. नाम. राजुल सज्झाय, पृ. ९अ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मु. प्रमाणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: नव भव केरी प्रीत; अंति: प्रमाणसागर० बंधण छोड, गाथा- ६. २. पे. नाम औपदेशिक कवित्त, पृ. १आ, संपूर्ण. क. गद, पुहिं, पद्य, आदि: अजेचंद चंदणो अजे मही अंति (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा ३ तक "" है.) ४८२१९. पंचतीर्थजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८६१ फाल्गुन शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. सीधरोत, प्रले. ग. नायक विजय, पठ. मु. देवा (गुरुग, नायकविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५x११, १२x४४). " ५ तीर्थजिन स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि आदि ए आदिए आदिजिने अंति: लावण्यसुं० सुख संपदा, गाथा - ११. ४८२२० (+) प्रजनकंबर लावणी, संपूर्ण वि. १९६४, पौष शुक्ल १४, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल, छोटी सादड़ी, प्रले. मु. खूबचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत. दे. (२४.५x११.५, २०६६). प्रजनकंवर लावणी, मु. खूबचंद ऋषि, पुहिं., पद्य, वि. १९६४, आदिः ये प्रजनकंवर कि, अंति: नंदलाल० गुरु जी, गाथा - २२. ९ ४८२२१. बृहत्शांति, संपूर्ण, वि. १९वी श्रावण शुक्ल, ८, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले. स्थल. कर्मवाटी, प्रले. मु. शिवलाभ, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५X११.५, १२X३३). बृहत्शांति स्तोत्र - खरतरगच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: ध्यायमाने जिनेश्वरे. For Private and Personal Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४८२२२. स्तवन व गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, अन्य. श्राव. रूपजी सिंघजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. दादाजी सत्य छै., जैदे., (२४.५४१०.५, २८x२०). १.पे. नाम. गउडीपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जिनभक्ति, सं., पद्य, आदि: जय जय गउडीजी महाराज; अंति: त्वां प्रणमामि सदैव, श्लोक-९. २.पे. नाम. दादाजी गीत, प्र. १अ-१आ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि गीत, आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनक्सलसूरीसरू; अंति: जिनभग० वंदना जाणो जी. गाथा-८. ४८२२३. लावणी व स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. दोलतवर्धन, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१२, १४४३९). १. पे. नाम. ऋषभ लावनी नाटिक छंद, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन, मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि: धुनी ध्रहकती ध्रहकती; अंति: कांति० करत होय असर, गाथा-५. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: नै दें कि धप; अंति: दिशतु शासनदेवता, श्लोक-४. ४८२२४. संतिकरं स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. ग. जिनप्रमोद गणि (गुरु आ. लक्ष्मीसागरसूरि, तपागच्छ); गुपि. आ. लक्ष्मीसागरसूरि (तपागच्छ), प्र.ले.प. सामान्य, जैदे., (२४४११, ९४३१). संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: संतिकरं संतिजिणं जग; अंति: स लहइ सुअसंपयं परमं, गाथा-१३. ४८२२५. स्तोत्र व मंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२४४११.५, ८x२०). १. पे. नाम. घंटाकर्ण स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. घंटाकर्ण मंत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ घंटाकर्णमहावीर; अंति: ते ठः ठः ठः स्वाहा, श्लोक-४. २. पे. नाम. पार्श्वजिन मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणिमहामंत्रगर्भित, धरणेंद्र, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं अहँ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रथम श्लोक तक लिखा है.) ४८२२६. (+#) धनासालीभद्र स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. तेवास, प्रले.पं. लाभविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४११.५, १३४२७). शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम गोवाला तणे भव; अंति: सहेजसुंदर निर्वाण, गाथा-१९. ४८२२७. (+#) वीसस्थानकतप विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. सूरतबंदिर, प्रले. ग. शुभविजय; पठ. श्रावि. स्यामबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, ९४३३). २० स्थानकतप आराधनाविधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नमो अरिहताणं २०००; अंति: ५नो काउसग्ग कीजै, पद-२०. ४८२२८. आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४४११, १२४३२). आदिजिन स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: आदिसर सुखकारी हो; अंति: प्रभु आवागमन निवार, गाथा-५. ४८२२९. गणेश छंद, संपूर्ण, वि. १८३८, आषाढ़ कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. ऐनलारागुढाग्राम, प्रले. मु. पद्मसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. सुव्रतजी प्रसादात्., जैदे., (२४४१०.५, १३४३६). गणेश छंद, मु. हेमरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय गूणपति गुण; अंति: हेमरत्न० गणपति तुरंत, गाथा-११. For Private and Personal Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ४८२३० (+) वीर कलश व मुनिसुव्रतस्वामी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. मुनिसुव्रतजिन प्रसादात्., कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत, दे., ( २३११, १५X४०-४३). १. पे. नाम वीर कलश, प्र. १अ-२अ, संपूर्ण. महावीरजिन कलश, आ. मंगलसूरि, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: श्रेयः पल्लवयंतु वः; अंति: मंगलसू० पूजो एहिज देव, श्लोक-१८. २. पे नाम. मुनिसुव्रतस्वामी स्तवन, पृ. २अ २आ, संपूर्ण, ले. स्थल, उडाइनगर, प्रले. मु. विद्याविजय (गुरुमु, चतुरविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, पे. वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. मुनिसुव्रतजिन स्तवन- उडाइमंडन, मु. विद्याविजय, मा.गु., पद्य, वि. २०वी, आदिः श्रीमुनिसुव्रत, अति विद्या० मारी वंदणारे, गाथा-६. ४८२३१. (१) पार्श्वजिन स्तवन व परिवार संख्या, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे २ प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २४.५X११, १३४३८). १. पे नाम. पार्श्वनाथजीनुं स्तवन, पृ. ९अ १आ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन, आ. दुर्गादास, मा.गु., पद्म, वि. १६३१, आदि पासजिणेसर पाय नम: अंतिः दुर्गदास० पाल सुहंकरो, गाथा - १६. २. पे. नाम. पार्श्वनाथजीनुं परवार, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन परिवार संख्या, पुहिं., गद्य, आदि: गणधर आठ हुआ सोलै; अंति: सीझे २००० आरजा सीझी.. ४८२३२. (+) सज्झाय व स्तवन, अपूर्ण, वि. १७९३ शुक्ल, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ११-९ (१ से ९) = २, कुल पे. २, प्रले. मु. भीमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२२४११, १३x२३). १. पे. नाम. नंदीषेणसाधु सझाय, पृ. १०अ १०आ, संपूर्ण नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: साधुजी न जईए परघर एक; अंति: एकलो परघर गमण निवार, गाथा - १०. ४८२३४. लोक संग्रह व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे, २, दे. (२४.५x१२, २२x१२). १. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे. नाम. नाकोडापार्श्वनाथजिण स्तवन, पृ. १० आ - ११अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद - नाकोडातीर्थ, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: अपणैघरि बैठा लील करो, अंतिः नाम जप श्रीनाकोडो, गाथा- ८. " יי ११ लोक संग्रह प्रा.मा.गु. सं., पद्म, आदि (-); अंति: (-) श्लोक-६. २. पे नाम. नेमनाथजी चौवीसी, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, पे. वि. प्रतिलेखक ने कृतिनाम में चौवीसी लिखा है परंतु वास्तव में यह सज्झाय है. नेमराजमति सज्झाय, मु. धरम, मा.गु., पद्य, आदि: जिणजी तो जिणजी मेहे; अंति: नेमजी धरम नमै उपगार, गाथा - ९. ४८२३५. छ आरा विवरण, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैदे. (२४.५x१०, १३x४०). ६ आरास्वरूप विवरण”, मा.गु., गद्य, आदि: वीस कोडाकोडी सागरोपम; अंति: महावीर तीर्थंकर हुआ. ४८२३६. शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, जै, (२५x११.५, ११४३९). शांतिजिन स्तवन- निश्चयव्यवहारगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३४, आदि: शांतिजिनेशर केसर, अंति: जसविजय जयसिरी लही, ढाल-६, गाथा- ४८. ४८२३७. नेमराजुल लूअरि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. पं. चतुरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे (२४.५X१०.५, १९X५६). ४८२३८. राजिमती संवाद, मु. ऋद्धिहर्ष, रा., पद्य, आदि: हठ करी हरीय मनावीओ; अंति: ऋद्धिहर्ष० दातार रे, गाथा-३२. (+) ज्ञानपंचमी स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १८१६, श्रावण शुक्ल, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. सीवपूरी, प्रले. पं. नायकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., ( २४४१०.५, १५X४०). For Private and Personal Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्य जिणेसर; अंति: संघ सयल सुखदाय रे, ढाल-५, गाथा-१६. ४८२३९. मौन एकादशी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४११.५, १४४३३). मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदि: समोवसरण बेठा भगवंत; अंति: कहै कह्यो द्याहडी, गाथा-१३. ४८२४०. शेव्रुजय स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, ज्येष्ठ शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. कपर्दीपूरी, प्रले. पं. देवेंद्रविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, ११४२५). शत्रुजयतीर्थ स्तुति, श्राव. ऋषभदास , मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसेजो तीरथ; अंति: पाय ऋषभदास गुण गाय, गाथा-४. ४८२४१. भास संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२५४११, १४४३५). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रुडीने रढीयाली रे; अंति: अनंत गुणा करू जौ, गाथा-५. २. पे. नाम. गुरुगुण गहुंली, पृ. १अ, संपूर्ण. विजयलक्ष्मीसूरि गहंली, मु. सौभाग्यलक्ष्मी, मा.गु., पद्य, आदि: आर्यदेश नरभव लह्यो; अंति: विजयलक्ष्मी गुण जाण, गाथा-६. ३. पे. नाम. गुरुगुण भास, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. गुरुगुण गहली, मु. सौभाग्यलक्ष्मी, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवयणे अनुरंगी मुनि, अंति: विजयलक्ष्मी० वरतारे, गाथा-६. ४. पे. नाम. महावीरजिन भास, पृ. १आ, संपूर्ण. __आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजी आव्या रे गुण; अंति: लक्ष्मीसूरी गुण ठाण, गाथा-५. ४८२४४. सझाय व स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२४४१२, १३४२६). १.पे. नाम. पजूसणारी सिझाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. मतिहंस, मा.गु., पद्य, आदि: परव पजुसण आवीयो रे; अंति: मतिहस नमे करजोडिरे, गाथा-११. २. पे. नाम. अष्टमीतिथि थुइ, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टमी अष्ट परमाद सब; अंति: तस विघन दूरे हरे, गाथा-४. ४८२४६. पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, दे., (२४.५४१२, १४४३७). १.पे. नाम. आत्म पद, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, मु.रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: हक मरणां हक जाणा; अंति: रूपचंद० ग्याना बे, गाथा-४. २.पे. नाम. नेमराजिमती रेखतो, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती रेकता, मु. चंदविजय, पुहिं., पद्य, आदि: राजुल पुकारे नेम; अंति: चंदविजे० चरण तुम परी, गाथा-४. ३. पे. नाम. अध्यात्मिक पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. आध्यात्मिक पद, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अविन्यासीनी सेजडीयां; अंति: रूपचंद० बंधाणी जी, गाथा-४. ४. पे. नाम. पार्श्व पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनचंद्र, पुहिं., पद्य, आदि: जय बोलो पास जिनेसर; अंति: छाया सुरतरु की, गाथा-७. ४८२४७. स्तवन व दोहा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२४.५४११.५, १२४३५). १. पे. नाम. लोद्रवपुर चिंतामणजी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-लोद्रवपुरचिंतामणि, आ. पद्मसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १९०८, आदि: धन्य दिवस मुझ आजनो; अंति: पद्मसू०प्रमाण हो राज, गाथा-७. २.पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: आटो टाटो मेघी घडो; अंति: लाली जरख सा नार, गाथा-१. For Private and Personal Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ४८२४८. पद, गीत व सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ८, वे. (२४.५x१०.५, १८४५२). १. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. , विनय, पुहिं., पद्य, आदि: डरो रे नर अशुभ बंधन, अंति: विनय० ग्यातनंदनसुं, गाथा-८. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. विनय, पुहिं., पद्य, आदिः या तन का काहा गरब कर, अंति: विनय० फेरा मिटावे रे, गाथा - ११. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, प्र. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. विनय, पुहिं., पद्य, आदि मे हुं पाप अधम की अंतिः विनयचंद ० लीज्यो जगभान, गाथा- ६. ४. पे. नाम. णमोत्थुणं गीत, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. विनयचंद, पुहिं., पद्य, आदिः श्रीमहावीर धीर वीरो; अंति: विनय० पिता तुम मायो, गाथा - ९. ५. पे. नाम औपदेशिक पद, प्र. २अ २आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir क. मान, पुहिं., पद्य, आदि: नर जनम कीए आथ साथ; अंति: एह पाय मान रे कही, गाथा - ५. ६. पे. नाम. उपदेशी सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण औपदेशिक सज्झाय, मु. विनयचंद, मा.गु., पद्य, आदि पाम्यो नर अवतार पर अंतिः विनयचंद सहिजे बरो जी, गाथा - १६. ७. पे. नाम. अठारे पापस्थानकनी सिज्झाय, प्र. २आ-३अ, संपूर्ण. १८ पापस्थानक सज्झाय, मु. विनयचंद, पुहिं., पद्य, आदि: एक पाप कर सारी आलम, अंति: विनय० भवसागर तिरता है, गाथा - २१. १३ ८. पे. नाम. भगुप्रोहित पंचढालीयो, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण. भृगुपुरोहित चौढालियो, मा.गु, पद्य, आदि देव हुंता भव पाछलै; अंतिः सुण दृष्टांत हुआ बार, ढाल ५ (वि. पहली ढाल के मात्र दोहे को ही ढाल १ गिनकर, इसके बाद के पाठ को ढाल २ गिनने से ५ ढाल होती हैं.) ४८२४९. नेमनाथ रास, संपूर्ण वि. १७३३ आश्विन कृष्ण, ७, सोमवार, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. सांवल (गुरु मु. भीमाजी ऋषि); गुपि. मु. भीमाजी ऋषि (गुरु मु. भोजाजी ऋषि); मु. भोजाजी ऋषि पठ. सा. जगीसाबाई, प्र.ले.पु. मध्यम, जैवे., (२२.५x१०.५, १४X३७). मराजिमती रास, मु. पुण्यरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सारद माय प्रणमी करी; अंतिः पुण्यरतन० नेमजिणंद, गाथा - ६४. ४८२५०. पजुसण स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., ( २४.५X१२.५, १२X३६). पर्युषण स्तवन, मु. विबुधविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सुणजो साजन संत पजुसण; अंतिः विबुधविमल० वरीया रे, गाथा-८. ४८२५१. (+) साधु वंदना व पंचपद महिमा, संपूर्ण, वि. १९१४, वेदधरानिदानससी, माघ कृष्ण, ७, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, . स्थल. विक्रमपुर, प्र. मु. रणधीर; राज्यकालरा. सिरदारसिंह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२४४११, १७x४७). १. पे. नाम. साधुवंदणा गुणमाला, पृ. १अ - ३अ, संपूर्ण. साधुवंदना बडी, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८०७, आदि: नमुं अनंत चोवीसी ऋषभ, अंति: जैमल एही दाव, गाथा - ११०. २. पे. नाम. पंचपद महिमा वर्णन, पृ. ३अ ४आ, संपूर्ण. पंचपद महिमा, मु. राम ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: सरव आगमसार श्रीनवकार, अंति: ऋषिराम० पातिक खपे, गाथा - ५९. ४८२५२. (+) स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., For Private and Personal Use Only (२३.५४८.५, १४४६३). १. पे. नाम. सीमंधर पद, पू. १अ संपूर्ण. सीमंधरजिन विनती स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, आदि श्रीसीमंधर वीनती सुण अंतिः नय कहे० कहु बहु तेरा, गाथा-५. Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २.पे. नाम. चेतना स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. मनुष्यजन्म सज्झाय, मु. विजयदेव, मा.गु., पद्य, आदि: सुरतरूनी परो दोहिलोज; अंति: रे श्रीविजयदेवसूरके, गाथा-१५. ३. पे. नाम. बारमासो, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक बारहमासा, मु. दीन, पुहिं., पद्य, आदि: काती मास कहुं करजोरी; अंति: दीन० साहिबजीनो पलो, गाथा-१३. ४. पे. नाम. वासुपूज्यजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. हीरधर्म, पुहिं., पद्य, आदि: जिणंदवा मिल गयो रे; अंति: हीरधरम० लहे लयो रे, गाथा-५. ४८२५३. गौतमस्वामी रास व सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, दे., (२३.५४१०.५, १३४४०). १.पे. नाम. गौतम स्वामी रास, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: वृद्धि कल्याण करो, गाथा-४८. २. पे. नाम. सीमंधर स्वामी स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, मु. शांतिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जंबूवरदीव महाविदेह; अंति: भणइ श्रीसंतिसूरि, गाथा-८. ४८२५४. सरस्वती छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ., (२५४१२, १०४२९). सरस्वतीदेवी छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: ससिकर निकर समुज्वल; अंति: सदा सोय पूजो सरसती, ढाल-३, गाथा-१४. ४८२५६. सर्व साधारणजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४११, १६x४०). रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल; अंति: श्रेयस्करं प्रार्थये, श्लोक-२५. ४८२५७. चौबीसजिन चैत्यवंदन व नवअंग पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२४.५४११, ११४४०). १. पे. नाम. २४ जिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. ग. शुभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धोरी १ कुंजर २ अश्वन; अंति: जस० दरिशन प्रतक्ष, गाथा-५. २.पे. नाम. नवअंग पूजा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नवअंगपूजा दुहा, मु. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जल भरी संपुट पत्रमा; अंति: कहे शुभवीर मुणिंद, गाथा-१०. ४८२५८. (+) चौदगुण स्थान स्वाध्याय व औपदेशिक पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ४, प्र.वि. कृति से संबंधित यंत्र दिया गया है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, २३४३०-४५). १. पे. नाम. चउद गुणठाणा स्वाध्याय, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. १४ गुणस्थानक सज्झाय, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७६८, आदि: चंद्रकला निर्मल सुह; अंति: पाप पंथ परिहरीआरे, गाथा-६४. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. नवल, पुहि., पद्य, आदि: ज्ञानामृत प्यालो भवि; अंति: नवल चिरंजीयो जी, गाथा-३. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु वचन मेरो मन हर; अंति: जाल कहा भूल रस भीनो, गाथा-३. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: लगन मेरी लागी लागी; अंति: ब्रह्म धम मय मागी, गाथा-२. ४८२५९. (#) चौदह गुणस्थानक सज्झाय, स्तवन व पद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-२(१ से २)=४, कुल पे. ८, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १८४४२-४४). १.पे. नाम. चतुर्दशगुण स्थानानि, पृ. ३अ-६अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., वि. १८३१, चैत्र शुक्ल, १४, ले.स्थल. कूडा, प्रले. श्राव. मोतीराम, प्र.ले.पु. सामान्य. For Private and Personal Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ www.kobatirth.org (+) १५ १४ गुणस्थानक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि (-); अति: स्पर्शतुं धकु जाइ, सज्झाय-१४ ( पू. वि. गुणस्थानक ३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. नंदीसरजी स्तवन, पृ. ६आ, संपूर्ण. नंदीश्वरद्वीप स्तवन, मु. जैनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: नंदीसर बावन जिनालये; अंति: जैनचंद्र गुण गावो रे, गाथा- १५. ३. पे. नाम. सुमतिजिन पद, पृ. ६आ, संपूर्ण. मु. हर्षचंद, पुहिं, पद्य, आदि निरख वदन सुख पायोरी अंतिः हरषचंद० नही भायौ, गाथा-३. " ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ६आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि; होरी खेलो रे भविक मन, अंतिः तेरा पाप सबल थरकै, गाथा-४. " ५. पे. नाम. नेमराजीमती पद, पृ. ६आ, संपूर्ण. मराजिमती पद, मु. चंद, पुहिं., पद्य, आदिः यादव मन मेरो हर लीयो; अंति: चंद कहे मन हरखियो रे, गाथा-३. ६. पे नाम, धर्मजिन स्तवन, पृ. ६आ, संपूर्ण, पंडित. खीमाविजय, पुहिं., पद्य, आदि: इक सुणलौ नाथ अरज, अंति: अनुपम कीरत जग तेरी, गाथा-५. ७. पे नाम, पार्श्वजिन पद, पृ. ६आ, संपूर्ण. आ. जिनभक्तिसूरि, पु,ि पद्य, आदि माई रंगभर खेलेंगे; अंतिः जिनभक्ति जिनवर सहाय, गाथा ५. ८. पे. नाम. आदिजिन स्तवन- फलवर्द्धिपुरमंडण, पृ. ६आ, संपूर्ण. क. रूप, पुहिं, पद्य, आदि; जय जय हो सामी जैनराय; अंतिः रूप० मोहि करो सनाथ, गाथा ४. ४८२६१. कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८१७, मार्गशीर्ष कृष्ण, २, सोमवार, मध्यम, पृ. १६४-१६३ (१ से १६३) = १, प्र. मु. किसोरचंद ऋषि, पठ. मु. खेमाविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२३.५x१०, ६३९). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान ९ ग्रं. १२९६ (पू.वि. २६वीं , समाचारी से है.) कल्पसूत्र - टवार्थ #, मा.गु., गद्य, आदि: (-): अंतिः कहे ए भगवंत उपदेश्यो, ग्रं. १९१२६३ (पू.वि. २६वीं समाचारी का टवार्थ अपूर्ण से है.) ४८२६२. (+) चौरासी अशातना स्तवन व नवपद स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. अन्वय दर्शक अं युक्त पाठ. वे., (२५x११.५, ९४३८). १. पे. नाम. चोरासी आसातनानिरूपण स्तवन, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. ८४ आशातना स्तवन, उपा, धर्मसिंह, मा.गु, पथ, आदि: जय जय जिनपास जगत्र; अंतिः वंदे जैनसासन ते वली, गाथा - १८. २. पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: तीरथनायक जिनवरू रे; अंति: नित प्रति नमत कल्याण, गाथा-५. ४८२६३. अंजनासती रास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३- २ (१ से २ ) = १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., दे., (२५X११.५, १६४३६-३८). अंजनासती रास, मा.गु., पद्य, आदि: (-) अंति: (-), (पू. वि. गाथा २० अपूर्ण से ३९ अपूर्ण तक है.) ४८२६४. गुणस्थान वचन रूप चरचा संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४ वे. (२४.५४१२, १४४३८) १४ गुणस्थानक १०४ द्वार विचार, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नामद्वार लक्षण; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. द्वितीय नामद्वार अपूर्ण तक लिखा है.) ४८२६६. योगचिंतामणीयां-विकाराधिकार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., ( २४.५x१०, १३X३४). योगचिंतामणि - विकाराधिकार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: नालेयरविकारे गोधृतपल; अंति: संधि सुठि वाटी पीजे. ४८२६७. चतुर्विंशतिजिन स्तवन व सुभाषित श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे. (२४.५x१०.५, १२४३२). १. .पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १६ www.kobatirth.org २४ जिन स्तवन- अनागत, मु. देवकलोल, मा.गु, पद्य, आदि परषद बइठी बार जिवार, अंतिः इम भणइ श्रीदेवकल्लोल, गाथा १५. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. सुभाषित श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. सुभाषित लोक संग्रह में पुहिं, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा- १. ४८२६९. सीमंधरस्वामी स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२३.५X१२, १०X३३). *, सीमंधरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: वालो मारो सीमंधर, अंति: ते कयुने मे दह्यं. ४८२७०. विविध सूत्र व विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९२७, चैत्र शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ६, दे., ( २४४११, १०x२९). १. पे. नाम. परभातपडिकरणारी विधी, पृ. १अ - २आ, संपूर्ण. प्रतिक्रमणविधि संग्रह - तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: इरियावही पडिकमी; अंति: भगवन इ च्यार बोल कहे. २. पे. नाम. पोसहलेवारी विधि, पृ. २आ- ३आ, संपूर्ण. पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदिः खमासमण देइ इरियावही; अंति: राखी तीन नोकार गणीजै. ३. पे नाम, पडिलेहण विधि, पृ. ३आ, संपूर्ण. प्रतिलेखन विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: पझे हेठा जैसी इछाकार, अंति: करी मिच्छामिदुकडं. ४. पे. नाम. देववांदवारी विधि, पृ. ३आ-४अ संपूर्ण देववंदन विधि, प्रा., मा.गु, गद्य, आदि: इरियावही पडिकमीजे अंतिः नमोर्हत् तवन जयवीराय ५. पे. नाम. अमृतध्वनि, पृ. ४आ, संपूर्ण. पं. भानुविजय, मा.गु, पद्य, आदि: तुहि तुहि त्रिभुवन, अंतिः तुहि त्रिभुवन तिलक, गाथा-२. ६. पे. नाम. गुरुस्थापना सूत्र, पृ. ४आ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि पंचिदिय संवरणो तह अंति: गुणो गुरु मज्झ, गाथा-२. ४८२७१. (+) शांति स्तोत्र, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. दे. (२४.५x११.५, १४४३१). शांतिजिन छंद- हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारद माय नमुं सिरनाम; अंति: गुणसागर० सुख पावै, गाथा-२१. ४८२७२. नेमराजीमती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२३.५X१२, ११x२३). नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामण वीनवु लाग; अंति: धनधन राजुलनार जी, गाथा - १०. ४८२७३. ऋषभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८६१ फाल्गुन शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. देवगढ, जैदे., (२४X११, १७x४५). आदिजिन स्तवन, मु. राज, मा.गु., पद्य, आदि: अलख अगोचर अजर अरूपी, अंतिः सेवक राज० ऊतारो राज, ४८२७५. मौनएकादशी सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२३.५४१०.५, १९३४). गाथा - ११. ४८२७४. जिनस्तुति प्रार्थना व बीजतिथि स्तुति, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३ (१ से ३) = १, कुल पे. २, दे., (२३.५X११.५, १३X३२). १. पे. नाम. जिनस्तुति प्रार्थना संग्रह, पृ. ४अ, संपूर्ण. साधारण जिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, प्रा. मा.गु. सं., पद्य, आदि: मंगलं भगवान वीरो अंतिः सततां मम मंगलं, गाथा-८. २. पे नाम, बीजतिथि स्तुति, पृ. ४-४आ, संपूर्ण मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: लब्धविजय० मनोरथ माय, गाथा- ४. For Private and Personal Use Only एकादशीपर्व सज्झाय, मु. विशालसोमसूरि शिष्य, मा.गु., पद्म, वि. १७वी, आदि: गोवम पूछे वीरने सुणो; अंतिः विशालसोम० सजाय भणी, गाथा - १५. ४८२७६. नेमराजीमती गीत व संखेसर पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२४X११, १३X३३). १. पे नाम, नेमराजीमती गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ नेमराजिमती गीत, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: सामलीआ घर आव कि राजु; अंति: सहजसुंदर० हो लाल, गाथा-५. २.पे. नाम. संखेसर पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरमंडन, मु. केसरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सुणिरे साहिब माहरा; अंति: केसरविमल० आस जिनजी, गाथा-७. ४८२७७. (+) वीर स्तुति, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४१०.५, ९४३८). महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: पापा धाधानि धाधा; अंति: छंदसौ वर्द्धमानः, श्लोक-४. ४८२७८. हेमराज बावनी व औपदेशिक पद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-१(१)=४, कुल पे. २, ले.स्थल. करहेडा, प्रले. मु. उदयहंस, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १३-१५४३८-४०). १.पे. नाम. हेमराज बावणी, पृ. २अ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. औपदेशिक बावनी, मु. हेमराज, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: सुजस जमाल नरा कीइं, गाथा-५१, (पू.वि. गाथा ११ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ५आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: नमे तुरी बहु ते गन; अंति: कर आवे मान अजुन मरे, गाथा-२. ४८२७९. (#) स्तोत्र व मंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४११.५, १८४३८). १.पे. नाम. ज्वालामालिनी महामंत्र स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ज्वालामालिनी स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवते श्रीचंद; अंति: ज्ञापयति स्वाहा. २. पे. नाम. गुरु स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ गुरु स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: वृहस्पतिमहं नौमि; अंति: तेषां कामफलप्रदं, श्लोक-८. ३. पे. नाम. शनि मंत्र जप विधिसहित, पृ. १आ, संपूर्ण. शनिश्चर मंत्र जप विधिसहित, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: क्रूरश्चपिंगलो रुद्र; अंति: वस्त्र पहरी गणिई, श्लोक-१. ४८२८०. (2) गोडीपार्श्वनाथजी वृद्ध स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४११, १४४४१). पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. प्रीतविमल, मा.गु., पद्य, आदि: दूहा वाणी ब्रह्मवादन; अंति: प्रीतविमल० राम मंते, गाथा-५४. ४८२८१. वणजारा सज्झाय व मयणरेहा सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-५(१ से ५)=१, कुल पे. २, प्रले. सा. रूपा (गुरु सा. नाथाजी); गुपि.सा. नाथाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४४११.५, १६४३५). १.पे. नाम. वणजारा सज्झाय, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीणजारा रे देख च्यार; अंति: समयसुंदर० विणजारा रे, गाथा-१७. २.पे. नाम. मयणरेहा सज्झाय, पृ. ६आ, संपूर्ण. मदनरेखासती चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: राजवीयानइ राज पियारो, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र अन्तिम ५ गाथाएँ लिखी हैं.) ४८२८२. अष्टक व स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १७२१, आश्विन शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, ले.स्थल. पाद, जैदे., (२३.५४११, १२४३६). १. पे. नाम. गणेशाष्टक, पृ. २अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: लंबोदरं परमसुंदरमेक; अंति: विघ्न कोपि न जायते, श्लोक-९. २.पे. नाम. गौतमाष्टक, पृ. २आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी स्तोत्र, आ. देवानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: इंद्रभूतिं वसुभूति; अंति: नमते नितरां क्रमेण, श्लोक-९. ३. पे. नाम. गणेश स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्लोक-३. मा.गु., सं., पद्य, आदि: अभिप्सीरतं सिद्धिरित, अंति: सर्व विघ्न उप०, ४८२८३. (+) थुलिभद्र सज्झाय, संपूर्ण वि. १७४४ आश्विन शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. १. ले. स्थल. सघाणानगर, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४x१०.५, १३x४०). स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धुलिभद्र मुनिसर आवो अंतिः सिधिविजय० दूनी तारी गाथा - १७. ४८२८६. पारसनाथ लावणी व नेमराजीमती सवैया, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५X११, ११x४०-४४). १. पे. नाम. पारसनाथ लावणी, पृ. १अ - २अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन लावणी, पुहिं., पद्य, आदि: अगडदम अगडदम वाजे अंतिः पार्श्वनाथ अवतार बडा, गाथा- २३. २. पे. नाम. नेमराजीमती सवैया, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. नेमराजिमती संवाद, मु. लालविनोद, पुहिं., पद्य, आदिः व्याहनेकुं आया सिरसे, अंति: लालविनोदी० कहा है, सवैया-४. , ४८२८७. (#) पंद्रह बोल चर्चा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२३.५X११.५, २०X२८). १५] बोल- गुरु शिष्य प्रश्नोत्तर, माग, पद्म, आदि: (अपठनीय); अंतिः रा कोठा मइद को कइया, गाथा- १५. ४८२८८. महावीर पारणो, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे. (२३.५x१०.५, १७४५३). महावीरजिन स्तवन- पारणागर्भित, मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत अनंतगुणा; अंति: तेहै नमुं मुनिमाल, . Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा - ३१. ४८२८९. औपदेशिक हरियाली सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे. (२४४१०.५, ७x४२). आध्यात्मिक औपदेशिक हरियाली, उपा. विनयसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सेवक आगे साहिब नाचे, अंतिः विनयसागर मति लावउ, गाथा-८, आध्यात्मिक औपदेशिक हरियाली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हिवई भव्यजीवन, अंतिः धर्म एक निश्चल छड़ ४८२९०. विजयक्षमासूरि गीत, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३.५X१०, ८X२८). विजयक्षमासूरि गीत, वा. विमलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विजयक्षमासूरिंद साच; अंति: विमलविजय० दीइं आसीस, गाथा ५. ४८२९१. औपदेशिक सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., ( १७.५X११.५, ११x२३-२५). १. पे नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण मु. रंग, मा.गु., पद्य, आदि: निद्रा तोयने बेचस्या, अंति: बाइजी जीत्या जयकार, गाथा- ९. २. पे नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण औपदेशिक सज्झाय हंसी परिहार, मा.गु, पद्य, आदि नही हंसवो रे प्यारे अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाथा ३ अपूर्ण तक लिखा है.) ४८२९३. गौतमगुण व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.ले. श्लो. (८९९) कड गाबड कुबड नमी, जै.. (२४x११.५, १०x२८). १. पे. नाम गौतम गुण, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी स्तवन, मु. पुण्यउदय, मा.गु., पद्य, आदिः परभाते गौतम प्रणमीजै, अंति: समयसुंदर० कुलभाण, गाथा-८. २. पे नाम, औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. चेनविजय, पुहिं., पद्य, आदि: कोन नीद सुता मन मेरा, अंतिः चेनविजे० का चेला छे, गाथा ४. ४८२९४. संतिकरं स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. कुंअरजी, प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे., ( २४.५X११, १३४३९). संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: सांतिकरं सांतिजिणं; अंति: सिद्धी भणइ सिसो, गाथा - १४. ४८२९५, (+) सकलार्हत् स्तोत्र, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२४४१०.५ १२४३७). For Private and Personal Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पा हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: (-), श्लोक-२६, (वि. अंतिमवाक्य का अंश फटा हुआ है.) ४८२९६. स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८०१, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, ले.स्थल. सूरति, जैदे., (२४४११, १६x४६). १.पे. नाम. भीडभंजन पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-भीडभंजन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: स्या माटे साहिब साम; अंति: उदय० रह्यो ला बोध, गाथा-५. २. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. खुशालमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: अजित जिनेसर देव मोरा; अंति: खुसाल० गुण गाया रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मांकण, मु. माणेक, मा.गु., पद्य, आदि: मांकणनो चटको दोहिलो; अंति: माणिकमुनि० जयणा हो, गाथा-८. ४. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अजित जिणंदस्यु प्रीत; अंति: वाचक जस० गुण गाय के, गाथा-५. ४८२९७. साधुगुण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ., (२४४१०.५, १०४३०). साधुगुण सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सारदा सौख्यदा चीतधरी; अंति: नय० बेहु करजोडीरे, गाथा-१५. ४८२९८. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३४१०.५, २५४१६). पार्श्वजिन स्तवन, मु. कविराज, मा.गु., पद्य, आदि: आज अरदास निजदास जाणी; अंति: कविराज० रमणी सहेली, गाथा-७. ४८२९९. साधारणजिन स्तवन व शांतिजिन पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४१०.५, १४४३९). १. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. सेवक, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंतजि चरणे ला; अंति: सेवक० एव तु बुझज नहि, गाथा-६. २.पे. नाम. शांतिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: गिडी गिडी झा झा झा; अंति: नाथनी फरी मंडे रे, गाथा-३. ४८३००. अष्टमीजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३.५४११.५, ११४३३). अष्टमीतिथि स्तुति, उपा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टी जिनचंद्रप्रभु; अंति: राज० अष्टमी पोसह सार, गाथा-४, ग्रं. १५. ४८३०३. (#) बहत् शांति, अपूर्ण, वि. १८३७, मार्गशीर्ष शुक्ल, १३, जीर्ण, पृ. २-१(१)=१, ले.स्थल. श्रीलासनगर, प्रले. पंडित. धनविजय (गुरु पं. कृपाविजय पंडित, आणंदसूरिगच्छ); पठ. पंन्या. चतुरविजय (गुरु पंडित. धनविजय, आणंदसूरिगच्छ); गुपि.पं. कृपाविजय पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४११, १४४३५). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदिः (-); अंति: जैनं जयति शासनम्, (पू.वि. "आचार्योपाध्याय प्रभृतिचातुर्वण्य" पाठ से है.) ४८३०४. (+) परिख राजिया वजिया गृहे देहरासरे प्रभु स्तव, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४१०, ११४३४). पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु पास चिंतामणि; अंति: सहज सुख लहे सुंदरु, गाथा-१६. ४८३०५. (+) बारआरा वर्णन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, १२-१३४३८-४३). For Private and Personal Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२ आरा विचार, रा., गद्य, आदि: पहिलउ उत्सर्पिणी काल; अंति: तीर्थंकरोत्पत्ति. ४८३०७. भक्त प्रभावना स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४४११, १३४४०). चक्रेश्वरीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीचक्रभीमे ललितवर; अंति: त्वत् शरणं परमेश्वरी, श्लोक-९. ४८३०८. पुद्गलपरावर्त स्तोत्र सह अवचूरी, संपूर्ण, वि. १७१६, मार्गशीर्ष कृष्ण, १, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. धर्मदास ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४१०, १९४५०). पुद्गलपरावर्त स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीवीतराग भगवंस्तव; अंति: श्रेयःश्रियं प्रापय, श्लोक-११. पुद्गलसंख्या स्तवन-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: हे श्रीवीतराग हे; अंति: देव हे सुखान्मोचय. ४८३०९. (+) रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३.५४१०, १९४५०). रात्रिभोजन निवारण सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: अवनीतलि वारु वसइजी; अंति: सारिउ आपणुंकाजरे, गाथा-२०. ४८३१०.(+) जिनसागरसूरि गीत, संपूर्ण, वि. १६९०, पौष शुक्ल, १०, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. आगराकोट, प्रले. मु. सामल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, ११४३०-३९). जिनसागरसूरि गीत, मु. राजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: जीहो प्रह उठी प्रणमु; अंति: सुगुरु चरण सुखकंद, गाथा-१३. ४८३११. (+) स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४११, १२४४१). १. पे. नाम. पर्युषणापर्व स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वली वली हुं ध्यावं; अंति: कहै श्रीजिनलाभसुरिंद, गाथा-४. २.पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. जिनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: अरनाथ जिनेश्वर; अंति: देवी देव करो कल्याण, गाथा-४. ३. पे. नाम. ज्ञानपंचमी स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. __ पंचमीतिथि स्तुति, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पंच अनंत महंत गुणाकर; अंति: कहै जिणचंद मुणिंद, गाथा-४. ४. पे. नाम. जिनकुशलसूरि सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. धर्मसीह, पुहि., पद्य, आदि: राजै थूभ ठौर ठौर ऐसौ; अंति: नाम युं कहायौ है, गाथा-२. ५. पे. नाम. जिनदत्तसूरि सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण.. मु. धर्मसी, पुहिं., पद्य, आदि: बावन वीर कीए अपने वस; अंति: जिणदत्त की एक दुहाई, सवैया-१. ४८३१२. (+) मौन एकादशी माहात्म्य, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २४-२२(१ से २२)=२, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-क्रियापद संकेत-संशोधित., जैदे., (२४४११, १७४३७). मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, आदि: श्रीमहावीरं नत्वा; अंति: माराधनतत्पराः समभवन, संपूर्ण. ४८३१४. चत्तारि अट्ठ दस गाथा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२३.५४११.५, १०४३४). परिपाटीचतुर्दशक, उपा. विनयविजय, प्रा., पद्य, वि. १८वी, आदि: थुणामि जिणचेइ विहरुव; अंति: जिणा इमे विणयविजयेण, गाथा-२७. ४८३१५. मौन एकादशी कथा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., (२४४१२.५, १०४३८). मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, आदि: ज्ञानसारं सर्वसंसार; अंति: मौनैकादशी तपोविधेयम्. ४८३१६. मृगापुत्र स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १८१०, ज्येष्ठ कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२४.५४१०.५, ११४२४). मृगापुत्र सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: पुरसुग्रीव सोहामणो; अंति: कवियण परिणाम हो, गाथा-१८. ४८३१७. श्रावक अतिचार व वंदितु, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्रले. मु. जेठा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११.५, १८४३९). १.पे. नाम. श्रावक अतिचार, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: होइते मिछामि दुक्कडं. २. पे. नाम. वंदेतु, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. ट For Private and Personal Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिण चउवीसं, गाथा-४१. ४८३२०. (+) औपदेशिक हरियाली सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३१, मध्यम, पृ. १, प्रले. पंन्या. विद्यासेन (गुरु ग. नित्यभक्ति); गुपि.ग. नित्यभक्ति (गुरु ग. पुन्यसारजी); ग. पुन्यसारजी (गुरु पं. मतिविमल); आ. कीर्तिरत्नसूरि; पठ. श्राव. चतुर्दास (गुरु पंन्या. विद्यासेन), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१२, १३४३०-५२). औपदेशिक हरियाली, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वरसई कांबली भींजई; अंति: कवि देपाल वखाणे, गाथा-६. औपदेशिक हरियाली- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: कांबली कहतां इंद्री; अंति: देपाल कहैव पाणीइं. ४८३२२. उपदेससत्तरी व अरिहंत गुण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११, १७४२२-२४). १.पे. नाम. उपदेससत्तरी, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र अंतिम पत्र है. औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: कहै मुनि श्रीसार ए, गाथा-७१, (पू.वि. गाथा ५१ अपूर्ण से है.) । २. पे. नाम. पंचपरमेष्ठी गुण, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पंचपरमेष्ठि गुण, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतना १२ गुण ते; अंति: सगला मिलि १०८ हुवई. ४८३२३. सीता स्वाध्याय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, प्रले. पं. जितवर्द्धन, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१०.५, १०४२७). सीतासती सज्झाय, मु. धनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: धनहर्ष० आसीस ते मुझ, गाथा-२१, (पू.वि. गाथा १२ अपूर्ण से है.) ४८३२५. उत्तराध्यन सूत्र-पावसमणिजं अध्ययन-१७, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४४१०, १२४४४). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ४८३२६. जयतिहुअण स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२४४११, १३४४५). जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख; अंति: अभयदेव विन्नवइ आणदि, गाथा-३०. ४८३२७. केसीगोतम स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४४११, १४४५३). केशी गौतम स्वाध्याय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ए दोय गणधर प्रणमीये; अंति: रुपविजय गुण गायरे, गाथा-१६. ४८३२८. संथारा पोरसी सूत्र सहटबार्थ- षडावश्यक बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२४४१०.५, ६४३५). संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: चउकसाय पडीमल लूरण; अंति: इय सम्मतं मए गहियं, गाथा-१४. संथारापोरसीसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: चिहु कषाय रुपिया; अंति: सम्यक्त्वइ ग्रहियो. ४८३२९. (+) चंदनमलयगिरी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, १५४४०). चंदनमलयागिरि सज्झाय, मु. चंद्रविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विजय कहे विजया प्रते; अंति: शाश्वता ते सुख लहे, गाथा-१२. ४८३३०. १८ नातरा सज्झाय, सीमंधर स्तवन व गहुँली आदि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, जैदे., (२४४११.५, १५४३९). १. पे. नाम. १८ नातरा सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मु. हेतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पहेला ते समरूं पास; अंति: गुण गायरै मनरंगीला, ढाल-३, गाथा-३६. २. पे. नाम. सीमंधर स्तव, पृ. २अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मुज हिअडुं हेजा लूओ; अंति: जिनराज०मत मुको विसार, गाथा-७. ३. पे. नाम. गुरुभास गहुंली, पृ. २आ, संपूर्ण. महावीरजिन गहुंली, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु मारो दीइ छे; अंति: नवे रे दरसण जय जयकार, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४. पे. नाम. सीमंधर स्तव, पृ. २आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, मु. कान कवि, मा.गु., पद्य, आदि: थे तो महाविदेहना, अंति: कान० नीत ताहरोजी, गाथा- ७. ४८३३१. () स्तुति संग्रह व चौपाई, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ४, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., जैवे. (२३.५x११.५, ११x१९). १. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, वि. १८३७, चैत्र कृष्ण, ११, ले. स्थल. सीरोडी, पठ. मु. रूपा, प्र.ले.पु. सामान्य. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नेमिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: श्रावण सुदि दिन, अंति: सफल करो अव तो, गाथा-४. २. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तुति, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गौत्तम बोले ग्रंथ; अंतिः श्रीसंघ विघन निवारी, गाथा-४. ३. पे. नाम. पाक्षिक स्तुति, पृ. ३अ ३आ, संपूर्ण, ले. स्थल. सीरोडी. आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदिः स्नातस्याप्रतिमस्य अति: सर्वकार्येषु सिद्धं श्लोक-४. ४. पे नाम, बावन वीर चौपाई, पृ. ३आ, संपूर्ण, ५२ वीर चौपाई, मु. जसराज, रा., पद्य, आदि: घुघरा घमके पाय बावन; अंति: ऐसो हे वान राबुर जरो, गाथा-४. ४८३३२. सोल सती स्तवन व स्तुति, संपूर्ण वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, दे. (२३.५४११, १०x२६-२८). १. पे. नाम. सोल सती स्तवन, पृ. १आ- ३आ, संपूर्ण. " १६ सती सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आदिनाथ आदि जिनवर, अंति: उदयरतन० सुख ए, गाथा - १७. २. पे. नाम. सोल सती स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण. १६ सती स्तुति, सं., पद्य, आदि: ब्राह्मी चंदनबालिका, अंतिः कुर्वंतु वो मंगलम्, श्लोक-१. ४८३३३. जीव छत्तीसी सझाय, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२४४११.५, १७४४८). " औपदेशिक सज्झाय- वैराग्य, मु. जैमल ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: मोह मिथ्यात की नींद, अंति: जावसी एक मूलानो मोख, गाथा- ३६. ४८३३५. महावीर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १, जैदे., (२४x११, १६x४४). महावीरजिन स्तवन, क. जैन, मा.गु., पद्य, आदि एक मन वंदु सामि वीर, अंति: दुद्योह मनवंछित घाणी, गाथा-२९. ४८३३६. बावन अनाचार, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैवे. (२३.५४१०.५, १५X३६). " २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय सज्झाय, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: देव गुरुना लीजै नाम; अंति: तणा फलते पामिस्व, गाथा २१. ११X३४). १. पे. नाम. तीन मनोरथ पू. १अ १आ, संपूर्ण. 1 ४८३३८. प्रवचन परीक्षा छत्रीशी संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैवे. (२४.५४१०.५, १७४५६). औपदेशिक सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्म, आदि साचे मन जिन धर्म, अंतिः इम कहे श्रीसार रे, गाथा- ३६. ४८३३९. तीन मनोरथ व पांच मेरु, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. पं. देवेंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २३X११.५, आवक ३ मनोरथ, मा.गु, गद्य, आदि: पहिले मनोरथे समणो, अंतिः एहवो मरण होज्यो. २. पे. नाम. पाँच मेरुपर्वत नाम पु. १ आ. संपूर्ण. ५ मेरुपर्वत नाम, मा.गु, गद्य, आदि: सुदर्शन मेरु, अंतिः ८४हजार जोजनमान जाणवा ४८३४१. स्थूलभद्र व गुरु गीत, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैये. (२४४१०.५, १२X४०) "" १. पे नाम. धूलिभद्र गीत, पृ. १अ संपूर्ण. स्थूलभद्र सज्झाय, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीधूलिभद्र योगेंद, अंति: गाइ गुण मालिका रे, गाथा-७, २. पे. नाम. गुरुगीत, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ www.kobatirth.org हेमसोमसूरि स्तुति, मु. ज्ञानसोम, सं., पद्य, आदि: सकल कला पूरण शशिवदनं अंतिः न्यान० णमई आणंद कर गाथा - १०. ४८३४६. वीरजिन पंचकल्याणक स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ४, जैदे., ( २४४११.५, १३X२७). गाथा-८. ४८३४२. (+) सज्झाय व गीत, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैवे. (२३.५x१०.५, १२४३१). १. पे. नाम. लोभपरीहार सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. पं. मोतीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. औपदेशिक सज्झाय- लोभोपरि, पंडित भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि लोभ न करीई प्राणीया, अंतिः भावसागर० सयल जगीस, गाथा - ८. २. पे. नाम, गोडीजी छंद, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद - गोडीजी, मु. दानविजय, पुहिं., पद्य, आदि: वाणारसी राया पास; अंति: दानविजे तुम नमंदा है, युक्त विशेष पाठ., जैदे., ( २४४१२, १४४०). १. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महावीर जिन स्तवन- ५ कल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: शासनां नायक शिवकरण; अंतिः नामे लहे अधिक जगीस ए. डाल-३, गाथा-५६. ४८३४७. सम्यक्त्व अधिकार, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, जैदे. (२५४१२.५, ११४३२). ९ सम्यक्त्व प्रकार, मा.गु., गद्य, आदि: एहवुं सांभलीनै शिष्य, अंति: स्वरूप विचारवो. ४८३४८. (+) नेमिनाथ स्तवन, तृष्णा परिहार सज्झाय व शंखेश्वर छंद, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. टिप्पण 3 पं. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नेमी नीरंजन साहिबो; अंति: पद्म० पामीइ रूप उछाह, गाथा-५. २. पे. नाम. तृष्णापरिहार सज्झाय, पृ. १ अ- १आ, संपूर्ण. तृष्णा सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: क्रोध मान मद मछर माय, अंति: विज्ञ विना निवारणें, गाथा- ११. ३. पे नाम. शंखेश्वर छंद. प्र. १आ, संपूर्ण, पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वरतीर्थ, ग. कुंअरविजय, मा.गु, पद्य, आदिः प्रह उठी प्रणमे पास, अंतिः शिष्य गुण गाया, गाथा - ११. ४८३५१. हरियाली व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण वि. १८९२ आषाढ़ अधिकमास कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे, ३, ले. स्थल. राधनपुर, जैदे., ( २४.५X१२.५, ४४४१). १. पे. नाम. औपदेशिक फूलडा सह टबार्थ, पृ. १अ - २अ, संपूर्ण. २३ औपदेशिक हरियाली - वज्रस्वामीगुणगर्भित, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सखि रे में कौतक दीठु, अंति: ए अर्थ वल्लभ वचन छे, गाथा-८, संपूर्ण. वंदित्सूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: (-), (पू. वि. गाथा ४० अपूर्ण तक है.) ४८३५३. स्तवन व सज्झाच, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, जैवे. (२४४१०, १०x२८-३०). " औपदेशिक हरियाली - वज्रस्वामीगुणगर्भित-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीवयरस्वामी बमासने; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. मात्र प्रारंभ करके छोड़ दिया गया है.) २. पे. नाम औपदेशिक हरियाली, पृ. २अ- ३अ, संपूर्ण औपदेशिक हरीयाली, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चेतन चेतो चतुरस बोला, अंति: पीधानी न करो खामी, गाथा - ९. ३. पे. नाम. प्रज्ञापनासूत्र - सज्झाय, पृ. ३अ - ४आ, संपूर्ण. संबद्ध, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: केहेज्यो रे पंडित ते, अंतिः वाचक जस० सुख लहेस्ये, गावा- १४. ४८३५२. (+) वंदितुसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम पू. ३, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैवे. 3 (२४X११, १०X२८). For Private and Personal Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २४ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे नाम, संखेसरा पार्श्वनाथ तवन, पृ. १अ ३अ संपूर्ण वि. १७२२ कार्तिक शुक्ल, ९, सोमवार. पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वरमंडण, मु. विद्याचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १६६०, आदि: सरसति मात पसाउले एतो; अंतिः विद्याचंद० दिसि तपइ, गाथा - २७. २. पे. नाम. पचखाणना फलनी सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. १० पच्चक्खाणफल सज्झाय, मा.गु, पद्य, आदि दसविह ग्रह उठी, अंतिः निचे पावो निरवाण, गाथा-८, ४८३५५. भारती भगवती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जे. (२३.५४११.५, १४४४०). 1 " सिद्धसारस्वत स्तव, आ. वप्पभट्टसूरि, सं. पद्य वि. ९वी, आदि: करमरालविहंगमवाहना, अति रंजयति स्फुटम्, लोक-१३. ४८३५६. आरती व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३.५X११, १८x४४). १. पे नाम, पंचजिन आरती, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. चिदानंद, मा.गु., पद्य, आदि वनीतानगरीहो नाभिराय अंतिः कपूरचंद० आदिनाथरी, गाथा- ११. २. पे. नाम. खामणा सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. गुणसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि प्रथम नमो अरिहंतनैजी, अंति: गुणसुंदर सुख थाय, गाथा १६. ४८३५७. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे. (२४४१०.५, २५x२२). " पार्श्वजिन स्तवन, मु. कनकविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७४२, आदि: वागवाणि प्रणमी करी; अंति: कनक० ति लाल रे, गाथा - ११. ४८३५८. (+) सामाचक ३२ दोष सज्झाच, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. १, प्र. वि. संशोधित. वे. (२३.५x१०.५, ९४३१). ३२ सामायिकदोष सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: संयमे धीर सुगुरु पय; अंति: ज्ञानविमल० वाधइ नूर, गाथा - १०. ४८३५९. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २. कुल पे. ३, जैवे. (२४.५x११, १३४३३-३५) १. पे. नाम. पंचमी स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन- बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमीय श्रीगुरुपाय, अंतिः भगति भाव पशंसियो, ढाल -३, गाथा - २०. २. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. मु. ब्रह्मदयाल शिष्य, रा., पद्य, आदि; जिनजी थांकीजी सुरत, अंतिः जिनजी राखो चरणां पास, गाथा- ९. ३. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. राम, मा.गु., पद्य, आदिः आज भले दिन उगो हो; अंति: सीसनो राम सफल अरदास, गाथा-५. ४८३६१. गणधर गुंहली संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२३.५४११.५, १४४३९). १. पे नाम. पंचम गणधर गहुँली, पृ. १अ, संपूर्ण. सुधर्मास्वामी गहुली, मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानवरी उद्यानमा अंति चाहे अमृतसुख सार, गाथा ७. २. पे. नाम गौतमस्वामी गहुँली, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रहि शुभ ठाण, अंतिः अमृतपद चित चाहती जी, गाथा- ११. ३. पे. नाम. सुधर्मास्वामी गहुँली, पृ. १आ, संपूर्ण. सुधर्मास्वामी गहुली, मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि गणधर वीरजिनवरतणो अंति: चित अमृत शर्म रे, गाथा- ७. ४८३६२. सात व्यसनरी सिज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. य. लालजी जती (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१०, ११४३० ). ७ व्यसन सज्झाय, मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि पर उपगारी साधु सुगुर अंति: सीस रंगे जवरंग की, गाथा- ७. ४८३६३. नेमराजुल बारमासो, संपूर्ण, वि. १७६४ आश्विन कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. पं. न्यायकुशल (गुरु ग. मतिकुशल); गुपि. ग. मतिकुशल (गुरु पंन्या वीरकुशल), प्र.ले.पु. सामान्य प्र. ले. श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे (२४४११.५, १५X३९). For Private and Personal Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ नेमराजिमती बारमासो, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: मागसर मासे मोहिनीयो; अंति: विनय० हर्ष उल्लास, गाथा-२८. ४८३६४. तपस्या फल तीस बोल, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६२-६०(१ से ६०)=२, दे., (२४४१२.५, १३४३५). उपवास फल, मा.गु., गद्य, आदि: एक उपवासे १ उपवास; अंति: एक सौ पच्चीसनो फल, संपूर्ण. ४८३६५. (+) साधुविधि प्रकाश, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२४४१२, १७४३७). साधुविधि प्रकाश, उपा. क्षमाकल्याण, प्रा.,सं., गद्य, वि. १८३८, आदि: प्रणम्य तीर्थेशगणेश; अंति: (-), (पू.वि. 'खंडमयी चतुर्थी प्रतिलिख्यकं' पाठ तक है.) ४८३६६. (+) सर्वभागाकरण विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४४११.५, १८४५५). देवमनुष्यादि उदयस्वामी भांगा संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: छेहला लघुनै गुरु करो; अंति: सर्वभागा हुवै. ४८३६७. अंगस्फुरण व असज्झाई विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४४१०.५, १३४४५). १. पे. नाम. अंगस्फुरन विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: माथउ फुरकइ पृथ्वीनउ; अंति: फुरकइ ते लेखइ नही. २.पे. नाम. असज्झाई विचार, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. असज्झाय विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: मेह वरसइ गाढा उतउ; अंति: (-), (पू.वि. 'आर्द्रनक्षत्र जान लागइ तां सीम गाजवी' पाठ तक है.) ४८३६९. तीर्थंकर गणधर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४१०.५, १२४३१). २४ जिन गणधर स्तवन, मु. हर्षसागर, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिणेसर प्रणमी; अंति: हर्षसागर जय करो, गाथा-१५. ४८३७०. (+) नमिऊण स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४४११, १३४४३). नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण पणय सुरगण; अंति: भय नासइ तस्स दूरेण, गाथा-२४. ४८३७१. पून्यछत्रीसी व पासा ढालण मंत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, पठ.पं. प्रेमविजय (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४११, १६४३६). १. पे. नाम. पून्य छत्रीसी, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पुण्यछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६९, आदि: (-); अंति: समयसुंदर० परतिक्ष जी, गाथा-३६, (पू.वि. गाथा २४ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पासा ढालण मंत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. पाशाकेवली-पाशा ढालन विधि, संबद्ध, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो भगवती कुष्मांड; अंति: वाय इंद वैश्रमणेयम, श्लोक-५. ४८३७२. ताव तेजरानो छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४४१०, १२४३८). ज्वर छंद, मा.गु., पद्य, आदि: नमो आनंदपुरनगर अजयपा; अंति: सार मंत्र जपिये सदा, गाथा-१६. ४८३७३. ह्रींकारकल्प विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४११.५, १३४३२). ह्रींकारकल्प विधि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम श्वेतवर्ण; अंति: पछै दूध पखालीयै सीझै. ४८३७४. (+) सुभद्राजीनो चोढालीयो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४११, १८४४३). सुभद्रासती रास-शीलव्रतविषये, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सरसति सामणि वीनवू; अंति: फलीया मनोरथ माल, ढाल-४. ४८३७५. (+) सम्यक्त्व आलापक, उपदेशरत्नमाला व विचारादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. १०, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४१०.५, १९४४९). १.पे. नाम. सम्यक्त्वालापक, पृ. १अ, संपूर्ण.. ___ अनशन आलापक, प्रा., गद्य, आदि: अहन्नं भंते तुम्हाणं; अंति: इअसंमत्तं मए गहिअं. २. पे. नाम. उपदेशरत्नकोश कुलक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: उवएसरयणकोसं नासिअ; अंति: विउलं उवएसमालमिणं, गाथा-२६. ३. पे. नाम. सूतक विचार, पृ. १आ, संपूर्ण... सं., पद्य, आदि: सूतकं वृद्धिहानिभ्या; अंति: वाक्षारं प्रवर्त्तते, श्लोक-६. ४. पे. नाम. धान्यानां अचित्त स्वरूपं, पृ. १आ, संपूर्ण. अचित्त धान्य स्वरूप, प्रा., पद्य, आदि: जवगोहमाससाली वरिस; अंति: पभिईणं सत्त वरिसाई, गाथा-१. ५. पे. नाम. लेश्या विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: मूल १ साह २ साहा ३; अति: ४ कुब्भत ५ धणहरणा, श्लोक-१. ६.पे. नाम. विकुर्वण देहमान, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: लक्खमुदाण अहियनराणं; अंति: वाउअंसुल असंखसो, गाथा-१. ७. पे. नाम. पक्वान्न दिनमान, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: वासासु पनर दिवस; अंति: कप्पइ आरब्भ पढमदिणं, श्लोक-१. ८.पे. नाम. पक्वान्न विचार संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: सिसिरे पाउसे गिम्हे; अंति: तेणपरं होइ अचित्तो, गाथा-५. ९. पे. नाम. सप्तभय अष्टमद, पृ. १आ, संपूर्ण. भय ८ मद, प्रा., पद्य, आदि: इह परलोगादाणं य; अंति: तवइस्सरिपस दोसतिगं, गाथा-१. १०. पे. नाम. बारव्रत नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. १२ व्रत नाम, मा.गु., गद्य, आदि: प्राणातिपातव्रत मृषा; अंति: अतिथिसंविभागवत. ४८३७६. (#) चारित्र दैणरी विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१२, ३४४५४). प्रव्रज्या विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: सांझरी वेला चारित्रो; अंति: अक्षत चलाईजै. ४८३७७. यंत्रफल वर्णन, यंत्र चौपाई व औषध, संपूर्ण, ई. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२४४११.५, ३०४५६). १.पे. नाम. यंत्राणां फल, पृ. १अ, संपूर्ण. यंत्रफल वर्णन, मा.गु., पद्य, आदि: सरसइ सुगुरु नमियं; अंति: जंतं ए कहियं सूरिहिं, गाथा-२२. २. पे. नाम. यंत्र चोपई, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ यंत्रफल चौपाई, पंडित. अमरसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: दुयपरि दुयसत्तधरि; अंति: अमरसुंदर०परमारथ लहें, गाथा-१६. ३. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औषधवैद्यक संग्रह प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: सीसोलोहपात्र में; अंति: केस बिरजाय वलता नावै. ४८३७८. पौषध विधि व पाखी खामणा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, दे., (२४४११.५, १३४२८). १. पे. नाम. पोसह लेवा विधि, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. पौषध विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रभाते पडिक्कमणो; अंति: अपाणं वोसरामी. २. पे. नाम. पाखी खामणा, पृ. ३आ, संपूर्ण. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: पियं च मे जंभे; अंति: नित्थारग पारगा होह, आलाप-४. ४८३७९. (#) छंद व स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३.५४११, १९४५०). १.पे. नाम. शनीसर छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, ले.स्थल. बीलाडा, प्रले.पं.खशालचंद; पठ. उदयचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. अंत में शनिदेव का मंत्र दिया गया है. शनिश्चर छंद, क. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: अहि नर असुर सुरापति; अंति: प्रसन्न श्रीसनीसरवर, गाथा-१७. २. पे. नाम. त्रिपुराभवानी फलदर्शन श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. त्रिपुराभवानी स्तोत्र-फलदर्शक श्लोक, संबद्ध, सं., पद्य, आदि: आनंदोद्भव कंपघूर्ण; अंति: भगवति प्रसन्नात्मा, श्लोक-७. For Private and Personal Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ २७ ४८३८०. (+) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. पं. विनितविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३X१०.५, १६X३६). १. पे. नाम, २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जिनशासन रे सूधी, अंति: प्राणी ते शिवसुख लहे, गाथा - १०. २. पे. नाम. काया उपरे सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय कायोपरि, मु. लावण्यसमय, मा.गु, पद्य, आदि: तो सुख जो आवै संतोष अंतिः लावण्यसमे० निश्चे लहे, गाथा - ९. 3 "" ४८३८१. वासुपूज्यजिन पद व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, वे. (२३.५४११.५, १४४३३). १. पे. नाम वासुपूज्यजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण, मु. रूपचंद्र, मा.गु, पद्य, आदि मेरो मन बस किनो हो, अंतिः रूपचंद० आवागमन निवार, गाथा- ३. २. पे. नाम. जिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साधारणजिन स्तवन, मु. कनककीर्ति, पुर्हि, पद्म, आदि; बंदु श्रीजिनराय मन; अंतिः नार सासता सुख लहे जी, " गाथा - १७. ४८३८२. (#) गोडीपार्श्वजिन पद, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२३.५X१२, ८x२५). पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: प्यारो पार्श्वनाथ, अंति: उदयरतन० बहु घसमसीया, गाथा-७. ४८३८३. (+) पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३.५X१२, १०x२४). पार्श्वजिन स्तवन- गोडी, मु. हीर, मा.गु., पद्य, आदि: चरण लागु पाय गोडी; अंति: हीर नमे नितमेव गोडी, गाथा- ७. ४८३८४. (+) पंचमीविधि गर्भित नेमिजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. पं. रंगसार मुनि पठ श्रावि दम्मा प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत. जैवे. (२३४१०.५, १३४४१). "" मिजिन स्तोत्र - पंचमीविधि गर्भित, पं. रंगसार मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: नमवि सिरिनेमि जिणराय: अंतिः रंगसार ० जिन रयणिदीस, गाथा- १७. ४८३८५. भवस्थिति व कायस्थिति प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २, जैवे. (२३.५x१०.५, १५४३८). १. पे. नाम भवस्थिति, पृ. ९अ १आ, संपूर्ण. भवस्थिति स्तोत्र, आ. धर्मघोषसूरि प्रा. पद्य, आदि: सिरिधम्मकित्ति कुलहर, अंति: मणो सिग्धमभव ठिई, गाथा- १९. २. पे नाम, कार्यस्थिति प्रकरण, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. कुलमंडनसूरि, प्रा. पद्म, आदि: जह तुह दंसणरहिओ काय अंति: (-), (पू.वि. गाथा ६ तक है.) " ,י ४८३८६. (+) मौन एकादशी चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल. पालीताणा, प्रले. करमचंद रामजी लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. दे. (२४४११.५, १०x२५) मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. माणेक, मा.गु., पद्म, वि. २०वी आदि विश्वनायक मुक्तिदायक, अंतिः माणेकमुनि० सुखकरं, गाथा- १३. ४८३८७. नवकार छंद, संपूर्ण वि. २०बी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दत्त श्रावि उजमबाई, गृही. सा. नवलश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, वे.. (२३.५x१०.५, ९३३). नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछितपुरण विविध परे, अंति: कुशल० रिद्ध वंचित लहै, गाथा १८. ४८३८८. रेंटीया स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २. दे. (२३.५४१२, १०X३६). " रेटिया सज्झाय, श्रावि. रतनबाई, मा.गु., पद्य, वि. १६३५, आदि: बाई रे अमनें रेंटीयो; अंति: यो सवि फली रे, गाथा - २५. ४८३८९. सुबाहुकुंबरनी सज्झाय, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, दे. (२४४१२, १०X३०). For Private and Personal Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सुबाहुकुमार सज्झाय, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८९३, आदि: हवे सुबाहुकुमार एम; अंति: कुंवरे संयम आदर्यो, गाथा-१५. ४८३९०. (+) नवकार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. ग. वृद्धिविजय; पठ. श्रावि. दीपकुवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४१०.५, १०४२९). नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बार जपुं अरिहंतना; अंति: लब्धि० रीतई नवकार, गाथा-९. ४८३९१. (#) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४९.५, १२४३२-३५). १. पे. नाम. खिमाछतीसी सज्झाय, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदरि जीव खिमागुण आदर; अंति: चउविह संघ जगीस जी, गाथा-३६. २. पे. नाम. राजुल स्वाध्याय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: थे तो माहरे जीवन; अंति: जोरी वाचक जस गुण हेत, गाथा-७. ३. पे. नाम. राजुल स्वाध्याय, पृ. ३आ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: काई रिसाणी हो नेम; अंति: जिनहरख० म्हारा लाल, गाथा-९. ४८३९२. चैत्यवंदन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२३.५४१०.५, १०४३७). १.पे. नाम. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ मु. हर्षविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पूरब दिशि ईशान कुणि; अंति: हर्ष कहई० संघ जगीश, गाथा-८. २. पे. नाम. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर साहिबा; अंति: विनय धरें इम ध्यान, गाथा-३. ३. पे. नाम. सांकलीया चैत्यवंदन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. २४ जिन चैत्यवंदन-वर्णगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पद्मप्रभुने वासु; अंति: (-), (पू.वि. गाथा २ अपूर्ण तक है.) ४८३९३. पंचमी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४४११.५, १२४३६). ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्य जिणेसर; अंति: संघ सयल सुखदाय रे, ढाल-५, गाथा-१६. ४८३९४. धन्नामुनि सिज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३.५४११.५, ११४२९). धन्नाअणगार सज्झाय, मु. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवचने वैरागीयो हो; अंति: श्रीदेव० मोरी अम्मा, गाथा-१२. ४८३९५. (#) जिनकुशलसूरि गीत, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, १३४५१). जिनकुशलसूरि गीत, पा. साधुकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: बिलसइ ऋद्धि समृद्धि; अंति: साधुकीरति पाठिक भाखइ, ___ गाथा-१५. ४८३९६. (+#) गीत, सज्झाय, पद आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ७, अन्य. मोहनजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, ३४४२२). १. पे. नाम. नेमजीन गीत, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. मु. मानसंग, प्र.ले.पु. सामान्य. नेमराजिमती सज्झाय, मु. अमरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: गोरी गोरीनी बाहरी; अंति: अमरविमल० नमंत रे, गाथा-११. २. पे. नाम. आत्म स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ औपदेशिक सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: नरभव नगर सोहामणो हो; अंति: थकी पामे अविचल ठाम, गाथा-५. ३. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. औषधवैद्यक संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-निद्रात्याग, मु. कनकनिधान, मा.गु., पद्य, आदि: नींदरडी वेरण होय रही; अंति: कवियण शुभवाण के, गाथा-८. ५. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ सं., पद्य, आदि: न क्रोधो न मानो; अंति: गतिर्मे जिनेंद्रः, श्लोक-१. ६. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह , प्रा.,सं., पद्य, आदि: झालाभिर्सलभाजलैः; अंति: सर्वे क्रिया निःफला, श्लोक-१. ७. पे. नाम. ज्योतिषसार, पृ. १आ, संपूर्ण. मुंजादित्य विप्र, सं., पद्य, आदि: विघ्नराजं नमस्कृत्य; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा २ अपूर्ण तक लिखा है.) ४८३९७. (#) पदमावती आराधना, संपूर्ण, वि. १७५७, मार्गशीर्ष कृष्ण, १३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०.५, १५४३४). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवइ राणी पदमावती; अंति: समयसुदर०छुटे तत्काल, ढाल-३, गाथा-३४. ४८३९८. कुंथुजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. मु. जीवरत्न (गुरु मु. विजयरत्न), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१०.५, ११४३५). ___ कुंथुजिन स्तवन, मु. प्रेमविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सूरराया कुल कमल; अंति: द्यो दरिसण सुखकंद, गाथा-१५. ४८३९९. (+) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १७१०, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२४४१०.५, १२४३३). १.पे. नाम. बागोरपुर श्रेयांसस्वामी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. श्रेयांसजिन स्तवन-बागोरपुरमंडण, आ. शांतिसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७१०, आदि: श्रीश्रेयांस जिनेसरस; अंति: जंपै श्रीशांतिसूरिंद, गाथा-९. २.पे. नाम. संखेश्वर पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरमंडण, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मुझनै परतो ताहरो रे; अंति: दिन दिन दौलत थाय रे, गाथा-८. ४८४०० (-) नेमनाथजी बारमासो, निसाणी व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ५, ले.स्थल. गोलाथी, प्रले. हंसराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१२, १२४१९). १.पे. नाम. नेमनाथजीरो बारमासो, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, वि. १८९२, आषाढ़ कृष्ण, ४, ले.स्थल. गोलाथी. नेमराजिमती बारमासो, म. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: राणी राजौल ईण पर; अंति: जीवहरख०प्रीत उदार रे, गाथा-१३. २. पे. नाम. गणेशजीरी नीसाणी, पृ. २आ, संपूर्ण. गणेश निसांणी, मा.गु., पद्य, आदि: सब देवा नायक तु; अंति: आये मोज दियंदा है, गाथा-३. ३. पे. नाम. जीव भवरा स्तवन, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण, वि. १८९२, आषाढ़ कृष्ण, ४, ले.स्थल. गोलाथी. औपदेशिक सज्झाय, महम्मद, मा.गु., पद्य, आदि: भूलो मानो भमरा काइ; अंति: लेखो साहिब हाथ, गाथा-१९. ४. पे. नाम. गणेश स्तुति, पृ. ४अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: ॐ गवरीपुत्र तु जपा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा २ तक लिखा हैं.) For Private and Personal Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५. पे. नाम. इलाचीपुत्र स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण, वि. १८९२, आषाढ़ कृष्ण, ५, ले.स्थल. गोला, प्रले. हंसराज, प्र.ले.पु. सामान्य. इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नामेलापूत्र जाणीयै; अंति: इम लबधविजै गुण गाय, गाथा-९. ४८४०१. धन्नाऋषि स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२३.५४१२, १३४३२). धन्नाकाकंदीसज्झाय, आ. कल्याणसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: काकंदीवासी सकज भद्रा; अंति: गावै कल्याण सुरंगरे, ढाल-२, गाथा-१७. ४८४०३. (+) महावीर गौतमजी चौढालीयो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. कृष्णगढ, प्रले. सा. राजकंवर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१०.५, १६x४२). महावीरजिन चौढालिया, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३९, आदि: सिद्धार्थकुलमइजी उपन; अंति: रायचंदगोडै नराख्या, ढाल-४, गाथा-५७. ४८४०४. मंगलाष्टक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. जसविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३४१०.५, ९४२६). २४ जिन स्तोत्र, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: नतसुरेंद्रजिनेंद्र; अंति: रविप्रभसूरि०मम मंगलं, श्लोक-९. ४८४०५. (#) पार्श्वनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. १, ले.स्थल. अलवर, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०,१३४४०). पार्श्वजिन स्तव-जीरापल्ली, आ. लक्ष्मीसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीवामेयं विधुमधुसु; अंति: एव लक्ष्मीविशेषाः, श्लोक-१३. ४८४०६. मौनएकादशी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४.५४१०.५, १२४३२). मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदि: समवसरण बैठा भगवंत; अंति: समयसुंदर० कहो दाहडी, गाथा-१२. ४८४०८. गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४११.५, १६x४४). गौतमस्वामी रास, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३४, आदि: गुण गाउ गौतम तणा; अंति: रतनचंद० चोमास जी, गाथा-१३. ४८४१०. (#) विजयजिनेंद्रसूरि प्रशस्ति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १६४४७). विजयजिनेंद्रसूरि प्रशस्ति, सं., गद्य, आदि: सिध श्रीअमुकनगरसुस्थ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पत्र का अंतिम अंश नहीं लिखा है.) ४८४११. स्तवन व दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२४४६, ८४४१). १. पे. नाम. वीसविहरमान स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीस विहरमान जिनवरराय; अंति: समय० विहरमान जिनराया, गाथा-५. २. पे. नाम. औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: चौवा चंदन लायकै कीया; अंति: धरे छिन मै पावै पार, गाथा-३. ४८४१२. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. पंन्या. विवेकविजय; पठ. श्रावि. सरूपकुमरजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४११.५, ११४३३). १. पे. नाम. सुविधिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सुविधिजिन स्तवन-महिमापुरमंडन, उपा. अमृतधर्म, मा.गु., पद्य, वि. १८४५, आदि: प्रभु सुविधिजिणिंद; अंति: अमृतधर्म० सुजगीसे जी, गाथा-७. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: सूरति स्वामि तिहारी; अंति: निज सेवा निरधारी वे, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ४८४१३. सीमंधरजिन बीनती संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे. (२४.५४११.५, १०४३५). " 1 www.kobatirth.org सीमंधरजिन स्तवन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर साहिबा, अंतिः क्षमाक० वंदना वारंवार, गाथा - ९. ४८४१४. मौनएकादशी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. पत्र के दूसरी ओर ८ ग्रंथों की सूचि दी गयी है., दे., (२४.५X११.५, १५X३६). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदि: समवसरण बैठा भगवंत; अंतिः समयसुंदर कहो द्याहडी, गाथा- १३. ४८४१५. स्तवन व मंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८७४, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, अन्य पं. उदैचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. ज्ञानपंचमी के उत्सव प्रसंग पर यह पत्र उदैचंदजी के लिये का उल्लेख है., जैदे., ( २४.५X११, ८X३३). १. पे नाम, पांचमी लघु स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन- लघु उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि पांचम तप तुम्हे करो, अंतिः समवसुं० पांचमो भेदरे, गाथा ५. २. पे, नाम, मंत्र संग्रह, प्र. ९आ, संपूर्ण जैन मंत्र संग्रह - सामान्य, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४८४१६. पार्श्वनाथ स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., ( २४.५X११.५, ११x२९). पार्श्वजिन स्तवन- शृंखलाबंध, मु. जैनचंद्र, सं., पद्य, आविः सर्वदेवसेवितपदपद्मं अंति: मुक्तालतावन्मुदे, श्लोक- ७. ४८४१७. (+) बीस स्थानक तप विधि, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२४.५x१०.५, ११४४१). २० स्थानकतप आराधनाविधि, प्रा., मा.गु., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं २०००; अंति: ४०० लाडू करवा देवा, गाथा-५. ४८४२०. जिनकुशलसूरि स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, दे., ( २४ ११, १३३४). १. पे. नाम. दादासाहिब १०८ जिनकुशलसूरजी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पद- २०. ४८४१९. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., ( २४.५X१०.५, १२X३८). १. पे. नाम. नेमराजुल गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. गाथा - ५. नेमराजिमती गीत, मु. चतुरऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल कहइ सुणि नेमि; अंति: वीनती ऋषि चतुरइ कही, २. पे नाम. चिंतामणिपार्श्व स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन- चिंतामणि, मु. चतुर ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीचिंतामणि साहिबा, अंति: चतुरो० नही कोई देवनरे, जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. राजसागर कवि, मा.गु., पद्म, आदि: अरे लाला श्रीजिनकुशल, अंतिः राज० बारोबार रे गाथा - ५. ४. पे नाम, जिनकुशलसूरि पद, पृ. १आ, संपूर्ण. ३१ लाला, गाथा-८. २. पे. नाम. दादाजी पद, पृ. १आ, संपूर्ण. " जिनकुशलसूरि पद, मु. जिनराज, पुहिं, पद्य, आदि: कुशल गुरु अब मोहि, अंतिः जिनराज० अरज सुणीजे, गाथा-५३. पे नाम, दादाजी जिनपद, पृ. १आ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि पद, आ. जिनचंदसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: ध्यावौ जिनकुशलसूरिंद; अंति: जिनचंद० सुख लहंदा हौ, For Private and Personal Use Only मु. कनककीर्त्ति, पुहिं., पद्य, आदि: दादोजी दोलतदाता सुख, अंतिः कनककीरत गुण गाता, गाथा - ३. ४८४२१. (४) रोहणि स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, वे (२४.५४११, १४४३०). रोहिणीतप स्तवन, मु. लाभउदय, मा.गु, पद्य, आदि: इम रोहिणीतप आदरो; अंति: लाभउदय० रंग धाइरे, गाथा- ९. ४८४२२. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., ( २४४१२, १२४३३). १. पे. नाम. नवकार स्तुति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण समरूं; अंति: सूरवरसीस रसाल, गाथा-७, (वि. प्रतिलेखक ने २ गाथाओं को १ गाथा गिना है.) २. पे. नाम. वासुपूज्यजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गयी है. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूजनी मोह; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ४ तक लिखा है.) ४८४२३. स्तवन व पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४१०.५, १३४३१). १. पे. नाम. वासपूज्यजी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. वासुपूज्यजिन स्तवन-वालोचरपुरमंडन, वा. अमृतधर्म, मा.गु., पद्य, आदि: वासुपूज्य जिनरायजी; अंति: ___ अमृतधरम०सफल करीजै जी, गाथा-७. २.पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-प्रभाति, मु. लाभउदय, मा.गु., पद्य, आदि: ऊठौने म्हारां आतम; अंति: वरतुं सिद्धवधाई रे, गाथा-५. ४८४२४. (+) हरियाली, स्तवन व स्वाध्याय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७-१६(१ से १६)=१, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४१०.५, १३४४५). १.पे. नाम. नेमिराजीमति हरियाली, पृ. १७अ, संपूर्ण. नेमराजिमति हरियाली, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: सहस सखीने झूलरे जी; अंति: कवियण० ऊगमते सूर, गाथा-१०. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १७अ-१७आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-मनमोहन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मनमोहन मनमोहन पावन; अंति: मोहन० जिनजी दास हो, गाथा-५. ३. पे. नाम. चेलणारानी स्वाध्याय, पृ. १७आ, संपूर्ण. चेलणारानी सज्झाय, मु. रायचंद, मा.गु., पद्य, आदि: चिलणा वीर वखाणी हो; अंति: रायचंद० जगत गवानी हो, गाथा-११. ४. पे. नाम. जैन गाथा, पृ. १७आ, संपूर्ण. जैन गाथा*, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ४८४२५. (#) साधु अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११. १४४४०-४३). साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दसणम्मिय; अंति: साधुसमाचार विषइयो. ४८४२६. सनत्कुमारचक्रवर्ति गीत, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४१०.५,११४३७). सनत्कुमारचक्रवर्ति सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सांभलि सनतकुमार हो; अंति: समयसुंदर० सुक्ख सदा, गाथा-७. ४८४२७. (-) गोडी पार्श्वनाथजी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२४.५४११.५, ११४३९). पार्श्वजिन स्तोत्र-गोडीजी, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: सकल भविकचेतः कल्पना; अंति: विद्यार्णवः संस्तुव, गाथा-९. ४८४२८. (#) संखेश्वरजी छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १५४४६). पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, ग. कनकरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७११, आदि: सरसति सार सदा बुध जग; अंति: कनक सदा० मन सिद्धो, गाथा-२५. ४८४३०. (+) ढुंढणपचीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, अन्य. सा. भगतिश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४४१२.५, १०४३४). ढूंढकपच्चीसी-स्थानकवासीमतनिरसन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रुतदेवी प्रणमी; अंति: पयंपे हितकारी ___ अधिकार, गाथा-२५. ४८४३२. (+) गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०, १४४३९). For Private and Personal Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ १.पे. नाम. अरहनकसाधुगीत, पृ. १अ, संपूर्ण. अरणिकमुनि गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: विहरण वेला पांगर; अंति: समयसुं० सुद्ध प्रणाम, गाथा-८. २.पे. नाम. धन्नाशालिभद्र गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: धनओ सालिभद्र बेइ; अंति: समय० हुं सदाजी हो, गाथा-८. ३. पे. नाम. अतीतचउवीसी गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिन प्रभाती-अतीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: केवलन्यानीनइ१; अंति: मति समयसुंदर परभाती, गाथा-५. ४. पे. नाम. वर्तमानचतुर्विंशतितीर्थंकर गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिन पद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जीउ जपि जीउ जपि जिण; अंति: समय० प्रणमति सिरनामी, गाथा-३. ४८४३३. नवग्रह स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४४९.५, ११४४०). पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: दोसावहारदक्खो नालीआय; अंति: गहा न पीडंति, गाथा-१०. ४८४३४. शक्र स्तव, संपूर्ण, वि. १८९५, श्रावण कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३.५४११, १९४१७). शक्रस्तव, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: नमुत्थुणं अरिहंताण; अंति: सव्वे तिविहेण वंदामि, गाथा-७. ४८४३५. जंबुकुमार सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. पंन्या. कांतिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४११, १२४२८). जंबूस्वामी सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणिक नरवर राजीयौ; अंति: पहुता छै मुगत मझार, गाथा-१६. ४८४३६. जीवविचार प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ३, जैदे., (२४४११.५, १२४३२). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. ४८४३७. चोविस तीर्थंकर अधिकार, संपूर्ण, वि. १९३७, फाल्गुन कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. मणाउद्र, प्रले. मु. सौभाग्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४१०.५, ११४३६). २४ जिन गर्भवास विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहिला श्रीऋषभदेव नव; अंति: दिवसे गर्भवासे रह्या. ४८४३८. गोडीपार्श्व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४१०.५, १२४३६). पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, रा., पद्य, आदि: सुगण सनेहा प्रभुजी; अंति: होयसी० कल्याण, गाथा-९. ४८४३९. (+#) थंभण पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १७६५, वैशाख शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. २, पठ. सा. रतना, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४९.५, १५४५७). पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभू प्रणमुंरे पास; अंति: जाणी कुसललाभ पजपये, ढाल-५, गाथा-१८. ४८४४०. (#) श्रावकप्रतिक्रमण सूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०.५, १३४४१). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदेतु सव्व सिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. ४८४४१. (+) स्तुति व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११, १३४३०). १.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: दें दें कि धप; अंति: दिशतु शासनदेवता, श्लोक-४. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तवन-उदयपुरमंडन, आ. उदयसमुद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पास सवि नाते मन मोहि; अंति: उदयसमुद्र०मननी रे आस, गाथा-५. ४८४४२. आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२३४१०.५, १५४४२). २४ जिन स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पंचगुण पंचएगूणजिण; अंति: पार्श्वचंद० हरषइ भणइ, ढाल-८, गाथा-१९. ४८४४३. स्तवन संग्रह व पद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३,प्र.वि. पत्रांक का उल्लेख न होने व प्रत अपर्ण होने से पत्रांक २ काल्पनिक दिया गया है., जैदे., (२३४१०.५, १२४२३). १.पे. नाम. शेजा आदिनाथजीरोतवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. __ आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: भेटीआ श्रीआदीनाथ रे, गाथा-१५, (पू.वि. गाथा १४ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. तीरथमाला सोवीसजीन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. तीर्थमाला स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सेत्रुजै रिषभ समोसर; अंति: समयसुंदर कहे एम, गाथा-१८. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: रूपवंत गुणहीण सो तो; अंति: कामे पड्या न भजीइ, पद-१. ४८४४४. (+) चउवीस दंडकविचार स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्रले.पं. किसना; पठ.सा. जसोदा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११, १४४३६). पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुपासनाह प्रह; अंति: पासचंद० परमारथ लहइ, गाथा-२४. ४८४४६. (#) स्तवन संग्रह व प्रभाती, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-३(१ से ३)=२, कुल पे. ५, प्रले.मु. चतुरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१०.५, १०४३१). १. पे. नाम. नोकार प्रभाती स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण. नवकार प्रभाती स्तवन, क. जगमाल, पुहिं., पद्य, आदि: पहेले पद नमुंअरीहंत; अंति: जगमाल० मत को बिसारो, गाथा-६. २. पे. नाम. औपदेशिक प्रभाती, पृ. ४अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: रे घडीआरी वाउरी मत; अंति: आनंदघन० कोई न पावे, पद-३. ३. पे. नाम. आदिनाथ प्रभाति स्तवन, प्र. ४आ, संपूर्ण. आदिजिन गीत, पुहिं., पद्य, आदि: भजो श्रीऋषभ जिणंद कु; अंति: चरण की ऋदयै लय लाई, गाथा-४. ४. पे. नाम. जन्म महोछव प्रभाति स्तवन, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. साधारणजिन जन्मकल्याणक स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जिनमुख देखण जाउंरे; अंति: विमल प्रभु ध्याउरे, गाथा-७.. ५.पे. नाम. औपदेशिक प्रभाती, पृ. ५अ, संपूर्ण. मु. भानुचंद, पुहिं., पद्य, आदि: भोर भयो भोर भयो जाग; अंति: भानुचंद० पीयो पाणी, पद-२. ४८४४८. (#) पार्श्वजिन छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १७४५७). पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: सुवचन आपो शारदा मया; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा __ अपूर्ण., गाथा २१ अपूर्ण तक लिखा है.) ४८४४९. (+) नेमनाथजीरो तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १३४३७). नेमिजिन स्तवन, पं. मनरूपसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सोरीपुरनगर सुहामणो; अंति: मनरूप प्रणमे पाय, गाथा-१५. ४८४५०. स्तवन व आर्याजी ढाल, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२४४११, २४४३६). For Private and Personal Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ १. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: धनधन खेत्र वदेहे हो; अंति: रतनचंद० आपरी रेलाल, गाथा-७. २. पे. नाम. वखतु श्रमणीजी रास, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, वि. १८७७, आदि: श्रीजिनचरण कमल नमु; अंति: (-), (पू.वि. ढाल ३ की गाथा ९ अपूर्ण तक है.) ४८४५१. बारामासा, संपूर्ण, वि. १९२९, चैत्र शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४१२, १७४३४). १२ भावना बारमासो, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनपद पंकज नमुं; अंति: ऋष रत्नचंद एह गाइया, गाथा-१३. ४८४५२. सकलार्हत् स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२३.५४११.५, ८४३०). सकलार्हत स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: श्रीवीरं प्रणिदध्महे, श्लोक-३०. ४८४५४. सर्वचैत्यजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८८६, मार्गशीर्ष कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. अजीमगंज, पठ. श्राव. सिरदारमल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१०.५, १२४३६). तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके; अंति: सततं चित्तमानंदकारि, श्लोक-९. ४८४५५. कल्याणमंदिराभिधान महास्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. आहोर, प्रले.पं. शिवचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१०.५, ११४३४). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुदचं० प्रपद्यते, श्लोक-४४. ४८४५६. (+) मुनिधर्म सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३.५४११, १५४३८). मुनिधर्म सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसदगुरुने चरणे नम; अंति: पामो सुख भरपूरो रे, गाथा-१३. ४८४५७. (+) श्रावक वंदिता सूत्र व चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२२४११.५, ११४२८). १. पे. नाम. श्रावक वंदिता सूत्र, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्ध; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. २. पे. नाम. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, पृ. ३आ, संपूर्ण. उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: श्रीसीमंधर वीतराग; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रारंभिक ३ पद तक लिखा हैं.) ३. पे. नाम. जगचिंतामणि चैत्यवंदन, पृ. ३आ, संपूर्ण. चैत्यवंदन, संबद्ध, आ. गौतमस्वामी गणधर, प्रा., प+ग., आदि: जगचिंतामणी जगनाह; अंति: पायाले माणुसे लोए, गाथा-६. ४८४५८. मंत्रादि साधनाविधि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२४४११, १७४५९). १. पे. नाम. मंत्र तंत्र संग्रह, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. __मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. मायाबीजाराधन विधि, पृ. २अ, संपूर्ण. मायाबीज विधि, सं., गद्य, आदि: षट्कर्मसु लिख्यते; अंति: ध्यानेन आरीठा जपमाली. ३. पे. नाम. महाविद्या जपसाधना, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सं., प+ग., आदि: श्री ह्रीं क्लीं ऐं अंति: (-). ४८४५९. चित्रसंभूति स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १८२०, ज्येष्ठ कृष्ण, ११, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. रुपविजय; पठ. श्रावि. रुपाबाइ, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४११.५, १३४३६). चित्रसंभूति सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चित्र कहे ब्रह्मराय; अंति: कवियण शिवपद लहसी हो. गाथा-१९. For Private and Personal Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३६ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४८४६० (०) स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण वि. १८७० श्रावण शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, ले. स्थल, नाडोल, प्रले. मु. मोहनसागर पठ. पं. उमेदचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीपद्मप्रभुजी, श्रीनेमीनाथजी प्रसादात्., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र. ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं, जैदे., (२३.५X११, १२X४२). १. पे. नाम. गौतमस्वामी गणधर स्तोत्र, पृ. १अ - ३अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी रास, आ. विजयभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल, अंति: विजयभद्र० ईम भणे ए, ढाल - ६, गाथा- ४८. २. पे. नाम. माणिभद्रवीर छंद, पृ. ४आ, संपूर्ण. " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मनो, मा.गु., पद्य, आदि: साचो मणिभद्र वीर, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा- २ तक लिखा है.) ४८४६१. सिद्ध स्थवो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., ( २४४१०.५, ९२६). सिद्धपद स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि जगतभूषण विगतदूषण, अंतिः पूजो देव निरंजनं, गाथा - १५. ४८४६२. लघु अतिचार, संपूर्ण, बि. २०वी, ज्येष्ठ अधिकमास शुक्ल, १३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. हेमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, वे., (२४x११, १३X३५). श्रावकलघुअतिचार-अंचलगच्छीय, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: इच्छा० भगवन्० अरिहंत; अंति: तीयागारेणं बोसिरामि ४८४६३. सरस्वती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. मु. केसव ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैये. (२३.५x१२.५, १५X३९). सिद्धसारस्वत स्तव, आ. बप्यभट्टसूरि, सं., पद्म, वि. ९वी, आदि: कलमरालविहंगमवाहना, अंति: रंजयति स्फुटम् (वि. प्रतिलेखक ने गाथा संख्या नहीं लिखी है.) ४८४६४. (+#) स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२३.५X११.५, १५X४३). १. पे. नाम. पंचपरमेष्ठिमहामंत्र स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पंचपरमेष्टि स्तोत्र, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः स्वः श्रियः श्रीमद, अंति: ते भवंति जिनप्रभा, श्लोक ५. २. पे. नाम, जैनरक्षा स्तोत्र, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, जिनरक्षा स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीजिनं भक्तितो; अंति: संपदश्च पदे पदे, श्लोक-१७. ३. पे. नाम, आत्मरक्षा स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण, वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः परमेष्ठिनमस्कार, अंति: राधिचापि कदाचन, (वि. प्रतिलेखक ने गाया संख्या नहीं लिखी है.) ४८४६५. स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८५३, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, ले. स्थल. पल्लीकापुर, प्रले. पं. भैरुदास, पठ. उत्तमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२४४१०.५, १६x४१). " १. पे. नाम. भारत्याष्टक, पृ. १अ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र-मंत्रगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः ॐ नमस्त्रिदशवंदित; अंति: मधुरोज्ज्वलागिरः, लोक-१. २. पे. नाम भारती स्तोत्र, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: राजते श्रीमती देवता; अंति: भवति बुद्धि विभवेन, श्लोक - ९. ३. पे नाम, चतुःषष्ठिदेव्याष्टक स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. चतुषष्ठिदेव्याष्टक स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ईश्वरी विजया गौरी, अंतिः प्राप्नोति न संशयः, श्लोक ९. ४८४६८. गौडीपार्श्व वृद्धस्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल, साद्रिनगर, प्रले सेसचंद्र परमार, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५X१२, ८X३३). पार्श्वजिन स्तवन- अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वाणी ब्रह्मवादिनी, अंति: नामं अभिरामं मंते, ढाल-५, गाथा-५५. For Private and Personal Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ४८४६९. कुमतिवदन चपेट, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. १, वे. (२३.५४११.५, १५४२८) יי जिनबिंबस्थापन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: भरतादिक जिन उधार कीध, अंतिः वाचक जसनी वाणी हो, गाथा - १०. ४८४७०. मृगापुत्ररिष सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे (२३.५x१०.५, १३४३६). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मृगापुत्र सज्झाय, आ. हेमविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः सुग्रीनवरी सोहामणीजी, अंति: हेमवि० सभी अवर न कोह गाथा - २१. ४८४७१. स्तोत्र, स्तवन व बारहराशी संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम पू. १, कुल पे. ३, जैवे. (२३.५४११.५, ११४३०). " 3 १. पे. नाम. घंटाकर्ण स्तोत्र, पृ. ९अ, संपूर्ण. घंटाकर्ण महावीरदेव स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः ॐ घंटाकर्णो महावीरः; अंतिः ते ठः ठः ठः स्वाहा, श्लोक-४. २. पे नाम सांति स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण शांतिजिन स्तवन, मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: तूं मेरा दिल मै० नाम, अंतिः देव सकल मे हो जीनजी, गाथा ५. ३. पे. नाम. बारह रासी, पृ. १आ, संपूर्ण. बाराशिवर्णमाला, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४८४७३ (+) नवतत्व, संपूर्ण वि. १८१६ मार्गशीर्ष शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. १. ले. स्थल, झूठाग्राम, पठ. मु. श्रीचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., ( २४४११.५, १८x४६). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुनं पावा, अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-५१. ४८४७५ (-) स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १. कुल पे ८, प्र. वि. पेज-१४४. फोल्डर, अशुद्ध पाठ, जैदे., (२३.५X११.५, १३X२६). १. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. अमृत, रा., पद्य, आदि: मन रे तु मन रे तु सर, अंति: अमृत० दम से हुसीयारी, गाथा-५. २. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. अमृत, पुहिं, पद्य, वि. १८९३, आदि नजर भरी रे मारी अखिय अंतिः अमृत० महराज पधारे, गाथा- ३. ३. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण. मु. अमृत, पुहिं., पद्य, आदि: ए सुनो मेरे पासजी, अंति: अमृत० भायगहि मेरा, गाथा-५. ४. पे. नाम. जिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, मु. अमृत, पुहिं, पद्य, आदि ए जन तोरी मुरती मोहन, अंतिः अमृत सुख पीया वारी, " गाथा-५. ५. पे. नाम जिन पद, पृ. १अ संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. अमृत, पुहिं., पद्य, आदि: ए घनसांम मंदिर मेरे अंतिः लागे सुखे करी प्यारी, गाथा- ७. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, मु. अमृत, पुहिं., पद्य, आदिः संखेसर सुखकारी भला; अंति: अमृत वाणी० पार उतारी, ३७ गाथा-७. ७. पे. नाम. नमीजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. नमिजिन स्तवन, मु. अमृत, पुहिं., पद्य, आदि: सीवत० नमीजन सीव ए; अंति: कीजे अमृत सुख संग, गाथा - ५. ८. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. सुख, पुहिं., पद्य, आदि: तुमे चार दुरे करी, अंति: परेम की पटारी हे, गाथा-६. ४८४७६. स्तवन संग्रह, संपूर्ण वि. १८४४-१८४७ श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे ३, प्र. मु. प्रीतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., For Private and Personal Use Only (२४X१०.५, १२-१७x४९). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८४४, ज्येष्ठ कृष्ण, ४, ले. स्थल. साहीला. साधारणजिन स्तवन, मु. कनककीर्ति, पुर्ति, पद्य, आदि: बंदु श्रीजिनराय मन अंतिः सुरगा सुख लह्यो जी, गाथा- १७. " Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३८ www.kobatirth.org ११४३८). १. पे. नाम. पंचपरमेष्ठि स्तोत्र, प्र. अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी शांति सदा अंति: जस० सदा सुखवाई रे लो, गाथा ५. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, वि. १८४७, ज्येष्ठ शुक्ल, ३, ले. स्थल. आसाणा. उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, आदि: पास वामाजु के नंद, अंति: बिमणो सुजस सवाय, गाथा-५. ४८४७७. परदेशीराजानी सज्झाव, संपूर्ण, वि. १८५२, भाद्रपद शुक्ल, ७, शनिवार, मध्यम, पृ. १, प्रले. पंन्या. हर्षविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (१८.५४९, १२४३६). प्रदेशीराजा सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि सेतंबिका नयरि सोहांम, अंतिः कवियण० सुभ उपगार रे, कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गाथा - १९. ४८४७९. (+) स्तोत्र व विधिसहित मंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ५. प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२४.५४१०.५, ५ परमेष्ठि स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: परमिट्ठमंतसारं सारं; अंति: आरोग्गंदेउ सुहपण्णो, गाथा-७. २. पे. नाम. परमेष्ठि आत्मरक्षा स्तोत्र, पृ. १अ - १ आ, संपूर्ण. वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: परमेष्ठिनमस्कार, अंति: राधिञ्चापि कदाचन, श्लोक ८. ३. पे. नाम. सत्तरिसय यंत्राम्नाय, पृ. १आ- २अ, संपूर्ण. विजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तयासं अनुम, अंतिः निब्धंत निच्चमच्चेह, गाथा- १४. ४. पे. नाम. घंटाकर्ण स्तोत्र विधिसहित, पृ. २अ, संपूर्ण. घंटाकर्ण महावीरदेव स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः ॐ घंटाकर्णो महावीरः; अंतिः ते ठः ठः ठः स्वाहा, श्लोक-४, (वि. मंत्रजाप विधिसहित) ५. पे. नाम. पंचांगुली माता मंत्र विधिसहित, पृ. २अ - २ आ, संपूर्ण. पंचांगुली माता मंत्र, सं., गद्य, आदिः ॐनमो पंचांगुली परसर, अंति: (१) ॐ ठः ठः ठः स्वाहा, (२) अखूट थाय सत्यमेव, (वि. मंत्रजाप विधिसहित ) ४८४८०. तीर्थमाला, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. १, पठ. रामनंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२४४१०५, ९४३९). तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके; अंतिः जायते मानवाणी, श्लोक १०. ४८४८१. (+) नरकावास विवरण व दस अछेरा, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-८ (१ से ८) = १, कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैये. (२३.५४१०.५, १९४४२). १. पे. नाम. नरकावास विचार, पृ. ९अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. 1 नरक विचार, मा.गु. गद्य, आदि: (-); अंति; भाग उपजती विरियां (पू. वि. पांचवें नरकावास तक नहीं है.) २. पे. नाम. दसअच्छेरा सह अर्थ, पृ. ९आ. संपूर्ण. For Private and Personal Use Only १० आश्चर्य वर्णन, प्रा., मा.गु. प+ग, आदि उवसग १ गर्भहरण २ अंतिः एहवा दस अछेरा हुया. ४८४८२. थूलिभद्रऋषि कोस्यानारी संयुक्तविवादरस नवढालियो, अपूर्ण, वि. १८३१, वैशाख शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. ३-२ (१ से २) १, ले. स्थल, सोजित प्रले. मु. जैकरण पं. (खरतरगच्छ भट्टारक). प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२३४११.५, १६४३७). स्थूलभद्रमुनि नवरसो ढाल व दूहा, उपा. उदयरत्न, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: (-); अंति: मनोरथ सर्वे फल्या रे, ढाल - ९, (पू.वि. ढाल ७ की गाथा ५ अपूर्ण से है.) ४८४८३. दादा जिनकुशलसूरि गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, जैवे. (२४४११.५, २२४३८)१. पे. नाम जिनकुशलसूरि स्तुति, पृ. १अ संपूर्ण जिनकुशलसूरि पद, मु. कविराज, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीगणधर जिनकुशलसूरि, अंति: बेर बेर बलिहारी, गाथा-४. २. पे. नाम जिनकुसलसूरि स्तुति, पृ. १अ संपूर्ण जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. कुसल कवि, रा., पद्य, आदि: हांजी कांइ अरज करू; अंति: राज० पाटोधर प्रतिपाल, गाथा ६. Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ३. पे. नाम. जिनकुशलसूरि स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. कुशलसूरि गीत, मु. भुवनकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: कुशल करो जिन कुशल; अंति: ते तूठे अविचल सोभाग, गाथा-९. ४.पे. नाम. दादाजी गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि गीत, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: आयो सहु श्रीसंघ आस; अंति: जिनचंद०आस्या सफल फली, गाथा-७. ५.पे. नाम. दादाजी स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: देरावर दादो दीपतो रे; अंति: प्रणमुं सिरनामी रे, गाथा-४. ६. पे. नाम. दादाजी स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि गीत, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सदगुरु श्रीजिनकुशलसू; अंति: जिनचंद ज्यु सुरतरू, ___ गाथा-६. ४८४८४. महावीर स्तवन, संपूर्ण, वि. १८२६, फाल्गुन शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. बलभद्रपुर, प्रले. श्राव. मोतीराम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१०.५, १४४३४). महावीरजिन स्तवन, उपा. लक्ष्मीरतन, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदि: केवल दरपण संक्रमै जे; अंति: लिखमी० जिणवर इम थुणे, ढाल-१, गाथा-२३. ४८४८५. (+) सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. चापसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३.५४९.५,१३४३६). सीमंधरजिन स्तवन, आ. अजितदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जगबंधव जगसामीया वीनत; अंति: अजितदेवसूरे० पुर राज, गाथा-१९, (वि. प्रतिलेखक ने गाथा संख्या अव्यवस्थित दी है.) ४८४८६. स्तुति-प्रार्थनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्रले. मु. जीवविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४x७, ७४४६-५१). १.पे. नाम. गौतमस्वामी मांगलिक श्लोक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी स्तुति, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: मंगलं भगवान वीरो; अंति: लछिय लिल करत, गाथा-४, (वि. कृति संकलनरूप होने के कारण गाथा संख्या क्रमशः १ से ४ दिया गया है.) २.पे. नाम. सोलसती छंद, पृ. १अ, संपूर्ण. १६ सती स्तुति, सं., पद्य, आदि: ब्राह्मी चंदनबालिका; अंति: कुर्वंतु वो मंगलम्, श्लोक-१, (वि. कृति संकलनरूप होने के कारण गाथा संख्या क्रमशः ५ दिया गया है.) ३. पे. नाम. सरस्वती मंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी मंत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं; अंति: वर्द्धनीये नमः, श्लोक-१. ४. पे. नाम. सरस्वतिदेवी स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: सरस्वती नमस्यामि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम गाथा लिखा है.) ४८४८७. गौतमपृच्छा गीत, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. सा. वछा (गुरु सा. जसोदा), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३.५४११.५, २२४१८). गौतमपृच्छा सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: गौतमस्वामी पृच्छा; अंति: त्याह जीव मुगति अहो, (वि. प्रतिलेखक ने गाथा ___ संख्या नहीं लिखी है.) ४८४८८. (+) थंभण पार्श्वनाथ नमस्कार, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४१०.५, ११४४८). जयतिहअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तियणवरकप्परुक्ख; अंति: विण्णवइ __अणिंदिय, गाथा-३०. ४८४९०. क्षपकश्रेणि स्वरुप, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३.५४११, २२४४९). For Private and Personal Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची क्षपकश्रेणि स्वरूप, मा.गु., गद्य, आदि: (१) अणमिछमीससम्मतिआऊ, (२) हिवै इहां मनुष्य आठ; अंति: एतलै क्षपकश्रेणि कही. ४८४९१. (+) शाखत स्तवन, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पू. १, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, जैये. (२३.५४९.५, १३४३८-४२). तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके, अंतिः सततं चित्तमानंदकारि, श्लोक - ९. ४८४९२. . (+) विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ७, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२३.५X१०.५, २३४५८). १. पे. नाम. १४ गुण ठाणे बंधना हेतु उत्तर प्रकृति, पृ. १अ, संपूर्ण. १४ गुणठाणे ५७ कर्मबंधहेतु, मा.गु., गद्य, आदि: शिवइ मिध्यात्वगुणठाण, अंतिः तेहनत विचार जाणिवड, , २. पे. नाम. साधुआचार विवरण- जीवाभिगमे, पृ. १अ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. पचक्खाण फल वर्णन, पृ. १आ, संपूर्ण. १० पच्चक्खाण फल, मा.गु, गद्य, आदि: नउकारसीनउ वर्ष१०० अंतिः एहवे पचखाणे खपावह. ४. पे. नाम. अक्षौहिणी मान, पृ. १आ, संपूर्ण. अक्षौहिणीसैन्य मान, सं., पद्य, आदि: खगाष्टकद्विकै२१८७०; अंति: निवर्त्तनामाशतं १०० श्लोक-२. ५. पे. नाम. नीलवणि नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु. गद्य, आदि: नालेरनीला सोपारी अंतिः भाणनउ दांतण खइरनउ ६. पे नाम. ९ पुण्यानि, पृ. १आ, संपूर्ण. ९ पुण्य प्रकार, प्रा., गद्य, आदि; नवविहे पुन्ने पन्नत; अंतिः नमोकारपुत्रे ९. ७. पे. नाम. १० दीक्षा प्रकार, पृ. ९आ, संपूर्ण, प्रा.मा.गु., पा., आदि दसविहा पव्वज्जा, अंति: भृगुपुरोहित पुत्र १०. ४८४९३. सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे २, जैदे (२४.५X१०.५, १३४४३). १. पे. नाम. सामायिकना बत्रीसदोषनी सज्झाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सामायिक सज्झाय, मु. कमलविजय-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम गणधर प्रणमी, अंति: श्रीकमलविजय गुरु सीस, गाथा- १३. २. पे. नाम. बारव्रत सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. १२ व्रत सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम गणधर पाय नमीजे; अंति: साधवीने सुजतो दीजे, गाथा - १३. ४८४९४ स्तवन व स्तुति, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे २, जैदे (२४.५४१०.५, १५४४५). " १. पे. नाम. गोडीपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. न्यानसागर, मा.गु., पद्य, आदि; सरसती मति आपी मात, अंतिः न्यानसा० संघ सुखदाया, गाथा-१५. २. पे. नाम. पजूसणा थुई, पृ. १आ, संपूर्ण. पर्युषण पर्व स्तुति, मु. अमरविजय, मा.गु., पद्य, आदि पर्व पजुसण पुन्ये अंतिः निसदिन करो बधाइजी, गाथा-४. ४८४९५. आद्ध दिनकृत्य सझाय, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे. (२४.५x११.५, ८४२७). " मन्हजिणाणं सज्झाय-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: मनह जिणाणं आणं मिछं; अंति: निच्चं सगुरूवएसेण, गाथा ५. ४८४९६. सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, माघ कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ३. दे. (२४.५x१०.५, १०x२३). " सीमंधरजिन विनती स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सुणि श्रीमंधर साहिबा, अंति: मुज मानस सर हंस, गाथा - ३४. ४८४९७, (+) स्तवन संग्रह व मंत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे (२२.५x१०, १७५२). १. पे. नाम. अजितशांति स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ संबद्ध, उपा. मेरुनंदन, मा.गु., पद्य, वि. १५वी, आदि: मंगल कमलाकंद ए; अंतिः मेरुनंदण उवज्झाय ए. गाथा-३२. २. पे नाम तीर्थमाला गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदिः सेतुंजे रीषभ समोसर, अंतिः समयसुंदर कहे एम गाथा - १६, (वि. प्रतिलेखक ने १ गाथा को २ गाधा गिना है.) ३. पे. नाम. लक्ष्मीदेवी मंत्र विधिसहित, पृ. १आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह "., प्रा., मा.गु., सं., प+ग, आदि (-); अंति: (-). ४८४९८. तीर्थमाला स्तवन, संपूर्ण वि. १८९१ आश्विन शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. १, प्र. मु. कल्याणविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१०, १४४४८). तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके; अंतिः सततं चित्तमानंदकारि, श्लोक १०. ४८४९९. धोबीडानी सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२३.५४११.५, १०X२८). औपदेशिक सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्म, वि. १८वी, आदि धोबीडा तुं धोने मननु अमृतवेल रे, गाथा- ६. ४८५००. आत्मने सीखामणनी सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले करमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (२३.५४११.५. १०X२४). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आत्मोपदेश सज्झाय, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि हुं तो प्रणमुं सद्, अंतिः तुमे घेर बेठा कमावो, गाथा- ११. ४८५०१. आंतरा स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्रले. सा. भक्तिश्री, प्र. ले. पु. सामान्य, दे. (२४४१२, ११४३४). २४ जिन आंतरा स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु, पद्य, वि. १७७३, आदि सारद सारदना सुपरे अंतिः राम० वय ११-१८X३२-३७). १. पे. नाम. ज्योतिष संग्रह, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र अंतिम पत्र है. ज्योतिष", मा.गु. सं. हिं. पण, आदि (-); अंति: (-). २. पे नाम, पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. जयकार, ढाल ४. ४८५०२. (+) पांच कारण छ ढालिया, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. संशोधित, जैदे (२४४११, ९५३६). ५ कारण छ ढालिया, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य वि. १७३२, आदि सिद्धारथसुत वंदिनं अंतिः परे विनय कहे आणंद ए, ढाल - ६, गाथा - ५८. " ४८५०३. ज्योतिष संग्रह व पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २- १(१ ) = १ कुल पे. २ जैवे (२४.५४११-१६.०, अंति: सुखड पार्श्वजिन स्तवन, आ. जिनलाभसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवननाथ अनाथ सुह, अंतिः जिनलाभसुरीस० सीस, गाथा ५. १. पे. नाम. पाप स्थानक नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. १८ पापस्थानक नाम, मा.गु., गद्य, आदि: प्राणातपात१ मृषावाद२; अंति: दरसणसल्य ए १८. २. पे. नाम पद्मावती आराधना, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण ४८५०४. (+#) ) पापस्थानक नाम, पदमावती आराधना व आलोयणा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८४४, ज्येष्ठ शुक्ल, १०, शनिवार, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्रले. फता, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, ११-१४४३३-३६). ४१ उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु पद्य वि. १७वी आदि हिव राणी पदमावती: अंतिः पापथी छुटे तत्काल, ढाल-३, , गाथा - ३६. ३. पे. नाम, आलोयणा सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only मु. जिनसंभव, मा.गु., पद्म, आदि: श्रीजिनवर भव्यजीवसुं अंतिः साखथी कहै जिनसंभव एह गाथा- १०. ४८५०६. (#) गणधर होरा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षर फीके पड गये हैं, दे., (२५X१०, १६x४७-५१). गणधर होरा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवाइ पयत्थयत्थ, अंति: होई गुरुदुक्खं, श्लोक-३३. Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४८५०९. चतुरंगीय अज्झयण, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. पं. खूबचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४११.५, १७४४०). उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा अध्ययन ३ चतुरंगिकाध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: चत्तारि परमंगानि: अंति: हवइ सासए त्तिबेमि, गाथा-२०. ४८५११. (#) नवतत्व प्रकरण व नवतत्व का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १५०६, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १९४६८). १.पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १५०६, भाद्रपद शुक्ल, १५, रविवार, ले.स्थल. पत्तननगर, प्रले. मु. भावसुंदर (गुरु आ. मलयचंद्रसूरि, बृहत्गच्छीय); गुपि. आ. मलयचंद्रसूरि (गुरु आ. धर्मचंद्रसूरि, बृहत्गच्छीय); आ. धर्मचंद्रसूरि (बृहत्गच्छीय), प्र.ले.पु. सामान्य. प्रा., पद्य, आदि: जीवाश्जीवार पुण्ण३; अंति: परियट्टो चेव संसारो, गाथा-२७. २. पे. नाम. नवतत्व का बालावबोध, पृ. १आ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, ग. हर्षवर्द्धन, मा.गु., गद्य, आदि: दानलब्धि१ भोगलब्धिर; अंति: निश्चइ संसारह ऊइजि. ४८५१३. सात विसन कवित्त, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पठ. पं. वृद्धिचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४११, १४४३७). ७ व्यसन कवित्त, मु. भीव, पुहिं., पद्य, आदि: जूवा सुरा ताजिके; अंति: भीव०सजन मन सेवो साती, गाथा-८. ४८५१४. घोटक छत्रीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२३.५४१०.५, १९४४९). कायोत्सर्ग दोष, मा.गु., पद्य, आदि: कवि कहइ घोटक लक्षण; अंति: एहवो लक्षण जाणि, गाथा-३६. ४८५१६. (+#) स्तवन व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८४०, माघ कृष्ण, २, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, पठ.पं. हुकमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंशखंडित है, जैदे., (२५४११, १३४३८). १. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मु. कविराज, मा.गु., पद्य, आदि: वचन विलास दीऐ ब्रह्म; अंति: कविराज कहै। असरण शरण, गाथा-१५. २.पे. नाम. परनारीपरिहार सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-परनारीपरिहार, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सीख सुणोरे प्रिउ; अंति: जिन० हईडे ते आगमवाण, गाथा-८. ४८५१७. महावीर स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४.५४११, १२४४७). महावीरजिन स्तुति, मु. विशुद्धविमल, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर माता सार; अंति: वृद्धिनी तुं थाय, गाथा-४. ४८५१८. (+) संखेसर पारसनाथजीरो स्तवन, संपूर्ण, वि. १८४५, फाल्गुन शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. दीपविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४९.५, ९४३९). पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेश्वर पासजिन; अंति: जिणचंद करमदल जीपतो, गाथा-५. ४८५१९. मालारोपण विधि, औषध व यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, दे., (२५४१२, १४४३५). १.पे. नाम. संघपति मालरोपण विधि, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. मालारोपण विधि, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: मालारोपण मुहर्त्त; अंति: धर्मदेशना दीइं. २.पे. नाम. ज्वरांकुस चूर्ण, पृ. २आ, संपूर्ण.. औषधवैद्यक संग्रह प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: संखभस्म हडताल सम; अंति: ज्वरती दोष मिट जाय. ३. पे. नाम. आधासीसी यंत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह*, उ.,पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ४८५२०. (#) विहरमान स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. गुलालकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२५४११.५, १३४३०). For Private and Personal Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ विहरमान २० जिन स्तवन, पा. धर्मसिंह, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: वांदुमन सुध वैहरमाण; अंति: नेहधर ध्रमसी नमै, ढाल-३, गाथा-२६. ४८५२१. सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. नरसिंघ, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४११, १२४२८-३१). नवपद स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६२, आदि: सकल कुसल कमलानो मंदर; अंति: दानविजय जयकार रे, गाथा-२३. ४८५२२. (#) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११, १२४३७). १.पे. नाम. सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जगदानंदन गुणनीलो; अंति: पुन्य थकी फलै आस रे, गाथा-१५. २. पे. नाम. चंदलीया बीज, पृ. १आ, संपूर्ण. कोशास्थूलिभद्र सज्झाय, क. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: चंदलीया थु वहलो रौ; अंति: कौस्या बाली रे, गाथा-५. ४८५२३. (#) गुर्वावली, संपूर्ण, वि. १८१४, वैशाख कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. उदयपुर, प्रले. पं. आगमसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १७४४४). पट्टावली तपागच्छीय, सं., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानस्वामी; अंति: ६६ धर्मसूरिः. ४८५२४. जैन गुण स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४४११, ११४३५). जैनलक्षण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: जैन कहो केम होवे; अंति: जैनदशा जस ऊंची, गाथा-१०. ४८५२५. शांतिजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्र-१४४, दे., (२४४८.५, २२-२८x१९-२२). शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारद मात नमु सिरनामी; अंति: गुणसागर० शिवसुख पावे, गाथा-२१. ४८५२६. (#) दादाष्टक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१०.५, १४४३४). १. पे. नाम. दादाष्टक, पृ. १अ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि अष्टक, मु. रत्नसोम, सं., पद्य, आदि: देवराजपुरमंडनमाप्त; अंति: रत्नसोम समसद्यशोभरम्, श्लोक-९. २. पे. नाम. दादाष्टक, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. कुशलसूरि गुर्वष्टक, सं., पद्य, आदि: पद्मा कल्याणविद्या; अंति: भुक्ता च भोक्ता च, श्लोक-९. ३. पे. नाम. दादाजीरो द्वितीयष्टक, पृ. २आ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि गुर्वष्टक, उपा. समयसुंदर गणि, सं., पद्य, आदि: श्रीमन्नरेश्वरमौलिमण; अंति: गुरोर्भवताच्छ्रिये, गाथा-९. ४८५२७. (#) श्रीपाल चरित्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, दे., (२५४११, १६४४१). सिद्धचक्र माहात्म्य, सं., गद्य, आदि: अथान्यदिने मदना पति; अंति: भवे मोक्षं भविष्यति. ४८५२८. गुवली संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४४१२,१५४३४). १.पे. नाम. वरदत्तकुमार गुवली, पृ. १अ, संपूर्ण.. वरदत्तकुमार गहुँली, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विचरतां नेमी जीनेसर; अंति: दीप लहो भवपार, गाथा-७. २. पे. नाम. जंबूकुमार गुवली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. _महावीरजिन देशना गहुँली, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणंद समोसर्या; अंति: दीप कहे आणंदो, गाथा-७. ३. पे. नाम. मुनिगुण गुवली, पृ. १आ, संपूर्ण. मुनिगुण गहुँली, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अहो मुनि संजम स्यु; अंति: दीपविजय इणि परे भावे, गाथा-९. ४८५२९. (+) तमाकु सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७५७, सतर सतान, चैत्र, ११, मंगलवार, मध्यम, पृ. १, प्रले. अंबादत्त, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, १७४५३). For Private and Personal Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक सज्झाय-तमाकुत्याग, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतम सेती वीनवे; अंति: आणंद० कोडि कल्याण, गाथा-१८. ४८५३०. (#) बावनी भलेनो अर्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १३४३७). बावनी भले अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भले कहितां अरे बापडा; अंति: ज्ञान ए थकी ऊपजिइ. ४८५३१. ऋषभजिन गीत व आदिजिन पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४४१२, १२४३३). १.पे. नाम. ऋषभजिन गीत, प्र. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: ऋषभ जिणेसर त्रिभुवन; अंति: बीकानेर मझारो रे, गाथा-११. २.पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. अभयचंद, पुहिं., पद्य, आदि: अब तो निभायै बनेगी; अंति: अभय० गरीब निवाज, गाथा-४. ४८५३२. (#) सिद्धाचलजी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४११.५, १०४३०). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. पायचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सफल एह अवतार माहरो; अंति: वीनती सफल करेज्यो, गाथा-१२. ४८५३३. आगम स्तवन व ४५ आगमनाम, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४४१२, १३४२९-३४). १.पे. नाम. आगम स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. वा. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंदनी वाणी; अंति: लालचंद० गुण गावैरे, गाथा-९. २.पे. नाम. ४५ आगम नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: १ आचारांगसूत्राय नमः; अंति: ४५ अनुयोगद्वारसूत्र. ४८५३४. दंडक स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८१०, कार्तिक कृष्ण, ६, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. पं. मलूकचंद (गुरु पं. सतीदास गणि); गुपि.पं. सतीदास गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१०.५, १२४३९-४२). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीसजिणे तस्स; अंति: गयसारेण० अप्पहिया, गाथा-४३. ४८५३५. स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४.५४११, १३४४४). १.पे. नाम. नेमिनाथ स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: सुर असुर वंदुं पायपं; अंति: जीव मंगलाकर देवियै, गाथा-४. २. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: निरुपम सुखदायक; अंति: श्रीजिनलाभसूरिंदा जी, गाथा-४. ३. पे. नाम. पर्युषणापर्व स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वलि वलि हुंध्यावं; अंति: कहै श्रीजिनलाभसुरिंद, गाथा-४. ४८५३६. लघुवर्द्धमानविद्या मंत्र, दीक्षाविधि व ब्रह्मचर्यव्रत ग्रहण विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, दे., (२४.५४११, १४४४३). १. पे. नाम. लघुवर्द्धमानविद्या मंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. वर्द्धमानविद्या जापमंत्र, प्रा.,सं., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवओ अरहओ; अंति: ॐ ह्रीं नमः स्वाहा. २. पे. नाम. दीक्षाग्रहण विधि, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: संध्यायां चारित्र; अंति: याहिण८ वास९ उसग्गो१०. ३. पे. नाम. ब्रह्मचर्यव्रत उच्चार विधि, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. ब्रह्मचर्यव्रतप्रत्याख्यान आलापक, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: खमासमण० इरिया०; अंति: नित्थारग पारगाणेहो. For Private and Personal Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ४८५३७. (+#) शक्रस्तव सहस्रनामापरपर्याय, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. संग्रामपुर, प्रले. पं. धर्म गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३.५४१०.५, २३४६५). शक्र स्तव-अर्हन्नामसहस्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., प+ग., आदि: ॐ नमोर्हते परमात्म; अंति: लिलिखे संपदा पद. ४८५३८. (+) पद्मावती जीवरास, संपूर्ण, वि. १८८८, माघ कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, ११४२६). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिवि राणी पदमावती; अंति: पापथी छुटे तत्काल, ढाल-३, गाथा-३३. ४८५४१. (+) ऋषभदेवजीरी लावणी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., दे., (२४४१२, ११४३७-४०). आदिजिन लावणी, नान, पुहिं., पद्य, आदि: नाभराय के नंद करो, अंति: नानू० ध्यावते बंदा, गाथा-३. ४८५४२. (+#) नंदीश्वर स्तवन व समकित सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४११, १६४३५). १. पे. नाम. नंदीसर स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. नंदीश्वरद्वीप स्तोत्र, मु. मेरु, अप.,मा.गु., पद्य, आदि: सिरि निलय जंबुदीवो; अंति: मेरु सुभत्तिहि बोलइ, गाथा-२५. २. पे. नाम. समकित सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. सम्यक्त्वसुखडी सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: चाखो नर समकित सुखडली; अंति: दर्शनने प्यारी रे, गाथा-५. ४८५४३. (+#) सेजयमंडण आदिदेव स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२४.५४११, १२४३५). शत्रुजयतीर्थ बृहत्स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: बे कर जोडी नमुजी सुण; अंति: वाचक समयसुंदर इम भणे, गाथा-३१. ४८५४४. (+#) स्नात्र विधि, संपूर्ण, वि. १७८४, फाल्गुन शुक्ल, १०, शनिवार, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, १४४४८). स्नात्र पूजा, मु. देवचंद्रजी, मा.गु., पद्य, आदि: चौतीसे अतिसै जुओ; अंति: कही सूत्र मझारि. ४८५४५. धर्मजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४११, ९४२९). धर्मजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: धरमजिणेसर गाउं रंग; अंति: सांभलो ए सेवक अरदास, गाथा-८. ४८५४६. नवतत्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८७७, आश्विन शुक्ल, १, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२४४११, १२४३२). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बोहि कणिक्काय, गाथा-४९. ४८५४७. (+) हरीयाली व रहस्य संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१२, ११४३१). १.पे. नाम. प्रहेलिका हरियाली, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: एक नारी बहु पुरुष; अंति: ते सजननी बलिहारी, गाथा-६. २. पे. नाम. फूलमाला हरियाली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. फूलमाला सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कहेज्यो रे ते कुण; अंति: रूप कहे बुधसारी रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. प्रहेलिका रहस्य, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: एक नर आव्यो नगर में; अंति: सज्जन कुं सजन कहे, गाथा-१. ४८५४८. चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२३.५४११.५, १२४३४). १. पे. नाम. एकादशीतिथि चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शासननायक वीरजी प्रभु; अंति: खेमाविजय० मंगलमाल, गाथा-९. २. पे. नाम. पंचतीर्थी चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ५ तीर्थजिन चैत्यवंदन, मु. कमलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धुरे समरू श्रीआदिदेव; अंति: कमलविजय० जय जय कार, गाथा-६. For Private and Personal Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. शांतिजिन चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तोत्र, मु. गुणभद्र, सं., पद्य, आदि: नाना विचित्रं भवदुःख; अंति: गुणभद्रं नित्यम्, श्लोक-९. ४८५४९. स्तवन व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. करमचंद रामजी लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४१०.५, ९४२९). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. माणेक, मा.गु., पद्य, आदि: काशीदेश बनारसी सुखका; अंति: माणेक० कोडी कल्याण, गाथा-९. २. पे. नाम. पंचपरमेष्ठी स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. ५ परमेष्ठि नमस्कार स्तुति, सं., पद्य, आदि: अर्हतो भगवंत इंद्र; अंति: कुर्वंतु वो मंगलम्, श्लोक-१. ४८५५०. तेर भवनुंस्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., (२४४१२, १०४३६). आदिजिन १३ भव ढाल, ग. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पुरीसादाणी पासजिन बह; अंति: नेमविजय आनंद करो, ढाल-६, गाथा-५७. ४८५५१. जीवरास आलोयणां सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९३६, ज्येष्ठ शुक्ल, १२, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. विरमगाम, प्रले. रामजी वीरचंद भावसार, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४११.५, १४४३३). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवे राणी पदमावती जीव; अंति: समयसुंदर० तत्काळ, ढाल-३, गाथा-३३. ४८५५२. गुणसारमहर्षि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. पं. वीरवर्द्धन, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १३४५०). गुणसारऋषिराज स्वाध्याय, क. कमलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: स्वस्ति लतावन पालवइ; अंति: कवि कमलविजय जयकार, गाथा-२७. ४८५५३. (+) अजितशांति स्तव-छंद सह अवचूरी व गणफलाफल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२५४११, ७-९४५७). १.पे. नाम. अजितशांति स्तव-छंद सह अवचूरि, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. अजितशांति स्तव-छंद संग्रह, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: नेयामत्ताछंदे दुतिचउ; अंति: व्वेहिंतदवरतिया होइ. अजितशांति स्तव-छंद संग्रह की अवचूरि, सं., गद्य, आदि: तत्रद्विमात्रः कगणो; अंति: पादरथोद्धताश्चे. २.पे. नाम. गणफलाफल, पृ. २आ, संपूर्ण. __सं., पद्य, आदि: मस्त्रि गुरु स्त्रि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक २ अपूर्ण तक लिखा है.) ४८५५४. ढंढणऋषि सज्झाय व विद्यार्थी पंच लक्षण, संपूर्ण, वि. १९१५, मार्गशीर्ष शुक्ल, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. पारानगर, प्रले. गणेश ब्राह्मण; पठ. राम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (५७८) याद्रसं पुस्तकं द्रष्ट्वा, दे., (२४.५४११.५, १०४२६). १. पे. नाम. ढंढणऋषि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: ढंढण रिषजीने वांदणा; अंति: कहे जिनहर्ष सुजाण रे, गाथा-९. २.पे. नाम. विद्यार्थी पंच लक्षण, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह , प्रा.,सं., पद्य, आदि: काग चेष्टा वको ध्यान; अंति: पंच लक्षणं, श्लोक-१. ४८५५६. श्रावक लक्षण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्रावि. हसतु, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४११.५, १८x२९). श्रावक लक्षण सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: पलो तो खिला समान खील; अंति: महाजाण पणो कोइ नही. ४८५५७. सरस्वती स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८४२, फाल्गुन शुक्ल, ६, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. काकंदी, प्रले. मु. नथमल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १२४५०). १.पे. नाम. शारदाष्टक स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: राजती श्रीमती भारती; अंति: बुद्धि विभवेन, श्लोक-९. For Private and Personal Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे. नाम. सरस्वती स्तोत्र, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. मलयकीर्ति, सं., पद्य, आदि: जलदनंदनचंदनचंद्रमा, अंति: मलयकीर्ति० फलमश्नुते, श्लोक - ९. ४८५५८, () आत्म प्रबोध स्वाध्याय, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जै, (२५४११.५, १२x४१). आत्महितशिक्षा सज्झाय, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदिः जीव जगावो आपणो रे, अंतिः इस रंगविजय कहंत, गाथा - ९. ४८५६०. स्तोत्र, स्तुति संग्रह व सापराध निरपराध सापेक्ष निरपेक्ष विचार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५x११, १३x४५). १. पे नाम, २४ जिनवर स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तोत्र, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: नत नरेंद्र जिणेंद्र, अंतिः जिनप्रभसूरि० मगंहर, श्लोक-९. २. पे. नाम. शंखेश्वरापार्श्वजिन स्तुति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद- शंखेश्वरतीर्थ, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदिः सेवो पास संखेसरो मन, अंतिः उदवरत्न० आप तूठा, गाथा-७, (वि. प्रतिलेखक ने गाथा क्रमांक नहीं लिखा है.) ३. पे. नाम. सापराध निरपराध सापेक्ष निरपेक्ष विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., मा.गु., प+ग, आदि (-); अंति: (-), गाथा-१. , ४८५६१. (+) महावीरजिन अर्ध श्लोक यमकमय सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ - अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ- संशोधित त्रिपाठ., जैदे., ( २४.५X११.५, १५X४७). महावीरजिन अर्ध श्लोक- यमकमय, सं., पद्म, आदि; वीरो वीर जिनो वीरो अंतिः वीरो वीर जिनो विरः श्लोक-१. महावीरजिन अर्ध श्लोक - यमकमय- वृत्ति, सं., गद्य, आदि: विविधा अनेक प्रकारईत, अंति: वृत्त्यध्याहारः. ४८५६२. चौवीस जिन शुकनावली, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. कृति से संबंधित चक्र का चित्र दिया गया है., जैदे., (२४.५x११.५, १४४४८). २४ जिन शुकनावली, मा.गु. सं., गद्य, आदि: शीघ्र सकलाकार्यसिद्ध, अंति: औषधेभ्योनन्योन गुणः. ४८५६३. विमलजिन व अनंतजिन चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., ( २४.५X१२, ९३० ). १. पे नाम, विमलजिन स्तव, पृ. १अ, संपूर्ण. विमलजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: संसारेस्मिन् महति; अंति: संति धन्यास्तराव, गाथा- ३. २. पे नाम, अनंतजिन स्तव, प्र. १अ १आ, संपूर्ण. अनंतजिन चैत्यवंदन, सं., पद्म, आदिः यस्य भव्यात्मनो दिव, अति संपतिमालंबतो, गाथा-३. ४८५६४. सीमंधरस्वामी स्तवन व सुपार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. मनोहरमुनि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे., (२५X१०.५, १४४२५-२७). १. पे. नाम, सीमंधरस्वामी स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण सीमंधरजिन स्तवन, वा. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: मनडुं ते मारुं मोकले, अति: वाचिक उदयनी विनती, गाथा- ९. २. पे नाम. सुपार्श्वजिन स्तवन, पृ. ९आ, संपूर्ण मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वहाला मेह बपियडा, अंतिः सुपार्सने० हो राजि, गाथा- ७. ४८५६५. पंचपरमेष्ठि जिनपंजर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९४७, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. हरचंद कचरा भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५X११.५, ८x२८). वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः परमेष्ठिनमस्कार, अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक ८. ४८५६६. (+) स्तवन संग्रह व औपदेशिक पद, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. ३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैवे., (२४.५X१२, १८६०). १. पे नाम, अष्टमी स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, प्रले. मु. रंगविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. ४७ For Private and Personal Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अष्टमीतिथि स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हा रे मारे ठाम धरम; अंति: कांति सुख पामे घणु, ढाल-२, गाथा-२४. २. पे. नाम. गुरु स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सुणो साहिब गछपति भा; अंति: चोमासु मधुमति रहीइं, गाथा-१४. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. जैनगाथा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ४८५६७. साधु अतिचार व आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४१०, १८४५८). १.पे. नाम. साधु अतिचार, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, ले.स्थल. वडोत, प्रले. मु. खेतसी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणमिअदसणमिअचरणमि; अंति: अनेरोजे कोई अतिचार. २. पे. नाम. रिषभ स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, आ. दयासागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीरिषभ जिणेस्वर जग; अंति: दयासागर० मन आस हो, गाथा-१३. ४८५६८. संथारापोरसी सूत्र सह सर्वसाधु क्षमापना गाथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, १३४३६). १.पे. नाम. संथारापोरसी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसिही निसिही निसीहि; अंति: इअसमत्तं मए गहिअं, गाथा-१४. २.पे. नाम. सर्वसाधु क्षमापना गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: अढाइजेसु दिवसमुद्दे; अंति: मणसा मत्थएण वंदामि, गाथा-१. ४८५६९. निगोद भाव गहुंली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. श्रावि. धारीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१२, १०४३१). महावीरजिन गहुँली, मु. अमृतसागर, मा.गु., पद्य, आदि: जीरे जिनवर वचन; अंति: अमृत शिव निसान रे, गाथा-७. ४८५७०. संतिकरं स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४१२, ११४३१). संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: संतिकरं संतिजिणं; अंति: स लहइ सुह संपयं परमं, गाथा-१३. ४८५७१. सडसठ समकित बोल व सडसठ समकित बोल नाम, संपूर्ण, वि. १८९१, श्रावण कृष्ण, १४, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. गुलालकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १५४४९). १.पे. नाम. सडसठ समकित बोल, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ६७ समकित बोल, मा.गु., गद्य, आदि: परमार्थ जाणवानो अभ्य; अंति: समकितना बोल पालीइं. २. पे. नाम. सडसठ समकित बोल नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. ६७ समकित बोल नाम, मा.गु., गद्य, आदि: सद्दहणा ४ लिंग ३ एवं; अंति: ६१ स्थानक ६ एवं ६७. ४८५७२. चौबीस मांडला विचार व दश मुंड नाम, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२४.५४१२, २६४१७). १. पे. नाम. चतुर्विंसती मांडला विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २४ मांडला, प्रा., गद्य, आदि: आघाडे आसन्ने उच्चारे; अंति: दूरे पासवणे अहियासे. २. पे. नाम. दशप्रकारइ मुंडना नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. दश मुंड नाम, मा.गु., गद्य, आदि: श्रौतेंद्रिय मुंड चक; अंति: माया मुंड मस्तक मुंड. ४८५७३. (#) सकलार्हत् स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५.५४१२, ११४३०). सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: जिनो वा नमोस्तु ते, श्लोक-३२. ४८५७४. लघुशांति स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, ११४४३). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांति निशांति; अंति: जैनं जयति शासनम्, श्लोक-१९. - For Private and Personal Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ४८५७६. व्याकरण परिभाषा कारिका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५४११, १७४४१). व्याकरण परिभाषा कारिका, सं., पद्य, आदि: प्रणम्य परया भक्त्या; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक ३८ अपूर्ण तक है.) ४८५७८. सिद्धसारस्वत स्तव व सवैया संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२४.५४११.५, १३४२७). १.पे. नाम. सिद्धसारस्वत स्तव, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. बप्पभट्टसूरि, सं., पद्य, वि. ९वी, आदि: करमरालविहंगमवाहना; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक ४ अपूर्ण तक लिखा है.) २.पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: सुंदर रूप अनोप शिया; अंति: शंभ कुं पुजन नागण आई, सवैया-१. ३. पे. नाम. जिनचंद्रसूरि गुण सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. जिनचंद्र भट्टारक सवैया, क. सोम, पुहि., पद्य, आदि: मृगनेणी चली गुर वंदन; अंति: सोम० ओर भटारक पेठनदा, सवैया-१. ४८५८०. सचित्ताचित्त सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४११, १२४४९). असनादिक कालप्रमाण सज्झाय, मु. वीरविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रणमी श्रीगौतम गण; अंति: वीरविमल करजोडी कहै, गाथा-१८. ४८५८१. जीवविचार बालावबोध, अपूर्ण, वि. १६१७, वैशाख शुक्ल, ८, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १२-११(१ से ११)=१, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. पं. सौभाग्यमंडन गणि (गुरु उपा. विनयमंडन गणि, ओसवालज्ञातिय); गुपि. उपा. विनयमंडन गणि (ओसवालज्ञातिय); श्रावि. नारिंगदे नानाभाई; पठ. श्रावि. गांगबाई (माता श्रावि. नारिंग दे नानाभाई), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२५४११,११४३६). जीवविचार प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: धर्म रत्न सरीखुछइ, (पू.वि. गाथा ९६ अपूर्ण से है.) ४८५८२. (+#) आराधक विराधक विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १३४४०). १.पे. नाम. पांचसमवाय विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. ५ समवाय विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: काल १ स्वभाव; अंति: मोक्ष रूप कार्य सीजै. २. पे. नाम. आराधक विराधक विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. आराधक-विराधक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: न जाणै नादरैन पालै; अंति: पाले महाव्रतधरय निवत. ३. पे. नाम. आराधक विराधक भांगा, पृ. १आ, संपूर्ण. आराधक-विराधक भांगा, प्रा., गद्य, आदि: नो जाणै नवि आदरै नो; अंति: भमण निव्वाण गमणस्स. ४. पे. नाम. तेवीस पदवी, प्र. १आ, संपूर्ण. त्रेवीसपदवी, प्रा., पद्य, आदि: चऊदस्स रयणा चक्की; अंति: तमम्मि सम्महयगयपत्ती, गाथा-४. ४८५८३. स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक नहीं लिखा है., दे., (२५.५४११.५, १२४५७). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण.. रा., पद्य, आदि: सतगुर कने व्रत जलीध; अंति: लाडूको रमे कीसी कचाइ, गाथा-१४. २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: मिथ्यातने दीयो मोसरा; अंति: सत्र माहै बोले साखै, गाथा-११. ३. पे. नाम. मल्लिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. मोहण, रा., पद्य, आदि: मीथलानगरी देस विदेह; अंति: मोहण०तुरत दीया समझाइ, गाथा-५. ४८५८४. (+) नमस्कार महामंत्र, चतुर्विंशतिजिन स्तवन व दशवैकालिकसूत्र का हिस्सा प्रथम अध्ययन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, दे., (२३.५४११, ९४१२-२०). १.पे. नाम. नमस्कार महामंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शाश्वत, प्रा., पद्य, आदि: णमो अरिहंताण; अंति: पढम हवई मंगलम्, पद-९. २. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्टियंत्रगर्भित, मु. सुखनिधान, सं., पद्य, आदि: आदौ नेमिजिनं नौमि; अंति: मोक्षलक्ष्मीनिवासम्, श्लोक-९. ३. पे. नाम. मंगल पाठ, पृ. २आ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा द्रुमपुष्पिका प्रथम अध्ययन, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; ___ अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा २ अपूर्ण तक लिखा है.) ४८५८५. १७० जिन नाम, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४११.५, ३४४१८). १७० जिन नाम, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीजयदेव श्रीकर्णभद; अंति: अमुक सर्वज्ञाय नमः. ४८५८६. महावीर प्रभु-दिवाली स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले.ऋ. रुपचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, ११४३९). महावीरजिन स्तवन-दीपावलीपर्व, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मारग देशक मोक्षनो रे; अंति: देवचंद्र पद लीधरे, गाथा-९. ४८५८७. भरहेसर सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. श्रीशांतिनाथ प्रसादात्., दे., (२५४११, ११४२९). भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय; अंति: पडहो तिहुअणे सयले, गाथा-१४. ४८५८८. संथारपईनो सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२४.५४११, २०४६८-७२). संस्तारक प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: काऊण नमोक्कार जिणवर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा २ अपूर्ण तक लिखा है.) संस्तारक प्रकीर्णक-बालावबोध, मु. जयमल्ल ऋषि, मा.गु., गद्य, आदि: जे भणी सर्वशास्त्रना; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ४८५९०. सम्मेतशीखर स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२५४११.५, १२४२७). सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, वा. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन्य सीखरगीरिराज; अंति: थयो पुन्योदय महिमाय, गाथा-१६. ४८५९१. पांडव चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४११, ९४४८). पांडव चरित्र, ग. देवविजय, सं., गद्य, वि. १६६०, आदि: ॐ नमो वृषभस्वामियोग; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मंगलाचरण के बाद मात्र दो पंक्तियाँ हैं.) ४८५९३. गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पठ. ग. हेतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीपार्श्वनाथ प्रसादात्., जैदे., (२५.५४११.५, १४४४४). गौतमस्वामी रास, आ. विजयभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: विरजिणेसर चरण कमल; अंति: जीम साखा विस्तरे ए, ढाल-६, गाथा-६५. ४८५९४. नेमिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२४.५४११, १५४४१). नेमिजिन नवरसो, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १६६७, आदि: सरसति सामिणि पाए; अंति: रिषभ० नेमि जिनेसरू, ढाल-४, गाथा-७२. ४८५९५. अइमुत्तामुन सज्झाय व जैन गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. विनयसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, १३४३८). १.पे. नाम. अहमत्तारिषि सिज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. अइमुत्तामुनि सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंद वांदीने; अंति: लखमीरतन० वरना पाय, गाथा-१८. २. पे. नाम. औपदेशिक गाथा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. जैनगाथा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ४८५९६. गोयम गीत, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., ( २४.५X१०.५, १२X५०). गौतमस्वामी स्तवन, मु. जयसागर, मा.गु., पद्य, आदि: गोयमसामी गुणनिलउ सोह; अंतिः श्रीजयसार बोलइ सही, गाथा - १२. ४८५९७. ज्ञानपच्चीसी, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२४X१०.५, १०X२९). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्ञानपच्चीसी, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: सुरनर तिरीय जग जोनमे, अंति: (-), (पू.वि. गाथा १६ तक है.) ४८५९८. (+) सरस्वती छंद, संपूर्ण, वि. १७६५, ज्येष्ठ कृष्ण, १४ शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे., (२५.५X११.५, १५x५७). सरस्वतीदेवी छंद, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन सुमता मनि, अंति: आस्वा सफल फलजो ताहरी, गाथा - ३४. ४८५९९. (#) उत्तराध्ययनसूत्र - चतुरंगिका अध्ययन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५.५X११, ८X३६). उत्तराध्ययनसूत्र - हिस्सा अध्ययन ३ चतुरंगिकाध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. पद्य, आदिः चत्तारि परमंगाणी, अंतिः हवइ सास तिबेमि, गाथा - २०. उत्तराध्ययनसूत्र - हिस्सा अध्ययन ३ चतुरंगिकाध्ययन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: चत्तारि च्यारि परमाग, अंतिः पछइ सिद्ध थाइ शासतउ. ४८६०० (4) पार्श्वजिन स्तवन व संध्या प्रतिक्रमण विधि, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, पठ. मु. नगा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५.५X११.५, १९x४८). , ५१ १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- वरकाणामंडन, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु, पद्य, आदि: कांइरे जीव तुं मन अंतिः जिनहर्षसूरि० रंगरली, गाथा - ९. २. पे. नाम. संध्याप्रतिक्रमण विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. लघुप्रतिक्रमणविधि-संध्याकालीन, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावे कडे अंतिः सर्वकल्याण कारणं. ४८६०१. (+) गौतम रास, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५X११.५, १२X४२). गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल, अंतिः विनयवंत ० कल्याण करो, गाथा-४६. ४८६०२. (+#) गौतम कुलक प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. मु. लखजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११, ५X३६). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्यपरा; अंतिः सेवित्तु सुहं लहंति, गाथा २० (वि. १८२२ भाद्रपद शुक्ल, ८) गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: लोभी नर अर्थ लक्ष्मी, अंति: इम सेवीनइ सुख पामइ, (वि. १८२२ आश्विन कृष्ण, ५, ले. स्थल. तोत्रस्याम, प्र.ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट) ४८६०३. (4) झांझरीया रिषरो चोढालीयो, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५X११.५, १२X३५). झांझरियामुनि सज्झाव, मु. भावरत्न, मा.गु. पद्य, वि. १७५६, आदि: सरसति चरणे सीस नमावि, अंतिः सांभलता आणंदक, ढाल ४, गाथा- ४४. ४८६०४. (+) स्थिरावली. संपूर्ण वि. १८६२, पौष शुक्ल १४, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. मु. जेराम पठ मु. कनिराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२५४११, १२४३४). नंदीसूत्र - स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि जयइ जगजीवजोणीविआणओ, अंति: नाणस्स परूवणं वुच्छं, गाथा - ५०. ४८६०६. (+) वडी चैत्यवंदना, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५X१०.५, १२×३३). For Private and Personal Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २४ जिन बृहत्चैत्यवंदन, मु. खेमो ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पहिला प्रणमु रिषभ; अंति: खीमौ० पामै सुख अनंत, गाथा-८. ४८६०७. चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११.५, १२४३१). १.पे. नाम. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. हर्षविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पूरबदिशि इशाण कुण; अंति: हरष भणै० मनह जगीश, गाथा-३, (वि. प्रतिलेखक ने ३ गाथाओं को १ गाथा गिनी है.) २. पे. नाम. चैत्यवंदन संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. पूर्व पेटांक के चैत्यवंदन गाथा के साथ ही इस पेटांक की गाथा में क्रम दिया है परंतु दोनो अलग-अलग है. प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: सुरनरकिन्नर किन्नरी; अंति: ताइ सव्वाइं वंदामि, गाथा-३. ४८६०८. (+) स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४१०.५, १२४३८). १.पे. नाम. चंद्रप्रभस्वामी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. चंद्रप्रभजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ चंद्रप्रभु प्रभा; अंति: दायिनि मे वरप्रदा, श्लोक-५. २.पे. नाम. जीरापल्ली स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-जीरापल्लि, मु. मेरुनंदन, सं., पद्य, आदि: असुरनरसुरेंद्रश्रेणि; अंति: मेरु०पार्श्वनाथः, श्लोक-८. ४८६०९. (+#) चैत्री पूनम देववंदन विधि, पूजन सामग्री व सामायिक दोष, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १५४३८). १.पे. नाम. चैत्रिपूर्णिमा देववंदन विधि, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १७००, चैत्र अधिकमास कृष्ण, ६, सोमवार, प्रले. सा. सुमतिशोभा; पठ. सा. लालशोभा, प्र.ले.पु. सामान्य. चैत्रीपूर्णिमापर्व देववंदन विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: उपाश्रयइ अथ देहरइ; अंति: नमः० पछइ देव वांदीजइ. २. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ पूजा सामग्री, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: १०नवकार १० केसरटीली; अंति: जे यती ५० लोगस्स का. ३. पे. नाम. सामायक बत्रीस दोष, पृ. १आ, संपूर्ण. सामायिक ३२ दोष, मा.गु., गद्य, आदि: आघउ पाछउन थाइ१; अंति: भय उपजइ३१ गर्व३२. ४८६१०. (+) चवद नियम व स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, ३२४६१). १.पे. नाम. चवदनियम स्वरूप सह बालावबोध, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. श्रावक १४ नियम गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सच्चित्त दव्व विगई; अंति: दिसि न्हाण भत्तेसु, गाथा-१. श्रावक १४ नियम गाथा-बालावबोध, रा., गद्य, आदि: श्रावके यावज्जीव; अंति: तो सामान्य करणा है. २. पे. नाम. लोद्रवपुरमंडन पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-लोद्रवपुरमंडन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: हो सुणि सांवलिया; अंति: क्षमाकल्याण रे ___ लो, गाथा-५. ४८६१२. (+) स्मरण, स्तोत्र व स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२-८(१ से ८)=४, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५४११,१२४३६). १.पे. नाम. सप्तस्मरण, पृ. ९अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: जैनं जयति शासनम्, स्मरण-७, (पू.वि. मात्र अंतिम स्मरण का अंतिम श्लोक है.) २.पे. नाम. कल्याणमंदिर महास्तव, पृ. ९अ-१२अ, संपूर्ण. कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुदचं० प्रपद्यते, श्लोक-४४. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १२अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंति: पूरय मे वांछितं नाथ, श्लोक-५. ४८६१३. एकादशी स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४.५४११.५, १०४२६). मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: अरस्य प्रव्रज्या नमि; अंति: विस्मतहृदः क्षितौ, श्लोक-४. ४८६१४. सझाय व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११.५, १४४४७). १. पे. नाम. स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. रामजी, मा.गु., पद्य, आदि: थूलभद्र थिर जसकरमी; अंति: रामजी० थूलभद्र उछाह, गाथा-२०. २.पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सवैया* पुहिं., पद्य, आदि: तेजु क बाण गही कर री; अंति: के पोत मानु मुख काढे, पद-१. ३. पे. नाम. नेमिराजीमति पद, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमति पद, पुहि., पद्य, आदि: जरद अंग रंग बंग जरद; अंति: जतीजु मैटि करम कंदली, गाथा-१. ४८६१५. (+) पार्श्वनाथजीजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १०४३४). पार्श्वजिन स्तवन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अश्वसेननंदन वंदता; अंति: कहि जैनलाभसूरिंद, गाथा-७. ४८६१६. पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२५४१२, १२४३१). १.पे. नाम. चंद्रप्रभजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. जैत, पुहि., पद्य, आदि: श्रीचंदाप्रभु जिनवर; अंति: भव तुम चरणां बलिहारी, गाथा-३, (वि. प्रतिलेखक ने २ गाथाओं को १ गाथा गिनी है.) २. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, वि. १८३९, आदि: लाग्यो म्हारो वीर; अंति: कीनी सफल कीयो अवतार, गाथा-३. ३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, मु. नवल, पुहिं., पद्य, आदि: अटके नैनां जिन चरना; अंति: नवल० क्यूंन हटकै, गाथा-३. ४८६१७. शांति स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४११.५, ८x२९). शांतिजिन स्तवन, मु. हीरधर्म, पुहिं., पद्य, आदि: अचिरानंदन स्वामीनौ; अंति: नाश करै तिम शांतिजी, गाथा-५. ४८६१८. सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११.५, १२४२९). १. पे. नाम. कायावाडी सिज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण.. वैराग्य सज्झाय, मु. रतनतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: काया रे वाडी कारमी; अंति: रतन० करिज्यो ढंगवाली, गाथा-८. २. पे. नाम. रुक्मणीसती सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विचरंता गामो गाम; अंति: राजविजय रंगे भणे जी, गाथा-१४. ४८६१९. घनाजीऋष सिज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४१२, १३४४५). धन्नाअणगार सज्झाय, मु. अमरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर वचन चित्तधारी; अंति: नमता होइ नवनिद्ध, गाथा-१९. ४८६२०. (+) पार्श्व स्तवन संग्रह व सवैया, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, १०४३७). १.पे. नाम. गौडीपार्श्वनाथजी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. कनकसुंदर, पुहिं., पद्य, आदि: साचो साहिब निरधारी, अंति: तो कनकसुंदर तुझ वंदा, गाथा-५. २. पे. नाम. लोद्रपुरपार्श्व स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-लोद्रवपुर, मु. चंद, मा.गु., पद्य, आदि: लोद्रपुरे रलीयामणो; अंति: कहै चंद करो आणंद, गाथा-७. ३. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सवैया *, पुहि., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), पद-१. ४८६२२. धर्मनाथ गीत, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४.५४११.५, १०४३३). For Private and Personal Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची धर्मजिन गीत, मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: आज अम्हारे अंगणि सुर; अंति: केसर० तस नामनी जी, गाथा-३. ४८६२३. खरतर तपागच्छ ३० उत्सूत्र बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, पठ. लक्ष्मीपति सिंह, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१२, ११४३६). खरतर तपागच्छ ३० उत्सूत्र बोल, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (१)तपः यतयः उत्सूत्रं, (२)प्रथम बोले तरुण; अंति: सुद्ध प्ररुपणो ३० ४८६२४. शीतल स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४११, ९४३४). शीतलजिन स्तवन, मु. केशरकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: शीतल श्रीजिनराज साहब; अंति: केशरकुशल० चाकरी जी, गाथा-५. ४८६२५. (+) सिद्धाचल स्तवन व दहा, संपूर्ण, वि. १८५८, माघ कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. अजीमगंज, प्रले. मु. उद्योतविजय; पठ. पं. दानसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीचिंतामणजी प्रसादात्., संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १३४३३). १. पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. राम, मा.गु., पद्य, वि. १८०१, आदि: साहिबा सेव॒जो; अंति: राम सफल सुजगीस, गाथा-१२. २. पे. नाम. औपदेशिक दूहा, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा, पुहिं., पद्य, आदि: प्रीत पुराणी ना हवे; अंति: बसो भावै बसो विदेश, दोहा-१. ४८६२६. (#) फाग संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, ११४३०). १.पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. ऋद्धिहर्ष, पुहि., पद्य, आदि: गढ गिरनार की तलहटी; अंति: शिवादेवी मात, गाथा-६. २.पे. नाम. साधारणजिन होली पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. साधारणजिन होली, मु. विमलचंद, पुहिं., पद्य, आदि: तुम्ह ऐसे खेलो रूत; अंति: विमलचंद० नीत प्रधान, गाथा-५. ३. पे. नाम. नेमिराजुल होलीपद, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.. नेमराजिमती होलीपद, क. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: होली को खेले खेले; अंति: राजुल सुरपद धार, गाथा-४. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन फाग, पृ. २अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन होरी, मु. रत्नसागर, पुहिं., पद्य, आदि: रंग मच्यो जिनद्वार; अंति: रतनसागर० जय जयकार, गाथा-८. ४८६२७. सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४११.५, ११४२७). सिद्धचक्र स्तवन, मु. शिवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धचक्र वंदौरे जय; अंति: शिवचंद्र नमे शिरनामी, गाथा-९. ४८६२८. (+) क्षेत्रपाल व माताजी छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४१०.५, १३४४१). १.पे. नाम. क्षेत्रपाल छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. माधो, मा.गु., गद्य, आदि: धूवे मादलांमृदंग; अंति: वाह वाह वाह महादेव, गाथा-५. २. पे. नाम. माताजी छंद, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. भैरवीमाता छंद, मु. सुमतिरंग, मा.गु., पद्य, आदि: सांभलि माता संकरी; अंति: सुमतिरंग करुणा करे, गाथा-२४. ४८६२९. चउसरण, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. पं. रविसमुद्र गणि; पठ. मु. हंसविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०.५, १२४४२). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुई सुहाणं, गाथा-६१, (वि. अंतिम गाथा के अंतिम चरण के कुछ शब्द नहीं हैं.) ४८६३०. पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. वालूचर, जैदे., (२५.५४७.५, ९४५३). १.पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. अमृतधर्म, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवन त्रिभुवनपति; अंति: हो जी पाउं पद कल्याण, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ २.पे. नाम. थंभण पार्श्वजिन पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभन, ग. अमृतधर्म, मा.गु., पद्य, आदि: थंभण पास जुहारीयैरे; अंति: अमृतधर्म०सरदहु रेलो, गाथा-५. ३. पे. नाम. नवपद पद, पृ. १आ, संपूर्ण. नवपद स्तवन, पुहिं., पद्य, आदि: नवपद के गुण गाय रे; अंति: नवपद संग पसाय रे, गाथा-५. ४८६३१. मुनिगुण गुंहली संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४.५४११.५, १६४३६). १. पे. नाम. गुरुगुण गहुंली, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. उत्तम, मा.गु., पद्य, आदि: तुमे शुभ परिणामें; अंति: उत्तमने मंगलमालोरे, गाथा-७. २. पे. नाम. सुधर्मास्वामि भास, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सुधर्मास्वामी गहुंली, मा.गु., पद्य, आदि: ज्ञान दरसण गुण धरता; अंति: परभावे एहवा उत्तमजीव, गाथा-५. ३. पे. नाम. साधुगुण गुहली, पृ. १आ, संपूर्ण. साधुगुण गहुंली, मु. उत्तम, मा.गु., पद्य, आदि: षट्व्रत सुधा पालता; अंति: उत्तम० निमित्त रे, गाथा-९. ४८६३२. जिनवाणी सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. रामचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१०.५,७४२९). आगम स्तवन, वा. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंदनी वाणी; अंति: लालचंद० गुण गावैरे, गाथा-९. ४८६३३. जीवभेद व पोसह सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५४१०.५, १२४२९). १. पे. नाम. जीवभेद विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. जीवाभिगमसूत्र-जीवभेद विचार, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: एक एव जीवः चेतना; अंति: ९अतींद्री १०. २. पे. नाम. पोसह सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. संवर सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलो संवर आदरो तजो; अंति: पाछै शुकरो आहार रे, गाथा-१२. ४८६३४. सझाय, स्तोत्र पद व श्लोक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, दे., (२४४१०.५, २४४१३). १. पे. नाम. आगम स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.. ग. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: सूत्र अति ही भलो संघ; अंति: क्षमाकल्याण सदा पावै, गाथा-६. २. पे. नाम. पद्मप्रभ स्तव, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पद्मप्रभजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: उदारप्रभामंडलैर्भास; अंति: कोरवे धर्माभ रम्यम, श्लोक-३. ३. पे. नाम. सुपार्श्व स्तव, पृ. १आ, संपूर्ण. सुपार्श्वजिन स्तव, उपा. क्षमाकल्याण, सं., पद्य, आदि: जयवंतमनंतगुणैर्निभृत; अंति: दयोद्भवभूरितप्रमुदा, श्लोक-३. ४. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सवैया*, पुहिं., पद्य, आदि: आयो छो प्रान उधारन; अंति: विकार चल्यौ घरकंधा, पद-१. ५. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: क्रीडत्कुंजरगंडमंडल; अंति: मां त्रि ठकारावलि, श्लोक-१. ४८६३५. पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४१०.५, ७४३०). पार्श्वजिन स्तवन, पंन्या. ऋषभसागर, पुहिं., पद्य, आदि: प्यारे देह दीदार वो; अंति: ऋषभसागर गुण गाउंदा, गाथा-६. ४८६३७. (+) द्विजवंदनचपेटा, संपूर्ण, वि. १८४३, श्रावण कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. शिवपूरी, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२४.५४१२, १६४६३). द्विजवदनचपेटा, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: कूर्मवामनमीनाद्यैरवत; अंति: तिष्ठति विप्राः. ४८६३८. पच्चक्खाण व प्रतिलेखना काल विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४१०.५, १४४२०-४२). १.पे. नाम. पच्चक्खाणकल्पमान यंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. प्रतिलेखनाकालमान गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रतिलेखनकालमान गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदिः (१)अंगुलसत्तरत्तेणं, (२)आसाढे मासे दुप्पया; अंति: आसाढ निट्ठिया छाया, गाथा-४. ४८६३९. पार्श्वजिन स्तवन व जिन पद, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११, ११४३७). १.पे. नाम. पार्श्वनाथजी गीत, पृ. २अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धिपुरमंडन, उपा. ज्ञानसिंह गणि, मा.गु., पद्य, आदि: फलवधिपुर सिणगार सदा; अंति: ज्ञानसि०गुण गायस्युं, गाथा-५. २. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. राजसमुद्र, मा.गु., पद्य, आदि: लीनउ लीनउरी मो मन; अंति: राजसमुद०कनक नगीनौरी, गाथा-३. ४८६४०. अरिहंतजी गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४१२.५, ११४२६). अरिहंतपद सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: वारी जाउं श्रीअरिहंत; अंति: ज्ञानविमल गुण गेह, गाथा-७. ४८६४१. नवपद स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४१२, ११४२९). नवपद स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: शासननायक सुखकरु रे; अंति: पावै कोडि कल्याण रे, गाथा-६. ४८६४२. पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११.५, ९४३५). १. पे. नाम. पार्श्वजिन पद-चिंतामणि, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. ऋषभविजय, पुहिं., पद्य, आदि: वारी जाउंरे चिंतामण; अंति: प्रभुजीसुंलागी आसकी, गाथा-५. २.पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: आवौ म्हारा रसीया; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा २ तक लिखा है.) ४८६४३. जिनप्रतिमा हुंडी रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२४.५४१२, ११४३६). जिनप्रतिमाहुंडिरास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७२५, आदि: सुयदेवी हीयडै धरी; अंति: पसावै जिनहरष कहत __कि, गाथा-६७. ४८६४४. (+) अजितशांति स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, ले.स्थल. नाडूल, प्रले. मु. नरराज (गुरु वा. जिनराज); गुपि.वा. जिनराज; पठ. मु. लखमण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०,१३४३८). अजितशांति स्तवबृहत-अंचलगच्छीय, आ. जयशेखरसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: जनयति संघस्य मुदम, __ श्लोक-१७, (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., श्लोक ३ अपूर्ण से है.) ४८६४५. (+) आगमिक विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १६x४९). १. पे. नाम. संज्ञास्वरूप विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. संज्ञास्वरूप विचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: आहार१ भयर परिग्गह३; अंति: रूक्खेसु वल्लीओ, गाथा-५. २. पे. नाम. योनिस्वरूप विचार-आचारांगवृत्तिगत, पृ. १अ, संपूर्ण. योनिस्वरूप-आचारांगवृत्तिगत, प्रा., पद्य, आदि: सीआई जोणीओ चउरासीई; अंति: सेसाओ अणंतसो पत्ता, गाथा-५. ३. पे. नाम. विचार संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. विविधविचार संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४८६४७. भास व गुहली संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ४, जैदे., (२४.५४१०.५, १४४३६). १. पे. नाम. गौतमस्वामी गुहली, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. गौतमस्वामी गली, मु. रंग, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: रंग०आपो समकित सार रे, गाथा-७, (पू.वि. गाथा ४ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. विजयखिमासूरि गुंहली, पृ. २अ, संपूर्ण. विजयक्षमासूरि गहुंली, मु. कल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीविजयखिमासूरी वंद; अंति: एम कल्याण दीइ आसीस, गाथा-८. ३. पे. नाम. गुरूगुण भास, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, वि. १८३३, चैत्र शुक्ल, ४. For Private and Personal Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ गुरुगुण भास, मा.गु., पद्य, आदिः आज रहो धण वीनवै कठ, अंतिः सुखसंपद लहे तेह, गाथा- ९. ४. पे. नाम. विजयधर्मसूरिगुरु गहुंली, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: थोकै मली रे सोहागण; अंति: (-), (पू. वि. गाथा ११ अपूर्ण तक है.) ४८६४८. (-) सझाव संग्रह, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. वे. (२५x११, १२४३७). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir י १. पे. नाम. काया सज्झाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय - काया, मु. उदयधर्म, मा.गु., पद्य, आदि: काया जीवाडी कारमी, अंति: उदय० सूत्र नन्यावो, गाथा - १३. २. पे. नाम. मान सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मानपरिहारछत्रीसी, मा.गु., पद्य, आदि: मान न कीजे रे मानवी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. मात्र प्रथम गाथा अपूर्ण तक लिखा है.) ४८६५०. नेमजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९३२, मार्गशीर्ष शुक्ल, १३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. विक्रमनगर, प्रले. मु. हरषचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., ( २४.५x९, १२X३१). नेमिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: समुद्रविजय सुत नेम; अंति: तो अजरामरपद पाया रे, गाथा-१३. ४८६५१. (+) महावीर स्तवन व औपदेशिक जखडी, संपूर्ण, वि. १८८१, ज्येष्ठ कृष्ण, ७, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले. स्थल. शुद्धिदंती, प्रले. पं. प्रेमविलास, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२४.५x११.५, १८x४७). "" १. पे. नाम. महावीर स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण महावीरजिन स्तवन- दीपावलीपर्व, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्म, आदि: मारग देशक मोक्षनो रे, अंतिः देवचंद्र पद लीधरे, गाथा - ९. २. पे. नाम औपदेशिक झखडी, पृ. १अ १आ. संपूर्ण. पदेशिक जकडी, मु. रामकिसन मा.गु., पद्य, आदि अरिहंत चरणे चित्त अंति कीये ही सुख पावहु गाथा ८. ४८६५२. () नेमराजिमती गीत संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. वे. (२५४१२, १५४३०). नेमराजिमती गीत, रा., पद्य, आदिः समववीजजीरा लाडला रे, अंतिः मारा नेमजी होए रसी, गाथा- १२. ४८६५३. स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जै. (२५.५x११, १३४५०-५३). १. पे. नाम. रूकमणी सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. " रुक्मणीसती सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीचरंता गामो गाम; अंति: राजविजय रंगे भणे, गाथा-७, (वि. प्रतिलेखक ने दो गाथाओं को एक गाथा गिनी है.) (+) ५७ २. पे. नाम. राणपुरोजीरो स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन- राणकपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: राणपुरो रलीयामणी रे, अंति: लाल समयसुंदर सुखकार, गाथा ७. ४८६५४. (+) पाखि प्रतिक्रमण विधि सह टबार्थ व पाखी खामणा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५X११.५, १४X३७). १. पे नाम, पाक्षिकप्रतिक्रमण विधि सह टवार्थ, पृ. १अ, संपूर्ण पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा. मा.गु., पद्य, आदि: मुहपती वंदणेणं समुद्र, अंतिः पखि पडिकमणं सम्मतं, गाथा-३. पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि-टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: देवसी पडिकमणानी; अंतिः इति पखीविधि समत्तं, (वि. १९१२, माघ कृष्ण, १, बुधवार, ले. स्थल. सांडीया, प्रले. पं. रत्नसागर, प्र.ले.पु. सामान्य ) २. पे. नाम. खामणासूत्र. पू. १आ, संपूर्ण. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदिः पिवं च मे जं भे; अंतिः नित्वारग पारगा होह, आलाप-४. For Private and Personal Use Only ४८६५५. स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित., दे., ( २४.५X११.५, ९x२३). १. पे. नाम. बारहगुण सहित अरिहंत स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अरिहंतपद सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: वारी जाउं श्रीअरिहंत; अंति: ज्ञानविमल गुण गेह, गाथा-७. २. पे. नाम. नंदिषेणमुनि सज्झाय, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. मु. मेरुविजय, मागु., पद्य, आदि: राजगृही नगरीनो वासी; अंति: मेरुविजय०कुण तोले हो, ढाल-३, गाथा-१७. ३. पे. नाम. दादाजी स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. अमर, पुहिं., पद्य, आदि: भक्ति जिनांकी भीर; अंति: अमरतणी० सुख राचा, गाथा-३. ४८६५६. दादाजी तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४११, १०x२४). जिनकुशलसूरि गीत, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सद्गुरु श्रीजिनकुशलस; अंति: जिनचंद्रसु सुरतरू, गाथा-६. ४८६५७. (+) गौतमपृच्छा, अपूर्ण, वि. १७२६, मार्गशीर्ष कृष्ण, ६, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, प्रले. मु. विनयविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १७४४२). गौतमपृच्छा चौपाई, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५४५, आदि: (-); अंति: लावण्यसमय० वचने रहइ, गाथा-१२१, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा ९६ अपूर्ण से है.) ४८६६१. (+) स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, जैदे., (२४.५४१०.५, १६४५७). १.पे. नाम. अष्टोतरशतपार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. __ पार्श्वजिन अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र, मु. क्षेमराज, सं., पद्य, आदि: सिद्धक्षेत्रगोपाचल; अंति: क्षेम० सुप्रतीतम्, श्लोक-१३. २. पे. नाम. पार्श्वलघु स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-लघु, मु. शिवसुंदर, सं., पद्य, आदि: गुणश्रेणिरत्नावली; अंति: ते मनुष्या लभंते, श्लोक-५. ३. पे. नाम. मध्यगत यमकमयं स्तोत्रं, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ साधारणजिन स्तव, सं., पद्य, आदि: परम मंगल मंगलयोद्यतं; अंति: सुंदर संगम मुच्छलं, गाथा-५. ४. पे. नाम. युगादि स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन नमस्कार, सं., पद्य, आदि: वंदे देवाधिदेवं तं; अंति: मम भूयात् भवे भवे, श्लोक-३. ५.पे. नाम. ऋषभजिन स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: सुवर्णवर्णं गजराज; अंति: ऋषभं जिनोत्तम, श्लोक-१. ४८६६२. (+) स्तवन व पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४१०,१३४४८). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-पंचासरातीर्थ, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परमातम परमेश्वरु; अंति: अविचल अक्षय राज, गाथा-७. २. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: जैसे कोउ कूकर क्षुध; अंति: कोहदो मल्लीन हे, गाथा-२. ४८६६३. शांतिजिन स्तुति, स्तवन व सवैया, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, जैदे., (२४.५४१०.५, १५४४५). १.पे. नाम. शांतिनाथ स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तुति, उपा. विनयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: ब्राह्मी पुरवर सोलम; अंति: ऋद्धि वृद्धि आणी जी, गाथा-७. २.पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन-ब्राह्मीपुरमंडन, उपा. विनयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: ब्राह्मीनगर मझारि; अंति: विनयरतन पाठक कहै, गाथा-९. ३. पे. नाम. शांतिजिन सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. विनयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: ग्यान अनंत अनंत दरसण; अंति: विनैरतन० सेवो सुखदाई, गाथा-२. ४. पे. नाम. शांतिजिन सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: हयगयरथ संख चौरासी लख; अंति: पार पद परम निवाणजू, गाथा-२. ५. पे. नाम. शांतिजिन सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण.. आ. शांतिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जां लगि चंद्र सूर; अंति: शांतिसूरिंद० गुण आगर, गाथा-१. For Private and Personal Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ "" ४८६६४. स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२-११ (१ से ११) - १. कुल पे. ४ जैवे. (२४.५x११, १२४३३). १. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १२अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: श्रीजिनलाभसूरिंदा जी, गाथा-४, (पू. वि. गाथा ३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. १२-१२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि दें कि धपमप अंतिः दिशतु शासनदेवता, श्लोक-४. ३. पे. नाम. पजूषणा स्तुति, पृ. १२आ, संपूर्ण. " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पर्युषणपर्व स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वली वली हुं ध्यावु, अंति: कहै जिनलाभसूरिंद, गाथा-४. ४. पे नाम, पनांकित पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. १२आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तुति - पलांकित, सं., पद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञं ज्योति, अंति: (-), (पू. वि. मात्र प्रथम गाथा अपूर्ण है.) ४८६६५. आवश्यकसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, दे., (२५X११, १०X३०). १. पे. नाम. आवश्यक क्रियाना सूत्रो, पृ. १अ, संपूर्ण. साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा. मा.गु, प+ग, आदि ठाणे कमणे चंक्रमणे आउत अंति मिच्छामि दुक्कडम् "" २. पे. नाम. साधु राई अतिचार, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. " साधुराई प्रतिक्रमण अतिचार घे. मू. पू. संबद्ध, प्रा. मा.गु., गद्य, आदि संधारा उबट्टणकि परिय; अंति: मिच्छा मि दुकडं, ३. पे. नाम. आलोचणा गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. गोचरी आलोयण गाथा, प्रा., पद्य, आदि: अहो जिणेहि असाविजा, अंति: ती वी तहा चरणाईयारो, गाथा - २. ४. पे. नाम. अक्षयतृतीया व्याख्यान, पृ. १आ, संपूर्ण, पे. वि. पेन्सिल से लिखा हुआ है. अक्षयतृतीयापर्व व्याख्यान, प्रा. सं., प+ग, आदि उसभस्स पारणये इखुरसो, अति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा २ तक लिखा है.) ४८६६६. (+) योगशास्त्र द्वितीय प्रकाश, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-६ (१ से ६) = १, जैदे., (२५X१०.५, ११x४६). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, प्रकाश २ के श्लोक १ अपूर्ण से १५ तक है.) ४८६६७. नेमीश्वर भ्रमरगीता, अपूर्ण, वि. १८०४, भाद्रपद शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. ३-१ (१)= २, जैदे. (२५x११, ११४३१). नेमिजिन भ्रमरगीता, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य वि. १७३६, आदि: (-): अंतिः धुण्यो सानुकूल, गाथा-२७, (पू. वि. गाथा ७ अपूर्ण से है.) ४८६६८. कवि चातुर्य, गूढार्थ श्लोकादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे ३, जै, (२५x११, १२x४२). १. पे. नाम. कवि चातुर्य, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. मा.गु., सं., पद्य, आदि नेहभर नयणे नरखे, अंति: बोले नही बोल जकः, गाथा- ११. २. पे नाम, कल्पसूत्र वालावबोध, पृ. १आ, संपूर्ण, उपदेश रसाल, सं., गद्य, आदि: ईसो मंगलनिलो भयविलो, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम गाथा है.) ३. पे. नाम. गूढार्थ श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह - गूढार्थगर्भित, सं., पद्य, आदि: विद्रावनी मारे वाजंत, अंतिः वणनं वणनं वणनं ठ, श्लोक - ५. ४८६६९. कृष्णजी बारमासो, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५X११.५, १५X४०). कृष्णराजा वारमासो, मु. कुसलसमय, मा.गु., पद्य, आदि: गुडलाबाद गरजीया काली अंतिः कुसलसमह० रस रादावणी, गाथा - १२. יי ४८६७५. स्तुति, स्तवन व लावणी, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे ३ दे. (२४४१२, १२४४२). For Private and Personal Use Only ५९ Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ओलभडै मत खीजो; अंति: मोहन० बलिहारी हो, गाथा-६. २. पे. नाम. पंचपरमेष्ठि नमस्कार स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. ५ परमेष्ठि नमस्कार स्तुति, सं., पद्य, आदि: अर्हतो भगवंत इंद्र; अंति: कुर्वंतु वो मंगलम्, श्लोक-१. ३. पे. नाम. नेमिजिन लावणी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. श्राव. सुगनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: रेवतगिरि पर मिल्या; अंति: सुगनचंद० पूर दीजो, गाथा-१०. ४८६७६. (+) प्रश्नोत्तर रत्नमाला, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले.पं. हेमसिंह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१०.५, १४४४०). प्रश्नोत्तररत्नमाला, आ. विमलसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्य जिनवरेंद्र; अंति: कंठगता किं न भूषयति, श्लोक-२९. ४८६७७. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. ठाकुर ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११, १४४४४). १.पे. नाम. सुभद्रा सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सुभद्रासती सज्झाय-सीयल, मु. सिंघो, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर सोझइ ईरज्या; अंति: सिंघइ० सोना ठामि जोय, गाथा-२२. २.पे. नाम. परदेसीराजा स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण. परदेशीराजा सज्झाय, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: तथा व्रत पालता सूरीय; अंति: हरख धरी पभणै पासचंद, गाथा-९. ४८६७८. (+) स्तोत्र व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. २, अन्य. ग. अजितसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२६४११, १९४५७). १.पे. नाम. वीतराग स्तोत्र, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: फलमीप्सितम्, (पू.वि. प्रकाश १८ श्लोक ६ से है.) २.पे. नाम. जीराउला पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, आ. जयशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: देव दरिसणि देव दरिसण; अंति: सजिण सफल करे अम्हसे, गाथा-१६. ४८६८१. (+) वीसस्थानक स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १३४३२). २० स्थानक पूजा, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८४५, आदि: श्रीशंखेश्वर पासजी; अंति: (-), (पू.वि. 'सूरिपद पूजा' तक है.) ४८६८२. (+) स्तवन व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. पं. जैचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १३४४१). १.पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, आदि: जइज्जा समणे भयवं महा; अंति: पढयकयं अभयसूरीहिं, गाथा-२२. २. पे. नाम. ऋषभनाथजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण.. आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: युगादि पुरूषंद्राय; अंति: कूष्मांडी कमलेक्षणा, श्लोक-४. ४८६८३. च्यार गति सवैयो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४११.५, १५४३८). ४ गति सवैया, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीराम मनषसै मनुष्य; अंति: नरक निगोद में आयो है, गाथा-४. ४८६८४. आषाढभूति धमाल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४४३). For Private and Personal Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ www.kobatirth.org ६१ आषाढाभूतिमुनि चरित्र, वा. कनकसोम, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: श्रीजिनवदन निवासिनी, अंति: कनकसोम ० सुखकारा, गाथा ६२. ४८६८५. चतुर्विंशतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १७५९, आषाढ़ शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. अकबराबाद, पठ. गागाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२६४१२.५, १४४३२). २४ जिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: ऋषभदेवमहं जिननायकं, अंतिः स्संवेवनेतुर्मुने, श्लोक-२५. ४८६८६. गौतमाष्टक व विंशति पूजा भेद, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., ( २६११.५, ११x४५). १. पे. नाम. गीतमाष्टक, पृ. १अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी स्तोत्र, आ. देवानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीइंद्रभूति वसुभूत; अंति: यच्छतु वांछितं मे, श्लोक-९. २. पे. नाम. प्रत्येक विंशतिपूजा भेद, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रत्येकविंशति पूजा भेद, सं., पद्य, आदिः स्नानं १ विलेपनं २; अंति: कोशबृद्धा २१, श्लोक १. ४८६८७. पार्श्वनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैदे. (२६५११, ८४३५). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्श्वजिन स्तोत्र - चिंतामणि देवकुलपाटकस्थ, सं., पद्य, आदि: नमो देवनागेंद्रमंदार, अंति: चिंतामणि पार्श्वनाथं, श्लोक- ७. " ४८६८८. कुमतिसंगति निवारण जिनविंव भक्तिस्थापना स्तुति, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे. (२६११, १५X३७). कुमतिसंगनिवारण जिनबिंबस्थापना स्तवन, श्राव. लधो, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनपंकज प्रणमीने; अंति: पामी युं चिरकाल नंदो, गाथा-२५. ४८६९० (+) खिमाछत्रीसी, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २, पठ. मु. हीरा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६ ११, १२X३५ ). क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि आदरि जीव खिमागुण आदर, अंतिः समवसुंदर० संघ जगीश जी, गाथा - ३५. ४८६९२. बत्तीस सील उपमा व श्रावक २१ गुण, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५x११, १६x४३). १. पे. नाम बत्तीससील उपमा, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. (२६X११.५, ९X३२). १. पे. नाम. सरस्वती स्तोत्र, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. शीलव्रत ३२ उपमा बोल, मा.गु, गद्य, आदि: पहिली उपमा सर्वग्रह, अंतिः तिम व्रतामै सील मोटो. २. पे. नाम. श्रावकना २१ गुण, पृ. १आ, संपूर्ण. श्रावक २१ गुण नाम, मा.गु., गद्य, आदि: अक्खुद्द १ अक्षुद्र, अंति: रक्खोलवद्धि प्राप्ति ४८६९३. सरस्वती स्तोत्र व मंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, पठ. मु. चंद्रभाण, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ११X३२). १. पे. नाम. श्रेयांसजिन स्तुति, पू. १अ संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः ॐ श्रीअर्हन्मुखाभो अंतिः केवलमहो महिमानिधानम्, श्लोक १२. २. पे. नाम. सरस्वती मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी बीजमंत्र, सं., गद्य, आदिः ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह, अंतिः वरदे शारदे शुद्धभावे. ४८६९४. स्तुति व स्तवन, संपूर्ण वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे २, पठ श्रावि जीविचाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२६४११.५, मु. शोभनमुनि, सं., पद्म, आदि: कुसुमधनुषा यस्मादन्य: अंति: पंकजराजिभिः, गाथा-४, २. पे. नाम. सुमतिजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुमति जिणेसर रायजी; अंतिः विनीति जिनगुण गायाजी, गाथा ५. ४८६९५. अष्टप्रतिहार्य व अतिशय चैत्यवंदन सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे. (२६११.५, ७२५). १. पे. नाम. अष्टप्रतिहार्य श्लोक सह टबार्थ, पृ. १अ, संपूर्ण. ८ प्रातिहार्य लोक सं., पद्य, आदि: अशोकवृक्ष सुरपुष्प अंतिः जिनेश्वराणाम् श्लोक-१. For Private and Personal Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ६२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८ प्रातिहार्य श्लोक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अशोकवृक्ष १ देवता, अंति: प्रातिहार्य भगवंतने. २. पे. नाम. अतिशय चैत्यवंदन सह टवार्थ, पृ. १अ १आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र प्रथम पात्र है. साधारणजिन चैत्यवंदन- ३४ अतिशय, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: तेषां च देहोद्भुतरूप; अंतिः त्रिंशच्च मीलिताः, श्लोक-८, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साधारणजिन अतिशय चैत्यवंदन-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते भगवंतनी देह रूडी, अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. लोक ८ अपूर्ण तक टबार्थ है.) ४८६९६. शारदाष्टक व आरती, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., ( २६.५X११.५, ११४३९). १. पे. नाम. शारदाष्टक, पृ. १अ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी अष्टक, सं., पद्य, आदि: जिनादेशजाता जिनेंद्र, अंति: च वागीश्वरी जैनवाणी, श्लोक ८. २. पे. नाम. आदिजिन आरती, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: जे जे अरहंता भगवंता, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा २ अपूर्ण तक लिखा है.) ४८६९७, (+०) समवसरण अशोकवृक्ष विचार, संपूर्ण वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२५.५x१०.५, १७४६४). तीर्थंकरसमवसरण विचार, मा.गु., सं., गद्य, आदि: वृत्ते समवसरणेत्रयाण; अंति: (-), (वि. पत्र खंडित होने के कारण अंतिमवाक्य अनुपलब्ध है.) ४८६९९. परमेष्टी गुण व श्रावक आचार पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, वे. (२५.५x१२, १३४१३ )१. पे. नाम. ५ परमेष्ठिगुण संग्रह, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंत के गुण१२ अशोक, अंति: मर्णांतक उपसर्ग सहै. २. पे. नाम. श्रावक आचार पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. कुसल, मा.गु., पद्य, आदि: बारह वरत पालै खरा; अंति: कुसल कहै समझाय, गाथा-४. ४८७००. पंचमी स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. पालीताणा, प्रले. मु. नायकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X११.५, १६x४१). ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्य जिणेसर, अंति: संघ सयल सुखदाय रे, ढाल - ५, गाथा - १६. ४८७०४. सरस्वती स्तोत्र व परमेष्टि स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५X११, १४X३८-४१). १. पे. नाम. सरस्वती स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र - १०८ नाम गर्भित, सं., पद्म, आदि: धिषणा धीर्मतिर्मेधा अंतिः दुखोच्छेदाय देहिनां श्लोक-१५. २. पे. नाम. परमेष्टि स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः ॐ परमेष्ठि; अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक- ८. ४८७०६. भगवती सूत्र स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्रले. वा. सोभाचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२६४११, १४४४७) भगवतीसूत्र - सज्झाय, संबद्ध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आवो आवो रे सयण भगवती; अंतिः हंसे करी सहुं पभणे, गाथा-२५. ४८७०७ (१) सात व्यसन सज्झाय, संपूर्ण वि. १८५०, श्रेष्ठ, पृ. १. ले. स्थल. विरमगाम, प्र. वि. अक्षरों की स्थाही फैल गयी है, जैसे, (२६.५X११, ११X३८). ७ व्यसन सज्झाय, मु. जिनरंग, मा.गु, पद्म, आदि पर उपगारी साधगुरु अंतिः तो जयरंग एम कहे, गाथा ९. ४८७०८. प्रदेशी सज्झाव, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम पू. १, वे (२६.५x१२, ११४३९). परदेशीराजा सज्झाय, मु. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुरिश्वर स्वेतां बिन; अंति: उत्तम नित्य जयकार हो, गाथा - १८. For Private and Personal Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ४८७०९. नागिला सज्झाय व लोच विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४१२.५, १०x४४). १.पे. नाम. नागिला सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नागिलाभवदेव सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: भुवदेवभाई घरे आविया; अंति: समयसुंदर सुखकार रे, गाथा-१५. २. पे. नाम. लोच विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: लोच करवा अगाउंथी; अंति: चैत्यवंदन करवू. ४८७१०. सिखामण सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६४१२, १०४२५). औपदेशिक सज्झाय, मु. शांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शिवानंद हितकारी तुमे; अंति: हृदयमां धारजो रे, गाथा-१२. ४८७११. (#) देशनानी ढाल, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४१२, ११४३५). वैराग्य सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: परषदा आगे दिये मुनि; अंति: उदयरत्न० छे एह हो, गाथा-११. ४८७१२. (+) अगियारस सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१२.५, ११४४६). एकादशीपर्व सज्झाय, मु. विशालसोमसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: गोयम पुछि वीरने सुणो; अंति: विशालवि० सज्झाय भणे, गाथा-१५. ४८७१३. गिरनार स्तुति व नेमजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४१२.५, ११४४३). १. पे. नाम. गिरनार स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: सुर असुर वंदिय पाय; अंति: करो अंबिकादेविया, गाथा-४. २. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: तोरण आवी कंत पाछा; अंति: नेम अनुभव कलीया रे, गाथा-१५. ४८७१७. (+) जिनप्रतिमा स्थापन सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १५४३७). जिनप्रतिमा प्रतिष्ठा सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: जिनशासन नायक अरिहंत; अंति: तत्त्व तणउ आधार, गाथा-१५. ४८७१८. (#) पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ५०४६-३१). पट्टावली*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीमहावीर; अंति: आज्ञाप्रवर्ती, पीठ-७३. ४८७१९. जिनप्रतिमा हुंडी रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, १५४४६). जिनप्रतिमाहुंडि रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७२५, आदि: सुयदेवी हीयडै धरी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा- १७ अपूर्ण तक लिखा है.) ४८७२०. चौवीसजिन राशि व नक्षत्र विवरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, १४४४४). १.पे. नाम. २४ जिन विवरण, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २४ जिन राशि, सं., गद्य, आदि: आदिनाथ धन उतराषाढ; अंति: मकर मीन कुंभ रा. २४. २. पे. नाम. २४ जिनराशि नक्षत्र वर्णन, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिन राशि नक्षत्र, सं., गद्य, आदि: नक्षत्र योनिश्च षडाष; अंति: कारै प्रतिमालोक्यते. ४८७२१. चक्रेश्वरी स्तोत्र व मंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६४११.५, १३४३४). १. पे. नाम. चक्रेश्वरी स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. चक्रेश्वरीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीचक्रे चक्रभीमे; अंति: रक्षमां देवि चक्रे, श्लोक-८. २.पे. नाम. चक्रेश्वरी बीज मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. चक्रेश्वरीदेवी बीज मंत्र, सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं , श्री; अंति: रक्षां कुरु स्वाहा. ३.पे. नाम. माणिभद्रवीर बीज मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. माणिभद्रवीर जाप मंत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं क्रों; अंति: महावीराय नमः. ४८७२२. वीरजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. कुल ग्रं. १०, दे., (२६.५४१२, १०४३७). For Private and Personal Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक स्तुति, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: उठी सवारे सामायिक; अंति: थइ शीवपद भोगी जी, गाथा-४. ४८७२३. (+) गोडीजी अधिकारे मेघासा स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१२, १३४६०). पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. नेमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१७, आदि: प्रणमुं नित परमेश्वर; अंति: इम नेमविजय जयकार, ढाल-१४, गाथा-१३७. ४८७२४. वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२६४१२, ११४४६). नरकविस्तार स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: वर्द्धमानजिन वीर तु; अंति: रलियामणो परमकृत उदार, ढाल-७, गाथा-३५. ४८७२५. नेमीजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्रले. मोहन डामर; पठ. श्रावि.खेमीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४११.५, १४४३४). नेमिजिन नवरसो, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १६६७, आदि: सरसत स्वामिने पाय; अंति: थुण्यो नेमीजिणेसरो, ढाल-४, गाथा-७२. ४८७२६. आवश्यक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२६.५४११, ९४३५). ६ आवश्यकविचार स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीसे जिन चितवी; अंति: तेह शिवसंपद लहे, गाथा-४३. ४८७२७. (#) नोकारवाली सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४११, १३४३५). नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बार जपं अरिहंतना; अंति: भणजो रे भवियण नवकार, गाथा-८. ४८७२८. (#) भक्तामर स्तोत्र आम्नाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. ग. विवेकसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १७७५५). भक्तामर स्तोत्र आम्नाय, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: भक्तामर प्रणत मौलि०; अंति: अली अंतराय न लागइ. ४८७२९. दसपचखाणफल स्तवन, संपूर्ण, वि. १७८७, ज्येष्ठ कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२६४१२, १२४३२). १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: सिद्धारथनंदन नमुं; अंति: तपी विद्या भणे, ढाल-३, गाथा-३३. ४८७३०. जिनगुण स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२५.५४१२, ९४३१). २४ जिन स्तवन, वा. सकलचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: करि कच्छपी धरती; अंति: सेवक सकलचंद सुतारणं, गाथा-३६. ४८७३१. (#) ज्ञानपंचमी स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१२, १२४३०). ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्यजिनेश; अंति: संघ सयल सुखदाय रे, ढाल-५, गाथा-१६. ४८७३२. अभिषेक विचार संग्रह व जीव विशेषता, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६४११, २१-२४४८-१७). १. पे. नाम. अभिषेक विचार संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. २५० अभिषेक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: एक कोड साठ लाख कलसा; अंति: एटलें अढीसे अभिषेक. २. पे. नाम. जीव विशेषता, पृ. १आ, संपूर्ण. जीव स्वभाव विचार, पुहिं., गद्य, आदि: १ सिंह १ साहिसिक १; अंति: अहे २ संतोष ३. ४८७३३. द्रोपदी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४११, १३४४१). द्रौपदीसती सज्झाय, मु. मयाचंद, मा.गु., पद्य, आदि: आव्या नारद मुनिवर; अंति: भावे वीनव्या रे लो, गाथा-११. ४८७३४. (+) समकित स्वरूप, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११, १३४४२). For Private and Personal Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ www.kobatirth.org ६५ ५ समकित स्वरूप, प्रा. मा.गु., गद्य, आदि; समकित जे दर्शन, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "हवे ६ थानक जाणवो आत्मा छै ते सरीर थी" पाठ तक लिखा है.) ४८७३५. (+०) पुद्गलपरावर्त्तस्वरूप विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर फीके पड़ गये हैं, जैदे. (२६४११, १९५०-६१). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे. नाम. पुगलपरावर्तस्वरूप विचार सह टीका व टिप्पण, पृ. १अ २आ, संपूर्ण पुलपरावर्त्त विचार, प्रा., पद्य, आदि: दव्वे खिते काले अंतिः खित्ताइ धूलिअरा, गाथा- ३. पुद्रलपरावर्त विचार- टीका, सं., गद्य, आदि: द्रव्ये द्रव्यविषयः अंतिः पुलपरावर्तस्वरूपा पुद्गलपरावर्त्त विचार- टिप्पण, सं., गद्य, आदि: औदारिक वर्गणा१; अंति: प्ररूपणा मात्र. २. पे. नाम. चतुर्द्धा पुलपरावर्तस्वरूप विचार, पृ. २आ, संपूर्ण. पुलपरावर्तस्वरूप विचार- चतुर्विध, सं., गद्य, आदिः स्यात्पुद्गलपरावर्त अंतिः अधिकारः परैर्नतु, ४८७३६. १८ हजार शिलांगरथ, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. सचित्र (रेखाचित्र), दे. (२६४१२, १६४९-३४). १८ हजार शीलांगरथ, प्रा., मा.गु., पद्य, आदि: जेनोकरंति ६००० जेनो; अंति: १ बंभजूआतेमुवंदे १, गाथा-२. ४८७३७. सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे. (२५.५x११.५, १९३१). सिद्धचक्र स्तवन, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, आदिः सिद्धचक्रनी करो भवि, अंति: अमृत पद लहे तेह, गाथा- ७. ४८७३८. (#) अष्टमि स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, ले. स्थल. विरपुर, पठ. श्रावि. फूल, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२६४१२, ८४४० ). अष्टमीतिथि स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हां रे माहरे ठाम धरम, अंति: कांति सुख पा घणु, ढाल - २, गाथा - २५. " ४८७३९. (१) सिद्धाचल स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे. (२६.५४११. १९३४). शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, वा. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदिः उमइयो मुजने घणो जिहो; अंतिः जिहो एहमां नहि संदेह, गाथा-७. ४८७४०. (#) सिद्धिगिरी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११, १२X३१). आदिजिन स्तवन- शत्रुंजयतीर्थ, पं. नायकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीआदि जिनेश्वर, अंतिः नायक मनने कोड हो, गाथा - ११. ४८७४१, (d) पार्श्वजिन स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., ( २६.५X११.५, १३x४० ). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पं. नायक विजय, मा.गु., पद्य, आदि: चालो सखि जिनवंदन जइय; अंति: नायक सिवपुरी आसी रे, गाथा-५. २. पे. नाम. पार्श्व स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. , 1 पार्श्वजिन स्तवन, पं. नायकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपुरुषादानी पास, अंति: पसाई नायक सिवसुखराज, गाथा- ७. ४८७४२. समवसरण स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैदे. (२६४११.५, १३४३९). समवसरण स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि एक बार वछदेस आवजो, अंतिः रेहता उशव रंग वधामणा, गाथा - १५. ४८७४३. चंद्रप्रभु लावणी, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल, वीरमगाम, प्रले श्राव. नेमचंद उज्जमसी शाह, प्र. ले. पु. सामान्य, .. (२६१२, १०४३७-४०). चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५४, आदि: चंद्रप्रभु चितमोह, अंति: हुं दास चरणा रो, गाथा - १४. ४८७४४. महावीर स्तवन निगोद विचार, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २. प्रले. पं. नायक विजय पठ श्रावि. फूल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६X११.५, १२X३२). For Private and Personal Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची महावीरजिन स्तवन- निगोदविचारगर्भित, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदिः उपकारी असमान मोहन, अंतिः न्यायसागर दिन मुज आज, ढाल -२, गाथा-४३. ४८७४५. सुपार्श्व, श्रेयांस, विमल व पार्श्वनाथ गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, पठ. श्रावि. मूली, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६X१२, १५X४२). १. पे. नाम. सातमा सुपास गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. सुपार्श्वजिन स्तवन, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जगगुरु सांमी सुपास; अंति: तुझ दिल में घेरजी, गाथा-५. २. पे. नाम. श्रेयांसनाथ गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रेयांसजिन स्तवन, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: इग्यारमो जिनदेव मुझ; अंति: हुं सेवा लह्यो जी, गाथा-५. ३. पे नाम, विमलनाथ गीत, पृ. १अ १आ, संपूर्ण विमलजिन स्तवन, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: तेरमा विमल जिनेशरू; अंति: देव० आपणो रे लो, गाथा-५. ४. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. देवविजय, मा.गु, पद्य, आदि: हांरे श्रीपास, अंतिः देव० दिल धरूं रे लो, गाथा ५. ४८०४६. सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, वे. (२७४१२, ९४३०). सिद्धचक्र स्तवन, मु. अमरविजय, मा.गु, पच, आदिः समरी शारदमाय प्रणमी अंति: केसर० तुज लली लली जी, गाथा-८. ४८७४७. (#) नेमिजिन जान, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., ( २६.५X१२, ११X३७-४०). नेमिजिन स्तवन, मु. अमृतविमल, मा.गु. पच, वि. १९वी आदि सखी आई रे नेम जान, अंतिः अमृत विमल पद वरि गाथा-७. ४८७४८. वीरजिन स्तवन, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. श्राव. हरिचंद जयचंद गांधी, प्र.ले.पु. सामान्य, वे., ( २६४११.५, १२X३०). महावीरजिन स्तवन, मु. मुक्तिविजय, मा.गु, पद्य, आदि: त्रिसलानंदन वीर जरि अंतिः रे त्रिसलानंदनवीर गाथा- ७. ४८७४९. (#) श्रीमंधर स्तवन, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. स्तंभ तीर्थ, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जै.., (२६४११, १२४४५). सीमंधरजिन स्तवन, मु. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदिः उच्छव रंग वधमणा ए दिन अंतिः भक्तिलाभ० सेवक तणी, गाथा - १६. ४८७५०. असज्झाय दोष निवारण सज्झाय व सिद्धाचल स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, कुल पे. २, दे.. (२६४११.५, १३x४८). १. पे. नाम. असज्झाई दोष निवारण सज्झाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. असज्झाव सज्झाव, मा.गु, पद्य, आदिः पचयण देवी समरी मात, अंति: शिवलच्छी तस बरे, गाथा- १६. २. पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. जैदे.. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: डुंगर टाढो रे डुंगर, अंति: पामई परम कल्याणो रे, गाथा-७. ४८७५९. श्रावक आराधाना, अपूर्ण, वि. १८५८, माघ शुक्ल, ६, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) -१, प्र. वि. पत्रांक नहीं है. (२५.५४११.५, १३४३८). श्रावक आराधना-बालावबोध, उपा. राजसोम, मा.गु., गद्य, वि. १७१५, आदि: (-); अंति: वर्यैश्चाराधना चक्रे. ४८७५२. देववंदन अधिकार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, जैवे. (२५.५४११.५, १३४३१). देववंदन अधिकार, प्रा., मा.गु. सं. प+ग, आदि अर्हस्तनोतु स श्रेय अंतिः जईनं जयति शासनम्, , ४८७५३. जिन स्तुति व स्तोत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ६, जैवे. (२६११.५, १३४४८). १. पे नाम. जिन स्तुति, पृ. १अ २अ संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: नेत्रानंदकरी भवोदधि, अंतिः जिनेश्वराणां श्लोक-१९. " २. पे. नाम. २४ जिननामगर्भित मंगलाष्टक, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ २४ जिन स्तोत्र, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: नतसुरेंद्रजिनेंद्र; अंति: जिनप्रभसूरि० मंगलं, श्लोक-९. ३. पे. नाम. आदिजिन स्तोत्र, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तोत्र-शत्रुजयतीर्थ, सं., पद्य, आदि: पूर्णानंदमयं महोदयमय; अंति: नाभिजन्मा जिनेंद्रः, श्लोक-१०. ४. पे. नाम. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण, पठ.सा. उगमश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य. सं., पद्य, आदि: धातुश्चतुर्मुखीकंठ; अंति: निःशेषजाड्यापहा, श्लोक-१३. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. ३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन अष्टक, मु. रत्नसिंह, सं., पद्य, आदि: कल्याणकेलिसदनाय नमो; अंति: जनताभिमतार्थसिद्ध्यै, श्लोक-८. ६. पे. नाम. परमात्माष्टक, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. वीतरागाष्टक, सं., पद्य, आदि: शिवं शुद्धबुद्धं; अंति: दाभ्युद्यताम्, श्लोक-९. ४८७५४. मृगापुत्र सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०.५, १४४४४). मृगापुत्र सज्झाय, मु. सिंहविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सुग्रीवनयर सोहामणु; अंति: सीहविमल० लाखीणो जाय, गाथा-२३. ४८७५५. सरस्वती स्तोत्र व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, १३४४७). १. पे. नाम. सरस्वतीस्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, उपा. विद्याविलास, सं., पद्य, आदि: त्वं सारदादेवि समस्त; अंति: विद्याविलास० निवासम, __ श्लोक-९. २.पे. नाम. तेरदुर्लभगुण श्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण. १३ दुर्लभगुण श्लोक, सं., पद्य, आदि: मानुष्यं वरवंशजन्मवि; अंति: संसारिणां दुर्लभाः, श्लोक-१. ४८७५६. नवतत्त्व भेद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, १७४४०). नवतत्त्व २७६ भेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: १ एकेंद्रीसूक्ष्म; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., पांचवे भेद 'आश्रवतत्व' तक है.) ४८७५७. मौन एकादशी गण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, १६४४७). मौनएकादशीपर्व गणj, सं., को., आदि: प्रथम भरते चतुर्विंश; अंति: ज्ञानं श्रीआरणव्रतम्. ४८७५८. जीवअजीव भेद विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६४११.५, २५४१२). १.पे. नाम. जीवना भेद ५६३, पृ. १अ, संपूर्ण. ५६३ जीव भेद यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. अजीवना ५६० भेद, पृ. १अ, संपूर्ण. अजीव ५६० भेद यंत्र, मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: (-). ४८७५९. तप विधि व स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४११.५, ११४३१). १.पे. नाम. दसपचखाणनु गरणु वीधी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. १० पच्चक्खाण तप गणणु विधिसहित, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीसमकीतपारंगताय नम; अंति: १० उपवासः खावु १. २.पे. नाम. जिन स्तुति-प्रार्थना, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक*, प्रा.,सं., पद्य, आदि: पूर्णानंदमयं महोदयमय; अंति: वंदेहमादीश्वरम्, श्लोक-१. ४८७६०. मुहपति ५० बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६.५४१२, २७४१२). मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन के ५० बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: सूत्रार्थतत्व सद्दरू; अंति: वनस्पतिकाय त्रसकाय. ४८७६१. चैत्यवंदन व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, जैदे., (२५.५४१०.५, १०४३१). १.पे. नाम. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पहिला प्रणमु; अंति: नय वंदइ करजोडि, गाथा-२, (वि. प्रतिलेखक ने ३ गाथा को १ गाथा गिना है.) २.पे. नाम. पंचतीर्थजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५ तीर्थजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीशत्रुजयमुख्य; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. गाथा २ तक हैं.) ३. पे. नाम. पंचपरमेष्टी स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. कल्लाणकंद स्तुति, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: कल्याणकंदं पढम; अंति: अम्ह सया पसत्था, गाथा-४. ४. पे. नाम. दीवाली स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व स्तुति, मु. भालतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: जयजय कर मंगलदीपक; अंति: कमला भालतीलक वरहीर, गाथा-१. ५. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: वीरं देवं नित्यं; अंति: स नौ देवी दयाल दम्मा, श्लोक-४. ४८७६२. स्तोत्र व स्तवन, संपूर्ण, वि. १७८४, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, पठ. श्रावि. सुंदरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३६). १.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ; अंति: निब्भतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. २.पे. नाम. स्वयंप्रभजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. शांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: केवलन्यान प्रमाणथी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ तक लिखा है.) ४८७६३. (+) सझाय व स्तवन, संपूर्ण, वि. १८४३, श्रावण शुक्ल, २, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. वाराही, प्रले. मु. रुपचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, १२४३६). १.पे. नाम. ढंढणमुनि स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. ढंढणऋषि सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: ढंढण ऋषिने वंदना ह; अंति: कहै जिणहरष सुजाण रे, गाथा-९. २. पे. नाम. पंचासरा स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-पंचासरातीर्थ, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परमातम परमेश्वरु; अंति: पद्मविजय० अक्षय राज, गाथा-७. ४८७६४. चंद्रप्रभूजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६.५४११.५, १३४४४). चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. गुलाब, मा.गु., पद्य, आदि: चंद्रप्रभूजिन वीनती; अंति: गुलाब नमें सुखकार रे, गाथा-१५. ४८७६५. पद्मावय छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. मोरबी, प्रले.ग. भावविजय गणि (गुरु पं. माणक्यविजय); गुपि.पं. माणक्यविजय (गुरु पं. दोलतविजय); पं. दोलतविजय (गुरु पंन्या. जिनविजयगणि); पंन्या. जिनविजयगणि (गुरु पंन्या. ज्ञानविजय); पंन्या. न्यानविजय गणि (गुरु पंन्या. नेमविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, दे., (२५.५४११.५, १३४४१). पद्मावतीदेवी छंद, मु. हर्षसागर, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: ॐ कलिकुंडदंडं; अंति: हर्ष० पूजो सुखकारणी, गाथा-१२. ४८७६६. सौधर्मास्वामी भास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६.५४११.५, ११४३०). सुधर्मास्वामी भास, ग. भक्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसोहमवर गणधर अतिश; अंति: भक्तिविजय० धरीय जगीस, गाथा-६. ४८७६७. चतुर्विंशतिजिन नमस्कार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५.५४१२, १३४३१). सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: श्रीवीर भद्रं दिश, श्लोक-३१. ४८७६८. स्तुति संग्रह व विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ५, दे., (२६.५४१२.५, ११४३२). १.पे. नाम. वर्द्धमान स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: नमोस्तु वर्द्धमानाय; अंति: नौमि बुधैर्नमस्कृतम्, श्लोक-४. २.पे. नाम. सामाइ पोसह, पृ. १अ, संपूर्ण. पौषध पारने की विधि, प्रा., पद्य, आदि: सामाइय पोसह संठीयस्स; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा १ लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ www.kobatirth.org ३. पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. मु. मेघविजय, मा.गु, पद्य, आदि: शांतिजिणेसर अति अलवे, अंतिः मेघविजय करज्यो मावजी, गाथा-४. ४. पे. नाम. पजुसण स्तुति, पृ. १आ- २अ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व स्तुति, मु. बुधविजय, मा.गु, पद्य, आदि: वीरजिणेसर अतिअलवेसर, अंतिः विर बीबुध जय कारीजी, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८७७०. चंपक वंदन बाद, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे. (२५४१०.५, ११४५१). " गाथा-४. ५. पे. नाम. इग्यारस स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. एकादशीतिथि स्तुति, मु. भीमविजय, मा.गु., पद्य, आदि बीनय करी नेमिसर बंदी, अंतिः जय करजो कोडि उपाय जी, गाथा ४. ४८७६९. (+#) चिंतामणि पार्श्वनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२६१०.५, १०X३० ). " पार्श्वजिन स्तव - चिंतामणि, उपा. देवकुशल पाठक, सं., पद्य, आदि: नमद्देवनागेंद्रमंदार, अंतिः चिंतामणिः पार्श्वः, श्लोक-७. पार्श्वजिन स्तवन- जीरावला, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि सूकडि मिलीआ गिर तणी, अंति: लावण्यस० बिजण संप रे, गाथा - १२. ४८७७१. (+) वीर थुई अध्ययन व शील गाथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६X११, ६X५०). १. पे. नाम. वीरथुइ नामाध्यचन, पृ. १अ ३आ, संपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र- हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदिः पुच्छिसुणं समणा माहण; अंति देवाहिव आगमिस्संति, गाधा- २९. २. पे. नाम. सीलनी गाथा, पृ. ३आ, संपूर्ण. ६९ ४८७७५. अष्टमंगल पूजा ढाल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., ( २६११.५, १०X३२). " प्रास्ताविक गाथा संग्रह, प्रा. मा.गु. सं., पद्य, आदि: पंचमहव्ववसुव्वयमूलं अंति: संलेहणा पंडितमरणं, गाथा-४. ४८७७२. (१) उपदेश रत्नमाला व चारित्र मनोरथमाला, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२५.५x१०.५, १८४७४). " १. पे. नाम. उपदेश रत्नमाला, पृ. १अ संपूर्ण, उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदिः उवएसरयणकोसं नासिअ अंतिः विउलं उवएसमालमिणं, गाथा - २६. २. पे. नाम. चारित्रमनोरथमाला, पृ. १अ १आ, संपूर्ण आ. धनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदि केसिं च स उन्नाणं, अतिः भावं पावंति परमपयं श्लोक-३०. ४८७७४. बलिभद्रमुनि रास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. ग. माणिक्यसुंदर, प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे., (२६X११, ११×३५). बलभद्रमुनि रास, मु. यशोभद्रसूरिशिष्य, प्रा., मा.गु., पद्य, आदि; वीर जिणंदह पय पणमेवी अंतिः संघह नीय परि जाइ, (वि. प्रतिलेखक ने गाथा संख्या नहीं लिखी है.) १२ व्रत पूजाविधि- अष्टमंगल पूजा ढाल, हिस्सा, पं. वीरविजय, मा.गु., सं., पद्य, वि. १८८७, आदि: व्रत सात वीरती आद, अंतिः शुभवीर० मंगलमाल जो गाथा- ९. ४८७७६. सीमंधरस्वामी स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल. मेसाणा, प्रले. हरचंद कचरा भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, दे.. (२६१२, १०x३६). For Private and Personal Use Only सीमंधरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: बालो मारा सीमंधरसाम, अंति: कर्बु ने में दस्युं (वि. प्रतिलेखक ने गाथा संख्या नहीं लिखी है.) Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४८७७८. (+-#) नवतत्त्व प्रकरण, अपूर्ण, वि. १७८९, ज्येष्ठ शुक्ल, ८, गुरुवार, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, ले.स्थल. पद्मावती, पठ. दयाराम; कला, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रत में अन्य प्रतिलेखन वर्ष 'सतरअसीयवरसे' भी मिलता है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १३४३१). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: समत्तं नसलं तस्स, गाथा-३१, (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., गाथा २० अपूर्ण से है.) ४८७८२. वीसस्थानक गुणणो काउसग्ग संख्यादि आराधना विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४११, १३४४०). २० स्थानकतप जापकाउसग्ग संख्या, प्रा., गद्य, आदि: अरिहंतपूजा त्रिकाल; अंति: भूमी सयन किजइ. ४८७८३. श्रावकना इकवीस गुण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४१२, १३४३८). श्रावक २१ गुण वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलो गुण अक्षुद्र; अंति: कहत समान तुरत समझै, अंक-२१. ४८७८४. (+#) पंचसंग्रह-चयनितगाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १७४४८). पंचसंग्रह-चयन, प्रा., पद्य, आदि: तग्गयणु पुग्विजाई; अंति: देवेसुचठसठी, गाथा-३३. ४८७८५. नलिनिनायकनंदन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ.सा. हीरलक्ष्मी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०.५, १०४३८). मुनिसुव्रतजिन स्तोत्र-शनिग्रह, सं., पद्य, आदि: श्रीसुव्रतजिनेंद्र; अंति: पीडा न भवंति कदाचन, श्लोक-९. ४८७८६. (+) स्वाध्याय व स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, २३४५८). १. पे. नाम. थूलभद्र स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. स्थूलिभद्र सज्झाय, मु. शिवचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीथूलिभद्र मुनिवर; अंति: सविचंद० अविचल पाली, (वि. प्रतिलेखक ने गाथा संख्या नहीं लिखी है.) २.पे. नाम. चिंतामणिपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.. पार्श्वजिन स्तवन-वटप्रदमंडन चिंतामणि, मु. गुणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: जअजगगुरु देवाधिदेव; अंति: जिम न पर्छ संसारी, गाथा-१४, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक १० के बाद गाथांक नहीं लिखा है.) ४८७८९. वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४११.५, १०x४२). महावीरजिन स्तवन-दीपावलीपर्व, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मारग देशक मोक्षनोरे; अंति: देवचंद्र पद लीधरे, गाथा-९. ४८७९०. धरमनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४११.५, १०४३५). धर्मजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हारे मुने धरमजिण; अंति: मोहन० अति घणोरे लो, गाथा-७. ४८७९१. ज्वर मंत्र छंद, संपूर्ण, वि. १९५५, श्रावण कृष्ण, ५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. पोरबंदर, प्रले. पंन्या. धर्मविजयजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१२, १२४३७). ज्वर छंद, मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि: ॐ नमो अजयपाल राजा मा; अंति: सारमंत्र जपीये सदा, गाथा-१५. ४८७९२. भयहर स्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२६.५४१२, ५४३४). नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण पणयसुरगण; अंति: भय तस्स नासेइ दूरेण, गाथा-२४. नमिऊण स्तोत्र-टबार्थ, पं. शुभकुशल गणि, मा.गु., गद्य, आदि: नमिऊण क० नमस्कार करी; अंति: वेगला जाई नही संदेह. ४८७९४. (+) स्तोत्र व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७४१२, १६४३८). १.पे. नाम. चंद्रप्रभु सासनदेवी ज्वालामालनीस्तोत्र, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, वि. १८८१, प्रले. मु. लक्ष्मीविलास, प्र.ले.पु. सामान्य. ज्वालामालिनी स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवते श्रीचंद; अंति: ज्ञापयति स्वाहा. For Private and Personal Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ २.पे. नाम. गाथा चंदपन्नत्ती, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. महावीरजिन विशेषण, प्रा., गद्य, आदि: नमिऊण असुरसुरगुरल; अंति: वुत्ते एवमेत्ताइवीसई, गाथा-५. ४८७९५. (+) आर्य वसुधारा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११.५, १४४५५). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: मभ्यनंदन्निति. ४८७९६. एकोत्तरा रास व कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, जैदे., (२५४१०.५, १७X४४). १.पे. नाम. एकोत्तरा रास, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. प्रश्नोत्तर-एकोत्तरा गर्भित, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: उत्तरं देहि नत्थदंतं, गाथा-५८, (पू.वि. प्रश्न ४२ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. सिंहवानर कथा, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. औपदेशिक कथा-सिंहवानर, मा.गु., पद्य, आदि: एक समै सुणि सिंघकुं; अंति: साथमै वले न आवु पास, गाथा-११. ४८७९८. मुक्तियुक्ति निरूपण, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५४११, १५४५२). मुक्तियुक्ति निरूपण, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य शिरसा पूर्वं; अंति: (-). ४८८०१. (+) स्तवन, छ आवश्यक व मद नाम, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्रले. पं. राजविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, १५४४३). १. पे. नाम. सिद्धदंडिका स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, वि. १८६७, मार्गशीर्ष शुक्ल, १५, प्रले.पं. राजविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१४, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी; अंति: पद्मविजय जिनराया रे, ढाल-५, गाथा-३७. २.पे. नाम. छ आवश्यक प्रमाण, पृ. २आ, संपूर्ण. ६ आवश्यक प्रमाण, मा.गु., गद्य, आदि: सामायिक १ चोवीसत्थो; अंति: एवं छ आवश्यक जाणवा. ३. पे. नाम. आठ मद नाम, पृ. २आ, संपूर्ण. ८ मद नाम, मा.गु., गद्य, आदि: जातिमद १ लाभमद २; अति: श्रुतज्ञानमद ८. ४८८०२. (+) शत्रुजय उद्धार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४११.५, १३४३८). शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर विमल; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ८८ अपूर्ण तक है.) ४८८०३. (-) स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२६.५४११.५, १०४३२). १. पे. नाम. पजुसणा स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. पर्युषणपर्व स्तुति, मु. अमरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पर्व पजुसण पुण्ये; अंति: होज्यो वधाई जी, गाथा-४. २. पे. नाम. संखेसर स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति, मु. नयविमल, मा.गु., पद्य, आदि: शंखेश्वर पासजी पूजीए; अंति: नयवीमल०विंछित पुरती, गाथा-४. ४८८०४. सारस्वत व्याकरण, पार्श्वजिन स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, दे., (२६.५४११.५, ११४४०). १. पे. नाम. सारस्वत व्याकरण, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रक्रिया, आ. अनुभूतिस्वरूप, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य परमात्मानं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक २ तक लिखा है.) २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. __ सं., पद्य, आदि: जयश्रिय निधौ स्वामि; अंति: मच्छरीरस्य जिनेंद्र, गाथा-८. ३. पे. नाम. औषधि संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण.. औषधवैद्यक संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४. पे. नाम. वीसस्थानक नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. C For Private and Personal Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ७२ www.kobatirth.org २० स्थानक नाम, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं लोगस्स, अंतिः लोगस्स १० काउसग्ग. ५. पे. नाम. नवपद ओली नाम, पृ. १आ, संपूर्ण कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नवपद गणना, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदिः ॐ ह्रीं नमो अरिहंताण; अंतिः नमो तवस्स गुण १२. ४८८०५. वृद्ध शांति, संपूर्ण, वि. १८८३, श्रावण कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल. राजनगर, प्रले. हर्षवर्धन; लिख श्रावि गजरीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२७४१२, १३४३९) " बृहत्शांति स्तोत्र- तपागच्छीय, सं., प+ग, आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंतिः शिवं भवतु स्वाहा. (#) ४८८०६. स्तुति, स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २- १ (१) = १, कुल पे. ३, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२८x१३.५, ११X३३). १. पे नाम, पाक्षिक स्तुति, पृ. १अ अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ४८८०७. भमरा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. १, वे. (२६.५४११.५, १४४३५). , " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: सर्वकार्येषु सिद्धम्, श्लोक-४, (पू. वि. श्लोक ३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. जैन सामान्य कृति, पृ. १आ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति”, प्रा.,मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा १५ से १७ तक लिखा है . ) ३. पे. नाम. समेतशिखरगिरि स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. ज्ञानविमलसूरि - शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: समेत शिखर गिरि भेटीई; अंति: भाष्य वारे, गाथा- ७. . औपदेशिक सज्झाय, मु. माल, मा.गु, पद्य, आदि: वाडी फूली अति भली अंतिः माल ई रंग मन भमरा, गाथा १८. ४८८०८. तेवीस बोल विचार, संपूर्ण, वि. १९६४, माघ कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल. फलोदी नगर, दे., ( २६.५X११.५, १०x३७). २३ बोल विचार, मा.गु, गद्य, आदि: पहिलो बोले भणिवा, अंतिः टोटो पड़े जमातीनी साख ४८८०९. वीरजिन गहुँली व शाश्वता तीर्थंकर संख्या, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२८x१२.५, १०x४१). १. पे. नाम वीरजिन गहुँली, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन गहुंली, मु. अमृतसागर, मा.गु., पद्य, आदि: जी रे जिनवर वचन; अंति: अमृत शिव निसान रे, गाथा-७. २. पे. नाम. शाश्वता तीर्थंकरनी संख्या, पृ. १आ, संपूर्ण. शाश्वत जनबिंबसंख्या विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सौधर्म देवलोक, अंति: साठ लाख जिनबिंब.. ४८८१०. दशार्णभद्रमुनि सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, जै, (२७११.५, १२४४५). . दशार्णभद्र सज्झाय, मु. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८६३, आदि: पंकजभूतनया नमी, अंति: वीरमुनि० कंठे में ठवी, ढाल - ५, गाथा- ६२. ४८८११. ज्वरछंद, मंत्र व औषध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२७४११.५, १३४३३). १. पे. नाम. तावनो छंद, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण, प्रले. ग. लक्ष्मीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. ! ज्वर छंद, मु. कांतिविजय, मा.गु, पद्य, आदिः ॐ नमो आनंदपुर अनेपाल, अंतिः कांति० लक्ष्मि भोगं, गाथा-१५. २. पे नाम ज्वर मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण For Private and Personal Use Only मा.गु., गद्य, आदिः ॐ नमो ज्वर हूं जां, अंतिः पापी जा जा जा. ३. पे नाम, ज्वर औषध, पृ. १आ, संपूर्ण औषधवैद्यक संग्रह *, प्रा. मा.गु. सं., गद्य, आदि गोल ढीलो लाइने पोहलो, अंतिः पाली ए रीते करीई. ४८८१३. चत्तारिअट्ठदसदोय गाथा गत जिन स्तवन व वर्त्तमान चोवीसी नाम, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. मु. संवेगजयगणि शिष्य (गुरु पं. संवेगजय गणि, तपागच्छ), प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. पंचपाठ, जैदे. (२७.५x१२.५, १२X४१). १. पे. नाम वर्त्तमान १० चौवीसी नामानि पृ. १अ १आ, संपूर्ण. Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ १० क्षेत्र वर्त्तमानचौवीसी नाम, सं., गद्य, आदि: जंबूद्वीपे भरत; अंति: मंगुलसंख्या स्वमाने.. २. पे नाम, चत्तारिअट्ठदसदोय गर्भित चोवीस जिनस्तवन सह अवचूरि. पू. १आ, संपूर्ण २४ जिन स्तवन- चत्तारिअट्ठदसदोय गर्भित, प्रा., पद्य, आदि: अट्ठावयंमि सेले भरह, अंति: वंदामि विविह जिणे, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा - १८. २४ जिन स्तवन- चत्तारिअट्ठदसदोय गर्भित अवचूरि, सं., गद्य, आदिः चत्ता० दाहिणिदुवारे, अंतिः जिणा वंदिनंति. ४८८१४. (+) द्वात्रिंशिका सह अवचूरी, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें - पंचपाठ., जैदे., (२४X११, १५x५३). आदिजिन स्तव, आ. पुण्यरत्नसूरि, सं., पद्य, आदि: अष्टापदरुचिमष्टापद, अंतिः पुण्यरत्न० श्रियः, श्लोक-३३. आदिजिन स्तव - अवचूरि, ग. सत्यराज, सं., गद्य, आदि: अष्टा० अष्टापदं; अंति: आद्यका प्रौढ सुखी. ४८८१५. (+) शांतिनाथ स्तोत्र सह अवचूरी, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पवच्छेद सूचक 3 लकीरें-संशोधित-पंचपाठ., जैदे., (२७.५X११.५, १४४४४). ७३ शांतिजिन स्तोत्र, आ. पुण्यरत्नसूरि, सं., पद्य, आदि: अमल मंजुल मंगलमालिनं; अंतिः पुण्यरत्न त्रिकालं, श्लोक-२१. शांतिजिन स्तोत्र - अवचूरि, सं., गद्य, आदि: निर्मल मनोन्यकल्याण; अंति: चिरंजयतीत्यर्थः. 1 ४८८१६. (+) सरस्वती स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९७१ भाद्रपद कृष्ण, १ श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले. स्थल, नवासेर, प्रले. वल्लभ लहिया, पठ. मु. क्षांतिमुनिजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., दे., ( २६.५X१२, १२X४२). १. पे नाम. सरस्वती स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण सरस्वतीदेवी के १६ नाम स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: नमस्ते शारदादेवी, अंति: ब्रह्मरूपा सरस्वती, श्लोक-१०. २. पे. नाम. सरस्वती स्तोत्र, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: सरस्वतीं नमस्यामि; अंतिः करिष्यामि न संशयः, श्लोक ७. ४८८१७. बोल व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २. कुल पे, ४, दे. (२६. ५X११, १५x४१). १. पे. नाम. सीयलना अति बोल, पृ. १अ, संपूर्ण. शीयल बोल सज्झाय, मा.गु, पद्य, आदि: पेले बोले सुद्धे मने; अंतिः तो द्विप समान हो, गाथा-१६. २. पे नाम, आदिजिन सज्झाय, प्र. १-१ आ. संपूर्ण. आदिजिन जन्मवर्णन सज्झाय, मु. माधवजी ऋषि, मा.गु., पद्य, आदिः परभू सवारतसीधथी चवि, अंति: माधवजी० गाम मोझार, गाथा - १०. ३. पे नाम, शालिभद्र सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन धन्ना सालिभद्र, अंति: लबधि० ते रयणी दिह रे, गाथा - १३. ४. पे नाम, हुंडी नी सज्झाय, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. हुंडी सज्झाव, मु. मांडण ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: नेम कहे सेठ सांभलो, अंतिः मांडण० धोलो उपर कालु, गाथा-२२. ४८८१८. (४) चंदनबाला सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१२, १२X३४). गाथा - १०. २. पे. नाम. हनुमान कठीयारा संवाद, पृ. १आ, संपूर्ण. चंदनबालासती सज्झाय, मु. कुंअरविजय, मा.गु., पद्य, आदिः बालकुंआरी चंदनवाला, अंतिः कुंबर कहे करजोडि रे, गाथा - १३. ४८८१९, (+४) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२७X११, १५X४९). १. पे. नाम. मधुबिंदुनी सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मधुबिंदु सज्झाय, मु. चरणप्रमोद-शिष्य, मा.गु, पद्य, आदि: सरसति मुझरे मात दिओ; अंतिः परमपद इम मांगीई, For Private and Personal Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची हनुमान कठियारा संवाद, मा.गु., पद्य, आदि: कपी कहि सुणि रे; अंति: हणमंति होड हारी रे, गाथा-२. ४८८२०. (+) रोहिणीतप सिझाय, संपूर्ण, वि. १९०९, भाद्रपद अधिकमास कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१२, ११४३२). रोहिणीतप सज्झाय, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वंदो हियडे हरख धरेवी; अंति: रामविजय लहे सयल जगीश, गाथा-९. ४८८२१. आचार्यना ३६ गुण व धर्मबुद्धि पापबुद्धि चरित्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२७.५४११.५, १०४४४). १.पे. नाम. आचार्यना छत्रीस गुण, पृ. १अ, संपूर्ण. आचार्य ३६ गुण वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: एकविध असंयमना; अंति: गुणे करी विराज्यमान. २. पे. नाम. धर्मबुद्धिप्रधान पापबुद्धिनृप चरित्र, पृ. १आ, संपूर्ण. पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमंत्री कथानक, सं., प+ग., आदि: धर्मतः सकलमंगलावली; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रारंभ करके छोड़ दिया गया है.) ४८८२३. पार्श्वनाथ पालणु, संपूर्ण, वि. १८९३, आश्विन कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२७.५४१२.५, १५४३६). पार्श्वजिन पालj, ग. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: माता वामादे झूलावे; अंति: उत्तमविजय विलास, गाथा-१५. ४८८२४. गणहर होरा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६.५४११, १५४४८). गणधर होरा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवायइ पयत्थयत्थ; अंति: भयं होई गुरुदुक्खं, श्लोक-३२. ४८८२५. जंबूसामिनि सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२७४१२.५, १२४३५). जंबूस्वामी सज्झाय, आ. भाग्यविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७६६, आदि: सरसति स्वामीने वीनवु; अंति: धन धन जंबू स्वामीने, गाथा-१५. ४८८२६. (+) शत्रुजयकल्प व पंचमी स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, पठ. मु. ज्ञानसमुद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७.५४१०.५, १२४५२). १.पे. नाम. सि@जय कल्प, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ लघुकल्प, प्रा., पद्य, आदि: अइमुत्ते केवलिणा; अंति: लहइ सेत्तुजजत्तफलं, गाथा-२५. २.पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: पंचानंतकसुप्रपंचपरमा; अंति: सिद्धायिका त्रायिका, श्लोक-४. ४८८२७. चउवीस तीर्थंकर काल्याणिक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. अजमेर, प्रले. अमरत, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७.५४१०.५, १७४४२). २४ जिन कल्याणक तिथि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम आदिनाथजी आसाड; अंति: गया पुता हुआ सिध. ४८८२९. (+) पिस्तालीस आगम पूजा स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२८.५४११.५, १०४३४). ४५ आगम पूजा स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: नंदीसूत्र भणि नमो; अंति: नमो विध दस जास, गाथा-४५. ४८८३०. (+) औपदेशिक रेखता व झूलणा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७.५४११.५, १२४६४). १. पे. नाम. औपदेशिक रेखता, पृ. १अ, संपूर्ण. गंगलाल, पुहिं., पद्य, आदि: फकीर वडा पातस्याह; अंति: कहे गंग० गोला खाओगे, गाथा-७. २. पे. नाम. औपदेशिक झूलना, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. औपदेशिक झूलणा, मु. हेम यति, पुहिं., पद्य, आदि: ईस देह दीदार की; अंति: यति हेम०सिव जायगा रे, गाथा-१३. ४८८३१. (-) विजयसूरिसेन भास व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२६.५४११, १३४३५). १.पे. नाम. विजयसेनसूरि भास, पृ. १अ, संपूर्ण. पं. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिणेसर पाए नमी; अंति: प्रेममुनि० गुण गाय, गाथा-९. For Private and Personal Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय - कायोपरि, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि कआ पर पाटण मेकला पिख, अंतिः परणव सहज सदर उपदस रे, गाथा - ५. ४८८३३. सज्झाय व स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २, वे. (२६.५x१२, १२x४१). १. पे. नाम बीजरी सज्झाय, पृ. १अ. संपूर्ण. बीजतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बीज कहे भव्य जीवने; अंति: लब्धीविजय० विनोद रे, गाथा-८. २. पे. नाम. संखेश्वरपार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १अ १आ, संपूर्ण पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदिः ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंतिः पूरय मे वांछितं नाथ, श्लोक ५. ४८८३४. (०) नंदीसूत्राध्ययन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२७.५x११.५, १४४४१)नंदीसूत्र सज्झाय, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: जिणिंदवर वीर सासणयं, गाथा-२४. ४८८३६. (+) आध्यात्मिक सज्झाच, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित, वे., (२७.५X११.५, ११४३५). सहजानंदी सज्झाय, पं. वीरविजय, मा.गु पद्य वि. १९वी आदि सहजानंदी रे आतिमा अंतिः भवजल तरिया अनेक रे, गाथा - ११. ४८८३७. तीर्थमाला, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, ले. स्थल. पेथापुर, प्रले. मु. लक्ष्मीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. सुधी प्रसादात्., प्र.ले. श्री. (९०१) भणे गणे सांभले, जैवे. (२७.५x१२, १३४३५). तीर्थमाला स्तवन, मु. जयसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सरस्वती मात नमी कहूं, अंति: जय० गुण अभ्यास जी, गाथा-५५. ४८८३८. भाव कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२६X११, ७X४०). भावना कुलक, प्रा., पद्म, आदि: निसाविरामे परिभावयाम अंतिः निवाणसुहं लहति गाथा-२२. भावना कुलक- टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: रात्रिनइ अंति इम भाव, अंति; मोक्षनुं सुख पामई, गाथा-२२. ४८८४०. कालमांडला विधि, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, दे. (२८४११.५, ११४३२). " "" दुखडम् कालमांडला विधि, प्रा., मा.गु, गद्य, आदि: प्रथम पाटलि पडिलेहि, अंति: मिच्छामि ४८८४१. गजसुकुमाल सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२७.५X१२, १३४३३). गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: वाणी श्रीजिनराजतणी, अंति: सहीने पोहता सिवपुरी, गाथा ४२. ४८८४२. असज्झाय, सूतक व वस्तु काल विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, दे., (२७X११.५, १२X४३). १. पे. नाम. असज्झाय विचार, पृ. १अ ३अ संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: सुखिम रज आकाश की अंति: के प्रोक्तमस्ति, २. पे. नाम. सूतक विचार, पृ. ३अ, संपूर्ण. ७५ मा.गु., गद्य, आदि: पुत्र जन्म दिन १०; अंति: नहीं तो दिन १ सूतक. ३. पे. नाम. वस्तुकाल मान, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण. पकवान आदि कालमान विचार संग्रह, पुहिं, गद्य, आदि रोटी प्रहर ४ सौरो, अंति: सचित्त जांणी वर्जवी. ४८८४३. शांतिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२७१२.५, ११X३६). शांतिजिन स्तवन, पं. धीरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनशांति प्रभु, अंति: धीर० परदेसे गुण गवाय, गाथा-५, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) ४८८४४. पंचतीर्थ पूजा विधि, संपूर्ण, वि. १८९३ वैशाख शुक्ल, ८, गुरुवार, मध्यम, पृ. २, जैवे. (२७.५x१२, १०x४४). पंचतीर्थजिन पूजा विधि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम शुभ दिन जोइ, अंति: पछी भावना भावे. ४८८४५. आराधना प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९३०, चैत्र कृष्ण, ६, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., (२७.५X१२.५, ११४३३). पर्यताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण भगइ भववं, अंति: लहंति ते सासयं ठाणं, गाथा - ७१. ४८८४६. मनरेहा ढाल व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२७.५X१२, २४४५२). For Private and Personal Use Only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. मणरेहा ढाल, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण, वि. १८५०, भाद्रपद कृष्ण, २, शुक्रवार, ले.स्थल. पाली, प्रले. मु. रोडा (गुरु मु. तुलसीराम); गुपि.मु. तुलसीराम, प्र.ले.पु. सामान्य. मदनरेखासती चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: बिसन सातमो परनारीनो; अंति: राजवीया न राजपियारो, गाथा-१७९. २. पे. नाम. उत्तराध्ययन परिसह सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. परिसह सज्झाय-उत्तराध्ययन २, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: उत्तराध्ययनसूत्र माह; अंति: ए पेट भर्णरा कामीए, गाथा-११. ४८८४७. (+) गौतम सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७.५४१२.५, ११४४०). महावीरजिन सज्झाय-गौतम विलाप, मा.गु., पद्य, आदि: आधार ज हतोरे एक मुन; अंति: वरिया सिवपद सार, गाथा-१५. ४८८४८. व्याख्यान पद्धति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२८x१२, १०x४२). १. पे. नाम. व्याख्यान वांचवानी पद्धति, पृ. १अ, संपूर्ण. व्याख्यान पद्धति, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीभगवान वीतरागदेव; अंति: तत्संबंधनी वाचना. २.पे. नाम. व्याख्यानमुकवानी पद्धति, पृ. १आ, संपूर्ण. व्याख्यान शैली, मा.गु., गद्य, आदि: ते माटें एहवो जाणवो; अंति: सुख संपदा प्रते पामी. ४८८४९. जीवविचार स्तुति सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८८०, माघ शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. बीजापुर, प्रले. पं. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीपार्श्वप्रशादात्, जैदे., (२८x१२, ३४३५). औपदेशिक स्तुति, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: उठी सवेरा सामायिक; अंति: थइ शीवपद भोगी जी, गाथा-४. औपदेशिक स्तुति-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: संसारि जीव छइ प्रकार; अंति: पदनां सुख पामें. ४८८५०. प्रतिक्रमण अष्टप्रकार व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२७.५४११.५, २२४६५). प्रतिक्रमण अष्टप्रकार गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: पडिक्कमणा परियरणा; अंति: पडिक्कमणं अट्ठहा होइ, गाथा-१. प्रतिक्रमण अष्टप्रकार गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: पडिकमणा उपरि राजाना; अंति: निर्मल आत्मा करइ. ४८८५१. मुहपत्ति पडिलेहण ५० बोल व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. बीजापुरनगर, प्रले. मु. दर्शनविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पार्श्वप्रासादे., दे., (२८x१२, ९४३३). १.पे. नाम. मोहोपतीना बोल, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन के ५० बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: सूत्र अर्थ तत्त्व; अंति: त्रसकायनी रक्षा करूं. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन परिवार स्तवन, क. कमलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिनेसर सासनसार; अंति: वाचक कमल जयजयकार, गाथा-५. ४८८५२. (+) स्तोत्र व सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२८x१२, १२४३३). १. पे. नाम. संतिकरं स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: संतिकरं संतिजिणं; अंति: स लहइ सुह संपयं परमं, गाथा-१३. २.पे. नाम. श्रावकदिनकृत्य सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मन्हजिणाणं सज्झाय-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: मन्हजिणाणं आणं मिच्छ; अंति: निच्चं सुगुरूवएसेणं, गाथा-५. ४८८५३. (+) नारगी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२८x११.५, १०४३३). नारकी सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवर्धमानजिन विनवु; अंति: परम कृपाल उदार, ढाल-६, गाथा-३३. ४८८५५. सज्झाय, गीत व पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२८४८, ५४३७). १.पे. नाम. कायारूप, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ औपदेशिक सज्झाय-कायदृष्टांतगर्भित, मु. उदय ऋषि, पुहि., पद्य, आदि: कायारूपरचो मे वासी; अंति: उदय० मुगतपरिमांखेलो, गाथा-७. २. पे. नाम. एकादशीव्रत गीत, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण.. मा.गु., पद्य, आदि: मेरुसिखर सोनानो आपे; अंति: एहवी व्रत कही एकादशी, गाथा-१३. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण. कबीर, पुहिं., पद्य, आदि: एताइ क्या हाट भराणा; अंति: कबीर०पंडित क्या काजी, पद-७. ४८८५६. (+#) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७८२, फाल्गुन कृष्ण, १, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. झडाउ, प्रले. मु. प्रेमचंद; मु. हुकमचंद (गुरु मु. उदैभाण); गुपि. मु. उदैभाण (गुरु उपा. जसकुशल); उपा. जसकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १३४३०-३३). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुदचं० प्रपद्यते, श्लोक-४४. ४८८५७. (+#) समस्याकाव्य संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२८.५४११.५, २०४७८). १. पे. नाम. समस्या श्लोक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: भवस्याभूद्भाले हिमकर; अंति: शय्या शरणं शरीरं, श्लोक-१०, (वि. कालिदास व अमरपंडित सम्बद्ध श्लोक.) २. पे. नाम. समस्या प्रक्रम, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. पं. मतिसागर, सं., पद्य, आदि: उच्चैर्विग्रहधारिणाप; अंति: लोचनानामशीतिः, श्लोक-५२. ३. पे. नाम. समस्या प्रक्रम, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: कल्पादिकाले गुरुदेहद; अंति: पराजमति० सवापीश्वरं, श्लोक-४८. ४. पे. नाम. श्लोक संग्रह समस्यागर्भित, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह-समस्यागर्भित, सं., पद्य, आदि: यत्कंठे गरलं विराजति; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक २५ तक लिखा है.) ४८८५८. (+) जिनपंजर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२८.५४११.५, १०४३२). जिनपंजर स्तोत्र, आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह; अंति: श्रीकमलप्रभाख्यः, श्लोक-२५. ४८८५९. (+#) चतुर्विंशतिजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२९x१०.५, २२४१२). २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्टियंत्रगर्भित, मु. सुखनिधान, सं., पद्य, आदि: आदौ नेमिजिनं नौमि; अंति: मोक्षलक्ष्मीनिवास, श्लोक-८. ४८८६१. नववाड शीयलनी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. कल्याण लक्ष्मीचंददास पटेल; लिख. श्रावि. रुखमणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८x१२, १२४४०). ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: श्रीगुरुने चरणे नमी; अंति: तेहने जाउ भामणे, ढाल-१०,गाथा-४१. ४८८६२. सिखामणछत्रीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. गोपीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२८x११.५, १०४३८). उपदेशछत्रीसी, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सांभलजो सज्जन नरनारी; अंति: विर० वाणि मोहन वेलि, गाथा-३६. ४८८६३. स्तवन व भास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२८x१२, १२४४२). १.पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १८७५, भाद्रपद कृष्ण, १४, ले.स्थल. इडर, प्रले. पं. दोलतहस गणि; पठ. श्रावि. दुधीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. श्रीऋषभजिन प्रसादात्. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सोलमा श्रीजिनराज; अंति: पंडित रूपनो ललना, गाथा-७. २.पे. नाम. भगवती भास, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची भगवतीसूत्र-भास, संबद्ध, मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिरीवीरजिणंद वंदिजे; अंति: मुनि राज दिनदिन बाधे, गाथा-१०. ४८८६४. पौषध दोष, श्रावक कर्तव्य व जिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२८.५४११, १८४३९). १. पे. नाम. १८ पौषध दोष, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: पोसा म खुटा लाया हो; अंति: मुड बोलजे नहीं. २. पे. नाम. २० श्रावक कर्तव्य, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: सरावगजी समकतधारी होइ; अंति: सो प्रतीत कास्ता होइ. ३. पे. नाम. २४ जिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ___ पुहिं., पद्य, आदि: श्रीआदनाथं करोजी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १५ अपूर्ण तक है.) ४८८६५. (+#) हैमविभ्रम सूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२८x११.५, १०x४१). हैमविभ्रम, सं., पद्य, आदि: कस्य धातोस्तिवादीनाम; अंति: चान्यदक्षेवयममीवयम्, श्लोक-२१. हैमविभ्रमसूत्र-टीका, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. टीका प्रारंभ से नहीं है तथा कारिका १७ तक लिखी है.) ४८८६६. स्याद्वाद सझाय, संपूर्ण, वि. १९६२, ज्येष्ठ कृष्ण, ७, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., (२८x११.५, ६४२०-२२). १० बोल सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: स्यादवादमत श्रीजिनवर; अंति: सिद्धांत रतन बहुमोल, गाथा-२१. ४८८६७. थावचामुनिनो चौढालियो, संपूर्ण, वि. १९०४, चैत्र कृष्ण, ७, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. श्राव. जेसंग वर्धजेचंद शेठ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. ८५, दे., (२६.५४१०.५, १०४३४). थावच्चाकुमार चोढालीयो, मु. हर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७९५, आदि: दुवारामति नगरी वसे; अंति: कहे हर्षे०कोड वधामणा, ढाल-४, गाथा-५६. ४८८७०. कालमांडला विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. पालीताणा, प्रले. करमचंद रामजी लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२८.५४११.५, १०४३३). कालमांडला विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: इरियावहि पडीकमी पाटल; अंति: पण एज प्रमाणे समजवू. ४८८७१. (+) २० स्थानक खमासणा विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२, १४४३६). २० स्थानकतप विधि, सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं नमो अरिहंताण; अंति: तुभ्यं नमो नमः. ४८८७४. (+#) पुलाकबकुशकुशीलादि पंचभेद विवरण, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२८x११, २६४५५). पुलाकबकुशकुशीलादि पंचभेद विवरण, प्रा.,सं., गद्य, आदि: गमे तु पुलाकबकुश; अंति: तत्र जीवसमासाः. ४८८७६. अंगरेज लोगों की चरचा, संपूर्ण, वि. १९०३, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२८.५४१२.५, २०४६४). रतनचंदजी पाधरी संवाद, मु. रतनचंद ऋषि, पुहि., गद्य, वि. १९०३, आदि: अकब्बराबाद में १९०३; अंति: इनका उत्र देना चाहिए. ४८८७७. (+) सिद्धचक्रयंत्रोद्धार गाथा सह वृत्ति व कलिकुंडपार्श्वजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, ले.स्थल. कलोल, प्रले. त्रीभोवन मोहनलाल बारोट लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२८x१२, १२४४९). १. पे. नाम. सिद्धचक्रयंत्रोद्वार गाथा सह वृत्ति, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. सिरिसिरिवाल कहा-सिद्धचक्रयंत्रोद्धार गाथा, हिस्सा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: गयणमकलियायंत उद्दाह; अंति: सिझंति महंतसिद्धिओ, गाथा-१२. सिरिसिरिवाल कहा-सिद्धचक्रयंत्रोद्धार गाथा की व्याख्या, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, आदि: अत्र गगनादिसंज्ञा; अंति: माद्याः सिद्ध्यंति. २. पे. नाम. कलिकुंड पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ पार्श्वजिन स्तव-कलिकुंड, आ. मुनिचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: नमामि श्रीपार्श्व; अंति: शमयतु समग्रं भवभयम्, श्लोक-१०. ४८८७८. आगम स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२८.५४११.५, १०४३४). ___४५ आगम स्तवन, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: भवितुमि वंदो रे ए; अंति: सिवलक्ष्मी घर आणो, गाथा-१३. ४८८७९. सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. कुल पे. ३, ले.स्थल. दादरी, प्रले. मु. श्रीचंद (गुरु मु. रुघनाथ); गुपि.मु. रुघनाथ (गुरु मु. मंगलसेन); मु. मंगलसेन, प्र.ले.पु. मध्यम, दे., (२७४१२,१३४३५). १.पे. नाम. सप्तमी सीझाय, पृ. ४अ, संपूर्ण, वि. १९६०, ज्येष्ठ कृष्ण, २, बुधवार. औपदेशिक सज्झाय, मु. धनीदास, पुहि., पद्य, आदि: दगा कोई किसी से नहीं; अंति: चारसर्णा चीत धरणा, गाथा-७. २. पे. नाम. औपदेशिक गीत, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. लालचंद, पुहिं., पद्य, आदि: दया विन क्रणी दुख; अंति: लालचंद० जीनबाणी, गाथा-४. ३. पे. नाम. उपदेशी सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-कायदृष्टांत गर्भित, मु. रतनचंद, पुहिं., पद्य, आदि: तेरी फुल सी देह पलक; अंति: रतनचंदजी० अवीलाखेरे, गाथा-५. ४८८८०. सुपार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२७.५४१२.५, ११४३६). सुपार्श्वजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सुपास जिन वंदिई सुख; अंति: आनंदघन अवतार ललना, गाथा-८. ४८८८१. षट्दर्शनसमुच्चयसूत्र, अपूर्ण, वि. १५२६, वैशाख कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. १०-९(१ से ९)=१, अन्य. ग. दयाकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४११,१५४६६). षड्दर्शन समुच्चय, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: सुबुद्धिभिः, अधिकार-७, श्लोक-८७, (पू.वि. प्रारंभ के ___पत्र नहीं हैं., श्लोक ३६ अपूर्ण से है.) ४८८८२. वीरजिन पंचकल्याणक स्तवन, संपूर्ण, वि. १८८२, वैशाख कृष्ण, ११, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. विरालनगर, जैदे., (२७.५४११.५, १२४३५). महावीरजिन स्तवन-५ कल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: शासननायक शिवकरण वंदु: अंति: नामे लहे अधिक जगीस ए, ढाल-३, गाथा-५६.. ४८८८३. (#) नंदीसूत्र अध्ययन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. पाटडि, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२, १४४३५). नंदीसूत्र सज्झाय, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: जिणिंदवर वीर सासणयं, गाथा-२४. ४८८८४. (#) नवतत्त्व व जीवविचार प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१२,१६x४१). १.पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणंतभागो य सिद्धिगओ, गाथा-६०. २.पे. नाम. जीवचार प्रकरण, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. ४८८८५. (+) पैतीस बोल, संपूर्ण, वि. १९२७, फाल्गुन शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. पालीताणा, प्रले. मु. दोलतरुचि; अन्य. पं. विद्याविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७.५४१२.५, १६x४७). ३५ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: पेले बोले गति ४; अंति: २१ गुण जाणवा. ४८८८६. (+) भरेसरनी सज्झाय व प्रभु स्तुति, संपूर्ण, वि. १९२९, आषाढ़ शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. विरचंद्र प्रेमानंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७.५४१२, ७४२२). For Private and Personal Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. भरेसरनी सीज्झाय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय; अंति: जस पढउ तीहुणे सयले, गाथा-१३. २.पे. नाम. प्रभु स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु दरीसन सुख; अंति: रहो ननो किधो हजूर, गाथा-३. ४८८८७. (+#) गुणठाणा द्वार विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंशखंडित है, जैदे., (२८x१२.५, २४४५५). १४ गुणस्थानक २५ द्वार, मा.गु., गद्य, आदि: नामद्वार १ लखणद्वार; अंति: सुधी १४ लाख जोन, (वि. प्रतिलेखक ने प्रारंभ में वपुष्पिका में २५ द्वार का उल्लेख किया है, परंतु २३ द्वार में ही कृति समाप्त कर दी है.) ४८८८९. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, दे., (२७.५४११.५, २०४५०). १.पे. नाम. आदिनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: नाभिकुलगुरु कुल नभ; अंति: सिवसुख पाम्या, ढाल-२, गाथा-२४. २.पे. नाम. पाछला भवना स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. २४ जिन पूर्वभव स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: एहिज जंबूदीप वर; अंति: करू मषै करजो सामी, ढाल-२, गाथा-१६. ३.पे. नाम. २४ जिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: चौवीसुंजीणवर गावो; अंति: गावे मनवंछित फल पावे, गाथा-१२. ४. पे. नाम. चोवीसतिर्थंकरजीको स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: समरु श्रीआदिजिणंद; अंति: मोहि दरसण दीज्यो, गाथा-२५. ४८८९०. शक्रस्तवार्थ व कथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ५, जैदे., (२६४११, १३४४८). १. पे. नाम. शक्रस्तवार्थ, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. शक्रस्तव-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: नमोत्थुणमित्यादि नमो; अंति: संप्राप्तेभ्यः. २.पे. नाम. मेघकुमार कथा, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: राजगृह नगरे श्रेणिक; अंति: विमाने सुरो जातः. ३. पे. नाम. कार्तिकश्रेष्ठी कथा, पृ. २आ, संपूर्ण. कार्तिकश्रेष्ठि कथा, प्रा.,सं., गद्य, आदि: पृथिवीभूषण पूर्वं; अंति: सोहम्मे सुरवईजाओ. ४. पे. नाम. ब्रह्मद्वीपिकशाखा तापस कथा, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: अचलपुरं नामनगरं तत्र; अंति: सा ब्रह्मशाखा बभूव. ५. पे. नाम. त्रैराशिक दृष्टांत, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: अंतरंजिकापुर्यां; अंति: सूत्राणि कृतानि. ४८८९२. (+#) कायस्थिति व महादंडक सह टीका, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पंचपाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२८x११.५, १३४७६). १. पे. नाम. कायस्थिति प्रकरण सह टीका, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमंडनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जह तुह दसणरहिओ काय; अंति: अकायपयसंपयं देसु, गाथा-२४. कायस्थिति प्रकरण-टीका, आ. कुलमंडनसूरि, सं., गद्य, वि. १५वी, आदि: यथा तवदर्शन रहितः; अंति: तत्पदसंपदं. २. पे. नाम. महादंडक स्तोत्र सह टीका, पृ. १आ, संपूर्ण. महादंडक स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: भीमे भवम्मि भमिओ; अंति: सामि अणुत्तरपयं देसु, गाथा-२०, संपूर्ण. महादंडक स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: भीमे भवेजिनेंद्रा जय; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा १२ तक की टीका लिखी है.) For Private and Personal Use Only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ४८८९३. (#) लोकांतिक देव व सिद्धदंडिका स्त्तव सह अवचूरी, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पंचपाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२८.५४११.५, १५४५५). १. पे. नाम. लोकांतिकदेव स्तवन सह अवचूरि, पृ. १अ, संपूर्ण. लोकांतिकदेव स्तवन, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, आदि: थोसामि जिणे जेहि; अंति: विहं तिविहेण ते नमह, गाथा-१६. लोकांतिकदेव स्तवन-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: यैर्देवैविज्ञप्ता; अंति: रानूदान धर्मबलविरानू. २. पे. नाम. सिद्धिदंडिका सूत्र सह टीका, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. सिद्धदंडिका कोष्ठक आदि दिया गया है. सिद्धदंडिका स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जंउसहकेवलाओ अंत; अंति: दिंतु सिद्धि सुहं, गाथा-१३. सिद्धदंडिका स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: आदित्ययशोनृपप्रभृतयो; अंति: सर्वार्थ ततः सिद्धो. ४८८९४. (#) भुवनदीपक नाम ज्योतिषशास्त्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. हर्षसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१०, १९४६०). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: श्रीपद्मप्रभुसूरिभिः, श्लोक-१७०. ४८८९५. (+) स्तोत्र व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ६, जैदे., (२८.५४११.५, १६x६३). १.पे. नाम. महावीर स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.. ___ महावीरजिन स्तव, सं., पद्य, आदि: त्रिलोकीपतिं निर्जित; अंति: मम भावस्तवः स्तात्, श्लोक-११. २. पे. नाम. अनागत तीर्थकृन्नामानि, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिननाम अनागत, सं., पद्य, आदि: दुःखमामतीतायां; अंति: भद्रकृन्नामतीर्थकृत्, श्लोक-१३. ३. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह , प्रा.,सं., पद्य, आदि: भवस्याभृद्भाले हिमकर; अंति: सुरकपडिवक्खा, श्लोक-६. ४. पे. नाम. चलप्रतिमा मान श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: एकागुल भवेत्; अंति: सर्वकार्याणि साधयेत्, श्लोक-१. ५. पे. नाम. साधारणजिन नैवेद्य स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति-नैवेद्यगर्भित, सं., पद्य, आदि: घात्या घेवर लापसी; अंति: श्लोकेरसोयिप्रभो, श्लोक-१. ६. पे. नाम. महीशानपंच तीर्थ स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-महीशानपुर मंडन, सं., पद्य, आदि: श्रीनाभेयोः वृषांकः; अंति: ज्ञान विज्ञानरूपः, श्लोक-८. ४८८९७. इक्कीस बोल व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२८.५४११.५, ११४३८). १. पे. नाम. २१ बोल प्रत्युत्तर, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: मतीये प्रश्न २१ बोल; अंति: नथी एहवो लिख्यो छे. २.पे. नाम. दूहा संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. दोहा संग्रह, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), दोहा-३. ४८८९८. गौतमपृच्छावृत्ति, संपूर्ण, वि. १९८१, फाल्गुन शुक्ल, १४, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. वढवांण,काठियावाड, प्रले. जटाशंकर माधवजी उपाध्याय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४११.५, ११४४१). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाह; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि, प्रश्न-४८, गाथा-६४, (वि. प्रतिलेखक ने प्रत का नाम गौतमपृच्छावृत्ति लिखा है, परन्तु प्रत में मात्र मूल है.) ४८९००. (+) दीक्षाविधि व मंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२९.५४१२, १६४५०). १. पे. नाम. वासक्षेप मंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं नमो अरिहंताण; अंति: नमो ठः ठः स्वाहा. २. पे. नाम. दीक्षा विधि, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पुच्छा वासे चिइ वेसे; अंति: संयमं वीरियं. For Private and Personal Use Only Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४८९०१. (+) भाषासहस्रनाम व सुमतिदेवी शतक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-वचन विभक्ति संकेत-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२७४१२, १७X४९-५२). १. पे. नाम. भाषा सहस्र नाम, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. जिनसहस्रनाम स्तोत्र, जै.क. बनारसीदास, पुहि., पद्य, वि. १६९०, आदि: परमदेव प्रणाम कर; अंति: वनारसी० नाम कवित्त, शतक-१०, गाथा-१०२. २. पे. नाम. सुमतिदेवी शतक, पृ. ३आ, संपूर्ण. सुमतिदेवी के अठोत्तरशतनाम दोहरा, पुहिं., पद्य, आदि: नमो सिद्धसाधक पुरुष; अंति: यह सुबुद्धिदेवी वरनी, गाथा-६. ४८९०२. (-) पाँच इंद्रीय चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, २२४५६). ५इंद्रिय चौपाई, पुहि., पद्य, वि. १७५१, आदि: प्रथम प्रणमी जिनदेव; अंति: बसे सबको मंगल होय, ढाल-६, गाथा-१५४. ४८९०३. नवतत्व स्तुति व साधारणजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२७४१२.५, ११४३४). १. पे. नाम. नवतत्व स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-नवतत्त्वगर्भित भुजनगरमंडन, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जीवा रे जीवा पुनरे; अंति: समकितगुण चित धरजो जी, गाथा-४. २. पे. नाम. साधारणजिन थुइ, पृ. १अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति, आ. सोमतिलकसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीतीर्थराज पदपदमसे; अंति: भावदाता दधतं सीवं वा, श्लोक-१. ४८९०४. बीज स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ., (२७४१२.५, १२४३६). बीजतिथि स्तवन, मु. चतुरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७८, आदि: सरस वचनरस वरसती; अंति: तस घर लील विलास ए, ढाल-३, गाथा-१६. ४८९०५. पजुसण स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२७४१२.५, ११४३८). पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. जगवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम प्रणमु सरसति; अंति: तस जगवल्लभ गुणगाय, गाथा-१६. ४८९०६. अतीत, वर्तमान व अनागत चौवीशी स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२८x११.५, ११४३२). १.पे. नाम. अतीत चौवीशी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. अतीतचौवीसी चैत्यवंदन, मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: अतीतचोवीसी वंदीए आतम; अंति: नथी पाउ अमृत पद थाउं, गाथा-५. २.पे. नाम. वर्तमान चौवीशी स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. वर्तमानचोवीसीजिन स्तवन, मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: चिदानंद चितमां धरो; अंति: गुणीजन चित्तमा धार, गाथा-५. ३. पे. नाम. अनागत चौवीसी नाम स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. अनागत चौवीशी स्तवन, मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: सुप्रभातें प्रणमीइं; अंति: ऋद्धि कीर्ति श्रीकार, गाथा-५. ४८९०८. (-) चौवीश जिन आंतरा व पद्मप्रभु स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२७४१२.५, १२४३७). १.पे. नाम. चौवीश जिन आंतरा स्तवन, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. २४ जिन आंतरा स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: सारद सारदना सुपरे; अंति: राम० वर्यो जयकार, ढाल-४. २. पे. नाम. पद्मप्रभु स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. पद्मप्रभजिन स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पद्मप्रभु प्राणसे; अंति: विर-काज सब कीजे, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ४८९०९. (#) पार्श्वनाथ स्तवन व चौवीशजिन लंछण चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१२.५, १२४३८). १. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. कमलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पार्श्वनाथ दुःख कापो; अंति: चूरो दूरो दयालु धणी, गाथा-५. २. पे. नाम. जिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २४ जिनलंछन चैत्यवंदन, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वृषभ लंछन ऋषभदेव; अंति: लक्ष्मीरतनसूरीराय, गाथा-९. ४८९१०. प्रभात क्रीया, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२७.५४१२.५, १३४३७). पौषध विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरीयावही पडीकम; अंति: चढ्यो पोरस भणाववि. ४८९११. पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. पालीतणा, प्रले. करमचंद रामजी लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३४९.५, ८४३०). पार्श्वजिन स्तवन-गंभीरा, मु. धर्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगंभीरा पार्श्वजी; अंति: धर्मविजय गुण गाया जी, गाथा-७. ४८९१२. (#) वृद्ध वरहरि द्वादश मास, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२, १७४५५). वरसिंघऋषि बारहमासा, मा.गु., पद्य, वि. १६१२, आदि: सरसतीय भगवती गुणहती; अंति: हो वरसंघजी वंदीई, गाथा-४४. ४८९२०. गणधर स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. पेथापुर, प्रले. मु. गुलाबविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४११.५, १३४३४). २४ जिनगणधरसंख्या स्तवन, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती आपे सरस वचन; अंति: वृद्धिविजय गुणगाय, गाथा-९. ४८९२१. (#) सिद्धचक्र नमस्कार, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२, १७X४४). नवपद नमस्कार, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: नमोनंत संत प्रमोद; अंति: विश्व जयकार पावे, गाथा-२२. ४८९२२. (+) अरणिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. स्तंभ तीर्थ, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४११.५, १०४३३). अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरणिक मुनिवर चाल्या; अंति: मनवंछित फल लीधुंजी, गाथा-९. ४८९२३. गुरु सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२७.५४१२, १३४४०). मुनिशिक्षा स्वाध्याय, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, आदि: शांति सुधारस कुंडमा; अंति: सुखे चित पुरी रे, गाथा-२०. ४८९२४. (#) मानतुंग मानवती रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, २३४५२). मानतुंगमानवती रास, अनुपचंद-शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १८७०, आदि: श्रीजिनशांति जिनेसरू; अंति: (-), (पू.वि. ढाल ४ के दोहा ३ अपूर्ण तक है.) ४८९२५. अष्टमी व रोहिणी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२७४१२, १४४३४). १. पे. नाम. अष्टमी स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि स्तवन, मु. लावण्यसौभाग्य, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: पंचतिरथ प्रणमूंसदा; अंति: लावण्य० कल्याण रे, ढाल-४, गाथा-२४. २. पे. नाम. रोहिणी स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. भक्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वासव पूजित वासुपूज्य; अंति: अनुभव सुख थाय, गाथा-६. ४८९२६. (#) सज्झाय, स्तुति, स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८७०, आश्विन शुक्ल, ८, सोमवार, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ५, प्रले. मु. जिवण ऋषि; पठ. पं. प्रताप (गुरु मु. जिवण ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२७४११.५, १३४४४). १. पे. नाम. नवकार सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. गोपाल, मा.गु., पद्य, आदि: भवजल तारणो जयनवकारो; अंति: गोपाल सिवसुख पाईया, गाथा-४. २.पे. नाम. आसका जिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ४ जिनस्तुति- प्रार्थना, मा.गु., पद्य, आदि: तुझ तरन तारन भव; अंति: जाइगे पावै मोख निदान, गाथा-११. ३. पे. नाम. ऋषभ स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.. आदिजिन स्तवन, बंसी, पुहिं., पद्य, आदि: आदिनाथ परमेश्वर; अंति: पद मुक्त श्रीफल लेइ, गाथा-५. ४. पे. नाम. नेमिजिन व्याहला, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, आदि: जै जै देव अरिहंत; अंति: हिए कवल बिकसंत जुं, गाथा-६. ५. पे. नाम. शंखेश्वर पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेश्वर पासजिन; अंति: जिणचंद करमदलजी पत्तो, गाथा-५. ४८९२७. चतुर्विंशतिजिन नमस्कार, संपूर्ण, वि. १८५३, आषाढ़, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२७४११.५, १२४३७). नमस्कारचौवीसी, मु. लखमो, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: पढम जिणवर पढम जिणवर; अंति: भणिं सफल करो अवतार, गाथा-२५. ४८९२८. वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९५०, श्रावण शुक्ल, १०, शनिवार, मध्यम, पृ. ४, प्रले. बूलाखि गणपतराम क्षत्रि; पठ. श्रावि. नाथीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७४११.५, ११४३७). महावीरजिन स्तवन-५ कल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: शासननायक शिवकरण वंदु; अंति: नामे लहे अधिक जगीस ए, ढाल-३, गाथा-५६. ४८९२९. (#) चतुर्दशी स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, दे., (२७७१२, १०४३६). पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. ४८९३०. चेलनासती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२७४१२, ११४२८). चेलणासती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरे वखाणी राणी; अंति: पांमीयो भवजल पार, गाथा-७. ४८९३१. लघुशांति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२७४१२,११४२९). ___ लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांति निशांति; अंति: जैन जयति शासनम्, श्लोक-१९. ४८९३२. वीर थुई व प्रश्नव्याकरण सूत्र संबर द्वार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६५, आषाढ़ शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, ले.स्थल. रामनगर, प्रले. मु. साधुदास; पठ. सा. पांचाजी शिष्या (गुरु सा. पांचा), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२, ५४३९-४२). १. पे. नाम. वीरथुई नाम छंद असयण, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण; अंति: आगमिस्संति त्तिबेमि, गाथा-२९. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन-टबार्थ, मु. सुशील, मा.गु., गद्य, आदि: नर्कना दुख सांभली; अंति: ते सुसील कहइ छइं. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति सह टबार्थ, पृ. ४आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पंचमहव्वयसुव्वयमुलं; अंति: पहस्स वडं सग भुयं, गाथा-३. महावीरजिन स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पं. पांच म. महामोटा; अंति: त्रय गाथा संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ४८९३३. (+#) सिद्धचक्र उद्यापन विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैसे, (२७.५४११, १३x६०). सिद्धचक्र उद्यापन विधि, सं., गद्य, आदि: पंचवर्ण धान्येः सिद्; अंति: जातयो ढोकयते. ४८९३४ (०) पंदर तिथि, धन्ना शालिभद्र व बारव्रत सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३. कुल पे. ३. ले. स्थल, पाटडि, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६.५x१२, २०x४४). , १. पे. नाम. पंदर तिथी सज्झाय, पृ. १अ - ३आ, संपूर्ण, ले. स्थल. पाटडि, प्रले. पं. लक्ष्मीविजय गणि; पठ. मु. उदेविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. १५ तिथि ७ वार चरित्र, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीमद् गौडी धणी अंतिः लब्धिवि० ऋद्धि समृध ढाल- १५. २. पे. नाम, धन्ना शालीभद्र सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 7 धन्नाशालिभद्र सज्झाव, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि अजीया जोरावर करमी जे अंतिः उदय वंदे तेहने रे, गाथा- ७. ३. पे. नाम. बारव्रत सज्झाय, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. १२ व्रत सज्झाय, मु. तिलकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवाणी धन वुठडो भवि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा २ अपूर्ण तक है.) ४८९३५. (#) अर्बुदगिरि चैत्य परिपाटी व नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, ले. स्थल. स्थंभतीर्थ, पठ. श्राव, मोहणदे, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२७४११.५, १३४३५). १. पे. नाम. अर्बुदगिरी चैत्य परिपाटी स्तवन, पृ. १अ २अ संपूर्ण, प्रले. मु. माणिक्यरत्न प्र.ले.पु. सामान्य. अर्बुदगिरि चैत्यपरिपाटी स्तवन, उपा. राजरत्नविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६९७, आदि: अर्बुदगिरि रलियामणउ, अंतिः कहिइ राजरतन उवझाय, गाथा - २४. २. पे. नाम. अजुआलि पंचम स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, उपा. राजरत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नेमीसर समुद्रविजयसुत; अंति: राजरतन सुखदाता जी, गाथा-४. ४८९३६. थोय व स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) = १, कुल पे. २, प्र. वि. कुल ग्रं. २२, जैदे., (२७X११.५, ११x४०). १. पे. नाम. सिद्धाचलनी थोय, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, मा.गु, पद्य, आदि: सकल मंगल निला मुनी अंतिः सिरि चखेसरि रखवालि, गाथा-४, २. पे. नाम वीर स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. महावीर जिन स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर हमणे आवे छे मारे; अंतिः सेजे सिवसुंदरी वरी, गाथा - ९. ४८९३७. (#) एकादशी स्तवन, संपूर्ण, वि. १८५२, माघ कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. ३, अन्य. श्रावि. लेहरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७X११.५, ११×३२). मौनएकादशीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९५, आदि: जगपति नायक नेमिजिणंद, अंति: जिनविजय जयसिरी वरी, ढाल ४, गाथा ४२. ४८९३८. रत्नाकर पचीसी, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. कुल ग्रं. ३, वे. (२७४११.५, १०x३९). ८५ יי For Private and Personal Use Only रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं. पद्य वि. १४वी आदिः श्रेयः श्रियां मंगल, अंतिः श्रेयस्करं प्रार्थये श्लोक-२५. " , " ४८९३९. जादव रास, संपूर्ण वि. १८२२ आषाढ़ शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल, जालोर, प्रले. मु. विजा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७X१२, १३X३०). राजिमती रास, मु. पुण्यरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सारद पाय प्रणमी करी; अंति: पुन्यरतन० जिणंदकै, गाथा-६४. ४८९४०. (७) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६.५x१२, १७X३९). Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुदचं० प्रपद्यंते, श्लोक-४४. ४८९४२. (-#) वरकाणाजीस्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२, १०x२५). पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणा, मु. जिण, मा.गु., पद्य, आदि: वरकाणै वरमंडण पास; अंति: जिन दीजो तुम पाइ वास, गाथा-१०. ४८९४३. (#) स्तवन व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८९६, भाद्रपद कृष्ण, १०, सोमवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१०.५, १०४२८). १. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वरतीर्थ, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सेवौ पास संखेसरो मन; अंति: उदय० आप तुठो, गाथा-७. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सम्यक्दृष्टि जिवडा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम गाथा लिखी है.) ४८९४५. चतुर्विंशतिजिन गणधरादिसंख्या स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२७४१२, १०४३६). १४५२ गणधर सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकर सद्गुरुना पद; अंति: शिवसुंदरी जयकारी जी, गाथा-१०. ४८९४६. (+) चैत्यवंदन, स्तवन व स्तोत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११, १५४५३). १.पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: आदिनाथ जगन्नाथ विमला; अंति: शासनं तु भवेभवे, श्लोक-५. २. पे. नाम. साधारण स्तवनं यमक छंद, पृ. १अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन-यमकबंध, सं., पद्य, आदि: जिनसदानसदासदाभवान्; अंति: विनमामि सादरम्, श्लोक-११. ३. पे. नाम. सर्वज्ञ सुप्रभाष्टकं, पृ. १आ, संपूर्ण.. साधारणजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: सर्वज्ञ सर्वहित; अंति: गुणान् गुणिनो नयंति, श्लोक-९. ४. पे. नाम. शत्रुजयकल्प स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. शQजयतीर्थ कल्प, सं., पद्य, आदि: नंदीश्वरे तु यत्; अंति: स्पर्शनातु किमुच्यते, श्लोक-१८. ४८९४७. आठकर्म बालवबोध, संपूर्ण, वि. १८४२, कार्तिक शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. ४, प्रले.सा.सदी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, १८४४४). ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदिः (१)आठकर्मना १०८ पकृतिनो, (२)ते आठकर्म किसा पहिलो; अंति: १५८ प्रकृति हुइ. ४८९४८. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२, १४४४४). १.पे. नाम. शत्रुजय विनती स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. आदिजिन विनतिरूप स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रेय श्रीरतिगेह छो; अंति: देवचंद० मंगलवृंद ए, गाथा-३४. २. पे. नाम. शत्रुजयवीनती चैत्यपरिपाटी, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. शत्रुजयतीर्थ चैत्यपरिपाटी, उपा. देवचंद, मा.गु., पद्य, आदि: नमवि अरिहंत पयणत; अंति: (-), (पू.वि. ढाल २ की ___ गाथा ६ अपूर्ण तक है.) ४८९४९. (#) स्नात्रपूजा विधिसहित, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. वीर, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.. (२७४१२,१३४४२). Co. For Private and Personal Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ८७ स्नात्रपूजा संग्रह , भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (१)मुक्तालंकार विकार, (२)अवनीअकुस्युमाहरणं; अंति: तुह नाह मंगल पइवो. ४८९५०. अष्टमी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२७४१२, १२४३३). अष्टमीतिथि स्तवन, मु. लावण्यसौभाग्य, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: पंचतिरथ प्रणमुं सदा; अंति: तवन रच्युछे तारे रे, ढाल-४, गाथा-२४. ४८९५१. कोई एक बोल आलोयणा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, दे., (२७४१२, ११४१२-३५). आलोयणा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञाननी आशातना जघन्य; अति: पोषध भागे उपवास १. ४८९५२. हरियाली सझाय, संपूर्ण, वि. १९०५, ज्येष्ठ शुक्ल, ३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. मुमाइ, प्रले. मु. झवेरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. बाहरकोट देवसुरगछे, श्रीगोडिपार्श्वनाथ प्रसादात्., दे., (२८x१२.५, ११४३०). औपदेशिक हरियाली, मु. देवचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मनोरथ पूरणे रे; अंति: पूरज्यो संघ जगीस रे, गाथा-८. ४८९५३. दशाश्रुतस्कंध सह टबार्थ-समवाओ-३३, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-३(१ से ३)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२७.५४११.५, १८४५६). दशाश्रुतस्कंधसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. समवाओ ३३ सूत्र ५ से ३४ अपूर्ण तक है.) दशाश्रुतस्कंधसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४८९५४. कस्तुरी प्रकरण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२७४१२, ८४३३). कस्तूरी प्रकरण, मु. हेमविजय, सं., पद्य, आदि: कस्तुरीप्रकरः कृपाकम; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ११ अपूर्ण तक लिखा है., वि. श्लोक संख्या अव्यवस्थित है.) ४८९५५. (+) योगशास्त्र, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-३(१ से ३)=३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६४११, ११४३८). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., श्लोक २१ अपूर्ण से १०० अपूर्ण तक है.) ४८९५६. (+) प्रभंजना सिज्झाय व मांगलिक श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १४४३२). १.पे. नाम. प्रभंजना सिझाय, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. प्रभंजनासती सज्झाय, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: गिर वैताढ्यनें ऊपरे; अंति: मंगललीला सदाई रे, ढाल-३, गाथा-४९. २.पे. नाम. मांगलिक श्लोक संग्रह, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रा.,सं., पद्य, आदि: श्रेयस्करोज्ञानतमः; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक ६ अपूर्ण तक है.) ४८९५७. सीमंधरस्वामी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. नोतनपुर, प्रले. श्रावि. संतोषबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२, १४४३९). सीमंधरजिन स्तवन, मु. विजयदेवसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुणि सुणि सरसति; अंति: संतोषी०पामो भवपार रे, ढाल-७, गाथा-४०. ४८९५८. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्रले. मु. कुंवरजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१०.५, १३४३७). १.पे. नाम. कृष्ण बलभद्रनी जोड, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. - कृष्ण बलभद्र जोड, मा.गु., पद्य, आदि: नगरि साहमु जोयने रे; अंति: जिन बुधमान रे, ढाल-४, गाथा-६१. २. पे. नाम. कृष्ण बलभद्र रास, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: भावी भाव मिटे नहि; अंति: कृष्ण सूतां तेणे छाह, ढाल-४, गाथा-२७. ४८९५९. पंचमीवृद्धि स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, माघ शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६.५४११.५, १२४४०). For Private and Personal Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ८८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन- बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीगुरुपाय, अंति: भगति भाव प्रसंसीओ, बाल-३, गाथा-२०. ४८९६१. (+) पार्श्वनाथ नीसांणी, संपूर्ण, वि. १८३७, माघ कृष्ण, १, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल. बीनातट, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६X११, ११४३८). पार्श्वजिन निसाणी - घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: सुखसंपत्तिदायक सुरनर; अंति: जिनहरष० कहंदा है, www.kobatirth.org गाथा-२७. ४८९६२. (+) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-वचन विभक्ति संकेत-क्रियापद संकेत- अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, जैदे. (२६.५४१२, १०X३० ). " (+) भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि, अंतिः समुपैति लक्ष्मीः, श्लोक-४४. ४८९६३. सज्झाय व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९४०, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ९, पठ. मु. मंगलसेन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. दे. (२७.५४११.५, १७५५१). ! י १. पे. नाम. चेलणा महासती सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण. चेलणासती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर वांदी वलतां थका; अंति: समयसुंदर० भ पार, गाथा- ७. २. पे नाम. भूलो मन भमरा पद, पृ. १अ. संपूर्ण. औपदेशिक पद, महमद, मा.गु., पद्य, आदि: भुल मन भमरा कांइ, अंति: लेखें साहेब हाथ, गाथा- ९. ३. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. ४. पे. नाम. नेमिराजिमती पद, पृ. १आ, संपूर्ण. जिनचंद्र, पुहिं., पद्य, आदि: जय बोलो पास जिनेसर, अंति: पारस जैसी छाया सुरतर, गाथा- ७. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मराजिमती पद, मु. चंद, पुहिं., पद्य, आदिः यादव मन मेरो हर लीयो; अंतिः चंद कहे मन हरखियो रे, गाथा - ५. ५. पे. नाम. धर्मजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पंडित, खीमाविजय, पुहिं., पद्म, आदि: इक सुणली नाथ अरज, अंति: अनुपम कीरत जग तेरी, गाथा-६. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: सांवरो सुखदाई जाकी; अंति: प्रभुजीमें लगन लगाई, गाथा- ३. ७. पे. नाम. प्रतिक्रमण सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. संबद्ध, मु. धर्मसिंह मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: करि पडिकमणो भावसुः अंतिः ए निदान लाल है, गाथा-४. ८. पे. नाम. कर्मपच्चीसी, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. हर्ष ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: देव दानव तिर्थंकर, अंति: नमो कर्म महाराजा रे, गाथा - १८. मु. .पे. नाम. श्रावक करणी सिझाय, प्र. २अ २आ, संपूर्ण. आवककरणी सझाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदिः श्रावक तुं ऊठी परभात; अंतिः करणी दुखहरणी छे एह, गाथा - २२. ४८९६४. धरणेंद्रपद्यावती पध्यत, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, बे. (२६.५४११.५, १२४२९). पार्श्वधरणेंद्रपद्यावती स्तोत्र, सं., गद्य, आदिः ॐ ह्रीं श्रीं तं नमः अंतिः १२३ मां संतान होए. ४८९६५. यंत्र व नंद्यावर्त्त देवता पूजन विधि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., ( २६.५x११.५, १४४६). १. पे नाम, नंद्यावर्त्त यंत्र, पृ. १अ संपूर्ण जैनयंत्र संग्रह, मा.गु, यं. आदिः (-); अंति: (-). " २. पे. नाम. नंद्यावर्त्त पूजन विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. नंद्यावर्तपूजा विधि, सं., गद्य, आदि: नंद्यावर्त्तोपरि, अंतिः (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, द्वितीय दिन की पूजा-विधि तक लिखा है.) ४८९६६. चैत्यवंदन व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे १४, जैवे. (२७४१२, १०x३९). For Private and Personal Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ १.पे. नाम. नवपदपूजा काव्य, पृ. १अ, संपूर्ण. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा.,मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: उप्पन्नसन्नाणमहोमयाण; अंति: तीर्थंकरा मोक्ष कामे, गाथा-५. २.पे. नाम. दीवाली देववंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: वीरजिनवर चरम चोमास; अंति: कहे मलिया नृपति अढार. ३. पे. नाम. महावीरजिन चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन चैत्यवंदन-दीपावलिपर्व, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: देव मिलिया देव; अंति: नयविमल दिहाडो तेह, गाथा-३. ४. पे. नाम. महावीरजिन चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धारथ नृपकुल; अंति: कहे नय तेह गुणखाण, गाथा-१. ५. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मनोहर मुरती महावीर; अंति: जिनशासनमां जयकार करे, गाथा-४. ६. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जय जय भवि हितकर वीर; अंति: गुण पुरो वांछित आस, गाथा-४. ७. पे. नाम. दीवाली पर्व स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीमहावीर मनहरु; अंति: ज्ञानविमले कहिई, गाथा-९. ८. पे. नाम. गौतमस्वामी चैत्यवंदन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: नमो गणधर नमो गणधर; अंति: जेहना नाम थकी सुखशात, गाथा-३. ९.पे. नाम. दीपावली चैत्यवंदन, पृ. ३अ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: इंद्रभूति पहिलो भणुं; अंति: नित्य नवनिधि थाय, गाथा-३. १०. पे. नाम. गौतम गणधर चैत्यवंदन, पृ. ३अ, संपूर्ण. गौतमगणधर चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जीव के रो संदेह छे; अंति: नय कहे० होय जय जयकार, गाथा-३. ११. पे. नाम. गौतमस्वामी स्तुति, पृ. ३अ, संपूर्ण. ___ आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: इंद्रभुति अनोपम गुण; अंति: नित नित मंगलमालिका, गाथा-४. १२. पे. नाम. गौतम गणधर स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण. गौतमगणधर स्तुति, आ. ज्ञानसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीइंद्रभुतिंगणवृद; अंति: ज्ञानसुरेवरे दायकाः, श्लोक-४. १३. पे. नाम. गौतम गणधर स्तवन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: वीर मधुरी वाणी भाखे; अंति: तेहने नय करे प्रणाम, गाथा-७. १४. पे. नाम. दीपावली पर्व चैत्यवंदन, पृ. ४अ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: दुःखहरणी दीपालिका रे; अंति: ज्ञानविमल० गुण खाण, गाथा-९. ४८९६७. अट्ठाणुं बोल अल्पबहुत्व, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२७.५४११.५, ८१४९-२२). ९८ बोल यंत्र, मा.गु., को., आदि: गर्भज मनुष्य सर्वथी; अंति: सर्वजीवा विशेषाधिकार. For Private and Personal Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ९० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४८९६८. .(+) भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., ( २६११.५, ११x४१). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्म, आदि: भगतामर प्रणति मोलि, अंतिः समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भक्तिवंत अमर कहेता; अंतिः श्रद्धया वा श्रियते. ४८९६९. स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १६३८, कार्तिक शुक्ल, १२, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. मु. वीरदास ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४११.५, १५४५८). १. पे. नाम. शक्रस्तव, पृ. १अ - २आ, संपूर्ण. शक्रस्तव अहंनामसहस्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि सं., प+ग, आदिः ॐ नमोर्हते परमात्म; अंतिः महासुखाय स्यादिति २. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तव, पृ. २आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तव - चतुःषष्टियंत्रगर्भित. मु. जयतिलकसूरि-शिष्य, सं., पद्य, आदि आदौ नेमिजिनं नौमि, अंतिः लक्ष्मीर्निवासम्, श्लोक-८. " www.kobatirth.org ४८९७०. अभिधान चिंतामणी शेषनाममाला, संपूर्ण, वि. १७५७, चैत्र शुक्ल, २, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. मु. मनहारजी (गुरु मु. खेमजी ऋषि); अन्य. मु. मनोहरजी ऋषि (गुरु मु. दामाजी ऋषि); मु. खेमजी ऋषि (गुरु मु. जेठा ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२७१२, १७४४६). अभिधानचिंतामणि नाममाला-शिलोंछ, संबद्ध, आ. जिनदेवसूरि, सं., पद्य, वि. १४३३, आदि अहं बीजं नमस्कृत्य अंतिः जिनदेव मुनीवर कांड-६, लोक- १३९. 1 ४८९७१. पाखी पडिकमण विधि, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल राजनगर, वे. (२६.५४११.५, ११४३६). पाक्षिक प्रतिक्रमण विधि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम वंदित्तु कह्या; अंति: काउसग्ग चारे लोगसनो. ४८९७२. नवग्रह दशदिक्पाल पूजन कोष्टक, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४-३ (१ से ३) = १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., अन्य. पं. चतुरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६.५X११, ९x४२). नवग्रह दशदिक्पाल पूजन कोष्टक, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-), संपूर्ण. ४८९७३. सज्झाय व दुहा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, वे. (२६.५X११.५, १४-१६४३४) " १. पे. नाम. कर्म सज्झाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: रे जीव भ्रमवश तु; अंति: निरमल भज भगवंता रे, गाथा - १६. २. पे. नाम. दुहा संग्रह, पू. १आ, संपूर्ण दुहा संग्रह, प्रा. मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-): अंति: (-). ४८९७४. पोषह विधि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५X११, १३x४६). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ! पौषध विधि, संबद्ध, प्रा. मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावही अंतिः पछे देव वांदवा. ४८९७५. अनुत्तरोववाइय दसा सूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४-१ (१) - ३, प्र. वि. कुल ग्रं. १९२, जैदे., (२७४११, १५×५२-६०). अनुत्तरीपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. पग, आदि (-) अंति: अयमठ्ठे पण्णत्ते, अध्याय-३३, (पू. वि. वर्ग ३ अध्ययन १ अपूर्ण से है.) ४८९७६. (+) साधु पाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक ३ की जगह ६ लिखा है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२७.५X११, १२X३३). आवकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु, गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि अ अंतिः मिच्छामि दुक्कडम् ४८९७७. सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५x११.५, १०x३२). . सिद्धचक्र स्तवन, मु. अमरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समरी सारवमाव प्रणमी, अंतिः अमर नमे लली ललीजी, गाथा-८. ४८९७८. सोहम गणधर गुहली भास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., ( २६.५x११.५, १०X३१). For Private and Personal Use Only Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ सुधर्मास्वामी भास, रा., पद्य, आदि: कठडारा आया गुरुजी, अति: जिनसासन बहुमान, गाथा- ७. ४८९७९. (+) अष्टमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. खांतिसागर, लिख. पं. दयाविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२७X११.५, १०X३१). अष्टमीतिथि स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हां रे माहरे ठांम, अंति: कांति सुख पामे घणु, २. पे नाम. आत्मद्रव्यनुं ओलखाण, पृ. १आ, संपूर्ण. आत्मद्रव्य वर्णन, मा.गु, गद्य, आदि: अनंत नये अनेक अंतिः सकल सिद्धता करे. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ढाल - २, गाथा - २४. ४८९८१. संभवजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२७१२.५, १३x४१). संभवजिन स्तवन, मु. नयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: साहिब सांभले रे संभव, अंति: सुणज्यो देवाधिदेवा, गाथा- ७. ४८९८३. आत्मानी आत्मता व आत्मद्रव्य ओलखाण, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २. ले. स्थल, अगस्तपुर, प्र.पं. खुशालविजय (गुरु मु. राजविजय); अन्य. मु. राजविजय (गुरु पंडित. चतुरविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५५१२, १५X११-२९). १. पे. नाम. आत्मानी आत्मता, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. आत्मा की आत्मता, मा.गु., गद्य, आदि: असंख्यातप्रदेशी अनंत, अंतिः परणम्यो सिद्धिता करे. ४८९८५. कृष्ण पक्षी शुक्ल पक्षी सझाय, संपूर्ण, वि. १७३९, भाद्रपद कृष्ण, ७, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल राजनगर, प्रले. ग. कनकसोम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२६४९, ३९४१८). विजयसेविजयासेठाणी सज्झाय, आ. हर्षकीर्तिसूरि, मा.गु, पद्य, आदि: भरतखेत्रि रे, अंतिः सूरीज जंपे तास पसाय, ढाल- ३, गाथा - २५. ४८९८६. थुलिभद्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९६०, माघ कृष्ण, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. पेथापुर, प्रले. जेठालाल चुनीलाल भावसार, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५X१२, ११४३४). स्थूलभद्र सज्झाय, मु. ऋषभ, मा.गु, पद्य, आदि: श्रीधुलिभद्र मुनिगुण अंतिः ऋषभ कहे० वंदना जो, गाथा १७. ४८९८७. ऋषभजिन विनती, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे. (२६.५x११.५, १३४३९). आदिजिन स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदिः सुण जिनवर शेत्रुंजा; अंतिः जिनहर्ष० परमानंद, गाथा २०. ४८९८८. पार्श्वपुराण भाषा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. वीरपुर, जैदे., (२७X१२.५, १२X३७). पार्श्वपुराण-प्रतिमापूजन वर्णन, पुहिं., पद्य, आदि प्रतिमा धातु पाषाण, अंति: धरी राय दृढ प्रीत, गाथा २२. ४८९८९. शलाकापुरुष नाम व चवद राजलोक नाम, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२७X१०, ११x४२). " १. पे. नाम. शलाकापुरुष नाम, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. त्रिषष्टिशलाकापुरुषविवरण व नाम, मा.गु., गद्य, आदि: तीर्थंकर ऋषभनाथ के अंतिः कानावाकी व्योरो २. पे. नाम, चौद राजलोक नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. १४ राजलोक नाम, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४८९९१. क्षमाछत्तीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., ( २६.५X११.५, १४X३४). ९१ क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदिः आदर जीव क्षमागुण अंतिः चढविह संघ जगीस जी, For Private and Personal Use Only गाथा - ३६. ४८९९२. ब्रह्मचर्यनी नववाड, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. ग. खिमासागर पं., प्र.ले.पु. सामान्य, जै. (२६.५x१०.५, १३x४४). ९ वाड सज्झाय, क. धर्महंस, मा.गु., पद्य, आदि आदि आदि जिणेसर नमुं; अंति: धर्महंस० मंगलमाल, ढाल-९, गाथा-५६. ४८९९३, (+) सज्झाय संग्रह व स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११-९ (१ से ९)= २, कुल पे ३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - संशोधित., जैदे., (२५X११.५, १४४५४). १. पे. नाम. मृगापुत्र सज्झाय, पृ. १०अ १०आ, संपूर्ण. Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. खेम, मा.गु., पद्य, आदि: पुर सुग्रीव सोहावणौ; अंति: खेमो० कल्याण हो, गाथा-१२. २.पे. नाम. सुभद्रासती सज्झाय, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण. सुभद्रासती सज्झाय-सीयल, मु. सिंघो, मा.गु., पद्य, आदि: मुनीवर सोझै ईरया; अंति: सिंघो रहैसो नारै ठाम, गाथा-२२. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ११आ, संपूर्ण. मु. रामजी ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२८, आदि: श्रीसरसती सुप्रसाया; अंति: रामरिषी सुजगीसैरे, गाथा-११. ४८९९४. तप फल, संपूर्ण, वि. १९५३, कार्तिक कृष्ण, १३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. नागोर, प्रले. अमरदास जोशी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७.५४१२.५, २७४२९). उपवास फल, मा.गु., गद्य, आदि: १ उपवास करै तो एकनौज; अंति: १५ सहस ६२५नौ फल हुवै. ४८९९५. (+) स्वाध्याय स्तुति व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, ले.स्थल. अजिमगंज, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १५४४२). १. पे. नाम. साधुपद स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. साधुपद सज्झाय, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: साधक साधज्यो रे निज; अंति: नमिये ते मुनिराज, गाथा-१३. २.पे. नाम. मुनिगुण स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ग. देवचंद्र, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: जगतमें सदा सुखी मुनि, अंति: जाई निज संपति महाराज, गाथा-४. ३. पे. नाम. साधु स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन जे मुनिवर संजम; अंति: गणी भाषे देवचंदरे, गाथा-११. ४. पे. नाम. श्रीमंधरस्वामि स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तुति, मु. देवचंद्रजी, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु नाथ तूं त्रिहु; अंति: नित्यात्म रस सुख पीन, गाथा-२१. ४८९९६. ज्ञानपंचमि सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६.५४११.५, ११४३१). ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: अनंतसिद्धने करूं; अंति: अमृतपदना थायो धणी, गाथा-११. ४८९९७. जंबुस्वामी दीक्षा उछव ढाल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. सीधपुर, प्रले. श्राव. वांछारतनजी दोशी; अन्य. श्राव. लखमीचंद रायचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, १४४५३). जंबूस्वामी सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: संजम लेवा सांचर्या; अंति: नयविमल० धन अवतार, गाथा-१५. ४८९९८. (+) पद व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-७(१ से ७)=२, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १३४३२). १. पे. नाम. गिरनार नमस्कार, पृ. ८अ, संपूर्ण. गिरनारतीर्थनमस्कार, म. उत्तम, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगिरनार सोहामणो; अंति: उत्तम०आतम गुण कल्याण, गाथा-३. २. पे. नाम. संखेसर पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ८अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, वि. १८६६, आदि: श्रीसंखेसर पासजी रे; अंति: साधु क्षमाकल्याण, गाथा-७. ३. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन-गिरनारमंडन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, वि. १८६६, आदि: श्रीनेमीश्वर वंदीयै; अंति: अंबिका सानिध करी, गाथा-१३. ४. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. ९अ-९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, वि. १८६६, आदि: अविकल कुल इक्ष्वाकु; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १० अपूर्ण तक है.) ४८९९९. पार्श्वनाथजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२७४११.५, ८४३३). For Private and Personal Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. अमृतरंग, मा.गु., पद्य, आदि: साहिबा पास जिणंदने; अंति: अमृतरंग० अरविंद हो, गाथा-१०, (वि. प्रतिलेखक ने एक गाथा को दो गाथा गिना है.) ४९०००. शकुन प्रदीप, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६.५४११.५, ११४३३). शकुन प्रदीप-पद्यानुवाद, श्राव. गोरधनदास नंदलाल, मा.गु., पद्य, वि. १७६२, आदि: स्वस्ति श्रीजिनराज; अंति: गोरधनदास लेह सुधार, गाथा-१२०. ४९००१. (+) पाखी प्रतिक्रमण विधि व स्थापना पडिलेहण बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. दर्शनविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१२,११४३३). १. पे. नाम. पखीनी विधि, प्र. १अ-१आ, संपूर्ण. पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: देवसीयं आलोयं पडीकंत; अंति: पखी खामणा केहवा. २. पे. नाम. थापनाना बोल, पृ. १आ, संपूर्ण. स्थापनाचार्यजीपडिलेहन १३ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: १ सुद्ध स्वरुपनो धार; अंति: धरे१२ कायगुप्ती धरे. ४९००२. (+) तीर्थमाला, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पारंभ में राइपडिकमणा स्तुति का उल्लेख है, किंतु कृति सकलतीर्थ नमस्कार है., संशोधित., दे., (२७.५४१२, १३४३२). __सकलतीर्थ चैत्यवंदन, मा.गु., गद्य, आदि: सिद्धाचलने विषे कांक; अंति: माहरो नमस्कार होजो. ४९००३. (+#) एकशत अठावन प्रकृति स्थितिनी भास, संपूर्ण, वि. १७६०, पौष, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. धोलका, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११, १६x४१). १५८ प्रकृति स्थिति भास, मा.गु., पद्य, आदि: आदिस्वर त्रिसलासुत; अंति: जिम छुटि सर्व कर्म, ढाल-७, गाथा-६५. ४९००४. नवकार रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. श्रीऋषभदेवजी., जैदे., (२७४१२.५, १५४३१). नमस्कार महामंत्र रास, मागु., पद्य, आदि: पहिलुजी लीजइ श्रीअरि; अंति: भणु नवकारनो के रास, गाथा-२२. ४९००५. आचारांगसूत्रपीठिका बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२६.५४११, १०४३७). आचारांगसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रणम्य श्रीजिनाधीश, (२)श्रीजिनशासनी द्वादशा; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ४९००६. सिद्धाचल स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४११.५, १२४३५). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चालो चालो ने विमलगिर; अंति: पामे सुख श्रीकार रे, गाथा-७. ४९००७. महावीरजिन वसीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६.५४११.५, ११४३४). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: दरीसण आव्या हो देवान; अंति: खपावी गया दोय मोक्ष, गाथा-८. २.पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. ग. ऋद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चितडु संदेशो मोकले; अंति: रीद्धि कहे नित्यमेव, गाथा-७. ४९००८. मौनएकादशी थोय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४११.५, ११४४०). मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम बोले ग्रंथ; अंति: संघने विघन निवारी, गाथा-४. ४९००९. अष्टमी स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०.५, १२४३६). अष्टमीतिथि स्तुति, उपा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टमी जिन चंद्रप्रभ; अंति: अष्टमी पोसहसार, गाथा-४. ४९०११. महानिशीथ पंचमाध्यन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, २०४५५). महानिशीथसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ४९०१२. चौवीस जिन विचारसार टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, जैदे., (२६४१०.५, १४४५४). २४ जिन विचारसार गाथा-टीका, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: योगी तु पृथगधुना, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., __'कथंभूतः सन् पश्य' से है.) ४९०१३. अष्टमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १८७५, आषाढ़ कृष्ण, १३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६.५४१२, १३४४०). For Private and Personal Use Only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ९४ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अष्टमीतिथि स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हां रे मारे ठाम धर्म, अंतिः कांति सुख पावे घणो, ढाल - २, गाथा - २४. ४९०१५. सिद्ध नमस्कार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२७१२, १२४३१). सिद्धपद स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: जगतभूषण विगत दूषण, अंति: नमो सिद्ध निरंजनं, गाथा-१४. ४९०१६. नवपद हली, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, प्रले. श्रावि. फुली बाइ अन्य मु. दोलतविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे., (२७४१२, १९३०). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नवपद गहुली, मु. शुभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आतमरामी मुनिराजीया, अंति: संपदा शुभविजय सुखकार, गाथा - १०. ४९०१७ (+) चतुर्विंशति जिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें. जैवे. (२५.५x११.५, १५X३८). चतुर्विंशतिजिन स्तुति, मु. सागरचंद्र, सं., पद्य, आदि: जगति जडिमभाजि व्यंजि; अंतिः तां क्रियां गुप्तकैः, श्लोक-२५. ४९०१८. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, जैवे. (२६४११.५, ११४३७). " १. पे. नाम. पांच महाव्रत सज्झाय, पृ. १अ - २आ, संपूर्ण. ५ महाव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदिः सकल मनोरथ पूर्वे रे, अंतिः भर्णे ते सुख लहैं, डाल-५. २. पे. नाम रात्रिभोजन छड्डाव्रत सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल धरममां सारज कहिइ; अंति: कांतिविजय० अवतारो रे, गाथा- ६. ३. पे. नाम. सुंदरी तप सज्झाय, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण. सुंदरी की आयंबिल सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती सामिणि करो, अंति: कांतिविजय० शिरनामी, गाथा-८. ४९०१९ लघुशांति, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, प्रले. पं. मुक्तिविमल, पठ. श्राव. हरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२६.५x१२, ११X३६). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांतिं शांतिनिशांत, अंति: जैन जयति शासनम्, श्लोक-१९. ४९०२०. लघुशांति, संपूर्ण, वि. १८३२ ज्येष्ठ शुक्ल, ३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे. (२६.५४१२, १२४३२). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांतिं शांतिनिशांतं; अंति: जैनं जयति शासनम्, श्लोक-१९. ४९०२१. तपागच्छीय पट्टावली, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैवे. (२६४११.५, २०४४२). 1 " पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., सं., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानस्य, अंति: वर्त्तमान छे. (२६.५X११, १३x४०). १. पे. नाम. देह सज्झाय, पृ. १-१ आ. संपूर्ण ४९०२२. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२६x१२, २१x४६). १. पे नाम. उपदेशी सज्झाय, पृ. १अ २अ संपूर्ण. , औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: इम सद्गुरु जीवने अंतिः सीवरमणीसुं वरणारे, गाथा-४७. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: चेतो रे भव प्राणीया; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ९ तक लिखा है.) ४९०२३. (+) देह सज्झाय व गाथा संग्रह, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें जैदे., " देहस्वरूप कुलक, प्रा., पद्य, आदिः नमिकण जिणं वीरं किंच, अंतिः ए भवियजण विवोहणङ्काए, गाथा २५, (वि. प्रतिलेखक ने गाथा क्रमांक २३ के बाद २५ लिखा है.) For Private and Personal Use Only २. पे. नाम गाथा संग्रह. पू. १आ, संपूर्ण. जैनगाथा संग्रह, प्रा. मा.गु. सं., पद्य, आदि: पढमो बारस मित्तो बीओ, अंतिः पंच दस विभूसिया गाहा, गाथा- १. ४९०२६. लघुशांति, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., ( २६११, १४४४२). Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशात; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७.. ४९०२७. (2) लघुशांति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. नायकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२, १२४३०). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: जैन जयति शासनम्, श्लोक-१९. ४९०२८. वसुधारा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२६.५४११.५, १६४५०). वसुधारा वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: भवति निस्संदेह. , ४९०२९. (+) शांतिचक्र पूजा व औषधादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२, १२-१४४३६-४७). १.पे. नाम. शांतिचक्र पूजा, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण, वि. १८७८, ?, पौष कृष्ण, ११, ले.स्थल. पाटोदी, प्रले. पंडित. देवकरण, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. प्रतिलेखन वर्ष में मात्र ७८ लिखा हुआ है. सं., गद्य, आदि: अर्हद्वीजमनाहतंच; अंति: सर्व कार्यविधायिका. २.पे. नाम. सांस कीगोली, पृ. ३आ, संपूर्ण, पे.वि. इस कृति का शेष अंश पत्रांक ३अपर लिखा गया है. ___ औषधवैद्यक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. अष्टगंध नाम, पृ. ३आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति पत्रांक '३अ' पर है. मा.गु., गद्य, आदि: केसर१, कपूर२, चंदन३; अंति: अगरु७, गोहूला८. ४९०३०. (+) नवतत्व, संपूर्ण, वि. १६५१, माघ शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. वर्द्धमान (गुरु ग. अमृतगणि ऋषि); गुपि.ग. अमृतगणि ऋषि; पठ. देमाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११, ११४४१). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बुद्धबोहिक्कणिक्काय, गाथा-४५. ४९०३१. एकाक्षर नाममाला, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२६४११.५, १५४४१). एकाक्षर नाममाला, मु. सुधाकलश मुनि, आ. हिरण्याचार्य, सं., पद्य, आदि: श्रीवर्धमानमानम्य: अंति: नाममालिकामतनोत्, श्लोक-५०. ४९०३२. (+) अर्हन्नामसहस्रमष्टोत्तरं, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१०.५, ११४४४). अर्हन्नामसहस्र समुच्चय, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी-१३वी, आदि: अर्हन्नामापि कर्ण; अंति: जीयात्छ्रीजिननायकः, प्रकाश-१०. ४९०३३. (#) नवतत्त्व, संपूर्ण, वि. १६५१, माघ शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. वर्द्धमान (गुरु ग. अमृतगणि ऋषि); गुपि.ग. अमृतगणि ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, ११४४०). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणागयद्धा अणतगुणा, गाथा-४४. ४९०३५. बहत्तर कला नाम सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४१२, ५४४४). ७२ कला नाम-पुरुष, प्रा., गद्य, आदि: तंजहा लेहं१ गणियं२; अंति: निव्वीवं७१ सउणसयमिति. ७२ कला नाम-पुरुष-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते जिम छइ लखवानी कला; अंति: शकुनशास्त्र जाणइ. ४९०३६. वीस विहरमानजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४११.५, ९४३१). विहरमान २० जिन स्तवन, मु. लीबो ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पेहला सामी सीमंधर; अंति: सारो भविकना काज, (वि. प्रतिलेखक ने गाथा संख्या नहीं लिखी है.) ४९०३७. (+) चतुर्विंशतिजिन नमस्कार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५७-१८५९, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. बालोतरा, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, ४४३५). सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: वंदे श्रीज्ञातनंदनम्, श्लोक-२९, (वि. १८५७, पौष शुक्ल, ९, ले.स्थल. बालोतरा) For Private and Personal Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सकलार्हत् स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सकल क० सघला जे अर्हत; अंति: वीरदेवनै वांदु छु, (वि. १८५९, चैत्र शुक्ल, १४, मंगलवार, प्रले. मु. मयासागर; मु. रयणसागर (गुरु प. सुमतिसागर); गुपि. प. सुमतिसागर, प्र.ले.पु. मध्यम) ४९०३९. श्रीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२६.५४१२, ११४३४). सीमंधरजिनवीनती स्तवन, मु. विजयदेवसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुण सुण सरसती भगवती, अंति: संतोषि० पायो रे, ढाल-७, गाथा-३८. ४९०४०. संभवजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२७४११.५, १०४३३). संभवजिन स्तवन, मु. न्याय, मा.गु., पद्य, आदि: साहिब सांभलो रेसंभव; अंति: नय विनवे० देवाधिदेवा, गाथा-१४. ४९०४१. (+) विचारषड्भ्रिंशिका व लघुशांति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१०.५, १२४४१). १. पे. नाम. विचारषड्विंशिका, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: (-); अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-३८, (पू.वि. गाथा ३४ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. लघुशांति, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. ४९०४३. अष्टमी स्तवन व पंचपरमेष्ठी स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२७.५४११.५, १०४४१). १. पे. नाम. अष्टमी स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. __ अष्टमीतिथि स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हां रे माहरे ठाम; अंति: कांति सुख पामे घणु, ढाल२, गाथा-२४. २. पे. नाम. पंचपरमेष्ठी स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. ___ कल्लाणकंद स्तुति, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: कल्याणकंदं पढम; अंति: सया अम्ह सया पसत्था, गाथा-४. ४९०४४. चार शरणा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६.५४११.५, १०४३०). ४ शरणा, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: मुझने च्यार सरणां; अंति: पामीश भवनो पारो जी, अध्याय-४, गाथा-१२. ४९०४५. समाधिमरण विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६.५४११.५, १३४४४). समाधि मरण विधि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम वस्त्र साधविने; अंति: त्रण वार वोसरे वोसरे. ४९०४६. गोडीपार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२८x१२, ११४५०). पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: नाथजी मने मेहेर करी; अंति: स्वामी हीत करो रे, गाथा-१२. ४९०४७. श्रावकविधि रासु, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११, २२४६७). श्रावकविधि रास, मु. पद्मानंदसूरि शिष्य, अप., पद्य, वि. १३७१, आदि: पाय पउम पणमेवि चउवीस; अंति: तिहुयणे एह जिणसासणं, गाथा-४९. ४९०४८. (+) भगवतीसूत्र आलापक संग्रह सह टीका व अवचूरि, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२६४११, १९४६२). भगवतीसूत्र-आलापक संग्रह *, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: सण्णी नेरइएसु उरभ; अंति: (-), (पू.वि. शतक १२ के उद्देशक २ तक है.) भगवतीसूत्र-आलापक संग्रह-टीका, सं., गद्य, आदि: येस सम्यक्त्वा; अंति: (-). भगवतीसूत्र-आलापक संग्रह-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: सदा सर्वदा समियति; अंति: (-). ४९०४९. (+) सर्वजिन साधारण स्तवन, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. मु. गुणविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. वचन विभक्ति संकेत-संधि सूचक चिह्न-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२६४१०.५, ११४३२). साधारणजिन स्तव, आ. जयानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: देवाः प्रभो य; अंति: भावं जयानंदमयप्रदेया, श्लोक-९. For Private and Personal Use Only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ " ४९०५०. जिनसहस्त्रनाम स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैये. (२५.५४११.५, १५४४५)शक्रस्तव - अहंामसहस्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., प+ग, आदिः ॐ नमोर्हते परमात्म; अंतिः प्रपेदे संपदां पदं ४९०५१. (+) समसंस्कृत स्तव सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैवे. (२५.५x११.५, ७४३१-३४). महावीर जिन स्तव- समसंस्कृत, आ. जिनवल्लभसूरि प्रा. सं., पद्य, आदि भावारिवारणनिवारणदारु, अंतिः दृष्टिं दयालो मयि, श्लोक - ३०, ग्रं. ३५७. महावीरजिन स्तवन-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अंतरंग वैरि हस्ती, अंति: निर्मलं दयावान्. 1 " ४९०५२, (+) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८४३, ज्येष्ठ शुक्ल, १२. गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ३ ले स्थल कुंदवाग्राम, प्रले. श्राव, भगवान, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जै. (२५.५x१०.५, १३४४७). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि, अंतिः समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४. ४९०५३. जीवविचार प्रकरण, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२५x११.५, १०X३२-३८). , जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण, अंति: रूद्दाउ सुय समुद्दाउ, गाथा-५१. ४९०५४. विजयसेनसूरीश्वर गीत, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे. (२७४११, २५४१५). 2 विजयसेनसूरि गीत, मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विजयसेनसूरि सरू, अंति: प्रेमवि० गुण गाय ललना, गाथा- ६. ४९०५५. (#) पार्श्वनाथ स्तवन सह अवचूरि व आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. पंचपाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२५.५४११.५ १२x४२). १. पे. नाम. स्थंभन पार्श्वनाथ स्तवन सह अवचूरि, पृ. १अ, संपूर्ण. स्तंभनक पार्श्वनाथ स्तवन, मु. जयसागर, सं., पद्य, आदि: योगात्मनां यं परं; अंति: यद्धानकस्य प्रियं, श्लोक - ५. पार्श्वजिन स्तवन- अवचूरि, मु. जयसागर सं., गद्य, आदिः योगो ज्ञानदर्शनचारित अंति: (-), (वि. अंतिम वाक्य कटा हुआ है.) २. पे. नाम. प्रथमजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण आदिजिन स्तवन, मु. देवगुप्त, सं., पद्य, आदि भविक जाने वंदितं अंतिः तस्माभव्य जनाः मनिशं श्लोक ७. ४९०५६. बारमासा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८५९, श्रावण शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. मु. मगनीराम ऋषि; पठ. सा. कस्तूरा आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X१०.५, १३x४०). १. पे नाम, नेमराजुल वारैमासो, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. नेमिजिन बारमासो, मा.गु., पद्य, आदि: सरस श्रावण केरा सखडा; अंति: नित गाया एउछरंग, गाथा- १२. २. पे. नाम, नेमनाथ बारहमासो, पृ. १आ-२अ संपूर्ण. नेमिजिन वारमासो, मु. लाभउदय, मा.गु. पद्य वि. १६८९, आदि: सखीरी सांभलि हे तूं अंति: लाभोदय० विलासी हो लाल, गाथा १५. ४९०५९. (#) नंदीषेण रास, संपूर्ण, वि. १७३३, पौष शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६११.५, २३६०). ९७ नंदिषेणमुनि रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२५, आदि: पास जिणेसर पयकमल, अंतिः सिद्धि नित गेहइ रे, ढाल-१६, ग्रं. ४०२. ४९०६०. कल्याणमंदिर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. प्रले. केसरजी गुलाब, प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे. (२६.५५११.५, ११X३४). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार, अंतिः कुमुदचं० प्रपद्यते श्लोक-४४, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only ४९०६१. (+) गौतम कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५X११, ६x४४). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा, अंतिः निसेवितु सुहं लहंति, गाथा-२०. Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ९८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: लोभिया मनुष्य अर्थ; अंतिः सेव्याथी सुख पामीजइ. ४९०६२. अष्टप्रवचन माता व बारव्रत कथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे. (२६.५X११.५, १५X४७). १. पे. नाम. अष्ट प्रवचनमाता, पृ. १अ - २अ, संपूर्ण. ८ प्रवचनमाता विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (१) गाथा समिउनियमागुत्तो, (२) ५ सुमति ३ गुणि ते; अंति: माता सुध पालवी. , י Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे. नाम. बार व्रत कथा, पृ. २अ-४अ, संपूर्ण. १२ व्रत कथानक, मा.गु., गद्य, आदि: पहिला व्रत उपरि सूर, अंतिः (-) (अपूर्ण. पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण छठा व्रत अपूर्ण तक लिखा है.) ४९०६४. (#) होलीपर्व व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १८४४, चैत्र कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले. स्थल. विक्रमपुर, प्रले. मु. चतुर्भुज ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जै. (२५.५X१०.५, १४४४१). होलिकापर्व कथा-श्लोकार्थ, क. किलोल, मा.गु, गद्य, आदि: ऋषभजिन करसणी एक बलदन, अंति: धर्म तेतलो शृंगारवैराग्यतरंगिणी - अवचूरि, सं., गद्य, आदिः यमिनान् बंधं प्रापित; अंति: पर्यतोयस्मात्. २. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक, पृ. ४अ, संपूर्ण. लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि; (-); अंति: (-) श्लोक-१. , जय हुवइ. ४९०६५ (+) श्रृंगारवैराग्य मुक्तावली सह अवचूरि व श्लोक, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४. कुल पे २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५X१२, १२X३७). १. पे. नाम. श्रृंगारवैराग्य मुक्तावली सह अवचूरि, पृ. १- ४अ, संपूर्ण. शृंगारवैराग्यतरंगिणी आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य वि. १३वी आदि धर्मारामदवाप्रिधूम, अंतिः समुपैतिनाशं, 3 " श्लोक-४७. ४९०६६. द्वादश व्रतोच्चारालापकं, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., ( २६.५X११, १३x४३). १२ व्रतउच्चारण विधि, प्रा. सं., गद्य, आदि: अहण्णं भंते तुम्हाणं; अंतिः त्रयं उच्चारिणीयानि. " ४९०६७. ढंढणा सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. सीरोही, प्रले. मु. केशव ऋषि (गुरु मु. वाघा ऋषि); गुपि. मु. वाघा ऋषि; पठ. श्रावि . इंद्रा, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५X११.५, १५X३५). ढंढणऋषि सज्झाय, मु. प्रेम, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम जिनेसर वांदीनइ, अंति: रे गाता जय जयकार, गाथा-२१. ४९०६८. स्तवन व सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ४, जैवे. (२६.५x१२, १३४४१). " १. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. अमरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समरी सारद माय प्रणमी, अंति: अमर नमि तुझ लली लली, गाथा-८. २. पे. नाम. पंचमहाव्रत सज्झाय, पृ. १आ- २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only ५ महाव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मनोरथ पूरवइ रे; अंति: भणइ ते सुख लहइ, ढाल - ५. ३. पे. नाम. रात्रिभोजन परिहार, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल धरम तुं सार ते, अंति: पाले तस धन अव रे, गाथा- ७. ४. पे. नाम. सुंदरीमहाव्रतनी स्वाध्याय, पृ. ३अ ३आ, संपूर्ण सुंदरी की आयंबिल सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामिनि करी, अंतिः विजय प्रणमे शिरनामी, गाथा- ८. ४९०६९. ज्ञान पूजा विधि सहित, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे. (२६.५४११.५, ११४३३). ज्ञानपद पूजा, मा.गु., प+ग, आदि ज्ञान स्वभाव जे जीवन, अंतिः नैवेद वाजित्र वजाई. ४९०७०. महादेव स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. मु. विद्याचंद्र पंडित, पठ. श्राव. करमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, १२x२५). Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ महादेव स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: प्रशांत दर्शनं यस्य; अंति: जिनो वा नमस्तस्मै, श्लोक-४४. ४९०७२. प्रत्याख्यान भाष्य, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १०-९(१ से ९)=१, पठ. श्राव. फतु, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१०.५, ९४३६). प्रत्याख्यान भाष्य, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: सासयसुक्खं अणाबाहं, गाथा-४७, (पू.वि. गाथा ४१ अपूर्ण से है.) ४९०७३. (+) शुकराज कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६४११, १३४४२). शुकराज कथा-शत्रुजयमाहात्म्ये, आ. माणिक्यसुंदरसूरि, सं., गद्य, आदि: श्रीशत्रुजयतीर्थेशः; अंति: (-), (पू.वि. आदिजिन स्तुति अपूर्ण तक है.) ४९०७५. द्रव्यस्तवादि विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२६४११, २२४६०). १.पे. नाम. पंचवस्तुक-अनुज्ञावस्तु सह टीका, पृ. १अ, संपूर्ण. पंचवस्तुक के अनुज्ञावस्तु का हिस्सा-द्रव्य स्तव, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: दव्वत्थयभावत्थय रूवं; अंति: संपाडणमिट्ठमेयस्स, गाथा-१३. पंचवस्तुक के अनुज्ञावस्तु का हिस्सा-द्रव्य स्तव की स्वोपज्ञ टीका, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: यतेरपि द्रव्यस्तवभेद; अंति: स्तवस्येति गाथार्थः. २. पे. नाम. संलेखनादि विचार-पंचवस्तुक टीकागत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. संलेखनादि विचार, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (१)उवसमसेढीए खलु वेए उव, (२)वासं कोडीसहियं आयाम; अंति: गारोत्ति गाथार्थः. ३. पे. नाम. प्रश्नव्याकरणगत २१ सबला विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. २१ सबला नाम-प्रश्नव्याकरण पंचमसंवरद्वारगत, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: एकविंशतिः सबला; अंति: नाशनादेर्गहणंभोजनं२१. ४. पे. नाम. आनतदेव विचार-प्रज्ञापनोपांगगत सह टीका, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रज्ञापनासूत्र-हिस्सा २१पद आनतदेवादि शरीरमान, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: आणयदेवस्स णं भंते; अंति: जाव सगाई विमाणाई. प्रज्ञापनासूत्र-हिस्सा २१पद आनतदेवादि शरीरमान की टीका, सं., गद्य, आदि: आनतदेवस्यापि जघन्यतो; अंति: उड्ढ सयाई विमानाई. ४९०७६. (+) उत्तराध्ययनसूत्र-विणयसुयं प्रथमअध्ययन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, २८४६८). उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-१४ तक का टबार्थ है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ+कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: इहा कूलबालनु; अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., चौथी कथा तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा १४ तक है.) ४९०७८. आषाढभूत सझाय व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, १८४५५). १.पे. नाम. आषाढभूत सज्झाय, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. आषाढाभूतिमुनि पंचढालियो, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: दर्सण परिसो बाविसमो; अंति: जिम पामो भव पार रे, ढाल-५, ग्रं. ११८, (वि. प्रतिलेखक ने रचना प्रशस्ति वाली गाथा नहीं लिखी है.) २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जीवहित सज्झाय-गर्भावासगर्भित, मु. क्षमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गरभावास में इम; अंति: क्षमा०मुकति मझारि कि, गाथा-१०. ४९०७९. (+) नवतत्त्वसूत्र व सिद्ध के १५ उदाहरण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्रले. मु. कुशलविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., दे., (२६४११.५, १०४३१). १. पे. नाम. नवतत्त्वसूत्र, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-५२. २.पे. नाम. सिद्धो के १५ उदाहरण, पृ. ४अ, संपूर्ण. सिद्धों के १५ भेद उदाहरण, प्रा., पद्य, आदि: जिणसिद्धा अरिहंता; अंति: पनरस भेया उदाहरणं, गाथा-३. ४९०८०.(+) नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, ९४३७). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-४९. ४९०८१. (+) काल सत्तरी, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२६४११, ११४४०-४२). कालसप्ततिका, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, आदि: देवेंदणयं विजाणंद; अंति: कालसरूवं किमवि भणियं, गाथा-७४. ४९०८२. (#) नंदनऋषि आराधना, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १६४६२). नंदनऋषे: अंतिमाराधना, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: अर्हद्भक्त्यादिभिः; अंति: (-), श्लोक-५५, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ३८ तक लिखा है.) ४९०८३. लघुअजितशांति स्तवन सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२६४११, ८४३२). अजितशांति स्तवलघु-अंचलगच्छीय, क. वीर गणि, प्रा., पद्य, आदि: गब्भ अवयारि सुहम्म; अंति: भविय० सुहसयल संपजए, गाथा-८. अजितशांति स्तवलघु की अवचूरि, सं., गद्य, आदि: गब्भ० गर्भावतारे सौध; अंति: (१)वित्यय विपर्यासः, (२)मांगलिकानि संपद्यते. ४९०८४. (+) उपधान तप विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १६x६९). उपधानतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नंदिति मंगल सोलस; अंति: क्षेपपूर्वकं भवति. ४९०८५. (#) मूर्खशतक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १४४३८). १.पे. नाम. मुर्खशतक, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. मूर्खशतक, मा.गु., पद्य, आदि: (१)धारानगरीइ भोज राजा, (२)समर्थ हु तउजे उद्यम; अंति: (१)हसइ ते मूर्ख जाणवउ, (२)तेहनो संग्रह करिवउ, गाथा-१०१. ४९०८७. बंभचेर दस समाही ठाणा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२७४१२.५, १९४३७). ब्रह्मचर्यसमाधि, हिस्सा, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: सुअंमे आउसं तेणं; अंति: तहावरे त्तिबेमि. ४९०८८. (+) दशवैकालिक सूत्र सह टबार्थ अ.१-३, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२६.५४११, ५४५०). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगल मुकटं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अध्ययन ३ तक है.) । दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: ध० दुर्गत पडता जीवनइ; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ४९०९१. भरबाहुबली संवाद, स्वार्थ पच्चीसी व भरतबाहुबली सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, ले.स्थल. हाथरस, दे., (२६४१२, १८४३५). १.पे. नाम. भरथबाहुबलि संवाद, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण, वि. १९०३, चैत्र शुक्ल, ४, मंगलवार. भरतबाहुबली संवाद, मु. कुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सारद माता समरीयें; अंति: प्रणमु शिरनामी, गाथा-६३. २.पे. नाम. स्वारथ पचीसी, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण, वि. १९०३, चैत्र शुक्ल, ५, गुरुवार, पठ.सा. पन्ना, प्र.ले.पु. सामान्य. For Private and Personal Use Only Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ www.kobatirth.org १०१ सगपण व्यवहारपच्चीसी, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८६३, आदि: श्री अरिहंत सिध आचार; अंति: सहर भानपुर के माहि, गाथा-२५. ३. पे. नाम. वाहुवलि सज्झाय, पृ. ४अ, संपूर्ण. भरतबाहुबली सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: राजतणा अति लोभीया; अंतिः समयसुंदर पाया रे, गाथा - ७. ४९०९२. लघुशांति, महावीर स्तुति व देववंदन विधि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, जैवे. (२६.५x११.५, १०X३३). १. पे, नाम, लघुशांति, पृ. १आ- २आ, संपूर्ण. आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि शांति शांतिनिशांत अंतिः पूज्यमान० जयति शासनं, श्लोक १९ २. पे. नाम. महावीर स्तुति, पृ. २आ- ३अ, संपूर्ण. पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदिः स्नातस्याप्रतिमस्य अंतिः कार्येषु सिद्धिम् श्लोक-४. ३. पे. नाम. देववंदन विधि, पृ. ३अ, संपूर्ण. प्रा.मा.गु, गद्य, आदि: नमोत्थुणं कहीने भगवन, अंतिः (-) (अपूर्ण. पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. 'नमोत्थुण' पाठ तक है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९०९३. विचार प्रकरण, संपूर्ण, वि. १७११, ज्येष्ठ शुक्ल, ८, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल. राजनगर, प्रले. मु. गुणविजय (गुरु पं. कुंअरविजय गणि) गुपि पं. कुंअरविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२६. ५X११.५, १३४३९). "" विचारसार प्रकीर्णक, आ. महेश्वरसूरि प्रा. पद्य वि. १५७३, आदि नमिऊण वद्धमाणं धम्म, अंतिः महेस० माण सुहं हे, गाथा-८७. ४९०९४. चेलणाराणी सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. नीबांज, प्रले. सा. कुनणां, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६११.५, १२X४१). " चेलणासती सज्झाय, रा., पद्य, आदि: सुण रा सामीजी सुण रा; अंति: पाडं सवसुख थाय रे, गाथा - ११. ४९०९५. गर्भ सत्तरी, संपूर्ण, वि. १७३८, आश्विन, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल. नागोर, प्रले. पंडित. महेशजी, पठ. मनसुख, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०.५, १४४४३). औपदेशिक सज्झाय - गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदिः उतपति जोज्यो आपणी; अंति: बंधई कीजई कर्म, गाथा-७०. , י ४९०९६. नागीला सझाय, संपूर्ण, वि. १८३२, मध्यम, पृ. १, जैदे. (२६.५४११.५, २०४४५). जंबूस्वामी ५ भव सज्झाय, मु. राम, मा.गु., पद्य, आदि: सारद प्रणमु हो के; अंति: हो के मुनिवर रामजी, गाथा - ३३. ४९०९७. ढुंढीया पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. जेठालाल चुनिलाल लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५X११, १३x४०). गाथा - ५. श्राव. रामचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सदा मुज सूत्र लगे; अंति: राम कहे ते किम तारे, ४९०९८. पट्टावली, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., ( २६१२, १३x४२). १. पे. नाम. ढुंढिया पद संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. ढुंढक पद संग्रह, श्राव. रामचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: कोइ निंदा मत करो, अंति: राम० नहि तो नरका पडसो, गाथा-११. २. पे. नाम. ढुंढक औपदेशिक पद, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only पट्टावली *, मा.गु., गद्य, आदि: बिहोतरि वरसनो आयु; अंति: (-), (पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., 'आर्य सुहस्ति' क लिखा है.) ४९०९९. देवलोक जिनबिंब स्तवन, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल, स्याणानगर, दे. (२५.५x११, ११४३४). जिनबिंब संख्या - १२ देवलोक स्थित, मु. चंद्रविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवर बिंब नमो भव, अंति: चंद्रविजय सुहं करु, ढाल - ३. Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४९१००. (+) हरियाली संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले.पं. हर्षविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, ६x४३). १.पे. नाम. औपदेशिक हरियालीसह टबार्थ, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक हरियाली, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वरसई कांबली भींजई; अंति: मुखि कवि देपाल वखाणे, गाथा-६. औपदेशिक हरियाली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: इंद्री वरसै पाणी; अंति: जे कवि वखाने प्रकाशे. २. पे. नाम. औपदेशिक हरियाली सह टबार्थ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक हरियाली, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: कहेयो रे पंडित ते; अंति: ते सुख लहिस्ये, गाथा-७. औपदेशिक हरियाली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हरियाली जाणे ते; अंति: जांणी प्रांणीइं. ४९१०१. (#) कलिकुंड पार्श्वनाथ छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १२४३४). पार्श्वजिन पद्मावतीदेवी छंद, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: कलिकुंडदंड श्री; अंति: पूजो सुखकारणी, गाथा-११. ४९१०२. (#) मौन एकादशी गणना, संपूर्ण, वि. १८११, अढारसे अगियार, माघ शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. पालणपुर, प्रले. पं. कुशलविजय; पठ. श्रावि. राजकुंवर बाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १८४३३). मौनएकादशीगणना, सं., गद्य, आदि: श्रीमहाजससर्वज्ञाय; अंति: अरण्यनाथनाथाय नमः. ४९१०३. सिद्धचक्रमहिमा स्तवन व औपदेशिक कवित, संपूर्ण, वि. १८५६, ज्येष्ठ कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४९, १३४४१). १. पे. नाम. सिद्धचक्रमहिमा स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. कनककीर्ति शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: नवपदनो ध्यान धरीजै; अंति: कनककीरति न तोलइ हो, गाथा-१५. २. पे. नाम. औपदेशिक कवित, पृ. १आ, संपूर्ण. __ कवित संग्रह*, पुहि.,मा.गु.,रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), सवैया-१. ४९१०४. (+) आठ पोहरी विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२, १३४३४). पौषध विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावहि पडिकम; अंति: करै पछै पोसह पारै. ४९१०५. (#) महावीरजिन स्तवन-चैत्यप्रतिष्ठा व जिनबिंबप्रवेशगर्भित, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६४१०.५, १०x२८). महावीरजिन स्तवन-पताशापोल अहमदाबाद चैत्यप्रतिष्ठा व जिनबिंबप्रवेशगर्भित, मु. सरूपचंद, मा.गु., पद्य, वि. १९२२, आदि: चौवीसमा जिनवर गुण; अंति: सरूपचंद गुण गावै तौ, गाथा-२५. ४९१०६. नमस्कार स्तवन, सिद्धचक्र स्तवन व नवपद नाम, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४९, ११४३६). १. पे. नाम. नमस्कार स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तवन, प्रा., पद्य, आदि: (१)अरिहंतसिद्धायरिया, (२)अर्हमित्यक्षरब्रह्म; अंति: कुणओ मज्झ परमं पयं, गाथा-६. २. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. __आदिजिन स्तवन, प्रा., पद्य, आदि: भत्तिभरनमिरसुरिंदविं; अंति: मणह मणोरह पूरिमहो, गाथा-५. ३. पे. नाम. नवपद नाम वर्णन, पृ. १आ, संपूर्ण.. प्रा.,सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं नमो अरिहंताण; अंति: ॐ ह्रीं नमो तवस्स, पद-९. ४९१०७. वणजारा गीत, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११, १५४४७). वणजारा गीत, आ. कुमुदचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वणजारा रे एह संसार; अंति: कुमुदचंद्रसूरि० कहि, गाथा-५१. For Private and Personal Use Only Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ४९१०८. (+#) सीमंधरस्वामी स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११.५, ११X३६). 1 सीमंधरजिन स्तवन, मु. हंस, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधरस्वामीजी, अंति: हंस० दरसण दीजे नाथ, गाथा - १६. ४९१०९. (७) कल्पसूत्र- पीठिका, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे., (२५४११.५, १५-१८x४०). कल्पसूत्र - पीठिका, संबद्ध, मा.गु, गद्य, आदि: (१)नम श्रीवर्द्धमानाय, (२) अर्हत भगवंत उत्पन्न, अंतिः श्री जिनचंदसूरयः. मा.गु., गद्य, आदि: बारी ११ मांहे पडिकमण; अंति: सुद्ध क्रिया करवी. २. पे नाम दीक्षा विधि, पृ. १आ, संपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९११०. (+#) प्रत्याख्यान भाष्य, प्रतिक्रमण समाचारी व संघपट्टक, अपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. १७९-१७७(१ से १७७)=२, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., ( २६.५X११, १६४५८). १. पे. नाम. प्रत्याख्यान भाष्य, पृ. १७८ अ-१७८आ, अपूर्ण. पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. (-); अंति: पउंजियव्वं तु कारणए, गाथा- ४७, (पू. वि. गाथा ७ अपूर्ण से है.) १७८ आ. १७९आ, संपूर्ण. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि २. पे. नाम. पडिकमण समाचारी, पृ. प्रतिक्रमण समाचारी, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सम्म नमिउं देविंद, अंति: जिनवल्लभगणि० तस्स, गाथा ४०. ३. पे. नाम, संघपट्टक, पृ. १७९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. जिनवल्लभसूरि, सं., पद्य, आदि: वह्निज्वालावलीढं अंति: (-), (पू. वि. श्लोक ५ तक है.) ४९११२. मुक्तावलीतप विधि व दीक्षा विधि, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २, दे. (२५४१२, १४४३६). १. पे. नाम. मुक्तावलीतप विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि: पहिला शिष्यने खमासम, अंतिः करे सर्वने बंदावी. ४९११३. गिरिनारशत्रुंजय स्तवन व वासुपूज्यजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे. (२६.५x११.५, १०X३०). १. पे. नाम. गिरनार शेत्रुंजयगीरीवर स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. गिरनारशत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सोरठ देसमां निका; अंतिः ज्ञानविमल० सिर धरीया, गाथा- ७. יי २. पे. नाम. वासुपूज्यजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: स्वामि तुमे कांइ, अंति: जस कहे हेजे हलसु, गाथा-५. ४९११४. बत्तीस विजय गणनं, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल, वडनगर, दे. (२६४१२ ३८४११-२० ). अढीद्वीप ३२ विजय जिन नाम, मा.गु., सं., गद्य, आदि: श्रीजयदेव श्रीकरण; अंति: अग्राहि श्रीवलभद्र. ४९११५. माया सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे. (२५.५४१२, १०X३२). माया सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: माया कारमी रे माया अंतिः गुण गंधर्व जस गाय, गाथा - १०. ४९११६. राजुल गीत संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. दे. (२६.५x११.५, १०X३६). * , १०३ गाथा - १३. ४९११८. ऋषिमंडल महामंत्र स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैवे. (२५.५४१०.५, १५४३९) "3 रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु, पद्य, आदिः काउसग्ग ध्याने मुनिः अंतिः निर्मल सुंदर देह रे, गाथा ८. ४९११७. मेतारजमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८७६, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. विसलनगर, प्रले. पं. धर्मचंद, पठ. श्रावि. सांकलीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२५.५४१२, १२४३७). " तार्यमुनि सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., पथ, आदि: संयम गुणना आगरुजी अंतिः राजविजय० तणी सझाय, For Private and Personal Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरमालिख्य; अंति: लभ्यते पदमव्ययम्, __ श्लोक-७६, ग्रं. १५०. ४९११९. (+) महावीरजिन गहुँली व बीजतिथि सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२.५, १३४३३). १.पे. नाम. महावीरजिन गहुंली, पृ. १अ, संपूर्ण, ले.स्थल. सरदारपुर, प्रले. पं. जितविजय; पठ. श्राव. रलियात, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. राजेंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: जीरे गुणसील चैत्य; अंति: राजेंद्र सुखकार रे, गाथा-८. २. पे. नाम. बीजनी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. बीजतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बीज कहे भव्य जीवने; अंति: लब्धीविजय० विनोदरे, गाथा-९. ४९१२०. सर्वजिन चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४११.५, १०४३५). प्रभु दर्शनपूजनफल चैत्यवंदन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रणमुं श्रीगुरूराज; अंति: विनय० सेवानी कोडि, गाथा-१४. ४९१२१. शांतिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १६३९, पौष कृष्ण, १३, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६.५४११.५, १२४४४). शांतिजिन स्तवन, मु. सत्यसागर, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय संतिजिणचंद; अंति: सत्यसागर सुखकर तु, गाथा-१५. ४९१२३. सिंदूरप्रकर भाषा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६.५४११.५, २९४८३). सिंदूरप्रकर-पद्यानुवाद भाषा, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९१, आदि: सोभित तप गजराज सीस: अंति: (-), (पू.वि. गाथा ९८ अपूर्ण तक है.) ४९१२४. (+) स्तवन, स्तोत्र सह टबार्थ व औपदेशिक गाथा, अपूर्ण, वि. १७८५, मध्यम, पृ. ८-६(१ से ६)=२, कुल पे. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, ६४३६-३८). १.पे. नाम. औपदेशिक गाथा सहटबार्थ, पृ. ७अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक गाथा, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: वासं मितहि चलीणा, गाथा-२८, (पू.वि. मात्र अंतिम अपूर्ण गाथा ही औपदेशिक गाथा-टबार्थ, म., गद्य, आदि: (-); अंति: महारो नमसकार होज्यो. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन सह टबार्थ, पृ. ७अ-८आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तव-बृहत्, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, आदि: जइज्जा समणे भयवं; अंति: पढौ कहौ अभयदेवसूरीणं, गाथा-२२, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-बृहत्-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ताहरी ज होइ श्रमण; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा २० अपूर्ण तक का टबार्थ लिखा है.) ३. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. ८आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. ४. पे. नाम. सुभाषित श्लोक, पृ. ८आ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह *, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४९१२६. महानिशिथसूत्र सह टिप्पण, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५-१(१)=४, जैदे., (२६.५४११, १६x६०). महानिशीथसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., अध्ययन ३ अपूर्ण से अध्ययन ५ अपूर्ण तक है.) महानिशीथसूत्र-टिप्पण, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), पृ.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं. ४९१२७. स्तवन, सज्झाय व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १८१३, वैशाख कृष्ण, २, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ४, ले.स्थल. कालद्रीनगर, प्रले. मु. चेवा (गुरु पं. गुणविजय); गुपि.पं. गुणविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, ११४३८). For Private and Personal Use Only Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ १.पे. नाम. वीर स्तवन, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-छट्ठाआरागर्भित, श्राव. देवीदास, मा.गु., पद्य, वि. १६११, आदि: सकल जिणंद पाए नमी; अंति: देवीदास० संघमंगल करो, ढाल-५, गाथा-६४. २.पे. नाम. आषाढाभूतिमुनि चरित्र, पृ. ४आ, संपूर्ण. वा. कनकसोम, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: श्रीजिनवदन निवासिनी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ३ अपूर्ण तक लिखा है.) ३. पे. नाम. औपदेशिक गाथा संग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण. गाथा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), गाथा-१. ४. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. सूरदास, पुहिं., पद्य, आदि: अलीरी मननी लपट उटीय; अंति: सूरदास० लील बाहु, पद-१. ४९१२८. बुढापा चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६.५४११, १९४४३). बुढ़ापा चौपाई, मा.गु., पद्य, वि. १८४५, आदि: निरधन के घर बेटी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल ११ गाथा ४ अपूर्ण तक ४९१३०. (+#) सिद्धिदंडिका व दिक्चतुष्कजीवाल्पबहुत्व, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. कृति से संबंधित यंत्र दिया गया है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२६४११, ३४३२). १. पे. नाम. सिद्धदंडिकास्तव सह टबार्थ, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. सिद्धदंडिका स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जं उसभ केवलाउ अंतमुह; अंति: देविंद० सिद्धि सुह, गाथा-१३. सिद्धदंडिका स्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जे श्रीआदिनाथना केवल; अंति: मोक्षना सुख दिउ कही. २. पे. नाम. दिक्चतुष्कजीवाल्पबहुत्व सह टबार्थ, पृ. ३आ, संपूर्ण. दिक्चतुष्कजीवाल्पबहुत्व, प्रा., पद्य, आदि: पपुदउ कमसो जीवा जल; अंति: अहगामा दाहिणे झुसिरं, गाथा-२. दिक्चतुष्कजीवाल्पबहुत्व-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: पश्चिम पूर्व दक्षण; अंति: (अपठनीय). ४९१३२. (+) सझाय, स्तवन व औपदेशिक पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५.५४१२.५, १६४५०). १.पे. नाम. भरतमहाराजा सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १९६६, माघ कृष्ण, ५, ले.स्थल. हाडा, प्रले. मु. सूरज, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. हीरालाल, मा.गु., पद्य, वि. १९४५, आदि: मुगतपद पाया हो; अंति: हीरालाल० मन की आस, गाथा-११. २. पे. नाम. नेमनाथ सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमराजिमती लावणी, मु. नंदराम, रा., पद्य, आदि: छपन कोटी जान लेई आया; अंति: नंदराम० तवन किया, गाथा-१२१. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. चौथमलजी म., रा., पद्य, वि. १९६४, आदि: एक ही ईंट से दीवाल; अंति: चोथमल० चोसठ मे वरना, गाथा-९. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. चौथमलजी म., रा., पद्य, आदि: मुगट सीस कानो कुंडल; अंति: चोथमल हाड रमी जी, गाथा-५. ४९१३३. (+#) मूर्खछत्रीसी, शीलव्रत सज्झाय व औपदेशिक पद, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५१-५०(१ से ५०)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४११.५, २१४७२). १.पे. नाम. मुर्ख छत्रीसी, पृ. ५१अ, संपूर्ण. मूर्खछत्रीसी, मु. चौथमलजी म., रा., पद्य, वि. १९३५, आदि: सरावक धर्म करो; अंति: चोथमल इम भखे जी, गाथा-३६. २. पे. नाम. शीलवत सज्झाय, पृ. ५१आ, संपूर्ण. मु. चौथमलजी म., पुहि., पद्य, आदि: सील रतन का करो जतन; अंति: चोथमल० कारज सारे, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १०६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे नाम, औपदेशिक पद, पृ. ५१आ, संपूर्ण. मु. रत्नसागर, पुहिं., पद्य, आदि: असुभ करम मल झाड के; अंति: चत्र रतनसागर कह सुर, गाथा-८. ४९१३४. (+#) स्तोत्र व स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३४-३३ (१ से ३३) = १, कुल पे. ५, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५४११, ११३६). "" १. पे. नाम. नवग्रहगर्भित पार्श्वजिन स्तवन, पू. ३४अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: (-); अंति: जिणप्पहसूरि० पीडंति, गाथा - १०, (पू.वि. गाथा ९ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. बृहस्पति स्तोत्र, पृ. ३४अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदिः ॐ नमो बृहस्पतिः; अंति: सुप्रीतिः तस्य जायते, श्लोक ५. ३. पे. नाम. सनैश्चर स्तोत्र, पृ. ३४अ - ३४आ, संपूर्ण. शनिश्चर स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः यः पुरा राज्यभ्रष्टा, अंतिः पीडा न भवंति कदाचन, लोक-१०. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति सह टिप्पण, पृ. ३४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: हर्षनतासुरनिर्जरलोकं; अंति: मज्जनशस्तनिजाघः, श्लोक-४. पार्श्वजिन स्तुति - टिप्पण, सं., गद्य, आदि: (-); अति: (-). ५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ३४आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित, सं., पद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञं ज्योति; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम श्लोक का प्रथम पद ही है.) ४९१३५ () नेमिजन स्तवन अपूर्ण, वि. १८२८, वैशाख शु. २, सोमवार, मध्यम, पृ. २- १ (१) १, प्र. मु. वृद्धिचंद (गुरु 1 मु. सबलदास); गुपि. मु. सचलदास पठ. वनुजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अशुद्ध पाठ जैदे. (२४.५x१०.५, १८४३५). नेमिजिन स्तवन, मु. सबलदास, मा.गु., पद्य, वि. १७७७, आदि: समुद्रविजय सुत लाडलो; अंति: सबलदासजी० नमज मान, गाथा - १३, संपूर्ण. ४९१३७. तप संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६X१२, २०X३६). तप संग्रह, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: चतुविंशति तीर्थंकराण, अंति: जिनपूजा प्रत्येकै३. ४९१३८. (+) दानशील तप भावना कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६९० भाद्रपद शुक्ल, ११, मध्यम, पू. ४, ले. स्थल. बगडी, प्रले. मु. जसवंत ऋषि, पठ. मु. वीरदास ऋषि (गुरु मु. जसवंत ऋषि); राज्यकालरा. राज्यसिंघ; राज्ये आ. रूपसी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीगुरुप्रसादात् लिखत्तं जैदे (२६५११.५, ७५४३). "" दानशीलतपभावना कुलक, मु. अशोकमुनि, प्रा., पद्य, आदि: देवाहिदेवं नमिऊण अंतिः असोग० खमंतु मेणं, गाथा - ५०. " दानशीलतपभावना कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: देवाधिदेव श्रीमहावीर; अंति: गीतार्थ हाणाधिक खमउ. ४९१३९. वीर स्तुति सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु.कीका, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२६४११.५, ३x२७-२९)पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य, अंतिः कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. पाक्षिकस्तुति - बार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: स्नान करीइ न्हवराविउ; अंति: (-). ४९१४०. विजयसेनसूरि स्वाध्याय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैये. (२६११, १५४३३). १. पे. नाम. विजयसेनसूरि स्वाध्याय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. विजयसेनसूरि सज्झाय, मु. रत्नहर्ष, मा.गु., पद्य, आदिः समरिय सरसति भगवती, अंतिः रत्नहरिष० ते नर लहह, गाथा - ११. २. पे. नाम. गुरु स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण. विजयसेनसूरि सज्झाय, मु. कीर्तिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: चरण कमल श्रीजिन तणा; अंति: सीस नमइ तसु पाय, गाथा - ९. ४९१४१, (+) भयहर स्तवन सह अवचूरि, संपूर्ण वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पंचपाठ, टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२६११, १०३९-४६). For Private and Personal Use Only Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण पणयसुरगण; अंति: परमपयत्थं फुडं पासं, गाथा-२३, संपूर्ण. नमिऊण स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: आदौ कविर्मंगलाभिधान०; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा २१ अपूर्ण तक अवचूरि लिखी है.) ४९१४२. आराधना सूत्र, संपूर्ण, वि. १७१५, कार्तिक कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. सीणलाग्राम, प्रले. ग. विनय विजय; पठ. श्रावि. किसन; राज्यकालरा. जयतिसिंघ, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १५४४८). आराधना, मु. हंस, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलउ नमस्कार अरिहंत; अंति: सव्वत्थ सिद्धिविमाणइ, गाथा-९५. ४९१४४. सिद्धिदंडिका स्तवन व प्रभंजना सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, १५४४१). १. पे. नाम. सिद्धदंडिका स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१४, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी; अंति: पद्मविजय जिनराया रे, ढाल-५, गाथा-३८. २. पे. नाम. प्रभंजना स्वाध्यय, पृ. २अ-४अ, संपूर्ण. प्रभंजना सज्झाय, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: गिरि वैताढ्यने उपरे; अंति: करता मंगल लील सदाई, ढाल-३, गाथा-४९. ४९१४५. श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र, संपूर्ण, वि. १८१९, श्रावण कृष्ण, २, मध्यम, पृ. ३, पठ. श्राव. वसता, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १२४४२). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदेत्तु सव्वसिद्ध; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. ४९१४६. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८७५, चैत्र शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, ले.स्थल. योधनयर, प्रले. पं. मोहण, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, २४४५१). १.पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. __ महावीरजिन स्तवन-ज्ञानदर्शनचारित्रसंवादरूप नयमतगर्भित, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८२७, आदि: श्रीइंद्रादिक भावथी; अंति: पभणे संघने जयकार ए, ढाल-८, गाथा-८१. २.पे. नाम. सर्वजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. साधारणजिन पद, मु. रामदास, पुहिं., पद्य, आदि: नयना सफल भए प्रभु; अंति: रामदास० सिखर को राज, गाथा-४. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, पृ. २आ, संपूर्ण... श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: चिंतामनि स्वामी; अंति: करै बनारसि बंदा तेरा, गाथा-४. ४. पे. नाम. २४ जिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण.. पुहिं., पद्य, आदि: ऋषभादिक तीर्थंकर राय; अंति: प्रभु सेवो सुखकार, गाथा-७. ४९१४७. (#) खामणा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. जहानाबाद, पठ. श्रावि. अमराजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १४४४१). खामणा सज्झाय, मु. गुणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम नमु अरिहंतनइ; अंति: गुणसागर सुख थाय, गाथा-१६. ४९१५०. साधुपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १८०४, चैत्र कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. अजमेर, प्रले. मु. पद्मसागर; पठ. ग. हर्षविजयगणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १४४४५). साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणमिअदसणमिअचरणमि; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. ४९१५१. (+) दशवकालिक वृत्ति गाथा सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, १०४२८). दशवैकालिकसूत्र-नियुक्ति की संकलित गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सिद्धिगइमुवगयाणं; अंति: समणस्स नामाइ, गाथा-७. दशवैकालिकसूत्र-नियुक्ति की संकलित गाथा कीटीका, सं., गद्य, आदि: सिद्धिगति मुपगतिभ्यो; अंति: अभिधागत गाथार्थः. For Private and Personal Use Only Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४९१५२. (+) इकवीस ठाणा, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२५.५४११, १३४४७). २१ स्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: चवण विमाणा नयरी जणया; अंति: असेस साहारणा भणिया, गाथा-६६. ४९१५४. यतिप्रतिक्रमण सूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२५.५४११, २५४५४). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं करेमि; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, सूत्र-२१. पगामसज्झायसूत्र-लघुटीका, आ. तिलकाचार्य, सं., गद्य, आदि: श्रीवीरजिनाधिपतिं; अंति: श्रेय एवेति मन्यते. ग्रं. २९६. ४९१५५. (+) १४ गुणस्थानगर्भित आदिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११, १५४४५-५०). आदिजिन स्तवन-१४ गुणस्थानविचारगर्भित, वा. पद्मराज, मा.गु., पद्य, आदि: जगि पसरंत अनंतकंत; अंति: पूरवउ सुखसंपदा, गाथा-२१. ४९१५६. मौनएकादशी कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२५.५४११.५, २०४४३). मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, आदि: अरस्य प्रव्रज्या नमि; अंति: कीना मुक्त सुख पामै. ४९१५७. जैनधार्मिक श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४११, १४४४५). श्लोक संग्रह जैनधार्मिक*, प्रा.,सं., पद्य, आदि: सम्यक्त समिति दया; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक ८ अपूर्ण तक है.) ४९१५९. (+) पार्श्वनाथजीनी निसानी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १५४३७). पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: सुखसंपत दायक सुर नर; अंति: जिनहरष० कहंदा है, गाथा-२७. ४९१६०. स्तवन व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १८६९, चैत्र कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. ५-२(१ से २)=३, कुल पे. ३, ले.स्थल. सिवपुरी, प्रले. पं. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीशांतिनाथजी प्रसादात्., जैदे., (२५.५४११.५, १२४३१). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. दानविजय, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: दानविजे तुम नमंदा हे, गाथा-५, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रथम गाथा का मात्र अंतिम पद लिखा है.) २. पे. नाम. प्रतिमास्थापन सज्झाय, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. जिनप्रतिमा स्तवन, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिन जिन प्रतिमा वंदण; अंति: मान० सुगुरुनै सीस, ढाल-२, गाथा-२१. ३. पे. नाम, जिनप्रतिमा स्वाध्याय, पृ. ४-५आ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने कृतिनाम शीखामण स्वाध्याय लिखा है. जिनप्रतिमास्थापना सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जिन जिन प्रतिमा वंदन; अंति: जस० किजै तास वखाण रे, गाथा-१६. ४९१६१. (-) पार्श्वजिन छंद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५६-५३(१ से ५३)=३, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, १७४४६). १. पे. नाम. गोडीजिन छंद, पृ. ५४अ, संपूर्ण. __ पार्श्वजिन स्तवन, मु. अभयसोम, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती माता सेवक दीए; अंति: अभयसोम०मुगतदायक मुगत, गाथा-११. २. पे. नाम. अष्टभयहरण पार्श्वजिन छंद, पृ. ५४अ-५५अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-गोडीजी, मु. धरमसी, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन दीओ सरसती एह; अंति: धर्मसीह ध्यानधर धरण, गाथा-११. ३. पे. नाम. संखेश्वर पार्श्वनाथ छंद, पृ. ५५अ-५६आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, मु. शील, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणव पणव प्रहु पय; अंति: सील० सकलदेव संखेसरा, गाथा-६५. For Private and Personal Use Only Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ४९१६२ (१) विजयप्रभसूरि स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६.५x११, १३X३९). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विजयप्रभसूरि सज्झाय, ग. कमलविजय, पुहिं., पद्य, आदि: सरसति भगवति मात तुं; अंतिः सिष्य चरण कमल नम जी, गाथा - २७. ४९१६३. (+) स्तवन संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले. स्थल. पेधापुर प्र. वि. संशोधित, जैये. (२७x१२, १४X३५). १. पे नाम. सिद्धगिरी स्तवन, पृ. ९अ १आ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजी आया रे विमलाचल, अंतिः पद्मविजय सुप्रमाण, गाथा-७. २. पे नाम. नेमराजुल स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मु. शिवरतन, मा.गु., पद्य, आदि: बावीस सुभट जीतवारे, अंति: सिवरतन० चीर चीर, गाथा-५. ४९१६४. (+) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित. जैदे. (२६११.५ १०x३६). औपदेशिक सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि; तीरथ सोई करें रे अंतिः ज्ञानविमल० वारी जाऊं, , י गाथा - १२. ४९१६५. यति दस धर्म, पच्चीस भावनादि विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. १०, दे., २१X५७). १. पे. नाम. यति दसविध धर्म, पृ. १अ, संपूर्ण. १० यतिधर्म भेद गाथा, प्रा., पद्य, आदि: खंती मुत्ती अज्झबे, अंति: चियाए९ बंभचेरवासे१०, गाथा- १. २. पे नाम. एकादश प्रतिमा नाम, पृ. १अ, संपूर्ण, आवक ११ प्रतिमा, मा.गु., गद्य, आदि: दंसण १ वय २ सामाइय, अंतिः तेहना प्रकृति ३. पे. नाम. दंडभेद गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. इरियावहि क्रियास्थान के १३ दंडभेद गाथा, संबद्ध, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. गद्य, आदि: अड्डादंडे १ अंतिः इरियावहिए दंडे १३. ४. पे. नाम. नारकी भेद, पृ. १अ, संपूर्ण. नारकी १५ भेद, मा.गु., गद्य, आदि: अधरमी ते १५ भेद अंबे, अंतिः महाघोष सबद करें. ५. पे. नाम. पच्चीस भावना, पृ. १अ संपूर्ण. २५ भावना विवरण, मा.गु, गद्य, आदि: ईर्जासमिति १ अंतिः फासींदीरा० २५. , ६. पे. नाम. बार भावना नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. १२ भावना नाम, मा.गु., गद्य, आदि: अनित्य भावना १ असरण; अंति: धरम भावना १२. ७. पे. नाम. तेर काठिया नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. १३ काठिया नाम, मा.गु., गद्य, आदि आलस १ मोह २ बजे ३ अंति: बिगहा १२ कोउहले १३. ८. पे. नाम. सात नय नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. ७ नय नाम, मा.गु., गद्य, आदि: निगम नइ १ संगर २; अंति: यवंभूत नय ७. ९. पे. नाम. सात भय नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. ७ भय नाम, मा.गु, गद्य, आदि: अहलोक भय १ परलोक २: अंति: अझसोअकीरत ७. १०. पे. नाम. सात मद नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only १०९ (२६X११.५, ८ मद नाम, मा.गु., गद्य, आदि: जातिमद १ कुल २ रूप ३; अंतिः तप ६ लाभ ७ इसरमद ८. ४९९६६. संधारा गाथा, अनसण विधि व सती नाम, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जै, (२५.५४१०.५, १२४४७). १. पे. नाम. राई संथारा गाथा, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. संधारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि; अणुजाणह परम गुरु अंतिः वंदामि जिणे चडवीसं, गाथा- १५. Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ११० www.kobatirth.org २. पे. नाम. अणसण उचारण विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. अनशन पच्चक्खाण सूत्र, प्रा., गद्य, आदि: भव सचरिमं पच्चवखाइ, अंतिः बोसिरइ वोसिरामि ३. पे. नाम. सती नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १६ सती स्तुति, सं., पद्य, आदि: ब्राह्मी चंदनबालिका, अंतिः कुर्वंतु वो मंगलम्, श्लोक-१. ४९९६७. स्तोत्र व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४-२ (१ से २)=२, कुल पे. ६, जैदे. (२६.५x११.५, १३x४२). 7 "" १. पे. नाम. सरस्वती स्तोत्र, पृ. ३अ संपूर्ण वि. १८७० आश्विन शुक्ल, १० पठ. मु. गुलाब शिष्य, प्र.ले.पु. सामान्य. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: राजते श्रीमती देवता; अंति: मेधामावहति सततमिह, श्लोक- ९. २. पे. नाम. गौतमस्वामी स्तोत्र, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु, पद्य, वि. १६वी, आदि: वीरजिणेसर केरोसीस, अंति: गीतम तूठे संपत कोड, गाथा - ९. ३. पे नाम. शांतिनाथ स्तोत्र, पृ. ३आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तोत्र, ऋ. दुर्गदास, मा.गु., पद्य, आदि: मंगलदायक श्रीजिनराइ, अंतिः दुर्गदास० मन सिमरत, गाथा-५. ४. पे. नाम. जीरावलादेव स्तोत्र, पृ. ४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- जीरावला, मा.गु., पद्य, आदि: जीरावलादेवजी करों अंतिः करी सेवका मुझ थापो, गाथा- ११. ५. पे. नाम. वीसविहरमान तीर्थंकरदेव विद्यमान स्तोत्र, पृ. ४अ ४आ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन स्तवन, सं., पद्य, आदि: वंदे सीमंधरं भक्त्या; अंति: जन्मनि जन्मनिस्तात्, श्लोक-६. ६. पे. नाम. बीसविहरमान स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन स्तवन, मु. सेवक, पुहिं., पद्य, आदि: प्रथम सीमंधर स्वाम, अंतिः सेवक विनवै० फल दीजिए, गाथा - ६. ४९१६८. (+) सास्वत जिनभवन बिंबप्रमाण, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. जैवे. (२६४११.५ ९४३०). ३. पे. नाम. पंद्रहिया यंत्र. पू. १ आ. संपूर्ण. शाश्वतचैत्यस्तव, आ. देवेंद्रसूरि प्रा. पद्य, आदि सिरिउसहवद्धमाणं अंतिः भविवाण सिद्धिमुहं गाथा २४. "" ४९१६९. (+) बृहत्शांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९०८, मार्गशीर्ष शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित., प्र.ले. श्लो. (१२) मंगलं लेखकानां च, (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, दे., (२६X११, १२x२७-३१). बृहत्शांति स्तोत्र- तपागच्छीय, सं., प+ग, आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैनं जयति शासनम्. ४९१७०. अष्टापद अष्टक, गौतमस्वामी छंद व यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, ले. स्थल. खंभात, जैदे., (२६११, १३३०). १. पे. नाम. अष्टापद अष्टक, पृ. १अ, संपूर्ण. अष्टापदतीर्थ स्तुत्यष्टक, सं., पद्य, आदि: अष्टापदाद्रौ भरतेश, अंति: प्रभुताद्भुताय, श्लोक ८. २. पे. नाम. गौतमस्वामी छंद, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: मगधदेशमां राजगृहीनी, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा २ अपूर्ण तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only , जैनयंत्र संग्रह *, मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: (-). ४९१७१. (+) परमाणुखंड षट्त्रिंशिका सटीक व दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. पंचपाठ- संशोधित., जैवे. (२५.५x१०.५. ५X३३). १. पे. नाम. परमाणुखंडषट्त्रिंशिका सह टीका, पृ. १अ - २आ, संपूर्ण. भगवतीसूत्र टीका का हिस्सा परमाणुखंडषट्त्रिंशिका प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि खित्तोगाहणदव्वे भावट, अंति बहुतराणं गुणाण ठिई. गाथा- १५. Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ १११ परमाणुखंडषट्त्रिंशिका प्रकरण-टीका, आ. रत्नसिंहसूरि, सं., गद्य, आदि: यथास्थिताणुजीवादिपदा; अंति: संख्यगुणमिति स्थितम्. २. पे. नाम. प्रस्ताविक दोहा संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक दोहा संग्रह *, मा.गु.,रा., पद्य, आदि: कृपण मूढ तू मरम; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., दोहा-४ अपूर्ण तक लिखा है.) ४९१७२. जंबुस्वामी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४१२, १०४३२). ___ जंबूस्वामी सज्झाय, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रहि नगरी वशे; अंति: सिद्ध० मन भायो रे, गाथा-१४. ४९१७३. साधु समाचारी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, २६४२०). साधु समाचारी, मा.गु., गद्य, आदि: आठ मास तांइ साधु मन; अंति: कही सो प्रमाण छै. ४९१७४. (+) अइमत्तारिषि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४११, १२४३९). अइमुत्तामुनि सज्झाय, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: सासण स्वामी रे; अंति: वंदना वारंवारोरे, गाथा-२७. ४९१७५. चुनडी, सज्झाय व स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११.५, १७४४५). १. पे. नाम. नेमिराजुल चुनडी, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, मा.गु., पद्य, आदि: संयम नवरंग कंचूउ; अंति: गति तणां सुख होइ हो, गाथा-१७. २. पे. नाम. अर्णक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरणक मुनीवर चाल्या; अंति: जेणे मनवंछित लीधो जी, गाथा-७. ३. पे. नाम. चतुर्विंसतिजिन जंत्र स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. पैंसठिया यंत्र भी दिया गया है. २४ जिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: मुनीनामनीसं हि नमामि; अंति: न कृतं विशुद्धं, श्लोक-९. ४९१७६. व्याख्यान पीठिका व गरबो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४११.५, ११-१५४४४). १. पे. नाम. व्याख्यान पीठिका, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: भगवन् त्रैलोक्यतारण; अंति: श्रद्धाई करी सांभलो. २. पे. नाम. महाकाली मातानो गरबो, पृ. १आ, संपूर्ण. महाकालीदेवी गरबो, मा.गु., पद्य, आदि: माताजी ओ पावारी; अंति: छे मेरी मायडी रे लो, गाथा-१३. ४९१७७. स्तवन व यंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. ग. चरणसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, ८X४५). १. पे. नाम. नंदीश्वरमहातीर्थ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. नंदीश्वरद्वीप स्तवन, पं. हेमहंस गणि, मा.गु., पद्य, आदि: नंदीसरदीविहि मणहराइं; अंति: सिरिसइवर वरई, गाथा-६. २. पे. नाम. क्षपकश्रेणि यंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. क्षपकश्रेणी रचना यंत्र, मा.गु., यं., आदि: संज्वलन लोभः; अंति: अनंतानुबंधी लोभः. ३. पे. नाम. उपशमश्रेणि यंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. उपशमश्रेणि रचना यंत्र, मा.गु., यं., आदि: संज्वलन लोभः; अंति: अनंतानुबंधी लोभः. ४९१७८. (#) सील उपमा बोल व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, १६४५१). १. पे. नाम. शील उपमा बोल, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शीलव्रत ३२ उपमा बोल, मा.गु., गद्य, आदि: पहली उपमा शील की; अंति: संग्रामीक रथ मोटो. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, प्र. १आ, संपूर्ण. शंकरदास, पुहिं., पद्य, आदि: नर किला तेरा सही; अंति: संकरदास० नहीं छूटेगा, गाथा-३. ४९१७९. अनाथीऋषि सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, १०४३३). For Private and Personal Use Only Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अनाथीमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीणिक रवाडी गयु; अंति: वंदे रेबे करजोडि, गाथा-९. ४९१८०. बारमासा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. पं. हेतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १३४३९). १. पे. नाम. धर्मकरणी बारमासो, पृ. १अ, संपूर्ण.. श्राव. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: असाढ मासे रे उनइयो; अंति: कवियण वंदू वारोवार, गाथा-१३. २. पे. नाम. नेमराजुल बारमासो, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. नेमिजिन बारमासो, जीवो, मा.गु., पद्य, आदि: सरस्वतीअमाता नमू; अंति: जीवो कहे०वर मांगुरे, गाथा-२५. ४९१८१.) साधु वंदना, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२५.५४११.५, २१४४७). साधुवंदना, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२२, आदि: पो सम उठ्या भावस्यु; अंति: समता रस तु चाखेही, गाथा-३३. ४९१८२. अक्षरबत्तीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०.५, १४४४४). __ अक्षरबत्तीसी, मा.गु., पद्य, आदि: कका ते किरीया करो; अंति: अर्थ कह्या अभीराम, गाथा-३४. ४९१८३. सज्झाय संग्रह व दोहा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४१०.५, १६x६८). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: रतन चिंतामणि नर भव; अंति: जैमल गाफल मति रह, गाथा-३७. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: गर्भावासमां चिंतवेर; अंति: उदम करे अपार, गाथा-११. ३. पे. नाम. सुभाषित श्लोकसंग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: नंदक जिन मरियो मेरा; अंति: उनकी निंदा करेगा कोण, गाथा-६. ४९१८४. सोल स्वप्न सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२६.५४१२, १२४३६). १६ स्वप्न सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सरस्वति सामिण विनवू; अंति: सुद्धगुरु पसाय रे, ढाल-२, गाथा-२७. ४९१८५. समेतशिखरनुं स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. हस्तप्रत की कीमत ८ पैसा प्रति पृष्ठ का उल्लेख किया गया है., दे., (२६.५४१२, १०४२६). सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, वा. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: धन्य धन्य शिखर गिरिर; अंति: थयो पुन्योदय महिमाय, गाथा-१६. ४९१८६. पदमावतीरांणी आराधना, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. हस्तप्रत की कीमत १४ पैसे का उल्लेख किया गया है., दे., (२६.५४१२, १२४३१). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवे राणी पद्मावती; अंति: समयसुंदर० तत्काल, ढाल-३, गाथा-४६. ४९१८७. पडिकमण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४१२.५, १०४२७). प्रतिक्रमण सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: आज एकादशी रे नणदल; अंति: धरशे ते भवशायर तरसे, गाथा-९. ४९१८८.(+) सज्झाय व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७X१२, ९-१३४३३). १.पे. नाम. नंदिषेण सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजगृही नयरीनो वासी; अंति: मेरुविजय०कुण तोले हो, ढाल-३, गाथा-१६. २. पे. नाम. सकलजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अरिहंत देवा चरणनी; अंति: ज्ञानविमल० पाय सेवा, गाथा-५, (वि. यह कृति पेन्सिल से लिखी गयी है.) ४९१८९. (+) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४११.५, १०४३१). १. पे. नाम. सिद्ध भगवान गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. सिद्धपद स्तवन, मु. शुभवीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्ध जगत सिरे सोभता; अंति: रहिये सुखमां मगन्न, गाथा-५. २. पे. नाम. महावीरजिन परिवार स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. क. कमलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिनेसर सासनसार; अंति: वाचक कमल जयजयकार, गाथा-५. ४९१९०. सज्झाय व स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुलपे. २, प्र.वि. प्रत की कीमत २७ पैसे का उल्लेख किया गया है.. दे., (२६.५४१२.५, १०४३७). १.पे. नाम. गौतम प्रश्न सज्झाय, प्र. १अ-१आ, संपूर्ण. देवानंदा सज्झाय, उपा. सकलचंद्र गणि, पुहिं., पद्य, आदि: जिनवरु रूप देखी मन; अंति: कुशलचंद० मन में आणी, गाथा-१२. २.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे.वि. यह कृति पेन्सिल से लिखी गई है. पार्श्वजिन स्तवन-सहस्रफणा, मा.गु., पद्य, आदि: गंगातट तपोवन माहे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ४ अपूर्ण तक है.) ४९१९१. ग्यान गुदडी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४१२, १२४३४). औपदेशिक सज्झाय, मु. अमोलकऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: ग्यान गोदड़ी कहानकु; अंति: आपश्री जिनराया वे, गाथा-२१. ४९१९२. (+) स्तवन संग्रह व श्लोक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२६४११, १४४४२). १.पे. नाम. नेमनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. मु. जेठा ऋषि (गुरु मु. वेलजी ऋषि); मु. वेलजी ऋषि (लुंकागच्छ वृद्धपक्ष); पठ. मु. खीमजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. नेमिजिन स्तवन, मु. वेलजी, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: कंचनवरणी तारुणी हो; अंति: जिन गवराया आनंद, गाथा-११. २. पे. नाम. जंबूद्वीप विदेह, पृ. १आ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजंबुदीप विदेह मझ; अंति: विहरमान ए वीसे सहि, गाथा-८. ३. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., पद्य, आदि: दिवा बिभेति काकेभ्यो; अंति: जलजत्वक्षीरोधनं, श्लोक-१. ४९१९३. पद संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ७, जैदे., (२७४११.५, १२४४०). १. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. राजनंदन, पुहिं., पद्य, आदि: छबि चंद्राप्रभु की; अंति: राजनंदन० गुण समरै, गाथा-३. २. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: जालम जोगीडासुं लगी; अंति: तन मन करुं कुरबान रे, गाथा-३. ३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. ____ पुहिं., पद्य, आदि: लागो मारो वीर जिणंदा; अंति: सफल कीयो अवितार, गाथा-४. ४. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. आनंदवर्द्धन, पुहिं., पद्य, आदि: आदि जिणंद मया करो; अंति: आनंदवर्द्धन० आसा रे, गाथा-४. ५. पे. नाम. सुमतिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. आनंदरूप, रा., पद्य, आदि: सुमति महाराज म्हांनु; अंति: आणंदरूप० पार उतार, गाथा-३. ६. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, आ. जिनहर्षसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: राखुरे हमारा घटमें; अंति: जिनहर्षसूरि० ही राखै, गाथा-३. For Private and Personal Use Only Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: चालो राजा श्रेणिक; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ४ अपूर्ण तक है.) ४९१९५. सिद्धदंडिका स्तवन सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७०९, आषाढ़ शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. कालुपुर, प्रले. मु. मुनिचंद्रविजय (गुरु ग. अमृतविजय); गुपि.ग. अमृतविजय (गुरु ग. तेजविजय); ग. तेजविजय (गुरु ग. श्रीविजय); ग. श्रीविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२५.५४११.५, १०४३१). सिद्धदंडिका स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जं उसहकेवलाओ अंत; अंति: देविंद० सिद्धि सुख, गाथा-१३. सिद्धदंडिका स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: आदित्ययशोनृपप्रभृतयो; अंति: देवेंद्रैः० सर्वेषां. ४९१९६. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १७६१, आश्विन शुक्ल, ४, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. खीमजी ऋषि (गुरु मु. राजपाल ऋषि); गुपि. मु. राजपाल ऋषि (गुरु मु. नानजी ऋषि); मु. नानजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०.५, ११४३७). १. पे. नाम. कलावती सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. कलावतीसती सज्झाय, मु. यादव ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: सुमति जिणेसर पाय; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ८ अपूर्ण तक लिखा है.) २. पे. नाम. केशीगौतम स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण... केशी गौतमगणधर संवाद, म. विजयपार्श्वसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सीस जिणेसर पास; अंति: सीस उदार सुरंगो रे, गाथा-८. ४९१९७. नवतत्त्व प्रकरण सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२६४११.५, १६४३०). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-४२. नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व१ अजीव; अंति: कालिवलि अनंतगुणा छइ. ४९१९८. नवतत्त्व, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २,प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२७४११.५, १५४५२). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-४९. ४९१९९. (+) नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, ९४३७). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणागयद्धा अणतगुणा, गाथा-४३. ४९२००.(+) नवतत्त्व सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११,५४४६). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-४३, (प्रले. मु. जेठा ऋषि; गुपि. मु. राजपालजी ऋषि (गुरु मु. वेलजी ऋषि, गुजराती गच्छ); मु. वेलजी ऋषि (गुरु मु. नानजी ऋषि, गुजराती गच्छ); मु. नानजी ऋषि (गुजराती गच्छ); मु. जसराज ऋषि (गुरु मु. धर्मसिंह, लुंकागच्छ); मु. धर्मसिंह (गुरु मु. सिद्धराज ऋषि, लुंकागच्छ); पठ. मु. खीमजी ऋषि (गुरु मु. जेठा ऋषि, लुंकागच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्व१ अजीवतत्व२; अंति: अनंत पुद्गल जाइ. ४९२०१. (+) नवतत्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. मु. प्रमानंद (गुरु पं. देवजी ऋषि); गुपि.पं. देवजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२,१५४३६). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: नाहं मरणस्स बीहामि, गाथा-९८. ४९२०२. (+) नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२७४११, १३४३६). नवतत्त्व प्रकरण,प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-४४. ४९२०३. आलोचनास्तव सह टबार्थ, संपूर्ण, श. १६५५, ज्येष्ठ कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२६४१२, ५४३६). रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल; अंति: श्रेयस्करं प्रार्थये, श्लोक-२५, संपूर्ण. रत्नाकरपच्चीसी-टबार्थ*मा.गु., गद्य, आदि: श्रेयः कहतां कल्याण; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा १ अपूर्ण मात्र का टबार्थ लिखा है.) ४९२०४. वीरनिर्वाण सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६.५४१२, १३४३६). For Private and Personal Use Only Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ महावीरजिननिर्वाण सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदिः आधार ज हूतो रे एक; अंति: वरीया शीवपद सार, गाथा-१५. ४९२०५ (+) श्रावकव्रत भंग विचार सह अवचूरी, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. पंचपाठ, जैवे. (२६.५४११.५. १२X४६). " श्रावकव्रतभंग प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: पणमिअ समत्थपरमत्थवत; अंति: वित्थरं नाउमुज्जमह, गाथा - ४१. श्रवकव्रतभंग प्रकरण-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: व्रतं नियमविशेष: अंति: विरतरूपभेदद्वयाधिके. ४९२०६. (+) ऋषभपंचाशिका सह अवचूरी, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ- पंचपाठ, जैदे., (२६.५X११.५, ११४५७). 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ऋषभपंचाशिका, क. धनपाल, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: जयजंतुकप्पपायव चंदाय; अंति: बोहित्थ बोहिफलो, गाथा - ५०. ऋषभपंचाशिका - अवचूरि, सं., गद्य, आदि: सुरैः प्रणतपादस्य; अंति: दर्शयति धनपाल इति. " ४९२०७ (+) विष्णु स्तुति संग्रह - गूढार्थ सह व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जैवे., (२५.५x१०.५, २१४५४). विष्णु स्तुति संग्रह- गूढार्थ, सं., पद्य, आदि: पायाद्वः करुणा रणा, अंति: (-), (पू.वि. श्लोक संख्या नहीं लिखा है.) विष्णु स्तुति संग्रह- गूढार्थ - व्याख्यान, मु. राजशेखरसूरि शिष्य, सं., गद्य, आदि: विष्णुः कृष्णो वो; अंति: (-). ४९२०८. जैनेंद्रसूरि सज्झाय व गुरुगुण गहुंली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५X११.५, १२X३८). १. पे. नाम. जैनेंद्रसूरि पाट महोत्सव स्वाध्याय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. जिनेंद्रसूरि सज्झाय, मु. वल्लभसागर, मा.गु., पद्य, आवि: आज गछराज महाराज मोनु, अंति: लगन अडग तुज बार थापी, गाथा - ९. २. पे. नाम. गुरुगुण सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. जिनेंद्रसूरि गली, मु. वल्लभसागर, मा.गु., पद्य, आदि: चालो सहेली सहु मिलि अंति: वल्लभ० तपगछ राणा, गाथा - ६. ४९२०९. वीस स्थानक नाम सह बालावबोध व औपदेशिक श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. त्रिपाठ., " जैदे., ( २६.५x११, २X३५). १. पे. नाम. बीस स्थानक नाम सह बालावबोध, पृ. १- १आ, संपूर्ण. लोक संग्रह, प्रा.मा.गु. सं., पद्य, आदि (-) अंति: (-) श्लोक-१. " २० स्थानकतप गाथा, प्रा., पद्य, आदि: अरिहंत१ सिद्ध२ पवयण३; अंति: तित्थएरत्तं लहइ जीवो, गाथा-३. २० स्थानकतप गाथा-बालावबोध, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंतना गुण कीर्तन, अंति: चरित्र मध्ये कहु छइ, २. पे. नाम. औपदेशिक लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. गाथा - २१. ११५ ४९२१०. प्रायश्चित विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. वि. १७४४ में ऋषि वेलजी के द्वारा उपलेटा में लिखित प्रत की प्रतिलिपि है., दे., (२६X११, १८४५२). १. पे नाम. श्रावक प्रायश्चित विधि, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. श्रावक आलोयणा विचार, प्रा., मा.गु., सं., प+ग., आदिः यथा नाणा सायणाए मास, अंतिः दुक्कडं तस्स. २. पे. नाम. साधु प्रायश्चित विधि, पृ. १आ-२अ संपूर्ण. साधुप्रायश्चित विधि, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानातिचारे यथा अंतिः तो तथा धोवइ उपवास. ४९२११. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैवे. (२६४११.५ १३४४१). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्म, वि. १वी, आदि कल्याणमंदिरमुदार, अंतिः कुमुदचं० प्रपद्यते, लोक-४४. For Private and Personal Use Only ४९२१२. (+) वीरथुई अध्ययन व महावीरजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, ले. स्थल. अमरसर, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७X१२, ५X४०). १. पे नाम वीरथुईनामज्झयणं सह टवार्थ, पृ. १आ-४आ, संपूर्ण, ले. स्थल अमरसीर प्रले. मु. रतीराम प्र.ले.पु. सामान्य. 1 Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ११६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सूत्रकृतांगसूत्र - हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण, अंति आगमीस्सति त्तिबेमि, गाथा - २९. "" सूत्रकृतांगसूत्र - हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन का टवार्थ, पुष्टिं गद्य, आदि: पु० नरकर विभत्ति सुण अंतिः स्वामी जंबूस्वामी स २. पे नाम महावीरजिन स्तुति, पृ. ४आ, संपूर्ण, पे. वि, यह कृति बाद में लिखी गई है. प्रा. मा.गु. सं., पद्य, आदि: पंचमहव्वयसुव्वयमूलं अंतिः धीरा च कावरा होती, गाथा- १३. ४९२१३. (+) चौवीसजिन परिवार संख्या, आवश्यक क्रियानाम व सत्तर भेदी पूजा, संपूर्ण, वि. १६४३, फाल्गुन शुक्ल, ७, रविवार, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३. ले. स्थल. अहंम्मदाबाद, पठ. श्राव. मेघजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें.. जैदे. (२६११.५, ११४४०). www.kobatirth.org " १. पे. नाम. चौवीसजिन परिवार संख्या, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिनपरिवार संख्या गणणं, मा.गु. गद्य, आदि: (-); अंति: (-). " २. पे. नाम साधु आवश्यक क्रिया नाम, पृ. १अ, संपूर्ण विचार संग्रह *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. सत्तर भेदी पूजा, पृ. १आ - ३आ, संपूर्ण. १७ भेदी पूजा, मा.गु., पद्य, आदि: रयण कंचण रयण कंचण, अंति: पूजा श्रीअरिहंत, गाथा-१७. ४९२१४. पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे. (२६.५४११.५, १२४३९). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्श्वजिन स्तवन, आ. दुर्गादास, मा.गु. पच, वि. १६३१, आदि: पासजिणेसर पय नमउं; अंतिः दुर्गदासगणि० सुहंकरो, गाथा - १५. (वि. प्रतिलेखक ने गाथा क्रमांक १६ की जगह १५ ही लिखा है.) ४९२१५. उवसग्गहरं स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, बे. (२६४९२.५, ११४५०). उवसग्गहर स्तोत्र - गाथा १, आ. भद्रवाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि उवसग्गरं पास पास अंतिः भवे भवे पास जिणचंद, गाथा - १३. ४९२१७. (+) प्रज्ञाप्रकाशषट्त्रिंशिका सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६X११, ५X३६). प्रज्ञाप्रकाशषट्त्रिंशिका, मु. रूपसिंह, सं., पद्य, आदि: प्रज्ञाप्रकाशाय नवीन, अंति (-) (पू.वि. गाथा ३० अपूर्ण तक " है.) प्रज्ञाप्रकाशषट्त्रिंशिका - टवार्थ मे, मा.गु., गद्य, आदि: प्र० बुद्धिप्रकाश कर, अति: (-). ४९२१८, (+) वाक्य प्रकाश, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है, जै.. (२६×११, २०x४७). वाक्यप्रकाश, ग. उदयधर्म, सं., पद्य, वि. १५०७, आदि: प्रणम्यात्मविदं; अंति: उदयधर्म० प्रकाशोयं, श्लोक-१२५. ४९२१९. गुरुगुण गहुंली, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., ( २६११.५, १०x३८). गुरुगुण गहुंली, आ. विबुधविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुंदरी हे सुंदरी शुभ, अंति: विबुधविमल० मंगल माल, गाथा-७. " ४९२२०, (4) अमरसेनवयरसेन कथा संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, प्रले. मु. रागविमल (गुरुग, रविविमल); गुपि. ग. रविविमल (गुरु ग. देवविमल गणि पंडित); ग. देवविमल गणि पंडित, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६११, १४४५५). अमरसेनवयरसेन कथा, सं., गद्य, आदि: जावइ सुपत्तदाणं भोगा अंतिः भवे सिद्धि जास्यतः. , ४९२२१. (+) गुणस्थानक्रमारोह व सुभाषित श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, ले. स्थल. उग्रसेनपुरनगर, प्र. मु. कमलविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-वचन विभक्ति संकेत-संधि सूचक चिह्न-क्रियापद संकेत - अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैवे. (२६.५४११. १४४४६). १. पे. नाम. गुणस्थानक्रमारोह, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ११७ आ. रत्नशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १४४७, आदि: गुणस्थानक्रमारोह हत; अंति: चैव रत्नशेखरसूरिभिः, श्लोक-१३६. २. पे. नाम. सुभाषित श्लोक, पृ. ४आ, संपूर्ण... श्लोक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. ४९२२२. (+) जिन पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १३४३६). १. पे. नाम. श्रेयांस गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. श्रेयांसजिन पद, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुण सनेही श्रीजिन; अंति: सोहग० छइ असूल रे, गाथा-४. २. पे. नाम. वासुपूज्य गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. वासुपूज्यजिन पद, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वासुपूज्य मेरो नंदन; अंति: सोभाग० पेखत जग आणंदण, गाथा-४. ३. पे. नाम. विमल गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. विमलजिन पद, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मोहन जगगुरु तुं तो; अंति: सोहग नमइ आणंद, गाथा-३. ४. पे. नाम. विमल गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. विमलजिन पद, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिनपतिराज हयरी विमल; अंति: सौभाग्य सब काजरे, गाथा-५. ४९२२३. विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६४११, १५४७६). १. पे. नाम. गोचरी के ५३ दोष बोलगाथा सह टबार्थ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. गोचरी के ५३ दोष बोलगाथा, प्रा., पद्य, आदि: उद्देसियंत्र कीयगडं२; अंति: निग्गंथाणं महेसिणं, गाथा-५३. गोचरी के५३ दोष बोलगाथा-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: उद्देसि कहता विकल्प; अंति: रिषिनइ जाणिवा टालिवा. २. पे. नाम. ऋतुवंती स्त्री गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. रजस्वला स्त्री विचार, प्रा., पद्य, आदि: जा पुप्फपवाह जाणिऊण; अंति: सिद्धांतविराहगो सोऊ, गाथा-६. ३. पे. नाम. औपदेशिक गाथा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. गाथा संग्रह* प्रा., पद्य, आदि: माहोइ सुयग्याई; अंति: तु बीहं त्रीजउं, गाथा-३. ४९२२४. इसर संख्या, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६४११, ११४४५). साधु आचार विवरण, मा.गु., पद्य, आदि: जाणइ अनइ पुछइ पुन्य; अंति: होइ तउ प्रणाम किजइ, गाथा-३०. ४९२२५. उपदेश सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२७४११.५, २१४५५). उपदेशछत्तीसी, ऋ. रतनचंद, मागु., पद्य, वि. १८६६, आदि: सादकरी सदगुरु समझावै; अंति: रत्नचंद०पातीक नास रे, गाथा-३६. ४९२२६. सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. मु. सौभाग्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११, ९४३६). सिद्धचक्र चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा.,मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: उप्पन्नसन्नाणमहोमयाण; अंति: सिद्धिचक्कं नमामि, गाथा-६. ४९२२७. (+) साधारण स्तवन, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, १३४४०). तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके; अंति: मध्ये त्रिसंध्यं, श्लोक-८. ४९२२८. अवधिज्ञान स्तवन व विरुदावली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, १५४४५). १. पे. नाम. अवधिज्ञान स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पूजो पूजो अवधिज्ञान; अंति: जयलक्ष्मी सुख धामरे, गाथा-५. २. पे. नाम. राठौर महाभड बिरुदावली, पृ. १आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: कवि राव कहो जस; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ५ अपूर्ण तक लिखा है.) ४९२२९. नागला सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४१२, १२४३६). नागिलाभवदेव सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: भूदेव भाई घरे आविया; अंति: समयसुंदर सुखकार रे, गाथा-१७. For Private and Personal Use Only Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४९२३०. मौन एकादशीगणुनू, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२५.५४११,१२४३६). मौनएकादशीगणना, सं., गद्य, आदि: श्रीमहाजससर्वज्ञाय; अति: अरण्यदेवनाथाय नमः. ४९२३२. पंचमीतप विषये गुणमंजरी वरदत्त कथाप्रसंगगर्भित वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२५.५४१२, १६x४०). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९३, आदि: सुत सिद्धारथ भूपनो; अंति: सकल भवि ___ मंगल करे, ढाल-६, गाथा-६८. ४९२३३. (#) उत्सूत्रपदोद्घाटन कुलक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१०.५, १०४३९). जिनदत्तोपज्ञ कुलक, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., पद्य, आदि: लिंगी जत्थ गिहिव्व; अंति: जिण कुणंति ताणि न ते, श्लोक-३०. ४९२३४. (#) समसरण स्तवन व यंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२६.५४११, १६४६८). १.पे. नाम. समवसरण स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. समवसरण स्तव, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, आदि: थुणिमो केवलीवत्थं; अंति: कुणउ सुपयत्थं, गाथा-२४. २. पे. नाम. समवसरण क्षेत्रमान यंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. जैनयंत्र संग्रह*, मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: (-). ४९२३५. जीरापल्ली पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १६८६, वैशाख कृष्ण, ११, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. अह्मदनगर, जैदे., (२५.५४१०.५, ९४३४). पार्श्वजिन स्तव-जीरापल्ली, आ. लक्ष्मीसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीवामेयं विधुमधुसु; अंति: श्रेयलक्ष्मीविशेषा, श्लोक-१३. ४९२३६. (+) भागवंत स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. कृष्णगढ, प्रले. ग. रूपसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १४४५६). षट्भाषा स्तवन, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: नमो महसेन नरेंद्र; अंति: सुखानि विभो वितर, श्लोक-१३. ४९२३७. शारदाष्टक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, ११४३४). शारदाष्टक, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: नमो केवल नमो केवल; अंति: परमपद तजि संसार कलेस, गाथा-१०. ४९२३९. (-) सनत्कुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. लखमीईष भाई; पठ. सा. आजीबाई आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, १७४३९). सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. लक्ष्मीमूर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: जोइ वमासी जीव तुं; अंति: लछिछमूहरति० सवि फलि, ढाल-७, गाथा-४४. ४९२४०. (#) सज्झाय व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४११.५, १८४४६). १.पे. नाम. प्रवचन सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. असज्झाय विचार सज्झाय, मु. गुणसागरशिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: वंदिइ वीर जिणेसर राय; अंति: गति रमणि हेलासुं वरो, गाथा-२४. २. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: लाख सीयाणो कोडि; अंति: जे चउद विद्याना जाण, श्लोक-२. ३. पे. नाम. चउद विद्या सह बालावबोध, पृ. १आ, संपूर्ण. १४ विद्या नाम, सं., पद्य, आदि: षडंग वेदाश्चत्वारो; अंति: विद्या एता चतुर्दश, श्लोक-१. १४ विद्या नाम- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: शिख्या १ कल्प २; अंति: जूनी वार्तानो ग्रंथ. For Private and Personal Use Only Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ४. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ध्यान म्लेच्छ दया; अंति: तदा मुक्ति करे तथा, श्लोक-१. ४९२४१. (+) सज्झाय संग्रह, स्तवन व श्लोक, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. कुल पे. ६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १५४५२). १. पे. नाम. खंधकमुनि सज्झाय, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण, वि. १८वी, प्रले. मु. जेठा ऋषि (गुरु मु. राजपाल ऋषि, लुंकागच्छ); गुपि. मु. राजपाल ऋषि (गुरु मु. वेलजी ऋषि, लुंकागच्छ); मु. वेलजी ऋषि (गुरु मु. नानजी ऋषि, लुंकागच्छ); मु. नानजी ऋषि (गुरु मु. जसराज ऋषि, लुंकागच्छ); अन्य. मु.खीमजी ऋषि (गुरु मु. वेलजी ऋषि), प्र.ले.पु. मध्यम. मु. जयसिंघ ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १७५५, आदि: गौयम गणधर मन धरु; अंति: ऋषि जयसिंघ गुण गाय, ढाल-४, गाथा-२८. २. पे. नाम. नवकार स्वाध्याय, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण, प्रले. मु. जेठा ऋषि (गुरु मु. राजपाल ऋषि, लुंकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य. नवकार सज्झाय, मु. आनंदहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनवकार महिमा घणो; अंति: आणंद हरख अपार रे, गाथा-२१. ३. पे. नाम. मृगापुत्र सज्झाय, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण, वि. १७६८, ले.स्थल. मझेवडी, प्रले. मु. जेठा ऋषि (गुरु मु. राजपाल ऋषि, लुकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य.. मा.गु., पद्य, आदि: सुगरीव नगरी सोहामणी; अंति: गाए उलहास वैरागी, गाथा-२४. ४. पे. नाम. एलाचीपुत्र नी सज्झाय, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. एलाचीपुत्र सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नामे एलाचीपुत्र जाणी; अंति: इम कृतीवजे गुण गाय, गाथा-१२. ५. पे. नाम. पासजिन स्तवन, पृ. ८आ, संपूर्ण, प्रले. मु. जेठा ऋषि (गुरु मु. राजपाल ऋषि, लुकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य. पार्श्वजिन छंद-नाकोडातीर्थ, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: अपने घरि बेठा लील; अंति: पास जपो श्रीजिन रूडो, गाथा-७. ६. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ८आ, संपूर्ण, प्रले. मु. जेठा ऋषि (गुरु मु. राजपाल ऋषि, लुंकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक , प्रा.,सं., पद्य, आदिः येषां न विद्या न तपो; अंति: तस्मात् तुल्यता कथम्, श्लोक-६. ४९२४२. (#) जिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १७४३७). ४८ जिन स्तवन-भरत-महाविदेहक्षेत्रगत, मा.गु., पद्य, वि. १६७२, आदि: श्रीजिनपाय प्रणमीय; अंति: गरुया खमयो जिनराज ए, गाथा-२१. ४९२४३. (+#) रागमाला शांतिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११.५, २०४४२). शांतिजिन स्तवन-रागमाला, मु. सहजविमल, मा.गु., पद्य, आदि: वंछित पूरण मनोहरु; अंति: वांछीत काज सवे फलइए, गाथा-३९. ४९२४४. शांतिनाथ स्तवन व नागला गीत, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६.५४११.५, १०४३८). १.पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. केशव, मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिनेश्वर सोलमा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ७ अपूर्ण तक लिखा है.) २. पे. नाम. नागला गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नागिलाभवदेव सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: भावदेव भाई घरि आवीया; अंति: समयसुंदर सुखकार रे, गाथा-८, (वि. प्रतिलेखक ने दो गाथाओं को एक गाथा गिना है.) ४९२४५. अइमुत्तामुनि सज्झाय व पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. दीव बंदर, प्रले. मु. वेलजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४११, १५४५१). १.पे. नाम. अइमुत्तामुनि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ००० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. कहानजी ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: इक दिन रित वरसातनी; अंति: कहान० चतुर सुजाण रे, गाथा-१६. २.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथ तुझ; अंति: करी सेवक मुझ थापो, गाथा-८. ४९२४६. (#) जिनबल, स्तवन व सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५.५४११.५,११४२७). १.पे. नाम. तीर्थंकरबल वर्णन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. केशव, मा.गु., पद्य, आदि: बार पुरष बलमान सो बल; अंति: केशव० अनंत वखानीयै, गाथा-२. २.पे. नाम. संभवनाथ स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. __ संभवजिन स्तवन, मु. अभयराज, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु प्रणमुरे संभव; अंति: अभेराज० ने हेला तरे, गाथा-१२. ३. पे. नाम. धर्मफल स्वाध्याय, पृ. २आ, संपूर्ण. दानशीलतपभावना प्रभाति, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: रे जीव जिनधर्म कीजिइ; अंति: समयसुंदर० तणो दातार, गाथा-६. ४९२४७. भरतबाहुबली कडका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५.५४१२, १७X४२). भरतबाहुबली संवाद, मु. कुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सारद माता समरीया; अंति: प्रणमुं शिरनामी, गाथा-६३. ४९२४८. मुक्तिगमन डीगरी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४१२, १८४३८). मुक्तिगमन सज्झाय, पुहि., पद्य, ई. १९२८, आदि: तीर्थंकर महावीरने; अंति: सन उगणीसे अठाइ जी, गाथा-२०. ४९२४९. (+) उतपत्ति सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, २२४६१). औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: उतपति जोज्यो आपणी; अंति: रंगइ० कहइ श्रीसार ए, गाथा-७०. ४९२५०. (#) कलजुग वीनती, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, दे., (२६.५४१२.५, १४४४०). औपदेशिक पद, मु. चंदुलाल, मा.गु., पद्य, आदि: सिमर श्रीसतगुर के; अंति: सब भोव भौव के झडनन, गाथा-८. ४९२५१. जिन बारखडी, संपूर्ण, वि. १८३२, कार्तिक शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२६.५४१२, १६४३२). बारहखडी छंद, पुहिं., पद्य, आदि: प्रथम नमो अरिहंत को; अंति: छंद कहे छत्तीस, गाथा-४१. ४९२५२. पद व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८४१, फाल्गुन शुक्ल, १०, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ६, ले.स्थल. रामगढ, प्रले. श्राव. कुस्यालराय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १७-२०४४३). १.पे. नाम. ज्ञान धमाल, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: चेतन ना गर हो चेतन; अंति: वो हर नकल मै ऐहो, गाथा-९. २. पे. नाम. नेमिनाथ पद, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमजिन पद, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: देखो नेमनाथ की वातै; अंति: लालचद० नारी माय, गाथा-४. ३. पे. नाम. नेमराजीमती पद, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, पंन्या. भूधर, पुहि., पद्य, आदि: विलमन लाय पठाय जिहा; अंति: वलसुं पहलो रंग करोरी, गाथा-५. ४. पे. नाम. छित्मनी जकडी, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण, वि. १८४१, फाल्गुन कृष्ण, ४, शनिवार. औपदेशिक सवैया, मा.गु., पद्य, आदि: सुख को सागर राम का; अंति: काछो जनछीत्म बलिहारी, गाथा-१०. ५. पे. नाम. कर्मछत्तीसी, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. कर्मछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६८, आदि: कर्म थकी छूटे नही; अंति: समयसुंदर० प्रसादजी, गाथा-३६. ६.पे. नाम. २३ पदवी सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: गणधर गौतमस्वामी जी; अंति: लहै इम कहै ऋषभारो रे, गाथा-९. ४९२५३. श्रीदेवी पदमकमल वर्णन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२७.५४१२, १५४२६). For Private and Personal Use Only Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ श्रीदेवी कमलस्वरुप वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: गउं४ च्यार नौ लाखउ; अंति: नौ अधिकार कह्यो छइ, (वि. यंत्र सहित) ४९२५४. (+) स्वाध्याय व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, १२४३४). १.पे. नाम. गौतम स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. पीतांबर, प्र.ले.पु. सामान्य. गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीरजिनेश्वर केरो शिष; अंति: गौतम तूठे संपति कोडि, गाथा-९. २. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: जगजीवन जगतार रे विजय; अंति: उदयगायो में सुखे रे, गाथा-१०. ४९२५५. औपदेशिक गीत, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४१०.५, १४४४७). रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: वर्द्धमान जिन वंदीयइ; अंति: काइ न राखइ आसोरे, गाथा-१२. ४९२५६. अजीव भेद सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६.५४१०.५, २०४६४). जीवअजीव के रूपीअरूपीभेद गाथा, प्रा., पद्य, आदि: धम्माधम्मागासा तिय; अंति: हवंति अंतो मुहत्तेणं, गाथा-८. जीवअजीव भेद गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: धर्मास्तिकाय १ अधर्म; अंति: भवें मुहर्त होइ. ४९२५८. (+) कविशिक्षा-छंदसिद्धिप्रतान पर्यंत सह काव्यकल्पलता वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १९४७२). कविशिक्षा, श्राव. अरिसिंह , सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: वाचं नत्वा महानंदकर; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. कविशिक्षा-काव्यकल्पलतावृत्ति, य. अमरचंद्र, सं., गद्य, वि. १३वी, आदि: विमृश्य वाङ्मय; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ४९२५९. सुजस विलास भास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२५.५४११, ११४५०). सुजशवेली भास, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी सरसति सामिनीज; अंति: कांति० धन धन दीहा रे, ढाल-४, गाथा-५२. ४९२६०. (+) वंदेतु गाथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११, ६४३५). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदेतु सव्वसिधे धमाय; अंति: वंदामि जिणे चोवीसं, गाथा-५१. वंदित्तुसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: वंदी सर्व ज्ञान अनइं; अंति: जीव खमउ माहरउ अपराध. ४९२६२. पौषध कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९०, आश्विन शुक्ल, ६, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. श्राव. खूबचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४११.५, ५४३४). पुण्यपाप कुलक, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: छत्तीसदिणंसहस्सा ३६०; अंति: जिण० धम्मंमि उजमिह, गाथा-१६. पुण्यपाप कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: छत्तीस हजार दिवश दिह; अंति: एतले लाभ कहै छै. ४९२६३. (+) नवतत्व व आठकर्म आयु, अपूर्ण, वि. १८३६, वैशाख कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. जावालग्राम, पठ. मु. चतुरा (गुरु ग. कपूरविजय); गुपि. पंन्या. केसरविजय (गुरु मु. सुमतिविजय); ग. कपूरविजय (गुरु पंन्या. केसरविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२, १३४३८). १.पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण.. प्रा., पद्य, आदि: जीवाश्जीवार पुण्ण३; अंति: बुद्धबोहिक्कणिक्काय, गाथा-५२. २. पे. नाम. आठ कर्मस्थिति विचार सह टबार्थ, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. ८ कर्मस्थिति विचार, प्रा., पद्य, आदि: नाणे दंसणावरणे वेयणि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३ अपूर्ण तक है.) ८ कर्मस्थिति विचार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नाणावरणीकर्म १ दर्शन; अंति: (-). ४९२६६. संयोगबत्रीसी भाषा, संपूर्ण, वि. १८२०, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. सांडेरा, जैदे., (२६४११.५, १५४४६). संयोगद्वात्रिंशिका भाषा, मु. मान, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: बुद्धिवचन वरदायनी, अंति: रचीयु संयोगबत्तीसी, अध्ययन-४, गाथा-७३. For Private and Personal Use Only Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org (२५.५X१०.५, १५X४५). १. पे. नाम. दीक्षा विधि, पृ. १अ संपूर्ण कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२२ ४९२६७. दीक्षा-अनुयोगादि विधि संग्रह - भगवती सूत्रे - शतक ८ उद्देश- ६, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, जैदे., प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: प्रदक्षिणात्रयं; अंति: देशना काराति गुरु. २. पे. नाम. अनुयोग विधि, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. प्रा., मा.गु.,सं., गद्य, आदि: मुहपत्ती पडिलेही, अंतिः एतलई अनुयोग विधि. ३. पे. नाम. साधुवंदन चैत्यादिरूप उपस्थापना विधि, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. उपस्थापना विधि, प्रा., मा.गु.. गद्य, आदि अनुयोग सायं प्रतिक्र, अंति: गुण नमतु ज्येष्ट. ४. पे. नाम. गणि पदवी उपस्थापना विधि, पृ. २आ, संपूर्ण. नंद विधि, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: षाण्मासिक नंदि पंचमे; अंतिः शतेष्टोद्देशके. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९२६८. निसाणी संग्रह, संपूर्ण, वि. १८२६, चैत्र कृष्ण, ४, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ४, ले. स्थल. बिलाडानगर, प्र. वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है., जैदे., (२५.५X११, १३x४०). १. पे. नाम. पार्श्वनाथ नीसाणी, पृ. १अ ३अ संपूर्ण. पार्श्वजिन निसाणी-घरघर, मु. जिनहर्ष, पुडिं, पद्य, आदिः सुखसंपत्तिदायक सुरनर, अंतिः जिणहरष कहंदा है, गाथा - २७, (वि. प्रतिलेखक ने गायांक नहीं लिखा है.) २. पे. नाम. भवानीदेवी घघ्घर नीसाणी, पृ. ३अ - ४अ, संपूर्ण. भवानीदेवी घघर निसाणी, भवानी, मा.गु., पद्य, आदि: खेजडला गांम भवानी; अंति: कवीसर भवानी भणंदा है, गाथा - १६, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) ३. पे. नाम. गुरुशिक्षा नीसाणी, पृ. ४अ ४आ, संपूर्ण. गुरुशिष्य कथन निसानी, मु. धर्मसी, मा.गु., पद्म, आदिः इण संसार समुद्र को अंतिः धरमसी सुख होइ सुलदा, गाथा-७, (वि. प्रतिलेखक ने गायांक नहीं लिखा है.) ४. पे. नाम. वैराग्य नीसाणी, पृ. ४आ, संपूर्ण. वैराग्य निशानी, मु. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदिः काया माया कारिमी अंतिः परा सुख होइ सटकी, गाथा-६, (वि. प्रतिलेखक ने गायांक नहीं लिखा है.) ४९२६९. स्तोत्र व मंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५.५X११.५, १२X४६). १. पे. नाम पद्मावतीदेवी स्तोत्र, पृ. १अ २आ, संपूर्ण पद्मावतीदेवी स्तोत्र - सबीजमंत्रयुत, मु. मुनिचंद्र, सं., पद्य, आदिः ॐ ॐ ॐकार बीजं; अंतिः अमरापदमाश्रितम्, श्लोक-२६, (वि. बीज मंत्र सहित) २. पे. नाम. राजयोग मंत्र, पृ. २आ, संपूर्ण मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., प+ग, आदि: (-); अंति: (-). ४९२७० (-) वस्तुपाल तेजपाल रास, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५X११, १३-१५X३६). वस्तुपालतेजपाल रास, आ. पार्धचंद्रसूरि, मा.गु, पद्य, वि. १६वी, आदि: जिण चडवीसह चलण नमेवी, अंति पासचंसूरि० लहंति, गाथा-८५. ४९२७१ (+) अरणिक ऋषि सझाय, संपूर्ण वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. मु. विद्यारत्न (गुरु आ. कल्याणरत्नसूरि, तपगच्छ); पठ श्रावि. हरवाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जै, (२५.५४११.५, १३४३६). अरणिकमुनि सज्झाय, मु. विद्यारत्न, मा.गु, पद्य, वि. १७७७, आदिः समरी सरसति सामिनी अंतिः विद्यारत्न आनंद, ढाल ६. ४९२७२. स्तवन व पद, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२६X११, १६x४८). For Private and Personal Use Only Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ १. पे. नाम. गुरुगुण स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरिगीत, पंडित. रत्नविनय, पुहि., पद्य, आदि: चरणकमल प्रणमति सदा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ३५ तक लिखा है.) २. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. वस्तुतः यह कृति पृष्ठ संख्या- १ के हासिये में लिखी हुई है. पार्श्वजिन पद-गोडीजी, पुहि., पद्य, आदि: जलवट थलवट जंगमै दुसम; अंति: पर जिम तिम राखौ लाज, गाथा-३. ४९२७३. (+) यमकबद्ध पार्श्वजिन स्तवन सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. ग. रंगकुशल (गुरु वा. कनकसोम), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२५.५४११, १८४६७-७१). पार्श्वजिन चैत्यवंदन-यमकबद्ध, मु. शिवसुंदर, सं., पद्य, आदि: वरसं वरसं वरसं वरस; अंति: शिवसुंदर सौख्यभरम्, श्लोक-७. पार्श्वजिन चैत्यवंदन-यमकबद्ध-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: वरा प्रधाना संवरस्य; अंति: अविभस्तस्य संबोधनं. ४९२७४. (+) जीव विचार व १४ नियम गाथा, संपूर्ण, वि. १८३६, वैशाख कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. जावालनगर, प्रले.मु. चतुरा (गुरु ग. कपूरविजय); पठ. ग. कपूरविजय (गुरु पंन्या. केसरविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२.५, १३४३४). १. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: शांतिसूरि० समुद्दाओ, गाथा-५१. २. पे. नाम. चौद नियम, पृ. ३अ, संपूर्ण. श्रावक १४ नियम गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सच्चितर दिव्वर विगइ३; अंति: न्हाण१३ भक्तिसु१४, गाथा-१. ४९२७५. (+) कायस्थिति स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८१, फाल्गुन अधिकमास कृष्ण, ६, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. वीशलनगर, प्रले. ग. वीरविजय मुनि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२.५, ४४३५). कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमंडनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जह तुह दंसणरहिओ काय; अंति: अकायपयसंपयं देसु, गाथा-२४. कायस्थिति प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: जिम ताहरा दर्शन रहित; अंति: संपदा प्रते दिओ. ४९२७६. अजित शांति, संपूर्ण, वि. १८९९, ज्येष्ठ शुक्ल, २, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. समुद्रडी, प्रले. पं. सुखसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२.५, ११४४४). अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत; अंति: जिनेंद्रवरशासनं जयति, गाथा-४३. ४९२७७. धनपालादि कथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, १०x४७). कथा संग्रह**, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. धनपाल कथा के आदिवाक्य तथा अन्य के मात्र शीर्षक दिये गए हैं.) ४९२७८. (+) कल्पसूत्र व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१०.५, १७७५५). १.पे. नाम. कल्पसूत्र व्याख्यान, पृ. १आ, संपूर्ण. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: नमः श्रीवर्धमानाय; अंति: जिम सुख पामे. २. पे. नाम. जरासंध युद्ध वर्णन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. मा.गु.,सं., गद्य, आदि: आदित्यवारे द्वयोरपि; अंति: (-), (पू.वि. घयउ माठउ तक पाठ है.) ४९२७९. सामुद्रिक शास्त्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., (२६४१२.५, ८x२३). सामुद्रिकशास्त्र, सं., पद्य, आदि: आदिदेवं प्रणम्यादौ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-३४ तक लिखा है.) ४९२८०. फाग व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२.५, १३४३५). For Private and Personal Use Only Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. आदिजिन फाग, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन पद, पुहिं., पद्य, आदि: बाबा ऋषभ बैठे अलबेली; अंति: राखौ प्रभु अपना करकै, गाथा-६. २. पे. नाम. शीखामण स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: सुधो धर्म मकिस विनय; अंति: सो चिरकाले नंदोरे, गाथा-८. ४९२८१. स्तोत्र व स्तवन, संपूर्ण, वि. १८४२, वैशाख शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. मेदनीपुर, प्रले. य. वीरचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १५४३२). १. पे. नाम. बृहत् शांति, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: पूज्यमानो जिनेश्वरः. २. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण.. मु. सत्यसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८२३, आदि: सिद्धचक्र आराहीयै; अंति: सत सागर मनही जगीस रे, गाथा-१३. ४९२८६. श्रावक अतिचार व सामायक पारवानी गाथा, संपूर्ण, वि. १८८६, आश्विन शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, पठ. मु.खूभा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १२४३८). १.पे. नाम. श्रावक अतिचार, पृ. १अ, संपूर्ण. श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि अ; अंति: सोविरिआ आयारो. २. पे. नाम. सामायक पारवानी गाथा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: सामाइयवयजुत्तो जाव; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. ४९२८७. साधु अतिचार सूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२, १२४३२). १. पे. नाम. साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: ठाणे कमणे चंकमणे आउत; अंति: तस्स मिच्छामिदुक्कडं. २. पे. नाम. रात्रि अतिचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. साधुराईप्रतिक्रमण अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: संथारा उट्टणकी; अंति: तस्स मीच्छामी दुकडं. ४९२८८. ऋषभ पंचाशिका सह अवचूरी, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३,प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२५.५४११.५,१०४४६). ऋषभपंचाशिका, क. धनपाल, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: जयजंतुकप्पपायव चंदाय; अंति: बोहित्थ बोहिफलो, गाथा-५०. ऋषभपंचाशिका-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: अत्र जंतुशब्देन; अंति: बोहित्थं प्रवहणं. ४९२८९. रास व स्तवन, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१०.५, १२४४१). १. पे. नाम. नवकार रास, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, पठ. श्रावि. धफाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य. नमस्कार महामंत्र रास, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलीजी लेसि अरिहंत; अंति: भुवनमाहे एही ज सार, गाथा-१६. २. पे. नाम. जीराउला पार्श्वनाथ विनती, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन लघुस्तवन, मु. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: जीरावलउ छई कलिकाल; अंति: ए वीनती बोलइ भगतिलाभ, गाथा-८. ४९२९०. जय तिहुअणस्तोत्र सह अवचूरी, संपूर्ण, वि. १५३१, ज्येष्ठ शुक्ल, २, रविवार, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२६४११,१०४४४). जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख; अंति: अभयदेव विन्न० आणदिउ, गाथा-३०. जयतिहअण स्तोत्र-टीका, सं., गद्य, आदि: अत्रायं वृद्धसंप्रदा; अंति: स्त्रिलोकलोकश्लाघितः, ग्रं. २५०. For Private and Personal Use Only Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ १२५ ४९२९१. (+) नाणायत्तं सह टिप्पण, गंगा द्विपदी व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्र. वि. पंचपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६×११.५, १७X६२). १. पे. नाम. नाणादत्तं सह टिपपण, पृ. १अ - २अ, संपूर्ण. नाणाचित्त प्रकरण, आ. हरिभद्रसूरि *, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणं जगजीवबंधव, अंति: सो पोवेसइ मुक्खु, गाथा - ८२. नाणाचित्त प्रकरण- विषमस्थल टिप्पण, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. यथास्थल आवश्यक टिप्पण दिया गया है। २. पे. नाम. गंगाद्विपदी, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. 7 जाह्नवीस्तोत्र द्विपदी, सं., पद्य, आदि सर्व लघुक्षरे चारु, अंतिः मलिन कुसुमुचय चितं श्लोक ७. ३. पे नाम, जैन पारिभाषिक लोक संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा. सं., पद्य, आदि (-); अंति: (-), श्लोक १२. ४९२९२. (+) योनागम विचार कुलक व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., ( २६ १०.५, १३x४३). १. पे. नाम. योनागमविचार कूलक, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. पुण्यपाप कुलक, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: छत्तीसदिणसहस्सा, अंतिः जिणकित्ति० उज्जमिह गाथा - १६. २. पे. नाम. बृहत्संघयणी चयनित गाथा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा. सं., पद्य, आदि (-); अंति: (-), गाथा-३, (वि. बृहत्संग्रहणी की गाथा १८०, १८१ व १८२ है.) ३. पे. नाम. २४ जिन गर्भस्थितिकाल, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: दु चउत्थ नवम बारस, अंति: सत्त हुति गब्भदिणा, गाथा- ३. ४. पे. नाम. ज्योतिष श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्योतिष लोकसंग्रह, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-२. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९२९३ तिजयपहुत स्तोत्र की टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है, जैदे., (२५.५X११, १५x४३). तिजयपहुत्त स्तोत्र - टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, आदिः कृत्वा चतुर्णां अंति: (-), (वि. यंत्र सहित) ४९२९४. स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण वि. १९बी, मध्यम, पू. १, कुल पे. ३, जैवे. (२५.५४११, १३४४७). " १. पे नाम, अभिनंदनजिन स्तोत्र. पू. १अ १आ. संपूर्ण मु. विजयसेनसूरि-शिष्य, सं., पद्य, आदि: इंद्रोपेंद्रशुकेभभेक, अंति: सौख्यमतुलं सदावः, २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक-१०. पार्श्वजिन स्तोत्र- शंखेश्वर, सं., पद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथो अंतिः ममेसितं पूरयपूरयत्वं. , ३. पे नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, सं., पद्य, आदि: अजपुरावनि वक्र, अंतिः प्रबलं मम मंगलं, श्लोक ५. ४९२९५, (०) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५x११, For Private and Personal Use Only १२४३०). १. पे नाम, धुलिभद्र सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण, स्थूलभद्र सज्झाय, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि धुलिभद्र सठ कोश्या अंतिः शांतकुशल होली रे, गाथा-५, २. पे. नाम. सनत्कुमारचक्रवर्त्ती सज्झाय, पृ. १अ - २अ, संपूर्ण. सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्म, आदि: सरसति सरस वचन रस, अंति: लोग श्रीजे संभाली रे, गाथा - १५. ३. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. शांतिकुशल, मा.गु, पद्य, आदिः ससनेहि राजी भणइ नेम, अंतिः अविचल आधी मांडी जी गाथा १२. Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १२६ www.kobatirth.org गाथा - २०. ३. पे. नाम. दानोपरि सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. ४९२९८. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२५.५X११, २४X७४). १. पे. नाम. कठीयारानो दृष्टांत स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. कठियारादृष्टांत सज्झाय, मु. गुणविजय, मा.गु, पद्य, आदिः वीरजिनवर रे गौतमगणधर अंति: जंपर परम पदवी पामई, गाथा - १४. २. पे. नाम रात्रिभोजन सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, मु. विनय, मा.गु, पद्य, आदि: अवनीतल नवरी बसें जी अंतिः भोजन कीज्यो दीस रे, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक सज्झाय-दानफल, मु. लावण्यसमय, मा.गु, पद्य, वि. १६वी, आदि एक घरि घोडा हाथीआरे अंतिः दत्त प्रमाण रे जीवडा, गाथा- १७. ४. पे. नाम. धूलिभद्र सज्झाच, पृ. १आ, संपूर्ण. स्थूलभद्र सज्झाय, मु. शिवचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीथूलिभद्र मुनिवर, अंति: कहे वाचा अविचल पाली, गाथा- ८. ४९२९९. एकादशी व्रत सूचक सुव्रत ऋषि कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., ( २६.५X१०.५, १४४४८). मौनएकादशीपर्व कथा, प्रा., पद्य, आदि: सिरिवीरं नमिऊण पुच्छ; अंति: तह मुक्खसुक्खं, गाथा-१५६. ४९३००. कुलक व स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७१०, जीर्ण, पृ. ३, कुल पे. २, ले. स्थल, मेडता प्रले. सा. जीवाजी (गुरु सा. सरूपाजी); गुपि. सा. सरूपाजी (गुरु सा. प्रमाजी); सा. प्रमाजी (गुरु सा. रतना); सा. रतना; पठ. सा. घोनाजी (गुरु सा. जीवाजी), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२५.५X१०.५, १२-१४X३६). १. पे. नाम. दानशीलतपभावना कुलक, पृ. १आ- ३आ, संपूर्ण. मु. अशोकमुनि, प्रा., पद्य, आदि देवाहिदेवं नमिऊण, अंतिः सूरि खमउ तेणं, गाथा ४९. २. पे. नाम. घंटाकर्ण स्तोत्र, पृ. ३आ, संपूर्ण. २. पे नाम, विवपूजा परीक्षा, पृ. २८ अ-२८आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: पित्तलसुवन्नरुप रयणा; अंतिः तत्र यत्नो विधीयताम्, श्लोक-२७. ३. पे. नाम, खंडित प्रतिमा फलकथन, पृ. २८आ, संपूर्ण. घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः ॐ घंटाकर्णो महावीर: अंतिः नमोस्तु ते स्वाहा, श्लोक-४. ४९३०१. (+#) बिंब विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २८-२७(१ से २७) = १, कुल पे. ४, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, टिप्पणक का अंश नष्ट, जैवे. (२६११, २१४७२). ', १. पे नाम, विवपरीक्षा प्रकरण, पृ. २८अ संपूर्ण. वास्तुसार प्रकरण, ठक्कर फेरु, प्रा., पद्य, वि. १३७२, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू. वि. मात्र बिंबपरीक्षा प्रकरण है.) For Private and Personal Use Only सं., पद्य, आदिः आरभ्येकांगुलं बिंबं अंतिः नादत्तव्यायतस्ततः, श्लोक-६. ४. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. २८आ, संपूर्ण. लोक संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: निर्द्रव्यो धन, अंति: वायेत्तिकः पंडितोपि श्लोक - ६. ४९३०२, (+४) आवकव्रतभंग प्रकरण संग्रह सह अवचूरि व मिध्यादृष्टि अज्ञान भेद गाथा संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २. कुल पे. ३, ले. स्थल. मालव, प्र. वि. प्रत की लिखावट देखने से संवत् १५३८ में लिखित प्रत की प्रतिलिपि प्रतीत होती है., पंचपाठ- अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ संशोधित टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२६.५x११.५, १३३०). १. पे. नाम. श्रावकव्रतभंग प्रकरण सह अवचूरि, पृ. १अ - २आ, संपूर्ण. श्रावकव्रतभंग प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: पणमिअ समत्यपरमत्यवत, अति: वित्थरं नाउमुज्जमह, गाथा- ४१. आवकव्रतभंग प्रकरण अवचूरि, सं., गद्य, आदि: व्रतं नियमविशेष: अंतिः लक्षणात्वादिति. २. पे. नाम. श्रावकव्रतभंग संक्षिप्त विवरण, पृ. २आ, संपूर्ण, पे. वि. साथ में यंत्र दिया गया है. Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ संबद्ध, प्रा.,सं., गद्य, आदि: नमिऊणं चरमजिणं पुव्व; अंति: सूयं ज्ञेयाः. ३. पे. नाम. ४ मिथ्यादृष्टि अज्ञान भेद गाथा, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. साथ में यंत्र दिया गया है. प्रा., पद्य, आदि: नो जाणइ नो आयरइ नो; अंति: दिट्ठिस्स अन्नाणं, गाथा-४. ४९३०४. (+#) गाथा रत्नकोश सह टिप्पण, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पंचपाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १०४४४). गाहारयणकोस-चयन जिनस्तुति, प्रा., पद्य, आदि: पढमचिय पढमजिणस्स णमह; अंति: गणेहंण जोजइइ, गाथा-४६. गाहारयणकोस-चयन जिनस्तुति-टिप्पण, सं., गद्य, आदि: प्रथम जिनस्य चरणकमल; अंति: च न लुप्यति. ४९३०५. वीतराग स्तव अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२६.५४११.५, २७७८७). वीतराग स्तोत्र-दुर्गपदप्रकाश विवरण, आ. प्रभानंदसूरि, सं., गद्य, आदि: यः किल परात्मा; अंति: च सुलभैश्चेति समंजसं, ग्रं. २१२५. ४९३०७. (+#) नेमविषये कमलश्रेष्ठि कथा, संपूर्ण, वि. १६वी, जीर्ण, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १७४५३). कमलश्रेष्ठिकथा, आ. राजशेखरसूरि मलधारी, सं., गद्य, आदि: अस्ति श्रीभारभासुरं; अंति: ततश्च्युतः सेत्स्यति. ४९३०८. (+#) जीवविचार प्रकरण सह टिप्पण, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. पंन्या. प्रतापविमल गणि; पठ. ग. चतुरविमल गणि; मु. जिनविमल (गुरु पंन्या. प्रतापविमल गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२६४११.५, ११४३३). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-टिप्पण*,सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ४९३०९. (#) सप्तशत्तरिसो स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १७४४८). सत्तरिसयजिन स्तवन, पं. विनयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: समरी सरसति भगवति; अंति: सेवा श्रीजिनवरतणी, गाथा-६१. ४९३१०. (+) मोहकथागर्भित विनती स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११.५, १२४३४). महावीरजिन स्तवन-मोहराजा कथागर्भित, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: वीर जिनेसर भुवन; अंति: मानमुनि मंगल करं, गाथा-५२. ४९३११. (-) सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४११.५, १५४३२). १.पे. नाम. करमरी सज्झाय, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: करम लागै सांधोरे, गाथा-१८, (पू.वि. गाथा ८ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. प्रतेकबुधरी सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण. करकंडुमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानगरी अतिभली हुँ; अंति: समयसुंदर०पातक जाय रे, गाथा-६. ३. पे. नाम. गोडीजी पारसनाथजीरो स्तवन, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: आजुणो दिवस धन उगीयो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ४ अपूर्ण तक है.) ४९३१२. (#) दंडकविचार स्तवन व जीवस्वरूप निरूपण गाथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १५४४०). १.पे. नाम. दंडकविचार स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. ". For Private and Personal Use Only Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १२८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउण चउविसजिणे तसु, अंति: गजसारेण० अप्पहिआ, गाथा-४३. २. पे. नाम. जीव स्वरूप निरूपण गाथा, पृ. २आ, संपूर्ण. गाथा संग्रह *, प्रा., पद्य, आदि: जीवपएसा एगंमि समए; अंति: इअरो सेणीए णुक्कमो, गाथा - १. ४९३१३. व्याख्यान पीठिका, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल दीव बंदर, प्रले. मु. धर्मविजय, अन्य. ग. लक्ष्मीविजय श्राव. वखतरावजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६ ११.५, ११४३९). व्याख्यान पीठिका, मा.गु., प+ग., आदि: श्रीभगवंत तरणतारण; अंति: वांचनाप्रवर्तेः. " ४९३१४. पाखी खामणा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. पठ. मु. जीतसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६.५X११.५, १४४४२). क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पियं; अंतिः समत्तं दिवसीयं भणई, आलाप ४, संपूर्ण. ४९३१५. साधुप्रतिक्रमण सूत्र व शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, संपूर्ण वि. १९४२, पौष शुक्ल २, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, ले. स्थल. बीकानेर, जैवे. (२६११, १३४३३). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे नाम, साधुप्रतिक्रमण सूत्र, पृ. १आ-४अ संपूर्ण, पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: नमो अ० करेमि, अंतिः वंदामि जिणे चउवीसं. २. पे नाम, शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. . माणेक मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: श्री आदेशर अंतरजामी, अंति: माणकमुनि० सेवाकरे, गाथा- ६. ४९३१६. (#) नमस्कार महामंत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., मु. (२६X११.५, ११X३१). नमस्कार महामंत्र, शाश्वत, प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं; अंतिः णमो लोए सव्वसाहुणं, पद-५. नमस्कार महामंत्र- बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतनइ माहरउ, अंति: माहरो नमस्कार थाओ. ४९३१७. (4) आलोचणा विधि, संपूर्ण वि. १८९२ आषाढ़ शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल सीरोहीनगर, प्रले. मु. राजेंद्रसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५X११, ११३९). आलोयणा आराधना, प्रा., मा.गु., प+ग, आदि: एगेंदियाणं जं कहवी, अंति: भगवंतनी साखै आलोया. ४९३१८. (#) वसुधारा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८८६, वैशाख कृष्ण, ८, शनिवार, मध्यम, पृ. ३, प्रले. ऋ. खीमचंदजी, अन्य. मु. जयचंद्र; मु. प्रेमचंद, सम. मु. उगरचंद, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे. (२६.५x१२.५, १८४४०). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० संसार, अंतिः वृद्धयः संपद्यते. ४९३१९. कर्मग्रंथ - २ - कर्मस्तव, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे. (२६.५X११.५, १०X३४). कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा. पद्य वि. १३वी १४वी आवि तह धुणिमो वीरजिणं, अंतिः वंदियं नमह तं वीरं, गाथा - ३४. ४९३२० (+) मंगलमालिका सह वालावबोध, संपूर्ण, वि. १८२८ फाल्गुन कृष्ण, २, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. कर्मवाटी, प्र. वि. त्रिपाठ., जैदे. (२६४११.५, ७x४५). २९ भावना प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: संसारम्मि असारे, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा १५ तक लिखा है. वि. प्रतिलेखक ने गाथा १५ तक लिखकर "इति" कर दिया है.) २९ भावना प्रकरण-वालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: ए संसार असार रूप छइ अंतिः (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ४९३२१, (4) स्नात्र पूजा, संपूर्ण वि. १८७८, भाद्रपद कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. ३ ले. स्थल, बादाग्राम, प्रले. मु. सौभाग्यसागर (गुरु मु. प्रेमसागर); गुपि. मु. प्रेमसागर (गुरु पं. वेलसागर मुनि); पं. वेलसागर मुनि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही गयी है, जैदे., (२६X१२.५, १३X३५). स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चोत्रीस अतिसै जूओ; अंति: देवचंद० सूत्र मझार, ढाल-८, गाथा - ६०. For Private and Personal Use Only Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ४९३२२. (+) दानशीलतपभावना, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-२ (१ से २)=१, प्र. वि. पत्रांक खंडित है, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. दे. (२६११. १८४५५). " " दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: (-); अंति: संघ सदा सुजगीस रे, ढाल-४, गाथा-१०१, ग्रं. १३५, (पू.वि. हाल ३ गाथा १ अपूर्ण से है.) . Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (+#) ४९३२३. सम्यक्त्वस्वरूप स्तवन सह अवचूरी, संपूर्ण, वि. १६४८, आषाढ़ कृष्ण, २, रविवार, मध्यम, पृ. २, प्रले. पं. ज्ञानंद गण (गुरु ग. गुणरंग वाचक); गुपि. ग. गुणरंग वाचक; पठ. मु. रत्ननंदी (परंपरा पं. ज्ञाननंदि गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पंचपाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., ( २६ १०.५, ९x४५). सम्यक्त्वपच्चीसी, प्रा., पद्य, आदि; जह सम्मत्तसरूवं, अंतिः हवेउ सम्मत्तसंपत्ति, गाथा २५. सम्यक्त्वपच्चीसी - अवचूरि, सं., गद्य, आदिः यथा येन औपशमिकत्वादि, अंतिः भवत्विति सुगममन्यत्. ४९३२४. होलीरजपर्व कथा संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल राजनगर- ससपर, जैवे. (२६४११.५, १२-१४४३९). 1 " होलिकापर्व कथा, आ. जिनसुंदरसूरि, सं., पद्म, आदि: विपुलसुर सरि सारणी अंतिः विज्ञानां वाचनोचितः श्लोक ५२. ४९३२५. धन्ना ढाल, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल, पाली, प्रले. सा. नवु (गुरु सा. उदाजी महासती); गुपि. सा. उदाजी महासती, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६११, १७X५३). धन्ना अणगार ढाल, क्र. घोध, पुहिं, पद्य, आदि: अरिहंत सिध साधां भणी: अंतिः चोथ० सरधो वात विशेष, ढाल ७. , ४९३२६. (#) स्तवन, सज्झाय व बारहमासा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., ( २६x११, १४X३२). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन गोडीजी, पृ. १अ संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी मंडन, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामिणि चितधरी; अंति: आपो अविचल जोडि रे, गाथा - ९. २. पे. नाम, वैराग्य सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण काया अनित्यता सज्झाय, मु. राजसमुद्र, रा., पद्म, आदिः सुणि बहिनी प्रिउडो अंतिः राजसमुद्र० सोभागी रे, गाथा-७, ३. पे. नाम. नेमराजुल सज्झाय, पू. १ आ-२आ, संपूर्ण. नेमराजिमती बारहमासा, मु. लावण्यसमय *, मा.गु., पद्य, आदि : आसाढा धुरिऊनजी गयणो; अंति: लावण्यसमइ० १२९ मोकलुजी, गाथा-४७. ४९३२७. (") कल्याणमंदिर स्तोत्र व नमस्कार महामंत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी जीर्ण, पृ. ४, कुल पे. २. प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., ( २५.५X११, १३x४१). १. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. १अ - ४अ, संपूर्ण. आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार, अंतिः कुमुदचं० प्रपद्यते श्लोक-४४. २. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, पृ. ४अ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बार जपुं अरिहंतना, अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा २ तक लिखा है.) , ४९३२८. पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, जैदे. (२५.५४११.५, १०४४२). 1 पार्श्वजिन स्तवन, मु. कीरत, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसुगुरु चिंतामण, अंति: कीरत० पारसनाथ कीयै, गाथा - १५. ४९३२९. (+) विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ११, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५X१०.५, १८X५७). १. पे. नाम. अणसण विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. संथारा विधि, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नवकार ३ कही पछइ वार; अंति: ऊचरणहार कहइ वोसिरामि. २. पे नाम. लोच विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा., मा.गु.,सं., गद्य, आदि: इच्छा० लोच पवेह गुरु; अंति: लोग० सुखलोच पृच्छया. ३. पे. नाम. प्रतिलेखनादि कालमान, पृ. १अ संपूर्ण For Private and Personal Use Only Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रतिलेखनादि कालमान गाथा, प्रा., पद्य, आदि: आसाढे मासे दुपया पोस; अंति: आसाढे निट्ठिया छाया, गाथा-३. ४. पे. नाम. पडिक्कमणठावण विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. पुस्तकप्रतिक्रमण स्थापन विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पुस्तकपूजनं ईर्यापथ; अंति: ते मिथ्यादुःकृतं. ५. पे. नाम. पोसहठावण विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. पौषधप्रतिक्रमण स्थापन गाथा, प्रा., पद्य, आदि: पाणिवह मुसावाए अदत्त; अंति: देसे तह पोसह विभागे, गाथा-१. ६. पे. नाम. पुंडरीकपूजा विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पुंडरीकगिरि पूजाविधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: अक्षतचंदनादिभिः पट्ट; अंति: लोगस्स प्रणाम करणानि. ७. पे. नाम. वीसस्थानकस्योच्चारण विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. २० स्थानकतप उच्चारणविधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ईर्यापथिकी प्रति; अंति: वाररत्रयं उच्चार्यते. ८. पे. नाम. नंदी विधि, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: प्रथमं पवित्रनेपथ्यं; अंति: उच्चार्यते वासक्षेप३. ९.पे. नाम. छम्मासीदेववांदण विधि, पृ. २आ, संपूर्ण. छमासी देववंदन विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नवकार ३ कही इच्छाकार; अंति: सव्व० वोसिरामि. १०. पे. नाम. सम्यक्त्वारोपण नंदी विधि, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. सम्यक्त्वादिव्रत आरोपण विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: सामाइकव्रतारोपश्चाय; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. ११. पे. नाम. उपधानादि तपोविधि, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. उपधानादि विधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रथमं पाश्चात्यदिने; अंति: काउसग१२ वांदणा १८. ४९३३०. (+) महावीरजिन स्तुति संग्रह व साधुअतिचारचिंतवन गाथा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२५४११.५,१५४४३). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति सह टीका, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: नमोस्तु वर्द्धमानाय; अंति: मयि विस्तरो गिराम, श्लोक-३. महावीरजिन स्तुति-टीका, सं., गद्य, आदि: वर्द्धमानाय श्री; अंति: तुष्टि ददातु. २. पे. नाम, महावीरजिन स्तुति सह टीका, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. ___ महावीरजिन स्तुति, संबद्ध, सं., पद्य, आदि: विशाललोचनदलं; अंति: नौमि बुधैर्नमस्कृतम्, श्लोक-३. महावीरजिन स्तुति-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: प्रातः प्रभाति वीर; अंति: चंद्र दिनागमि नौमि. ३. पे. नाम. साधुअतिचारचिंतवन गाथा सह टीका, पृ. २अ, संपूर्ण. साधुअतिचारचिंतवन गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सयणासन्नपाणे चेइअसिज; अंति: वितहायरणेय अइयरो, गाथा-१. साधुअतिचारचिंतवन गाथा-टीका, सं., गद्य, आदि: शयनीयं संस्तारकादि १; अंति: सत्यतिचारः. ४९३३१. कुसलाणुबंधि अध्ययन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पठ. सा. देवकी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, ११४३२). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-३२. ४९३३२. (+#) स्नात्र पूजा वसाधारणजिन अभिषेक, संपूर्ण, वि. १५२३, पौष शुक्ल, ४, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, ले.स्थल. खडउढाय, प्रले. पं. श्रीसारविजय गणि (गुरु आ. लक्ष्मीसागरसूरि, तपागच्छ); गुपि. आ. लक्ष्मीसागरसूरि (गुरु आ. रत्नशेखरसूरि$, तपागच्छ); आ. रत्नशेखरसूरि$ (गुरु आ. सोमसुंदरसूरि, तपागच्छ); आ. सोमसुंदरसूरि (गुरु आ. देवसुंदरसूरि*, तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १४४४८). १.पे. नाम. स्नात्र पूजा, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. स्नात्रपूजा संग्रह , भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: मुक्तालंकार विकार; अंति: न्हावउ सामी पासजिणु. २.पे. नाम. साधारणजिन अभिषेक, पृ. ४आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ साधारणजिन अभिषेक श्लोक, सं., पद्य, आदि: चक्रे देवेंद्रराजै; अंति: जैनेंद्र बिंब, श्लोक-१. ४९३३३. (#) अल्पबहुत्व स्तव सह अवचूरी, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. पंचपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.. (२५.५४११, ११४३८). महादंडक स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: भीमे भवम्मि भमिओ; अंति: सामिणूत्तर पयंदेसु, गाथा-२२. महादंडक स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: भीमे भवणं गर्भ; अंति: अनंतानंता कचत्तीन. ४९३३४. (+#) उपधान विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्रले. मु. नित्यसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११, १९४५५). उपधानतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: श्रावक श्राविका भलै; अंति: दिन वाधइ उवधारीयै. ४९३३५. (+#) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पंचपाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. मूल पाठ का अंशखंडित है, टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १७४४२). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुदचं० प्रपद्यते, श्लोक-४४. कल्याणमंदिर स्तोत्र-सौभाग्यमंजरी टीका, सं., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (अपठनीय), ग्रं. ३४६. ४९३३६. (#) अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. द्विपाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२५.५४११.५, १७४५६). अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: अयमढे पण्णत्ते, अध्याय-३३, ग्रं. १९२. अनुत्तरोपपातिकदशांगसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, वि. १२वी, आदि: अथानुत्तरौपपातिकदशा; अंति: न क्षायमिति क्षमा, वर्ग-३. ४९३३७. (#) रत्नपाल रत्नावती रास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १२-८(१ से ८)=४, पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५४११,१५४३३). रत्नपाल-रत्नावती रास-दानाधिकारे, मु. सूरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड १ ढाल १२ गाथा १० अपूर्ण से खंड २ ढाल ३ गाथा ३ अपूर्ण तक है.) ४९३३८. (#) अभिधानचिंतामणी नाममाला-कांड-१ वर्ग-१, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १५४३९). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ४९३४०. विहरमाण वीस जिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८-५(१ से ५)=३, जैदे., (२५४११,१५४४५). विहरमानजिन स्तवनवीसी, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: विहरमान जिन वीस, स्तवन-२०, (पू.वि. सुबाहुनाथ स्तवन गाथा ५ से है.) ४९३४१. (+#) बुद्धि रास, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १७७५४). बुद्धि रास, आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पणमवि देव अंबाई; अंति: ते लहिस्यइ रंग रोल, गाथा-६७. ४९३४२. (#) यतिप्रतिक्रमण सूत्र सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १५१८, पौष शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. ले.स्थल. चंपावती, प्रले. मु. सिद्धांतसुंदर (गुरु पं. मेरुरत्न गणि); गुपि.पं. मेरुरत्न गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४११.५, ५-१४४३६). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: नमो अ० करेमि; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, सूत्र-२१. संपूर्ण. पगामसज्झायसूत्र-अर्थनिर्णयकौमुदी टीका, आ. जिनप्रभसूरि, सं., गद्य, वि. १३६४, आदि: शुभयोगेभ्योः शुभयोग; अंति: वृत्तेरवचूरिरियम्, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४९३४३. दादाजी गीत, कृष्ण वर्णन कवित्त व औपदेशिक गाथा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२५.५४१०, १०४३५). १. पे. नाम. दादाजी गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि गीत, आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनकुसलसूरीसरू; अंति: जिनभगति०बंदना जाणोजी, गाथा-८. २.पे. नाम. कृष्ण वर्णन कवित्त, पृ. १आ, संपूर्ण. कृष्ण पद, पुहिं., पद्य, आदि: पीलो ही नंद जेसो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रतिलेखक ने मात्र प्रथम गाथा लिखी है.) ३. पे. नाम. औपदेशिक गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. जैनगाथा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ४९३४४. स्तवन व सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, दे., (२५.५४११.५, १८४७०). १.पे. नाम. पार्श्व स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, गच्छा. विजयप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सूनी अरदास प्रभु पास; अंति: विजयप्रभ०भगवंत गायूं, गाथा-९. २. पे. नाम. सर्वार्थसिद्ध मुक्ताफल संख्या स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जगदानंदन गुणनीलो रे; अंति: गुणविजे० फले आसो रे, गाथा-१६. ३. पे. नाम. नेम गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहि., पद्य, आदि: दो घडीयारेच्यार; अंति: ज्ञानविमल० आंखडीया, गाथा-८. ४. पे. नाम. विणझारा स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण. वणजारा सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., पद्य, आदि: विणजारा रे तु तो नगर; अंति: जस० नविन धन संपजै, गाथा-९. ४९३४५. (+) विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६.५४११.५, १८४५७). १.पे. नाम. बारह तपभेद विवरण, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. १२ तपभेद विवरण, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: अणसण उमोयरिया; अंति: विउसग्य तप कह्यौ. २.पे. नाम. बत्तीस शील उपमा, पृ. ३आ, संपूर्ण. शीलव्रत ३२ उपमा बोल, मा.गु., गद्य, आदि: चंद्र रत्न खाण मध्ये; अंति: माहि शीलव्रत मोटौ. ३. पे. नाम. चवदैपूर्वना पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. १४ पूर्व नाम पदसंख्या सहित, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: उपय पूव पद १ कोडि; अंति: २६ लख ८० सहस ५ पद. ४. पे. नाम. १६शील उपमा, पृ. ३आ, संपूर्ण. शीयलव्रत १६ उपमा बोल, मा.गु., गद्य, आदि: पहली सुद्धमन सील; अंति: सील की उपमा पाली महे. ४९३४६. (+-) पार्श्वजिन स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६४११.५, ११४२३). १. पे. नाम. पार्श्वजिन थाल, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: माता वामा रे बोलावे; अंति: सभागी० ते सार होवे, गाथा-११. २. पे. नाम. औपदेशिक होरी पद, पृ. २अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, पुहि., पद्य, आदि: होरी खेलो रे भविक; अंति: समता केसर रंग घोरी, गाथा-५. ३. पे. नाम. पांच नियंठादि विचार संग्रह, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. विचार संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). सपज For Private and Personal Use Only Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ४९३४८. सम्यक्त्व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५x११, १६x४९). सम्यक्त्वपच्चीसी, प्रा., पद्य, आदि: जह सम्मत्तसरूवं, अंति: हवेउ सम्मत्तसंपत्ति, गाथा २५. ४९३४९, (+) चतुर्विंशतिजिन स्तुति, संपूर्ण वि. १७६१, माघ कृष्ण, १२, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. पं. नेमिवजय गणि प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे. (२६.५X११.५, २१४४८). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैक; अंतिः परम वसुतरांगंतजा, स्तुति-२४, श्लोक- ९६. ४९३५०. प्रतिष्ठा विधि व नवीन प्रासाद विधि, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., ( २६.५X१२, १७५२). १. पे. नाम प्रतिष्ठा विधि, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. प्रतिष्ठा विधि संग्रह, मा.गु. सं., पद्य, आदि: मूल गुंभारेकुं आछीतर, अंति: संक्षेप करणो. २. पे. नाम. नवीन प्रासाद विधि, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. शिलास्थापनादि विधि, मा.गु. सं., गद्य, आदि: तस्य पंच मुहूर्ता, अंति: (-), (पू. वि. ध्वजारोपण विधि अपूर्ण तक है.) ४९३५१. स्तवन संग्रह व सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, दे., (२६X१२, १५X३८). १. पे. नाम. साधुगुण स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. मुनिहित सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: एहवा मुनीगुण रयणना; अंति: ज्ञानवि० विस्तरिया जी, गाथा-५. २. पे. नाम. गोडीपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदिः लाखीणो सोहावें जिनजी, अंतिः दीपविजय० निसदीस, गाथा-८. ३. पे. नाम आदिजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण आदिजिन स्तवन- राणकपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: राणपुरे रतीबामणो रे, अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रथम गाथा अपूर्ण मात्र लिखा है.) ४. पे नाम, ऋषभजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि आदिसर अवधारीजी, अंतिः जिनहरखसुं० उतारो मोह, गाथा ५. ४९३५२. अष्टप्रकारी पूजा व स्नात्रविधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., ( २६.५X१२, १४X३७). १. पे. नाम. अष्टप्रकारी पूजा, पू. १अ संपूर्ण. ८ प्रकारी पूजा काव्य, सं., पद्य, आदिः विमलकेवलभासनभास्कर, अंतिः मोक्षसौख्यं श्रयंति, लोक९. २. पे. नाम. स्नात्र विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.गु, पद्य, वि. १८वी, आदिः प्रथम अंग शुद्ध करी, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. मात्र प्रारंभिक विधि दी गई है.) ४९३५३. (+) इर्यापथिकी कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., । ५५३८). १३३ इरियावही कुलक, प्रा., पद्य, आदि: चउदस पय अडचत्ता, अंति: पमाणमयं सुए भणियं, गाथा-१०. इरियावही कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: चउद भेद नारकीना, अंतिः सिद्धांत काउ छड़ ४९३५४. स्तवन संग्रह व हरीयाली, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. ३ ले स्थल. अहिमादाबाद, जैवे. (२५.५४१२, जै. (२६११.५, For Private and Personal Use Only १६x४६). १. पे. नाम. साधारण आंगी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आंगी चंगी आजनी सुख ल; अंतिः शुभवीर० मुज निरवेद, गाथा-५. २. पे. नाम. ९९ जात्रा स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विवेकी विमलाचल वसिइ,; अंति: श्रीशुभवीर नमे सघलां, गाथा - १५. Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १३४ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. औपदेशिक हरियाली सह टबार्थ, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक हरीयाली, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चेतन चेतो चतुर; अंति: पीधानी न करो खामी, गाथा-९, संपूर्ण. औपदेशिक हरीयाली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हे चेतन चतुर नाच, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाथा ४ अपूर्ण तक का टबार्थ है.) ४९३५५ स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३. जैदे. (२६११, १९५८-६०). , १. पे. नाम. युगादिदेव स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा. पद्य, आदि सबल सुरासुर महिअं, अंतिः ते सव्वे चैव वंदामि गाथा - २५. २. पे नाम, शत्रुंजयमहातीर्थ विवसंख्या स्तोत्र, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तोत्र - जिनबिंबसंख्यागर्भित, आ. सोमतिलकसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिरि रिसहेसरसामीअ, अंतिः चिंतीआ तिअ सुक्खं गाधा- २२. पे, नाम, शांतिजिन स्तोत्र, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. शांतिजिन स्तोत्र - १२ भव गर्भित, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिविस्ससेण नरवर, अंति: (-), (पू. वि. गाथा ८ अपूर्ण तक है.) ४९३५६. आदीनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., ( २६.५X११.५, ११×३१). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आदिजिन स्तवन- आडंपुरमंडन, मु. गुणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: जिन जीम जाणे होते; अंति: तुम तुट्ठा आनंद रली, गाथा - २५. ४९३५७. आदिजिन स्तोत्र व शत्रुंजय स्तव, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे २, पठ श्राव सवचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X११.५, १६X३८). १. पे. नाम. आदिजिन स्तोत्र, पृ. १अ संपूर्ण. आ. धनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदि: काहं बुद्धिधनैः, अंतिः कुरुतात्सुर सेविता, श्लोक-१७. २. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ स्तव, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: धरणेंद्रप्रमुखानागाः अंतिः लप्स्यते फलमुत्तमम्, श्लोक-१२. ४९३५८. अनुयोग विधि, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जै. (२६.५x११, २०x४७). " अनुयोग विधि, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: वसतिशोधन प्रमार्जन, अंतिः तप नमस्कार शत गुणन. ४९३५९. प्रवज्या व सज्झाच विधि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैवे. (२६.५४११.५, १८४५९) १. पे नाम, प्रव्रज्या विधि, पृ. १अ, संपूर्ण दीक्षा विधि, मा.गु., सं., गद्य, आदि: मूलपुनर्वसुस्वाति, अंति: कल्पद्रुमाचो यथा. २. पे, नाम, सज्झाय करावा विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. व्याख्यान वांचन विधि, प्रा., मा.गु, गद्य, आदि: इरियावही पडिकमी अंतिः फेर व्याख्यान करवो. ४९३६०. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८४१, ज्येष्ठ कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले. स्थल. सिरीयारीनगर, प्रले. मु. हिमतहंस, पठ. मु. खुस्यालहंस, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६X१०.५, १७x४९). १. पे. नाम. ईर्यावही सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. इरियावही सज्झाय, संबद्ध, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: अमे इरियावही पडिकम; अंति: तणा फल भवस्यां रे, गाथा - १८. २. पे नाम, अष्टकर्मबंध सज्झाय, पृ. ९आ, संपूर्ण. ८ कर्मबंध सज्झाय, मु. लक्ष्मीकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टकरम बंधै इण विधि, अंति: लक्ष्मीकीरत०आप्या रे, गाथा - १७. ४९३६२. परमार्थ जकड़ी, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जै. (२५.५x११, १३X३७). 1 औपदेशिक जकडी, मु. रामकिसन मा.गु, पद्य, आदि: अरिहंत चरणे चित्त, अंति: रामकिसन० सुख पावहु, गाथा-८. For Private and Personal Use Only Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ १३५ ४९३६३. (+) आयुष्य विचार सह टवार्थ व श्लोक, संपूर्ण वि. १९०४ वैशाख शुक्ल ९, श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २. ले. स्थल, नाडोल, जैदे., ( २६.५X११.५, ६X३२). १. पे. नाम. आयुष्य विचार सह टवार्थ, पृ. १अ १आ, संपूर्ण आयुष्य विचार, अप, पद्य, आदि: मणुआण वीसोत्तरसयं अंतिः पंचम अर आऊ जिणं देवं गाथा ५. आयुष्य विचार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: मनुष्य १२० वर्ष आयु, अंति: श्रीजिणेस्वर कथ्यते. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे नाम, श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह, प्रा.मा.गु. सं., पद्म, आदि छडे वर्षे पांचमो अंति: (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. प्रथम गाथा का मात्र एक ही पाद है.) ४९३६४. लावणी व पद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) = १, कुल पे. ३, जैदे., ( २६११.५, १५x५०). १. पे. नाम. नेमराजीमती लावणी, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. " नेमराजिमती लावणी. मु. जिनदास, पुहिं, पद्य, आदि (-); अंति: झूर झूर काया सुकी, गाधा-६, (पू.वि. गाथा ३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. नेम पद, पृ. २अ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन- लघु, मु. हर्षचंद, मा.गु., पद्य, आदि: कांइ हठ मांड्यो छे; अंति: हरखचंद० मुगत रेवास, गाथा-६, (वि. प्रतिलेखक ने दो गाथा को एक गाथा गिनकर परिमाण लिखा है.) ३. पे. नाम. आदिजिन पारणा स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. नानुं, मा.गु., पद्य, आदि: मारी रस सेलडी आदि; अंति: कहे आदिसर माहाराज, गाथा-४. ४९३६५. स्तोत्र व गीत, संपूर्ण, वि. १९१८, ज्येष्ठ कृष्ण, १, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले. स्थल. जोधपुर, दे., (२६X११, १६३७). १. पे. नाम. गौतमस्वामि स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी स्तोत्र, आ. देवानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीइंद्रभूति वसुभूत; अंति: इच्छतु वांछितं मे, श्लोक-१०. २. पे. नाम जिनदत्तसूरि गीत, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. ग. सूरचंद, मा.गु., पद्य, वि. १२११, आदि : आस्यापूरण कामगवी, अंति: सूरिचंद हिव सफल दिणा, गाथा-१७. ४९३६६. नवतत्व सह बालावबोध, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, जैवे. (२७४१२, १३x४०). तत्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि जीवाजीवापुत्रं पावा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, इंद्रियविषय विचार तक लिखा है.) नवतत्त्व प्रकरण - बालावबोध, मु. मेरुतुंगसूरि-शिष्य, मा.गु., गद्य, आदि जीव १ अजीव, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. "ते असंख्य निदपि” पाठ तक लिखा है.) 3 ४९३६७. (+) इर्यापथिकी कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., । ४x२८). जै.. (२६४११.५. For Private and Personal Use Only ईयांपथिकी कुलक, प्रा., पद्य, आदि: पणमिअ सिरिवीरजिणं; अंतिः रे जीव निच्चमि गाथा १२. ईयांपथिकी कुलक-टवार्थ, मा.गु, गद्य, आदिः प्रणमिय कहतां प्रणाम अंतिः निचंमि कहतां नित्ये. ४९३६८. चतुर्विंशति जिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४, जैवे. (२६११.५, ११४३५) २४ जिन स्तुति, मु. दानविजय, मा.गु, पद्य, आदिः श्रीऋषभजिणेसर केसर, अंतिः इम मंगल करयो माय ४९३७०. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६.५X११.५, ११×३०). १. पे. नाम. विजयसेनसूरि स्वाध्याय पू. १अ संपूर्ण. 3 विजयसेनसूरि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय तपगण चंद्रमा, अंतिः रत्नाकर गंभीर रे, गाथा-८, २. पे. नाम. गुरु उपदेश सज्झाच, पृ. १आ, संपूर्ण. हीरविजयसूरि सज्झाय, मु. जेसिंग, मा.गु, पद्य, आदि: वाणि सरस गुरुजी तणी अंतिः बूझ्यो अकबर साहरे, गाथा-८. ४९३७१. प्रथम कर्म्मग्रंथ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३ जैदे (२६४१२, १४४३८). Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १३६ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी - १४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ देविंदरिहिं गाथा ६३. ४९३७२. शनीश्चरदेवनी कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. पं. मनरूपसागर गणि; पठ. मु. भगवानसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२७४१२.५, १४४२९). शनिश्चर चौपाई, पंडित. ललितसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सरसति सामिण मति दिओ; अंति: ललितसागर इम कहे, गाथा- ४७. ४९३७३. सरस्वतीनो छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. समउग्राम, जैदे., (२६X१२, १७x४४). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शारदामाता छंद. मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सकल वचन समता मन आणी अंतिः शांतिकुशल० सवि माहरी, गाथा - ३४. ४९३७४. अष्टप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. १८६१ आश्विन शुक्ल, ३, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल. मांनुजपूरनगर, प्रले. पं. पुण्यसागर (गुरु मु. भावसागर); गुपि. मु. भावसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२६.५x१२.५, १२४३५) " ८ प्रकारी पूजा, मु. उत्तमविजय, मा.गु., पद्म, वि. १८९३, आदि उपन्न सन्नाण महोमहाण, अंतिः उत्तम पदवी पावोरे, ढाल-८, गाथा - ३७. ४९३७५. (+) सज्झाय व स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित, जैवे., (२६११.५, १२४३९). १. पे. नाम. आयंबिल सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, वि. १८५६, चैत्र शुक्ल, ११. आयंबिलत सज्झाय, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३, आदिः समरी श्रुतदेवी शारदा, अंतिः भाखे विनयविजय सज्झाय गाथा ११. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- जीराऊला, मा.गु., पद्य, आदि: महानंद कल्याणवल्ली, अंतिः प्रभु पंचमीगति दायको गाथा- ११. ४९३७६. साधु उपदेश सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैदे. (२६४११.५, १३४३३). , चंद्रावतीभीमसेन सज्झाय, मु. विवेकहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: जस मुख सोहें सरसति; अंति: कहे विवेक भजो जगदीस, गाथा-२१. . ४९३७७. तेवीस पदवी विचार व दीवाली स्तुति, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. २, जैदे. (२७१२.५, १३५०). १. पे. नाम. तेवीस पदवी विचार, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. २३ पदवी विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहेली नरगनो नीकलो अंति: बीजी १५ न पामई. २. पे. नाम. दीवालीदिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. , ,י कायस्थिति बोल, मा.गु., गद्य, आदि: जीव गइ इंद्रिय काय; अंतिः सादि सपर्यवसित. ४९३८०. जिन स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. ३, दे.. (२६४१२, १७४४०). १. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व स्तुति, पंडित. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: ऐ दीवाली पर्व मनोतुं; अंति: देवचंदा० आणंदा जी, गाथा-४. ४९३७८. (+) पंचांगुली छंद व क्षेत्रपाल मंत्र, संपूर्ण, वि. १९२३ वैशाख शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पू. १, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित. वे., " (२६.५४११.५, १२४५३). १. पे. नाम. पंचांगुली छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पंचांगुलीदेवी छंद, मा.गु., पद्य, आदि: भगवती भारती पर नमी, अंति: करणी सदा शक्ति पुरंत, गाथा- १४, (वि. प्रतिलेखक ने दो गाथा को एक गिनकर परिमाण लिखा है.) २. पे. नाम. क्षेत्रपाल मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only मा.गु., गद्य, आदिः ॐ नमो कालीया गोरीया, अंति: सर्वलीकलै सही सत छै. ४९३७९, (+) कायस्थिति वोल, संपूर्ण वि. १८४० आश्विन कृष्ण, १३, बुधवार, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल, खोहरी, प्रले. मु. लक्षजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२६.५X११.५, २६x२३). Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: स्याम वरण विराजतोपि; अंति: सुखी भवति निश्चितं, श्लोक-९. २. पे. नाम. महाप्रभाविक स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-फलवर्द्धि, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., पद्य, आदि: ॐ मम हरओजरं मम; अंति: कुणो पास जिणो, गाथा-३. ३. पे. नाम. वीर स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तव, प्रा., पद्य, आदि: जयइ नवनलिन कुवलय; अंति: दिसउखयं सव्वदुरिआणं, गाथा-६. ४९३८१. श्राद्धप्रतिक्रमण सूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, पठ.सा. अमराबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११, १३४४३). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. ४९३८२. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. पं. विद्यानिधान, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, ११४४०). १.पे. नाम. सोल सुपन सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. १६ स्वप्न सज्झाय, मु. विद्याधर, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामिणि वीनवू अंति: ते पामइ सिवपुर ठाऊ, गाथा-२६. २. पे. नाम. सात व्यसन भास, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. ७ व्यसन सज्झाय, उपा. रत्ननिधान, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धारथ कुलि कुल; अंति: रतननिधान० लील विलास, गाथा-११. ४९३८३. (+) चोदा सुपना ढाल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२.५, १३४२८). १४ स्वप्न सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: समरुंजी सायर नाम; अंति: धनरूल आवसी जी. ४९३८४. संयती चौढालीया, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२६.५४१०.५, १७४३५). संयती चौढालिया, मा.गु., पद्य, आदि: चरम जिनेसर पाय नमी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल ३ गाथा ३ तक है.) ४९३८५. स्तवन संग्रह, ज्योतिष व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२६.५४११, १२४३७). १.पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थस्तवन, मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सहिया सेजगिरि; अंति: भावसागर० उल्लासे, गाथा-६. २. पे. नाम. सीमंदिर स्तवना, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमंधरजी सुणजो; अंति: लालचंद० गुणो अरदासजी, गाथा-६. ३. पे. नाम. चंद्र भाव फल, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ ज्योतिष*, मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., आदि: जनम पांचमो तीसरो सीस; अंति: चंद्र जपूरे आस. ४. पे. नाम. मनुष्यभव दुर्लभता श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: नाना जोनं भ्रमत्वा; अंति: तपो वंचितो सौ वराकः, श्लोक-१. ४९३८६. (+) विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११, १८४७२). १.पे. नाम. चंद्रसूर्यमंडल विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. चंद्रसूर्यमंडल विचार प्रकरण, आ. महेंद्रसिंहसूरि, प्रा., पद्य, आदि: इह दीवे दुन्नि रवी; अंति: करणेन निपुणं सिध्यति, गाथा-२२. २. पे. नाम. जंबूद्वीपक्षेत्र विचार, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. सं., गद्य, आदि: जंबूद्वीप १८० योजना; अंति: (-), (पू.वि. "किं वातद्वर्तते न" पाठ तक है.) ४९३८७. जिनकुशलसूरि गीत, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११, ९४२९). जिनकुशलसूरि गीत, मा.गु., पद्य, आदि: आज पंचम अरइ नयरि; अंति: जब लगि चंद्रसूरि.., गाथा-९. ४९३८८. (+) गुर्वावली, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित-क्रियापद संकेत., जैदे., (२६४११, ९४३२). धर्मसूरि पट्टावली, सं., पद्य, आदि: सुलभ विबुध लब्धिः; अंति: सौख्यकरो मुनींद्रः, श्लोक-८. For Private and Personal Use Only Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १३८ ४९३८९. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., ( २६.५X११.५, १५X४२). १. पे नाम. चंद्रप्रभजिन स्तवन, पृ. १अ २आ, संपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची चंद्रप्रभजिन स्तवन- पाजावाडीमंडन, आ. हर्षसंयमसूरि, मा.गु, पद्य, आदि: सरसति सामिणि प्रणमं: अंतिः हर्षसंयम० चिरंजयु, ढाल-६, गाथा- ३०, ( वि. गाथाक्रम अव्यवस्थित है.) २. पे. नाम. नेमिनाथ स्तवन, पु. २आ-४आ, संपूर्ण. मिजिन स्तवन- गिरनारमंडन, मु. गुणसागर, मा.गु, पद्य, आदि: सरसति सामिणि गजगति, अंतिः गुणसागरो० सुहा करो, ढाल-८, गाथा - ३७. ४९३९०. सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. १८७३, वैशाख शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. पं. तेजविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६११, १२X३९). सिद्धचक्र स्तवन, पंन्या. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: भावे कीजे रे नवपद; अंति: उत्तम गुणनो रे ठाण, गाथा-११. ४९३९१. (+) पंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९२७, भाद्रपद कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. अमरदत्त, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित कुल नं. ८०, दे., (२७४११.५, ११४३८). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी पास जिणेसर, अंति: गुणविजय रंगे मुणि, ढाल-६, गाथा- ४९. ४९३९२. (+) कालादेसीसप्रदेसादि विचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५X१२, ५x५२). कालादेसीसप्रदेशादि विचार, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: कालादेसेण जीवाणं; अंति: सेसेसु तिभंग सव्वेसु, गाथा-५. कालादेसीसप्रदेशादि विचार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि हवि समुचि जीव आश्री, अंतिः विचार जोवो. ४९३९३. वीर स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२७११.५, १४४४२). महावीरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: मननो वाहलो वीरजी; अंति: आवागमन नीवार के, गाथा- ११. ४९३९४. सज्झाय व पाटली विधि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६X११.५, १४X३६). सज्झाय व पाटली विधि, मा.गु., गद्य, आदि: पाटली थापी मुहपत्ती, अंति: पछइ डावई कानि. ४९३९५. श्राद्ध प्रतिक्रमण सूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., ( २६.५X१२, २०५२). वंदितुसूत्र संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे, अंतिः वंदामि जिणे चडवीस, गाथा-५०, ४९३९६. ढुंढुआ रास, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२६X११.५, १३X३६). ढुंढक रास, मु. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७८, आदि: सरसति चरण नमी करि; अंति: (-), (पू.वि. ढा १० अपूर्ण तक है.) ४९३९७. (+) सासरी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६X११, ७X२७). औपदेशिक सज्झाय, मु. भावविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सासरीइ इम जइए रे बाइ; अंतिः भावे० लहीई ई रे बाई, गाथा - ९. ४९३९८. चतुर्विंशतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५X१०.५, ८X३६). २४ जिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: सुरकिन्नरनागनरेंद्र, अंति: कमले राजहंससमप्रभा, श्लोक ५. ४९३९९. स्तवन व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६X११, ९X३३). १. पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only शांतिजिन स्तवन, मु. तेजहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: साहिब तारो रे; अंति: तेजहरख सुखकारो रे, गाथा-५. २. पे. नाम. गुरु सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, मु. तेजहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि कोश्या जोई रे प्रिउ, अंति: तेजहरख० गुणधाम, गाथा- ७. ४९४००. (+) बारव्रतनो सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित, जैदे., ( २६ ११, १२X३२). १२ व्रत सज्झाय, पंन्या. जिनविजय, मा.गु, पद्य, आदिः श्रुत अमरी समरी, अंतिः जीनविजये कह्यां, गाथा-२१. ४९४०१. यंत्र चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. खूबचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६X११.५, १३x४५). Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ १३९ यंत्रफल चौपाई, पंडित. अमरसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: जिन चोवीसे पय प्रणमे; अंति: अमरसुंदर० सूर्णे, गाथा-१८. ४९४०२. वीर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. रानेरबंदर, पठ. सा. वल्लभश्रीजी (खरतर गच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, १३४४०). महावीरजिन स्तव-बृहत्, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जय जासमणे भयवं; अंति: सत्त मित्ते सुवावि, गाथा-२१. ४९४०३. (+) जिनस्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४११.५, १२४३५). १. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३०, आदि: संभव जिनवर वीनती; अंति: वाचक जस० मन साचूंरे, गाथा-५. २. पे. नाम. वीर स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: गिरुवा रे गुण तुम्ह; अंति: जस कहे०जीवन आधारो रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. आदिसर जिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अंखडि अंमी आज; अंति: उदय० आदिशर तुठारे, गाथा-७. ४९४०४. पंचेंद्री सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६.५४१२, ८४४०). ५ इंद्रिय विषयत्याग गीत, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: नाग न संतो वसे पयाले; अंति: लावण्य० भोला प्राणी, गाथा-७. ४९४०५. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२७४१२, १८४५७). १.पे. नाम. पद्मावती आलोयणा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. __पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिव राणी पदमावती; अंति: समय०पापथी छूटइ ततकाल, ढाल-३, गाथा-४०. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. दयासागर, मा.गु., पद्य, आदि: सुणि मुझ प्राणी सीख; अंति: धर्मे चित लगायो रे, गाथा-९. ४९४०६. (+) विसविहरमान जिन नमस्कार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१२, १०४३३). विहरमान २० जिन चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पहेला जिनवर विहरमान; अंति: तणो नय वंदे करजोडी, गाथा-८. ४९४०७. कायस्थिति बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, दे., (२६.५४११, २५४५४). कायस्थिति २२ द्वार वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: जीव १ गई २ इंदिय ३; अंति: अपर्यवसित २ द्वार २२. ४९४०८. (#) गौतम पृच्छा स्तवन व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १७४५९). १. पे. नाम. गौतमपृच्छा, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. गौतमपृच्छा दोहा, मु. सोभचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: महावीर पय अनुसरी; अंति: नामथी सोभचंद यश लीध, दोहा-६४. २. पे. नाम. दया बत्तीसी, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. दयाबत्तीसी, मु. सोभचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: परम पुरुष पय अनुसरी; अंति: सोभचंद० पुन्य अंकूर, गाथा-३३. ३. पे. नाम. भावपूजा स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. सोभचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पूजा श्रीजिनराज की; अंति: शोभचंद० सुखकार रे, गाथा-७. ४. पे. नाम. पच्चक्खाण फल, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. सोभचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: वाहै विकसै भविजन करइ; अंति: फल सोभचंद ऋषि जोड, गाथा-६. For Private and Personal Use Only Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १४० www.kobatirth.org ४९४०९. वीरथुई अध्ययन व नवकार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., ( २६.५X११.५, १५X४७). १. पे. नाम. वीर भूईनामाध्ययन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र- हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण; अंतिः हव आगमिसंति तिबेमि, गाथा - २९. २. पे. नाम. नवकार मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. ४९४११. नेमराजिमती बारमासो, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. वे. (२६४१२, २२४६२). , 3 नमस्कार महामंत्र, शाश्वत, प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं, अंति: पढमं हवई मंगलं, पद- ९. ४९४१०. पंदरभेद सिद्धा के गुण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९९, मार्गशीर्ष कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल. दादरी, पठ. तुलसीराम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७X११, २३X९०). सिद्ध के १५ भेद, प्रा., गद्य, आदि: तित्थसिद्धा १ अतित्थ; अंति: एगसिद्धा अणेगसिद्धा. सिद्ध के १५ भेद - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तिर्थसिधा तिरीये; अंति: परंपराय सिद्ध कहीयु. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नेमराजिमती बारमासो, मु. विनयचंद, मा.गु., पद्य, आदि चढी सावर्णे सांम बरात अंतिः पंचालदेस प्रसिधपुहवी, गाथा - १३. ४९४१२. स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२७११, २३x६२). १. पे नाम, शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जयमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: नगर हथिणापुर अति भलो अंतिः रिख जेमल० कोई पार नही, गाथा २९. २. पे. नाम. गुरुगुण सज्झाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पुण्य जोगे गुरु; अंति: रीखराय० अमर पद पावो, गाथा-२१. ३. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पुखलावती विजय पूर्व, अंतिः ऋष जैमल भवनी खामी गाथा २१. ४. पे. नाम. चार कषाय सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. ४ कषाय परिहार सज्झाव, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि सुणि उपदेश सुहामणो, अंति गुणसागरसूरि० सुजाणनें, गाथा-५. ४९४१३. नेमराजुल बारहमासो, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. कांधलासहेर, प्रले. मु. तुलसीराम, पठ. श्रावि. बाई नेमा; अन्य. पं. गुणकर्ण, प्र.ले.पु. सामान्य जैवे. (२६४११.५, १६४३९). नेमराजिमती बारमासो, मु. अगरा ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि; सावण मास सुहावनो अंतिः अगरा० मंझार हो लाल, प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः उग्गए सूरे नमुक्कार, अंति: वत्तियागारेणं वोसिरे. २. पे. नाम मुंहपत्ति बोल, पृ. ४अ ४आ, संपूर्ण. गाथा - १८. ४९४१६. दशविधि पच्चखाण विधि व मुहपत्ती बोल, संपूर्ण, वि. १९३४, चैत्र शुक्ल, ९, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, ले. स्थल. सीरोहीनगर, प्रले. आ. हुकमचंद्र (मंडावडगच्छ); अन्य. श्राव. मोतीचंद इंद्रभाण, प्र.ले.पु. सामान्य, वे., (२७४१२, १३×३३). १. पे. नाम. दस पच्चक्खाण विधि, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. मुहपति पडिलेहण ५० बोल, रा., गद्य, आदि: प्रथम दृष्टि पडिलेहण; अंति: ५ त्रसकाय ६ जेणी करु. ४९४१८. समेतशिखर चैत्रप्रवाडी संपूर्ण वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३ ले, स्थल, वटपल्ली, प्रले. ग. श्रीकर्ण गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६×११.५, १६४५१). सम्मेतशिखरतीर्थ चैत्यपरिपाटी, मु. हंससोम, मा.गु., पद्य, आदिः संति जिणेसर नमीय पाय अंति: हंससोम० तसु अन दिन, गाथा - ५०. For Private and Personal Use Only ४९४२०. (+) अंगरेज जैनसाधु संवाद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित. दे., ( २६ १२.५, १८x४५). " अंग्रेज जैन साधु प्रश्नोत्तर, पुहिं., गद्य, आदि: अकबरावाद में संवत; अंति: जवाब देना चाहिये. Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ___१४१ ४९४२२. चतुर्विंशतिजिन नाम स्तवन, संपूर्ण, वि. १७४६, आश्विन कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. कापरडानगर, प्रले. मु. बलुशंकर ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११,१५४५५). २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिणेसर प्रणमुं; अंति: आणंद० साची जिण सेव, गाथा-२६. ४९४२३. (+#) भारती स्तव, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. सारंगपूर, प्रले. मु. नेमविजय; पठ. ग. धनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १२४४८). सिद्धसारस्वत स्तव, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., पद्य, वि. ९वी, आदि: करमरालविहंगमवाहना; अंति: रंजयति स्फुटम्, श्लोक-१३. ४९४२४. (-) लघुशांति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२५.५४११.५, १४४४१). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांतिसंतिनिशांती; अंति: पूज्यमाने जिनेस्वरे, श्लोक-१७. ४९४२५. (+#) अभिधानचिंतामणी नाममाला, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १६-१७४४९-५३). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम कांड है.) ४९४२६. सकोशल चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४११, १९४५२). सुकोशलमुनि चौपाई, श्राव. जगन, मा.गु., पद्य, वि. १७६१, आदि: श्रीवर्धमान चौवीसमा; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१९, गाथा-१२ अपूर्ण तक है., वि. प्रतिलेखक ने आठवीं ढाल का दुहा नहीं लिखा है.) ४९४२८. (+) क्षेत्रसमास, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६.५४११, २३४२७-४०). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपयपईट्ठिय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३७ तक है., वि. कोष्ठक सहित.) ४९४३०. सात बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४१०.५, १५४३७). साधुसाध्वीआचार ७ बोल विचार, आ. हीरविजयसूरि, मा.गु., गद्य, वि. १६४६, आदि: सं.१६४६ वर्षे पोष; अंति: कान्हर्षिगणि मतं. ४९४३२. (-) सरसती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२६.५४१०.५, १४४३३). सरस्वती साध्वी सज्झाय, मु. श्रीपाल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसत करुं पसाव एक; अंति: श्रीपाल ज्ञान टुट्यौ, गाथा-२१. ४९४३३. शे@जय माहात्म्य फल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४११, १३४४२). शत्रुजयतीर्थ लघुकल्प, प्रा., पद्य, आदि: अइमुत्तयकेवलिणा कहिअ; अंति: लहइ सेत्तुंजजत्तफलं, गाथा-२५. ४९४३४. (+) जयतिहुअण स्तोत्र व पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४११.५, १३४४२). १. पे. नाम. जयतिहुअण स्तोत्र, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख; अंति: अभयदेव विनवइ आणंदि, गाथा-३०. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण, पे.वि. प्रथम पंक्ति दो बार लिखी गई है. पार्श्वजिन चैत्यवंदन-यमकबद्ध, मु. शिवसुंदर, सं., पद्य, आदि: वरसंवरसंवरसंवरसं; अंति: शिवसुंदर सौख्यभरम, श्लोक-७. ४९४३५. (+) मांडला बोल, संपूर्ण, वि. १९७१, मार्गशीर्ष शुक्ल, १५, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. दापडधरी, अन्य. कालीदास परसोत्तम खत्री; सा. संतोकबाई (स्थानकवासी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १६x४४-४८). सूर्यचंद्र अंतर विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जंबूद्वीपमां बे; अंति: दाडे ६३६६३ जोजन चाले. For Private and Personal Use Only Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४९४३६. (#) नेमराजुल बारमासो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११.५, १५४४२). नेमिजिन बारमासो, मु. लाभउदय, मा.गु., पद्य, वि. १६८९, आदि: सखीरी सांभलि हेतूं; अंति: लाभोदय विलासी हो लाल, गाथा-१५. ४९४३७. (#) नवतत्त्व व पौषधोच्चार विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्रले. ग. महिमसागर; पठ. श्रावि. झीवु; अन्य. श्रावि. सूजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १२४३०). १.पे. नाम. नवतत्तव प्रकरण, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणागयद्धा अणतगुणा, गाथा-४७. २. पे. नाम. पौषधोच्चारण विधि, पृ. ३आ, संपूर्ण. पौषध प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: करेमि भंते पोसह; अंति: अप्पाणं वोसिरामि. ४९४३८. ऋषभ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०.५, ८४३०). आदिजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: ऋषभ जिणेसर प्रीतम; अंति: अर्पणा आनंदघन पद रेह, गाथा-६. ४९४३९. (#) दानशीलतपभावना सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११, १०४२६-३१). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिणेसर पय नमी; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-३, गाथा-८ अपूर्ण तक लिखा है.) ४९४४०. भरत बाहुबली सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२५.५४११.५, १०४३०). भरतबाहुबली सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आदे आदि जिणेसरु रे; अंति: लालविजय० मुगते जइये, गाथा-३२. ४९४४२. (+) सामायक सझाय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १३४३३). औपदेशिक सज्झाय, मु. शुभवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: मई सेवी रे देवी; अंति: तेह नर मंगल करू, गाथा-२२. ४९४४३. (+#) स्तोत्र व ज्योतिष संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, १७X४१). १.पे. नाम. सरस्वती महास्तव, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सिद्धसारस्वत स्तव, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., पद्य, वि. ९वी, आदि: कलमरालविहंगमवाहना; अंति: रंजयति स्फुटम्, श्लोक-१३. २. पे. नाम. ज्योतिष विषय संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्योतिष*, मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., आदि: शस्याधिपं राज्यध्रुव; अंति: (अपठनीय). ४९४४४. (#) भले अर्थ व मात्रिका पाठ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १२४३६). १. पे. नाम. भले अर्थ, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ___ बावनी भले अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भले कहितां अरे बापडा; अंति: संसारर्नु अंत हुस्ये. २. पे. नाम. मात्रिका पाठ, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.. मा.गु., गद्य, आदि: ककु केवलु ते करिमां; अंति: ज्ञान ए थकी उपजे. ४९४४५. (+#) सोमशतक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्रले. मु. विद्यारंग, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १६४५१). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: न क्वाप्यहो निःफलं, द्वार-२२, श्लोक-९९. For Private and Personal Use Only Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १४३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ४९४४६ (+) जयतिहुअण स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १६५५, माघ शुक्ल ५, श्रेष्ठ, पृ. ३ ले. स्थल. वटपत्र, प्रले. मु. श्रेय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., ( २६११.५, ११x४१). ४९४४७. जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी, आदि जय तिहुयणवरकप्परुक्ख; अंतिः अभयदेव 7 विनवइ अणंदीय, गाथा- ३०. (#) मातृ गुणा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११.५, १४X३९). मातामहिमा सज्झाय, मु. सिंघ, मा.गु., पद्म, आदि: माय गिरद माय गिरुइ अंतिः सिंघउ कहि० लूणज्यो, गाथा- १४. ४९४४८. (+) गांगेयभंग सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. पंचपाठ-संशोधित, जैवे. (२५.५४११.५, ५४४१)गांगेयभंग प्रकरण, मु. श्रीविजय, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु वद्धमाणं; अंति: सरणपरिसिंहियम. गांगेयभंग प्रकरण- अवचूरि, सं., गद्य, आदि: वंदितु इति अंति: बाहुल्यान्नलिखिताः. ४९४४९ (+) स्तुति व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२६४११.५, १४४४६). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir י १. पे. नाम. बीजतिथि थोय, पृ. १अ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु, पद्म, आदि दिन सकल मनोहर बीज; अंति: कहि पूरि मनोरथ माय, गाथा ४. २. पे. नाम. एकादशी स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादशी अति रुअडी; अंति: गुणहर्ष० तणा निसदीस, गाथा-४. ३. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मोरा आतमराम कुण दिन; अंति: नयविमल० पद पास्युं, गाथा-७. ४. पे. नाम. सुविधिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. ग. ऋद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विधिसु सुविधि जिन, अंतिः ऋद्धिविजय उवझाय, गाथा - ५. ४९४५०. चक्रेश्वरी देवी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे. (२६४१०.५, १२४३७). चक्रेश्वरीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीचक्रभीमे ललितवर, अंतिः चक्रदेव्याः स्तवेन, लोक- ९. ४९४५१. वीर स्तव सह टीका, संपूर्ण वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पंचपाठ, जैदे. (२५४१०.५, ८४५७). " महावीरजिन स्तुति - द्विरूप साफल्योपदर्शक, मु. पुरुषोत्तम, सं., पद्य, आदि: श्रीवीरत्वां स्तुवे; अंति: स्तव भक्तिमेकां, श्लोक-२२. महावीरजिन स्तुति - द्विरूप साफल्योपदर्शक- टीका, सं., गद्य, आदि: श्रीभुवः कामस्य जये; अंति: अर्थये याचे इति. ४९४५२. (+#) जयतिहुअण स्तोत्र की अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५X११.५, १७X५३). जयतिहुअण स्तोत्र - अवचूरि, सं., गद्य, आदि: जयतिहुअणेत्यादि अत्र, अंति: त्रिलोकीलोकस्तोषितः. 3 ४९४५३ औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४११, १५X३९). " औपदेशिक सज्झाय, पं. धीरविमल गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सुमति सदा सुकुलिणी, अंति: धीरविमल० थाइ सुहंकर, गाथा - १३. ४९४५४. (#) नेमनाथ फाग, संपूर्ण, वि. १७८६, फाल्गुन शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. रुणीया, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गय है. जैवे. (२५.५x१०.५, १४४५२). For Private and Personal Use Only नेमिजिन फाग, मु. राजहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: भोगी रै मन भावीयो रे; अंति: हरख० फाग रसालो रे, गाथा- ३०. ४९४५५. (+#) पांचेंद्रिय सझाय व पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पणयुक्त विशेष पाठ. टिप्पणक का अंश नष्ट, दे., (२५.५x१०.५, १५४३४). १. पे. नाम. पांचेद्री सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. साधुगुण सज्झाय, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पांचेंदरी हो अहनिस; अंति: भगइ विजइदेवरोजी, गाथा - १०. Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीरिषभ जिणंद चरणे; अंति: पामी करम आह निषेधीया, गाथा-१२. ४९४५६. षट्दर्शनसमुच्चय, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२७४११.५, १२४४९). षड्दर्शन समुच्चय, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: सद्दर्शनं जिनं नत्वा; अंति: सुबुद्धिभिः, अधिकार-७, श्लोक-८६. ४९४५७. (+#) शक्रस्तवसूत्र सह टबार्थ व अरिहंतचेइयाणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, २४३५). १.पे. नाम. शक्रस्तवसूत्र सह टबार्थ, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. शक्रस्तव, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: नमुत्थुणं अरिहताणं; अंति: तिविहेण वंदामि, गाथा-१०. शक्रस्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमोस्तु कहिता नमस्का; अंति: कायाई करी वांदुछु. २.पे. नाम. अरिहंतचेइयाणंसूत्र सह टबार्थ, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. अरिहंतचेइआणं सूत्र, प्रा., पद्य, आदि: अरिहंत चेइयाणं करमे; अंति: ठामि काउस्सग्गं, गाथा-३. अरिहंतचेइआणं सूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तीर्थंकरनी प्रतिमा; अंति: संपदा त्रीजी जाणवी. ४९४५८. (#) पद्मावती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७२३, मार्गशीर्ष कृष्ण, ११, गुरुवार, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. दिली, प्रले. ग. ललितविजय; पठ. मु. खीमाविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. सरस्वतीदेवी का श्याम-स्वेत चित्र दिया है., मूल पाठ का अंशखंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १०४२८). पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंति: सर्वाधिव्याधिहरम्, श्लोक-२७. ४९४५९. (#) पंचमीस्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२.५, १२४३७). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी पास जिणेसर; अंति: गुणविजेय रंगे भणो, ढाल-६, गाथा-४९. ४९४६०. ईरीयाविहि कुलं व औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १९-१८(१ से १८)=१, कुल पे. २, प्रले. मु. दीपविजय (गुरु पंन्या. दर्शनविजय, तपागच्छ); गुपि. पंन्या. दर्शनविजय (गुरु आ. विजयसिंहसूरि*, तपगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०.५, १४४३७). १.पे. नाम. ईरीयाविहिकुलं, पृ. १९अ, संपूर्ण, पठ. श्राव. राजा, प्र.ले.पु. सामान्य. इरीयावही कुलक, प्रा., पद्य, आदि: पणमिउ वद्धमाण गोयम; अंति: रे जीव निच्चंपि, गाथा-१२. २.पे. नाम. हीतोपदेश सज्झाय, पृ. १९आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-कायोपरि, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: तो सुख जो आवै संतोष; अंति: लावण्य० मुगति संचरै, गाथा-९. ४९४६१. (#) पार्श्वजिन स्तवन व नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. ऋषभदेव प्रसादात्., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, १२४३०). १. पे. नाम. शंखेश्वर पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जी प्रभु पासजी पासजी; अंति: रंगविजेयः शीवराज रे, गाथा-६. २.पे. नाम. नेमजी स्तव, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अवल मोहलने अवल जरुखे; अंति: सेवक देव कहे हीतकारी, गाथा-७. ४९४६२. (#) पार्श्वजिन सीलोको व महावीरजिन सीलोको, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११.५, १४४३८). १.पे. नाम. पारसनाथजीरो सीलोको, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन सलोको, मु. हरख, मा.गु., पद्य, आदि: चरम जिणेसर प्रणमीय; अंति: गुण गाया हरख सुवायै, गाथा-१४. २.पे. नाम. मावीरजीरो सीलोको, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ महावीरजिन सलोको, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती सांवण तुज पाइज; अंति: पहतां श्रीवीरजीणंदो, गाथा-८. ४९४६३. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, १५४४८). १.पे. नाम. सामायिक दोषविध सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सामायिक ३२ दोष सज्झाय, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: पहिलूं प्रणमूं जिन; अंति: सोलहइ सिव परी तीरो, गाथा-२१. २.पे. नाम. सज्झाय गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. संवेग सज्झाय, मु. प्रीतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आतम चेत चेत रे सब; अंति: धरम करो लय लाई, गाथा-७. ४९४६४. मोक्षनगर सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६.५४१०.५, ७४२८). मोक्ष सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मोक्षनगर मारु सासरु; अंति: ज्ञानवि० मोक्षनो वास, गाथा-५. ४९४६५. परनारी परिहार सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४११.५, १०४३२). परनारी परिहार सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुण चतुर सुजाण पर; अंति: रूपविजय० साचासु, गाथा-९. ४९४६६. (#) स्तोत्र, स्तुति, औषध आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११, १२४४१). १.पे. नाम. आदि स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: जय जय जगदानंदन जय; अंति: भगवते ऋषभाय नमोनमः, श्लोक-५. २. पे. नाम. गूढार्थ श्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह ,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. ३. पे. नाम. पर्युषणा स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वली वली हुं ध्या; अंति: निध करै जिनलाभसूरिंद, गाथा-४. ४. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. देवचंद्रजी, मा.गु., पद्य, आदि: विमलाचलमंडण जिनवर; अंति: देवचंद्र० सिरदार, गाथा-४. ५. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. इस कृति का अवशेष पाठ १ अपर दिया गया है. __ औषधवैद्यक संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४९४६७. विहरमान वीसी व युगमंधर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४१२, २०४५६). १.पे. नाम. विहरमान वीसी, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण. विहरमानजिन स्तवनवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पुखलवई विजये जयो रे; अंति: वाचक जसे इम बोले रे, स्तवन-२०. २. पे. नाम. जुगमंदर स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण. युगमंधरजिन स्तवन, पं. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: काया पामी अति कूडी; अंति: जिनविजय गाया रे, गाथा-९. ४९४६८. समवसरण बोल संग्रह व चौद गुणठाणा मार्गणा, संपूर्ण, वि. १८५६, भाद्रपद शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्रले. मु. दयारामजी शिष्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. यंत्र युक्त., जैदे., (२६.५४१०.५, १८४५२). १. पे. नाम. समवशरण बोल संग्रह, पृ. १आ-३व, संपूर्ण. बोल संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: जीवाय १ लेस ८ पखी २; अंति: द्वारनी परे जाणवा. २.पे. नाम. १४ गुणठाणा की मार्गणा, पृ. ३आ, संपूर्ण. १४ गुणस्थानक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: मिथ्यात्व गुणठाणा; अंति: मोख जाइ अनंत गुणा. ४९४६९. अंतरीक पार्श्वनाथ छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२६.५४१०.५, १२४३९). पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, पं. भावविजय वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मात मया करी; अंति: भावविजय० जै जैकरण, गाथा-६०. For Private and Personal Use Only Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४९४७०. (+) सिद्धदंडिका सह अवचूरी, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. कर्करानगर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, ६४५३). सिद्धदंडिका स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जं उसहकेवलाओ अंत; अंति: दिंतु सिद्धि सुहं, गाथा-१३. सिद्धदंडिका स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: आदित्ययशोनृपप्रभृतयो; अंति: दंडिकासु भावनीयं. ४९४७१. (#) सील कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, ६x४१). शीलगुप्ति कुलक, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण महावीरं भणामिह; अंति: अचिरेण विमाणवासं वा, गाथा-२२. शीलगुप्ति कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्करी श्रीमहावीर; अंति: कालि विमान वास पामइ. ४९४७२. (#) मौनएकादशी गणनु, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. टिप्पणक का अंश नष्ट, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५४४३). मौनएकादशीपर्व गणj, सं., को., आदि: जंबूद्वीपे भरत; अंति: श्रीविवेकनाथाय नमः, ४९४७३. (+#) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२, १६x४९). १. पे. नाम. ४५ आगमसूत्र संख्या गर्भित वीर स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___महावीरजिन स्तवन-४५ आगम संख्यागर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: देवांना जिण जे छै; अंति: धरमसी० पुस्तक देख ए, ढाल-३, गाथा-२८. २. पे. नाम. तीनभुवन में सासता चैत्यप्रभु बिंबनिर्णय स्वरूप विचार स्तवन, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण. शाश्वतजिनबिंब स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति माता मन धरि; अंति: जंपइ सार ए अधिकार ए, ढाल-६, गाथा-६०. ४९४७४. (+) देवी कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १८४४१). पद्मद्रहस्थ श्रीदेवी कथा, मा.गु., गद्य, आदि: जंबुदीप भरत खेत्ररै; अंति: देजी माता दीठी. ४९४७५. (#) २४ तीर्थंकर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. सा. संतोषाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११,१५४४३). २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, म. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिणेसर प्रणम; अंति: तासु सीस पभणे आणंद, गाथा-२९. ४९४७६. (+#) स्नात्र विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२६४११, २०४५४). १.पे. नाम. मूलशांति विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: बालानां मूल विधानं; अंति: दिने लग्ने वारे वा. २.पे. नाम. जिनवर स्नात्र विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. स्नात्रपूजा सविधि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: मुक्तालंकारेति श्लोक, अंति: ग्रह पूजा ज्ञेया. ३. पे. नाम. अष्टोत्तरी स्नात्र विधि, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. पूजन सामग्री सूचि भी दी गई है. ___ अष्टोत्तरीस्नात्र विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ४९४७७. (#) चतु:शरण प्रकीर्णक, संपूर्ण, वि. १६५१, कार्तिक कृष्ण, ४, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. झंझूवाडा दूर्ग, प्रले. ग. रामविजय (गुरु आ. राजविजयसूरि, तपागच्छ); गुपि. आ. राजविजयसूरि (गुरु आ. दानसूरि, तपागच्छ); अन्य. पं. देवविमल गणि; राज्ये आ. हीरविजयसूरि (गुरु आ. दानसूरि, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ११४४३). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. For Private and Personal Use Only Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ १४७ ४९४७८. युगादिदेवमहिम्न स्तुति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. देववाडा, प्रले. मु. खीमा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, १४४५९). आदिजिन महिम्न स्तोत्र, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १५वी, आदि: महिम्न: पारं ते परम; अंति: रमाब्रह्मैकतेजोमयी, श्लोक-३८. ४९४७९. (+#) ग्यारह गणधर स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(१)=३, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १३४४६). १.पे. नाम. वैशाखसुदि इग्यारसि गणधर नमस्कार, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ११ गणधर देववंदन, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: गोयम गणहर गोयम गणहर; अंति: सवे पुरउ संघ जगीस, स्तवन-११, संपूर्ण. २. पे. नाम. एकादश गणधर स्तुतयः, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. ११ गणधर स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीइंद्रभूति; अंति: सत्वभृतां सुदेवा, स्तुति-११, श्लोक-४४. ३. पे. नाम. ग्यारह गणधर स्तवन, पृ. ३अ-४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ११ गणधर स्तवन, मा.गु., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीरजिणेसर पय पणमेवि; अंति: (-), (पू.वि. ११वें गणधर स्तवन की गाथा १ अपूर्ण तक है.) ४९४८०. साधर्मिक कुलक व औपदेशिक गाथा, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, पठ. सा. जयमाला, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१०.५, १३४४६). १. पे. नाम. साधर्मिक कुलं, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. साधर्मिक कुलक, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण पासजिणं वुच्छं; अंति: अभयदेव जे महासत्ता, गाथा-२६. २. पे. नाम. औपदेशिक गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक*, प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४९४८२. (#) गीत, पद व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ११, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२, ३२४२९). १.पे. नाम. शांतिजिन गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. भाणचंद, पुहि., पद्य, आदि: जै जै जै० भव भय भंजन; अंति: भाणचंद० नंदन भेटे आज, गाथा-२. २. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: चेतन तूं तिहुं काल; अंति: वणारसी० सहज सुरझेला, गाथा-४. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. ग. समयसुंदर, पुहि., पद्य, आदि: मुख नीको गोरी पास को; अंति: समयसुंदर० जिन जीय को, गाथा-२. ४. पे. नाम. श्रेयांसजिन गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. श्रेयांसजिन स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सुरतरू सुंदर; अंति: समयसुंदर० मानस हंस, गाथा-३. ५. पे. नाम. सुमतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ग. समयसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: जिनजी तारो हो तारो; अंति: समयसुंदर तुम्हारो, गाथा-३. ६. पे. नाम. अभिनंदनजिन गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. अभिनंदनजिन स्तवन, ग. समयसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: मेरे मनि कुं अभिनंदन; अंति: समयसुदर० पाय सेवा, गाथा-३. ७. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: लय लागी प्रभुना; अंति: आणंदघन को निधान, गाथा-३. ८. पे. नाम. कृष्णव्रजनारी पद, पृ. १आ, संपूर्ण. क. नरसिंह महेता, मा.गु., पद्य, आदि: वाल्हा व्रीजना रे; अंति: नरसैंया०नेणै दीठी रे, गाथा-३. For Private and Personal Use Only Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १४८ www.kobatirth.org गाथा - ७. ११. पे नाम, जीवआत्मा गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९. पे. नाम. नेमराजुल पद, पृ. १आ, संपूर्ण. " नेमराजिमती पद, मु. धर्मभूषण, पुष्टिं पद्य, आदि मन कोई नेमिजी मिलावै, अंतिः धरम मिठावइ हो सखी, गाथा-४. १०. पे नाम, नेमिनाथ राजमती लेख, पृ. १आ, संपूर्ण राजिमती लेख, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनपद पंकज नमी, अंति: हम कांतिवजे सुकमाल, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir औपदेशिक पद, नामदे, मा.गु., पद्य, आदि: रे मन मंखीया म पडिस; अंति: नामदे० प्रतिपाल रे, गाथा-४. ४९४८३. (+) पद्मावती सिझाय आलोयणा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे. (२६४१२, १२x४०). , , पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिव राणी पदमावती; अंति: भव भव संपवज्यो रे, ढाल - ३, गाथा- ४५. ४९४८४. (+*) महावीरसु पटावली, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६.५X११, १३४३७). . खरतरगच्छ पट्टावली, सं., गद्य, आदि: श्रीगौतमस्य गोबर, अंति: श्रीजिनसिंहसूरि, (वि. किसी दूसरे प्रतिलेखक द्वारा बाद में कुछ विद्वानों का नाम लिखा गया है.) ४९४८५. (क) तपागच्छ पट्टावली, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२६५११, ३७X७). , 1 पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमान तीर्थं; अंति: खिमासूरि विजयदयासूरि. ४९४८७. (#) महावीर स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X१७.५, १२X४५). महावीर जिन स्तुति, मु. गुणोदय, सं., पच, आदि: सोल्लास सिद्धं कमला अंतिः शिष्या गुणोदय साधनाव, श्लोक-२८. ४९४८८. (+) चउसरण प्रकीर्णक, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, अन्य. सा. जयमाला, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७X१०.५, ११४४९). चतुः शरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा. पद्म वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई, अंतिः कारणं निव्वुई सुहाणं, " " गाथा - ६३. ४९४८९. (#) पट्टावली संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११, १५४४२). १. पे. नाम. खरतरगच्छीय पट्टावली, पृ. १अ, संपूर्ण. पट्टावली खरतरगच्छीय, सं., पद्य, आदिः नमः श्रीवर्द्धमानाय, अंति: श्रीगौतमः स्तान्मुदे, श्लोक-१३. २. पे नाम. पट्टावली. पृ. १आ, संपूर्ण. पट्टावली से, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीमहावीर रो आऊषो अंति: (अपठनीय), (वि. प्रत की किनारी खंडित होने के कारण 1 अंतिमवाक्य अपठनीय है . ) ४९४९० (+) गुर्वावली, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६२-६० (१ से ६० ) = २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२६X११, ११X३०). पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु. सं., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानस्वामि, अंतिः श्रीविमलसोमसूरि, संपूर्ण. ४९४९९. सरस्वती छंद व निरंजनाष्टक, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, जै. (२६४११.५, १३४३६). " १. पे. नाम. सरस्वती छंद सहस्रनाम, पृ. १अ - ३आ, संपूर्ण. आदिमाता छंद, मु. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदिः ॐकारसार अपरंपार, अंति: कुसललाभ० पूरण ईश्वरी, गाथा-४५. २. पे. नाम, नीरंजनाष्टक, पृ. ३आ, संपूर्ण, निरंजनाष्टक, सं., पद्य, आदि: स्थानं नमानं न चनाद, अंति: नमो देव निरंजनाथ, श्लोक ८. ४९४९२, (4) सज्झाय व कथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८३२-१८३४, मध्यम, पृ. १. कुल पे ५, प्र. मु. भक्तिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६.५४११.५, २२-२७४५८). १. पे. नाम औपदेशिक सज्झाव, पृ. १अ संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ मा.गु., पद्य, आदि: श्रीआदिशर प्रणमुपाय; अंति: वाधी परभुजी पातक छो. २. पे. नाम. मंडक चोर कथा, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८३४, आश्विन शुक्ल, १२, ले.स्थल. दिल्लालग्राम. ___ मा.गु., गद्य, आदि: श्रीतीर्थंकर करु; अंति: माटे पहुं लेवू नही.. ३. पे. नाम. सीखामन सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण, वि. १८३२, मार्गशीर्ष कृष्ण, ७, ले.स्थल. घाटुयाम. औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४. पे. नाम. श्रीमती कथा, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ कथा संग्रह**, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: नवकार इक्क अक्खरेण; अंति: (-). ५. पे. नाम. मंडक चोर दृष्टांत कथा, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: चोरी पसथ ससरी नासो; अंति: (-), (वि. अंतिमवाक्य का अंश खंडित है.) ४९४९३. (#) गौतम कुलक, संपूर्ण, वि. १९३८, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. मंगलसेन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२, १३४४२). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: संवितु सुहं लहति, गाथा-२०. ४९४९४. देसांतरी छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२६४११, १४४५२). पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: सुवचन सुंपो सारदा मय; अंति: स्तवीयो छंद देसंतरी, गाथा-४७. ४९४९५. नमिजिन चरित्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., (२६४११.५, १४४४३). उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन ९ का आधारित, सं., गद्य, आदि: मालव मंडल मंडन; अंति: समये नमिराजा सत्कं. ४९४९६. औपदेशिक सज्झाय व औपदेशिक दोहा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६.५४११.५, १२४४१). १. पे. नाम. आत्मशिक्षा सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. औपदेशिक सज्झाय, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: अभिमानी जीवडा इम किम; अंति: पासचंदसूरि० धरम सनेह, गाथा-२३. २. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. उदय, पुहि., पद्य, आदि: धन विन तन कुंद हीत; अंति: उदय० सुनत सिर हीन, दोहा-३. ४९४९७. (#) विजयरत्नसूरि सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. पं. लक्ष्मीविजय (गुरु पं. सुंदरविजय गणि); गुपि.पं.सुंदरविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १५४५५). १. पे. नाम. गुरु विजयरत्नसूरी स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. विजयरत्नसूरि सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वराईना वर थकी अमे; अंति: मोहन रूपनो सीसरे, गाथा-१९. २. पे. नाम. विजयरत्नसूरीसर स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण. विजयरत्नसूरि सज्झाय, मु. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५७, आदि: विद्यागुरू चरण नमीने; अंति: जिन० कर जोडीरे, गाथा-९. ४९४९८. जयपताका यंत्र कल्प, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. कृति से संबंधित यंत्र दिया गया है., दे., (२६.५४११.५, १४४३६). महापुराण-जयपताकायंत्र कल्प, संबद्ध, सं., पद्य, आदि: सर्वमंत्रप्रतिष्ठाना; अंति: सहस्र नाम लखीइं, श्लोक-६१. ४९५००. (#) भवानी कवित, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, १४४४१). आदिमाता छंद, मु. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदि: ॐकार आदि अपरम पर नाद; अंति: कुशललाभ०जय जगदीश्वरी, गाथा-४९. ४९५०१. कका वतीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२५.५४११, १०४३०). ककाबत्रीसी, म. जिनवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: कका करमनी वात करि रे; अंति: सिस जीवमुनि इम भणे, गाथा-३३ ४९५०२. ग्रहशांति स्तोत्र व ग्रहशांति विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१०, १८४४३). १.पे. नाम. ग्रहशांति स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरु नमस्कृत्वा; अंति: ग्रहशांतिविधिश्रुतं, श्लोक-२८. २. पे. नाम. ग्रहशांति विधि, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण. जिनाभिषेक विधि-ग्रंहशांति गर्भित, सं., गद्य, आदि: पितापितामहप्रपितामह; अंति: शांति विधि श्रुतं. ४९५०३. नवग्रह स्तोत्र व प्रज्ञा विधान, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४११.५, १७४४५). १. पे. नाम. नवग्रहशांति स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: राहु दक्षिणे पश्चिमे, श्लोक-२०. २. पे. नाम. नवग्रहशांति पूजा विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम स्नान तेल कंको; अंति: ए विध्योपचार जाणवो. ४९५०४. (+) रीखबकुमार स्तवन, संपूर्ण, वि. १९७७, श्रावण अधिकमास कृष्ण, १३, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. सिगोली, प्रले. सा. बालकुंवर (गुरु सा. हगामकुंवर); गुपि. सा. हगामकुंवर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., अ., (२६.५४१२, १३४४३). आदिजिन स्तवन, मु. चौथमलजी म., मा.गु., पद्य, वि. १९६८, आदि: श्रीरीखभ कीरतार रे; अंति: चोथमल० मारा लालजी, गाथा-३२. ४९५०६. ६२ मार्गणा यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, ३०४२५). ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को., आदि: देवगति मनुष्य; अंति: असन्नी आहारक अणाहारी. ४९५०७. थूलभद्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १६६६, आषाढ़ कृष्ण, ७, गुरुवार, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. प्रत के अंत में नानी चेली पठनार्थे का उल्लेख मिलता है., जैदे., (२५४१०.५, १३४३८). स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, पंडित. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: कोस्या कामिनि कहे; अंति: नयसुंदर० तस हीसी रे, गाथा-२२. ४९५०८. पद्मावती सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२६४११.५, ११४३२). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवे राणी पद्मावती; अंति: समयसूंदर० छुटे ततकाल, ढाल-३, गाथा-३३. ४९५०९. (+) आत्मद्रव्य गुण पर्याय भावना स्वाध्याय व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२, ११४२९). १.पे. नाम. आत्मद्रव्य गुण पर्याय भावना सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. लाधो, मा.गु., पद्य, आदि: एक समे रुचिवंत शिष्य; अंति: लाधो० पद इम भावइ हो, गाथा-१२. २. पे. नाम. औपदेशिक गाथा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण.. जैनगाथा संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२. ४९५१०. पृथ्वीचंद्र चरित्र, अपूर्ण, वि. १७१३, चंद्रसमुद्रवह्नीचंद्र, चैत्र शुक्ल, १५, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १७-१६(१ से १६)=१, ले.स्थल. नांदसमा, प्रले. मु. करमचंदऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १७७५२). पृथ्वीचंद्रनरेंद्र चरित्र, आ. माणिक्यसुंदरसूरि, मा.गु., गद्य, वि. १४७८, आदि: (-); अंति: चरित्रं चारुनिर्मितं, ग्रं. २१००, (पू.वि. ५वे उल्लास का अंतिम भाग मात्र है.) ४९५११. शतक कर्मग्रंथ-यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२५.५४११, २०४३१). शतक नव्य कर्मग्रंथ-कोष्ठक, संबद्ध, मा.गु., यं., आदि: सूक्ष्म एकेंद्रिय अप; अंति: मोहा उस बहिंचेव. ४९५१२. (+) देवानंदा विलाप व गांगोतेली दृष्टांत, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४११.५, १७४४८). १.पे. नाम. देवानंदा माता विलाप, पृ. १अ, संपूर्ण. ____ मा.गु., गद्य, आदि: हिवै मनमांहि चिंतवै; अंति: म्हारा कर्मनोइ ज होस. २. पे. नाम. गंगातेली दृष्टांत कथा, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: कोई एक ब्राह्मण; अंति: आपणै ग्याने कैगयो. For Private and Personal Use Only Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ४९५१३. रत्नचूडश्रेष्ठीपुत्र कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैये. (२६११, २०४५८). "" रत्नश्रेष्ठीपुत्र कथा, सं., पद्य, आदिः कषाय विषया क्रांता अंतिः पदं च सव्ययैक्रमात् श्लोक-१६२. ४९५१४. संखेश्वर पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. वा. रत्नशेखर गणि (अंचलगच्छ); पठ. श्रावि. वेलीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२५.५४११, १३४३८). " पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, मु. विद्याचंद, मा.गु., पद्य वि. १६४३, आदि: श्रीजिवरसदाओ लगं ए अंतिः विद्याचंद० जय जगतिलो, गाथा- ४३. ४९५१५. मचणासुंदरी सती सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे. (२५.५४११.५, ११४३८). "" मयणासुंदरीसती सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मात मया करो; अंति: ज्ञानविमल० उल्ल रे, गाथा - १२. ४९५१६. १२ बोल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. क. पुरुषोत्तम (गुरु परमानंद); गुपि परमानंद, अन्य मु. जयविजय (गुरु मु. देवविजय); मु. देवविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२५.५४१२, १३x२६) १२ बोल सज्झाय, मु. विजयतिलकसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मात मया करउ; अंतिः सेवतां सकल सिंघ आणंद, गाथा - १२. १. पे. नाम. परमाणु अंगुल विचार, पृ. २आ, संपूर्ण. ४९५१७. (+) गौतम कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७७, कार्तिक शुक्ल, १२, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल. दादरी, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., ( २६.५X१२, ७x४२). गौतम कुलक, प्रा. पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंतिः निसेवितु सुहं लहंतु, गाथा २०. गौतम कुलक-टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: लोभी नर लक्ष्मी, अंति: दातार धर्म जाणवो. ४९५१८. परमाणु आंगुल विचार व अष्टमीतिथि स्तवन, संपूर्ण, वि. १८३८, पौष कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र. मु. कपूरविजय, पठ श्रावि रहतिबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२६४११.५ १२४३१). יי विचार संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तवन, पृ. १अ २आ, संपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि हां रे मरि ठाम, अंतिः कांति सुख पांमे घणुं, ढाल -२, गाथा २४. ४९५१९. स्तवनवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५.५X११.५, ११x४४). स्तवनवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पुक्खलवई विजये जयो, अंति: (-), (पू.वि. स्तवन ४ अपूर्ण तक है.) ४९५२०. नववाड सज्झाय प्रथम ढाल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६X११.५, १०X३३). नववाड सज्झाय, मु. केशरकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: वीर जिणेसर भाषित भवि; अंति: (-), प्रतिपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ४९५२१. वैरोट्या स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५x११, १४४४२). वैरोट्यादेवी स्तोत्र, अप., पद्य, आदि: नमिऊण जिणं पास; अंति: लंघिस्सइ पारसनाथीय, गाथा - ३१. ४९५२२. आशातना संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, वे. (२५.५x११.५, २०४५५) १. पे. नाम. गुरुनी तेत्रीस आसातना, पृ. १अ, संपूर्ण. ३३ आशातना विचार-गुरुसंबंधी, मा.गु., गद्य, आदि: गुरु पासे अडकी उभो अंति: गुरुने बेहरवा मोकले. २. पे. नाम. चौरासी आसातना, पृ. १अ १आ, संपूर्ण ८४ आशातना विचार, मा.गु., गद्य, आदि: श्लेष्मा नाखवो १ राम, अंतिः ८३ पीठी न चोले ८४. ३. पे. नाम चौरासी आसातना नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. ८४ आशातनासूत्र, प्रा. गद्य, आदि खेलं १ केलि २ कलिं ३; अंतिः जीव पाडती संसारे, , ४९५२३. स्तुति व दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२६×११, ११X३७). १. पे. नाम. ज्ञानपंचमी स्तुति, पृ. १अ. संपूर्ण. १५१ For Private and Personal Use Only Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. २. पे. नाम. वर्द्धमान स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. __ पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. ३. पे. नाम. सुभाषित दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-३. ४९५२४. (#) सिद्धगिरी स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६.५४११.५, १३४३५). शत्रुजयतीर्थ स्तुति, श्राव. ऋषभदास , मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसेāजो तीरथ; अंति: ऋषभदास गुण गाया, गाथा-४. ४९५२५. सीमंधरजिन स्तवन व औपदेशिक गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८६३, चैत्र कृष्ण, ११, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. अमनगर, पठ. श्रावि. मानबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३४). १.पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. क. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुणो चंदाजी सीमंदर; अंति: पदमविजे०वाधे अतिनूरा, गाथा-७. २. पे. नाम. औपदेशिक गाथा संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. जैनगाथा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: कर कुसंग चाहत कुसल; अंति: ऐएको काज न लग्ग, गाथा-२. ४९५२६. संथारापोरसीसूत्र व ज्ञानवृद्धिकर दस नक्षत्र-स्थानांगसूत्रोद्धृत, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४१०.५, १०४३७). १.पे. नाम. संथारापोरसीसूत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: निसीहि निसीहि निसीहि; अंति: एए समत्तंमए गहिरं, गाथा-१०. २. पे. नाम. ज्ञानवृद्धिकर दस नक्षत्र-स्थानांगसूत्रोद्धृत, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: दसनक्खत्त णाणस्स; अंति: वुढि कराई नाणस्स. ४९५२७. जैनप्रतिमा विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, प्रले. पं. गुलाबसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १३४४७). १.पे. नाम. अपराजित जैन प्रतिमा प्रमाण, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. जैन प्रतिमा प्रमाण, विश्वकर्मा, सं., पद्य, आदि: श्रृणु वत्स; अंति: भाषितं विश्वकर्मणा, श्लोक-७५. २. पे. नाम. जिनप्रतिमा शिल्प विचार, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. प्रा.,सं., पद्य, आदि: धर्मस्थाने ततो गम्यं; अंति: मज्जणं भाव उक्तजा, श्लोक-२४. ३. पे. नाम. गृहचैत्यप्रतिमा विचार, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. गृहचैत्य प्रतिमा लक्षण विचार, मा.गु., गद्य, आदि: रौद्र प्रतिमा करावना; अंति: ए आठ कर्मना क्षय करे. ४९५२८. (+) पजुसण सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६४१०.५, ९४३८). पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. जगवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम प्रणमु सरसति; अंति: सेवक गुरु गुण गाय, गाथा-१६. ४९५२९. सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. य. नेमविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४११.५, १०४२६). सिद्धचक्र स्तवन, मु. अमरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समरी सारदमाय प्रणमि; अंति: केसर० तुज लली लली, गाथा-८. ४९५३०. पंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १८२२, मार्गशीर्ष शुक्ल, ६, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. ईडरगढ, प्रले. उपा. हीरसागर गणि महोपाध्याय; पठ. श्रावि. रईबेन गांगजी शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (९१३) ज्ञान भणज्यो, जैदे., (२५.५४११.५, १२४३३). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी पास जनेशर; अंति: गुणविजय रंगमुनि, ढाल-६, गाथा-४५. ४९५३१. (#) मुनिमालिका, संपूर्ण, वि. १८८७, पौष कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १३४३२). मुनिमालिका स्तवन, ग. चारित्रसिंह, मा.गु., पद्य, वि. १६३६, आदि: रिषभ प्रमुख जिन पाय; अंति: चारित्रसिंघ० कल्याण, गाथा-१६, (वि. प्रतिलेखक ने २ गाथा को १ गाथा गिना है.) For Private and Personal Use Only Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ४९५३२. चतुर्विंशति तीर्थकर शुकनावली, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १, प्र.वि. कृति से संबंधित चक्र का चित्र दिया गया है., जैदे., (२५.५४१०.५, २१४७-१५). २४ जिन शुकनावली, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: शीघ्र सकलाकार्यसिद्ध; अंति: औषधेभ्योनन्योन गणः. ४९५३३. लब्धिनो थोकडो, संपूर्ण, वि. १८६२, कार्तिक शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. मुंबई बंदर, प्रले. मोतीचंद लखमीचंद पटेल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२, २१४५३-६०). लब्धि के २१ द्वार २२२ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: पांच ज्ञानना भेद; अंति: पर्यव अनंत गुणा. ४९५३५. (+) चतुर्विशतिजिन नमस्कार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १३४३९). सकलार्हत स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: भावतोहं नमामि, श्लोक-२८. ४९५३६. ज्ञानपंचवीसी, संपूर्ण, वि. १९१६, माघ कृष्ण, ९, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. मुंबई बंदर, प्रले. मु. कुवर (गुरु मु. गुणशेखर, अंचलगच्छ); गुपि.मु.गुणशेखर (अंचलगच्छ); पठ. श्राव. साभोजी करमण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीअनंतनाथ प्रसादात, जैदे., (२५.५४११, ११४२९). ज्ञानपच्चीसी, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: सुरनर तिरिजग जोन; अंति: बनारसी० करणको हेत, गाथा-२५. ४९५३७. नूतन बिंब विधान, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२५.५४११, १५४२५). जिनबिंब गण नक्षत्र योनि आदि विचार, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: इह देवस्य तद्रिंबकार; अंति: मृग ७ मेखा ८ स्वामिन. ४९५३८. स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १७६१, वैशाख कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. पट्टणानगर, प्रले. मु. मयगलसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पट्टणा नगर के सुलतानगंज में यह प्रत लिखी गई है., जैदे., (२५.५४१२.५, २५४७७-७९). १.पे. नाम. रोहिणीतपस्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सासणदेवत सामिणी मुझ; अंति: श्रीसार०मन आस्या फली, ढाल-४, गाथा-२६. २.पे. नाम. शीलविषये विजयविनय सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, आ. हर्षकीर्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह ऊठी रे पंचपरमेष; अंति: हर्ष नित्य ____घरइ अवतरे, ढाल-३, गाथा-२५. ४९५३९. (+) शेजा माहातम गुहली, संपूर्ण, वि. १९२९, भाद्रपद कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. वीसनगर, प्रले. मु. विद्याविजय (गुरु ग. लक्ष्मीविजय, देवसूरगच्छ); पठ. श्रावि. नाथीबाई; गुपि.ग. लक्ष्मीविजय (देवसूरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२६४११.५, १०-१२४३७). शत्रुजयतीर्थ माहात्म्य गहुंली, मु. विद्याविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९२४, आदि: सुण शाहेली शेत्रुजा; अंति: सीस पयंपे वीद्यासारी, गाथा-१३. ४९५४०. स्तोत्र व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६.५४१२.५, १५४४१). १.पे. नाम. सरस्तवीदेवी स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र-षोडशनामा, सं., पद्य, आदि: नमस्ते शारदादेवी; अंति: पूजनीयात् सरस्वती, श्लोक-१५. २. पे. नाम. सरस्वती अष्टक, पृ. १आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी छंद, आ. दयासूरि, मा.गु., पद्य, आदि: बुद्धि विमल करणी; अंति: दयासूर० नमेवी जगपति, गाथा-९. ३. पे. नाम. दुर्गादेवी कवच, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: प्रथमं शैलपुत्री च; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम श्लोक ही लिखा है.) ४९५४१. मातृकाक्षर शकुन विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. कृति से संबंधित कोष्ठक दिया गया है., जैदे., (२६.५४११.५, २१४३५). मातृकाक्षर शकुन विचार, मा.गु., गद्य, आदि: अकार होइ तो विजय लाभ; अंति: द्रव्य घणुंहोय. For Private and Personal Use Only Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४९५४२. सीझण द्वार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६.५४१२, ३८x११). सिद्धगतिद्वार विचार कोष्टक, मा.गु., को., आदि: उर्ध्व लोक का आवासी; अंति: (-). ४९५४४. (+) रोग शोकादि निवारण मंत्र व पंचषष्टि यंत्र स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४११, ८४२६). १. पे. नाम. रोग शोकादि निवारण मंत्र, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐ रक्खं तुम सरीरं; अंति: पर चक्रागम भय टलइ. २.पे. नाम. पंचषष्टियंत्र स्तोत्र, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्टियंत्रगर्भित, मु. सुखनिधान, सं., पद्य, आदि: आदौ नेमिजिनं नौमि; अंति: सुखनिधान० निवास, श्लोक-८. ४९५४५. (+) जिनपंजर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४११.५, ७४२७). जिनपंजर स्तोत्र, आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं अहँ, अंति: श्रीकमलप्रभाख्यः, श्लोक-२५. ४९५४६. श्रमणसूत्र, औपदेशिक गाथा संग्रह व नेमराजुल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७१४, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, जैदे., (२७४११.५,११४३४). १. पे. नाम. श्रमणसूत्र, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: करेमि भंते. चत्तारि०; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं. २.पे. नाम. औपदेशिक गाथा संग्रह, पृ. ४अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. जैनगाथा संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), गाथा-३. ३. पे. नाम. नेमजिनराजुल सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. नेमराजिमती सज्झाय, म. राम, मा.ग., पद्य, आदि: पंचमहाव्रत मोती जडीउ; अंति: राम० मृगते सिधारो, गाथा-७ ४९५४७. (-) चौवीस जिनवर आयु स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२६४११.५, १०४३१). २४ जिनआयु स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: वांदीय वीर जिणेशराय; अंति: मझ नई दइउ वाश, गाथा-७. ४९५४८. प्रशस्ति व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४१०.५, २३४७७). १.पे. नाम. अर्बुदाचले श्रीवस्तुपालवसतिप्रशस्ति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. अर्बुदाचलस्थितप्रशस्तयः, सं., प+ग., आदि: वंदे सरस्वती देवीं; अंति: प्रतिष्ठाकृता, श्लोक-५८. २. पे. नाम. औपदेशिक गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण.. जैनगाथा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ४९५४९. पच्चक्खाण फल, जैन गाथा संग्रह व लोक स्वरुप सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२६४१०.५, १२४४७). १.पे. नाम. आहार पच्चक्खाण फल, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: नमुयाई दसमेहि मुणि; अंति: खवेइ ऊसासमित्तेणं, गाथा-१७. २. पे. नाम. जैन गाथा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. जैनगाथा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ३. पे. नाम. जैन विचार संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. विचार संग्रह *, मागु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४. पे. नाम. लोकस्वरूप गाथा सह बालावबोध, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. लोकस्वरूप गाथा, प्रा., पद्य, आदि: लोए असंख जोअण माणेपइ; अंति: तहत्ति जिणवुत्तं, गाथा-३. लोकस्वरूप गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: लोक असंख्यात योजन; अंति: हियामाहि साचउमानिवउ. ४९५५०. बारह भावना संधि, संपूर्ण, वि. १६८४, ज्येष्ठ शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. ३, प्रले. वा. विमलकीर्त्ति गणि; पठ. श्रावि. धारा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १३४४९). For Private and Personal Use Only Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ १५५ १२ भावना, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १६४६, आदि: आदिसर जिणवर तणा पद; अंति: जयसोम० सुख थायइ, ढाल-१२, गाथा-७२. ४९५५१. जिनप्रतिमा वंदन फल स्तवन, संपूर्ण, वि. १७८५, वैशाख शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, ११४४५). जिनवंदनविधि स्तवन, मु. कीर्तिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: जिन चोवीसे करूं; अंति: किरतिविमल सुख वरवा, गाथा-११. ४९५५२. नवकार छंद व पच्चक्खाण संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्र-१४२., पत्र का आधा भाग नहीं है., दे., (२६४१०.५, २४४१३). १.पे. नाम. नवकार छंद, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ले.स्थल. रतलाम. नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछित पूरे विविध परे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३ अपूर्ण तक है.) २. पे. नाम. पच्चक्खाण संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: विगयं पच्चक्खाय अन्न; अंति: गारेणं वोसिरामि, (वि. विगय पच्चक्खाण व देशावगासिय पच्चक्खाण हैं.) ४९५५३. पंचमी लघु स्तवन, संपूर्ण, वि. १८८४, ज्येष्ठ शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४१२, ९४३०). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन-लघु, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पांचम तप तुम्हे करो; अंति: ज्ञाननो पंचमो भेद रे, गाथा-५. ४९५५४. मौन एकादशी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४११.५, १२४४२). मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदि: समवसरण बैठा भगवंत; अंति: कहै कह्यो द्याहडी, गाथा-१३. ४९५५५. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२६४११.५, १२४३०). १. पे. नाम. पांचमी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन-लघु, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पांचम तप तुम्हे करो; अंति: ज्ञाननो पाचमो भेदरे, गाथा-५. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. अमृतविजय, पुहि., पद्य, आदि: तुम सुरतरु सरसे दरसे; अंति: अमृत सिष कैलास, गाथा-२. ३. पे. नाम. चिंतामणिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मु. भावरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: चिंतामणि चित धर रे; अंति: भावरतन अनुसरे, गाथा-३. ४९५५६. (+) पार्श्वजिन स्तवन व अष्टक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, १३४४४). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: समवशरणं स्वामिन; अंति: पार्श्व० नतो मुदेव, श्लोक-९. २. पे. नाम. पार्श्व परमेश्वराष्टक, पृ. १आ, संपूर्ण... पार्श्वजिन परमेश्वराष्टक, सं., पद्य, आदि: त्रैरूप्यमस्ति; अंति: सुकृतं मम साधयंतः, श्लोक-८. ४९५५७. (+) महावीर वृद्ध स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२, १३४३५). महावीरजिन विनती स्तवन-जेसलमेरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणो मोरी वीनती; अंति: थुण्यो त्रिभुवनतिलो, गाथा-१९. ४९५५८. मौन एकादशी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४११.५, ११४४७). मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदि: समवसरण वैठा भगवंत; अंति: समयसुंदर०इग्यारस वडी, गाथा-१३. For Private and Personal Use Only Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४९५५९. गौतमस्वामि अष्टक, मंत्र सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, दे., (२५.५४१२, ३२४२०). १. पे. नाम. गौतमस्वामी अष्टक, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह ऊठी गोतम; अंति: समयसुंदर० परधान, गाथा-८. २. पे. नाम. जैनगायत्री जाप विधान, पृ. १अ, संपूर्ण. जैन गायत्री जाप विधान, सं., प+ग., आदि: ॐ भूर्भुवस्व: अहँ; अंति: तदा जैन धुरंधरः. ३. पे. नाम. ज्योतिष संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. ज्योतिष*, मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., आदि: दूरे विश्रुत्वा; अंति: उठी जात है. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. ग. लक्ष्मीवल्लभ, पुहिं., पद्य, आदि: आखंदा हुं मै तैडी; अंति: अवतार जिणेसर, गाथा-५. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जिनचंद्र, पुहि., पद्य, आदि: आज हमारे आनंदा; अंति: जय जय श्री जिनचंदा, गाथा-३. ६. पे. नाम. आत्म सिज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक सज्झाय, मु. सुमति, पुहिं., पद्य, आदि: ऐसा विलोवना विलोव; अंति: नित मति सुमति वखाणी, गाथा-८. ४९५६०. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, ११४३६). १. पे. नाम. सिखरजीरो स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. समेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. रामचंद, मा.गु., पद्य, आदि: साहिबा समेतशिखर गिर; अंति: आवागमन निवार हो, गाथा-५. २. पे. नाम. पार्श्वनाथजीरो स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. रामचंद, मा.गु., पद्य, आदि: वामानंदन साहिबारे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम गाथा लिखा है.) ४९५६१. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, पठ. श्रावि. ननदोजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १५४४४). १.पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. जिनरंगसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: विजयविदेह परगणो पुखल; अंति: पभणे श्रीजिनरंगरे, गाथा-९. २. पे. नाम. थंभणापार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, मु. भुवनकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: तूं ज्ञानी तुझनै कहू; अंति: भुवनकीरति कुलभाण, गाथा-८. ४९५६२. (#) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १७४५१). १.पे. नाम. छठा आरा सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. प्रत में प्रतिलेखक ने छठा आरा सज्झाय लिखा है, परंतु वास्तव में यह पांचवां आरा सज्झाय है. पंचमआरा सज्झाय, मु. जिनहंस, मा.गु., पद्य, आदि: वीर कहै गौतम सुणो; अंति: भाख्या वैण रसाल, गाथा-२१. २. पे. नाम. थुलीभद्रनी स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण. स्थूलिभद्र सज्झाय, आ. भावहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: योग ध्यानमा जोडी; अंति: भाव नमे नित पाय, गाथा-१५. ४९५६३. पौषधादिफलमाश्रित्य कुलं, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, ११४३६). पुण्यपाप कुलक, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: छत्तीसदिणसहस्सा ३६०; अंति: धम्मम्मि उज्जामह, गाथा-१६. ४९५६४. स्तुति व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४११, १४४३९). १. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ___१५७ १५७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ २४ जिन स्तुति, ग. अमृतधर्म, मा.गु., पद्य, आदि: तीरथपति त्रिभुवन सुख; अंति: शुद्ध अनुभव मानीये, गाथा-३. २. पे. नाम. विहरमान स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. विहरमान २० जिन स्तवन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: वीसे विहरमान जिनराया; अंति: क्षमाकल्याण में पाउ, गाथा-५. ४९५६५. नेमजीरो बारैमासो व नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२, ११४२७). १. पे. नाम. नेमजीरो बारेमासो, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. नेमराजिमती बारमासो, मु. अमरविशाल, मा.गु., पद्य, आदि: जादव मुझनै सांभरै; अंति: भणी विनवै अमरविशाल, गाथा-१९. २.पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. नेमिजिन गीत, मु. राजेंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: हेली सांवणीयो आयो हे; अंति: गुण राजिंद गावै है, गाथा-९. ४९५६६. (+) पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११.५, १०४४१). १. पे. नाम. जिनकुशलसूरि पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. शिवचंद, पुहिं., पद्य, आदि: दादा कुशलसूरिंद तुम; अंति: लह्यो सिवचंद सुहाय, गाथा-५. २.पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: हा रे मेरे जिणंदराय; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ४ अपूर्ण तक है.) ४९५६७. पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४१२, ११४४०). १. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. __ श्राव. अगर, पुहिं., पद्य, आदि: तेरी उमर विहांनी जाय; अंति: अगर० जग मैं होजा रे, गाथा-३. २. पे. नाम. चंद्रबाहुजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. चंद्रबाहजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, रा., पद्य, आदि: चंदाबाहु जिनराज जीवो; अंति: न्यायसागर सुखकारी रे, गाथा-७. ३. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. __महावीरजिन स्तवन, मु. अमृत, पुहिं., पद्य, आदि: तु जगतारन राजा अव; अंति: अमृत करत जस बाजा, गाथा-६. ४९५६८. स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१२, १३४३९). १.पे. नाम. पर्जूसणापर्व स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व स्तुति, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सतर भेद जिन पूजा; अंति: पूरवे देवी अंबाइजी, गाथा-४. २. पे. नाम. शेर्जेजाजी की स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, श्राव. ऋषभदास , मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशेत्रुजै तीरथ; अंति: ऋषभदास गुण गाया, गाथा-४. ४९५६९. सिद्धाचल स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, ११४३५). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कर जोडी कहें कामिनी; अंति: सेवक जीन धरे ध्यान, गाथा-१६. ४९५७०. (-#) तिजयपहुत्त स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. मूल पाठ का अंशखंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ९४३१).. तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तजिपुहत्तपयासयं; अंति: निब्भंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. ४९५७१. आदिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, १२४४७). ___ आदिजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, सं., पद्य, वि. १६७२, आदि: सकलशैवशिव प्रविधायकं; अंति: जिनराज० सौख्यास्पद, श्लोक-२६. ४९५७२. (+#) ऋषभदेव स्तवन सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२५.५४११.५, १८४३८). For Private and Personal Use Only Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आदिजिन स्तव-षड्भाषामय, आ. जिनप्रभसूरि, अप.,पै.,प्रा.,माग.,शौ.,सं., पद्य, आदि: निरवधिरुचिरज्ञानं; अंति: सिंह सोभीष्टलक्ष्मीः, श्लोक-४०. आदिजिन स्तव-षड्भाषामय-अवचूरि, मु. शुभतिलक, सं., गद्य, आदिः (अपठनीय); अंति: विकल्पत्वात, (वि. किनारी खंडित होने के कारण आदिवाक्य अपठनीय है.) ४९५७३. पद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४६.५, ५४३४). १.पे. नाम. नेमिराजुल पद, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, रा., पद्य, आदि: आज्योजी आज्योजी थेतो; अंति: मारु जी कदा घर आसि, गाथा-४. २.पे. नाम. गौडी पार्श्वजिन पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-गोडीजी, मु. सुजाण, रा., पद्य, आदि: टुक भिख्या फकीरकु; अंति: सुजाण० मिटाव नारे, गाथा-४. ४९५७४. (+) बृद्धशांति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११.५, १०४२७). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैनं जयति शासनम्. ४९५७५. च्यार सरणां, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ., (२६.५४११.५, ११४४२). ४ शरणा, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: मुझने च्यार सरणा; अंति: समयसुंदर० पारो जी, अध्याय-४, गाथा-१२. ४९५७६. चौवीस जिन गणधर संख्या स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६.५४८.५, २८x१४). २४ जिन गणधरसंख्या स्तवन, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति आपो सरस वचन; अंति: वृद्धिविजय गुण गाय, गाथा-९. ४९५७७. (#) स्तुति, स्तवन व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११.५, १३४४०). १.पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वनाथ स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो पार्श्वनाथाय; अंति: पूरय मे वांछितं नाथ, श्लोक-५. २. पे. नाम. जैन चैत्य स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके; अंति: सततं चित्तमानंदकारि, श्लोक-१०. ३. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह ,प्रा.,सं., पद्य, आदि: अविसर्गत; अंति: सांत अनादि अनंत, श्लोक-३. ४९५७८. बावीस अभक्ष बत्तीस अनंतकाय सझाय, संपूर्ण, वि. १८६८, माघ शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. खैरवा, प्रले. पं. मोतिविजय; पठ.मु. ज्ञानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीसंतनाथजी प्रसादात्., जैदे., (२५.५४११.५, १३४३९). २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय सज्झाय, आ. देवरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जिनशाशन रेसुधी; अंति: देवरत्नसूरि० सुख लहै, गाथा-१०, (वि. प्रतिलेखक ने १ गाथा को २ गाथा गिना है.) ४९५७९. दशविध पचखांण व नवपदजी पूजाविधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, २२४४४). १. पे. नाम. दशविध पचखांण, पृ. १अ, संपूर्ण.. १० पच्चक्खाणफल सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: दसविध प्रभु कहै; अंति: निश्चल पामो निरवाण, गाथा-८. २. पे. नाम. नवपदजी पूजाविधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नवपद पूजाविधि, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: सद्धतोयैः परिपूरित; अंति: भयनंदि पदं ययाति. ४९५८०. (+) आराधना,अणसण,दीक्षा विधि व श्लोक, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ४, प्रले.पं. अमरनंदन, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १६४६२). १.पे. नाम. आराधना, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण. श्रावकाराधना, सं., प+ग., आदि: श्रीसर्वज्ञ प्रपंपण; अंति: पक्षं मासंजावजीवं. २. पे. नाम. अणसण विधि, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. संथारा विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: तथा नवकार भणावी; अंति: वोसिरामित्ति. For Private and Personal Use Only Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ३. पे. नाम. दीक्षा विधि, पृ. ४आ, संपूर्ण.. प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: यथाशक्ति श्रीसर्वज्ञ; अंति: देह ततो देशना दीयते. ४. पे. नाम. मांगलिक श्लोक, पृ. ४आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: सर्वमंगल मांगल्यं; अंति: जैनंजयति शासनम, श्लोक-१. ४९५८१. उगुणत्रीसी भावना, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, १५४५५). २९ भावना छंद, मा.गु., पद्य, आदि: अविचल पद मन थिर करी; अंति: सई ते तरिसइ संसारि, गाथा-३०. ४९५८२. (+) अतिचार भेद, चातुर्मास कर्तव्यादि गाथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, कुल पे. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१०.५, १६x४६). १.पे. नाम. श्रावक १२४ अतिचार वर्णन, पृ. २अ-४आ, संपूर्ण. श्रावकव्रत १२४ अतिचारभेद वर्णन, प्रा.,सं., गद्य, आदि: अथ ५ अतिचाराः अथ; अंति: इति १२४ अतिचाराः. २. पे. नाम. साधुयोग्य चातुर्मासक्षेत्रादिविचार गाथा, पृ. ४आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: ०ववेयं तु खित्तं होइ; अंति: दिटुंतो चंदचूडस्स, गाथा-१२, (वि. आदिवाक्य का प्रारंभवाला भाग फटे होने से बादवाला शब्द लिया गया है.) ३. पे. नाम. चातुर्मास मध्य जिनपूजाफल गाथा, पृ. ४आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: सो जयउ जेण विहीया; अंति: जिणवरपूया तवगुणेसु, गाथा-२. ४. पे. नाम. जिनदर्शन पूजाफल श्लोक, पृ. ४आ, संपूर्ण. जिनदर्शनपूजा फल, सं., पद्य, आदि: यास्यामीति जिनालये च; अंति: जिनपतौ मासोपवासं फलं, श्लोक-१. ४९५८३. आराधना प्रकरण सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२६.५४११.५, १७४५६). पर्यंताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण भणइ भयवं; अंति: (-), (वि. प्रारंभ में किंचित मूलपाठ लिखकर ___बालावबोध लिखा है.) पर्यंताराधना-बालावबोध*मा.गु., गद्य, आदि: देव नमस्करिज्यो हउ; अंति: सौख्य प्राप्ति हुई. ४९५८४. चैत्यवंदन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, १२४३५). २४ जिन बृहत्चैत्यवंदन, मु. खेमो ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पहिला प्रणमु रिषभ; अंति: खीमौ० पामै सुख अनंत, गाथा-७. ४९५८५. स्तवन संग्रह व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११.५, ३६४२०). १. पे. नाम. अभिनंदनजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८१६... वा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु तूझदरीण मलीयो; अंति: रस मिल्यो एकताने, गाथा-७. २.पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.. उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: हम मगन भए प्रभुध्यान; अंति: जस कहे० मैदान में, गाथा-६. ३. पे. नाम. पदमणी महासज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक हरियाली, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: कहेयो रे पंडित ते; अंति: जस कहे ते सुख लहेंसे, गाथा-१४. ४९५८६. सूयगडांग सूत्र व आचारांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१०.५, १२४४७). १. पे. नाम. मोक्षमार्ग एकादशमध्ययनम्, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २.पे. नाम. आचारांगसूत्र बीजो उद्देशक, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ४९५८७. (+#) महसत्तमहासत्ती कुलक सह टबार्थ व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२६४११.५, ३४३४). १.पे. नाम. महासत्तमहासत्ती कुलक सह टबार्थ, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय; अंति: जसपडहो तिहुयणेसयले, गाथा-१३, संपूर्ण. भरहेसर सज्झाय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: दानविषये श्रीभरत; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ७वीं का व गाथा १० अपूर्ण से आगे का टबार्थ नहीं लिखा है.) २. पे. नाम. सुभाषित श्लोक संग्रह, पृ. ४अ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: काव्यं किं वद; अंति: अब छोडो जाती डंदा, गाथा-२. ४९५८८. पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, ११४३५). पार्श्वजिन स्तवन, ग. पुण्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जय जिनवर तेवीसमोरे; अंति: पुन्यविजै०सुख पजै जी, गाथा-९ ४९५८९. नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले.सा. जेबा आर्या; पठ. श्रावि. पदमा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १३४३३). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवापुन्नं पावा; अंति: अणीगयद्धा अणंतगुणा, गाथा-४४. ४९५९०. (+#) समकित स्तवन सह टबार्थ व मृत्युमहोत्सव, संपूर्ण, वि. १६९६, पौष शुक्ल, ६, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. वाक्पताकापुर, प्रले.ग. विजयशेखर गणि वाचक, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, ५४४४). १.पे. नाम. समकित स्तवन सह टबार्थ, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. सम्यक्त्वपच्चीसी, प्रा., पद्य, आदि: जह सम्मत्तसरूवं; अंति: भवेउ सम्मत्त संपत्ति, गाथा-२५. सम्यक्त्वपच्चीसी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जिम सम्यक्तवनउ; अंति: सम्यक्त्वनी प्राप्ति. २. पे. नाम. मृत्यु महोत्सव, पृ. ३आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: मृत्युमार्गे प्रवृत; अंति: संतो लभंते ततः, श्लोक-१८. ४९५९२. (+#) पुन्यफल कुलक व वर्णमाला, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३८). १. पे. नाम. पुण्यफल कुलक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पुण्यपाप कुलक, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: छत्तीसदिणसहस्सा; अंति: धम्ममि उज्जमह, गाथा-१६. २. पे. नाम. वर्णमाला, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ; अंति: प फ ब भ य र ल व. ४९५९३. (#) स्तुति, सज्झाय संग्रह व दिनज्ञान, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१०, ४२४२३). १. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति, आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अश्वसेन नरेसर बामा; अंति: जिनभक्तिसूरि० वित्त, गाथा-४. २. पे. नाम. श्रावक कर्त्तव्यपद, पृ. १अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: सवारे उठीनै सामायक; अंति: जीवदया पिण पालुंजी, गाथा-४. ३. पे. नाम. दस श्रावक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. १० श्रावक सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठि प्रणमुदसे; अंति: कहे मुनि श्रीसार ए, गाथा-१४. ४. पे. नाम. महासती सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. चंदनबालासती सज्झाय, मु. कुंअरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बालकुमारी चंदनबाला; अंति: कुंवर कहे कर जोडी रे, गाथा-१३. ५. पे. नाम. दिनज्ञान, पृ. १आ, संपूर्ण. दिनज्ञान श्लोक, सं., पद्य, आदि: अंगुष्ठादौ विजानीयात; अंति: प्रमाणं च विचक्षणे, श्लोक-१. ४९५९४. क्षमाछत्रीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६.५४११.५, १४४४१). For Private and Personal Use Only Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ १६१ क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदरि जीव खिमागुण आदर; अंति: चतुर्विध संघ जगीस जी, गाथा-३६. ४९५९५. (#) सज्झाय, विचार व बिरदावली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १४४३८). १. पे. नाम. प्रतिलेखन सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मुखवस्त्रिका प्रतिलेखन गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: दिट्ठि पडिलेहणा एगा; अंति: तणत्थं मुणी बिंति, गाथा-७. २.पे. नाम. सचित्त अचित्त जल विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: जगराइ बार पहरो; अंति: संधानं परिवर्जयेत. ३. पे. नाम. जैनबत्रीसी बिरदावली, पृ. १आ, संपूर्ण. जिनगुण बिरदावलीबत्रीसी, मा.गु., पद्य, आदि: जय संसार सागर सकल; अंति: नमस्ते नमस्ते, गाथा-३२. ४९५९६. (+) स्तवन व सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११, १२४३१). १. पे. नाम. वरकाणा स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणामंडन, उपा. जसकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: मन मोह्यौ मन मोह्यौ; अंति: जसकुशल लीला घणी, गाथा-७. २.पे. नाम. वैरागी सिझाय, पृ. १आ, संपूर्ण. कायाअनित्यता सज्झाय, मु. राजसमुद्र, रा., पद्य, आदि: सुणि बहिनी प्रिउ पडो; अंति: राजसमुद्र० सोभागी रे, गाथा-७. ४९५९८. (+) अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पणयुक्त विशेष पाठ., दे., (२५४११.५, १६४४४). अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: अनंतविज्ञानमतीत; अंति: कृतसपर्याः कृतधियः, श्लोक-३२. ४९५९९. ३६३ पाखंडी भेद व महावीर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. भावसुंदर (गुरु ग. देवसमुद्र गणि वाचक); गुपि.ग. देवसमुद्र गणि वाचक, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १६४५३). १. पे. नाम. ३६३ पाखंडी भेद, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., को., आदि: अस्तिजीवः २०; अंति: त्रिशती पाखंडिनां३६३. २.पे. नाम. पाखंडिविचारसार श्रीमहावीर स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तोत्र-पाखंडीविचारगर्भित, प्रा., पद्य, आदि: सिरिवज्जसेण पणयंति; अंति: पुणो विवाहतिनोए, गाथा-९. ४९६०१. नमस्कार व चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२.५, १३४३३). १.पे. नाम. पाक्षिक प्रतिक्रमण सत्क सर्व सार्व नमस्कार, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: श्रीवीरभद्रंदीस, श्लोक-२९. २. पे. नाम. साधारणजिन चैत्यवंदन, पृ. २आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: दर्शनं देव देवस्य; अंति: भावतोहं नमामि, गाथा-८. ४९६०२. लघुशांति, श्रावक महिमा व चौद नियम, संपूर्ण, वि. १९३१, चैत्र शुक्ल, २, शनिवार, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, ले.स्थल. वडगाम, प्रले. मु. दोलतरुची; पठ. मु. पूनमचंद (गुरु मु. दोलतरुची), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२, ६४३६). १.पे. नाम. लघुशांति सहटबार्थ, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांति निशांति; अंति: सूरी श्रीमानदेवस्य, श्लोक-१७. लघुशांति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीशांतिनाथत शांति; अंति: (१)शांतिपद प्रतिपामै, (२)जैनं जयति शासनं. २. पे. नाम. श्रावक महिमा, पृ. २आ, संपूर्ण. श्रावक ११ प्रतिमा गाथा, प्रा., पद्य, आदि: दंसण१ वयर सामाइय३; अंति: वज्जए१० समण भूएअ११, गाथा-१. For Private and Personal Use Only Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. चौद नियम, पृ. २आ, संपूर्ण. श्रावक १४ नियम गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सचित्त दव्वर विगइ३; अंति: न्हाण१३ भक्तिसु१४, गाथा-१. ४९६०३. (+) सत्ररिसय स्नोत्र व श्लोक, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, पठ. श्रावि. वानाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, ९४३६). १.पे. नाम. सत्ररिसय स्नोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अठ्ठ; अंति: निब्भंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. २. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण.. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), श्लोक-१. ४९६०४. च्यार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पृष्ठ संख्या अंकित नहीं है., जैदे., (२६.५४१०.५, १७४६०). औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: कडुआं फल छे क्रोधनां; अंति: उदयरत्न०वांदु सदारे, गाथा-७. ४९६०६. जंबुस्वामी रास, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., जैदे., (२६.५४११, १८४३६). जंबूस्वामी रास, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, ई. १५१६, आदि: सरसति सहि गुरु पय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ५८ अपूर्ण तक है.) ४९६०७. (+) स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१२, १३४४५). १.पे. नाम. नवग्रह शांतिस्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. ग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: जपेद्दष्टोत्तरशतम्, श्लोक-११. २. पे. नाम. ग्रहशांति स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, प्रले. मु. मानसिंघ, प्र.ले.पु. सामान्य. २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्टियंत्रगर्भित, मु. सुखनिधान, सं., पद्य, आदि: आदौ नेमिजिनौ नेमि; अंति: मोक्षलक्ष्मी निवासः, श्लोक-८. ३. पे. नाम. जिनप्रतिमा स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउणं सव्वजिणे; अंति: भवविरह कुणउ भव्वाणं, गाथा-७, (वि. यंत्र सहित) ४. पे. नाम. चौवीसजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिन पद, प्रा., पद्य, आदि: दोइ उज्जल दोइ सांमला; अंति: वंदीया चोवीसे जिणंद, गाथा-२. ४९६०८. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, जैदे., (२६४११.५, १२४४०). १.पे. नाम. विनय सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. विमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: विनय करो चेला गुरु; अंति: थाइं गुरुने सरीखोरे, गाथा-५. २. पे. नाम. चेला सीख सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शिष्य सज्झाय, मु. जिनभाण, मा.गु., पद्य, आदि: चेला रहे गुरुने पास; अंति: सेवो इम कहे जिनभाण, गाथा-७. ३. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक सज्झाय-ज्ञानगर्भित, मु. माणेक, मा.गु., पद्य, आदि: ज्ञानरस पीजो रे सजना; अंति: माणक०सास्वता परमाणंद, गाथा-५. ४. पे. नाम. वैराग्यभावना सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. रवचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सुण चेतन अब शीखडी; अंति: रवि शशि गिर धिरतारे, गाथा-५. ४९६०९. अचित सचित सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, १४४३४). असनादिक कालप्रमाण सज्झाय, मु. वीरविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रणमु श्रीगौतम; अंति: सेवकजण करजोडी कहइ, गाथा-१८, (वि. कर्ता नाम का उल्लेख नहीं है.) ४९६१०. (#) कृष्ण बलभद्र सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. उदेपुर, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १२४२७). For Private and Personal Use Only Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ १६३ बलभद्रमुनि सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: द्वारिका हुती निकल; अंति: कविअण० नही को तोले, गाथा-२८. ४९६११. सिद्धदंडिका स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. श्राव. हरिचंद जयचंद गांधी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४११.५, १२४४१).. सिद्धदंडिका स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१४, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी; अंति: पद्मविजय जिनरायारे, ढाल-५, गाथा-३८. ४९६१२. (#) छ आवश्यक विचार स्तवन, संपूर्ण, वि. १८५२, फाल्गुन शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. राधिकापुर, पठ. श्रावि. मूलीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. आदीश्वर प्रसादात्, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, ११४३२). ६ आवश्यकविचार स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीसइं जिन चीतवी; अंति: विनय० शिवसंपदा ___ लहे, ढाल-६, गाथा-४४. ४९६१३. (#) शत्रुजय स्तवन, संपूर्ण, वि. १८८६, फाल्गुन शुक्ल, ६, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले.ग. देवविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीशंखेश्वरजी प्रसादे, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२, १३४३०). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: करजोडी कहे कामनी; अंति: सेवक जिन धरे ध्यान, गाथा-१६. ४९६१४. स्तवन व थोय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२, १३४२८). १.पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, पंन्या. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिकरण श्रीय शांति; अंति: रंगविजय गुण गाय रे, गाथा-५. २. पे. नाम. औपदेशिक स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: उठि सवारें सामायक; अंति: साधे ते पद भोगीजी, गाथा-४. ४९६१५. स्तवन, पद व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ६, प्रले. पंन्या. रत्नविजय (गुरु पंन्या. नयविजय); पठ. मु. रंगविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, ४१४२२-२५). १.पे. नाम. सौभाग्यपंचमी नमस्कार पद, पृ. १अ, संपूर्ण. ग. सुजयसौभाग्य वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: सुमतिनाथ पंचम प्रभु; अंति: सुजय० पामइंतेह, गाथा-१. २. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन- सौभाग्य पंचमी उत्सवगर्भित, ग. सुजयसौभाग्य वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभ जिनेश्वर प्रभु; अंति: सुजय० पंचमी गुणधाम, गाथा-७. ३. पे. नाम. सौभाग्य पंचमी स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, ग. सुजयसौभाग्य वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावण शुदिनी पंचमी; अंति: सुजय० सुखकारी जी, गाथा-४. ४. पे. नाम. पूजा नमस्कार पद, पृ. १आ, संपूर्ण. जिनपूजा नमस्कार पद, वा. जयसौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: आदर करी अरिहतनी करो; अंति: जयसौभाग्य० घिर थाय, गाथा-४. ५. पे. नाम. जिनपूजा पद, पृ. १आ, संपूर्ण. जिनपूजा महिमा पद, सं., पद्य, आदि: स्नात्रं विलेपन; अंति: निःफलं भवेत्, श्लोक-४. ६. पे. नाम. औषध सूची, पृ. १आ, संपूर्ण. औषध संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४९६१६. (+) दानशीलतपभावना सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १२४३१). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिणेसर पाय नमी; अंति: समय० प्रथम प्रकास, ढाल-४, गाथा-१०१, ग्रं. १३५. For Private and Personal Use Only Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४९६१७. स्तवन व स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२६४११.५, १३४६३-६६). १.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन सह टीका, पृ. १अ, संपूर्ण.. महावीरजिन स्तवन, मु. देवसुंदर, सं., पद्य, आदि: तवगुण कणव्रत्यां वीर; अंति: देव०निश्रेयस श्रेयसः, श्लोक-१२. महावीरजिन स्तवन-टीका, आ. जयचंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: अत्र कण शब्दोनुरोधेन; अंति: गुणन प्रहवो इत्यर्थः. २. पे. नाम. पार्श्ववीर बहुवचन स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. देवसुंदर, सं., पद्य, आदि: भास्वन्महाः सुमहिमाव; अंति: यामृतरमापि सा क्रमेण, श्लोक-१८. ४९६१८. (+) पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पठ. श्रावि. धनकुंवर बाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१२, १०४३१). जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख; अंति: अभयदेव विनवइ आणंदिय, गाथा-३०. ४९६१९. षट् दर्शन विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५.५४११, १३-१५४४२). ६ दर्शन विचार, सं., पद्य, आदि: जैनं१ मैमासिकंर; अंति: शिक्षितं नैव निःफलम्, श्लोक-६६. ४९६२०. सुबाहुकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९४२, चैत्र कृष्ण, ३०, मंगलवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. कलोल, प्रले. छोटा अमुलख शेठ; लिख. श्रावि. वीजीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १४४४२). सुबाहुकुमार सज्झाय, मु. पानाचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८९५, आदि: हवे सुबाहुकुमार इम; अंति: पानाचंद० संजम आदर्यो, गाथा-१३. ४९६२१. गुर्वावली व कालकाचार्य चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४११, ११४४५). १. पे. नाम. गुर्वावली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पट्टावली खरतरगच्छीय, सं., पद्य, आदि: नमः श्रीवर्द्धमानाय; अंति: श्रीगौतमः स्तान्मुदे, श्लोक-१४, (वि. श्लोक संख्या नहीं है.) २. पे. नाम. कलिकाचार्य चरित्र, पृ. १आ, संपूर्ण. कालिकाचार्य कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: एयं च चउत्थीए जेहि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., __ चरित्र कहीयइ छइ- पद तक लिखा है.) ४९६२२. पंचनदी साधन विधि व माणिभद्र बलि विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२, २९४३८-४३). १.पे. नाम. पंचनदी साधन विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: संघेन सहासन्न ग्रामे; अंति: संघपतिं कारयेत, (वि. अंत में पंचनदी अधिष्ठायक माणिभद्र स्वामी का नैवेद्य भी दिया गया है.) २. पे. नाम. माणिभद्र बलि विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. माणिभद्रवीर बलि विधि, सं., गद्य, आदि: श्रीपंचनदि साधनाया; अंति: (-). ४९६२३. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६.५४११, १६४५२). १.पे. नाम. सीमंधरस्वामी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. सीमंधरजिनाष्टक, आ. शीलरत्नसूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणलतासुवसंतत; अंति: शीलरत्नसूरि० शोभितः, श्लोक-९. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. __आ. शीलरत्नसूरि, सं., पद्य, आदि: सकल कलकुशल फलक कमलवन; अंति: जय मंगल कमला जनन, गाथा-९. ३. पे. नाम. नवखंड देव स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-नवखंडा, सं., पद्य, आदि: भावभासुरा सुरंनम्रा; अंति: सकल मंगल सिद्धिबीजः, श्लोक-९. ४९६२५. (+) विविध तप विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्रले. मु. ऋद्धिहस, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १६x४०). १.पे. नाम. शील व्रतोच्चार विधि, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ १६५ शीलव्रत पाठ, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: प्रथम नंदी मांडीइं; अंति: ते ए उपदेश कहीइ. २.पे. नाम. पंचमी तपोच्चार विधि, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीतपउच्चरावण विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: सर्व एहजरीति देव; अंति: ते सर्व तेमज जाणवा. ३. पे. नाम. तूर्यव्रतोच्चार विधि ज्ञानपंचमी रोहिणी वीश स्थानक इत्यादि सर्व तप उच्चरवा विधि, पृ. २आ, संपूर्ण. सर्वतपोच्चारण आलापक, प्रा., गद्य, आदि: इम थानिक तपोच्चारै; अंति: सर्व तिम जाणवा. ४९६२६. (+#) स्तवन संग्रह सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२६.५४११, १४४५५-५८). १. पे. नाम. नवग्रह स्तुति गर्भित स्तंभन पार्श्व स्तवन-सह अवचूर्णि, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-स्थंभनतीर्थ नवग्रहगर्भित, सं., पद्य, आदि: जीयाज्जगच्चक्षु; अंति: कोर प्रमदंतनोतुवः, श्लोक-११. पार्श्वजिन स्तव-स्थंभन नवग्रहगर्भित-अवचूर्णि, सं., गद्य, आदि: सूर्यपक्षे छायाभार्य; अंति: तापं ददातीति पदस्तं. २.पे. नाम. नेमि स्तवन सह टीका, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमिजिनद्वयक्षर स्तोत्र, मु. शालिन, सं., पद्य, आदि: मानेनानून मानेनानोन्; अंति: परिरंभ योग्याः, श्लोक-९. नेमिजिनद्वयक्षर स्तोत्र-व्याख्या, सं., गद्य, आदि: आनुमः स्तुमः के; अंति: उत्कीर्तनमित्यर्थः. ४९६२८. (#) गहुँली संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, १३४४५). १.पे. नाम. गौतमस्वामी गहुंली, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: वर अतिशय कंचनवाने; अंति: उल्लसे निज आतमराम हो, गाथा-७. २.पे. नाम. नवपद गहुंली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. आत्माराम, मा.गु., पद्य, आदि: सहियर चतुर चकोरडी; अंति: दीजे हो सही सुख अनंत, गाथा-७. ३. पे. नाम. गुरुगुण गहुंली, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सहियर सविसरखि मिली; अंति: देवगुरु गुण गाओरे, गाथा-५. ४. पे. नाम. गुरुगुण गहुँली, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. मु. आत्माराम, मा.गु., पद्य, आदि: सजि नव सत शणघार सखि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३ अपूर्ण तक है.) ४९६२९. (#) स्तोत्र व छंद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १३४२८-३२). १.पे. नाम. भारती स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. भारती स्तवन, सं., पद्य, आदि: राजते श्रीमती देवता; अंति: वहति सप्ततमिह, गाथा-९. २. पे. नाम. सरस्वती स्तोत्र, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. सिद्धसारस्वत स्तव, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., पद्य, वि. ९वी, आदि: कलमरालविहंगमवाहना; अंति: रंजयति स्फुटम्, श्लोक-१३. ३. पे. नाम. ओसियामाता छंद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: देवी सेवी कोड कल्याण; अंति: करजोडी सेवक हेम कहै, गाथा-५. ४. पे. नाम. सिचियाय माता छंद, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. सिचीयायदेवी छंद, हेम, मा.गु., पद्य, आदि: सानिधि साचल मात तणी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ४ अपूर्ण तक है.) ४९६३०. अल्पबहुत्व बोल व भावनाम, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, २०४३५-४२). १.पे. नाम. अल्पबहुत्व बोल संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ९८ बोल-जीवअल्पबहुत्व विषयक, मा.गु., गद्य, आदि: सर्वथी घोडा गरभज; अंति: सर्वजीव विशेषाधिक. २.पे. नाम. भाव नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. ५भाव नाम, मा.गु., गद्य, आदि: उपशमिकभवै सम्यक् १; अंति: अभव्यपणुं २ जीवपणु ३. ४९६३२. (+) जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४१२, ५४३९-४२). For Private and Personal Use Only Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १६६ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: खेलं १ केलि २ कलि ३; अंति: जुओ वज्जो जिणिंदालए, गाथा-४. जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा- अवचूरि, सं., गद्य, आदि: खेलं केलि इत्यादि०; अंति: शातनारूपं ज्ञेयं, (वि. अवचूरी टबार्थ शैली में है.) ४९६३३. स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२-१० (१ से ८,१० से ११) = २, कुल पे. १०, जैदे., (२६X११, १२X४६). १. पे नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ९अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सूरि तुम्ह पाय सेवता, गाथा-४, (पू.वि. गाथा २ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ९अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति - पनांकित जेसलमेरमंडन, सं., पद्य, आदिः समुदमुत्तमवस्तु अंतिः जयतु सा जिनशासनदेवता, श्लोक-४. ३. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. ९अ - ९आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: महामंगलं अष्ट सोहै; अंति: संत वैसंत कल्याणदाता, गाथा- ४. ४. पे नाम, वर्धमानजिन अष्टमी स्तुति, पृ. ९आ, संपूर्ण साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: अविरलकमलगवल, अंति: देवी श्रुतोच्चयम्, श्लोक-४. ५. पे. नाम. दिपावली पर्व स्तुति, पृ. ९आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दीपावलीपर्व स्तुति, गच्छा, जिनचंद्रसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी आदिः पापायां पुरि चारु; अंति: (-). ६. पे. नाम. संगीतबद्द पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. १२अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. " पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: (-) अंतिः दिशतु शासनदेवता, श्लोक-४, (पू.वि. श्लोक २ अपूर्ण से है.) ७. पे नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १२अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदिः युगादिपुरुषेंद्राय, अंति: कूष्मांडी कमलेक्षणा, श्लोक-४. ८. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १२-१२आ, संपूर्ण. आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: निरुपम सुखदायक; अंतिः श्रीजिनलाभसूरिंदाजी, गाथा- ४. ९. पे नाम, वर्धमान स्तुति, पृ. १२आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मुरति मनमोहन कंचन, अंति: इम श्रीजिनलाभसुरंव, गाथा-४. १०. पे नाम. पर्युषण पर्व स्तुति, पृ. १२आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं है. आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वली वली हुं ध्यावु, अंति: (-), (पू.वि. गाथा १ अपूर्ण तक है.) ४९६३४, (+) स्तवन संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, जैदे, (२५.५४११.५, १६x४८). १. पे. नाम. पार्श्वजिनराज लघुस्तवन, पृ. १अ संपूर्ण. पार्श्वजिन लघुस्तवन, मु. विनय, सं., पद्य, आदि: लोकालोक दिवाकर करुणा, अंति: विनय युकभक्त्यारय, गाथा- १०. २. पे. नाम. अष्ट महाप्रातिहार्यगर्भित श्रीवामांगजजिनराज स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- अष्टमहाप्रातिहार्य गर्भित, मु. विनय, सं., पद्य, आदि: सकल सुरासुर मानवनत; अंति: भवतादिष्टार्थसंपादकः, श्लोक ७. ४९६३५. (#) आदिजिन लावणी व केरवो पद, संपूर्ण, वि. १८८७, कार्तिक कृष्ण, ९, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फेल गयी है, जैवे. (२६११, १२४३४). १. पे. नाम. आदिजिन लावणी, पृ. १अ २आ, संपूर्ण. पु,ि पद्य, वि. १८६०, आदि सरस्वतीमाता सुमत की अंति: सलूंबर माहे प्यारे, गाथा - २४. For Private and Personal Use Only Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ २.पे. नाम. केरवो पद, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. पृष्ठ संख्या- २ अंकित नहीं है. पार्श्वजिन केरवो, श्राव. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि: केरवो मुरत देखी पारस; अंति: भूधर०मुरत जिनवरजी की, गाथा-४. ४९६३६. चैत्यवंदन सह बालावबोध व काव्य संग्रह, संपूर्ण, वि. १८४९-१८५१, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. कालद्री, प्रले. पं. रामविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२, १६४३९). १.पे. नाम. सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र सह बालावबोध, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १८४९, वैशाख अधिकमास कृष्ण, सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, सं., पद्य, आदि: सकलकुशलवल्ली; अंति: श्रेयसे पार्श्वनाथः, श्लोक-१. सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: वो युष्माकं सततं; अंति: कल्याण संपजै. २. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण, वि. १८५१, आश्विन शुक्ल, १४. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. ४९६३७. सिद्धाचल स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४११, १४४४३). शत्रुजयतीर्थ स्तवन-९९ यात्रागर्भित, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धाचलमंडण; अंति: जिनहर्षे० गुण गाया, गाथा-१५. ४९६३८. प्रणिपातभेद विचार व प्राणीबध भेद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, १३४४६). १. पे. नाम. प्रणिपातभेद विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्राणातिपात भेद विचार, प्रा.,सं., गद्य, आदि: अज्ञानं संशयश्चैव; अंति: स्थितः श्राधस्य. २. पे. नाम. प्राणीबध के २४२ भेद, पृ. १आ, संपूर्ण. प्राणीबध के २४३ भेद, प्रा., पद्य, आदि: भूजल जलणा निलवर्णा; अंति: हुति तियाला, गाथा-२. ४९६३९. पुद्गल परावर्तन विचार, संपूर्ण, वि. १९५९, पौष कृष्ण, ३, शनिवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. मांडवीबंदर, प्रले. मोनजी दामोदर, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४११, १७४५६). पुद्गलपरावर्त विचार, मा.गु., गद्य, आदि: नाम गुणाति संख्याति; अंति: परावर्तन करवा न पडे. ४९६४१. क्रिया पच्चीस भेद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. नारणदास, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १३४३३). क्रिया के २५ भेद बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: काइया अजयणायइ शरीर; अंति: क्रिया कहीजइ. ४९६४२. बोल विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, दे., (२६४११, २१४५३). बोल संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: ८ मूलसु दिख्या देवै, (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., सचित्त अचित्त बोल से है.) ४९६४३. ज्ञानपंचमी स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११, १४४४९). ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी श्रीगुरुपाय; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल ३ की गाथा १५ अपूर्ण तक लिखा है.) ४९६४५. (#) बलदेवजी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पठ. मु. वस्ता ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १८४३०-५२). बलदेवमुनि सज्झाय, मु. भूपति, मा.गु., पद्य, वि. १७४४, आदि: श्रीचिंतामणि गच्छपति; अंति: हरष आणी संघ जयजयकार, ढाल-३, गाथा-३०. ४९६४६. (#) साधारणजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, ९४२१). साधारणजिन स्तुति, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चंपक केतकी पाडल जाई; अंति: माई जो तूंसे अंबाई, गाथा-४. ४९६४८. (#) विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, २३४८४). १.पे. नाम. चतुर्दशपूर्व परिमाण विचार, पृ. ३०अ, संपूर्ण. १४ पूर्व परिमाण विचार, सं., गद्य, आदि: पूर्वगतं श्रुतं चतुर; अंति: मर्द्धत्रयोदशकोटयोः. २. पे. नाम. ईर्यापथिक भांगा सह टीका, पृ. ३०अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ईर्यापथिकीभंग गाथा, प्रा., पद्य, आदि: चउदससय अडचत्ता तिसय; अंति: पणसहसाछसयतीसहिआ, गाथा-१. ईर्यापथिकी गाथा-टीका, सं., गद्य, आदि: पर्याप्तापर्याप्ता; अंति: मिथ्यादुःकृत विचारः. ३. पे. नाम. संज्ञा विचार, पृ. ३०अ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: संज्ञास्यास्तीति; अंति: संता प्रयन भवति. ४. पे. नाम. अनानुपूर्वी यंत्र, पृ. ३०आ, संपूर्ण. अनानुपूर्वीयंत्र, सं., गद्य, आदि: पुव्वाणुपुव्विहिट्ठा; अंति: पूर्वीति मंतव्यानि. ४९६४९. (#) जिन गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४११.५, १५४३७). १.पे. नाम. ऋषभ गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन गीत, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभ जिन गजपुर पधार्य; अंति: सौभाग्य० तारे रे, गाथा-५. २.पे. नाम. आदिनाथ गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन पद, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभदेव का हयरी विवाह; अंति: सोहग देखन हय जयकार, गाथा-३. ३. पे. नाम. आदिनाथ गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन अतिशय गीत, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नाभिराय मरुदेविनंदन; अंति: सौभाग्यविजय० पूरइ ईश, गाथा-४. ४. पे. नाम. ग्यार अतिशय गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. ११ अतिशय गीत, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: केवलन्यान जंब उपर्नु; अंति: सौभाग्यवि० नित ध्यान, गाथा-४. ५. पे. नाम. संभव गीत, प्र. १आ, संपूर्ण. संभवजिन पद, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: तुं मनमोहन संभवजिन; अंति: सौभाग्यविजय० काल नरे, गाथा-३. ४९६५०. सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६४११, ११-१४४४१). १. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: कपूर हुइ अति निरमलुं; अंति: सोमविमल० वहम जोड, गाथा-९. २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: आदित्य जोइ तूं जीवडा; अंति: लावण्यसमय० जिनवीर, गाथा-८. ३.पे. नाम. गजसुकुमाल सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. औपदेशिक सज्झाय-दानफल, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: एक घरि घोडा हाथीआरे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ६ अपूर्ण तक है.) ४९६५१. पार्श्व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४१२, १०४४३). पार्श्वजिन स्तवन-अहिछत्रपुरमंडन, मु. उत्तम, मा.गु., पद्य, आदि: सामल पारस सांभलो रे; अंति: उत्तम० सुधारो काज, गाथा-१०. ४९६५२. उपदेशमाला शुकनावली यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२६४११.५, १४४५५-५७). उपदेशमाला गाथा शकुन, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: सच्चं भासइ अरिहा; अंति: इदं जीवित मरण ज्ञानं. ४९६५३. (#) विपाकसूत्र हूंडी, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११.५, १९४३३). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेण; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रथमश्रुतस्कंध अध्ययन १० अपूर्ण तक लिखा है.) ४९६५४. तिजयपहुत्त स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. ग. रूपविजय (गुरु पं. हस्तिविजय गणि); गुपि.पं. हस्तिविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, ९४३४). For Private and Personal Use Only Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासं अट्ठ; अंति: निब्भंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१५. ४९६५५. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४१२, १०४३४). महावीरजिन स्तवन, पंन्या. रंगविजय, म., पद्य, आदि: सिधार्थसुत वंदिय; अंति: रंगचित उछाह हो लाल, गाथा-६. ४९६५६. शंतिकर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६.५४११.५, १०४२७). संतिकरंस्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: शंतिकरं शंतिजिणं जग; अंति: स लहि सुहसंपयं परमं, गाथा-१३. ४९६५८. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६.५४११.५, ११४३३). पार्श्वजिन स्तवन, मु. चरणप्रमोद, म., पद्य, आदि: ॐह्रीं श्रीं रे असिआ; अंति: चरणपरमोद० अंगणि रमइ, गाथा-३. ४९६५९. पार्श्व स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४१०, २७४१४). पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: दोसावहारदुखो नालियाय; अंति: जिणप्पहसूरि० पीडति, गाथा-१०. ४९६६०. पद्मावती आलोचणा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४११, १५४३९). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिवै राणी पदमावती; अंति: समयसूदर० छुटे ततकाल, ढाल-३, गाथा-३४. ४९६६१. चतुर्दशि स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, १२४२८). पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. ४९६६२. महावीरजिन स्तुति सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३,प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२६.५४११.५, २४३७). औपदेशिक स्तुति, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: उठि सवेरे सामायक; अंति: भावप्रभसूरि० भोगी जी, गाथा-४. औपदेशिक स्तुति-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: महिमाप्रभसूरीस गुरु; अंति: सीद्धपद भोगी थयो छे. ४९६६३. पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, १०४३३). पार्श्वजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पासजी वामाजीना जाया; अंति: रामविजय भणे रे लो, गाथा-१०. ४९६६४. लघुशांति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६.५४१२, १४४२८). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: पूज्यमाने जिनेश्वरे, श्लोक-१८. ४९६६५. पासा केवली, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२६.५४११.५, १५४६५). पाशाकेवली, मु. गर्गऋषि, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो भगवती; अंति: गर्गसत्योपासक केवली, श्लोक-१८५. ४९६६६. बृहत्शांति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२६४१२, १२४३१). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैनं जयति शासनम्. ४९६६७. बृहत्शांति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२७४११.५, ८x२७). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैन जयति शासनम्. ४९६६८. प्रश्नोत्तररत्नमाला, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११, १४४४१). प्रश्नोत्तररत्नमाला, आ. विमलसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्य जिणवरेंद्र; अंति: विमलेन० किं न भूषयति, श्लोक-२९. ४९६७०. अंतरीक पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८४४, माघ कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. नाडोलनगर, पठ. पं. प्रतापविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १२४३६). पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५८५, आदि: सरस वचन द्यो सरसति; अंति: लावण्यसमय० वांछ सदा, गाथा-५२. ४९६७१. वीरजिन पंच कल्याणक स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. मु. जयसागर; लिख. श्राव. नगीनदास मयाभाई सेठ, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४११.५, १०४३३). महावीरजिन स्तवन-५ कल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: सासननायक सिवकरण वंदू; अंति: रामविजय०अधिक जगीसरे, ढाल-३, गाथा-५६. For Private and Personal Use Only Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४९६७२. नवकार छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२६४११.५, १३४२९). नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछित पुरे विविध परि; अंति: कुसललाभ० संपद लहि, गाथा-१७. ४९६७४. (-) शांतिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२७४११.५, १४४३८). शांतिजिन स्तवन, ऋ. रुगनाथ, मा.गु., पद्य, वि. १८३४, आदि: संतनाथजी रोकीजे जाप; अंति: थारं चरणा रो दास, गाथा-१५. ४९६७५. (+) पुन्य कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६८५, आश्विन शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. २, पठ. मु. पंचायण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, १६४३८). पुण्य कुलक, प्रा., पद्य, आदि: संपुन्न इंदियत्त; अंति: ते सासयं सुखं, गाथा-१०. पुण्य कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पुन्य कुलं पुकृति ते; अंति: एक जघन्य आराधना करी. ४९६७६. (-) उत्तम पुरुष सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२५.५४११, १८४३६). उत्तम पुरुष सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: दान दया कर जीवडारे; अंति: संजम स सुक्ख पामीया, गाथा-२२. ४९६७७. अविनीत सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४११, १९४३७). अविनीत शिष्य सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: मातपीतारो अवनीत छौ; अंति: जोज्यो वात अवनीतरी, गाथा-४१. ४९६७८. कुगुरु सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. सूर्यपूर, जैदे., (२६४११.५, १५४३९). कुगुरुबत्रीसी, मु. भीम, रा., पद्य, आदि: भांति भांति को टोपि; अंति: लोक कहे गुरु अम्हारा, गाथा-३०. ४९६७९. विचारषट्विंशिका, उपदेशमाला सज्झाय व स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १७७६, चैत्र शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. ८-६(१ से ६)=२, कुल पे. ६, ले.स्थल. सिरोही, प्रले. पं. नेमिमूर्ति गणि; पठ. श्राव. माईदास, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४९.५, ११४४६). १.पे. नाम. विचारषविंशिका, पृ. ७अ, अपर्ण, प.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदिः (-); अंति: एसा विणत्ति अप्पहिया, गाथा-३८, (पू.वि. गाथा ३५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. उपदेशमाला सिद्धांत सज्झाय, पृ. ७अ-८आ, संपूर्ण. पौषध सज्झाय-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: जगचूडामणिभूओ उसभो; अंति: उप्पन्नं केवलं नाणं, गाथा-३३. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ८आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-समवसरणभावगर्भित, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: हर्षनतासुरनिर्जरलोकं; अंति: जिन स्वस्तिनिजाघः, श्लोक-४. ४. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. ८आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: वीरं देवं नित्यं; अंति: देवी ददातु सौक्षं, श्लोक-१. ५. पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, पृ. ८आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: महीमंडणं पुन्निसोवन; अंति: (-), गाथा-४, (वि. प्रतिलेखक ने मात्र प्रथम गाथा का प्रथम चरण प्रतीकपाठ देकर स्तुति का संकेत किया है.) ६. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ८आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमंडन, प्रा., पद्य, आदि: वरमुक्तिहारि सुतारिग; अंति: (-), गाथा-४, (वि. प्रतिलेखक ने मात्र प्रथम गाथा का प्रथम चरण प्रतीकपाठ देकर स्तुति का संकेत किया है.) ४९६८०. अष्टमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, ७, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, ११४४९). अष्टमीतिथि स्तवन, ग. देवविजय वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती सामिणि गजगति; अंति: देवविजय० तास प्रणाम, ढाल-४, गाथा-१०. For Private and Personal Use Only Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ १७१ ४९६८१. (+) पार्श्व स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पठ.मु. भाणविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०, ९४३०). पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: देंद्रे कि दें; अंति: दिशतु शासनदेवता, श्लोक-४. ४९६८२. जंबूस्वामी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९४९, आश्विन शुक्ल, ५, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. श्राव. माणकचंद वाहलचंद दोशी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, ११४३१). जंबूस्वामी सज्झाय, आ. भाग्यविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७६६, आदि: सरसती स्वामीने विनवु; अंति: भाववीमल० जेजेकार, गाथा-१५. ४९६८३. आध्यात्मिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९२६, आषाढ़ कृष्ण, ७, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. खेरालु, प्रले. मु. खेमचंद; लिख. मु. तिलकविजय; पठ. श्रावि. माणकबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१२, १०४३५). औपदेशिक सज्झाय, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: हुं तो प्रणमु सदगुर; अंति: पछे आनंदघन थाये, गाथा-११. ४९६८४. शक्रस्तव व पार्श्वजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२४.५४९.५, १६x४९). १.पे. नाम. शक्रस्तव, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. शक्र स्तव-अर्हन्नामसहस्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., प+ग., आदि: ॐ नमोर्हते परमात्म; अंति: सिद्धसेन० संपदा पदं. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र विधि सहित, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-कलिकुंड, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं तं नमह; अंति: इयना उंसरह भगवंत, श्लोक-४. ४९६८८. आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, १२४३७). आदिजिन स्तवन, मु. अक्षयचंदसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी आदीसर अलवेसर; अंति: सुखथी बाधस्युरे लो, गाथा-५. ४९६८९. (#) अजितशांति स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. गौमंडलपुर, प्रले. मु. हितविमल; पठ. मु. विनयविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीशांतिश्वर जगन्नाथ प्रशादात्, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४११.५, ११४४०). अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजिअंजिअसव्वभयं संत; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-४०. ४९६९०. महावीरस्वामि स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. मोहन डामर; अन्य. श्रावि. दीवालीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. ८८, दे., (२५.५४११.५, १४४३६). महावीरजिन स्तवन-५ कल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: सासननायक सीवकरण वंदु; अंति: रामविजय०अधिक जगीस रे, ढाल-३, गाथा-२७. ४९६९१.(-) सज्झाय व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, अन्य. मु. मेघराज ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२६४११.५, १२४३३-३६). १.पे. नाम. भरथराजा सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. भरतचक्रवर्ती सज्झाय, मु. सुंदरमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मात पशाउले पाम; अंति: सुंदर सुगण सुहागी, ढाल-२, गाथा-२९. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: हांजी नाभीनंदण कोल; अंति: कारे रेखव घर आवेला, गाथा-१२. ४९६९२. अष्टमी महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९००, फाल्गुन कृष्ण, ११, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. वीरमगाम, प्रले. ग. भीमविजय; लिख. श्रावि. दीवालीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीशांतिनाथ प्रशादात्, जैदे., (२६४१२, १४४३४). अष्टमीतिथि स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हां रे मारे ठाम धरम; अंति: कांति सुख पावे घणो, ढाल-२, गाथा-२५. ४९६९३. चत्तारिअट्ठदस स्तव सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. ग. विचारसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२५४१०, ७४५७). For Private and Personal Use Only Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १७२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची . शाश्वतप्रतिमा वर्णन, आ. देवेंद्रसूरि प्रा. पद्य, आदि; चत्तारिअट्ठदसदोअ अंतिः देविंद० जगगुरू विंति गाथा- १५. शाश्वतप्रतिमा वर्णन अवचूरि, प्रा.सं., गद्य, आदि दोहिणदारे चरो, अंति: विवरण भावना कार्येति. ४९६९४. गच्छाचार पयन्ना, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., ( २६ ११, १५x५३). गच्छाचार प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण महावीर, अंति: (-), (पू.वि. गाथा ४४ अपूर्ण तक है.) ४९६९६. सकलार्हत् स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८९९, ज्येष्ठ कृष्ण, ११, मध्यम, पू. २, प्रलं. ग. भीमविजय लिख श्रावि. दीवालीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६X१२, १४x२८). सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंतिः भाव तुहं नमामि देव, श्लोक-२९. ४९६९७. नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पठ. श्रावि पुरीबाई, प्र. ले. पु. सामान्य, दे., ( २६.५X१२, ११४३३). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा, अंति: अनंतभागो य सिद्धिगओ, गाथा- ५३. ४९६९८. नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८५९ पौष कृष्ण, ७, गुरुवार, मध्यम, पृ. २. ले. स्थल, जोजावर, प्र. मु. टेकचंद ऋषि पठ. मु. किस्तूरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६X१०.५, १२X४२). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुत्रं पावा, अंतिः बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा ४६. ४९६९९. () मृगापुत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२५.५X११, २०X३८-४०). मृगापुत्र सज्झाच, मा.गु, पद्य, आदि: तिण काले ने तिन समे अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, ढाल ११ गाथा ८ अपूर्ण तक लिखा है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९७००. नववाड सज्झाय व आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५.५X१०, १२X४३). १. पे. नाम. नववाड सज्झाय, पृ. १अ - २आ, संपूर्ण. ९ वाड सज्झाय, वा. जयविमल, मा.गु, पद्य, वि. १७३८, आदि: चोविसमो जिनवीर होगी, अंतिः जयवीमल० नववाड सझाय, गाथा - ३८. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. आ. जिनराजसूरि, मा.गु, पद्य, आदि मन मधुकर मोही रह्यो अंतिः जिनराज० कर जोड़े रे, गाथा ५. ४९७०१. अजितनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., ( २६११.५, ११४३८). अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत, अंति: जिणवयणे आयरं कुणह गाथा ४०. ४९७०२. विजयदानसूरी गुरु सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., ( २६.५X११.५, १६३८). विजयदानसूरि सज्झाय, ग. सत्यसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सेवउ सेवउ गछपति राज, अंति: सत्यसागर० आसीस रे, गाथा - १३. ४९७०३. (+) आराधना, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैवे. (२५.५x११, ११४४१). पर्यंताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण भणइ एवं भयवं; अंति: ते सासयं सुक्खं, गाथा- ७०. ४९७०४ उपधान्न विधि स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे. (२६.५४११.५, ११४३३). " महावीरजिन स्तवन- उपधानतपविधिगभिंत. मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३, आदि: श्रीवीरजिणेसर सुपरे, अंतिः मुझ देख्यो भवोभवे, गाथा-२७. ४९७०५ साधु पाक्षिक अतिचार संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, पठ. मु. मयारत्न (गुरु आ दानरत्नसूरि); गुपि आ. दानरत्नसूरि (तपगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६.५X१२, १३X३१). साधुपाक्षिक अतिचार घे. मू. पू. संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि अ अंतिः मिच्छामि दुक्कडम् ४९७०६, (+) जयतिहुअण स्तोत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित टिप्पणक का अंश नष्ट, जैवे. (२६११.५. १९४६-५०) " जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख, अति: (-), (पू. वि. गाथा १३ तक है., वि. मूलसूत्र का मात्र प्रतिक पाठ दिया गया है.) For Private and Personal Use Only Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ १७३ जयतिहुअण स्तोत्र-टीका, सं., गद्य, आदि: सर्वोत्कर्षणवर्त्त; अंति: (-). ४९७०७. एकादशीस्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. जैदे., (२६.५४१२,१३४४०-४७). मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: (-); अंति: पामीयै मंगल घणो, ढाल-३, ___ गाथा-२८, (पू.वि. ढाल २ गाथा १६ अपूर्ण से हैं.) ४९७०८. लावणी संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, दे., (२४.५४१०, १४४४०-४२). १.पे. नाम. केसरीयानाथजीरी लावणी, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. आदिजिन छंद-धुलेवा, क. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७५, आदि: आदि करण आदी जगत आदि; अंति: सुरनर सब कीरत कहे, गाथा-६३, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक क्रमशः नहीं दिया है.) २.पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. ३आ, संपूर्ण.. मु. नेमजी, पुहि., पद्य, आदि: इस देही का गर्वन कर; अंति: नेम०जिन के चित्त भाई, गाथा-६. ४९७०९. (-#) शीयल सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६.५४१२, १५४३२). शीयलव्रत सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: गीर नक्षत्र तारा माह; अंति: सीयल वरत मोटो, गाथा-३२. ४९७१०. शीक्षा स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०.५, १२४३४). औपदेशिक सज्झाय-आत्मोपरि, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सुमति सुंदरी वीनवि; अंति: उदयरतन० पामो सुख पूर, गाथा-१७. ४९७११. श्रीमंधरस्वामी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९०२, फाल्गुन कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. मेडता, प्रले. सा. रामी आर्या (लुकागच्छ); पठ. श्रावि. सीरुबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४११.५, १३४३२-३५). सीमंधरजिन विनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सफल संसार अवतार ए गण; अंति: पुरि आस्या मन तणी, गाथा-१९. ४९७१२. चतुर्विंशतिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १८७२, कार्तिक कृष्ण, ६, शुक्रवार, जीर्ण, पृ. २, ले.स्थल. सूत बिंदर, प्रले.पं. भक्ति (गुरु पं. धनसागर गणि, सागरगछ); गुपि.पं. धनसागर गणि (सागरगछ); पठ. श्रावि. सोमकोरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, १४४३४). २४ जिन स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभजिन सुहाया; अंति: सौम्य सहकारकंदा, गाथा-२८. ४९७१३. (+) वैराग्यशतक, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६४१२, १४४४१). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारम्मि असारे नत्थ; अंति: लहइ जिउ सासयं ठाणं, गाथा-१०३. ४९७१४. उत्तराध्ययनसूत्र चयनितगाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, १५४५४). उत्तराध्ययनसूत्र-चयनितगाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: ए छत्तीसं उत्तरज्झाए, गाथा-३८. ४९७१५. (+#) प्रव्रज्याभेद विवरण सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी __ है, जैदे., (२५४११, ७४६६). स्थानांगसूत्र- प्रव्रज्याभेदादि विवरण, प्रा., गद्य, आदि: दसविहा पव्वज्जा; अंति: धम्मे अत्थिगते धम्मे. स्थानांगसूत्र- प्रव्रज्याभेदादि विवरण की टीका, सं., गद्य, आदि: छंदात्स्वाभिप्राया; अंति: दिन्यस्तिकाय धर्मः. ४९७१६. उपदेश स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, ११४४५). औपदेशिक सज्झाय, पंन्या. ऋषभसागर, मा.गु., पद्य, आदि: करो रे कसीदा इण विधि; अंति: रिषभसागर रस लागिरे, गाथा-१०. ४९७१७. (+) मोहवल्ली भास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पठ. श्रावि. कपूराबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, १४४३५). मोहवल्ली भास, आ. पद्मचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मोह लागोरे चरम जिणे; अंति: पदमचंद० रहउ सुखिइ, गाथा-२३. ४९७१८. (4) पंचमि स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४४४). For Private and Personal Use Only Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पंचमीतिथि स्तवन, ग. दयाकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मात पसाउलि निज; अंति: दयाकुशल आणंद थयो, गाथा-२१. ४९७१९. साधु स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. स्थंभतीर्थ, दे., (२६४११.५, १३४३३). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन मुनिवर जे संजम; अंति: गणी भाषे देवचंदरे, गाथा-११. ४९७२०. (+) अवंतिसुकमाल सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १२४३६). अवंतिसुकुमाल सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनसासन नायको जी; अंति: मेरु० नमता सुख थाय, गाथा-१८. ४९७२१. गौतम कुलक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६.५४११.५, ११४३४). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: निसेवितु सुहं लहंति, गाथा-२०. ४९७२२. खिमाछत्तीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, अन्य. ग. माणकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, ११४३२). क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदर जीव खिमागुण आदर; अंति: चतुरविध संघ जगीस जी, गाथा-३६. ४९७२३. स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, दे., (२६४११.५, १४४३५-४६). १. पे. नाम. धरणोरूगेंद्र महाविद्या स्तोत्र, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. धरणोरगेंद्र महाविद्या स्तोत्र, सं., प+ग., आदि: अथातो जांगुलीनाम महा; अंति: तस्यैतत्सफलं भवेत्, श्लोक-३९. २. पे. नाम. महामंत्र स्मरण पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन अष्टक, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो भगवते; अंति: शुभगतामपि वांछितानि, श्लोक-९. ३. पे. नाम. आत्मरक्षा स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: पंचपरमेष्ठि; अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक-८. ४. पे. नाम. ग्रहशांति स्तोत्र, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक ४ अपूर्ण तक है.) ४९७२४. ज्ञानप्रबोध सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०५, माघ कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. पेथापूर, प्रले. श्राव. वर्द्धमान पानाचंद गांधी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीसुविधिजिन प्रसादे., प्र.ले.श्लो. (५१०) यादृसं पुस्तकं दृष्टवा, दे., (२६.५४११.५, ५४३६). ज्ञानप्रबोध श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदिः येषां न विद्या न तपो; अंति: वेत्ति च वीतरागः, श्लोक-२१. ज्ञानप्रबोध श्लोक संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जेहमाही विद्या नही; अंति: वीतराग० हून जाणु, (प्र.ले.श्लो. (९०३) यादृसं पूस्तकं दृष्टवा) ४९७२५. (+) आठ दृष्टिनी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(२)=३, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, १३४३६-४२). ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: शिवसुख कारण उपदेशी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल १ गाथा १२ अपूर्ण से ढाल ४ गाथा ११ अपूर्ण तक व ढाल ८ गाथा ६ अपूर्ण से नहीं है.) ४९७२६. लोकांतिकदेव विवरण, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५-१४(१ से १४)=१, जैदे., (२५.५४११, २१४६१). लोकांतिकदेव विवरण, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., लोकांतिकदेव विवरण अपूर्ण तक लिखा है)। ४९७२७. (+#) नंदनभव विराधना, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४११, १३४३९). नंदनभव विराधना, मु. धर्महंसगणिशिष्य, प्रा., पद्य, आदि: वीरजिणंदं वंदिअजईण; अंति: एगच्छत्तं सुरिंदत्तं, गाथा-४५. ४९७२८. (+) कालसत्तरी, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, २१४७३). कालसप्ततिका, आ. धर्मघोषसूरि,प्रा., पद्य, आदि: देविंदणयं विजाणंद; अंति: कालसरूवं किमवि भणियं, गाथा-७४, (वि. हासिया में यंत्र दिया है.) For Private and Personal Use Only Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ४९७२९. अजीतशांति स्तवन, संपूर्ण, वि. १८३२, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. वीरामगाम, पठ. श्रावि. कशलि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२, १२४२८). अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, ___गाथा-४०. ४९७३०. अजितशांति स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. पं. केसरविजय; पठ. श्राव. हरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, १२४३९). अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-४०. ४९७३१. (#) महावीर नीसाल गरगुं, संपूर्ण, वि. १८४९, भाद्रपद शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १३४४०). महावीरजिन स्तवन-निसालगरj, मा.गु., पद्य, आदि: त्रीभूवनजीन आणंदोए; अंति: सेवक तूझचरणे नमे ए, गाथा-२०. ४९७३२. जिनेश्वर रूपवर्णन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. पंडित. मनसाराम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२, १४४४६). पार्श्वजिन स्तवन-रूपवर्णन, मु. ब्रह्म, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सुरासुर वैक्रिय; अंति: ब्रह्मसाधै हो जिणवर, गाथा-१२. ४९७३३. गोडी पार्श्व जिन छंद, संपूर्ण, वि. १९१७, फाल्गुन शुक्ल, ५, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. हरजीनगर, प्रले.पं.खंतिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. छबारामजी की प्रत से प्रतिलिपि की गई है., दे., (२६४११.५, १०४३६). पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: सुवचन सुपौ सारदा मह; अंति: स्तव्यो छंद देशांतरी, गाथा-४५. ४९७३४. श्रावकरी करणी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४१२, १७४५८). श्रावककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक तुं उठे परभात; अंति: करनी छे दुखहरनी एह, गाथा-२२. ४९७३५. जिनकल्पी पट्टावली, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४१२, १६x४२). पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीजिनशाशन संप्रति; अंति: (-), (पू.वि. कालिकाचार्य तक का पाठ हैं.) ४९७३६. (#) थुलभद्र नवरस सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्रले. मु. विवेकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १३४४४). स्थूलिभद्रमुनि नवरसो, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपति दायक सदा; अंति: मनोरथ वेगे फल्या, ढाल-९. ४९७३७. अनूभूतिसिद्धसारस्वती महामंत्रगुप्त स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११.५, १४४३५). सिद्धसारस्वत स्तव, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., पद्य, वि. ९वी, आदि: करमरालविहंगमवाहना; अंति: रंजयति स्फुटम्, श्लोक-१३. ४९७३९. (#) भक्षअभक्षकालातीत सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. वीरमगाम, प्रले. पं. मेघजी ऋषि; पठ. श्रावि. मूलीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १२४३५). सचित्तअचित्त सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रवचन अमरी समरी; अंति: नयविमल कहे सज्झाय, गाथा-२७. ४९७४१. खांमणा सझाय, संपूर्ण, वि. १९१५, मार्गशीर्ष कृष्ण, १३, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. उरला, प्रले. श्राव. नगीनचंद शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीकल्याण पार्श्वनाथाय नमः, दे., (२६.५४१२.५, १३४३७). खामणा सज्झाय, ग. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पंच परमेष्ठि ध्याईए; अंति: सरदजो भवि उच्छाहि, गाथा-११. ४९७४२. समकितना सडसठबोलनी स्तुति व अध्यात्म सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, दे., (२५.५४११.५, १७४४४). For Private and Personal Use Only Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. समकित सडिसठि बोलनी स्तुति, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. सम्यक्त्व ६७ बोल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सुकृतवल्लि कादंबिनी; अंति: वाचक जस इम बोले रे, ढाल-१२, गाथा-६८. २.पे. नाम. अध्यात्म स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. जैनलक्षण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: जैन कहो केम होवे; अंति: जेनदया जस उचि, गाथा-१०. ४९७४३. (#) सीमंधरसामि विनती, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. खंभाइत बिंदर, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११.५, १२४३४). सीमंधरजिन वीनती, मु. शुभविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुणि सुणि साहिबारे; अंति: बोले अमृत सरखी वाणि, गाथा-७. ४९७४४. (#) भरहेसर सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२, ९४३१). भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय; अंति: जस पठहो तिहुयणे सयले, गाथा-१४. ४९७४५. (+) चतुर्थव्रतोच्चारण विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५.५४११.५, ११४३१). ब्रह्मचर्यव्रतप्रत्याख्यान आलापक, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावही; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. ४९७४६. (#) व्याख्यान पीठीका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. पं. उत्तम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १४४३६). व्याख्यान पीठिका, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीभगवान वीतरागदेव; अंति: चिदानंद पामस्यै पद. ४९७४८. पुद्गलगीता, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., (२६४१२.५, १५४४२-५३). पुद्गलगीता, मु. चिदानंद, मा.गु., पद्य, आदि: संतो देखीये बे परगट; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा १०३ तक लिखा है.) ४९७४९. (+) वासुपूज्य स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. ग. गुलाबविजय (गुरु ग. निधानविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत., जैदे., (२६४१२.५, १५४३७). वासुपूज्यजिन स्तवन, ग. गुलाबविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मातने सीर नमी; अंति: गुलाबने अद्भुत धाम, गाथा-१५. ४९७५०. (#) अनागतचोवीसीमध्ये पद्मनाभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. जीतकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४११.५, १२४३१). पद्मनाभजिन स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८४५, आदि: श्रीपद्मनाभ जिनराया; अंति: पद्मवि० अक्षयपद लेवा, गाथा-८. ४९७५१. पोसानी विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. राजनगर, दे., (२६४११, १०x४३). पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: परभाते पडिकमणुं करवु; अंति: ते वखते पारवौ सही. ४९७५२. महावीर स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, पठ. श्राव. लिंगी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, ११४३९). महावीरजिन सज्झाय, मु. सकल, मा.गु., पद्य, आदि: एक वरसीजी ऋषभ करी; अंति: जिनवर सकलमुनि आधार ए, गाथा-५. ४९७५४. गजसुकमाल सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२६.५४११.५, १२४४७). गजसुकुमालमुनि सज्झाय, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: द्वारिकानगरी ऋद्धि; अंति: सुगुरु सहाय रे, ढाल-३, गाथा-३८. ४९७५५. युगादिदेव ऋषभदेव विनती, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२६४११.५, ११४३५). आदिजिनविनतीस्तवन-शत्रुजयतीर्थ, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: पामी सुगुरु पसाय; अंति: विनय करीने विनवे ए, गाथा-५७. For Private and Personal Use Only Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लोक-२३. हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ४९७५६. (+) साधुप्रतिक्रमण सूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-पंचपाठ., जैदे., (२५.५४११.५, ११४४१). साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नमोअरिहंताणं० करेमि; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, (वि. १८०८, श्रावण शुक्ल, १३, प्रले. सुगुण, प्र.ले.पु. सामान्य) साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० हिवे; अंति: जिनानैं तीर्थंकरानै, (वि. १८०८, कार्तिक कृष्ण, १, ले.स्थल. सावर) ४९७५७. तपगणणु विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२५.५४११, ११४६-२१). तपगणणु संग्रह, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: इंद्रभूतीगणधराय नमः; अंति: २० नोकारवाली. ४९७५८. पच्चक्खाण सूत्र संग्रह, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२५.५४११.५, १०४३४). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: (-), (पू.वि. पचक्खाण ६ तिविहार उपवास तक है.) ४९७५९. (#) चउद स्वपन्न, संपूर्ण, वि. १८६४, माघ शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. वाघजी ऋषि (गुरु मु. जयानंद ऋषि); गुपि.मु. जयानंद ऋषि (गुरु मु. हीराजी ऋषि); पठ. मु. प्रेमजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १४४३२). १४ स्वप्न सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: देव तिर्थंकर केरडी; अंति: लावण्यसमये भणे ए, ढाल-४. ४९७६०. (+) सम्मेतगिरे स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, १३४४१). सम्मेतशिखरतीर्थ स्तोत्र, उपा. हंसराज गणि, सं., पद्य, वि. १७६२, आदि: संमेतशैलंसुकृताब्धि; अंति: सम्मेताद्रैः परं नहि, श्लोक-२३. ४९७६१. सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४११.५, ९४२७). सिद्धचक्र स्तवन, मु. राम-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: हो भवी प्राणी रे सेव; अंति: ओली उजवीरे जगीस, गाथा-७. ४९७६२. माणिभद्र छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले.पं. दयाविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३३). माणिभद्रवीर छंद, आ. शांतिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामनि पाय; अंति: आपो मुझ सुख संपदा, गाथा-४०. ४९७६३. एकसोसित्तर जिन नाम, संपूर्ण, वि. १७१२, कार्तिक शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. १, पठ. ग. जीतविजय (गुरु ग. दर्शनविजय); प्रले. ग. दर्शनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, ३५४२१). १७० जिन नाम, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमेघवाहन१ श्रीजीव; अंति: ३२श्रीअमोकांक्षः. ४९७६४. संबोहसित्तरी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२६४११.५, १३४३९). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंति: मुख सो पावए निवाणं, गाथा-८६. ४९७६५. सज्झाय व वायु विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१२, १४४३४-४३). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण.. मु. सौभाग्यलक्ष्मी, मा.गु., पद्य, आदि: त्यजि परपरिणित रमणता; अंति: भाग्यलक्ष्मी सुखदाय, गाथा-८. २. पे. नाम. वायु विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्योतिष श्लोक, मागु.,सं., पद्य, आदि: वैकल्या पंचपंचाशा; अंति: चोमासाना च्यार, ग्रं. १०. ४९७६६. स्तवन व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४१०.५, ७४२६-३०). १.पे. नाम. शांतिनाथ थोय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन-पाटण, मु. रतनरूप, मा.गु., पद्य, आदि: नमो अचिरादेवीनो नंद; अंति: देख जग सवी मोहे रे, गाथा-५. २. पे. नाम. सांतिनाथ थोय, पृ. १आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तुति-फलवधि, मु. देवीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: फलवीधी मंगल संती धणी; अंति: देववीजेनी आस फली, गाथा-४. ४९७६७. (+) गुणचास भांगा विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. सिंघाणा, प्रले. सा. रामकोर (गुरु सा. सुंदरजी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६४१२, १९४३६). For Private and Personal Use Only Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रत्याख्यान ४९ भांगा, मा.गु., गद्य, आदि: करु ना कराउ ना अणमोद; अंति: आठमी एह खूली रही. ४९७६८. वीरजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, ११४३३). पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. ४९७६९. चउवीस तीर्थंकर स्तवन, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. न्यानशेखर ऋषि; पठ. श्रावि. रत्नाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १५४४९). २४ जिन स्तवन, मु. भीम ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: आदिइ आदिजिणेसरदेव; अंति: भीम० गुणता परमाणंद, गाथा-२५. ४९७७०. सिद्धचक्री स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. वट्टपद्र, पठ. श्रावि.गोरी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४११, ८x२६). सिद्धचक्र चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा.,मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: उप्पन्नसन्नाणमहोमयाण; अंति: सिद्धचक्कं नमामि, गाथा-६. ४९७७१. आत्मरक्षाकरं पंचपरमेष्टि स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९११, श्रावण कृष्ण, ६, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. मु. फोजराज, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४११.५, ८४३३). वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: परमेष्टि नमस्कार; अंति: राधिचापि कदाचन, श्लोक-८. ४९७७२. चतुर्विंशति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७८७, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११, ९४५६). २४ जिन स्तोत्र, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: नतसुरेंद्रजिनेंद्र; अंति: जिनप्रभसूरि० मंगलं, श्लोक-९. ४९७७३. विद्वजनमदभंजन काव्य, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, ११४३४-३८). विद्वज्जनमदभंजन काव्य, सं., पद्य, आदि: जजोजोजाजिजिज्जाजीतंत; अंति: कृष्णपक्षेसिताष्टमी, श्लोक-२५. ४९७७४. महालक्ष्मी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२७४१२, ९४३१). महालक्ष्मी स्तव, सं., पद्य, आदि: आदौ प्रणवस्ततःश्रीं; अंति: तस्य प्रदीयते, श्लोक-११. ४९७७५. भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, दे., (२६४१२,१६x४१). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः, श्लोक-४४. ४९७७७. ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२६४१२, १३४३४). ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामीगणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्य; अंति: स्तोत्रमुत्तमम्, श्लोक-१०३. ४९७७८. संबोधसत्तरि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२६.५४११,११४४०). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ५८ तक लिखा है.) । ४९७७९. आलोयणा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२५.५४११, १३४४२). आलोयणा विधि, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीअरिहंत वीतरागना; अंति: वोसरामि ते पावगं. ४९७८०. नेमराजुल सलोक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्रले.सा. केसर (गुरु सा. वदुजी); गुपि.सा. वदुजी (गुरु सा. अजवाजी); सा. अजवाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१०.५, १६४३८). नेमिजिन सलोको, क. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: बीजो नइ कोई राजल तुल, गाथा-४३, (पू.वि. गाथा २४ अपूर्ण से है.) ४९७८१. अतिचार आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२६.५४११,१५४४१-४५). १.पे. नाम. साधु अतीचार, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, वि. १८४५, ले.स्थल. पोहकर्णनगर, प्रले. पं. चतुरविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य. साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि०; अंति: अनेरोजे कोई अतिचार. २.पे. नाम. साधुअतिचारचिंतवन गाथा, पृ. २आ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सयणासणन्नपाणे; अंति: साहुदेहस्स धारणा, गाथा-२. ३. पे. नाम. पक्खीचौमासीसंवच्छरी तप विचार, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: चउत्थेणं एक उपवास; अंति: सहस्स सझाय यथाशक्ते. For Private and Personal Use Only Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ४९७८२. महावीरजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९४०, माघ शुक्ल, ८, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. कानजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१२,१३४२८-३०). औपदेशिक व्याख्यान, मा.गु., गद्य, आदि: इहा कोण जे श्रीश्रमण; अंति: समुद्र तरी पार पामीए. ४९७८३. लावणी व चोविसी संग्रह, संपूर्ण, वि. १९१२, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, पठ. मु. सामजी (गुरु मु. रामजी ऋषि); प्रले. मु. रामजी ऋषि (गुरु मु. धनराज ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४११.५, ११४५४). १.पे. नाम. पार्श्वनाथ लावणी, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन लावणी-गोडीजी, पंन्या. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जगत भविक जिन पास; अंति: पामे चीत परमानंदा, गाथा-१६. २. पे. नाम. चोविसी, पृ. २आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, मु. जिनदास, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभ अजित जीननाम संभव; अंति: जीनदास० प्रभु चरणसु, गाथा-९. ४९७८४. करमछत्तीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२६४११, १४४३३). कर्मछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६८, आदि: करमथी को छूटे नही; अंति: धर्म तणो परमाणजी, गाथा-३५. ४९७८६. आराधना, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. भाव, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १६७५०). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवे राणी पद्मावती; अंति: पापथी छुटे तत्काल, ढाल-३, गाथा-३४. ४९७८७. ललित छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२६.५४१०.५, १०४३५). औपदेशिक सज्झाय, मु. खोडीदास, मा.गु., पद्य, वि. १८२०, आदि: जैनदेव वंदी करी करूं; अंति: खोडीदास० जोड ए ___ कही, गाथा-२२. ४९७८८. स्वनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, दे., (२६.५४१२, १४-१७X४०-४२). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. श्रावककरणी सज्झाय, मु. नित, मा.गु., पद्य, आदि: सावक धर्म करो सुखदाअ; अंति: नित० व्रतधारि हो जी, गाथा-११. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. गमानसंग ऋषि, रा., पद्य, आदि: सर्णो जे मोटोश्रीजुग; अंति: होज्यो मुक्तिना वास, गाथा-११. ३. पे. नाम. सुधर्मास्वामी गीत, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३९, आदि: भर्तक्षेत्रमांहि बिराज; अंति: रायचंद० उल्हासो जी, गाथा-१३. ४. पे. नाम. साधुगुण वर्णन सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. साधुगुण सज्झाय, मु. आसकरण, पुहिं., पद्य, वि. १८३८, आदि: साधुजीने वंदना नीत; अंति: उत्तम साधूजी रो दास, गाथा-१०. ४९७८९. (+) चैत्यवंदन, सज्झाय, स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. ७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, २१४४६-४८). १. पे. नाम. पंचमी चैत्यवंदन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवंदन, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: परे रंगविजय लहोसार, गाथा-९, (पू.वि. गाथा ६ अपूर्ण से है) २. पे. नाम. चैत्यवंदन आठमरी, पृ. २अ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि नमस्कार, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आठम तप आराधीए भाव; अंति: शुभ फल पामे तेह, गाथा-१२. ३. पे. नाम. पंचतीर्थ स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पंचतीर्थ चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: नमो नमो ऋषभजिनेसरु; अंति: सिद्धारथनृप नोटो जी, गाथा-५. ४. पे. नाम. ओसवाल उत्पत्ति विवरण, पृ. २आ, संपूर्ण. ओसवाल पोरवाल उत्पत्ति कवित, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: वर्द्धमानजिन पछी वरस; अंति: एदोय पुत्र छै. ५. पे. नाम. सवैया-कवित संग्रह, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण.. औपदेशिक सवैया संग्रह , भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहिं.,मा.गु., पद्य, आदि: (१)चंदनं चतुरद्वार, (२)कोली कहा जाने कंचनकु; अति: स परदाररक्त. ६.पे. नाम. चेतनजीव सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, क. मानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: मानवनो भव पामीयो; अंति: मानसागर० निरवाण, गाथा-११. ७. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण... __आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत नमुंवलि सिध; अंति: नयविमलेसर वर आपो, गाथा-४. ४९७९०. (#) पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १८४५३). पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानस्वामी१; अंति: प्रथम वेषधारी हुयो, (वि. पाट ५७ तक है.) ४९७९१. वसुधारा महाविद्या, संपूर्ण, वि. १८२४, कार्तिक शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. खारीया, पठ. पं. क्षमाधीर मुनि (गुरु पं. गुप्तिधर्म, बृहत्खरतरगच्छ); गुपि.पं. गुप्तिधर्म (परंपरा आ. जिनलाभसूरि, बृहत्खरतरगच्छ); राज्ये आ. जिनलाभसूरि (बृहत्खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२, १८४५१-५७). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैनस्य; अंति: च भोगं करोति. ४९७९२. सरस्वती छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. श्राव. जेचंद सेठ, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२, ११४३४). शारदामाता छंद, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, वि. १६७८, आदि: सकलसिद्धिदातारं; अंति: होई सयासंघ कल्याणं, गाथा-४५. ४९७९३. नागिला स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १८०८, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. श्रावि. मानाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, १३४४०). भवदेवनागिला सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जंबू भरत भू भामिनी; अंति: नयविमल० इम वाणी जी, गाथा-९. ४९७९४. (+) संथारा पोरसी विधि सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६४१०, ७४४३). संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसिही निसिही निसीहि; अंति: इय सम्मतं मए गहियं, गाथा-१४. संथारापोरसीसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार हुउ क्षमा; अंति: सम्यक्त्वमइ ग्रहिउ. ४९७९५. संथारा विधि सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. देवजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, ५४३९). संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसिही निसिही निसीहि; अंति: इय सम्मतं मए गहियं, गाथा-१४. संथारापोरसीसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार हुउ क्षमा; अंति: सम्यक्त्वमइ ग्रहिउ. ४९७९६. तीर्थंकर स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२६४१२, १०४२८). २४ जिन स्तवन, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीआदिनाथं करिजे; अंति: भक्ति द्यो कंठ मोरे, गाथा-३१. ४९७९७. नेमिजिन भमर गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४१२, १६x४७). नेमजिन भ्रमर गीत, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: भारती भगवती चित्तआणी; अंति: नामे उदय लहे जयकार, गाथा-२९. ४९७९९. पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. हरदेवजी छगनजी त्रवाडी; पठ. मु. जसराज, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, १२४३९). पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, मु. लब्धिरूचि, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७१२, आदि: जय जय जगनायक श्रीपास; अंति: सुख थाय सदा, गाथा-३१. ४९८०१. सीमंधरजिन विज्ञप्ति स्तवन सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२५.५४११.५, २-३४३४). For Private and Personal Use Only Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ www.kobatirth.org सीमंधरजिन विज्ञप्ति स्तवन- ३५० गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, बि. १८वी, आदि: श्रीसीमंधर साहिब, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ४ अपूर्ण तक लिखा है.) सीमंधरजिन विज्ञप्ति स्तवन- ३५० गाथा - बालावबोध, क. पद्मविजय, मा.गु., गद्य, वि. १८३०, आदि: पार्श्वनाथपदद्वंद्र, अंतिः (-) अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ४९८०२. पद्मावती आराधना व आयु विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, दे., ( २६११.५, १३X३०-३५). १. पे. नाम पद्मावती आराधना, पृ. १अ ३आ, संपूर्ण २. पे नाम. आयु विचार, पृ. ३आ, संपूर्ण. आयुष्य विचार, मा.गु., गद्य, आदि: १२० मनुष्यरो वर्ष अंतिः ३ मास जू.रो. ४९८०३. (+) स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे ३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष , (२५X११.५, १८४३८). १. पे. नाम. दंडक सज्झाय, प्र. १अ १आ, संपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पद्मावती डाल - जीवराशीक्षमापना उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: हिवे राणी पद्मावति, अंति: पापथी छूटे ते तत्काल, ढाल - ३, गाथा - ६९. पार्श्वजिन स्तवन- २४ दंडकविचारगर्भित, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं पासनाह प्रह परमार्थ लहै, गाथा - २४. २. पे. नाम. १६ सती स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ब्राह्मी चंदनबालिका; अंतिः कुर्वंतु वो मंगलम्, श्लोक - १. ३. पे. नाम, पडिकमण सज्झाय, प्र. १आ, संपूर्ण प्रतिक्रमण सज्झाय, मु. तेजसिंघ, मा.गु., पद्य, आदि: पंचप्रमाद तजी पडिकमण, अति भाखे ते भवसागर तिरसी, गाथा-८. ४९८०५. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे ३, जैदे (२४.५४९.५, १३४४१). १. पे. नाम. करकंडुमुनि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि : चंपानगरी अतभलि हु; अंति: समयसुंदर० उवारी लाल, गाथा-५. २. पे. नाम, नमिराजर्षि सज्झाय, प्र. १अ १आ, संपूर्ण. ४९८०६. (+) वीरस्वामी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित. दे. (२४.५x७, २३१३). १८१ अंति: पास० उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जी हो मिथुलानगरीनुं अंतिः समझसुंदर० भवपार, गाथा- ७. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. हुकम, पं., पद्य, आदि: (-); अंति: भरता हुकम कुरबाणा, दोहा-१० (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाधा ६ से लिखा है.) महावीरजिन स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: जायो जिनवर जग हितकार; अंति: कहे वीर वीभु हीतकारी, गाथा- ७. For Private and Personal Use Only ४९८०७. आदेश्वर विनती, संपूर्ण, वि. १८३६, कार्तिक कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. मु. खुस्यालचंद्र ऋषि, पठ. मु. ग्यानचंद ऋषि (गुरु मु. खुस्यालचंद्र ऋषि), प्र. ले. पु. सामान्य, जै, (२५.५X११, ११४३५-३९). आदिजिनविनती स्तवन- शत्रुंजयतीर्थ, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: जइ पडम जिणेसर अति अंति: लावण्यसमय० इम भणीया, गाथा- ४५. ४९८०८. (#) सज्झाय व वर्णमाला, संपूर्ण, वि. १९५६, भाद्रपद कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, अन्य. शामजीभाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६४११, १०X३६) १. पे. नाम. आठ मद सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. ८ मद सज्झाय, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मद आठ महामुनि वारीइं अंतिः अविचल पदवी नरनारी रे, " गाथा - ११. Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १८२ www.kobatirth.org २. पे. नाम. वर्णमाला, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदिः क ख ग घ ङ च छ ज झ; अंति: ए ऐ ओ औ अं अः. ४९८०९. (-) स्तुति व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. श्राव. गोडीदास जोइतादास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२५.५X११.५, १२X३३). १. पे. नाम. शाचतजिन स्तुति, पृ. १अ संपूर्ण. पंन्या पद्मविजय, मा.गु., पद्य वि. १९वी आदि ऋषभ चंद्रानन वंदन, अंतिः पद्मविजय नमो पाय जी, गाथा-४. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. ', पार्श्वस्तवन- गोडीजी, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: पासजी तोरा रे पलक न; अंति: उदयरतन० छे प्रेम, कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गाथा - ९. ४९८१०. गहुंली संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, पठ श्रावि हेमाबाई, प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे. (२६४११.५, १५X३६-३८). १. पे. नाम. गुरुगुण गुंहली, पृ. १अ, संपूर्ण. गुरुगुण गहुली, मु. आत्माराम, मा.गु., पद्य, आदि: सजि नव सत शणघार सखि, अंतिः रमा घणी हो लाल, गाथा - ५. २. पे. नाम. गौतमस्वामी गुहली, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गौतमस्वामी गहुली, मा.गु., पद्य, आदि वर अतिशय कंचनवाने, अंतिः उलसे निज आतमराम हो, गाथा-७. ४९८११. (+) सिद्धदंडिका स्तव व यंत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५x११, १२X४९). १. पे. नाम. सिद्धदंडिका स्तव, पृ. १अ. संपूर्ण. आ. देवेंद्रसूरि प्रा. पच आदिः जं उसहकेवलाओ अंत अंतिः दिआदितु सिद्धि सुहं, गाथा- १३. , 3 २. पे. नाम. सिद्धदंडिका यंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. יי सं. को, आदि: अनुलोमसिद्धिदंडिका १ अंतिः असंख्याता ज्ञेयाः, ४९८१२. (+) चतुर्विंशतिजिन स्तव, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - वचन विभक्ति संकेत- क्रियापद संकेत., जैदे., (२५.५X१०, १३X३८-४६). २४ जिन स्तवन, क. श्रीपाल, सं., पद्य, आदि भक्त्या सर्वजिन अंति: महतोच मयादरात् श्लोक-२८. ४९८१३. (+) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित., दे., ( २६ ११, १५X३२). १. पे. नाम. यशोधर स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण. यशोधरजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: वदन परिवारि हो यशोधर, अंति: देवचंद्र० समारी हो, गाथा- ४. २. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ १आ. संपूर्ण. मु. देवचंद्रजी, मा.गु., पद्य, आदि: सेवा सारयो जिनजी मन, अंति: देवचंद्र प्रभु साचो, गाथा- ६. ३. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: हुं तो प्रभु वारि छु; अंति: देवचद्र० चित्तनी, गाथा-६. ४९८१४. चतुर्विंशति नमस्कार व वीरजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८६३, चैत्र शुक्ल, २, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले. स्थल, पालडी, प्रले. पं. रत्नविजय पड मु. खीमराज (गुरु पं. रत्नविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२४.५x११, १३३५). १. पे. नाम चतुर्विंशति नमस्कार, पृ. १अ २अ संपूर्ण. सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान, अंति: वृषभं जिनोत्तमम् श्लोक-३०. (२६.५X११.५, १२X३५). १. पे. नाम. योगमार्गनी आठदृष्टि क्रियारुचि प्रकाशक सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. २. पे. नाम. वीरजिन स्तोत्र, पृ. २अ, संपूर्ण. आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: श्रीमते वीरनाथाय; अंति: प्रक्षालन जालोत्तमा, गाथा-४. ४९८१५. (१) सज्झाय व भांगा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १. कुल पे. २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., For Private and Personal Use Only Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ १८३ ८ दृष्टि सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: चिदानंद परमात्मरूप; अंति: विमलसूरि कहइ भवि हेत, गाथा-१४. २. पे. नाम. सम्यक्त्वनी अष्टभंगी, पृ. १आ, संपूर्ण. सम्यक्त्व आठ वचन भांगा, मा.गु., गद्य, आदि: न जाणइ न आदरइन पालइ; अति: ३ सुश्राविका ४. ४९८१६. (+) सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १२४३८). १.पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. विद्याचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामिणी पाए; अंति: विद्याचंद० सेवा कोड, गाथा-१३. २. पे. नाम. गणधर सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. ११ गणधर सज्झाय, मु. विद्याचंद, मा.गु., पद्य, आदि: पहुलुं इंद्रभूति; अंति: विद्याचंद भणइ ए सार, गाथा-६. ४९८१७. रत्नवती चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४११, १५४४७). रत्नवतीसती चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सिद्धि नव निधि; अंति: बंदइ सुरनर भूप, गाथा-२४. ४९८१८. सझाय, स्तवन व औषध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२६४११.५, १९४४९). १.पे. नाम. पांच पांडव सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. ५पांडव सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: हसतिपुरनगर अती भलो; अंति: तब हुआ जय जयकार रे, गाथा-१५. २.पे. नाम. अजितनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. अजितजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: अजित जीणेसर विनवू; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा २ अपूर्ण तक लिखा है.) ३.पे. नाम. पारद विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. औषधवैद्यक संग्रह ,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४९८१९. सीमंधरस्वामी लेख, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२५४११, १५४४६). सीमंधरजिन विज्ञप्तिस्तवन, क. कमलविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: स्वस्ति श्रीपुष्कला; अंति: विहरंतो देउ मे भई, ढाल-७, गाथा-१०५. ४९८२०. स्तवन व गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१०.५, १६४५०). १.पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, आ. सुबुद्धिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुण साहिब हो प्रभुजी; अंति: साहब सुखिया करो जी, गाथा-११. २. पे. नाम. औपदेशिक गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. आनंदवर्द्धन, पुहि., पद्य, आदि: देह देह नणद हठीली, अंति: आणंदवर्द्धन० याणी री, गाथा-२३. ४९८२१. रक्षाबंधन कथा, धरमबावनी, पद व दोहा, संपूर्ण, वि. १९५१, वैशाख शुक्ल, ३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ४, दे., (२६.५४१२, १७४४२). १.पे. नाम. रक्षाबंधन कथा, पृ. १अ, संपूर्ण. रक्षाबंधनपर्व कथा, पुहिं., गद्य, आदि: हथनापुर महापद्म चक्र; अंति: गले पीड गइ साता. २.पे. नाम. धरमबावनी, पृ. १आ-४आ, संपूर्ण. अक्षरबावनी, मु. धर्मवर्धन, पुहि., पद्य, वि. १७२५, आदि: ॐकार उदार अगम अपार; अंति: नाम धर्मबावनी, गाथा-५७. ३. पे. नाम. दरदवंत इलाज पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, माधोदास, पुहिं., पद्य, आदि: दरदवंत का इलाज कीजै; अंति: माधोदास० करै काल का, पद-१. ४. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. ४आ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहिं., पद्य, आदि: चंदन की कुटकी भली; अंति: भलौ मूरख भले न साठ, दोहा-१. For Private and Personal Use Only Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४९८२२. श्लोक सह बालावबोध व वीस वैरमान स्तवन, संपूर्ण, वि. १८७८, मार्गशीर्ष कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. पं. निधानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैये. (२६.५४११.५, १७४३६). " १. पे. नाम. वीतराग वाणी सह वालावबोध, पृ. ९अ, संपूर्ण वीतराग वाणी, प्रा., पद्य, आदि: जयसिरिवंछियसुहए; अंति: सम्मं धम्मंमि उज्जमह, गाथा- १. वीतराग वाणी- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: भगवंत श्रीवीतरागदेव; अंति: सुख संपदा पामस्ये. २. पे. नाम. वीस वैरमान स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजंबूद्रीय विदेह अंतिः ए वीसे वैरमान छै सही, गाथा- ९. ४९८२३. चैत्यवंदन व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. कुल पे. २, ले. स्थल. पालणपूर, लिख. मु. रत्नविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जै, (२५.५X११, ११४३८). १. पे. नाम. आठमनो चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, पंन्या पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी आदि महा सुद आठमने दिने अंतिः सेव्याथी सीरनामी, गाथा - ७. २. पे. नाम. आठमद सज्झाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. ८ मद सज्झाय, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मद आठ महामुनी वारिडं अंतिः मानविज० नरनारीरे गाथा- ११. ४९८२५. (*) स्तवन व सझाय, अपूर्ण, वि. १८६७, मध्यम, पृ. २- १ ( २ ) = १, कुल पे. २. प्र. वि. अशुद्ध पाठ अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे., (२६X११.५, १४४४२). १. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. आदिजिन स्तवन, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., पद्म, वि. १८वी, आदि (-); अंति: गनचदजी० कोय न तोल, ढाल २, गाथा - २६, (पू. वि. गाथा २१ अपूर्ण से है . ) २. पे. नाम. सालीभद्र सज्झाय, प्र. २अ-२आ, संपूर्ण " शालिभद्रमुनि सज्झाय, रा., पद्य, आदि मे तो पूरब सुक्रत न; अंतिः करणी सारु जासो रे, गाथा- १७. ४९८२६. सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., ( २६११.५, १२X४३). १. पे. नाम. धूलिभद्र सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण, स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चंपा मोर्यो हे आंगणे; अंति: सीलथी लहीइं सुख अपार, गाथा - ६. २. पे नाम अनाधीमुनि सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु, पद्य, आदिः श्रेणिकराव रेवाडी अंतिः वंदे रे वे करजोडि, गाथा- ९. ४९८२७. स्तवन संग्रह व दोहा, संपूर्ण, वि. १६१४, वैशाख शुक्ल, ७, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, ले. स्थल. मंगलपुर, प्रले. ग. लहुआ ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६X११, १३३८). १. पे. नाम. महावीर स्तव, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: जयसिरिजिणवर तिहुअणजण, अंतिः निय सुअदाणउ अइरा, गाथा - ५. २. पे. नाम चतुर्विंशतिजिन स्तवन, पृ. ९अ- ९आ, संपूर्ण २४ जिन स्तवन-अनागत, मु. देवकलोल, मा.गु., पद्य, आदि: परषद बइठी बार जिवार, अंति: भणइ श्रीदेवकल्लोल, गाथा-१५. ३. पे. नाम. प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२. ४९८२८. वीरजिन स्तवन व सूक्तमुक्तावली, संपूर्ण, वि. १८९७, माघ शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २ ले, स्थल, भातनगर, प्रले. मु. लाभरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५X११, २६X१६). १. पे. नाम वीरजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ www.kobatirth.org १८५ महावीरजिन स्तोत्र- प्रभाती, मु. विवेक, मा.गु., पद्य, आदिः सेवो वीरने चित्तथी अंतिः विवेके० आज दरीसन तेरो, गाथा - १५. २. पे. नाम. सूक्त मुक्तावली, पृ. १आ, संपूर्ण. सिंदूरकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, बि. १३वी आदि (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. श्लोक ८७ अपूर्ण से ८९ अपूर्ण तक लिखा है.) יי ४९८२९. शालीभद्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५x११, १२x२९-३२). राजिमती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: इतरा दिन हूं जांणती; अंति: रेहा जिमपाछिद्यूसीख, गाथा-२०. ४९८३० गतिमाश्रित्य १७ भेद जीवानां अल्पबहुत्व बृहत्स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २, प्रले. पं. रामचंद्र, पठ. श्राव. दीपा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२३४१०.५, १३४३३). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७ भेद जीव अल्पबहुत्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत केवलन्यान, अंतिः समवसुंदर ० परतिखपणई, ढाल-३, गाथा- १८. ४९८३१. सज्झाय व दोहा, संपूर्ण, वि. १९३२, ज्येष्ठ कृष्ण, २, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. ईश्वरदास, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५X११, १३X३७). १. पे. नाम. देवानंदा सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. सकलचंद्र गणि, पुहिं., पद्य, आदि: जिनवर रूप देखी मन; अंतिः सकलचंद० मनमैं आणी, गाथा- १२. २. पे. नाम. गुरुगुण दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. नथमल, मा.गु., पद्य, आदि: जसधारी जीवराज लाल, अंति: नथमल० गुनरतन जहाज, गाथा - १. ४९८३२. स्तवनचोवीशी, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दे., (२५.५X११.५, १०X३६). स्तवनचीवीसी, क. पद्मविजय, मा.गु., पद्म, आदि ऋषभ जिनेश्वर ऋषभ, अंतिः (-), (पू.वि. अजितजिन स्तवन तक है.) ४९८३३. कनकध्वज राजानो रास, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., ( २४.५X१०.५, १३x४१). कनकध्वज राजा रास, मु. नान्हू, मा.गु., पद्य, आदि सब मली सही असमाणडी, अंतिः कहे नानू० भाजी खोडि गाथा-४४. ४९८३४. (+) उपाधिमती गुरुलोपी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५X१०, १२x४२). उपाधिमति गुरुलोपी सज्झाय, मु. कल्याणविजय - शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमिय वीर जिणेसर; अंति: कल्याणविजय सीस० वरिस, गाथा १५. ४९८३५. सज्झाय व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ५, जैदे., ( २४४१०.५, १४-१६X३७-४४). १. पे. नाम. मेतारजऋषी सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण. मेतार्यमुनि सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु, पद्य, आदि: सुमत गुपतनां आगरुजी, अंतिः राजविजय० रे सज्झाय, गाथा - १३. २. पे. नाम महावीरजी स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीर जिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु, पद्य, आदि: मेह तो निजरे रहेस्या, अंतिः उदयरत्न० श्रीमहावीर गाथा ८. ३. पे. नाम. काकंदी सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. धन्नाकाकंदी सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवाणी रे धन्ना, अंति: समयसुंदरमुनि नीत नमै, गाथा-११, (वि. प्रतिलेखक ने दो गाथा को एक गिना है. ) ४. पे. नाम. आतम सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद- पुण्योपरि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पारकी होड मत कर रे, अंतिः समयसुंदर ० कोटान कोटी, गाथा- ३. ५. पे. नाम. सारंग कवित, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक कवित्त, क. रूप, पुहिं., पद्य, आदि: वीण संघ अहिवार हंस, अंतिः कविरूप० सारंग अखीये, गाथा- १. For Private and Personal Use Only Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४९८३६. (+) दशवकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४११, १३४४६-५२). दशवकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: जासि त्तिबेमि, अध्ययन-१०. ४९८३७. (+) स्तोत्र संग्रह व मंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १२४३९). १. पे. नाम. तीर्थवंदना चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके; अंति: सततं चित्तमानंदकारि, श्लोक-८. २. पे. नाम. शनि स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. शनिश्चर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: यः पुरा राज्यभ्रष्टा; अंति: वृद्धिं जयं कुरु, श्लोक-१०. ३. पे. नाम. शनि मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ४९८३८. स्तोत्र व मंत्र, संपूर्ण, वि. १८३७, चैत्र शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. दूधू, प्रले. आ. राजकीर्ति; पठ. मु. पूर्णचंद (गुरु आ. राजकीर्ति), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, ८४३४). १.पे. नाम. सिद्धिप्रिय स्तोत्र, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. आ. देवनंदी, सं., पद्य, ई. ६वी, आदि: सिद्धिप्रियैः प्रति; अंति: देवनंदि० सतामीशिताः, श्लोक-२६. २. पे. नाम. मंत्र संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह*, उ.,पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: ॐ भूॐ भुवः ॐ स्वः; अंति: विकाशय भूः स्वाहा. ४९८३९. गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१०.५,१५४३५). १. पे. नाम. तमाकू गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: समकित लखिमी पामी; अंति: श्रीसार० सब सुख थाई, गाथा-१५. २. पे. नाम. अरहन मुनिवर गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. अरणिकमुनि गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: विहरण वेला पांगुर्यउ; अंति: त्रिकरण सुद्ध प्रणाम, गाथा-८. ४९८४०. (#) छंद गीत व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, प्र.वि. मूल पाठ का अंशखंडित है, जैदे., (२५४११, १६४५४). १. पे. नाम. नवकार छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, ले.स्थल. सेत्रावा, प्रले. पंडित. रामचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य. नमस्कार महामंत्र स्तोत्र, पा. धर्मसिंह, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: कामितसंपय करणं तम; अंति: कवि ध्रमसी उवझाय कहि, गाथा-११. २. पे. नाम. गोडी पार्श्वनाथ छंद, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-गोडीजी, मु. धरमसी, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन दे सरसती एह; अंति: धरमसीह ध्याने धरण, गाथा-२९. ३. पे. नाम. औपदेशिक गीत, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, पा. धर्मसिंह, पुहिं., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: धरमसिंह० मन मै धरो, गाथा-११, (वि. किनारी खंडित होने के कारण आदिवाक्य अवाच्य है.) ४. पे. नाम. थूलभद्र सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतडली न कीजै हे; अंति: समयसुंदर कहै एम, गाथा-४. ४९८४१. (+) ऋषभजिन स्तवन सह बालावबोध व बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १७१८, श्रावण शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, ले.स्थल. कुचोरा, प्रले. पं. सिद्धविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११,५४४८). १.पे. नाम. सूक्ष्मविचारगर्भित श्रीऋषभ स्तवन सह बालावबोध, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ १८७ आदिजिन स्तवन-देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित, ग. विजयतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलउ पणमिअ देव; अंति: विजयतिलय निरंजणो, गाथा-२१. आदिजिन स्तवन-देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जिवारइ मोटउ कार्य; अंति: आपणउ नाम जणायउ. २. पे. नाम. ५६३ बोल संग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण. ५६३ जीवविचार बोलसंग्रह *, मा.गु., गद्य, आदि: ५६३ बौल अभिहवादिक; अंति: मनुष्यना जाणिवा. ४९८४२. (+) स्तोत्र व स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१२, १०४३५). १. पे. नाम. बृहत्शांति स्तोत्र, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: पूज्यमाने जिनेश्वरे. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. आदिजिन चैत्यवंदन-चंद्रकेवलिरासउद्धृत, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अरिहंत नमो ___ भगवंत; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ३ अपूर्ण तक लिखा है.) ४९८४४. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्र-१४४ है., दे., (२५४१२.५, ३३४३०). १. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-समवसरणविचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनशासन सेहरोजग; अंति: पाठकधर्मवर्धन धार ए, ढाल-२, गाथा-२८. २. पे. नाम. त्रयविंशति स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २३ पदवी स्तवन, आ. उदयप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवर पाय; अंति: उदयप्रभनै० घणौ थयौ, गाथा-२३. ३. पे. नाम. नंदीसर स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. नंदीश्वरद्वीप स्तवन, मु. जैनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: नंदीसर बावन जिनालये; अंति: जिनचंद्र गुण गावैरे, गाथा-१५. ४९८४५. (+) स्तोत्र व मंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्रले. पं. धर्मवर्द्धन गणि (गुरु पं. श्रुतवर्द्धन गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६४११, १६४३६). १. पे. नाम. विविधाम्नाय मंत्रमय पार्श्वनाथ स्तव सह टीका, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-स्तंभन मंत्रगर्भित, ग. पूर्णकलश, प्रा.,सं., पद्य, ई. १२००, आदि: जसु सासण देवि वएसकया; अंति: ते स्तोत्रमेतत्, गाथा-३६. पार्श्वजिन स्तव-स्तंभनक मंत्रगर्भित-स्वोपज्ञ वृत्ति, ग. पूर्णकलश, सं., गद्य, आदि: जं संथवणं विहिय तस्स; अंति: लोकोनुयायी भवति. २. पे. नाम. वृश्चिकादि विष निवारण मंत्रादि संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. जैन मंत्र संग्रह-सामान्य , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. पार्श्वजिन मंत्र-जाप, पृ. ३आ, संपूर्ण.. पार्श्वजिन मंत्रजाप, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवते; अंति: वर्ष यावत् ० लगति. ४९८४६. विधि, पच्चक्खाण आलापक आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४)=१, कुल पे. ४, ले.स्थल. अहमदनगर, जैदे., (२५.५४१०.५,१२४५२). १. पे. नाम. अनशन विधि, पृ. ५अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: यदि ग्लानो तदा; अंति: नमो अरिहंताणं. २. पे. नाम. सागार पच्चक्खाण, पृ. ५अ, संपूर्ण. भवचरिम पच्चक्खाण, प्रा., गद्य, आदि: भवचरिमं पच्चखामि; अंति: जइमेहू जयमाउ०. ३. पे. नाम. सम्यक्त्व आलापक, पृ. ५अ, संपूर्ण. पर्यंत आराधना विधिसहित, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: अहन्नं भंते तुम्हाणं; अंति: वार३ सम्यक्त्वालापकं. ४. पे. नाम. बार व्रत आलापक, पृ. ५अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सम्यक्त्वादिद्वादशव्रत आलापक संग्रह, प्रा.,सं., गद्य, आदि: अहन्नं भंते तुम्हाणं; अंति: उवसंपज्जताणं विहरामि. ४९८४७. प्रकीर्णक, कुलक आराधनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ६-२(१ से २)=४, कुल पे. ४, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४४४-५०). १. पे. नाम. चउसरण पयन्ना, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदिः (-); अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३, (पू.वि. गाथा ५९ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. प्रमाद परिहार कुलक, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. पुण्यपाप कुलक, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: छत्तीसं दिणसहस्सा; अंति: धम्मम्मि उज्जमहो, गाथा-१६. ३. पे. नाम. आराधना कुलक, पृ. ३आ-६आ, संपूर्ण. पर्यंताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण भणइ एवं भयवं; अंति: ध्यान मनि आणियो, गाथा-७०, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) ४. पे. नाम. पृथ्वीचंद्र गुणसागर वेली, पृ. ६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पृथ्वीचंद गुणसागर वेली, मा.गु., पद्य, आदि: सिरिनेमि जिणेसर नमिय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३ अपूर्ण तक है.) ४९८४८. आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४१०.५, १५४५६). आदिजन स्तवन, मु. भावहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: नमवि सिरिरिसहजिण भाव; अंति: भावहरख० न तुलू ए, गाथा-३३. ४९८४९. (+#) जिनप्रतिमा पूजन अधिकार व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १४४४४). १. पे. नाम. रायपसेणीय उपांग-सूर्याभदेवकृत जिनप्रतिमा पूजन अधिकार, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. राजप्रश्नीयसूत्र-हिस्सा सूर्याभदेवकृत जिनप्रतिमा पूजन अधिकार, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: करेइ कार आसवासत्ता. २.पे. नाम. पंचतीर्थ स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. ५ तीर्थजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीशत्रुजयमुख्य; अंति: संतु भद्रंकराः, श्लोक-४. ३. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: हर्षनतासुर निर्झरलोक; अंति: पमज्जनशस्तनिजाघ, श्लोक-४. ४९८५०. अष्टापद स्तुति सह टीका, दोहा व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२५.५४१०.५, ४४३०). १. पे. नाम. अष्टापद स्तुति सह टीका, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तुति, अप., पद्य, आदि: भरहेसरकारिय देव हरे; अंति: विगणंतु अणंतदहंसगुणा, गाथा-४, (वि. प्रतिलेखक ने एक गाथा को दो गाथा गिना है.) २४ जिन स्तुति-टीका, सं., गद्य, आदि: भरहेसरत्यादि व्याख्य; अंति: विलोक्यतेति भावः. २. पे. नाम. दोहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: बावरा गाम को बावरो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ अपूर्ण तक लिखा ३. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औषधवैद्यक संग्रह प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: काथोटां-१ हीराकसी; अंति: मोरघुखं टां-१. ४९८५१. पद संग्रह व यंत्र, संपूर्ण, वि. १८७९, चैत्र शुक्ल, ८, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, ले.स्थल. दोलतगढ, प्रले. गणेशदास ओसवाल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२.५, १३४४५). १. पे. नाम. आधासीसी यंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. आधाशीशी मंत्र, पुहि., गद्य, आदि: ॐ नमो दीपमां है दीप; अंति: मंत्रो इस्वरो बाचा, गाथा-१, (वि. यंत्र सहित) For Private and Personal Use Only Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ www.kobatirth.org २. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: जिनराज के दरस कुं; अंति: जुगत जोड चौड दीजीए, गाथा-४. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: तुम गरीबन के नीवाज, अंति: जन्म सरणे तेरे आया, गाथा-४. ४. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मा.गु., पद्य, आदि: जाग रे जंजाली जीवडा; अंति: जम कूटे तेरो टाटको, गाथा-४. ४९८५२. (+) स्तवन व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३. कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित टिप्पण बुक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२५.५४११, १६x४२). १. पे. नाम. षट् आरा स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन- छट्टाआरागर्भित, श्राव. देवीदास, मा.गु., पद्य, वि. १६११, आदि: सकल जिणंद पाए नमी, अंतिः सेवक सकलसंघ मंगल करे, ढाल-५, गाथा - ६६. २. पे. नाम. अढारनात्रा स्वाध्याय, पृ. २आ- ३आ, संपूर्ण. १८ नातरा सज्झाव, मा.गु., पद्म, वि. १५६६, आदि: मिथुलानगरी शोभती अंतिः करी रच्यो संबंध उदार, बाल-३, गाथा - ३५. " ४९८५३. स्तवन व छींक विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे, २, दे. (२६.५X११.५, १३४४०). १. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. "" " " रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं. पद्य वि. १४वी आदिः श्रेयः श्रियां मंगल, अंतिः श्रेयस्करं प्रार्थये श्लोक-२५. २. पे. नाम. छींकनो विचार, पृ. २अ, संपूर्ण. छींक विचार, संबद्ध, मा.गु. सं., गद्य, आदि: पाखी पडिकमणा करता, अंति: सत्तरभेदीपूजा भणाववी. ४९८५४. सज्झाय व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३. दे. (२६११.५, १२४३९). " १. पे. नाम. अविनीत सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. अभव्य सज्झाय, मु. उदय, मा.गु., पद्य, आदि उपदेश न लागे अभव्यने, अंति: उदय० संग निदान रे, गाथा-७, २. पे नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन- जिनवाणी महिमा, मु. कांति, पुहिं., पद्य, आदि: जिणंदा तोरी वाणीइ; अंति: गाय कंसरे गाथा-५. १८९ ३. पे. नाम, शांतिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण, शांतिजिन स्तवन, मु. जिनरंग, पुहिं., पद्य, आदि: तूं मेरा मन मे तूं, अंति: में देव सकल में हो, गाथा-४. ४९८५७ (d) काकपिंड विधि, नवग्रहानुसारी जिन पूजाविधि व जिनवीर्य विचार, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५X११.५, ३५X१९). " १. पे. नाम. काकपिंड विधि, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. काकपीड विधि, मा.गु. सं., प+ग, आदि: काकपीडं प्रवक्षामि; अंतिः पिंड करोतु स्वाहा, श्लोक १०. २. पे. नाम. ग्रहपूजा विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिन ग्रहानुसारी पूजाविधि, सं., गद्य, आदि: रवौ श्रीपद्मप्रभस्य, अंतिः पार्श्वनाथस्य पूजा. ३. पे. नाम. जिनवीर्य विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. जिनबल विचार, मा.गु., पद्य, आदि: सुणो वीर्य बोलो, अंति: अग्र कुं जिन तेजो, गाथा- १. ४९८५८. छ संवर, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १. दे. (२६.५५१९.५, १७४३६). " ६ संवर सज्झाय, मा.गु, पद्य, आदि: वीरजिणेसर गोयमनें कह; अंतिः भास मुकत जासी पादरो, गाथा-६. ४९८५९. (#) स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६X११.५, १२X५०). १. पे नाम. जिराउलिपार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. १अ १आ, संपूर्ण For Private and Personal Use Only Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तव-जीरापल्ली, आ. लक्ष्मीसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीवामेयं विधुमधुसु; अंति: एव लक्ष्मी विशेषाः, श्लोक-१३. २. पे. नाम. भैरवाष्टक स्तोत्र, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. __भैरवाष्टक, शंकराचार्य, सं., पद्य, आदि: एकं खट्वांगहस्तं; अंति: सर्वसमृद्धिमान्, श्लोक-१०. ३. पे. नाम. निरंजनाष्टक स्तोत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. निरंजनाष्टक, सं., पद्य, आदि: स्थानं न मानं न च; अंति: वर्जिताय तस्मै नमो, श्लोक-८. ४९८६०. - स्तवन, स्तुति वदोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ७, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२६४११.५, १५४४७). १.पे. नाम. पंचपरमेष्टि स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: परमेष्ठिनमस्कार; अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक-८. २. पे. नाम. वर्धमान स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति-दीपावलीपर्वगर्भित, सं., पद्य, आदि: दीपालिका पर्वणि; अंति: वितनोतु शाश्वत्, श्लोक-४. ३. पे. नाम. दीपावलीपर्व स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. भालतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय कर मंगल दीपक; अंति: भाल तिलक वीर हीर, गाथा-१. ४. पे. नाम. औपदेशिक गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. जैनगाथा संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२. ५. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. सवैया संग्रह*, पुहि., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), सवैया-१. ६. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक दोहा संग्रह *, मा.गु.,रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ७. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. दोहा संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ४९८६१. (+) पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ९, प्र.वि. कुल ग्रं.५०, जैदे., (२६.५४११.५, १२४३९). १.पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. चिदानंद, पुहि., पद्य, आदि: आज सखी मेरे वालमा; अंति: दंपती मन वंछित पाये, गाथा-३. २.पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. चिदानंद, मा.गु., पद्य, आदि: खोल नयण अब जोवो; अंति: वंका गढ तोड्यो, गाथा-६. ३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. चिदानंद, पुहि., पद्य, आदि: मंद विषे ससी दिपतो; अंति: चिदानंद० जाण भलेरो, गाथा-३. ४. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. चिदानंद, मा.गु., पद्य, आदि: जोग जुगति जाण्या; अंति: विना गिणती नवि आवे. गाथा-४. ५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. चिदानंद, पुहि., पद्य, आदि: मारग साचा कोउ न बताव; अंति: चिदानंद० होय ते पावे, गाथा-५. ६. पे. नाम. अनुभव आध्यात्मिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. चिदानंद, मा.गु., पद्य, आदि: अनुभव आनंद प्यारो; अंति: अब भवसायर थी तार्यो, गाथा-२. ७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. चिदानंद, पुहिं., पद्य, आदि: कथनी कथेसहं कोई; अंति: रहणी की सेज रहे सोई, गाथा-५. ८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. चिदानंद, मा.गु., पद्य, आदि: निरपख विरला कोई; अंति: चिदानंद० का प्यारा, गाथा-५. ९. पे. नाम. अध्यात्मिक पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ आध्यात्मिक पद, मु. चिदानंद, पुहिं., पद्य, आदि: ज्ञान कला घट भासी; अंति: नंद० तोर करम की पासी, गाथा-४. ४९८६२. (#) स्तवन व स्वाध्याय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्रले. ग. रत्नविजय (तपागच्छ); पठ. श्रावि. जीवी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १२४२९). १. पे. नाम. अभिनंदन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. अभिनंदनजिन स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: अभिनंदनजी अरज हमारी; अंति: कवियण०सबला कीधी राजी, गाथा-७. २.पे. नाम. गुरु स्वाध्याय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. विजयरत्नसूरिसज्झाय, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीनतडी अवधारो हो पउध; अंति: रामविजय गुण गाय, गाथा-१०. ३. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, प्र. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: सूरति सलूणा हो साहिब; अंति: कवियण प्रभुस्यु जोडि, गाथा-७. ४९८६३. (+#) ऋषिमंडल स्तवन व विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११.५, १२४३८). १.पे. नाम. ऋषिमंडल स्तोत्र, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्य; अंति: परमानंद नंदितः, श्लोक-७८. २. पे. नाम. ऋषिमंडल लघुस्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. ऋषिमंडल स्तोत्र-लघु, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं ऐं अंति: गोप्यं सुदुः प्राय, श्लोक-१, (वि. कृति की पूर्णता हेतु मात्र "दिव्यं गोप्यं सुदुः प्रायं" पाठ लिखा हुआ है.) ३.पे. नाम. ऋषिमंडल विधि, पृ. ३आ, संपूर्ण. ऋषिमंडल स्तोत्र-आम्नाय, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रां हिंह; अंति: लखिई सर्वविधि कीजइं. ४९८६४. (-) सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२६.५४११.५, १०४३०). सीमंधरजिन स्तवन-वृद्ध, मु. अगरचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८२१, आदि: मारी वीनतडी अवधारो; अंति: अनोपम जिनपद वंदन भास, गाथा-२१. ४९८६५. रास व गीत, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२५.५४११.५, १३४४७). १.पे. नाम. नवकार रास, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र रास, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलउजी लीजइ; अंति: फल जाणतो श्रीनवकारनो, गाथा-२४. २.पे. नाम. औपदेशिक गीत, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. भुवनकीर्ति, पुहि., पद्य, आदि: चतुर विहारी रे आतम; अंति: रे नामि तीयारइ, गाथा-८. ४९८६६. (+) स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८०२, ज्येष्ठ शुक्ल, ४, मंगलवार, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. मोरबी, प्रले. मु. कनकरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, १३४४०). १. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भगतामर प्रणति मोलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः , श्लोक-४४. २. पे. नाम. शनीश्वर स्तोत्र, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. शनिश्चर छंद, मा.गु., पद्य, आदि: छायानंदन जगि जयो रवि; अंति: सदा वली वली वखाणीइ, गाथा-१६. ४९८६९. (#) कल्याणमंदिर स्तोत्र का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १९-२०४६२). कल्याणमंदिर स्तोत्र-बालावबोध, मु. उदयहर्ष, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम मंगलीक भणी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२४ तक लिखा है.) ४९८७१. सिद्धचक्र यंत्र,स्तवन व स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२६४१०.५, १६४२७). १.पे. नाम. सिद्धचक्र यंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सं.,मा.गु., प+ग., आदिः (-); अति: (-). २. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा.,मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: उप्पन्नसन्नाणमहोमयाण; अंति: सिद्धचक्कं नमामि, गाथा-६. ३. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: भत्तिजुत्ताण सत्ताण; अंति: तहाताण कल्लाणगं, गाथा-४. ४९८७२. (#) जिनस्नात्र विधि, संपूर्ण, वि. १९१३, आश्विन कृष्ण, ९, रविवार, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १९x४८-५३). स्नात्रविधिपंजिका, आ. शांतिसूरि, सं., गद्य, आदि: श्रीमत् पुण्यपवित्र; अंति: विसर्जनं क्रियते, पर्व-५. ४९८७३. (+) ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. वसोनाग्राम, प्रले. श्राव. चिमनलाल जमनादास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२६४१२, १६x४३). ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरमालिख्य; अंति: लभ्यते पदमव्ययं, श्लोक-९७. ४९८७४. धर्मबावनी, पुष्पमंजरी, कवित्त गूढार्थ श्लोक, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३-९(१ से ७,९,१२)=४, कुल पे. ४, जैदे., (२४.५४१०.५, १२४४१-४८). १.पे. नाम. धर्मबावनी, पृ. ८अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. अक्षरबावनी, मु. धर्मवर्धन, पुहिं., पद्य, वि. १७२५, आदि: (-); अंति: नाम धर्मबावनी, गाथा-५७, (पू.वि. अंतिम गाथा अपूर्ण मात्र है.) २. पे. नाम. पुष्पमंजरी दोहा, पृ. ८आ-११आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. पुष्पमंजरी, मा.गु., पद्य, आदि: सीस मुकुट कुंडल झलक; अंति: (-), (वि. साथ में यंत्र भी दिया गया है.) ३. पे. नाम. राग चिंतवनी कवित्त, पृ. १३अ, संपूर्ण. रागचितवन कवित्त, मा.गु., पद्य, आदि: वेदे भेवर वसंत राग; अंति: परजी मारू काल्हेरो, गाथा-६. ४. पे. नाम. गूढार्थ श्लोक, पृ. १३आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह-गूढार्थगर्भित, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-६. ४९८७५. (+) लावणी संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४११, १३४४२). १.पे. नाम. पार्श्वकुमरजीरी लावणी, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, ले.स्थल. सीरोहीनगर, प्रले. मु. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. पार्श्वजिन लावणी-गोडीजी, पंन्या. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जगत भविक जिन पास; अंति: पामे चीत परमानंदा, गाथा-१६. २. पे. नाम. ऋषभदेवजीरी लावणी, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. आदिजिन लावणी, मु. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: सुणीये रे वातांसदा; अंति: ऋषभदास० फजरी में, गाथा-८. ४९८७६. (#) स्वाध्याय व स्तवन, संपूर्ण, वि. १६६८, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. ग. कीर्तिविजय (गुरु ग. कमलविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११.५, १४४४२). १.पे. नाम. विजयसेनसूरीश्वर स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. विजयसेनसूरिसज्झाय, मु. हेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विजयसेनसूरि० शिरोमणि; अंति: हेमविजय बुध बोलइ जी, गाथा-१३. २.पे. नाम. आदिनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-पांचोटमंडन, मु. हेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपांचोट ग्रामे; अंति: हेमविजय बुध बोलइ, गाथा-५. ४९८७७. (+) दादा साहिब नित्य कृत्य, मंत्र व स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९०३, चैत्र शुक्ल, ३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, ले.स्थल. नावीगाम, प्रले. पं. जोधराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५.५४११, ११४३५). For Private and Personal Use Only Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ १९३ १.पे. नाम. दादासाहेब नित्यकृत विधि, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि अष्टप्रकारी पूजा, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: प्रथमस्तोक जलसुंअंग; अंति: क्षमस्वपरमेश्वरः. २. पे. नाम. विविध मंत्र संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. घंटाकर्ण महावीर मंत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. ___घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ घंटाकर्णो महावीरः; अंति: घंटाकर्णो नमोस्तु ते, श्लोक-४. ४९८७८. (+#) व्याख्यान पीठिका, चैत्यवंदन बालावबोध व उपदेश श्लोक प्रशस्ति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टिप्पणक का अंश नष्ट, दे., (२६.५४१२, १२४३४). १.पे. नाम. व्याख्यान पीठिका, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० अज्ञा; अंति: चेतनो आगल वखाण सलावो. २. पे. नाम. शांतिनाथ चैत्यवंदन बालावबोध, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण. सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदन-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीअरिहंत भगवंते; अंति: मोख्यना सुख पामे छे. ३.पे. नाम. उपदेश श्लोक प्रशस्ति, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण. व्याख्यान पीठिका, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीभगवान वितरागदेव; अंति: एहवु जाणी भव्यप्राणी. ४९८७९. (#) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१०.५, ९४३५). १.पे. नाम. पंचतीर्थजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: धुरि समरू तीरथ अभि; अंति: नरमल थासी गात्रा, गाथा-४. २. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-मरुदेवामाता केवलज्ञान, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गजकुंभे बेसी आवे; अंति: मोहन कहै जयकार, गाथा-४. ४९८८०. चौत्रीस अतीशय व पैतीस जिनवाणी गुण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११, १४४५३). १. पे. नाम. चौत्रीस अतिशय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ३४ अतिशय विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: दीक्षा लीधा पूठिइं; अंति: शमइ सघलइ सुख हुई. २.पे. नाम. पैंतीस जिनवाणी गुण, पृ. १आ, संपूर्ण. ३५ जिनवाणी गुण, मा.गु., गद्य, आदि: केलवणि घणी सक्त्वरी; अंति: उपजइ ३५ वचनातिशय. ३. पे. नाम. पैंतीस जिनवचनातिशय, पृ. १आ, संपूर्ण. ३५ जिनवचनातिशय नाम, सं., गद्य, आदि: संस्कारवत्व१मौदात्य२; अंति: त्रिंशच्चवाग्गुणाः. ४९८८१. (#) स्तवन व औपदेशिक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४११.५, १३४३३). १.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-१० भववर्णन, मु. मतिविसाल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशारद हो पाई नमेव; अंति: मतिविसाल सुखीया करइ, गाथा-१२. २. पे. नाम. औपदेशिक कवित्त, पृ. १आ, संपूर्ण.. व्यासदास, पुहिं., पद्य, आदि: अजब बनावै वात मनमे; अंति: को भरोसो नहु किजिये, गाथा-१. ३. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक श्लोक संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४९८८२. स्तवन व सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२५.५४११.५, ९४२५). १.पे. नाम. शत्रुजय स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मोरा आतमराम किण दिन; अंति: ज्ञानविमल०पद पास्युं, गाथा-७. २. पे. नाम. आत्म सज्झाय, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: ते सुखिया भाई ते; अंति: कहे हुं तस बंदा जी, गाथा-९. ४९८८३. (#) स्तोत्र व मंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५.५४११.५, १०४२९). १. पे. नाम. उपसर्गहर स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ९, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं पास; अंति: भवे भवे पास जिणचंद, गाथा-९. २. पे. नाम. चिंतामणी महामंत्र साधन विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन-चिंतामणि मंत्र साधनाविधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह; अंति: वस्तुनी प्राप्ति थाई. ४९८८४. (+) स्तवन व मसिप्रमाण विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. काश्यमपुर, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४११.५, १२४३९). १. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ग. कान्हजी, मा.गु., पद्य, वि. १७५१, आदि: संभव नाम सोहामणो वर; अंति: कहे गणी कान्हजी उलास, गाथा-७. २.पे. नाम. मसिप्रमाण विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. __ जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. नवग्रह स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. ९ग्रह स्तोत्र, ऋ. वेद व्यास, सं., पद्य, आदि: जपाकुसुमसंकाशं काश्य; अंति: व्यासोद्भतं न संशयः, श्लोक-१२. ४९८८५. चौवीसजिन स्तवन व मोक्ष अष्टक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४११.५, १२४५४). १. पे. नाम. चोवीसजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, पंडित. खीमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: भावे वंदो रे चोवीसे; अंति: खिमाविजय० रंग रमीजै, गाथा-१३. २. पे. नाम. मोक्षनगरी अष्टक, पृ. १आ, संपूर्ण. वीतरागाष्टक, सं., पद्य, आदि: सेवं सुद्धबुद्धं परं; अंति: श्रीमानतुंग श्च्युता, श्लोक-९. ४९८८६. स्तवन, मंत्र व स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२५.५४११, ११४३२). १. पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, म. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: आज आपे चालो सहीयां: अंति: पेम घणो चि आणी रे. गाथा-९. २. पे. नाम. सरस्वती बीज मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी बीजमंत्र, सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं; अंति: कुरुकुरु स्वाहा, (वि. विधि सहित) ३. पे. नाम. सरस्वतीमाता स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: देवी श्रीमद् भारती; अंति: तणी कंठस्थ भव्यो घरे, गाथा-२. ४९८८७. चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, दे., (२५.५४११.५, १४४४१). १. पे. नाम. नवपद चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. शांतिविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: पहेले दिन अरिहंतनो न; अंति: तणो शिष्य कहे कर जोड, गाथा-६. २. पे. नाम. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. मोहन, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धचक्र महामंत्र; अंति: भणी वंदु बे करजोड, गाथा-३. ३. पे. नाम. साधारण चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ २४ जिन चैत्यवंदन-भवसंख्यागर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रथम तीर्थंकरतणा; अंति: नय प्रणमे धरी नेह, गाथा-३. ४. पे. नाम. ऋषभजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन नमस्कार, मु. प्रीतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नाभि नरेसर कुल कमल; अंति: प्रीत० आवागमन निवार, गाथा-३. ४९८८८. (#) सवैया संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ११, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १०x४४). १. पे. नाम. १२ मास सवैया, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. नेमराजिमती बारमासो, मु. कविराज, मा.गु., पद्य, आदि: अलि विजल कज्जल; अंति: कविराज सोभागी, गाथा-१३. २. पे. नाम. आदिजिन सवैया, पृ. २आ, संपूर्ण. ग. ज्ञानतिलक, पुहिं., पद्य, आदि: मरुदेवि कि नंदन दुख; अंति: न्यान०भगति सदा सुपरइ, सवैया-१. ३. पे. नाम. शांतिजिन सवैया, पृ. २आ, संपूर्ण. ग. ज्ञानतिलक, पुहि., पद्य, आदि: जदती जनलोचन मोहन; अंति: सेवक न्यानतिलक कहइ, सवैया-१. ४. पे. नाम. नेमिजिन सवैया, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. ग. ज्ञानतिलक, पुहिं., पद्य, आदि: चित केरि चिंता चूरि; अंति: गणि न्यानतिलक विचारी, सवैया-१. ५. पे. नाम. नेमिजिन सवैया, पृ. ३अ, संपूर्ण. ग. ज्ञानतिलक, पुहि., पद्य, आदि: सकल सोवन गिरिमुखरु; अंति: न्यनतिलक० न बोइई नेम, सवैया-१. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन सवैया, पृ. ३अ, संपूर्ण. ग. ज्ञानतिलक, पुहि., पद्य, आदि: सबही जन चित्त कि; अंति: न्याय० जंगम कल्पलता, सवैया-१. ७. पे. नाम. महावीरजिन सवैया, पृ. ३अ, संपूर्ण. ग. ज्ञानतिलक, पुहिं., पद्य, आदि: त्रिभुवजन तात निरमल; अंति: न्यानतिलकन बोलइ वीर, सवैया-१. ८. पे. नाम. शीतलजिन सवैया, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. ग. ज्ञानतिलक, पुहिं., पद्य, आदि: सीतल चंदन चंद सीतल; अंति: न्यान० सेवउ परभात री, सवैया-१. ९. पे. नाम. ग्यारह गणधर सवैया, पृ. ३आ, संपूर्ण. ११ गणधर सवैया, ग. ज्ञानतिलक, पुहि., पद्य, आदि: इंद्रभूति गणधार अगनि; अंति: गणि न्यानतिलक सुमन, सवैया-१. १०. पे. नाम. जिनदत्तसूरि सवैया, पृ. ३आ, संपूर्ण. ग. ज्ञानतिलक, पुहि., पद्य, आदि: जगमाहि जयउ जिनदत्त; अंति: न्यानजिणि कीध उदयोत, सवैया-१. ११. पे. नाम. जिनकुशलसूरि सवैया, पृ. ३व, संपूर्ण. ग. ज्ञानतिलक, पुहिं., पद्य, आदि: कुसल विषम वाटि कुसल; अंति: नवनिधि कुसल पसाइ जू, सवैया-१. ४९८८९. (+) स्तोत्र संग्रह व मंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, चैत्र शुक्ल, ३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्रले. महासुखराम शिवराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१०, १२४५३). १.पे. नाम. पंचषष्टि यंत्र स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्टियंत्रगर्भित, मु. सुखनिधान, सं., पद्य, आदि: आदौ नेमिजिनं नौमि; अंति: मोक्षलक्ष्मीनिवासम्, श्लोक-८, (वि. पंचषष्ठी यंत्र सहित) २. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, प्रा., पद्य, आदि: तं नमह पासनाहं धरणिं; अंति: इयनाउं सरह भगवंतं, गाथा-४. ३. पे. नाम. परमेष्टि स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. वज्रपंजर कवच, सं., पद्य, आदि: परमेष्टि नमस्कार; अंति: आधिस्चापि कदाचन, श्लोक-८. ४. पे. नाम. गौतमस्वामी मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. बाद में किसी ने पेन्सिल से यह कृति लिखी है. For Private and Personal Use Only Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १९६ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गौतम गणधर बीज मंत्र, प्रा., सं., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवओ गोयमसामि; अंति: १२ कर्त्तव्यः. ४९८९० (+) विचार चोसठि, सज्झाय व स्तवन, संपूर्ण वि. १९०६ वैशाख अधिकमास कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे, ३, प्रले. पं. वृद्धिचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., दे., ( २६१२, १४-१८३६-५४). १. पे. नाम. विचारचोसठि, पृ. १अ - ३अ, संपूर्ण, ले. स्थल. पादलिप्तनगर, लिख. मु. हरीचंद ( गुरु मु. वागजी ऋषि); गुपि. मु. वागजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. विचारचोसठी आ. ननसूरि, मा.गु. पच, वि. १५४४, आदि: वीरजिणेसर प्रणमी पाय अंतिः भणे नंदसूरि गाथा- ६४. २. पे. नाम. रात्रीभोजरी सज्झाय, पृ. ३अ- ३आ, संपूर्ण. रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मु. वसता मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: ग्यान भणो गुण खाणी; अंति: मुनि वसता० अधीकारी रे, गाथा - १३. ३. पे. नाम. वीरप्रभुजीरो स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती सांमण दीयो; अंति: समयसुंदर सुखकार, , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा - १०. ४९८९१. (+) शत्रुंजय माहात्म्य व विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित., जैवे., (२५.५x११, १८x६२). १. पे. नाम. शत्रुंजय महात्म्य, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ कल्प, सं., पद्य, आदि: नंदीश्वरे तु यत्, अंति: स्पर्शनातु किमुच्यते, श्लोक-१८. २. पे. नाम. भरतक्षेत्रे आहारमान गाथा सह टीका, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. "" आहारादिमान गाथा- भरतादिक्षेत्रे, प्रा. पद्य, आदि: बत्तीसं कवलाहारो अंतिः एवं मुहणंतय पमाणं, गाथा- ३. महाविदेहक्षेत्रे आहारमानादि गाथा - टीका, सं., गद्य, आदि: इह विदेहेषु च; अंति: साधूनां योग्या भवति. ३. पे. नाम. महाविदेहस्वरूपमान गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि एगा कोडाकोडी तेसडि, अंतिः सव्वा चडकडी हुति, गाथा ७. ४९८९२. (१) गंहुली व सरस्वती स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले. स्थल. धवलिका, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे. (२६.५४९.५, ७४२५) , १. पे नाम वीरजिन गृहलिका, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. महावीर जिन भास, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः वीरजी आया रे गुणशैल अंति: लक्ष्मीसूरी गुण गाय, गाधा-५. २. पे नाम. सरस्वती स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण सरस्वतीदेवी स्तुति, पुहिं, पद्य, आदि विद्या विनता नृप कुल, अंतिः छेच्या भला सुजाण, गाथा-२. ४९८९३. सनत्कुमार सज्झाय व भडली संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., ( २६११, १४X४०). १. पे नाम, सनत्कुमार सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. सनत्कुमारचक्रवर्ति सज्झाब, मु. राज ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: अमर तणी वाणी सुणी, अंतिः ए मुनिवर नु आज, गाथा - १८. २. पे. नाम भडली संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., सं., पद्य, आदि: माहि छठिना गाजिउ, अंति: भडली उ वरसिउ जाई. ४९८९४. (#) महावीर निसाणी व पार्श्वजिन निसाणी, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र. वि. मूल पाठ का अं खंडित है. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे. (२४४१०.५, १६४३७-४४). १. पे. नाम. बंभिणवाड महावीर निसांणी, पृ. १अ - ३अ, संपूर्ण, वि. १९०२, फाल्गुन शुक्ल, १३, पठ. पं. श्रीचंद (गुरु मु. देवीचंदजी), प्र.ले.पु. सामान्य. महावीर जिन निसाणी-बामणवाडजीतीर्थ, मु. हर्षमाणिक्य, मा.गु., पद्म, आदि: माता सरसती सेवक, अंति: हुइ हेममाणिक्य मुनि गाथा- ३७. २. पे. नाम. पार्श्वजिन निसाणी, पृ. ३आ-४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहि., पद्य, आदि: सुखसंपत्तिदायक सुरनर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा २५ अपूर्ण तक है.) ४९८९५. (#) विचार पंचाशिका, वर्णमाला व झूलणा संग्रह, अपूर्ण, वि. १७९३, फाल्गुन शुक्ल, ८, रविवार, मध्यम, पृ. ७-६(१ से ६)=१, कुल पे. ६, पठ. मु. शिवविजय (गुरु ग. माणिक्यविजय); गुपि.ग. माणिक्यविजय (गुरु ग. हितविजय); ग. हितविजय (गुरु ग. शुभविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १३४३९). १.पे. नाम. विचारपंचाशिका, पृ. ७अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ग. विजयविमल, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: विमलसूरिवराणं विणएण, गाथा-५१, (पू.वि. अंतिम गाथा ५१ अपूर्ण मात्र है.) २.पे. नाम. वर्णमाला, पृ. ७अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. वर्णमाला*, मा.गु., गद्य, आदि: ॐ नमः सिद्धं अ आ ई; अंति: क ख ग घ ङ, संपूर्ण ३. पे. नाम. झूलणा पद, पृ. ७आ, संपूर्ण. औपदेशिक कवित्त संग्रह*, पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: मेरे मन मे एक उमंग; अंति: जिहान खराब किया, गाथा-२. ४. पे. नाम. झूलना पद, पृ. ७आ, संपूर्ण. औपदेशिक दहा संग्रह, पुहि.,प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: खाजीइं पीजीइं लीजीई; अंति: जिहां न खराब की यार, गाथा-२. ५. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. ७आ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहि., पद्य, आदि: सभा मध्य न बोलिई; अंति: बोलो अम लाख खाया, दोहा-५. ६. पे. नाम. औपदेशिक झूलना, पृ. ७आ, संपूर्ण. औपदेशिक सवैया संग्रह , भिन्न भिन्न कर्तक, पुहिं.,मा.गु., पद्य, आदि: सुणो भाई सुणे जैसी; अंति: राख्या जग में नाम, गाथा-४. ४९८९६. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६४११.५, ११४३४). १. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. कुशलहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवन तारण तीरथ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ अपूर्ण तक लिखा है. तीनों गाथाएँ भी स्वयं में अपूर्ण हैं.) २. पे. नाम. मल्लिनाथजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मल्लिजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: कौन रमइ री चित्त; अंति: ब्रह्मा कौण नमई, गाथा-६. ४९८९७. (#) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. राधनपुर, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, १३४३९). १. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. श्राव. लाधो साह, मा.गु., पद्य, आदि: बावीसमा श्रीनेमिजिणं; अंति: साहापामे सिवरमणी रे, गाथा-५. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. श्राव. लाधो साह, मा.गु., पद्य, आदि: सांति जिनेसर साहाबा; अंति: लाधो० अविचल परिमाणंद, गाथा-७. ३. पे. नाम. चौबीसजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन-निर्वाणभूमिगर्भित, श्राव. लाधो साह, मा.गु., पद्य, आदि: सकल तीरथ राजीउ; अंति: लाधो लली प्रणमुंपाय, गाथा-९. ४९८९८. (+) वीसस्थानक तप विधि व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, १३४३९). १. पे. नाम. वीसस्थानिक तप विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २० स्थानकतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: प्रदक्षिणा देवी; अंति: ते मिच्छामी दुक्कडं. २. पे. नाम. अनध्याय श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: अष्टमी गुरुहंतीच; अंति: प्रतिपत् पाठ नाशकः, श्लोक-१. For Private and Personal Use Only Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४९९००. (#) स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, १०४३४). १.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सुगण सनेही जिन जी; अंति: जिनचंद० तारै राज, गाथा-५. २. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक दूहा संग्रह, पुहिं.,प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-६. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. क्षमाकल्याण, पुहिं., पद्य, आदि: रसना सफल भई में तो; अंति: क्षमाकल्याण०अविचलराज, गाथा-५. ४९९०१. धर्ममूरतिसूरि गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६४११, १४४४७). १. पे. नाम. धर्ममूर्तिसूरिगुरु गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. धर्ममूर्तिसूरिगीत, मु. मंगल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: आवुरे सखी गुरु वंदी; अंति: मंगल० गोयम आवतार रे, गाथा-७. २. पे. नाम. धर्ममूर्तिसूरिगुरु गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. धर्ममूर्तिसूरि गीत, मु. मंगल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: सारद माय तुझ विनवू; अंति: मंगल० आणंद पूरि रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. धर्ममूर्तिसूरिगुरु गीत, पृ. १आ, संपूर्ण.. धर्ममूर्तिसूरि गीत, मु. मंगल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: वंदिनिजी तुमइ भाव; अंति: मंगल० तनकु काज सरु, गाथा-४. ४९९०२. पंचकल्याण स्तवन, संपूर्ण, वि. १७८८, मार्गशीर्ष शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. भागचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १६४३९-४३). पंचकल्याणक मंगल, मु. रूपचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: पणविवि पंच परम गुरु; अंति: जिनदेव चउसंघह जयो, ढाल-५, गाथा-२५. ४९९०३. (#) भास व बारमासा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. भूज, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३४४५). १.पे. नाम. अमरसागरसूरि भास, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. उदयतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: हं सरसति पाए ले; अंति: उदयतिलक कहि इम वाणी, गाथा-१३. २.पे. नाम. अमरसागरसूरि बारमासो, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. भक्तिसागर, मा.गु., पद्य, आदि: पंथी करि अरदास रे; अंति: भगतिसागर० घणी रे, गाथा-१८. ४९९०४. गुरु स्तुति, भास व हरियाली, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. दीवबिंदर, प्रले. पं. विद्यानिधान, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १३४४८). १.पे. नाम. कल्याणसागरसूरिस्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ कल्याणसागरसूरि गुरु स्तुति, मु. कल्याणसागरसूरि-शिष्य, अप., पद्य, आदि: सयल सुहदायगं कुसलवर; अंति: जा लगुमाहिरो, गाथा-११. २.पे. नाम. नेमराजिमती भास, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: कपूर हुइ अति निरमलुं; अंति: सोमविमलसूरि० जोडि रे, गाथा-८. ३. पे. नाम. प्रहेलिका हरियाली, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अपदो दूरगामी च; अंति: ते बाहु डली समाई, गाथा-३. ४९९०५. (#) सरस्वती स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. स्तंभतीर्थ, प्रले. ग. भुवनशेखर; पठ. मु. गुणशेखर (गुरु ग. भुवनशेखर), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १४४४७). १.पे. नाम. श्रुतदेवी स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: राजते श्रीमती देवता; अंति: मेधामावहति सततमिह, श्लोक-९. For Private and Personal Use Only Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ २. पे. नाम. सरस्वती स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सिद्धसारस्वत स्तव, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., पद्य, वि. ९वी, आदि: करमरालविहंगमवाहना; अंति: रंजयति स्फुटम्, श्लोक-१३. ४९९०६. अंतरावाणी व वैराग्य गीत, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, १६४५३). १. पे. नाम. अंतरावाणी, पृ. १अ, संपूर्ण. कर्म सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: करम तणी गति विसम; अंति: ए संसारह तरीइ, गाथा-१७. २. पे. नाम. वैराग्य गीत, प्र. १अ-१आ, संपूर्ण. ग. धनविजय गणि, मा.गु., पद्य, आदि: करम तणी गति दोहिली; अंति: तुझ करता एह विचार रे, गाथा-१६. ४९९०७. (#) तमाकु परिहार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १४४३४). तमाकू परिहार सज्झाय, ग. उत्तमचंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतम सेती वीनवइ; अंति: उत्तम कहइ आणंद, गाथा-२३. ४९९०८. (#) शेव्रुजागिरी स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११, १२४३३-३७). १. पे. नाम. शेव्रुजागिरी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: संघपति भरत नरेसरु; अंति: ज्ञानविमल भाषे लोल, गाथा-५. २. पे. नाम. शेजगिरी स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: आवो भवि भविक; अंति: ज्ञानविमल० साधेरे, गाथा-७. ४९९०९. स्तवन, गाथा व सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, दे., (२५.५४११.५, ११४३०). १. पे. नाम. मरुदेवानी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मरुदेवीमाता सज्झाय, क. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: तुझ साथे नहीं बोलु; अंति: ऋषभने मन आणंदो जी, गाथा-५. २. पे. नाम. आदिनाथ लावणी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन लावणी, मु. नान्ह, पुहिं., पद्य, आदि: आदि जिनेसर कियो पारण; अंति: ऋषभदेव महाराज रे, गाथा-४. ३. पे. नाम. सम्यक्त्वशुद्धस्वरूप विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: सम्यग्ज्ञान सम्यग्; अंति: गुप्ति काय गुप्ति. ४. पे. नाम. गोचरी गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. __ गोचरी आलोयण गाथा, प्रा., पद्य, आदि: अहो जिणेहिं असावज्जा; अंति: तहुत्तं द्रावयंतु, गाथा-२. ४९९११. (#) जयतिहुअणस्तोत्र बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १६४५१). जयतिहुअण स्तोत्र-बालावबोध, पं. गुणविनय गणि, मा.गु., गद्य, आदि: राजत्सुदर्शनमहानंदकं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., परिचय मात्र लिखा है., वि. जयतिहुअणस्तोत्र की उत्पत्ति कथा दी गई है.) ४९९१२. उपदेश रहस्य, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२६४१०.५, १०४३७). उपदेश रहस्य, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जे छइ जिनधर्म जाणि; अंति: पासचंदसूरि इम बोलइ, गाथा-३९. ४९९१३. (-) मोह अधिकार व भैरव कथा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२५४११, १४४३५). १.पे. नाम. मोह अधिकार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-नारीत्याग, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: बेटीस्युं विलुधो जोउ; अंति: उदयरत्न० तीर्थराजा, गाथा-११. २. पे. नाम. भैरव कथा, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदिः (१)मारग चालता डावी भइरव, (२)एक समय राजा भोज सकार; अंति: खाधु पीधु लील कर्यु. For Private and Personal Use Only Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४९९१५. सज्झाय, स्तवन व पदा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२६४११.५, ११४४०). १.पे. नाम. सुलसा अंबड सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. सुलसामहासती अंबड सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.ग., पद्य, आदि: आज माहरु भाग्य रे; अंति: ज्ञानविमल. कीधी, गाथा-५. २.पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: वाटडी विलोकुं रे; अंति: ज्ञानविमल० कल्याण, गाथा-६. ३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: केई उदास रहै प्रभु; अंति: महे मोहे सूझत नीके, गाथा-१. ४. पे. नाम. प्रस्ताविक गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक*, प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२. ४९९१६. (+) स्तवन व पच्चक्खाण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, १०४२३). १.पे. नाम. पोसीना पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, ले.स्थल. गांधली, पठ. श्रावि. वजीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य. पार्श्वजिन स्तवन-पोसीना, मु. कल्याणसागर शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मति आपो मात; अंति: जे सेवेते नवनिध लहे, गाथा-१४. २.पे. नाम. आयंबिल पच्चक्खाण, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: ऊगे सूरे नमुक्कारी; अंति: असित्थेण वा वोसिरामि. ४९९१७. (+#) स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ९, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१२, १३४४२). १. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय नाभिनरिंदनंद; अंति: निसदिन नमत कल्याण, गाथा-३. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. शांतिजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: सोलम जिनवर शांतिनाथ; अंति: लहिये कोड कल्याण, गाथा-३. ३. पे. नाम. नेमिनाथ स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह सम प्रणमो नेमि; अंति: अहनिस करै प्रणाम, गाथा-३. ४. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन-गोडीजी, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: पुरसादाणनीय पासनाह; अंति: प्रगटै परम कल्याण, गाथा-३. ५. पे. नाम. वीरजी स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: वंदु जगदाधार सार सिव; अंति: आपौ करि सुपसाय, गाथा-३. ६. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र नमस्कार, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत उदार कांत; अंति: निधि प्रगटै चेतन भूप, गाथा-३, (वि. प्रतिलेखक ने २ गाथाओं को १ गाथा गिना है.) ७. पे. नाम. पदमनाभजी स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. पद्मनाभजिन चैत्यवंदन, उपा. कल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम महेसर पद्मनाभ; अंति: कारण सदा कल्याण, गाथा-३. ८. पे. नाम. सीमंधरजी स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ www.kobatirth.org २०१ सीमंधरजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: वंदु जिनवर विहारमान, अंतिः कारण परम कल्याण, गाथा - ३. ९. पे. नाम. सम्मेतशिखर स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सम्मेतशिखरतीर्थ चैत्यवंदन, मु. कल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: पूरव दिसे दीपतो, अंति: तीरथ करण कल्याण, गाथा- ३. ४९९१८. (+) महावीरदेव स्तोत्र सह टिप्पण, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, जैवे. (२६४११.५, १४X३१). महावीरजिन स्तोत्र, मु. रूप, सं., पद्म, आदि विबुधरंजकवीरककारको अंतिः रूपकेण प्रसिद्धा, श्लोक ७. महावीरजिन स्तोत्र - टिप्पण, मा.गु., गद्य, आदि: क १ ख २ ग ३ घ ४ च ५; अंति: सांयोगीया भांगा लेवा. ४९९१९. (+) विगोष्ठी व जीरावला पार्श्वनाथ स्तुति, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. १, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X१०.५, १६३५). १. पे. नाम. विद्वगोष्ठी, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. पंडित. सुधाभूषण गणि, सं., पद्य, आदि: श्रीभोजराज सभायां; अंति: नैव च किदृशाः स्युः, श्लोक-२१. २. पे नाम, जीरावला स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन- जीरावला, प्रा., पद्य, आदि: पुण्णसंपुण्ण चंदाणणो; अंति: दंतवाईपवाईया पावणो, गाथा-४. ४९९२१. (+) स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, पठ. श्रावि. राजा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२६X१०.५, १३x४६). १. पे. नाम. जिनप्रतिमा स्तोत्र, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. जिनप्रतिमा मतस्थापना सज्झाय, ग. गुणरंग, मा.गु., पद्य, आदि: सकल विमल जिणवर तणा, अंति: गुणरंगइ० सोभागी थाई, गाथा - १५. २. पे. नाम. रावण पार्श्वनाथ लघु स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र - रावण, ग. रंग, मा.गु., पद्य, आदि: मुझ आज कल्याणनी वेलि; अंति: गुण गणि रंग० पद वरई, गाथा- ७. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९९२२. (#) स्तवन व स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५X११.५, १३X३५). १. पे नाम, २४जिन स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण, २४ जिन स्तवन, सं., पद्य, आदि: प्रणम्याग्रनाथं सनीर, अंति: क्लेशविध्वंसहेतुं, श्लोक -९. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: रागद्वेषविजेतारं अंतिः (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण श्लोक ४ अपूर्ण तक लिखा है.) ४९९२३. स्तोत्र, विधि व सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, दे., (२५.५X११, १४४४१). १. पे नाम, चंद्रप्रभजिन स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रीचंद्रप्रभ प्रभा, अंतिः दायिनि मे वरप्रदा, श्लोक ५. २. पे. नाम. दक्षिणावर्त्तशंख विधि, पृ. १अ संपूर्ण. सं., गद्य, आदिः ॐ ह्रीं श्रीधर, अंतिः द्रव्य दुग्धादि पूजा. " ३. पे. नाम. एकाक्षीनारिकेल कल्प. पू. १अ संपूर्ण. नारिकेल कल्प-विधिसहित, मा.गु. सं., गद्य, आदिः ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं अंति: लवंगादि पूजा. ४. पे नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण For Private and Personal Use Only उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: बूढा ते पणि कहीए बाल; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ४ अपूर्ण तक लिखा है.) ५. पे. नाम. दोहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: (-). Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४९९२५. (+#) ब्रह्मचर्य नववाडी गीत, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, पठ. श्रावि. जसीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५४४७). नववाड सज्झाय, मु. पुण्यसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनशासन नंदनवन; अंति: पुण्यसागर० सील अखंड, गाथा-१९. ४९९२८. (+#) गौतम होरा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५४३४-३९). गौतमस्वामि होरा, सं., पद्य, आदि: नमस्कृत्य महावीरं; अंति: कल्याणं च भविष्यति, श्लोक-५७. ४९९३०. (#) द्वात्रिंशद्कमलबंध महावीर स्तवन, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, अन्य. पं. विनयवर्द्धन गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्र के दूसरी ओर ३२ कमलदल में संपूर्ण स्तवन लिखा गया है., अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १४४४५). महावीरजिन स्तवन-द्वात्रिंशत्कमलदलबंध, ग. उदयधर्म, सं., पद्य, आदि: सन्नमत्रिदशवंद्यपद; अंति: गायतां मे मनः, श्लोक-१८. ४९९३१. स्तवन, प्रहेलिका व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. १७वीं सदी में मांडण ऋषि के प्रशिष्य व हाथी ऋषि के शिष्य सिद्धराज के पठनार्थ लिखी गई प्रत की नकल प्रतीत होती है., दे., (२६४११.५, १७४३८). १.पे. नाम. मल्लिनाथ स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. मल्लिजिन स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभोवन प्रभू रे मल; अंति: पासचंद० सिवगति वरइ, गाथा-३१, (वि. कहीं-कहीं एक गाथा को दो गाथा गिनने के कारण ३१ गाथा का परिमाण दिया गया है.) २. पे. नाम. प्रहेलिका संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: चढि पडइ असवार सदा; अंति: कुण जोगी किहां जती, गाथा-१. ३. पे. नाम. गाथा संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. गाथा संग्रह *, प्रा., पद्य, आदि: गुरु मोह कलह निद्दा; अंति: मामय जणयंतु गई मूल, गाथा-१. ४९९३२. (+#) प्रतिलेखन विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १९४४४-६३). १.पे. नाम. प्रतिलेखन बोल गाथा सह टबार्थ, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रतिलेखनबोल गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सुतत्थतत्थदिट्ठी; अंति: तणत्थं मुणि बिंति, गाथा-५. प्रतिलेखनबोल गाथा-छाया, सं., गद्य, आदि: सूत्रार्थ तत्त्व; अंति: मुनयो ब्रुवंति. २. पे. नाम. श्राविका प्रतिलेखन विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रतिलेखन विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: मुहपत्ती पडिलेही; अंति: पउंछणादिक पडिलेहीइं, (वि. श्राविकाओं के द्वारा करने योग्य प्रभात व संध्याकालीन प्रतिलेखन विधि है.) ३. पे. नाम. देह प्रतिलेखना विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. देह प्रतिलेखन विधि, सं., गद्य, आदि: पुरुषानाश्रित्या; अंति: तिस्रः प्रमार्जना. ४. पे. नाम. साधुमरण विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. साधु कालधर्म विधि, सं., गद्य, आदि: हस्तांगुष्ठच्छेदः; अंति: दिने असज्झायः. ४९९३३. षटद्रव्य विस्तर विचार, संपूर्ण, वि. १९२२, भाद्रपद शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. २, प्रले. नरोणव्यास रताणी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. आरंभ में षड्द्रव्य विचार का कोष्ठक दिया गया है., दे., (२५४११.५, ११४३६). ६ द्रव्यपरिणाम विचार, प्रा., पद्य, आदि: परिणामि जीव मुत्ता; अंति: सुद्धबुद्धिहिं, गाथा-३. ६ द्रव्यपरिणाम विचार-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (१)जीवनो उपयोग ते परिणा, (२)तत्त्वार्थप्रकीर्णके; अंति: गुण कोई न छोडै. For Private and Personal Use Only Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ४९९३४. (+#) स्तवन व पद, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. जेसलमेर, प्रले. श्रावि. वालाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १२४३०-३५). १.पे. नाम. जेसलमेर अष्ट चैत्यप्रपाटी स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ८ चैत्य स्तवन-जेसलमेरस्थित, आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७७१, आदि: जिनवर जेसलमेर जुहारी; अंति: सतरसै इकहोत्तरें, ढाल-२, गाथा-२३. २.पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, आदि: जब लगे आवै मनहीं ठाम; अंति: विलासी प्रगटे आतमराम, गाथा-६. ४९९३५. (#) महावीर चरित्र सिद्ध भेद व लोक स्वरुप विचार सह अवचूरी, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ४, ले.स्थल. नदकुलवतीपूरी, प्रले. ग. सौभाग्यसुंदर (गुरु वा. देवसमुद्र); गुपि. वा. देवसमुद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १२४३२). १.पे. नाम. महावीरचरित्र सह अवचूरि, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, वि. १६१७, मार्गशीर्ष शुक्ल, १२, गुरुवार, ले.स्थल. नंदकुलवतीपुरि, प्रले. ग. सौभाग्यसुंदर (गुरु वा. देवसमुद्र); गुपि. वा. देवसमुद्र, प्र.ले.पु. सामान्य. दुरिअरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: दुरियरयसमीरं मोहपंको; अंति: सया पायप्पणामो तुह, गाथा-४४. दुरिअरयसमीर स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: दुरियरय० दुरित; अंति: पाद प्रणामः तव भवतु. २.पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. ग. सौभाग्यसुंदर, सं., पद्य, आदि: हं हो शंकः सुराचलः; अंति: विलंघ्यो विधिः, श्लोक-२. ३. पे. नाम. सिद्धभेद गाथा सह बालावबोध, पृ. ३आ, संपूर्ण. १५ सिद्धभेद गाथा, प्रा., पद्य, आदि: भवियजण विहियबोहे; अंति: अचिरेण विमाणवासंच, गाथा-७. १५ सिद्धभेद गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: भविय भविकजन विहित; अंति: तेहनउ भरि छइ. ४. पे. नाम. लोकस्वरूपगाथा सह बालावबोध, पृ. ३आ, संपूर्ण. लोकस्वरूप गाथा, प्रा., पद्य, आदि: लोए असंख जोअण माणेपइ; अंति: तहत्ति जिणवुत्तं, गाथा-३. लोकस्वरूप गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: लोक चतुर्दश; अंति: जिनोक्त जिनभाषित. ४९९३६. (#) जंबूद्वीप संग्रहणी व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, पठ. श्राव. उत्तमचंद बालकचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १७४४६). १.पे. नाम. जंबूद्वीप संग्रहणी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं सव्वन्नु; अंति: रइया हरीभद्दसूरिहि, गाथा-३०. २. पे. नाम. काल निर्णय, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्योतिष*, मागु.,सं.,हिं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ४९९३७. इंद्र महोत्सव, संपूर्ण, वि. १७९१, फाल्गुन शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले.ऋ. राजपाल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १३४३६). इंद्रकृत महावीरजिन जन्मोत्सव वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: ए भगवंतनइं जन्म हुइ; अंति: ठामै देवता गया. ४९९३९. (#) चोवीसजिन कल्याणक गणनुं संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११.५, ५०x१९-२२). १. पे. नाम. २४ जिन पंचकल्याणक गणन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २४ जिन पंचकल्याणक-तिथि व जाप, सं., गद्य, आदि: काती वदि ५ नाणं संभव; अंति: सुदि चवणं नमिस्स, (वि. कोष्ठक रूप में दिया गया है.) २. पे. नाम. मोक्ष कल्याणक गणनु, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिन मोक्ष कल्याणक गणनू, मा.गु., को., आदि: काती वदि मुक्खो; अंति: मुक्खो सुविधिस्स. For Private and Personal Use Only Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. पंचकल्याणक गणनु, पृ. १आ, संपूर्ण.. पंचकल्याणक गणन, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४९९४१. (#) प्रतिक्रमणसूत्र, कल्पसूत्र फलश्रुति व अंतर्वाच्य, संपूर्ण, वि. १७४५, पौष कृष्ण, ६, सोमवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. गुढाग्राम, प्रले. ग. मोहनविजय गणि (गुरु ग.खीमाविजय गणि, तपागच्छ); गुपि.ग.खीमाविजय गणि (गुरु ग. श्रीप्रकार गणि, तपागच्छ); ग. श्रीप्रकार गणि (गुरु ग. ऋद्धिविजय, तपागच्छ); ग. ऋद्धिविजय (गुरु उपा. कांतिविजय गणि, तपागच्छ); उपा. कांतिविजय गणि (गुरु गच्छाधिपति सेनसूरि , तपागच्छ); गच्छाधिपति सेनसूरि * (गुरु आ. हीरसूरि *, तपागच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४९.५, १४-३१४१६-४०). १. पे. नाम. पंचप्रतिक्रमण सूत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रतिक्रमणविधि संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: इच्छाकारेण संदेसह; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "सिद्धाणं नमोत्थुणं" तक पाठ लिखा है.) २. पे. नाम. कल्पसूत्र व्याख्यान फलश्रुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: यद्रेणुर्विकलीकरोति; अंति: श्रीसंघ भट्टारकः. ३. पे. नाम. कल्पसूत्र अंतर्वाच्य, पृ. १आ, संपूर्ण. कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य, सं., गद्य, आदि: पुरिमचरिमाणकप्पो; अंति: थेरावलीचरित्तं. ४९९४२. (+-) पार्श्वजिन स्तुति व ग्रहगोधा विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखा है., संशोधित-अशुद्ध पाठ., दे., (२६.५४११.५, १२४३३). १. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: देंद्रे कि धपमप; अंति: दिशतु शासनदेवता, श्लोक-४. २.पे. नाम. ग्रहगोधा विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. गृहगोधा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ग्रहगोधा मस्तकि पडइ; अंति: अभिलषित फल कहइ. ४९९४३. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, दे., (२६४११.५, १२४२७-३०). १.पे. नाम. मंत्राधिराज पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन मंत्राधिराज स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्री पार्श्वः पातु; अंति: प्राप्नोति स श्रियम्, श्लोक-३३. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., पद्य, आदि: अंगन कल्प फल्योरी; अंति: रह्योरी सोहिलो अमारे, गाथा-५. ३. पे. नाम. अध्यात्म स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रभात सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: जोबनीयानी मोजा फोजा; अंति: केती कहुं वीतीरे, गाथा-५. ४९९४४. (+) शिलोंछ टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, १७४४१). अभिधानचिंतामणि नाममाला-शिलोंछ, संबद्ध, आ. जिनदेवसूरि, सं., पद्य, वि. १४३३, आदि: (१)श्रीमच्छ्रीफलवर्द्धि, (२)अहँ बीजं नमस्कृत्य; अंति: (-), (पू.वि. द्वितीय कांड देवकांड अपूर्ण तक है.) ४९९४५. (+#) स्तवन व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ६, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४१०.५, ११४३३). १. पे. नाम. सप्ततिशतजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासं अट्ठ; अंति: निब्भंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. २.पे. नाम. साम्नायगर्भित पंचपरमेष्ठि स्तोत्र, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. ५ परमेष्ठि स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: परमिट्ठमंतसारं सारं; अंति: आरोग देउ सुहपन्नो, गाथा-७. ३. पे. नाम. शांति स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. ४. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: दोसावहार दक्खो नालिय; अंति: गहा नपीडति, गाथा-१०. ५. पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: महीमंडणं पुन्नसोवन; अंति: देहि मे सुद्धनाणं, गाथा-४. ६. पे. नाम. वर्धमान स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण. ___ महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: यदहिनमनादेव देहिन; अंति: नवतु नित्यममंगलेभ्यः, श्लोक-४. ४९९४७. (+#) स्तवन वदोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५४४४). १. पे. नाम. सीमंधर स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन विनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सफल संसार अवतार हु; अंति: भगतलाभे० आस्या मनतणी, गाथा-१९. २.पे. नाम. दोहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा २ अपूर्ण तक लिखा है.) ४९९४८. लघुसंग्रहणी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२५.५४११.५, ५४३२-३५). लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिअजिणं सव्वन्; अंति: रईया हरिभदसूरिहे, गाथा-३०. ४९९४९. विचारपंचाशिकावचूरि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२५.५४११, १७४५१). विचारपंचाशिका-अवचूरि, ग. विजयविमल, सं., गद्य, आदि: वीरपदकजं श्रीमहावीर; अंति: विधाय संशोध्यमिति. ४९९५०. (+-) पद व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ८, अन्य. मु. रतनजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक ३ की जगह ४ और ४ की जगह ५ लिखा है., अशुद्ध पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२, १६४२८). १. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: रे रे रसाल फल मुंचसी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा २ अपूर्ण तक लिखा है.) २. पे. नाम. चौवीस तीर्थंकर शरीरमान, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन शरीरमान, सं., गद्य, आदि: ऋषभनाथ पांच सौ ५००; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., वासुपूज्यस्वामी तक लिखा है.) ३. पे. नाम. छ काय सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. छकाय सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: होवा होसी आदज छै जी; अंति: मुगती तणो फल होइ, गाथा-२२. ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सुण काया जीवडो; अंति: पालै प्रीत अभंगेरे, गाथा-१७. ५. पे. नाम. अध्यात्म सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: आज आधार छै सूत्रनो; अंति: भाषा श्रीभगवंत, गाथा-९. ६. पे. नाम. भावपूजा सज्झाय, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: ज्ञाननीर नीरमल आणी; अंति: मुगतितणा फल होय जी, गाथा-९. ७. पे. नाम. सीखामण सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण.. औपदेशिक सज्झाय-लोभोपरि, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: धंधो करीने धन मेलीयो; अंति: नाभानंद० भवनो पार रे, गाथा-१०. ८. पे. नाम. मारग वार उतावलो, पृ. ५आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची वैराग्य पद, मा.गु., पद्य, आदि: मारग वहइरे उतावलो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ५ अपूर्ण तक लिखा है.) ४९९५१. (-) उपदेशी सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. जोधपुर, प्रले. श्राव. जेठमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२६४१२, १४४४१). २० बोल सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३३, आदि: पेलै बोलै धनवंत सेती: अंति: रायचंग्यानप्रकास जी, गाथा-१७. ४९९५२. शास्वतजिनप्रतिमा स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, ११४५०). शाश्वतजिनप्रतिमा स्तवन, मु. हर्षसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सयल जिणेसर पय नमी; अंति: हर्ष० सीवसुख सार रे, गाथा-१९. ४९९५३. (+#) सीमंधर स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. ग. दोलतविजय (गुरु ग. शांतिविजय पंडित, तपागच्छ); गुपि.ग. शांतिविजय पंडित (गुरु मु. जयविजय, तपागच्छ); पठ. श्रावि. कल्याणदे, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-कर्ता के शिष्य द्वारा लिखित प्रत. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२६.५४११, ९४४६). सीमंधरजिन स्तवन, ग. शांतिविजय पंडित, मागु., पद्य, आदि: साहिबीया रे० सीमंधर; अंति: शांतिविजय० जेलहइ रे, गाथा-१०. ४९९५४. आत्मसीख्या स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४११,११४३५). __ औपदेशिक सज्झाय, मु. हंस, मा.गु., पद्य, आदि: सुगण सनेही रे सीखामण; अंति: हंस० परमकल्याण हो, गाथा-१३. ४९९५५. (#) यमकबंध पार्श्वनाथ स्तोत्र सह अवचूरी, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. सुंदर पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२५.५४११, ४४५४). पार्श्वजिन स्तव-स्तंभनतीर्थमंडन, मु. जयसागर, सं., पद्य, आदि: योगात्मनामप्यधुरं; अंति: जयव्यद्धानकस्य प्रियं, श्लोक-५. पार्श्वजिन स्तवन-अवचूरि, मु. जयसागर, सं., गद्य, आदि: योगो ज्ञानदर्शनचारित; अंति: तत्प्रियमेव भवतीति. ४९९५६. (#) धन्ना अणगार संधि, संपूर्ण, वि. १७११, कार्तिक शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. कूडा, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, २६४५९). धन्नाअणगार संधि, उपा. कनकतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: समरीय समरसतणउ निहाण; अंति: कणकतिलक कहइ रंगइ, गाथा-६५. ४९९५७. (#) देहस्थज्ञान विवरण, हस्तकांड व सामुद्रिकशास्त्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३-१(२)=२, कुल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०, २१४६२-६५). १.पे. नाम. देहस्थज्ञान विवरण, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सं., पद्य, आदि: नत्वा वीरं प्रवक्ष्य; अंति: (-), (पू.वि. नाडी ज्ञान अपूर्ण तक है.) २. पे. नाम. हस्तकांड, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. __मु. पार्श्वचंद्र, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: पार्श्वचं० विनिर्ममे, (पू.वि. गर्भवतीप्रकरण श्लोक ८ अपूर्ण से है.) ३. पे. नाम. सामुद्रिक शास्त्र, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रा., पद्य, आदि: अकूरसरा पडीयमत्त; अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभिक पाठ है.) ४९९५८. प्रव्रज्या विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. कांतिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १२४३९). प्रव्रज्या विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: इरिआवहि प० मुहपत्ति; अंति: इति भव्यजनैर्विधेयं. ४९९५९. (+) सुखडी थुई, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१०.५, १२४२७) साधारणजिन स्तुति, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चंपक केतक पाडल जाई; अंति: माई जौ तूसै अंबाई, गाथा-४. ४९९६०. आहारना ४२ दोष सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८५७, वैशाख कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. लूणी, प्र.वि. ले.स्थल-मीमाडदेश., त्रिपाठ., जैदे., (२५.५४१२, २२४५२). For Private and Personal Use Only Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ गोचरी दोष, प्रा., पद्य, आदि: आहा कम्मु १ देसिय; अंति: रस हेउ दव्व संजोगा, गाथा-६. गोचरी दोष-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: आधाकर्मी ते कहीईजे; अंति: ठाम सूत्र मध्ये छे. ४९९६१. (+#) गुणमालिनीनाम अध्यात्मोपनिषत्, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११.५, २८४५६). गुणमालिनीनाम अध्यात्मोपनिषत्, मु. रक्तचंद्र शिष्य, प्रा.,सं., प+ग., आदि: गुणरत्नाकरं वंदे; अंति: चंद्राय गुरवे नमः. ४९९६२. (#) दशभव पार्श्वनाथ स्तवन, अपूर्ण, वि. १७८४, चैत्र शुक्ल, ४, रविवार, मध्यम, पृ.प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १२४४२). पार्श्वजिन १० भव स्तवन, मु. आनंदोदय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: आणंदउदय० लील विलास, गाथा-४९, (पू.वि. गाथा ११ अपूर्ण से है.) ४९९६३. (#) पच्चक्खाण संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८४, कार्तिक कृष्ण, १, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. कालद्रीनगर, प्रले. गंगाराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीवीरस्वामी प्रसादात्., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १६४४२-४८). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: गारेणं वोसिरामि. ४९९६४. सुधर्मास्वामी गहुली, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. पत्रांक नही हैं., दे., (२५.५४११.५, ९४३६). सुधर्मास्वामी गहुंली, मु. मुक्ति, मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रही नगरी सोहामण; अंति: कहे मुक्ति०पुरजो कोड, गाथा-६. ४९९६५. (#) पंचमी सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, लिख. सा. जीवश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२.५, १३४१८). ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: अनंत सिद्धने करी; अंति: अमृतपदना थाओ धणी, गाथा-११. ४९९६६. रोहिणी सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४११, १४४३९). रोहिणीतप सज्झाय, मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्य नमी; अंति: अमृतपदनो० स्वामी हो, गाथा-११. ४९९६७. (4) पार्श्व अध्यात्म स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १४४३४). पार्श्वजिन स्तवन-शामला, उपा. यशोविजयजीगणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पूजाविधि मां भावीइजी; अंति: वाचक जस कहइं देव, गाथा-१७. ४९९६८. गौत्तमपृच्छा चउपइ, अपूर्ण, वि. १८६१, ज्येष्ठ शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ४-१(२)=३, ले.स्थल. सादडी, प्रले. मु. मेघराज, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२,१६४३८). गौतमपृच्छा चौपाई, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५४५, आदि: सकल मनोरथ पूरवै; अंति: लावण्य० जनवचने वस्यु, गाथा-११७, (पू.वि. गाथा ३२ अपूर्ण से गाथा ६१ अपूर्ण तक नहीं है.) ४९९६९. (#) चवदे सुप्नारो व्याख्यान सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११, १२४३९-४२). कल्पसूत्र-हिस्सा १४ स्वप्न विचार, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: इमेए आरसे सुभे सोमे; अंति: पडिजागरमाणे विहरइ, व्याख्यान-३. कल्पसूत्र-हिस्सा १४ स्वप्न विचार की अवचूरि, सं., गद्य, आदि: एतान् चतुर्दश महा; अंति: कारयति इम मूलगाथा. ४९९७०. चैत्यवंदन व गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. सेवाडा, प्रले. पंन्या. रूपसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. सोनाणाजी प्रसादात्., जैदे., (२६.५४११, १५४४७). १. पे. नाम. २४जिन चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २४ जिन बृहत्चैत्यवंदन, मु. खेमो ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पहिला प्रणमुप्रथम; अंति: लहिं पामि सुख अनंत, गाथा-११, (वि. प्रतिलेखक ने रचनाकर्ता की जगह खाली रखी है.) २. पे. नाम. गणेश गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गणेश स्तोत्र, मा.गु., पद्य, आदि: सुरनरनायक आदि सुंडाल; अंति: फल दै उठ मोटी फरज, गाथा-६. ४९९७१. (#) गच्छ सामाचारी व व्यवस्था पत्र, संपूर्ण, वि. १७३१, चैत्र कृष्ण, १३, रविवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. श्रीजिनकुशलसूरि प्रसादात्., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, २३४६४). १.पे. नाम. गच्छ सामाचारी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सामाचारी-खरतरगच्छीय, आ. जिनपतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: आयरिअ उवज्झाए इच्छाइ; अंति: जिणस्स छ कल्लाणयाई, गाथा-६९. २.पे. नाम. खरतरगच्छ व्यवस्था पत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. सामाचारी व्यवस्थापत्र-खरतरगच्छीय, आ. जिनप्रभसूरि, सं., गद्य, आदि: यथा सर्व वस्त्र; अंति: भंगजो दोषो अधर्मः. ४९९७२. (#) दोहा, केशकल्प व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५४४२). १.पे. नाम. औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: माता करमाता राता तो; अंति: यार भरोसा न कीजीयइ, दोहा-९. २.पे. नाम. केश कल्प, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: आंबारी अंबी पइसा ८; अंति: होवै मनोहर बावत छे. ३. पे. नाम. सुपार्श्वनाथजी स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सुपार्श्वजिन स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: सहज सलुणो हो मिलीयो; अंति: पूरो प्रेम विलास, गाथा-७. ४. पे. नाम. आत्मसिज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: विषीया लाल वरसतणैरे; अंति: भईया फिटकरी मो सनेह, गाथा-१३. ४९९७३. (+) अल्पबहुत्वादि विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६४११, १३४४२). १.पे. नाम. जीवस्थाने एकजीवस्योत्पत्यंतर गाथा सह व्याख्या, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. पंचसंग्रह-हिस्सा बंधकद्वारे जीवस्थानगत जीवोत्पत्त्यंतर गाथा, आ. चंद्रमहत्तराचार्य, प्रा., पद्य, आदि: तस बायर साहारण असन्न; अंति: मीसाणं पल्लसंखसो, गाथा-५. पंचसंग्रह का हिस्सा बंधकद्वारे जीवस्थानगत जीवोत्पत्त्यंतर गाथा- व्याख्या, सं., गद्य, आदि: त्रसत्वे सागरोपम; अंति: पद्यते इति गाथार्थः. २. पे. नाम. एकेंद्रियशरीरावगाहना विचार, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. प्रा.,सं., गद्य, आदि: द्वेधा वनस्पतिः; अंति: शरीराणां सद्भावादिति. ३. पे. नाम. दिक्चतुष्कजीवाल्पबहुत्व सह व्याख्या, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. दिक्चतुष्कजीवाल्पबहुत्व, प्रा., पद्य, आदि: पपुदउ कमसो जीवा जल; अंति: गामा दाहिणो झुसिरं, गाथा-२. दिक्चतुष्कजीवाल्पबहुत्व-टीका, सं., गद्य, आदि: पपुदउत्ति पश्चिम; अंति: याद्वरुतमोर्वायुरिति. ४९९७४. (+) आर्द्रकुमार चौढालियो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४९.५, १५४४७). आर्द्रकुमार चोढालियो, उपा. रत्नविमल, मा.गु., पद्य, आदि: चरमजिणेसर नित नमी; अंति: रतनविमल० परि गावैरे, ढाल-५, गाथा-९१. ४९९७६. गीत, पद व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२५.५४११, १७७५१). १. पे. नाम. थूलिभद्र गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, पंडित. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: कोशा कामिनी पूछइ चंद; अंति: नयसुंदर तस हीसी रे, गाथा-२२. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: चेतनजन तुं ज्ञान; अंति: मारग ते निश्चइ साधैइ, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ २०९ ३. पे. नाम. वज्रधरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. वज्रधरजिन पद, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: एक सबल मननो धोखो; अंति: जिनराज सरसवनो फेर रे, गाथा-५. ४९९७७. जुम्मनिमित्त, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४१२, १०४४२). जुम्मनिमित्त, प्रा., पद्य, आदि: वंदिय जिणुत्तमाण; अंति: दुण्णित्ति नायव्वा, गाथा-८, (वि. कोष्ठक सहित.) ४९९७८. (+) संमत्तिसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११.५, १७४४२-५२). सन्मतितर्क प्रकरण, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सिद्ध सिद्धट्ठाण; अंति: __ संविग्गसुहाहिगम्मस्स, कांड-३, गाथा-१६६. ४९९७९. त्रिशलामाता १४ स्वप्न स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. पं. रामा ऋषि; पठ.सा. वीराई आर्या; सा. गौरी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११, १४४३३). त्रिशलामाता १४ स्वप्न स्तवन, मु. कहान, मा.गु., पद्य, आदि: स्त्रीए सफल सुपन; अंति: श्रीमहावीर सुप्रसन, पद-४. ४९९८०. (+#) शीतलजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पठ. श्रावि. सहजबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, ९४२४). शीतलजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शीतलजिननी सेवना; अंति: जिनजी जीवन प्राण हो, गाथा-७. ४९९८१. आषाढभूति सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२६.५४११.५, ११४३७). आषाढाभूतिमुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीश्रुतदेवि हिए धर; अंति: भावरतन० सुजगीस रे, ढाल-५, गाथा-३७. ४९९८२. सीता स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. पं. झवेरविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १२४३०). सीतासती सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: जनकसुता हुं नाम; अंति: नित्य होजो प्रणाम, गाथा-७. ४९९८३. नवकार रास, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, दे., (२५.५४१२, १२४३१). नमस्कार महामंत्र रास, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति स्वामिनि द्यो; अंति: रास भणु श्रीनवकारनो, गाथा-२५. ४९९८४. (#) कलशस्थापन विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १४४३४). कलशप्रतिष्ठा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: प्रथम भूमिशुद्धिकरण; अंति: वां वां नमः स्वाहा. ४९९८५. (#) पासाकेवली व ज्योतिष, संपूर्ण, वि. १८४६, माघ शुक्ल, ७, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१०.५, १५४३१). १.पे. नाम. पासाकेवली, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. पाशाकेवली-भाषा *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (१)ॐनमो भगवति कुष्मांड, (२)१११ उत्तम थानक लाभ; अंति: पूजा करे भलो थास्यै. २. पे. नाम. ग्रहदशावर्ष श्लोक, पृ. ४आ, संपूर्ण.. ज्योतिष मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., आदि: आर्द्रादौ रवि चत्वार; अंति: शुक्रोश्चैकविंशतिः. ४९९८६. अढार पापस्थानक सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४१०.५, १३४४६). १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पापस्थानक पहिलं कहि; अंति: (-), (पू.वि. सज्झाय ३ गाथा ४ अपूर्ण तक है.) ४९९८७. शांतिकर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४१२, १३४३६). संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: संतिकरं संतिजिणं जग; अंति: स लहइ सुह संपयं परमं, गाथा-१३. For Private and Personal Use Only Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४९९८८. (+) सम्यक्त्व स्वरुप, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. १३२, जैदे., (२६.५४११.५, १२४४५). सम्यक्त्व विवरण, प्रा.,सं., गद्य, आदि: प्रथम सम्यक्त्व लाभ; अंति: धम्मरुइत्ति नायव्वो. ४९९८९. भरतराजा ऋद्धिवर्णन सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४१२, १६x४८). भरतराजा ऋद्धिवर्णन सज्झाय, ऋ. आसकर्ण, मा.गु., पद्य, वि. १८३५, आदि: प्रथम सीवरीये ऋषभजिण; अंति: आसकर्ण० भरतने होय ए, गाथा-२६. ४९९९०. (#) समकितमूलद्वादशव्रतनी टीप, पंच कल्याणक व उपभोग परिभोग परिमाण, संपूर्ण, वि. १८००, वैशाख शुक्ल, १२, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, प्र.वि. उपाध्यायश्री यशःशीलजी गणि उपदेशात्., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११,१८-१९४४८-५०). १.पे. नाम. समकीतमूल द्वादशव्रतनीटीप, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. १२ व्रत टीप, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथमदेव अरिहंत अढार; अंति: बीजैमींडी फलदायक. २. पे. नाम. महावीरजिन ५ कल्याणक, पृ. ४अ, संपूर्ण. महावीरजिन ५ कल्याणक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीरना ५ क०; अंति: पारंगताय नमः. ३. पे. नाम. गुणव्रत उपभोग परिभोग परिमाण, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. गुणव्रत उपभोग परिभोग परिमाण विचार, मा.गु., गद्य, आदि: श्रावके सर्वथा निरवद; अंति: भक्ष छाडिवा गृहस्थै. ४९९९२. (+) पार्श्वजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, ८४३८). पार्श्वजिन स्तव-चिंतामणि, उपा. देवकुशल पाठक, सं., पद्य, आदि: नमः देव नागेंद्र; अंति: चिंतामणिः पार्श्वः, ___ श्लोक-७. ४९९९३. (#) सिद्धचक्र चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १८९१, आश्विन शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. १, प्रले.पं. विनयचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१२.५, ७४१९). सिद्धचक्र नमस्कार, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत उदार कांत; अंति: निधि प्रकटै चेतन भूप, गाथा-६. ४९९९४. (+) संविग्नसाधुनियम कुलं, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. वटपल्ली, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १६x६२). संविज्ञसाधुयोग्यनियमकुलक, आ. सोमसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: भुवणिक्कपइवसमं वीरं; अंति: सहला सिवसुहफलं देइ, गाथा-४५. ४९९९५. (#) परंपराबत्रीसी सझाय, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १६४५६). परंपराबत्रीशी, मा.गु., पद्य, आदि: गछवासी छइ गुणभंडार; अंति: जे निरतउ हुइ ते आदरउ, गाथा-३४. ४९९९६. साधुप्रतिक्रमण सूत्र, संपूर्ण, वि. १९४२, पौष शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., (२६४११, १३४३३). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: नमो अ० करेमि; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, सूत्र-२१. ४९९९७. (#) सांतिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८७७, चैत्र शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. कसनगड, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४३७). शांतिजिन स्तवन-सारंगपुरमंडन, आ. गुणसूरि, पुहि., पद्य, आदि: सारदमाय नमुंसीरनामी; अंति: गुणसागर० निसचेइ पावै, गाथा-२१. ४९९९८. (+) स्तवन व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, १०४३२). १.पे. नाम. रोहिणी सज्झाय, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. रोहिणीतप स्तवन, मु. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, वि. १८५९, आदि: हारे मारे वासुपूज; अंति: रोहिणी गुण गाईया, ढाल-६, गाथा-३१. For Private and Personal Use Only Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २११ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ २.पे. नाम. खामणा सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. गुणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम नमुं अरिहतने; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ९ अपूर्ण तक लिखा है.) ४९९९९. (+#) नारचंद्र ज्योतिष, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४४४). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक ३५ अपूर्ण तक है.) ५००००. भयहर स्तोत्र सह अभिप्रायचंद्रिका टीका, संपूर्ण, वि. १५३८, श्रावण कृष्ण, १४, सोमवार, मध्यम, पृ. ३, प्रले. गोपाल महंत, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२५.५४११, २५४४६). नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण पणयसुरगण; अंति: परमपयत्थं फुडं पासं, गाथा-२३. नमिऊण स्तोत्र-अभिप्रायचंद्रिका टीका, आ. जिनप्रभसूरि, सं., गद्य, वि. १३६५, आदि: श्रीपार्श्वस्वामिनं; अंति: मुनीनां प्रभुः, ग्रं. ३००. ५०००२. औपदेशिक सझाय व श्लोक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. मनजी ऋषि; पठ. धनराज; श्रावि. जानबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४११, १०४३०). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-प्रमाद परिहार, मु. मेघराज ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: विनय करीजे रे भवियण; अंति: पभणइ ऋषि मेघराज, गाथा-११. २.पे. नाम. औपदेशिक श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक , प्रा.,सं., पद्य, आदि: देवाविसयपसत्था नेरईय; अंति: मणुयाणं धम्म सामगी, श्लोक-१. ५०००३. जीव अल्पबहुत्व व शीलांगरथ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०१-१००(१ से १००)=१, कुल पे. २, जैदे., (२६४११, २०४१७). १.पे. नाम. जीव अल्पबहुत्व, पृ. १०१अ-१०१आ, संपूर्ण. ९८ बोल-जीवअल्पबहुत्व विषयक, मा.गु., गद्य, आदि: गर्भज मनुष्य सर्वथी; अंति: सिद्धजीव इहा लेवा. २. पे. नाम. शीलांगरथ गाथा, पृ. १०१आ, संपूर्ण. १८ हजार शीलांगादिरथ संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: करणाइ तिन्नि जोगा; अंति: खंति जुयति मुणी वंदे, गाथा-३, (वि. साथ में यंत्र भी दिया गया है.) ५०००४. (+) स्वाध्याय व गीत, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६.५४११.५, १४४४४). १.पे. नाम. घी गुण स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-घृत विषये, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: भवीयण भाव घणो धरी; अंति: लाल० घी नो गुण कह्यो, गाथा-१९. २. पे. नाम. फुहडि गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक गीत-फुहड नारी, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: गण गण हांडी सांभण; अंति: कवियण छांडो रे भाई, गाथा-७. ५०००५. (+) सीमंधरजिन स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-७(१ से ७)=१, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १३४३८). १.पे. नाम. सीमंधरस्वामी स्तवन, पृ. ८अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८६८, आदि: माहावदेक्षेत्र वीराज; अंति: रायचंद० धरी सायो जी, गाथा-११. २.पे. नाम. सीमंधरस्वामी स्तवन, पृ. ८आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सीमंधरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, पुहिं., पद्य, वि. १८३५, आदि: श्रीश्रीमंदर सायब मे; अंति: रायचंद० अरदासो जी, गाथा-११. ५०००६. अणगस व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४१०.५, १२४५०). १.पे. नाम. अणगस गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. माणिक, रा., पद्य, आदि: अणगस करवो कालि बाई; अंति: करवो अणगस वारंवार, गाथा-२४. २. पे. नाम. चंद्रबाहुजिन तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. चंद्रबाहुजिन स्तवन, मु. कल्याणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: हरिनि ते घरि पामीयो; अंति: मन तील पापड थाय रे, गाथा-६. ५०००७. आहार,काय स्थिति द्वार व सझायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्रले.ऋ. खीमजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१०.५, १५४४१). १.पे. नाम. २२ आहार द्वार-सचित्तअचित्त, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: सचित अतित मिश्र त्रण; अंति: भगवंत अणाहारी जाणवा. २. पे. नाम. कायस्थितिद्वार वर्णन, पृ. १अ, संपूर्ण. कायस्थिति २२ द्वार वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: नारकी देवतानइ जेतली; अंति: पण असंख्याती उसपणी. ३. पे. नाम. जीवोत्पत्तिकारण सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: उतपति जोइनइ आपणी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा २ अपूर्ण तक लिखा है.) ४. पे. नाम. नेमराजेमती स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: कपूर होइ अति उज्जलो; अंति: प्रतपो अविचल जोडि रे, गाथा-८. ५०००८. (+) सझाय व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, १९४३९). १. पे. नाम. चंदनबाला सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. मु. जेठा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. चंदनबालासती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: धनि धनि दिन महारे आज; अंति: मन सूद्धे जे गायरे, गाथा-१९. २. पे. नाम. बलदेवमुनि सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण, प्रले. मु. रतनसी, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. सकलमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: बलदेव महामुनि तप तपइ; अंति: सकल मुनि सुखकार, गाथा-८. ३. पे. नाम. शांतजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. शांतिजिन पद, वा. श्रीकरण, मा.गु., पद्य, आदि: एक पसु पारेवा कारणि; अंति: मुझनै दुस्तर तारो रे, गाथा-४. ४. पे. नाम. इंद्रिय सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. ५ इंद्रिय विषयत्याग गीत, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: नागनि चिंतवसे रे; अंति: लावन्यसमय० प्राणी रे, गाथा-८. ५०००९. (+) स्तवन व सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६.५४११.५, २०४५४). १.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथ तुज; अंति: करी सेवका मुझ थापो, गाथा-१०. २. पे. नाम. महावीर स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. मु.खीमजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. महावीरजिन स्तवन, मु. रूपसिंघ, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम दीपे दीपतुंरे; अंति: मोटा श्रीमाहावीर के, गाथा-७. ३. पे. नाम. नेमनाथ सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ www.kobatirth.org २१३ नेमराजिमती सज्झाय, ऋ. भीमजी - शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: रंगमोहोल रलियामणो, अंति: प्रीत करो सहु कोये, गाथा-६. ४. पे नाम, स्थूलीभद्र सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण कोशास्थूलभद्र बारमासो, पं. चतुरविजय, मा.गु, पद्य, आदि: सुडा प्रति कोसा भणि, अंति: चतुरविजय० भाख्यो रे, गाथा - १९८. ५००१०. सझाय व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५X१०.५, १८५०). १. पे नाम. चीत्तसंभुति सज्झाच, पृ. १अ, संपूर्ण. चित्रसंभूति सज्झाय, रा., पद्य, आदि: चीत्र कहइ ब्रह्मराय, अंतिः केनी परे जागइ होक, गाथा-१७. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सांत जिनेसर सोलमा, अंतिः आवागमन निवारे रे, गाथा-१८. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३. पे नाम, जैन कथा, पृ. १आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. जैन कथा - वार्ता - चरित्रादि, पुहिं., प्रा., मा.गु., सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. मात्र प्रारम्भिक पाठ लिखा है.) " ५००११. सझाय व स्तवनचौवीसी, अपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे २, जै. (२६४११.५, १७x४१). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-जीवकाया, पुहिं., पद्य, आदि: तुं मेरा पिय साजणा, अंति: कामनि वीनवे रे लाल, गाथा- ९. २. पे. नाम. स्तवनचौवीसी, पृ. १अ - १आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. मु. प्रेम, मा.गु., पद्य, आदि: मो मन मोह्यो नंदना, अंति: (-), (पू. वि. स्तवन ४ तक है.) ५००१२. सझाय व पद, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, वे., (२५.५x१०.५, १४४४२). १. पे. नाम, शिखामण सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, महमद, मा.गु., पद्य, आदि: कुंभ काचो रे काया; अंति: लेखो साहिब हाथ, गाथा- १२. २. पे. नाम पद संग्रह, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. काव्य / दुहा/कवित्त / पद्य *, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: (-). ५००१३. सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५X११, १५x५४). १. पे नाम, चंदनवाला सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण, प्र. ले. श्लो. (५०६) वादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा. चंदनबालासती सज्झाव, पं. विनयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: कोसंबियापुर नवर, अंतिः विनय तस गुण गाइ रे, गाथा - ९. २. पे नाम, सुकराज प्रस्ताव, पृ. १अ, संपूर्ण, जैन कथा वार्ता चरित्रादि में पुहिं, प्रा. मा.गु. सं., प+ग, आदि (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा 3 " "" अपूर्ण. मात्र प्रारम्भिक पाठ लिखा है.) ३. पे. नाम. धन्नाअणगार सज्झाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. मु. सिंघ, मा.गु., पद्य, आदि: मन वचन काया वसि करी, अंति: संघउ० एहवा साधनूं सरण, गाथा - १५. ५००१४. स्वाध्याय, स्तोत्र, स्तवन व श्लोकादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १७५८, चैत्र शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, ले. स्थल. द्वीपबंदर, पठ. मु. खीमजी ऋषि (गुरु मु. वेलजी ऋषि); गुपि. मु. वेलजी ऋषि (गुरु ऋ. नानजी), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२६.५४११, १६x२९). " १. पे. नाम, देवकीनंदन पट्बांधव स्वाध्याय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण भाई सज्झाय, मु. प्रेम, मा.गु., पद्य, आदि: शील शिरोमणि नेमजिणंद, अंति: कहें पुन्य भलो लोय, गाथा - ११. २. पे. नाम. चंद्रप्रभ स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. चंद्रप्रभजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ चंद्रप्रभ:; अंति: दायिनि मे वरप्रदा, श्लोक - ५. ३. पे नाम, महिनाथ स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण, For Private and Personal Use Only Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २१४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मल्लिजिन जन्मोत्सव स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: मल्लिजिणेसर ध्याउ, अंति: ते सवि सुखीआ थास्ये, गाथा-५. ४. पे. नाम औपदेशिक लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक श्लोक संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: दानं सुपात्रे विशुद्, अंति: चतुर्धा मुनयो वदंति, श्लोक - १. ५००१५. (+) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६. ५x११.५, १२४३४). १. पे. नाम. पंचमीवृद्धि स्तवन, पृ. १, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन- बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीगुरुपाय; अंति: भ भाव प्रशंसीयो, ढाल - ३. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. " "" मु. भाग्यउदय, पुहिं., पद्य, आदि: साचो पारसनाथ कहावै; अंति: भाग्य० कंचन कर दीजे, गाथा-५. ५००१६, () स्तवन संग्रह, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे ३, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. दे. (२६५११.५, १६x४९). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १९०३, फाल्गुन शुक्ल, १०, बुधवार, ले. स्थल. समद्रलि, प्रले. मु. टीकमदास ऋषि, पठ. सा. कसुबा आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य. रा., पद्य, आदि: सीधारथ कुल उपना तसला; अंति: लिधी नइ सुत्रनी साख, गाथा-१९. २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १आ. संपूर्ण. मु. नवलमल, रा., पद्म, वि. १८८१, आदि: सांम सौरीमंदरादेव, अंतिः इकादसी सनेसर वारो, गाथा ८. ३. पे नाम, अजितजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. खुशालचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८६३, आदि: वारी वारी अजितजिणंद, अंतिः खुसाल० सिवपुर वास, गाथा- ७. ५००१९. (#) अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र की टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र. वि. मूल पाठ अंश खंडित है, जैदे., (२७४११. १५४५६). अनुत्तरीपपातिकदशांगसूत्र- टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य वि. १२वी, आदि: अधानुत्तरीपपातिकदशा; अंति (-). ५००२० (9) विविधतप संग्रह, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ३-१ ( २ ) =२ प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५x११.५, १५x५१) तपावली, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: कंठाभरण तपः दिन ३८, तप-५७, (पू. वि. चंद्रायण तप २२ अपूर्ण तक नहीं है.) ५००२१. स्तवन व पद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे. (२५.५X१०, ११४३२-३६). १. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण. मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: अंग उमाहो मुनै अति; अंति: प्रेम घणो जिणचंद रे, गाथा- ७. २. पे. नाम. दादाजी स्तवन, पु. १अ १आ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि गीत, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं, पद्य, आदिः आयो आयो री समरंतो, अंतिः परमानंद सुख पायी री, गाथा - ३. ३. पे. नाम. दादा स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. जिनदत्तसूरि पद, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: दादा चिरंजीवो सेवकजन, अंति: (-), (पू.वि. गाथा ६ अपूर्ण तक है.) ५००२२. सझाय व हरीयाली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५X११.५, १३x४५). १. पे. नाम थुलिभद्र सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण. स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि लाछल वे मात मल्हार, अंति: लीला लखमी घणी जी, गाथा - १७. २. पे. नाम. औपदेशिक हरियाली, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: हरीआली दीसे जाणे ते अंति: जस० अनंत सुख लहस्ये, गाथा- १३. ५००२३. पार्श्वजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. खारीया, प्रले. पं. नगराज, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५x११, १३४३७-४२) For Private and Personal Use Only Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ www.kobatirth.org २१५ पार्श्वजिन स्तोत्र - चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजं बोधिबीजं ददातु श्लोक-११. ५००२४. सझाय व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५X११, १४X५४). १. पे. नाम. गुणस्थानक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. १४ गुणस्थानक सज्झाय, मु. कर्मसागरशिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: पासजिणेसर पत्र नमी, अंतिः करमसागर मनि जिनवर आण, गाथा- १७. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. बुद्धि, मा.गु., पद्य, आदि: जिणचडवीसह पर नमी अतिः बुद्धि० कहइ ते सार, गाथा-११. ३. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह *, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), ग्रं. ३. ५००२५. सझाय व दूहादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., ( २६.५X१०.५, १८x४९). १. पे. नाम. गाथापति सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: वसंतपुर नामा नगर, अंति: पडो तिन धीकार, गाथा- ११. २. पे नाम औपदेशिक दूहा संग्रह, पृ. १अ १आ, संपूर्ण पुहिं., प्रा., मा.गु., पद्य, आदि: सुण अरजन षटकाय मे; अंति: उपजै तुतु चढतां रंग, गाथा - २१. ३. पे. नाम. कवित संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कवित संग्रह *, पुहिं., मा.गु., रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. छोटे-छोटे पदों का संग्रह है.) ५००२६. स्तवन संग्रह व श्लोक, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६.५X११.५, १८X६०). १. पे नाम, शांतिजिन स्तवन, पृ. ९अ. संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन- हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारदमात नमु सिरनामी अंतिः वंछित फल निचे पावि, गाथा - २१. २. पे नाम, शांतिजिनेंद्र स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण शांतिजिन स्तवन- रतनपुरी, मा.गु., पद्य, आदि: रतनपुरी सणगार रे अंतिः सेवकजन आणंद करो, गाथा २५. ३. पे. नाम. जैन दुहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. जैनदुहा संग्रह, प्रा.मा.गु. सं., पद्य, आदि (-); अंति: (-), गाथा-१. ५००२७. अध्यात्म बावनी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, वे., (२५.५x११.५, १०x३५). प्रास्ताविक आत्मबोधक दुहा, पंन्या. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: माया जाल मूकी परि सु, अंति: बावनी करी जाणवु गाथा-५२. ५००२८. (#) उपदेशरत्नमाला व जैनश्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, १५x५१). १. पे नाम, उपदेसरत्नकोश, पृ. १अ १आ, संपूर्ण प्रले. वर्धमान, प्र.ले.पु. सामान्य, उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: उवएसरयणकोसं नासिअ; अंतिः वच्छयले रमइ सच्छाए, गाथा - २५. २. पे नाम, श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, पृ. १आ. संपूर्ण श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा. सं., पद्य, आदि: विरलास्ते साहसिनो, अंतिः मरतं ते केन जानीमहे श्लोक-४. ५००२९. जिनस्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, पठ. मु. मोहन ऋषि (गुरु पं. जेसंघ ऋषि); प्रले. पं. जेसंघ ऋषि (गुरु पं. विणायग ऋषि): गुषि पं. विणायन ऋषि (गुरु पं. रायसंघ ऋषि) पं. रायसंघ ऋषि, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२६.५X१०.५, १२X४०). १. पे. नाम. संभवनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. संभवजिन स्तवन, मु. प्रेम, मा.गु., पद्य, आदि: सुरपति जिम सुख भोगवे, अंति: नामथी पातिक दुर पलाय, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २१६ www.kobatirth.org १५X३४). १. पे. नाम. औपदेशिक गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. २. पे. नाम. नेमनाथ स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. प्रेम, पुहिं., पद्य, आदि उदधिविजयसुत नेम को अंतिः प्रेममुनि० पावर री लो, गाथा- ६. ३. पे नाम, अनंतनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, अनंतजिन स्तवन, मु. प्रेम, मा.गु., पद्य, आदि: सुकलपखि जिम दीपतो रे; अंति: प्रेम० वंछित आस रे, गाथा-५. ५००३०. (४) गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, वे. (२६.५x११.५. पुहिं., पद्य, आदि: पाणी माहि पाषाण वसि अंतिः नउ मिइल लागउ भीतरि गाथा-५. " २. पे. नाम, औपदेशिक गीत, पृ. १अ. संपूर्ण. मु. सेवक, पुहिं., पद्य, आदि: आपके अवगुण ढांकि करि; अंति: तउ भिस्तकु पाईइ, गाथा - ३. ३. पे. नाम औपदेशिक गीत पृ. १ अ १आ, संपूर्ण. मु. सहजसुंदर, पुहिं., पद्य, आदि: एक पंथ विसमा दूरि; अंति: बोलइ तर ते दुतर पार, गाथा- ३. ४. पे. नाम. औपदेशिक गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पुहिं., पद्य, आदि: जीव मोडामोडि न कीजीइ, अंति रही तोरी टेव न जावई, गाथा-३. ५००३१. चौवीसजिन आंतरा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. राधनपूर, प्रले. पं. ज्ञानसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जै.., (२५.५X११.५, १२X३२). २४ जिन आंतरा, मा.गु., गद्य, आदि: २४ श्रीमहावीर २३ अंतिः महावीर तीर्थंकर हवा. ५००३२. गरभावली, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल, चलोडाग्राम, प्रले. मु. प्रेमविजय, प्र. ले. पु. सामान्य, दे. (२६४१२, , ११४३४). ५००३३. साधुवंदना, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., ( २५.५X११.५, १३x४८). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir औपदेशिक सज्झाय- गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदिः उतपत जोज्यो आपणी मन; अंति: इम कहै श्रीसार, गाथा- ७२. गाथा - २९. ५००३४. स्तवन संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे ३, जैवे. (२५.५४११.५, १४४३४). "" साधुवंदना, ग. भक्तिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७३, आदि: वीर जिणेसर प्रणमुं; अंति: भक्तिवि० पभणे निसदिस, १. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शीतलजिन सहजानंदी थयो, अंतिः जिन विजयानंद सभावे, गाथा ५. २. पे. नाम. मल्लिनाथ स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. י मल्लिजिन स्तवन, मु. क्षमाविजय, मा.गु, पद्य, आदि: मल्लि जिनेसर धर्म, अंतिः सुरनरमुनि पुहुत जी, गाथा-८. ३. पे नाम, सुपार्श्वजि स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, पे. वि. प्रतिलेखक ने अंत में सीतलनाथ स्तवन नाम लिखा है. सुपार्श्वजिन स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: देह गेह सोहाविए मन; अंति: खिमाविजय जिन पूरी, गाथा - ६. ५००३५ (+) गणधर ११ एकादशी देववंदन, संपूर्ण वि. १८१८, वैशाख कृष्ण २, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित, जैदे.. (२६.५X११.५, १८X५७). ११ गणधर देववंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: बिरुद धरी सर्वज्ञनुं; अंति: तो शुद्ध समकित लहिये. ५००३६. जुगप्रधान वीजाउद्देशानुं गुरणु, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२६.५X१२, १०x३८). " युगप्रधान आराधनाविधि कोष्टक- बीजाउद्देशा, मा.गु., को, आदि: वयरशेनसूरिने नमः अंतिः करवोने देववंदन करवु. ५००३७. जिनलाभसूरि भास, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे (२५.५x१०, १५X३८). जिनलाभसूरि भास, रूपचंद, रा., पद्य, आदि: देसडलै पधारौ म्हारा; अंति: इहां रहीजीयै हो राज, गाथा - ७. ५००३८. कलावंती सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. सा. अधरश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., ( २६.५x१२, १२X३६). For Private and Personal Use Only Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ कलावतीसती सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नगरि कोसंबिनो राजा; अंति: रूप० आवगमण निवार रे, गाथा-१३. ५००३९. नमस्कार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२७४११.५, ११४२६). सकलाहत स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: श्रीवीरभद्रं दीस, श्लोक-३२. ५००४०. मोहनमुनि गुहूंली, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४१२, ९४३०). मोहनमुनि गहुंली, श्राव. ललु, मा.गु., पद्य, वि. १९५०, आदि: मोहनमुनी ज्ञान गुणे; अंति: दास ललु दिलमां धरजो, गाथा-११. ५००४१. (+) सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, १३४३८). १. पे. नाम. औपदेशिक स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. हंस, मा.गु., पद्य, आदि: सुणि जीव पहलु उपसम; अंति: हंस भणि तरीइ संसार, गाथा-१३. २. पे. नाम. थूलभद्र सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. स्थूलिभद्र सज्झाय, मु. सेवक, मा.गु., पद्य, आदि: चतुर चुमास्युं पडीकम; अंति: नमे सेवक पाय रे, गाथा-८. ५००४२. नेमराजिमती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११, ११४३३). नेमराजिमती सज्झाय, मु.रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीयूजी प्रीयूजी; अंति: रूपविजय० आस्या फली, गाथा-७. ५००४३. (+) भगवती सूत्र स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, १२४३३). भगवतीसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: वंदि प्रणमी प्रेमस्य; अंति: विनयविजय उवझाय रे, गाथा-२०. ५००४४. (+) सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४१०, १०४३०-३३). १.पे. नाम. आत्मा उपर सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. हितोपदेश सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मनडा तुं माहरा सुण; अंति: एक भजे तुं जगदीस रे, गाथा-५. २.पे. नाम. धन्नाशालिभद्र सज्झाय, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. ___ मा.गु., पद्य, आदि: धिन धिन धनाशालिभद्र; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ७ अपूर्ण तक है.) ५००४५. देशांतरी छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. लुणावा, प्रले. मु. दोलतविजय; पठ. पं. राजविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, ११४३९-४२). ___ पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: सुवचन संपो सारदा मया; अंति: स्तव्यो छंद देशांतरी, गाथा-४६. ५००४६. पर्युषण सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२७X१२.५, १२४३६). १. पे. नाम. पर्युषणा स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व सज्झाय, ग. हंस, मा.गु., पद्य, आदि: परव पजुसण आवीयारे; अंति: हंस नमे करजोडिरे, गाथा-११. २. पे. नाम. पर्युषण सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. हीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिख सुणो सखि माहरी; अंति: हिरविजय गुण गाय, गाथा-७. ५००४७. दुहा व पुजाष्टक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४१२, १३४३४). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसंखेश्वर समरता; अंति: सबल ऋद्धि संयोग, गाथा-१. २. पे. नाम. पूजाष्टक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ८ प्रकारी पूजा, मु. देवचंद्र, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७२४, आदि: विमलकेवलभासनभास्कर; अंति: दर्शनसल्लभंते, ढाल-८, श्लोक-८. For Private and Personal Use Only Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५००४८. पच्चक्खाण सूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६.५४१२, १२४३५). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: सुरे उग्गए अब्भत्त; अंति: असित्थेण वा वोसिरामि. ५००४९. (+) स्तवन व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-क्रियापद संकेत-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२५.५४१०.५, ९४३४). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. लब्धिसागर शिष्य, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: जयसि साकर मोदक हे: अंति: नेमेर्मनोवांछितं. श्लोक-१२. २.पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक , प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. ५००५०. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४१०, ११४२८-३३). १.पे. नाम. विमलगिर चैत्रीपूर्णिमा स्तवन, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, वा. साधुकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: साधुकीरति इम कहै, गाथा-१३, (पू.वि. गाथा १० अपूर्ण तक नहीं है.) २.पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. रामदास, पुहिं., पद्य, आदि: प्रभु दरसण पायौ मै; अंति: रामदास० सिखर को राज, गाथा-४. ३. पे. नाम. सिद्धाचलजी स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण.. शत्रुजयतीर्थस्तवन, मु. दयातिलक, रा., पद्य, आदि: कंत भणी कामिणि कहइ; अंति: करस्यां सफल जमवार हो, गाथा-७. ५००५१. (#) विजयसेनसूरि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१०.५, ११४४०-४४). विजयसेनसूरि सज्झाय, मु. विशालसुंदर-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशांतिजिणेसर पय; अंति: विशालसुंदर० पाय रे, गाथा-११. ५००५२. अष्टमी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२६.५४११, १२४३७). अष्टमीतिथि स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हां रे मारा ठांम धरम; अंति: कांति सुख पामै घणू, ढाल-२, गाथा-२४. . ५००५३. (#) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२, १०४२३). १.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. श्रीचंद, पुहि., पद्य, वि. १७२२, आदि: अमल कमल जिम धवल; अंति: जिनचंद० फली सहु आस, गाथा-९. २. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: जिणंदा भगवान दे सफल; अंति: मेरो पायो अचल राज दे, गाथा-२. ५००५४. स्तवन व स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११, १२४४०). १.पे. नाम. विधिगर्भित वीरजिन स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण.. महावीरजिन पूजाविधि स्तवन-दिल्लीमंडन, मु. गुणविमल, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणवीर जिणेशर; अंति: गुणविमल भजौ जगदीस, गाथा-२६. २. पे. नाम. सकलार्हत् स्तोत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलकुशलवल्ली पुष्करा; अंति: (-), श्लोक-१, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम गाथा लिखा है.) ५००५५. (#) उपधानविधि स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. १४२ पेज, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४११, २९x१४). For Private and Personal Use Only Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ २१९ महावीरजिन स्तवन-उपधानतपविधिगर्भित, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: श्रीवीरजिणेसर सुपरी; अंति: विनय० देयो भवई भवई, गाथा-२७. ५००५६. (+#) दश श्रावक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११, १७४४४). १० श्रावकबत्रीसी, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १५५३, आदि: जिन चोवीस करीए; अंति: गछि पभणे नंनसूरि, गाथा-३२. ५००५७. असज्झाय विवरण स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२६.५४१२, १०४२४). असज्झाय सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: पवयण देवी समरी मात; अंति: सिवलच्छी ते वरे, गाथा-१६. ५००५९. सीखामण ६३ बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, अन्य. सा. जेठीबाई आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५-२६.६४११.५, १२४३३). औपदेशिक ६३ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: शिष्ये पूछयो गुरुने; अंति: प्रसंसवा जोग जाणवा. ५००६०. सज्झाय, प्रहेलिका व हरियाली संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ६, प्रले. मु. जेठाऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१२, १५४२९). १.पे. नाम. नंदीसूत्र मंगलपाठ, पृ. १आ, संपूर्ण. नंदीसूत्र-मंगल गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: जए भदं दमसंघसूरस्स, गाथा-१०. २. पे. नाम. इलाची साधु स्वाध्याय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. इलाचीकुमार सज्झाय, मु. कीर्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नामे एलापुत्र जाणीए; अंति: कीर्तिविजय गुण गाय, गाथा-९. ३. पे. नाम. घंटाकर्ण स्तोत्र, पृ. २अ, संपूर्ण. घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो भगवते; अंति: नमोस्तु ते स्वाहा, श्लोक-४. ४. पे. नाम. अइमंता स्वाध्याय, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. अइमुत्तामुनि सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंद वांदीनई; अंति: लक्ष्मीरत्न० अणगार, गाथा-१९. ५. पे. नाम. प्रहेलिका संग्रह, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: वारि मध्ये न जानासि; अंति: न जीव विश्वजीवकः, गाथा-४. ६.पे. नाम. औपदेशिक हरियाली, पृ. ३आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: चतुर विचारो ए हरियाल; अंति: करो दिन राति जी, गाथा-४. ५००६१. (#) आलोयणा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. सिंधाणा, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११.५, १५४५२). आलोयणा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: प्रथम मुहूर्तं; अंति: षडावश्यक अकरणे उपवास. ५००६२. (#) स्तोत्र व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, दे., (२६४१२, १३४३०). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: स्यामावरण विराजतोपि; अंति: सुखी भवति निश्चितं, श्लोक-९. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-फलवर्द्धि, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., पद्य, आदि: ॐ मम हरो ज्वरं मम; अंति: जिणदत्ताणा० पासजिणो, गाथा-३. ३. पे. नाम. वीर स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण.. महावीरजिन स्तव, प्रा., पद्य, आदि: जयइ नवनलिन कुवलय; अंति: दिसउ खयं सव्वदुरिआणं, गाथा-६. For Private and Personal Use Only Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५००६४. (#) महावीरजिन जन्मोत्सव वर्णन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२६४११, १३४४२). महावीरजिन जन्मोत्सव वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: बारमइ दिवसे आपणां; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., वस्त्रनाम वर्णन अपूर्ण तक है.) ५००६५. नवकार रास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. कुल ग्रं. ५२, दे., (२६४१२, १२४३८). नमस्कार महामंत्र रास, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामनी द्यो; अंति: रास भ[सर्व साधुनो, गाथा-२५. ५००६६. (#) षोडस विद्यादेवी विचार, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ११४५५). १६ विद्यादेवी वर्णन, सं., पद्य, आदि: रोहिणी श्वेतवर्णा; अंति: मंडित चतुर्भुजा, श्लोक-१६. ५००६७. (#) स्वप्न विचार चउपई, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११, १७४६८). स्वप्न चौपाई, मु. सिंघकुल, मा.गु., पद्य, वि. १५६०, आदि: पहिलउ मनि जोईकरी गुर; अंति: सिंघकुल इण परि कहइ, गाथा-४२. ५००६९. (+#) पद्मावतीस्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १२४३५). पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंति: तस्य पद्मावती स्वयं, श्लोक-३१, (वि. विधि सहित.) ५००७१. (+#) स्नातस्या स्तुति सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. राजनगर, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२-१५.०,१५४३३-३६). पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. पाक्षिक स्तुति-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: स श्रीवर्द्धमानो जिन; अंति: दिशै पूरतौ थिको छे. ५००७२. मृगापुत्र सज्झाय व नवकार स्तवन, संपूर्ण, वि. १९१३, पौष शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. मांडवीबंदर, प्रले. मु. मेघराज (गुरु मु. सामीजी ऋषि); गुपि. मु. सामीजी ऋषि (गुरु ऋ. नथमल); ऋ. नथमल (गुरु मु. जसराज ऋषि); मु. जसराज ऋषि; अन्य. सा. पांची बाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१२, १४४४०). १. पे. नाम. मृगापुत्र सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी पास जिणंदने; अंति: पोता मुगति मुजार रे, ढाल-२, गाथा-३४. २. पे. नाम. नवकार स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र स्तोत्र, मु. पद्मराज, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनवकार जपो मनरंग; अंति: पदमराज० अपार रे माइ, गाथा-९. ५००७३. (#) स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ६, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२, १५४४०-५६). १. पे. नाम. चोवीसजिन पांच बोल स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिणेसर प्रणम; अंति: कमल साध प्रणमै आणंद, गाथा-२९. २. पे. नाम. ज्ञानपच्चीसी, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: सुरनर त्रिजग जोनि; अंति: बनारसी० करम को हेत, गाथा-२५. ३.पे. नाम. चिंतामणी पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सुद्धे मन आणि आसता; अंति: समयसुंदर० सुख भरपुर, गाथा-७. ४. पे. नाम. नवकारजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ www.kobatirth.org २२१ नमस्कार महामंत्र सज्झाव, मु. प्रभुसुंदर शिष्य, मा.गु., पद्य, आदिः सुखकारण भविवण समरो, अंति: गुणप्रभु० सीस रसाल, गाथा- १४, (वि. प्रतिलेखक ने एक गाथा को दो गाथा गिना है.) ५. पे. नाम. रांणपुर सज्झाच, पृ. ३-४अ संपूर्ण. आदिजिन स्तवन- राणकपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: राणपुरो रलीयामणी रे, अंति: लाल समयसुंदर सुखकार, गाथा- ७. ६. .पे. नाम. धन्ना सज्झाय, पृ. ४-४आ, संपूर्ण. धन्ना अणगार सज्झाय, मु. ठाकुरसी, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवाणी रे धना अमीय, अंति: गाया हो मन में गहगही, गाथा - २०. ५००७४. छमासीतपचितवन विधि, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे. (२६.५४१२, १९४४२). छमासीतपचितवन विधि, मा.गु., गद्य, आदि: अरे जीव कौशांबीनगरीड़, अंतिः घरी काउसग्णि पारीयइ. ५००७५. मल्लिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. "प्रति पृष्ठ ५ पैसा शुद्धिकरण का कीमत " ऐसा उल्लेख दिया गया है., दे.. (२६१२, ११४३० ). मल्लिजिन स्तवन, आ. बुद्धिसागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. २०बी, आदि: मल्लिजिन लाग्धुं अंति: अनुभवसुखनी क्वारी रे, गाथा-८. ५००७६. आंबेलओली सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे. (२६४१२, १०३४). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नवपद महिमा सज्झाच, मु. विमलविजय, मा.गु., पद्य, आदिः सरसति माता मया करी, अंतिः विमल० नामे आणंदोरे, गाथा - ११. ५००७७. (+१) आदिजिन स्तवन सह अवचूरि व पार्श्वजिन नमस्कार, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें पंचपाठ, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैवे. (२६.५४११, १८४५०-५५). १. पे. नाम ऋषभमहादेवाधिदेव स्तवन सह अवचूरि. पू. १अ १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तव - षड्भाषामय, आ. जिनप्रभसूरि, अप., पै., प्रा., माग. शौ., सं., पद्य, आदि: निरवधिरुचिरज्ञानं, अंतिः सिंह सोभीष्टलक्ष्मी, लोक-४०. आदिजिन स्तव-षड्भाषामय - अवचूरि, पं. मतिविजय, सं., गद्य, आदि: ज्ञानातिशयः अपायापगम; अंति: लक्ष्मी को भवति, २. पे नाम, पार्श्वनाथ नमस्कार, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: कल्याणोदय पुष्प, अंति: पार्श्वकल्पद्रुमः, श्लोक १. ५००७८. (4) पार्श्वनाथ स्तवन- घृतकलोल, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२६११, १४X३६). स्याही फैल गयी है, जैवे. (२७४१२, १०४३३-४५) " १. पे. नाम. उपदेशी सज्झाय, प्र. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- घृतकलोल, मु. तिलकहंस, मा.गु., पद्य, वि. १८७४, आदि: परमगुरु जिनराजने जाण; अंति: तिलकहंस गुण गाया रे, गाथा - ११. ५००७९ (१) उपदेशी सज्झाय व आदिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २- १ ( २ ) = १, कुलपे २ प्र. वि. अक्षरों की अभव्य सज्झाय, मु. उदय, मा.गु., पद्य, आदिः उपदेश न लागे अभव्यने; अंति: उदय० उतमसंग निदान रे, गाथा- ७. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीऋषभनुं अंतिः (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाथा २ अपूर्ण तक लिखा है.) ५००८०. अजितनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, जैवे. (२७४११.५, ११४२६). " " For Private and Personal Use Only अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि; अजिअं जिअसव्वभवं संत अंतिः जिणवयणे आवरं कुणह गाथा ४०. Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५००८१. बीज स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२७४१२, १०४३८). बीजतिथि स्तुति, मु. वीरसागर, मा.गु., पद्य, आदि: पुरवदिसि उतरदिसि वचम; अंति: वीरसागर० रसाली जी, गाथा-४. ५००८२. मौनइग्यारस गणणु व इग्यारह गणधर नाम, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, दे., (२६.५४१२, १२४१८-२९). १.पे. नाम. मौनएकादशीपर्व गणj, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. सं., को., आदि: (१)जंबूद्वीपे भरते, (२)श्रीमहायशः सर्वज्ञाय; अंति: अरण्यनाथनाथाय नमः. २. पे. नाम. ग्यारहगणधर नाम, पृ. ४आ, संपूर्ण. ११ गणधर नाम, मा.गु., गद्य, आदि: इंद्रभूति१ वायुभूति२; अंति: श्रीप्रभासजी११. ५००८३. चंदनबाला सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. सहसपुरा, प्रले. मु. मोतीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७४१२.५, १२४२९). चंदनबालासती गीत, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कोसंबी नयरी पधारीया; अंति: लबधिवजे०जावां सतगुरु, गाथा-३३. ५००८४. गौतम एकादशी थोय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, अन्य. सा. विवेकश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. विद्वान का नाम पेन्सिल से लिखा हुआ है., दे., (२६.५४११.५, १०४३०). मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गोतम बोले ग्रंथ; अंति: लालविजय० विघन नीवार, गाथा-४. ५००८५. शेजय तीर्थ कल्प, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. दरीआपुर, प्रले. जीवणसींग, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. ३२, दे., (२६.५४१२, १०४३०). शQजयतीर्थ लघुकल्प, प्रा., पद्य, आदि: अइमुत्तयकेवलिणि कहीअ; अंति: लहइ सेत्तुंजजत्तफलं, गाथा-२५. ५००८६. सरस्वती अष्टक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४११.५, १०४३६). सरस्वतीदेवी छंद, आ. दयासूरि, मा.गु., पद्य, आदि: बुद्धि विमलकरणी विबु; अंति: दयासूर० नमेवि जगपति, गाथा-१०. ५००८८. (+) थूलीभद्र सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्राव. गोपाल मगन भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६.५४११.५, १०४३९). स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीस्थूलिभद्र मुनि; अंति: रीखव० कीजीओ जो, गाथा-१७. ५००८९. श्रीमंधरस्वामि स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, १३४३८). सीमंधरजिन स्तुति, मु. देवचंद्रजी, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुनाथ तुं तियलोक; अंति: देवचंद्र० रस सुखपीन, गाथा-२१. ५००९०. पंचतीरथमाला स्तवन, संपूर्ण, वि. १८३०, कार्तिक शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, १२४३७). ५ तीर्थजिन स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: आदिए आदिए आदिजिनेसरु; अंति: मुनि लावण्यसमय भणे ए, गाथा-११. ५००९१. मेवाडदेश वर्णन छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, दे., (२६.५४१२, १२४४०). मेवाडदेश वर्णन छंद, रा., पद्य, आदि: प्रणमुहं गुरुपद सद; अंति: घर घर पद पलीता, गाथा-४५. ५००९२. (-#) चेतन स्वरूप व देववंदन विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. मूल पाठ का अंश खडित है, दे., (२६४१२, १५४३२-४३). १.पे. नाम. चेतन स्वरुप, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आत्मा के ६५ गुण, मा.गु., गद्य, आदि: असंख्यात प्रदेशी; अंति: सकल सिद्धता करे. २. पे. नाम. देववंदन विधि, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावही; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., जयवियराय पाठ तक लिखा ५००९३. अष्टमी स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६४१२, ९४२३). For Private and Personal Use Only Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ www.kobatirth.org २२३ अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, पं. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चैत्री विदि आठम दिने; अंति: खीमाविजेय० ग्यानअनंत, गाथा - १४. ५००९४. वीरजिन स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. गोविंददास साधु, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२६.५x१२.५, ११x२९). महावीरजिन जन्मकुंडली स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु, पद्य, वि. १९वी आदिः सेवधी संचड घेरियां अंतिः शुभवीर प्रभु मेहरसे, गाथा - १०. ५००९५. साधारणजिन चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., ( २६.५X१२, ११३१). १. पे. नाम. साधारणजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ संपूर्ण , साधारणजिन स्तवन, मु. चिदानंदजी, मा.गु, पद्य, आदिः परमेसर परमातमा पावन; अंतिः चिदानंद सुख थाय, गाथा - १. २. पे. नाम. साधारणजिन चैत्यवंदन, पृ. १ अ. संपूर्ण. मु. चिदानंदजी, मा.गु, पद्य वि. २०वी, आदि: निजपूपे शिवधान के अंतिः यानथी राम कहे सुखपूर, गाथा- १. ३. पे. नाम. साधारणजिन चैत्यवंदन. पू. १अ १आ, संपूर्ण. मु. चिदानंदजी, मा.गु., पद्य, आदि: मन मोह्यं प्रभु गुण; अंति: रामधारी नय परमाणमा, गाथा-५. ५००९६. नेमनाथ सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., ( २६.५X१२.५, ११X३३). नेमिजिन सज्झाय, मु. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: नगरि द्वारिका नेमि; अंति: रिषभ० जिवो हो प्रभुजी, गाथा - १०. ५००९७. पार्श्वनाथ शांमलाजी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२६.५४११.५, ९३०). " पार्श्वजिन स्तवन- शामला, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सामल पार्श्वजिनेश्वर, अंति: कहे मोहन पूरो आश, गाथा-८. ५००१८ सीमंधरजिन चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२७४१२, ९४२४). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सीमंधरजिन चैत्यवंदन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीसीमंधर परमातमा, अंति: जस० वांछित फल लीद्ध, गाथा- ९. ५००९९ समोसरण स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे. (२७४१२.५, १०X३० ). " महावीरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिसलानंदन बंदिई अंतिः जसविजय० पद सेवा खात, गाथा १७. ५०१०० (+) पुण्य कुलक सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १८२९ वैशाख कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. १. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५X११.५, ८४५०). पुण्यपाप कुलक, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी आदि भविवजण महिय मोहे, अंतिः जिनकसीहमी ० उजमह, गाथा १८, संपूर्ण. पुण्यपाप कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: उद्यम करवइ भाव सहित, (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ३ तक का टबार्थ नहीं लिखा गया है.) ५०१०१. वृहन्नमस्कार, यंत्रविधि व स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., ( २६.५X१२, १४X३५). १. पे. नाम. वृहन्नमस्कार, पृ. १अ, संपूर्ण. वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः ॐ परमेष्ठि, अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक ८. २. पे. नाम. पंनरीयायंत्र विधि, पू. १अ संपूर्ण. पंद्रहियायंत्र निर्माण विधि, मा.गु. सं., गद्य, आदि: चिंतामणि विधि; अंति: प्राच्यां च मारुते. ३. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रंग, मा.गु., पद्य, आदि: समरी सदगुरु पायने रे; अंतिः वधामणा रे उच्छवना, गाथा-२. ५०१०२. शेत्रुंजय स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., ( २६.५X११.५, ७३३). शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: पालिताणो रलियामणो; अंति: हीरविजय गुण गायउ, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५०१०३. भगवतीसूत्र-उदायणराय कहा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२७४११, ११४३८). भगवतीसूत्र-उदायणराय कहा, हिस्सा, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० सिंधु; अंति: सेबंभंतेसेत्ति. ५०१०४. (+) संखेश्वरजीनो छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१०.५, १३४३२). पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, ग. कुंअरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्र उठी प्रणमुपास म; अंति: कुंअरवि० शिष्य गुणया, गाथा-११. ५०१०५. आचारोपदेश-अष्टप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२७४११.५, १५४४०). अष्टप्रकारीपूजा काव्य, सं., पद्य, आदि: तीर्थोदकै(तमलैरमल; अंति: चिरात्तलते शिवेपि, श्लोक-९. ५०१०६. (+#) त्रिंशद्धरिशब्दगर्भित स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४११.५, ११४४४). वीतराग स्तव-हरिशब्दार्थगर्भित, पं. विवेकसागर गणि, सं., पद्य, वि. १५वी, आदि: इंद्रेभास्वशुकप्तव; अंति: विवेकसागरं त्वम्, श्लोक-१०. ५०१०७. (+#) राज्यमान स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०, १३४३३-४०). हीरविजयसूरिसज्झाय, मु. आनंदहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: गोयम गणहर पाय नमिजी; अंति: आणंदहरख जयकार, गाथा-१५. ५०१०८. वीरस्तुति, वीसस्थानकतप गाथा व अध्ययन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, जैदे., (२६४११.५, १५४५१). १. पे. नाम. वीरस्तुतीनाम अध्ययन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण; अंति: आगमीस्सति त्तिबेमि, गाथा-२९. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पंचमहव्वयसुव्वयमूलं; अंति: मोखपदस्स छंडिसंगभूयं, गाथा-३. ३. पे. नाम. वीसस्थानक तप गाथा, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. २० स्थानकतप गाथा, प्रा., पद्य, आदि: अरहत सिद्ध पव्वयणे; अंति: तित्थयरत्तं लहइ जीवो, गाथा-३. ४. पे. नाम. दुम्मपुस्फिय अज्झयणं, पृ. २आ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा द्रुमपुष्पिका प्रथम अध्ययन, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: धम्मो मंगल मुक्किट्ठ; अंति: साहुणो तिब्बेमि, गाथा-५. ५०१०९. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६४१२,१५४५४). १. पे. नाम. स्वारथपचीसी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सगपण व्यवहारपच्चीसी, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८६३, आदि: श्रीअरिहंत सिध आचारज; अंति: ऋष लालचंदजी० के माही, गाथा-२५. २. पे. नाम. धर्मरूचि अणगार सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. धर्मरुचिअणगार सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: धर्मरुचि मुनिवर भणी; अंति: चोथमल० धरमरुचि अनगार, गाथा-९. ५०११०. जगत्कर्तृनिरास स्तव, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०.५, ८४३६-४०). वीतराग स्तोत्र-सप्तम प्रकाश, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: धर्माधर्मों विना; अंति: येषां नाथ प्रसीदसि, श्लोक-८. वीतराग स्तोत्र-प्रकाश-७-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: धर्म अधर्म विना अंग; अंति: महिरवान हुई. ५०१११. (+) रहनेमी सिझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४११.५, १०x४३). रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: काउसग ध्याने मुनि; अंति: रूपविजय० देह रे, गाथा-८. ८. For Private and Personal Use Only Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ २२५ ५०११२. नेमराजुल बारमासा, संपूर्ण, वि. १८८५, आषाढ़ शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. वडोत, जैदे., (२५.५४११.५, २३४४०). नेमराजिमती बारमासो, मु. लालविनोद, पुहि., पद्य, आदि: विनवै उग्रसेण की लाड; अंति: लालविनोदानै० सुनाए, गाथा-२६. ५०११३. (4) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२६.५४१२.५, १५४४६). १.पे. नाम. अभयकुमारमंत्री सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवीरजिणंद समोसर्य; अंति: बसे सीतलराजसौं अंगो, गाथा-१८. २. पे. नाम. नोबाड सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. नववाड सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: अस्त्रीपसु पिंडकतणा; अंति: जो ले गइ हो ततकाल, गाथा-९. ५०११४. विविध तप कोष्ठक, संपूर्ण, वि. १८५०, मार्गशीर्ष कृष्ण, ७, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. धवलापुरग्राम, प्रले. मु. देवजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२, ९-११४४०-४६). विविधतप यंत्र संग्रह, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-), (वि. इंद्रियजय, कषायजय आदि ७ तपों के कोष्ठक दिए गए ५०११५. वैराग्यबावनी, संपूर्ण, वि. १६५३, मध्यम, पृ. २, प्रले. ग. लब्धिविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १५४४९). वैराग्यबावनी, मा.गु., पद्य, आदि: सुगति कुगति हुइ; अंति: बिंदुआ वइरागी अधार, गाथा-६०. ५०११६. (+) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १७१८, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. पत्तन नगर, प्रले. अंबादत्त काशीदास मोढ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६४११, १८४६१). १. पे. नाम. पूर्वदिशिचैत्य प्रवाडि स्तवन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण, वि. १७१८, पौष शुक्ल, १३, सोमवार, ले.स्थल. पत्तन नगर. तीर्थमाला स्तवन, ग. दयाकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १६४८, आदि: पहिलुं प्रणमुंभाव; अंति: आणी नितनित समरूं तेह, गाथा-४८. २. पे. नाम. समोसरण स्तवन, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण, वि. १७१८, पौष कृष्ण, १०, रविवार, ले.स्थल. पत्तन नगर. नेमिजिन स्तवन-समवसरणविचारगर्भित, मु. सोमसुंदरसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: जायवकुल सिणगार सिरि; अंति: सोमसुंदरसू० ते लहय ए, कडी-३६. ५०११७. (#) चंद्रलेहा चौपाई व चंद्रनरेश ढाल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, टिप्पणक का अंश नष्ट, दे., (२६४१२, २०४५१). १. पे. नाम. चंद्रलेहा चौपाई-ढाल २७, पृ. १अ, संपूर्ण. चंद्रलेखा रास, मु. मतिकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदिः (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. मात्र ढाल २७ लिखा __ है., वि. प्रतिलेखक ने ढाल पूर्ण होने के बाद २६वीं ढाल के दोहे लिखे हैं.) २. पे. नाम. चंदनरेश ढाल-ढाल-३२, पृ. १आ, संपूर्ण. चंद्रराजा रास, मु. विद्यारुचि, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. ढाल ३२वां मात्र लिखा ५०११८. अंतरीकपार्श्व छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२६४११.५, १४५५). पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, पं. भावविजय वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मात मया करी; अंति: भावविजय० जै जैकरण, गाथा-५१. ५०११९. वीसस्थानक तपविधि व नित्यक्रियाविधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२७४११.५, १२४४१). १. पे. नाम. थानक तपपेसवानो विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २० स्थानकतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: प्रथम इरियावहि; अंति: राइउंखामुई. २.पे. नाम. नित्यक्रियानो विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची तपउच्चारणविधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम ठावणी मांडवी; अंति: अभिंतर राइअंखामुं. ५०१२०. (#) चतुर्विंशतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पठ. श्रावि. रमा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ११४३२). २४ जिन स्तुति, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: जिनर्षभ प्रीणितभव्य; अंति: जिनप्रभ०लक्ष्मीश्वरा, श्लोक-८. ५०१२१. सिद्ध दंडिका, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२६.५४१२, १२४२६-३६). सिद्धदंडिका स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जं उसह केवलाओ; अंति: दिआदितु सिद्धि सुहं, गाथा-१३. ५०१२२. (+#) कर्मग्रंथ-१ कर्मविपाक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७४१२, १२४३८). कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ देविंदसूरिहिं, गाथा-६०. ५०१२३. नेम स्तवन व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १७८३, फाल्गुन शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६४११.५, १५४५८). १.पे. नाम. नेम स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमराजिमती संवाद, मु. ऋद्धिहर्ष, रा., पद्य, आदि: हठ करी हरीय मनावीयै; अंति: ऋद्धिहरख० दातार रे, गाथा-३१. २.पे. नाम. औपदेशिक श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह ,प्रा.,सं., पद्य, आदि: विशाखांते गता मेघा; अंति: धर्म याचना गत गौरव, श्लोक-१. ३. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. दोहा संग्रह, पुहिं., पद्य, आदि: सजन ऐसा कीजीये जैसा; अंति: ठरै सुख उपजे सताब, दोहा-१. ५०१२४. (+#) लोकनालिद्वात्रिंशिका व सिद्धपंचाशिका, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ३१४४१-७५). १.पे. नाम. लोकनालि द्वात्रिंशिका सह अवचूरि, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि,प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: जिणदंसण विणा जंलोअं; अंति: जहा भमह न इह भिसं, गाथा-३२. लोकनालिद्वात्रिंशिका-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: जिणहंस वइसाह प्रसारि; अंति: ज्ञात्वेति भावार्थः. २.पे. नाम. सिद्धपंचाशिका सह अवचूरि, पृ. २अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सिद्धपंचाशिका प्रकरण, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिद्धं सिद्धत्थसुअं; अंति: लिहियं देविंदसूरिहिं, गाथा-५०, संपूर्ण. सिद्धपंचाशिका प्रकरण-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: सिद्धं निष्ठितार्थं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. गाथा ४८ अपूर्ण तक की अवचूरि है.) ५०१२५. स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८४४, मार्गशीर्ष कृष्ण, ७, शनिवार, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२६४११, ११४३४-३८). १.पे. नाम. पांच पांडव सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ५ पांडव सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: हस्तिनागपुर अति भलो; अंति: मुज आवागमण निवार रे, गाथा-१९. २.पे. नाम. राजीमती सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: कपुर होवै अति उजलो; अंति: सोमविमल०एहनी जोडिरे, गाथा-८. ३. पे. नाम. अभिनंदनजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: तु करुणारस सिंधु; अंति: रामविजय०जिनपति मनरली, गाथा-१०. For Private and Personal Use Only Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ५०१२६. भूतबलि मंत्र व नवग्रह स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. प्रतिलेखक ने प्रतिलेखन वर्ष में मात्र १८ लिखा है. परंतु प्रत २०वीं का प्रतीत होता है., दे., (२६४१२, १२४३४). १. पे. नाम. भूतबलिमंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण.. भूतबलि मंत्र, प्रा., गद्य, आदि: ॐ नमो अरिहंताणं; अंति: भवंतु स्वाहा १०८. २. पे. नाम. मंत्रगर्भित नवग्रह स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नवग्रह स्तोत्र-मंत्रगर्भित, आ. भद्रबाहस्वामी, सं., पद्य, आदि: (१)ॐ ह्रींसांशुकः, (२)पद्मप्रभजिनेंद्रस्य; अंति: (१)राहतनवे केतवे नमः, (२)केतोशांतिश्रियं गुरु, श्लोक-१०. ५०१२७. चेतनकर्म चरित्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६.५४१२, ९४४१). चेतन वृतांत, श्राव. भगवतीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७३६, आदि: श्रीजिनचरण प्रणाम; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ९ तक लिखा है.) ५०१२९. सर्वार्थसिद्धविमान सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६४११.५, १२४३६). सर्वार्थसिद्धविमान सज्झाय, मु. भाग्यसागर, मा.गु., पद्य, आदि: जगदानंदन गुणनीलो रे; अंति: भागसागर सहु आसो रे, गाथा-१६. ५०१३०. (+#) स्तवन संग्रह व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १४४३२-३५). १.पे. नाम. सीमंधर स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन विनती स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीसीमंधर जिनवर; अंति: देवचंद्र पद पावेरे, गाथा-९. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-सम्यक्त्वगर्भित, मु. क्षमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समकित द्वार गभारे; अंति: खीमाविजय० __ आगत रीत रे, गाथा-६. ३. पे. नाम. निद्यानी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-निंदात्यागविषये, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: निंद्याम करज्यो कोइ; अंति: समयसुंदर सुखकार रे, गाथा-५. ५०१३१. (-#) नालंदापाडा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अवाच्य. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १४४३८-४४). नालंदापाडा सज्झाय, मु. हरखविजय, मा.गु., पद्य, वि. १५४४, आदि: मगध देसमाहे वीराजे; अंति: हरखविजय० परकासोजी, गाथा-२१. ५०१३२. नेमिराजिमती बारमासो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. दसरथपूर, प्रले. श्राव. कल्याणचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४११,११-१३४३०-३४). नेमराजिमती बारमासो, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावणमासे शाम मेहली; अंति: एह नवनिध पामिरे, ___गाथा-२६, (वि. प्रतिलेखक ने १ गाथा को २ गाथा गिना है.) ५०१३३. (+#) गौतम रास, गणधर स्तुति व जकडी, संपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. १, कुल पे. ३, पठ. सिंदूरो, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४४५). १. पे. नाम. गौतम रास, पृ. १अ, संपूर्ण. ___गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीरजिणेसर केरउ सीस; अंति: लावन्यसमइ०संपति कोडि, गाथा-९. २. पे. नाम. चौदह सौ बावन गणधर स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. १४५२ गणधर स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: पुंडरिक गोयम पमुह; अंति: चवदैसै बावन्न, गाथा-१. ३. पे. नाम. जिनचंद्रसूरि झकडी, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जिनचंद्रसूरि जकडी, वा. कनकसोम, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवदन निवासिनी; अंति: कनकसोमगुरु चिर जयउ, गाथा-४. ५०१३४. गुरु सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. प्रतिलेखक ने सत्रहवीं सदी की लेखन शैली की नकल की है.. दे.. (२६४११.५, ९४३१). मुनिशिक्षा स्वाध्याय, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, आदि: शांति सुधारस कुंडमा; अंति: सुख चित्त पूर रे, गाथा-२०. ५०१३५. (+#) दशारणभद्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, अन्य. मु. वेलजी ऋषि (गुरु मु. नानजी ऋषि, लुंकागच्छ); गुपि.मु. नानजी ऋषि (गुरु मु. जसराज ऋषि, लुंकागच्छ); मु. जसराज ऋषि (गुरु मु. धर्मसिंह, लुंकागच्छ); मु. धर्मसिंह (गुरु मु. सिद्धराज ऋषि, लुंकागच्छ); मु. सिद्धराज ऋषि (गुरु मु. हाथी ऋषि, लुंकागच्छ); मु. हाथी ऋषि (लुकागच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१०.५, १५४४८). दशार्णभद्र सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सारद बुधदिओ सेवकनि; अंति: शुभविजे नीस दीस, गाथा-१४. ५०१३६. (-#) स्तोत्र व स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२, ११४२९). १. पे. नाम. सरस्वती स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी महास्तोत्र, सं., पद्य, आदि: देवी सरस्वति नमू; अंति: सर्वसिद्धि फलप्रदं, श्लोक-१२. २. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, पुहिं., पद्य, आदि: ब्रह्मा नामधारी कहे; अंति: सुरत की बकबानी जी, गाथा-३. ५०१३७. (#) मेघकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १, पठ. मिठूरामजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, ११४४१). मेघकुमार सज्झाय, मु. पुनो, रा., पद्य, आदि: वीरजिणंद समोसर्या जी; अंति: पामै भवपार स्वामीजी, गाथा-२०. ५०१३८. (+#) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २.प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखा है.. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४१२, १३४३८). १. पे. नाम. साधारणजिन विनती, पृ. १अ, संपूर्ण. साधारणजिन पूजास्तवन, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जिनचरणां मेरो चित; अंति: लालचंद० गमण निवार, गाथा-१२. २. पे. नाम. शीतलनाथ पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शीतलजिन स्तवन, ग. फतेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: घडी एक ढोलीयेने घडी; अंति: फतेंद्रसागरजगीसै रे, गाथा-८. ५०१३९. (#) चैत्यवंदन, स्तुति, स्तवन वपद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ८, प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखा है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १६४३१). १. पे. नाम. सीमंधरजीनो चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: अहि कलिलोका लोका; अंति: सीमंधर जगपति जयति, गाथा-१. २. पे. नाम. सीमंधरजीनी थुई, पृ. १अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधरस्वामी मोटा; अंति: विघ्न हरे तत्काल, गाथा-१. ३. पे. नाम. सेत्तुंजानो चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: शत्रुजय सिद्ध; अंति: श्रीऋषभ जिनेसर राय, गाथा-२. ४. पे. नाम. से@जय स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. कांतिविजयजी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीयो सिद्धाचल; अंति: करी विमलाचल गायो, गाथा-५. ५. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ २२९ क. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुण चंदाजी श्रीमिदर; अंति: पद्मविजे०मुख अतिनूरो, गाथा-६. ६. पे. नाम. निद्रात्याग पद, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-निद्रात्याग, भरथरी, पुहिं., पद्य, आदि: जिहा पर जावो है वेरण; अंति: भरथरी० को नाम नहीं, गाथा-३. ७. पे. नाम. पंचमीतिथि पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनेमिसर प्रमी करि; अंति: पामे सिद्धपद द्वार, गाथा-५. ८. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. फकीरचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मेरो मन लागी रह्यो; अंति: चंद फकीर गुण गाय, गाथा-४. ५०१४०. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४११.५, १५४३८). १.पे. नाम. जोबन अस्थिरनी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रभात सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: जोवनियारी मौजौ फौजौ; अंति: केहसूं आपण वीती रे, गाथा-६. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. मु. गोरधन ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: मनरे तू जीवनै समजाय; अंति: गोरधन० भव मै सुख पाय, गाथा-१२. ५०१४१. स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४११.५, १०x४६). १.पे. नाम. गुणस्थान स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. गुणस्थानक स्तुति, मु. मेघविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पहेलुं मिथ्यात्व; अंति: इम मेघविजय वरदाइ जी, गाथा-४. २. पे. नाम. पांचमीनी स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीतीर्थंकर वीर; अंति: विजयलक्ष्मीसूरि पावे, गाथा-४. ५०१४२. (+) कका स्वाध्याय व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १७४५०). १. पे. नाम. कका स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ककाबत्रीसी, मु. जिनवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: कका करमनी वात करी; अंति: जीवऋषई इम वीनवे, गाथा-३३. २. पे. नाम. श्रुतदेवी स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: कमलदल विपुलनयना कमल; अंति: मे विस्तरां गिरा, श्लोक-१. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-ब्राह्मणवाड, पुहिं., पद्य, आदि: पारसनाथ के नाम से सब; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम गाथा लिखा है.) ५०१४३. नेमि स्तुति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४१०.५, ५४३७-४२). ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीनेमीनाथ पंच रूपे; अंति: सोपयोगी हूंती. ५०१४४. (+) महावीर स्तवन सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१०, २४४६४-७२). महावीरजिन स्तव-बृहत्, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, आदि: जयज्जा समणे भयवं; अंति: सत्तुमित्तेसु वा वि, गाथा-२१. महावीरजिन स्तव-बृहत-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जय क० जय कहता कल्याण; अंति: होइ अनंत सुख पामे. ५०१४६. (#) जीवविचार सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५४४०). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुदाओसुय समुद्दाओ, गाथा-५१, संपूर्ण. पद्य, आदिः श्रीनाद: श्रीनेमीनाथ पवि . त्रिपाठ-पदच For Private and Personal Use Only Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २३० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जीवविचार प्रकरण बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: भुवण कहीये स्वर्ग, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अंतिम २ गाथाओं का बालावबोध नहीं लिखा है.) ५०१४७. विनती संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. श्राव. गोपाल मगन भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५x११.५, १२४३२). १. पे. नाम. रिषभजिन विनती. पू. १अ २अ संपूर्ण. आदिजिनविनती स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्म, आदि; सुण जिनवर शेत्रुंजा, अंतिः देव्यो परमानंद रे, गाथा- १९. २. पे. नाम. शांतिजिन वीनती, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सुणो शांतिजिणंद, अंति: एवी उदयरतननी वाणी, गाथा - १०. ५०१४८. ६२ मार्गणा यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२६.५x११.५, ३३५१३). , ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को., आदि: नरकगति १ तिर्यंचगति; अंति: आहारी ६१ अणाहारी ६२. ५०१४९ (4) जीराउला पार्श्वनाथ स्तुति, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५x१२, १३X३८). पार्श्वजिन स्तोत्र - जीरावला महामंत्रमय, आ. मेरुतुंगसूरि, सं., पद्य, वि. १५वी, आदिः ॐ नमो देवदेवाय नित्य, अंति: लभेत् ध्रुवम् श्लोक-१४. 1 ५०१५०. चिंतामणी पार्श्वनाथ छंद, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २. प्र. वि. कुल ग्रं. ३४ वे. (२६.५१२, १०x३१). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्श्वजिन छंद - चिंतामणि, श्राव. चेतन, मा.गु., पद्य, वि. १८३७, आदि: कल्पवेल चिंतामणि; अंतिः समरो मन वच काय, ढाल - २, गाथा - २६. ५०१५१. आठमनो तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. कुल ग्रं. ३१, दे., ( २६.५X१२, १०X३८). अष्टमीतिथि स्तवन, मु. नयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१८, आदि: जय हंसासणी शारदा, अंति: नय० आनंद अति घणो बाल- २. , ५०९५२ (4) स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ६-५ (१ से ५) = १, कुल पे ४, पठ. मु. भाणचंद (गुरुग. रूपविजय); गुपि. ग. रूपविजय (गुरुग. विवेकविजय); ग. विवेकविजय (गुरुग. ऋद्धिविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, १४X३४-४०). १. पे. नाम. शोभन स्तुति, पृ. ६अ-६आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: हारताराबलक्षेमदा, स्तुति-२४, श्लोक -९६, (पू. वि. मात्र महावीरजिन स्तुति का ही पाठ है.) २. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. ६आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: वीरं देवं नित्यं; अंतिः सन्नो देवीदेयादंबा, श्लोक-१. ३. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. ६आ, संपूर्ण. आ. सोमतिलकसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीतीर्थराजः पदपद्म, अंति: ददतां शिवं वः, श्लोक - १. ४. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ६आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: कनक तिलक भाले हार, अति हो तुमे नाण धारा, गाथा-४. " ५०१५३. (+) चैत्रीदिन देववंदन विधि, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे. (२६४१२, ९४३३). चैत्रीपूर्णिमापर्व देववंदन विधि, प्रा., मा.गु., सं., प+ग., आदि: (१) आदिमं पृथिवीनाथ आदि, (२) सुवर्णवर्णं गजराज; अंतिः पछै जयवीयराय कहीजै. ५०१५४. दानशील तप भावना कुलक व स्तवन, संपूर्ण, वि. १८३९- १८४०, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्रले. मु. निहला (गुरु मु. जीवराज ऋषि) गुपि. मु. जीवराज ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२५x१०.५, १३४४२-४४). १. पे. नाम. दानशीलतपभावना कुलक, पृ. १अ ३आ, संपूर्ण, वि. १८३९ फाल्गुन कृष्ण, १३. मु. अशोकमुनि, प्रा., पद्य, आदिः देवाहिदेवं नमिऊण; अंतिः असोगनाम० खमंतु तेणं, गाथा-५०, २. पे. नाम. नेमिराजेमति स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण वि. १८४०, ज्येष्ठ शुक्ल, ६. For Private and Personal Use Only Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नेमराजिमती स्तवन, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अवल गोखने अवल झरोखा, अंति: रूपी देवविजय कारी, गाथा-८. ५०१५५. (०) दलाली सझाय, संपूर्ण, वि. १८७०, कार्तिक शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६११.५, १५X३९). दलाली सज्झाय-धर्मदलाली, मा.गु., पद्य, आदि: दलाली इस जीवन कीधी अ; अंति: आगे थारो इकत्यार, गाथा-३२. ५०१५६, (+) स्तवन व स्तुति, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २, कुल पे. २. प्रले. मु. रंगकुशल पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., ( २६x११, ११४३८). १. पे. नाम, शांतिनाथ स्तवन, पृ. १अ २आ, संपूर्ण शांतिजिन स्तवन, वा. हर्षधर्म, मा.गु., पद्य, आदि: सूरज ऊगमतइ नमुं संती, अंति: हर्षधर्मह वीनवइ, गाथा- २३. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: गवडि फलवधि सामी; अंति: पूरइ पहु संपयं पासो, गाथा-१. ५०१५७. (#) ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९६०, ज्येष्ठ शुक्ल, २, बुधवार, जीर्ण, पृ. ४, प्रले. देवचंद लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., ( २६११.५, १०X३५). ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर सं., पद्य, आदि आचंताक्षरसंलक्ष्य अंतिः परमानंद संपदा, श्लोक ८४. ५०१५९. (+) जयतिहुअण स्तोत्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., ( २६.५X११, ९x४७). जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख अंतिः अभव० 1 " " २३१ विन्नवइ अणिदिय, गाथा- ३०. जयतिहुअण स्तोत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि जयवंतउ हू त्रिभुवनमा अंतिः त्रिभुवनमाहि स्लाघित, (वि. प्रतिलेखक ने अंत मे इति अवचूरि ऐसा लिखा है.) ५०१६० (०) प्रज्ञाप्रकाश सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १७७९ कार्तिक, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. मु. लालजी (गुरु पं. राघवजी ऋषि); गुपि. पं. राघवजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५.५४११.५, ७४३३) प्रज्ञाप्रकाशषट्त्रिंशिका, मु. रूपसिंह, सं., पद्य, आदि: प्रज्ञाप्रकाशाय नवीन, अंति: मवकां प्रणीतां श्लोक-३७. प्रज्ञाप्रकाशषट्त्रिंशिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: बुद्धि प्रकाशनि, अंति: कीधी रूपसी नामकेन . ५०१६१. (#) मयणरेहा संधि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५X११.५, १७X६९). मदनरेखासती संधि, मा.गु, पद्य, आदि: पणमूं सामिणि सारद, अंतिः सासणि नमि जयवंत होइ, गाथा ४९. ५०१६२. (+) श्रमण पडिकमणासूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६७८, मध्यम, पृ. ४, प्रले. सेवक, अन्य. सा. रंगाई आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पंचपाठ. जैवे. (२६.५४११, १७४३०). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: पगाम सिज्झाए निगाम: अंतिः वंदामि जिणे चउवीसं, संपूर्ण पगाम सज्झायसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: पगाम सिजाए सूवइ, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "रयसंसठहडाए" तक बालावबोध लिखा है) ५०१६६, (+) वज्र शूधि व परमात्म राजी, संपूर्ण वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ३. कुल पे. २. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, जै.. (२६.५X११.५, १७X४७). १. पे. नाम. वज्रशूची ग्रंथ-नारदी स्मृती, पृ. १अ ३अ, संपूर्ण सुभाषित लोक संग्रह #. पुहिं. प्रा. मा.गु. सं., पद्य, आदि (-); अंति: (-), (वि. विविध ग्रंथों से श्लोकों को संग्रह किया गया है.) २. पे. नाम. परमात्मराजी, पृ. ३अ ३आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, मु. पद्मनंदि, सं., पद्य, आदिः यस्य प्रसादवशतो वृषभ, अंतिः जन मानस्य पद्मनंदी, श्लोक १५. For Private and Personal Use Only Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५०१६७. (+) स्तव, स्तुति व न्यायसिद्धांतदीपिका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१०.५, १३४५२-५८). १.पे. नाम. पार्श्व स्तव, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-कृष्णदुर्गमंडन, सं., पद्य, आदि: श्रीमत्पार्श्वसमस्त; अंति: श्रीपार्श्ववामांगजः, श्लोक-५. २. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: स्वस्तिश्रियायुक्पद; अंति: भूम्यंगणमदख्य, श्लोक-१०. ३. पे. नाम. न्यायसिद्धांतदीपिका, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. शशधर शर्मा, सं., गद्य, ई. १२वी, आदि: ध्वसितपर सिद्धांत; अंति: (-). ५०१६८. (#) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१०, १५४४२-४५). १.पे. नाम. स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. __कुगुरुपच्चीसी, मु. तेजपाल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवर प्रणमी; अंति: तेजपाल पभणइं आणंद, गाथा-२५. २. पे. नाम. ४ मंगल सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: मंगलीक पैहलो कहु एह; अंति: मोखतणा सुख लहइं अनंत, गाथा-५. ३. पे. नाम. स्वाध्याय चउवीसतीर्थंकरना परिवारनी, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिनपरिवार स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: चउवीस तिथंकरनौ; अंति: कर जोडी करुं प्रणाम, गाथा-५. ५०१६९. गीत व सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक नहीं लिखा है., दे., (२५४१०.५, १६x४६-५७). १. पे. नाम. शीतलजिन गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. शीतलजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शीतलजिननी सेवना; अंति: मोहन प्राणधार हो, गाथा-७. २. पे. नाम. मधुबिंदु सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. चरणप्रमोद-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मुझने रे मात; अंति: जेम भवसायर तरो, गाथा-१०. ५०१७०. (#) स्थंभनक पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०, १७४४०-४५). पार्श्वजिन स्तवन-स्थंभन, उपा. शांतिचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मंगलमाला मंदिर केवल; अंति: संतिचंद्र कहै जयो, ढाल-२, गाथा-२७. ५०१७१. (#) सीखामण चौपाई, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१२, ११४३९-४५). औपदेशिक चौपाई, श्राव. परबत भावसार, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलू पणमू अंबिकिमाइ; अंति: भावसार परबत इम भणइ, गाथा-३८. ५०१७२. (#) आलस परिहार भास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. जेठाऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४११.५, १२४३४). आलस काठिया सज्झाय, मु. मेघराज ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पुन्य तणे बल नरभव; अंति: पभणइ ऋषि मेघराज, गाथा-११. ५०१७३. नुकारना फलनो रास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२६४११.५, १५४४८). नमस्कार महामंत्र रास, मा.गु., पद्य, वि. १६२१, आदि: सकल मनोरथ पूरवि; अंति: मनवांछित फल पामइ तेह, गाथा-११९. ५०१७४. (+#) दानादि संवाद, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १६x४४). For Private and Personal Use Only Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति: समृद्धि सुप्रसादोरे, ढाल-५. ५०१७५. (#) सुरप्रीय रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. प्रथम व अंतिम पत्र की पट्टी पर लिखा मूल पाठ उखड़ गया हैं., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १४४३८). सुरप्रियसाधु रास, मु. लक्ष्मीरत्नसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति देविसदा मनि; अंति: जे इम कहि विणजारा रे. गाथा-७३. ५०१७६. (#) आषाढभूति रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. गोपालगिरि; अन्य.सा. लीला आर्या (गुरु सा. रुपा आर्या); गुपि.सा. रुपा आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१०.५, ९-१२४३३). आषाढाभूतिमुनिरास, मु. धर्मरुचि, मा.गु., पद्य, आदि: सिरिसंति जिणेसर भुवण; अंति: जीरे जी आखाढभूत तणा, गाथा-५७. ५०१७७. (#) स्तुति व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४१०, ११४३५-३७). १.पे. नाम. अजितशांति स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: पणयजणजणिय सुहसिद्धि; अंति: सव्वाणि सुयदेवया, गाथा-४. २. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. खेमराज, मा.गु., पद्य, आदि: चिहुरूप चउमुख देहर; अंति: खेमराज० संघ पूरवउ आस, गाथा-६. ५०१७८. गजसिंहकुमार रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., जैदे., (२४.५४१०.५,१०-११४३८-४३). गजसिंहकुमार रास, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८५३, आदि: श्रीजिन चोविसे नमुं; अंति: (-), (पू.वि. ढाल २ गाथा १८ अपूर्ण तक है.) ५०१७९. (#) सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४११.५, १९४३८). १.पे. नाम. बाहुबलि स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. बाहुबली सज्झाय, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: वीराजी मानो वीनती; अंति: मुझ वंदन होजो तास, गाथा-९. २. पे. नाम. अरहनक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. अरणिकमुनि गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: विहरण वेला पांगुर्यउ; अंति: समयसुं० सुद्ध प्रणाम, गाथा-८. ३. पे. नाम. सती चेलणा स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण. चेलणासती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर वांदी चालता थकां; अंति: समय सुंदर० भवतणो पार, गाथा-६. ४. पे. नाम. अनाथी स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण. अनाथीमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणिक रयवाडी चड्यो; अंति: वांदै रेबे करजोडि. गाथा-९. ५. पे. नाम. नमिराजर्षि सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जी हो मीथुला नयरीनो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा २ अपूर्ण तक लिखा है.) ५०१८०. पंचकल्याणक टीप व दीवाली जाप, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२५.५४१२, १७४३६). १. पे. नाम. पंचकल्याणक टीप, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. २४ जिन १२० कल्याणक कोष्टक, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीसंभवनाथसर्वज्ञाय; अंति: नेमिनाथसर्वज्ञाय नमः. २. पे. नाम. दीवालीपर्व आराधना विधि, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., गद्य, आदि: कार्तिक वदि ३० री; अंति: सिधिरिधि थाय सही. For Private and Personal Use Only Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २३४ ५०९८१. संधारा पोरसी व विचार संग्रह, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. २. कुल पे. २, दे. (२६४११.५ १२४३१). "" १. पे. नाम. राईसंथारा गाथा, पृ. १अ - २अ, संपूर्ण. संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि निसिही निसिही निसीहि अंति: मज्झवि तेह खमंतु, गाथा- ११. २. पे. नाम. विचार संग्रह, प्र. २अ-२आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जैन सामान्यकृति *, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५०१८२. गजसुकमाल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. वा. पुन्यसार, पठ. श्राव. मानसिंघ साह, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २४.५X११.५, १७x४९). गजसुकुमालमुनि सज्झाव, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि द्वारिकानगरी ऋद्धि, अंतिः देवचंद० साहाय रे, ढाल -३, गाथा - ३८. ५०९८३. (+) लघुसामाचारी, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. संशोधित टिप्पणक का अंश नष्ट, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६ १०.५, १२X४३). 3 विज्ञसाधुयोग्यनियमकुलक, आ. सोमसुंदरसूरि, प्रा., पद्य वि. १५वी आदि भुवणिक्कपइवसमं वीरं अंति: सहला सिवसुहफलं देइ, गाथा-४६. ५०१८४. (#) नववाडी सज्झाय व मधुबिंदु सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंड है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४.५X१०.५, १८x४६). १. पे. नाम. नववाडी सज्झाय, पृ. १अ - २आ, संपूर्ण. ९ वाड सज्झाय, क. धर्महंस, मा.गु., पद्य, आदिः आदहि आदिजिनेसर नमु; अंति: वृद्धि रे मंगलमाल, ढाल - ९. २. पे. नाम. मधुबिंदुनी सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. मधुबिंदु सज्झाय, मु. चरणप्रमोद शिष्य, मा.गु., पद्म, आदि: सरसति मुझरे माता अंति: जपे जेम भवसायर तरू, , गाथा - १०. ५०९८५. चउद सुपन गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५. ५X११.५, ११x४०). १४ स्वप्न सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: देव तिर्थंकर केरडी, अंति: कल्याणनी घरि कोडि, गाथा- ४४. ५०१८६. (+) नारीनिरास फाग सह टीका, संपूर्ण, वि. १८१५, वैशाख कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित., जैदे., (२६X११.५, ७३८). नारीनिरास फास, मा.गु., पद्य, आदि रति पहुती मधुमाधवी अंतिः सुरवण सुरयण मंडणनेमि, गाथा-२६. नारीनिरास फास- टीका, सं., गद्य, आदि: सकल कमलाकेली धाम; अंति: सोस्तुनेमिः श्रिये. ५०९८७. एकसौआठ नौकरवालीना गुण, संपूर्ण, वि. १९३९, मार्गशीर्ष शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल. बीकानेर, प्र. वि. डुंगरसिंह प्रसादेन मागसर सुद १० को महाराज सवाइसिंघजी के द्वारा अपने महारावकाल मे वगसी सेरसिंघजी को महारावपद प्रदान करने का उल्लेख मिलता है., दे., ( २६.५X११.५, १३X३९). For Private and Personal Use Only नमस्कार महामंत्र- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अथ एकसौआठ नौकरवालीना; अंति: वालीना गीणीया कह्या. ५०१८८. गुरु गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५X१०.५, १३×३९). १. पे नाम. जिनदत्तसूरि गीत, पृ. १अ, संपूर्ण, ग. साधुकीर्त्ति, मा.गु., पद्य, आदि: करि कमलइ कमलासु वसई, अंति: कीरति गुरु एम भणइ, गाथा-८. २. पे. नाम. जिनकुशलसूरि गीत, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. कनककीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: कुशल करि कुशल करि, अंतिः कनक मुनि सुखकार, गाथा- ९. ५०१८९. (#) सीयल सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५X११.५, ११×३६). विजयशेठविजयाशेठाणी लावणी, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य वि. १८६१ आदिः श्रीवीतरागदेव नमु : अंतिः लालचंद विहार करता, गाथा - १६. ५०१९०. (#) महावीर पारणुं, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५X११.५, १३X३२). Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३८ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ महावीरजिन स्तवन-पारणागर्भित, मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत अनंत गुण; अंति: ते नमे मुनि माल, गाथा-२८. ५०१९१. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, दे., (२५.५४१०.५, १०४२८). १. पे. नाम. बीज स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तवन, ग. गणेशरुचि, मा.गु., पद्य, वि. १८१९, आदि: श्रीश्रुतदेवि पसाउले; अंति: गणेशरूचि०प्रणमुंपाय, गाथा-१६. २. पे. नाम. सीमंधर स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पूखलवई विजयें जयोरे; अंति: भयभंजण भगवंत, गाथा-७. ३. पे. नाम. २० विहरमान स्तवन, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. २० विहरमानजिन स्तवन, मु. प्रेम, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर युगमंधर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १ अपूर्ण तक है.) ५०१९२. वीरजिन चौमासा संख्या विवरण व पच्चक्खाण संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. २, प्र.वि. प्रतिलेखक ने भूल से पत्रांक १ लिखा है, परंतु प्रथम कृति का प्रारंभिक पाठ नहीं होने से काल्पनिक पत्रांक २ लिया है., दे., (२५.५४१०.५, ८-१०x२६). १. पे. नाम. महावीरजिन चातुर्मासस्थल विवरण, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. महावीरजिन चातुर्मास विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: राजगृहीनगरीयै दो, (पू.वि. चंपानगरी से राजगृही चातुर्मास तक है.) २. पे. नाम. दस पच्चखान, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण, पे.वि. पत्रांक १-२ का २-३ लिया हैं. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: वत्तियागारेणं वोसिरइ, (वि. देसावगासिक, धारणादि पच्चक्खाण का संग्रह है.) ५०१९३. (#) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४११.५, १२४३७). १. पे. नाम. नेमराजीमति स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: सांवलीया घर आव के अंति: सेहजसुंदर० दाखस्यु, गाथा-५. २. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. ऋद्धिकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: संभवजिनरी सेवा; अंति: ऋद्धि० मोहे हो दयाल, गाथा-६. ३. पे. नाम. माहावीरजीरो स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभूजी तुमे तो क्या; अंति: कहे एह वडाई प्यारा, गाथा-७. ५०१९४. (#) नलदवदंती रास, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १७४५५). नलदमयंती रास, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: सरसति सामणि सुगुरु; अंति: वृद्धि तेहना घरबारि, गाथा-५२. ५०१९५. आत्मशिक्षा गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. श्रावि. केसर बाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १५४३२). आत्मशिक्षा सज्झाय, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीयति मारग्ग आदर्य; अंति: पासचंद०वचन प्रतिपालि, गाथा-२१. ५०१९६. (#) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले.पं. रंगसौभाग्य; पठ. श्रावि. पुंजीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६.५४११.५, १५४३७). १.पे. नाम. शांति स्तव, पृ. १अ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन-मुंबईबंदर, ग. मुक्तिसौभाग्य, मा.गु., पद्य, वि. १८५३, आदि: शातिजिणेसर देव के अंति: मुक्ति०दया वरी रेलो, गाथा-८. For Private and Personal Use Only Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र-गोडीजी, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: धवल धिंग गोडी धणी; अंति: नाथजी दुखनी जाल तोडी, गाथा-८. ३. पे. नाम. अरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: वंदना पाप निकंदनारे; अंति: मांगइ परमानंदनारे, गाथा-५. ५०१९७. स्त्री सिखामण स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४११.५, १३४३४). औपदेशिक सज्झाय-स्त्री, श्राव. लाधाशाह, मा.गु., पद्य, आदि: पूरव पाप प्रकारथी; अंति: लाधो० सुरनर पाय, गाथा-२२. ५०१९८. (+) मांडणबंधाराना उठांवचर्पट वाक्य, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. पंडित. देवविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४४८). १.पे. नाम. मांडण बंधाराना उठां, पृ. १अ, संपूर्ण. मांडण बंधाणा के उठां, मांडण बंधारा, मा.गु., पद्य, आदि: हरषि होम कह्या अति; अंति: लोढि लीह पलि गांठि, गाथा-१०. २.पे. नाम. चर्पट वाक्यानि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. चर्पट वाक्य, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अभितोवलिभिर्भालं; अंति: क्वाहं क्व च दलपातः, श्लोक-१८. ५०१९९. वीरद्वात्रिंशिका, संपूर्ण, वि. १९०२, चैत्र शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. खेरवा, प्रले. मु. उदयविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४११.५, १०४३५). महावीरद्वात्रिंशिका, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: सदा योगसाम्यात्सद; अंति: चक्रि शक्रश्चियः, श्लोक-३३. ५०२००. स्तोत्र व साकलीया चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. १२, जैदे., (२४.५४१०, ११४३३-३७). १. पे. नाम. नवग्रह शांतिकर स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: ग्रहशांतिविधिश्रुतं, श्लोक-११. २.पे. नाम. २४ जिन चैत्यवंदन-वर्णगर्भित, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पद्मप्रभने वासपूज्य; अंति: ज्ञानविमल कहै सीस, गाथा-३. ३. पे. नाम. २४ जिन चैत्यवंदन-देहमानगर्भित, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पंचसया धनुमान जाण; अंति: तणो नय प्रणमे निसदीस, गाथा-३. ४. पे. नाम. २४ जिन चैत्यवंदन-लंछनगर्भित, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वृषभ गज हय कपि; अंति: ज्ञानवि० सरव सुख धाम, गाथा-३. ५. पे. नाम. २४ जिन चैत्यवंदन-दीक्षातपगर्भित, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुमतिनाथ एकासगुंकरी; अंति: पारणुं अवर जिनेस, गाथा-३. ६.पे. नाम. २४ जिन चैत्यवंदन-दीक्षास्थानादिगर्भित, पृ. २अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: विनितानयरीइं लीई; अंति: थया ज्ञानविमल गुणगेह, गाथा-३. ७. पे. नाम. २४ जिन चैत्यवंदन-सहदीक्षितसंख्यागर्भित, पृ. २अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: च्यार सहेसुसुंऋषभ; अंति: ज्ञान० जिन सुपसाय, गाथा-३. ८. पे. नाम. २४ जिन चैत्यवंदन-भवसंख्यागर्भित, पृ. २अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रथम जिणंद तणा भला; अंति: नय प्रणमे धरी नेह, गाथा-३. ९. पे. नाम. २४ जिन चैत्यवंदन-भवसंख्यागर्भित, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सत्तरिसय ठाणे कह्या; अंति: ज्ञान०वंदो जिन चउवीश, गाथा-३. १०. पे. नाम. पंचपरमेष्टी चैत्यवंदन, पृ. २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ साधारणजिन चैत्यवंदन-५ परमेष्ठिगणगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: बारस गुण अरिहंत देव; अंति: तणो नय प्रणमे सुखकार, गाथा-३. ११. पे. नाम. साधारणजिन चैत्यवंदन, पृ. २आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चउजिन जंबूद्वीपमा; अंति: ज्ञान० सीर धारीजे आण, गाथा-३. १२. पे. नाम. साधारणजिन चैत्यवंदन-१८ दषणवर्जनगर्भित, पृ. २आ, संपूर्ण. आ. नयविमल, मा.गु., पद्य, आदि: दान लाभ भोगोपभोग बल; अंति: चरणनी कीजे अहनिश सेव, गाथा-३. ५०२०३. (#) सझाय, औषध व विनती, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. मु. चतुर्भुज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १८४४३). १. पे. नाम. श्रावकरी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. श्रावककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक तुं उठे परभात; अंति: जिनहर्ष० हरणी छे एह, गाथा-२२, (वि. गाथा १६ के बाद गाथांक का उल्लेख नही है.) २. पे. नाम. आंवरा उषद, पृ. १आ, संपूर्ण. औषधवैद्यक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. साधारणजिन विनती, पृ. १आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, मु. कनककीर्ति, पुहिं., पद्य, आदि: वंदु श्रीजिनराय मन; अंति: कनककी० अजरामर लहे जी, __ गाथा-१२, (वि. गाथाक्रम का उल्लेख नहीं है.) ५०२०४. गीत, स्तुति व अष्टपदी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. कुल पे. ३, पठ. श्रावि. राजाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०.५, १२४३६-४०). १.पे. नाम. अंतरंग तमाकू गीत, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ___ तमाकू गीत, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: श्रीसार० सब सुखदाई, गाथा-१६, (पू.वि. गाथा ९ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. निंदास्तुतिरूपा जिनेंद्रविज्ञप्ति, पृ. २अ, संपूर्ण, ले.स्थल. महिमावती. साधारणजिनपद-जिनेंद्रविज्ञप्तिगर्भित, म. श्रीसार, पुहिं., पद्य, आदि: त्यार्यउ तार्यउ जू; अंति: श्रीसार० उधार्यउजू, गाथा-३. ३. पे. नाम. गुरु अष्टपदी, पृ. २आ, संपूर्ण. सद्गुरु अष्टपदी, मु. श्रीसार, पुहि., पद्य, आदि: सदगुरु विनु कइसइ पाई; अंति: श्रीसार० सिधि होइ, गाथा-९. ५०२०५. चार प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२६४११.५, १२४४४). १. पे. नाम. प्रथम प्रत्येकबुधी सझाय, पृ. १अ, संपूर्ण. करकंडुमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानगरी अतिभली हुं; अंति: पाप पुलाय रे, गाथा-५. २. पे. नाम. तृतीय प्रत्येकबुध सझाय, पृ. १आ, संपूर्ण. नमिराजर्षि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: नगर सुदरसणराय मणीरथ; अंति: समयसुंदर० साधुने जी, गाथा-६. ३. पे. नाम. चोथो प्रतेकबूधनी सझाय, पृ. १आ, संपूर्ण. नीगइराय-प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पुरवधनपुर राजीओ मांक, अंति: चोथो प्रतेकबूध हे, गाथा-६. ४. पे. नाम. चारप्रत्येकबुध सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चिहुं दिसथी च्यारे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १ अपूर्ण मात्र है.) ५०२०६. (#) नंदीषेण महामुनिवर सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. सुखा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२.५, १४४५२). For Private and Personal Use Only Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. गंग कवि, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर महियल वीचरै; अंति: कवि गंग कवियण इम कहै, गाथा-१३. ५०२०९. विहरमान इकवीस ठाणा व पर्याप्तिकाल भेद, संपूर्ण, वि. १८५६, वैशाख कृष्ण, ४, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. पाल्हणपुर, प्रले. भैरवदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीजिनकुशलसूरिजी प्रसादात्., जैदे., (२५.५४११.५, १७४५३-५९). १. पे. नाम. विहरमान इकवीस ठाणउ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. विहरमानजिन २१ स्थानक प्रकरण, आ. शीलदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: संपइ वढताणं नाम; अंति: रइयं सम्मत्तलाभाय, गाथा-३८. २. पे. नाम. पर्याप्तिकाल भेद, पृ. १आ, संपूर्ण. पर्याप्तिकालभेद गाथा, प्रा., पद्य, आदि: वेउव्विय पज्जत्ति; अंति: सेसा अंतमुह ओराले, गाथा-१. ५०२१०. (+) सज्झाय संग्रह व दोहा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १५४३८). १. पे. नाम. धन्नाअणगार सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवचने वैरागीयो हो; अंति: श्रीदेव० विजय जयकार, गाथा-१३. २. पे. नाम. इलापुत्र सिज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. इलापुत्र सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: नाम इलापुत्र जाणीइ; अंति: करे समयसुंदर गुण गाय, गाथा-९, (वि. २ गाथा को १ गाथा गिनी गयी है.) ३. पे. नाम. प्रास्ताविक दोहा, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: पाई पढे पढाई जानै; अंति: सत्थे घेवर लुट्टइ, गाथा-१. ५०२११. (+#) षट्विंशिका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४.५-२५.५४१०, १६४५४). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीस जिणं; अंति: एसा विनत्ति अपहिया, गाथा-४१. ५०२१२. अष्टप्रकारी पूजा व शांतिजिन आरती, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. लाठाराग्राम, प्रले. पं. कस्तुरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १५४३६). १. पे. नाम. अष्टप्रकारी पूजा, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. ८ प्रकारी पूजा, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८२१, आदि: अजर अमर अकलंक जे; अंति: आणी आप समवस थापीये, ढाल-९, गाथा-७७. २. पे. नाम. शांतिजिन आरती, पृ. ३आ, संपूर्ण. सेवक, पुहि., पद्य, आदि: जय जय आरती शांति; अंति: सेवक० दरसण पावे, गाथा-६. ५०२१३. सझाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २,प्र.वि. संवत् १७७४ मागसर सुद६ की लिखी प्रत की प्रतिलिपि की गयी है., दे., (२६४११, १३४४१). १.पे. नाम. मृगावती चौपाई-ढाल ६ठी, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मृगावती चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६८, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: देह बुढाणी मइ जाणी; अंति: तोहि न तो दे पाहणी, गाथा-६. ५०२१४. (#) कर्मबंध उदयउदीरणासत्ता यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षर मिट गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, २७७५१). १४ गुणस्थानके कर्मबंधउदयसत्ता व उदीरणा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५०२१५. ऋषभजिन पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६.५४१२, १०४३१). For Private and Personal Use Only Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ २३९ आदिजिन स्तवन, म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ओलंभडे मत खीजो हो; अंति: वृषभ लंछन बलिहारी, गाथा-७. ५०२१६. (+#) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, १४४४१). १.पे. नाम. स्वयंप्रभ विहरमान स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. स्वयंप्रभजिन स्तवन, मु. शांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: केवलनाण प्रमाणथी हो; अंति: शांतिविजय महाराज, गाथा-८. २. पे. नाम. सुबाहुविहरमान स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सुबाहुजिन स्तवन, मु. शांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हुं किम श्रीसुबाहु; अंति: शांति० स्युं कहुं जी, गाथा-६. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: मेरा मन मोहिया० शंखे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ३ अपूर्ण तक लिखा है.) ५०२१७. शनीश्चर छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, १६४४१). शनिश्चर छंद, क. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: अहिनर असुर सुरांपति; अंति: हेम० सनीसरवर, गाथा-१८. ५०२१८. (#) सझाय व यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६.५४११.५, १४४४१). १.पे. नाम. सिखामण सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जीवदया सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सयलजिणेसर करु प्रणाम; अंति: बे करजोडी मुनिवर कहे, गाथा-२६. २. पे. नाम. श्वासरोग निवारण यंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह , उ.,पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-).. ५०२१९. (#) पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८४३, फाल्गुन कृष्ण, १, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. मोखडुदा, प्रले. मु. रामचंद ऋषि; पठ. श्राव. गुलाबचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १५४४३). पार्श्वजिन स्तवन, मु. धनराजशिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १७२१, आदि: सुखकरो स्वामि सदा; अंति: वीनती त्रिभवन धणी, ढाल-२, गाथा-३४. ५०२२०. भास, कवित व दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६.५४११.५, १३४३८). १. पे. नाम. रूपसिंहगुरु भास, पृ. १अ, संपूर्ण. श्राव. भीम कल्याणमल शाह, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम श्रीसंतिजिणेसर; अंति: होसी भमा वचने भणी जी, गाथा-९. २. पे. नाम. बांकडी कवित्त, पृ. १आ, संपूर्ण. वांकडीकथन कवित, मा.गु., पद्य, आदि: वांकी करहा कोटि वांक, अंति: मुंह जीह वांकडी, गाथा-१. ३. पे. नाम. औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. दोहा संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-४. ५०२२१. वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. श्राव. नंदराम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, ११४३०). महावीरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३७, आदि: सिद्धारथ कुल दीपक; अंति: रायचंद० प्रभुजी पीर, गाथा-११. ५०२२२. (+#) गौतमस्वामी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१०.५, ११४३६). गौतमस्वामी स्तवन, मु. पुण्यउदय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभाते गोतम समरीजे; अंति: उदय प्रगट्यो कुलभाण, गाथा-८. ५०२२३. (#) पंचम तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, १६४४४). ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी श्रीगुरु पाय; अंति: भगति भाव प्रशंसीयो, ढाल-३, गाथा-२०. For Private and Personal Use Only Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५०२२४. अनुयोगद्वारसूत्रगत संख्यातासंख्यात भेद सह वार्तिकरूपसंख्याभेद विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२६.५४११.५, १८४६०-६५). अनुयोगद्वारसूत्र-हिस्सा संख्याभेद विचार, आ. आर्यरक्षितसूरि, प्रा., प+ग., आदि: से किं तं गणणसंखा एक; अंति: अजहन्नमणुक्कोसए. अनुयोगद्वारसूत्र-संख्याभेद विचार, मु. पार्श्वचंद्र, मा.गु., गद्य, आदि: हिवं इयारा भेद नाम; अंति: (१)नान्यथेति वचनात, (२)पार्श्वचंद्रेण, (वि. यंत्र सहित.) ५०२२६. (+) जीव गति आगति यंत्र ५६३ बोल का बासठा, संपूर्ण, वि. १८९८, आश्विन अधिकमास शुक्ल, ८, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. वणोली, प्रले.ऋ. हरजीमल (गुरु मु.रतनचंद); गुपि. मु. रतनचंद; पठ. सा. राजकवर (गुरु सा. पनाजी); गुपि.सा. पनाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, १८x२५-३६). ५६३ जीवभेद ६२ मार्गणा विचार, पुहि., गद्य, आदि: ७ नारकी का प्रजाप्ता; अंति: जुगलिए नरक एवं ३७१. ५०२२८. श्रावक प्रायच्छित विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११, १५४४२). श्रावक आलोयणा, प्रा.,सं., पद्य, आदि: तत्र ज्ञानना अतिचार; अंति: मिच्छामि दुकडं तस्स. ५०२२९. असज्झाइव दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८४८, वैशाख शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, ४४३१). १.पे. नाम. असज्झाय सज्झाय सह टबार्थ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ३२ असज्झाय गाथा, प्रा., पद्य, आदि: अठिय मंसिय सोणिय; अंति: सवेर दोपहर अरधरात्र, गाथा-३. ३२ असज्झाय गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हाड पड्यो हुइ ते जा; अंति: सज्झाय करणी टालवि. २. पे. नाम. दोहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: कपटी मिनखनी वात ते; अंति: असनेही वधवा ताज, गाथा-५. ५०२३०. (+#) स्तव व मंत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १४४४१). १.पे. नाम. अनुभूतसिद्धसारस्वत स्तव, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सिद्धसारस्वत स्तव, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., पद्य, वि. ९वी, आदि: कलमरालविहंगमवाहना; अंति: रंजयति स्फुटम्, श्लोक-१३. २. पे. नाम. घंटाकर्ण कल्प, पृ. १आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ५०२३२. सडसठबोलनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२६४११.५, १०४५३). सम्यक्त्व ६७ बोल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सुकृतवल्लि कादंबिनी; अंति: वाचक जस इम बोलेरे, ढाल-१२, गाथा-६८. ५०२३३. रामतियाला शिष्य कथा व वानरमान, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, १६x४७). १.पे. नाम. रामतियाल शिष्यकथा प्रबंध सह टीका, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. वैराग्यबोल सज्झाय, पुहि.,रा., पद्य, आदि: बाई हे मइ कुतिग दीठ; अंति: सुखइ सुखियउ किम हूओ, गाथा-२२. फूलडा सज्झाय-टीका, सं., गद्य, आदि: श्रीवीरमुक्ति गमनतः; अंति: वर्गसौख्यभाग बभूव. २.पे. नाम. लंका आगत वानरमान, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: अढार पद्म वानर ४९६; अंति: एता एक कानइ आया. ५०२३४. (#) सिद्धदंडिका यंत्रसहित, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. फतेपुर, प्रले. मु. गुणविजय; पठ. ग. हर्षविजय (गुरु आ. हीरविजयसूरि); गुपि. आ. हीरविजयसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४११.५, १३४५३). १.पे. नाम. सिद्धदंडिका यंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., को., आदि: अनुलोमसिद्धिदंडिका १; अंति: मोत्तरा सिद्धदंडिका. २. पे. नाम. सिद्धदंडिका, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ २४१ सिद्धदंडिका स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जं उसहकेवलाओ अंत; अंति: दिंतु सिद्धि सुह, गाथा-१३. ५०२३५. (#) आलोयणा, स्तवन व पद संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ७, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१०.५, १७४४४-५०). १.पे. नाम. आलोयण विधि, प्र. १अ, संपूर्ण. ___आलोयणा विधि, मा.गु., गद्य, आदि: भगवानजी आजूणा च्यार; अंति: करी मिच्छामि दुक्कडं. २.पे. नाम. धना सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. धन्नाकाकंदी सज्झाय, मु. विद्याकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन्नो रिष बंदीये; अंति: विद्या साधुने रे लाल, गाथा-७. ३. पे. नाम. नेमिराहल होरी, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती होरीपद, ग. रत्नविमल, पुहिं., पद्य, आदि: मेरी अरज सुणो नेम; अंति: रतनविमलप्रभु गुनीया, गाथा-३. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. वा. रत्न, मा.गु., पद्य, आदि: त्रेवीसम त्रिभुवनपति; अंति: रत्न० नितमेव श्रीपास, गाथा-५. ५. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. भुवनकीर्ति, पुहिं., पद्य, आदि: मो मन वीर सुहावै; अंति: भुवनकीरत गुण गावे, गाथा-३. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८१७, आदि: आज आणंदघण उमट्यौरे; अंति: श्रीजिनलाभसूरीस, गाथा-९. ७. पे. नाम. पंचमीतप स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन-लघु, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पंचमीतप तुमे करोरे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ४ अपूर्ण तक है.) ५०२३६. (+) पट्टावली सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५४१०, १४४४७). पट्टावली सज्झाय-तपागच्छीय, पं. मेघकुशल पंडित, मा.गु., पद्य, आदि: गुरु परिपाटी सुरलता; अंति: मेह० सिद्धि स्वयंवरी, गाथा-३६. ५०२३७. स्तोत्र, मंत्र व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १७७६, कार्तिक शुक्ल, ४, जीर्ण, पृ. ४, कुल पे. ४, ले.स्थल. कृष्णगढ, प्रले. मु. राघव ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १२४३७). १.पे. नाम. पद्मावती स्तोत्र विधि सहित, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: (१)अस्य श्रीमंत्रराजस्य, (२)श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंति: क्षमस्व परमेश्वरी, श्लोक-३५. २.पे. नाम. पद्मावतीदेवी जापमंत्र, पृ. ४आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: ऍक् ह्रौं पद्मा; अंति: १२००० पुष्पैर्जापः. ३. पे. नाम. भूमिशुद्धि मंत्र, पृ. ४आ, संपूर्ण. ___ सं., गद्य, आदि: ॐ भूरसि भूतधात्री; अंति: कुरु कुरु स्वाहा. ४. पे. नाम. क्षमाप्रार्थना स्तुति, पृ. ४आ, संपूर्ण. आह्वान विसर्जन मंत्र, सं., पद्य, आदि: आज्ञाहीन क्रियाहीनं; अंति: पूजा गृहाण सुरसुंदरी, श्लोक-२. ५०२३८. (+#) जीवविचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. टिप्पणक का अंश नष्ट, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १२४३५). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: तीन भुवन माहे दिवा; अंति: सिद्धांतसमुद्र थकी. ५०२३९. (+) धरणोरगेंद्र तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. ग. मानसौभाग्य (गुरु पंडित. विजयसौभाग्य); गुपि. पंडित. विजयसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १४४२६). पार्श्वजिन स्तोत्र, आ. शिवनाग, सं., पद्य, आदि: धरणोरगेंद्रसुरपति; अंति: तस्यैतत्सफलं भवेत्, श्लोक-३९. For Private and Personal Use Only Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २४२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५०२४० (+) एकादशी स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २, प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२४.५४११, १३-१५४४४-४६). मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: द्वारिकानेरी समोसर्य; अंति: लहे मंगल अतिघणो, ढाल -३, गाथा - २७. ५०२४१. (+) आगम योगतपविधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२६.५x११, १५X४४). १. पे. नाम. आवश्यक तपोविधि, पृ. १अ, संपूर्ण. आवश्यकसूत्र योगविधि, प्रा. सं., गद्य, आदि आवस्सगम्मि एगो सुब, अंतिः उद्देसविवसपत्तस्स. २. पे. नाम. नंदीदशवेकालिक तप विधि, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नंदीदशवैकालिक योगविधि, प्रा., सं., गद्य, आदि: नंदीए दसवैकालिकश्रुत, अंति: दिणं एगं एवं दिन १५. ३. पे. नाम. उत्तराध्ययन तपोविधि, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. "" उत्तराध्ययनसूत्र योगविधि, प्रा. सं., गद्य, आदि: सुत्ते अत्थे भोयणकाल, अंति: अणुन्ना एवं २८ अब २७. ४. पे. नाम. आचारांग तपोविधि, पृ. २आ, संपूर्ण. आचारांगसूत्र योगविधि, प्रा. सं., गद्य, आदि: अध्ययन १ श्रीआचारांग अंतिः सव्वत्थ उद्देसा ७. ५०२४२. (4) योगशास्त्र- प्रकाश-१, संपूर्ण वि. १६वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२६११. ११४३५). " योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी आदि नमो दुर्वाररागावि, अंति: (-), प्रतिपूर्ण ५०२४३ (+) षट्कारकविवरण सह टीका, संपूर्ण, वि. १७६५, आषाढ़ शुक्ल, १३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३ ले. स्थल. कर्मवाटी, प्र. मु. लक्ष्मीचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६४१०.५, १३४४५). 2 कारक विवरण, पं. अमरचंद्र पंडित, सं., पद्य, आदि: कारकाणि कर्ता कर्म, अंति: प्रोक्तान्यमून्यहो, का.-७६. कारक विवरण - टिप्पण, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: गमनमन्वय सयोगः. ५०२४४. जीवविचारसूत्र प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., ( २६.५X११, ११X५०). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुदाओ, गाथा ५१. ५०२४५ (+) शत्रुंजय कल्प, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २. प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२५.५x१०.५, ११४३) शत्रुंजयतीर्थ कल्प, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सुय धम्मकित्तियं तं; अंति: लहु सितुंजय सिद्धिं, गाथा - ३९. ५०२४६. (१) शतक कर्मग्रंथ प्रकृति यंत्र, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे., ( २६४११.५, २३४३३-५२). शतक नव्य कर्मग्रंथ - प्रकृति यंत्र, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ४७ ध्रुवबंधनी प्रकृत; अंति: १२० प्रकृति थ ५०२४७ (१) प्रश्नोत्तर रत्नमाला सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे. (२६.५x११, ५X३६). प्रश्नोत्तररत्नमाला, आ. विमलसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्य जिनवरेद्र, अंति: कंठगता किं विभूषयति, श्लोक-२९. प्रश्नोत्तररत्नमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणमी नमस्करीनइ जिन, अंति: नही एतल विभूषइज मां. ५०२४८. (+#) चंद्रप्रभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १७९६, आषाढ़ शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल. रोहीठनगर, प्रले. पं. कनकसागर पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४.५X१०.५, १५-१७X४०-४६). चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्म, वि. १६८७, आदि: सरसति वरसति सकतिरूप, अंतिः सकल मनवंछित फलइ, ढाल ११, गाथा- ७६. ५०२४९ (१) गाथा संग्रह, राई प्रतिक्रमण विधि व लोकनालिका, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ७. प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, १५X४०) For Private and Personal Use Only Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ १. पे. नाम. साधुअतिचार गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. साधुअतिचारचिंतवन गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सयणासणन्नपाणे; अंति: वितहायरणेय अईयारो, गाथा-१, (वि. विधि सहित.) २. पे. नाम. गोचर्या गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. गोचरी आलोअण गाथा, प्रा., पद्य, आदि: कालेणय गोअरिआ; अंति: जंकिंचि अणुउत्तं, गाथा-१. ३. पे. नाम. राई प्रतिक्रमणविधि गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. राईप्रतिक्रमणनिरूपक गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: इरियाकुसुमिणुस्सग्गो; अंति: वहुवेल पडिलेहत्ति, गाथा-३. ४. पे. नाम. देवसी प्रतिक्रमणगाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. दिवसगत प्रतिक्रमणगाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: जिणमुणिवंदण अइयार; अंति: वंदणत्ति थुई थुत्तं, गाथा-२. ५. पे. नाम. पक्खीप्रतिक्रमण विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: मोहपत्ति वंदणय; अंति: एस विही पक्खीपडिकमणे, गाथा-२. ६. पे. नाम. ज्ञान पहिरावणी धूप करणेगाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्ञान पहिरावणी गाथा, प्रा., पद्य, आदि: नमंत सामंतमही विनाह; अंति: लाभाय भवक्खयाय, गाथा-२. ७. पे. नाम. लोकनालि, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: जिणदसणं विणा जं; अंति: जहा भमह न इह भिसं, गाथा-३२. ५०२५०. (#) सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११, १५४५१). १.पे. नाम. इरियावही मिच्छामि दुक्कड सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. इरियावही सज्झाय, संबद्ध, मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल कुशलदायक अरिहंत; अंति: मेरुविजय तस नामे सीस, गाथा-१६. २.पे. नाम. पच्चक्खाणफल सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. १० पच्चक्खाणफल सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: दसविह प्रह ऊठी; अंति: पामौ निश्चे शुभ ठाण, गाथा-८. ३. पे. नाम. मुहपत्तिपडिलेहणविचार सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन सज्झाय, संबद्ध, मु. दयाकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन वचन सदा अणु; अंति: कुशल कहे मन उल्लास, गाथा-८. ५०२५१. साधुपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२६४१२, १५४३६). साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दसणम्मिय; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. ५०२५२. (+#) समकित सडसठ बोल सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर __ आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२, १७४४२). सम्यक्त्व ६७ बोल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सुकृतवल्लि कादंबिनी; अंति: वाचक जस इम बोलइ जी, ढाल-१२, गाथा-६८. ५०२५५. विचार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, ११४३७). प्रत्याख्यान सज्झाय-दुविहार, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलु प्रणमु सरसति; अंति: मान विजयसेनसूरीस जयउ, गाथा-१५. ५०२५६. चंदनबाला सज्झाय व सरस्वती मंत्र व छंद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२६४११.५, १२४२७). १. पे. नाम. चंदनबाला सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची चंदनबालासती सज्झाय, मु. सिंहविमल, मा.गु., पद्य, आदि: आज हमारे आगणीये काई; अंति: सीहवीमल० दीनदयालीजी, गाथा-७. २. पे. नाम. सरस्वती मंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी बीजमंत्र, सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं; अंति: जै विद्या घणी आवे. ३. पे. नाम. सरस्वती छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, प्र.ले.पु. मध्यम. सरस्वतीदेवी छंद, मा.गु., पद्य, आदि: वीणापुस्तकधारणी, अंति: जय जयदेवी सरस्वती, गाथा-५. ५०२५७. (+#) पुंडरीक स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३४४३). पुंडरीकगणधर स्तवन, आ. लक्ष्मीसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीशत्रुजय शैलराज; अंति: लक्ष्मीसागरसेवासुखं, श्लोक-११. ५०२५८. (+#) सज्जनचित्तवल्लभ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. सिरीयारी, प्रले. पं. खुस्यालसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, ९x४४). सज्जनचित्तवल्लभ काव्य, आ. मल्लिषेण, सं., पद्य, आदि: नत्वा वीरजिनं जगत्त्; अंति: संसार विच्छित्तये, श्लोक-२५. सज्जनचित्तवल्लभ काव्य-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवीरप्रतिं नमीनै; अंति: सारनी विच्छेदने काजै. ५०२५९. (#) प्रभात प्रतिक्रमण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. तोलेला, पठ. पं. नरोत्तमविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १५४४४). प्रतिक्रमणविधि संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावही; अंति: बैसी नमोथुणं कहियै. ५०२६०. नेमिनाथ नवरसो, संपूर्ण, वि. १८४०, मार्गशीर्ष शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२६.५४११, ९४३२). नेमराजिमती नवरसो, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: समुद्रविजय सुत चंदलो; अंति: रूपचंद० उतारो भवपार, ढाल-९, गाथा-४०. ५०२६१. विजयदेवसूरिश्वर लेख, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १, ले.स्थल. अहमदानगर, जैदे., (२५.५४११, १३४३७). देवसूरि लेख, मु. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: स्वस्ति श्रीजिनपय नम; अंति: उदयविजय० नगर सुथान, गाथा-१८. ५०२६२. (#) सत्यधर सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, ९४३३). भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबलि अभय; अंति: जसपडहो तिहयणे सयले, गाथा-१३. ५०२६३. (+) वयरस्वामी स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले.ग. तत्त्वविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १५४४०). वज्रस्वामी-रूखमणी सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पदमणि पोयणि पातली; अंति: लबधि० मुनि तेह, गाथा-२०. ५०२६४. स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११, १६x४५). १.पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. ग. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८उ, आदि: पहेले पद जपीए अरिहंत; अंति: कातिविजय गुण गाय, गाथा-४. २. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. नयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर अति; अंति: नयविजय० करज्यो माय, गाथा-४. ३. पे. नाम. शत्रुजय स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पुहिं., पद्य, आदि: आगे पूर्व वार नवाणुं; अंति: कारज सिद्धा अमारा जी, गाथा-४. ५०२६५ (-#) मौनएकादसी गुण, अष्टापद विषयक प्रश्न व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८३६, मार्गशीर्ष शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, प्रले.पं.खुस्यालसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १८४३२). १. पे. नाम. मौनएकादशी गुण, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ मौनएकादशीपर्व गणj, सं., को., आदि: (१)जंबूद्वीपे भरते अतीत, (२)श्रीमहायशः सर्वज्ञाय; अंति: श्रीआरणनाथाय नमः. २. पे. नाम. अष्टापद देहरासर प्रश्न, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. जैन प्रश्नोत्तर संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. आगमिक पाठ संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. आगमिकपाठ संग्रह, प्रा.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४. पे. नाम. औपदेशिक गाथा संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. जैनगाथा संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२. ५०२६६. (-) आतम नींदा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. बीकानेर, प्रले. सा. जीवा; पठ.सा. जीता (गुरु सा. चेना); गुपि. सा. चेना, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२५.५४११.५, २१४४४). आत्मनिंदा भावना, मु. ज्ञानसार, रा., गद्य, आदि: हे आतमा हे चेतन ए; अंति: ते नर सुगुन प्रवीन. ५०२६७. (+) लघुसंग्रहणी प्रकरण सूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. पाल्हणपुर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२, ११४३१). लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिण सव्वन्नु; अंति: रइया हरिभद्दसूरिहिं, गाथा-३०. ५०२६८. जंबूद्वीप संग्रहणी, संपूर्ण, वि. १७१२, फाल्गुन कृष्ण, १४, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. स्तंभ तीर्थ, प्र.वि. प्रत के अंत में अजितशांति मूल वृत्ताक्षर आदि की संख्या दी गई है., जैदे., (२६४११, ९४२७-३१). लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिण सव्वन्न; अंति: रइया हरिभद्रसूरीहिं, गाथा-३०. ५०२६९. (-) नवरास व सझाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(१)=३, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२६४११.५, २३४५२). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: पासचंद० संजम पालो रे, गाथा-१५, (पू.वि. गाथा ७ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. थूलभद्र नवरास, पृ. २अ-४आ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि नवरसो ढाल व दूहा, उपा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपति ____दायक सदा; अंति: उदय० भणतां मंगलमाल, ढाल-९, गाथा-७४. ३. पे. नाम. बीस बोल सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण. २० बोल सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३३, आदि: किणसुंवाद विवाद न; अंति: रायचंदजी० चोमास जी, गाथा-१७. ५०२७०. (+) नवतत्त्व प्रकरण व नंदीसूत्र स्थविरावली, संपूर्ण, वि. १५९१, भाद्रपद शुक्ल, ७, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, ले.स्थल. कोट्टडामहादुर्ग, पठ. सा. शुभलक्ष्मी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१०.५, ९४२६). १.पे. नाम. नवतत्व सूत्र, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: अणागयद्धा अणतगुणा, गाथा-४२. २. पे. नाम. नंदीसूत्र स्थविरावली, पृ. ४आ, संपूर्ण. नंदीसूत्र-स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ६ तक लिखा है.) ५०२७१. (+#) कर्मग्रंथ-३ कर्मबंध सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, ५४३२). बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्कं; अंति: नेयं कम्मत्थयं सोउं, गाथा-२५. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ*मा.गु., गद्य, आदि: बंधविधान कर्मबंधना; अंति: नेयं कम्मस्थवं सोउं. For Private and Personal Use Only Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५०२७२. सिद्धाचल स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६४११.५, ८x२६). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मारुं डुंगरिइं मन; अंति: सिद्धिविजय सुखवास हो, गाथा-१३. ५०२७३. (#) आषाढभूति सझाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, ११४३०). आषाढाभूतिमुनि चौपाई, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७३७, आदि: सासणनायक सुखकरूं; अंति: (-), (पू.वि. ढाल २ गाथा ३ अपूर्ण तक है.) ५०२७४. (+-) औपदेशिक पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. १७, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६.५४११.५, २६४५७). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. विनयचंद, पुहिं., पद्य, आदि: या मीठी वीर की वानी; अंति: विनेचंद० उदासारे, गाथा-७. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. विनयचंद, पुहिं., पद्य, आदि: इण तनकी अवध जरासी रे; अंति: विनेचंद छोड उदासारे, गाथा-३. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. विनयचंद, पुहि., पद्य, आदि: जगतगुरु वीर जिणेसर; अंति: विनेचंद० नित सिरनामी, गाथा-६. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. चेनविजय, पुहि., पद्य, आदि: कोन नीद सुता मन मेरा; अंति: चेनविजे० सतगुर चेरा, गाथा-३. ५. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. कृष्णदास, पुहिं., पद्य, आदि: पंचन कुंसमजाय दे; अंति: कृष्णदास० बुझायदे, गाथा-७. ६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. पेम, पुहिं., पद्य, आदि: ममत मत कीज्यो राज; अंति: पेम० सुख दिनदिन में, गाथा-४. ७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: मानव भव लाधो राज; अंति: समझै नही चित आधो, गाथा-३. ८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: वे दिन तुं भुलो राज; अंति: गमीयो जनम अमुलो, गाथा-४. ९.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: कुड कपट छल छिद्र करी; अंति: परने करने साता माणे, गाथा-७. १०. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: तुही मेरा दिल मे; अंति: त्रिन भवन मे हो, गाथा-३. ११. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, पुहिं., पद्य, आदि: प्राणीक दवा तुरत; अंति: रतनचंद० भव मायो रे, गाथा-५. १२. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. विनयचंद, पुहिं., पद्य, आदि: आदिजिनराज अविनासी सत; अंति: विनेचंद दूर को कामी, गाथा-४. १३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण.. पुहि., पद्य, आदि: नार सव असुच तणो आगार; अंति: कूकर प्रभु कर प्यार, गाथा-४. १४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: दिन नीके बीत जाते हे; अंति: मूवै फेर न आते हे, गाथा-४. १५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: मन पिसते इह ओसर वीते; अंति: विषय भोग बहु बीते, गाथा-४. १६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: नाथ नाम का मे वंदा; अंति: मोल लिखावि नजर का, गाथा-२. For Private and Personal Use Only Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ १७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: मेरा साइ नाथ हो तो; अंति: नृप मानसे जलदी मील, गाथा-२. ५०२७५. (#) बीज सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११.५, १०४३२). बीजतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बीज कहे भव्य जीवने; अंति: विजयलबधि०विविध विनोद, गाथा-८. ५०२७६. (#) जिनबिंबप्रवेश विधि, संपूर्ण, वि. १८०९, ज्येष्ठ शुक्ल, १, शनिवार, मध्यम, पृ. ३, प्रले.पं. कमलकुशल गणि (गुरु पं. लावण्यकुशल गणि); गुपि.पं. लावण्यकुशल गणि (गुरु पं. अमृतकुशल गणि); पं. अमृतकुशल गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीऋषभदेव प्रसादात, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १३४३९-४६). बिंबप्रवेश विधि, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: पहिला मुहर्त भलु; अंति: सघला दिक्पाल संतोषीइ. ५०२७७. जीवविचार प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२६.५४१२, १०४३७). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवन पइवं वीरं नमीऊण; अंति: संतिसूरि० समुद्धाओ, गाथा-५१. ५०२७८. (-) जिनराजसूरि गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२६४११, १३४३६). १.पे. नाम. जिनराजसूरीश्वर पद व गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जिनराजसूरिगीत-आचार्यपद पदस्थापन गर्भित, मु. समयप्रमोद, मा.गु., पद्य, वि. १६७४, आदि: संवत सोल चिडोतरइरे; अंति: समयप्रमोद० परतापरे, गाथा-९. २.पे. नाम. जिनराजसूरि गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. समयप्रमोद, पुहि., पद्य, आदि: ग्रह गण नायक संभले; अंति: समयप्रमोद सुधि आण रे, गाथा-९. ५०२७९. (+) परहेतुतमोभास्करनामस्थल व केवलिभुक्तिनिषेध प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११, १९४७०). १.पे. नाम. परहेतुतमोभास्करनामस्थल, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, आदि: इह हि सकलतार्किकचक्र; अंति: तत्तत्वं चाधिगच्छंतु. २. पे. नाम. केवलिभुक्तिनिषेध प्रकरण, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: झटिति प्रकटतीव्रा; अंति: पद समूहार्थः. ५०२८०. विहरमान स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, १५४४५). २० विहरमानजिन स्तवन, मु. खेम, मा.गु., पद्य, वि. १७६२, आदि: सासणनायक मुझसदा; अंति: खेम० गुण जिणराजा ए, गाथा-२१. ५०२८१. मौनएकादशी कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२६४११.५, १३४३९). मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, आदि: अरस्य प्रव्रज्या नमि; अंति: मौनैकादशी तपोविधेयम. ५०२८२. जीवविचार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. योधपुर नगर, प्रले. ग. शिवविजय; पठ. ग. पदमहर्ष; मु. राजहर्ष, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५-२६.०x११, १०४३४). जीवविचार सज्झाय-चतुर्गति गर्भित, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभादिक जिनवर चउवीस; अंति: पदमविजय० जाउ भावणइ, गाथा-१३. ५०२८३. (#) खिमाछत्रीसी, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १७४४७). क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदरि जीव खिमागुण आदर; अंति: समयसुंदर०संघ जगीस जी, गाथा-३६. ५०२८४. रमतियाल शिष्य प्रबंध सह टीका व प्रस्ताविक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८२१, आषाढ़ शुक्ल, ९, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. भामरी, पठ. ग. नयविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १८४४२). १.पे. नाम. रमतियाल शिष्य प्रबंध सह टीका, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. वैराग्यबोल सज्झाय, पुहि.,रा., पद्य, आदि: बाई हे मि कउतिग दीठ; अंति: विण सुखे सुखीओ थयो ए, गाथा-२०. For Private and Personal Use Only Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची फूलडा सज्झाय-टीका, सं., गद्य, आदि: श्रीवीरमुक्ति गमनतः; अंति: नंत सुख भागिजज्ञे. २. पे. नाम. प्रस्ताविक श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५०२८५. (#) स्तवन व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. ५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५४४९). १.पे. नाम. सुजातजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. नयविजय-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: साचो स्वामी सुजात; अंति: नयविजय० हेज हल्योरी, गाथा-६. २. पे. नाम. फलवर्धि पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, ग. उदयविजय वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: श्रुत अमरी समरी हो; अंति: उदय० जग जसवाद भणइ, गाथा-२७. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. पं. धीरविमल गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सुमति सदा सुकुलिणी; अंति: धीरविमल० थाइ सुहकर, गाथा-१३. ४. पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. __औपदेशिक सज्झाय, मु. भुवनकीर्ति, पुहिं., पद्य, आदि: चतुर विहारी रे आतम; अंति: भुवनकरीते० तिहारे, गाथा-८. ५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पा. धर्मसिंह, पुहिं., पद्य, आदि: करिज्यौ मत अहंकार ए; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ७ तक है.) ५०२८६. (+#) महावीरजिन स्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ६४३५). महावीरजिन स्तव-बृहत्, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, आदि: जइज्जा समणे भयवं; अंति: कयं अभयदेवसूरिहिं, गाथा-२२. महावीरजिन स्तवन-बृहत्-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जयवंतउ वर्तउ श्रमण; अंति: अभयदेवसूरि स्तवन एयं. ५०२८७. (+) वीर गणधर नाम व खरतरगच्छीय पट्टावली संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. पं. विद्यातिलक, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११,१५४४९). १. पे. नाम. ग्यारह गणधर नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. ११ गणधर नाम, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीइंद्रभूति; अंति: स्वामी प्रभास्वामी. २. पे. नाम. खरतरगच्छीय पट्टावली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पट्टावलीखरतरगच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवीरपट्टे; अंति: श्रीशांतिसागरसूरि. ३. पे. नाम. खरतरगच्छीय पट्टावली, पृ. १आ, संपूर्ण. पट्टावलीखरतरगच्छीय, सं., गद्य, आदि: श्रीवीरे मोक्ष गते; अंति: आगमिकमतं निर्गतम्. ५०२८८. गुरुराज पट्टावली तपागच्छीय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पठ. मु. गंभीरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १९४५८). पट्टावली तपागच्छीय, सं., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानो प्रथम; अंति: सूरिपट्ट परंपरा. ५०२८९. नव गमा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, ९४३४). जीव कालस्थिति विचार, मा.गु., पद्य, आदि: पर्याप्तो असन्नीयो; अंति: स्थिति मै ऊपजै, गाथा-९. ५०२९०. (+) उववाई सूत्रगत अंबर आलावो सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११.५, ५४३५). औपपातिकसूत्र-अंबडपरिव्राजक आलापक, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: (-), (पू.वि. दससागरोवमाई पाठ तक है.) अंबडपरिव्राजक आलापक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अम्मडनामा परिव्राजक; अंति: (-). ५०२९१. पोसह २१ दोष व विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, दे., (२६४१०, १४४४२). For Private and Personal Use Only Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ www.kobatirth.org १. पे. नाम. पोषह २१ दोष, पृ. १अ संपूर्ण. पौषध के २१ दोष, मा.गु., गद्य, आदि: पोसा विना पाणी आणी न अंतिः अपरमारजे वारंवार २. पे. नाम. वीतराग ध्यान विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: वीतराग ध्यान केहनो; अंतिः ए चार ध्यान करे. ३. पे. नाम. १४ रत्न उत्पत्तिस्थान, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: चक्र १ छत्र २ असि ३; अंति: पार्श्वे उत्पद्यते. ४. पे. नाम. अक्षीहणीसेना विवरण, पृ. १ अ. संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अक्षौहिणीसैन्य मान, सं., पद्य, आदि: दशलक्षदेति त्रिगुणां; अंतिः प्रमाणं मुनयो वदंति श्लोक-१. ५. पे. नाम. विजयधर्मसूरि के नाम पत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आविः कामं ददाति भविनां तु अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र नामस्मरण का पाठ है.) ५०२९२. () स्तुति, स्तवन व अष्टक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, प्र. वि. अशुद्ध पाठ, वे. (२६.५x११, २९-३५X१५-१९) १. पे. नाम महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण, दीपावलीपर्व स्तुति, मु. रत्नविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सासणनायक श्रीमहावीर, अंति: रतनविमल० मुज वाणी, गाथा-४. २. पे नाम, शांतिजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण, शांतिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: हम मगन भए प्रभुध्यान, अंति: जस कहे ० मैदान में, गाथा- ६. ३. पे. नाम. शाश्वतजिन स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. क. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: च्यार निखेपा श्रीजिन, अंति: रिषभ० साचै मारग जाय, गाथा-४. ४. पे. नाम. जिनपूजा अष्टक, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: जलधारा चंदन पुहप; अंति: दीजे अरथ अभंग, गाथा - १०. ५०२९३. () बोल संग्रह, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. ३, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. वे. (२६.५४१२ ३२-३६x२३). १. पे. नाम. षड्विंशति सन्निपातिक भेद, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. २६ भाव भांगा, मा.गु., गद्य, आदिः उपशम भाव क्षायक भाव, अंतिः श्रेण्या प्राप्यते. २. पे. नाम संख्यादि २१ बोल, पृ. १आ, संपूर्ण. २४९ मा.गु., गद्य, आदि: १ जघन्य संख्याता २ अंतिः उत्कृष्ट अनंता अनंत. ३. पे. नाम, बंधादिकरण भेद, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: बंधनकरण संक्रमणकरण, अंति: करण निकाचनी करण. ५०२९४ (-) जिनप्रतिमा स्तवन व लोक संग्रह, संपूर्ण, वि, २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अशुद्ध पाठ, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२६४११.५ १६४३७). "" १. पे. नाम. कुमती सीखामण स्वाध्याय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. जिनप्रतिमा स्तवन, मु. मानविजय, मा.गु, पद्य, आदिः श्रीजिन जिनप्रतिमां अंतिः मान० सुगुरुनै सीस, दाल-२, गाथा - २१. २. पे. नाम. सुभाषित लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-२. For Private and Personal Use Only ५०२९५. शीलबत्रीसी, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., ( २६११, ११४३२). शीलवत्रीसी, मु. राजसमुद्र, मा.गु, पद्य, आदि सील रतन जतने करि राख, अंतिः राजसमुद्र० विचार जी, गाथा- ३२. ५०२९६. समयसार नाटक छंद, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, दे. (२६४११, १३४४६). Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची समयसार नाटक, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९३, आदि: करम भरम जग तिमिर हरन; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा २८ तक लिखा है.) ५०२९७. (+) भगवती सूत्र शतक १२ उद्देशक १ गत शंखश्रावक दृष्टांत, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२६४११, १६x४५). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., शतक १२ उद्देशक १ मात्र लिखा है.) ५०२९८. जिनचंदसूरि गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. १६६५, माघ शुक्ल, २, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. मथेन वर्धमान (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १३४४५). १. पे. नाम. जिनचंदसूरि गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. हर्षवल्लभ, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीजिनचंदजतीसरखरतर; अंति: श्रीवल्लभ सुख पावइ, गाथा-१०. २.पे. नाम. जिनचंदसूरि गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. हर्षवल्लभ, पुहिं., पद्य, आदि: खरतरगछ जगि चिर जयउ; अंति: वल्लभ० मन सुख घट्टए, गाथा-१४. ५०३०२. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२६४११.५, १४४४१). १.पे. नाम. क्रोध सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: कडुआं फल छे क्रोधनां; अंति: उदयरतन० उपसमरस नाही, गाथा-६. २. पे. नाम. मान सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मानपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: रेजीव मान न कीजीइं; अंति: उदयरत्न० दीजइ देसोटो, गाथा-५. ३. पे. नाम. माया सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मायापरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: समकितनुं मुल जाणीये; अंति: उदयरतन० सुद्ध रे, गाथा-६. ४. पे. नाम. लोभ सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-लोभपरिहार, मु. उदयरत्न कवि, मा.गु., पद्य, आदि: तुमे लक्षण जोजो लोभ; अंति: उदयरतन० तेहने सदारे, गाथा-७. ५०३०३. चक्रेश्वरी देवी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, २६४१८). चक्रेश्वरीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीचक्रभीमे ललितवर; अंति: चक्रदेव्याः स्तवेन, श्लोक-९. ५०३०४. पासा केवली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२५.५४११, १६x४६). पाशाकेवली, मु. गर्गऋषि, सं., पद्य, आदि: कूष्मांडिनी सर्व; अंति: यामेन तथैकदिवसेन तु, (वि. प्रतिलेखक ने श्लोक संख्या नहीं लिखा है.) ५०३०५. पंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, अन्य. मु. जिनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखक के रूप में जिनविजय लिखा है, किन्तु लिखावट से स्पष्ट होता है कि ये प्रतिलेखक नहीं है., जैदे., (२६.५४११.५, १३४३७). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी पास जिणेसर; अंति: गुणविजय रंगे मुनी, ढाल-६, गाथा-४९. ५०३०६. सर्वज्ञसिद्धि प्रकरण, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२५.५४११, १६x६१). सर्वज्ञसिद्धि प्रकरण, सं., गद्य, आदि: इह हि केचिदनादिमहामि; अंति: विश्ववेदिनः सिद्धा. ५०३०७. ढुंढिया उत्पत्ति रास व मत खंडन दोहा, संपूर्ण, वि. १८८४, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. बीकानेर, प्रले. पं. जैचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १६४७२). १.पे. नाम. ढुंढियामतउत्पति रास, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ढुंढियाउत्पत्ति चौढालियो, मु. हेमविलास, मा.गु., पद्य, वि. १८७६, आदि: सरसति माता समरि करि; अंति: हेमविलास० रचना कीनी, ढाल-४, गाथा-९६. २. पे. नाम. टुंढियामत खंडण दोहा, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. रतन, पुहिं., पद्य, आदि: मुहडै बांधै मुहपत्ती; अंति: रतनो लोक देखावण भल्ल, दोहा-५. ५०३०८. (+#) ढंढणऋषि गीत, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५४५३). ढंढणऋषि सज्झाय, आ. कल्याणसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: शासनि श्रुतदेवी सेवी; अंति: कल्याण० करइ प्रणाम, गाथा-१३. ५०३१०. (#) स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, १६४४६-६६). १. पे. नाम. भयहर स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण पणयसुरगण; अंति: भयं तस नासेई दूरेण, गाथा-२४. २. पे. नाम. शांति स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांतिशांतिनिशात; अंति: सूरि श्रीमानदेवस्य, श्लोक-१९. ५०३११. वीसविहरमान स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. पंचपादरा, प्रले. मु. हिम्मतसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, २०४५१). विहरमानजिन स्तवनवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पुष्कलवई विजये जयोर; अंति: वाचक जसे इम बोले रे, स्तवन-२०. ५०३१३. चंदनबाला सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (३४४१४, २६४११). महावीरजिन सज्झाय, मु. सकल, मा.गु., पद्य, आदि: एग वरसीजी ऋखभ करइ; अंति: जिनवर सकलमुनि आधार ए, गाथा-१२. ५०३१४. दिशाफल विचार व १८ नातरा विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६४१२, २६४३८-४६). १. पे. नाम. दिशाफल विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. ज्योतिष*, मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. अठारह नातरा विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. १८ नातरा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: मथुरा नगरी मे कुबेर; अंति: पिता सुसरो लागइ. ५०३१५. (-) सज्झाय, स्तवन व कवित संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ५, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२६४१०.५, २०४५७). १. पे. नाम. केशीगौतम संवाद, पृ. ३अ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र अंतिम पत्र है. केशी गौतमगणधर संवाद, मु. जसकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जस० करता इम कहै, गाथा-१०५, (पू.वि. गाथा १०१ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. मेघकुमार सज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर मेघकुमारजी, अंति: लालचंद० सुख पामसी जी, गाथा-२०. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. ऋ. जैमल, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धारथनंदन मुख चंद; अंति: जमल आठहो कर्म ठीलो, गाथा-१८. ४. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. ३आ, संपूर्ण. जैनगाथा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ५. पे. नाम. औपदेशिक कवित, पृ. ३आ, संपूर्ण.. कवित संग्रह*, पुहि.,मा.गु.,रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-३. For Private and Personal Use Only Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५०३१६. (#) सज्झाय व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. ५, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १६x४५). १.पे. नाम. चंद्रगुप्त सोल स्वप्न, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पाडलीपुर नामे नगर; अंति: रिष जैमल करी जोडोरे, गाथा-३७. २. पे. नाम. आतमध्यान सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. कमलकीर्ति, पुहिं., पद्य, आदि: करुंजी कसीदो ग्यान; अंति: भावसुं सोइ आतमध्यानी, गाथा-९. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: दलाली लालन कीम्हारे; अंति: सुझ पडै निज धाम, गाथा-२५. ४. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, पुहि., पद्य, आदि: सबै दुख टालेंगे; अंति: जिणरत्न तार भवतीर, गाथा-६. ५. पे. नाम. वणजारा गीत, पृ. २आ, संपूर्ण. वणजारा सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: विणजारा रेनगर भड्यो; अंति: समयसुंदर कोइ मती करो, गाथा-१८. ५०३१७. (-#) स्तवन, सज्झाय व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ६, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११, ४४-४७४२०). १. पे. नाम. शांतिजिन प्रभाती, पृ. १अ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: पीरात उठी श्रीसंत; अंति: रतनचंद० लाए करती टली, गाथा-९, (वि. प्रतिलेखक ने १ गाथा को २ गाथा के रूप में लिखा है.) २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, रा., पद्य, आदि: तुं धन तुं धन तुं; अंति: रतनचंद० सहु भर पामी, गाथा-५. ३. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जिनदास, पुहि., पद्य, आदि: लाभ नहि लियो जिणंद; अंति: जीनदास० कुगुरु भजके, गाथा-४. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. भूधर, पुहि., पद्य, आदि: जब लग बहे बनीया का; अंति: भूद्र० संग जरा अवमो, गाथा-३. ५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: नो मास ते गरभावास; अंति: सागर मे० पालणे झूला, गाथा-२. ६. पे. नाम. चंदनबाला सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. चंदनबालासती सज्झाय, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: अंगदेस चंपानगरी आठो; अंति: रतनचंद कीधी रसाला, गाथा-२०. ५०३१८. वैराग्य सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११, ११४३३). औपदेशिक सज्झाय, क. मानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: मानवनो भव पामीयो; अंति: मानसागर० निरवाण, ढाल-२, गाथा-११. ५०३१९. वैराग्य रस गर्भित श्रीपार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, १९४५२-५८). पार्श्वजिन स्तवन-वटप्रदमंडन चिंतामणि, मु. गुणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय गुरु देवाधिदेव; अंति: जिम न पडउं संसारि, गाथा-१४. ५०३२०. (+#) सत्तरिसय स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. नरसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १७४३९). तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अठ्ठ; अंति: निब्भतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४, (वि. यंत्र सहित) For Private and Personal Use Only Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ५०३२१. सरस्वती स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९७१, मार्गशीर्ष कृष्ण, २, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. नवासेर, प्रले. श्रीवल्लभ; पठ. मु. शांतिमुनि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१२.५, ११४२९). १.पे. नाम. सरस्वती स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी के १६ नाम स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: नमस्ते शारदादेवी; अंति: ब्रह्मरूपा सरस्वती, श्लोक-१०. २. पे. नाम. सरस्वती स्तोत्र, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: सरस्वति नमस्यामि; अंति: करिष्यामि न संशयः, श्लोक-७. ५०३२२. (#) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८९०, फाल्गुन शुक्ल, ७, सोमवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. पेथापुर, प्रले. ग. रत्नविजय; पठ. मु. लक्ष्मीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. सुविधिनाथजी प्रशादात्., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, १३४३३). १.पे. नाम. पार्श्वनाथ त्रोटक छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८०, आदि: सुखसंपतिदायकदेव सदा; अंति: उत्तम छंद अखंड भणे, गाथा-१३. २. पे. नाम. गौतमस्वामी स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. वीर, मा.गु., पद्य, आदि: पेहलो गणवीरनोरे; अंति: (-), गाथा-९, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ४ अपूर्ण तक लिखा है.) ५०३२३. संथारा पोरसी छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४११, ८४४०). संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसिही निसिही निसीहि; अंति: इअसमत्तं मएगहीए, गाथा-१४. ५०३२४. स्तोत्र व गरjसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६४१२, ३१x१२-२१). १.पे. नाम. वीसस्थानक ओली गरणु, पृ. १अ, संपूर्ण. २० स्थानकतप गणगुं, मा.गु., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं लो० २४; अंति: तित्थस्स लो० १० काउ०. २.पे. नाम. नवपद ओली गरणु, पृ. १अ, संपूर्ण. नवपद गणना, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं नमो अरिहताण; अंति: नमो तवस्स गुण १२. ३. पे. नाम. शत्रुजय स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, सं., पद्य, आदि: रषीणं जतः पंचभीकोटि; अंति: प्राप यत्रैव राम, श्लोक-८. ५०३२५. २४ जिन पंचकल्याणक गणर्नु, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. इंद्रजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. १४२ पत्र., दे., (२६४१२, ४१x१४-२१). २४ जिन पंचकल्याणक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: कार्तिक वदि ५; अंति: नमः तप मासखमण१. ५०३२६. (८) स्वाध्याय व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. पेथापुर, प्रले. मु. गुलाबविजय; अन्य. श्राव. नथु, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२६.५४१२, १३४३७). १. पे. नाम. गणधर स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण, ले.स्थल. पेथापुर. २४ जिनगणधरसंख्या स्तवन, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती आपे सरस वचन; अंति: वृद्धिविजय गुण गाय, गाथा-९. २. पे. नाम. औपदेशिक गाथा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. जैनगाथा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. __क. गद, पुहिं., पद्य, आदि: गई मान मरजाद गई लोड; अंति: गद०जाते ए ता वहि गया, गाथा-१. ५०३२७. (#) पाक्षिक खामणा. बीस बोल व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८७७, फाल्गुन कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. पं. निधानविजय गणि; पठ. मु. गुलाबविजय (गुरु पं. निधानविजय गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १६४३७). १.पे. नाम. पाक्षिक खामणा, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीतप आलापक, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: इच्छाकारेण संदिसह; अंति: त्थारपारगाहोह तहत्ति. २.पे. नाम. तीर्थंकर वीस बोल, पृ. १आ, संपूर्ण. २० बोल विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहिले बोले श्रीअरिह; अंति: तीर्थंकरगोत्र बाधे. ३. पे. नाम. सुभाषित श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह ,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), श्लोक-५. ५०३२८. (+) विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२, १६४३५). १.पे. नाम. राईपडिकमण विधि, पृ. १अ, संपूर्ण.. राईप्रतिक्रमण विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: प्रथम इरियाव० पडि०; अंति: दीसाउंइ० बहूल करसुं. २. पे. नाम. देववंदन विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: ईरा० नो०४ लोगस्स; अंति: नमुत्थु० जयवीयरा. ३. पे. नाम. पच्चक्खाण पारवा विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. पच्चक्खाण पारने की विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: चैईन० नमोथुणं०; अंति: तस मिच्छामि दुक्कडम्. ४. पे. नाम. वीस स्थानक विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. २० स्थानकतप गणj, मा.गु., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं लो० २४; अंति: नमो तित्थस्सलो० १०. ५. पे. नाम. नवपद ओली, पृ. १आ, संपूर्ण. नवपद गणना, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं नमो अरिहंताण; अंति: नमो तवस्स गुण १२. ५०३२९. ज्वर छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, २४४२४). ज्वर छंद, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ॐ नमो आनंदपुर नगर; अंति: कांति० लक्ष्मि भोग, गाथा-१४. ५०३३०. (#) आदिनाथ स्तवन व चौविसजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, १६४५१). १. पे. नाम. आदिनाथ स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. आदिजिनविनती स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: जय पढम जिणेसर; अंति: लावण्य० जुग थुणीयं, गाथा-४४. २. पे. नाम. चोवीस तीर्थंकर स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिणेसर प्रणमुं; अंति: आणंद० गुणे प्रधान, गाथा-२८. ५०३३१. कल्याणक टीप व दस पच्चक्खाण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४१२, १९४३७). १.पे. नाम. कल्याणक टीप गणणु, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. २४ जिन १२० कल्याणक कोष्टक, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: कार्तिकसुदि ८; अंति: परमेष्ठी नमः. २.पे. नाम. दस पच्चक्खाण, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति पेन्सिल से लिखी गई है. १० पच्चक्खाण नाम, मा.गु., गद्य, आदि: उपवास चौविहार; अंति: नविथी करवू चौविहार. ५०३३२. शास्वत जिन भवन बिंब संख्या स्तोत्र सह अवचूरी, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. पं. गजविमलगणि (गुरु पं. वर्द्धमानविमलगणि); गुपि.पं. वर्द्धमानविमलगणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२६.५४११.५, १२४२८). शाश्वतचैत्य स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिउसहवद्धमाणं; अंति: भवियाण सिद्धिसुहं, गाथा-२४. शाश्वतचैत्य स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: ज्योतिष्कव्यंतरेष्वस; अंति: तेवीसजुया पणिवयामि, (पू.वि. गाथा २२ तक की अवचूरि है.) For Private and Personal Use Only Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ५०३३३. (+#) दानशील तप भावना संवाद व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १७२१, आश्विन शुक्ल, ६, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, ले.स्थल. पाटणनगर, प्रले. उपा. राजसोम (खरतरगच्छ); पठ. श्रावि. सुशीला वेल बाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५४५३). १.पे. नाम. दानशील तप भावना संवाद, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण.. दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति: समयसुंदर० प्रसाद रे, ढाल-४, गाथा-१०१, ग्रं. १३५. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-वाडी, उपा. राजसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७२१, आदि: जिनजीलाल प्रह ऊठीनइ; अंति: राजसोम०सहु आस रे लाल, गाथा-१०. ५०३३४. (-) सज्झाय व कवित संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२६४११, १०४३१). १.पे. नाम. पंच इद्रीय सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ५ इंद्रिय सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: काम अंध गजराज अगाज; अंति: जिनहर्ष० सुख सासता, गाथा-६. २. पे. नाम. औपदेशिक कवित, पृ. १आ, संपूर्ण. क. गद, पुहिं., पद्य, आदि: गउ विकल मत ग्रही; अंति: गद० हलाहल कल जगवै है, गाथा-१. ३. पे. नाम. सुभाषित दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अति: (-), गाथा-१. ५०३३५. उवसगहर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, ५४२७). उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं पास; अंति: भवे भवे पास जिणचंद, गाथा-५. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: उपसर्गना हरणहार; अंति: हे पार्श्व जिनचंद्र. ५०३३६. (+#) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-पंचपाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १९४५८). १.पे. नाम. महावीर स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-चक्रबंध, आ. कुलमंडनसूरि, सं., पद्य, आदि: विश्वश्रीद्ध रजश्छिद; अंति: वीर त्वमेधि श्रिये, श्लोक-२१. महावीरजिन स्तवन-टिप्पण, सं., गद्य, आदि: इह दीप्त हे वीरत्थीर; अंति: (अपठनीय), (वि. प्रत का किनारा खंडित होने के कारण अंतिम वाक्य अवाच्य है.) २.पे. नाम. सर्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति-अष्टप्रातिहार्यगर्भित, सं., पद्य, आदि: प्रातिहार्यकलितासम; अंति: मे निजपदाव्ययभक्तिम, श्लोक-६. ३. पे. नाम. पार्श्वनाथ हारबंध स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पंचजिन स्तवन-हारबंध, आ. कुलमंडनसूरि, सं., पद्य, आदि: गरीयो गुण श्रेण्यरीण; अंति: दायेक पर पारगबोधिम्, श्लोक-२३. ५०३३८. (+) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५४१२,१५४४२). १. पे. नाम. वनस्पतिसत्तरी, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. वनस्पतिसप्ततिका, आ. मुनिचंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: उसभाइ जिणिंदे पत्तेय; अंति: मुणिचंदसूरीहिं, गाथा-७१. २. पे. नाम. समवसरण स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. समवसरण प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: तिहुयणसिरि कुलनिलय; अंति: भद्दपयं दिसिउ पणयाणं, गाथा-२१. ३. पे. नाम. चौबीसजिन स्तनव, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २५६ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची चतुर्विंशतिजिन स्तव - चत्तारिअट्ठदसदोष, आ. देवेंद्रसूरि प्रा. पद्य, आदि: चतारिअडवसवो बंदि, अंति: (-), (पू.वि. गाथा ६ अपूर्ण तक है.) ५०३३९. जंबूद्वीप संग्रहणी सूत्रम्, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५.५X११.५, १३X३६-४२). लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं सव्वनुं, अति रहया हरिभद्रसूरीहिं, गाथा ३०. ५०३४०. (०) कालडंक चौपाई व जांगुलीमंत्र विधिसहित संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २. कुल पे २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११, १३x४३). १. पे. नाम. कालडंक चौपाई. पू. १अ २अ संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९ नागकुल चौपाई, मु. देवशील, मा.गु, पद्य, आदि वाग्वाणी पय प्रणामी, अंतिः देवशील तेहनो विचार, गाथा-२९. २. पे. नाम. जांगुली मंत्र विधिसहित, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण. जांगुलीमंत्र विधिसहित, मा.गु., गद्य, आदिः ॐनमो संभलिहो डंक, अतिः मेल्हि लहरीसं चेलि. ५०३४१. सूतक विचार संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे. (२६.५x१२.५, १३४१९-३९). " १. पे. नाम. चोवीस प्रहर सुतक विचार, पृ. १अ संपूर्ण. सूतक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पुत्र जन्मे दिन दशनु; अंति: पहोरनुं सूतक जाणवुं. २. पे नाम. रुतुवंती खी संबंधी सूतक निर्णय, पृ. १आ, संपूर्ण. ऋतुवंती स्त्री विचार, मा.गु., गद्य, आदि: दिन त्रण सुधी भांडा; अंति: ग्रंथमां कह्युं छे. ५०३४२. मृत्यु संबंधी सुतक विचार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६X११.५, १३X२३-२७). मृत्यु सबंधी सुतक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जेने घरे जन्म तथा; अंतिः समुछम जीव उपजे. ५०३४४. सज्झाय व जिन वंदन विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२५.५X११.५, १४X४३). १. पे नाम, जीवोत्पत्ति सझाय, प्र. १-३अ, संपूर्ण औपदेशिक सज्झाय- गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदिः उत्पति जोज्यो आपणी; अंति: इम कहिये श्रीसार ए गाथा - ७२. २. पे नाम, जिनवंदन विधि, पृ. ३अ ३आ, संपूर्ण. दयापच्चीसी, मु. विवेकचंद, मा.गु., पद्म, आदि: सयल तीर्थंकर करू रे अंतिः (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ४ तक लिखा है.) ५०३४५. जीवोत्पत्ति सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, जैदे. (२६४१२, १४४० ). " औपदेशिक सज्झाय गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु, पद्य, आदि उतपत जोय जीव आपणी: अंतिः इम कहै श्रीसार ए. गाथा - ७२. ५०३४६, (-) स्वाध्याय व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे २, प्र. वि. अशुद्ध पाठ दे., (२५.५४११, १३४३६). १. पे. नाम हीररत्नसूरि स्वाध्याय, पृ. ९अ संपूर्ण हीररत्नसूरि सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: सरसती माता सेवक जाणि; अंति: उदयरतन० गाय उछाह गाथा- ९. २. पे नाम, अनंतजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, रा., पद्य, आदि: अनंत प्रभुशुं आसिकी अंतिः उदय० मिलो उनसी धाई, गाथा-५. ५०३४७. अजितजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १. दे. (२६.५४११.५, ९५३१). " अजितजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अजित जिनराज सुणि आज, अंति: नय० अधीक तुझ सेवा, गाथा- ७. ५०३४९. (#) छत्रीस बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X१२, २५X३४-५६). ३६ बोल संग्रह, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: साधुजीनै लालरी रोटी, अंति: ले वीकल्पै नहीं साख For Private and Personal Use Only Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ५०३५०. (#) स्तवन व पूजा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८६३, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, ले.स्थल. मौर्यपुर, प्रले. मु. मोहनरत्न; पठ. पं. प्रधानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीधर्मनाथ प्रसादात्, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १५-१८४४४). १. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: उलगडी आदीनाथनी जो; अंति: रामविजे गुण गाय जी, गाथा-५. २.पे. नाम. सुमतिपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सुमतिपार्श्वजिन स्तवन-अजीमगंज मंडन, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीजिनराज के सतरस; अंति: अवीचल पद सुख राजते, सवैया-६. ३. पे. नाम. सत्तरभेदी पूजा, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण. १७ भेदी पूजा, वा. सकलचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत मुखपंकजवासिनी; अंति: सकल तस फल चीणीयोरे, ढाल-१७, गाथा-१०८. ५०३५१. प्रमोद प्रसतालीस, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, दे., (२६.५४१२, ८४३०). औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: जीव सरवे आतमा धर्म; अंति: जीव सब जाणे सौ नर धन, गाथा-४७. ५०३५२. इरयावहि प्रक्रीया, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२६.५४११.५, ११४३६). ५६३ जीवभेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पृथ्वीकाय अपकाय; अंति: दुष्कृत मिथ्या होवो. ५०३५३. स्नातस्या स्तुति, संपूर्ण, वि. १८०५, श्रावण, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४१२,७४३०). पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. ५०३५४. (#) जीवविचार प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, अन्य. मु. महरचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, ९४३४). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५३. ५०३५५. जयतिहुण स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६४१२, ११४३६). जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख; अंति: विनिवइ आणंदिय, ___गाथा-५. ५०३५६. पचिस बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. १, दे., (२६.५४१३, १३४३८). २५ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: पेहले बोले भणवानो; अंति: साख्य जाणवि. ५०३५७. महावीरजिन पद व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९०५, आषाढ़ कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. मु. तलोकसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२, १३४२६). १.पे. नाम. औपदेशिक गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. गाथा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: चाक चढाय घड्यो कोइ; अंति: फडास के फाटी, गाथा-१. २. पे. नाम. सुभाषित श्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह *सं., पद्य, आदि: स्थानभ्रष्टा न; अंति: पापाय परपीडनम्, श्लोक-२. ३. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मारे भलो रे उगो; अंति: वंछित अनुपम राजनो रे, पद-३. ५०३५८. दिगपाल आवाहन व विसर्जन विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६.५४१२, १४४३९). १० दिक्पाल आवाहन विसर्जन विधि, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: क्षीर १ लापसी; अंति: इम करीने नमस्कार करे, पद-१०. ५०३५९. (#) अशुभ योग व राजुल रहनेमि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १७४५६). १.पे. नाम. अशुभ योग, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सं., पद्य, आदि: हस्तोत्तरात्रयंमूल; अंति: एव चतुर्थिके तिथि, श्लोक-१५. २. पे. नाम. राजुलरहनेमि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मेहि भीनी जइ गुफामां; अंति: भणइ दानविजय उवज्झाय, गाथा-३१. ५०३६०. वीसस्थानक स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६.५४११.५, १२४३४). २० स्थानकतप स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुयदेवी समरी कहु; अंति: खीमाविजय० सुजस जमाव, गाथा-१४. ५०३६१. मणिभद्र छंद व धर्मजिन कवित्त, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. पं. रामविजय; पठ. मु. वृद्धिविजय (गुरु पं. रामविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १७४४९). १. पे. नाम. मणिभद्र समहीम छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. माणिभद्रवीर स्तोत्र, उपा. उदय वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: चित समरु हुं त्रिपुर; अंति: जे माणिभद्र सेवे सदा, गाथा-२५. २. पे. नाम. धर्मजिन कवित्त, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. उदय, पुहि., पद्य, आदि: आनन जास अनोपम राजत; अंति: उदइ० सब सुख लह्यो, गाथा-१. ५०३६२. (#) सिद्धदंडिका स्तवन यंत्र, मंत्र व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११, १७-३५४१८-५५). १. पे. नाम. सिद्धदंडिका यंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., को., आदि: अनुलोमसिद्धिदंडिका १; अंति: असंख्याता ज्ञेयाः. २.पे. नाम. सिद्धदंडिका स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. सिद्धदंडिका स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जं उसहकेवलाओ अंत; अंति: दिंतु सिद्धि सुह, गाथा-१३. ३. पे. नाम. औषध व यंत्र-मंत्र संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औषध-यंत्र-मंत्रसंग्रह, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५०३६३. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ६, ले.स्थल. राजनगर, जैदे., (२६.५४१२, १४४४१). १.पे. नाम. क्रोध सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: कडुआं फल छे क्रोधना; अंति: उदयरतन० उपसमरस नाही, गाथा-६. २.पे. नाम. मान सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मानपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: रे जीव मान न कीजीए; अंति: दीजीइ देशोटो रे, गाथा-५. ३.पे. नाम. माया सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मायापरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: समकितनुं मुल जाणीये; अंति: ए छे मारग सुध रें,गाथा-६. ४. पे. नाम. लोभ सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-लोभपरिहार, मु. उदयरत्न कवि, मा.गु., पद्य, आदि: तुमे लक्षण जोजो लोभ; अंति: लोभ तजे तेहने सदारे, गाथा-७. ५. पे. नाम. निंद्या वैरमण सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण, ले.स्थल. राजनगर, पठ. रवचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. औपदेशिक सज्झाय-निंदात्यागविषये, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: निंदा म करजो ___ कोईनी; अंति: समयसुंदर सुखकार रे, गाथा-५. ६. पे. नाम. सियल सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. कुसल, मा.गु., पद्य, आदि: भरतक्षेत्रमां रे, अंति: कुसल निति घर अवतरे, ढाल-३, गाथा-२७. ५०३६४. स्तवन संग्रह व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२६X१२, १४X३४). १. पे. नाम सांति स्तवन, पू. १अ. संपूर्ण. " शांतिजिन स्तवन, उपा. उदयरत्न, मा.गु, पद्य, आदिः सेवजो रे शांति जिनंद अंतिः उदेरतन० दोलत दिपति रे, गाथा-५. २. पे. नाम. युगमंदिर स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. युगमंधरजिन स्तवन, पं. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: काय पामि अति कुडि; अंति: जिनविजये गायो रे, गाथा-९. ३. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ९आ, संपूर्ण, प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा., सं., पद्य, आदि: संकीर्त्यमासमवधिं; अंतिः पुनरुत्तर पांचकार, श्लोक-४. ५०३६५. (#) नेमिनाथ भ्रमरगीता, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५X१२, १८x४७). नेमिजिन भ्रमरगीता, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: समुद्रविजयनृपः अंतिः धुण्यो सानुकूल, गाथा - २७. ५०३६६. पद व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., ( २६ १०.५, १५X४१). १. पे. नाम. आध्यात्मिक स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, मु. विनय, पुहिं., पद्य, आदि: किसके चेले किसके पूत, अंति: विराजो सूख भरपूर, गाथा-७. २. पे. नाम, जीवकाया सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण २५९ औपदेशिक सज्झाय-जीवकाया, पुहिं., पद्य, आदि: तु मेरी पिउ साजना रे; अंति: हे काया सुणो रे लाल, गाथा- ९. ३. पे. नाम. स्वात्मोपदेश सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. माल, मा.गु, पद्य, आदि: जगत सुपनो जाणोरे, अंतिः मालमुनि० भल होइ रे, गाथा-५. ५०३६८. (१) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १. कुल पे. २, ले. स्थल. रांनेर, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११.५, १५x२७). १. पे. नाम. तमाकु सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, वि. १८४०, आषाढ़ कृष्ण, ७. औपदेशिक सज्झाय-तमाकुत्याग, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतम सेती वेनवे; अंति: आनंद० कोड कल्याण, गाथा - १८. २. पे. नाम. पडिकमण सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण वि. १८४०, कार्तिक शुक्ल, १. प्रतिक्रमण सज्झाय, संबद्ध, मु. धर्मसिंह मुनि, मा.गु., पद्य, आदि कर पडिकमणुं भावशुं अंतिः धर्मसंघ निधान, गाथा- ६. ५०३६९. शत्रुंजयगिरी चैत्यवंदन, संपूर्ण वि. १९९६, ज्येष्ठ कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. १. ले. स्थल, हरजीग्राम, दे. (२६४११.५, २८४१६). जिनमंदिरदर्शनफल चैत्यवंदन, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणम्युं श्रीगुरु; अंति: प्रभु सेवानिकोड, गाथा - १४. ५०३७१. (१) स्तवन संग्रह व गीत, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे., (२६११.५, १४४४४). १. पे नाम वासुपूज्यजिन स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण. मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: चांपानामि नयरीइं रे; अंतिः न्यानसागर० तरण जिहाज, गाथा- ६. २. पे. नाम. विमलजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: बे कर जोडी वीनवुं रे; अंति: न्यानसागर० प्रतिपाल, गाथा- ७. ३. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: रूडी कोसलदेशे दीपती, अंतिः न्यानसागर० विनवई रे, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २६० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४. पे. नाम. धर्मनाथ गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. धर्मजिन गीत, मु. ज्ञानसागर, मा.गु, पद्य, आदि: मोरा स्वामी रे सुणो अंतिः न्यानसागर शिरनामी रे, गाथा-४. ५०३७२. मृगापुत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., ( २६.५x१२, १९x४०). मृगापुत्र सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: पुरव सुग्रीव सुहामणो; अंतिः कवियण० परिणाम हो, गाथा- १७. ५०३७३. (०) स्तवन व चौपाई, संपूर्ण वि. १७७४ कार्तिक कृष्ण, ११, रविवार, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले. स्थल. धिराग्राम, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२५.५४११.५, १७४४४). , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे. नाम. उपधान विधि स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण, ले. स्थल. धिराग्राम, प्रले. ग. लब्धिविजय (गुरु मु. वृद्धिविजय); गुपि. मु. वृद्धिविजय (गुरु ग. लाभविजय), प्र.ले.पु. सामान्य. महावीरजिन स्तवन- उपधानतपविधिगभिंत, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३, आदिः श्रीवीर जिनेसर सुपरि अंतिः मुझ देज्यो भवे भवे, गाथा-२७. २. पे. नाम. दिनमान चौपाई, पृ. १आ-२अ संपूर्ण, ले. स्थल, धिराग्राम, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः सरसति सामिणि प्रणमी, अंति: पथणे सोमविमल तस सीस, गाथा १९. ५०३७४. सज्झाय, छंद व शतक, संपूर्ण, वि. १९वी, आषाढ़ शुक्ल, २, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., ( २६.५X११.५, २१X५२). १. पे. नाम सीख सज्झाय, पृ. ९अ. संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मंगल करण नमी जिनचरण, अंतिः ते नहि अवतरें, गाधा- २४. २. पे नाम. शांतिनाथ छंद, पृ. ९आ, संपूर्ण. शातिजिन छंद, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: प्रेमेसुं करो पारखी; अंति: उदेरत्न० हवे आण तोरी, गाथा - ७. ३. पे. नाम. वैराग्यशतक, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम गाथा लिखा है.) ५०३७५. तमाकु गीत, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैवे. (२६४११, ११४३३). तमाकू गीत, मु. असार, मा.गु., पद्य, आदिः समकित लक्ष्मी पानी मेरो अंतिः परमातम सब सुखदाई, गाथा १५. ५०३७६. साधुमरण विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., ( २६४१२, १३X३७). साधु कालधर्म विधि, मा.गु., सं., गद्य, आदि: कोटिगण वैरिसाखा, अंतिः पछे लोगस कवो. ५०३७०. गाथा संग्रह, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. १, कुल पे ३, दे. (२६.५x१२, ६३५). १. पे. नाम. काउस्सग गाथा सह टबार्थ, पृ. १अ, संपूर्ण. साधु अतिचारचिंतवन गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्म, आदि: सयणासणन्नपाणें चेईय; अंतिः वितहा चरणेहिं अइआरो, गाथा- १. साधुअतिचारचितवन गाथा-टवार्थ, मा.गु, गद्य, आदि सयण सूह असन ते अंतिः विषे अतिचार चिंतवे, २. पे. नाम. गोचरी गाथा सह टबार्थ, पृ. १अ, संपूर्ण. गोचरी आलोयण गाथा, प्रा., पद्य, आदि: अहो जिणेहिं असावज्जा; अंति: साहु देहस्स धारणा, गाथा-२. गोवरी आलोअण गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: मोटु आश्चर्य वीतरागे, अंतिः भावना १२ भावना छे. ३. पे. नाम. छींक निवारण गाथा, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. छींक विचार, संबद्ध, मा.गु. सं., गद्य, आदि पाखी पडिकमणा छीके अंतिः क्रिया पुरि करइ. ५०३७८. सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२७१२.५, १२X३५). सिद्धचक्र स्तवन, मु. माणिकमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: समरि सारदा शारद विधु; अंति: माणेक० मयणा श्रीपाल, गाथा- ७. ५०३७९. जंबूद्वीप गणित, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., ( २६.५x१२, १२X३४). लघुसंग्रहणी - गणितपद विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम त्रण लाख ने अंति: गाउनो एक जोजन जाणवो. ५०३८०. (#) गीत स्तुति व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५x११, १६५७). १. पे. नाम. चार प्रत्येकबुद्ध गीत, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ २६१ ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानगरी अति भली; अंति: समयसुंदर० परसिद्ध, ढाल-५. २. पे. नाम. गौडीपार्श्वदेव स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिनस्तोत्र-गौडीजी, पं. ज्ञानतिलक, सं., पद्य, आदि: शास्वतलक्ष्मीवल्ली; अंति: ज्ञानतिलकम् लभंते, श्लोक-६. ३. पे. नाम. क्रोध सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: कडूवो फल छै क्रोधना; अंति: उदयरतन० उपसमरस नाही, गाथा-६. ४. पे. नाम. १८ भार वनस्पति गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. कृति बाद में लिखी गई है, परंतु पत्रांक-१'अ' के प्रारंभ में है. १८ भार वनस्पतिमान कवित, मु. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: तीन कोडि तरु लाख; अंति: ऋतु मै हिंसा छती, गाथा-२. ५०३८१. ऋषभजिन विज्ञप्ति स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. पादलिप्त तीर्थ, जैदे., (२५.५४११.५, १२४३१). आदिजिनविनती स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: पांमी सुगुरु पसाय; अंति: विनय करीने विनवे ए, गाथा-५७. ५०३८३. (+#) ऋषिमंडल स्तवन, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. पत्तननगर, पठ. श्रावि. रतनबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पठनार्थ का नाम अंतिम पत्र में सुशोभनयुक्त बडे अक्षरों में लिखा है., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १४४३९). ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्य; अंति: लभते पदमव्ययम्, श्लोक-८४. ५०३८४. भयहरस्तोत्र पर्याय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२६४१२, १६४४७). नमिऊण स्तोत्र-अभिप्रायचंद्रिका टीका, आ. जिनप्रभसूरि, सं., गद्य, वि. १३६५, आदि: श्रीपार्श्वस्वामिनं; अंति: शब्देन तत्स्था जनाः. ५०३८५. अष्टमी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२६.५४१२.५, ११४४१). अष्टमीतिथि स्तवन, मु. लावण्यसौभाग्य, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: पंचतिरथ प्रणमुंसदा; अंति: रच्यू छे तारु रे, ढाल-४, गाथा-२४. ५०३८६. (+) मल्लिनाथ वृद्धस्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. प्रत की कीमत प्रति पत्र ४ आना लिखा गया है., संशोधित. कुल ग्रं. ५८, दे., (२६.५४१२.५, १०४३६). मल्लिजिन स्तवन, मु. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७५६, आदि: नवपद समरी मन शुद्ध; अंति: कुसललाभे० मन ____धरी, ढाल-५. ५०३८७. (+-#) स्तोत्र व चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ३, कुल पे. १४, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १३४३८). १. पे. नाम. रवि स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. आदित्य स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: आदित्यः प्रथमं नाम; अंति: यस्य सर्वदुःखविनाशनं, श्लोक-४. २. पे. नाम. चंद्र स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. विंशतिचंद्रनाम स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: हिमांशु प्रथमं नाम; अंति: विशुद्धानंददायक, श्लोक-६. ३. पे. नाम. मंगल स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: मंगलो भूमिपुत्रश्च; अंति: कथ्यते च मुनीश्वरः, श्लोक-४. ४. पे. नाम. बुध स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: बुधः चतुर्थग्रहश्च; अंति: तस्य शांति भवेत्सदा, श्लोक-३. ५. पे. नाम. वृहस्पति स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. बृहस्पति स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ बृहस्पति सुराचार्य; अंति: प्रीति तस्य बृहस्पति, श्लोक-५. ६. पे. नाम. शुक्र स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २६२ www.kobatirth.org सं., पद्य, आदि: प्रथमं शुक्रनामश्च; अंतिः ऋद्धिवृद्धिदयस्तथा, श्लोक-३. ७. पे. नाम. शनि स्तोत्र, पृ. १आ-२अ संपूर्ण. शनिश्चर स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः य पुरा राज्यभीष्टाय अंतिः वृद्धिं जयं कुरु श्लोक-११. ८. पे. नाम. सूर्य स्तोत्र, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदिः यस्य सूर्यो महातेजो, अंतिः क्लेशहानि न कवाचन, श्लोक ५. ९. पे. नाम. सूर्य मंत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदिः ॐ नमो सूर्यदेवताय, अंतिः श्रीसूर्यदेवताय नमः . १०. पे. नाम. नवग्रह स्तोत्र, पृ. २आ- ३अ संपूर्ण वि. १८५०, पौष कृष्ण, १३, ले. स्थल द्वीपबंदर, प्रले. पं. प्रीतकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, पे. वि. श्रीनवलखाजी प्रसादात् श्रीसुविधिजिन प्रसादात्, श्रीनेमिनाथ प्रसादात् ९ ग्रह स्तोत्र, ऋ. वेद व्यास, सं., पद्य, आदि: जपाकुसुमसंकासं; अंति: व्यासो ब्रूते न संशय, श्लोक-१२. १९. पे. नाम नेमिजिन स्तोत्र, पृ. ३अ संपूर्ण. नेमिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: नेमि विशालनयनो नयन, अंतिः राजमतिं पातु वः, श्लोक-२. " १२. पे. नाम. महावीर चैत्यवंदन, पृ. ३अ, संपूर्ण. महावीरजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: जयति शततोदय, अंतिः भावतोहं नमामि श्लोक-३. १३. पे नाम, पार्श्वनाथ चैत्यवंदन, पृ. ३अ ३आ, संपूर्ण पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथ नमः; अंति: पार्श्वजिनेश्वरं, श्लोक-२. १४. पे नाम, वीसविहरमान स्तोत्र, पृ. ३आ, संपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची विहरमान २० जिन स्तव, सं., पद्य, आदि: द्वीपेत्र सीमंधर, अंति: कर्मणामिश्रकं वा श्लोक-४. ५०३८८. परमात्माछत्रीसी, संपूर्ण, वि. १९२४, माघ शुक्ल, २, मध्यम, पृ. २, प्रले. नरभेराम अमुलख ठाकोर, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६X१२.५, १३X३३). परमात्मछत्रीसी, मु. चिदानंद, मा.गु., पद्य, आदिः परमदेव परमातमा परम; अंति: रतिलखि आतम के उद्धार, गाथा- ३६. ५०३८९. शंखेश्वर पार्श्वजिन छंद, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२६.५४१२, १२४३३) ५०३९१. युगमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, ये. (२६४१२, ९४२९). " पार्श्वजिन छंद- शंखेश्वरतीर्थ, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो पास संखेश्वरो, अंतिः संखेश्वरा आप तुठा, गाथा-७. ५०३९०. सोल सती सझाव, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, वे. (२६.५X१२, १२४३०) १६ सती सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु. पद्य वि. १८वी आदि आदिनाथ आदे जिनवर, अंतिः उदयरतन० सुखसंपदा ए. गाथा - १७. युगमंधर जिन स्तवन, पं. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: काया पामी अति कुडी, अंति: पंडित जिनविजय गाय रे, गाथा - ९. ५०३९२. नवम व्याख्यान सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. कुल ग्रं. १३, दे., ( २६.५x१२, ११३१). नवम व्याख्यान सज्झाय, संबद्ध, मु. माणेकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: संवत्सरी दिन सांभलो; अंति: ए बुध माणेक चक्रेश्वरीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीचक्रे चक्रभीमे; अंति: चक्रदेव्याः स्तवेन, श्लोक - ९. ५०३९५. नागेला स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे. (२६.५४१२, १४४४०). " मन भाय, गाथा - ९. ५०३९३. (१) चक्रेश्वरीदेवी महादेव्याष्टक, संपूर्ण, वि. १६९३, फाल्गुन शुक्ल, ३. शुक्रवार, मध्यम, पु. १, प्रले. पंडित. आनंदवर्धन गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२५.५x११.५, १२४३३). For Private and Personal Use Only जंबूस्वामी ५ भव सज्झाय, मु. राम, मा.गु, पद्य, आदि सारद प्रणमी हो कि भव, अंतिः हो के मुनिवर रामजी, गाथा - ३४. ५०३९६. सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८३८, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले. स्थल. श्रीरामपुरा, जैदे (२६४१२, १२४३३). १. पे. नाम. हीरविजयसूरि सज्झाच, पृ. १अ संपूर्ण, वि. १८३८, ज्येष्ठ शुक्ल, २. ले. स्थल. श्रीरामपुरा Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती मती आपोजी सारी, अंतिः सिद्धिविजय०गुरु वंदे, गाथा-१०. २. पे. नाम. नवपद सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र सज्झाय, मु. उत्तमसागर शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: नवपद महिमा सार सांभल, अंति: उततमसागर इम जानियो गाथा-५ ५०३९७, (४) स्तवन संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १. कुल पे. २. प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६११.५, १४४१८). १. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. भक्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि; राजुल कहे सुणो नेमजि, अंति: भक्ति नमे नीतमेव गाथा-८. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति - शंखेश्वर, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि पाश संखेश्वरा साज्य अंति: उदयरतन० भेजो पास, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५X१२, १२X३५). १. पे नाम, आत्मप्रबोध ज्ञान सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा-५. ५०३९८. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., ( २६.५x११.५, १०x४२). १. पे. नाम. संखेश्वर स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. , पार्श्वजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, रा. पद्य, आदि शंखेश्वर स्वामी आप अंतिः रत्नविजे० दिन दयाल, गाथा-५. २. पे. नाम. तारंगा स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. अजितजिन स्तवन- तारंगातीर्थमंडन, पंन्या. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९५५, आदि: श्रीतारंगा धाममां, अंतिः पुरज्यो आस लाल रे, गाथा-८. ३. पे. नाम. संखेश्वर स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: संखेश्वर वीनती; अंति: मोहनने सुख थाय रे, गाथा- ३. ५०४००. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. माणेकचंद ऋषि, पठ. श्रावि. रुखमणि, २६३ आत्मप्रबोध सज्झाय, मु. भावप्रभ, मा.गु., पद्य, आदि: सासरीइं इम जइइ रे; अंतिः भावे सिवसुख लही रे, गाथा- ८. २. पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. יי मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सज्झा भली संतोषनि, अंति: मांगे अविचेल ठामजी, गाथा- ६. ५०४०१. दोढसो कल्याणक चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., ( २६.५X१२, ११३५). १५० जिनकल्याणक चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: शासननायक जगजयो वर्धम; अंति: शिवलक्ष्मी वरीजे, गाथा- १६. ५०४०२. मृगापुत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. २, दे., ( २६.५x१२, १०x२५). मृगापुत्र सज्झाय, मु. सिंहविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सुग्रीवनवरि सोहामणि, अंति: तुझ सम अवर न कोय, गाथा-२०. ५०४०३. आत्मोपदेश सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. जयगोपाल, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., ( २६१२.५, १२X३४). आत्मोपदेश सज्झाय, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: हुं तो प्रणमु; अंतिः पछे नीत आनंदघन थाय, गाथा-११. ५०४०४. अष्टमी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९१७, भाद्रपद शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. १, प्रले. भूधरदास गंगादास, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५X११.५, १०x३८). अष्टमीतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदिः आठमने दिने आठ मद तजी; अंति: लबधिविजय० रेह रे, गाथा - ९. ५०४०५. (+) नवतत्त्व प्रकरण सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. पवच्छेद सूचक लकीरें - पंचपाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ- संशोधित, जैदे., ( २६.५X११.५, २०X३५). नवतत्व प्रकरण, प्रा. पद्म, आदि; जीवाजीवा पुण्णं पावा, अंतिः अणागयद्धा अनंतगुणा, गाथा ३१ (वि. प्रतिलेखक ने गाथाओं को एक गाथा गिनकर परिमाण लिखा है.) तत्त्व प्रकरण अवचूरि, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, आदि: जयति श्रीमहावीर, अंतिः शीघ्रं प्राप्नुवंति For Private and Personal Use Only Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५०४०६. अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२४.५४१०, १३४३६-४२). श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणमिदंसणंमि०; अंति: अतिचार पक्ष दिवस. ५०४०७. थंभणपार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६४११, १४४४६). पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु प्रणमुरे पास; अंति: जाणी कुशललाभ पयंपए, ढाल-५, गाथा-१८. ५०४०८. थूलभद्र स्वाध्याय संपुट, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. विकानेर, प्रले. ग. जसवंतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १८४३९). स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: लाछल दे मात मल्हार; अंति: लीला लखमी घणी जी, गाथा-१७. ५०४०९.(-) कल्पसूत्र व्याख्यान पीठिका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२६४१०.५, १०४३९). कल्पसूत्र-पीठिका, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: सुखाभिलाखी न खिलोपि; अंति: वार्षिकं पराट.. ५०४१०. भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. वेलजी ऋषि (गुरु मु. नानजी ऋषि, लुंकागच्छ); गुपि.मु. नानजी ऋषि (गुरु मु. जसराज ऋषि, लुंकागच्छ); मु. जसराज ऋषि (गुरु मु. धर्मसिंह, लुंकागच्छ); मु. धर्मसिंह (गुरु मु. सिद्धराज ऋषि, लुंकागच्छ); मु. सिद्धराज ऋषि (गुरु मु. हाथी ऋषि, लुंकागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२६.५४११.५, २२४६०). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः , श्लोक-४४. ५०४११. (+) सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १३४२३-२६). १. पे. नाम. अरणीक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरणिक मुनिवर चाल्या; अंति: जेथी सीवसुख सिधो जी, गाथा-९. २. पे. नाम. धन्नाशालीभद्र सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम गोवालीया तिणे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ७ तक है.) ५०४१२. (+) स्तवन, सूत्र संग्रह व दुहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, १७४३६). १.पे. नाम. विरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रंजयतीर्थ स्तवन, म. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजी आव्यारे; अंति: पद्मविजय सुप्रमाण, गाथा-७. २. पे. नाम. साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: ठाणे कमणे चकमणे आउत; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. ३. पे. नाम. दुहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. दुहा संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-३. ५०४१३. स्तवन व पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, २१x१४). १. पे. नाम. नेमिराजिमती स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: यादवजी हो समुद्रविजय; अंति: मोहन कहे० मलार, गाथा-७. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण.. मु. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: वातडलीइ वेध लगाइयो; अंति: उदय० कोडि पसाय के. गाथा-५. ५०४१४. स्वाध्याय व पच्चक्खाण सूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११, १३४३६). १. पे. नाम. स्थूलिभद्र स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ www.kobatirth.org स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, मु. अमरचंद, मा.गु., पद्य, आदि: लाछल वे सुत लाडलो, अंति: अमरचंद० लाल मनमोहन, गाथा - ११. २. पे. नाम. पच्चक्खाण सूत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: असित्थेण वा वोसिरई, (वि. नवकारशी से ब व तिविहार- चौविहार उपवास के पच्चक्खाण दिए गए हैं.) ३. पे नाम, देसावगासिक पच्चक्खाण सूत्र, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. देशावगासिक पच्चक्खाण, प्रा., पद्य, आदि देवगासीअं उपभोग; अंति: (-), (पू. वि. "पुविहंपिहारं असणं खाइम' पाठ तक है.) ५०४१५. आतमानी आतमता, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १ ले, स्थल, पाटण, प्रले पन्या, शुभविजय, प्र. ले. पु. सामान्य, दे., (२६.५X११.५, ६X५०). आत्मा के ६५ गुण, मा.गु., गद्य, आदि: असंख्यात प्रदेशी अंतिः सकल सिद्धता करे. ५०४१७. हरियाली स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५ ५४४०). . औपदेशिक हरियाली, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: कहेज्यो रे पंडित ते; अंति: जस कहे ते सुख १. पे. नाम. चतुर्विंशति स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ऋषभजिनमजितनाथं, अंति: शिवपदमचिरादसौ लभते, श्लोक-४. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लहंसे, गाथा - १४. ५०४१८. (+) स्तोत्र व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ९, ले. स्थल. भृगुपुर, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., ( २५X१०, १६X६०-६४). २. पे नाम, चतुर्विंशतिजिन स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण, २४ जिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्री आदिनाथाजितसंभवेश, अंति: दुरापन्नसुखं च सारम्, लोक-५. ३. पे नाम, साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: नमो ते छिन्नसंसार, अंति: संकुलम्मि भवं नवे, गाथा-५. ४. पे. नाम. पंचतीर्थी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ५] तीर्थ स्तव, प्रा., पद्य, आदि पंचधणुस्सयमाणं; अंतिः सो पावइ सासवं ठाणं, गाथा- ६. ५. पे. नाम. पंचपरमेष्टि स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पंचपरमेष्टि स्तोत्र, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: स्वश्रियं श्रीमद, अति ते भवंति जिनप्रभा श्लोक ५. ६. .पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, प्रा., पद्य, आदि: तं नमह पासनाहं धरणि अंति: अनाउ संरह भगवंतं, गाथा- ४. २६५ ७. पे. नाम. वीर स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीर जिन स्तव, आ. पादलिप्तसूरि, प्रा., पद्य, आदि गाहाजुयलेण जिणं मवमो, अंतिः स खयं सव्वदुरियाणं, गाथा-४. ८. पे. नाम. कल्याणक स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. जिनपंचकल्याणक स्तवन, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: निलिंपलोकावित भूतलं; अंतिः जिन प्रभवंति तस्मिन्, श्रोक-८. ९. पे. नाम. साधारण स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. सर्वज्ञाष्टक, मु. कनकप्रभविजय, सं., पद्य, आदि: जयति जंगमकल्पमहीरुहो; अंति: विश्वाधिपः सर्ववित्, श्लोक - ९. ५०४१९. संघ मालारोपण विधि, संपूर्ण वि. १९५१, मार्गशीर्ष शुक्ल ९ श्रेष्ठ, पू. ३, वे. (२६.५४११.५, १३४३३). मालारोपण विधि, प्रा., मा.गु, पद्य, आदि: मालारोपण मुहूर्त, अंतिः धर्म्मदेशना दीई. ५०४२०. चौवीस जिन सुकनावली, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २- १ (१) = १, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२६४११. १४४४१). For Private and Personal Use Only ,י Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २४ जिन शुकनावली, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ७वें जिन सुपार्श्वनाथ से १८वें जिन अरनाथस्वामी तक की शुकनावली है.) ५०४२२. चतुषष्टि योगीनी स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. १, कुल पे. २, पठ. ग. रंगकलश वाचक (गुरु गच्छाधिपति जिनचंद्रसूरि, बृहत्खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १३४४७). १. पे. नाम. चौसठ योगिनी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ६४ योगिनी स्तोत्र, म. धर्मनंदन, प्रा., पद्य, आदि: जगमज्झिवासिणीणं; अंति: उवयारकर जयउलोए, गाथा-१५. २. पे. नाम. चौसठ योगिनी स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण.. ६४ योगिनी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ दिव्यजोगी महाजोगी; अंति: सर्वग्रह निवारणे, श्लोक-१०. ५०४२३. (+) शंखेश्वर पार्श्व जिनपति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १६७३, कार्तिक शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. हलवद, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२५.५४११.५, १४४४२). पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरमंडन, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, वि. १६६७, आदि: समभिनम्य गुरु; अंति: गणिना जसविजयसंज्ञेन, श्लोक-२६. ५०४२४. पजूसण थोय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. पेथापुर, प्रले. जेठालाल चुनिलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४११,१०४३२). पर्युषणपर्व स्तुति, मु. चतुर, सं., पद्य, आदि: भो भो भव्यजनाः सदा; अंति: सा संघस्य सिद्धायिका, श्लोक-४. ५०४२५. स्तोत्र व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, ११४३८). १. पे. नाम. नवग्रहगुंफित पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: दोसावहारदक्खो नालीया; अंति: गहा नपीडंति, गाथा-१०. २. पे. नाम. सत्तरिसय स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ; अंति: निब्भत निच्चमच्चेह, गाथा-१४, (वि. पैंसठिया यंत्र सहित.) ५०४२७. (+) पार्श्वनाथ दसभव स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११.५, १३४५४). पार्श्वजिन १० भव स्तवन, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण चलणजुअलं पास; अंति: कुण सुता सिद्धिं, गाथा-१५. ५०४२८. पार्श्वजिन सत्काष्टोत्तरशत नाम स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७७२, कार्तिक शुक्ल, १३, शनिवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. सूर्यपूर, प्रले. पं. हंसरत्न; पठ. पं. तेजरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १३४५२). ___ पार्श्वजिन मंत्राधिराज स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्री पार्श्वः पातु; अंति: प्राप्नोति स श्रियम्, श्लोक-३३. ५०४२९. (+) जयतिहुअण नमस्कार सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. सूरहस, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-वचन विभक्ति संकेत-क्रियापद संकेत-पंचपाठ., जैदे., (२६४११, ८४४४). जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख; अंति: अभयदेव विनवइ आणंदि, गाथा-३०. जयतिहअण स्तोत्र-टीका, सं., गद्य, आदि: अत्रायं वृद्धसंप्रदा; अंति: अश्लाघितं त्रैलोक्य, ग्रं. २५०. ५०४३०. (+) बहिष्तिष्टतां विधि व मिथ्यात्व परित्याग, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११, २६४८१). १. पे. नाम. बहिस्तिष्ठतां विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. शिष्य बहिस्तिष्ठन् विधि, सं., गद्य, आदिः तत्राथ प्रतिपन्नाः; अंति: वक्ष्यमाणं कुर्वति. २. पे. नाम. साधु प्रायश्चितादि विधि संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. बृहत्कल्पसूत्र-प्रायश्चित्तादिविधि संग्रह, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: गिरिनइ तलागमाई एमेवा; अंति: ध्रुवं सिवं सुहयं. ५०४३१. यतिमृत्यु विधि व आलोअण रथ, संपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४११.५, ११४३३). ति For Private and Personal Use Only Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ २६७ १.पे. नाम. यतिमृत्यु विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: कोटिकगणवइरी शाखा; अंति: कीजइ नमस्कार चिंतन. २. पे. नाम. आलोअण रथ, पृ. १आ, संपूर्ण. आलोयण रथ, प्रा., पद्य, आदि: आलोअण१ वयर विमेण३; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम गाथा लिखा है.) ५०४३२. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ४, ले.स्थल. विसलनगर, पठ. श्राव. उगरा, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४११.५, ११४२८). १. पे. नाम. क्रोध सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: कडुआं फल छे क्रोधना; अंति: उदयरतन० उपसमरस नाही, गाथा-६. २. पे. नाम. माननी सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मानपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: रे जीव मान न कीजीइं; अंति: उदयरतन० देसुटो रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. माया सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मायापरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: समकितनुं बीज झांणयो; अंति: उदयरतन० सुद्ध रे, गाथा-६. ४. पे. नाम. लोभ सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-लोभपरिहार, मु. उदयरत्न कवि, मा.गु., पद्य, आदि: तुमई लक्षण झोझो लोभ; अंति: उदयरतन०तेहनइं सदा रे, गाथा-७. ५०४३३. (+) रामतियाला शिष्य प्रबंध व अष्टादश नात्रा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१०.५, २०४६१). १.पे. नाम. रामतियालाशिष्य प्रबंध सह टीका, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. वैराग्यबोल सज्झाय, पुहि.,रा., पद्य, आदि: बाइए मई कोतिग दीठ; अंति: सुखि सुखीयउ किम हयउ, गाथा-२३. फूलडा सज्झाय-टीका, सं., गद्य, आदि: श्रीवीरमुक्ति गमनतः; अंति: सौख्यभागी जज्ञे. २. पे. नाम. अष्टादश नातरा सह बालावबोध, पृ. १आ, संपूर्ण. १८ नातरा सज्झाय, सं., पद्य, आदि: भ्रातासि तनुजन्मासि; अंति: इति जाता सपत्न्यपि, श्लोक-१३. १८ नातरा सज्झाय-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: भाई माता एक पुत्र; अंति: पिता एवं नात्रा ६. ५०४३४. सज्झाय व थोय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, ११४२७). १. पे. नाम. रोहिणी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. रोहिणीतप सज्झाय, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वंदो हइडे हरख धरेवी; अंति: रामविजय लहे सयल जगीश, गाथा-९. २.पे. नाम. पजुसण थोय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व स्तुति, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पुन्यनु पोषण पापर्नु; अंति: दिन अधिक वधाई जी, गाथा-४. ५०४३५. अष्टमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्राव. भाईचंद; पठ. श्रावि. गलाबबाई; श्रावि. जवलबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२.५, ११४३५). अष्टमीतिथि स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रहि सुभठाम अधिक; अंति: तस न्यायसागर जस थाया, ढाल-२, गाथा-१३. ५०४३६. (-) मृगापुत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, १८४३५). मृगापुत्र सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सुगरी नगर सुहामणो; अंति: छकायना रयखपाल हो, गाथा-२६. For Private and Personal Use Only Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५०४३७. (+) श्रावक बारव्रत सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १४४४६). १२ व्रत सज्झाय, मु. सूरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमीअसुमति जिणेसर; अंति: सूरविजय० शिवरमणी वरइ, गाथा-३८. ५०४३८. पार्श्वनाथ विचारमयं स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. मेदिनीतट, प्रले. मु. यशःसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०, १६४५८-६२). पार्श्वजिन स्तवन-विचारगर्भित, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पणमिय पास जिणंद; अंति: जिणचंद० संघह मणवंछिय, गाथा-२२. ५०४३९. मौन एकादशी गणनु, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२६४११.५, ११x६). मौनएकादशीपर्व गणj, सं., को., आदि: श्रीमहायशः सर्वज्ञाय; अंति: श्रीआरणनाथाय नमः. ५०४४०. महावीर सतावीस भव स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२६४११.५, १३४४७). महावीरजिन २७ भव स्तवन, मु. सोमसुंदरसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामिणि पाए; अंति: सोमसुंदर० सेवक भणीय, गाथा-३१. ५०४४१. (+) बासठ मार्गणा यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४११, ३३४१८). ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को., आदि: देवगति मनुष्यगति; अंति: आहारी अणाहारी. ५०४४२. (+) युगादिश्वर स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१०, १६४४८-५२). युगादिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपुंडरीकाचल; अंति: मंदिरं श्रेयसेस्तु, गाथा-२५. ५०४४३. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२६.५४११.५, २७४३४). १. पे. नाम. जिनपाल जिनरक्षित चौढालियो, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जिनपाल जिनरक्षित सज्झाय, रा., पद्य, आदि: अनंत चौवीसी आदि हुई; अंति: विदेहें जायसे मोखें, ढाल-४, गाथा-६८. २.पे. नाम. आषाढभूति धमाल, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. आषाढाभूतिमुनि चरित्र, वा. कनकसोम, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: समरी सारद मायरे; अंति: कनकसोम० सुखकारा, गाथा-६७. ३. पे. नाम. कमलावती सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. कमलावतीसती सज्झाय, ऋ. जैमल, पुहिं., पद्य, आदि: महला मे बेठीजी राणी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा २३ अपूर्ण तक लिखा है.) ५०४४५. ९८ बोलनो बासठियो व १० पच्चक्खाण नाम, संपूर्ण, वि. १९३०, आश्विन शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. पालनपुर, प्रले. गोदड देवचंद खत्री; पठ. श्राव. नाहालचंद खेमचंद दोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१२, १६x४२). १.पे. नाम. ९८ बोलनो बासठीयो, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. ९८ बोल यंत्र, मा.गु., को., आदि: सरवथी थोडा गर्भज; अंति: सव्वजीवा विसेसाहीया. २.पे. नाम. १० पच्चक्खाण नाम, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: नवकारसी सागार पोरसी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ६ पच्चक्खाण के नाम ५०४४६. पार्श्वनाथ १०८ नामावली, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२६.५४११.५, १०४९). १०८ पार्श्वजिन नामावली, मा.गु., को., आदि: कोका पार्श्वनाथ; अंति: सलुणा पार्श्वनाथ. ५०४४७. लोकनाली द्वात्रिंशिका सह अवचूर्णि, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. उपा. कुंअरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२५.५४११, ८४४०). For Private and Personal Use Only Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ २६९ लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: जिणदंसण विणा जंलोअं; अंति: जहा भमह न इह भिसं, गाथा-३२. लोकनालिद्वात्रिंशिका-टीका, सं., गद्य, आदि: जिनदर्शनं विना; अंति: एवं शूवी रक्षादयः. ५०४४८. (+) मौन एकादशी कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५,१३४३२). मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, आदि: श्रीमहावीरं जिनं; अंति: केचिद्दिवं जग्मुः. ५०४४९. (+) आदिजिन स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०, १३४३२-३६). १. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तव, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नयगमभंगपहाणा विराहि; अंति: विग्धं कुणउ अम्हाणं, गाथा-११. २. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रियं दिशतु वो देवः; अंति: ब्रूते यदागमपदावली, श्लोक-१. ५०४५०. द्रोपदी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पठ. भीमजी भाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२.५, १२४३८). द्रौपदीसती सज्झाय, मु. मयाचंद, मा.गु., पद्य, आदि: आव्या रे नारद मुनीवर; अंति: भावे वीनव्या रे लो, गाथा-११. ५०४५१. (#) सझाय व तीर्थवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४११.५, ११४३४). १. पे. नाम. राजुलनी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, मु. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नेम नेम करती नारी; अंति: रत्नविजय० साबासी रे, गाथा-१३. २. पे. नाम. तीर्थवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. पंचतीर्थ चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: विहरमानजीनंद वंदु; अंति: फारो अध न आतम लीजीए, गाथा-८. ५०४५२. मदआठनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले.पं. रूपसागर गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४१०, ३३४१८-२०). ८ मद सज्झाय, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मद आठे माहामुनी वारी; अंति: अविचल पदवी नरनारी रे, गाथा-११. ५०४५३. (#) चतुर्विंशति जिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १७५४, ज्येष्ठ कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. पत्तन, प्रले. पं. मोहनविजय, पठ.मु. कुशलविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १२४४१). २४ जिन स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सगवीसे ढाले करी थुण; अंति: जिनवि०सुणतां सुख घणो, गाथा-२७. ५०४५४. भगवतीसूत्र गुंहली, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४११, ११४३१). भगवतीसूत्र-गली, संबद्ध, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सहिर सुंणिई रे भगवत; अंति: दीप० मंगल कोटि वधाई, गाथा-७. ५०४५५. नेमिजिन चौक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२६.५४१२, ११४३७). नेमिजिन लावणी, मु. माणेक, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनेम निरंजन बालपण; अंति: गावे लावणी मनने कोडे, ढाल-४, गाथा-१६. ५०४५६. सिद्ध सिला सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. कुल ग्रं. २२, दे., (२६.५४१२, ९४२६). सिद्धपद स्तवन, मु. नयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगौतम प्रीछा करे; अंति: नय कहै सुख अथाग हो, गाथा-१६. ५०४५७. (#) गहुंली संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. सुरतबंदर, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४११, ११-१३४२८-३०). १.पे. नाम. ज्ञानविमलगुरु गहुंली, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. सुखसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सोभागि सदगुरु दिउ; अंति: वाधो धर्म सनेहतो, गाथा-८. For Private and Personal Use Only Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. गुहली भास, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. गुरुगुण गहुंली, वा. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आवो सहिरो उपासरे आवो; अंति: रामवि० कमला वीलसे रे, गाथा-८. ५०४५८. (+) स्तोत्र व जैनसामान्य कृति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२६४११.५, ११४४०). १. पे. नाम. देवाप्रभो स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तव, आ. जयानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: देवाःप्रभो यं विधिना; अंति: भावं जयानंदमयप्रदेया, श्लोक-९. २. पे. नाम. जैन सामान्यकृति, पृ. १अ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५०४५९. नमीराज ऋषीरो सतढालीयो, संपूर्ण, वि. १९७४, माघ शुक्ल, ७, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२४.५४११, १६x४५-४८). नमिराजर्षि ढाल, ऋ. आसकर्ण, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: शाशननायक सिमरता; अंति: आसकरणजी० तिथरो नाम, ढाल-७. ५०४६०. (#) सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, १८४३९). १. पे. नाम. अनंतकाय सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: अनंतकायना दोष अनंता; अंति: भावसागर आनंदारे, गाथा-१२. २. पे. नाम. गर्भावास सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जीवहित सज्झाय-गर्भावासगर्भित, मु. क्षमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गरभावासमे चिंतवै ए; अंति: मुगति मझारि तो, गाथा-९. ३. पे. नाम. चेलणा गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. चेलणासती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर वखांणी रांणि; अंति: समयसुंदर० भव तणो पार, गाथा-६. ५०४६१. (#) स्तवन संग्रह व सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११.५,१३४३५). १. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ग. केशव, पुहिं., पद्य, आदि: प्रथम जिनेशर तु परमे; अंति: तुझ वंदन है त्रिकाल, गाथा-५. २. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. साधारणजिन पद, मु. केशव, पुहि., पद्य, आदि: प्यारे रे जिन तुम्ह; अंति: आण तुम्हारी वहइए रे, गाथा-४. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-कायोपरि, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: कायापुर पाटण कारिमो; अंति: सैहजसुंदर उपदेस रे, गाथा-८. ५०४६२. झांझरिआऋषि स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. पंडित. जयविजय गणि; पठ. श्राव. दीपा साह, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३७). झाझरियामुनि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: महिलमां मुनिवर कहू; अंति: लबधि० धन तुम्ह अवतार, गाथा-३८. ५०४६३. (+) संघयणसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, १९-२१४५०-५६). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक __द्वारा अपूर्ण., गाथा १५७ अपूर्ण तक लिखा है.) ५०४६४. जंबुस्वामी गुंहली, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४११, ११४३१). जंबूस्वामी गहुंली, पं. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अझब कीउरे मुनिराय; अंति: सुणि पामें शिवराज, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ५०४६५. (#) लक्ष्मीपति चरित्र लावणी, संपूर्ण, वि. १९६८, श्रावण शुक्ल, ८, सोमवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. पोसालभिणाय, प्रले. मु. देवीचंद (नेनवालगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२.५, १८४४५). लक्ष्मीपति सज्झाय, मु. अमोलक ऋषि, रा., पद्य, वि. १९५६, आदि: पुन्य चीज है बडी जगत; अंति: अमोलकऋषि यूं कहता रे, गाथा-३०. ५०४६६. (#) ऋषभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४१०, १६x४८-५५). आदिजिन स्तवन, वा. मतिवर्धन, मा.गु., पद्य, आदि: नमवि जिणराय सुगुरूण; अंति: पद्ममेरुसीस० मंडणो, गाथा-२५. ५०४६७. (2) स्तवन व नमस्कार, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १५-१३(१ से १३)=२, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४१०.५, १३४४५-४७). १. पे. नाम. नवखंडपार्श्वनाथ स्तवन- घोघापुर मंडन, पृ. १४अ-१५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन घोघापुरमंडण स्तवन-नवखंडा, ग. सोम गणि, सं., पद्य, वि. १५०१, आदि: श्रीइक्ष्वाकुकुल; अंति: बोधिलाभं मम, श्लोक-२५. २. पे. नाम. नवखंडपार्श्वनाथ नमस्कार, पृ. १५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन घोघापुरमंडण स्तुति-नवखंडा, सं., पद्य, आदि: श्रीमान् कल्पद्रुम; अंति: ब्रह्म लक्ष्मी सनाथः, श्लोक-१. ५०४६८. (+#) चतुर्विंशतिजिन स्तव, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४९.५, १५४३८-४२). २४ जिन स्तव, मु. अजबसागर, सं., पद्य, आदि: सनाभिराजांगज आदिदेवो; अंति: सुविधिनाजबसागरेण, श्लोक-२५. ५०४६९. (+) अनागत चौवीसीजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८४२, ज्येष्ठ शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. कर्णपुर, पठ. पं. प्रतापविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १५४४७). २४ जिन-अनागत स्तवन, ग. गजरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १६७९, आदि: हृदय कमले समरी सरसती; अंति: गज० प्रणमो निसदिस रे, गाथा-३२. ५०४७०. गौतमपृच्छा व नवकारमंत्र स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२५.५४११, १५४४७). १.पे. नाम. गौतमप्रीछा, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. गौतमपृच्छा दोहा, मु. सोभचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: महावीर पाय अनुसरी; अंति: सोभचंद जस लीध, दोहा-६४. २.पे. नाम. नवकार मंत्र स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र स्तोत्र, मु. पद्मराज, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनवकार जपो मनरंगे; अंति: जास अपार री माई, गाथा-९. ५०४७१. स्तवन व स्तुति, संपूर्ण, वि. १८५२, ज्येष्ठ कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, १४४४४). १. पे. नाम. पार्श्वजिन दशभव स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणा, मु. नित्यप्रकाश, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसारद हो देवी पाय; अंति: राजऋद्ध लखमी करो, गाथा-१३. २. पे. नाम. सौभाग्यपांचम स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, पंडित. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सौभाग्यपंचमी पर्व; अंति: सेवक देवचंद सुखकार, गाथा-४. ५०४७२. (+#) जीराउला पार्श्वनाथ वीनती, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, ११४४२). पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, मा.गु., पद्य, आदि: जीराउला देव करउं; अंति: कृपा करी सेवकनइ थापइ, गाथा-१०. ५०४७३. (#) दशार्णभद्र राजर्षि चतुपदी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. कुल ग्रं. ९८, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१०.५, २५४४६). दशार्णभद्रराजर्षि सज्झाय, पा. धर्मसिंह, मा.गु., पद्य, वि. १७५७, आदि: वीर जिणेसर वंदिने; अंति: धर्म० सुख दौलति दीह, ढाल-६. For Private and Personal Use Only Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २७२ ५०४७४. नवतत्त्व, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, जैवे. (२६.५x११.५, १०x३९). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवा१जीवार पुण्णं३; अंति: क्क१४ णिक्काय१५, गाथा-६२. ५०४७५. (+) पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ६. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. दे. (२५x१०.५, ११-१३४३८). १. पे नाम, पार्श्वजिन पद, प्र. ९अ, संपूर्ण. יי कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आ. जिनभक्तिसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: माई रंगभर खेलेगे, अंति: रसै जिनवर सुहाय, गाथा-४. २. पे. नाम. होली पद, पृ. १अ संपूर्ण. आदिजिन होरी, मु. जिनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: होरी खेलीयै नर बहात; अंतिः भव भव पातिक जाय, गाथा-४. ३. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. मु. ऋद्धिहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: गढ गिरनारनि तलेटीए; अंति: सांभली सिवादेवी माय, गाथा- ६. ४. पे नाम, आदिजिन पद, पृ. ९आ, संपूर्ण, मु. विमल, मा.गु., पद्य, आदि: चालो सखी वंदन जईये, अंति: वंदो विमल जिणंद, गाथा-५. ५. पे नाम, रेखतो जगतपति, प्र. १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्श्वजिन रेखता. मु. लालचंद, पुहिं, पद्य, आदि: जगतपति पास जिणराज अंतिः हौ मुझ भवतणा फेरा, गाथा- ४. ६. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. ५०४७६. साधारणजिन पद, पुहिं., मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-३, (वि. आदि - अंतिमवाक्य अपठनीय है.) . (+) स्तोत्र व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., ,वे. (२६.५४११.५. २२x५१). १. पे. नाम. सत्तरिसयजिणना स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तयासं अट्ठम; अंति: निब्भतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. २. पे. नाम. भयहर स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण पणयसुरगण; अंति: नासइ तस्स दूरेण, गाथा - २५. ३. पे. नाम. प्रज्ञापनासूत्र- संग्रहीत गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. जैनगाथा संग्रह *, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-५. ५०४७७. (+#) समोसरण स्तव, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X१०, १७५५-५८). नेमिजिन स्तवन- समवसरणविचारगर्भित, मु. सोमसुंदरसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: जायवकुलि श्रृंगारा अंति: अनंती ते लहइ ए. कडी-३३. ५०४७८. (+) पार्श्वनाथ वीनती स्तवन, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १७४५०-५७), पार्श्वजिन स्तवन- विचारगर्भित, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु, पद्य, आदिः पणमिय पास जिणंद अंतिः जिणचंद० संघह मणवडिय गाथा २२. For Private and Personal Use Only 1 ५०४७९. (#) पच्चक्खाण सूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६११.५, १३x४४). प्रत्याख्यानसूत्र संबद्ध, प्रा. गद्य, आदिः उगए सूरे नमुक्कार; अंतिः बत्तियागारेणं वोसिरइ. ५०४८०. नववाड सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२४X११, १५X४४-४७). ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु, पद्य, वि. १७६३, आदिः श्रीगुरुने चरणे नमी अंति: (-), (पू.वि. वाड ६ गाथा ३ अपूर्ण तक है.) ५०४८१. मौन एकादशी गणनुं संपूर्ण, वि. १८४६ माघ शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. २, जैवे. (२५.५४११, १२x४४)मौनएकादशीपर्व गणणं. सं., को, आदि: जंबूद्वीपे भरते अतीत अंतिः मुक्ति पारंगताय नमः Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ २७३ ५०४८२. (#) शांतिजिन चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पठ. मु. भक्तिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे. (२६४११.५. १४४४२). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शांतिजिन स्तवन, सं., पद्य, आदि: सकल सुख नवीयदानाय, अंति: भाजन मती संघस्यमिदम्, श्लोक-१५. ५०४८३. (+) सिंदूर प्रकर, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधिसूच चिह्न-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. वे. (२६४११.५, १२४३४). सिंदूरकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: (-), (पू. वि. श्लोक ४४ तक है.) ५०४८४. (+#) विभक्तिप्रत्ययोदाहरण स्तवन सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६१४, ज्येष्ठ कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. शांतिसागर, राज्यकालरा. मालदेव, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. त्रिपाठ-पवच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैये., (२४१०, ३-५x५५-६४). साधारणजिन स्तव, आ. जयानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: देवाः प्रभो यं; अंति: भावं जयानंदमयप्रदेया, श्लोक - ९. साधारणजिन स्तव - अवचूरि, ग. वानर्षि, सं., गद्य, आदि: देवाः प्रभोयमिति, अंतिः श्रीजयानंदसूरिनाम. ५०४८६. (4) सझाय व श्लोक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२६५११, १०X३७). १. पे. नाम. पजुसणनी सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. फतेसागर, मा.गु., पद्य, आदि: वरस दिवसमा सार; अंति: सुख आराधशे हो लाल, गाथा- ७. २. पे नाम. विवेकविषे श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. साधुधर्म पद, मा.गु., पद्य, आदि: जो जेह चित्ते सुविवे; अंति: तजे जूं ग्रहेसू वहो, (वि. गाथांक नहीं लिखा है.) ५०४८७. स्तवन व कवित, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५X१२, ११×३३). १. पे. नाम ऋषभदेवजी स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. नेमिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकरण तन्न दूखहरण; अंति: नेमने हरख सवाय हो, गाथा - १२. २. पे. नाम. प्रहेलिका कवित, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं, पद्य, आदि: सूर आवो सिरपर छांह, अंतिः बेसी जेठ की दुपहरी, गाथा-१. ५०४८८. आवक व्रत आलोयणा, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २, जैदे. (२६४१२, २४x६३). " श्रावक आलोयणा विचार, प्रा., मा.गु., सं., प+ग., आदि: प्रथमं मुहूर्तं अंति: सझाये उपवास पुंहचे. ५०४८९. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, वे. (२५.५४१०.५, १२४३२). १. पे. नाम. सीमंधर स्वामी स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, सीमंधरजिन स्तवन, पं. भाणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर तुं मुझ, अंति: नवनीध ऋद्ध पामी, गाथा- ९. २. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु, पद्य, आदि: तोरण आवी जोर न कीजें, अंतिः उदय० करें विनती रेलो, गाथा-८. ५०४९०. बारमासो, सझाय स्तवन व दूहादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, जैदे., ( २६.५X११.५, १४४४३). १. पे. नाम. नेमराजिमती बारमासा, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. श्राव. रूपचंद कल्याणजी, मा.गु., पद्य, आदि: सरसतीने चरणे नमी सत, अंतिः रूपचंद० पद सुख वासवा, गाथा-२९. २. पे. नाम जिन स्तवन, पृ. २अ संपूर्ण. साधारण जिन स्तवन- जिनवाणी महिमा, मु. कांति, पुहिं, पद्य, आदि; वाणी गाजे अंबरनाद अंतिः प्रेमेइम कवी कंत रे, गाथा - ५. ३. पे नाम परनिंदा सज्झाय, पृ. २अ संपूर्ण. निंदा परिहार सज्झाय, मु. लब्धि, मा.गु., पद्म, आदि; चावत म करो परतणी अंतिः लबधि० पामे देव विमान, गाथा-५. ४. पे. नाम. दूहा संग्रह, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. औपदेशिक श्लोक संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि सारिखो सोनाह परखीयो; अंतिः पापडीयाला पालउत, श्लोक ५. For Private and Personal Use Only Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५०४९१. महासत महासती कुलक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. गौतम रत्न; पठ. श्रावि. सेजबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४११.५, ११४३०). भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय; अंति: जसपडहो तिहयणे सयले, गाथा-१४. ५०४९२. ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. २, जैदे., (२६.५४११.५, १४४३६). ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्य; अंति: क्षमश्व परमेश्वरि, गाथा-७६. ५०४९३. नवतत्त्व, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२५.५४११.५, १२४२९). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाश्जीवार पुण्णं३; अंति: अणंतभागो य सिद्धिगओ, गाथा-५५. ५०४९४. पार्श्वनाथ दश भव, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२५.५४११, १५४३६). पार्श्वजिन १० भव वर्णन-संक्षिप्त, प्रा.,सं., गद्य, आदि: (१)तेणं कालेणं तेणं समए, (२)पोतनपुरं नाम नगर; अंति: तपः कुर्वतू तिष्टति. ५०४९५. (#) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. झंझूवाडा, पठ. श्रावि. सेहेजबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १४४३४). १. पे. नाम. सीतलनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.. शीतलजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रामानंदन पाप निकंदन; अंति: कांति धवल गुण हंस, गाथा-५. २. पे. नाम. संभवनाथजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. संभवजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हारे प्रभु संभव; अंति: कांति० लेखे थइ रे लो, गाथा-५. ५०४९६. (#) जंबुद्वीप संग्रहणी व ग्रहशांति स्तोत्र, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १४४३७). १. पे. नाम. जंबुद्वीपसंग्रहणी सूत्र, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ____ लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिण सव्वन्न; अंति: रईया हरिभद्दसूरिहिं, गाथा-३०. २. पे. नाम. ग्रहशांति स्तोत्र, पृ. २आ, पूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे.वि. यह कृति बाद मे लिखी गई है. आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगत्गुरु नमस्कृत्य; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक ९ अपूर्ण तक है.) ५०४९७. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. मु. राजसुंदर (गुरु पं. विद्यासुंदर गणि); गुपि.पं. विद्यासुंदर गणि; पठ. श्रावि. पतीबाई; अन्य. ग. विवेकऋद्धि, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२५.५४११, १३४३२). १.पे. नाम. कुमरगिरिमंडन शांतिनाथ स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन-कुमरगिरिमंडण, ग. हर्षरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १५६३, आदि: संपय सुह कारण दुरिअ; अंति: पूरि तुं मननी आस सवे, गाथा-३०. २.पे. नाम. लोडण पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-लोडण, मु. सेवक, मा.गु., पद्य, आदि: आससेन राय कुलतिलउरे; अंति: भवि भवि तुम्ह पय सेव, गाथा-६. ५०४९९. सझाय व स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२७४१२.५, १२४४२). १. पे. नाम. पजुसण सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. जगवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम प्रणमु सरसति; अंति: तस सीस वल्लभगुण गाय, गाथा-१६. २. पे. नाम. सुमतिजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: मदमदनरहितनरहितसुमते; अंति: दूनदून सत्रासत्रा, श्लोक-४. ५०५०१. पगाम सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., (२६४१२, ११४२८). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: पगाम सिज्झाए निगाम; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, सूत्र-२८. ५०५०२. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४)=१, कुल पे. ४, दे., (२५.५४१२, १५४३८). १. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. ५अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ २७५ संभवजिन स्तवन-बालोचरपुर मंडण, उपा. अमृतधर्म, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसंभवजिनरायजी सुन; अंति: अमृतधर्म० करीजे जी, गाथा-७. २. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, प्र. ५अ, संपूर्ण. संभवजिन स्तवन-सम्मेतशिखर मंडण, उपा. अमृतधर्म, मा.गु., पद्य, वि. १८४४, आदि: श्रीसंभवजिनराया जग; अंति: कहै अमृतधर्मगणीस रे, गाथा-७. ३. पे. नाम. सुवधिजिन स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. सुविधिजिन स्तवन-महिमापुरमंडन, उपा. अमृतधर्म, मा.गु., पद्य, वि. १८४५, आदि: प्रभु सुविधिजिणिंद; अंति: अमृतधर्म० सुजगीसे जी, गाथा-७. ४. पे. नाम. नेमिजि स्तवन, पृ. ५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. नेमिजिन स्तवन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: जगपति नेम जिणंद प्रभ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ८ अपूर्ण तक ५०५०३. (#) शंखेश्वर पार्श्वनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१२.५, ७X३०). पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर मंडण, सं., पद्य, आदि: ॐ नमः श्रीपार्श्वनाथ; अंति: पूरय मे वांछितांनाथ, गाथा-५. ५०५०४. वीस स्थानकतप विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४१२, १२४३७). २० स्थानकतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: ॐनमो अरीहताण २०००; अंति: संघने पान बीडा देवा. ५०५०५. (#) पुण्यलाभ कुलक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ११४३९). पुण्यपाप कुलक, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: छत्तीसदिण सहस्स वास; अंति: जिणकित्ति. उज्जमिह, गाथा-१६. ५०५०६. चौत्रीस अतिसयगर्भित स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६.५४११.५, १५४४४). ३४ अतिशय छंद, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसुमति दायक दुरित; अंति: ज्ञानसागर० भवभवै, गाथा-११. ५०५०७. पार्श्वजिन स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६४११.५, १६४३६). १. पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मास वसंत सरस रितु आय; अंति: कांतिविजय० निसदीस, गाथा-९. २. पे. नाम. गोडी पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अहो त्रिभुवन जन बंधो; अंति: कांतिविजय० पास वधायो, गाथा-७. ५०५०८. कथा, सझाय, पद. मंत्र व श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, ले.स्थल. आसोप, दे., (२६४११.५, ९-२२४३३-४४). १.पे. नाम. आधासीसी कथा, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., गद्य, आदि: ॐ नमो पयठाणपुर पाटण; अंति: वाचातः ठः ठः स्वाहा. २. पे. नाम. नेमराजुल सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मु. प्रमाणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: नव भव केरी प्रीत; अंति: प्रमाणसागर० बंधण छोड, गाथा-९. ३. पे. नाम. चार मंगल पद, पृ. १आ, संपूर्ण, ले.स्थल. आसोप, प्रले. मु. रंगसार, प्र.ले.पु. सामान्य. ४ मंगल पद, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आजम्हारे च्यारु; अंति: आनंदघन उपगार, गाथा-५. ४. पे. नाम. श्रीपाल रास, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेली कवियण तणी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३ अपूर्ण तक है.) ५. पे. नाम. मंत्र संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २७६ सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). " www.kobatirth.org ५०५०९. निश्चयव्यवहार स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., ( २६.५X११, १५X४२). निश्चयव्यवहार सज्झाय, आ. हंसभुवनसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवर देसना द्ये; अंति: हंसभुवन० इणि पर कहैं, गाथा - १६. ५०५१०. पिंडविशुद्धि प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२६X११, १४४०). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पिंडविशुद्धि प्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि देविंदविंदबंदिय पवार, अति: जिणवल्ल० अहराबोहंतुआ, कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गाथा - १०४. ५०५११. (#) अध्यात्म स्तुती, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५X१२, १०x३९). औपदेशिक स्तुति, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि उठी सवेर सामावक की अंतिः भावप्रभसूरि० भोगी जी, ५०५१३. शांतिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, वे. (२५.५x११.५, ११४३४). " गाथा-४. ५०५१२. (-) गजसुकुमाल सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अशुद्ध पाठ, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे.. (२६११.५, १९३७). गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. सिंहसौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि सोरठ देस मझार, अंतिः लहीए उणराना वसुजी, गाथा ४९. शांतिजिन स्तवन, मु. कमलविजय, मा.गु., पद्य, आदिः हारे मारे शांति, अंतिः कमल० ते जसे रे लोल, गाथा-७, ५०५१४. पांडव सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., ( २६.५X१२, ११४३३). ५ पांडव सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु पद्य, आदि: हस्तिनागपूर भलु तिहा; अंतिः कवियण० गमण निवार रे, ,, गाथा - १९. ५०५१५. (+) प्रज्ञापनासूत्र सह टीका- पद १-४, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. पंचपाठ - टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, १२x४५-५०% प्रज्ञापनासूत्र - हिस्सा पद १ से ४ वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: कहिणं भंते आसालिआ अंति: अद्रुमभत्तस्स आहारो. प्रज्ञापनासूत्र - हिस्सा पद १ से ४ की टीका, सं., गद्य, आदि: अत्र प्रज्ञापनासूत्र, अति: शेषं पुंसामिव तासां ५०५१६. शत्रुंजय स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे. (२६४१२, ११४३३). शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मंगल लिला मुनि, अंति: सारि चकेसरि रखवाली, गाथा-४. ५०५१७. (०) विधि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, कुल पे. ४, प्र. वि. अक्षर फीके पड गये हैं, वे (२६४११.५, ३६x२४). " १. पे नाम, पाक्षिकप्रतिक्रमण विधि, पू. १अ. संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: पडकमणसूत्र कही रह्या, अंतिः पछे दवसी वांदणा देइ. २. पे. नाम. देवसीप्रतिक्रमण विधि, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. प्रतिक्रमणविधि संग्रह- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: इरिवावही० नो०४ लोगस अंतिः प्रगट कही हेठो बेस. " ५०५१८. समाधिमरण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १, जैदे., (२६X११.५, १२X३७). यतिमृत्यु विधि, मा.गु., गद्य, आदि: कोटिकगणवझरी शाखा, अंतिः पछे लोगस्स केहबो ३. पे. नाम. संवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. वास्तव में यह पृष्ठ संख्या १ अ पर ही लिखी हुई है. पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीतप आलापक, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: अट्ठमेणं ३ उपवास, अंति: यथाशक्ति पोहचाडयो. ४. पे. नाम. जैनविधि संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. वास्तव में यह पृष्ठ संख्या १अ पर ही लिखी हुई है. जैनविधि संग्रह *, प्रा.मा.गु. सं., प+ग, आदिः (-); अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ५०५१९. श्रीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९५८, आश्विन शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. पं. हिम्मतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४११.५,१०४४६). सीमंधरजिन स्तवन, मु. विजयदेवसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुणि सुणि सरसति; अंति: संतोखि० पायेरे, ढाल-७, गाथा-४०. ५०५२०. सज्झाय व गहंली संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. मु. गोविंददास साधु, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२.५, ११४३१). १.पे. नाम. छ लेश्या सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ६ लेश्या सज्झाय, पुहि., पद्य, आदि: ग्याने दीठो रे लोका; अंति: शुक्ल लेश्या धार ए, गाथा-१६. २. पे. नाम. महावीरजिन गहुंली, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीतभय पाटण वीरजी; अंति: तस पद पद्म नमो नित, गाथा-६. ५०५२१. (-) महावीरजिन नीसाल गरणु, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. गोविंददास साधु, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२५.५४११, १०४३२). महावीरजिन स्तवन-निसालगरगुं, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवन जन आणंद सखी; अंति: वीरकुअरनी जीभडी ए, गाथा-३१. ५०५२२. धर्मशिक्षा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १५६०, वैशाख शुक्ल, ३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. मांडण; लिख. मु. संघसोम (गुरु पं. सोमरतन गणि); गुपि.पं. सोमरतन गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, ११४३७). औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामिणि करउं; अंति: करइंते सुखीया हुइ, गाथा-१६. ५०५२३. (#) २४ जिन अंतरा व अचलपुरि विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. कुल ग्रं. ४२, मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १०-१६४३०-३८). १. पे. नाम. २४ जिन अंतरा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २४ जिन आंतरा, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीऋषभनाथ तउ; अंति: ४२००० कुणे हूउ. २. पे. नाम. अचलपुरि विचार संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. विचार संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५०५२४. पंचमी सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६.५४११, ९४२७). ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: अनंत सीधने करू; अंति: अमृतपदना थाओ धणी, गाथा-११. ५०५२५. (+#) नेमिराजमती बारमास, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२, २१४५१). नेमराजिमती बारमासो, श्राव. कपूरसिंह, मा.गु., पद्य, आदि: आसाढि अति आकुली; अंति: कपूरि० थिर थाय रे, गाथा-२५. ५०५२६.(-) कर्म सझाय, संपूर्ण, वि. १८५९, चैत्र शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. गोदरा, प्रले. मु. राघवजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, १५४४३). कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: देव दाणव तीर्थंकर; अंति: ऋद्धिहरख०करम राजा रे, गाथा-१७. ५०५२७. (#) शाश्वतजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. ऋषभसागर; अन्य. मु. आणंदसागर (गुरु मु. ऋषभसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १६x४५). शाश्वताशाश्वतजिन स्तव, आ. धर्मसूरि, सं., पद्य, आदि: नित्ये श्रीभुवना; अंति: स्तुता धर्मसूरिभिः, श्लोक-१५. ५०५२८. विधि व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, दे., (२६४१२, १०-२७४२९-३३). १. पे. नाम. लुणपाणी करण विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. लूण उतारण, मा.गु., पद्य, आदि: लूण उतारो जिनवर अंगे; अंति: करीजे विविध प्रबंधे, गाथा-७. २.पे. नाम. आरती उतारण विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची साधारणजिन आरति, मा.गु., पद्य, आदि: विविध रत्न मणि जडित; अंति: नहीं आरति एम बोले, गाथा-५. ३. पे. नाम. मंगल दीवो, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: दीवो दीवो मंगलिक दीव; अंति: महोत्सव पभणीजे, गाथा-६. ४. पे. नाम. जिनपूजा महिमा, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: इम गायो रे जिन भाव; अंति: नयविमल० घर घर आणंद, गाथा-५. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरमंडण, मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि: तत थेई तत थेई तत थेई; अंति: कांति तस घर नित नौबत, गाथा-९. ५०५२९. (#) स्तवन व दुहा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. प्रत में पत्रांक नहीं होने के कारण अनुमानित संख्या २ लिया गया है., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११, १६४३३). १.पे. नाम. नेमराजिमती स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. नेमराजिमती गीत, ग. जीतसागर, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: जीतसागर जि के जी, गाथा-१५, (पू.वि. गाथा १२ से है.) २. पे. नाम. १२ मास दुहा, पृ. २अ, संपूर्ण. १२ मास दहा, मु. जसराज, पुहिं., पद्य, आदि: पीउ चाल्यो पदमणि कहै; अंति: गोरी भीजै छै राज, गाथा-१२. ३. पे. नाम. नेमिराजीमती स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. नित्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल सहियानै कहै; अंति: नित्यविजय० अधिक उछाह, गाथा-११. ५०५३०. नेमि गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. भानुविजय (गुरु पंडित. प्रेमविजय, तपागच्छ); गुपि. पंडित. प्रेमविजय (गुरु आ. विजयप्रभसूरि, तपगच्छ); आ. विजयप्रभसूरि (तपगछ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १०४३३). नेमराजिमती सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीयूजी प्रीयूजी; अंति: रूपविजय० आस्या फली, गाथा-७. ५०५३१. रहनेम सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८४१, चैत्र कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. रंगरतन, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, १५४४५). रथनेमि सज्झाय, मु. प्रतापविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वेगलोरे वरणागीया; अंति: प्रताप०कमलाइ वाधीइजो, गाथा-११. ५०५३२. (+) गोडी छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १६४४४). पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जीतचंद, मा.गु., पद्य, आदि: ॐकाररूप परमेश्वरा; अंति: जीत कहे हर्ष सदा, गाथा-२३. ५०५३३. (-) श्रावक आलोयणा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२६४११.५, १५४३२). आलोचनासूत्र-देवसिसिप्रतिक्रमणगत, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: इच्छाकारेण संदेसह; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. ५०५३४. पार्श्वजिन स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६.५४१२.५, ११४३९). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-घोघामंडन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समतारस शीतल छाया; अंति: कांतिविजय सब पाया, गाथा-५. २. पे. नाम. नवखंडजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-नवखंडामंडन, मु. कांतिविजयजी, गु., पद्य, वि. २०वी, आदि: नवखंडाजी हो पास मनडु; अंति: आपना तो कांति भरपूर, गाथा-५. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. धरमचंद, मा.गु., पद्य, आदि: धरणीदा करे सेवना; अंति: धरमचंद० सहो सोयरे, गाथा-५. ५०५३६. जैसलेमरु पार्श्वजिन बृहत्स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, दे., (२५.५४११.५, १०४४४). For Private and Personal Use Only Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ २७९ पार्श्वजिन स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पुरिसादाणी पगडउ जेसल; अंति: समइसुंदर० धन्यासरी, गाथा-३९. ५०५३७. (#) चैत्यवंदन, स्तवन व मंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, ले.स्थल. सांगोद, प्रले. मु. तीर्थसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११.५, १७४४९). १. पे. नाम. नमस्कार श्रीमंधर चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तुति, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिमंधर जीनवरा; अंति: प्रगटे प्रमाणंद, गाथा-४. २. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशेजूंजो सिणगार; अंति: आराधीए आगम वाणी वनीत, गाथा-३. ३. पे. नाम. पूजामंत्र संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण.. मंत्र संग्रह, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४. पे. नाम. जिनदर्शन श्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: दर्शनं देव देवस्य; अंति: छिद्रहस्ते यथोदकं, गाथा-२. ५. पे. नाम. श्रीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन विनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सफल संसार अवतार ए; अंति: भक्तिलाभ०आस्या मनतणी, गाथा-१८. ५०५३८. (-#) वीसविहरमानजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. सा. मनभांजी; पठ. सा. दीपकवर बाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४११.५, १४४५०). २० वीहरमानजिन स्तवन, मु. नेत, मा.गु., पद्य, वि. १७४७, आदि: मीमंधर सुणीया पछइरे; अंति: नेतमुनि गावैरली, गाथा-२१. ५०५३९. (#) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. इलमपुर, प्रले. ग. विबुधरुचि गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११, १४४४९). १. पे. नाम. जंबूस्वामी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रही नगरी वसै; अंति: सिद्धिवि० उवज्झायरे, गाथा-१४. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पं. धीरविमल गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सुमति सदा सुकुलिणी; अंति: धीरविमल०सुख थाय सदाई, गाथा-१३. ५०५४०.(-) नेमिराजिमती स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२६.५४११, १०x४०). १.पे. नाम. नेमनाथराजमति स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. पं. केसरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. नेमराजिमती स्तवन, वा. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल उभी मालीए जपे; अंति: रामविजय०तासे हुंदास, गाथा-९. २. पे. नाम. नेमराजिमती स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. ग. वल्लभकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: मारा सामलीयानी वात र; अंति: वलभ०सामलीयानी वार रे, गाथा-५. ५०५४१. (-) छिनालपच्चीसी, वीसस्थानक गणणुव औपदेशिक गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२५४११.५, १६४३६). १.पे. नाम. छिनाल पच्चीसी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. छिनालपच्चीसी, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: पर मुख देख अपण; अंति: लालचंद आखर समजावै, गाथा-२६. २. पे. नाम. वीसस्थानक गणj, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. २० स्थानकतप गणj, प्रा.,मा.गु., को., आदि: नमो अरिहंताणं २०००; अंति: तद्दिने निरारंभ. ३. पे. नाम. औपदेशिक गाथा संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. जैनगाथा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-६. For Private and Personal Use Only Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५०५४२. (-) हितशिक्षा सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२७४१२, १२४४१). मनपंखीया सज्झाय, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रेमन माहरा म पडि; अंति: सौभाग्यविजय जय जयकार, गाथा-१७. ५०५४३. ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९९०, भाद्रपद कृष्ण, ३०, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. उपा. क्षमाकल्याण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संभवनाथ प्रासादात्, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, दे., (२६.५४१२, १२४४६). ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामीगणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षर संलक्ष्य; अंति: लभते पदमुत्तमम्, श्लोक-६३. ५०५४४. (#) पर्युषण सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७X१२.५, १२४३४). पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. जगवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम समरु सरसती पाय; अंति: जगवल्लभ गुण गाय, गाथा-१६. ५०५४५. अइमुत्ताऋषि स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. कडी, प्रले. मु. सकलमाणिक्य (गुरु ग. संघमाणिक्य गणि); गुपि.ग. संघमाणिक्य गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १२४४४). अइमुत्तामुनि सज्झाय, मु. कान्ह, मा.गु., पद्य, आदि: एक दिन रति वरसातनी; अंति: कान्ह०पंडित विचार रे, गाथा-११. ५०५४६. (-) अष्टापद स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२६.५४११.५, ९४२५). अष्टापदतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अष्टापद कि जात्रा; अंति: गनानवीमल. नायक गावे, गाथा-८. ५०५४७. (+#) जिनचंदसूरि गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४११, १५४४२). १. पे. नाम. जिनचंद्रसूरि गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. ग. समयहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: आज सुधन दिन माहरइ; अंति: समयहरष० ज्या रविचंद, गाथा-७. २. पे. नाम. जिनचंद्रसूरि गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ग. समयहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: अंग उमाहउ अति घणउ; अंति: नमीयउ समयहरष सुखकार, गाथा-७. ५०५४८. देवानंदा सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२७४१२.५, ११४२९-३२). देवानंदा सज्झाय, उपा. सकलचंद्र गणि, पुहि., पद्य, आदि: जिनवर रूप देखी मन; अंति: सकलचंद० मन मे आणि हो, गाथा-१२. ५०५४९. (#) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३४३७). औपदेशिक सज्झाय-कायाजीवशिखामण, मु. जयसोम, मा.गु., पद्य, आदि: कामीनि कहई निज कंत; अंति: जयसार० करो धर्म सखाई, गाथा-१२. ५०५५०. (-) नारी प्रहेलिका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२६.५४१२, १०४३४). प्रहेलिका हरियाली, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: एक नार दुजो नपुंसक; अंति: कांतिविजय० बलिहारी, गाथा-६. ५०५५१. स्तोत्र व चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, जैदे., (२६.५४११.५, ११४४१). १. पे. नाम. परमेष्टि स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: परमेष्ठिनमस्कार; अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक-८. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.. पार्श्वजिन स्तव-फलवर्द्धि, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., पद्य, आदि: ॐ मम हरउ जरं मम हरउ; अंति: जिणदत्ताणा० पासजिणो, गाथा-३. ३. पे. नाम. आदिजिन चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसेव॒जो सणगार; अंति: आगमवाणी विनित, गाथा-३. ४. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीदेवाधि; अंति: प्रवचन वाण वनीत, गाथा-३. For Private and Personal Use Only Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५. पे. नाम. पर्युषण पर्व चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदिः कल्पतरुवर कल्पसूत्र, अंति; लहे उपजे विनय विनित, गाथा-३. " ५०५५२. (०) स्तवन व स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १. कुल पे. २. प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५X१२, १२३५). १. पे नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण उपा. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि पासजी जगधणी रे साहिब, अंति: दरिसण दीठे सुख धाय, गाथा-१४, (वि. प्रतिलेखक ने दो गाथाओं को एक गाथा गिना है.) २. पे. नाम. मांगलिक लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदिः ॐकारविंदु संयुक्तं अंतिः ततोध्ययनमारभे श्लोक-३. ५०५५३. (०) हरियाली संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे., (२६११.५, १४X३१). १. पे. नाम. हरीयाली कायाजीव उपर स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. मु. हस्तिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. औपदेशिक हरियाली, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: कहयो पंडित ते कुण; अंति: जस कहे ते सुख लहसैं, गाथा-१४. २८१ २. पे. नाम. हरियाली कायाजीव उपरे स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक हरियाली, आव. देपाल भोजक, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वरसें कांवलि भिजें, अंतिः मुख कवि देपाल बखांणइ गाथा ६. ५०५५४. आठ प्रकार सामायिक दृष्टांत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५X११.५, १८X६०). सामायिक दृष्टांत, मा.गु., गद्य, आदि: सामाईयं १ समईयं २; अंति: मंत्रीश्वरनोदृष्टांत. ५०५५५. स्तवन, सज्झाय व वीर थुई, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२५.५X११.५, ९x४०). १. पे. नाम. गजसुकमालजीको स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मिजिन स्तवन, मु. कुशल, पुहिं, पद्य, आदि द्वारापुरी नगरी के अंति: कुसल० चित लावा हो, गाधा-७. २. पे. नाम. दुमपुप्फिय अज्झयण, पृ. १आ, संपूर्ण. दशवेकालिकसूत्र - हिस्सा द्रुमपुष्पिका प्रथम अध्ययन, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, आदिः धम्मो मंगलमुकि अंतिः साहुणो तिमि, गाथा-५. ३. पे नाम. पुच्छिणं, पृ. १आ, संपूर्ण, सूत्रकृतांगसूत्र - हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाथा ३ अपूर्ण तक लिखा है.) ५०५५६. लघुसिद्धांतकौमुदी, सज्झाय व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., ( २६.५X११.५, १४X४०). १. पे. नाम. लघुसिद्धांत कौमुदी, पृ. १अ, संपूर्ण. लघुसिद्धांतकौमुदी, प्रक्रिया, वरदराज दीक्षित, सं., गद्य वि. १५५०, आदि: नत्वा सरस्वती देवी, अति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. "अदर्शनं लोपः " सूत्र तक है. वि. मात्र प्रारंभ करके छोड़ दिया गया है.) २. पे. नाम. रहनेमजी सिज्झाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: काउसग व्रत रहनेम; अंति: ते सासय सुख लेशे रे, गाथा-८. ५०५५७. अरनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., ( २५.५X११.५, ११x२६). गाथा - १०. ३. पे. नाम. पासजी स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- फलवर्द्धितीर्थ, मु. उत्तम, मा.गु., पद्य, आदि: वंछीत फल दायक स्वामी; अंति: उत्तम जिन गुण गावै, For Private and Personal Use Only अरजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: धरम परम अरनाथनो किम; अंति: आनंदघन निरधार रे, गाथा-८. Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५०५५८. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६४११.५, १६४३०). १.पे. नाम. सालेभद्रधनानी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. धन्नाशालिभद्र सज्झाय, उपा. उदय वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: अजीया जोरावर कर्मे ज; अंति: उदय० भवजल तीर रे, गाथा-७. २.पे. नाम. स्थुलिभद्रमुनि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. शांति, मा.गु., पद्य, आदि: बोली गयो मुख बोल; अंति: पभणे सांति मया थकी, गाथा-१४. ५०५५९. (#) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८२, श्रावण शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ८, ले.स्थल. सीरोहीनगर, प्र.वि. श्री जीरावलजी प्रसादात्., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, १३४३६-४०). १. पे. नाम. शेव्रुजय स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: डुगर ठांढो रे डुगर; अंति: उदयरतन० कल्याणो रे, गाथा-८. २. पे. नाम. अष्टापदजीरो स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. अष्टापदतीर्थ स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: मनडो अष्टापद मोह्यो; अंति: प्रह उगमते सूर जी, गाथा-५. ३. पे. नाम. सिधाचलजीरो स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. शQजयतीर्थ स्तवन, मु. कांतिविजयजी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धाचल भेटवा; अंति: करी विमलाचल गायो. गाथा-५. ४. पे. नाम. पार्श्व पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, म. मोहनविजय, रा., पद्य, आदि: मुजरौ तौ मानीने लीजै; अंति: मोहन प्रणमीजैरे, गाथा-४. ५. पे. नाम. सीमंधर स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पूखलवई विजयें जयो रे; अंति: जस कहै० भयभंजन भगवंत, गाथा-७. ६. पे. नाम. जुगमंधर स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. युगमंधरजिन स्तवन, मु. नयविजयजी-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीयुगमंधर माहरे रे; अंति: नयविजयसीस० शिवराज, गाथा-६. ७. पे. नाम. वीसालजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. विशालजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: घातकीखंडे हो के पछिम; अंति: होके धरीये चित्त खरै, गाथा-५. ८.पे. नाम. सूरप्रभजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सूरप्रभ जिनवर घातकी; अंति: नयविजयसुसीस० मंगलकार, गाथा-५. ५०५६०. अइमंतामुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. सा. सीवश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२.५, १३४३७). अइमुत्तामुनि सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंद वांदीने; अंति: लक्ष्मीरतन० वेला, गाथा-१८. ५०५६१. (+) जीव के इकत्रीस बोल व सिद्ध के पंदर भेद, संपूर्ण, वि. १८९९, पौष शुक्ल, १५, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, ले.स्थल. सिंघाणा, जैदे., (२६४११.५, २७७५९). १.पे. नाम. ३१ बोलांका थोकडा सह बालावबोध, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, वि. १८९९, पौष शुक्ल, ९, मंगलवार. ३१ जीव बोल थोकडा, प्रा., गद्य, आदि: गई १ जाय २ काय; अंति: अठ चौसे बाबना सव्वे. ३१ जीव बोल थोकडा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: गति ४ नर्कगति; अंति: प्रवचन माता के बोल. २. पे. नाम. पंदरा भेद सिद्धां के गुण, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ सिद्ध के १५ भेद, प्रा., गद्य, आदि: तित्थसिद्धा १ अतित्थ; अंति: एगसिद्धा अणेगसिद्धा. सिद्ध के १५ भेद-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: तीर्थसिद्धा १ तारी; अंति: परंपराय सिध कहीय. ५०५६२. (+#) श्लोक संग्रह सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. टिप्पणक का अंश नष्ट, दे., (२६.५४११, ५४४४). श्लोक संग्रह जैनधार्मिक*, प्रा.,सं., पद्य, आदि: स्वर्गच्युतानामिह; अंति: सम्मधम्मे हि उज्जमहः, श्लोक-३२. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: जे मनुष्य स्वर्गथी; अंति: पामिइं मुगति पामइं. ५०५६३. (#) स्तवन व सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११,१२४३४). १. पे. नाम. पारसनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, ले.स्थल. मांडवी बिंदर. पार्श्वजिन स्तुति, ग. हेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: भवीयण भाव धरीने रे; अंति: आणीक हेमकन मोहनाणी, गाथा-५. २. पे. नाम. धनासालिभद्र सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ धन्नाशालिभद्र सज्झाय, उपा. उदय वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: अजीया जोरावर करमी; अंति: पाम्या भवजल तीर रे, गाथा-७. ५०५६४. कर्मप्रकृति विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. अमरसी लीलाधर खत्री, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२, १७४६०). ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: कर्म अने जीवनें; अंति: प्राप्ति थावा न दीये. ५०५६५. मधुबिंदुआनी स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४१०.५,११४३२-३५). मधुबिंदु सज्झाय, मु. चरणप्रमोद-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मुझरे माता; अंति: चरणप्रमोदसीस०मांगीइं, गाथा-५, (वि. प्रतिलेखक ने दो गाथाओं को एक गाथा गिना है.) ५०५६६. (+#) स्तोत्र स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२६.५४११.५, २१४८७). १.पे. नाम. शास्वतचैत्य स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. शाश्वतजिन स्तवन, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, आदि: सासयति जय जिणहरे; अंति: धम्मकित्ति० सिद्धिं, गाथा-३२. २. पे. नाम. शाश्वतजिन चैत्यमान गाथा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शाश्वतचैत्य मान गाथा, प्रा., पद्य, आदि: चउवणमुह सिल ४ दारपवर; अंति: पडिमअहालाइ ठिय, गाथा-६. ३. पे. नाम. शास्वतजिनभवन स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. शाश्वतचैत्य स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिउसहवद्धमाणं; अंति: भवियाण सिद्धिसुहं, गाथा-२४. ४. पे. नाम. तीर्थ स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. तीर्थमाला स्तव, सं., पद्य, आदि: पंचानुत्तरशरणाग्रैवे; अंति: भावतोहं नमामि, श्लोक-२४. ५.पे. नाम. मंगल स्तोत्र, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. शाश्वताशाश्वतजिन स्तव, आ. धर्मसूरि, सं., पद्य, आदि: नित्ये श्रीभुवनाधि; अंति: स्तुता धर्मसूरिभिः, श्लोक-१५. ६. पे. नाम. नंदीश्वर कल्प, पृ. २आ, संपूर्ण. नंदीश्वरद्वीप कल्प, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: आराध्य श्रीजिनाधीशान; अंति: श्रीजिनप्रभाचार्यैः, श्लोक-४८. ५०५६७. सुरप्रियऋषि रास, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२६.५४११.५, १७४५४). सुरप्रियसाधु रास, मु. लक्ष्मीरत्नसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति देवि सदा मनि; अंति: दोस ते भवसायर उरइ, गाथा-६७. ५०५६८. (#) गजसुकमाल सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४११.५, १७४४८). For Private and Personal Use Only Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गजसुकुमालमुनि सज्झाय, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभू प्रणमी घरि; अंति: प्रणमइ चरण त्रिण काल, गाथा-२७. ५०५६९. (#) ब्रह्मदत्त कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १५४३४). ब्रह्मदत्त कथा, मा.गु., गद्य, आदि: शाकेतपुर नगर वीरचंद; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., बंधुमती के विवाह प्रसंग तक का वर्णन लिखा है.) ५०५७०. (#) चंदाकोसा गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११.५, १५४३७). स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, पंडित. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: कोसा कामनइ कहे चंद; अंति: गुण गावे नसदीसरे, गाथा-२२. ५०५७१. निरमोही सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५.५४१२, १४४३४). निर्मोही ढाल, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८७४, आदि: निरमोही गुण वरणवू; अंति: पंच ढाल प्रसीधरे, ढाल-५. ५०५७२. (#) स्तोत्र व चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०, १०४३२-४०). १.पे. नाम. तिजयपहुत्त स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहत्तपयासय अट्ठ; अंति: निभंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. २. पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्व स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंति: पूरय मे वांछितं नाथ, श्लोक-५. ५०५७३. (#) नेमिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. सीरोही, प्रले. मु. रामविजय (गुरु ग. कनकविजय); गुपि.ग. कनकविजय (गुरु पं. सुमतिविजय); पं. सुमतिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंशखंडित है, जैदे., (२६.५४११.५,११४३२). नेमिजिनद्वयक्षर स्तोत्र, मु. शालिन, सं., पद्य, आदि: मानेनानून मानेनानोन्; अंति: वध्वाः परिभोगयोग्याः, श्लोक-९. ५०५७४. (#) घोडाचूली ६४ गुण चउपाई, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. झोटाणा, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १५४६०). घोडाचूली, मु. विमलशील, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमवि श्रीशारद; अंति: विमलशील० सीझइ काम, गाथा-२२. ५०५७५. पद्मावती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मयाचंद डुंगरजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१२, ११४४०). पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंति: प्रसिद्ध परमेश्वरी, श्लोक-३०. ५०५७६. (#) शाश्वतजिनभवन संख्या स्तवन सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पंचपाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२५४१०, १३४४४-४६). शाश्वतचैत्य स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिउसहवद्धमाणं; अंति: तु भवियाण सिद्धिसुह, गाथा-२४. शाश्वतचैत्य स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: कुंडल रुचकद्दीपच्छाय; अंति: तेवीसजुया पणिवयामि. ५०५७७. आहारदोष, असज्झाय व भाषाभेद सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. श्रीगुरु प्रसादात्., जैदे., (२६.५४१२, ५४४०). १.पे. नाम. ४७ आहारदोष सह टबार्थ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आधाकर्मी ४७ आहारदोष गाथा, प्रा., पद्य, आदि: आहाकम्मं उद्देसीय; अंति: रसहेतु दव्वसंजोगा, गाथा-६. आधाकर्मी ४७ आहारदोष गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: आधाक्रमी एक साधधनि; अंति: आहार ग्रहण कह्या. २. पे. नाम. ३२ असज्झाय गाथा सह टबार्थ, पृ. १आ, संपूर्ण, वि. १८६४, माघ कृष्ण, १४, पठ. श्राव. फता, प्र.ले.पु. सामान्य. ३२ असज्झाय गाथा, प्रा., पद्य, आदि: उक्कावाय दिसादाहे; अंति: मज्झिमाए अद्धरती, गाथा-३. ३२ असज्झाय गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: उका० तारा तुटै ते; अंति: अर्द्धरती आधी राति. ३. पे. नाम. ४२ भाषाभेद गाथा सह टबार्थ, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, वि. १८६४, प्रले. मु. फगु, प्र.ले.पु. सामान्य. ४२ भाषाभेद गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सच्चाणं भासा; अंति: बोगडा अरबोगडा चेव, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ २८५ ४२ भाषाभेद गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: कइ विहाणं भासा; अंति: का बीबहार भाषा. ५०५७८. सझाय, स्तोत्र व दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२६४१२, १५४३७). १.पे. नाम. सीतासती सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. सीतासती सज्झाय-शीलविषये, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जलजलती मिलती घणी रे; अंति: नित प्रणमुंपाय रे, गाथा-९. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरमंडन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो पार्श्वनाथाय; अंति: पूरिय मे वंछितं नाथ, श्लोक-५. ३. पे. नाम. प्रहेलिका संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: जलता टलता गलता बलता; अंति: अबोलणो लागो चंदनवास, गाथा-३. ५०५७९. (+) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११, १७४४२). १. पे. नाम. नेमनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, ऋ. उदयसिंघ, मा.गु., पद्य, वि. १७६५, आदि: श्रीनेमीसर नित नमुं; अंति: उदयसिंघ० प्रमाण ए, ढाल-४. २.पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तोत्र, ऋ. दुर्गदास, मा.गु., पद्य, आदि: मंगलदायक श्रीजिनराइ; अंति: दुरगदास एक भाव सुमरत, गाथा-५. ५०५८०. पार्श्वनाथ चौढालिया, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२७४११.५, २०४५२). पार्श्वजिन चौढालिया, मा.गु., पद्य, वि. १७२१, आदि: मंगलदायक गाईये; अंति: श्रीपारस मंगल गाईयो, ढाल-४. ५०५८१. कर्मछत्रीसी व सिद्धपद स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२७४१०.५, १८४५६). १.पे. नाम. कर्मछत्रीसी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६८, आदि: कर्म थकी छूटे नही; अंति: समयसुंदरि० प्रमाणजी, गाथा-३६. २. पे. नाम. सिद्धपद स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: जगतभूषण विगत दूषण; अंति: श्रीमहावीर जिनेश्वरो, गाथा-१५. ५०५८२. (#) गहुँली व चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६४१२.५, २६४१६). १.पे. नाम. नेमिजिन गुहली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमिजिन गहली, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जी रे नयरी द्वारीका; अंति: पुण्यथी पामे जगीसजी, गाथा-११. २. पे. नाम. साधारणजिन चईतवंदण, पृ. १आ, संपूर्ण. साधारणजिन चैत्यवंदन-नामविशेषणगर्भित, सं., पद्य, आदि: तीर्थकृत तीर्थसृट; अंति: कृतांत कृतांतकृत्, श्लोक-१०. ५०५८३. कर्मविपाकफल सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४४१०, १३४४०-४२). कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: देव दानव तीर्थंकर; अंति: उदेहरख० रे प्राणी, गाथा-१९. ५०५८४. सज्झाय व स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५४१०, १६४३८-४४). १.पे. नाम. पंचमी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्य जिणेसर; अंति: संघ सकल सुखदाय रे, ढाल-५, गाथा-१६. २.पे. नाम. चंद्रप्रभजिन स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंकर चंदाप्रभु; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ५ अपूर्ण तक है.) ५०५८५. बीजरोतवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४१०.५, ११४३०). सीमंधरजिन स्तवन, रा., पद्य, आदि: पूरब पुकलावती हो सिध; अंति: तो वांदुबे करजोड, गाथा-९. For Private and Personal Use Only Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५०५८६. ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १६३०, कार्तिक कृष्ण, ८, मंगलवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. घनोघ बंदर, प्रले. श्राव. भीमराज रूपसी; पठ.मु. विजय ऋषि (गुरु पं. जगर्षि गणि); गुपि.पं. जगर्षि गणि (गुरु पं. विजयराज); राज्ये आ. विजयसेनसूरि (गुरु गच्छाधिपति हीरविजयसूरीश्वर); अन्य. गच्छाधिपति हीरविजयसूरीश्वर, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.ले.श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं, जैदे., (२६४१०.५, १९४५८). ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्य; अंति: परमानंद नंदितः, श्लोक-६५. ५०५८७. (+) पार्श्वनाथजीरो श्लोको, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११.५, १७X४५). पार्श्वजिन सलोको, श्राव. जोरावरमल पंचोली, रा., पद्य, वि. १८५१, आदि: प्रणमुं परमातम अविचल; अंति: चवदे राजरो अंतरजामी, गाथा-५८. ५०५८८. (+) गणिविजा पइन्ना, संपूर्ण, वि. १९९७, आश्विन कृष्ण, १२, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. अनंतराम महात्मा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१२, १६४५१). गणिविद्या प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, आदि: बोछं बलाबल बिहं नवबल; अंति: नायव्वो अप्पमत्तेहि, गाथा-८६. ५०५८९. गौतम अष्टक, स्तोत्र व अमृतफलदायी मंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२६.५४१२, १५४४३). १.पे. नाम. गौतमस्वामी स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीरजिणेसर केरोसीस; अंति: गौतम तूठे संपति कोडि, गाथा-९. २. पे. नाम. गौतमाष्टक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी स्तोत्र, आ. देवानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीइंद्रभूत वसुभूत; अंति: लभंते सुरतर क्रमेण, श्लोक-१०. ३.पे. नाम. अमृतफलदायी मंत्र-यंत्र विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. अमृतफलदायी मंत्र-यंत्र विधिसहित, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐ नमो अमृते अमृतो; अंति: सीसहदेयं आंक पुगी. ५०५९१. स्तोत्र संग्रह, चौसठ इंद्रनाम व चौवीसजिन माता-पिता नाम, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ६, दे., (२६४१२.५, १५४४७). १. पे. नाम. पद्मावती १०० नामानि, पृ. १अ, संपूर्ण... पद्मावतीदेवी शतनाम स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ देवी पद्मावती; अंति: नमस्तस्यै नमो नमः, श्लोक-१७. २.पे. नाम. शारदा २५ नाम स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी है. __सरस्वतीदेवी २५ नाम स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ देवी सरस्वती; अंति: नमस्तस्यै नमो नमः, श्लोक-५. ३. पे. नाम. गांधार स्वर-परिचय, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४. पे. नाम. ६४ इंद्र नामानि, पृ. १आ, संपूर्ण. ६४ इंद्र नाम, मा.गु., गद्य, आदि: ॐ सुधर्म ईसानश्च; अंति: सौभाग्यदायका सदा. ५. पे. नाम. सारदा २५ नाम स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी है. सरस्वतीदेवी २५ नाम स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ देवी सरस्वती; अंति: नमस्तस्यै नमो नमः, श्लोक-५. ६. पे. नाम. चौवीसजिन माता-पिता नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. वर्तमानचौवीसीजिन मातापितानाम, मा.गु., गद्य, आदि: नाभराजा मोरादेवी १; अंति: सिधारथ त्रिसला २४. ५०५९२. दस पच्चक्खाणादि सूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२६.५४११.५, १४४४६). १. पे. नाम. दस प्रत्याख्यान सूत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: आगारेणं वोसिरामि. २.पे. नाम. पच्चक्खाण पारने की विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नमुक्कारसी पोरसी; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. ३. पे. नाम. सांझ का पच्क्खाण, पृ. १आ, संपूर्ण. सांज का पच्चक्खाण, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: चोवीहार उपासे सूरे; अंति: पच्चक्खामि चउविहंपिय. For Private and Personal Use Only Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ५०५९३. (+) लावणी संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. वे. (२६.५४१२.५, १५X३६). १. पे. नाम. सोलसतीयांकी लावणी, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, १अ-१आ, १६ सती लावणी, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीवीरतणां तृकाल चर, अंति: त्यागी सबकुमती, गाथा- ७. २. पे. नाम. साधु-श्रावक आचार लावणी, पृ. १आ - २अ, संपूर्ण. साधुश्रावक आचार लावणी, मु. राम, पुहिं., पद्य, आदि: है जैन वही जो जैन, अंति: सीसराम० के वेठ उजाले, गाथा ६. ३. पे. नाम, सात कुव्यसन लावणी, पृ. २अ २आ, संपूर्ण ७ व्यसन लावणी, मु. राम, पुहिं., पद्य, आदि: चोरी जुवा मास मद, अंति: सीसराम० जीव फल पाता, गाथा-८. ५०५९४. (+) होली, दीवाली पद व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दे.. (२६.५x१२, २१४५०). १. पे. नाम. दीवाली सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: भजन करो भगवान को अंति: अवसर लाधो छै आज, गाथा-३२. २. पे. नाम. दीवाली सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व सज्झाय, मु. कुसल, मा.गु., पद्य, आदि: दिवाली दुसमन दुखदाई, अंति: कुसल सदा मन धार, गाथा- ११. ३. पे. नाम. दीपावली पद, प्र. १आ, संपूर्ण. दीपावली पर्व पद, बिहारीदास, पुहिं., पद्य, आदिः आई ए दिवाली भैडी; अंति: गलाही परचावदा, गाथा- १. ४. पे. नाम. होलीपर्व सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. कुसल, मा.गु, पद्य, आदि: होली रंड कहां ते आई, अंति: कुसल० कोण बढाई, गाथा- १०. ५०५९५. (+) अनंतकाय सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, प्र. वि. संशोधित. वे. (२७४११.५, ११४३५)अनंतकाय सज्झाय, मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: अनंतकायना दोष अनंता, अतिः भावसागर आनंदा रे, गाथा - १२. ५०५९६. पुण्यफल सज्झाव, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैवे. (२६.५४११, १४४४८). ५०५९७. शनीश्वर कथा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., ( २६१२.५, १२X३८). " सिद्धविमानवर्णन सज्झाय, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जगदानंदन गुणनीलो रे अंतिः थकी सविफलें आसोरे, गाथा- १६. २८७ शनिश्चर चौपाई, पंडित. ललितसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सरसति सामिण मति दिओ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा १० तक लिखा है.) १. पे. नाम. गूढार्थ गाथा संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रहेलिका हरियाली, मा.गु. सं., पद्य, आदि: दूध नहि पीण दही, अंति: हंसा उपग से हंसा, गाथा-३. ५०५९८. (+-०) गाथा संग्रह व महावीर स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ - अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २६.५X११.५, १९X३७). २. पे. नाम महावीरजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदिः संप्राप्त संसारसमुद्र, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा ३ तक लिखा है.) ५०५९९. (१) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. गौतमसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २६.५X१२, १३x४८). " For Private and Personal Use Only १. पे नाम. जंबुरिषी सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण. जंबूस्वामी सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रही नयरी वसे रे; अंति: रूप प्रभूपद सिद्ध रे, गाथा- ७. २. पे. नाम, अडभंगी स्वाध्याय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૨૮૮ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अष्टभंगी सज्झाय, ग. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुविहित गुरुपद अनुसर; अंति: उदयविजय० चतुर सुजाण, गाथा-१३. ५०६००.(#) वीसस्थानक सज्झाय व पडिकमण विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. गुलाबविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२, १४४३८). १.पे. नाम. वीस स्थानक स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २० स्थानकतप सज्झाय, आ. लक्ष्मीसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिणेसर प्रणमी; अंति: जेहने नाम कोड कल्याण, गाथा-१२. २.पे. नाम. पाखी पडीकमणानी विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: मुहपत्तिवंदणयं; अंति: पक्खिपडिक्कमणं, गाथा-३. ५०६०१. बीजनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. गोविंददास साधु, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, १०४२७). बीजतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बीज कहे भव्य जीवने; अंति: लब्धीविजय० विनोदरे, गाथा-८. ५०६०२. (+) सज्झाय संग्रह व लावणी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १६x४६). १. पे. नाम. उपदेशी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. जैमल ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: मोह मिथ्यातरी नीदमै; अंति: रिष जेमल कहै ऐम, गाथा-३५. २. पे. नाम. अरिहंत सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. दानशीलतपभावना सज्झाय, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत देवने उलख्यो; अंति: गया वरत्या __ जयजयकार, गाथा-१०. ३. पे. नाम. दिया नैन लावणी, पृ. २अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. धनीदास, पुहिं., पद्य, आदि: तु तोड करम जंजीर; अंति: नैन हुआ क्युं अंधा, गाथा-५. ५०६०३. (+) साहम्मिय कुलय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४११, १२४३७). साधर्मिकवात्सल्य कुलक, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणं पास; अंति: कयपुन्ना जे महासत्ता, गाथा-२६. ५०६०४. (+) आणंदादि दश श्रावक गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ११४३३). १० श्रावक सज्झाय, मु. सौभाग्यरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: दश श्रावक भगवंतना; अंति: कहे सोभाग्यरत्तन हो, गाथा-१४. ५०६०५. स्तवन व स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४१०.५, १३४१३). १.पे. नाम. भाव स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अलख अगोचर अकलरूप; अंति: मानवि० नाठा सघला दुख, गाथा-५. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, पृ. १आ, पूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक ८ अपूर्ण तक है.) ५०६०६. साध वंदना, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, २०४४२). साधुवंदना, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२२, आदि: पो सम उठ्या भावस्यु; अंति: समतारस तु चाखो हे, गाथा-३३. ५०६०८. नागला सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४१०.५, १९४४४-५०). For Private and Personal Use Only Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ २८९ जंबूस्वामी ५ भव सज्झाय, मु. राम, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसारद प्रणमुंहो; अंति: हो के मुनिवर रामजी, गाथा-३३. ५०६०९. स्तवन व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४११, १०४३९). १. पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: केवलज्ञानी प्रमुख; अंति: प्रणमुंबे करजोडिरे, गाथा-१२. २.पे. नाम. आत्मशीखामण स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. राजसमुद्र, रा., पद्य, आदि: आज के काल चलसीरे; अंति: वडनो नर सोभागीरे, गाथा-७. ५०६१०. कुलक व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६४११.५, ११४४४). १.पे. नाम. श्राद्धकृत्य कुलं, पृ. १अ, संपूर्ण. __ मन्हजिणाणं सज्झाय-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: मन्हजिणाणं आणं मिच्छ; अंति: निच्चं सुगुरूवएसेणं, गाथा-५. २. पे. नाम. कल्लाणकंद स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: कल्लाणकंदं पढम; अंति: अंबसया पसत्था, गाथा-४. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. __मा.गु., पद्य, आदि: दया तणो सायर मुक्ति; अंति: मीतणइ चित समाधि पूरो, गाथा-४. ५०६११. पच्चक्खाण सूत्र व स्तवन, अपूर्ण, वि. १७४८, मार्गशीर्ष शुक्ल, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, ११४३१). १. पे. नाम. पच्चक्खाण सूत्र, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: असिथेणवा वोसरेह. २.पे. नाम. चोवीसजिननाम स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. २४ जिननाम स्तवन, मु. ऋद्धिचंद, मा.गु., पद्य, आदि: आदि १ अजितनै २ संभव; अंति: ऋद्धिप्रणमैं निसदीस, गाथा-५. ५०६१२. तपसीपचीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, २१४५४). तपसीपच्चीसी, मु. धनसीराम, रा., पद्य, वि. १८९९, आदि: धन धन धन श्रीसेवगराम; अंति: मोपै नही जावे कह्या, गाथा-२७. ५०६१३. गवडी पार्श्वजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५.५४११, १५४६०-६५). पार्श्वजिन स्तवन-अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वाणी ब्रह्मवादिनी, अंति: प्रीतविमल अभिराममंतै, ढाल-५, गाथा-५५. ५०६१४. सज्झाय व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. मु. नैनसुख (गुरु मु.ख्यालीराम); गुपि. मु. ख्यालीराम (गुरु मु. तपसीजी); मु. तपसीजी; पठ. सा. रामकोर (गुरु सा. सुंदरजी), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२, १२४४७). १. पे. नाम. सगरचक्रवर्ती चौढालियो, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. सागरचंद्र चौढालियो, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८९८, आदि: सागररायनी वारता कहु; अंति: धर्म विरत सेवज्यो, ढाल-४. २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: लील वसत पाटवी राजै; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र गाथा १लिखा है.) ५०६१५. (+) साधारणजिन स्तवन सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत-क्रियापद संकेत-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२५.५४१०.५, ५४२५-३०). साधारणजिन स्तव, आ. जयानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: देवाःप्रभो यं विधिना; अंति: भावं जयानंदमयप्रदेया, श्लोक-९. साधारणजिन स्तव-टीका, सं., गद्य, आदि: दानि देव प्रभु यद्; अंति: गुणश्च प्रदेयाः. For Private and Personal Use Only Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५०६१६. आदिजिन महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १७०१, आश्विन शुक्ल, १४, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. ग. वीरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १३४३४). आदिजिन महावीरजिन स्तवन-जीर्णगढमंडण, मु. कुशलहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: आदिहि __ आदिजिणेसर; अंति: सयल मंगल सुखकरा, ढाल-७, गाथा-४४. ५०६१७. चौरासी वायरा नाम, संपूर्ण, वि. १८०८, ज्येष्ठ कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, १३४३६). ८४ वायु नाम, मा.गु., गद्य, आदि: सायकबाय१ सीतबायर दंत; अंति: एडिकावाय ८६. ५०६१८. गौतम स्वामी रास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४११.५, २३४५४). गौतमस्वामी रास, आ. विजयभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: श्रीगौतमस्वामिने नमः, ढाल-६, गाथा-६४. ५०६१९. (+) पद व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्रले. मु. दामाजी ऋषि (गुरु मु. भीमजी ऋषि, लोंकागच्छ); गुपि. मु. भीमजी ऋषि (लोंकागच्छ); पठ. मु. पांचा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४४१०,१०४२७-३०). १. पे. नाम. अध्यात्म पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. कायाअनित्यता सज्झाय, मु. राजसमुद्र, रा., पद्य, आदि: सुणि बहिनी प्रिउडो; अंति: नारी विणुं सोभागीरे, गाथा-७. २. पे. नाम. जैन सामान्य कृति, पृ. १आ, संपूर्ण. जिनस्तुत्यादि संग्रह* प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (वि. मात्र बीच की एक गाथा लिखी गई है.) ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि: रे मन धर्मसु चित लाई; अंति: नित माल प्रभु जिनराई, गाथा-५. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जीय परसु कन प्रीति; अंति: मति कउणै जुहरी रे, गाथा-३. ५०६२०. गुरु गँहुली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४११.५, ७४२८). गुरुगुण गहुंली, मा.गु., पद्य, आदि: सुण साहेली सदगुरुवंद; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ४ ___ अपूर्ण तक लिखा है.) ५०६२१. (+) स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११,१५४३७). १.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: प्रोद्यत्पादारविंद; अंति: कामित वः करोतु, श्लोक-४. २. पे. नाम. पंचकल्याणक स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: नाभेयं संभवं तं अजिय; अंति: गणसहिया पंचकल्लाणएसु, गाथा-४. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण.. ___ सं., पद्य, आदि: सुवर्ण सद्वर्ण सवर्ण; अंति: देहि मे देवि सारम्, श्लोक-४. ५०६२२. (+) स्तुति व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १७८६, चंद्रत्यष्टगजरस, आषाढ़ शुक्ल, ९, शनिवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. मार्तंडपुरबंद, प्रले.ग. सुखानंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४१०.५, १२४३४). १.पे. नाम. पंचजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. ५ तीर्थजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीशत्रुजयमुख्य; अंति: ते संतु भद्रंकराः, श्लोक-४. २. पे. नाम. आशीर्वाद श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. आशीर्वचन, सं., पद्य, आदि: भाले भाग्यकला मुखे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक २ तक लिखा है.) ५०६२३. तिजयपुत्त स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. श्रावि. दीपकुयर, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४११.५, ११४३०). तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ; अंति: निब्भंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. For Private and Personal Use Only Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ५०६२४. विचार संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, प्रले. पं. कस्तुरविजय ( खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २४.५X११.५, ५X४१). १. पे. नाम, स्त्रीयोनिमध्य पंचेंद्रियजीव गाथा सह टवार्थ, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण स्त्रीयोनिमध्य पंचेंद्रियजीव गाथा, प्रा., पद्य, आदि: तेह पंजीवदि अजीवा, अंतिः मूलगीबोहो लाभस्स, गाधा- १०, (वि. १८६७, मार्गशीर्ष कृष्ण, ११, शनिवार) स्त्रीयोनिमध्य पंचेंद्रियजीव गाधा- टवार्थ, मा.गु, गद्य, आदि ति खियाने पंचींद, अंतिः छे धर्म नही बेइ (वि. १८६७, मार्गशीर्ष कृष्ण, १४) २. पे नाम लुंगियानगर जिनभक्ति आवकोपदेश वर्णन सह टवार्थ, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण " लुंगियानगर जिनभक्ति आवकोपदेश वर्णन, प्रा. गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं समए अंतिः वत्थाइहि पूआ कायव्वा. लुंगियानगर जिनभक्ति श्रावकोपदेश वर्णन टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते काल ते समय वीर, अंतिः भक्ति जिनपूजा करवी. ३. पे नाम, जिनालयादि में आचारभंग प्रायश्चित विधान सह टवार्थ, पृ. ३अ ४अ, संपूर्ण, निशीथसूत्र - हिस्सा जिनालयादि में आचारभंग आलोषणा, प्रा., गद्य, आदि से भयव्वं तहारूव समण, अंति पायच्छितं उवदंसिज्जा. निशीधसूत्र - हिस्सा जिनालयादि में आधारभंग आलोयणा का टवार्थ, मा.गु, गद्य, आदि: वली गोतमस्वामीइं पूछ अंति: सुख प्रतै पामस्ये ५०६२५. देहरा फल स्तवन, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पठ. श्राव मूलचंद संघवी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२४.५४१०.५, १३x४१). २९१ जिनवंदनफल स्तवन, मु. कीर्तिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: जिन चोवीसे करु, अंति: कीरतिविमल सुख बरवा, गाथा - ११. ५०६२६. उपदेशरत्नकोशमाला सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३१, पौष शुक्ल, ७, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले. स्थल. वडगाम, प्रले. पं. दोलतरुचि (गुरु मु. लालरुचि); गुपि. मु. लालरुचि (गुरु पं. दलपतिरुचि); पठ. मु. पूनमचंद (गुरु मु. दोलतरुची), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीचिंतामणीपार्श्व प्रसादात्, श्रीमाणिभद्रवीर साहस्ये., जैदे., (२४X११.५, ६x४०). उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदि उवएसरयणमालं नासिअनीस, अंतिः विउलं उवएसमालमिणं, गाथा-२६. उपदेशरत्नमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः उपदेशरूप रत्न तेहनु; अंति: माला कही हितोपदेश. ५०६२७. (+) गँहुली संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित - टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५X११.५, १३X३१). १. पे. नाम. गुरुगुण गहुंली, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. विशुद्धविमल, मा.गु., पद्य, आदिः सुचि रुचि गुहली करो, अंति: अनुभवि तसघर मंगलमारे. २. पे. नाम. औपदेशिक गहुंली, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. औपदेशिक गँहुली, मु. विशुद्धविमल, मा.गु., पद्य, आदि: संसारता संसारमा रे, अंति: रहता मंगलमाल, गाथा-५. ३. पे. नाम महावीरजिन गहुली, पृ. १आ. संपूर्ण. For Private and Personal Use Only मु. विशुद्धविमल, मा.गु., पद्य, आदि: बहिनी अपापानयरी; अंति: सहु जय जस भणो रे, गाथा-५. ५०६२८. चौपाई, सज्झाय व स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ३, जैवे. (२४.५x११.५, २०४५८). " १. पे. नाम, प्रीयमेलक चौपाई. पू. १अ ४अ, संपूर्ण, अंति: प्रियमेलक चौपाई - दानाधिकारे, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७२, आदि: प्रणमुं सद्गुरु पाय; - पुण्य अधिक परमोद, डाल- ११, गाथा - २२०. २. पे. नाम. सीलछत्रीसी, पृ. ४-४आ, संपूर्ण. Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शीयलछत्रीसी, मु. भवानीदास, पुहि., पद्य, आदि: अतीत काल जे जिन हुए; अंति: भवानी० सो पामै भवपार, गाथा-३६. ३. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. हीर, मा.गु., पद्य, आदि: एक अरज अवधारज्यो; अंति: फलै मनोर्थ तेहना, गाथा-९. ५०६२९. साधारणजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११.५, १५४२८). साधारणजिन स्तव, आ. जयानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: देवाः प्रभो यं; अंति: भावं जयानंदमयप्रदेया, श्लोक-९. ५०६३०. महावीरस्वामी वृद्ध स्तवन, संपूर्ण, वि. १८४५, श्रावण शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. चाहडतासग्राम, प्रले. पं. सुमतिधीर; पठ. भैरवदान, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४३९). महावीरजिन स्तव-बृहत्, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, आदि: जइज्जा समणे भगवं; अंति: कयं अभयदेवसूरिहिं, गाथा-२२. ५०६३१. सज्झाय, स्तुति व छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, दे., (२५.५४११, ८४३२). १.पे. नाम. उपदेश सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. औपदेशिक छंद, पंडित. लक्ष्मीकल्लोल, मा.गु., पद्य, आदि: भगवति भारति चरण; अंति: धरम रंग ते रातो चोल, गाथा-१६, (वि. गाथा ८ के बाद गाथांक नहीं लिखा है.) २.पे. नाम. ऋषभदेव थूई, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रह उठी वंदो ऋषभदेव; अंति: ऋषभदास गुण गाय, गाथा-४. ३. पे. नाम. गौतमस्वामी छंद, पृ. २आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम नाम प्रभात जपो; अंति: लब्धिनि० फतेरी फतेरी, गाथा-१. ५०६३२. शाश्वतजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११.५, १३४३४). शाश्वताशाश्वतजिन स्तव, आ. धर्मसूरि, सं., पद्य, आदि: नित्ये श्रीभुवना; अंति: स्तुता धर्मसूरिभिः, श्लोक-१५. ५०६३३. नागकेतु कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, ११४३५). नागकेतु कथा, मा.गु., गद्य, आदि: चंद्रकांता नाम नगरी; अंति: तीन जनम पवित्र कीधा. ५०६३४. गिरनार कल्पसह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२५४११, ६४३४-३८). गिरनारतीर्थकल्प, मु. ब्रह्मद्र; सरस्वती, सं., पद्य, आदि: श्रीविमलगिरेस्तीर्था; अंति: संस्तवं तुष्ट्यै, श्लोक-२३. गिरनारतीर्थ कल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीशत्रुजयनो तीर्थ; अंति: काजे सीवमस्तु. ५०६३६. शांतिजिन व नेमिजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२५.५४११, १९४४७). १.पे. नाम. शांतिनाथ स्तोत्र सह अवचूरि, पृ. १अ, संपूर्ण, अन्य. पं.शुभकरण; पंन्या. शुभशील गणि, प्र.ले.पु. सामान्य. शांतिजिन स्तव, सं., पद्य, आदि: वासवानतदेवेन रंगागार; अंति: न तना स सनातनः, श्लोक-५. शांतिजिन स्तव अवचूरि, सं., गद्य, आदि: वासवः शक्रस्तेन नत; अंति: नर शास्वत आस अभूत्. २. पे. नाम. नेमिनाथ स्तव सह अवचूरि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तव, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमीशशमिने; अंति: न वेदे न जानातु ते, श्लोक-५. नेमिजिन स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: हे नेमीश भवंतं त्वां; अंति: स मुनिषु सुंदरः. ५०६३७. पांच भाव विचार व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४४०). १.पे. नाम. भाव विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. ५ मूलभाव ५३ उत्तरप्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: मूलभाव५ उत्तर२ भाव; अंति: सर्व मलिने उतरभाव५३. २. पे. नाम. सीमंधरजिन विनती, पृ. १आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, श्राव. गोरधन माली, मा.गु., पद्य, आदि: बे कर जोडी सीमंधर; अंति: मुझ आवागमण निवार, गाथा-१०. . For Private and Personal Use Only Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ५०६३८. षट्पुत्र व ईलापुत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. जीर्णगढ, जैदे., (२६४११.५, १६४४२). १.पे. नाम. षट्पुत्र सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ६ भाई सज्झाय, मु. प्रेम, मा.गु., पद्य, आदि: शील शिरोमणि नेमजिणंद; अंति: कहें पुन्य भलो लोय, गाथा-११. २. पे. नाम. ईलापुत्र सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. इलाचीकुमार सज्झाय, मु. कीर्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नामे एलापुत्र जाणीए; अंति: कीर्तिविजय गुणगाय, गाथा-९. ५०६४०. भास,स्तवन व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४.५४११.५, १२४३५). १. पे. नाम. श्यामजीगुरु भास, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. श्यामजी गुरु भास, मा.गु., पद्य, वि. १८७२, आदि: प्रणमी श्रीसारद पाया; अंति: दीन दीन मंगल पावे हो, गाथा-९. २. पे. नाम. अनंतजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: अनंतजिनशुंकरो; अंति: जस० प्रेम महंत रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. सुभाषित श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह *, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५०६४१. (+) स्तवन व श्लोक, संपूर्ण, वि. १८७५, श्रावण कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. इडरगढ, प्रले. पं. दोलतहस गणि; पठ. श्रावि. दुधीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. लहुडीपोसाल गच्छे ऋषभजिन प्रसादात्, संशोधित., जैदे., (२४.५४१२, १५४३७). १.पे. नाम. अष्टमी स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. ___ अष्टमीतिथि स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हां रे माहरे ठाम धरम; अंति: कांति सुख पामे घj, ढाल-२, गाथा-२४. २.पे. नाम. श्रावककर्तव्य श्लोक, पृ. २आ, संपूर्ण. श्रावक षटकर्म श्लोक, सं., पद्य, आदि: देवपूजा दयादानं; अंति: मृत्युजन्मफलाष्टकम्, श्लोक-१. ५०६४३. नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४.५४१२, १२४२८). नेमिजिन स्तवन, मु. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सखी तोरण आवीकंत पाछा; अंति: नेम अनुभव कलीया रे, गाथा-१५. ५०६४४. (+) गौतम पृच्छा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्रले. रघुनाथ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४९.५, १५४४८-५०). गौतमपृच्छा चौपाई, मु. नयरंग, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: फले इम पभणे नयरंग, गाथा-४४, (पू.वि. गाथा १८ अपूर्ण से है.) ५०६४५. विविधविषयसंबद्ध साधु पत्राचार पत्रसंग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२५.५४११, २३-२४४६२-६६). विविधविषयसंबद्ध साधु पत्राचार पत्रसंग्रह, मु. भुवनकीर्ति, सं., गद्य, आदि: स्वस्तिश्रीमदभीष्ट; अंति: तत्रापिस्तात्तकदिति. ५०६४८. आदिजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४१०, ११४३४-३६). आदिजिन स्तव, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नयगमभंगपहाणा विराहिआ; अंति: कुणउ अम्हाणं, गाथा-११. ५०६४९. क्षमाछत्रीशी, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. ग. कमलविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०, १८४४८-५५). क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदर जीव क्षमागुण; अंति: चतुर्विध संघ जगीस जी, गाथा-३६. ५०६५२. () स्तवन व सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कल पे. २. प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं. दे.. (२५.५४११.५, १२४२८-३१). १. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तवन-स्यावानगरमंडन, पं. सुगणकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १७८९, आदि: प्रभुजी अरज करुं कर; अंति: सुभाचंद० सुणीजै मोरी, गाथा-९. २. पे. नाम. चेला सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, रा., पद्य, आदि: चेला पांचे बलधे गाडल; अंति: ज्यु वधसी थारैतोल, गाथा-१२. ५०६५३. (+) छंद व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५४११, १३४३५). १.पे. नाम. ज्वर छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ॐ नमो आनंदपुर अजेपाल; अंति: सार मंत्र गुणिये सदा, गाथा-१६. २.पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औषध संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५०६५४. अंजनासती रास, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., दे., (२६४११.५, १४४३३). ___ अंजनासुंदरी रास, मा.गु., पद्य, आदि: सीयल समोवड को नही; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १० अपूर्ण तक है.) ५०६५५. (#) पंचापि अधिकारी आराधना, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १८४५३). श्रावक आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६६७, आदि: श्रीसर्वज्ञ प्रपंणम; अंति: जैनंजयति शासनं, अधिकार-५. ५०६५८. (+#) सनतकुमार चक्रवर्ति धमाल, अपूर्ण, वि. १६६१, संवच्छरचंद्ररतिदर्शनभूमि, चैत्र शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. ४-१(३)=३, प्रले.ग. महिमासुंदर (गुरु वा. साधुकीर्ति, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १७७५७). सनत्कुमारचक्रवर्ति धमाल, ग. महिमासुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६६१, आदि: प्रणमी चउवीसवि अरिह; अंति: महिमसु० संपद सुख लहइ, गाथा-१५१, (पूर्ण, पू.वि. गाथा ८३ अपूर्ण से १२५ अपूर्ण तक नहीं है.) ५०६६१. पंचमीनी थुई, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४११.५, ११४३२). पंचमीतिथि स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: पंचरुप करी मेरुशिखर; अंति: हरयो विघन अमारा जी, गाथा-४. ५०६६२. अष्टमी स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. नागौर, प्रले. हरदयाल सीवदान जोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४११, ११४३७). अष्टमीतिथि स्तुति, उपा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टमी जिन चंद्रप्रभ; अंति: राज० अष्टमी पोसह सार, गाथा-४. ५०६६४. (+#) बोल आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२५४१०.५, १९४३९-५०). १.पे. नाम. ८४ गच्छ नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: खरतरगछ१ ओसवालगछ२; अंति: ८४ गुंदाउआ गछ. २. पे. नाम. ११ मत नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. १२ मत नाम, मा.गु., गद्य, आदि: आंचलियामती१; अंति: मती १० आत्म मती ११. ३. पे. नाम. दुहा संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४. पे. नाम. खरतरगच्छ गोत्र नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. खरतरगच्छ के ४९ गोत्र और जातियाँ, मा.गु., गद्य, आदि: रायभणसाली० आभूसंतान; अंति: खरतर४८ सेठ खरतर. ५. पे. नाम. श्रीमाल गुजरा गोत्र ७९ खरतरगच्छ, पृ. १आ, संपूर्ण. बोल संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५०६६५. (#) वसुधारा, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १४४३८). वसुधारा-लघु, सं., गद्य, आदि: ॐ नमो रत्नत्रयाय ॐ; अंति: आर्यवसुधारा ज्ञेयाः. For Private and Personal Use Only Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ५०६६६. (#) कुगुरु स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १३४३७). ५ कुगुरु सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो सदगुरु गुण; अंति: सीसेण जणाण बोहटुं, ढाल-५, गाथा-३९. ५०६६७. सील कुलक, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११, १०४२७). भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय; अंति: जसपडहो तिहुयणे सयले, गाथा-१३. ५०६६८. (+) शनीश्चर कथा व कविता संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, १७४४६). १.पे. नाम. शनीश्वर कथा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १८१४, ज्येष्ठ शुक्ल, ६, सोमवार, प्रले. मु. मोहनरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य. शनिश्चर वार्ता, पंडित. ललितसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सरसति संपति मति द्यो; अंति: ललितसागर इम कहै, गाथा-२७, प्र.ले.पु. सामान्य. २. पे. नाम. कवित संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. काव्य/दुहा/कवित्त/पद्य*, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५०६६९. (+) कर्मप्रकृति व पांच भावना भेद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४११.५, ११४३६). १.पे. नाम. ८ कर्म १५८ प्रकृति, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानावरणीकर्मनी; अंति: अट्ठावन प्रकृति. २.पे. नाम. ५ भावना ५३ भेद, पृ. ३आ, संपूर्ण. ५ मूलभाव ५३ उत्तरप्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: उपशमभावना २भेद उपशम; अंति: माटे परिणामिक भाव. ५०६७०. (#) साधु प्रतिक्रमण सूत्र व बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०, ११४३९). १.पे. नाम. साधुप्रतिक्रमण सूत्र, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नमोअरिहंताणं करेमि; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं. २. पे. नाम. सातलाखसूत्र, पृ. ३आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. श्रावक देवसिकआलोयणासूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, गु., पद्य, आदि: सातलाख पृथ्वीकाय; अंति: एवं चउरासी लाख. ३. पे. नाम. १८ पापस्थानक नाम, पृ. ३आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. मा.गु., गद्य, आदि: प्राणातिपात१ मृषावाद; अंति: १८ मिथ्यातसल्य. ४. पे. नाम. सामान्य बोल संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५०६७१. चौढालीयो व वीसविहरमान, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२५.५४१२.५, १७४४३). १. पे. नाम. जिनरिषी जिनपाल चौढालियो, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, वि. १९६५, चैत्र शुक्ल, ८, गुरुवार, पठ. मु. लालचंद ऋषि (गुरु मु. अनोपचंद ऋषि); प्रले. मु. अनोपचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. जिनपालजिनरक्षित चौढालियो, रा., पद्य, आदि: अनंता सिद्ध आगै हुवा; अंति: माहाविदेह जासी मोक्ष, ढाल-४. २.पे. नाम. वीसविहरमान नाम, पृ. २आ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन नाम, मा.गु., गद्य, आदि: सीमंधर १ युगमंधर; अंति: १९ अजितवीर्य २०. ५०६७२. पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, दे., (२५.५४११, ३३४१८). १. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन पद-पावापुरीतीर्थ, मु. नवल, पुहि., पद्य, आदि: पावापुर पुखरा चालौ; अंति: प्रभुजीसुनेहरा, पद-५. २. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: जालम जोगीडासुंलगी; अंति: मन करुं कुरवाण रे, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २९६ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. वासुपूज्य जिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. वासुपूज्यजिन पद, मु. रूपचंद्र, मा.गु, पद्य, आदि: हारे जिनराज मेरो मन, अंति: गावै आवागमण निवार, गाथा ४. ४. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. १अ. संपूर्ण. आनंदराम, पु,ि पद्य, आदि छोटीसी जान जरासा अंतिः सुखसंपति बहु करणा वे, गाथा-३. " ५. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ संपूर्ण. मु. लालचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मेरो मन वस कर लीनो; अंति: सुणीजे पूरो वंछित आस, गाथा- ६. ६. पे. नाम, साधारणजिन पद, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, " मु. लक्ष्मीराज, पु.ि, पद्य, आदि मै तो जिनंद परिवारी, अंतिः सब जीवन सुखकारी, गाथा-४. ५०६७३. देवपूजा विषये जोणास कथा संपूर्ण वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, जैदे. (२६११, १८४५२). जिनपूजा विशे जोणास कथा, सं., गद्य, आदि: सीमंधरजिनादिष्टा, अंति: लोकप्रतिबोध: मोक्षः. ५०६७४. धरणोरणेंद्र स्तवन- कलिकुंडपार्श्व, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे. (२५४१२, १६x४८). पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: धरणोरगेंद्र सुरपति, अंति: तस्यैतत् सफलं भवेत्, श्लोक-३८. ५०६७५. (#) हीरसूरि बारबोल स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है. जैवे. (२५.५४११.५ १२४३४). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हीरविजयसूरि १२ बोल सज्झाय, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जी हो हीरविजयसूरीसरइ; अंति: जैनविजय कहै एम, गाथा- १५. ५०६७६. (+) निदान कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५X१०.५, ९x४१). " नवनिदान कुलक, प्रा. पद्य, आदि निव१ धणी२ नारी३ नर४; अंतिः सगुणोताए अपरिगओ, गाथा- १६. नवनिदान कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नृपनो नियाणो१ धनवंत, अंति: सहित तो पण न पाम. ५०६७७. (०) पंचधारणा पिंडस्थ ध्याने संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२४.५४१२.५ १०x२५). पिंडस्थाध्याने पंचधारणा, सं., पद्य, आदि: तस्मिन्पिंडस्वसध्यान, अंतिः सिंहसर्पासुरादय श्लोक-३१. ५०६७८. चक्रेश्वरीदेवी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९६०, आश्विन कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. राणावस, प्रले. मु. अनोपचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४११.५, १४४४२). चक्रेश्वरीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीचक्रे चक्रभीमे, अंतिः चक्रदेव्याः स्तवेन, श्लोक ९. ५०६७९, (४) चैत्यवंदन व दूहा, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५x११, १२४३४). १. पे. नाम. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण मु. साधुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धचक्र आराधता, अंतिः साधुवि० नमुं करजोडि, गाथा - १४. २. पे. नाम दूहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण सीमंधरजिन दूहा, मा.गु., पद्य, आदि जे चारित्रे निर्मला, अंतिः ते मुनि बंदु निसवीह, गाथा- १. , ५०६८० (+) नवकार पद, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, ले. स्थल, जोधपुर, प्रले. पं. मेघराज, प्र.ले.पु. सामान्य प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जै. (२५.५X१२, १०३९). नमस्कार महामंत्र सज्झाव, मु. प्रभुसुंदर शिष्य, मा.गु., पद्य, आदिः सुखकारण भवियण समरो, अंतिः जिनवर गुणप्रभू० रसाल, गाथा- ७. ५०६८९. (+) भगवतीसूत्र की सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दे. (२५.५X१२, १३x३०). भगवतीसूत्र - सज्झाय, संबद्ध, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, वि. १८४३, आदि: वीर जिणेसर अरथ, अंति: गु गावै सुजगीसरे, गाथा २०. For Private and Personal Use Only Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ५०६८२. (+) स्तवन व सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. सुरतबंदर, प्रले.पं. गौतमविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११,११४२३). १.पे. नाम. रोहिणीतप सज्झाय, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने कृति का प्रकार सज्झाय लिखा है. रोहिणीतप स्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सासणदेवत सामिणी मुझ; अंति: हिव सकल मन आस्या फली, ढाल-४, गाथा-२४. २.पे. नाम. चिंतामणिपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण, पे.वि. पत्र १अ पर श्लोक ९ अपूर्ण से. यह कृति बाद में लिखी गई है. पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: बीजं बोधबीजं ददाती, श्लोक-११, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक ९ अपूर्ण से लिखा है.) ५०६८३. पद्मावती पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४१२, २७४५७). पद्मावतीदेवी पूजा सविधि, सं., प+ग., आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्रं; अंति: अर्कचंद्रार्घम्. ५०६८४. हितशिक्षा श्रावक व गाथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, १५४४५). १.पे. नाम. हितशिक्षा श्रावक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, प्रले. पंन्या. हर्षविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. श्रावकगुण सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: कईयै मिलस्यै रे; अंति: सफल जन्म तिण लाधो जी, गाथा-२२, (प्रले. पंन्या. हर्षविजय, प्र.ले.पु. सामान्य) २. पे. नाम. औपदेशिक गाथा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: रवि उगै परकज जोति; अंति: जिनह० केहणी नावे हो, गाथा-२. ५०६८६. (#) स्तवन सज्झाय व श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४११.५, १६४३५). १.पे. नाम. आतम बोध सज्झाय, पृ. ४अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक सज्झाय, मु. महिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सासरीइये म जईइ रे; अंति: महिमा० सूख लहीइ रे, गाथा-१०. २. पे. नाम. आवती चोवीसी स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन-अनागत, पंन्या. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: मान० लेहवा सूख तरंगए, गाथा-२२, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१९ अपूर्ण से लिखा है.) ३. पे. नाम. ज्योतिष श्लोक, पृ. ४आ, संपूर्ण. ज्योतिष*, मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ५०६८७. महावीर सत्तावीसभव स्तवन, संपूर्ण, वि. १८१४, वैशाख शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. राजकोट, प्रले. मु. संघजी; पठ. मु. राजसी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १५४३७). महावीरजिन स्तवन-२७ भव, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: विमल कमलदल लोयणा; अंति: शुभविजय शिष्य जयकरो, ढाल-६, गाथा-८३. ५०६८८. घुघर निसाणी पार्श्वनाथ छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. भूज, प्रले. मु. रुपचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४११, १५४३७). पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: सुखसंपत्तिदायक सुरनर; अंति: नित प्रते होए आणंद, गाथा-२९. ५०६८९. सिद्धाचल स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४११.५, १३४३०). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, ग. प्रतापविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८०८, आदि: पुंडरगिर रलिआमणो जिह; अंति: प्रताप० अमी जलधार, गाथा-१५. ५०६९०. वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४११, १०x२९). महावीरजिन स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: भक्ति तुमारोवीनवे; अंति: रूपचंद रस मान्यो, गाथा-७. ५०६९१. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५४१२, १२४३५). For Private and Personal Use Only Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. पार्श्वनाथ गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: सुण सोभागी हो साहिब; अंति: आनंदघन मुझ माहि, गाथा-८. २.पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजीने चरणे लागुं; अंति: आनंदघन प्रभु जागे रे, गाथा-७. ५०६९२. चतुर्विंशितिजिन नमस्कार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११, १३४४६). सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: च लुकप्रमाण, श्लोक-२७. ५०६९३. पुंडरगीरी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४११.५, १२४३६). शQजयतीर्थ स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजी आया रे विमलाचल; अंति: रैपद्मविजय परिणाम, गाथा-७. ५०६९४. साधारणजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४११.५, ७X२९). साधारणजिन स्तवन, वा. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु तोरी वाणी सुणी; अंति: मुज तुज ध्यानमां, गाथा-५. ५०६९५. षट् अठाइ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२५४१२.५, १२४४२). ६ अट्ठाइ स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८३४, आदि: श्रीस्यादवाद सुद्धो; अंति: बुह मंगल पाइया, ढाल-९, गाथा-५४. ५०६९६. (#) आगामी चउवीसी तीर्थकर जीवनाम व श्रावकधर्म पंचासक की चूर्णि, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १४४४६). १.पे. नाम. आगामी चउवीस तीर्थंकर जीव स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिननाम अनागत, सं., पद्य, आदि: तत्र श्रेणिकराजीवो; अंति: भद्रकृन्नामतीर्थकृत, श्लोक-१२. २. पे. नाम. श्रावकधर्म पंचासक की चूर्णि, पृ. १आ, संपूर्ण. पंचाशक प्रकरण हिस्से के प्रथम पंचाशक की चूर्णि, हिस्सा, आ. यशोदेवसूरि, प्रा., गद्य, वि. ११७२, आदि: (-); अंति: समयनिउणेहिं, (प्रतिपूर्ण, पू.वि. श्रावकाचार संबंधी किंचिंत चूर्णि तथा अंत में अंतिम प्रशस्ति गाथा दी गई कर जीवस्तील, अक्षरों की स्थासक की चूर्णि ५०६९७. (#) सझाय व स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १८४४३). १.पे. नाम. शालिभद्र सज्झाय, पृ. ४अ, संपूर्ण. शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम गोवाल्या तणो; अंति: गयो जी सहजसुंदर, गाथा-१९, (वि. अंतिमवाक्य का अंश खंडित है.) २.पे. नाम. पंचतीर्थ स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. ५ तीर्थजिन स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: आदिहि आदि जिणेसरु ए; अंति: लावण्यसमै इम भणै ए, गाथा-११. ५०६९९. (#) आदीसर स्तोत्र व दूहा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११,११४३३). १.पे. नाम. आदिसर स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ आदिजिन स्तवन-सेत्रावामंडण, मु. लखमीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सेत्रावापुरमंडणउ ऋषभ; अंति: लबधि० लखमी सुसीस जी, गाथा-७. २. पे. नाम. दहा संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. जैनदहा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: चिहु नारी नर नीपजइ; अंति: गंज न सक्कइ कोइ, गाथा-१. ५०७००. (#) पंचम आरा सझाय, संपूर्ण, वि. १९३७, आषाढ़ शुक्ल, १, मध्यम, पृ. १, प्रले. मोहन डामर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२४.५४१२, ११४३९). For Private and Personal Use Only Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ पंचमआरा सज्झाय, मु. जिनहस, मा.गु., पद्य, आदि: वीर कहै गौतम सुणो; अंति: भाखं एवयण रसाल, गाथा-२१. ५०७०१. (+) गणधर नमस्कार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. पालीताणानगर, लिख. मु. कल्याणविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., दे., (२४.५४११.५, १२४२९). २४ जिन गणधरसंख्या चैत्यवंदन, मु. कल्याणविमल, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथमतीर्थंकरनि नमुं; अंति: कल्याणविमल गुण खाण, गाथा-१३. ५०७०२. (#) हरीआली संग्रह, संपूर्ण, वि. १९४२, आषाढ़ कृष्ण, ३, सोमवार, जीर्ण, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२४.५४११.५, ९४३७). १.पे. नाम. प्रहेलिका हरियाली, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: एक नारी बहुं पुरुष; अंति: कांतिविजय० बलिहारी, गाथा-६. २. पे. नाम. इरियावही हरियाली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. इरियावही सज्झाय, मु. मेघचंद्र-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: नारि में दीठी एक; अंति: मेघ०एहनी करजो सेवरे, गाथा-७. ५०७०३. हरीयाली व गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२५४११, १६४४९). १.पे. नाम. औपदेशिक हरीयाली, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक हरियाली, मु. जिनवर्द्धमान, मा.गु., पद्य, आदि: चित्त विचारी कहो तो; अंति: जिनवर्ध० अवधि छमासि, गाथा-५. २.पे. नाम. हरीयालीगीत, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक हरियाली, मु. जिनवर्द्धमान, मा.गु., पद्य, आदि: सुनी बहिनी पियुडो पर; अंति: जिनवधमान० सुविचारी, गाथा-६. ३. पे. नाम. नेमिनाथ गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, म. जिनवर्द्धमान, मा.गु., पद्य, आदि: जीव करीने जाणती वलि; अंति: जिनवधमान आसरे, गाथा-५. ५०७०४. बीज स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४.५४१२, १६४३३). बीजतिथि स्तवन, उपा. ऋद्धिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७१, आदि: सरसति माता नमी करी; अंति: रिद्ध० कीयो जयकार रे, गाथा-१६. ५०७०५. (#) पच्चक्खाण सूत्र व गुंहली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४११.५, १४४३३). १.पे. नाम. पच्चक्खाण, पृ. १अ, संपूर्ण, ले.स्थल. अमनगर, प्रले. श्राव. जयकुंअर, प्र.ले.पु. सामान्य. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: फासिअए पाठ केहवो. २.पे. नाम. महावीरजिन गुंहली, पृ. १आ, संपूर्ण, प्रले. पं. दोलत; पठ. श्राव. जयकुंअर, प्र.ले.पु. सामान्य. महावीरजिन गहुली, मु. राजेंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: जीरे गुणसील चैत्य; अंति: राजेंद्र सुखकार रे, गाथा-८. ५०७०६. (#) दानसीलतपभाव चउढालीयो, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-८(१ से ८)=१, प्र.वि. मूल पाठ का अंशखंडित है, जैदे., (२५४१०, १५४४७-५०). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदिः (-); अंति: समयसुं० भणत गुणत जस०, ढाल-४, गाथा-१०१, ग्रं. १३५, (पू.वि. ढाल ३ गाथा ४ अपूर्ण से है., वि. अंतिमवाक्य का अंतिम अंश फटा है.) ५०७०७. (#) तिजयपहुत्त स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. यंत्र सहित., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४१०.५, १४४४३). तिजयपहत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहत्तपयासं अट्ठ; अंति: निब्भंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. For Private and Personal Use Only Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५०७०८. (+#) भ्रमरगीता, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १९४५४). नेमिजिन भ्रमरगीता, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: समुद्रविजयनृप कुलतिल; अंति: प्रभु थुण्या सानुकूल, गाथा-२७. ५०७०९. पंचमहाव्रत सझाय व्रत १ से ३, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४.५४१०.५, १२४३६). ५ महाव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मनोरथ पुरवे रे; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ५०७१०. विमलसोमसूरिगुरु सज्झाय, संपूर्ण, वि. १६८४, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४११, ११४३७). विमलसोमसूरिगुरु सज्झाय, मु. कल्याणसोम, मा.गु., पद्य, आदि: शशिवदना सरसति चिति; अंति: सोम० विमलसोमसूरि नमु, गाथा-११. ५०७११. शांति स्तव, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. मनजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११, ११४३७). संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: सांतिकरं सांतिजिणं; अंति: सिद्धी भणई सीसो, गाथा-१३. ५०७१२. (+) शब्दनय व प्रमत्ताप्रमत्त निरूपण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न., जैदे., (२४४११, १५-१७४४८-५२). १. पे. नाम. शब्दनय निरूपण-विशेषावश्यकवृत्तिगत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शब्दनय निरूपण-विशेषावश्यकवृत्ति नयद्वारगत, प्रा.,सं., गद्य, आदि: (१)अहवा पच्चुप्पन्नो, (२)अथवा प्रत्युत्पन्नः; अंति: सप्तभंग विस्तरेणेति. २.पे. नाम. प्रमत्ताप्रमत्त निरूपण-भगवतीसूत्र तृतीयशतक तृतीयोद्देशगत, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ सं., गद्य, आदि: अथ संयतस्य प्रमत्तत; अंति: केवलिनमाश्रित्येति. ५०७१३. स्तवन व सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. जीवणसिंग, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. ३२, दे., (२५.५४११, ९४३०). १.पे. नाम. सिद्धाचलजी स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. __शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मारुं डुंगरिइं मन; अंति: सिद्धिविजय सुखवास हो, गाथा-१३. २. पे. नाम. सिद्ध सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. सिद्धपद सज्झाय, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आठ कर्म चूरण करी रे; अंति: देव दिई आसिस, गाथा-६. ५०७१४. चौढालीयो, पद संग्रह व गीत, संपूर्ण, वि. १९११, भाद्रपद कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ५, ले.स्थल. महेसरसहर, प्रले. मु. रणधीर (गुरु मु. मलुकचंद); गुपि.मु. मलुकचंद (गुरु ऋ. आणंदजस); गृही. मु. चुनीलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१०.५, १६x४३). १.पे. नाम. सकोसलमहामुनिना चोढालीयो, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण. सुकोसलमुनि चोढालीये, मा.गु., पद्य, आदि: दशरथ से पहिली हुआ; अंति: मिली अविचल पद पावै, ढाल-४, गाथा-६८. २.पे. नाम. रामलक्ष्मण लावणी पद, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. रामलक्ष्मण लावणी, पुहिं., पद्य, आदि: जनकसुता कहै जायनें; अंति: रुष तणो छे भारी पेट, गाथा-११. ३. पे. नाम. रामविलाप पद, पृ. ४अ, संपूर्ण. ____ मु. विनयचंद, मा.गु., पद्य, आदि: हे बंधवजी इण अवसर मे; अंति: विनय० जीता जे जिनराई, गाथा-९. ४. पे. नाम. सुर्पनखारावण संबाद पद, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. शूर्पनखारावण संवाद पद, रा., पद्य, आदि: सूर्पनखा सुहासणी चित; अंति: रायनै एहीज नरक निदान, गाथा-८. ५.पे. नाम. राजुल गीत, पृ. ४आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि: कालीनें पीली बादली; अंति: कंत नमें बारंबार, गाथा-६. For Private and Personal Use Only Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " . हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ३०१ ५०७१५. (+) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. लाधाजी ऋषि; पठ. श्रावि. हरखाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०, १३४३०-३२). १.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-जीराऊला, मा.गु., पद्य, आदि: महानंद कल्याणवली; अंति: श्रीपासजी रंगि गायो, गाथा-११. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपासजिणवर नमीय; अंति: पंचमी गति दायको, गाथा-२. ५०७१६. पार्श्वप्रभुमहिम्न स्तव, संपूर्ण, वि. १९२१, माघ शुक्ल, ८, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. भरथपुर, प्रले. सुखदान, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४११, १२४५१). पार्श्वजिनमहिम्न स्तोत्र, आ. रघुनाथ, सं., पद्य, वि. १८५४, आदि: महिम्नः पारं ते परम; अंति: संसृतितोवपार्श्वः, श्लोक-३९. ५०७१७. (+#) दानशीलतपभावना चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४.५४१०.५, १४४३४-३८). दानशीलतपभावना चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनसासनि जिण जयउ; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., गाथा २३ अपूर्ण तक है.) ५०७१८. (#) स्तवन व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७८४, भाद्रपद कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, पठ. श्रावि. मीठीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, ११४४६). १.पे. नाम. जिनप्रतिमावंदन विधि स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जिनवंदनविधि स्तवन, मु. कीर्तिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: जिन चउवीसइ करूं; अंति: कीर्तिविमल सुख वरवा, गाथा-११. २. पे. नाम. वणजारा सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: नरभव नगर सोहामणो हो; अंति: थकी पामे अविचल ठाम, गाथा-५. ५०७१९. पजुसणपर्व सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४११.५, ११४३२). पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. प्रमोदसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सकल परव सणघारहार; अंति: प्रमोद० जय जयकार, ___ गाथा-१२. ५०७२०. सुभद्रासती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४११.५, ११४३७). सुभद्रासती सज्झाय, मु. विमलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मुनी वसे जे धीरज जीव; अंति: विमल० मनवंछित फल थाय, गाथा-२२. ५०७२१. (+#) मृगापुत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १४४३६-४२). मृगापुत्र सज्झाय, मु. सिंहविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सुग्रीवनयरि सोहामणि; अंति: तुझ सम अवर नकोय, गाथा-२१. ५०७२२. स्तवन व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, १५४५०). १. पे. नाम. ऋषभ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. राजसमुद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मनमोहण मन मानलो रे; अंति: राजसमु० अंगणमाय रे, गाथा-१०, (वि. गाथांक का उल्लेख नहीं है.) २. पे. नाम. उपदेश सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आयुष्य सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: आऊ तूटीनै सांधो लागै; अंति: इहलोक तै परलोकरे. गाथा-६. ५०७२३. (+#) अरणकश्रावक सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११,१६४३८). For Private and Personal Use Only Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८५९, आदि: चंपानगरीतूंचालीया; अंति: रतनचंद० वीकानेर मझार, गाथा-१४. ५०७२४. (#) आर्द्रकुमार सज्झाय-ढाल ३, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १.प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है. जैदे.. (२५४१०.५, १६x४२-४८). आर्द्रकुमार चौपाई, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: (-); अंति: मान० नवनिधि थायरे, प्रतिपूर्ण. ५०७२५. (#) सिद्ध स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. करोली, प्रले. मु. माणिकचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १८४३९). सिद्धपद स्तवन, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: तंत जगमइ सार मंत्र; अंति: नमो सिद्ध निरंजनं, गाथा-१७. ५०७२६. नेमराजल उत्तमाधिकार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४१०, २०४६४-६७). नेमराजिमती घग्घर निसानी, मु. प्रेम, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीजिणनायक संपति; अंति: प्रेममुनि भाषदा है, गाथा-२३. ५०७२८. रात्रिसंस्थारक गाथा, संपूर्ण, वि. १७८१, फाल्गुन शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. खंभाइत, प्रले. पं. महिमारत्न; पठ. मु. नित्यरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १६४३७). संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: चउक्कसाय पडिमल्ल०; अंति: इअसमत्तं मए गहिअं, गाथा-१७. ५०७२९. (-) पाखी चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. पंन्या. लक्ष्मीकुशल; पठ. श्रावि. देवकुंवरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२४.५४११.५, ११४२८).. सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: तानि वंदे निरंतरम्, श्लोक-२७. ५०७३०. (#) भास व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १२४३३). १. पे. नाम. आतम सीखामण भास, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. विशुद्धविमल, मा.गु., पद्य, आदि: वइपार कीजइ वाणीआ जेम; अंति: विसुध० सुखीया थाइआ, गाथा-८. २. पे. नाम. आतम सीखामण सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-वाणिया, मु. विशुद्धविमल, मा.गु., पद्य, आदि: वाणीओ विणज करई छईं; अंति: विसुध०आवई कमाइं साथ, गाथा-९. ५०७३१. सझाय व पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, अन्य. सा. खेमकोरश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१२.५, ११४३२). १. पे. नाम. गजसुखमाल मुनीनी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. न्याय, मा.गु., पद्य, आदि: एक द्वारकानगरी राजे; अंति: रे के नायमुनि लेसे, गाथा-८. २. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कब समरोगे जिन नाम; अंति: सिद्धा चरे सुख ताम, गाथा-४. ५०७३२. सीमंधर स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. कुल ग्रं. १२, दे., (२५.५४१२, ११४३०). सीमंधरजिन स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: धन धन क्षेत्र महाविद; अंति: वीनतडी अवधार, गाथा-९. ५०७३३. नवकार व उवसग्गहर स्तवन, संपूर्ण, वि. १७१०, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. स्तंभतीर्थ, जैदे., (२५४११, ६४२४). १.पे. नाम. नवकार मंत्र सह टबार्थ, पृ. १अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहताणं; अंति: पढम हवई मंगलम्, पद-९, (वि. पद ९, संपदा ८, गुरु ७ व लघु ६१ का उल्लेख मिलता है.) नमस्कार महामंत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार अरिहंतनइ काज; अंति: प्रथम मंगलिक होइ. For Private and Personal Use Only Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ २.पे. नाम. उपसर्गहर स्तवन सह टबार्थ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं पास; अंति: भवे भवे पास जिणचंद, गाथा-५. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ काटबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: उपसर्गनो टालनार; अंति: हे पार्श्व जिनचंद्र. ५०७३४. विलाप रासडौ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४१२, १०४३९). सीमंधरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: ओमारा मंदिरस्वामि; अंति: तो वेगला जइ वस्या, गाथा-८, (वि. गाथांक का उल्लेख नहीं है.) ५०७३५. अष्टमी स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४११.५, ११४३०). __ अष्टमीतिथि स्तुति, उपा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: अट्ठम जिन चंद्रप्रभ; अंति: राज० अष्टमी पोसहमार, गाथा-४. ५०७३६. वीस स्थानक स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६.५४११.५, १०४३२). २० स्थानकतप स्तवन, मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि: हारे मारे प्रणम; अंति: तवन सोहामणोरेलोल. गाथा-९. ५०७३७. सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, दे., (२५.५४११.५, १०४३२). १.पे. नाम. क्रोध सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: कडुवां फल छे क्रोधना; अंति: उदयरतन० उपसमरस नाही, गाथा-६. २.पे. नाम. मान सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मानपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: रे जीव मान न कीजीइं; अंति: उदयरत्न० दीजइ देसोटो, गाथा-५. ३. पे. नाम. माया सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मायापरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: समकितनुं मूल जाणीइं; अंति: उदयरतन० सुद्ध रे, गाथा-६. ४. पे. नाम. लोभ सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-लोभपरिहार, मु. उदयरत्न कवि, मा.गु., पद्य, आदि: तुमे लक्षण जोज्यो; अंति: लोभ तजे तेहने सदा रे, गाथा-८. ५०७३८. मृतसाधु परिष्टापन विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४१२, १२४३३). साधुसाध्वी कालधर्म विधि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम स्नान करावयु; अंति: पछे श्लोक कहेवो. ५०७३९. (#) चैत्यवंदन व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२, १२४२९). १. पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-शंखेश्वर, मु. सिंघ, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसंखेश्वर पार्श्व; अंति: सिंघ० संखेश्वर नाम, गाथा-३. २. पे. नाम. सिद्धगिरी स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. शत्रंजयतीर्थ स्तवन, म. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: माहरु डुगरीये मन; अंति: सिद्धिविजय सुखदाय हो गाथा-१३. ५०७४०. (+#) वीस वेहरमाण जिन लेखो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४११.५, २१४५३). २० विहरमानजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: पहला वादु श्रीमींदर; अंति: वंदना नमसकार होज्यो, गाथा-२०. ५०७४१. वीधिपचविशि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. सुरतबंदर, जैदे., (२५४१०.५, १४४३७-४०). विधिपंचविंशतिका, मु. तेजसिंघ ऋषि, सं., पद्य, आदि: यदुकुलांबरचंद्रक नेम; अंति: पठेदिह सुनिश्चय, श्लोक-२६. ५०७४२. (#) केशरीया स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११.५, ११४३१). आदिजिन स्तवन-केसरीयाजी, मु. रत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सखिरे जागती जोत; अंति: रत्न हीये धर लीधी, गाथा-९. For Private and Personal Use Only Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५०७४३. निरमोहि पंचढालीयो, संपूर्ण, वि. १९३५, चैत्र शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४११, २०४४७). निर्मोही ढाल, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८७४, आदि: निरमोहिगुण वरणवू दे; अंति: पांच ढाल परसीधरे, ढाल-५. ५०७४४. (+) पुन्य कुलो सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४११.५, ७X४९). पुण्य कुलक, प्रा., पद्य, आदि: संपुन्नइंदियत्तं; अंति: ते सासयं सुखं, गाथा-१०. पुण्य कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संपूर्ण पांच इंद्री; अंति: करी मोक्ष जाइ पामइ. ५०७४५. (+#) दानसीलतपभावना कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२४.५४११.५, ७X४९). दानशीलतपभावना कुलक, मु. अशोकमुनि, प्रा., पद्य, आदि: देवाहिदेवं नमिऊण; अंति: हिया सूरि खमंतु तेणं, गाथा-५०. दानशीलतपभावना कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: देवाधिदेव श्रीमहावीर; अंति: पंडित खमजोते सर्व. ५०७४६. (+) स्तवनचौवीसी व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९१३, कार्तिक कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, ले.स्थल. जैपुर, प्रले. मु. रणधीर ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१०.५, २२४४९). १.पे. नाम. चतुर्विंसतीजिन तवन, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. स्तवनचौवीसी, श्राव. विनयचंद्र कुमट, मा.गु., पद्य, वि. १९०६, आदि: श्रीआदिसरस्वामी हो; अंति: विनय स्तुति पूरण करी, स्तवन-२४. २. पे. नाम. मुनिबलभद्र सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण. बलभद्रमुनि सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: मासखमणने पारणे तपसी; अंति: चोथमल कहे० भावरे, गाथा-१४. ५०७४७. चौढालीयो वसझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, दे., (२५.५४११, १४४४५). १.पे. नाम. चंदणबालासती बीवरण चोढालीयो, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. चंदनबालासती चौढालिया, मु. विनयचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८८५, आदि: अविन्यासी अविकार; अंति: विनयचंद० सखरोसांमली, ढाल-४, गाथा-८२. २.पे. नाम. धन्नाकाकंदी सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: मुनिवर धनानी हो करणी; अंति: थे वरस्यो सिवराणी, गाथा-६. ५०७४८. दिसाणुवाइ विचार संग्रह-पन्नवणा पद ३, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२५४११.५, १५४४१). दिशा आदि २७ द्वार अल्पबहुत्व विचार, मा.गु., गद्य, आदि: राजग्रही नगरी गुणसेल; अंति: मनुष्य अधिका माटै. ५०७४९. (+#) काल करंडका, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११.५, १६४५१). अरिष्टाध्याय, प्रा.,सं., पद्य, आदि: पणमति सुरासुरमउलिरय; अंति: समेण मरणं च सण्णए, गाथा-१४१. ५०७५१. विजयधर्मसूरीश्वर स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४११.५, १४४३७). विजयधर्मसूरि सज्झाय, मु. रंगविनोद, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति करोने पसाव; अंति: रंगविनोद वधामणां जी, गाथा-११. ५०७५२. (+) चत्तारिअट्ठदस स्तव, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४११, १५४४३). चतुर्विंशतिजिन स्तव-चत्तारिअट्ठदसदोय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: चत्तारिअट्ठदसदोअ; अंति: देविंद० जगगुरू विति, गाथा-१५. ५०७५३. (+) अठावीस लब्धि स्तवन व नाम, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., दे., (२५४११.५, १२४३७). १.पे. नाम. अठावीसलब्धि स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ३०५ आदिजिन स्तवन-२८ लब्धिगर्भित, म. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२६, आदि: प्रणमुंप्रथम जिनेसर; अंति: धरमवरधन० प्रकाश ए, ढाल-३, गाथा-२५. २. पे. नाम. २८ लब्धि नाम, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: आमोसही लब्धिधारकाय; अंति: लब्धिधारकाय नमः. ५०७५४. (#) चंदनमलयागिरी सझाय, संपूर्ण, वि. १८९०, ज्येष्ठ शुक्ल, ७, जीर्ण, पृ. २, ले.स्थल. पाटोदी, प्रले. मु. हितसमुद्र (गुरु ग. कीर्तिधर्म); पठ. पं. ताराचंद (गुरु पं. अमरचंद); गुपि.पं. अमरचंद (गुरु पं. तिलोकचंद); पं. तिलोकचंद (गुरु पं. रायचंद); पं.रायचंद, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल पाठ का अंशखंडित है, जैदे., (२४.५४१०.५, १४४३२). चंदनमलयागिरि सज्झाय, मु. चंद्रविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विजय कहै विजया प्रतै; अंति: चंद्रविजय०ते सुख लहै, गाथा-१०. ५०७५५. स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११, १३४३६). १.पे. नाम. नवकार मंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: पढम हवई मंगलम्, पद-९. २. पे. नाम. उवसग्गहरं स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं पास; अंति: भवे भवे पास जिणचंद, गाथा-५. ३. पे. नाम. सप्ततिशतजिन स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासं अट्ठ; अंति: निब्भंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. ५०७५६. (+) पार्श्वनाथ स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४११, ११४२७). पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: देंद्रे कि धप; अंति: दिशतु शासनदेवता, श्लोक-४. ५०७५७. (#) ऋषभदेव स्तवन व छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, प्रले. पं. कर्मचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रत फटा होने के कारण प्रतिलेखन स्थल का नाम अपठनीय है., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४१०.५, १८४४२-४८). १.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. आदिजिन छंद-धुलेवामंडन, आ. गुणसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रमोदरंगकारणी कला; अंति: षडदेस आदिदेव ध्याइए, गाथा-८. २.पे. नाम. ऋषभदेव छंद, पृ. ३आ, संपूर्ण. आदिजिन छंद, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, आदि: सत्यगुरू कहि सुगुररा; अंति: श्रीध्रमसीह ईम, गाथा-२२. ५०७५८. मेघकुमार सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४१०.५, ११४३०). मेघकुमार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: वरदे तुंवरदाइनी; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा १६ अपूर्ण तक ५०७५९. (-) पार्श्वजिन स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-६(१ से ६)=१, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२५४११.५, १३४३४). १.पे. नाम. गौडि नमस्कार, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-गोडीजी, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: सकल भविकचेतः कल्पना; अंति: विद्यार्णवा संस्तुतः, श्लोक-९. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, पृ. ७आ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: अमउ नेहडो कंदि गोडिच; अंति: जिनहरख० बीलेहुउ बीरउ, गाथा-५. ५०७६०. (+#) नयविचारमय शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११.५, १५४४३). For Private and Personal Use Only Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३०६ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शांतिजिन स्तवन- निश्चयव्यवहारगर्भित उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३४, आदि: शांति जिणेसर केसर, अंति: जसविजय सिर शिव लही, ढाल-६, गाथा-४८. ५०७६२. सुव्रतऋषि सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, वे. (२५.५४११.५, १३४३९). "" Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एकादशीपर्व सज्झाय, मु. विशालसोमसूरि शिष्य, मा.गु, पद्य, वि. १७वी, आदि गोयम पुछि वीरने सुणो अंतिः विसालसोम० सज्झाय भणी, गाथा- १५. ५०७६३. (#) सीमंधरजिन विनती, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५५११, १४४४८). सीमंधरजिन विनती स्तवन, मु. अगरचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८६९, आदि: त्रीभुवन साहिब अरज; अंतिः अगरचंद० पद बचन विलास, गाथा-२१. ५०७६४. (+-#) शनिश्चर कथा व सुविधिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र. वि. अशुद्ध पाठ- टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे. (२५x१२.५, १२x२७). १. पे. नाम शनिश्चर कथा, प्र. १अ ४अ संपूर्ण. शनिश्चर चौपाई, पंडित. ललितसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सरति सामण मती द्यो स, अंति: ललितसागर० ते सघली लहे, गाथा- ४६. २. पे. नाम. सुविधिजिन स्तवन, पृ. ४-४आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे. वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. जिनपूजाविधि छंद, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, आदिः सुविधिनाथनी पूजा, अति (-), (पू. वि. गाथा १२ तक है.) ५०७६५. () थुई व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे, ५. प्र. वि. अशुद्ध पाठ दे., (२५X११, १२५३२). "" १. पे. नाम. अष्टमी स्तुति, पृ. १अ. संपूर्ण. अष्टमीतिथि स्तुति, मा.गु, पद्य, आदि अष्टमी अष्ट प्रमाद अंतिः सुरसायेनं दूजे करे, गाथा-४, २. पे. नाम. एकादसीरी थुई, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादसी अति रूवडि, अंति: गुणहर्ष० तणा निसदीस, गाथा ४. ३. पे. नाम. पूनमरी थुई, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, श्राव. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसेजो तीरथ अंतिः ऋषभदास गुण गाया, गाथा ४. ४. पे नाम. पजुसणारी धुई. पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व स्तुति, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: वरस दीवस माहं स्यारज; अंति: जैनेंद्रसागर जयकार, गाथा-४. ५. पे. नाम. सिद्धपद स्तवन, पृ. २आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. नयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगोतमसामी पूछा, अंति: (-), (पू. वि. गाथा ४ अपूर्ण तक है . ) ५०७६६. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२६X११, १३x४२). १. पे नाम. सोलसुपन सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, मु. तेजसिंघ ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: सद्गुरुने चरणे नमी, अंति: तेजसिंघ० त्रिकाल रे, ढाल - २, गाथा - २१. २. पे. नाम. २५ क्रिया सज्झाय, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण मु. कान्हजी, मा.गु., पद्य, आदि: तीरथ पति रे वीर जिर्ण, अंतिः कान्हजी० नवरे मुदा, गाथा - २१. ५०७६७. (4) पापबुद्धिराजाधर्मबुद्धिमंत्री सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. १, प्र. वि. पंचपाठ - अशुद्ध पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२४४१०, १८४४-४८) " पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमंत्री सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनगजराज हरि, अंति: तिहा परिसिरनामी रे, गाथा-२७. ५०७६८. (+) कर्म हिंडोल गीत, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २. प्र. वि. अशुद्ध पाठ. वे. (२५.५x११.५, ९४२७) For Private and Personal Use Only Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ३०७ कर्महींडोल सज्झाय, मु. हर्षकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: कर्म हीडोलना झूल; अंति: हरषकीरति० की पूरउ आस, गाथा-९. ५०७६९. (-#) इच्छुकारराजा ढाल, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२, १२४३९-४१). इक्षुकारराजा ढाल, मा.गु., पद्य, आदि: देव हुंता पूर्व भवे; अंति: (-), (पू.वि. ढाल २ गाथा १२ तक है.) ५०७७१. (4) पाक्षिकखामणा सूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ७X४४). क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पिअं; अंति: नित्थारग पारगा होह, आलाप-४. ५०७७२.(-) सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२५.५४११.५, १६x४७). १.पे. नाम. सनतकुमार सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सारद मात शब्द में; अंति: संतकुसल०कर्म प्रजाली, गाथा-१६. २.पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, ग. जीतसागर, पुहिं., पद्य, आदि: तोरण आया हे सखी; अंति: जिण घर नवनिध संपजे, गाथा-१७. ५०७७३. प्राचीन जैनेतर धर्मग्रंथों से उद्धृत जैन संदर्भ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४१२.५, १९४४७). प्राचीन जैनेतर धर्मग्रंथों से उद्धृत जैन संदर्भ, पुहिं.,प्रा.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ५०७७४. (#) आगम वाचना लेखनपाठन विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, १५४५३-६२). आगम वाचना लेखन पाठन विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: गुरुणा रजोहरणो; अंति: (-), (पू.वि. पाटलिपुत्र वाचना तक का पाठ है.) ५०७७५. विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ५, जैदे., (२५४११.५, १५४५३). १.पे. नाम. उपधान विधि, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण.. उपधानतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रथम द्वितीयपधानयोन; अंति: सर्वाभिग्रहालापकः. २.पे. नाम. श्रावक ११ प्रतिमा, पृ. २आ, संपूर्ण. श्रावक ११ प्रतिमा गाथा, प्रा., पद्य, आदि: दसण१ वय२ सामाइय३; अंति: वज्जए समण भूएय, गाथा-१. ३. पे. नाम. ब्रह्मचर्यव्रत आलापक, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. ब्रह्मचर्यव्रतप्रत्याख्यान आलापक, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: अहन्नं भंते तुम्हाणं; अंति: भिक्षा देही तिवत्ति. ४. पे. नाम. उपधान मालारोपण विधि, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. उपधानमालारोपण विधि, सं.,प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: खमा मुहपत्ति पडि; अंति: सम्यग्दृशांसोग्रणी. ५. पे. नाम. सम्यक्त्व आलापक, पृ. ३आ, संपूर्ण. अनशन आलापक, प्रा., गद्य, आदि: अहन्नं भंते तुम्हाणं; अंति: इअसंमत्तं मए गहिअं. ५०७७६. (+) पार्श्वनाथजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, १४४५६). पार्श्वजिन स्तवन, म. सौभाग्यमाणिक्य, सं., पद्य, आदि: जय श्रीपार्श्वतीर्थे; अंति: सौभाग्य० स्वर्गिरिः, श्लोक-१८. ५०७७७. (+) कुलक, सुभाषित श्लोक व विचार संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ११, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, ५४४३). १. पे. नाम. पुण्यकुलक सह टबार्थ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पुण्य कुलक, प्रा., पद्य, आदि: इंदियत्तं माणुसत्तं; अंति: ते सासयं सुक्खं, गाथा-१०. पुण्य कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पंचेंद्रीयपणउ मनुष्य; अंति: मनुष्य सास्वता सुखनइ. २. पे. नाम. सुभाषित श्लोक सह टबार्थ, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३०८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहि., प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: रूपं वयं क्षतं, अंति: सुभक्षं च निग्रंथा, गाथा-५. सुभाषित लोक संग्रह- बार्थ, मा.गु. गद्य, आदि शरीरनो रूप आछी वय, अंतिः सुका वांछि निग्रंथ ३. पे. नाम. १५ परमाधामी भेद गाथा सह टबार्थ, पृ. २अ, संपूर्ण. १५ परमाधामी भेद गाथा, प्रा., पद्य, आदि: पणरस परमाहम्मिया यं; अंति: एते पण्णरस आहिया, गाथा-२. १५ परमाधामी भेद गाथा - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हिवइ पनरमई ठाणइरो; अंति: ते सहा घोष परमाहामी. ४. पे. नाम. पानी के २१ प्रकार सह टबार्थ, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण. २१ प्रकार के पानी, प्रा., पद्य, आदि: उस्सेइम १ संसेइम २; अंति: आमलगपा चिच्चीपाणागवा, गाथा-२. २१ प्रकार पानी टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हांडानो धोवण ढोकलादि, अंति: बीजा श्रुतखंधमाही छ. ५. पे. नाम. राज्य की २७ शोभा गाथा सह टबार्थ, पृ. २आ, संपूर्ण. राज्य की २७ शोभा गाथा, प्रा., पद्य, आदि: वापी १ व २ विहार अंतिः राज्यं वचै शोभते, गाथा- १. राज्यकी २७ शोभा गाथा-टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: बावडी कोटगढ देहरा, अंति: ते नगर कहे छे. ६. पे. नाम. ६ लेश्या दृष्टांत गाथा सह टबार्थ, पृ. २आ, संपूर्ण. ६ लेश्या दृष्टांत गाथा, पा., पद्य, आदि: मूल साहा पसाहा गुच्छ, अंतिः साहू जूजति धनहरण, गाथा- १. ६ लेश्या दृष्टांत गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि छ लेस्या उपर अंति: लेस्या उपर जाणवा. ७. पे. नाम. षट् लेश्या लक्षण सह टबार्थ, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण. षट्लेश्या लक्षण, प्रा. सं., पद्य, आदि: अति रौद्र सदा क्रोधी, अंतिः पुरिसा सा उड जंत, श्लोक ८. " षट्लेश्या लक्षण - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: घणा भूडा कर्म करइ, अंति: इसी पार पहुचसी ए भाव. ८. पे. नाम. ६ लेश्या परिणाम गाथा सह टबार्थ, पृ. ३आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६ लेश्या परिणाम गाथा, प्रा., पद्य, आदि किण्हाइ जाए ते नर ए. अंति: दिड जिणुद्दिनं, गाथा-२. ६ लेश्या परिणाम गाथा - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: कृष्ण लेश्यानो धणी, अंति: आगइ परूप्पा छह ए भाव. ९. पे. नाम. सुभाषित श्लोक सह टबार्थ, पृ. ३आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा. सं., पद्य, आदि वसुहाभरणं पुरिसो, अंतिः दानं आभरण सुपात्रं च श्लोक-३. लोक संग्रह जैनधार्मिक-टवार्थ", मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १०. पे. नाम. दान गुण वर्णन सह टबार्थ, पृ. ३आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: अनादारो विलंवस्य; अंतिः किंचि अनुमुदना पूछं, श्लोक-२. श्लोकसंग्रह - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ११. पे. नाम. श्रावक २१ गुण गाथा सह टबार्थ, पृ. ४अ, संपूर्ण. श्रावक २१ गुण गाथा, प्रा., पद्य, आदि धम्मरवण संजुत्तो, अंति: एकविस गुण हवइ, गाथा- ३. आवक २१ गुण गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि धर्मरूपी पार तन क० अंतिः बीस गुण होइ श्रावकना. ५०७७८ (४) महावीरजिन गहुंली व औपदेशिक प्रहेलिका संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, कुल पे. २, पठ. श्राव. पूंजा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११.५, १३X२८). १. पे नाम, महावीरजिन गहुली प्रथमदेशना गर्भित, पृ. १अ १आ, संपूर्ण महावीरजिन गहुली - प्रथमदेशनागर्भित, मु. ज्ञानउद्योत, मा.गु., पद्य, आदि: गुणशिलवनमां देशना; अंति: ज्ञानउदयोत० लोकालोक, गाथा- ७. २. पे नाम, औपदेशिक प्रहेलिका, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only मा.गु., पद्य, आदि: जिणे दीठे मन उल्लसे, अंति: कह संबन को काज, गाथा-८. ५०७७९. (#) सरवारथसिद्ध वर्णन स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. नरेंद्रविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५.५x१२.५ ११५३३). " सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जगदानंदन गुणनीलो रे; अंति: गुणविजय फली आसरे, गाथा - १६. Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ५०७८०. नमस्कार संग्रह व औपदेशिक गाथा, संपूर्ण, वि. १८८४, पौष कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, ले.स्थल. अजमेरनगर, प्रले. पं. हीरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन वर्ष के लिये प्रतिलेखक ने मात्र ८८४ ही लिखा है., जैदे., (२५.५४११.५, १२४२७). १. पे. नाम. सिद्धाचलजी नमस्कार, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय नाभिनरिंदनंद; अंति: निसदिन नमत कल्याण, गाथा-३. २. पे. नाम. ऋषभजिन नमस्कार, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आदिदेव अलवेसरु; अंति: पद्म०लहिये अविचल ठाण, गाथा-३. ३. पे. नाम. सिद्धचक्रजी नमस्कार, प्र. १अ-१आ, संपूर्ण. नवपद स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बारगुणे अरिहंत नमुं; अंति: पद्मविजय० ज्ञान, गाथा-७. ४. पे. नाम. औपदेशिक गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: लघुतामांप्रभुता वसे; अंति: समकित नाम कहिजै ताको, गाथा-६. ५०७८१. (+#) समकित गुण विचार व श्रावक १२ बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. भोजराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११, १८४४८). १. पे. नाम. समकित गुण विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. सम्यक्त्वगुण विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सुमता आणवी उतम साधु; अंति: सुमता आदरज्यौ. २. पे. नाम. श्रावक १२ बोल, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: सरावक १ बोले जे साध; अंति: माता पिता समान जाणवा. ५०७८२. (#) गजसुकमाल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. राजनगर, प्र.वि. प्रत का अनुमानित समय वि. १९वी शताब्दि है. प्रतिलेखक ने विक्रम १६७२ में लिखित प्रत से प्रतिलिपि की है तथा उसकी प्रतिलेखन पुष्पिका को ज्यौं का त्यौं उतार दिया है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (६१२) यादृशं पुस्तके दृष्ट, (६२७) जलात् रक्षे तैलात क्षे, जैदे., (२४४११.५, १६४४२). गजसुकुमालमुनि रास, मु. शुभवर्द्धन शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: देस सोरठ द्वारापुरी; अंति: वली अविचल संपदा थाइ, गाथा-८७. ५०७८३. योगनंदीसूत्र व योगोद्वहनविधि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, दे., (२६४११.५, १२४३१). १. पे. नाम. योगनंदीसूत्र, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण. आ. देववाचक, प्रा., गद्य, आदि: नाणं पंचविहं पण्णत्त; अंति: अणुण्णानंदीपवत्तई, सूत्र-९. २. पे. नाम. योगोद्वहनविधि संग्रह, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. ___प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: इच्छामि० गुरु कहे; अंति: करे या पीछे करना. ५०७८४. (#) आराधना सूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, २१४६५-६८). पर्यंताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण भणइ एवं भयवं; अंति: सोम० ते सासयं सुक्खं, गाथा-७०. ५०७८६. (-) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२४.५४१०.५, ३६४१९-२१). १. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: डोर हो दीजै सामी पीय; अंति: महाराज मलावो हो, गाथा-८. २.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन-दीपावलीपर्व महिमा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. भावविजय, मा.गु., पद्य, आदि: तीरथमा है जगवडो; अंति: भाव० वर दीजै छै दान, गाथा-१२. For Private and Personal Use Only Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५०७८७. (-) पद व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२५४१०.५, १२४२६). १. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जिनचंद, पुहि., पद्य, आदि: आज लगी रे मेरे प्रभु; अंति: जिनचंदप्रभु पलक घडी, गाथा-४. २.पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: जालम जोगीडासु लागी; अंति: श्रावक जाम न पावै, गाथा-३. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-सम्मेतशिखरतीर्थ, मु. खुशालचंद, पुहि., पद्य, आदि: तुम तो भले विराजो जी; अंति: चंदखुसाल० गुण गावो, गाथा-५. ४. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, मु. आणंद, पुहिं., पद्य, आदि: केडवो कंतो बसु निहाल; अंति: निज पण आणंद हो नेमसु, गाथा-४. ५०७८८.(-) सज्झाय व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९०७, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, प्रले. मु. सोभागचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२५४१०.५, ९-१८x२९). १.पे. नाम. नारी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: मूरख के भावै नहीं; अंति: खामण आगै इछा थारी रे, गाथा-२२. २. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहि., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), दोहा-२. ३. पे. नाम. कृष्ण प्रहेलिका, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रहेलिका श्लोक संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि: काया की कुंडी मन का; अंति: भुधर० हो का वणाया हे, गाथा-२. ५. पे. नाम. प्रस्ताविक कवित, पृ. १आ, संपूर्ण. कवित संग्रह", पुहिं.,मा.गु.,रा., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), सवैया-१. ५०७९१. (#) संवच्छरीदान कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १२४३८). संवत्सरिदान कथा, मा.गु., गद्य, आदि: दिन दिन प्रतै एक कोड; अंति: दीइं एहवो विवेक करे. ५०७९२. (#) पद व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११.५, १२-१५४३०). १. पे. नाम. नेमजीनो पद, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मत जाओरे पीया तुम; अंति: रूपविजय०संगनी वार मे, गाथा-५. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण.. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: गुण छे पुरारे; अंति: समय० भणीस लवारे बोल, गाथा-६. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-परस्त्री त्याग, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: नर चतुर सुजाण परनारी; अंति: चाखो अनुभव सुखडली, गाथा-६. ४. पे. नाम. एकादशी स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. एकादशीतिथि स्तवन, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: भवियण हे भवियण एकादश; अंति: मानविजय कहे एम, गाथा-७. ५०७९४. औपदेशिक पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. जावाल, दे., (२५४११.५, १२४३२). १.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. दिलहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १८३२, आदि: मनधरी शारदमातजी वली; अंति: दिलहरषे० भायो रे लाल, गाथा-१०. For Private and Personal Use Only Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ २.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-सत्य असत्य, पुहिं., पद्य, आदि: झूठ पाप मत बोलो भाई; अंति: झूठ पड्यो झख मारसी, गाथा-२. ५०७९५. (+#) आबु स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५४९, ८x२५). तीर्थयात्रावर्णन स्तवन-विमलमंत्रीकारापित, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपाटण में पांचासर; अंति: गरीब उपर मेरबानी थाय, गाथा-७. ५०७९६. मानपचीसीव औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, १५४४२). १. पे. नाम. गुमानपचीसी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मानपच्चीसी, मु. चंद्रभाण, पुहिं., पद्य, आदि: मानपचीसी करवा मनमै; अंति: चंद्रभाण० पातग नासै, गाथा-२५. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. कबीर, पुहिं., पद्य, आदि: माटी की गणगोर बनाइ; अंति: कबीर०पछे घणु पीछतासी, गाथा-७. ५०७९७. (+) पार्श्वजिन लावणी व ग्रहदृष्टि श्लोक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२०, श्रावण अधिकमास कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६४१२, ८४४०). १.पे. नाम. पार्श्वजिन लावणी, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: अगडदम अगडदम वाजै; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ४ अपूर्ण तक लिखा है.) २. पे. नाम. ग्रहदृष्टि श्लोक सह टबार्थ, पृ. १आ, संपूर्ण. ग्रहदृष्टि श्लोक, सं., पद्य, आदि: ज्ञार्केदु शुक्रात; अंति: शनी वद वेध गर्ग, श्लोक-३. ग्रहदृष्टि श्लोक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: बुध सूर्य च शुक्र, अंति: (-). ५०७९९. (+#) गांगेय भांगा विचार, संपूर्ण, वि. १९०२, फाल्गुन शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२, १४४४८). गांगेयभंग संख्या आनयन विधि, मा.गु., गद्य, आदि: एक संजोगियाना एक; अंति: माहि प्रवत्तिउ. ५०८००. (-) औपदेशिक सज्झाय व नवकार स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२५४१०, १३४३६). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. क. हजारी दास, पुहिं., पद्य, आदि: प्रथम प्रणी जिनदेवनै; अंति: हजारा० भवजल पार उतार, गाथा-८. २.पे. नाम. नवकार स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नवकारवाली स्तवन, मु. रिषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनवकार मन ध्याइये; अंति: रीषभदास० माथै जिन आण, गाथा-१३. ५०८०१. स्तोत्र व छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५४१२.५, १६x४८). १. पे. नाम. परमानंद स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, वि. १८वी, आदि: परमानंदसंयुक्तं; अंति: जो जानाति स पंडितः, श्लोक-२४. २. पे. नाम. शांतिनाथ त्रिभंगी छंद, पृ. १आ, संपूर्ण.. शांतिजिन त्रिभंगी छंद, जै.क. बनारसीदास, पुहि., पद्य, आदि: विश्वसेन कुल कमल; अंति: शांतिदेव जय जित करण, गाथा-५. ५०८०३. (#) चतुर्विंशतिजिन स्तुती, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १३४४८). स्तुतिचतुर्विंशतिका, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: जनेन येन क्रियते; अंति: भासमानच्छविभालकांता, श्लोक-२८. ५०८०४. गिरोली विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, १३४३२). For Private and Personal Use Only Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गरोली विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सोमबुधगुरुशुक्र ए; अति: सुख संपति मले. ५०८०५. (+) सिद्धचक्र सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११.५, १६४३१). सिद्धचक्र स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जी हो प्रणमुंदिन; अंति: कहे मानविजय उवज्झाय, ढाल-४, गाथा-२५. ५०८०६. पद व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले.पं. कांतिविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, १२४३६). १.पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, ग. कपूरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिजिणंदस्युं चित; अंति: कपूरविजय गुण गाय, गाथा-७. २.पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. शिवचंद, पुहि., पद्य, आदि: सफल घडी रे मोरी सफल; अंति: जोरी वंदना करी, गाथा-४. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. रंग, मा.गु., पद्य, आदि: दिलरंजन जिनराजजी; अंति: हवे ग्रही हाथरे, गाथा-७. ५०८०७. सज्झाय, स्तवन व दुहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४१२, १३४३०). १.पे. नाम. पांचमी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण, पठ. मु. किसनचंद (गुरु पं. नायकविजय); प्रले. पं. नायकविजय (गुरु पं. कपूरविजय गणि); गुपि.पं. कपूरविजय गणि (गुरु पंन्या. केसरविजय); पंन्या. केसरविजय (गुरु पंन्या. नयविजय), प्र.ले.पु. मध्यम. पंचमीतिथि सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सहेगुरु चरण पसाउले; अंति: कांतिविजय गुण गाय, गाथा-७. २. पे. नाम. पंचमी स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन-लघु, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पंचमीतप तुमे करोरे; अंति: ज्ञाननो पंचमो भेद रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. दुहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५०८०८. (+) एकाक्षर नाममाला, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-क्रियापद संकेत., जैदे., (२५४११, १८४६६). एकाक्षर नाममाला, मु. सुधाकलश मुनि; आ. हिरण्याचार्य, सं., पद्य, आदि: श्रीवर्धमानमानम्य; अंति: नाममालिकामतनोत्, श्लोक-५०. ५०८०९. (+#) श्रावकनी सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. जावाल, प्रले. देवेंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १३४३५). श्रावककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावग तुं उठे; अंति: करणी दुखहरणी छे एह, गाथा-१९. ५०८१०. सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४११.५, १०४३६). सिद्धचक्र स्तवन, मु. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टकमलदलधारी नीजउर; अंति: हेम ते ध्यान रसाल, गाथा-८. ५०८११. अठाणुं बोल, संपूर्ण, वि. १९८१, भाद्रपद कृष्ण, ६, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. जोधपुर, प्रले.ऋ. सोवनराज; पठ. सा. चुनाजी, सा. पानकवरजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४११, २२४६१). ९८ बोल-जीवअल्पबहुत्व विषयक, मा.गु., गद्य, आदि: पेले बोले सर्वसुं; अंति: उप्पोग बारे लेसा. ५०८१२. स्तवन व दूहा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२४.५४११, १२४३२). १. पे. नाम. नेमि स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: लूंबी झूबी रह्यो; अंति: दानविजय उल्लास, गाथा-९. २. पे. नाम. दुहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. दहा संग्रह प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ५०८१३. गहंली व सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२५४११, १६४३६). १.पे. नाम. गुरु गुहली, पृ. १अ, संपूर्ण. गुरुगुण गहुंली, मु. शुभवीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चरण करण व्रतधारी सुण; अंति: सुभ० मीले सवी साथ रे, गाथा-५. २. पे. नाम. गौतमस्वामि गुहली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी गहुंली, मा.गु., पद्य, आदि: बेनी आपापानयरी उदान; अंति: सुहूजै भणैरे लो, गाथा-७. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: मानवभव क्षेत्र भलो जिन; अंति: उतारे भवपारो रे, गाथा-१४. ५०८१४. (+) शांतिजिन स्तवन-सप्रभाव, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. जेसलमेरु महादुर्गे, प्रले. मु. विशाल; पठ. पं. देवीदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१०, १३४४१). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांतिशांतिनिशांतं; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. ५०८१५. खिमाछत्रीसी व चौवीसजिन लंछन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, दे., (२५.५४११.५, ११४३६-४२). १. पे. नाम. खिमाछत्रीसी, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण. क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदरि जीव खिमागुण आदर; अंति: चतुर्विध संघ जगीस जी. २. पे. नाम. चौवीस जिन लंछन, पृ. ४अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. २४ जिनलंछन चैत्यवंदन, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभ लंछन वृषभ अजित; अंति: तणो लक्ष्मीरत्न भणंत, गाथा-९. ५०८१६. (+) प्रतिक्रमण समाचारी कुल, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १५४५३). प्रतिक्रमण समाचारी, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सम्म नमिउं देविंद; अंति: जिनवल्लभगणि० तस्स, गाथा-३९. ५०८१७. (+#) सज्झाय व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. ग. वृद्धिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १५४४३). १.पे. नाम. बलभद्रमुनि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. बलभद्रकृष्ण सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: द्वारिका बलती नीसर्य; अंति: तेलहसि मुगति आरि, गाथा-२३. २.पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, आदिः (१)लोहो लीजे रे भविया, (२)लाहो लीजे रे भविया; अंति: दान कहे वारोवारि के. गाथा-७. ५०८१८. तपागच्छनायक विजयसेनसूरीश्वर स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, ११४४०). विजयसेनसूरि सज्झाय, मु. कृष्ण शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: समरसि समरसिभर सरसति; अंति: पूरउ आस्या मोरी, गाथा-५. ५०८२१. (#) सेजेजे स्तवन, संपूर्ण, वि. १७७४, पौष शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १५४३५). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: इण डुंगरीये मन मोहीय; अंति: सफल जनम जगि जासि हो, गाथा-१३. ५०८२२. (#) सामायीक द्वात्रिंशद्दोष भास, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १६४४६). सामायिक ३२ दोष भास, वा. कमलशेखर, मा.गु., पद्य, आदि: समरस भरि समता करउ जी; अंति: ते पामइ सिवठाण रे, गाथा-१९. For Private and Personal Use Only Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५०८२३. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११, २१४४८). १.पे. नाम. वीतराग स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: जासु नहीं अन्नाण सोग; अंति: जिम फेडइ भवदाह, गाथा-८. २.पे. नाम. शेव्रुजय विनती, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-शत्रुजय, आ. शांतिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: दइ सरसति सामणि बुद्ध; अंति: शांतिसूरि० इम भणइ ए, गाथा-९. ५०८२४. प्रश्नोत्तर रत्नमाला व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, १४४४५). १. पे. नाम. प्रश्नोत्तररत्नमाला, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. विमलसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्य जिनवरेंद्र; अंति: कंठगता किं न भूषयति, श्लोक-२९. २. पे. नाम. स्तुति-प्रार्थना संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. __ साधारणजिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अक्षीणमाणस्यंगुष्टे; अंति: यच्छतु वांछितानि, गाथा-२. ५०८२५. (+) आठ मदनी सझाय, संपूर्ण, वि. १६७३, चैत्र शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. कल्याण ऋषि; पठ. मु. अखा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१०.५, १३४४५). ८ मद परिहार सज्झाय, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुरु सीख रे जीव; अंति: पासचंद० सवि सुख लहिइ, गाथा-२५. ५०८२६. (+#) सरस्वती छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पणयुक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११,१७४४४). सरस्वतीदेवी छंद, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन समता मन; अंति: आस फलस्ये ताहरी, गाथा-३५. ५०८२७. सझाय व थोय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२५.५४१२, ११४३७). १.पे. नाम. भरहेसर सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय; अंति: जसपडहो तिहयणे सयले, गाथा-१३. २.पे. नाम. श्रुतदेवता स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. श्रुतदेवी स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: सुअदेविया भगवई; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ती, गाथा-१. ३. पे. नाम. कमलदल स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. श्रुतदेवी स्तुति, सं., पद्य, आदि: कमलदल विपुलनयना कमल; अंति: श्रुतदेवता सिद्धिम्, श्लोक-१. ५०८२८. (#) चैत्यवंदन स्तुति व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १२४४८). १.पे. नाम. प्रभु दर्शनपूजनफल चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रणमुं श्रीगुरूराज; अंति: प्रभु सेवानी कोड, गाथा-१४. २.पे. नाम. सामायिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. नेमसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सामायिक मन सुधे करो; अंति: व्रत पालो निसदिस, गाथा-५. ३. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तुती, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति, मु. नयविमल, मा.गु., पद्य, आदि: संखेश्वर पासजी पूजीइ; अंति: नयविमलनां० पूरती, गाथा-४. ५०८२९. थुई व पच्चक्खाण सूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५४११.५, १३४३२). १.पे. नाम. सिद्धचक्र थुई, पृ. १अ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तुति, मु. विजयसिंह शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवर भाख्यो महि; अंति: सुख देज्यो नितमेव, गाथा-४. २.पे. नाम. पच्चक्खाण संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: असित्थेण वा वोसिरामि, (वि. आयंबिल व तिविहार उपवास का पच्चक्खाण है.) For Private and Personal Use Only Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ५०८३०. (+#) बितालीस दोष, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. जयकीर्ति, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १७४५१). गोचरी ४२ दोष, मा.गु., गद्य, आदि: (१)जहा दुमस्स पुष्पेसु, (२)जिम भ्रमर फूलि बइसी; अंति: टीपइ पडतइ लिइ एषणा. ५०८३१. (#) मानतुंगमानवती रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है.,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ११४३५). मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: ऋषभजिणंद पदांबुजे; अंति: (-), (पू.वि. ढाल १ गाथा ११ तक है.) ५०८३२. जिनकुशलसूरी गीत, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४१०.५, १२४३७). जिनकुशलसूरि स्तोत्र, उपा. जयसागर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १४८१, आदि: रिसह जिणेसर सो जयउ; अंति: मनवंछित फल सो लहइ ए, गाथा-१५. ५०८३३. (#) छंद, कवित व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४११.५, १३४२७). १. पे. नाम. नवकार छंद, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र छंद, क. लाधो, मा.गु., पद्य, आदि: भोर भयो उठो भवीक; अंति: वरदायक लाधो वदे, गाथा-१८. २. पे. नाम. कवित संग्रह, पृ. २अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है.. औपदेशिक श्लोक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: आयूर्वारि तरंग भंगुर; अंति: दूर्लभकार्य कर्ता, श्लोक-५. ५०८३४. (-#) बत्तीसी व सामान्य कृति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२, १७४३३). १.पे. नाम. बालचंदबत्तीसी, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. अध्यात्मबत्तीसी, मु. बालचंद मुनि, पुहि., पद्य, वि. १६८५, आदि: अजर अमर परमेसर कुं; अंति: इंदरंग मन आणीइं, गाथा-३३. २. पे. नाम. घोडानी चाल, पृ. ४आ, संपूर्ण. सामान्य कृति , प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ५०८३५. गौतमस्वामी पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४११.५, ११४२४). गौतमस्वामी अष्टक, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह ऊठी गोतम; अंति: उदय प्रगट्यो परधान, गाथा-८. ५०८३६. श्रावक अतिचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११.५, ५४३५). श्रावकसंक्षिप्त अतिचार*, संबद्ध, मा.गु., प+ग., आदि: नाणंमि दंसणंमि चरणं; अंति: नायव्वोवीरी आयारो, ग्रं. ८ गाथा. श्रावकसंक्षिप्त अतिचार@-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: चारित्राचार८ तप; अंति: वीर्याचार ८. ५०८३७. वर्णमाला, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२५.५४१२.५, ९x१८). वर्णमाला, मा.गु., गद्य, आदि: अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋलु; अंति: यक्त क्लब्ध ष्ण. ५०८३८. स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२५४१२, ११४२६). १. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सीद्धगिरी ध्याउं भवि; अंति: ज्ञानविमल गुण गावे, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) २. पे. नाम. जंबुद्विप भरतक्षेत्रे अतितवर्तमानजिन नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. चकेश्वरी स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची चक्रेश्वरीदेवी स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीचक्रेश्वरी देवी; अंति: नितुं जय जय कार, गाथा-५. ५०८३९. पाक्षिक स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४११.५, ७४२८). पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. ५०८४०. (+) तिजयपहुत स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, ११४२५). तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अठ्ठ; अंति: निब्भंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. ५०८४१. गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, १३४४६). १.पे. नाम. नेम गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, मु. अमर, मा.गु., पद्य, आदि: सहीयां मोरी करुं निह; अंति: अमर नमै सुविचारौ रे, गाथा-८. २. पे. नाम. नेमराजुल गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, ग. आनंदनिधान, मा.गु., पद्य, आदि: ऊभी जोवुरे वाट कदि; अंति: राजल मुगतै चडी, गाथा-५. ५०८४२. खंडा जोयण, संपूर्ण, वि. १९०७, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२५.५४१२.५, १९x४६). लघुसंग्रहणी-१० द्वार विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: खंडा१ जोयण२ वासा३; अंति: १३२ सदा काल रहइ छइ. ५०८४३. (#) पंचविंशतिक्रिया सह बालावबोध व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. त्रिपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, २८४४८-६६). १. पे. नाम. पंचविंशती क्रिया सह बालावबोध, पृ. १आ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण- २५ क्रिया गाथा, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: काई१ य अहिगरणीया पाउ; अंति: दोसे रियावहिया, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) नवतत्त्व प्रकरण-२५ क्रिया गाथा का-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: कायिकी क्रिया काया; अंति: छद्मस्थनइ न लागइ इम. २. पे. नाम. जीवअजीव भेद गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. रूपीअरूपी जीवअजीव भेद गाथा, प्रा., पद्य, आदि: धम्माधम्मागासा तिय; अंति: (-), गाथा-३. ५०८४४. (#) दादाजी जिनकुशलसूरि स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १७४४५). १. पे. नाम. दादाजीरी स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि स्तुति, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सदगुरु श्रीजिनकुसल; अंति: जिनचंद्रसु सुरतरू, गाथा-६. २. पे. नाम. दादाजिरी स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. राजसागर कवि, मा.गु., पद्य, आदि: अरे लाला श्रीजिनकुशल; अंति: करै वारोवार रे लाला, गाथा-९. ३. पे. नाम. दादाजी स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. कुसल कवि, रा., पद्य, आदि: हांजी काइ अरज करूं; अंति: नीत करज्यौ प्रतिपाल, गाथा-७. ५०८४५. (+#) चतुर्विंशति गीत आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४११, १७X४८). १. पे. नाम. गौतमस्वामि गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: गौतम नाम जपउ परभाते; अंति: समयसुंदर० गुण गाते, गाथा-३. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जागि भाई तूंजागि; अंति: समयसुंदर०पामइ भव पार, गाथा-४, (वि. आदिवाक्य का अंश खंडित है.) ३. पे. नाम. कुंथुनाथ गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ३१७ कुंथुजिन पद, उपा. समयसुंदर गणि, पुहि., पद्य, आदि: कुंथुनाथकुं करूं; अंति: करै जिन गुनग्राम, गाथा-४. ४. पे. नाम. चतुर्विंशति तीर्थंकर गीत, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. २४ तीर्थंकर गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६९८, आदि: रिषभदेव मेरी हो रिषभ; अंति: समयसुंदर आणंद करू रे, स्तवन-२४. ५०८४६. गीत व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२५४१२, १२४३६). १.पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: औ जग कारमौ जाणौ जो; अंति: परमानंद पद सारोरे, गाथा-५. २. पे. नाम. जिनकुशलसूरि सद्गुरु सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि सज्झाय, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीव्रधमान जिनेसरु; अंति: तणा एम क्षमाकल्याण, गाथा-११. ३. पे. नाम. जिनदत्तसूरि सद्गुरुगीत, पृ. १आ, संपूर्ण. __ जिनदत्तसूरि गीत, मु. क्षमाकल्याण, पुहि., पद्य, आदि: सदगुरु को ध्यान हृदै; अंति: करज्यो गुरु मेरे, गाथा-३. ५०८४७. (#) गंगा तैली दृष्टांत, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, २१४५१). गंगा तैली दृष्टांत, सं., गद्य, आदि: सत्यमेतत् यद्यूयं; अंति: मम सत्यं भवत्विति. ५०८४८. (#) तीर्थवंदना चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १४४३२). तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके; अंति: तत्र चैत्यानि वंदे, श्लोक-१०. ५०८४९. (#) स्तवन व स्वाध्याय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२, २१४५२). १.पे. नाम. पंचमी स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १८६५, मार्गशीर्ष कृष्ण, ६, ले.स्थल. गोत्रकाग्राम, प्रले.पं. अमृतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. ज्ञानपंचमीपर्वमहावीरजिन स्तवन-बृहत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी सद्गुरु पाय; अंति: भगति भाव प्रशंसीयो, ढाल-३. २. पे. नाम. चंदनबाला स्वाध्याय, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. चंदनबालासती सज्झाय, ग. चतुरसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७८२, आदि: श्रीसरस्वतिना रे पाय; अंति: चतुर वंदे इम वाणी, ढाल-३, गाथा-४९. ३. पे. नाम. चौवीस तिर्थंकर, पृ. २आ, संपूर्ण, प्रले. पं. जीवण, प्र.ले.पु. सामान्य. २४ तीर्थंकर स्तवन, मु. शुभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सहगुरु चरणे नमी करीए; अंति: शुभ नमी कहे सीस, गाथा-१०. ५०८५०. एकसोअंसी देशनाम, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४११, १८४५३). १८० देश नाम, मा.गु., गद्य, आदि: मगधदेश१ वंगदेश२ अंग; अंति: पारकरु३५ पाटणवारु३६, अंक-१८०. ५०८५१. श्लोक संग्रह व पार्श्वनाथ स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२५.५४१२.५, ११४४१). १. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. प्रा.,सं., पद्य, आदि: नेत्रानंदकरी भवोदधि; अंति: जिनेश्वराणाम्, श्लोक-१९. २.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: टीलरी मुखमंडण सोहे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४ तक लिखा है.) ५०८५२. (+) नेमनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२.५, १०x२९). नेमिजिन स्तवन, मु. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: तोरण आवी कंत पाछा; अंति: नेम अनुभव कलीया रे, गाथा-१५. ५०८५३. सीमंधर स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४११.५, १२४३५). For Private and Personal Use Only Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची समवसरण स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८२१, आदि: मारि वीनतडी अवधारो; अंति: जिनवंदण ए भाष्य, गाथा-२०. ५०८५४. (#) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, १५४५३). १.पे. नाम, गौडीजी पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७०२, आदि: सासनदेवी मनिधरी; अंति: जयरतन० धींग गौडी धणी, गाथा-३१. २. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. राजसमुद्र, मा.गु., पद्य, आदि: पग पग आए समरता आज; अंति: राजसमुद्र० मोरी आस, गाथा-९. ५०८५५. (+) पार्श्वस्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १०४३४). १. पे. नाम. जीरापल्लीपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-जीरापल्लिपुरमंडन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणम्य परमात्मानं; अंति: भूयाद् भूरिविभूतये, श्लोक-९. २.पे. नाम. पार्श्वदेव स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-लक्ष्मी, मु. पद्मप्रभदेव, सं., पद्य, आदि: लक्ष्मीर्महस्तुल्य; अंति: स्तोत्रं जगन्मंगलम्, श्लोक-९. ५०८५६. पट्टावली संग्रह व गच्छोत्पत्ति वर्णन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, दे., (२५.५४१२, १६४९). १.पे. नाम. तपागच्छ पट्टावली, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्धमान तीर्थं; अंति: श्रीविजयधर्मसूरि. २. पे. नाम. गच्छोत्पत्ति वर्णन, पृ. २अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: विक्रमात् सं. ११५९; अंति: पासंदीयोगच्छ नीकल्यौ. ३. पे. नाम. लुंकागच्छ पट्टावली, पृ. २आ, संपूर्ण. पट्टावली लोंकागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीपूज्य जीवकऋषिजी; अंति: पूज्यजी श्रीमेघराजजी. ४. पे. नाम. गच्छोत्पत्ति सज्झाय, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. लुकागच्छोत्पत्ति सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: संवत् पनर अठावीसो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १५ तक है.) ५०८५७. सज्झाय व चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४१२, ८४३६). १.पे. नाम. मेघकुंवर सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मेघकुमार सज्झाय, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: धारणी मनावे रे मेघ; अंति: म्हारा मनडानी आश, गाथा-५. २. पे. नाम. रोहिणीतपचैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रोहिणी तप आराधीए; अंति: ज्यु होवे भवनो छेद, गाथा-६. ५०८५८. (+) सिद्धदंडिका सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५.५४१२, ३४२९). सिद्धदंडिका स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जं उसभ केवलाउ अंतमुह; अंति: दिंतु सिद्धिसुहं, गाथा-१३. सिद्धदंडिका स्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जंक० जे उसभ क० ऋषभ; अंति: सुख ते प्रते आपो. ५०८५९. (+) ऋषिदत्ता महासती कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. ग. चंद्रकीर्ति गणि; मु. सकलराज; मु.सुमतिरंग; मु. युगतिरंग; मु. भवनरंग, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११,१७४५३). ऋषिदत्तासती कथा, सं., गद्य, आदि: इहैव जंबूद्वीपे; अति: स्वगृह समागतः. ५०८६०. जिन स्तव, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पठ. वर्धमान भणशाली, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४११.५,१२४४४). रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल; अंति: श्रेयस्करं प्रार्थये, श्लोक-२५. ५०८६१. वैराग्य सझाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०.५, १८४५९). वैराग्य सज्झाय, मु. ज्ञानमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमु जिनवर गुरुना; अंति: ज्ञानमुनि० न संभारसी, गाथा-३६. ५०८६२. उगणतीसी भावना, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५.५४११, ११४२५-३०). For Private and Personal Use Only Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ३१९ २९ भावना छंद, मा.गु., पद्य, आदि: अविचल पद मनि थिर करी; अंति: समरसि ते लहसइ भवपार, गाथा-३१. ५०८६३. (+) उपधानतप विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. अंत में मालारोपण विधि अन्य प्रतिलेखक के द्वारा लिखा हुआ है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२५.५४१०.५, ११४३७-४०). उपधानतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: प्रथम पौषध ग्रहण खमा; अंति: विशेष तपश्च विलोकते. ५०८६४. स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२५.५४११.५, ११४३३). १.पे. नाम. नंदी भास, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: वैशाख सुदि एकादशी; अंति: दीठ जगतगुरु राजे छे, गाथा-४. २. पे. नाम. वासक्षेप भास, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: झमकारो रे मादल वाजै; अंति: गुरु जिनसासन जयकार, गाथा-३. ३. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. ग. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: देखत नयन सुहाय प्रभु; अंति: पाप पलाय प्रभुजी, गाथा-३. ५०८६५. मौन एकादशी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. ग. विद्याविजय (गुरु पंन्या. रूपविजय); पठ. श्रावि. जतनबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११.५, १५४३०). एकादशीपर्व सज्झाय, मु. विशालसोमसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: गोयमा पूछे विरनें; अंति: सुव्रत रूप सझाय भणी, गाथा-१५. ५०८६६. मृत यति पारिठावण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. ग. तेजविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११, १५४३९). साधु कालधर्म विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: काल कीधा पछी स्नान; अंति: कीजइ नमस्कार चिंतनं. ५०८६७. लघुशांति, संपूर्ण, वि. १८७२, फाल्गुन शुक्ल, ५, सोमवार, मध्यम, पृ. १, प्रले. पंडित. राज, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१२, १२४३६). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: पूज्यमाने जिनेश्वरे, श्लोक-१९. ५०८६८. कुर्मकाध्ययन सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले.पं. माणिकनाथ, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४११, १४४३१). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र का हिस्सा चतुर्थ कुर्मअध्ययन- सज्झाय, संबद्ध, पा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: अरथथी आगमजन कहि; अंति: राजरत्न० शिवसुख सार, गाथा-११. ५०८६९. स्तवन, गाथा सगरह, देववंदन विधि व नवपद गणनु, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, दे., (२५४१२, १३४३४). १. पे. नाम. जिनबिंब स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जिनबिंबपूजा स्तवन, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: भविका श्रीजिनबिंब; अंति: श्रीजिनचंद गाई रे, गाथा-११. २. पे. नाम. जैनगाथा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. जैनगाथा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: निरुपम करुणा; अंति: खरतरगच्छ तासु पसायैइ, गाथा-४. ३. पे. नाम. देववंदन विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नमोत्थुणं इरियावही; अंति: नवकार १ थूईगा. ४. पे. नाम. नवपद गणनु, पृ. १आ, संपूर्ण. नवपद गणना, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५०८७०. (#) रोहणी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४११.५, ११४३५). रोहिणीतप स्तवन, मु. लाभउदय, मा.गु., पद्य, आदि: इम रोहिणीतप आदरो; अंति: लाभउदय० रंग धाइरे, गाथा-९. ५०८७१. (+) स्तवन व अष्टक, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४१०.५, १३४४१). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, प्र. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. ज्ञानतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: वामानंदन वंदियइ मोहन; अंति: न्यायतिलक० सारो रे, गाथा-७. २.पे. नाम. गुरु अष्टक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि स्तुति, मु. ज्ञानतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: जिनकुसलमुनीस खरतर; अंति: न्यानतिलक०मनोरथ धमाल, गाथा-९. ५०८७२. (+) चैत्यवंदन व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ६, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४११, १२४४२). १.पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसदगुरु निज पर; अंति: क्षमाकल्याण-पद वररे, गाथा-७. २.पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: औ जग कारमौ जाणौ जो; अंति: इक परमातम लय धारोरे, गाथा-४. ३. पे. नाम. ऋषभ स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय नाभिनरिंदनंद; अंति: निसदिन करु कल्याण, गाथा-३. ४. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. शांतिजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: सोलम जिनवर शांतिनाथ; अंति: लहिये कोड कल्याण, गाथा-३. ५. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: वंदु जिणवर विहरमान; अंति: कारण परम कल्याण, गाथा-३. ६.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन नमस्कार-स्थंभनपुर, मु. कल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसेढी तट मेरुधाम; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम गाथा है.) ५०८७३. संथारा पोरसी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४११, १४४३९). संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसिही निसिही निसीहि; अंति: इअसमत्तं मए गहिरं, गाथा-१४. ५०८७४. पद्मावती स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. ३-२(१ से २)=१, ले.स्थल. मार्तंडपुर, प्रले. पंडित. हरखचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०, १२४३२-३८). पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: पद्मावतीस्तोत्रम्, श्लोक-२७, (पू.वि. श्लोक १८ अपूर्ण से है) ५०८७५. स्तवन व स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, जैदे., (२४४९.५, १५४५२). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपार्श्वदेव करूं; अंति: करी सेवक मुझ थापउ, गाथा-१०. २. पे. नाम. घंटाकर्ण स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ घंटाकर्णो महावीरः; अंति: नमोस्तु ते स्वाहा, श्लोक-४. ३. पे. नाम. उवसग्गहरं स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं पास; अंति: भवे भवे पास जिणचंद, गाथा-७. ४. पे. नाम. सुभाषित पद, पृ. १आ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: जाहरे जाह भईया; अंति: तव भावन भुंचीयइ, गाथा-३. ५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. भुवनकीर्ति, पुहि., पद्य, आदि: चतुर विहारी आतम माहर; अंति: रे नामि तीयारइ, गाथा-३. For Private and Personal Use Only Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ३२१ ५०८७६. मुहपत्ति बोल, स्तवन, स्तुति व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९०२, आषाढ़ शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, ले.स्थल. बिकानेर, प्रले. मु. लालविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१२, ११४४२). १. पे. नाम. मुहपत्ति पडिलेहण विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन के ५० बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: इच्छाकारेण संदीसहै; अंति: बिद मुहपत्ती पडलेहणि. २. पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: संति जीनेसर सायबारे; अंति: मोहन जै जैकारै, गाथा-७. ३. पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: राज्यता नवपद्मराग; अति: यो धारयन्मूढधीः, श्लोक-४. ४. पे. नाम. नंदीषेणमुनि सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: साधूजी न जाय परघर; अंति: जीनराज० गमण नीबार, ___ गाथा-१०. ५०८७७. (+) भारती स्तोत्र व सरस्वती मंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५४११.५, १०४३४). १. पे. नाम. भारती स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र-मंत्रगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ नमस्त्रिदशवंदित; अंति: मधुरोज्ज्वलागिरः, श्लोक-९. २. पे. नाम. सरस्वती मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी मंत्र, सं., गद्य, आदि: ॐ ऐं ह्रीं श्रीं वद; अंति: तुभ्यं नमः स्वाहा. ५०८७८. गर्दभिल्ल राजा-युद्ध प्रसंग, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. पंडित. सांगाजी पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०, १५४५२-५६). गर्दभिल्ल राजा-युद्ध प्रसंग, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: तत्र केन प्रकारेण; अंति: ते भणी इहां न रहिवउ. ५०८७९. सीहचल्लौ छंद, संपूर्ण, वि. १८१०, ज्येष्ठ कृष्ण, १, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. कालाऊना, जैदे., (२५.५४१०, १५४४८-५४). जिनदत्तसूरि छंद, मु. रूपचंद, फा.,मा.गु., पद्य, आदि: केही गल्लां कथीयां; अंति: रूपचंद० जिन साईयां, गाथा-१३. ५०८८०. सज्झाय व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२४.५४११, १३४३२-३७). १. पे. नाम. गौतमस्वामि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीरजिणेसर केरोसीस; अंति: तूठां संपदांनी कोड, गाथा-९. २. पे. नाम. वीसविहरमान स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: बीसे विहरमान जिनराया; अंति: समयसुंदर० पाय सेवा, गाथा-४. ५०८८२. सकलार्हत् स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२५४१२, १४४३६). सकलार्हत स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: जिनसाक्षात्सुरद्रुमं, श्लोक-५२. ५०८८३. (+) द्रव्य प्रकाश, संपूर्ण, वि. १८६१, भाद्रपद कृष्ण, ६, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. अजीमगंज, प्रले. पं. मयाचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२, १२४३४). जीवद्रव्यादि लक्षण, सं., पद्य, आदि: तत्त्वातत्त्व स्वरुप; अंति: लढमेकानेकात्मध्रुवम्, श्लोक-४६. ५०८८४. पार्श्वजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४१२.५, ९४३४). पार्श्वजिन स्तव-चिंतामणि, उपा. देवकशल पाठक, सं., पद्य, आदि: नमद्देवनागेंद्रमंदार; अंति: चिंतामणिः पार्श्वः, श्लोक-७. For Private and Personal Use Only Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५०८८५. (+) गीत संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. १०, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०, १५४४२-४६). १.पे. नाम. सुविधिनाथ गीत, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. सुविधिजिन पद, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: स्वामी तुमारो आधार, गाथा-३, (पू.वि. गाथा २ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. शीतलनाथ गीत, पृ. २अ, संपूर्ण. शीतलजिन स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: हमारे साहिब शीतलनाथ; अंति: होत मुक्ति सुख हाथ, गाथा-३. ३. पे. नाम. श्रेयांसनाथ गीत, पृ. २अ, संपूर्ण. श्रेयांसजिन स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सुरतरू सुंदर; अंति: न चरणे जिम मानस हंस, गाथा-३. ४. पे. नाम. वासुपूज्य गीत, पृ. २अ, संपूर्ण. __ वासुपूज्यजिन स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: भविका तुम वासुपूज्य; अंति: समयसुंदर० जिनराज समउ, गाथा-३. ५. पे. नाम. विमलनाथ गीत, पृ. २अ, संपूर्ण. विमलजिन स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., पद्य, आदि: जिनकुं देखि मेरो मन; अंति: समयसुंदर० पेखीजइरी, गाथा-३. ६.पे. नाम. अनंतनाथ गीत, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. अनंतजिन स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, पुहि., पद्य, आदि: अनंत तेरे गुण अनंत; अंति: समयसुंदर तान मान री, गाथा-४. ७. पे. नाम. धर्मनाथ गीत, पृ. २आ, संपूर्ण. धर्मजिन स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., पद्य, आदि: अलख अगोचर तूं; अंति: समयसुंदर वसंतजी, गाथा-३. ८. पे. नाम. शांतिनाथ गीत, पृ. २आ, संपूर्ण. शांतिजिन गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सांतिनाथ सुण्यो; अंति: समयसुंदर करजोडि, गाथा-३. ९. पे. नाम. कुंथुनाथ गीत, पृ. २आ, संपूर्ण. कुंथुजिन पद, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., पद्य, आदि: कुंथुनाथकुं करूं; अंति: समयसुंदर० ग्राम, गाथा-३. १०. पे. नाम. अरनाथ गीत, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. अरजिन स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: अरनाथ अरियण गंजणा; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम गाथा अपूर्ण है.) ५०८८६. सज्झाय व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-२(१ से २)=२, कुल पे. ३, दे., (२५४१२, १७४३८). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण. औपदेशिक गीत-जीवदया, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: दुल्लहो नरभव भव भव; अंति: पासचंदसूरि० अजुवालो, गाथा-१४. २. पे. नाम. शांतिजिन तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, आ. विवेकचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८३८, आदि: शांति जिनेसर स्वामी; अंति: विवेकचंद्र०कल्याण रे, गाथा-१७. ३. पे. नाम. अष्टमी स्तवन, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हा रे मारे ठाम धर्म; अंति: कांति सुख पामे घणु, ढाल-२, गाथा-२३. ५०८८७. मधुकिटभनी ढाल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४११.५, २०४४७). मधुकैटभ पूर्वभव ढाल, मा.गु., पद्य, आदि: राय अयोध्या आवीयो; अंति: बयर बिलय नवि जाइ, ढाल-३, गाथा-४९. For Private and Personal Use Only Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ३२३ ५०८८८.(+) चतुर्थव्रत उच्चार विधि व योगोद्वहन आलावो, अपूर्ण, वि. १८००, वैशाख शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ३१-३०(१ से ३०)=१, कुल पे. २, ले.स्थल. सूरति बंदिर, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १७४३४). १.पे. नाम. चोथो व्रत उचराववानी विधि, पृ. ३१अ-३१आ, संपूर्ण. __शीलव्रत पाठ, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: प्रथम इरियावही; अंति: पच्चक्खाण कराविइं. २. पे. नाम. आगम आलावो, पृ. ३१आ, संपूर्ण. आगम योगोद्वहन आलापक, प्रा., गद्य, आदि: अहन्नं भंते तुम्हाणं; अंति: नित्थार पारगाहोइ. ५०८८९. (#) स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १, कुल पे. ७, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४१०.५, १३४५१). १. पे. नाम. वर्द्धमान स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: जदं जिनमनादेव देहिनः; अंति: भवतु नित्य मंगलेभ्यः, श्लोक-४. २. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: युगादिपुरुषंद्राय; अंति: कूष्मांडी कमलेक्षणा, श्लोक-४. ३. पे. नाम. द्वितीयदिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: सेवापर सुनासीर; अंति: रत्या यावत्प्रसत्तयः, श्लोक-४. ४. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: जिनो जयति यस्यां; अंति: क्लेशनाशाय संतु नः, श्लोक-४. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: देवदेवाधिपैः सर्वतो; अंति: भारती यच्छताद्वः सदा, श्लोक-४. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: निष्ठुरकमठमहासुर; अंति: धरणेद्रवरपत्नी, श्लोक-४. ७. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: पंचानंतकसुप्रपंचपरमा; अंति: सिद्धायिका त्रायिका, श्लोक-५. ५०८९०. गौतमभाषितानि सुभाषितानि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल प्रत की यह तीसरी प्रति प्रतीत होती है, प्रथम प्रति वि.११७१ में, दूसरी प्रति १४९६ में लिखे जाने का उल्लेख मिलता है., जैदे., (२५४१०.५, १८४५६-६२). गौतमभाषित, प्रा., पद्य, आदि: नरिंद देविंद नमसिअस; अंति: तुन्भे सरणं उवेह, गाथा-४२. ५०८९१. स्तोत्र, सवैया, पद व औषध संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ५, दे., (२४.५४११.५, १४४३४). १.पे. नाम. महावीरजिन स्तोत्र, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. रूप, सं., पद्य, आदि: विबुधरंजकवीरककारको; अंति: रुपकेण प्रसिद्धा, श्लोक-७. २. पे. नाम. चातुरी सवैया, पृ. २अ, संपूर्ण. चतुराई सवैया, मु. हीरानंद, पुहिं., पद्य, आदि: चातुरी तेरी झैरा; अंति: विद्या एक ओर चातुरी, गाथा-८. ३. पे. नाम. पंचेंद्रिय विजय पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम इंद्रीया पांच; अंति: माहातम मह्यात्मा, गाथा-१, (वि. गाथा एक ही है, परंतु प्रतिलेखक ने गाथा संख्या ९ लिखा है.) ४. पे. नाम. योगी पद, पृ. २आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, पुहिं., पद्य, आदि: जालिम योगीडासु लागो; अंति: तनमन करु कुरबार हो, गाथा-५. ५. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. औषधवैद्यक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ओषध सबलाईरो भांग; अंति: लाई आवै बंधेज हुवे. ५०८९२. नियम कुलकं, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०.५, १७४५२-५८). For Private and Personal Use Only Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची संविज्ञसाधुयोग्यनियमकुलक, आ. सोमसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: भुवणिक्क पइवसमं वीर; अंति: सफला सिवसुहफलं देइ, गाथा-४६. ५०८९३. (+) स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२४.५४११, १८४३७). १.पे. नाम. सिद्धाचल पद, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. क्षमारत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८८३, आदि: सिद्धाचलगिरि भेट्या; अंति: परमातम पद पाया, गाथा-५. २.पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीरिषभ जिनेसर; अंति: क्षमाकल्याण हेत धरी, गाथा-५. ३. पे. नाम. से@जयजी स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आंखडीयासुं मे आज; अंति: उदयरतन० तुठारे, गाथा-७. ४. पे. नाम. से@जयतीर्थ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: बेहलो बोले रे पंथीडा; अंति: प्रेम घणो जिणचंद, गाथा-८. ५. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ पद, पृ. १आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: भाव धर धन्य दिन आज; अंति: जिनचंद सुरतरु कहायो, गाथा-३. ५०८९४. योगोद्वहन विधि व कोष्ठक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११, ११४४०). १. पे. नाम. योगोद्वहन विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. योगोद्वहनविधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीआवश्यक सुअक्खंधो; अंति: सप्तस्वपिं प्रत्येकं. २. पे. नाम. जैन यंत्र कोष्ठक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जैनयंत्र संग्रह*, मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: (-). ५०८९५. (+) गुरु स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, १४४४३). १. पे. नाम. जिनदत्तसूरि-जिनकुशलसूरि स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. जिनदत्तसूरि जिनकुशलसूरिस्तुति, पं. गुणविनय गणि, मा.गु., पद्य, आदि: राजनगरि गुरु चरण; अंति: गुणविनय० नी आण रे, गाथा-५. २. पे. नाम. जिनदत्तसूरि-जिनकुशलसूरि स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. जिनदत्तसूरि जिनकुशलसूरि स्तुति, पं. गुणविनय गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुरु कउ दरसन दिन; अंति: गुणविनय०परसादि लहीजइ, गाथा-३. ३. पे. नाम. कीर्तिरत्नसूरि-जिनभद्रसूरि स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. कीर्तिरत्नसूरि जिनभद्रसूरि स्तुति, पं. गुणविनय गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीकीर्तिरतनसूरि के; अंति: गुणविनय० हुइ वधामणा, गाथा-१०. ४. पे. नाम. जिकुशलसूरिस्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरिस्तुति, पं. गुणविनय गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पूनिमि पूनिमि गुरुजी; अंति: गुणविनय० वधावइ रे, गाथा-५. ५.पे. नाम. अजितजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. पं. गुणविनय गणि, सं., पद्य, आदि: अजितेश जिताशते वराते; अंति: विनयेन गुणैः स्तुतः, श्लोक-५. ६. पे. नाम. जिनचंद्रसूरि-जिनसिंहसूरि स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ www.kobatirth.org जिनचंद्रसूरि जिनसिंहरि पद, पं. गुणविनय गणि, मा.गु., पद्य, आदि: मेरइ रे सुगुरु की अंतिः गुणविनय० सोभ वधारवा, गाथा - २. ५०८९६. गोचरी दोष व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैवे. (२५.५४११. १७४२७). १. पे. नाम, गोधरी दोष, पृ. ९अ १आ, संपूर्ण. गोचरी ४७ दोष, मा.गु, गद्य, आदिः आधाकर्म दोष साधु, अंतिः आहार ले त ऊपजावई. २. पे. नाम. गाथा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. गाथा संग्रह में, प्रा., पद्य, आदि: तरुणी पुणो विगहिअं अंति: जाणि पयोहर दिडा, गाथा-२. 1 ५०८९७. स्तवन व स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५X१०.५, ९X३०). १. पे. नाम. गोडीजी पार्श्व स्तुति, पृ. १अ संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति - गोडीजी, ग. शिवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: निशमय गवडीश्वर, अंतिः पद नित भव्य चकोर, गाथा- ६. २. पे. नाम. नवस्मरण, पृ. १आ, संपूर्ण. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., सं., प+ग., आदि: परमेष्ठि नमस्कार, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा २ अपूर्ण तक लिखा है.) ५०८९८. समवसरण थुइ, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, वे (२४.५४११.५, ९४३१). 3 "" समवसरण स्तुति, मु. जयत, मा.गु., पद्य, आदि: मिल चौविह सुरवर, अंति: लीला पामे जेत सुनाणी, गाथा- ४. ५०८९९. स्तुति, स्तवन व पद संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २१(१) १, कुल पे. ११, जै.. (२५x१०.५, २०४४६). १. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: बे करजोडी वीनवु रे, अंतिः समविषमि जिनराज रे, गाथा-५. ४. पे. नाम. पद्मप्रभजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. जिनराज, मा.गु, पद्य, आदि: कागलीया करतार भणी: अंतिः जिनराज न मुकज्यो रे, गाथा ५. ५. पे. नाम. मुनिसुव्रतजिन स्तवन, पृ. २अ २आ, संपूर्ण आदिजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि मन मधुकर मोही राउ, अंतिः सेवे वे करजोडी रे, गाथा-५. २. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: तारि करतार सिंसार, अंति: जिनराज० जे रहइ पासइ, गाथा-५. ३. पे नाम, अभिनंदनजिन स्तवन, पृ. २अ संपूर्ण. मु. राज, मा.गु., पद्य, आदिः धनिओ पीवी वाधनी, अंति: राज० परिवारूं मारी, गाथा- ३. ८. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. ३२५ मु. ,जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: अधिका ताहरा हुता; अंति: जिनराज० छत्र छाया, गाथा-५. ६. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि : भविक कमल प्रतिबोधतो, अंति: जिनराज० आप समानो रे, गाथा-५, (वि. प्रतिलेखक दो गाथा को एक गाथा गिना है.) ७. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: नेमिनाथ आपणइ रंगि; अंति: राजुल सुख पावइ री, गाथा-४. ९. पे नाम, औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण, मु. राज, मा.गु., पद्य, आदि: तुं भ्रमि भुल्यो रे, अंति: तोलुं राज न काज सरइ, गाथा-३. १०. पे. नाम औपदेशिक गीत, प्र. २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only आध्यात्मिक जकडी, मु. जिनराज, पुष्टिं पद्म, आदि: कबहुं न करि हुंरी अंतिः जिनराज० न खबरि करेसी, गाथा ३. ११. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद - उपदेशगर्भित, मु. अमृत, पुहिं., पद्य, आदि: जागि सकइ तो जागि रे; अंति: अतुल अमृत रस मागि रे, गाथा-३. Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३२६ ५०९०१. स्तोत्र व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, दे., (२४.५X११.५, १०X३२). १. पे. नाम. शंखेश्वरमंडण पार्श्वनाथमहामंत्र स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदिः ॐ नमः पार्श्वनाथाय अंतिः पूरय मे वांछितं नाथ, श्लोक ५. २. पे. नाम. सरस्वती स्तोत्र, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सरस्वतीदेवी स्तोत्र - षोडशनामा, सं., पद्य, आदि: नमोस्तु शारदादेवी; अंति: देवी सारदा वरदायिनी, श्लोक - ७. ३. पे, नाम, शारदा स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण शारदादेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: अविरल शब्द मयौघा, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. मात्र प्रथम श्लोक लिखा है.) ४. पे नाम, शारदा स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण शारदादेवी स्तुति, सं., पद्य, आदि: ह्रीँ ह्रीं ह्रीँ, अंति: वरदे शारदे शुद्धभावे, श्लोक-१. ५०९०२. नीरंजनी स्तोत्र, नेम अष्टक व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९०३, चैत्र शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. पं. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४X१०, ११x४२-४८). १. पे. नाम. नीरंजनी स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. वीतरागाष्टक, सं., पद्य, आदिः शिवं शुद्धबुद्धं, अंतिः श्रीमानभूदार्चित, लोक- ९. २. पे नाम, नेमि अष्टक, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, सं., पद्य, आदिः सुविशाल शिवालयजातलसं; अंति: दूषण भवभवसंभव भयहरं, श्लोक ८. ३. पे. नाम श्लोक संग्रह, पू. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह, प्रा.सं., पद्य, आदि: कविपुराण मनुशासितारं अंति: तमसः परस्तात् श्लोक-१. ५०९०३. खामणा व मंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. पं. भाणविजय पंडित, पठ. सा. चंदाविनया, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे (२४.५४११.५, १६४३६). " १. पे नाम, खामणा आत्म निरमल, पृ. १अ १आ, संपूर्ण खामणा सज्झाय, मु. गुणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम नमुं अरिहंतन, अंति: गुणसागर सुख धाय, गाथा- १६. २. पे नाम, भूत पिशाच प्रकोप निवारक मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण मंत्र संग्रह, मा.गु गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ', ५०९०४. (+) स्याद्वादमंजरी स्तव, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २४.५X१०.५, १२X४०-४७). अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्म, वि. १२वी आदि अनंतविज्ञानमतीत, अंतिः कृतसपर्याः कृतधियः, श्लोक-३२. ५०९०५. नेमिजिन पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १. दे. (२४.५४१२, १०x२७). नेमिजिन पद, मु. ऋद्धिहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: गढ गिरनार की तलहटी, अंति: सांभली शिवादेवी माय, गाथा-५. ५०९०६. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४-३ (१ से ३) १, कुल पे. २, दे. (२४.५x११, १४-१६४३४-४७). १. पे. नाम ऋषभजिन स्तवन- शत्रुंजयमंडन, पृ. ४-४आ, संपूर्ण. . " आदिजिन स्तवन- शत्रुंजयतीर्धमंडन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्म, वि. १८६६ आदि श्रीआदीश्वर साहिब, अंति: साधु क्षमादि कल्याण, गाथा- १४. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- मंडोवरपुर, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: आतम संपति अधिपती रे अंतिः ल्हा कीजै संघ कल्याण, गाथा- ७. ५०९०७. (#) पद संग्रह, सझाय व श्लोक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ८, प्र. वि. पत्र १x४, अक्षरों की स्याही गयी है, दे., (२५x७.५, ३२x२२). १. पे नाम, आत्मोपदेशिक पद, पृ. १अ संपूर्ण, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: हां रे इस सहर विच; अंति: रूपचंद ० म्यान कबान है, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे. नाम. गोडीपार्श्वनाथ पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद- गोडीजी, अभयचंद, मा.गु., पद्य, आदि: गाईये मनरंग गोडी, अंति: अभय होवे चित्त भंग, गाथा- ३. ३. पे. नाम. गोडीपार्श्वनाथ पद, पृ. १अ संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. कनकसुंदर, पुहिं., पद्य, आदि: साचो साहिब निरधारी; अंति: कमलसुंदर तुझ बंदा, गाथा-५. ४. पे. नाम. आत्म सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. चौपटखेल सज्झाय, आ. रत्नसागरसूरि, पुहिं. पद्य, आदि: प्रथम अशुभ मल झाटिके, अंति: कहे रत्नसागरसूर रे, गाथा - ३. ७. .पे. नाम. गोडीपार्श्वजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रूपविजय, मा.गु, पद्य, आदि: मुझरो मानीने लिजो हो; अंतिः पे ग्रह उठी प्रणमीजे, गाथा-४, ८. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. गाथा - १०. ५. पे. नाम, अष्टकर्म मद, पृ. १अ, संपूर्ण जैनगाथा संग्रह, प्रा.मा.गु. सं., पद्य, आदि: अष्टकर्ममद कडघणा, अंति: द्वादशव्रत बखाण रे, गाथा- १. ६. पे नाम, सूवधिजिन पद, पृ. १अ संपूर्ण. सुविधिजिन पद, उपा. समयसुंदर गणि, पुष्टिं पद्म, आदि: गुण अनंत अपार तेरे ग अंतिः हमकु सांमी तूज आधार, " , मु. आनंदघन, पुहिं पच, वि. १८वी, आदि: मुन्डै म्हारा कब, अंतिः आनंदघन० विलगो गेलू, गाथा-३, ५०९०८. दादाजी गीत, संपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. १, दे., ( २४१०.५, १२X३० ). जिनकुशलसूरि गीत, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: मनडी तुमाख्यौ दादा, अंति: जिनहरख० मै खास, गाथा- ७. ५०९०९. पार्श्वजिन छंद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५X११.५, २०x४३). ३२७ १. पे. नाम. अमीझरानो छंद, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद - अमीझरा, मा.गु., पद्य, आदिः उठ परभात अमीझरो जपो; अंति: निरमल इति पुरो आसए, गाथा - १२. २. पे. नाम. गोडीछंद, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद - गोडीजी, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय गोडि पास धणी, अंति: गोडीजिन देजो हितधरी, गाथा - ११. ५०९१०. असज्झाय कुलक व अमृतधुनि, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १. कुल पे. २, दे. (२५x११, १५X४७). १. पे. नाम. असज्झाय सज्झाय कूलक, पृ. १अ, संपूर्ण. असज्झाय सज्झाय, मु. हीर, पुहिं., पद्य, आदि: श्रावण काती मिगसिर, अंति: प्रभु पय कीजै सेव, गाथा - १४. २. पे. नाम. अमृत धुनि, पृ. १आ, संपूर्ण. त्रिपुरा माता अमृत ध्वनि, सदारंग पंडित, मा.गु., पद्य, आदि: गन चित्त महि अति, अंतिः सदारंग० जगदंब की., गाथा-५. ५०९११. (#) अजित शांति स्तवन, संपूर्ण, वि. १६८०, चैत्र कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. २, प्रले. ग. कुशलविजय (गुरु पं. कनकविजय गणि): गुपि. पं. कनकविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे., (२५X१०.५, १५X४३). For Private and Personal Use Only अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि अजिअं जिअसव्वभवं संत अंतिः जिणववणे आयरं कुणह गाथा ४०. ५०९१२. (4) आदिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२४.५४१०.५, १६x६१). आदिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि सेतुंजि बंदउ रिसह अंतिः सामी देजो हो आवली, गाथा- २३. Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३२८ ५०९१३. (+०) पार्श्वनाथ स्तोत्र सह अवचरि, संपूर्ण वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. पं. चारुदत्त, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पंचपाठ टीकादि का अंश नष्ट है, जैसे, (२५.५४१०.५, १४४३४) " पार्श्वजिन स्तोत्र नवग्रहगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा. पद्य वि. २४वी, आदि: दोसावहारदक्खो नालिया; अंतिः जिणप्पहसूरि० पीडंति, गाथा-१०. पार्श्वजिन स्तोत्र नवग्रहगर्भित छाया, सं. गद्य, आदि दोषापहारदक्षो अंति: इय इति सुगमेयं गाथा. " कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५०९१४. गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., ( २४.५X१०.५, १२X४४). १. पे. नाम. जिनराजसूरि गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. जिनराजसूरि विनती. मु. भुवनकीर्ति, मा.गु, पद्य, आदि पंधीडा संदेसो जिनजीन, अंति: आहिज वालापणनी टेक रे, गाथा-७. ५०९१५. स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे. (२४.५X१०.५, १२X३६). " गाथा-७. २. पे. नाम. औपदेशिक गीत, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यकीर्त्ति, मा.गु., पद्य, आदि: पंथिया विदेशी वाल्हा, अंति: लावण्य० दुखभंजन रे, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र नवग्रहगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: दोसावहारदक्खो नालीया; अंतिः जिणप्पहसूरि० पीडंति, गाथा-१०. २. पे. नाम. चंद्रप्रभस्वामी स्तवन, पृ. १अ १आ. संपूर्ण. चंद्रप्रभजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ चंद्रप्रभः अंतिः दायिनि मे वरप्रदा, श्लोक ५. ५०९१६. (०) जिनस्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र. वि. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैवे., (२५४१०.५, ११X३३). १. पे नाम सर्वजिन स्तुति, पृ. ९अ, संपूर्ण साधारणजिन स्तुति, प्रा., पद्य, आदिः गब्भावयार जम्मण: अंतिः सुणदेवी देउसुअनाणं, गाथा- ४. . २. पे. नाम. ऋषभदेव स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदिः युगादिपुरुषेंद्राय अंतिः कूष्मांडी कमलेक्षणा, श्लोक-४. ३. पे. नाम. दीपपर्व स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी स्तुति, क. कमलविजय, सं., पद्य, आदि: विजयतां परमागम देवता; अंति: विजयसेनगुरो कमलोदयी, श्लोक-१. ४. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. साधारण जन शतार्थी स्तुति, आ. सोमतिलकसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: कल्याणसारसवितानहरे अंतिः भाव परमागम सिद्धसूरे, लोक- १. ५०९१७. चैत्यवंदन संग्रह व स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ८, दे., ( २४.५X११, १५X३७). १. पे. नाम ऋषभदेव चैत्यवंदन, पृ. १अ संपूर्ण. गाथा-३. ४. पे. नाम. पार्श्वनाथ चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन चैत्यवंदन, क. ऋषभ, मा.गु, पद्य, आदि आदिदेव अरिहंत नमु; अंतिः ऋषभ० आददेव महिमा चणो, गाथा-३, (वि. गाथांक का उल्लेख नहीं है.) २. पे. नाम. शांतिनाथ चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. शांतिजिन चैत्यवंदन, क. ऋषभ, मा.गु., पद्म, आदि: समरुं शांति जिणंद, अंतिः शांतिनाथ समरो सहु, गाथा-३, ३. पे. नाम. नेमचैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन चैत्यवंदन, मु. ऋषभ कवि, मा.गु., पद्य, आदि: नेम नमुं नशदिस जन्म; अंति: जस महिमा जगमें रह्या, For Private and Personal Use Only Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ३२९ पार्श्वजिन चैत्यवंदन, मु. ऋषभ कवि, मा.गु., पद्य, आदि: वंदु पासजिणंद जिण; अंति: ऋषभ० जस महिमा जग कीध, गाथा-३. ५. पे. नाम. वीरजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन नमस्कार, मु. ऋषभ कवि, मा.गु., पद्य, आदि: वादु वीरजिणंद महिय; अंति: ऋषभ० जन पाम्या पार, गाथा-५. ६. पे. नाम. चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिन चैत्यवंदन-भवसंख्यागर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रथम तीर्थंकरतणा; अंति: नय प्रणमे धरी नेह, गाथा-३. ७. पे. नाम. पंचतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. ५ तीर्थजिन चैत्यवंदन, मु. कमलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धुर समरु श्रीआदिदेव; अंति: त्यां घर जय जयकार, गाथा-५. ८. पे. नाम. शेव॒जयतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: आदिनाथ जगनाथ विमलाचल; अंति: शासनं ते भवे भवे, श्लोक-५. ५०९१८. सज्झाय, स्तवन श्लोक व विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ७, दे., (२४.५४११, १९४५४). १.पे. नाम. नेमिनाथ स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. रामविजय, पुहि., पद्य, आदि: सुन सांइ प्यारा बे; अंति: राम लहे जयकारा बे, गाथा-७. २. पे. नाम. मोहपराजय पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-मोह पराजय, मु. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: यालिम गढ योध मच्यो; अंति: उदय० वधु गावे ध्यान, गाथा-११. ३. पे. नाम. विचार पत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जीवोत्पत्तिस्थान विचार, मा.गु., गद्य, आदि: काचा दूध माहे; अंति: तिवारे मोकली राखै. ४. पे. नाम. गाथा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक , प्रा.,सं., पद्य, आदि: इगवीस लक्ख चोवीस; अंति: कायव्वो संवरो तहा, श्लोक-१. ५. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह ,प्रा.,सं., पद्य, आदि: शैले शैलेन माणिक्यं; अंति: मौक्तिकं न वने वने, श्लोक-१. ६. पे. नाम. लोकनालि स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. सकल, मा.गु., पद्य, आदि: ज्ञाननयन माहि; अंति: सकल मुनि चीत आणोरे, गाथा-७. ७. पे. नाम. बार व्रत नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. १२ व्रत नाम, मा.गु., गद्य, आदि: प्राणातिपात अनुव्रत; अंति: विभाग शिष्या व्रत १२. ५०९१९. (#) जिनवर पूजा फल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१०, १०४३३-३६). जिनपूजाफल स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती सामण समरी माय; अंति: कहे जिनचंद० नरभव तरे, गाथा-१३. ५०९२०. (#) जिन स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, ले.स्थल. देसुरीग्राम, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १४४४१). १.पे. नाम. गोडीजीस्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. मोहनविजय, रा., पद्य, आदि: मुजरौ मारौ मानौ; अंति: ने साचो सेवक जाणोरे, गाथा-५. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, जगरुप, रा., पद्य, आदि: वामासुत मानै लागै; अंति: अजब मटक अणीयालो, गाथा-६. For Private and Personal Use Only Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. पार्श्व स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-शंखेश्वरतीर्थ, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: पारसनाथ के सिर पर; अंति: संघ आवै सहु धसमसीया, गाथा-६. ४. पे. नाम. सेव॒जागीरनार गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. गिरनारश@जयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारो सोरठ देश दिखावौ, अंति: ज्ञानविमल. सिर धरीया, गाथा-७. ५. पे. नाम. ऋषभदेव स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: ऋद्धि सिद्धि नवैनिध; अंति: जोडै बे कर जोड, गाथा-७. ५०९२१. (+#) स्तुति व थापनाचार्य बोल, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, ३४४५). १. पे. नाम. महावीर स्तुति सह अवचूरि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. संसारदावानल स्तुति, संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: संसारदावानलदाहनीर; अंति: देहि मे देवि सारम्, श्लोक-४. संसारदावानल स्तुति-टीका, ग. साधुसोम, सं., गद्य, आदि: अहं वीरं श्रीमहावीर; अंति: साधुसोम० ताच्चिरम्. २.पे. नाम. थापनाचार्य बोल, पृ. १आ, संपूर्ण. स्थापनाचार्यजीपडिलेहन १३ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: १ सुद्ध स्वरुपना; अंति: गुप्ति१२ कायगुप्ति१३. ५०९२२. गोडी पार्श्व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. पालीताणा, प्रले. करमचंद लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१०.५, ९४३५). पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १६६७, आदि: वदन अनोपम चंदलो गोडि; अंति: सेव करता सुख लहै, गाथा-३५. ५०९२३. (#) सीमंधर स्वामी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. अजीमगंज, प्रले.पं. मुनिरत्न; पठ. मु. कपुरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४११.५, १३४३६). सीमंधरजिन स्तवन, मु. जिनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुण सेनही साजन; अंति: लहै नित प्रेम अभंग, गाथा-१०. ५०९२६. विचार, गाथा व स्तुति स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ६, जैदे., (२४.५४१०.५, २०४५२-५४). १.पे. नाम. धन्नाशालिभद्रादि स्वर्ग-नरक गमन विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: धन्नाशालिभद्रः; अंति: पूर्वाचार्येण कथ्यते. २. पे. नाम. संमूर्छिम पंचेंद्रिय जीवोत्पत्ति विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. संमूर्छिम पंचेंद्रिय जीवोत्पत्ति विचार-विविध आगमोद्धत, प्रा., गद्य, आदि: वली उपासगदशांगवृत्ति; अंति: ते माटे सर्व जाणजो. ३. पे. नाम. साधारणजिन स्तव, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, वि. १५वी, आदि: त्रिजगत्प्रभुता; अंति: मां निजां श्रियम्, गाथा-५. ४. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. साधारणजिन नमस्कार-स्तुति संग्रह, सं., पद्य, आदि: निरुपमनंतमनघं शिवपद; अंति: धर्मं परम मंगलं, गाथा-३. ५. पे. नाम. अर्हन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति, आ. मनिचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: जिनत्वदीयांह्रि; अंति: खलु ते कृतार्थः, श्लोक-९. ६. पे. नाम. अष्टमहाप्रातिहार्य स्तव, पृ. १आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति-अष्टप्रातिहार्यगर्भित, सं., पद्य, आदि: प्रातिहार्यकलितासम; अंति: मे निजपदाव्ययभक्तिम्, श्लोक-६. ५०९२७. (#) गीत, स्तवन वदोहा, संपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४११, ३२४२१). जद., (२४.५४४ सपूर्ण चद्रिय जीवोपूर्वाचार्येण क For Private and Personal Use Only Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ १.पे. नाम. नेमिगीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमिजिनगीत, म. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: नेमजी हो पेखि पशुरथ; अंति: हो लाल जिनहर्ष करजोड, गाथा-१९. २. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.. आदिजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: ऋषभ जिणेसर प्रीतम; अंति: अर्पणा आनंदघन पद रेह, गाथा-६. ३. पे. नाम. प्रस्ताविक हो, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक दोहा संग्रह *मा.गु.,रा., पद्य, आदि: नयनां के री प्रीतडी, अंति: करो पास गयंपत जाय, गाथा-२. ५०९२८. चौवीस तीर्थकर चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १८९१, भाद्रपद शुक्ल, १४, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. पं. नेणसीह, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११.५, ११४३९). चैत्यवंदनचौवीसी, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम नमुं श्रीआदि; अंति: रुप सदा आणंद, चैत्यवंदन-२५, गाथा-७५. ५०९२९. भरहेसर सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४११.५, १०x२८). भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसरबाहुबली अभय; अंति: जसपडहो तिहुयणे सयले, गाथा-१३. ५०९३०. (+#) स्तुति व स्तवन, संपूर्ण, वि. १६४८, मार्गशीर्ष कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. येसलमेरू, प्रले. मु. कीर्तिविजय (गुरु ग. कमलविजय पंडित); गुपि.ग. कमलविजय पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१०, ११४४२-४४). १. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: भत्तिजुत्ताए सत्ताए; अंति: थुणताण कल्लाणयं, गाथा-४. २. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तव, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा.,मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: उप्पन्नसन्नाणमहोमयाण; अंति: सिद्धचक्क नमामि, गाथा-६. ५०९३१. (#) स्तवन व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. श्राव. सोभाचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४३५). १.पे. नाम. फलविधमंडण पारस्वनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धिमंडण, आ. जिनसंभवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: आज भयो रे आणंद जीव; अंति: जिनसभव० सिव सुखदेव, गाथा-७. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-प्रभाति, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सारद वचन अमृत; अंति: पुन्य दसा इम जागीरे, गाथा-७. ३. पे. नाम. रासउपषपतआंणवा विधि, पृ. १आ, संपूर्ण.. ज्योतिष*, मा.गु.,.,हिं., प+ग., आदि: शाक अंक त्रिगुणी करी; अंति: खरच गिण दसा अठा० माग. ५०९३२. (#) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १६४४६). १.पे. नाम. असिझाई कुलं, पृ. १अ, संपूर्ण. असज्झाय सज्झाय, मु. हीर, पुहिं., पद्य, आदि: श्रावण काती मिगसिर; अंति: प्रभु पय कीजै सेव, गाथा-१४. २. पे. नाम. चउद गुण स्थानक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. १४ गुणस्थानक सज्झाय, मु. धर्मसागर, मा.गु., पद्य, आदि: पासजिणेसर पाय नमी सह; अंति: तसु मन जिनवर आणो रे,गाथा-१८. ५०९३३. (+) कर्मबंधहेतु विचारगर्भित शांतिनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०, १५४४६-५३). For Private and Personal Use Only Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शांतिजिन स्तोत्र-कर्मबंध विचार गर्भित, प्रा., पद्य, आदि: जस्सपरिसाइ एगिदियाण; अंति: दिउमझं सयासुक्खं, गाथा-२१. ५०९३४. सुगुरुपचीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४११.५, १४४४२). सुगुरुपच्चीसी, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुरु पीछाणों एवं; अंति: चितमै हरष उछरंगजी, गाथा-२५. ५०९३५. शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८७०, मार्गशीर्ष कृष्ण, १३, शनिवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. विकानेर, प्रले. पं. अमृतसुंदर; अन्य. श्राव. अमरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, १४४४३). शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारद मात नमु सिरनामी; अंति: गुणसागर० सुख पावै, गाथा-२२. ५०९३६. चतुर्विंशतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. पं. लब्धिरत्न गणि; पठ. श्रावि. संग्रामदे, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१०, ११४३२-३४). २४ जिन स्तवन, मु. साधुरंग, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलुं प्रणमु आदिजि; अंति: साधुरंग० अविचल ऋद्धि, गाथा-१४. ५०९३७. (+) जिनेंद्र स्तव, संपूर्ण, वि. १८२१, श्रावण कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. रामचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५,१३४५४). रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल; अंति: श्रेयस्करं प्रार्थये, श्लोक-२५. ५०९३८. (#) सवैया संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १९४५०). औपदेशिक सवैया संग्रह, मु. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: कहै रिख वाण भली; अंति: काज सुंसहत चपेटा, गाथा-१६. ५०९३९. (#) सीता सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, ११४३६). सीतासती सज्झाय, मु. लक्ष्मीचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मुनिसुव्रत स्वामी कु; अंति: पैजिनवरसुंसीर नाम, गाथा-१३. ५०९४०. (#) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १८४५३). १.पे. नाम. धनासिज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. धन्नाकाकंदी सज्झाय, मु. तिलोकसी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवाणी रे धन्ना; अंति: गाया है मनमै गहगही, गाथा-२२. २. पे. नाम. कर्म सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीदेव दाणव तीर्थं; अंति: नमोनमो कर्मराजारे, गाथा-१७. ५०९४१. (#) मुहपति पडिलेहण विचार सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, ४४३२). प्रतिलेखनबोल गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सुतत्थतत्थदिट्ठी; अंति: तणत्थं मुणि बिंति, गाथा-५. प्रतिलेखनबोल गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पहिली पडिलेहणानु; अंति: मुहपत्तीनी पडलेहण. ५०९४२. (+#) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, ३१x१९). १. पे. नाम. विजयरत्नसूरि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. सुखविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामिनी केरा; अंति: सुखविजय० निस दिस. गाथा-५. २. पे. नाम. गुरु स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. विजयरत्नसूरि सज्झाय, मु. सुखविजय, मा.गु., पद्य, आदि: भावइ गच्छपति वंदीइ; अंति: सुखविजय० रे भविक नर, गाथा-५. ५०९४३. (+) स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८७८, श्रावण अधिकमास कृष्ण, ३०, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ७, प्र.वि. संशोधित-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२४.५४१२, १२४३०). १.पे. नाम. गोडीपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-गोडीजी, मु. धर्मवर्धन, सं., पद्य, आदि: प्रणमति यः श्रीगौडी; अंति: सुस्वाददास्तात्, श्लोक-११. For Private and Personal Use Only Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे. नाम. स्तंभनपार्श्व स्तुति, पृ. २अ-२ आ. संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- स्तंभन, आ. अभयदेवसूरि, सं., पद्य, आदि; कल्याणकेलि कमला अंतिः सोमशर्म देवात्, गाथा-५, ३. पे. नाम. वीतराग गुणवर्णन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: जय वीतमोह जय वीतदोष; अंति: सिद्ध रूपचंद्राभिरूप, गाथा-५. ४. पे. नाम. जिनाष्टक स्तोत्र, प्र. २आ- ३आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तोत्र, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: नत नरेंद्र जिणेंद्र, अंति: जिनप्रभसूरि० मगहर, श्लोक-९. ५. पे नाम. आत्मरक्षाकर पंचपरमेष्टी स्तोत्र, पृ. ३आ, संपूर्ण वज्रपंजरकवच, सं., पद्य, आदि; परमेष्टि नमस्कारं अंति: अधिस्वापि कदाचन, श्लोक ८. " ६. पे. नाम. नवग्रहशांति, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. ग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि जगद्गुरुं नमस्कृत्वः अंतिः जपेदष्टोत्तरंशतम्, श्लोक १०. ७. पे. नाम. चतुर्विंशति गर्भित यंत्र स्तोत्र, पृ. ४आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तोत्र - पंचषष्टियंत्रगर्भित, मु. सुखनिधान, सं., पद्य, आदिः आदौ नेमिजिनं नौमि, अंतिः मोक्षलक्ष्मिर्निवासः, लोक-८. ३३३ ५०९४४ (१) चिंतामणि पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८०७, श्रावण शुक्ल, १४ शनिवार, मध्यम, पू. १, ले. स्थल. व्यंध्यपुर प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२४.५X१०.५, १२X३५). " पार्श्वजिन स्तोत्र - चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि सं., पद्य, आदिः किं कर्पूरमयं सुधारस अंतिः बीजं बोधिवीजं ददातु लोक-११. ५०९४५. (१) स्तवन व नमस्कार, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १. कुल पे. २. प्र. वि. अक्षरों की स्थाही फैल गयी है, जैवे. (२४.५X१०, १६४५५-६२). १. पे नाम. सुप्रभात स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण साधारणजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: सर्वज्ञ सर्वहित; अंति: गुणान् गुणिनो नयंति, श्लोक - ९. २. पे. नाम. साधारणजिन नमस्कार, पृ. १अ १आ, संपूर्ण साधारण जिन नमस्कार-स्तुति संग्रह, सं., पद्य, आदि: जयत्यादिम तीर्थेश, अंतिः जिनेंद्रेभ्यो नमोनमः, श्लोक-२९, (वि. प्रतिलेखक ने एक श्लोक को दो श्लोक गिना है.) ५०९४८ (4) जिनस्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे., (२४.५X११.५, ७X३१). १. पे. नाम. गोडीपार्श्वस्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगौडीपुरमंडण, अंतिः कल्याण सवाई थायै हो, गाथा-७. २. पे. नाम. नेमजी स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमिजिन पद, मु. चारित्रसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: नेमजी मिले तो वारिया, अंतिः चारित्र० धारिया हो, गाथा ४. ५०९४९ (१) पद्मावती स्तोत्र, संपूर्ण वि. १८१७ आषाढ़ शुक्ल ९ रविवार मध्यम, पृ. १, ले. स्थल, सिरंज, प्रले. मु. जेसिंघ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., ( २४.५X११.५, २१X५९). पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र, अंति: पद्मावतीस्तोत्रम् श्लोक-२९. ५०९५० (1) आदिजिन स्तुति, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४.५X१०.५, १७X४३-४५). आदिजिन स्तुति, मु. खेम, उ., पद्य, आदि साहिब तुं सच्चा सांई, अंतिः कहे खेम० तेरी घनां, ढाल ३. ५०९५१. (+०) भवनपति गाथा, प्रतिमा विचार व स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे ३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११.५, ४४x२४-३३). १. पे. नाम भवनपति खरतरगच्छ दृष्टांतगाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३३४ www.kobatirth.org कैलास 'श्रुतसागर ग्रंथ सूची भवनपति गाथा, प्रा., पद्य, आदि: ० सिग्घ गमिस्संति; अंति: आऊ देवो जाओ महिड्डीओ, गाथा-२, (वि. आदिवाक्य का किंचित् अंश नष्ट है.) २. पे. नाम. इग्यार श्रावक प्रतिमा नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. श्रावक ११ प्रतिमा विधि, मा.गु., गद्य, आदि: दर्शनप्रतिमा एकमास, अंतिः कै घरे गोचरी ले आवै. ३. पे. नाम. तपउपधानगर्भित महावीरजिन वृद्धस्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. उपधानतप स्तवन-वृद्ध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीमहावीर धरम; अंतिः समय० वंछित सुख करो, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ढाल - ३, गाथा - १८. ५०९५२. (+) पाक्षिक नमस्कार, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६११.५ १५X४८). सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदिः सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंतिः श्रीवीरजिननेत्रयोः, श्लोक-२७. ५०९५४. स्तवनवीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १. वे. (२५४१२, १५४४८). " विहरमानजिन स्तवनवीसी, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीसीमंधर जिनवर, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., विहरमानजिन ३ के प्रारंभ तक लिखा है.) ५०९५५. (5) चातुर्मासिक व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फेल गयी है, जैवे., (२५.५४१२, ९X२७). चातुर्मासिक व्याख्यान, रा. सं., पद्य, आदि: (१) सामायिकावश्यकपौषधानि ( २ ) आसाढ चोमासो काती, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्रावक कर्तव्य प्रसंग अपूर्ण तक लिखा है.) ५०९५६. (#) मनुष्यभवदुर्लभता १० दृष्टांत काव्य सह दृष्टांतकथा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैसे. (२५.५x११, ३२५८०). मनुष्यभवदुर्लभता १० दृष्टांत काव्य, प्रा. सं., मा.गु., पद्य, आदि: (१) चत्तारि परमागाणि, (२) चुग पास धन्ने, अंतिः (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा २ तक लिखा है.) मनुष्यभवदुर्लभता १० दृष्टांत गाथा-कथा, मा.गु, गद्य, आदिः किंपीलपुरि ब्रह्मराज, अंति: (-). (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अजितशत्रुराजा दृष्टांतकथा तक लिखा है.) ५०९५७. जिनराज अरीजितक स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-५ (१ से ५) = १, जैदे., (२५X११.५, १४४४०). अरिजितजिन स्तवन, आ. भावप्रभसूरि पुडिं, पद्य, आदिः पघडीचा पेचा देखो जाम, अंतिः भाव०जिनसेवा तडीया बे गाथा - २२, संपूर्ण, ५०९५८. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, कुल पे. २, प्रले. सा. अनु. प्र.ले.पु. सामान्य, वे., ( २६४११.५, १७४४८). १. पे नाम. ५ पांडव सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: हसतनागपुर वर भलउ तिह, अंति: मुज आवागमण निवार रे, गाथा १८. २. पे नाम. ब्राह्मीसुंदरी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण, मु. रायचंद ऋषि, रा. पद्य वि. १८४३, आदि: (-); अति सीरखी वसन नही काइ, गाथा २१, (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाथा १३ अपूर्ण से लिखा है.) 3 ५०९५९. स्तवन व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ७५ (१ से ५ ) = २, कुल पे २, जै, (२५.५४११.५, १४-१७X३८). १. पे. नाम. २४जिन स्तवन, पृ. ६अ-७आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., प्रले. पं. श्रीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. २४ जिन स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: मानविजय नितु ध्यावे, स्तवन- २४, (पू.वि. मल्लिजिन स्तवन गाथा १ अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only २. पे. नाम. गौतमस्वामी सज्झाय, पृ. ७आ, संपूर्ण, वि. १८४०, आश्विन शुक्ल, १, शनिवार, पे. वि. यह कृति बाद में लिखी गयी है. Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ३३५ गौतमस्वामी स्तवन, मु. वीर, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलो गणधर वीरनो रे; अंति: वीर नमे निसदिस, गाथा-८, (वि. १८४०, आश्विन शुक्ल, १, शनिवार) ५०९६०. (+#) स्तोत्र व स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्रले. पं. राजचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १७४४०-४४). १.पे. नाम. चतुर्विंशति दंडक स्तोत्र, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: (-); अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-४५, (पू.वि. गाथा ३० अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. लब्धि स्तव, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.. २८ लब्धि स्तवन, प्रा., पद्य, आदि: जा जस्स तुह पसाया; अंति: होइ जह परमपयलद्धी, गाथा-१८. ५०९६२. (#) सत्तरिसयजिन स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, ७४४३). तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अठ्ठ; अंति: निब्भत निच्चमच्चेह, गाथा-१४. तिजयपहुत्त स्तोत्र-टबार्थ, मु. लालकुशल, मा.गु., गद्य, आदि: त्रिण लोकनु ठकराइपणु; अंति: एहनी पूजा करयो. ५०९६४. चतुर्विंशति जिनायुप्रमाण स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४७.५, ७४४९). २४ जिनआयु स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर प्रणमी पाय; अंति: मुझ देयो वास, गाथा-७. ५०९६६. स्तवन व बारमासो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४१०.५, १५४३९). १. पे. नाम. नेम स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. ज्ञानविबुध, मा.गु., पद्य, आदि: सारदनई समरी करी रे; अंति: ज्ञानवि० गुण गाय रे, गाथा-११. २.पे. नाम. नेमिराजीमति बारमासो, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमराजिमती बारमासो, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: वैशाखें वन मोरीया; अंति: मिलीया मुगति मझार, गाथा-१५. ५०९६७. सरसतीमाता छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. रूपविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४१०.५, १५४६८). सरस्वतीमाता छंद, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति भगवती जग; अंति: होउ सायर संघकल्याण, गाथा-४३. ५०९६८. शांतिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५.५४११, १२४४०). शांतिजिन स्तवन, वा. हर्षधर्म, मा.गु., पद्य, आदि: सूरिजि उगमतइ नमु संत; अंति: हरषधरमह वीनव्यउ, गाथा-२३. ५०९७०. बृहत्शांति, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, १५४५४). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: केचिदुपद्रवा लोके. ५०९७१. (+#) जीवविचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १२४४४). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुय समुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ*मा.गु., गद्य, आदि: भुवनमाहि प्रदीप समान; अंति: समुद्र तेह थकी. ५०९७२. (+) संथारापोरसी व मन्हजिणाणं सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १४४३६). १.पे. नाम. संथारापोरसी सूत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसीही निसीही निसीही; अंति: इअसमत्तं मए गहिअंगाथा-१४. २. पे. नाम. मन्हजिणाणं सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मन्हजिणाणं सज्झाय-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: मन्हजिणाणं आणं मिच्छ; अंति: निच्चं सुगुरुवएसेणं, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५०९७३. (#) रात्रिभोजन सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १०४४३). रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, मु. सेवक, मा.गु., पद्य, आदि: इम गुरु ज्ञानी भविने; अंति: जगनाथ सरण जयकारोरे, गाथा-१७. ५०९७४. स्तुतिचतुर्विंशतिका, अपूर्ण, वि. १७२०, विधुमुनिनेत्रव्योम, मार्गशीर्ष, ९, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ४-२(१ से २)=२, ले.स्थल. कोटनगर, प्रले.पं. महिमारुचि गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०.५, १८:५५). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: हारताराबलक्षेमदा, स्तुति-२४, श्लोक-९६, (पू.वि. स्तवन १३ से है.) ५०९७५. (#) पजुसण सझाय, संपूर्ण, वि. १९०३, कार्तिक शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. पालणपुर, प्रले. बालचंद महात्मा; पठ. सा. उजमश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२, ११४२४-२८). पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. मतिहंस, मा.गु., पद्य, आदि: पर्व पजुषण आवीयारे; अंति: मतिहंस कहे करजोडिरे. ___ गाथा-११. ५०९७६. ऋषभदेव लावणी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., (२५.५४११, १३४३८). आदिजिन छंद-धुलेवा, क. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७५, आदि: आदि करण आदि जग आदि; अंति: सुरनर सब कीरत कहे, गाथा-६३. ५०९७७. दंडकगर्भित पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४९.५, १४४४४). पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुंपासनाह प्रह; अंति: पास० परमार्थ लहै, गाथा-२३. ५०९७८. (#) लघुशांति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, ७X४७). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: सूरि श्रीमानदेवस्य, श्लोक-१९. लघुशांति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीशांतिनाथ शांतिनो; अंति: शांति पद प्रतै पामै. ५०९७९. उपदेशरत्नकोश सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७३२, आषाढ़ शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. रिंछेलनगर, प्रले. पंन्या. महिमारूचि (गुरु पंन्या. तेजरुचि); गुपि. पंन्या. तेजरुचि; राज्यकालरा. राजसिंह राणा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, ११४४६). उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: उवएसरयणकोसं नासिअ; अंति: विउलं उवएसमालमिणं, गाथा-२७. उपदेशरत्नमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: उपदेशरूप रत्नकोश; अंति: माला कही हितोपदेश. ५०९८०. (+) सिद्धाचल स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११, ८४३२). आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: दइ तस मानने हस्त; अंति: ज्ञानवि० गुण गावो रे, गाथा-८. ५०९८१. नंदीषेण सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४११.५, १०-१४४३४). नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजगृही नगरीनो वासी; अंति: साधुने कोइ न तोले हो, ढाल-३, गाथा-१३. ५०९८२. (#) ज्ञानपंचमी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५४५०). ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सयलमति संपजइ नेमजिन; अंति: उदय० संघ मंगल करो, ढाल-२, गाथा-१५. ५०९८३. (#) आदिजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १२४३५). For Private and Personal Use Only Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ आदिजिन स्तोत्र-सारसोपारक, सं., पद्य, आदि: जयानंदलक्ष्मीलसद्वल; अंति: जोपासनां देव देया, श्लोक-११. ५०९८४. हरियाली संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. ले.सं.१७६१ माह वद ४ में लक्ष्मीचंद्र द्वारा लिखित प्रत की प्रतिलिपि होनी चाहिये., दे., (२६४११, ११४३३). १. पे. नाम. औपदेशिक हरियाली, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: कहेज्यो पंडित ए; अंति: सरखा मात हुज्यो रे, गाथा-४. २. पे. नाम. औपदेशिक हरियाली, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पंखी एक वन उपनो हो; अंति: समय० म करस्यउ वेसास, गाथा-५. ३. पे. नाम. नेमिनाथ गूढागीत, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमिजिन पद-गूढार्थगर्भित, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., पद्य, आदि: सखी कोउ मोहनलाल मनाव; अंति: समय० जिणंद गुण गावइ, गाथा-३, (वि. गूढ शब्दों का शब्दार्थ दिया गया है.) ४. पे. नाम. जगत्सृष्टिकृत परमेश्वरप्रश्न गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., पद्य, आदि: पुछु पंडित कहुंका; अंति: समयसुंदर० समझावैरे, गाथा-३. ५०९८५. नवतत्त्व थोई व जिन पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२५४१०.५, १०४२६). १. पे. नाम. नवतत्त्व थोई, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. __ आदिजिन स्तुति-नवतत्त्वगर्भित भुजनगरमंडन, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जीवाजीवपुन्यपावा; अंति: समकितगुण चित धरजो जी, गाथा-४. २. पे. नाम. सीमंधरजिन पद-गाथा १, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. बाद में गुजराती लिपि में लिखी गयी कृति. सीमंधरजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: अजवाली बीज सोहावे; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ३. पे. नाम. सीमंधरजिन पद-गाथा १, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. बाद में गुजराती लिपि में लिखी गयी कृति. सीमंधरजिन स्तुति, मु. शुभवीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: श्रीसीमंधरदेव सुहकर; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ५०९८६. श्रावक इकवीस गुण सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११.५, १४४४३). २१ श्रावकगुण सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी श्रुतदेवी सार; अंति: नयविमल कहे निशदिस, गाथा-१५. ५०९८७. पट्टावली तपागच्छीय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४११, ३५४१९). पट्टावली तपागच्छीय, सं., गद्य, आदि: १ श्रीमहावीर; अंति: ६६ धर्मसूरिः. ५०९८८. (#) स्तवन व सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२,१६४४३). १. पे. नाम. चौद बोल सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. १४ गुण सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवचन करूं; अंति: समरथ सवगनै दीजै परमथ, गाथा-१५. २. पे. नाम. चतुर्विंशति जिनायुगर्भित स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २४ जिन भववर्णन स्तवन, मु. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमीय चोवीसे जिन; अंति: श्रीदेवइ इम गुण गाया, गाथा-५. ३. पे. नाम. चतुर्विंशति जिनांतरकालगर्भित स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. २४ जिन अंतरकाल स्तवन, मु. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि: जिनचोवीसी त्रिकाल ए; अंति: विरच्यो आज ए, गाथा-१७. ४. पे. नाम. सुभद्रा सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. सुभद्रासती सज्झाय-सीयल, मु. सिंघो, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर सोजै ईरज्या; अंति: तणो गाम उतारी गाल, गाथा-१८. ५. पे. नाम. नवकार सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बार जपं अरिहंतना; अंति: लबध० रे भवियण नवकार, गाथा-९. ५०९८९. (4) पच्चक्खाणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पठ. श्रावि. माना, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५,१२४३९). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: असित्थेण वा वोसिरामि. ५०९९० (#) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११, २२४५३). १.पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. वा. मेघविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांति करो जिन सांतजी; अंति: मेघ लहे सुखमाल, गाथा-८. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: आयो आयोरेनणदल जोगी; अंति: रूडी उंढणी हो जी, गाथा-४. ३. पे. नाम. नेमराजुल स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.. नेमिजिन स्तवन, ग. भक्तिविजय, रा., पद्य, आदि: राजुल बेठी गोखमांरे; अंति: भक्ति० सिवपुर वास हो, गाथा-५. ४. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. ३२ वी गाथा पत्र १अपर है. मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीउडा यादव कुलना; अंति: विसमो जिन माहि वसिउ, गाथा-३२. ५०९९१. पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ८, दे., (२५.५४११, १६x४९). १. पे. नाम. औपदेशिक होरी पद, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, पुहिं., पद्य, आदि: होरी खेलो रे भविक; अंति: तेरा पाप सबल थिर के, गाथा-४. २. पे. नाम. आदिजिन होरीपद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जिनरंग, पुहिं., पद्य, आदि: होरी खेलीये० दया मिठ; अंति: जिनरंग० पातिक जाय हो, गाथा-४. ३. पे. नाम. संभवजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. गुणविलासजी, मा.गु., पद्य, वि. १७९७, आदि: श्रीजिननाम संभार सार; अंति: गुणविलास० जय जयकार, गाथा-३. ४. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, पंडित. टोडरमल , पुहि., पद्य, आदि: उठ तेरो मुख देखुं; अंति: टोडर० धरत नत वंदा, गाथा-५. ५. पे. नाम. शांतिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, पुहि., पद्य, आदि: आंगण कल्प फल्यो री; अंति: उदय० रहुं सोहलोरी, गाथा-३. ६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, पुहि., पद्य, आदि: चतुर नर मन कुं समझा; अंति: उदय० सोइ है सावधाना, गाथा-६. ७. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ पार्श्वजिन होरीपद, मु. जिनरंग, पुहिं., पद्य, आदि: मेरे पारसप्रभुजी के; अंति: जिनरंग० वदन वसंत, गाथा-४. ८. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण.. मु. जिनरंग, पुहिं., पद्य, आदि: नेम निरंजण ध्यावो रे; अंति: जिनरंग० जसलीनो रे, गाथा-३. ५०९९२. अक्षरबावनी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, १४४३८). अक्षरबावनी, मु. धर्मवर्धन, पुहि., पद्य, वि. १७२५, आदि: ॐकार उदार अगम अपार; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सवैया ८ अपूर्ण तक लिखा है.) ५०९९३. गीत, कवित व पडिलेहण बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. पं. माणिक, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२, १४४३१-३४). १. पे. नाम. विसविहरमान जिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. विहरमान २० जिन स्तवन, उपा. अनंतहंस, मा.गु., पद्य, आदि: सरसतिदेव नमु निसि; अंति: इम जपइ जिनमाणिकसीस, गाथा-९. For Private and Personal Use Only Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ २. पे. नाम. कृष्णभक्ति कवित, पृ. १अ, संपूर्ण. कृष्णभक्ति कवित्त, द्वारिकानाथदेव, पुहि., पद्य, आदि: जो मन रखुंठोर चित्त; अंति: बाहि ग्रह्यो तोए गरु, गाथा-१. ३. पे. नाम. पडिलेहण के ५० बोल, पृ. १आ, संपूर्ण. मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन के ५० बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: दृष्टि पडिलेहण स्यु; अंति: मली ५० पडिलेहण जाणवी. ५०९९४. (#) श्रावककरणी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १४४३९). श्रावककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक तुं उठे परभात; अंति: जिनहरष दुखहरणी छइ एह, गाथा-२२. ५०९९५. (+#) नवकारमंत्र स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्रले.ऋ. कर्मचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १०४३८). १.पे. नाम. नवकारमंत्र स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. पंचपरमेष्ठिफल स्तवन, आ. वल्लभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: किं कलपत्तर रे आण; अंति: वलभ० सेवा मांगउ नित, गाथा-१३. २.पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक ,प्रा.,सं., पद्य, आदि: संतोषस्थूलमूलः प्रशम; अंति: स्यात्तपः पादपोय, श्लोक-१. ३. पे. नाम. जैन गाथा, पृ. २आ, संपूर्ण. गाथा संग्रह *,प्रा., पद्य, आदि: जंची वहिणा लहिय; अंति: वहिरइ निकायरा हुति, गाथा-१. ५०९९६. (+#) स्तवन व स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२५४१२,१५४४१). १.पे. नाम. पारसनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. कीरत, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसुगुरु चिंतामणि; अंति: (१)प्रभु पारसनाथ कीए, (२)जोडि कविन विनती करू, गाथा-१७, (वि. कलश की ३ गाथाएं अलग से दी गयी हैं.) २. पे. नाम. संसारदावानल स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: संसारदावानलदाहनीरं; अंति: देहि मे देवि सारम्, श्लोक-४. ५०९९७. (#) रागनिवास संवेगरसायण वर्णबत्तीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२५.५४१०.५, १०x४०-४६). संवेगरसायण रागनिवास, म. गोविंद, मा.गु., पद्य, आदि: ज्ञानज्योति प्रकास; अंति: गोविंद वंछित फल पायो, गाथा-३४. ५०९९८. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४११.५, ११४४१). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-लघु, मु. वसतो, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवन साहिब सांभल; अंति: वसतो० वंदना त्रिकाल, गाथा-७. २. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन पद-विक्रमपुरमंडन, मु. धर्मसिंह, पुहिं., पद्य, आदि: नाभिनंदन प्यारो लागै; अंति: धर्म विक्रमपुरै राजै, गाथा-५. ५०९९९. (#) ढंढणऋषि सज्झाय व मंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१०.५, १२४४२). १. पे. नाम. ढंढणऋषि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: ढंढण ऋषिने वंदना हुँ; अंति: सुजाण रे हुवारी लाल, गाथा-९. २. पे. नाम. गोला फीहा निवारण मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मंत्र संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५१०००. (+) चंदनबाला ढाल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२.५, १६x४५). चंदनबालासती ढाल, मु. दुर्गादास, मा.गु., पद्य, आदि: फणमण मंडत नीलतन मंगल; अंति: सुर पण दीढताई रे लोय, गाथा-८५. ५१००१. (+) अतीत अनागत वर्तमान वीस विहरमान चतुर्थाधिकार स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, २०४३४). ९६ जिन स्तवन, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७४३, आदि: वरतमांन चोवीसे वंदु; अंति: सदा जिणचंदसूर ए, ढाल-५, गाथा-२३. ५१००२. (+#) उपदेस सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १४४३१). औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मागु., पद्य, वि. १६वी, आदि: सूध धर्म मु मुंकीश; अंति: चिर कालें नंदोरे, गाथा-९. ५१००३. आवति चोईसी वर्तमान होसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४११.५, १३४३०). १. पे. नाम. पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ६३ शलाका पुरुष नाम संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: आवति चोईसी वर्तमान; अंति: ७ भीम ८ सुग्रीव ९. ५१००४. थंभणपुर पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४.५४११.५, १०४३५). पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, मा.गु., पद्य, आदि: थंभणपुर श्रीपास; अंति: श्रीपार्श्व चउसालो, गाथा-८, (वि. प्रतिलेखक ने २ गाथा को एक गाथा गिना है तथा अतिम दो गाथाओं की संख्या नहीं लिखी है.) ५१००५. (#) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले.पं. माणक्यविजय (गुरु पं. दोलतविजय); गुपि.पं. दोलतविजय (गुरु पंन्या. जिनविजयगणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४x७.५, ३०x१६). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-भाभा, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: वालाजिरेसातमो मंगल; अंति: कें उदयरतन कहे रे लो, गाथा-५. २.पे. नाम. ऋषभजिन गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. हर्षविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पहिला श्रीऋषभजिणंद; अंति: कहे प्रभु संगेरे, गाथा-६. ५१००६. दृष्टीरागनिवारण गुरु सदहणा सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४११, ११४३३). दृष्टिरागनिवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: दृष्टि रागें नवि; अंति: कहे हित शिख मन धरजो, गाथा-११. ५१००७. मेघकुमार गीत, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४११.५, ११४२८). मेघकुमार सज्झाय, क. कुसल, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिनेसर आय; अंति: सोजतनगर मजार हो, गाथा-१०. ५१००८.(+) प्रतिक्रमणविधि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२.५, १५४३४). १. पे. नाम. राइ प्रतिक्रमण विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रतिक्रमणविधि संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम सामायक लेणी; अंति: चैत्यवंदन करणो. २. पे. नाम. सामायिक पारने की विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. __ आवश्यकसूत्र-सामायिक पारने की विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रावकने सामायिक; अंति: दावा ३ श्लोक कहै. ३. पे. नाम. औषधि संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औषधवैद्यक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५१००९. (#) प्रव्रज्या विधि-खरतरगच्छीय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. जोधपुर, प्रले. पंडित. कस्तूरचंद; राज्ये आ. भावहर्षसूरि (गुरु ग. माणिक्यमूर्ति, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१२, १३४३०). For Private and Personal Use Only Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ www.kobatirth.org दीक्षा विधि, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: पूर्व शुभवेलायां; अंतिः पछे नाम थापना कीजे. ५१०१०. (+) स्तवन संग्रह व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१६, आदि: श्रीसिद्धारथनंदनो, अंति: देव० नित्तनी रे लो,' गाथा- ७. ३. पे. नाम औपदेशिक पद. पू. १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२५X११.५, २८x१५). १. पे. नाम. दीओजपुरमंडन शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन- दीओजपुरमंडन, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१६, आदि: श्रीदीओजपुरमंडणो रे; अंति: देव नमेंत्रण काल, गाथा ५. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसिही निसिही निसीहि; अंति: अठारसणवट्ठाणाइं, गाथा-१४. २. पे. नाम. अढार पाप स्थानक, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: कहेर की नजर दल बचसे; अंति: हाथी हथेरी को पानी, पद- ४. ५१०११. (#) संथारापोरसी, अढार पापस्थानक व सातलाख सूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, वे (२४.५४११, १३४३६). १. पे. नाम. संथारा पोरिसी, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. १८ पापस्थानक नाम, मा.गु., गद्य, आदि: प्राणातिपात १; अंति: मिथ्यादर्शनशल्य १८. ३. पे. नाम. सातलाख सूत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. श्रावक देवसिकआलोयणासूत्र- तपागच्छीय, संबद्ध, गु., पद्य, आदि: सातलाख पृथ्वीकाय, अंति: करी मिच्छामिदुक्कडं. ५१०१२. नंदषेण स्वाध्याय व दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२५.५x१२.५, १३x४०). १. पे नाम, नंदषेण स्वाध्याय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. चंद, मा.गु., पद्य, आदि: वालिंभ विनता वीनतडी, अंति: जिनवाणी हो राजि, गाथा- १३. २. पे नाम औपदेशिक लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. ३४१ प्रा. सं., पद्य, आदि हितं न वाक्यं कुहितं; अंतिः सिद्धिर्षुनरागमस्व, श्लोक-२. " ३. पे. नाम. प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक दोहा संग्रह, मा.गु., रा., पद्य, आदि: गुरु जो तूसै भावसुं; अंति: को गहिरावै नाह, गाथा-४. ५१०१३. () स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., ( २४.५X११.५, १८x४९). १. पे. नाम. कल्लाणकंद स्तुति, पृ. १अ संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: कल्याणकंद पढमं जिणंद, अंतिः आ अम सवा पसथा, गाथा-४. २. पे. नाम संसारदावानल स्तुति, पृ. १अ संपूर्ण. संसारदावानल स्तुति, संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., सं., पद्य, आदि: संसारदावानलदाहनीर, अंति: देहि मे देवि सारम्, श्लोक-४. पे. नाम, पाक्षिक स्तुति, पृ. १अ संपूर्ण आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्या प्रतिमस्य, अंति: सर्वकार्येषु सिद्धम्, श्लोक-४. ४. पे नाम, एकादशी स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादशी अति रुअडी; अंति: नवारो संघ तणा नसदिस, गाथा-४. ५. पे नाम, बीज स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: कहें पुरो मनोरथ माय, गाथा-४. Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३४२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५१०१५. (a) बुद्धि रास, संपूर्ण, वि. १८१७, चैत्र कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. ३. ले. स्थल, मेदनीपुर प्रले. मु. जसविजय (गुरु मु. भक्तिविजय); गुपि. मु. भक्तिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५X११, १४X३४). बुद्धि रास, आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमवि देव अंबाई, अंति: धरीए सफल करो संसार, गाथा- ६५. ५१०१६. (4) आत्म सतसरूप सुद्ध कक्षक स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५X११.५, १५-१७X३८). औपदेशिक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चडीआ पडिआनो अंतर, अंति: मति नवी काच रे, गाथा ४९. ५१०१७. (#) गंगाष्टक स्तोत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७१०, आषाढ़ शुक्ल, १५, जीर्ण, पृ. २, ले. स्थल. पत्तन, प्रले. ग. कीर्तिरत्न (गुरु ग. गुणरत्न, तपागच्छ); गुपि. ग. गुणरत्न (तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. त्रिपाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, जैवे. (२६४११. १९४५९). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गंगाष्टक स्तोत्र, क. देवेश्वर, सं., पद्य, आदि: गंगा नंगारि संगासरि, अति देवेश्वर कवीश्वरः, श्लोक-११. गंगाष्टक स्तोत्र - टीका, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: सा गंगा नदी अद्याज, अंति: शोध्या शुद्ध धीधनैः. ५१०१८. (+) महावीरजिन स्तवन सह अवचूर्णि संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. १, प्र. वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें वचन विभक्ति संकेत-संशोधित अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२५.५X१२.५, ७३२). सर्वजिन स्तव, सं., पद्य, आदि जिनपते द्रुतमिंद्रिय, अति मोह तमो रिपुवीर ते, श्लोक-१. सर्वजिन स्तव - अवचूर्णि, सं., गद्य, आदि हे जिनपते दमवतां अंतिः तस्य संबोधनं क्रियते. ५१०१९, (4) २८ लब्धि विचार व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. मु. गुणविजय, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. पंचपाठ, टीकादि का अंश नष्ट है, जै, (२५x११, १९४३७). १. पे. नाम. २८ लब्धिविचार सह बालावबोध, पृ. १अ, संपूर्ण. २८ लब्धि विचार, प्रा., पद्य, आदि: आमोसहि विप्पोसहि; अंति: पमाहि हुति लद्धीउ, गाथा-४. २८ लब्धि विचार - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि : आहव० हस्तपादादिकना, अंति: सैन्य रहई सहि जीप . २. पे. नाम. शिव स्तुति सह टीका व बालावबोध, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. शिव स्तुति, सं., पद्य, आदि: वाश्वारेड् ध्वजधक्; अंति: ग्रीवो मुदे वो मृडः, श्लोक-१. शिव स्तुति- टीका, सं., गद्य, आदिः वाच्चारेट् अस्य अंतिः युष्माकं मुदेस्तात्. शिव स्तुति - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: ते मृड् इश्वर तुम्ह; अंति: समास सहित लख्यो छ . ३. पे. नाम. वर्धमान स्तुति सह टीका, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: नमोस्तु वर्द्धमानाय, अंति: मयि विस्तरो गिराम्, श्लोक-३. महावीर जिन स्तुति- टीका, सं., गद्य, आदि: नमोस्तु वर्द्धमानाय, अंतिः जंतु निवृतिं करोति, ५१०२०. दाणसीलतपभावना कुलक, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे (२५.५x११.५, २१४५७). दानशीलतपभावना कुलक, मु. अशोकमुनि, प्रा., पद्य, आदि: देवाहिदेवं नमिउण वीर; अंति: सूरि खमंतु एणं, गाथा - ५०. ५१०२१. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५x११.५, ११४३४). १. पे. नाम. करणसितरिचरणसितरी सज्झाव, पृ. १अ संपूर्ण. चरणसित्तरीकरणसित्तरी सज्झाय, मु. सुजस, मा.गु, पद्य, आदि: पंच महाव्रत दसविध, अंतिः ज्ञानविमल० वाधो जी, गाथा-७. २. पे. नाम. दशवेकालिकसूत्र अध्ययन १ सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. अम्मोमंगल सज्झाय, संबद्ध, मु. जेतसी, मा.गु., पद्म, आदि; धमो मंगल महिमा निलो अंतिः धर्म नामे जय जय कार, गाथा - ६. ५१०२२. सुधरमा देवलोक सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५. ५X१२.५, १३X३८). For Private and Personal Use Only Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ www.kobatirth.org ३४३ सुधर्मदेवलोक सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि सुधरमां देवलोकमा अंति: वाचक० पुनना फल जोईजो, गाथा - ११. ५१०२३. (+#) समवसरण स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. हरगोवन रामजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है. वे., (२५.५x१२.५. १३४२४) समवसरण स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दरीस नयन ठरावजो; अंति: रेहता उशव रंग वधामणा, गाथा- १५. ५१०२४. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५X१२.५, १३x४६). १. पे. नाम. गजसुकमाल सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. न्याय, मा.गु, पद्य, आदि एक द्वारीका नगरी, अंतिः रे के नायमुनि लेसे, गाथा-८, २. पे. नाम. रुखमणी स्वाध्याय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. रुक्मणीसती सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीचरंता गामो गाम; अंति: राजविजय रंगे भणे जी, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा - १५. ५१०२५. (#) संबोधसित्तरी, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४.५X१०.५, १३X३६). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि नमिऊण तिलोयगुरुं अंतिः सो लहड़ न इत्थ संदेहो, गाथा- ७२. ५१०२६. पार्श्वनाथजीरो सिलोको, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४, दे. (२५.५x११.५. १३४३४). पार्श्वजिन सलोको, श्राव. जोरावरमल पंचोली, रा., पद्य, वि. १८५१, आदि: प्रणमुं परमातम अविचल, अंति: जोरा० राजरो अंतरजामी, गाथा-५६. ५१०२७, (+) पदवी द्वार, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ दे. (२५४११.५, १७४१). " २३ पदवी विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सात एकंद्री १ चक्र; अंति: बलदेव१ वासुदेव टल्या. ५१०२८. ३६३ पाखंडी भेद सह वालावबोध, संपूर्ण वि. १८७९ आश्विन अधिकमास शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. १ ले, स्थल, जोधपुर, प्रले. श्राव. हमीरमल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०.५, २६७०). " ३६३ पाखंडी भेद, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: चत्तारिवाइ समोसरणा, अंति: सूत्र इति वचनात् ३६३ पाखंडी भेद- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: च० च्यार वा० वादी; अंति: ते कह्या सर्व . ५१०२९. (०) पंचतीरथ तवन, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १. ले. स्थल, वाल्हीनगर, प्रले. पं. रामविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैवे. (२४.५४११.५, १०x३७). 7 ५ तीर्थजिन स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदिः आवए आवए आदीजीणसरु, अति: मुनी लावण्यसमे भणे ए. गाथा-६, (वि. प्रतिलेखक ने दो गाथा को एक गाथा गिना है.) ५१०३१. नवपद सिद्धिचक्र महिमाय स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., ( २४.५X१०.५, १४X४०). सिद्धचक्रमहिमा स्तवन, मु. कनककीर्ति शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: नवपदनो ध्यान धरीजै; अंति: चक्रनै कोइ न तो हो, गाथा - १५. ५१०३२. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९५६, माघ कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. वीसलपुर, प्रले. मु. चोथमल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, वे., (२५x११.५, १०x३७). पार्श्वजिन स्तवन, मु. कीरत, मा.गु., पच, आदि: श्रीसुगुरु चिंतामण; अंतिः कीरत० पारसनाथ की गाथा १५. ५१०३३. (+) उपधान विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २४.५X१०, १५X४६-४९). उपधानतप विधि, सं., प्रा., गद्य, आदि: पौषध ग्रहणानंतर; अंति: ते मिच्छामि दुक्कडं. ५१०३४. पद व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे ९, दे. (२४.५४११.५, १४४४०). १. पे. नाम. साधुगुण वर्णन, पृ. १अ, संपूर्ण. साधुगुण सज्झाय, मु. मान, मा.गु., पद्य, आदि: एसा साधु नमुं सदा उप; अंति: एहवा वांदु वारंवारा, गाथा-७. २. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. १अ. संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: तुम्ह गरीबन के निवाज, अंति: जन्म सरण तेरे आए, गाथा-४. ३. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सबे दुख टालोगे; अंति: जपे तार तार भव तार, गाथा-३. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. वृद्धिकुशल-शिष्य, रा., पद्य, आदि: जोडी थारी कुण जुडे; अंति: विबुधकुशल दीदार, गाथा-७. ५. पे. नाम. संखेश्वर प्रभु पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पास संखेसरा सार कर; अंति: माहाराज मन रेख भीजो, गाथा-५. ६. पे. नाम. सुवधिजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. सुविधिजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ताहरी अजब सी जोगनी; अंति: कंति० मनमंदर आवोरे, गाथा-५. ७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण. मनवशीकरण सज्झाय, मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: पांच सात सहेलडीरे; अंति: आनंदघन० समरो नाम रे, गाथा-५. ८. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: नरंजण यार हो रे तु; अंति: रूपचंद० सम देव न कोय, गाथा-५. ९. पे. नाम. नेमजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मु. हरखचंद, मा.गु., पद्य, आदि: नेमजी थे कांई हठ माड; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम पद लिखा है.) ५१०३५. (#) सझाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१०.५, १६४५४). १.पे. नाम. जीवकायोपदेश स्वाध्याय, पृ. २अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-जीवकाया, मु. जयसोम, मा.गु., पद्य, आदि: कामिनी कहइं निज; अंति: जयसोम० अरदास हमारी, गाथा-११. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. जयसोम, मा.गु., पद्य, आदि: परभणी तात तुम करि हो; अंति: जयसोम० राज वंदो, गाथा-१४. ५१०३६. (#) तेसठ सिलाका स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पणक का अंश नष्ट, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १०४३९). ६३ शलाकापुरुष स्तवन, मु. वसतो, मा.गु., पद्य, आदि: सदगुरु चरणकमल मन धार; अंति: नमै मुनि वसतौमुदा, गाथा-१८. ५१०३७. (#) आठ मदनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०, १०४३६-३८). ८ मद सज्झाय, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मद आठे महामुनि वारिई; अंति: अविचल पदवी नरनारी रे, गाथा-११. ५१०३९. (+#) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १५४४३). १.पे. नाम. आलोयण पदमावती सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिव राणी पदमावती; अंति: विराधिया चोरासी लाख, ढाल-३, गाथा-४०. २.पे. नाम. लधुशांति स्तोत्र, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: पूज्यमान० जयति शासनं, श्लोक-१९. ५१०४०. चतुर्विंशतिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५४११, १३४३९). For Private and Personal Use Only Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ चतुर्विंशतिजिन स्तुति, आ. धर्मघोषसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: जय वृषभजिनाभिष्ट्रयसे; अंति: इत्यादि कृद्धरंगी, श्लोक-२८. ५१०४१. (#) जिनप्रतिमा स्तवन, मासप्रवेश व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१०, ११-१८४४६-५२). १.पे. नाम. जिनप्रतिमा शास्वत स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. शाश्वताचैत्यनमस्कार स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभानन वर्धमान चंद्र; अंति: सदा मुझ परिणाम ए, ढाल-५, गाथा-१८. २. पे. नाम. मासप्रवेश विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इष्ट स्पष्ट; अंति: साधनीयं चेति तत्त्वं. ३. पे. नाम. मासप्रवेश चंद्रार्कीमते, पृ. १आ, संपूर्ण. मासप्रवेश-चंद्रार्कीमते, सं., पद्य, आदि: कोष्टेष्ट सूर्य विवर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम श्लोक लिखा है.) ४. पे. नाम. आशीर्वाद श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. ५१०४२. (#) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१०.५, १३४४२). १.पे. नाम. गौतमस्वामी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीरजिणेसर केरउ सीस; अंति: नामि संपत्तनी कोडि, गाथा-९. २. पे. नाम. चारमंगल सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ४ मंगल सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: मंगलक पहिलु कहु एह; अंति: जेहनइ योत एबे विरति, गाथा-८. ३. पे. नाम. सोलसतीनी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. १६ सती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सीतल जिनवर करूं; अंति: ते भणी समरो नंसदीस, गाथा-५. ५१०४३. (#) स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०, १२४३८-४२). १. पे. नाम, चतुर्विंशति स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तुति, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: नाभिया जिन वासुपूज्य; अंति: एता प्रयच्छंतु ना, श्लोक-४. २.पे. नाम. शत्रुजय स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ५तीर्थजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीशत्रुजयमुख्य; अंति: ते संतु भद्रंकराः, श्लोक-४. ३. पे. नाम. पंचतीरथी जिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. पंचतीर्थ स्तुति, मु. वीरमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: आबु अष्टापद विमलाचल; अंति: वीरमुनि० पुरो आस, गाथा-४. ५१०४४. सिद्धचक्रजी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४१०.५, ११४२८-३४). सिद्धचक्र स्तवन, मु. सुविधिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १४१७, आदि: सकल सुरासुर सेवत; अंति: सुविधिविजय सुविलास, गाथा-१३. ५१०४५. (#) संबोहसत्तरी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १८४५१). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंति: सोलहइ नत्थि संदेहो, गाथा-७२. ५१०४६. (#) वरदाइनी माता स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. सांडेरानगर, प्रले. मु. तीर्थसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीशांतिनाथजी प्रशादात., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १५४४०). सरस्वतीदेवी छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: शशिकर निकर समुज्वल; अंति: नमु सोइ पूजो सरस्वती, ढाल-३, गाथा-५, (वि. प्रतिलेखक ने तीन गाथा को एक गाथा गिना है.) For Private and Personal Use Only Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५१०४७. (#) सवैया संग्रह व कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, २०४५५). १.पे. नाम. स्त्री स्वभाव-सवैया संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सवैया संग्रह , भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: जिनके सुमति जागी; अंति: (अपठनीय), गाथा-१४. २. पे. नाम. मम्मणश्रेष्ठि कथा, पृ. १आ, संपूर्ण. संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: लुद्धा नराः अर्थ; अंति: दृष्टांत कहेवानो. ३. पे. नाम. ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती कथा, पृ. १आ, संपूर्ण. ब्रह्मदत्त कथा, मा.गु., गद्य, आदि: मूर्खनर काम भोगमाहि; अंति: बांध्यो ते मूर्ख थयो. ४. पे. नाम. परदेशी राजा कथा, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रदेशीराजा कथा, मा.गु., गद्य, आदि: बुद्धिवंतनर क्षमानि; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रारम्भिक पाठ है.) ५१०४८. (#) कका सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, ११४३०). ककाबत्रीसी, मु. जिनवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: कका करमनी वात करी; अंति: जीवऋषई इम वीनवे, गाथा-३०. ५१०४९. स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५४११.५, १२४३८). १.पे. नाम. ग्रहकष्ट निवारण स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. ग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: ग्रहशांतिविधिस्मृतः, श्लोक-११. २.पे. नाम. अंगरक्षामंत्र स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ परमेष्ठि; अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक-८. ५१०५०. बीज सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. मु. देवविजयजी (आणंदसूरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १०४३२). बीजतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बीज कहे भव्य जीवने; अंति: लब्धिविजय ० विनोद रे, गाथा-८. ५१०५१. कलावती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४११.५, ११४३६). कलावतीसती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: नगरी कोसंबीना राजा; अंति: समयसुंदरमुनि० पार रे, गाथा-१३. ५१०५२. थोय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५४१२, ११४३५). १.पे. नाम. चोथनी थोय, पृ. १अ, संपूर्ण. चतुर्थीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सरवारथ सिधथी चव्या ए; अंति: नय धरीने नेह निहालतो, गाथा-४. २.पे. नाम. नंदीसरद्विपनी थोय, पृ. १अ, संपूर्ण. नंदीश्वरद्वीपजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: नंदिसरवर द्विप संभार; अंति: सासनादेवि सानिध किजे, गाथा-४. ५१०५३. (+#) सामायिक विधि आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११, १६x४६). १. पे. नाम. प्रभाती एवं संध्या सामायिक विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सामायिक पारने की विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रथम प्रभाते एकांत, (२)इच्छाकारेण संदेशहः; अंति: करणीभुतं सदा धार्यते. २. पे. नाम. कृष्ण सवैया, पृ. २अ, संपूर्ण. कृष्णभक्ति गीत, क. नरसिंह महेता, पुहिं., पद्य, आदि: धोंधों कट धो धों; अंति: भ्रांत खुलता नरसैया, सवैया-४. ३. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, आदि: नं नं नृत्य नं नं; अंति: ध्रमसीह० देणकुं दोउं, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४७ ग हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ४. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रस्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: लिखित पठित संख्या; अंति: प्रशस्तगुणैः, गाथा-४. ५१०५४. (+#) चंद्रप्रभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १६९८, मार्गशीर्ष शुक्ल, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, २०४४३). चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. नारायण, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सुरासुर जेहना; अंति: नारायण०सदा मंगलमाल ए, गाथा-३३. ५१०५५. (+) नवतत्त्व व तत्त्वभेद विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४११.५, ११४३६). १. पे. नाम. द्रव्य विचार सह टबार्थ, पृ. १अ, संपूर्ण. द्रव्य विचार, प्रा., पद्य, आदि: परिणामी जीव मुत्ता; अंति: सव्वगयं इयर अप्पवेसे, गाथा-१. द्रव्य विचार-विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: निश्चय द्रव्यपरिमाण; अंति: एकबीजामां मिलै नहीं. २. पे. नाम. नवतत्त्व हेयज्ञेयउपादेय विचार, पृ. १अ, संपूर्ण.. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्व१ अजीवतत्व२; अंति: उवाएया क० आदरवायोग्य. ३. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: जीवाश्जीवार पुण्ण३; अंति: अणंतभागो य सिद्धिगओ, गाथा-५१. ४. पे. नाम. नवतत्त्वना भेद, पृ. ४अ, संपूर्ण. नवतत्त्व २७६ भेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्वना १४ अजीव; अंति: नवतत्त्व अजीव जाणवा. ५१०५६. (+#) चैत्यवंदन व स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १२-११(१ से ११)=१, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११.५, १३४४२). १.पे. नाम. नवपद चैत्यवंदन, पृ. १२अ, संपूर्ण. मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धचक्र आराधतां; अंति: विनय कहे कर जोड, गाथा-१४. २.पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन- ढाल ३ से ४, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: कहे मानविजय उवज्झाय, (प्रतिपूर्ण, पू.वि. ढाल ३ से है.) ५१०५७. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, पठ. रंभा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०.५, १०४३६). १.पे. नाम. इलापुत्र सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नाम इलापुत्र जाणीए; अंति: लब्धिविजय गुण गाय, गाथा-९. २. पे. नाम. नमिराजा सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. नमिराजर्षि सज्झाय, मु. लावण्यसमय *, मा.गु., पद्य, आदि: जी हो मिथिला नगरी; अंति: लावण्यसमय० धनउ ___ अणगार, गाथा-८. ५१०५८. (+) स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, १२४४१). १.पे. नाम. अध्यात्म स्वरूपाष्टक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. अध्यात्मस्वरूपाष्टक, उपा. रामविजय, सं., पद्य, आदि: प्रशमरसमयार्हबिंब; अंति: सम्यक्त्वधारी नरः, श्लोक-९. २.पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. क. रूपचंद, सं., पद्य, आदि: वितत्पापिसंत्तिमात्म; अंति: श्रेणिं सतांदद्यात, श्लोक-९. ५१०५९. सील सिझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२४.५४१०.५, ८४३६). औपदेशिक सज्झाय-परनारीपरिहार, ग. कुमुदचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सुणि सुणि कंतारे; अंति: कुमुदचंद समूजलौ, गाथा-१०. For Private and Personal Use Only Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५१०६०. (#) विहरमान जिन यंत्र व आत्मा विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. वगडी, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५-२५.५४११, २१४४१). १.पे. नाम. वीस विहरमान विवरण, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन विवरण, मा.गु., को., आदि: श्रीमंधरस्वामी; अंति: विजया अजोध्यानगरी. २.पे. नाम. आत्मा के ८ भेद, पृ. १आ, संपूर्ण. आत्मा के ८ नाम-भगवतीसूत्र, मा.गु., गद्य, आदि: द्रव्यात्मा १ कषाय; अंति: हुवै अल्प बहु जाण. ५१०६१. प्रश्नोत्तर विचार, संपूर्ण, वि. १९५४, फाल्गुन शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. मांडवीबंदर, प्रले. कुवरजी हीराचंदजी लहिया; लिख. पं. विजयपाल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १५४४५). प्रश्नोत्तर विचार, मा.गु., गद्य, आदि: कोई कहे तप संयमथी; अंति: बांध्या देवता थया, प्रश्न-१९. ५१०६३. (-#) चउवीस तीर्थकर स्तवन, संपूर्ण, वि. १८५६, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ९४२४). २४ जिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: पहिला प्रणम् आदि; अंति: करूं प्रणाम, गाथा-७. ५१०६४. नेम राजुल सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. पं. धनसौम्य, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१०.५, ९४३२). नेमराजिमती सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गोखेरे बेठी राजुल; अंति: लब्धि० शुभ युगते रे, गाथा-९. ५१०६५. गँहुली, भास व श्लोक, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५४११, १७४४७). १. पे. नाम. विशालसोमसूरि गुरुगुण गँहुली, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: उरगि रातीरे गँहुली; अंति: पति प्रतिपुण्य जगीस, गाथा-५. २. पे. नाम. विशालसोमसूरि गुरुगुण भास, पृ. १अ, संपूर्ण. ग. हर्षविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सांमिण वीनवू; अंति: सुख संपत्ति सार रे, गाथा-९. ३. पे. नाम. श्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. ५१०६६. (#) सज्झाय व बारहमासा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ३३४१८). १. पे. नाम. तेर काठियानी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण... १३ काठिया सज्झाय, आ. आणंदविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमु श्रीगौतम; अंति: आणंदविमलसूरिसर कहि, गाथा-१५. २. पे. नाम. नेमराजिमती बारमासो, पृ. १आ, संपूर्ण. वा. भानुचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सावन विरहेनी सकुंचथी; अंति: भानुचंद० गुण गाया, दोहा-१०. ५१०६७. (#) शनीश्चर देव छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११, १४४४१). शनिश्चर छंद, मु. देवरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: शुभमतिदा गुरु शारदा; अंति: जय शनीश्वर देव जयजय, गाथा-२१. ५१०६८. (#) स्तवन व गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. १८१७, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, प्रले. मु. रामविजय (गुरु पंन्या. गुणविजय); गुपि.पंन्या. गुणविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १२४४१). १. पे. नाम. साधरणजीन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: जब माहाराज कृपा करे; अंति: बहुं नवनिध थावे, गाथा-५. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन पद, आ. कीर्तिसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: दरिसण देखन रिषभ को; अंति: प्रभु लज्जा वहीइं, गाथा-४. ३. पे. नाम. गोडीजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु गोडीचा पासजी; अंति: नामथी होइ मंगलमाला, गाथा-५. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जिनराज, पुहि., पद्य, आदि: कहा अग्यानी जीवकुं; अंति: जिनराज० सहज मिटावै, गाथा-३. ५. पे. नाम. वासुपूज्य स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. जीतचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासपूज्य जीन बार; अंति: इम जीतचंदे नितमेवरे, गाथा-५. ६. पे. नाम. अतरिकजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन गीत, मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: मेरे एही ज चाहीइं; अंति: करो कछु ओर न चाहु, गाथा-३. ५१०६९. (+#) महावीर पाट पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२५४११.५, १९४३९). महावीरजिन पट्टावली, मा.गु., गद्य, आदि: अजसुहम१ जंबूर प्रभ; अंति: वचन सत्य करी मानइ. ५१०७०.(+) ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. क्षेपकश्लोकान्निराकृत्य मूलयंत्रकल्पानुसारेणेदं स्तोत्रं लिखितं. ऐसा लिखा है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२५.५४१२, १५४४१). ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्य; अंति: लभ्यते पदमुत्तमम्, श्लोक-६३. ५१०७१. (#) बिंब प्रवेश विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१२, १६४५१). जिनबिंबप्रवेशस्थापना विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रथम उत्तम मुहुर्त; अंति: नैवेद्य भाजन मूंकवा. ५१०७३. (+#) विवाह पटल भाषांतर, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, १५४३७). विवाह पद्धति, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसद्गुरु वाणी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा २६ अपूर्ण तक है.) ५१०७४. नवपद वासक्षेप पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४११.५, १०४३७). नवपद वासक्षेप पूजा स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत पद ध्यातो थको; अंति: वासंयजामहे स्वाहा, गाथा-१०. ५१०७५. (+#) समवसरण स्तोत्र व यंत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पंचपाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२४.५४१०.५, १७४५९). १.पे. नाम. समवसरण स्तोत्र सह अवचूरि, पृ. १अ, संपूर्ण. समवसरण स्तव, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, आदि: थुणिमो केवलीवत्थं; अंति: कुणउ सुपयत्थं, गाथा-२४. समवसरण स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: कंचनेत्यलं प्रसंगेन, (वि. आदिवाक्य दीमक भक्षित है.) २. पे. नाम. समवसरण यंत्र स्थापना विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. समवसरण यंत्र स्थापन विधि, सं., गद्य, आदि: प्राणां बाह्य प्रतो; अंति: (-), (वि. यंत्र सहित. अंतिम वाक्य खंडित है.) ५१०७६. (+#) जिनरक्षितजिनपाल चौढाल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. टिप्पणयुक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१०.५, १४४३६). जिनपालजिनरक्षित चौढालियो, रा., पद्य, आदि: अनंत चोवीसी आगे हुई; अंति: जासी मोखरे, ढाल-४, गाथा-६८. ५१०७७. (+#) नमी पव्वजा अध्ययन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १२४२९). उत्तराध्ययनसूत्र- अध्ययन ९, हिस्सा, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., पद्य, आदि: चईऊण देवलोगाउ उववन्न; अंति: नमीराए रिसी त्तिबेमि, गाथा-६२. ५१०७८. (#) सीलोपदेशमाला, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर मिट गए हैं, जैदे., (२५.५४११, १६x४१). शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १०वी, आदि: आबालबभयारि नेमि; अंति: आराहइ लहइ बोहि __ फलं, कथा-४३, गाथा-११५, (वि. अंतिमवाक्य अस्पष्ट है.) For Private and Personal Use Only Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५१०७९. (+) स्तुति, स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ८, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, १२४२९). १.पे. नाम. सीमंधरजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: महीमंडणं पुन्नसोवन; अंति: देहि मे सुद्धनाणं, गाथा-४. २.पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमंडन, प्रा., पद्य, आदि: वरमुत्तिय हार सुतारग; अंति: सुहाणि कुणे सुसया, गाथा-४. ३. पे. नाम. पार्श्व स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित जेसलमेरमंडन, सं., पद्य, आदि: समदमुत्तमवस्तु महाफण; अंति: जयतिसा जिन शासनदेवता, श्लोक-४. ४. पे. नाम. स्तुति ऋषभ, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: युगादिपुरुषंद्राय; अंति: कूष्मांडी कमलेक्षणा, श्लोक-४. ५. पे. नाम. जिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति प्रत के हासिये में लिखी गई है. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: वीरं देवं नित्यं; अंति: दद्यात्सौख्यम्, श्लोक-१. ६.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. माणिक, मा.गु., पद्य, आदि: म्हारा नाथजी ए; अंति: ए माणेकविजै माथे हाथ, गाथा-७. ७. पे. नाम. चेलणा सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. चेलणासती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर वांदी वलतां थकां; अंति: पांमीयो मुक्तिनो राज, गाथा-७. ८. पे. नाम. सचितअचित सीझाय, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. सचित अचित सज्झाय, मु. वीरविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रणमुं श्रीगोतम; अंति: विरविमल करजोडी कहइ, गाथा-१८. ५१०८०. (+) एकवीस ठाणा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२५.५४१२, ११४३९). २१ स्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: चवण विमाणा नयरी जणया; अंति: असेस साहारणा भणिया, गाथा-६६. ५१०८१. प्रकरण वस्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, गुरुवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, ले.स्थल. वीसलपुर, प्रले. मु. हीराचंद ऋषि (गुरु मु. मनरूपजी); गुपि. मु. मनरूपजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, २७४३६). १.पे. नाम. नमीपवज्झा ज्झयणं, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८९१, पौष कृष्ण, १३. उत्तराध्ययनसूत्र- अध्ययन ९, हिस्सा, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., पद्य, आदि: चइऊण देवलोगाओ उवयन्न; अंति: नमीरायरिसि त्ति बेमि, गाथा-६२. २. पे. नाम. वीरत्थुइनामी ज्झयणणं, पृ. १आ, संपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण; अंति: आगमिस्सति त्तिबेमि, गाथा-२९. ३. पे. नाम. महावीर स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पंचमहव्वयसुव्वयमूलं; अंति: दुक्करं जे करती ते, गाथा-४. ४. पे. नाम. गणधर महिमा पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: चवदे पूर्वधार कहीयै; अंति: श्री साधु वीतरागी, गाथा-३. ५१०८२. (+) वीर स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १८४४६). सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण; अंति: आगमिस्संति त्तिबेमि, गाथा-२९. For Private and Personal Use Only Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ५१०८३. (+) शास्वती जिन प्रतिमा स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २४.५X११, १३४३८). शाश्वतजिन प्रतिमा स्तवन, मु. नयरंग, मा.गु., पद्म, आदि ऋषभ अजित संभव सदा अंतिः नवरंग० कमला भोगवइ. गाथा - ४१. ५१०८४. क्षमा छत्रीशी व अनाथीऋषि सज्झाय, संपूर्ण वि. १८१२ ज्येष्ठ कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, ले. स्थल, कालद्रीनगर, जैदे. (२५.५४११.५ १३४३७). " १. पे. नाम . क्षमा छत्रीसी, पृ. १अ - २आ, संपूर्ण. क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदिः आदरि जीव क्षमागुण; अंति: समयसुंदर०संघ जगीस जी, गाथा - ३६. २. पे. नाम. अनाथीऋषि सज्झाय, पृ. २आ- ३आ, संपूर्ण. अनाथीमुनि सज्झाय, पंन्या. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मगधाधिप श्रेणिक, अंतिः बोलई मुनि रांम कि, गाथा-३०. ५१०८५. सीमंधरस्वामी विनती व जिनभक्ति पद, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १. कुल पे. २, जै, (२५.५X१०.५, ११४३८). १. पे. नाम. सीमंधिरस्वामी वीनती, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन विनती, मा.गु., पद्य, वि. १८५०, आदि: वाला एकमे ओलख्या सीम, अंति: अमने छे तमारी आस, गाथा - १६. २. पे. नाम पदवारी, पृ. ९आ, संपूर्ण जिनभक्ति पद, मु. जिनदास, मा.गु., पद्य, आदि: जिनचरण उपर गंद्रप; अंति: जिनभक्ति कुं रचावतां, गाथा- ७. ५१०८६. सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५X११.५, १५X३६). १. पे. नाम. चेतन सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. आत्मोपदेशिक सज्झाय, रा., पद्य, आदि: चैतन अनंत गुणरोरे, अंति: भगवंतजीरा प्रसाधसुं गाधा- १७. २. पे. नाम. उपदेशकी ढाल, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, रा., पद्य, आदि: च्यार गत न चोरासी; अंति: देव पदवी पामो री लो, गाथा- ६. ३५१ ५१०८७, (+०) सज्झाय व पद, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १. कुल पे. २. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५.५x११.५, १४४४४). " १. पे. नाम वृद्धावस्था सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय- बुढापा, मु. मान कवि, मा.गु., पद्य, आदि: सुगण बुढापो आवीयो; अंति: इम कहे कवि मान, गाथा - १६. २. पे. नाम. जिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद - योवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदिः योवनीयानी फोजां मोज; अंति: वातां कहीये जेहथी रे, गाथा-५. ', ५१०८८. आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९२७ श्रावण शुक्ल ९, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल अमदावाद, प्रले. खेमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रतिलेखक ने भूल से शीर्षक नेमजिन स्तवन लिख दिया है. कुल ग्रं. १४. जैवे. (२५४११.५, ९४२९)आदिजिन स्तवन, मु. महिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बालुडो निःस्नेही थइ, अंतिः महिमा शिवसुख धाय, गाथा- ५. ५१०८९. सज्झाय, स्तोत्र व मंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२५.५X१२, १२३५). १. पे नाम. इलाची सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण. इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु, पद्य, आदि नामे एलापूत्र जाणीइं अंतिः लब्धिविजय गुण गाय, For Private and Personal Use Only गाथा - १०. २. पे. नाम. पार्श्वजीन स्तोत्र. पू. १ अ- १ आ. संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव - चिंतामणि, उपा. देवकुशल पाठक, सं., पद्म, आदि: नमदेवनागेंद्रमंदार, अंतिः चिंतामणिपार्श्वनाथ, श्लोक- ७. ३. पे. नाम. शांतिनाथनो मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जैन मंत्र संग्रह-सामान्य , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५१०९०. (+) पार्श्व नमस्कार व दूहा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११.५, ११४३०-३३). १.पे. नाम. नमस्कार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वरतीर्थ, मु. मेघराज, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सार सुरतरू जग; अंति: त्रिभुवन तिलो, गाथा-६. २.पे. नाम. दुहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, मु. केसवदास, मा.गु., पद्य, आदि: कुटन तेरो वाप जाय; अंति: केसव० भेद कवित्त, गाथा-२. ५१०९१. दशवैकालिकसूत्र-गाथा १७, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११.५, ११४२६). साधुसाध्वी के बोलने योग्य गाथा, संबद्ध, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगल मुक्किट्ठ; अंति: निग्गंथाणं महेसिणं, गाथा-१७. ५१०९२. अष्टमी स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४१२, १३४४१). अष्टमीतिथि स्तुति, उपा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टमी जिन चंद्रप्रभ; अंति: राज० अष्टमी पोसह सार, गाथा-४. ५१०९३. आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८०६, भाद्रपद अधिकमास कृष्ण, ११, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. द्रंग, प्रले. मु. कमलाब्धि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, ९४३३). आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: नमो नमो श्रीआदि; अंति: ज्ञानविमल मति जागी, गाथा-१०. ५१०९४. (#) उपदेश छत्रीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. जफर, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १७४४४). उपदेश छत्रीसी, ऋ. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८६६, आदि: सबद करी सतगुरु समझाव; अंति: सुणता पातक नासेरे, गाथा-३६. ५१०९५. सज्झाय व स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, पठ. मु. भोरिद्र सागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११.५,१३४३९). १. पे. नाम. समकित सिझाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सम्यक्त्व सज्झाय, मु. शय्यंभवरत्नसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: गोयम गणहर करूं; अंति: तस समरूं निस दिस, गाथा-१५. २. पे. नाम. ऋषभ स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-चतुर्थीतिथि, सं., पद्य, आदि: उद्यत्सारं शोभागारं; अंति: दृयातारा भूतेस्यात्, श्लोक-४. ५१०९६. शांति स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४१२, २८x१९). शांतिजिन स्तवन, मु. खेम, मा.गु., पद्य, वि. १७४२, आदि: श्रीशांतिजिनेसुर; अंति: आणमिल्यां को सरण गहो, गाथा-१३. ५१०९७. (#) तप ग्रहण व उजमणा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, कार्तिक कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. पाली, प्रले. पं. चिमनसागर गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीशांतिनाथ पार्श्व सुपार्श्वनाथ प्रसादात्, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १६x४६). १. पे. नाम. पंचमी तप विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ पंचमीतपउच्चारण विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: इरियावही पडिक्कमीइं; अंति: सुनावी वासक्षेप कीजै. २. पे. नाम. पंचमी तप उजमण विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. पंचमीतिथितप उजमणा विधि, मा.गु., प+ग., आदि: पंचमी तथा ६ने दिहाडै; अंति: मने मिच्छामि दुक्कडं. ५१०९८. (#) दिशाण भद्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १५४४२). दशार्णभद्र सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सारद बुधदाइ सेवक; अंति: लालविजय निसदीश, गाथा-१८. For Private and Personal Use Only Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ३५३ ५१०९९. (+#) पडिलेहण विचार संग्रह सह टबार्थ व सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, ५४३९). १.पे. नाम. पडिलेहणा कुलं, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रतिलेखनबोल गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सुतत्थतत्थदिट्ठी; अंति: तणत्थं मुणि बिंति, गाथा-५. प्रतिलेखनबोल गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सूत्र अर्थतत्त्वनइं; अंति: अर्थे जती बोलै. २. पे. नाम. थापनाचार्यरी पडिलेहण, पृ. १आ, संपूर्ण. स्थापनाचार्यजी १३ पडिलेहण गाथा, प्रा., पद्य, आदि: कट्ठ २५ वत्थं २५; अंति: १३ ठवणा मुणेयव्वा, गाथा-१. स्थापनाचार्यजी १३ पडिलेहण गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पाटपाटलानी पडिलेहण; अंति: थापनाचार्यरी जाणवी. ३. पे. नाम. विचार सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. असनादिक कालप्रमाण सज्झाय, मु. वीरविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रणमु श्रीगौतम; अंति: सेवकजण करजोडी कहइ, गाथा-१९. ४. पे. नाम. सुत्ते अत्थे, पृ. १आ, संपूर्ण. ७ मांडला गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सुत्ते१ अत्थे२ भोयण३; अंति: वियतहा ७ सत्तईया, गाथा-१. ५११००. (#) नंदिषेण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ११४३६). नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. दशरथ, मा.गु., पद्य, आदि: नंदषेण नयर मझारि आव; अंति: सुख पाइये हो लाल, गाथा-११. ५११०१. दस बोल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, १२४४३). १० बोल सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: स्यादवाद मति श्रीजिन; अंति: श्रीसार० रतन बहुमूल, गाथा-२१. ५११०२. (-#) छंद संग्रह, संपूर्ण, वि. १८२६, आषाढ़ कृष्ण, १४, रविवार, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्रले. पं. जिनरंगसागर; पठ.पं. गणपतिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १४४४२). १. पे. नाम. पश्चिमाधिपतीजीरो छंद, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. पश्चिमाधीश छंद, बीदर, मा.गु., पद्य, आदि: माता दश मातंगनी पिता; अंति: बीदर० पश्चिमरोधणी, गाथा-२५. २.पे. नाम. माणिभद्रजीरो छंद, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. माणिभद्रवीर छंद, मु. लालकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति भगवती भारती; अंति: लालकुसल लिक्ष्मी लही, गाथा-१९. ५११०३. (+) नवतत्त्व प्रकरण व पुण्य कुलक, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११.५, ११४३४). १. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: अणागयद्धा अणतगुणा, गाथा-४४. २. पे. नाम. पुण्य कुलक, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रा., पद्य, आदि: इंदियत्तं माणुसत्तं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ४ अपूर्ण तक है.) ५११०४. नवतत्त्व प्रकरण व एलाचीपुत्र सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, १२४३५). १.पे. नाम. नवतत्व प्रकरण, पृ. १आ-४आ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाश्जीवार पुण्णं३; अंति: नाहं मरणस्स बीहामि, गाथा-५४. २.पे. नाम. एलाचीपुत्र सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण. इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नामे एलाचि जाइए धनदत; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ३ अपूर्ण तक लिखा है.) ५११०५. (+) कायस्थिति प्रकरण सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. पाटण, पठ. ग. कपूरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १६४६२). कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमंडनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जहत्तुह दसण रहिउ; अंति: अकायपयसंपयं देसु, गाथा-२४. For Private and Personal Use Only Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३५४ www.kobatirth.org कायस्थिति प्रकरण- टीका, आ. कुलमंडनसूरि, सं., गद्य, वि. १५वी, आदि: वर्द्धमानं जिन, अंतिः भ्यधिकपूर्वकोटिरिति ५११०६. पाखी खामणां, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. कुल ग्रं. १६, दे., (२५X१२, १०x३१). क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: पिगं च मे जंभे, अंतिः नित्थारग पारगा होह, आलाप ४. ५११०७. आषाडाभूति सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, वे. (२५४१२, १३x४२). "" फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १७४७). १. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. आषाढाभूतिमुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीश्रुतदेवी चित्त; अंति: भावरत्न सुजगीस रे, ढाल -५, गाथा - ३७. ५११०८. (०) पदसंग्रह, संपूर्ण, वि. १८२५, चैत्र कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. १. कुल पे. ९, ले. स्थल, सेवडीग्राम, प्र. वि. अक्षरों की स्याही मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि देख्या दरसण तिहारा अंतिः रूपचंद० वैर हजारा रे, गाथा-४. २. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: किस दूतीने भोलायां; अंति: जगत जाल सा देखाया रे, गाथा- ६. ३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि दिल दाम हरम जानी दोस, अंति नाथ निरंजन न्यारा है, गाथा-४. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साधारणजिन पद, पुहिं, पद्य, आदि; प्यारो कौन बतावै रे अंति; चरनां लग पौहचावैरे, गाथा-४. ५. पे. नाम. नेमराजिमति पद, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: मोहल चढि माहरा नाथनी, अंति: रूपचंदछै खुस्याली रे, गाथा- ३. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन होरी, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. रत्नसागर, पुहिं., पद्य, आदि: रंग मच्यो जिनद्वारि; अंति: रत्नसागर बोले जयकार गाथा- ७. ७. पे. नाम, साधारणजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. हर्षचंद, पुहिं, पद्य, आदि देखो महिमा अनुभव अंतिः हर्षचंद० सुख निधान की गाथा ५. " ८. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, प्र. १आ, संपूर्ण. जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: तुं आतमगुण जाण रे; अंति: वनारसी०कौन उतारै पार, गाथा - ९. ९. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. २. पे नाम, चंद्रसूर्यग्रहण असझाच, पृ. २१-३अ, संपूर्ण, मा.गु., गद्य, आदि: असज्झाह ते किम किणहि अंतिः इसके प्रोक्तमस्ति ३. पे. नाम. सूतक विचार, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-बुढ़ापा, मु. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि आयो रे बुढापो वेरी, अंतिः भूधर० पीछताव प्रानी, गाथा-४. ५११०९. असझाय व विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ५, दे., (२५.५X११, ११×३८). १. पे. नाम. असझाव विचार, पृ. १अ २आ, संपूर्ण. असज्झाय विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सूक्ष्म रज आकाश थकी; अंति: तिहां सुधी असज्झाय. मा.गु., गद्य, आदि: पुत्र जन्म्यां १०; अंति: नहीं तो दिन १ सूतक. ४. पे. नाम. वस्तु विचार, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. पकवान आदि कालमान विचार संग्रह, पुहिं., गद्य, आदि: रोटी प्रहर ४ सीरो, अंति: सचित्त जांणी वर्ज... ५. पे. नाम. जन्म सूतक, पृ. ४अ ४आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only सूतक विचार, पुर्हि, मा.गु, गद्य, आदि: पुत्र जन्मे तो दिन अंतिः संमूर्छन ज जीवोत्पति. ५१११०. दस दृष्टांत, संपूर्ण, वि. १६७०, आश्विन कृष्ण, ७, शुक्रवार, जीर्ण, पृ. ४, प्रले. मु. धना ऋषि, अन्य. सा. रूपा आर्या, सा. लीला आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X११.५, १४X३३). Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ मनुष्यभवदुर्लभता १० दृष्टांत काव्य, प्रा.,सं.,मा.गु., पद्य, आदि: चूल्लग१ पासगर धन्न३; अंति: पूर्वाचार्य एहवु कहि, श्लोक-११. ५११११. (+-) दश कल्पवृक्षादि विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अशुद्ध पाठ., जैदे., (२५४११, १४४३८). विचार संग्रह *, मा.गु., गद्य, आदि: मत्तंगा १ भुंगाख्या; अंति: ङाग ए वेगा गति. ५१११२. (#) राइसंथारा विधिव प्रस्ताविक श्लोक, संपूर्ण, वि. १६०२, वैशाख शुक्ल, ५, शनिवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. अहम्मदावाद, प्रले. पं. मतिसागर (गुरु आ. जिनचंद्रसूरि, खरतरगच्छ); गुपि. आ. जिनचंद्रसूरि (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३४२८). १.पे. नाम. राईसंथारा गाथा विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसिही निसिही निसीहि; अंति: भूएसु वेरमज्झन केणइ, गाथा-१५. २.पे. नाम. प्रस्ताविक श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह-, सं., पद्य, आदि: भोजनं च सुता कीर्ण; अंति: (-), श्लोक-१. ५१११३. (+) विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ८, प्र.वि. त्रिपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११.५, २१४६६). १.पे. नाम. सम्यक्त्व प्रकरण अवचूरि, प्र. १अ-३अ, संपूर्ण. सम्यक्त्वपच्चीसी, प्रा., पद्य, आदि: जह सम्मत्तसरूवं; अंति: हवेउ सम्मत्तसंपत्ति, गाथा-२५. सम्यक्त्वपच्चीसी-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: यथा येन औपशमिकत्वादि; अंति: भवत्विति सुगममन्यत. २. पे. नाम. प्रस्ताविक श्लोक सह टिप्पण, पृ. ३अ, संपूर्ण, पे.वि. इस कृति का अंश पृष्ठ ३आ पर भी है. सुभाषित श्लोक संग्रह * पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: वंदन नमस्कारणं दानं; अंति: (-). सुभाषित श्लोक संग्रह-टिप्पण, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ३.पे. नाम. इरियावही कुलक, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: चउदस पय अडचत्ता तिगह; अंति: पमाणमेयं सुए भणियं, गाथा-१०. ४. पे. नाम. प्राणातिपातविरमण १७६ भेद विचार, पृ. ३आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: सव्वाउ पाणाइवायाउ; अंति: २३ सर्व संख्या १७६. ५. पे. नाम. सम्यक्त्वना अतिचार, पृ. ३आ, संपूर्ण. श्रावक व्रत १२४ अतिचार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सम्यक्त्वना अतिचार ५; अंति: ८ एवं सर्व १२४. ६. पे. नाम. सम्यक्त्व भेद विचार, पृ. ३आ, संपूर्ण. मिथ्यात्व भेद विचार संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: अभिग्रहेणेदमेव दर्शन; अंति: प्रकारं मिथ्यात्वं. ७. पे. नाम. पाखंडी ३६३ भेद विचार, पृ. ३आ, संपूर्ण. ३६३ पाखंडी भेद, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: १८० क्रियावादिना ८४; अंति: ३६३ पाखंडिनो भेदा. ८. पे. नाम. अक्षौहिणीसैन्यमान प्रमाण संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. प्रा.,सं., पद्य, आदि: नव सहस्स गय वराणं नव; अंति: नराण नव कोडि कोडाउ, गाथा-३. ५१११४. (+#) सोलकोठा यंत्र सह बीजक व विजय यंत्र कल्प, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२४.५४११.५, १५४४५). १.पे. नाम. सोल कोठा यंत्र सह बीजक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. यंत्रफल चौपाई, पंडित. अमरसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: जिण चउवीसइ पय पणमेवि; अंति: अमरसुंदर० परमारथ लहइ, गाथा-१६. यंत्रफल चौपाई-बीजक, सं., गद्य, आदि: वांच्छा कृतार्थिकृत; अंति: उपरि कोठइ आकमांडीइ. २. पे. नाम. विजययंत्र कल्प, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सं., पद्य, आदि: पुट्विंचिय नेरईए; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ७ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५६ ५१११५. नेम स्तवन व औपदेशिक सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५x१२, १३X३४). १. पे. नाम, नेम तवन, पृ. ९अ, संपूर्ण. मराजिमती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सुन सुन सहेलडी हे एक अंति: हर कुलचंद्र माहे, गाथा- १०. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मा.गु., पद्य, आदि: काया बोलै जीवस्यूं; अंतिः भइया ये खोटो संसार, गाथा - १६. ५१११६. (+) नेमराजुल सज्झाय व हनुमान झूलणा, संपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित अशुद्ध पाठ. टिप्पणक का अंश नष्ट, दे., (२५.५X११.५, १३X३०). १. पे. नाम. नेमराजुल सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल कहे सुणो नेमजी, अंति: रामविजय रहो धन बिनवे, गाथा-८. २. पे. नाम. हनुमान झूलणा, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. गोपाल, पुहिं., पद्य, आदि: करु सात समुद के एक; अंति: गोपाल महा सुख पावै, गाथा-५. ५१११७. वडीदीक्षा तप विधि, संपूर्ण, वि. १८१२, आश्विन कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. पं. क्षेममाणिक्य गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२४.५४१०५ १५४४३). " asiदीक्षा अनुयोग विधि, प्रा., सं., मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम सुभदिने चंद्र, अंति: क्रिया मध्ये र... ५१११८. (+) जिनपंजर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, ७५२५). , जिनपंजर स्तोत्र, आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह, अंतिः श्रीकमलप्रभाख्यः श्लोक-२५. ५१११९. (#) थुलभद्र नौरसीया, संपूर्ण, वि. १९४३, भाद्रपद शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. सा. मोहनी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X१२.५, १८x४७). स्थूलभद्रमुनि नवरसो, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदिः सुखसंपति दायक सदा, अंति: उदयरत्तन ० फल्या रे, बाल- ९. ५११२०. (+#) पद्मावती आलोचणा, संपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५.५११.५ १२४३५). पद्मावती आराधना उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि हिव राणी पदमावती, अंतिः समयसुंदर ० पणानुसार, ढाल -३, गाथा - ३६. ५११२१. (४) गौतमस्वामी प्रभाती व प्रभात वंदन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, वे. (२५४१२, ११४३१). १. पे. नाम गौतमस्वामिनो प्रभातियो पृ. १ अ १आ, संपूर्ण. मस्वामी अष्टक, मु. धीरविजय, मा.गु, पद्य, आदि पहिलो गणधर वीरनो रे अंतिः धीर नमे निसदीस, गाथा- ९. २. पे. नाम. प्रभात वंदना, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. चंद्रकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदिः प्रभाते उठि करुं; अंति: चंद्रकीर्ति० रे थाय, गाथा-४. ५११२२. सीमंधरस्वामी स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, दे. (२५x१२, १०X३२). सीमंधरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: वालो मारा सीमंधरसाम; अंति: कह्युं नें मे दधूं. For Private and Personal Use Only ५११२३. नेमराजुल बारमासो, संपूर्ण, वि. १८५१, आषाढ़ कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. जावालनगर, प्रले. श्राव. किसना, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्री सुमतिनाथजी प्रसादात, जैदे., (२५x१२, १३४३१). नेमराजिमती बारमासो, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावण मासे सांम मेल, अंति: कवीयण० सिरनामी रे, गाथा - १३. ५११२५. () भगवतीसूत्र सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २. प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे.. (२५X१०.५, १०X२८). Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ भगवतीसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: वंदीय प्रणमी प्रेम; अंति: विनयविजय उवझाय रे, गाथा-२१. ५११२६. (+) पुन्यकुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, ५४३४). पुण्य कुलक, प्रा., पद्य, आदि: इंदियत्तं माणुसत्तं; अंति: ते सासयं सुक्खं, गाथा-१०. पुण्य कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पांच इद्रीय पडिवडा; अंति: तिहा तिहा रही गडवाल. ५११२७. सरस्वती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८४८, फाल्गुन कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, ११४३०). सरस्वतीदेवी छंद, आ. दयासूरि, मा.गु., पद्य, आदि: बुद्धि विमल करणी; अंति: दयासूर० नमेवी जगपति, गाथा-९. ५११२८. मल्लिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पठ. श्राव. काजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १४४३८). मल्लिजिन स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवन प्रभुरो मल; अंति: पासचंद० शव सुख लहइ, गाथा-१९. ५११२९. (#) मेघकुमार सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११, १५४३७). मेघकुमार सज्झाय, मु. प्रेम मुनि, पुहिं., पद्य, आदि: वीर जिणेसर आवीया राज; अंति: प्रेम० गुण गावइ रे, ढाल-३, गाथा-२३. ५११३०. (-) सझाय व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२५.५४११.५, १६४३९). १. पे. नाम. साधुना २७ गुणनी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, प्रले.ऋ. खीमजी, प्र.ले.पु. सामान्य. साधुगुण सज्झाय, मु. वल्लभदेव, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सिद्ध संजतनइ वंद; अंति: वल्लभदेव० करुणा करी, गाथा-१६. २. पे. नाम. चोवीसजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: आदि जिणेसर पहेला; अंति: धन महत जेथी ए जती, गाथा-७. ५११३२. सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२५४११, २०४५७). १.पे. नाम. शालिभद्र सज्झाय, पृ. ५अ, संपूर्ण. शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: वीरवचन वयरागीयो जी; अंति: सुंदर० ऋषि सालिकुमार, गाथा-१५. २.पे. नाम. प्रमाद सज्झाय, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. वैराग्यपच्चीसी, मु. गोपालदास, पुहि., पद्य, आदि: इह प्रमादी जीव जग; अंति: गोपाल० वकुंठ ले जाई, गाथा-२५. ३. पे. नाम. कर्मफल सज्झाय, पृ. ५आ, संपूर्ण. कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: देव दाणव तीर्थंकर; अंति: रिद्धिहलष० नहि कोई, गाथा-१८. ५११३३. (+) सझाय, निशीथसूत्र चर्चा व ४ गति लक्षण, संपूर्ण, वि. १९०४, इंद्र निधि नभ युग, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, प्रले. सोभाराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२४.५४१२, २०७४६). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण... औपदेशिक सज्झाय-जीवशीखामण, मु. रतनचंद ऋषि, पुहि., पद्य, वि. १९०१, आदि: मनुष्य देह दुलबलही; अंति: जिणवाणीसुं तौलै रे, ढाल-२, गाथा-२९. २. पे. नाम. चरणसित्तरीकरणसित्तरी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रतनचंद ऋषि, पुहिं., पद्य, वि. १९०४, आदि: श्रीजिणवर वाणी कही; अंति: रतनचंद० धर पे मोरे, गाथा-१९. ३. पे. नाम. निशीथसूत्र चर्चा, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. ___ संबद्ध, मु. रतनचंद ऋषि, पुहिं., गद्य, वि. १८९९, आदि: संवत १८९९ चतुर्मास; अंति: घडीयानी तिथ किम मानी. ४. पे. नाम. ४ गति २४ लक्षण, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: कषाय घणी हुइ अमेलता; अंति: सील उपर घणा राग होइ. For Private and Personal Use Only Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५११३४. प्रतिक्रमण सूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४.५४११.५, २०४५६). १. पे. नाम. श्रावकप्रतिक्रमण सूत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामी जिणे चउवीसं, गाथा-४३. २. पे. नाम. क्षामणकसूत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छाकारेण संदिसह; अंति: मिच्छामि दुक्कड, आलाप-४. ३. पे. नाम. आयरियउवज्झायसूत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. आयरियउवज्झायसूत्र-प्रतिक्रमणसूत्रगत, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: आयरिय उवज्झाय सीसे; अंति: (-), गाथा-१, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम गाथा है.) ५११३५. संवर द्वार व १६ सत्यवादी सझाय, संपूर्ण, वि. १८२३, मार्गशीर्ष शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, १६४३९). १. पे. नाम. संवर द्वार, पृ. १अ, संपूर्ण. संवर सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर गोयमने कह; अंति: गति हेल्या ज्यु तिरो, गाथा-६. २. पे. नाम. षोडश सतवादी स्वध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण. १६ सत्यवादी सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., पद्य, आदि: ब्रह्मचारी चूडामणी; अंति: खेम भणै सुखकार हो, गाथा-१९. ५११३६. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्रले. मु. शिवजी ऋषि; पठ. श्रावि. वीरा बाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११, १५४४५). १. पे. नाम. अनंतचउवीस स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन-अनंत, मु. मनोहर, मा.गु., पद्य, आदि: सयल जिणेसर पाय नमु; अंति: मनोहर० संघ जय जयकार, गाथा-१८. २. पे. नाम. विहरमानजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन स्तवन, मु. गुणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: वछ वीजय सोहामणो रे; अंति: गुमसागर० घाट रे, गाथा-७. ५११३७. बारह भावना, संपूर्ण, वि. १८वी, माघ शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. मु. उभयचंद्र गणि; पठ. मु. आसा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १७X५०). १२ भावना, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १६४६, आदि: आदिसर जिणवर तणा पद; अंति: जयसोम० सुख थायइ, ढाल-१२, गाथा-७२. ५११३८. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२४.५४११.५, १३४३८). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तव, सं., पद्य, आदि: सिद्धपुराभिध नगर; अंति: तस्य च मौनपुर, श्लोक-१०. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. सेवक, सं., पद्य, आदि: सांतिकरं करुणाकर; अंति: सेवक० सुखकारं जयकारं, श्लोक-५. ५११३९. (#) सर्व साधारण स्तोत्र व गूढार्थ श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०, १३४५०). १. पे. नाम. रत्नाकर पच्चीसी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल; अंति: रत्नाकर० प्रार्थये, श्लोक-२५. २. पे. नाम. गूढार्थ श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-५. ५११४०. महावीरजिन स्तवन-डिगरी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, दे., (२५.५४११.५, ८४३३). महावीरजिन स्तवन-डीगरी, पुहि., पद्य, वि. १९२८, आदि: तीर्थकर महावीरजी; अंति: सन उगणीसें अठाइ जी, गाथा-२०. For Private and Personal Use Only Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ३५९ ५११४१. (४) गौतमकुलक सह टवार्थ व प्रतिक्रमण विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५.५४११.५, ५४३४). " १. पे नाम, गौतमकुलक सह टवार्थ, पृ. १अ ३आ, संपूर्ण गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि लुद्धा नरा अत्थपरा, अंतिः सेवितु सुहं लहंति, गाथा २०. गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: लोभीया नर मनुष्य; अंतिः जे सेविव्यई सुख लहइ. २. पे. नाम. प्रतिक्रमण विधि, पृ. ३आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. प्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५११४२. (#) पुण्यप्रकास स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. पं. जगरुप, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्री सीमंधरजिन प्रसादात्, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५.५X१२, १४४३७). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा अंतिः विनय० पूण्यप्रकाश ए, ढाल ८, गाथा-१०२. ५११४३. सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. अमृतलाल विश्वनाथ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पठनार्थ माहाराज लिखा हुआ है., जैदे., (२५.५X१२.५, १०X३६). सिद्धचक्र स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदिः सिद्धचक्र वर सेवा, अंति: पद्मविजय० हित साधे, गाथा- १३. ५११४४. (-) स्वार्थ पचीसी, संपूर्ण वि. २०वी, जीर्ण, पृ. १, प्र. वि. अशुद्ध पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५x१२, २१४४२). सगपण व्यवहारपच्चीसी, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८६३, आदि: अरिहंत सिद्ध आवरिया, अंति: लालचंद० के माही, गाथा-२७. ५११४५. (-) अठावीस उपमा व गौतम पृच्छा अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ३-२ (१ से २) १, कुल पे. २, प्र. वि. अशुद्ध पाठ.. वे. (२५.५x११.५, ११४३०). १. पे नाम, महावीरजिन अठावीस उपमा, पृ. ३अ अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. महावीरजिन २८ उपमा, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: भगवंतस्वामी मोटा, (पू.वि. उपमा २० अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. गौतमपृच्छा सज्झाय, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गौतमपृच्छा सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि गौतमस्वामी पृच्छा अंतिः (-), (पू.वि. गाथा ११ अपूर्ण तक है.) ५११४६. स्तवन, गीत व दंडक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे ५ जैवे. (२५x१०.५, १८x४५-५०). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ. संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव चिंतामणि, उपा. देवकुशल पाठक, सं., पद्य, आदि: सुरेदेव नागेंद्र, अंतिः चिंतामणिः पार्थः, लोक-७७. २. पे. नाम. चौवीसजिन प्रभाती, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन प्रभाती, आ. समरचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह समइ ऊठी जिन समर अंति: समरचंद० भवसागर तारि गाथा - १०. ३. पे. नाम गणधर गीत, पृ. १अ संपूर्ण. गणधर स्तवन प्रभाती, आ. समरचंद्रसूरि, मा.गु., पद्म, आदि गणधर ग्यारह तथा नाम; अंतिः पभणइ श्रीसमरचंदा, गाथा - ११. ४. पे. नाम. २४ दंडक स्थिति विचार, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. २४ दंडक २९ बोल, मा.गु., गद्य, आदि; नारकी भवनपती पृथ्वी, अंतिः मुहुर्त प्रमाण जाणिए ५. पे. नाम औपदेशिक लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. लोक संग्रह, प्रा.मा.गु. सं., पद्य, आदि (-); अंति: (-), श्लोक १. ५११४७. श्रावकशीखामन सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २- १(१ ) = १, प्र. वि. पत्रांक नहीं होने के कारण २ लिया हैं., जैदे., (२६४१२, १५x२८). For Private and Personal Use Only Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक सज्झाय-श्रावक, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: अणाचारी जाणसी धेष, गाथा-३६, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा २२ अपूर्ण से है.) ५११४८. मधुबिंदु सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४१०.५, १२४३२). मधुबिंदुसज्झाय, मु. चरणप्रमोद-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: देवि सरसती रे मात; अंति: चरणपरमोद० इम मांगीये, ढाल-५, गाथा-१०. ५११४९. सझाय, स्तवन व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२५.५४१२, १३४२८). १.पे. नाम. नववाडी स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, ले.स्थल. सिद्धाचल तीर्थ, प्रले. मु. भवानजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. ९ वाड सज्झाय, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: नववाड मुनिसर मनधरो; अंति: महीमाप्रभ० नेहोरे, गाथा-११. २.पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. कनक, मा.गु., पद्य, आदि: चालो सखी सिद्धाचल; अंति: सीष्य कनक गुण गाय जी, गाथा-७. ३. पे. नाम. प्रस्ताविक श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रस्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ५११५०. मयणरेहा कथा, संपूर्ण, वि. १८९६, ज्येष्ठ अधिकमास शुक्ल, ४, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. फुलचंद (गुरु मु. दोलतरामजी); गुपि. मु. दोलतरामजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, २२४६१). मदनरेखासती रास, मु. विनयचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८७०, आदि: आदि धरम धोरी प्रथम; अंति: विनय० भवियणो इक मने, ढाल-६. ५११५१. पडिकमणामां छींक आवे तेहनी विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२५४११, ९४३३). क्षुद्रोपद्रवनिवारण स्तुति, संबद्ध, सं., पद्य, आदि: (१)सर्वे यक्षांबिकाद्या, (२)समछरी तथा चौमासी तथा; अंति: (१)द्रुतं द्रावयंतु नः, (२)करि प्रगट लोगस केहवो, श्लोक-१. ५११५२. रात्रि भोजन सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, १०४२७). रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, ग. मणिचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सहगुरु चरण नमु निसि; अंति: मणिचंद० अमर विमान, गाथा-१२. ५११५३. (+#) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८७२, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत-क्रियापद संकेत. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १६४५६). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः , श्लोक-४४. ५११५४. (+#) सिद्धदंडिका सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ५४५१-६३). सिद्धदंडिका स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जं उसहकेवलाओ अंत; अंति: दिंतु सिद्धि सुह, गाथा-१३, (वि. प्रतिलेखक ने गाथा ७ तक ही गाथांक लिखा है) सिद्धदंडिका स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: जंउसभ० व्याख्या यत्; अंति: दंडिकासु भावनीयं. ५११५५. (#) स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१०, १०४३९). १.पे. नाम. गौतमस्वामी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, ले.स्थल. मेसर. गौतमस्वामी अष्टक, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह ऊठी गोतम; अंति: समयसुंदर० परधान, गाथा-८. २. पे. नाम. संखेस्वर पार्श्व स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: अंतरजामी सुण अलवेसर; अंति: मुजने भव सागरथी तारो, गाथा-५. ३. पे. नाम. प्राबृत्म पद, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, मु. चेनविजय, पुहिं., पद्य, आदि: कूण सुतो नन मेरा जिन; अंति: मे चरणांका चेला, गाथा-३. For Private and Personal Use Only Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ३६१ ५११५६. स्तवन व गुंहली, संपूर्ण, वि. १८६४, कार्तिक कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. लींबडी, जैदे., (२५.५४१२, १२४३३). १. पे. नाम. महावीर स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, ले.स्थल. लींबडी. दिपावलीपर्व स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: मारे दीवाली थई आज; अंति: दूनीया फेरो टालि, गाथा-५. २. पे. नाम. गुरु गुहली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जयरत्नसूरि गुरुगुण गहुँली, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: मारो गुरुजी छै मोहन; अंति: उदय० सर्व सीद्धा काज, गाथा-९. ५११५७. (#) नेमनाथ राजीमती गीत, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, प्रले.ग. मतिलाभ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ११४३६). नेमराजिमती गीत, मु. भद्रसेन, मा.गु., पद्य, आदि: रायकुंयरि लीला लहरि; अंति: भद्र० लीणउरी संजयभार, गाथा-५. ५११५८. (-) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ८, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२६४११, १९४५६). १. पे. नाम. सुमतिनाथ गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. सुमतिजिन गीत, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: कर तांसु तउ प्रीति; अंति: विरूद साचउ वहइरे, गाथा-५. २.पे. नाम. पदमप्रभ गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: कागलीया करतार भणी, अंति: इण घरि छइ आरीति, गाथा-५. ३. पे. नाम. सुविधिनाथ गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. सुविधिजिन गीत, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: सेवा बाहिरउ कईयको; अंति: किम पहुचीजइ आडे, गाथा-५. ४. पे. नाम. वासुपूज्य गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: नायक मोह नचावीयो; अंति: जपें इम जिनराजो रे, गाथा-५. ५. पे. नाम. ऋषभ गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मन मधुकर मोहि रह्यो; अंति: सेवैबे करजोडिरे, गाथा-५. ६. पे. नाम. विमलजिन गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. विमलजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: घर आंगणि सुरतरु; अंति: तुहि ज देव प्रमाण, गाथा-५. ७. पे. नाम. नेमिनाथ गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. नमिजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: (१)छइ दुखि हुं तुम्हनइ, (२)स्वइ दुखि हुं तुम्हन; अंति: जिनराज० इण कलिकालोजी, गाथा-५. ८. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १आ, पूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: तार करतार संसार सागर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ४ अपूर्ण तक है.) ५११५९. (+) पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु.खंतिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १०४२७). पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. पद्म, रा., पद्य, आदि: प्यारो गोडीसापासजी; अंति: पद्म० हिमत सिवराज रे, गाथा-८. ५११६०. (+) कथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, १५४३५). १. पे. नाम. कार्तिकसेठ कथा, पृ. १अ, संपूर्ण.. ___ मा.गु., गद्य, आदि: सो वार प्रतिमा वही; अंति: मूलगो रूप को. २. पे. नाम. मेघकुमार कथा, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: एकदा श्रीमहावीर; अंति: लेई मोक्ष जास्यै. ५११६१.(-) गजसुखमाल सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. सोभाराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, १३४४३). गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५८, आदि: गजसुखमाल देवकि नंदन; अंति: चोथमल० हरख करि गाइ, गाथा-२३. For Private and Personal Use Only Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३६२ ५११६२. (#) राजीमती सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, वे. (२५.५x१२, १६४३१). " www.kobatirth.org नेमराजिमती सज्झायरा, पद्य, आदिः ये जि हस कर भाभीजी अंति: पहली मूकत्यां गई, गाथा १६. ५११६३. (#) ढुंढरो बैदो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. जालोरनगर, प्रले. पं. लब्धि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, वे. (२६४११.५ १३५३०). " ढूंढीया की वैदो, रा., पद्य, आदिः मर्दोरा भी बैहदा बेह; अंतिः बैसें राते खावै रोटा, गाथा २२. , ५११६५. मधुबिंदुया सझाय, संपूर्ण, वि. १७४०, चैत्र कृष्ण, ११, सोमवार, मध्यम, पृ. १, पठ. पं. कुशलविजय (गुरु पं. अमृतविजय); प्रले. पं. अमृतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२६४११, १३x४२). मधुबिंदु सज्झाय, मु. चरणप्रमोद - शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मुझ रे माता, अंति: परमसुख सुणतां लहइ, गाथा - १०. יי ५११६६. (#) सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. पत्रांक नहीं लिखा है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६४१०.५, १२४३६). , १. पे. नाम. १० पच्चक्खाण सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. १० पच्चक्खाणफल सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: दसविह प्रह ऊठी; अंति: पामु निश्चइ निरवाण, गाथा-८. २. पे. नाम, वैराग्य सझाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: मयगल मातुरे वनमाहिं, अंति: कहइ ते पाम शिव माग, गाथा-७. ५११६७. चंदन मलयगिरी सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. अमदनगर, प्रले. पं. दयाविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीमहावीरस्वामी प्रसादात् जैदे. (२५४१२, १७४४). " चंदनमलयागिरि सज्झाय, मु. चंद्रविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विजय कहे विजया प्रते; अंतिः चंद्रविजय०ते सुख लहै, गाथा - १०. 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५११६८. () शांतिनाथ स्तवन, संपूर्ण वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, पठ श्रावि मानू, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५. ५X११.५, १३x४६). शांतिजिन स्तवन, मु. तेजपाल, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंतदेव पाइ नमूए; अंति: तव्यं शांति जिणेसरू, गाथा-२९. ५११६९. (() शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२५x१२, ९३०). शांतिजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु, पद्य, आदिः सुणो शांति जिनेसर, अंतिः ज्ञानविम० किम पार रे, " गाथा ५. ५११७०. बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ४, जैदे., (२५.५X१२, १४X३७-४१). १. पे. नाम. शब्दमाई अक्षराणि - जोडाक्षर, पृ. १अ, संपूर्ण. वर्णमाला, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २. पे नाम, २१ मिथ्यात्व भांगा, पृ. ९आ-२आ, संपूर्ण मिथ्यात्व २१ भेद प्रा.मा.गु. गद्य, आदि: प्रथम अभिग्रहिक अंतिः तेहने वैकुंठ गया कहे. ३. पे. नाम. समकीत ६७ भेद, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. १४X३५). १. पे. नाम, नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण. ६७ समकित बोल नाम, मा.गु., गद्य, आदिः सदहणा४ लिंग३ विनय१०; अंतिः भाजनभूत६ थानक७. ४. पे. नाम. बोल संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि (-); अंति: (-). ५११७१, (०) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, मु. अमृत, मा.गु. पथ, आदिः एतो वाहलो छे व्रतधार: अंतिः ए दंपतिनी बलीहारी रे, गाथा-७, २. पे. नाम, नेमनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ३६३ नेमिजिन स्तवन, मु. ज्ञानअमृत, मा.गु., पद्य, आदि: कोई आन मिलावो श्याम; अंति: ज्ञान० मुगती मझार, गाथा-६. ५११७२. स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४१२, ८x२४). १.पे. नाम. पलबंध स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित, सं., पद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञज्योतीरूप; अंति: सिद्धिं वैदुष्यम, श्लोक-४. २. पे. नाम. महावीर जिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: वीरं देवं नित्यं; अंति: दद्यात्सौख्यम्, श्लोक-४. ५११७३. (#) पूर्वाचार्य पट्टावली नाम व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १४४४९). १. पे. नाम. पूर्वाचार्य पट्टावली नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. पूर्वाचार्य पट्टावलीनामा, सं., पद्य, आदि: श्रीवर्धमानय श्रीमते; अंति: श्रीगौतमःस्तान्मुदे, श्लोक-८. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. जैनकाव्य संग्रह*, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), ग्रं. २.. ५११७५. (#) स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १६४५९). १. पे. नाम. महावीर स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. २. पे. नाम. नेमिनाथ स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिपंचरूप; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ३. पे. नाम. शत्रुजय स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: आनंदानम्रकम्रत्रिदश; अंति: विघ्नमर्दी कपर्दी, श्लोक-४. ४. पे. नाम. शत्रुजय स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-शत्रुजयमंडन, सं., पद्य, आदि: शैले शत्रुजयाख्ये; अंति: भृतां भूतये शांतयेत्, श्लोक-४. ५. पे. नाम. जिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. ५ तीर्थजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीशत्रुजयमुख्य; अंति: संतु भद्रंकराः, श्लोक-४. ६. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. सोमतिलकसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीतीर्थराज: पदपद्म; अंति: भावदातादतांस बिंब, श्लोक-१. ५११७६. (+#) ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८९८, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. बिकानेरपुर, प्र.वि. क्षमाकल्याण उपाध्याय की प्रत से प्रतिलिपि., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १४४३८). ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यताक्षरसंलक्ष्य; अंति: लभ्यते पदमुत्तमम्, श्लोक-६३. ५११७७. (#) मूर्ख बहोत्तरी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्रले. रामचंद्र पाराशर ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११.५, ७४३१). मूर्ख के ७२ बोल, हिं., गद्य, आदि: जो बच्चों का साख करे; अंति: मानै न जाणे ते मूर्ख. ५११७८. सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२५.५४११, १५४३८). १. पे. नाम. आषाढभूति मुनि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आषाढाभूतिमुनि सज्झाय, मु. रूपवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: एकाकी आषाढमुनि सुमति; अंति: रूपवल्लभ० संपति पाये, गाथा-२५. २. पे. नाम. चारे प्रत्येक बुध सज्झाय, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानगरी अति भली हुँ; अंति: गाया हे पाटण परसिध, ढाल-५. For Private and Personal Use Only Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५११७९. जीवरासी खामणा व राजुल पचीसी, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., दे., (२४.५४११.५, १६x४२). १. पे. नाम. जिवरासि खिमावती सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिव राणी पदमावती; अंति: ते मुझ मिछामेदुकडं, ढाल-३, गाथा-३६. २. पे. नाम. राजुल पच्चीशी, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. राजिमतीपच्चीसी, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम हिवे समरू अरिह; अंति: (-), (पू.वि. गाथा २ अपूर्ण तक ५११८०.(-) सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२४.५४११, १३४३२). १.पे. नाम. धन्ना अणगार सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. धन्नाअणगार सज्झाय, मु. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवचनै वैरागीयो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक __द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम गाथा लिखा है.) २. पे. नाम. ऋषि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. अइमुत्ता गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३०, आदि: सासणनायक सिद्ध कीधी; अंति: नाम थकी मंगलमाला, गाथा-१३. ५११८१. चौढालीया संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१२, १७X४७). १. पे. नाम. समदपाल चौढालियो, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. समुद्रपाल रास, मु. उदेसींघ, मा.गु., पद्य, वि. १७६४, आदि: श्रीआदीसर आदि दे; अंति: उदसिंघ०फतेपुर सुखकार, ढाल-४. २. पे. नाम. इलाचीपुत्र चौढालियो, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. इलाचीकुमार चौढालिया, मु. प्रेम ऋषि, रा., पद्य, आदि: प्रथम गणधर गुणनिलो; अंति: पेमो बीनवै० बे करजोड, ढाल-४. ५११८२. (#) गौतमस्वामी इंद्रपूछ्यौ जिनगर्भ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १२४३६). देवानंदा सज्झाय, उपा. सकलचंद्र गणि, पुहिं., पद्य, आदि: जिनवर रूप देखी मन; अंति: पूछे उलट वात मनआंणी, गाथा-११. ५११८३. (+) खंधकऋषिनो चौढालौ, संपूर्ण, वि. १८४४, माघ कृष्ण, १, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. बीकानेर, प्रले. मु. लक्ष्मीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२५४११, १९४५१). खंधकमुनि चौढालियो, रा., पद्य, वि. १८११, आदि: नमुं वीर सासणधणी जी; अंति: करणी करज्यो सहु कोय, ढाल-४, (वि. रचनाप्रशस्ति वाला भाग नहीं लिखा है.) ५११८४. (+) जिनमंदिर ८४ आशातना सहटबार्थ व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८५४, आश्विन कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. नाईपुरी, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१२, ५४३६). १. पे. नाम. चतुरसीत्याशातना सह टबार्थ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: खेलि१ केलि२ कलि३ कला; अंति: वजे जिणिंदालये, गाथा-४. जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: देहरे श्लेषमा१ हास्य; अंति: (१)संदेह नथी जाणवो, (२)ते माहें जोइवो. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक , प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-२. For Private and Personal Use Only Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६५ " ला . हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ५११८५. (+) मौनएकादशी कथा, संपूर्ण, वि. १८५९, फाल्गुन कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. कस्तुरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. १७१५ में श्रीधर्मसूरि द्वारा लिखित प्रत से प्रतिलिपि कि गई है., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१२, २२४५२). मौनएकादशीपर्व कथा, आ. सौभाग्यनंदिसूरि, सं., पद्य, वि. १५७६, आदि: अन्यदा नेमिरीशाने; अंति: हम्मीरपुरसंश्रितैः, श्लोक-११८. ५११८६. पंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२४.५४१२, १४४४०). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मागु., पद्य, आदि: प्रणमी पास जिणेसर; अंति: गुणविनेरंगे सुणि, ढाल-६. ५११८७. (+) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १२४३८). १. पे. नाम. पार्श्व स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-एकस्वरवर्णवृत्त, ग. पद्मराज, सं., पद्य, आदि: अमल कमल समतमकमल घन; अंति: पद्मराज० मनोहारिणी, श्लोक-७. २.पे. नाम. पार्श्वजिन गीत, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. पार्श्वजिन स्तवन, मु. रत्ननिधान, मा.गु., पद्य, आदि: पासजिणंद जुहारीय; अंति: करजोडी पय अरविंदोरे, गाथा-९, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक लिखने में भूल की है.) ५११८८. (#) १० दृष्टांत व गुहली भास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३४४३). १.पे. नाम. १० दृष्टांत गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति भगवति मति दउ; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. मात्र प्रथम ढाल लिखा २. पे. नाम. गुहली भास, पृ. १आ, संपूर्ण. गुरुगुण भास, मु. सेवक, मा.गु., पद्य, आदि: कूकम चंदन केसर भेली; अंति: भविना ते पाप विछोडो, गाथा-७. ५११८९. (#) स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११, ११४३२). १. पे. नाम. सिद्धचक्र थुई, पृ. १अ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तुति, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमंत सुरनर पाय; अंति: पभणै चंदसमनित सुखकरू, गाथा-४. २. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जगनायक दायक सिद्ध; अंति: भाखै श्रीजिनचंद, गाथा-४. ३. पे. नाम. नवपद स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण.. मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत सिद्ध आचार्ज; अंति: जिन एनीत प्रकासीजी, गाथा-१. ५११९०. (#) जंबु सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. पं. मनरुपसागर; पठ. मु. भगवानसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२, ११४२८). जंबूस्वामी सज्झाय, आ. भाग्यविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७६६, आदि: सरसती स्वामीने विनवु; अंति: __ भाग्यविमल० जयकार, गाथा-१५. ५११९१. विजयदेवसूरि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. श्रावि. धनबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १२४३९). विजयदेवसूरि सज्झाय, मु. देवविमल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीविजयदेवसूरिंद; अंति: श्रीविजयदेव गणधार, गाथा-९. ५११९२. सझाय व स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४१२, ९४३७-४०). १. पे. नाम. सीता सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. सीतासती सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: जनकसुता हुं नाम; अंति: तन माहीथी अकुलासें, गाथा-८. २.पे. नाम. पार्श्वनाथ थोय, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति, मु. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पासजिणंदा वामानंदा; अंति: गाती वीर घरे आवती, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७. ३६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५११९३. स्तवन व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६.५४११, १०४२६). १.पे. नाम. रांणकपुर गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-राणकपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: राणपुरोरलीयामणौ रे; अंति: लाल समयसुंदर सुखकार, गाथा-७. २.पे. नाम. आत्म गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. परमार्थ अष्टपदी, पुहिं., पद्य, आदि: ऐसै यों प्रभु पाइये; अंति: एकहि तबको कहि भेटै, गाथा-८. ५११९४. (#) सकलार्हत् चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. सायलानगर, पठ. पं. मोती (गुरु पं. रत्नविजय); प्रले.पं. रत्नविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १२x२९). सकलार्हत स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलाहत्प्रतिष्ठान; अंति: निचय श्रीवीरभद्र यस, श्लोक-२७. ५११९५. (#) स्तवन व स्तुति, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १५४४२). १.पे. नाम. सर्व तीर्थ स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सर्वतीर्थ स्तवन, प्रा., पद्य, आदि: जत्थसरवइकोडिअसंखसंपत; अंति: मेरगिरि असुरमाणही, गाथा-१०. २. पे. नाम. सर्व जिनसाधारण स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तुति, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: जिनर्षभ प्रीणितभव्य; अंति: लोक्यलक्ष्मीश्वरा, श्लोक-८. ५११९६. चैत्यवंदन व गुंहली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, ११४३२). १.पे. नाम. रोहीणी नक्षत्र चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १८८८, फाल्गुन कृष्ण, ११, पठ. श्रावि. रामकोर, प्र.ले.पु. सामान्य. रोहिणी नमस्कार, मु. ऋषभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपदमप्रभुजिन वीहर; अंति: भवियण करो निरंतर सेव, गाथा-११. २.पे. नाम. मुनिगुण गुहली, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक गहली, मु. ऋषभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर शिव हेली रागी; अंति: ऋषभ कहे नीज मल धोती. गाथा-५. ५११९७. (+#) कवित व स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. कनकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ५४४१). १. पे. नाम. धडाबद्ध कवित सह टबार्थ, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक कवित-धडाबद्ध, मा.गु., पद्य, आदि: वंशत्रिण वाजित्र; अंति: ए धडाबद्ध कवीत्त कह, पद-१. औपदेशिक कवित-धडाबद्ध-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वंशत्रिण क० ब्रह्मा; अंति: जे ते कवीत ए कहिइ. २.पे. नाम. ऋषभदेव स्तवन सह टबार्थ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, वि. १८वी, आदि: आदिजिनं वंदे ___गुणसदनं; अंति: वितनोतु सतां सुखानि, श्लोक-६. आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अहं आदिजिनं वंदे हु; अंति: लोकने सुखने विस्तारो. ५११९८. जीव आयु,चक्रवत्ती व आहारादिविचार गाथा, संपूर्ण, वि. १९१७, आश्विन कृष्ण, २, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, ले.स्थल. अमदाबाद, प्रले. खेमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. ३५, जैदे., (२५.५४१२.५, ३-९४२९-३६). १.पे. नाम. जीव आउ, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ आयुष्य विचार *, मा.गु., गद्य, आदि: हंसनो आयु वर्ष१००; अंति: आउ षटमासनो कह्या. २. पे. नाम. चक्रवर्ति विचार सह टबार्थ, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. चक्रवर्ती विचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: उसभा भरहो अजीए सगर; अंति: अरिट्ठ पासंत ते बंभो, गाथा-३. For Private and Personal Use Only Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मा . हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ चक्रवर्ति विचार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: आदिनाथनें वारे भरत; अंति: नामे चक्रवर्ति थयो. ३. पे. नाम. महपत्ती विचार, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. आहारादिमान गाथा-भरतादिक्षेत्रे, प्रा., पद्य, आदि: बत्तीसं कवलाहारो; अंति: एयं मुहणतय पमाणं, गाथा-३. आहारादिमान गाथा-भरतादिक्षेत्रे-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: बत्तीस के० भरतक्षेत्; अंति: मुहपतिमानानिजाणवुमान. ५११९९. भक्तामर स्तोत्र के दिग्पट्टमंत्र, संपूर्ण, वि. १७३९, फाल्गुन शुक्ल, १, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. अंबावतीनगर, प्रले. ग. विचारसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०.५, १६४४१). भक्तामर स्तोत्र-मंत्र, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं अहणमो; अंति: ध्रौँ श्री स्वाहा, मंत्र-४८. ५१२००. समकितनी सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४११.५, ११४३४). सम्यक्त्व सज्झाय, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समकितना पंच भेदए; अंति: शुभवीर० हुंसियार रे, गाथा-११. ५१२०१. कृष्णमहाराजा स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४१२, १२४२८). कृष्णमहाराजा सज्झाय, मु. इंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: द्वारीका नयरीइं नेमि; अंति: कोडि दीवाली जीवोहो. गाथा-१०. ५१२०२. संखेश्वरपार्श्वजिन चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४१२, १०४३२). पार्श्वजिन चैत्यवंदन-शंखेश्वरतीर्थ, पंन्या. रुपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: सकल भविजन चमत्कारी; अंति: रूप कहे प्रभुता वरो, गाथा-९. ५१२०३. वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४११.५, ११४३५). महावीरजिन स्तवन-दीपावलीपर्व, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मार्गदेसक मोक्षनोरे; अंति: देवचंद पद धारो रे, गाथा-८. ५१२०४. (#) अनागतजिन नमस्कार, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १, अन्य. श्रावि. पानबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, २७४१७). २४ जिन चैत्यवंदन-अनागत, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पदमनाभ पहिला जिणंद; अंति: नय वंदे सुजगीस, गाथा-१४. ५१२०५. प्रदेशीराजारो अधिकार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२६४११.५, १५४४८-५२). प्रदेशीराजा चौपाई, मु. जेमल, मा.गु., पद्य, वि. १८०७, आदि: अरिहंत सिद्धिने आयरि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल २ के दोहे २ तक लिखा है.) ५१२०६. मुगतिसीला स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२५.५४१२, १०४३०). शिवपुरनगर सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: गोतमस्वामी पूछा करे; अंति: वरे पामे सुख अथाग, गाथा-१६. ५१२०७. (#) बिंबप्रवेश विधि व धजारोपण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले.पं. उत्तमविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०.५,१५४५१). १. पे. नाम. बिंबबेसारवा विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जिनबिंबप्रवेश विधि, मा.गु., गद्य, आदि: भला मुहूर्त जोईई; अंति: पछै शांतिस्तव कहीइं. २. पे. नाम. धजारोपण विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. ध्वजारोहण विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: तिणेज दिवस विशेष; अंति: साहमीवासल्य करवो. ५१२०८. (#) स्तवन चौवीसी, स्तवन व पद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-४(१ से ४)=३, कुल पे. ८, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १४४३५-४०). १.पे. नाम. चौवीसतीर्थंकर स्तवन, पृ. ५अ-६आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. २४ जिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जिनराजदोलति पावो जी, स्तवन-२४, (पू.वि. शांतिजिन स्तवन गाथा ३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. श्रीकृष्णभक्ति पद, पृ. ६आ, संपूर्ण.. नंददास, पुहि., पद्य, आदि: चिरीया चहिचानी चकवै; अंति: नंददास० नयनविसाला, गाथा-४. ३. पे. नाम. नेमराजीमती कडखो, पृ. ७अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नेमिजिन स्तवन, मु. मोहन, पुहि., पद्य, आदि: सजिलारेजलधार सुख; अंति: मोहन० मन कहे उलासे, गाथा-७. ४. पे. नाम. सेव॒जागिरनार स्तवन, पृ. ७अ, संपूर्ण. गिरनारशQजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारो सोरठ देश देखाओ; अंति: ज्ञानविमल० सिर धरीया, गाथा-७. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. मु. श्रीधर, पुहिं., पद्य, आदि: नीकी मूरति पास जिणंद; अंति: सीधरदाता परमानंद की, गाथा-३. ६. पे. नाम. मेघपद संगीत, पृ. ७आ, संपूर्ण. श्राव. गोकल नवरंग शाह, पुहि., पद्य, आदि: अगगगग कोह कबाण वरष; अंति: गोकल नवरंग साह सुजस, चौपाई-१. ७. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ७आ, संपूर्ण. सूरदास, पुहि., पद्य, आदि: पिया बिन लागत बुंद; अंति: सूरदास जीते हम हारी, गाथा-४. ८. पे. नाम. बालकृष्णभक्ति पद, पृ. ७आ, संपूर्ण. चंद्र सखी, पुहिं., पद्य, आदि: मातपिता मल जनम दिआ; अंति: हरष हरष गुणगाया रे, गाथा-४. ५१२०९. चतुर्थव्रत उच्चारण विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४११.५, १२४३९). ब्रह्मचर्यव्रतप्रत्याख्यान आलापक, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: सर्वक्रिया उपधान परे; अंति: पचखांण कराववो. ५१२१०. थुई व इंद्रजाल विद्या, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४११.५, १२४३०). १. पे. नाम. पजुसण थुई, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ पर्युषणपर्व स्तुति, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सतरभेदि जिन पूजा; अंति: पूरो देवि सिधाईजी, गाथा-४. २. पे. नाम. इंद्रजाल विद्या, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., गद्य, आदि: जल स्थंभ १ पिशाच२; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ५१२११. (#) गुंहली संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं. दे.. (२५.५४११.५, १०x४०). १.पे. नाम. महावीरजिन घुयली, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन भास, मा.गु., पद्य, आदि: सहीर म्हारी अरिहंत; अंति: सोहावो केवल श्रीफले, गाथा-५. २. पे. नाम. सौधर्मगणधर गुहली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सौधर्मगणधर भास, ग. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चोनाणी चंपावने संयम; अंति: अतिशय च्यार निधान रे, गाथा-७. ५१२१२. दान विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०, ११४४७). मिथ्यात्वमथन प्रकरण-दानविधि, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: धम्मोवग्गह दाणं दिज; अंति: लोयणाण धम्मो मणे ठाइ, गाथा-२६. ५१२१३. स्तवन, सज्झाय व श्लोक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, दे., (२४.५४१०, ९४३८). १.पे. नाम. दसपचखाण स्तवन, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, प्रले. करमचंद रामजी लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य. १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: सिद्धारथनंदन नमु; अंति: रामचंद तप विधि भणे, ढाल-३, गाथा-३३. २. पे. नाम. चंदनबालामहासती सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. चंदनबालासती सज्झाय, मु. नीतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धन चंदनबाला सति रे; अंति: नितिवि०वंदिये रे लाल, गाथा-५. ३. पे. नाम. पंचपरमेष्ठि श्लोक, पृ. ३आ, संपूर्ण. जिनस्तुत्यादि संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अहँतो भगवंत इंद्र; अंति: कुर्वंतु वो मंगलम्, श्लोक-१. ५१२१४. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. ज्ञानवर्द्धन, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १५४४३). For Private and Personal Use Only Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ३६९ १. पे. नाम. असझाई स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ असज्झाय सज्झाय, मु. हीर, पुहिं., पद्य, आदि: श्रावण काति मगसर मास; अंति: प्रभु पाय किजे सेव, गाथा-१४. २. पे. नाम. दसश्रावकनी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. १० श्रावक सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी प्रणमी दसे; अंति: कया मुनि श्रीसार रे, गाथा-१४. ५१२१५. (+#) स्तुति संग्रह व चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १७६७, फाल्गुन शुक्ल, ९, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. मु. केसरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-क्रियापद संकेत-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १४४५१-६३). १. पे. नाम. वीर स्तुति सह टीका, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: नमोस्तु वर्द्धमानाय; अंति: मयि विस्तरो गिराम्, श्लोक-३. महावीरजिन स्तुति-टीका, सं., गद्य, आदि: वर्धमानाय नमोऽस्तु; अंति: वृष्टिस्तत्सन्निभः. २. पे. नाम. विशाललोचनदल स्तुति सह अवचूरि, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, संबद्ध, सं., पद्य, आदि: विशाललोचनदलं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक २ अपूर्ण तक है.) महावीरजिन स्तुति-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: वीरजिनेंद्रस्य मुखकम; अंति: विद्वद्भिः नमस्कृतम्, संपूर्ण. ३. पे. नाम. चउक्कसाय स्तुति की अवचूरि, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. मूलपाठ हेतु जगह छोड़ी गयी है. पार्श्वजिन चैत्यवंदन-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: भुवनत्रयस्वामी पार्श; अंति: तया लांछितश्चिह्नितः. ५१२१६. (#) माणिक्यस्वामि स्तव, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १६x६०). आदिजिन स्तव-कुल्पाकपुरमंडन, मु. जिनकीर्ति, सं., पद्य, आदि: जिनं कुल्यपाकावनीतार; अंति: जिन० स्वपदाब्जसेवाम्, श्लोक-२५.. ५१२१७. (#) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले.ग. वृद्धिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १७४४५-७२). १. पे. नाम. साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र सह अवचूरि, पृ. १अ, संपूर्ण. साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: ठाणे कमणे चंकमणे आउत; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: अंतः प्रतिक्रमणं; अंति: श्रीगुरुकार्यमाणमिति. २. पे. नाम. अतिचारकाउसग्ग गाथा की टीका, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. अतिचारकाउसग्ग गाथा-टीका, सं., गद्य, आदि: सयणा सण अस्या व्याख; अंति: विषयं यथा समितिषु. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन की अवचूरि, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: भुवनत्रयस्वामी पार्श; अंति: तया लांछितश्चिह्नितः. ५१२१८. (+#) मिथ्यात्व कुलक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १५४४३). मिथ्यात्वस्थान कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लोइअलोउत्तरिय देवगय; अंति: धुवं सिवं सुहयं, गाथा-२६. ५१२१९. (+#) स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, पठ. श्रावि. पद्मा; श्रावि. चंद्रावलि; श्रावि. धन्ना; प्रले. पं. कल्याणमेरु, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२५४१०.५, १४४३५-४१). १.पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. पंचमीतिथि स्तुति, म. महिमरंग, मा.गु., पद्य, आदि: पंचमि पंचमजिणवर नमिय: अंति: महिमरंग० सानिधि करणी. गाथा-४. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३७० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तुति, मु. महिमरंग, मा.गु., पद्य, आदिः पुरुषादानी पासजिणंदो, अंति: महिमरंग० नवनिधि पावइ, गाथा-४. ३. पे. नाम. मौनएकादशी स्तुति, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. मौनएकादशी तिथि स्तुति, मु. महिमरंग, मा.गु., पद्य, आदि: इग्यारसि अरनाथ नमेवउ, अंति: महिमरंग० सिवपद टीकउ, गाथा-४. ४. पे नाम, अष्टमी स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण, अष्टमीतिथि स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: चंद्रकंति चंद्रप्रभ, अंति: सुख देहि अखंडित, गाथा-४. ५. पे नाम. जिनभुवनगमनारंभफल गाथा, पृ. ९आ, संपूर्ण. प्रा. पद्य, आदि: मणसाहेइ चउत्थं छट्ट अंतिः माला अणतंगीयवाइयं, गाथा ५. ५१२२०. (+) ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५X११, ११x२४). ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर सं., पद्य, आदिः आचंताक्षरसंलक्ष्य अंति: यशस्ते परमानंदनंदितः, श्लोक-६६. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५१२२१. (०) दसविध पच्चक्खाण विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, प्रले. पं. पद्मविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जै, (२५.५४११.५ १२४३५). प्रत्याख्यानसूत्र संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः उग्गए सूरे नमुकार, अंति: (१) तस्स मिछामि दुक्कडं, (२) पचखाणपारवानी बीधी # ५१२२२, नेमीजन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी जीर्ण, पृ. १, प्रले. मु. विद्याकुशल, पठ मु. जयविजय प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५X१०.५, १२X३३). नेमिजिन स्तवन, पं. धर्मकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: रंगमहल राजिमती रे; अंति: हो धर्म प्रभुगुण गाय, गाथा-१३. ५१२२३, (+) स्तवन संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२४४१०.५, २४४४५-४८). 1 "" १. पे नाम सहस्रकूटजिनवर स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण जिनप्रतिमा स्तवन- सहस्रकूट, पं. रामविजय पाठक, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धाचल हो तीरथराइ; अंति: राम० ज यात्रा लहै, गाथा - १७. २. पे नाम. पार्श्वलघु स्तवन, पृ. ९अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि : आ आछी वेला औ आछौ साज, अंति: जिनलाभ० मो सुख वास, गाथा ७. ५१२२४, (+) स्तुति संग्रह, संपूर्ण वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५. प्र. वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २४x११, १२X३६-४८). १. पे. नाम. पार्श्व स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, सं., पद्य, आदि: विशदसगुणराजिविराजि, अंतिः वाग्जिनलाभशुभार्थदा, श्लोक-४. २. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तुति, पृ. १अ संपूर्ण. २४ जिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टापदगिरि आदिजिणेस, अंति: वीसे पामु परमानंदाजी, गाथा- १. ३. पे. नाम. वीरप्रभु स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीदेवार्यं विश्ववर, अंति: शस्वद् भूयात्, श्लोक-४. For Private and Personal Use Only ४. पे नाम वासुपूज्यजिन स्तुति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्य नरेसर, अंति: देव विघन हरो नितमेव, गाथा -४. ५. पे. नाम. ऋषभजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं परमपरुष परम; अंति: कहै जिनहर्षसुरंदा जी, गाथा-४. ५१२२५. नवग्रहगर्भित पार्श्वजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२५४११, १०४४०-४२). पार्श्वजिन स्तोत्र - नवग्रहगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: दोसावहारदक्खो नालिया; अंति: न पीडंति, गाथा - १०. Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ३७१ ५१२२६. (+) स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४११.५, ९४३४). १.पे. नाम. घंटाकर्ण स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ घंटाकर्णो महावीरः; अंति: ते ठः ठः ठः स्वाहा, श्लोक-४. २. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र विपरीत, पृ. १अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र-विपरीत, संबद्ध, शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: ॐ लंगमं इवह मंढप; अंति: णताहरिअमोन, पद-९. ३. पे. नाम. जिनपंजिर स्तोत्र, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. जिनपंजर स्तोत्र, आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं अहँ; अंति: मनोवांछितपूरणाय, श्लोक-२४. ५१२२७. आठम स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२४.५४११, १०४३२). अष्टमीतिथि स्तवन, ग. शुभविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जय हंसासणि सारदा; अंति: शुभविजय०आनंद अति घणो, ढाल-२, गाथा-२०. ५१२२८. (+#) वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. ग. हर्षविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १०४३१). महावीरजिन स्तवन, वा. राजविमल, सं., पद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानं घन; अंति: राजवि० भावाच्च भावेन, श्लोक-६. ५१२३२. (#) पार्श्वजिन स्तोत्र व श्लोक, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१०.५,१३४४६). १.पे. नाम. पार्श्वस्तव, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: निमिरासुरासुर विलसिर; अंति: जिणवलह० दंसणं हुज्जा, गाथा-२२. २. पे. नाम. प्रासंगिक श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह*, प्रा.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), श्लोक-३. ५१२३३. (+#) जंबुद्वीप संग्रहणी, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४२-४०(१ से ४०)=२, प्रले.ग. शिवविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. स्वास्तिकबंध लिपि-प्रथम पत्र., पदच्छेद सूचक लकीरें-क्रियापद संकेत. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, १३४२४-३३). लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिण सव्वन्नु; अंति: रइया हरिभद्रसूरीहिं, गाथा-३०, संपूर्ण. ५१२३४. (#) ज्ञानपंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १४४४२). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: थुणिमु श्रीनेमिजिण; अंति: भगति० नाणगुण आराधीइ, ___गाथा-१७. ५१२३५. साधु ढाल, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८-७(१ से ७)=१, जैदे., (२५४११.५, १२४३१). महावीरजिन समवसरण स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: मोवण कुंडलनरना अवदात; अंति: वांदुरे समणीए सहुं, गाथा-१४, संपूर्ण. ५१२३६. (+) सर्वार्थसिद्धविमान सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११.५, १२४३०). सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जगदा रे नंदन गुण; अंति: पुन्य थकी फले आसो रे, गाथा-१६. ५१२३७. स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, दे., (२५४११.५, १३४४६). १.पे. नाम. सीधचक्रजी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तवन, मु. हर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: एक आगमथीरोहो जउ; अंति: तौ हरषे परमपद पावना, गाथा-१५. २. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: देखोरी जिणंदा प्यार; अंति: भव फैरो आनंदघन उगार. गाथा-५. ३.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जागरे जागरेजलदि; अंति: रूपचंद० निरंजन पावै, गाथा-४. ४. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: देव निरंजन भव भय; अंति: रूपचंद सो तरीया है, गाथा-४. ५१२३८. (4) पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १०४३२). पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्षजी, मु. आनंदवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु पास जेताहरु; अंति: चूरै आनंदवृधन विनवै, गाथा-९. ५१२३९. (+#) सम्यक्त्व आरोपण विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, ११४३०). सम्यक्त्वादिव्रत आरोपण विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: श्राद्धः श्राद्धीना; अंति: एह संमत्तं मइगईयं. ५१२४१. (#) सीष्या न्याय व सवैया संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १८४३५). १.पे. नाम. सीष्या न्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक छंद, पंडित. लक्ष्मीकल्लोल, मा.गु., पद्य, आदि: भगवति भारथि चरण नमेव; अंति: धर्म रंगरातो बोल, गाथा-१६. २.पे. नाम. जिनभक्ति सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सवैया, पुहिं., पद्य, आदि: तात करे धन जोवन कारन; अंति: पानी वहे मुलतान गया, सवैया-१. ३. पे. नाम. प्रासंगिक सवैया संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहिं., पद्य, आदि: कुमाणस उर काग वीछू; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ५१२४२. जीबडली सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४.५४१०.५, १२४४१). औपदेशिक सज्झाय-जिह्वा, मु. अमरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जीबडली सुण बापडली; अंति: अमर० पद पामई सोई रे, गाथा-१७. ५१२४३. (+) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १३४३४). १. पे. नाम. दादेजी जिनकुशलसूरि स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि गीत, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: आया श्रीसंघ आस धरे; अंति: जिनचंद० आस्या सफल फली, गाथा-७. २.पे. नाम. जिनकुसलसूरि स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरिस्तवन, मु. कुसल कवि, रा., पद्य, आदि: हुं तो अरज करुं कर; अंति: निजर जोइज्यो साहिबा, गाथा-६. ५१२४४. (+) आदिजिन भावपूजा स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, १६x४४). आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन, मु. आणंदरुचि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धाचल नित नमु; अंति: ए आणंदरुचि हितकरु ए, ढाल-३, गाथा-२६. ५१२४५. (+) पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पठ. मु. हराज ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १३४५१). पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमउपासनाह प्रह; अंति: पासचंद० परमारथ लहइ, गाथा-२३. ५१२४६. (#) गौतमस्वामी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७वी, पौष कृष्ण, १४, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, ११४३५). गौतमस्वामी छंद, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: सिरिवसुभुई पुत्तो; अंति: (१)ते लहीइ जे जे मागीइ, (२)फलं सद्यो लभंतेतराम्, गाथा-१७. ५१२४९. (+) सत्तरिसय स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, ११४३३). For Private and Personal Use Only Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ३७३ तिजयपहत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्त पयासीयं; अंति: निब्भंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. ५१२५०. जिनस्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ५, जैदे., (२५४११, १३४४३). १.पे. नाम. मलीनाथपारसनाथनुं तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मल्लिजिन-पार्श्वजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८४२, आदि: हरियाने रंग भरिया ह; अंति: स्यूं हइडे हर्ष उलास, गाथा-१३. २. पे. नाम. वासपूज्यसामिनुंतवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पद्मप्रभ-वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४१, आदि: रंगभर राता हौ दाता; अंति: जपतां जिनवर जाप, गाथा-१४. ३. पे. नाम. श्रीमंदिरसांमीनुंतवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८२५, आदि: पूर्व माहाविदेहे वशे; अंति: रायचंद० मन आंणी उलाश, गाथा-१०. ४. पे. नाम. चोविशतिर्थंकर-तवन, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण.. २४ जिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: वंदू श्रीआदजिनंद किओ; अंति: रिषजी०मोय दर्शन दिजे, गाथा-२५. ५. पे. नाम. मंदिरसांमीनुंतवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. विहरमानजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३५, आदि: पूर्व महाविदेह विराज; अंति: रायचंद कीओ अरदाशो जी, गाथा-११. ५१२५१. एकादशी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. पूनमचंद दलपत्त, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१२.५, १५४३३). एकादशीपर्व सज्झाय, मु. विशालसोमसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: गोयम पूछे वीरने सुणो; अंति: विशालसोम० सज्झाय भणी, गाथा-१५. ५१२५२. सर्व साधारण फल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६४११.५, ९४३१). सर्वसाधारण फल, सं., पद्य, आदि: चैत्रस्य निर्मला; अंति: सर्वसाधारणा फलम्, श्लोक-१४. ५१२५४. (+) योग विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५४११, १६x४४). १.पे. नाम. योगप्रवेश विधि, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावइ पडकमी; अंति: सप्तेस्वपि प्रत्येकं. २.पे. नाम. वडी दीक्षा विधि सह टबार्थ, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. वडीदीक्षा अनुयोग विधि, प्रा.,सं.,मा.गु., गद्य, आदि: नंदिमाडी नइ खमा०; अंति: छइ यथायोग्य नाम दीजइ. वडीदीक्षा अनुयोग विधि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पुंजी काजओ उद्धरी; अंति: देवो सरव मांडली०. ५१२५५. स्तवन व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-३(१ से ३)=४, कुल पे. ८, जैदे., (२५.५४११, १४४४८). १.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, प्र. ४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: फलवधिमंडण पास एक करु; अंति: __समयसुंदर० प्रमाण, गाथा-१०. २.पे. नाम. बारव्रत सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. १२ व्रत सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रावकना सुणिज्यो; अंति: सुंदर० कहइ नित साभलउ, गाथा-१५. ३. पे. नाम. उपधान विधि, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. उपधानतप स्तवन-वृद्ध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमहावीर धरम; अंति: समयसुंदर० सुह करो, ढाल-३, गाथा-१८. ४. पे. नाम. वृद्ध पंचमी, पृ. ५अ-६अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३७४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ज्ञानपंचमी पर्व महावीरजिन स्तवन- बृहत् उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु, पद्य, आदिः प्रणमी श्रीगुरुपाय अंतिः भगवंत भाव प्रशंसीड, डाल-३, गाथा २५. ५. पे. नाम. मौन एकादशी स्तवन, पृ. ६अ - ६आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८९, आदि: समोवसरण बेठा भगवंत, अंति: क कही चाहडी गाथा १३. ६. पे. नाम. महावीर स्तवन, पृ. ६आ-७, संपूर्ण. महावीर जिन विनती स्तवन- जेसलमेरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणो मोरी वीनती; अंति धण्यो त्रिभुवन तिलो, गाथा- १९. ७. पे. नाम. शीतलनाथ वृद्ध स्तवन, पृ. ७अ - ७आ, संपूर्ण. शीतलजिन स्तवन- अमरसरपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, रा., पद्य, आदि: मोरा साहिब हो; अंतिः समयसुंदर ० जनमन मोहए, गाथा- १५.. ८. पे. नाम. औपदेशिक बत्तीसी, पृ. ७आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. राचा बत्तीसी, श्राव. राचो, मा.गु., पद्य, आदि: जीवडा जाग रे सोवे; अंति: (-), (पू. वि. मात्र प्रथम गाथा अपूर्ण है.) ५१२५६. (#) पद्मावती आराधना विधि व स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८८८, कार्तिक कृष्ण, ३०, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले. स्थल. किसनगड, प्रले. मु. भीहरचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५४११, १०x२३). १. पे. नाम पद्मावती आराधना विधि, पृ. १अ २अ संपूर्ण पद्मावतीदेवी जापमंत्र, सं., गद्य, आदिः ॐ ह्रीँ श्रीँ आँ; अंतिः क्षमस्व प्रणमाम्यहं . २. पे. नाम. पद्मावती महत्स्तोत्र, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पद्मावतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: मातः पद्मनि पद्मराग; अंतिः सर्वोपद्रव निवारणम्, श्लोक ९. ५१२५७. (+#) आर्य वसुधारा स्तोत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. टिप्पणयुक्त पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., ( २६x११.५, १४X३९). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदिः संसारद्वयदैन्यस्य अंति: (-) (पू. वि. मूलविद्या नमोरत्न" पाठ तक है.) ५१२५८. (०) अक्षर केवली व सिद्धदत्त कथा, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २. कुल पे. २. प्र. वि. अक्षरों की स्थाही फैल गयी है, " जैवे. (२५.५x११.५, ११४३७). १. पे. नाम अक्षर केवली. पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, पे. वि. यंत्र व विधि सहित. वर्णमालाशुकनावली, सं., पद्य, आदि: अकारे विजयं विद्या; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक ४९ अपूर्ण तक लिखा है., वि. श्लोक ४९ अपूर्ण तक लिखकर प्रतिलेखक ने पूर्णतासूचक संकेत कर दिया है.) २. पे नाम, सिद्धदत कक्षा, पृ. २आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: प्राप्तव्यमर्थं लभते; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम श्लोक लिखा है.) ५१२५९. (+) स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - संशोधित., दे., (२५.५X११.५, ११X३७-४५). १. पे. नाम. अष्टापद स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. अष्टापदतीर्थ स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: तीरथ अष्टापद गिर; अंति: जैनेंद्र० सनेहो जी, गाथा- ७. २. पे. नाम. जिनागमभक्ति पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: टुक दिल काच सम खोल, अंति: पावै सिद्धु भवतगा, गाथा-६. ३. पे. नाम. नेम स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमिजिन पद, मु. जिनराज, पुहिं, पद्म, आदि: प्यारे नेम प्रयाण, अंतिः जिनराज० गामनी भई हो, गाथा ३. ४. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं, पद्य, आदि: अजलू सबै मजलू जरूर अंतिः सिधसै मिल अटल रहूं, गाथा ५. " For Private and Personal Use Only Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ५१२६०. मल्लीनाथजीनो वृद्ध स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, अन्य. चंपा, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४११, १०४३२). मल्लिजिन स्तवन, मु. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७५६, आदि: नवपद समरी मन शुधे; अति: कुसललाभे० मन धरी, ढाल-५. ५१२६१. आत्मगर्हा स्तवन सह टबार्थ व सुभाषित, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. कोठारीयानगर, प्रले. पं. वीरविजय (वडीपोसालगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०.५, ५४३९). १. पे. नाम. सुभाषित श्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: नागो भाति मदेन; अंति: तथा धर्मं विना मानवः, श्लोक-३. २. पे. नाम. आत्मगर्हा स्तवन सह टबार्थ, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल; अंति: श्रेयस्कर प्रार्थये, श्लोक-२५. रत्नाकरपच्चीसी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: अहो कल्याणलक्ष्मीनू; अंति: प्रार्थो मांगो. ५१२६२. (#) सिखामण, स्तवन व तत्त्वविचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११.५, १४४३७). १. पे. नाम. सवासो सीखाणण, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, प्रले.पं. जैतसी (भावहर्षसूरिगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य. औपदेशिक सवैया, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसद्गुरु उपदेश; अंति: इम कहे धरमसिंह समझाय, गाथा-३५. २. पे. नाम. वाडी पार्श्व पंचढाल स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-वाडी, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: झिरमर वरसेलो मेह; अंति: भवसमुद्र जिहाज ऐ. गाथा-५. ३. पे. नाम. तत्वविचार श्लोक, पृ. ३आ, संपूर्ण. तत्त्व विचार श्लोकसंग्रह, सं., पद्य, आदि: तत्त्वानि७ व्रत१२; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अंतिम पद नहीं है.) ५१२६३. (+#) पद्मावती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, १०४२८). पार्श्वधरणेद्रपद्मावती स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवते; अंति: आज्ञापयति स्वाहा. ५१२६४. स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२४.५४१०.५, १६४५४). १. पे. नाम. जंबूस्वामीजीकी वीनती, पृ. १अ, संपूर्ण.. __जंबूस्वामी सज्झाय, मु. दुर्गादास, मा.गु., पद्य, आदि: सुधर्मास्वामि तनी; अंति: दुरगदास गुण गाया, गाथा-११. २. पे. नाम. महाबीरजी की बीनती, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. दुर्गादास, मा.गु., पद्य, वि. १८४९, आदि: जोग लेईने बीर जिणेस; अंति: सफल फली मननी __ आसा, गाथा-१६. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ पुहिं., पद्य, आदि: चेतन एक बात सुणी; अंति: मोह पार करना, गाथा-४. ५१२६५. (-) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२४.५४१०, १७४४६). १.पे. नाम. चतुर्विशतिजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तुति, मु. चंद्रभाण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५१, आदि: ऋषभ जिणेसर रूडा; अंति: चंदरभाण० सहर मंझार, गाथा-३०. २. पे. नाम. सीमंदरस्वामी स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.. सीमंधरजिन स्तवन, मु. उत्तम, मा.गु., पद्य, वि. १८६४, आदि: श्रीश्रीमंदिरस्वामी; अंति: उत्तम०अधक उल्हासा हो, गाथा-६. ५१२६६. (+) स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ५, प्रले. मु. ख्यालीराम ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११.५, १८४४८). १.पे. नाम. नेमजीन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नेमिजिन स्तवन, म. चोथमल, रा., पद्य, वि. १८५२, आदि: श्रीनेमीसर साहवा; अंति: हिवै पुरो हमारी आस, गाथा-७. २. पे. नाम. उपदेश सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-नवघाटी, मु. चोथमल ऋषि, रा., पद्य, आदि: नवघाटी मे भटकतारे; अंति: चौथमल० सहुरी लाज, गाथा-१५. ३. पे. नाम. नेमजीननवभव स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, रा., पद्य, आदि: मेहे ध्यावा लाहो; अंति: प्रभुजी तुम धणी जी, गाथा-१७, (वि. प्रतिलेखक ने दो गाथा को एक गाथा गिना है.) ४. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. श्राव. देवब्रह्मचारी, पुहिं., पद्य, आदि: काशीदेश बनारस नगरी; अंति: ० माहरी वीनतडी अवधार, गाथा-९. ५. पे. नाम. अध्यात्म पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. कुशल, पुहिं., पद्य, आदि: चितानंद मान कह्या; अंति: कुसल०निज गुणसूध हेरा, गाथा-१०. ५१२६७. स्तवन व गुंहली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. सुरत बिंदर, प्रले. दया; पठ. श्रावि. पुंजीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्री शांतिनाथ प्रसादः, प्र.ले.श्लो. (९१२) पोथी प्यारी प्रांणकी, दे., (२५.५४११.५, १२४३५). १.पे. नाम. संखेस्वर पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: भवि तुमें वंदो रे; अंति: निजरूपें चिरनुंदे, गाथा-७. २.पे. नाम. गुरुगुण गँहुली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जिनचंद्रसूरि गँहली, मु. कस्तूर, मा.गु., पद्य, आदि: सरसत सामिनी विनवू; अंति: कस्तूर नमे मंगलमाल, गाथा-१०. ५१२६८. (#) साधारणजिन पद सह टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०, २१४६८-७६). साधारणजिन पद, प्रा., पद्य, आदि: दुरियं हरतु अहरा; अंति: महुमयण विणासण अमरा, गाथा-१. साधारणजिन पद-अक्षरगमनिकाटीका, सं., गद्य, आदि: अहिरेति अः कृष्णो; अंति: विलसन शीला इत्यर्थः. ५१२६९. (#) चैत्यवंदन चौवीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११, ११४३२). चैत्यवंदनचौवीसी, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम नमुं श्रीआदि; अंति: रुपविजय गुण गाय, चैत्यवंदन-२४, गाथा-७५. ५१२७१. (#) आंतरानुं अधिकार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१०.५, १०४३२). २४ जिन आंतरा, मा.गु., गद्य, आदि: २४ श्रीमहावीर २३; अंति: महावीर तीर्थंकर हवा. ५१२७२. (#) स्तंभनक पार्श्वनाथ स्तवन व दुहा, संपूर्ण, वि. १७२३, ज्येष्ठ कृष्ण, ४, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. मु. तेजकल्लोल; पठ. श्रावि. रूपकुवरी; अन्य. सा. लब्धिलक्ष्मी (गुरु सा. लावण्यलक्ष्मी); गुपि.सा. लावण्यलक्ष्मी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११,११४३२). १.पे. नाम. स्तंभनक पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण पणय सुरगण; अंति: विघनडांसघला हरे, गाथा-२५. २.पे. नाम. औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. दोहा संग्रह, पुहिं., पद्य, आदि: सज्जन तुम्ह गुण देख; अंति: नही उत्तम एहजरीत, दोहा-२. ५१२७३. (#) वीसविहरमान स्तवन, स्तुति व भावनाकुलक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४९, ११४३८). १.पे. नाम. वीसविहरमान स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. विहरमान २० जिन चैत्यवंदन, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विहरमांन छे जिनवर; अंति: जिनवर द्यो सुख संपदा, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ३७७ २.पे. नाम. विहरमांन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २०विहरमानजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: सीमंधरो नाम युगंधरो; अंति: लाभाय सुदर्शनस्य, श्लोक-५. ३. पे. नाम. भावना कुलक सह टबार्थ, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. २९ भावना प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: संसारम्मि असारे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा २ अपूर्ण तक है.) २९ भावना प्रकरण-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: संसार बेल के असार छे; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम पद का टबार्थ है.) ५१२७४. (#) पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १८०१, फाल्गुन कृष्ण, १, मध्यम, पृ. २, कुल पे. १४, प्र.वि. प्रतिलेखक का नाम घिसा हुआ व अपठनीय है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १२४४२). १.पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. भूपत, रा., पद्य, आदि: नेम निरंजन ध्यावो रे; अंति: भूपत० रस लीनो रे, गाथा-३. २. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन पद, मा.गु., पद्य, आदि: मत छोडो माने युही; अंति: पेहली राजुल नारी जी, गाथा-३. ३. पे. नाम. सम्मेतशिखरतीर्थ पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. क्षमाकल्याण, पुहिं., पद्य, आदि: मधुवन मै धुम मची होर; अंति: सुधक्षमा कहै करजोडी, गाथा-३. ४. पे. नाम. औपदेशिक होरी पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, पुहिं., पद्य, आदि: होरी खेलोरे भविक; अंति: तेरा पाप सबल थिर के, गाथा-३. ५. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जिनचंद, पुहिं., पद्य, आदि: नित ध्यावोरे रिषभ; अंति: गुण गावो नित जिनवरको, गाथा-३. ६. पे. नाम. सम्मेतशिखर पद, पृ. १आ, संपूर्ण. सम्मेतशिखरतीर्थ पद, पुहिं., पद्य, आदि: दरसण कीयौ आज सीखरगीर; अंति: रसतो पायो मुगत पद कौ, गाथा-४. ७. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. उदयसागर, पुहि., पद्य, आदि: अब हमकुंग्यान दियो; अंति: उदयसागर० दीयो मुज कु, पद-७. ८. पे. नाम. मुनिसुव्रतनाथ पद, पृ. २अ, संपूर्ण. मुनिसुव्रतजिन पद, पुहिं., पद्य, आदि: मुनीसुव्रतनाथ जिनेसर; अंति: कीरत गावो परमेसर की, पद-४. ९. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. २अ, संपूर्ण. नेमराजिमती फाग, पुहि., पद्य, आदि: एक सुणज्यो नाथ अरज; अंति: शीवपूरी कि सेरी, गाथा-५. १०. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. चंद, पुहि., पद्य, आदि: जादवपत मेरो मन हर; अंति: चंद० मन हर लीयो रे, गाथा-५. ११. पे. नाम. सम्मेतशिखरजी पद, पृ. २अ, संपूर्ण. सम्मेतशिखरतीर्थ फाग, पुहिं., पद्य, आदि: चालो जइए समीतशिखरगिर; अंति: पद तुमे अनुभव कू, गाथा-३. १२. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनचंद्र, पुहिं., पद्य, आदि: जय बोलो पास जिनेसर; अंति: चेसी छाय सरुतरु की, गाथा-७. १३. पे. नाम. नेमिजिन होरी पद, पृ. २आ, संपूर्ण. नेमिजिन होरी, पुहिं., पद्य, आदि: एसे स्याम सलुणे; अंति: मिट गए दुरित जंजाल, गाथा-८. १४. पे. नाम. आध्यात्मिक होरीपद, पृ. २आ, संपूर्ण. आ. जिनलाभसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: होरी खेलइया प्रभु भज; अंति: अनुपम भव नीस्तरे, गाथा-८. ५१२७५. (+) स्तवन व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५.५४११.५, १८४३७). १.पे. नाम. पार्श्वनाथ भगवानना १०८ नामनो छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन अष्टोत्तरनाम छंद, मु. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८१, आदि: पासजिनराज सुणि आज; अंति: संपदा सुख वरियौ, गाथा-२१. २. पे. नाम. छंद ज्ञान, पृ. १आ, संपूर्ण. छंदज्ञान, आ. पिंगलाचार्य, मा.गु., पद्य, आदि: लीलावती मगणकरि सहिए; अंति: अवर सवे गुरु होय, गाथा-३. ३. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: याम मध्ये न भोक्तव्य; अंति: याम युग्मे बलक्षयं, श्लोक-१. ५१२७७. (#) स्वाध्याय संग्रह व स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. ऋ. खुशालचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४१०, ९-१८x२८-५२). १.पे. नाम. त्रेवीश पदवी वर्णन स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. २३ पदवी वर्णन स्वाध्याय, मु. केशव, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम नमी श्रीवीरजिण; अंति: सांभलिज्यो जनवृंदरे, गाथा-२१. २.पे. नाम. नौधा क्रियाविधि स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण. साधुगुण सज्झाय, ग. मणिचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: श्रवण १ कीर्तन २; अंति: मुनिचंद० लहस्यइंतेह, गाथा-११. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सं., पद्य, आदि: गवां विलासे कुशलो; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक ५ अपूर्ण तक है.) ५१२७८. (#) सज्झाय, स्तवन संग्रह व मंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्रले. पं. रविविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १८४३७). १. पे. नाम. प्रसनचंद्रऋषि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुतमारा पाय; अंति: ऋद्धिविजय० प्रत्यख्य, गाथा-६. २. पे. नाम. पार्श्व स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: मेरे साहिब तुम ही; अंति: जस कहेन्दीजे परमानंदा, गाथा-५. ३. पे. नाम. पदप्रभूस्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. साधारणजिन पद, म.रूपचंद, पुहि., पद्य, आदि: निरंजन यार वोरे अब: अंति: रूपचंद० सम देवन और. गाथा-५. ४. पे. नाम. छ दर्शन प्रबोध स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-षड्दर्शनप्रबोध, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: ओरन से रंग न्यारा; अंति: रूपचंद०सरण तुमारा हे, गाथा-८. ५. पे. नाम. धागा अभिमंत्रण विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. ___मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ५१२७९. (#) पाक्षिक अतिचार,पाक्षिक तप व पानी-सुखडी काल, संपूर्ण, वि. १९२८, ज्येष्ठ कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ५, ले.स्थल. डीसानगर, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १६४३८). १. पे. नाम. साधु अतिचार, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मिय; अंति: करी मिच्छामि दुक्कडं. २. पे. नाम. श्रावक अतिचार, पृ. ३आ, संपूर्ण. श्रावक पाक्षिकादि अतिचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: एवं कारे जति वणे; अंति: करी मिच्छामि दुक्कडं. ३. पे. नाम. तप आलापक, पृ. ३आ, संपूर्ण. पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीतप आलापक, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: इच्छं सवसवि पखिय; अंति: पखिय तप प्रसाद करोजी. ४. पे. नाम. तप विचार, पृ. ३आ, संपूर्ण, पठ. मु. दोला, प्र.ले.पु. सामान्य. पक्खीचौमासीसंवच्छरी तप विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: चउत्थेणं एक उपवास; अंति: तप करी पोहचाडवो. For Private and Personal Use Only Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ३७९ ५. पे. नाम. सुखडी काल, पृ. ३आ, संपूर्ण. __ सचित्त अचित्त वस्तु काल निर्णय, मा.गु., गद्य, आदि: आषाढे चोमासामाहे; अंति: वीस दीननो काल पाणीनो. ५१२८०. (#) वीस विहरमानजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९४०, आषाढ़ शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. जोधपुर, प्रले. पं. जुहारमल्ल, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १२४३९). विहरमान २० जिन स्तवन, पा. धर्मसिंह, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: वांदुमन सुध विहरमाण; अंति: धरमसी०धरी ध्रमसी नमे, ढाल-३, गाथा-२७. ५१२८१. (#) स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१०.५, ११४३३-३८). १. पे. नाम. ऋषभजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: ऋषभनाथ भनाथनिभानन; अंति: तनुभातनुभातनु भारती, श्लोक-४. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: देवदेवाधिपैः सर्वतो; अंति: रतीर्यच्छताद्वस्सदा, श्लोक-४. ५१२८२. (+) दसारणभद्र चोढालीयो व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ११४३६). १.पे. नाम. दसारणभद्र चोढालीयो, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण.. दशार्णभद्रराजर्षि चौपाई, मु. कुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७८६, आदि: सारद समरु मनरली समरु; अंति: कुशल सीस गुण गाईया, ढाल-४. २. पे. नाम. सुभाषित श्लोक, पृ. २आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह , प्रा.,सं., पद्य, आदि: सद्रव्यं सत्कुलेजन्म; अंति: पंच दुर्लभाः, श्लोक-१. ५१२८३. ऋषभनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९२३, श्रावण कृष्ण, १, जीर्ण, पृ. २, प्रले. श्राव. बगतावरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, ९४२९). आदिजिन छंद-धुलेवामंडन, आ. गुणसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रमोदरंगकारणी कला; अंति: ऋद्धिसिद्धि पाईए, ___गाथा-८. ५१२८४. औपदेशिक श्लोक व दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२३.५४१०, १३४४५-५२). १.पे. नाम. औपदेशिक श्लोक सह बालावबोध, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण.. औपदेशिक श्लोक, सं., पद्य, आदि: दानं सुपात्रे विसदं; अंति: वृक्षस्य फलान्यमूनि, श्लोक-३. औपदेशिक श्लोक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंत भगवंत वीतराग; अंति: कल्याण संपजै. २. पे. नाम. दोहा संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. ____ पुहिं., पद्य, आदि: कोयल कहै पपीहडा; अंति: दाधो छै सहु कोय, दोहा-१. ३. पे. नाम. सोल सतीरा नाम, पृ. २आ, संपूर्ण. १६ सती स्तुति, सं., पद्य, आदि: ब्राह्मी चंदनबालिका; अंति: कुर्वंतु वो मंगलम्, श्लोक-१. ५१२८५. (+) दान सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४१०.५, १३४३७-४२). औपदेशिक सज्झाय-दानफल, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: एक घर घोडा हाथीयाजी; अंति: दान तणे परमाण रे, गाथा-१४. ५१२८६. श्रीमंधरस्वामी आलोचणा, संपूर्ण, वि. १७२८, पौष शुक्ल, ७, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, पठ. श्रावि. अमृतबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१०.५, १०४३८). सीमंधरजिन स्तवन-आलोयणाविनती, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: आज अनंता भवतणां कीधा; अंति: लावण्य० आणंद पूरितु, गाथा-४८. ५१२८७. (+#) कर्मग्रंथ २ कर्मस्तव सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, २०४२३). For Private and Personal Use Only Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: वंदियं नमहतं वीरं, गाथा-३४. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: तह० तिम थुणिमो; अंति: पहतउ मुक्तिइ. ५१२८९. नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. कुल ग्रं. ११, दे., (२५.५४११, १०४३३). नेमराजिमती स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: तोरण आवी रथ फेरी गयो; अंति: जस० दंपती दोय सीध, गाथा-६. ५१२९०. (#) रास, गीत, पद, छंद व सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८६७, चैत्र कृष्ण, २, मध्यम, पृ. ५-१(१)=४, कुल पे. ५, प्रले. ग. रंगविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३४५२). १. पे. नाम. बुध रास, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. बुद्धिरास, आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: ते घरि टले क्लेश तो, गाथा-६२, (पू.वि. गाथा ३० अपूर्ण से है., वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) २. पे. नाम. नेमनाथनो सलोको, पृ. २आ-४आ, संपूर्ण, वि. १८६७, चैत्र कृष्ण, २, प्रले. मु. रंगविजय (गुरु ग. रुपविजय), प्र.ले.पु. सामान्य. नेमिजिन सलोको, क. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धि बुद्धि दाता; अंति: उदयरतन० एहनें तोले, गाथा-५५. ३. पे. नाम. नवकार संगीत पद, पृ. ५अ, संपूर्ण.. मा.गु., पद्य, आदि: रण चरतखां नवकारवली; अंति: एकउ नाचत चंचल तुरी, गाथा-१. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन छंद, पृ. ५अ, संपूर्ण, प्रले. रंगजी, प्र.ले.पु. सामान्य. पार्श्वजिन अमृतधुन-गोडी, मु. जिनचंद, पुहिं., पद्य, आदि: झिगमग झिगमग जेहनी; अंति: चलेसो आयो धरपति जाम, गाथा-८. ५. पे. नाम. स्त्री-दोष सज्झाय, पृ. ५अ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. स्त्री दोष वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: ईश्वरोवाच सांभलिए; अंति: (-), (पू.वि. "गोरीयामाहे लीपीज तेलमां" पाठ तक है.) ५१२९१. (+) आद्रकुमार चोढालीयो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, १४४३६-३८). आर्द्रकुमार चोढालियो, उपा. रत्नविमल, मा.गु., पद्य, आदि: चरमजिणेसर नित नमी; अंति: रतनविमल० परि गावैरे, ढाल-५, गाथा-९१. ५१२९२. (#) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५-३(१ से ३)=२, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, ९४३५). १. पे. नाम. तिजयपहुत्त स्तवन, पृ. ४अ-४आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., पे.वि. तिजयपहुत्त यंत्र सहित. तिजयपहत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: पणमिया सिद्धा, गाथा-१५, (पू.वि. गाथा ५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. शंतिकरं स्तवन, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण. संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: संतिकरं संतिजिणं जग; अंति: स लहइ सुह संपयं परमं, गाथा-१३. ३. पे. नाम. लघुशांति, पृ. ५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक ४ अपूर्ण तक है.) ५१२९३. (#) नवतत्त्व प्रकरण व जीवविचार प्रकरण, अपूर्ण, वि. १८०९, चैत्र कृष्ण, १, जीर्ण, पृ. ६-३(२ से ४)=३, कुल पे. २, प्रले.पं. मलूकचंद (गुरु पं. सतीदास गणि); गुपि.पं. सतीदास गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १२४३२-३६). १. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १० अपूर्ण तक है.) २. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. ५अ-६आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ www.kobatirth.org ३८१ आ. शांतिसूरि, प्रा. पद्य वि. ११वी, आदि (-); अंतिः रुदाओ सुवसमुदाओ, गाथा ५१ (पू. वि. गाथा १५ अपूर्ण से है.) ५१२९४. मदनभ्रमराजा प्रबंध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैवे. (२५.५x१०.५, २०x६०)मदनभ्रम महाराज प्रबंध, सं., प+ग, आदि: अंबालदेशे कांत्वां अंतिः समागतां प्रवेशो जातः, ५१२९५. (+) छ अवश्यक, अनुष्ठान लक्षण व पच्चक्खाण छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५X११.५, १२X३६). १. पे. नाम. छ आवस्यक, पृ. १अ, संपूर्ण. छ आवश्यक नाम, मा.गु., गद्य, आदिः छ आवश्यक छे तेहमा; अंति: तो भक्ति 'अनुष्ठान. २. पे. नाम. अनुष्ठानना लक्षण, पृ. १अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुष्ठाण लक्षण, मा.गु., गद्य, आदि: स्त्री तो बेई कही छे; अंति: इम लाग जांणवो. ३. पे. नाम. पचखांण छंद, पृ. १आ, संपूर्ण. ५१२९६. पच्चक्खाण छंद, मु. उत्तम, मा.गु., पद्य, आदि: दसमे प्रे उठी पचखाण, अंति: उतमे कह्यो एह विचार, गाथा- ९. (#) गुरुगुण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८४८, वैशाख कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. कृष्णगढ, प्रले. मु. दयाचंदजी ऋषि, पठ. मु. मोहणजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५X११.५, १६X५४). गुरुगुण सज्झाय, मु. मोतीचंद, मा.गु., पद्य वि. १८४७, आदि: जंबूद्वीप भरतमै; अंतिः कीयो मोतीचंद हित आणी, गाथा - १९. ५१२९७. (४) स्तवन व सझाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०बी, जीर्ण, पृ. २- १ (१) -१, कुल पे. ४. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५X११, १३X३३). १. पे नाम, सीमंधर स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण सीमंधरजिन स्तवन, मु. केशव, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सुरासुर सेवित; अंति: केशव० तेरे नित गाय, गाथा-४. २. पे नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. २अ २आ, संपूर्ण मु. श्रीपति, मा.गु, पद्य, आदि: श्री श्री श्री अंतिः श्रीपति० सोहामणोजी, गाथा-५. ३. पे. नाम. चेल्लणा सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. पेलणारानी सज्झाय, मु. रायचंद, मा.गु., पद्य, आदि; धनि चेलणा वीर वखाणी: अंतिः रायचंद० जगत गवानी हो, गाथा - ९. ४. पे. नाम. चेलणासती सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर वंदी चलता थका, अंति: समयसुंदर० भव तणो पार, गाथा - ६. ५१२९८. नेमीजिन गीत, संपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. १, दे. (२५.५४११. ११४४१). नेमिजिन गीत, मु. दयानंद, मा.गु., पद्य, आदि: साहिबीआ रे हुं आठ भव; अंति: दयानंद० नेमि समधरि रे, गाथा- १४. ५१२९९, (४) प्रतिक्रमण सूत्र संग्रह व विधि, संपूर्ण, वि. १९वी जीर्ण, पृ. ४, कुल पे. २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४.५X११.५, १६x५९). १. पे नाम. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पू. १अ ४अ, संपूर्ण. आवक प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा., मा.गु. प+ग, आदि नमो अरिहं० सव्वसाहूण, अंतिः करेमि काउसगं. २. पे. नाम. पडिकमणाकरवारी बीध पृ. ४अ ४आ, संपूर्ण. लघुप्रतिक्रमणविधि-संध्याकालीन, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावे कहे, अंति: इणतरेसुं पडकमणो कीजे. ५१३००. संथारापोरसी सूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. घाणेराव, प्रले. पं. देवेंद्रसागर, पठ. श्रावि. गुलाबा बाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X११.५, १४X३६). संधारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसीही निसीही नमो अंतिः इअ समत्तं अणाहिअं, गाथा-१४. , ५१३०१. प्रतिमाप्रतिष्टा विधि, संपूर्ण, वि. १८५७, पौष कृष्ण, ५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल. मेता, प्रले. पंन्या. हर्षविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीसंभव प्रसादात, जैये. (२४.५४११.५, १७४४०). For Private and Personal Use Only Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रतिष्ठा विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: गुरुशुक्रोदये प्रथम; अंति: नीच इत्यादी टालीइ. ५१३०२. सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४११.५, ९४३९). सिद्धचक्र स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धचक्र वर पुजा कि; अंति: पद्मविजय० हित साधे, गाथा-१३. ५१३०३. सिद्धातचंद्रिका प्रथम श्लोक टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४१०.५, १५४३८-४२). सिद्धांतचंद्रिका-टीका, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य प्रणायात्पूर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम सूत्र की टीका है.) ५१३०४. (#) मौनएकादशी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९०७, फाल्गुन कृष्ण, १२, जीर्ण, पृ. ४, प्रले. मु. पुन्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, ११४३०). मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: द्वारिकानयरी समोसर्य; अंति: कांति० मंगल अति घणो, ढाल-३, गाथा-२५. ५१३०५. (+) दोसावहार स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४१०.५, २१४४८-५४). पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: दोसावहारदक्खो नालिया; अंति: जिणप्पहसूरि० पीडति, गाथा-१०. पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहगर्भित-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: दोषा दूषणानि तेषां न; अंति: गुंफितं कृतमित्यर्थः. ५१३०६. (#) साधु उपमा पत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १२४३८-४६). साधु उपमा पत्र, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: अनेक हृद्यानवद्योद्य; अंति: त्रिभुवनोदर विवरान्. ५१३०७. (#) चंद्रप्रभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, ३८x२६). चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. दौलत, मा.गु., पद्य, वि. १८६०, आदि: हां रे मारे अष्टमा ए; अंति: दोलत दीन दीपती रे लो, गाथा-१३. ५१३०८. (#) पार्श्वनाथ स्तवन व कल्लाणकंद स्तुति, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, पठ. मु. दीप्तिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १५४३३). १.पे. नाम. चिंतामणिपार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: आणी मनि सुधी आसता; अंति: समयसुंदर० चिंता चूर, गाथा-६. २. पे. नाम. कल्लाणकंद स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: कल्लाणकंदं पढम; अंति: अंब सया पसत्था, गाथा-४. ५१३०९. (#) ढंढणमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. सुरत बिंदर, पठ. श्रावि. राजाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १०-११४३६). ढंढणऋषि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: कृष्ण नरेसर पूछिओ रे; अंति: तेज हरष तुम ध्यान, गाथा-७. ५१३१०. (-) पंचमआरा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२५४१२, १४४३३). पंचमआरा सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर कहै गोयम सूणो; अंति: समयसुंदर० रसालो रे, गाथा-२१. ५१३११. (#) भक्तामर स्तोत्र व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १२४३८). १.पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः , श्लोक-४४. २. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र-शेष काव्य, पृ. ४अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ३८३ भक्तामर स्तोत्र-शेषकाव्य, हिस्सा, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: गंभीरताररवपुरिदिग्वि; अंति: गुणैः प्रयोज्यः, श्लोक-४. ३. पे. नाम. जिनपूजा महिमा श्लोक, पृ. ४अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: उपसर्गाख्ययंयाति; अंति: (-), श्लोक-२. ५१३१२. यति प्रतिक्रमणसूत्र, पाखीखामणा, प्रव्रज्याकुलक, २५ आवश्यकविचार संग्रह व महावीरजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ६, जैदे., (२५.५४१०.५, १७४४०). १. पे. नाम. यतिप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: नमो अ० करेमि भं: अंति: वंदामि जिणे चउवीसं. (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) २.पे. नाम. खामणासूत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पिय; अंति: त्थार पारगा होहित्ति, आलाप-४. ३. पे. नाम. प्रवज्या कुलक, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. प्रव्रज्या कुलक, प्रा., पद्य, आदि: संसारविसमसायरभवजल; अंति: तरंति ते भवसलिलरासिं, गाथा-३५. ४. पे. नाम. द्वादशावर्त खामणा विधि, पृ. ३आ, संपूर्ण. आवश्यकसूत्र-हिस्सा वंदनकअध्ययन, प्रा., गद्य, आदि: अहो १ कायं २ काय; अंति: षडावर्त एवं १२, सूत्र-०१. ५.पे. नाम. २५ आवश्यक विचार, पृ. ३आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: पहिलं वि वांदणे थई; अंति: सर्वावश्यक २५ जाणिवा. ६.पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: वीरं देवं नित्यं; अंति: दद्यात्सौख्यम्, श्लोक-१. ५१३१३. (#) अनाथीऋषी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३८). अनाथीमुनि सज्झाय, मु. सिंहविमल, पुहि., पद्य, आदि: मगध देश को राज राजे; अंति: सीहविमल० गर्भावास, गाथा-२०. ५१३१४. (-#) महावीरजिन स्तवन व औपदेशिक सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षर फीके पड गये हैं, दे., (२५.५४११, १३४४०). १.पे. नाम. वीरजिनतप स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-तपगर्भित, मा.गु., पद्य, आदि: बार वसइ रे वीरजीइ तप; अंति: वीरजी सुहामणा, गाथा-८. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जीभलडिली सुणि बापडली; अंति: प्रेम० उत्तम फल होइ, गाथा-१९. ५१३१६. (#) कुमतिमत खंडण स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. ग. लावण्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंशखंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १२४३१). जिनप्रतिमास्थापना सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जिन जिन प्रतिमा वंदन; अंति: जस० कीजइ तास वखाण रे, गाथा-१५. ५१३१७. सज्झाय संग्रह व प्रस्ताविक श्लोक, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. ग. सुबुद्धिचंद्र (गुरु पं. सिद्धिचंद्र गणि); गुपि. पं. सिद्धिचंद्र गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १६x४४). १.पे. नाम. सनतकुमार चक्रवर्ती स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सनत्कुमार चक्रवर्ती सज्झाय, मु. आणंदविजय, मा.गु., पद्य, आदि: देव तणी रे वाणी सुणी; अंति: आणंदविजय०मोरा लालरे, गाथा-१३. २. पे. नाम. गयसुकमाल सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, सेवक, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिननाय वांदीइ रे; अंति: सेवक करइ प्रणाम, गाथा-१३. For Private and Personal Use Only Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३८४ www.kobatirth.org ३. पे. नाम. प्रस्ताविक श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: हंसा रचंतिसरे भमरा; अंति: (-), श्लोक-१. ५१३१८. (+) जीवविचार प्रकरण, संपूर्ण, वि. १६८३, पौष शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले. स्थल. सिणोर, प्रले. मु. वृद्धिविजय (गुरु ग. वीरविजय पंडित); गुपि. ग. वीरविजय पंडित, पठ. मु. रत्नविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५.५x११, ११X३१). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवण पइवं वीरं नमिउण, अंतिः रुद्दाउ सुय समुद्दाउ, गाथा - ५३. ५१३१९. समोसरण स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १, जैवे. (२५.५४११. ११४३६). ५१३२०. सती सझाय, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, वे. (२५.५४११.५ १२४३३) " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महावीरजिन स्तवन- समवसरण, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु, पद्य, आदिः त्रिशलानंदन बंदीये; अंति: जस० जनपद सेवा खंत, गाथा- १७. " १. पे. नाम. सीमंधर स्तव, पृ. १अ, संपूर्ण. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नारीगुण सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु, पद्य, आदिः सर्व सरीखा नर नही सर, अंतिः कविवण० तेज सवाया जी, गाथा - २८. ५१३२१. (#) सीमंधरजिन स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पणक का अंश नष्ट, अक्ष स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५.५x११, १३४४७). सीमंधरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: स्वस्तिश्रीपुंडरीकिण अंति: उदयरतन० जीवन प्राण, गाथा- ११. २. पे. नाम, सीमंधरस्वामी स्तव, पृ. १अ १आ, संपूर्ण सीमंधरजिन स्तवन- आलोयणा, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदिः आलोयण हो बोलुं बे कर, अंति: उदयरतन० होइ निरधार, गाथा १५. ५१३२३. (+) शंखेश्वर पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५X११, १५X४९). ५१३२२. (+) स्तुति व औपदेशिक लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८२४, मार्गशीर्ष शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, ले. स्थल. धांगध्रा, प्रले. पं. मोहनरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५X१०.५, १४X३७). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १अ संपूर्ण प्रले. मु. तेजरत्न प्र.ले.पु. सामान्य. पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ, जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि दें कि धपमप अंतिः दिशतु शासनदेवता, श्लोक-४. २. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक श्लोक संग्रह *, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: शुक्लध्यान औषध लगे; अंति: (-), श्लोक - १. ३. पे. नाम. ऋषभदेव स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-सुधर्मदेवलोकभावगर्भित. ग. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सौधर्म देवलोक पहिलो; अंति: कांतिविजय गुण गाय, गाथा- ४. For Private and Personal Use Only पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरमंडण, मु. विद्याचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १६६०, आदि: सरसति मात पसाउले एतो; अंतिः विद्याचंद० दिसि तपइ, गाथा २६. ५१३२४. (#) छंद संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८-७ (१ से ७) = १, कुल पे. २, पठ. श्राव. कानजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११.५, १७x४४). १. पे. नाम संखेसरा छंद, पृ. ८अ संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद- शंखेश्वर, पंडित, जयवंत, मा.गु, पद्य, आदि: शारदाई सार करि हर अख अंतिः जयवंत० संखेस्वारा, गाथा - १३. २. पे. नाम. अंबावि छंद, पृ. ८आ, संपूर्ण. अंबिकादेवी छंद, मु. हर्ष, मा.गु., पद्य, आदिः आदि सकति अंबाविसु, अंति: हरष० जन मन वंछित फलइ, गाथा-९. Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ५१३२६. साधुगुण स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४११.५, १४४४२). साधुगुण सज्झाय, आ. आनंदविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजनवरने करू प्रणा; अंति: विमलआणंज० लेसे तेह, गाथा-१५. ५१३२७. (#) मेतारजमुनि सज्झाय व जंबूस्वामी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. पं. रंगरत्नजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १७४३९). १.पे. नाम. मेतारजमुनिवर सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण, ले.स्थल. लींबडी. मेतार्यमुनि सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समुदर गुणना आगरूजी; अंति: राजविजय० तणी सझाय, गाथा-१३. २. पे. नाम. जंबूस्वामी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. जयचंद, मा.गु., पद्य, वि. १६२६, आदि: सरसति सामीने वीनवु; अंति: जेचंद० ते जयजयकार, गाथा-१२. ५१३२८. (#) वीर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १२४४३). महावीरजिन विनती स्तवन-जेसलमेरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणउ मोरी वीनती; अंति: समय० त्रिभुवन तिलउ, गाथा-१९. ५१३२९. ज्ञान पंचवीसी, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. पाडलीपुर, प्रले.ग. सुखलाभ; पठ. श्रावि. कंगणा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१०,९४३६). ज्ञानपच्चीसी, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: सुरनरतिर जग जोनिमई; अंति: वनारसी० करन के हेत, गाथा-२५. ५१३३०. (#) अंतरीक्ष पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९०२, माघ कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १३-१४४३०). पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५८५, आदि: सरस वचन द्यो सरसति; अंति: ___लावण्यसमे० पामु सदा, गाथा-४८. ५१३३१. ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., (२४.५४११.५, १२४३७). ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्य; अंति: लभ्यते पदमव्ययम्, श्लोक-९३, ग्रं. १५०. ५१३३२. स्तुति व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ८, जैदे., (२५४११, १८४४६). १. पे. नाम. पचंमीदिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. पंचमीतिथि स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: पंचरुप करी मेरुशिखर; अंति: विघन अम्हारांजी, गाथा-४. २. पे. नाम. दशमीदिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. पोषदशमीतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: इह लोकिं परलोकिं पूर; अंति: लबधि० मनरंगिंजी, गाथा-४. ३. पे. नाम. मौनएकादशी दिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादसी अति रूअडी; अंति: गुणहर्ष० तणा निसदीस, गाथा-४. ४. पे. नाम. बीजदिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: लबधि० पूरि मनोरथ माय, गाथा-४. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: कल्याणानि समुल्लसंति; अंति: सत्कल्याणमाहात्म्यतः, श्लोक-१. ६. पे. नाम. विजयप्रभसूरि स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: नयविभूषणपारगतागमः; अंति: विजयप्रभसद्गुरोः, श्लोक-१. For Private and Personal Use Only Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७.पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रीवीरोदितवाचश्च; अंति: ददतां शिव संपदः, श्लोक-४. ८. पे. नाम. आशीर्वाद, पृ. १आ, संपूर्ण. गुणरत्नम्, क. भवभूति, सं., पद्य, आदि: सानदं नंदिहस्ता; अंति: (-), श्लोक-१, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम श्लोक लिखा है.) ५१३३३. कुलक, स्तोत्र व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १५५६, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ७, पठ. मु. विवेकधर्म (गुरु पं. सहजधर्म गणि); गुपि.पं.सहजधर्म गणि (गुरु पं. धर्ममंगल गणि); पं. धर्ममंगल गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४५५). १.पे. नाम. पुण्यसामग्री कुलं, पृ. १अ, संपूर्ण. पुण्य कुलक, प्रा., पद्य, आदि: सपुन्न इंदिअत्त माणु; अंति: ते सासयं सुक्खं, गाथा-१०. २. पे. नाम. भारती स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. शारदादेवी स्तुति, सं., पद्य, आदि: प्रथम भारती नाम; अंति: देवी शारदा वरदायिनी, श्लोक-४, (वि. प्रतिलेखक ने दो पद को एक लिखा है.) ३. पे. नाम. संतिकर स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: संतिकरं संतिजिणं जग; अंति: मुनिसुंदर०संपयं परमं, गाथा-१३. ४. पे. नाम. भयहर स्तोत्र, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण पणयसुरगण; अंति: वाहिअनासइ तसुदूरेण, गाथा-२४. ५.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, प्रा., पद्य, आदि: तं नमह पासनाहं धरणिं; अंति: अनाउ सरह भगवंत, गाथा-४. ६. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: वंदे जगत्याजनकोपमानं; अंति: सदोदयासां, श्लोक-४. ७. पे. नाम. गुरु प्रदक्षिणा, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रभातिमंगल स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: गोअम सुहम्म जंबू पभव; अंति: विभदृष्टेपिदृष्टामया, गाथा-८, (वि. प्रतिलेखक ने दो गाथा को एक गाथा लिखा है.) ५१३३६. (#) स्थापना कल्प, गणपति पूजन विधि व सच्चिदानंद स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १८४४७). १. पे. नाम. स्थापना कल्प, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., प+ग., आदि: श्रीभद्रबाहुस्वामि; अंति: ज्ञातव्यं शुभाशुभं, श्लोक-७. २. पे. नाम. गणपति पूजन विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्वेतार्क श्वेतचंदन; अंति: इत्यष्टौ दिशि सादनं. ३.पे. नाम. सच्चिदानंद स्तोत्र पंचरत्न, पृ. १आ, संपूर्ण. सच्चिदानंद स्तोत्र पंचरत्न-सत्संहितायां, ऋ. वेद व्यास, सं., पद्य, आदि: गजवदनमचिंत्यं; अंति: श्रीगणेशं नमामि, श्लोक-५. ५१३३७. () स्तोत्र, मंत्र व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२५४११.५, १२४२८). १. पे. नाम. घंटाकर्णमहामंत्र स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ घंटाकर्णो महावीरः; अंति: कायव्वा सव्व कालेसु, श्लोक-४. २. पे. नाम. घंटाकर्णमहावीर पद्मावतीदेवी मंत्र जाप विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. घंटाकर्ण महावीर पद्मावतीदेवी मंत्रजापविधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं घंटा; अंति: पाईइ पेट पीडसमइ. ३. पे. नाम. चंद्रप्रभ महामंत्र स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ३८७ चंद्रप्रभजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ चंद्रप्रभः; अंति: दायिनि मे वरप्रदा, श्लोक-५. ४. पे. नाम. भगवती आराधना मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. जैन मंत्र संग्रह-सामान्य प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औषधवैद्यक संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५१३३८. (#) पाखि प्रतिक्रमण व पौषध विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४११.५, १३४४४). १.पे. नाम. पाखी पडिकमण विधि, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. प्रतिक्रमण विधि , संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: भणिज्यो पाखी पडकमणे, (वि. आदिवाक्य का पाठ खंडित होने के कारण प्रविष्ट नहीं किया है.) । २. पे. नाम. अठ पहरी पोसह विधि, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. पौषधविधि-अष्टप्रहरी, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: रात्रनै पाछे जै बि; अंति: विण विधिप्रपा. ५१३४२. चेलना सज्झाय व घडपण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४९.५, १२४३८). १. पे. नाम. चेलणाजी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण.. चेलणासती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर वांदी वलतां थकां; अंति: समयसुंदर० भवजल पार, गाथा-६. २. पे. नाम. घडपण सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-बुढ़ापा, मु. हेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गढपण किणे तुज तेडीओ; अंति: हेमविजय०सो गढपण आवीओ, गाथा-१२. ५१३४३. (+#) स्थापना कल्प सहटबार्थ व स्थापना विशेष विधि सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, ६४३७). १.पे. नाम. स्थापना कल्प सह टबार्थ, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. स्थापनाचार्य विधि, सं., प+ग., आदि: स्थापनाविधिं; अंति: सिद्धिदः.. स्थापनाचार्य विधि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: थापनानो विधि प्रतिइं; अंति: नइ विषय सिधिदिई. २. पे. नाम. स्थापना विशेष विधि सह टबार्थ, पृ. २आ, संपूर्ण. स्थापनाचार्य विशेषविधि, सं., गद्य, आदि: संध्यायां दुग्ध मध्य; अंति: भवति तदा राज वशकृत्. स्थापनाचार्य विशेषविधि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सांजइ दूधमांहिं थापन; अंति: हुइ तउ राजा वश करइ. ५१३४५. प्रभाती, कवित व दोहा, संपूर्ण, वि. १९८२, माघ शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. मु. दोलतसोम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२, १३४४०). १.पे. नाम. आदिजिन प्रभातीयु, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सारकर सारकर श्रीऋषभ; अंति: रूप० सदा हाथा जोडि, गाथा-११. २. पे. नाम. औपदेशिक कवित, पृ. १आ, संपूर्ण. सेख, पुहिं., पद्य, आदि: इंद्र के अगराज आगे; अंति: सेख० अर्थ कहा लडाइइ, गाथा-३. ३. पे. नाम. औपदेशिक गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. गाथा संग्रह *, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२. ५१३४६. पार्श्वनाथ निसाणी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५.५४११.५, १५४३९). पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहि., पद्य, आदि: सुखसंपति दायक सुरनर; अंति: गुण जिनहरख गावंदा है, गाथा-२७. ५१३४७. आज्ञा स्तव, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, १३४३७). For Private and Personal Use Only Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आदिजिन स्तव, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नयगमभंगपहाणा विराहिआ; अंति: जिणपहसूरि० अम्हाण, गाथा-११. ५१३४८. आदिजिन स्तवन व नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३२). १.पे. नाम. शत्रुजय आदिनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने शत्रुजय पार्श्वनाथ स्तवन नाम लिखा है जवकि बास्तव में यह आदिनाथ स्तवन है. आदिजिन स्तवन-शत्रुजयमंडन, मु. मंडन, सं., पद्य, आदि: मानव वंछित दायकं सकल; अंति: मंडनेन स्तुतो मुदा, श्लोक-६. २. पे. नाम. नेमिनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. मंडन, सं., पद्य, वि. १६३०, आदि: जयाग्रादि जंबालिनीना; अंति: मधुमासे मया मंडनेन, श्लोक-६. ५१३५०. (+) यति आचार व विधि संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ६, जैदे., (२५.५४११, ५४३५). १. पे. नाम. संथारापोरसी विधि सह टबार्थ, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसीही ३ नमो खमासमणा; अंति: इय समत्तं ए गहियं, गाथा-१४. संथारापोरसीसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार हुओ क्षमा; अंति: ग्रह्य ओछइ लीधो छइ. २. पे. नाम. साधुअतिचार चिंतवन गाथा सह टबार्थ, पृ. २आ, संपूर्ण. साधुअतिचारचिंतवन गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सयणासणन्नपाणे; अंति: वितहायरणेय अइयरो, गाथा-१. साधुअतिचारचिंतवन गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सूवइ बइसवइ अन्नपाणी; अंति: ते मिछामि दुक्कडं. ३. पे. नाम. गोचरी आलोयणगाथा सह टबार्थ, पृ. २आ, संपूर्ण. गोचरी आलोयणगाथा, प्रा., पद्य, आदि: अहो जिणेहिं असावज्जा; अंति: साह देहस्स धारणा, गाथा-२. गोचरी आलोअण गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: आश्चर्य जिनेनीपाया; अंति: देह तेहनइं आधारभूत. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन सह टबार्थ, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: चउक्कसायपडिमलुल्लरण; अंति: जिणपास पयच्छ वंछियउ, गाथा-२. पार्श्वजिन चैत्यवंदन-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ए साधु योग्य च्यार; अंति: लोकनइ वांछित पूरउ. ५. पे. नाम. नवतत्त्व श्लोक संग्रह सह टबार्थ, पृ. ३अ, संपूर्ण. तत्त्व विचार श्लोकसंग्रह, सं., पद्य, आदि: तत्त्वानि व्रत धर्म; अंति: सया ज्ञेयस्यदिषभा सद, श्लोक-१. तत्त्वव्रतधर्मादिभेद श्लोक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तत्त्व ९व्रत १२; अंति: जाणइ तेहनइ साधु कहिइ. ६. पे. नाम. यति आचार गाथा, पृ. ३आ, संपूर्ण. जैनगाथा संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: कारुन्नरुन सिंगार; अंति: (-), गाथा-१, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम गाथा लिखा है.) ५१३५१. सझाय व प्रायश्चित यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, १४४२९). १. पे. नाम. देवगुरुधर्म सज्झाय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. ३ तत्त्व सज्झाय, मु. राममुनि, मा.गु., पद्य, आदि: परम पुरुष परमेश्वर; अंति: राममुनी कहे ए सिझाय, गाथा-२७. २. पे. नाम. प्रायछित विधि, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रायश्चित विधि यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ५१३५२. (+) जिनदत्तोपज्ञ कुलक, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०, १२४३५). जिनदत्तोपज्ञ कुलक, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: जिण०कुणंति ताणि न ते, श्लोक-३०, (पू.वि. गाथा १९ अपूर्ण से है.) ५१३५३. गीत व तीर्थंकरबल वर्णन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४११.५, १२४३८). १.पे. नाम. नेम गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, मु. नवल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस सुजन सामी सामलु; अंति: सील पालुं सुभ ध्यान, गाथा-१०. २.पे. नाम. बारपूरष बलमान, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ३८९ तीर्थंकरबल वर्णन श्लोक संग्रह, मु. धर्मसंघ, मा.गु., पद्य, आदि: बार पूरष बलमान सबल१; अंति: बल जिनवर माहि जाणीइ, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) ५१३५४. (#) सझाय व चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १३४३३). १. पे. नाम. दानफल सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. दानाधिकार सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामिणि पाय नमी; अंति: ए सहु दान प्रमाण रे, गाथा-१३. २.पे. नाम. आदिनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: आदिनाथ जगनाथ विमला; अंति: शासनं ते भवे भवे, श्लोक-५. ५१३५५. स्वाध्याय व श्लोक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४१२.५, ११४३२). १.पे. नाम. शिक्षा स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-आत्मोपरि, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सुमति सुंदरी वीनवि; अंति: उदयरतन० पामो सुख पूर, गाथा-१७. २. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक श्लोक संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: उपदेशोही मूर्खाणां; अंति: केवलं वीष वर्द्धनम्, श्लोक-१. ५१३५६. स्तवन व सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८४७, मार्गशीर्ष कृष्ण, १, सोमवार, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ६, ले.स्थल. भार्याग्राम, प्रले. पं. राम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११.५, १३४३०). १.पे. नाम. बारहगुण सहित अरिहंत स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. अरिहंतपद सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: वारीजाउंहु अरीहत; अंति: ज्ञानविमल गुण गेह, गाथा-७. २.पे. नाम. आठ गुण सहित सिद्ध स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. सिद्धपद स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: नमो सिद्धाणं बीजे पद; अंति: सुखिया सघला लोकरे, गाथा-८. ३. पे. नाम. छत्रीस गुण सहित आचार्य सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. आचार्यपद सज्झाय-नवकार पदाधिकारे तृतीय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: आचारी आचार्यनुंजी; अंति: बोधीबीज उच्छाहि, गाथा-९. ४. पे. नाम. पचवीस गुण सहित उपाध्याय सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. उपाध्याय पद सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: चउथे पद उवझायनों गुण; अंति: तेहथी सुभ ध्यान रे, गाथा-५. ५.पे. नाम. सत्तावीस गुण सहित साधु सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. साधुगुण सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: ते मुनिने करूं वंदना; अंति: ज्ञानविमल गुणवाधोरे, गाथा-७. ६.पे. नाम. नवकारगुण वर्णन स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: एपंचपरमेष्टी पद; अंति: एह छै सिद्धसरूप, गाथा-५. ५१३५७. चार निक्षेपा अर्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२५४११.५, १६४३६). ४निक्षेप विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलु नाम निक्षेपउ१; अंति: चित्तमांहि धरिज्यो. ५१३५८. जीव विचार, संपूर्ण, वि. १९०२, पौष शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. मुडाडानगर, पठ. श्राव. फताजी सा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १३४२७). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुदाउ सूयसमुद्दाओ, गाथा-५१. For Private and Personal Use Only Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५१३५९. (2) नाटक पचीसी,विरह द्वार व पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३५). १.पे. नाम. विरहद्वार, पृ. १अ, संपूर्ण. ४ गति विरहकाल समय, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. यह कृति प्रत के चारो ओर लिखी हुई है, किनारी खंडित होने से आदि-अंतिमवाक्य नहीं भरा है.) २. पे. नाम. नाटक पचीसी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ नाटकपच्चीसी, मा.गु., पद्य, आदि: कर्मना नृत तारिकै भय; अंति: भये तेम हुवे भौपार, गाथा-२५. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. जैनकाव्य संग्रह , मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. मात्र प्रारंभिक पाठ लिखा है.) ५१३६१. (#) आदिजिन विनती, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४११.५, १७४३६). आदिजिन विनती, मा.गु., पद्य, आदि: योगनमा मो मै घर केर; अंति: देयो श्रीजिनराज, गाथा-२५. ५१३६३. (+) षट् दर्शन सूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४११, १५४४०). षड्दर्शन समुच्चय, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: सद्दर्शनं जिनं नत्वा; अंति: सुबुद्धिभिः, अधिकार-७, श्लोक-८७. ५१३६४. जिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४१२, ९४२८). पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: रेंद्रे कि धप मप; अंति: दिशतु शासनदेवता, श्लोक-४. ५१३६५. जिन स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४१०.५, १२४३९). १.पे. नाम. सुमतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ सुमतिजिन समवसरण गीत, ग. जीतविजय, मागु., पद्य, आदि: आज गइति हुं समोसरणमा; अंति: जीतना डंका वाजें रे, गाथा-७. २.पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आज मारा प्रभुजि साहम; अंति: अहनिस लाड लडावो, गाथा-५. ५१३६६. (#) सेत्रुजा वधावो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११.५, १२४२८). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७३, आदि: सिद्धाचल सिद्ध सुहाव; अंति: भवजल पार उतरस्ये, गाथा-११. ५१३६८. (+#) मृगापुत्र सझाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, अन्य. श्रावि. सौभाग्यदे; श्रावि. आसबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४११.५, १३४३९). मृगापुत्र सज्झाय, मु. सिंहविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सुग्रीवनगरी सोहामणी; अंति: होज्यो तास प्रणाम, गाथा-२३. ५१३६९. (+#) मन:स्थिरीकरण प्रकरण का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्रले.ग. माणिक्यगणि (गुरु आ. जिनहससूरि); गुपि. आ. जिनहंससूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक नहीं होने से पत्रांक २ काल्पनिक दिया है., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२४.५४१०, २४x७०-७७). मनःस्थिरीकरण प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: जेतला हुइ ते विचारिआ. ५१३७०. (#) छंद व मंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. गोपाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५४४४). १.पे. नाम. माणीभद्र छंद, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. माणिभद्रवीर छंद, आ. शांतिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामनि पाय; अंति: आपो मुझसुख संपदा, गाथा-४२. २. पे. नाम. माणिभद्रवीर मंत्र संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. माणिभद्रवीर मंत्र विधिसहित, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रां ह्रीं ह्रः ऐ; अंति: (-), श्लोक-१. For Private and Personal Use Only Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ३९१ ५१३७१. (+) दस आवकनी सझाय, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११, १४४४५). १० श्रावक सज्झाय, आ. नन्नसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १५५३, आदि जिनचवीसह करी प्रणाम, अंति: गछ पभणड़ नन्नसूर, गाथा- ३१. " ५१३७२, (४) चक्रेश्वरी अष्टक, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५.५४११.५, ९३६). चक्रेश्वरीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीचक्रे चक्रभीमे, अंति: मां देवि चक्रे, श्लोक ८. ५१३७३, (४) पार्श्वनाथ स्तवन व सामान्य कृति, संपूर्ण, वि. १८४७ आश्विन कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले. स्थल. मेदनीपुर, प्रले. मु. रामचंद ऋषि (गुरु मु. चंदजी); गुपि. मु. चंदजी (गुरु मु. राजसींघजी); मु. राजसींघजी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११, १३X३२). १. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. खेमो ऋषि, मा.गु पद्य वि. १७३२, आदिः परम पुरुष जग परगडो अंतिः रसादे खेम सदा , सुखकार, गाथा २६. २. पे. नाम. बीकानेर राज्य राजावली, पृ. २आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. जैनेतर सामान्य कृति, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि: (-); अंति: (-). ५१३७४ (४) अष्टापद तीर्थ चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, वे. (२४.५४१०.५, १२x२८). जगचिंतामणि सूत्र संबद्ध, आ. गौतमस्वामी गणधर, प्रा. प+ग, आदि: जगचिंतामणी जगनाह, अंतिः ताई सव्वाई Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir יי वंदामी, गाथा- ४. ५१३७५. साधु गुण गुहली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पठ श्रावि. पुंजीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (२४.५४११.५, " ११X३४). गौतमस्वामी गहुली, मु. ज्ञान, मा.गु., पद्य, आदि; चरण करण गुण धारता अंति; लहे० पामजो सुख अभंग, गाथा- ६. ५१३७६. (#) चैत्यवंदन संग्रह व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. मु. रंगविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२४.५x११.५. १४४४९). १. पे. नाम. सास्वतनित्य स्तव, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके, अंति: सततं चित्तमानंदकारी, श्लोक-१०. ३. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा.सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-२. २. पे नाम, सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा., मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि : उप्पन्नसंनाणमहोमयाणं; अंतिः सिद्धचक्कं नमामि गाथा ६. ५१३७७. योगदृष्टि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, जैवे. (२४.५४११.५, १७४३९). ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्म, आदि; शिवसुख कारण उपदेशी अंतिः वाचक जसनइ वयणे जी, ढाल-८, गाथा-७६, ग्रं. ८४. ५१३७८. भावना, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, वे (२५.५x११, १३४३६-३८). . धर्म भावना, मा.गु., गद्य, आदि: धन्य हो प्रभु संसार, अंति: करी बंदण होज्यो. ५१३७९. द्वाद्वदशत्रिंशत दोष संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, ले. स्थल. रामनगर, प्रले. मु. बूटेराय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५X११, ५X४७). १. पे नाम. द्वाद्वादशत्रिंशत दोष सह टवार्थ, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. गोचरी दोष, प्रा., पद्य, आदि: अहाकम्मु १देसिअ २ अंतिः सरीरवोसेणट्टाए, गाथा-८. गोचरी दोष-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अ० आधाकर्मी आहार जे; अंतिः इत्यादिके सरीरवोसराइ. For Private and Personal Use Only Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३९२ www.kobatirth.org २. पे. नाम. बाराप्रकारका आहार, पृ. १आ, संपूर्ण. साधु कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची को त्याग करने योग्य १२ प्रकार के आधाकर्मि आहार, पुहिं., गद्य, आदि बाराप्रकार का आहार अंतिः कम्मे११ पमणाइकम्मे१२. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३. पे. नाम सातपिंडेसणा, पृ. १आ, संपूर्ण, साधु को कल्पनीय अकल्पनीय आहार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: खरडा न होय हाथ भांजन, अंति: आहार मिले लेसुं. ५१३८०. स्वाध्याय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., ( २४.५X११, १०X३३). १. पे. नाम. दशम, पृ. १अ संपूर्ण 3 औपदेशिक सज्झाय, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पुंडुर पान धवइ परि, अंतिः पुण्यह पुहचह जगीसोरे, गाथा-७. २. पे. नाम. पडिसति स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण. साधुगुण सज्झाय, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि दश आचार मुणिंदना बोल, अंतिः उदय० लहीह जय जयकार, गाथा - ६. ५१३८१. (१) सझाय व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे ४, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, . जैवे. (२५x११.५, १७४५२). १. पे. नाम. अनाथी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. अनाथीमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीणिक रखवाडी बज्यो अंतिः वंदे रे वे कर जोड, गाथा - १०. २. पे. नाम. सीतासती सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. सीतासती गीत, मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: छोडी हो पिउ छोडि; अंति: प्रणमु धरम हीयै धरी, गाथा- ११. ३. पे. नाम. मनभमरा सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, महमद, मा.गु., पद्य, आदि: भुलो मन भमरा कांइ, अंति: लेखो साहिब हाथ, गाथा - ९. ४. पे. नाम औपदेशिक लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण औपदेशिक श्लोक संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: आदिग्रंथिर्हरेद्राज्; अंति: धर्मे विना मानुष्याः, श्लोक-१३. ५१३८२. (+) उपधान तप व मालारोपण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे २, प्र. वि. संशोधित. जैदे. (२४.५X१०.५, " १५X४५). १. पे. नाम. उपधान विधि, पृ. १अ - ३अ, संपूर्ण. उपधानतप विधि, प्रा., मा.गु., सं., प+ग, आदि: पहिले बिहु पंचमंगलम; अंति: वीसरइ आलोअण आवइ. २. पे. नाम. मालारोपण विधि, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण. उपधानमालारोपण विधि, सं., प्रा., मा.गु., प+ग, आदि: इर्यापथिकी मुहपत्ती, अंतिः नित्थारग पारगाहोह ५१३८३. आचार्य जसवंत विवाहलउ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. सा. राजबाई आर्या (गुरु सा. हीराईजी आर्या); गुप. सा. हीराईजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२४.५४११.५, १३x२८) " जसवंत आचार्य विवाह, मा.गु., पद्य, आदि: जेहनउ जिनवर सुसर, अंतिः मझ मनि अस्य ऊमाहलउ, गाथा- १६. ५१३८४. (+) गीत व दूहा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले. स्थल, साहपुरा, प्रले. पं. रामचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५x११.५, १५X३५). १. पे. नाम. श्रावक गुण गीत, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. श्रावकगुण सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: कइयकइ मिलिस्यइ श्राव, अंति: सफल जन्म ि लीधो जी, गाथा - २१. २. पे. नाम. दूहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक दूहा संग्रह, पुहिं., प्रा., मा.गु., पद्य, आदि: सजन आया पाहणा, अंतिः जो कंचण वरखंत, गाथा-२. For Private and Personal Use Only Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ३९३ ५१३८५. (+) सझाय सह टबार्थ व अतिचारादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, पठ. पं. भक्तिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, ७४३७). १. पे. नाम. कौतुक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: गुरुजी कौतक दीठ हाथ; अंति: बाप पाखे बेडो उहवउए, गाथा-२३. कौतुक सज्झाय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: गुरु भणे कौतकनु अरथ; अंति: धर्मरूपीउ बेट ऊपनो. २.पे. नाम. आलोयणा विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: संथारादिक१ आसन; अंति: होइ ते आलोवा नंदवा. ३. पे. नाम. साधुअतिचारचिंतवन गाथा सह बालावबोध, पृ. १आ, संपूर्ण. साधुअतिचारचिंतवन गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सयणासणन्नपाणे; अंति: साहुदेहस्स धारणा, गाथा-२. साधुअतिचारचिंतवन गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अहोइती आश्चर्ये जिन; अंति: संजयपालवानुं कारण छइ. ५१३८६. (+#) स्तुति संग्रह व स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ९, प्रले.पं. लाभकुशल गणि; पठ.मु.प्रेम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १२-१४४४२). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तव, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंति: पूरय मे वांछितं नाथ, श्लोक-५. २. पे. नाम. अज्झाहरपार्श्वजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-उन्नतपुरअजाहरा, मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअजाहर पासजिणंद; अंति: भावसागर० द्यो भगवती, गाथा-४. ३. पे. नाम. ऋषभजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण, पठ. मु. प्रेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. आदिजिन स्तुति-उन्नतपुर, मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: उन्नतपुर मंडण जगतधणी; अंति: भावसागर०पावइ तेह नरा, गाथा-४. ४. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: आत्मारामो रामाकामो; अंति: विज्ञानिय॑ज्ञा, श्लोक-४. ५. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण.. आ. सोमतिलकसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीतीर्थराजः पदपद्म; अंति: दाता ददतां शिवं वः, श्लोक-१. ६. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: वीरं देवं नित्यं; अंति: सन्नो देवीदेयादंबा, श्लोक-१. ७. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. विजयप्रभ, सं., पद्य, आदि: कल्याणकोटिजननी जननी; अंति: विजयतां विजयप्रभाभा, श्लोक-१. ८. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. कमलोदय, सं., पद्य, आदि: ब्रह्मेन्द्रनीलमणि; अंति: लीलावती भगती कमलोदयी, श्लोक-१. ९. पे. नाम. गौतमस्वामी स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. क. कमलविजय, सं., पद्य, आदि: विजयतां परमागम देवता; अंति: विजयसेनगुरो कमलोदयी, श्लोक-१. ५१३८७. (+) बिंब प्रवेशादि विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, १३४३८). बिंबप्रवेश विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: गुरु शुक्रोदये भव्यं; अंति: क्रीयते शुभं कथयति. ५१३८८. अन्ययोगव्यच्छेद द्वात्रिंशिका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११, १७X४७). अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: अनंतविज्ञानमतीत; ___ अंति: कृतसपर्याः कृतधियः, श्लोक-३२. For Private and Personal Use Only Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५१३९१. गजसुकमालनी सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. जालोर, प्रले. इंद्रजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४११,१६४३५). गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५८, आदि: गजसुकुमाल देवकिरो; अंति: चोथमल० हरख करि गाइ, गाथा-२२. ५१३९२. स्याद्वाय सूचक वीर स्तवन, संपूर्ण, वि. १८३४, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. वीरमगाम, प्रले. मु. रामजी ऋषि (गुरु मु. सामजी ऋषि); पठ. श्राव. मलूकचंद संघवी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १३४४१). ५ कारण छ ढालिया, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: सिद्धारथसुत वंदिये; अंति: परे विनय कहि आणंद ए, ढाल-६, गाथा-५९. ५१३९३. ज्ञान पंचमीस्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४.५४११.५, ७४३७). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन-लघु, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पांचमी तप तुमे करो; अंति: ज्ञानना पंचम भेद रे, गाथा-५. ५१३९४. आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पठ. सा. मुली आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११, १०४२९). आदिजिन स्तवन, मु. चंद्रविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अतुलीबल अरिहंत आदीसर; अंति: मन वंछित लहे हो लाल, गाथा-५. ५१३९५. धना अनगार सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. मोरबी, प्रले. मु. रूपा ऋषि; पठ. मु. लालचंदजी (स्थानकवासी), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११.५, १३४३४). धन्नाकाकंदी सज्झाय, श्राव. संघो, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामिणी विनवू; अंति: संघो०एहवा साधुनु सरण, गाथा-१६. ५१३९६. ३२ असझाई, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४११.५, १२४३५). ३२ असज्झाय विचार, मा.गु., गद्य, आदि: उकाबाई ते तारो तूटै; अंति: आधी रातकी असझाई३२. ५१३९७. बोल आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२५४११.५, २१४४३). १.पे. नाम. काव्य सह बालावबोध, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जैन पारिभाषिक शब्दसंख्या, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: तत्वानि९ व्रत५ धर्म; अंति: ज्ञेयाः सुधीभिस्सदा. जैन पारिभाषिक शब्दसंख्या-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: तत्वानि नवतत्व जीव१; अंति: अतिशय जाणिवा. २. पे. नाम. धर्ममूल श्लोक-जिनोपदिष्ट सह बालावबोध, पृ. १आ, संपूर्ण. धर्ममूल श्लोक-जिनोपदिष्ट, सं., पद्य, आदि: त्रैकाल्यं द्रव्यषड; अंति: स च वैशुद्धदृष्टि, श्लोक-१. धर्ममूल श्लोक-जिनोपदिष्ट-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: त्रैकाल्यं त्रिकाल३; अंति: मांहि साचउ मानिवउ. ३. पे. नाम. बोल संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. बोल संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५१३९८. (2) सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९३९, मार्गशीर्ष शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. सोजत, प्रले.मु. चनणमल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४११.५, १२४३४). १.पे. नाम. तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १९३९, मार्गशीर्ष शुक्ल, ६. मंदोदरीरावण संवाद सज्झाय, मु. खीवराज, रा., पद्य, वि. १९३२, आदि: ईण लंकगढ मे आइ असवार; अंति: खीवराज० सरीसी चीज रे, गाथा-१०. २. पे. नाम. धर्मरीखेती, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-धर्मखेती, रा., पद्य, आदि: धर्मरी खेती कीजेजी; अंति: गरभा वास मीठावेजी, गाथा-७. ५१४००. (#) स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११.५, ११४३५). १. पे. नाम. तिजयपहुत्त स्तोत्र, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. खावरा For Private and Personal Use Only Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ; अंति: निब्भंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. २. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तोत्र, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्टियंत्रगर्भित, मु. सुखनिधान, सं., पद्य, आदि: आदौ नेमिजिनं नौमि; अंति: मोक्षलक्ष्मीनिवासम्, श्लोक-८. ५१४०१. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, दे., (२५.५४१२.५, १०x२९). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चरमप्रभु मुख चंद्रमा; अंति: शुभवीरने संघरे, गाथा-८. २. पे. नाम. पूजानी ढाल, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. अष्टप्रकारी पूजा दुहा, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जल पूजा जुगते करो; अंति: बांक गुणो बगसे दीजे, गाथा-९. ३. पे. नाम. महावीरस्वामी स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. वीर, मा.गु., पद्य, आदि: वीरकुंवरनी वातडी; अंति: भागे सादि अनंत, गाथा-९. ५१४०२. (#) सोगठा पासा गीत, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१०.५, ९४२९). औपदेशिक सज्झाय-सोगठारमत परिहारविषये, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुण सनेही हो सांभल; अंति: आणंद कहे करजोड, गाथा-११. ५१४०३. (+#) पार्श्वजिन स्तोत्र व सुभाषित श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८६९, आश्विन कृष्ण, ३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. पं. देवचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंशखंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४१०, १५४३२). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजं बोधिबीजं ददातु, श्लोक-११. २. पे. नाम. सुभाषित श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५१४०४. स्तवन सज्झाय व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८४४, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२४.५४११.५, १५४४१). १. पे. नाम. सेजारो स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. पायचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सफल एह अवतार माहरो; अंति: पासचंद० सफल करिज्यो, गाथा-११. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. श्रीचंद, पुहिं., पद्य, वि. १७२२, आदि: अमल कमल जिम धवल; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ३ अपूर्ण तक लिखा है.) ३. पे. नाम. सोल सती सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण, वि. १८४४, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. १६ सती सज्झाय, मु. प्रेमराज, पुहिं., पद्य, आदि: सील सुरंगी सुभात; अंति: पोमराज० सदा पद्मावती, गाथा-७. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण.. जैनकाव्य संग्रह*, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५१४०५. (+#) मंत्र व छंद, संपूर्ण, वि. १८४३, चैत्र, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. गीरपुरनगर, प्र.वि. श्री गंभीराजी प्रसादात्, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १५४४०). १. पे. नाम. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. गोडिजीनो छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जीतचंद, मा.गु., पद्य, आदि: ॐकाररूप परमेश्वरा; अंति: जीत कहे हर्ष सदा, गाथा-२३. ५१४०६. (+#) श्रावक करणी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षर फीके पड गये हैं, दे., (२४.५४११, १४४३९). श्रावकगुण सज्झाय, मु. रतनचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८९६, आदि: श्रावक करणी हो जिनवर; अंति: रतनचंद० उन्नतकार हो, गाथा-१५. ५१४०७. (+-#) सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १७७८, मार्गशीर्ष शुक्ल, ५, मंगलवार, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. मु. प्रेमजी ऋषि (गुरु मु. शिवजी); गुपि.मु. शिवजी (गुरु मु. गांगजी ऋषि); मु. गांगजी ऋषि (गुरु मु. लखमसी ऋषि); मु. लखमसी ऋषि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३४४०). १.पे. नाम. समकीतनी सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. सम्यक्त्व सज्झाय, मु. राममुनि, मा.गु., पद्य, आदि: परम पुरष परमेसर देव; अंति: राम मुनी कहे एह सझाइ, गाथा-२८. २.पे. नाम. द्रौपदीसती सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: जंबूदीप वखाणीजी; अंति: जासे मुगत मझार रे, गाथा-११. ५१४०८. सुदर्शन मुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. जेठाऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४११.५, १५४४२). सुदर्शनशेठ सज्झाय, मु. प्रेम, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणंद विराजता; अंति: प्रेम मुनि जयकारी रे, ढाल-४, गाथा-२१. ५१४०९. (+-) दुहा व सझायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४११, १३४३३). १.पे. नाम. दुहा संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. दुहा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. २.पे. नाम. शील सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. शीलव्रत सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: आत्मा राखेरे सीयल; अंति: बोलइ श्रीउपदेशमाल, गाथा-८. ३. पे. नाम. औपदेशिक गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: जीव वधतुं मुखि मुगति; अंति: तिनही राम पिछाणा, गाथा-३. ४. पे. नाम. नेमजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. __नेमिजिन पद, मा.गु., पद्य, आदि: नेम मनाईवा कोई जाई; अंति: सेवु मिलवु नेम गुसाई, गाथा-३. ५. पे. नाम. प्रहेलिका संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह , प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. ५१४१०. (#) चैत्यवंदन संग्रह व सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. मु. सुमतिविमल; अन्य. सा. विवेकश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५४११.५, १०-१२४३७). १.पे. नाम. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तवन, पं. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चोत्रीस अतिशय सोहतो; अंति: लही पद्मविजय कहत, गाथा-७. २. पे. नाम. सिद्धचक्रनो चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सिद्धचक्र आराधतां; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ६ तक लिखा है.) ३. पे. नाम. ज्ञानपंचमीनी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, उपा. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सद्गुरुना प्रणमुं; अंति: वाचक देवनी पुरोजगीस, गाथा-५. ५१४११. (#) सज्झाय संग्रह व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पणक का अंश नष्ट, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, १५४४४). १.पे. नाम. शील सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ __ ३९७ शीलव्रत सज्झाय, मु. सुधनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: तेतरीया भाई ते; अंति: नर धर्मि दृढ रहविइरे, गाथा-५. २. पे. नाम. सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. श्रावक कर्त्तव्य सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर पय प्रणमे; अंति: लालविजय पभणि निस दिस, गाथा-६. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. हरखविजय, मा.गु., पद्य, आदि: केवल कमलावास पास जिण; अंति: हर्षविजय० परमाणंदुए, गाथा-२१, (वि. गाथा ६ के बाद गाथांक नहीं लिखा है.) ५१४१२. (+) रुक्मिणी व पंचमीपर्व सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२, १२४२७). १.पे. नाम. रुक्मिणीसती सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. रुक्मणीसती सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विचरंता गामो गाम; अंति: राजविजय रंगे भणे जी, गाथा-१४. २. पे. नाम. पंचमीपर्व सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. पंचमीतिथि सज्झाय, मु. शुभवीर, मा.गु., पद्य, आदि: धन श्रीअरिहनने रे; अंति: सीव कमला घरवास, गाथा-५. ५१४१३. अंतराय सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४१२,११४३४). असज्झाय सज्झाय, मु. ऋषभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति माता आदे नमीइं; अंति: ऋषभ० वरस्यो सिद्धि, गाथा-११. ५१४१४. पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२४४१०, १४४३८-४२). पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, आ. हंसभुवनसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६१०, आदि: सासना देवीय पाय नमीए; अंति: (-), (पू.वि. ढाल ४ अपूर्ण तक है.) ५१४१५. अंतराय सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६४१२.५, ११४३०). असज्झाय सज्झाय, मु. ऋषभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति माता आदे नमीइं; अंति: ऋषभ० वरस्यो सिद्धि, गाथा-११. ५१४१६. (+) पजुसण स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१२, १०४३०). पर्युषणपर्व स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पर्व पयुषण पुन्ये; अंति: सुजस महोदय कीजे, गाथा-४. ५१४१७. पंचमी चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४१०.५, ९४२६). ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसौभाग्यपंचमी; अंति: केवल लक्ष्मी निधान, गाथा-९. ५१४१८. (#) थूलीभद्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४१०, १३४३०-३३). स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: वाट जोवंती निसिदिनै; अंति: लक्ष्मीव०करीय प्रणाम, गाथा-९. ५१४१९. (+#) पद्मावती आराधना, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४९, १५४४०). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिव राणी पदमावती; अंति: कहि पापथी छुटि ततकाल, ढाल-३, गाथा-३६. ५१४२१. भले अर्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५.५४१२, १३४३७). भले अर्थ की वार्ता, मा.गु., गद्य, आदि: भले ते स्यु कहिइं; अंति: रूप लक्ष्मी पामे. For Private and Personal Use Only Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३९८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची (#) ५१४२२. स्वाध्याय व सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१.५४९.५, १०-१२४३८-४५) १. पे नाम, विषय स्वाध्याय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण औपदेशिक सज्झाय-विषयपरिहार, मु. सिद्धविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रे जीव विषय न राचीइं; अंतिः सिद्धिवि० नीसवीसो रे, गाथा १३. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे. नाम, पडीकमणा सज्झाय, पृ. ९आ, संपूर्ण. प्रतिक्रमण सज्झाय, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, आदि: दोय घडी मन समरस आणी; अंति: इम भणे साधु आणंदो रे, गाथा - ६. ५१४२३. (#) देश संख्या स्थिति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५X११, १३x४३). तारातंबोल नगरी वार्ता, मा.गु., गद्य, आदि: संवत १६८४ मिती मिगसर; अंति: सत्य छे डिंग छे नहि. ५१४२५. पद व वींझणा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ६, जैदे., (२५.५X११.५, ९x४५). १. पे. नाम. समता सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. चिदानंद, मा.गु, पद्य, आदि हो प्रीतमजी प्रीत अंति: चिदानंद निज घर आवे, गाथा- ७. २. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. १अ १आ, संपूर्ण औपदेशिक पद- दुर्मतिविषये, मा.गु., पच, आदिः हो दुरमतडी वरण थइ, अंतिः उपाधितणो के उपगारो, गाथा ७. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-सुमतिविषये, मु. महानंद, मा.गु., पद्म, आदि हो सुमतीजी ए वडो मुझ; अंतिः तो महानंद पदवी मले, गाथा- ७. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ- २अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, मु. चिदानंद, पुहिं., पद्य, आदि: सोहम सोहम रटना लागी, अंति: चिदानंद० बुद्धी जगीरी, गाथा- ३. ५. पे नाम, पार्श्वजिन वीजणो, पृ. २अ संपूर्ण पार्श्वजिन पद, मु. पुण्य, पुहिं., पद्य, आदि: पारसनाथ आथ के नाम, अंतिः पुण्य० हाजर हे लडके, गाथा- १. ६. पे. नाम, नेमराजिमति विंझणो, पृ. २अ २आ, संपूर्ण नेमराजिमती विंझणो, मु. अमरविजय, मा.गु., पद्य, आदिः आव्या आव्या उनालाना, अंति: अमरवि० बहु सुखकारि के, गाथा - १२. ५१४२६. साधु काल धर्म विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५X११, १६x४९). महापरिठवण विधि, मा.गु., गद्य, आदि: स्नानपूर्वक नवो वेष, अंति: (१) पूतलुं करावं, (२) वस्त्रादिक पठावीए. ५१४२८. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, वे. (२५४११, ७४३१). महावीरजिन स्तवन, मु. धर्मकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: तिसलानंदण सांभलो रे, अंति: गुणगाय मोरा सांमि रे, गाथा-५. ५१४२९. (+) गौतम स्वामी रास, संपूर्ण वि. १८९९, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैवे. (२५.५४११.५, १२४३८). गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु, पद्य वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल, अंतिः सयल संघ आणंद करो, गाथा ६७. ५१४३०. (#) पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११.५, १७५६). पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, उपा. कुशललाभ, मा.गु, पद्य, आदि: सरसति सुमति आप अंतिः कर धवल धिंग गोडि धणी, गाथा - २४. ५१४३१. (+) इंद्रिय बाद स्थल, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २. प्र. वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ टिप्पणक का अंश नष्ट, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५.५४११.५, १९४३४). इंद्रियवाद स्थल, सं., गद्य, आदि: इंद्रियत्वं जातिर्वा, अंति: कार्याकार्यसंयोगः . , For Private and Personal Use Only Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ३९९ ५१४३२. कमलावती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२४.५४१२, १२४३०). कमलावतीरानी इक्षुकारराजा भृगुपुरोहित सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: महेलामा बैठी जी राणी; अंति: पोताना मुगतमझार, गाथा-१७. ५१४३३. (#) स्तवन व औपदेशिक दोहे, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, पठ. मु. माहानंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १६४३६). १.पे. नाम. महावीर स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तव-बृहत्, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जइ जासमणे भयवं; अंति: भणीय कय ___ अभयदेवसूरीणं, गाथा-२२.। २.पे. नाम. औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५१४३४. (#) समकित सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, ११४३८). सम्यक्त्व सज्झाय, मु. तिलकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवाणी घन वुठडो; अंति: तिलक विजय कहे एमरे, गाथा-७. ५१४३५. रोहिणी तप दृष्टांत, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२४.५४११.५, २०४४०). रोहिणीतपफल कथा, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: अंगदेश चंपानगरी; अंति: सुख कुरं मोक्ष पुहतो. ५१४३६. (+) पच्चक्खाण सूत्र संग्रह व वीस स्थानक गण-संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्रले. मु. चिमनसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११.५, १२४४२). १. पे. नाम. प्रत्याख्यान विवरण, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: सव्वसमा० वोसरइ. २.पे. नाम. वीसस्थानक तप गाथा, पृ. २आ, संपूर्ण.. २० स्थानकतप गाथा, प्रा., पद्य, आदि: अरि १ सि २ प ३ आ४; अंति: सग्गोकारे इभवेनिच्चं, गाथा-३. ३. पे. नाम. वीस थानिके लोगस्सविधि- उपदेशामृत ग्रंथे, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. अंकमय २० स्थानकतप आराधनाविधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ५१४३७. स्तुति व सूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२४.५४११, १३४३७-४३). १.पे. नाम. पर्वपर्युषण स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व स्तुति, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पुण्यनुं पोषण पापर्नु; अंति: दिनदिन अधिक वधाइजी, गाथा-४. २. पे. नाम. सातलाखपृथ्वीकाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. श्रावक देवसिकआलोयणासूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, गु., पद्य, आदि: सातलाख पृथ्वीकाय; अंति: तस्स मिच्छामिदुक्कडं. ३. पे. नाम. अढारपापस्थानक, पृ. १आ, संपूर्ण. १८ पापस्थानक नाम, मा.गु., गद्य, आदि: प्राणातिपात१ मृषावाद; अंति: मिथ्यादर्शनशल्य १८. ४. पे. नाम. अढारभारनुमान, पृ. १आ, संपूर्ण. १८ भार वनस्पति मान, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ३८ अडत्रीस कोडि ११; अंति: ए भार अढारज लह्या. ५१४३८. (+#) हरियाली व सज्झाय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३०, मार्गशीर्ष कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११, ४४४०). १.पे. नाम. औपदेशिक हरियाली सह टबार्थ, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. औपदेशिक हरियाली, उपा. यशोविजयजीगणि, मा.गु., पद्य, आदि: कहेज्यो रे पंडित ते; अंति: जस कहे ते सुख लहेंसे, गाथा-१४. For Private and Personal Use Only Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०० १४. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक हरियाली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: देखीइं जाणीइंते; अंति: ते सुख लहिस्यै. २. पे. नाम. आध्यात्मिक हरियाली सह टबार्थ, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक हरियाली, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वरसे कांबल भींजे; अंति: कवि देपाल वखाणई, गाथा-६. हरीयाली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: कांबल का इंद्री वरसै; अंति: एहनो अर्थ न जाणे. ३. पे. नाम. मोह सज्झाय सह टबार्थ, पृ. २आ-४आ, संपूर्ण. मोह निवारण सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: संसार नयरीइंछे मोहर; अंति: कांति ते इम भासे, गाथा-११. मोह निवारण सज्झाय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नीरुपम नगरनी गोद; अंति: कहे छे दर्शन० जाणवो. ५१४३९. (#) स्तवन वदोहा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १३४३२). १. पे. नाम. आठमनो तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हारे मारे ठाम धरम; अंति: कांति सुख पावे घणो, ढाल-२, गाथा-२४. २. पे. नाम. अंत आंकते परीहरो, पृ. २अ, संपूर्ण. दोहा संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५१४४०. (#) स्तवन व सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, २८x१९). १.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी सरसति रे समरी; अंति: दुश्मन दावो न थाय, गाथा-६. २. पे. नाम. सीलनी स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-परनारीपरिहार, ग. कुमुदचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सुणि सुणि कंता रे; अंति: कुमुदचंद समुज्जलौ, गाथा-१०. ५१४४१. (#) सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १५४३५). १.पे. नाम. छ लेश्यी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ६लेश्या सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: लेश्या छ जिनवरे कही; अंति: कवी० पामो पंचमज्ञान, गाथा-१३. २. पे. नाम. आत्मशिक्षा सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. विनय, पुहि., पद्य, आदि: किसके चेले किसके, अंति: विराजे सूख भरपूर, गाथा-७. ३. पे. नाम. उपदेश सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. हितोपदेश सज्झाय, मु. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: उपदेश न लागे अभव्यने; अंति: उतमसंग निदानरे, गाथा-७. ५१४४२. (#) प्रभाती व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. मु. रंगविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पद्मावती प्रसादात्., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १३४४०). १.पे. नाम. प्रभाति स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी छंद, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मात पृथ्वी सुत प्रात; अंति: यशोविजय० दोत सवाई, गाथा-९. २. पे. नाम. भिडभंजन पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-भीडभंजन, उपा. उदय, मा.गु., पद्य, वि. १७७८, आदि: श्रीभीडभंजन प्रभु; अंति: धरी नाथजी हाथ सायो, गाथा-५. ३. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ४०१ पार्श्वजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहि., पद्य, आदि: अंखीयां हरखण लागी; अंति: भवोभव भावठ भागी, गाथा-४. ५१४४३. (#) स्तवन, स्तोत्र व छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०, १३४४४). १.पे. नाम. चउवीस स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. __ २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिणेसर प्रणमुं; अंति: तास सीस पभणे आणंद, गाथा-२९. २. पे. नाम. गोडिश्री जैनचैत्यवंदन स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-गोडीजी, मु. रामविजय, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: नमु सारदा सार; अंति: सोख्यप्रदा सर्वदा, गाथा-१४. ३. पे. नाम. सरस्वतीदेवी छंद, पृ. २आ, संपूर्ण. ग. हेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ॐकार धरा उच्चण; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ११ तक लिखा है.) ५१४४४. (#) विचार संग्रह श्लोक व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१०.५, १७७५५). १. पे. नाम. अचितद्रव्य विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. सुखडी काल, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. सूतक विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. सूतक विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: बेटाबेटीरा जन्म दिन; अंति: (-). ३. पे. नाम. जिननाटक स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु आगलि नाचै सुर; अंति: जोवण उच्छक छै अती. गाथा-९. ४. पे. नाम. दस प्रकार दान विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. दान के १० प्रकार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: अणुकंपा दाणे कृपण; अंति: ते कथनी दान कहिइं. ५१४४५. (+#) पार्श्वजिन स्तवन व गूढार्थ श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४१०, १३४३३). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, प्र. १अ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, मु. लब्धिरूचि, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७१२, आदि: जय जय जगनायक; अंति: लब्धिरुचि० प्रणम्य, गाथा-२८. २.पे. नाम. गूढार्थ श्लोक संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह-गूढार्थगर्भित, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-). ५१४४६. (+#) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. पं. देवेंद्रविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११.५, १३४४१). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, वा. उदयरतन, मा.गु., पद्य, आदि: आप सरूपि होयकें; अंति: तुज पद पंकज सेवहो, गाथा-७. २.पे. नाम. नेमराजुल सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. रंग, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीत संभालो हो के; अंति: कविराया हो रंगे गाया, गाथा-७. ३. पे. नाम. नेमराजुल स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल कहे सुणो नेमजी; अंति: रामविजय० कोडि कल्याण, गाथा-७. ५१४४७. संतिकरं स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२५.५४११.५, ३४२६). For Private and Personal Use Only Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: संतिकरं संतिजिणं जग; अंति: मुनिसुंदर०संपयं परमं, गाथा-१३. संतिकरं स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: शांतिनो करणहारश्री; अंति: सुख संपदा प्रति पामइ. ५१४४८.(#) अढारनातरा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. वगडीनगर, प्र.वि. श्रीशांतिनाथ प्रसादात्., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४९.५, १३४३२-३५). १८ नातरा सज्झाय, मु. वीरसागर, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलांने प्रणमु पास; अंति: वीर० मन रंगीला, ढाल-३. ५१४४९. (#) स्तोत्र, स्तुति संग्रह व यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ११४३२). १. पे. नाम. बृहस्पति स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. वृहस्पति स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ वृहस्पतिः; अंति: सुप्रीतश्च प्रजायते, श्लोक-५, (वि. यंत्र सहित) २. पे. नाम. मंगलंॐ आदित्य, पृ. १अ, संपूर्ण. नवग्रह मंत्र, सं., गद्य, आदि: ॐ आदित्य सोम मंगल; अंति: ध्वतिष्ठंतु स्वाहा. ३. पे. नाम. श्रीसुव्रत जिनेंद्र, पृ. १अ, संपूर्ण. शनि स्तुति, सं., पद्य, आदि: सुव्रतजिनेंद्रस्य; अंति: वृद्धिं जयं गुरु, श्लोक-१. ४. पे. नाम. शनीश्चर छंद, पृ. १आ, संपूर्ण. शनिश्चर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: यः परा रायप्रतिष्टाय; अंति: पीडा न भवंति कदाचन, श्लोक-१०. ५१४५०. (-) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८१२, भाद्रपद कृष्ण, ८, रविवार, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, ले.स्थल. डभोडा, प्रले. मु. रूपसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४१०, १४४४६-४८). १.पे. नाम. सिद्धाचलतीर्थ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: शेजागढना वासी; अंति: इम करी उदयरतन कर जोड, गाथा-५. २. पे. नाम. आबू स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. आबुतीर्थ स्तवन, मु. धीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सागवाडानी पाजे चढता; अंति: धीरविजय गुणगायरे, गाथा-८. ३. पे. नाम. महावीर स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. जयसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सूरत बंदर महावीर; अंति: जयसागर० कोड कल्याण, गाथा-७. ४. पे. नाम. गोडीस्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. सुरचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: वारी जाउ गोडी गामने; अंति: दीठडां आणंद होय, गाथा-७. ५१४५१. भगवतीसूत्रनी स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, १७४४०). भगवतीसूत्रोपरिसज्झाय, संबद्ध, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: वंदीय प्रणमी प्रेमशु; अंति: विनयविजय उवज्झाय रे, गाथा-२१. ५१४५२. (+#) पडिलेह बोल सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५५, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. सूरतबिंदर, प्रले. मु. राजेंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, ३४३०-३६). प्रतिलेखनबोल गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सुतत्थतत्थदिट्ठी; अंति: तणत्थं मुणि बिंति, गाथा-५. प्रतिलेखनबोल गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पहेली मुहपत्ति; अंति: बोल प्रकाश्या छै, (प्रले. पंडित. प्रमोद; पठ. ___ नरसिंह दास, प्र.ले.पु. सामान्य) ५१४५३. (+#) जिन नामादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२४.५४११, १२४२४-२६). १.पे. नाम. अतीत अनागत वर्तमान चोवीशी नाम, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ९६ जिन नाम, मा.गु., गद्य, आदि: केवलज्ञानी १ निर्वाण; अंति: २३ श्रीभद्रकृत २४. २. पे. नाम. चौदपूर्व नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. १४ पूर्व नाम, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: श्रीउत्पादपूर्व १; अंति: लोकबिंदुसार पूर्व १४. For Private and Personal Use Only Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ३. पे. नाम. वीश वीहरमानजिन नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन नाम, मा.गु., गद्य, आदि: सीमंधर १ युगमंधर; अंति: १९ अजितवीर्य २०. ५१४५४. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, १४४३२-३८). १. पे. नाम. समकित स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. सम्यक्त्व सज्झाय, मु. तिलकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवाणी घन वुठडो; अंति: तिलकविजय भणे एम रे, गाथा-७. २.पे. नाम. प्रथमाणुव्रत स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्राणातिपात विरमणव्रत स्वाध्याय, मु. तिलकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जी हो पहिला समकित; अंति: तिलक लहे जयकार सुदा, गाथा-६. ५१४५५. स्तोत्र, स्तवन, सवैया व गाथा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, दे., (२६४१२, १३४३३). १. पे. नाम. जीराउला पार्श्वनाथजीरो अष्टक, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, मा.गु., पद्य, आदि: जीरावलादेव करुं जुहा; अंति: करी सेवक नइज थाप्पो, गाथा-१०. २.पे. नाम. नोकारमंत्र स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: परमेष्टि नमस्कार; अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक-८. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन सवैयो, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन सवैया, मु. जीत, मा.गु., पद्य, आदि: एक किन्नर सोल सणगार; अंति: जीत कहे तननं तननं, गाथा-१. ४. पे. नाम. गाथा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. जैन गाथा, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५१४५७. (#) लघु संघेणी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५४१०.५, १५४२२-२४). लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमियण जिण सवंनु जयपु; अंति: रइया हरीभद्रसुरीही, गाथा-३०. ५१४५९. (#) नंदीषेणऋषि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१०, १२४३४-३६). नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: साधुजी न जईइ हो परघर; अंति: पर घरि गमन निवार, गाथा-१०. ५१४६१. आनंदमिंदर नाम्नि राशके चुतर्थो अधिकार, संपूर्ण, वि. १८६६, वैशाख शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. मेदिनीपुर, प्रले. पं. अजबसुंदर (उपकेशगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१०,११४३२-४५). श्रीचंद्रकेवली रास-बीजक, मा.गु., गद्य, आदि: तापस प्रतिजागरण १; अंति: पट्ट परंपरा कथन ३६. ५१४६२. (#) पद्मावती कवच व व्याख्यान मंगल, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०, ९४३६). १.पे. नाम. पद्मावती कवच, पृ. १अ, संपूर्ण. पद्मावतीदेवी कवच, सं., पद्य, आदि: भगवन सर्वमाख्यातं; अंति: न भवेत् सिद्धिदायिनी, श्लोक-१५. २. पे. नाम. व्याख्यान संग्रह, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ___ मा.गु.,प्रा.,सं., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणी वियाणओ; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रारम्भिक भाग है.) ५१४६३. (+) नय विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५४११.५, ९४३४). सप्तनय विचार, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रथम प्रमाण नय; अंति: सकल ता के प्रेरकवान. ५१४६४. (#) बारमासो, हो व सवैया, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (९२२) कड कुडी कर वेगडी, जैदे., (२५.५४११, १५४४१). १. पे. नाम. नेमनाथजीरो राजेमतीरो बारेमासीयो, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. नेमिजिन बारमासो, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: प्रेम बिलूधी पदमणी; अंति: कवियण सिरेसुर नेम, गाथा-४५. २. पे. नाम. प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #421 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रास्ताविक दोहा संग्रह *मा.गु.,रा., पद्य, आदि: पाणीनै नवकार लाभापर; अंति: वालमौ जो मील राकत, गाथा-४. ३. पे. नाम. हीरविजयसूरि कवित्त, पृ. २आ, संपूर्ण. हीरविजयसूरि कवित, क. सोम, मा.गु., पद्य, आदि: सबे मृगनेणी सले; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रथम गाथा अपूर्ण मात्र है.) ५१४६५. (#) स्तुति संग्रह व दस पच्चक्खाण नाम, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १६४३७). १.पे. नाम. बीज स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: कहे पूर मनोरथ माय, गाथा-४. २. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिपंचरूप; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ३. पे. नाम. एकादशी स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादशी अति रुवडी; अंति: सीस० संघतणा निशदिश, गाथा-४. ४. पे. नाम. माहावीर स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. ५. पे. नाम. दश पच्खान, पृ. १आ, संपूर्ण.. १० पच्चक्खाण नाम, मा.गु., गद्य, आदि: नवकारसी सागार पोरसी; अंति: नविथी कर चौविहार. ५१४६६. सज्झाय, भास व गुंहली संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ६, जैदे., (२४.५४१०.५, १२४३८). १. पे. नाम. दसविकालिक प्रथमाध्ययन स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र सज्झाय-अध्ययन १, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरुपदपंकज नमीजी; अंति: वृद्धिविजय जयकार, गाथा-५.. २. पे. नाम. दसविकालीक द्वितीयाध्ययन स्वाध्याय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. __ दशवैकालिकसूत्र सज्झाय-अध्ययन २, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नमवा नेमि जिणंदनई; अंति: वृद्धिजय एम भासे रे, गाथा-१५. ३. पे. नाम. दशवैकालिक तृतियाध्यय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, पठ. श्रावि. सेहेजबाई, प्र.ले.पु. सामान्य. __ दशवैकालिकसूत्र सज्झाय-अध्ययन ३, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आधाकरमी आहार न लीजिय; अंति: वृद्धिविजय जयकार रे, गाथा-१२. ४. पे. नाम. सुधर्मास्वामी भास, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. सुधर्मास्वामी गहुंली, मा.गु., पद्य, आदि: ज्ञान दर्शन गुण धरत; अंति: भावें एहवा उत्तम जीव, गाथा-५. ५. पे. नाम. गुरुगुण गूंहली, पृ. ३अ, संपूर्ण. गुरुगुण गहुँली, मु. उत्तम, मा.गु., पद्य, आदि: तुमे शुभ परिणामें; अंति: उत्तमने मंगलमालो रे, गाथा-७. ६. पे. नाम. साधुगुण गुहली, पृ. ३आ, संपूर्ण. साधुगुण गहुंली, मु. उत्तम, मा.गु., पद्य, आदि: षट्व्रत सुधा पालता; अंति: उत्तम० निमित्त रे, गाथा-९. ५१४६७. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४११, १२४३३). १.पे. नाम. वीर स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, ले.स्थल. केरवाडा, प्रले. पंन्या. कल्याणविजयजी गणी* (गुरु मु. केशरविजयजी', तपागच्छ); पठ.पं. लक्ष्मीविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य. महावीरजिन स्तवन, मु. अमृत, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिसला देवीनो नंद; अंति: वंदे नित नित रंग, गाथा-५. २. पे. नाम. पंचपरमेश्वर स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. ५जिन स्तवन, उपा. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: पंच परमेसरा परम; अंति: भगवंतना तवन भणतां, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #422 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ५१४६८. (#) सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १०४३२). सीमंधरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पुखरवय विजयें जयोरें; अंति: भयभंजण भगवंत, गाथा-७. ५१४७०. () स्तवन सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, २१४४३). १. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जिनदास, रा., पद्य, आदि: मे तो थान जाणछांजी; अंति: जिनदास० पकड़कर हाथ, गाथा-४. २. पे. नाम. जिन चोवीसी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन-वर्णविचार गर्भित, मु. कविराज, रा., पद्य, आदि: देवतणा गुण वर्णवु; अंति: कविराज० चरणारी दासो, गाथा-१८. ३. पे. नाम. २१ श्रावक गुण, पृ. १आ, संपूर्ण. श्रावक २१ गुण वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: लज्यावंत १ दयावंत २; अंति: क्रियासु रहित होय. ४. पे. नाम. शीयलव्रत सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सोल वरसरा जंबू कुमरज; अंति: ल्याइ इजत पारजी, गाथा-९. ५१४७१. कका बत्तीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. कुल ग्रं. ४१, दे., (२६४१२.५, १०४३१). ककाबत्रीसी, मु. जिनवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: कका करमनी वात करी; अंति: सीस जीवो ऋष इम भणइ, गाथा-३३. ५१४७२. (+) सम्यक्त्व स्तव सह टबार्थ व समकीत के सडसठ भेद, संपूर्ण, वि. १८४५, वैशाख कृष्ण, ९, सोमवार, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४११, ४४३९). १.पे. नाम. सम्यक्त्व स्तव सह टबार्थ, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. सम्यक्त्वपच्चीसी, प्रा., पद्य, आदि: जह सम्मत्तसरूवं; अंति: हवेउसम्मत्तसंपत्ति, गाथा-२५, संपूर्ण. सम्यक्त्वपच्चीसी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जजे रीते स०समकितनु; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा २३ तक टबार्थ लिखा है.) २. पे. नाम. समकितना सडसठ भेद, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. ६७ सम्यक्त्व भेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जिमजिन १ जिनमती २; अंति: जाणवा मनमां धारवा. ५१४७३. अभव्य विचार व शिष्य वचन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११.५, १२४४५). १.पे. नाम. अभव्य कुलक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. अभव्य कुलक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अनादि कालमैं अभव्य; अंति: भाव अभव्य न पामै. २.पे. नाम. शिष्यवचः, पृ. १आ, संपूर्ण. गुरुवंदनसूत्र-टीका, आ. यशोदेवसूरि, सं., गद्य, वि. ११८०, आदि: इच्छामि अभिललिषामि; अंति: सा नैषिधिकी अनुनया. ५१४७४. (+#) वृहत् नवकार व सत्तरभेदी पूजा वर्णन, संपूर्ण, वि. १८१९, कार्तिक शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. अजीमगंज, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४१०.५, १३४२९). १. पे. नाम. वृहत् नवकार, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र पद, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १२वी, आदि: किं कप्पतरु रे अयांण; अंति: वल्लभसूरि० नित्त, गाथा-१३. २. पे. नाम. सत्तरभेदी पूजा वर्णन, पृ. २आ, संपूर्ण. १७ भेदी पूजा वर्णन, मा.गु., पद्य, आदि: न्हवण विलेवण वच्छ; अंति: ए सत्तर अनूप, गाथा-१. ५१४७५. (#) भक्तामर व कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४११, १५४४८-५०). For Private and Personal Use Only Page #423 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भगतामर प्रणति मोलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः , श्लोक-४४. २.पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. २आ-४आ, संपूर्ण. आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुदचं० प्रपद्यते, श्लोक-४४. ५१४७६. अंगफुरकण विचार, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पठ. मु. कुशलरूचि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१०, १२४४४). ___ अंगफुरकण चौपाई, पं. हेमाणंद, मा.गु., पद्य, वि. १६३९, आदि: अंति: वाणि जुसी गुरू भणी, गाथा-२३. ५१४७७. सूरिमंत्राधिष्टायक स्तव, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, १२४३८). सूरिमंत्र स्तव, प्रा., पद्य, आदि: पढम पएसु पइट्ठा; अंति: निट्ठीय कम्मट्ठीय, गाथा-२०. ५१४७८. (+#) देशांतरिछंद, रक्षा मंत्र व फाग, संपूर्ण, वि. १८९५, कार्तिक कृष्ण, ११, शनिवार, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ४, ले.स्थल. खेरालुनगर, प्रले. पं. विद्याविजय; अन्य. पं. चतुर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (९११) पोथी प्यारी प्राणकी, जैदे., (२५.५४११, १२४३४). १. पे. नाम. देशांतरी छंद, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: सुवचन आपो शारदा मया; अंति: च्छंद देशांतरी, गाथा-४६. २. पे. नाम. शरीर रक्षा मंत्र, पृ. ४अ, संपूर्ण. शरीररक्षा मंत्र, मा.गु., गद्य, आदि: ॐ नमो वज्रनो कोट; अंति: ह्रीं फट् फट् स्वाहा. ३. पे. नाम. क्षेत्रपाल मंत्र, पृ. ४आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: ॐ नमो खोडीया; अंति: अवतरी बोले कोडनीस रे. ४. पे. नाम. नेम फाग, पृ. ४आ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मत जाओरे पीया तुम; अंति: मगन भए संजम भार मे, गाथा-५. ५१४७९. दीपावलीपर्व देववंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३६). दीपावलीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: वीरजिनवर वीरजिनवर; अंति: ज्ञानविमल० गुण खाण. ५१४८०. स्वाध्याय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले.पं. भावविजय गणि (गुरु ग. तत्त्वविजय पंडित); गुपि.ग. तत्त्वविजय पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १४४४१). १.पे. नाम. जिनप्रतिमा स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जिनप्रतिमास्थापना सज्झाय, उपा. यशोविजयजीगणि, मा.गु., पद्य, आदि: जिन जिन प्रतिमा वंदन; अंति: जस० कीजइ तास वखाण रे, गाथा-१५. २. पे. नाम. सत्तरभेदी पूजा सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. १७ भेदी पूजा सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सतर भेद पूजा फल सांभ; अंति: तेह तर्याने तारे रे, गाथा-९. ५१४८१. (+#) मौन एकादशी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११.५, १२४२८). मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: द्वारिकानयरी समोसर्य; अंति: लहे मंगल अतिभलो, ढाल-३, गाथा-२७. ५१४८२. (#) चंद्रप्रभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११.५, ११४२९). चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चंद्रप्रभू मूखचंद सख; अंति: आनंदघन प्रभू पाये, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #424 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ४०७ ५१४८३. (+०) सज्झाय व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८७७, श्रावण कृष्ण, ८, मंगलवार, मध्यम, पू. १, कुल पे. ४, प्रले. मु. करमचंद्र ऋषि (वृद्धलुकागच्छ) पठ श्रावि अजिता प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५x११.५, १५x४२). " १. पे. नाम. छकायरी सिज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-जीवकाया, मु. कुशल, मा.गु, पद्य, आदि: सदगुरु भाखे देसना अंतिः इम कुसल कठै समझाय Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा - ९. २. पे. नाम. गजसुखमालरी सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. गजसुकुमालमुनि सज्झाष, मु. खेमकुशल, पुहिं., पद्य, आदि द्वारापुरी नगरी के अंतिः खेमकुशल बंद पायो हो, गाथा-७. ३. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन पद-धुलेवामंडन, पं. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदिः धूलेवा नगर मारो ऋषभ अंतिः रुखभदास० केवो छै जी, गाथा-४. ४. पे. नाम. नेमराजुल स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, पुहिं., पद्य, आदि: मे तो गिरनारगढ देखण, अंति: उनही के गुन गाऊंरी, गाथा- ३. ५१४८४. पंचमी सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जै. (२५.५x११, १०x२६). , " पंचमीतिथि सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सहगुरु चरण पसाउले रे, अंति: कांतिविजय गुण गाय, गाथा-७. ५१४८५. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे ६, दे. (२५x१२, १४X३३). १. पे. नाम. बाहूबल सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. भरतबाहुबली सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य वि. १७वी, आदि राजतणा अतिलोभीया भरत, अंतिः समयसुंदर बंदे पाय रे, गाथा-७. २. पे. नाम. चेलणा सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. चेलणासती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर वांदी घरे आवतां; अंति: पांमिस्यै भव तणो पार, गाथा-७. ३. पे. नाम. माननी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मानपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: रे जीव मान न कीजीए; अंति: मानने देजो देश टो रे, गाथा-५. ४. पे. नाम. धन्ना सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. धन्नाकाकंदी सज्झाय, मु. विद्याकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन्नो रिष बंदीये; अंति: नाम थकी निस्तार रे, ,गाथा-७. ५. पे. नाम. नवकारवाली सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: कहीये चतुर नर ते कुण; अंति: रूप है बुध सारी रे, गाथा- ६. .पे. नाम. दंदणऋषि सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: ढंढण रिषीजीने वंदणा; अंति: कहे जिनहर्ष सुजाण रे, गाथा - ९. ५१४८६. (#) जीरापल्लि पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. पं. समयनंदि मुनि, पठ. मु. लखमण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५x११, ११४२६-३२). पार्श्वजिन स्तवन- जीरावलामंडण, मु. धवलचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सहिजि सुहंकर सवि; अंति: चंदधवल यसोभरो, " गाथा-२५. ५१४८७. गोडीपार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. सा. उदाश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५x९.५, ११४३३). For Private and Personal Use Only Page #425 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४०८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी मु. श्रीचंद, पुहिं, पद्य, वि. १७२२, आदि अमल कमल जिम धमल विरा, अंति; म्हांरी सफल सहु आस, गाथा- ९. ५१४८८. (#) ज्योतिष व सरस्वती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५x९.५, १५X३१-४०). १. पे. नाम. हस्तरेखा विवरण, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. ज्योतिष, मा.गु.,सं.,हिं., प+ग, आदि: जेहनी मातृरेखा कृष; अंति: पुरुष सदा दुखी हुई. २. पे. नाम. सरस्वती स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: राजते श्रीमती देवता; अंति: मेधामावहति सततमिह, श्लोक - ९. ५१४९०. प्रतिक्रमणादि भांगा, आगार, निक्षेपा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. कुल पे. १३. ले. स्थल. जेपुर, प्रले. मु. अनोपचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे., (२५४११. २७४६४). १. पे. नाम. वांदणाना ३२ दोष, पृ. १अ, संपूर्ण. ३३ आशातना विचार - गुरुसंबंधी, मा.गु., गद्य, आदि: गुरांने आद्र विना, अंतिः पिण नही राखइ ३२. २. पे. नाम. छ आवसकना गुण, पृ. १अ, संपूर्ण. ६ आवश्यक के गुण, मा.गु., गद्य, आदि: सामायक कीया हुता, अंतिः संवेगरूप० वधै जीवनै. ३. पे. नाम. ६ आवसक आश्री ४ निक्षेपा विचार, पृ. १अ संपूर्ण. ४ निक्षेप विचार-६ आवश्यक विशे, मा.गु, गद्य, आदि सामाइक एहव नाम कहीयै; अंतिः ते भावनिखेपो सामाइक४. ४. पे. नाम. चोवीसत्थोना ४ निखेपा, पृ. १अ, संपूर्ण. ४ निक्षेपा-चउवीसत्थो, मा.गु., गद्य, आदि: ऋषभादि २४ तिर्थंकर, अंति: हार्य आवसक भावनिखेप. ५. पे. नाम. वांदणाना ४ निखेप, पृ. १अ संपूर्ण. ४ निक्षेपा - वांदणा, मा.गु., गद्य, आदि: नाम वांदणा ते नाम, अंतिः भाव वंदणा आवसक निखेप. ६. पे नाम, काउसगना ४ निखेपा, पृ. १अ संपूर्ण ४ निक्षेपा- काउसमा, मा.गु., गद्य, आदि नाम काउसगर थापना अंति: गजसुकमालनी परि ७. पे. नाम. पचखाण आवसकना ४ निखेपा, पृ. १, संपूर्ण. ४ निक्षेपापचक्खाण, मा.गु., गद्य, आदिः नाम पचखाण१ थापना पचख, अंतिः रहित भावनिखेप पचखाण, ८. पे. नाम. काउसगना १६ आगार, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. १६ आगार-कायोत्सर्ग, मा.गु., गद्य, आदि: (१) १६ आगारे करी कावसग, (२) उससिएणं० उर्ध्वसास, अंत: कावसगना जाणिवा. ९. पे. नाम. काउसग्ग समय मर्यादा, पृ. १आ, संपूर्ण. कायोत्सर्ग समय मर्यादा, मा.गु., गद्य, आदि: जाव अरिहंताणं भगवंता, अंतिः पद संपदा ५ अक्षर १५०. १०. पे नाम, काउसगना १९ दोष, पृ. १आ, संपूर्ण. १९ कायोत्सर्ग दोष विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: घोडानी परि एक पग, अंतिः श्रावकानै४ विना पामै. ११. पे. नाम, प्रतिक्रमण की व्याख्या, पृ. १आ, संपूर्ण पंचप्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय की व्याख्या, मा.गु., गद्य, आदि: पडिकमणु से केहनइ कही, अंतिः सूरजइ पडिकमणो करे. १२. पे. नाम. ६ आवश्यकना अर्थ, पृ. १आ, संपूर्ण पंचप्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय का संक्षिप्त अर्थ, मा.गु, गद्य, आदि करेमिभते सामायक, अंतिः माटे पचखाण आवसक संबध. १३. पे. नाम. पांच प्रतिक्रमण नाम, पृ. १आ, संपूर्ण ५ प्रतिक्रमण नाम, मा.गु., गद्य, आदि: देवसी१ राई२ पखी ३; अंति: चउमासी४ छमछरी५. For Private and Personal Use Only Page #426 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ४०९ ५१४९२. (4) पदमावती आलोयणा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०, १२४३५-४०). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिव राणी पदमावती; अंति: पापथी छटे ते ततकाल, ढाल-३, गाथा-४३. ५१४९३. महावीरजी वीनती, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२५.५४११, ११४३५-३७). ___ महावीरजिन स्तवन-पावापुरमंडन, गच्छा. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८४८, आदि: वीर जिनेसर सांभल; अंति: पावापुर जात्रा करी, गाथा-१७. ५१४९४. मरुदेवी सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४११.५, १०४३३). मरुदेवीमाता सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: एक दिन मरुदेवी आई; अंति: प्रगटी अनुभव सारी रे, गाथा-१८. ५१४९५. मुनिसुव्रतजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४११.५, १०४२७). मुनिसुव्रतजिन स्तवन, मु. हंसरतन, मा.गु., पद्य, आदि: ऐन असाडो उनत्यो; अंति: सीच्यो समकित छोड, गाथा-९. ५१४९६. देवचंद्रजीनी विधिनुंस्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. मेसाण, पठ. श्रावि. समुबाइ; अन्य. हरिचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१२.५, ११४३५). वज्रधरजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: विहरमान भगवान सुणो; अंति: देवचंद्र० मुझ आपज्यो, गाथा-७. ५१४९७. एकादशी चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४१२.५, १०४३०). एकादशीतिथि चैत्यवंदन, ग. शुभविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: नेमि जिणेसर गुणनीलो, अंति: सूभ सूरपती गुणगाय, गाथा-१२. ५१४९८. (#) वाचना संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.. (२५.५४११.५, १६४३८). १.पे. नाम. विवाहपन्नतिसूत्र संबंधनी वाचना, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. व्याख्यान पीठिका, मा.गु., गद्य, आदि: भगवंत वीतरागनी वाणी; अंति: सुख संपदा पामे. २.पे. नाम. औपदेशिक व्याख्यान, पृ. १आ, संपूर्ण. ____ मा.गु., गद्य, आदि: ते इम संसारी जीव; अंति: मंगलपद पामे. ५१४९९. (+) जिन नमस्कार संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. १४, दे., (२४.५४११.५, १०४२२). १. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन चैत्यवंदन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय जिनवर आदिदेव; अंति: करो संघ कल्याण, गाथा-६. २. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. अजितजिन चैत्यवंदन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजितसत्रु नरेशनंद; अंति: करौ संघ कल्याण, गाथा-६. ५१५००. देशावगासिक विधि व विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. मु. नवला, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४११.५, १७४४७). १.पे. नाम. देसावगासिक विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. आवश्यकसूत्र-देशावगासिक विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: निरारंभ रहीइं जिम; अंति: पुरु हुई पारवं. २. पे. नाम. पाप परिमाण विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. __मा.गु., गद्य, आदि: छिन वे जीव हणोजि तो; अंति: दोष शास्त्र उक्तं. ३. पे. नाम. वीतराग वाणी विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: तिण कारणे च्यार; अंति: सुखी आगे ही सुखी. For Private and Personal Use Only Page #427 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५१५०२. (#) पंचासर पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१०.५, १०४३२). पार्श्वजिन स्तवन-पंचासरा, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: इंदु किरण समस्तवर; अंति: मोहन अनुभव पायौ, गाथा-७. ५१५०३. (#) गणधर गहुंली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५४१२, १०४३३). ११ गणधर गहुँली, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पेहेलो गोयम गणधरु; अंति: दीपविजय० जिनशासन रीत, गाथा-७. ५१५०४. जंबुस्वामी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२४.५४११.५, १२४२४). जंबूस्वामी सज्झाय, आ. भाग्यविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७६६, आदि: सरसति स्वामीने वीनवु; अंति: जंबु नामे जय जयकार, गाथा-१५. ५१५०५. (+#) दंसण सत्तरी, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, अन्य. सा. कीकाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३९). सम्यक्त्वसप्ततिका, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सणसुधि पयासं तित्थ; अंति: सणसुद्धिं धुवं लहइ, गाथा-७१. ५१५०६. चतुर्थ संवरद्वार सील महाव्रत स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४११.५, १४४४०). शीयलव्रत सज्झाय, मु. राममुनि, मा.गु., पद्य, आदि: पंचम गणधर वीरनो; अंति: मुनिराम० सफल अवतार, गाथा-२८. ५१५०७. चउद गुणठाणा सझाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. देवरत्न ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, १५४४५). गुणस्थानक सज्झाय, मु. सुंदरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समरवि वीरजिणेसर देव; अंति: सुंदरविजय० सुख घणू, गाथा-२३. ५१५०८. सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. कृति के कर्ता का नाम मिटाकर अन्य कर्ता का नाम लिखा हुआ है., दे., (२४.५४११.५, ११४३३). सिद्धचक्र स्तवन, मु. शिवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धचक्र वंदौरे जय; अंति: शिवचंद्र नमे शिरनामी, गाथा-९. ५१५०९. (#) उपदेश रत्नकोश सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १५४३७). उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: उवएसरण कोसं नासिय; अंति: पउम० उवएस मालमिणं, गाथा-२६. उपदेशरत्नमाला-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीर चउवीसमुं; अंति: वहइ नित्य निरंतर. ५१५१०. (#) नमस्कार महामंत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. २, पठ. श्रावि. सहोदराबाई; अन्य. श्राव. प्रताप, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४९.५, ११४४१). नमस्कार महामंत्र, शाश्वत, प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: पढम हवई मंगलम, पद-९. नमस्कार महामंत्र-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: माहरउ नमस्कार अरिहंत; अंति: भणी सिद्ध वडा कहीइ. ५१५११. (#) जीव विचार प्रकरण, संपूर्ण, वि. १७१८, वैशाख कृष्ण, ७, सोमवार, जीर्ण, पृ. २, ले.स्थल. कुकडेसर, प्रले. मु. साधुविजय (गुरु ग. सुमतिविजय पंडित); गुपि.ग. सुमतिविजय पंडित; पठ. मु. ज्ञानविजय (गुरु ग. प्रीतिविजय); गुपि.ग. प्रीतिविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल पाठ का अंशखंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १४४३६). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवण पइवं वीरं नमिउण; अंति: रूद्दाउ सुय समुद्दाउ, गाथा-५१. ५१५१३. पासा केवली भाषा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२५.५४११.५, १४४४६). पाशाकेवली-भाषा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: १११ उत्तम थानक लाभ; अंति: फलाफल संभलावीइ. For Private and Personal Use Only Page #428 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ४११ ५१५१४. (4) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण वि. १८४४, पौष कृष्ण, ५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २ ले, स्थल, राधनपुर, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६४१२, १३४३६-४२). " १. पे. नाम. गर्गाचार्य अध्ययन सज्झाय, पृ. १अ. संपूर्ण. अविनीत शिष्य सज्झाय, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सीस अविनीत उवेखीइजी; अंति: जिम लहो सुज विख्यात, गाथा-९. २. पे. नाम. अज दृष्टांत सज्झाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. वा. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सातमे अध्ययने इसी अंति: राम० धर्ममा खामी, गाथा - ११. ५१५१५. (१) चउरासी गच्छ नाम, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११, १७४३१). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८४ गच्छ नाम, मा. गु, गद्य, आदि ओसवाल गछ जीराउला गछ; अंति: बाल गछ नाडोला गछ. ५१५१७. शुद्ध आहार गवेषणा छत्रीसी व पार्श्वनाथ स्तवन अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८-७(१ से ७) = १, कुल पे. २, जैदे " (२५X११, २०x४४-४६). १. पे. नाम. सुद्ध आहारगवेषण छत्रीसी, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण शुद्ध आहारगवेषणा छत्रीसी, मा.गु, पद्य, आदि: सुद्धा साध नमी करी; अंतिः करी पामे परमाणंदो जी, गाथा-३६. २. पे. नाम. वाडी पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ८आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- वाडी, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिनजी ए गुन मेरो जान; अंति: मोहन० करूणा कल्याण, गाथा - ११. ५१५१८. ऋतुवंती असज्झाय सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. सा. प्रेमश्रीजी (खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. सामान्य, वे., (२४.५X१७५, १३४३५). असज्झाय सज्झाय, मा.गु, पद्य, आदि: पवयण देवि समरी मात, अंतिः सीवलच्छी ते करे, गाथा- १६. ५१५१९. (-#) वैराग्य पच्चीसी, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५×१०.५, १९४४३). वैराग्यपच्चीसी, मु. सदारंग, मा.गु., पद्म, आदि ए संसार अथिर करि जाण अंतिः एता पर एता ही करणा, ढाल २, गाथा - २४. ५१५२०. (#) बंभणवाडी महावीर स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्रले. मु. जिनविजय, पठ. श्रावि. अमृताबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. दोसी श्रीगोडीदास गृहे, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११, ९४२४). महावीरजिन स्तवन- बामणवाडजी, मु. कमलकलशसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: समरवि समरथ सारदा ए; अंतिः श्रीकमलकलससूरीसर सीस, गाथा २१. ५१५२१. उदाइराजा सत ढालीयो, संपूर्ण, वि. १८९५, वैशाख शुक्ल, ७, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. सा. छोटी आर्या, पठ. सा. उमा आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, जै, (२५४११.५, १६४३५). उदाइराजा सप्त ढालीयो, मा.गु., पद्य, आदि: तिण कालेने तिण समे; अंति: ज्युं सुख भारी रे, ढाल - ७, गाथा- ६५. ५१५२२. (-) नारी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., दे., ( २४.५x९.५, १४४४०). औपदेशिक सज्झाय- नारी, पुहिं., पद्य, आदि: मुरख के मन भाई नही; अंति: पाछ इछ्या थारी रे, गाथा- २३. ५१५२४. पार्श्वनाथ १०८ नामावली, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३ वे. (२५x१२.५, १२४१५-१८)१०८ पार्श्वजिन नामावली, मा.गु. को, आदि; कोका पार्श्वनाथ, अंतिः सलूणा पार्श्वनाथजी, " ५१५२५. जिनपतिसूरि बधाई गीत, अपूर्ण, वि. १५५० आषाढ़ शुक्ल, ५. मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १३-१२ (१ से १२) - १, जैवे., (२६X११, १३x४४). जिनपतिसूरि बधाई गीत, मा.गु., पद्य, आदिः आसीय नयरि वधामणुए; अंति: दुहसवि देवि राखेवि, गाथा- १९, संपूर्ण. ५१५२६. च्यार मंगल प्रभाती, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पु. १, वे (२५x११.५, ११४३५). " For Private and Personal Use Only Page #429 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४ मंगल पद, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सिद्धारथ भुपति सोहेइ; अंति: उदयरत्न भाखे एम, गाथा-८, (वि. प्रतिलेखक ने दो गाथाओं को एक गिना है.) ५१५२७. धर्म भावना, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. श्रावि. गौमतिबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१२, १३४४०). धर्म भावना, मा.गु., गद्य, आदि: धन हो प्रभु संसार; अंति: त्रिकाल वंदना होज्यो. ५१५२८. पजुसण थोय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६४११, ९४४०). पर्युषणपर्व स्तुति, मु. चतुर, सं., पद्य, आदि: भो भो भव्यजनाः सदा; अंति: चतुरस्य सिद्धायिका, श्लोक-४. ५१५२९. स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ६, दे., (२५४११.५, ८x२७). १. पे. नाम. पार्श्वनाथ जिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद, आ. जिनभक्तिसूरि, पुहि., पद्य, आदि: माई रंगभर खेलेगे; अंति: भक्ति रमे जिनवर सहाय, गाथा-५. २. पे. नाम. नेमिनाथ पद, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. नेमिजिन पद, म. ऋद्धिहर्ष, पुहि., पद्य, आदि: गढ गिरनार की तलहटी; अंति: रिद्धिहरष देवी माय, गाथा-६. ३. पे. नाम. वसंत पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. वसंतऋतु वर्णन पद, मु. जिनलाभ, पुहि., पद्य, आदि: जिन मिंदिर जयकार ऐसे; अंति: जिनलाभ०खेलत भवजल पार, - गाथा-४. ४. पे. नाम. पद्मप्रभू गीत, पृ. २आ, संपूर्ण. पद्मप्रभजिन पद, मु. जैनरतन, पुहिं., पद्य, आदि: प्रह सम समरीजै सामि; अंति: जिनरतन० पसरे ठाम ठाम, गाथा-३. ५. पे. नाम. नेमनाथ पद, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. नेमिजिन पद, आ. जिनभक्तिसूरि, पुहि., पद्य, आदि: ऐसे नेम कुंवर खेले; अंति: जिनभक्ति० उपजति आणंद, गाथा-६. ६. पे. नाम. आदिजिनहोली, पृ. ३अ, संपूर्ण. आदिजिन होरी, मु. जिनचंद्र, पुहिं., पद्य, आदि: होली खेलियै नर बहुर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ३ अपूर्ण तक लिखा है.) ५१५३०. अनादि बत्रीसी व काकंदीधनामुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, १३४४३). १. पे. नाम. अनादि बत्रीसी, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. श्राव. भैया, पुहिं., पद्य, वि. १७५०, आदि: अष्टकर्म अरिजीतकै भए; अंति: भइया० कहि अनाद प्रतछ, गाथा-३३. २. पे. नाम. काकंदिधनामुनि सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. धन्नाकाकंदी सज्झाय, मु. तिलोकसी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवाणी रे धना; अंति: गाया है मनमै गहगही, गाथा-२२. ५१५३१. गौतमपृच्छा चुपई, संपूर्ण, वि. १६५२, मार्गशीर्ष कृष्ण, २, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. जेसलमेर, प्रले. पं. गोवाल गणि (गुरु ग. जिनहर्ष वाचक, अंचलगच्छ); गुपि.ग. जिनहर्ष वाचक (अंचलगच्छ); पठ. श्रावि. गूजरि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १४४४१). गौतमपृच्छा चौपाई, मु. नयरंग, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंदतणा पय वंदि; अंति: फले इम पभणे नयरंग, गाथा-५४. ५१५३२. (+#) नेमनाथ रास व प्रस्ताविक दोहा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. मारवाड, प्रले. मु. केसव ऋषि; अन्य. मु. राघव ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है. जैदे.. (२५.५४११.५, १७४३१). १.पे. नाम. नेमनाथ रास, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. नेमराजिमती रास, मु. पुण्यरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सारद पाय प्रणमी करी; अंति: पुन्यरतन० जिणंदकै, गाथा-६५. २. पे. नाम. प्रस्ताविक दोहा संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. जैनगाथा संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२. For Private and Personal Use Only Page #430 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ५१५३३. (+#) महावीरजिन स्तवन, ज्योतिष करण नाम व अरणिक रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, प्रले. मु. हीरजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४.५४११, १३-१५४४६). १.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. मु. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: भूधरे० जीनगुण आसक्त, गाथा-७, (वि. कृति प्रथम गाथा अपूर्ण से लिखी गई २.पे. नाम. ज्योतिष करण नाम, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. ज्योतिषसारणी संग्रह*, अज्ञा., को., आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. अरहनक रास, पृ. १आ, संपूर्ण. अरणिकमुनि रास, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १७०२, आदि: सरसति सामिणि वीनवं अंति: आणंद० रास विलास के, ढाल-८. ५१५३४. नंदीसरदीप विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. भीमा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, २०४७९). __ नंदीश्वरद्वीप विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पूर्व दिसइ दिव रमणि; अंति: ५२ प्रासादनउ विचार. ५१५३५. संथारा पोरसी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४१०.५, १०४३९). संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसिही निसिही निसीहि; अंति: एसमत्तमे गहीइं, गाथा-१४. ५१५३६. (-#) वरसिघ ऋषि बारमासो, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १२४३१). वरसिंघऋषि बारहमासा, मा.गु., पद्य, वि. १६१२, आदि: सरसती भगवती गणहती; अंति: वरतु जिजिकार, गाथा-५०. ५१५३७. (#) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, १२-१४४३६-३८). १.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तव, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजंबोधिबीजं ददातु, श्लोक-११. २.पे. नाम. शांत स्तव, प्र. १आ-२अ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: किं कल्पद्रुमसेवया; अंति: सेव्यतांशांतिरेष स, श्लोक-५. ३. पे. नाम. सारस्वत स्तव, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. सिद्धसारस्वत स्तव, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., पद्य, वि. ९वी, आदि: करमरालविहंगमवाहना; अंति: अवरल सष्टघनौ प्रज्ञा, श्लोक-१७. ५१५३८. (#) दान सीयल तप भावना रास, संपूर्ण, वि. १७६५, वैशाख अधिकमास शुक्ल, १, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. द्वीपबिंदर, प्रले. मु. राजपाल ऋषि (लौंकागच्छ-वरसिंहपक्ष); पठ.मु. नेणसी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४४३). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति: समृद्धि सुप्रसादोरे, ढाल-४, गाथा-८०, ग्रं. १३५. ५१५३९. आयुष्यविचार सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४४१०.५, ७-१०४२४-२७). जीव आयुष्यविचार सज्झाय, मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरुचरणकमल प्रणम; अंति: भावसागर० एम ___भाखी जी, गाथा-१०. ५१५४०. (#) स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८३२-१८५६, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ५, ले.स्थल. नागोर, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १२-१३४३२-३८). १. पे. नाम. चतुराईरी वात, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, वि. १८३२, चैत्र शुक्ल, ९, ले.स्थल. आणंद. चतुराई कीवात, पुहि., गद्य, आदि: एक दिन माघ पंडित ने; अंति: करीने आपणे सहर आया. For Private and Personal Use Only Page #431 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. औपदेशिक प्रहेलिका, पृ. २अ, संपूर्ण. प्रहेलिका संग्रह, पुहिं., पद्य, आदि: जल सुत तस सुत तास; अंति: (-). ३. पे. नाम. चोवीस तीर्थंकर स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, वि. १८३४, पौष शुक्ल, १२, ले.स्थल. ब्रह्मसर. २४ जिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: वरतमान चौवीसी वंदु: अंति: परमाणंदरी माई, गाथा-३. ४. पे. नाम. औपदेशिक गाथा, पृ. २आ, संपूर्ण, वि. १८४४, चैत्र शुक्ल, ४, ले.स्थल. सोकल्याग्राम, प्रले. मु. मानसागर, प्र.ले.पु. सामान्य. जैनगाथा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५. पे. नाम. सुभाषित गाथा, पृ. २आ, संपूर्ण, वि. १८५६, ज्येष्ठ कृष्ण, २, ले.स्थल. नागोर, प्रले.ऋ. माधोराय (लुकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य. सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२. ५१५४१. (+#) शाश्वतजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०, ११४३६-३८). तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्ता देवलोके रवि; अंति: सततं चित्तमानंदकारि, श्लोक-९. ५१५४२. (+#) ज्वर छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. मयाचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १२४३५). ज्वर छंद, मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि: ॐ नमो आनंदपुर अजयपाल; अंति: कांति० जपीये सदा, गाथा-१३. ५१५४४. (#) स्वाध्याय व मांडला, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १२४४४). १. पे. नाम. चतुपदी खेलण स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-सोगठारमत परिहारविषये, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुण सनेही हो सांभल; अंति: ___आणंद कहे करजोडी रे, गाथा-११. २. पे. नाम. २४ मांडला, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: आगाढे आसन्ने उच्चारे; अंति: दूरे पासवणे अहियासे. ५१५४५. मंडितपुत्र दृष्टांत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४१०.५, १६४४४). भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक३ उद्देश३ मंडितपुत्र दृष्टांत, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: जीवेणं भंते सयासमियं; अंति: अंते अंतकिरिया. भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक३ उद्देश३ मंडितपुत्र दृष्टांत की टीका, सं., गद्य, आदि: इह जीवग्रहणेपि सयोग; अंति: नयने उ० उत्रासने. ५१५४६. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४१०.५, १५४४१). १.पे. नाम. रोहिणि तप प्रभाव स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. वासुपूज्यजिन स्तवन-रोहिणीतप गर्भित, मा.गु., पद्य, आदि: पणमीय परमाणंदूए; अंति: पूजस्यइ मननीराली, गाथा-२३. २.पे. नाम. राणकपुरमंडन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-राणकपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: राणिगपुर लरीयामणुरे; अंति: लाल समयसुंदर सुखकार, गाथा-७. ५१५४७. (+) वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२४.५४१०.५, १३४३६). महावीरजिन स्तव, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: निस्तीर्णविस्तीर्णभव; अंति: साम्याज्यमासादयेत्, श्लोक-१८. ५१५४८. (#) क्रोधमानमायालोभ सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४९.५, ९४२८). For Private and Personal Use Only Page #432 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ४१५ क्रोधमानमायालोभ सज्झाय, मु. गुणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: भजीय छे श्रीजिन चरण; अंति: गुणसागर० नचावे छे, गाथा-४. ५१५४९. (#) अष्टक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १४४४५). १.पे. नाम. स्थंभना पार्श्वनाथाष्टक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन अष्टक-महामंत्रगर्भित, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्देवेंद्रवृंदा; अंति: तस्येष्टसिद्धिः, श्लोक-८. २. पे. नाम. पद्मावत्याष्टक, पृ. १आ, संपूर्ण. पद्मावतीदेवी अष्टक, सं., पद्य, आदि: नाकापगाशीतल जीवनानां; अंति: शासनदेवतायै दामोद०, श्लोक-९, (वि. प्रतिलेखक द्वारा अंतिम वाक्य का पाठ पूर्ण नहीं लिखा गया है.) ५१५५०. श्रीपालराजा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. कुल ग्रं. १६, ., (२५.५४११, १०४३४). नवपद महिमा सज्झाय, मु. विमलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती माता मया करो; अंति: विमल० नामे आणंदोरे, गाथा-१२. ५१५५१. कलावती सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. पेथापुर, प्रले. जेठालाल चुनिलाल लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. २०, ३., (२५.५४११,१०४३४). ___ कलावतीसती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: नगरी कोसंबीना राजा; अंति: समयसुंदरमुनि० पार रे, गाथा-१२. ५१५५३. (#) रामतियालासाधु प्रबंध सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. उदयपुर, प्रले. पं. मेघकुमार गणि; राज्यकालरा. जगतसिंह राणा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४९.५, २०४५७-६५). फूलडा सज्झाय, पुहि.,रा., पद्य, आदि: बाई हे मइ अचरिज दीठ; अंति: बांध्यउ चोर चोरी करइ, गाथा-२१. फूलडा सज्झाय-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीर मोक्ष; अंति: नइ विषइ पधारिस्यइ. ५१५५४. वयरकुमार रास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., (२५४१०.५, १४४३९). वज्रस्वामी रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: अरध भरतमांहि शोभतो; अंति: जिनहर्ष० गुण गाया रे, ढाल-१५, गाथा-८९. ५१५५५. कलावती चैढालियो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२४.५४१०.५, १६४३९). कलावतीसती चौढालियो, मु. रंग, मा.गु., पद्य, वि. १८३५, आदि: मालवदेस मनोहरु तिहा; अंति: रंग० मानसंघ जय जयवरे, ढाल-४, गाथा-६२. ५१५५६. (#) नेमिजिन सिलोको, पद व सझाय, संपूर्ण, वि. १८५०, चैत्र शुक्ल, ५, शनिवार, जीर्ण, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, प्र.ले.श्लो. (९१४) अक्षराणि स शीर्षाणी, जैदे., (२४.५४१०,१५४२३). १.पे. नाम. नेमजीरो सीलोको, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. नेमराजिमती श्लोक, मु. कुशलविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: समरु सारदनैं गणपति; अंति: आस्या सफली हुवे सारी, गाथा-२०. २. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: समुद्रविजे सुत नेम; अंति: अमर पद पाया रे, गाथा-६. ३. पे. नाम. नेमजीराजुल सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, ग. जीतसागर, पुहिं., पद्य, आदि: तोरण आयो हे सखी नेम; अंति: जीतसागर० जि के जी, गाथा-१५. ५१५५७. (+) अक्षर द्वय अरिष्टनेमि स्तवन, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४४१०.५, १०४३२-३६). नेमिजिनद्वयक्षर स्तोत्र, मु. शालिन, सं., पद्य, आदि: मानेनानून मानेनानोन्; अंति: वध्वाः परिभोगयोग्याः, श्लोक-९. For Private and Personal Use Only Page #433 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५१५५८. भाषा ४२ बोल सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५८, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. पाली, प्रले. सा. खुस्याली आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११.५, ४४३३). ४२ भाषाभेद गाथा, प्रा., पद्य, आदि: कइ विहाणं भंते भासा; अंति: भासा बोगडा अबोगडाचेव. ४२ भाषाभेद गाथा-टबार्थ, रा., गद्य, आदि: क कतरी कारइत्त; अंति: मणी भाषा बोलइ. ५१५५९. स्थविरावली, संपूर्ण, वि. १८६५, चैत्र कृष्ण, १४, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २, पठ. मु. जोधीयो, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११.५, १४४३९). नंदीसूत्र-स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: नाणस्स परूवणं वुच्छं, गाथा-५०. ५१५६०. (+#) चतुर्विशति जिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १२४२९). सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: सुरोद्रुमः, श्लोक-४३. ५१५६१. (+#) माणिभद्रवीर छंद व मंत्र, संपूर्ण, वि. १८८६, पौष कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. मु. तीर्थसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १४४४१). १. पे. नाम. माणभद्रवीर छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. माणिभद्रवीर छंद, आ. शांतिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामणपाय प्रणमे; अंति: हो वीर तपे तेज दिनकर, गाथा-४२. २. पे. नाम. माणिभद्र मंत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. माणिभद्रवीर जाप मंत्र, सं., पद्य, आदि: ॐनमो श्रीमाणिभद्राय; अंति: कुरु कुरु स्वाहा, श्लोक-१. ५१५६२. (+#) सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. गंगराड, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १७४३६). सीमंधरजिन स्तवन, मु. सौभाग्यहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति पाय प्रणमी करी; अंति: सौभाग्यहर्ष अरदास ए, गाथा-२५. ५१५६३. (+) स्तंभन पार्श्वजिन विज्ञप्तिका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. लाहानुर, पठ. ग.शांतिविजय (गुरु ग. वृद्धिविजय); गुपि.ग. वृद्धिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १७४५६). जयतिहअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहयणवरकप्परुक्ख; अंति: अभयदेव विनवइ आणंदिय, गाथा-३०. ५१५६४. (+) ऋषि लालजी शिष्य चौढालीयो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पठ. श्रावि. राजलदे; अन्य. सा. मंगाईजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४११.५, ११४३५). लालऋषि शिष्य गच्छाधिपति चौढालियो, मु. वन्नु, मा.गु., पद्य, वि. १६६४, आदि: गोयम गणहर पाय नमी; अंति: वनु० आज्ञा सरिधरी, ढाल-४, गाथा-५१. ५१५६५. (#) रोहिणी रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १८४५२). रोहिणीतप रास, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनमुखकजवासिनी; अंति: उदयविजय० तूर वजायाजी, ढाल-८. ५१५६६. (#) पार्श्वजिन स्तवन संग्रह व काग विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४४०). १. पे. नाम. गोडी पासजिन स्तवन, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वाणी ब्रह्मावादनी; अंति: प्रीतविमल० मंगल करो, ढाल-५, गाथा-५५. २.पे. नाम. काग विचार, पृ. ३आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #434 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कागविचार, मा.गु, गद्य, आदि: इसानकुंणि आस पोहचि अंतिः परदेसथी धन आवे. ३. पे. नाम. गोडी पार्श्वदेव गीत, पृ. ३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. मोहनविजय, फा., पद्य, आदि: श्रीगोरी पास गरिब, अंति: मोहन० जख्य फूते, गाथा - ५. ५१५६७. (1) जैनधर्म दीपक स्वाध्याय, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२४४१०, २४४५८-६२). जैनधर्म दीपक सज्झाय, उपा. मेघविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत धरम प्रथम, अंति: मेघविजयइं चित धर्या, अध्याय-३, गाथा-४५. ४१७ ५१५६८. धन्नाशालिभद्र चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५X१०.५, ११X३२-३५). शालिभद्रमुनि चौपाई. मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासननायक समरिये अंति: (-). (पू.वि. ढाल २ गाथा १४ अपूर्ण तक है.) ५१५६९ (४) धूलिभद्रर्षि स्वाध्याय व श्लोक, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे २ प्रले. ग. विमलसौभाग्य, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२४४१०, १३-१६४३०-३४). १. पे नाम. धूलिभद्रर्षि स्वाध्याय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, मु. सिंहसौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: भगवती भारती देवि चरण; अंति: सिंघभाग्य० जयजयकरुजी, गाथा - २४. २. पे. नाम. प्रस्ताविक श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह प्रा.मा.गु. सं., पद्य, आदि (-) अंति: (-) श्लोक-१. 1 ५१५७० (४) पार्श्वनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०बी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्वाही फेल गयी है, वे., (२५.५४१२, ११x२२). पार्श्वजिन स्तवन- जीरावला, मा.गु., पद्य, आदि: जीराउला देव करउं; अंति: करी सेवक मुझ थापर, गाथा - १०. ५१५७१. (४) चौदनियम सज्झाव व सिद्धाचल स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६-५ (१ से ५) १, कुल पे. २, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, वे., (२३.५x१०.५, १७४३०-३६) १. पे नाम. चवद नियम सज्झाय, पृ. ६अ ६आ, संपूर्ण १४ नियम सज्झाव, मा.गु, पद्य, आदि सारद पाच प्रणमी करी, अंति: जस महिमा जगमांहि गाथा - २०. २. पे नाम, सिद्धाचल स्तवन, पृ. ६आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं है. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन- ९९ यात्रागर्भित, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धाचलमंडण, अंति: (-), (पू.वि. गाथा १० अपूर्ण तक है.) ५१५७२ (क) अल्पबहुत्वे वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२४४१०.५, १३x४२-४८). महावीरजिन स्तवन- अल्पबहुत्वविचारगर्भित, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८२३, आदि बिलहल वीर जिणंदना पद, अंतिः रूपचंद्रे शुभ मने, गाथा- १४. ५१५७३. (-#) सनीश्चर छंद, संपूर्ण, वि. १९२८, फाल्गुन शुक्ल, १, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. दुहडका, प्रले. मु. प्रथ्वीराज (गुरु पंन्या. नाथुहर्ष); गुपि. पंन्या. नाथुहर्ष, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. पठनार्थ चतु लिखा हैं., अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल ग है, जैदे., (२५X११.५, १३X३४). फैल गयी है, जैदे., ( २४.५X११.५, १८X३०). १. पे नाम शनिश्चर छंद, पृ. ९अ १आ, संपूर्ण शनिश्चर छंद, मा.गु., पद्य, आदिः छायानंदन जग जयो रवि अंतिः सदा शनिश्वर वखाणी, गाथा १६. २. पे. नाम. बृहस्पति स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. शनिश्चर छंद, मा.गु., पच, आदि आनंदन जगजयो रविसूत अंतिः बली कीई सवखांणीए, गाथा- १६. ५१५७४ (१) शनिश्चर छंद व वृहस्पति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८७३ चैत्र कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही For Private and Personal Use Only Page #435 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सं., पद्य, आदि: ॐ बृहस्पतिः सुरा; अंति: सुप्रीतिस्तस्य जायते, श्लोक-५. ५१५७५. जलयात्रा विधि, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२५४१०.५, १४४४५). जलयात्रा विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: क्षीरोदधि सयंभुश्चसर; अंति: (-), (पू.वि. ॐ मुक्तितत्वा तक का पाठ है.) ५१५७६. पार्श्वनाथ स्तवन व आदिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४१०.५, ११४३२). १. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: मेरा मन मोहिया० शंखे; अंति: उजय०कीजइ सुकृत सुगाल, गाथा-७. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आदिजिन बृहत्स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमविसयल जिणंद; अंति: (-). (पू.वि. गाथा ४ अपूर्ण तक है.) ५१५७७. (#) स्वाध्याय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १३४४८). १.पे. नाम. विद्यासागरोपाध्याय स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण... विद्यासागर सज्झाय, उपा. शांतिसागर, पुहिं., पद्य, आदि: विद्यासागर विद्या; अंति: शांतिसागर० गावइरे, गाथा-७. २. पे. नाम. विजयसेनसूरि स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. विजयसेनसूरि सज्झाय, मु. हेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विजयसेनसूरि० शिरोमणि; अंति: हेमविजय जयकारीजी, गाथा-१३. ५१५७८. (#) बारह देवलोक प्रासाद व जिनबिंब संख्या व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, ले.स्थल. बेलानगर, प्रले. पं. रंगविजयजी गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीअजीतनाथ प्रसादात्, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १७४४६). १.पे. नाम. बारदेवलोकना प्रासाद जिनबिंब संख्या, पृ. १अ, संपूर्ण. १२ देवलोक नाम, मा.गु., गद्य, आदि: पहिले सौधर्म देव; अंति: जिनबिंब नमस्कार. २. पे. नाम. बारदेवलोक नवग्रैवक सास्वति प्रतिमा संख्या, पृ. १अ, संपूर्ण. शाश्वतजिनबिंबसंख्या विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहिले ग्रेवेकि एकसो; अंति: जिनबिंब नमस्कार. ३. पे. नाम. भरत सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. भरतचक्रवर्ती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: भरत प्रत देखी आणंदे; अंति: आत्म गुण अजुआल्यो, गाथा-७. ४. पे. नाम. आत्मकाय सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. विनय, पुहि., पद्य, आदि: क्या करूं मंदिर क्या; अंति: विनय०दूनिया में फेरा, गाथा-५. ५१५७९. कका बत्तीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२४.५४१२,१२४३०). ककाबत्रीसी, मु. जिनवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: कका करमनी वात करी रे; अंति: क्षीमा सहेली सुरमा, गाथा-३३. ५१५८०. शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४११, ११४४०). शांतिजिन स्तवन, मु. अमृतविमल, मा.गु., पद्य, आदि: जीहो समीहात पूरण सूर; अंति: अमृतवाणी० धरि ससनेह, गाथा-११. ५१५८१. (#) गुंहली संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे.८, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १५४४४). १. पे. नाम. गुरुगुण गुहली, पृ. १अ, संपूर्ण. गुरुगुण गहुंली, मु. उत्तम, मा.गु., पद्य, आदि: तुमे शुभ परिणामें; अंति: उत्तमने मंगलमालो रे, गाथा-७. २. पे. नाम. साधुगुण गुंहली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. साधुगुण गहुंली, मु. उत्तम, मा.गु., पद्य, आदि: षट्व्रत सुधा पालता; अंति: उत्तम० निमित्त रे, गाथा-९. ३. पे. नाम. सुधर्मास्वामी गुहंली, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #436 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ सुधर्मास्वामी गहुली, मा.गु., पद्य, आदि: ज्ञांन दर्शन गुण धरत, अंति: परभावे एहवा उत्तमजीव, गाथा-५. ४. पे. नाम. गुरुगुण गहुली, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. www.kobatirth.org पंन्या. उत्तमविजय, मा.गु, पद्य, आदि: आतम धरम गुणन भणी आवे; अंतिः उत्तम पदवी धाय, गाथा- ७. ५. पे. नाम. गणधरगुण गुहली, पृ. २अ, संपूर्ण गणधरगुण हली, मा.गु., पद्य, आदि गणधर हे गणधर चारित्र, अंति: अनुभव रत्न लहंत, गाथा- ९. ६. पे नाम. सुधर्मस्वामी गुहली, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. सुधर्मागणधर सज्झाय, पंन्या. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवरमां परधान, अंति: उत्तम पदवरेजी, गाथा- १५. ७. पे नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महावीर जिन स्तवन- ज्ञानदर्शनसंवादरूप गर्भित, ग. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर भुवन, अंति: रत्ननी कीरति चढती रे, गाथा-७. יי ८. पे नाम. सुधर्मास्वामी गहुली, पृ. ३४-३आ, संपूर्ण. पं. हर्षविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशुद्ध धरम परकासत; अंति: गुरु उत्तम हरष नमाय, गाथा- ७. ५१५८३. (+) जिनकुशलसूरि निसाणी, संपूर्ण, वि. १९५८, आषाढ़ अधिकमास शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल. बीदासर, प्रले. पं. गणेशलाल मुनि प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे (२४४१०.५, ९४३२-४७). जिनकुशलसूरि गीत, मु. उदयरत्न, पुहिं., पद्य, वि. १८७४, आदि: सदगुरु गछनायक वंछित; अंति: उदयरतन्न कहदा है, יי יי गाथा - १५. ५१५८४, (७) सीलरा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. मु. मोहनजी, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैसे. (२५.५x११.५, १२४३२-३६). विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, आ. हर्षकीर्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी रे पंच, अंति: हर्षकीर्ति० घर अवतरे, डाल- ३, गाथा- २४. ४१९ ५१५८५. (#) वीचार चोसठी, संपूर्ण, वि. १८४९, फाल्गुन, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले. स्थल. नेर, प्रले. मु. नानजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११.५, १४X३३). विचारचोसठी, आ. नन्नसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १५४४, आदि: वीरजिणेसर प्रणमी पाय, अंति: कोरंटगछ भणे नंदसूर, गाथा- ६४. ५१५८६. अभव्य कुलक सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९२९ कार्तिक शुक्ल ८, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल. सवाइ जयपुर, प्रले. गणेश ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. कुल नं. ५०, जैवे. (२५.५x११.५, ४X३४). अभव्य कुलक हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि जह अभवियजीवेहिं न अंतिः तेसिं न संपत्ता, गाथा- ९. अभव्य कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जह क० जीम अभव्यनो; अंति: करे ते भक्ति रहित. ५१५८७. (-) पखिप्रतिक्रमण विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., दे. (२४.५x१२, ८x२५). प्रतिक्रमणविधि संग्रह- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा. मा.गु., गद्य, आदि: देवसी प्रतिक्रमणमा अंतिः मोटी शांति कहणी. ५१५८८. (#) चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. २, कुल पे. ६, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५x११. १६४४-४८). २. पे. नाम चोविसजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. २४ जिन बृहत्वैत्यवंदन, मु. खेमो ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पहिले प्रणमुं प्रथम, अंति: खेमी० पामै सुख अनंत, गाथा-८. २. पे. नाम, सीमंधरसामी चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण सीमंधरजिन चैत्यवंदन, मु. हर्षविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पूरब दिशि ईशान कुणि; अंति: हर्ष ० पूरो मनह जगीस, गाथा - ९. ३. पे. नाम. पंचतीर्थजिन चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #437 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५तीर्थजिन चैत्यवंदन, मु. कमलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धुरि समरु श्रीआदिदेव; अंति: कमल घरि जै जैकार, गाथा-६. ४. पे. नाम. जिन दर्शन प्रार्थना संग्रह, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: श्रीमते वीरनाथाय; अंति: श्रेयस्करं देहिता, श्लोक-१७. ५. पे. नाम. चौवीसजिन चैत्यवंदन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. २४ जिन चैत्यवंदन, मु. ऋद्धिचंद, मा.गु., पद्य, आदि: आदि अजित नै संभवनाथ; अंति: रिधि० प्रणमैं निसदीस. गाथा-५. ६. पे. नाम. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. साधुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धचक्र आराधता; अंति: साधुवि० नमुंकरजोडि, गाथा-१६. ५१५८९. (+-#) ऋषभदेव स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४११.५, २१४१६). आदिजिन स्तनव-शत्रुजय मंडन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरुचरण नमीजइ; अंति: कांति० गुण गायो रे, गाथा-७. ५१५९१. अध्यात्म गीता, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., (२५.५४११.५, १३४३२-३५). अध्यात्म गीता, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रणमियै विश्वहित; अंति: देवचंद्र० सुप्रतीता, गाथा-५०. ५१५९२. जिनभुवने ८४ आशातना नाम, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४११.५, १३४३७). जिनभवन ८४ आशातना नाम, मा.गु., गद्य, आदि: बलखो नांखे १ हिचोला; अंति: ते स्नान करे ते. ५१५९४. (#) बृहच्छांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८९४, आषाढ़ शुक्ल, ३, बुधवार, मध्यम, पृ. ४, पठ. मु. देवीचंद (बृहत्खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १०४२८). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: पूज्यमाने जिनेश्वरे. ५१५९५. (+) पुन्न कुलं, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पठ. श्रावि. लखमीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२५४१०.५, १३४४४). पुण्यपाप कुलक, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: छत्तीसदिणसहस्सा; अंति: जिणकत्तीइमी० उजमह, गाथा-१६. ५१५९६. (#) लघुशांति स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३५). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांतिशांतिनिशांत; अंति: (१)पूज्यमान० जयति शासनं, (२)जैनंजयति शासनम्, श्लोक-१९. ५१५९७. (#) नवकार मंत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १२४३३). नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: नमो लोए सव्वसाहणं, पद-९. नमस्कार महामंत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतनइ माहरउ; अंति: भणी सिद्धवडा कहीइ. ५१५९९. (-2) इक्षुकारराजा कमलावतीराणी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२, १७४३६).. इक्षुकारराजा कमलावती राणी सज्झाय, मु. चौथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १९६०, आदि: एद्धनपुर सज्यो सजम; अंति: चोथमल०भाग उदय होय तो, गाथा-९. ५१६००. पार्श्वनाथ स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. रांनेरबंदर, प्रले. पं. ऋषभविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४११.५, १०४३१). १.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार लिखी गई है. पार्श्वजिन स्तोत्र-कलिकंड, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं तं नमह; अंति: स्वामिने नमः स्वाहा, श्लोक-४. For Private and Personal Use Only Page #438 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ २.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार लिखी गई है. पार्श्वजिन स्तोत्र-कलिकुंड, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं तं नमह; अंति: कलिकुंडस्वामिने नमः, श्लोक-४. ५१६०१. लावणी संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४११.५, १८४४४). १.पे. नाम. पांडव लावणी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पांडव सज्झाय, म. हीर, मा.ग., पद्य, आदि: बारे वर्स वनवास पांड; अंति: हीर कहे वडे अणगारी, गाथा-११, २.पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. हीराचंद, पुहिं., पद्य, आदि: देखी संपत पुत गर्भ; अंति: हीरा० मुगत पद वर रे, गाथा-६. ५१६०२. (#) तेर काठिया स्तवन, संपूर्ण, वि. १९६७, वैशाख कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. भादसोडा, प्रले. श्राव. कारुलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, २१४४८). १३ काठिया सज्झाय, मु. आसकरण ऋषि, रा., पद्य, वि. १८६१, आदि: रतन चिंतामण जे एवोजी; अंति: आस० कीयो रेचोमासजी, गाथा-२२. ५१६०३. (+) सारस्वतमंत्रगर्भित भारती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. सुंदरदास (गुरु मु. मनरूपजी); पठ. मु. धनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-वचन विभक्ति संकेत-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, ९४२८). सरस्वतीदेवी स्तोत्र-मंत्रगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ नमस्त्रिदशवंदित; अंति: मधुरोज्ज्वलागिरः, श्लोक-९. ५१६०४. शोभाचंद (शोभमुनि) गुण इकवीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४११.५, १३४३९). शोभाचंद एकवीसी, रा., पद्य, आदि: म्हे तो शोभमुनी गुण; अंति: वे तो अमरापद वरसी, गाथा-२१. ५१६०५. (+#) जिनस्तुतिरूप पारसी काव्य सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १०४४७). आदिजिन स्तवन, आ. जिनप्रभसूरि, फा., पद्य, आदि: अल्ला ल्लाहि तुराह; अंति: चंदिने मे देहीति, श्लोक-११. आदिजिन स्तवन-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: हे पूज्य तवाहं कर्मक; अंति: देहीति भावार्थः. ५१६०६. (-) भेपचीसी सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. जोधपुर, अन्य. सुकन कवर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२४.५४११.५, १२४४३). औपदेशिक सज्झाय, रा., पद्य, आदि: सासण नायक श्रीव्रधमा; अंति: मन रे तु जीवने समजाय, गाथा-२१. ५१६०७. (#) समवसरण स्तव, संपूर्ण, वि. १५४८, पौष शुक्ल, १५, गुरुवार, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. शुभ (गुरु ग. माणिक्यवीर गणि); गुपि. ग. माणिक्यवीर गणि (गुरु पं. आनंदवीर गणि); पं. आनंदवीर गणि; अन्य. आ. विशालराजसूरि (गुरु आ. सोमसुंदरसूरि, तपागच्छ); गुपि. आ. सोमसुंदरसूरि (तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं, (९१५) भग्नि प्रष्टि कष्टि ग्रीवा, जैदे., (२५४११, २१४५५). नेमिजिन स्तवन-समवसरणविचारगर्भित, मु. सोमसुंदरसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: जाइवकुल सिणगार सिरि; अंति: सोमसुंदरसू० ते लहय ए, कडी-३३. ५१६०८. (#) चित ब्रह्मदत्त सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, अन्य. संतोषचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१०.५, १८४४३). चित्रसंभूति सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चित्त कहै ब्रमदतनै; अंति: कवि० बंधव बोल मान हो, गाथा-२४. ५१६०९. साधु उपमा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४११.५, १७४३५). ३० उपमा-साधु की, मा.गु., गद्य, आदि: कांसीना भाजनरी उपमा; अंति: कीलामणा उपजाव नही. ५१६१०. स्तवन, प्रहेलिका व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, प्रले. मु. रूपकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०.५, १३४३४). १.पे. नाम. आलोअण स्तवन, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. ( ४७). For Private and Personal Use Only Page #439 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सीमंधरजिन स्तवन-आलोयणाविनती, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: आजि अनंता भव तणा कीध; अंति: प्रभु उगतइ सूरतु, गाथा-५९. २. पे. नाम. प्रहेलिका संग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. प्रहेलिका श्लोक संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: घोडा मंडण प्रीउचडण; अंति: समझैनाह सुजाण, गाथा-४. ३. पे. नाम. ज्योतिष श्लोक संग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. __ज्योतिष*, मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., आदि: वयस्थाने यदा चंद्रो; अंति: (-), ग्रं. २. ५१६१२. (#) बावनअक्षरी पद्माजय स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, ११४३९). पद्मावतीदेवी स्तोत्र-सबीजमंत्रयुत, मु. मुनिचंद्र, सं., पद्य, आदि: ॐ ॐ ॐकार बीजं; अंति: अमरा पद्माश्रितम्, श्लोक-२६. ५१६१३. पार्श्वजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. पं. अमृतकुशल गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२.५, ६४३२). पार्श्वजिन स्तोत्र-कलिकुंड, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं तं नमह; अंति: (१)इयनाउंसरह भगवंतम, (२)कलिकुंडस्वामिने नमः, श्लोक-४. ५१६१५. (+) पार्श्वनाथ देशांत्तरी छंद, संपूर्ण, वि. १८६८, माघ शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. ग. रंगविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२, १७४५३). पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: सुवचन आपो शारदा मया; अंति: तवियो छंद देशांतरी, गाथा-४६. ५१६१६. भूतबलि मंत्र व नवग्रह स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, ११४३८). १.पे. नाम. भूतबलि मंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: ॐ नमो अरिहंताणं; अंति: भवंतु स्वाहा १०८. २. पे. नाम. नवग्रह पूजा संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. नवग्रह स्तोत्र-मंत्रगर्भित, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं सांसकसूर्याय; अंति: केतोशांतिश्रियं गुरु, श्लोक-९. ५१६१७. (#) पार्श्वजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२, ११४३५). पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजं बोधिबीज ददातु, श्लोक-११. ५१६१८. सिखामणा सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. पं. चतुरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. ५४, जैदे., (२६४११.५, १३४३४). औपदेशिक सज्झाय, उपा. यशोविजयजीगणि, मा.गु., पद्य, आदि: चड्या पड्यानो अंतर; अंति: मति नवी काची रे, गाथा-४१. ५१६१९. (+) सप्तनय विचार गर्भित वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४११.५, १५४४५). नयकर्णिका, उपा. विनयविजय, सं., पद्य, वि. १७३, आदि: वर्द्धमानं स्तुमः; अंति: यसिंहगुरोश्चतुष्ट्यै, श्लोक-२३. ५१६२०. (+#) धरणेंद्र स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १६६४, माघ, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. कुशलविजय (गुरु भट्टा. विजयदेवसूरि); । गुपि. भट्टा. विजयदेवसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १२४३३). पार्श्वजिन स्तोत्र, आ. शिवनाग, सं., पद्य, आदि: धरणोरगेंद्रसुरपति; अंति: तस्यैतत्सफलं भवेत्, श्लोक-३९. ५१६२१. (+-#) सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अशुद्ध पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११, १५४४०). १.पे. नाम. कमलावती सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #440 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ताप हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ४२३ कमलावतीसती सज्झाय, मु. सुगुणनिधान, मा.गु., पद्य, आदि: कहि राणी कमलावती हो; अंति: हंसलारे सुगणनिधान, गाथा-१०. २. पे. नाम. काकसु गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक गीत-काकसु, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५५०, आदि: पाणी वेहरी पाधरा जात; अंति: केडइ पोसाल निपासिय, गाथा-११. ३. पे. नाम. धन्ना शालिभद्र सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मु. कर्मचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणिक वछ ताहरइ घरि; अंति: (अपठनीय), गाथा-९. ५१६२२. (+#) सिद्धि प्रिय स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १४-१७४४९). सिद्धिप्रिय स्तोत्र, आ. देवनंदी, सं., पद्य, ई. ६वी, आदि: सिद्धिप्रियैः प्रति; अंति: तातः सतामीशिताः, श्लोक-२६. ५१६२३. अष्टादनात्रकगर्भित हालरा गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०.५, १०४३८). १८ नातरा गीत, मु. भुवनकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: गीगारे रहि तुंरोवत; अंति: भुवनकीरति समझीइ, गाथा-६. ५१६२४. (#) स्तवन, सझाय व श्लोक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४९.५, १२४४२). १. पे. नाम. हितोपदेश सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: धरम मै मूकी विनय मे; अंति: पभणे चिरकाले वंदोरे, गाथा-७. २.पे. नाम. खरतरगच्छ साधुगुण वर्णन श्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: खरतरांयती: खरमूर्तिक, अंति: वज्रादपी खरतरा मुनिय, श्लोक-२. ३. पे. नाम. ऋषभदेवजीरो स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जगजीवन जगवालहो मरुदे; अंति: सुखनो पोष लाल रे, गाथा-५. ५१६२५. (#) आसिक पचीसी, संपूर्ण, वि. १८८१, ज्येष्ठ शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १६४४८). आसीकपच्चीसी, य. जिनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: आसिक उभो तुझ रुप; अंति: जिनचंद्र० घणो लहस्यै, गाथा-२५. ५१६२६. स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२५४११, १७४४२). १. पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७८९, आदि: जगपति तारक श्रीजिनदे; अंति: भगवंत भावेसुं भेटीउ, गाथा-५. २. पे. नाम. ऋषभदेव स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-राणकपुरमंडन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७९३, आदि: जगपति जय जय ऋषभजिणंद; अंति: सादडी संघ सहित नमे, गाथा-७. ३. पे. नाम. पारसनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. श्री धर्मनाथ प्रसादात्. प्रत में छिद्र होने से सीटी नाम अवाच्य है. पार्श्वजिन स्तवन-भाभा, उपा. उदयरतन, मा.गु., पद्य, वि. १७७९, आदि: त्रिभुवन नायक त्रीवि; अंति: उदय० वसी आंगणे रे, गाथा-५. ४. पे. नाम. पंचमीनी स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: श्रावण सुद दिन पांचम; अंति: ए सफल करो अवतार तो, गाथा-४. ५१६२७. सनीश्चर सूर्यपुत्र छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२४.५४११.५, १०४२९). शनिश्चर छंद, क. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: अहि नर असुर सुरपति; अंति: हेम० अलगी टालि आपदा, गाथा-१६. For Private and Personal Use Only Page #441 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५१६२८. प्रदेशीनृप प्रश्न केशीगणधरप्रत्युत्तराणि सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७९६, माघ शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२५४११, ३४४६). प्रदेशीराजा प्रश्नोत्तरी, प्रा., पद्य, आदि: अजय१ अज्जीर कुंभी३; अंति: अइभारावाह १० पडिवयणं, गाथा-२. प्रदेशीराजा प्रश्नोत्तरी-टीका, सं., गद्य, आदि: केकईएदेशे श्वेतंबिका; अंति: क्रमायातमतमोचनीयम्. ५१६२९. चैत्री पूनम देववंदन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., दे., (२४.५४११.५, १५४३४). चैत्रीपूर्णिमापर्व देववंदन विधि, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नाभि नरेश्वर वंश; अंति: (-), (पू.वि. द्वितीय जोडा की स्तुति तक है.) ५१६३०. (#) पांचमो अछेरो कृष्णअमरकंका गमन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १४४४३). द्रौपदीसती कथा-पंचमअछेरा कृष्ण अमरकंकागमन, मा.गु., गद्य, आदि: द्रोपदी पाछलै भवै; अंति: एह वातनो अछेरोजाणवो. ५१६३१. (#) तीर्थकर मल्लीनाथ-तीजो अछेरो विवरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १४४४३). मल्लिजिन अच्छेरा वर्णन-तीसरा, मा.गु., गद्य, आदि: एहि जंबुद्वीपे माहा; अंति: थया ते अछेरो जाणवो. ५१६३२. (#) जिनकुसलसूरि गीत व स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १२४३९). १.पे. नाम. जिनकुसलसूरि गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि गीत, पा. साधुकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: विलसइ रिद्धि समृद्धि; अंति: साधुकीरति पाठक भाषइ, गाथा-१५. २. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. शत्रुजयतीर्थ बृहत्स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: बे करजोडी विनवूजी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३ अपूर्ण तक है.) ५१६३३. सीमंधरजिन वीनती स्तवन, संपूर्ण, वि. १९२४, पौष कृष्ण, १३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५४१०, ७५३२-३४). सीमंधरजिन विनती स्तवन, मु. अगरचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८६१, आदि: त्रीभुवन साहिब अरज; अंति: अगरचंद० गरिव निवाज, गाथा-२०. ५१६३४. (#) स्तोत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १०४३५). १.पे. नाम. पद्मावत्यष्टक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पद्मावतीदेवी अष्टक, मु. क्षमाकल्याण, सं., पद्य, आदि: चिदानंदसंपद्विलासैक; अंति: ते शुद्धसमृद्धिभाजः, श्लोक-९. २. पे. नाम. कलमरालस्तोत्रे सारस्वत मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. लक्षजाप विधि सहित. __मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह , उ.,पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: ॐहीक्लींब्लूँश्री; अंति: (-). ३. पे. नाम. राजसोमाष्टकम्, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु.क्षमाकल्याण कवि, सं., पद्य, आदि: श्रेयस्कारि सतां; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक ६ अपूर्ण तक है.) ५१६३६. स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ५, दे., (२६४११, १३४३९). १.पे. नाम. आठमनी स्तुति, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. अष्टमीतिथि स्तुति, आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: इम जीवित जनम प्रमाण, गाथा-४, (पू.वि. गाथा ३ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित जेसलमेरमंडन, सं., पद्य, आदि: समदमोत्तम वस्तु महाप; अंति: जयतु सा जिनशासनदेवता, श्लोक-४. For Private and Personal Use Only Page #442 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ३. पे. नाम. एकादशी स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: नेमिजिन उपदिसी मौनएक; अंति: पति करा संघ मंगल करा, गाथा-४. ४. पे. नाम. वीर स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण.. महावीरजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: बाला पणै डावै पाय; अंति: कारिज छढे प्रामणे, गाथा-४. ५. पे. नाम. मुरति मनोहर, पृ. २आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. महावीरजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मुरति मनमोहन कंचन; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. गाथा ४ अपूर्ण तक है.) ५१६३७. (+) दृष्टांतकथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१०.५, १८-२०४४४-५६). १. पे. नाम. महावीरजिन बालप्रसंग दृष्टांत, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: (१)चलिय मेरु सलसलिय सेस, (२)अहऊण अट्ठवासो भयवं; अंति: सक्केणय तुट्ठचित्तेण, गाथा-१८. २. पे. नाम. त्रिशलामाता दोहद श्लोक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ सं., पद्य, आदि: सत्पात्रपूजां किमह; अंति: ते पुष्यतमेतरस्ते, श्लोक-६. ३. पे. नाम. विविध दृष्टांतकथा संग्रह, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. दृष्टांतकथा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: रे दालिद्दवियक्खणवत; अंति: नैवं भावि नैवं भवति. ५१६३८. गमानो विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. धर्मसी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११, १७-१९४३५). गम्मा यंत्र, मा.गु., को., आदि: संख्याता जीव उपजै ते; अंति: संख्यातमें भागे फरसे. ५१६३९. पद्मावती आराधना, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२४.५४१०.५, ११४३८). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवइ राणी पदमावती; अंति: समय०पापथी छूटइ ततकाल, ढाल-३, गाथा-३५. ५१६४०. (#) विमलजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४११.५, ११४२८). विमलजिन स्तवन, मु. देवचंद्रजी, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: विमलजिन विमलता ताहरी; अंति: विमल आनंद स्वयमेव, गाथा-७. ५१६४१. स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, पठ. श्रावि. जीवी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०.५, ११४२६). १. पे. नाम. श्रीमंधिर स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. अनंतकल्याणकर स्तोत्र, मु. रूपसिंह, सं., पद्य, आदि: अनंत कल्ल्याणकरं करष; अंति: तेषां बत साधुरूपाः, श्लोक-५. २. पे. नाम. शत्रुजय स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, सं., पद्य, आदि: शत्रुजयः पर्वत एवधी; अंति: ध्यायति सच्चेतसा, श्लोक-५. ५१६४२. (#) सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५.५४१०.५, १२४३२). १. पे. नाम. क्रोध निवारण सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-क्रोध निवारण, मु. गुणसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: क्रोध महारिपु जाणो; अंति: गुणसुंदर नही को खोडि, गाथा-९. २. पे. नाम. नेमराजिमति सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, आ. हेमविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: कपूर हुवे अति उजलोरे; अंति: पहुंता वंछित कोड, गाथा-८. ३. पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #443 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: सिज्या भली रे संतोष; अंति: ढूकडी नावै गरभावासजी, गाथा-७. ५१६४३. बिंब जिनप्रासाद प्रतिष्टा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४१०.५, १४४४५). जिनबिंबप्रवेशस्थापना विधि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम उतम महत; अंति: सन्मुखो वर्जनीयः. ५१६४४. (#) अष्टोत्तरी स्नानादि विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १८४५७). १. पे. नाम. अष्टोत्तरी स्नात्र विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. __ अष्टोत्तरीस्नात्र विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीआदिनाथ१ श्रीअजित; अंति: वच्छल संघपूज करवी. २.पे. नाम. वेदाविचार प्रतिष्टादिपूपयुज्चेत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ९ग्रह वेदिकास्थापनादि विधि, सं., प+ग., आदि: वृत्तमंडलमादित्ये; अंति: प्रकल्पयेदित्युक्तम्. ५१६४५. गुंहली व भास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४११.५, १२४३१). १. पे. नाम. केशी गौतमगणधर गहुंली, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सावथी उद्यानमारे; अंति: घूयली रंग रसाल रे, गाथा-७. २. पे. नाम. सुविहित गुरु भास, पृ. १आ, संपूर्ण. गुरुगुण भास, मा.गु., पद्य, आदि: सदगुरु हे सदगुरु; अंति: मानथी सहीरो गावे भास, गाथा-५. ५१६४६. (+#) स्तवन व सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. टिप्पणयुक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४९.५, १७४३५). १.पे. नाम. आदिजिन सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. जसराज, मा.गु., पद्य, आदि: आज आणंदघण जोगीसर आया; अंति: जसराज गाया हे माय, गाथा-९. २.पे. नाम. जंबुस्वामी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. __जंबूस्वामी सज्झाय, रा., पद्य, आदि: राजग्री नगरीरो वासी; अंति: छोडी आठुइ नारी, गाथा-१९. ५१६४७. (-2) शिवपुर सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४११.५, १५४२८). शिवपुरनगर सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगोतमस्यामी पुछा; अंति: सोपूरनगर सूहावणां, गाथा-१६. ५१६४८. (#) आवंती सुकमाल सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८८८ कृष्ण, सोमवार, मध्यम, पृ. ९८-९७(१ से ९७)=१, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १७४४६). अवंतिसुकुमाल सज्झाय, मु. शांतिहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: (-); अंति: सांतिहरष गुण गावैरे, ढाल-१३, (पू.वि. ढाल १२ गाथा २ अपूर्ण से है) ५१६४९. (#) रंगबहुत्तरी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. देवीकोट, प्रले.पं. चतुरहर्ष मुनि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०, १६x४५-५२). रंगबहुत्तरी, आ. जिनरंगसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: लोचन प्यारे पलक को; अंति: वाचे चतुर सुजाण, गाथा-७३. ५१६५०. (#) साधुवंदन व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८९१, पौष शुक्ल, १३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. वीशलनगर, प्रले. मु. हीराचंद ऋषि (गुरु मु. मनरूपजी); गुपि. मु. मनरूपजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, २७४६८). १. पे. नाम. साधुवंदना, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. साधुवंदना लघु, ऋ. जेमल, मा.गु., पद्य, वि. १८०७, आदि: नमुं अनंत चोविसी; अंति: मलजी एही तीरणरो दाव, गाथा-५५. २. पे. नाम. २४ जिनआयु समवसरणमान गाथा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिनआयु समवसरणमान गाथा, मा.गु., पद्य, आदि: सुविध अनंत श्रीनेम; अंति: कोस कोस की हाण, गाथा-४. ५१६५२. (+) छन्नु जिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पणयुक्त विशेष पाठ., दे., (२५४११, १४४४३). For Private and Personal Use Only Page #444 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ www.kobatirth.org ५१६५३. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५X११.५, १८X५३). २. पे नाम, क्रोधमानमावालोभ सज्झाय, प्र. २अ १आ, संपूर्ण ९६ जिन स्तवन, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु. पच, वि. १७४३, आदि: वरतमान चौवीसी बंदू अंतिः सदा जिणचंद्रसूरिए ढाल - ५, गाथा- २३. है, जैदे., (२५.५X१०.५, ३x४५). १. पे. नाम. प्रदेशी प्रश्न सह टबार्थ, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. सुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: मनथी क्रोध तजो नरनार, अंति: ते थायै निरवाणी, सज्झाय- ४, गाथा-३२. २. पे. नाम. क्रोधमानमायालोभ सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. गुणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: भजीयै छे श्रीजिनचरण, अंति: गुणसागर० समझावै, गाथा-४. ५१६५४. (४) प्रदेशी प्रश्न व श्रावक प्रतिमा गाथा संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी प्रदेशी प्रश्न, प्रा., गद्य, आदि: अजयसुरीकंता १ तहजिया, अंति: अयभारोरथसंबोही ११. प्रदेशी प्रश्न - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: दादो मोह करतो ते मरि; अंति: थया प्रदेशी बुझ्यो . २. पे. नाम. श्रावकनी इग्यार प्रतिमाना नाम, पृ. १आ, संपूर्ण ४२७ श्रावक ११ प्रतिमा गाथा, प्रा., पद्य, आदि: दंसण १ वय२ सामाइय३; अंति: वज्जए१० समण भएअ११, गाथा - १. श्रावक ११ प्रतिमा गाथा - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: पहिली दर्शन प्रतिमा, अंति: एक एक मास चढता जईई. ५१६५५. (#) सीमंधरस्वामी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पठ. मु. तेजा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५.५x११.५, १७४५४). सीमंधरजिन विनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सफल संसार अवतार ए गण; अंति: पूरि आया मनतणी, गाथा - १८. ५१६५६ (४) गौतम रास, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, वे (२४.५x११.५, १६४४०). गौतमस्वामी छंद, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: सिरिवसुभुई पुत्तो, अंतिः फलं सद्यो लभते नरा, गाथा - १७. ५१६५७. (#) गुणठाणाविचार स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. १, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की गयी है, दे., (२५. ५X१०.५, १६५७). आदिजिन स्तवन- चौदगुणस्थानकविचार गर्भित, उपा. बच्छराज वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: जगपसरति अनंतकंति, अंतिः वाचक बच्छराज गाथा २२. ५१६५८. (#) महावीर परिवार व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. १, कुल पे. ४, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५.५४११.५, १९५६९ ). १. पे. नाम. महावीर परिवार वर्णन, पृ. १अ संपूर्ण. महावीरजिन परिवार वर्णन, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीमहावीरने; अंति: चारीत्र पालीनइ०, (पूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अंतिम कुछ शब्द नहीं हैं.) २. पे. नाम. सत्रभेद संजमतणा, पृ. १अ संपूर्ण. For Private and Personal Use Only श्रावक कर्त्तव्य, मा.गु., गद्य, आदि: सत्रभेद संजमतणा नवी; अंति: प्रभु पार उतार, गाथा - ७, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक ९ से १५ लिखा है.) ३. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. १अ संपूर्ण. साधारण जिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदिः हवे नीसुणो भगवंत रे, अंति: पण समरथ कुष्ण थई सके ए. गाथा ५. ४. पे नाम, साधारणजिन स्तवन, पृ. ९अ १आ, संपूर्ण मु. वृद्धिविजय शिष्य, मा.गु, पद्य वि. १७९८ आदि जय जय करण जिनेसर, अंतिः भवी अणनां मन मोहे जी, गाथा - १६. Page #445 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४२८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५१६५९ अमतारिष सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. सा. भामा (गुरु सा चारित्रसिद्धजी); गुपि. सा. चारित्रसिद्धजी पठ. सा. वीराजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२४.५x१०.५, १३४३९). "" Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अइमुत्तामुनि सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंद वांदीने; अंति: ते मुनिवरना पाया, गाथा- १८. ५१६६०. (#) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ६, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, वे. (२४.५४१०.५, १४४३८). १. पे, नाम, पंचम स्तवन, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन- बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी श्रीगुरु पाय; अंति: भगति भाव प्रसंसीयो, डाल-३, गाधा- २५. २. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन- वरकाणा, पृ. २अ संपूर्ण. ग. गुणशेखर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपासजी श्रीवरकाणा; अंति: गुणशेखर० पूरौ आस, गाथा-५. ३. पे. नाम. अभिनंदनजिन स्तवन, पृ. २अ २आ, संपूर्ण मु. गुणशेखर, मा.गु., पद्य, आदि: अभनंण अरदास कि महारी अंति: गुणशेखर० लेइ हो राज, गाथा ६. ४. पे. नाम. वरकाणा पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २आ- ३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- वरकाणामंडन, मु. गुणशेखर, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीवरकाणै वांदीइ अंति: गुणशेखर वास रे लाल, गाथा ७. ५. पे. नाम. ऋषभजीरो स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, ग. गुणशेखर, मा.गु., पद्य, वि. १७६१, आदिः आदीसर हो सुणज्यो अरद, अंति: गुणशेखर ग इम थुइ, गाथा- ७. ६. पे. नाम. महावीर स्तवन, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. रंग, मा.गु., पद्म, वि. १६९८ आदि मान धरीनि भेटस्युरे, अंतिः रंगस्युंमगिसुं ठाम, गाथा- ९. ५१६६२, (४) स्तवन संग्रह, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. २. कुल पे. २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२४.५x११, १०x२८). १. पे. नाम बीज स्तवन, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तवन, ग. गणेशरुचि, मा.गु., पद्य वि. १८९९, आदि: श्रीश्रुतदेवि पसाउले, अंतिः भणेरे नित प्रणमुपाय, गाथा - १९. २. पे. नाम ऋषभजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन- राणकपुरमंडण, ग. जीवसागर, मा.गु., पद्य, वि. १९०५, आदि: राणपुरो जिन भेटीयो; अंतिः जीवसागर० भव पार उतार, गाथा - ९. ५१६६३. (४) सज्झाय व चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९२६ मार्गशीर्ष कृष्ण, ३०, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले. स्थल. जाबाल, प्र. ग. खंतिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६११.५, ११४३५). १. पे. नाम. अनंतकाय सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय सज्झाय, आ. देवरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जिनसासन रे सूधी सद्द, अंति: देवरत्नसूरि० सुख लहे, गाथा-५, (वि. प्रतिलेखक ने दो गाथाओं को एक गाथा गिना है.) २. पे. नाम. चौवीसजिन चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिन चैत्यवंदन-वर्णगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि पदमप्रभुने वासुपूज्य, अंतिः ज्ञानविमल कहे सीख, गाथा- ३. ५१६६४. (#) जिनस्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. मु. देवेंद्रविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्ष की स्याही फैल गयी है, दे., (२५X११.५, १२४३९). १. पे. नाम. वीर स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी वीरजिणंदने; अंति: रंगविजय० पाय सेव हो, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #446 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ २.पे. नाम. शेजाऋषभजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मोरा आतमराम किण दिन; अंति: परमाणंद पद पासुं, गाथा-७. ३. पे. नाम. पद्मप्रभुजीन तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पद्मप्रभजिन स्तवन, पंन्या. रत्नविजय, पुहिं., पद्य, आदि: पद्मप्रभुजिन साहिब; अंति: रत्नविजय गुण गाया, गाथा-५. ५१६६५. पार्श्वनाथजीरो कलश, संपूर्ण, वि. १९१९, आषाढ़ कृष्ण, १, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. हरजीनगर, प्रले. ग. खंतिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, ११४३५). पार्श्वजिन कलश-नवपल्लव मांगरोलमंडन, श्राव. वच्छ भंडारी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसुरीष्टदेस मध्ये; अंति: जयो जयो तु भगवंतो जी, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) ५१६६६. (#) सीमंधरस्वामी स्तवन, संपूर्ण, वि. १८५१, श्रावण शुक्ल, २, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. जावाल, प्रले. पं. नायकविजय; पठ. मु. किसना (गुरु ग. नायकविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११.५, १६४३३). सीमंधरजिन विनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सफल संसार अवतार हुँ; अंति: पूर आस्या मनतणी, गाथा-१८. ५१६६७. (#) सज्झाय व श्लोक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११.५, ९४३२). १. पे. नाम. मेघकुमार सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: धारणी मनावेरे मेघ; अंति: प्रीतविजय० भवना पाप, गाथा-५. २.पे. नाम. जैनधार्मिक काव्य, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक , प्रा.,सं., पद्य, आदि: तत्त्वानिवृत्त; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम श्लोक लिखा है.) ५१६६८. (#) नंदीषेण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १७४४०). नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. दशरथ, मा.गु., पद्य, आदि: नंदिषेण नयरि मझारि; अंति: धर्या सुख पाइया हो, गाथा-२२, (वि. प्रतिलेखक ने एक गाथा को दो गाथा गिना है.) ५१६६९. चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८५३, श्रावण शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, पठ. मु. खुसाल; मु. देवीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, १२४३५). १.पे. नाम. साधारणजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. साधारणजिन चैत्यवंदन-५ परमेष्ठिगुणगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: बारस गुण अरिहंत देव; अंति: तणो नय कहे जगसार, गाथा-३. २. पे. नाम. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. साधुविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धचक्र आराधता; अंति: साधुविजयतणो० करजोड, गाथा-५. ५१६७०. (+#) सुभाषित श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १६x४३). सुभाषित श्लोक संग्रह *, सं., पद्य, आदि: धर्मलाभ इति प्रोक्ते; अंति: रक्तमन्ये पिबंति, श्लोक-३०, (वि. श्लोक संख्या अव्यवस्थित है.) ५१६७१. (#) पाणी गलवा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १६४४, फाल्गुन शुक्ल, ९, रविवार, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. पद्मप्रमोद; पठ. श्रावि. सोनाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १६४३७). प्रासुक जल सज्झाय, मु. ज्ञानभूषण, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति चरणकमल नमीय; अंति: ज्ञानभूषणतरइ संसारि, गाथा-२३. For Private and Personal Use Only Page #447 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४३० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५१६७२. पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९२३, पौष कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. हरजी, प्रले. ग. खंतिविजय; लिख. मु. नवमलजी (गुरु मु. चोथमलजी, लूकागच्छ); गुपि. मु. चोथमलजी (लूंकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२५.५४१२, १२४३४). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्श्वजिन स्तवन, मु. कीरत, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसुगुरु चिंतामणि; अंति: क्षेमकरण० जय-जयकार, गाथा-१७. ५१६७३. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे ३ वे. (२६४१२, १३x२८) १. पे. नाम. अष्टापद स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. गाथा- ७. ३. पे. नाम महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, अष्टापदतीर्थ स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: मनडु अष्टापद मोह्यु; अंति: उदयरत्न० तुम पायजी, गाथा-५. २. पे. नाम. सुमतीनाथजीन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण सुमतिजिन समवसरण गीत, ग. जीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि : आज हुं गई थी रे समवस, अंति: जीतना डंका वागे रे, मु. जिनउत्तमविजय, मा.गु, पद्य, आदि रूडी ने रढीवाली रे अंतिः (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, प्रथम गाथा अपूर्ण मात्र है.) ५१६७४. नंदीषेण सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. देवेंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X११, १३X३४). नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. दशरथ, मा.गु., पद्य, आदि: नंदिषेण नयरि मझारि, अंतिः धर्वा सुख पाइया हो, गाथा ११. ५१६७५. भरहेसर बाहुबली सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, अन्य. पं. केसरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५X११, १०४३४). भरसर सज्झाय संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसरबाहुबली अभय अंतिः जस पडो तिहुणे सवले, गाथा- १३. ५१६७६. (#) स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, पठ. मु. विबुधरूचि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६११, १४४४२). १. पे नाम, चतुर्विंशति तीर्थंकर नमस्कार, पृ. १अ १आ, संपूर्ण सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्म, वि. १२वी आदिः सकलार्हत्प्रतिष्ठान, अंति युष्मान् जिनेश्वराः, श्लोक-२८. २. पे नाम वीर स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, महावीरजिन स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: जयसिरिजिणवर तिहुअणजण; अंति: मुणिसुंदर ० दाणउ अयरा, गाथा-५. ५१६७७. मंगल कमला स्तवन, संपूर्ण वि. १८४३ माघ कृष्ण, ८, गुरुवार, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. वीरचंद ऋषि (स्थानकवासी), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५X११, १८x४५). अजितशांति स्तवन, संबद्ध, उपा. मेरुनंदन, मा.गु., पद्य, वि. १५वी, आदि: मंगल कमलाकंद ए; अंति: मेरुनंदण उवज्झाय ए, गाथा - ३२. ५१६७८. ज्ञानपंचमी स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२४.५४१०, १२४४२-४५). पंचमीतिथि स्तवन, मा.गु., पद्य, वि. १४६६, आदि: पहिलउं प्रणमउं गोयम; अंति: सुख देवलि दाखियां, गाथा - १५. ५१६७९. सज्झाय व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९०२, भाद्रपद कृष्ण, ३०, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५X११, २६×१६). १. पे. नाम. वीरजिन सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. देवानंदा सज्झाय, उपा. सकलचंद्र गणि, पुहिं., पद्य, आदि: जिनवर रूप देखी मन; अंति: उलट मनमे आणी हो, गाथा - ११. २. पे नाम, कल्पसूत्र व्याख्यान श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण व्याख्यानश्लोक संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि: पुरिमचरिमाणकप्पो अंति: घेरावली चरितमि गाथा - १. ५१६८१. सज्झाय व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., ( २४.५X१०.५, १४४४१). १. पे. नाम. साधुगुण सज्झाच, पृ. १अ १आ, संपूर्ण For Private and Personal Use Only Page #448 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ आ. आनंदविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवर सवि करूं, अंतिः विमलआणंज० लेसे तेह, गाथा-१६. २. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, पृ. १आ, संपूर्ण आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेश्वर पासजिन; अंति: चंद सकल बुद्धि दीपतो, गाथा-५. ५१६८२. (#) आवती चोवीसी तीर्थंकर नाम सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५X११.५, ३X३६). २४ जिननाम अनागत, प्रा., गद्य, आदि: पउमाभं १ सुरदेवो २ अंति: २३ भद्दकरो २४. २४ जिननाम अनागत-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पद्मनाभ ते श्रेणिक, अंति: वालो कुसली राजा. ५१६८३. (4) नेमिजिन समवसरण विचार स्तवन, संपूर्ण वि. १८००, चैत्र शुक्ल ९ रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल लींबडीग्राम, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११.५, १३x४२). नेमिजिन स्तवन- समवसरणविचारगर्भित. मु. सोमसुंदरसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदिः यादवकुल सणगार सिरि, अंतिः सोमसुंदरसूरि० लहें ए. कडी- ३६. ५१६८४. (१) गौतमस्वामी रास, संपूर्ण वि. १७७८ श्रावण शुक्ल, २ जीर्ण, पृ. ३, पठ सा. राजी, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२४.५x११.५ १५४४२). गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु, पद्य वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंतिः विनयपुह० कल्याण करो, गाथा- ५४. ५१६८६. (+) तपागच्छ पट्टावली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. वे. (२४.५४११. १६४४७-५०) ४३१ . पट्टावली, मा.गु, गद्य, आदि: वर्द्धमानस्वामी चोथा अंति: (-) (अपूर्ण. पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. विजयधरणेंद्रसूरि वि. १९३८ की परंपरा तक लिखा है.) ५१६८७. जिन स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे ६ प्र. वि. प्रतिलेखक ने प्रत में निसालणी भण पठनार्थं लिखा है. जैदे. (२४.५x११, १३४३१). " १. पे नाम. चौबीस जिन स्तुति, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण २४ जिन स्तुति, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: कनक तिलक भाले हार, अंति: पहली वीर वांदउ वहेली, गाथा - २७. २. पे. नाम. आदिनाथ स्तवन, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन आदिजिन, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसेत्रुजि रुलियाम, अंतिः निनसूरि० उल्हासई, गाथा-५. ३. पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: दहाद्राख पूरी दीपड़ ज, अंतिः ननसूरि० तुहजि देवा, गाथा-५. ४. पे. नाम, नेमि स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण नेमिजिन स्तवन, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि : ऊजलगिरि अम्हे जाइ, अंति: नन्न० सेवक उद्धरुए, गाथा-४. ५. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ४अ ४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- स्तंभनतीर्थ, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्म, आदि सकल मूरति त्रेवीसमउ अंतिः भणे ननसूरि मंगल करुए, गाथा ३. ६. पे. नाम महावीरजिन स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: साचउरि सुरवर जगत्र, अंतिः नव्या सुखदायक ते सवे, गाथा- ६. ५१६८८. (+) प्रव्रज्या विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. पं. मोहनविजय, पठ. ग. हर्षविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५X११, १५X४४). दीक्षा विधि, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि: पूर्व शुभवेलायां अंतिः पछे नाम थापना कीजे. For Private and Personal Use Only Page #449 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५१६८९. (+) श्राद्ध अतिचार, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. मु. माणिक्यविजय (गुरु पं. दीपविजय गणि); गुपि.पं. दीपविजय गणि (गुरु ग. राजविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, १७४३४). श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: विशेषतः श्रावक तणइ; अंति: मिच्छामिदुक्कडं. ५१६९०. (#) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १७८३, फाल्गुन कृष्ण, ८, गुरुवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. बीकानेर, प्रले. पं. हितसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंशखंडित है, जैदे., (२४.५४१०.५, १५४४८). १.पे. नाम. लीख सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-लीखहत्यानिषेध, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १६७५, आदि: सरसति मति सुमति द्यो; अंति: जिम अजरामर पदवी लहो, गाथा-१३. २. पे. नाम. द्वादशव्रत स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. १२ व्रत सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामणि करो पसाय; अंति: गति वधु ते नश्चेवरे, गाथा-११. ५१६९१. वीरस्वामीनो नीसाल गरणो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४११.५, १७४३७). महावीरजिन स्तवन-निसालगरगुं, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवनजिन आणंदो ए; अंति: ए सेवक तुज चरणे नमेए, गाथा-१९. ५१६९२. (१) पाखिप्रतिक्रमणविधि सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६५, आषाढ़ अधिकमास शुक्ल, २, मध्यम, पृ. १, प्रले. ग. नायकविजय (गुरु पं. मेघविजयजी पंडीत); गुपि.पं. मेघविजयजी पंडीत, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १५४५७). पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: मुहपति वंदिणीय; अंति: पक्खिपडिक्कमणं, गाथा-३. पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: देवसीअंआलोई अपडिकंत; अंति: परे करी ५१६९३. (#) सज्झाय व बारमासा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८२७, आषाढ़ शुक्ल, १३, सोमवार, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्रले. पं. विनयविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, १५४४२-५४). १. पे. नाम. नेमी द्वादश मास, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमराजिमती बारमासा, मु. सुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी सरसती मातने; अंति: हो सुंदर सरगे गई, गाथा-२७. २.पे. नाम. चेतन स्वरूप स्वाध्याय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. हरिसागर, पुहिं., पद्य, आदि: कहो करणी कैसे करूं; अंति: हरिसागर गुण गाया, गाथा-९. ३.पे. नाम. नेमराजुल द्वादश मास, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. नेमराजिमती बारमासो, मु. हर्षकीर्ति, पुहि., पद्य, आदि: हो स्वामी क्यु आया; अंति: हर्षकीरति० सुख पावै, गाथा-२१. ५१६९५. छंद, अष्टक, स्तवन व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ४, जैदे., (२४.५४१०.५, १२४३४). १.पे. नाम. गोडीपार्श्वनाथजीरो छंद, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जीतचंद, मा.गु., पद्य, आदि: ॐकाररूप परमेश्वरा; अंति: जीत कहे हरषे सदा, गाथा-२१. २.पे. नाम. माताजीरो अष्टक, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी छंद, आ. दयासूरि, मा.गु., पद्य, आदि: बुधि विमल करणी विबुध; अंति: दयासुर० दायक सकल, गाथा-१०. ३. पे. नाम. दोहा संग्रह, पृ. ३अ, संपूर्ण, ले.स्थल. दडी कुडालरी. सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: परगार न कर्त्तव्यं; अंति: सबद घटत घटत घट जाय, गाथा-३. ४. पे. नाम. पद्मप्रभजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. पद्मप्रभजिन स्तवन-संप्रतिराजावर्णनगर्भित, मु. कनक, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन संप्रत साचो; अंति: दीजो तुम पाए सेवरे, गाथा-९. For Private and Personal Use Only Page #450 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ५१६९६. (४) सज्झाच व लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३ कुल पे २ प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, वे.. (२४.५X१२.५, १३X३४). १. पे. नाम, जीवरी उतपतरी सज्झाय, पृ. १अ ३आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाव- गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि उतपत्य जोज्यो जीवनी, अति इम कहे श्रीसार ए. गाथा - ७०. २. पे. नाम. होली रो विचार, प्र. ३आ, संपूर्ण. होली विचार, मा.गु., पद्य, आदि: पूर्व वाय वहंतो जोय, अंतिः परजा दुख न देखे कोय, गाथा-२, (वि. प्रतिलेखक ने दो थाओं को एक गाथा गिना है.) ५१६९७. दानशीलतपभावना चौढालीयो, संपूर्ण, वि. १९वी जीर्ण, पृ. २, जैवे. (२५.५४११.५, १९४५०). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३३ दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिणेसर पाय नमी, अंति यो अधिकारो रे, ढाल - ४. ५१६९९. (+) संबोधसत्तरी, संपूर्ण, वि. १८५२, चैत्र कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. ४, प्रले. मु. मोहनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जै. (२४.५४११. १५-१८४४२-४६). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोयगुरु; अंति: जयशेहर० नत्थी संदेहो, गाथा - १२६. ५१७०० वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे. (२५.५४११.५, १२४२६). महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी तुमेतो क्यार; अंति: उदयरतन कहे एह वडाई, गाथा- ७. ५१७०१. (+) अध्यात्मबिंदुद्वात्रिंशिका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-१ ( ४ ) = ४, ले. स्थल. मूलतांण, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १५X४५-५४), अध्यात्मबिंदुद्वात्रिंशिका, उपा. हर्षवर्द्धन, सं., पद्य, आदि: ब्रूमः किमध्यात्ममहत, अति हर्ष० पराप्रतीति, द्वात्रिंशिका- ४, श्लोक-१२८, ( पू. वि. द्वात्रिंशिका ३ श्लोक २० से द्वात्रिंशिका ४ श्लोक १५ तक नहीं है.) ५१७०२ (४) पार्श्वनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५X१०.५. ११x२८-३०). उवसगहर स्तोत्र - गाथा ९, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि उवसग्गहरं पासं पासं, अंतिः गहाण सव्वे विदासत्तं, गाथा-८. ५१७०३. नेमिराजीमति सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. सा. पन्नाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे., (२५४११.५, १२X३२). नेमराजिमती सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि दवारकानगर सोहामणो रे अंतिः कवियण० आवागण निवार हो, ढाल - २, गाथा - २७. ५१७०४. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५X११, १२X३६). १. पे. नाम. सीमंधर गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: पुंडरीकिणी नगरी खाण, अंति: जिनहर्ष० ताप संताप की, गाथा- ७. २. पे नाम. युगमंधरजिन गीत, पृ. १आ, संपूर्ण युगमंधरजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: ईडु मलवा रे प्रभुजी, अंतिः जिनह० दरसण दिल ठारि, गाथा-६. ५१७०५. (#) स्तवन संग्रह, चौघडीया व श्लोक, संपूर्ण, वि. १७७६, पौष शुक्ल, २, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, ले. स्थल. रुपाल, अन्य. श्राव. जेठा पारिख, भावाजी मूलाउत, लालसिंघ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., For Private and Personal Use Only (२४१०.५, १४X३९). १. पे. नाम. भीडभंजन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- भीडभंजन, मु. विनयसागर, मा.गु., पद्य, आदि: भीडभंजन प्रभु भेटीया, अंति: विनयसागर कहि एम, गाथा - ५. Page #451 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २.पे. नाम. नेमिश्वर स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, मु. आनंद, मा.गु., पद्य, आदि: नेमकुमर परणण चल्या; अंति: सही सदाइ सदा आणंद, गाथा-७. ३.पे. नाम. दिवसरात्रिचौघडिया, पृ. १आ, संपूर्ण. चोघडीया चक्र, मा.गु., गद्य, आदि: उद्वेगवेला चलवेला; अंति: रोगवेला कालवेला. ४. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. ५१७०६. श्राद्धप्रतिक्रमण सूत्र, संपूर्ण, वि. १८१७, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५.५४११, १३४३५-३८). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चौवीस, गाथा-५०. ५१७०७. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२६४११, १०४३४). १.पे. नाम. सांतनाथनो स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. शांतिजिन छंद, मु. जयमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: नयर हथणापूर अति; अंति: जमल० जिनेसर शांत करो, गाथा-२२. २. पे. नाम. सुधर्मदेवलोक सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सुधर्मा देवलोकनारे; अंति: ए छे अमारी बलायेरे, गाथा-१०. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. प्रीतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धार्थसुत सुंदरुं; अंति: (-), (पू.वि. प्रथम गाथा अपूर्ण मात्र है.) ५१७०८. (#) पट्टावली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११.५, १८४४४-५०). खरतरगच्छ पट्टावली, सं., गद्य, आदि: श्रीगौतमस्वामी; अंति: श्रीमाल सिंधुडगोत्रे. ५१७०९. जिन नमस्कार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, १५४३८). तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके; अंति: सततं चित्तमानंदकारि, श्लोक-१०. ५१७१२. पार्श्वनाथ स्तवन सह टीका, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२५४१०, ६-८४३६-३८). पार्श्वजिन स्तोत्र-लक्ष्मी, मु. पद्मप्रभदेव, सं., पद्य, आदि: लक्ष्मीर्महस्तुल्य; अंति: पद्मप्रभदेव मंगलं, श्लोक-९. पार्श्वजिन स्तोत्र-लक्ष्मी-टीका, आ. मुनिशेखरसूरि, सं., गद्य, आदि: लक्ष्मी इत्यादि; अंति: सूरिः श्रीमुनिशेखरः. ५१७१३. (+) अढारनातरा स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०, १८४४४-५०). १८ नातरा सज्झाय, मु. वीरसागर, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलु प्रणमुरे पास; अंति: विरसागर बूध गाय रे, ढाल-३, गाथा-३७. ५१७१४. (+#) अवंतिसुकुमाल चोपी, अपूर्ण, वि. १८२४, भाद्रपद कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, प्रले. मु. जीवराज ऋषि; पठ. श्राव. भोजराज; मु. जगमाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १६-१७४३६-३८). अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: (-); अंति: शातिहरख सुख पावे रे, ढाल-१३, गाथा-१०७, (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., ढाल ७ की ७वी गाथा से है.) ५१७१५. (+) सझाय, लावणी व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२, १७४५०). १.पे. नाम. चंद्रगुप्तराजा सोलेसुपना देखीया तिणरी सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पाडलीपुर नामे नगर; अंति: जेमलजी कीधी जोडो रे, गाथा-५०. २.पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. २अ, संपूर्ण. औपदेशिक लावणी-धर्म, मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: किसी की भुंडी ना कही; अंति: जीनदास० जीनदरस हीये, गाथा-४. ३. पे. नाम. धर्मजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #452 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३५ सार. हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: धरमजिनेश्वर गाउंरंग; अंति: सांभलो ए सेवक अरदास, गाथा-८. ५१७१६. (+) मुनिमालिका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११.५, १७४५७). मुनिमालिका स्तवन, ग. चारित्रसिंह, मा.गु., पद्य, वि. १६३६, आदि: ऋषभ प्रमुख जिन पय; अंति: चारित्रसिंघ० कल्याण, गाथा-३५.। ५१७१७. देवसी प्रतिक्रमण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४११, १४४४७-५३). प्रतिक्रमणविधि संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरिआवही पडिक; अंति: कही सामायक पारइं. ५१७१८. शनीश्चर छंद, संपूर्ण, वि. १८९५, आश्विन शुक्ल, १, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. स्याणा, प्रले. मु.खुशालविजय; मोती; लिख. पं. क्षमाविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीअजारीमाता सुप्रसादात्, जैदे., (२४.५४११.५, १४४३९). शनिश्चर छंद, क. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: अहि नर असुर सुरपति; अंति: तु सुप्रसन्न शनिस्वर, गाथा-१७. ५१७१९. (#) कमलावती रास, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, ११४३७-४०). कमलावतीसती रास, मु. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: नमिउं वीरजिणेसर दिणे; अंति: विजयभद्र० माहि गया, ढाल-४, गाथा-३८. ५१७२२. (#) गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १४४३७). १. पे. नाम. थूलिभद्र गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. __स्थूलिभद्र गीत, मु. शिवनिधान, मा.गु., पद्य, आदि: थूलभद्र आयउ अंगणइ; अंति: शिवनि० अनुक्रमि लाल, गाथा-९. २. पे. नाम. नेमनाथ गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, मु. गोपाल, पुहिं., पद्य, आदि: नेमि पियारा लाल समुद; अंति: गोपाल मिले सिवसेज मइ, गाथा-७. ३. पे. नाम. नेमिराजीमति पद, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मु. राज, पुहिं., पद्य, आदि: दीया दरसण देअइ ए; अंति: राज० देइया दरसण देह, गाथा-३. ५१७२५. (+#) मेघकुमार गीत, संपूर्ण, वि. १७१५, वैशाख शुक्ल, १०, शनिवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. नागोर, प्रले. मु. महिमावर्धन (गुरु मु. मतिसोम पंडित); गुपि.मु. मतिसोम पंडित; पठ. श्रावि. सजना, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, ११४४२). मेघकुमार चौढालिया, क. कनक, मा.गु., पद्य, आदि: देस मगधमाहि जाणीयइ; अंति: कवि कनक भणइ निसिदीस, __ढाल-४, गाथा-४७. ५१७२६. (#) जोइससार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२५.५४११.५, ११४३६). ज्योतिषसार, पंन्या. हीरकलश, मा.गु., पद्य, वि. १६२७, आदि: सहगुरु सांनिधि सरस्व; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा २६ अपूर्ण तक लिखा है.) ५१७२७. (+) स्तवन, स्तुति व ज्योतिष विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१०.५, १४४४३). १.पे. नाम. गौतमस्वामि स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी स्तोत्र, आ. देवानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीइंद्रभूति वसुभूत; अंति: लभते नितरां क्रमेण, श्लोक-९. २. पे. नाम. पंचतीर्थी स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. यह स्तुति बाद में लिखी गयी है. ५तीर्थजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीशत्रुजयमुख्य; अंति: ते संतु भद्रंकराः, श्लोक-४. ३. पे. नाम. अभीच विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्योतिष*, मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #453 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५१७२८. (+#) औपदेशिक जैनश्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२५४११, १२४३३). श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: चंपायां जायते ब्रह्म; अंति: स्वर्गेपि य दुर्लभाः, (वि. प्रारंभिक १२ श्लोक ___ महादेव स्तोत्र से संकलित है, बाद में प्रासंगिक, औपदेशिक, औषधजन्य श्लोकों का भी संकलन किया गया है.) ५१७२९. पासत्था सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४१०.५, १३४४१). कुगुरुपच्चीसी, मु. तेजपाल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवर प्रणमी सदा; अंति: तेजपाल पभणे सुखदाय, गाथा-२५. ५१७३०. (+#) साधारणजिन चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १७४४८). साधारणजिन चैत्यवंदन, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: थूलिभदं च गोयम, गाथा-२६. ५१७३१. (+) पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. फलोधी, प्रले. श्राव. गुलाबचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१०.५, १०४२६-२८). औपदेशिक छंद, पंडित. लक्ष्मीकल्लोल, मा.गु., पद्य, आदि: भगवति भारथि चरण नमेव; अंति: लक्ष्मी० मन धरजो चोल, गाथा-१६. ५१७३२. स्वाध्याय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, पठ. मु. गुलाबचंद; अन्य.मु. लक्ष्मीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४११.५,१३४३६). १. पे. नाम. गणधर स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण, ले.स्थल. विजापुर. २४ जिन गणधरसंख्या स्तवन, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती आपे सरस वचन; अंति: वृद्धिविजय गुणगाय, गाथा-९. २.पे. नाम. रोहिणी स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, ले.स्थल. मांडल. रोहिणीतप सज्झाय, आ. विजयलक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्य जिणंद; अंति: विजयलक्ष्मीसूरि भूप, ___गाथा-९. ५१७३३. सचितअचित विचार सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४११, १२४३७). असनादिक कालप्रमाण सज्झाय, मु. वीरविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रणमु श्रीगौतम; अंति: वीरविमल करजोडि कही, गाथा-१८. ५१७३४. (+) अमृत धुनी, संपूर्ण, वि. १७९६, मार्गशीर्ष कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. पेथापुर, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, १३४४२). पार्श्वजिन अमृतधुन-गोडी, मु. जिनचंद, पुहिं., पद्य, आदि: झगमग झगमग जेहनी रुचि, अंति: थुणे जिनचंदह, गाथा-८, (वि. प्रतिलेखक ने कृति अपूर्ण ही लिखकर संपूर्ण करके पुष्पिका लिख दी है, बाद में कृति की अवशेष गाथा १अ पर परवर्ती प्रतिलेखक द्वारा लिखी गयी है.) । ५१७३५. ऋषभ विवाहलु, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४१०.५, १५४४३). आदिजिन विवाहलो, मा.गु., पद्य, आदि: अवझापुरि नयरि नाभि; अंति: काज सवेसर्या ए, ढाल-३, गाथा-२४. ५१७३६. हरीआली संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४३८-४४). १. पे. नाम. औपदेशिक हरियाली, पृ. १अ, संपूर्ण. ग. मेघचंद कवि, मा.गु., पद्य, आदि: पाणी पंकथी पुरुष पात; अंति: मेघचंद०कहि वड वीर रे, गाथा-४. २. पे. नाम. औपदेशिक हरियाली, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. हीरचंद, मा.गु., पद्य, आदि: वननी जाइ कोयलडी नगर; अंति: कही हीरचंद आणंदा, गाथा-६. ३. पे. नाम. औपदेशिक हरियाली, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. हीरचंद, मा.गु., पद्य, आदि: एकदंतो गणपति नही रे; अंति: मेघ० अरथ कहुं किम रे, गाथा-४. ४. पे. नाम. औपदेशिक हरियाली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ग. मेघचंद कवि, मा.गु., पद्य, आदि: भमरडो जाणइ धवलसेठनो; अंति: मेघचंद० बलीआथी बलीओ, गाथा-६. For Private and Personal Use Only Page #454 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ५१७३७. (#) सर्वजिन साधारण स्तवन सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७०४, कार्तिक शुक्ल, २, मंगलवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. बेनातट, प्रले. मु. गेह (गुरु मु. समरथ ऋषि); गुपि.मु. समरथ ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२५४१०, १९४३८-४७). साधारणजिन स्तव, आ. जयानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: देवाःप्रभोयं विधिना; अंति: भावं जयानंदमयप्रदेया, श्लोक-९. साधारणजिन स्तव-वृत्ति की अवचूरि, ग. कनककुशल, सं., गद्य, आदि: हे प्रभो सत्वमया; अंति: मयट्प्रत्ययः. ५१७३८. (#) स्तवन व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१०, ११४२९). १.पे. नाम. पार्श्वस्तव, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपास चिंतामणि जेम; अंति: सेवक सदा पुरवै मनरली, गाथा-९. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण.. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-३. ५१७३९. क्रोधपच्चीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६४१२, २४४३५). क्रोधपचीसी, मु. चंद्रभाण ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: भवियण हो भवियण क्रोध; अंति: मने जोडी जुगति ढाल, गाथा-२५. ५१७४०. (+) सझाय संग्रह व स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२, १७४४५). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ५अ, संपूर्ण. मु. दीप, मा.गु., पद्य, आदि: प्रानीडारे कर्म; अंति: दीप० अवनासी पद ठानीए, गाथा-१५. २.पे. नाम. भूलो मनभमरा सज्झाय, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. ___ औपदेशिक सज्झाय, महमद, मा.गु., पद्य, आदि: भुले मन भवरा तूं; अंति: महुमद०लेखो साहिब हाथ, गाथा-९. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: पुत्र मोहा इंद्रो जी; अंति: काया सोहे कणकंदोरारे, गाथा-१५. ५१७४१. (#) परमगुरुनीर्वाण महोत्सव स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पठ. मु. मेघा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, ११-१३४३४-३७). राजसागरसूरिनिर्वाणमहोत्सव सज्झाय, उपा. रत्नसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सुखदायको वीरजिन; अंति: रत्नसागर० सोई पावई, गाथा-१५. ५१७४२. (#) स्तवन व स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७०८, कार्तिक शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. वगडी, प्रले. श्राव. कुरसी कोठारी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १२४३९). १. पे. नाम. बंभणवाडिमंडन महावीर स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-बामणवाडजी, मु. कमलकलशसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: समरवि समरथ सारदाये; अंति: श्रीकमलकलससूरीसर सीस, गाथा-२१. २. पे. नाम. वाग्देवी स्तव, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गयी है. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: राजते श्रीमती देवता; अंति: मेधामावहति सततमिह, श्लोक-९. ५१७४४. उत्सुत्र कुलक सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०.५, २०४६५). औष्ट्रिकमतोत्सूत्रोद्घाटन कुलक, उपा. धर्मसागरगणि, प्रा., पद्य, आदि: पणमिय वीरजिणदं सुरि; अंति: तुरियं निअबोहणट्ठाए, गाथा-१८. औष्ट्रिकमतोत्सूत्रोद्घाटन कुलक-अवचूरि, उपा. धर्मसागरगणि, सं., गद्य, आदि: तदेव उत्सूत्रप्ररूपण; अंति: आत्मज्ञानार्थमिति. ५१७४६. सासूबहू झगडा सज्झाय व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४१०, १३४३६-४०). १.पे. नाम. सासूबहू झगडा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #455 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सासबहु झगडा सज्झाय, मु. मेघराज, मा.गु., पद्य, आदि: सुण दुलहण हे तुरी बट; अंति: मेघराज० जुग चिरजीयो, गाथा-७. २.पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: तेरी दासी हो पीया मइ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ३ अपूर्ण तक लिखा ५१७४७. (+) आतमा प्रतिबोध सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११, १४४२८). पंचमहाव्रत सज्झाय, आ. देवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुरतरनी परि दौहिलो; अंति: वलि वीजैदेवसूर के, गाथा-१६. ५१७४८. शांति स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, १७X४९). शांतिजिन स्तवन, मु. भोज, मा.गु., पद्य, वि. १७२३, आदि: श्रीसद्गुरूना चरण नम; अंति: भोज०भणइ गावता सुखकार, गाथा-१९. ५१७४९. ईर्यापथिकी मिथ्यादुःकृत स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४११.५, १३४३९). इरियावही सज्झाय, संबद्ध, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: अमहे इरियावही; अंति: प्रीत० अनुभवस्यारे, गाथा-१८. ५१७५०. (+) चउदगुणठाण गीत व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १७X४२-४४). १.पे. नाम. चउदगुणठाण गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. १४ गुणस्थानक सज्झाय, मु. कर्मसागरशिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: पासजिणिसर पाय नमी सह; अंति: कर्मसा० जिणवर आणोरे, गाथा-१७. २. पे. नाम. सुभाषित श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: उठ भुजंग म बेल चबाइ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक १२ तक लिखा है.) ५१७५१. (-) पंचतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८७४, आषाढ़ शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. जयचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२५.५४१२, २५४१५). ५ तीर्थ स्तवन, मु. लाभ, मा.गु., पद्य, आदि: आदऐ आदऐ आदजिनेस्वरुऐ; अंति: मूनि लाभ० भणे हे, गाथा-११. ५१७५३. स्तवन व सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२४.५४११.५, १०४३६). १.पे. नाम. ऋषभजीन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ आदिजिन स्तवन, मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: जयजय नायक जग गरुरे; अंति: द्यो दरस सुखकंद, गाथा-७. २.पे. नाम. जिनधर्म सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. दानशीलतपभावना प्रभाति, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: रे जीव जिन धरम कीजीय; अंति: __मुगति तणा फल ताह, गाथा-६. ५१७५४. (#) पर्युषणा स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४११.५, ९४३२). पर्युषणपर्व स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वली वली हुं ध्यावं; अंति: कहै जिनलाभसूरींद, गाथा-४. ५१७५५. चोवीस तीर्थकर पंचबोल स्तवन, संपूर्ण, वि. १८६७, फाल्गुन शुक्ल, ११, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, १४४४३). २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिणेसर प्रणमुं; अंति: बोधवीज साची जिन सेव, गाथा-२७. ५१७५६. स्तोत्र व कवच, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, ११४३०) १.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र-माहामंत्रगर्भित, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र, आ. शिवनाग, सं., पद्य, आदि: धरणोरुगेंद्र सुरपति; अंति: तस्यैतत्सफलं भवेत्, श्लोक-३९. २. पे. नाम. नृसिंहपुराणे लक्ष्मीनरसिंह कवच, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #456 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ लक्ष्मीनृसिंहकवच, सं., प+ग., आदि: अनेक मंत्र कोटीसं; अंति: नृसिंहाय नमः स्वाहा. ५१७५७. (#) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११, १६४५१). १.पे. नाम. सेज उद्धार स्तवन, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर विमल; अंति: करेवा दिहिर दसण करो, ढाल-१२, गाथा-१२१. २.पे. नाम. गोडीचा पार्श्व स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: सांभल साहिब पासजी; अंति: दातार गोडीचा पासजी, गाथा-७. ५१७५८. (+#) कमलावती रास, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११.५, ११४४१). कमलावतीसती रास, मु. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: नमिउं वीरजिणेसर दिणे; अंति: मोखमंदिर माहि गया, ढाल-४, गाथा-४४. ५१७६०. (+) शाश्वतचैत्य स्तव सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२५.५४१०.५, १४४३७-४२). शाश्वतचैत्य स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिउसहवद्धमाणं; अंति: तु भवियाण सिद्धिसुहं, गाथा-२४. शाश्वतचैत्य स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: नंदीश्वरे५२ कुंड; अंति: तेवीसजुया पणिवयामि. ५१७६१. सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, दे., (२४.५४११.५, १७४४४). १.पे. नाम. क्रोधोपरि स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: क्रोध न करीइ भोला; अंति: उपसम आणी पासें रे, गाथा-९. २.पे. नाम. मानपरिहारे स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मानपरिहार, पंडित. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: अभिमान म करस्यो कोई; अंति: नवानगर रही चोमासे हो, गाथा-८. ३.पे. नाम. मायापरिहारे स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मायापरिहार, मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: माया मूल संसारनो; अंति: सुख निरावाणि हो, गाथा-७. ४. पे. नाम. लोभपरिहार स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-लोभोपरि, पंडित. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: लोभ न करीई प्राणीया; अंति: भावसागर० सयल जगीस, गाथा-८. ५१७६२. नववाड सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४११.५, १२४३४). नववाड सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: नववाड कही जिनराज सही; अंति: अक्षयहोय जावे नरनारी, गाथा-११. ५१७६३. (#) चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. पुरणा नगर, पठ. मु. मोतीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११, १२४३४). तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके; अंति: मनसा चित्तमानंदकारि, श्लोक-१०. ५१७६४. (#) नववाडि शीयलनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पठ. सा. नाथीबाई आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १८४३६-४०). ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: श्रीगुरुने चरणे नमी; अंति: तेहने जाउ भामणे, ढाल-१०, गाथा-४३. ५१७६५. (+) गुरु शिक्षा दृष्टांत षट्त्रिंशिका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५४११, १६x४२). For Private and Personal Use Only Page #457 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची दृष्टांत छत्तीसी, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरु को सिक्षा; अंति: तपै सकजौ जिन ध्रमसीह, गाथा-३६. ५१७६६. (#) स्तंभनक पार्श्वनाथ नमस्कार, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१०.५, १०४३९). जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख; अंति: अभय० विनिवइ आणंदिय, गाथा-३०. ५१७६७. (#) अनागत जिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १४४३८). २४ जिन स्तवन-अनागत, मु. विवेकसुंदर शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिजिनेसर पय नमी; अंति: सयल संघ मंगल करो, गाथा-२३. ५१७६८. शांतिजिन स्तवन नयविचार गर्भित, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. श्री शांतिनाथ प्रसादात्, दे., (२५४११.५, १३४३१). शांतिजिन स्तवन-निश्चयव्यवहारगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३४, आदि: शांति जिणेसर केसर; अंति: वाचक जसविजय सिरि लही, ढाल-६, गाथा-४८. ५१७६९. उपदेश सत्तरी, संपूर्ण, वि. १८६८, आश्विन शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. सीरोही, प्रले. देवेंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३२). औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, म. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: उतपति जोज्यो आंपणी; अंति: इम कहे श्रीसार ए, गाथा-७२. ५१७७०. (#) सझाय व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १७७६-१७७७, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १९४५१). १.पे. नाम. अवंतीसुकमाल सज्झाय, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण, वि. १७७६, ज्येष्ठ शुक्ल, ५ अधिकतिथि. अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: मुनीवर आर्यसुहस्ती; अंति: शांतिहरष सुख पावे रे, ढाल-१३, गाथा-१०४. २. पे. नाम. तीर्थावली स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण.. २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: शेजेजे ऋषभ समोसर; अंति: समयसुंदर कहे एम, गाथा-१६, (वि. प्रतिलेखक ने एक गाथा को दो गाथा गिना है.) ३. पे. नाम. गोडीचाराय स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण, वि. १७७७, पौष. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: वाल्हेसर मुझ वीनती; अंति: इम जपे जिनराज रे, गाथा-७. ५१७७१. (+#) शोभन स्तुति सह अवचूरि व पार्श्वजिन स्तवन सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ७-६(१ से ६)=१, कुल पे. २, अन्य. मु. हीरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संधि सूचक चिह्न-क्रियापद संकेत. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १३४३६). १.पे. नाम. शोभन स्तुति, पृ. ७अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: हारताराबलक्षेमदा, स्तुति-२४, श्लोक-९६, (पू.वि. श्लोक ९३ अपूर्ण से है.) स्तुतिचतुर्विंशतिका-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: लोके सवेवि संबंधः. २.पे. नाम. नवग्रहमय पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ७आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: दोसावहारदक्खो नालीआय; अंति: जिणप्पहसूरि० पीडंति, गाथा-९. पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहगर्भित-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: दोषा दूषणानि तेषां न; अंति: केतु इति शेष युग्मं. ५१७७२. (#) अष्टक, सज्झाय व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०, १५४४५-५२). For Private and Personal Use Only Page #458 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ १. पे. नाम. गौतमाष्टक, पृ. १अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी स्तोत्र, आ. देवानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीइंद्रभूति विसुभू; अंति: लभते नतरा क्रमेण, श्लोक-८. २. पे. नाम. करकंडुमुनि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: करकंडु कलिंगेसु; अंति: सपख गुण कारीया, गाथा-१३. ३. पे. नाम. जन्मकर्माभिधाना, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. संग्रहात्मक कृति.) ५१७७३. रिषभदेवजीरी थुई, संपूर्ण, वि. २०वी, वैशाख कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४११.५, ९४२९). आदिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रह उठी वंदु ऋषभदेव; अंति: रीषभदास गुण गाय, गाथा-४. ५१७७४. (#) आठ कर्मनी उपर्जना, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ३, प्रले. ग. राजविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४१०.५, ११४३०). ८ कर्म उपार्जना विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम ज्ञानावरणीकर्म; अंति: सिद्धांतनीआसातना करे. ५१७७५. ध्यान बत्तीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४१०.५, १८४४५). ध्यानबत्रीसी, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: ग्यान सरूप अनंतगुन; अंति: जथासकति परवान, गाथा-३४. ५१७७६. ग्रह यंत्र व स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४१०.५, १२४६५). १. पे. नाम. ग्रह यंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण.. नवग्रह यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. महामंत्रनिबद्ध सरस्वती स्तव, पृ. १आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: व्याप्तानंद समस्त; अंति: भवत्युत्तम संपदः, श्लोक-९. ५१७७७. (#) सनतकुमार सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१०.५, १२४३५). सनत्कुमारचक्रवर्ति सज्झाय, मु. राज ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: अमर तणी वाणी सुणी; अंति: ए मुनिवर नु आज, गाथा-१८. ५१७७८. (#) अंतरीक पार्श्वजिन छंद, संपूर्ण, वि. १७६०, वैशाख शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १७X५४). पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, पं. भावविजय वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: सारदा पाय प्रणमी; अंति: जयो देव जयजय करण, गाथा-४९. ५१७७९. (+) कानड कठीयारा चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४११.५, १०४२१). कान्हडकठियारा रास, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: पारसनाथ प्रणमुंसदा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल ३ गाथा २ तक लिखा है.) ५१७८०. (+) सीमंधरस्वामी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, ६x४५-४८). अनंतकल्याणकर स्तोत्र, मु. रूपसिंह, सं., पद्य, आदि: अनंत कल्याणरं करिष्य; अंति: तेषां बत साधुरूपाः, श्लोक-५. ५१७८२. (#) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १७४३०). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पास संखेसरा सार कर; अंति: उदयरत्न०माहाराज भीजो, गाथा-५. २.पे. नाम. गोडीजीपार्श्वजिन स्तवन, प्र. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: साहिब गोडी पास रे मन; अंति: देव माया करी रे, गाथा-८. For Private and Personal Use Only Page #459 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. सुमतिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.. ग. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कर जोडी करु विनती; अंति: जिनविजय जय जयकार रे, गाथा-५. ५१७८३. (+) पुद्गलसंख्या स्तवन सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. स्युन्हानगर, प्रले.पं. कमललाभ (गुरु ग. धर्मसुंदर वाचक, खरतरगच्छ); गुपि.ग. धर्मसुंदर वाचक (गुरु उपा. साधुरंग, खरतरगच्छ); उपा. साधुरंग (गुरु उपा. भुवनसोम, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२४.५४१०, ८-९४३२-३५). पुद्गलपरावर्त स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीवीतराग भगवंस्तव; अंति: श्रेयःश्रियं प्रापय, श्लोक-११. पुद्गलपरावर्त स्तोत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: हे वीतरागदेव ताहरा; अंति: संसार माहि रहइ. ५१७८४. असज्झायदोषनिवारण सज्झय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४१०.५, ११४३७-४२). असज्झाय सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रवयणदेवी समरीमात; अंति: शिललच्छी तस वरे, गाथा-१६. ५१७८५. असज्झायनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४१०.५, १०४३९). असज्झाय सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: पवयण देवि समरी मात; अंति: ज्ञाइ सीवलछी ते वरि, गाथा-१६. ५१७८६. (#) विषयत्याग सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. पं. अजितसागर गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०, १०४३५-३८). औपदेशिक सज्झाय-विषयपरिहार, मु. सिद्धविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रेजीव विषय न राचीइं; अंति: सिद्धिवि० नीसदीसोरे, गाथा-१३.. ५१७८७. बावीस अभक्ष्य बत्तीस अनंतकाय सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४१२, १३४३६). २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय सज्झाय, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: देवगुरुनु लीजे नाम; अंति: तणां सुख लहस्ये तेह, गाथा-१६. ५१७८८. (#) नवकार कथा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१०,१५४४४). शिवकुमार कथा-नमस्कार महामंत्र विषये, मा.गु., गद्य, आदि: (१)इह लोयंमितिदंडीः, (२)उज्जयणीनगरीयै धनदत्त; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्मशान में योगी की साधना, शिवकुमार द्वारा नवकार ध्यान प्रसंग तक लिखा है.) ५१७८९. नारकी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२५.५४१२, १०४३२). नारकी सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: वर्धमानजिन विनवू; अंति: परम कृपाल उदार, ढाल-६, गाथा-३६. ५१७९०. सझाय,श्लोक व औषध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२४.५४११.५, १०४३९). १.पे. नाम. आत्मशिक्षा सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. श्री महावीरदेव प्रसादात. औपदेशिक सज्झाय, ग. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जोय जतन करी जीवडा,; अंति: इम कहे केवलनाणी रे, गाथा-११. २. पे. नाम. सामान्य जैन कृति, पृ. १आ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औषध संग्रह **, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५१७९१. सज्झाय संग्रह व श्लोक, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४४११, १८४३६-४२). १. पे. नाम. विजयरत्नसूरि स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण, ले.स्थल. रामवावग्राम, प्रले. ग. क्षिमाविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. विजयरत्नसूरि गीत, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अमिरस पाउं थाने दाडि; अंति: दूधडे वूठ्या मेह हो, गाथा-७. २. पे. नाम. राजूल स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, मु. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: डुगर घेर्या वादले; अंति: त्रिविधे होयो तास, गाथा-५. ३. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. For Private and Personal Use Only Page #460 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ४४३ ५१७९२. (#) स्तवन, स्तुति व दूहादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, ले.स्थल. सांडेराम, प्रले. सुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११.५, १२४३७). १.पे. नाम. पद्मप्रभुजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: हांजी दिवस थया केताइ; अंति: सेव करो कवियण खुसी, गाथा-५. २. पे. नाम. गोडीपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्राण थकी प्यारो; अंति: थलपति प्राण आधार, गाथा-५. ३. पे. नाम. शांतिनाथजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: राज्यकुंजरचामरादि; अंति: सखी एकोपि अनंविना, श्लोक-१. ४. पे. नाम. दूहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. दूहा संग्रह*, पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), ग्रं. १. ५१७९४. व्याख्यान पीठीका, संपूर्ण, वि. १८९८, वैशाख शुक्ल, १, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. हरजीग्राम, प्रले. ग.खंतिविजय (गुरु पं. उत्तमविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १३४३१). व्याख्यान पीठिका, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीभगवान वीतरागदेव; अंति: चिदानंद पद पामस्ये. ५१७९८. समुद्धातना लक्षण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, अन्य. डोसाजी माहापुरुष, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १६४४६). ७ समुद्धात विचार-भगवतीसूत्र, मा.गु., गद्य, आदि: पहिली वेदनी समुद्धात; अंति: समुद्धातनु लक्षण. ५१७९९. हरीयाली सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२५.५४११, ३४३३). आध्यात्मिक हरियाली, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वरसैं कांबलि भिंजै; अंति: कवि देपाल वखाणई, गाथा-६. आध्यात्मिक हरियाली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: कांबली कहतां इंद्री; अंति: देपाल भोजके वखाणी. ५१८००. समोसरण सतक, संपूर्ण, वि. १९२४, चैत्र शुक्ल, ४, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. धागधरा, प्रले. मु. कुवचजी ऋषि; पठ. श्रावि. जेठी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १५-१६४३४-३८). समवसरण विचार-भगवतीसूत्रे-शतक३०, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: जीवाय लेश पखी दिट्ठी; अंति: द्वारनी परि जाणवा. ५१८०१. (#) पार्श्वनाथ निसांणी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, ११४३४). पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहि., पद्य, आदि: सुखसंपतिदायक सुरनर; अंति: गुण जिनहरष गावंदा है, गाथा-२७. ५१८०२. पौषकृष्ण दशम्यां व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२५४१२, १५४४४). पौषदशमीपर्व कथा, सं., गद्य, आदि: अभिनवमंगलमालाकरणं; अंति: स्मरणादानंदमाला भवतु. ५१८०३. (+) निश्चय व्यवहार विवाद स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२, १३४३४). शांतिजिन स्तवन-निश्चयव्यवहारगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३४, आदि: शांति जिणेसर केसर; अंति: वाचक जसविजय सिरि लही, ढाल-६, गाथा-४८. ५१८०४. (+#) पद्मावती खांमणा, संपूर्ण, वि. १८५७, फाल्गुन कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. सीरोही, प्रले. पं. कपूरविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १२४३०). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवि राणी पदमावती जीव; अंति: मुज मिच्छामिदुक्कड, ढाल-३, गाथा-३५. For Private and Personal Use Only Page #461 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५१८०५. अंतरिक्ष पार्श्वनाथ छंद, संपूर्ण, वि. १८६१, चैत्र अधिकमास कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. जावालग्राम, प्रले. ग. नायकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १४४४०). पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, पं. भावविजय वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मात मया करी; अंति: देव जयो देव जय२ करण, गाथा-५१. ५१८०७. (#) नववाड सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. वडोदरा, प्रले. मु. अजबचंद ऋषि (गुरु मु. सुजाण ऋषि); पठ. सुजाण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११,१५४४२). ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: श्रीगुरुने चरणे नमी; अंति: तेहनइं जाउं भाणमें, ढाल-१०, गाथा-४३. ५१८०८. सनत्कुमार चक्री स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु.रंगविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११.५, १३४३६). सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामनि पाए लाग; अंति: शांतिकुशल. संभाली, गाथा-१८. ५१८०९. दोहा सगरह, सज्झाय व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२५४११.५, १६x४२). १. पे. नाम. दोहा संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: जलहर बलहर कामहर हरीय; अंति: चडे सो उतरे नाह, दोहा-२. २.पे. नाम. मृगावती जेवंती सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मृगावतीजेवंती सज्झाय, मु. चोथमल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीकेजेवंती सुण; अंति: चोथमल० वंदण जाइ हो, गाथा-१५. ३. पे. नाम. रीषभदेवजीरोतवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. चंदकुशल, पुहिं., पद्य, आदि: देखो रे आदेसर साहेब; अंति: चंद्रा ताडण पायो हे, गाथा-३. ५१८११. तमाकू सज्झाय व दुहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १७५८, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. आगरा, अन्य. फतैचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४१०, १४४३४-३८). १. पे. नाम. तमाखू सिझाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, प्रले. श्राव. लालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. तमाकू परिहार सज्झाय, ग. उत्तमचंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतम सेती वीनवइ, अंति: उत्तम कहइ आणंद, गाथा-२३. २. पे. नाम. दहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण, प्रले. य. फतमन, प्र.ले.पु. सामान्य. औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहिं., पद्य, आदि: मन गुलाब तन केवडो; अंति: सरसासरसैण रच्छती, दोहा-३. ५१८१२. स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १७१४, श्रावण कृष्ण, ८, बुधवार, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्रले.ग. रामविजय (गुरु ग. कुंअरविजय पंडित); गुपि.ग. कुंअरविजय पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११, १४४४१). १. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुदचं० प्रपद्यते, श्लोक-४४. २. पे. नाम. संखेश्वरपार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. ३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंति: पूरय मे वांछितं नाथ, श्लोक-५. ५१८१३. (#) ऋषिकुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२३, वैशाख शुक्ल, १०, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. मेसाणा, प्रले. पं. सुरेंद्रविजय गणि; पठ. पं. चतुर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, ६४३१). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: निसेवितु सुहं लहंति, गाथा-२०. गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: लोभीला नर अर्थने; अंति: पामीजे० सारनी कथा. ५१८१५. (#) विचार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०, १३४२८-३५). असनादिक कालप्रमाण सज्झाय, मु. वीरविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रणमीय श्रीगौतम; अंति: सज्झाय लवलेसिइ कहिओ, गाथा-१७. For Private and Personal Use Only Page #462 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ५१८१६. (+) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५४१२, १०४२८). १.पे. नाम. पांचमाव्रतनी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पंचम महाव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आज मनह मनोरथ अतीघणो; अंति: कांतिविजय० सुख लहि, गाथा-६. २. पे. नाम. सुंदरी सज्झाय, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. सुंदरीतप सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती सांमनी करो पसा; अंति: कांतीविजय०सिरनामी रे, गाथा-८. ५१८१७. (+#) जिनचंद्रसूरि भास, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११, १३४३३). जिनचंद्रसूरि भास, वा. चंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: आवौ सहेल्यां वांदीयै; अंति: वाचक चंद हो राज, गाथा-१३. ५१८१८. ऋषभजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९१२, वैशाख कृष्ण, १३, शनिवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. जेतारणनगर, प्रले. मु. पुनमचंद (गुरु पं. कीर्तिसौभाग्य); गुपि.पं. कीर्तिसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१०.५, १०४२५-२८). सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: सुतमहं नमस्करोमि, श्लोक-३५. ५१८१९. कर्मस्तव सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-६(१ से ६)=४, पठ. श्राव. भगवानदास गांधी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. ३४६, दे., (२५४११.५, ४४३२). कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: (-); अंति: वंदियं नमह तं वीरं, गाथा-३५, (पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा २४ से है.) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: अधिकार संपूर्ण थयो, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ५१८२०. बार भावनानी संधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्रले. मु. हरजी ऋषि; पठ. सा. नैणां आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४११.५,१४४३८-४३). १२ भावना, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १६४६, आदि: आदिसर जिणवर तणा पद; अंति: जयसोम० शिव सुख थायइ, ढाल-१२, गाथा-७२. ५१८२१. (#) सज्झाय व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १४४४५). १.पे. नाम. झांझरियामुनिवर सज्झाय, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. झांझरियामुनि सज्झाय, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १६७७, आदि: सरस सकोमल सारदा वाणी; अंति: शांतिकुशल० दिन आज हो, गाथा-९१. २.पे. नाम. विहरमान स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन स्तवन, मु. तेजरुचि, मा.गु., पद्य, वि. १७५१, आदि: संप्रति सामइ जिनवीसा; अंति: तेजरुचि० सकल करु ए, गाथा-१५. ५१८२२. नेमराजुल लेख, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. स्तंभ तीर्थ, अन्य. श्रावि. पुंजीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१२,१५४२८). नेमराजिमती लेख, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: स्वस्ति श्रीरेवंत; अंति: सदा रूपविजे तुम दास, गाथा-१९. ५१८२४. मृगापुत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. कास्मीरपुर, पठ. सा. धर्मलक्ष्मी (गुरु सा. रत्नलक्ष्मी गणनी); गुपि. सा. रत्नलक्ष्मी गणनी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १४४३८). मृगापुत्र सज्झाय, मु. सिंहविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सुग्रीव नगर सोहामण: अंति: हज्यो तास प्रणाम रे, गाथा-२२. ५१८२५. (+) चेलणाराणीनि छ ढाल, संपूर्ण, वि. १९२९, आश्विन कृष्ण, ३०, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. नवानगर, अन्य. श्रावि. वकतुबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, १३४२९-३४). सकलकर For Private and Personal Use Only Page #463 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची चेलणासती चौढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३३, आदि: अवसरे ते नर अटकले ते; अंति: राय० भविएण ने हेतकार, ढाल-४. ५१८२६. (#) साधु पाक्षिक अतिचार, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५७-५३(१ से ५३)=४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११.५, १२४३०). साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणमे दंसणमे सरणमे; अंति: मिच्छामि दुक्कडं, संपूर्ण. ५१८२७. (+#) सज्झाय व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंशखंडित है, दे., (२५.५४११, १३४३३). १. पे. नाम. वीसथानक सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. २० स्थानकतप स्तवन, मु. वखतचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: वीशस्थानक तप सेवीयै; अंति: भावै० वसतो मुनिवरो, ढाल-३, गाथा-१८. २.पे. नाम. ऋषभदेव स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: ऋषभ जिणेसर त्रिभुवन; अंति: बीकानेर मझारोरे, गाथा-११. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, पृ. २आ, संपूर्ण. जगरुप, रा., पद्य, आदि: वामासुत म्हानै लागै; अंति: अजब मटक अणीयालो, गाथा-६. ५१८२८. (#) आराधना विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. सा. रमाई आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १२-१३४२७-३०). आलोचना विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: एगिदियाणंज कहवी; अंति: हुई ते मिछामि दुकडं. ५१८२९. (#) श्राद्धप्रतिक्रमण सूत्र, संपूर्ण, वि. १८९२, भाद्रपद कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. हीरविजय; लिख. श्राव. लक्ष्मीचंद फतेचंद शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीशातिनाथजी प्रसादात्, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १४४३४). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. ५१८३०. माणिभद्रस्वामी छंद, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, १६x४७). माणिभद्रवीर छंद-मगरवाडामंडन, पा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सुरपति तति सेवित; अंति: राजरत्न० जय जयकरण, गाथा-२१. ५१८३१. (#) सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. रामचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४११.५,१५४३७). १. पे. नाम. दसविध पच्चक्खाण सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. १० पच्चक्खाणफल सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: दशविध प्रह उठी पचखाण; अंति: पामो निश्चै निरवाण, गाथा-८. २.पे. नाम. पौषधसामायिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पौषधसामाइक सज्झाय, पंडित. सुमतिकमल, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणवर रे पासि; अंति: सुख संपति तेलहे, गाथा-१०. ५१८३२. (+) सील विषये विजयसेठ विजया सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. स्तंभ तीर्थ, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२, १०४२६). विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, आ. हर्षकीर्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी रे पंच; अंति: त कुशल नित नित जयवरि, ढाल-३, गाथा-२२. ५१८३३. () सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२, १३४३९). १.पे. नाम. झांझरीयाऋषि स्वाध्याय, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. झांझरियामुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५६, आदि: सरसति चरणे शीश नमावी; अंति: भावरतन० अति आणंद के, ढाल-४, गाथा-४३. For Private and Personal Use Only Page #464 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ४४७ २.पे. नाम. अढारनातरां सज्झाय, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण. १८ नातरा सज्झाय, मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पहिला समरं रे पास; अंति: रिद्धिविजय०मन रंगिला, ढाल-२, गाथा-३२. ५१८३५. (+#) वैराग्य सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, ११४२६-३२). वैराग्य सज्झाय, मु. विनय, मा.गु., पद्य, आदि: धर्मसखायत धर्म बल पर; अंति: विनय० शिव संपति वरि, गाथा-९. ५१८३६. (+#) स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०, १५४५०-५५). १.पे. नाम. नंदीश्वर स्तुति, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. नंदीश्वरद्वीप स्तुति, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: नितरामाशु सिद्धायिका, श्लोक-४, (पू.वि. गाथा १ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. शांतिनाथ स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: नाभेयाद्या जिनेंद्रा; अंति: सुप्रसन्ना दिशंतु, श्लोक-४. ३. पे. नाम. सर्वजिनदंडक स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: पणमह मरुदेविजायं; अंति: सुहं दिंतु ते, गाथा-४. ४. पे. नाम. २४ महादडंक पार्श्वजिन स्तुति, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तुति-२४ महादंडक, आ. भुवनहितसूरि, सं., पद्य, आदि: नत सुरपति कोटि; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक ३ अपूर्ण तक है.) ५१८३७. स्तवन वस्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्रले. पं. हर्षसमुद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक खंडित होने के कारण पत्रांक २ लिया है., जैदे., (२४.५४१०.५, १२४३९). १.पे. नाम. इरियावहि स्तुति, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. इरियावही मिच्छामिदुक्कडं संख्या स्तवन, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: इम संथव्यो भावइ करी, ढाल-४, गाथा-१३, (पू.वि. गाथा ९ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. शांतिनाथ स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तुति, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: सोलम जिनवर सेवियइरे; अंति: प्रणमइ जिन निसदीस, गाथा-१३. ५१८३८. शनिश्वर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८०३, पौष शुक्ल, ६, रविवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. कीवासी ग्राम, जैदे., (२३.५४१०.५, १४४३८-४०). शनिश्चर छंद, क. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: अहिनर सुर असुरापती; अंति: हेम० सनीसरवर, गाथा-१७. ५१८४०. स्तवन व स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४४७). १.पे. नाम. सीमंधर स्तवन, प्र. १अ-१आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन विनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सफल संसार अवतार एगण; अंति: पूरी आस्या मनघणी, गाथा-१८. २.पे. नाम. गुरूगुण स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सिद्धसूरिस्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: गुरु कीधा उपगार वात; अंति: (अपठनीय), (पू.वि. गाथा २ अपूर्ण तक है.) ५१८४२. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १६वी, जीर्ण, पृ. ४, कुल पे. ३, जैदे., (२५४१०.५, १७४६४). १.पे. नाम. भरतैरावतक्षेत्रसंबंधि भूतभाविवर्त्तमानजिन चतुर्विंशतिका, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. अतीतअनागतवर्तमान २४ जिननाम प्रशस्ति, सं., पद्य, आदि: चतुर्विंशतयोतीता; अंति: प्रशस्तिरर्हतामियं, श्लोक-११२. २.पे. नाम. अर्हन्नामसहस्र समुच्चय, पृ. २आ-४आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #465 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी-१३वी, आदि: अर्हन्नामापि कर्ण; अंति: सानंद महानंदैककारणं, प्रकाश-१०. ३. पे. नाम. सूरिमंत्र स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. सूरिमंत्र स्तोत्र, आ. मानदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: रागादिरिउजइणं नमो; अंति: थुणताण सिद्धिसुह, श्लोक-१०. ५१८४३. (+) शीलगुण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४९.५, १०४३५). शीलव्रत सज्झाय, आ. यशोदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: शीयल रतन जतने करि; अंति: यसोदेव० मुगतिनो राज, गाथा-१७. ५१८४४. (+#) स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१०.५, १२४३२). १.पे. नाम. पंचनमस्कार स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: पंचपरमेष्ठि; अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक-८. २.पे. नाम. सर्वजिन स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्टियंत्रगर्भित, मु. सुखनिधान, सं., पद्य, आदि: आदौ नेमिजिनं नौमि; अंति: मोक्षलक्ष्मीनिवासम्, __ श्लोक-९. ३. पे. नाम. शंखेश्वर स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंति: पूरय मे वांछितं नाथ, श्लोक-५. ५१८४५. (#) रात्रिभोजन सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८२४, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १३४३९). रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, उपा. आनंदनिधान, मा.गु., पद्य, वि. १६७५, आदि: सरसती करु संसारमैं; अंति: आनंदनिधान० जस थाय, गाथा-६९. ५१८४६. गोडीपार्श्वजिन स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, ले.स्थल. खोमावानगर, प्रले. पं. लालरूचि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११.५, १४४४१). १. पे. नाम. पारकदेसाधिपती स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-गोडीजी, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिनपुंकज वासवसीती सम; अंति: उदय० गोडीपास थुणो, गाथा-७. २. पे. नाम. गोडीपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-गोडीजी, मु. रामविजय, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: नमु सारदा सार; अंति: रामेण सर्वदा, गाथा-१४. ५१८४७. द्वादश फल, ज्योतिष, सवैया, लावणी व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ७, दे., (२५४११.५, ६-१२४३१). १.पे. नाम. द्वादश भावफल सह टबार्थ, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १९३०, आषाढ़ कृष्ण, ६, ले.स्थल. डीसा, प्रले. मु. दोलतरुचि, प्र.ले.पु. सामान्य. द्वादशभाव फल, फा., पद्य, आदि: मालखानै चस्मकोरा; अंति: सुवद साहि आलम सुझदह, गाथा-४. द्वादशभाव फल-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: धन भवन शुक्र होइ; अंति: पातसाह ऊई इम कहवं. २.पे. नाम. ज्योतिष, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ ज्योतिष , मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., आदि: शुक्र क्रह होइ प्रथम; अंति: यति साह हुइ. ३. पे. नाम. आदिजिन सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. पं. माणक्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रखभेसरदेव करु अंतेरी; अंति: माणिक्य नवनिध वरे, गाथा-१. ४. पे. नाम. हेतुपदेश लावणी, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: सुगुरु की सिख हइये; अंति: जिनदास० जिन सरणारे, गाथा-५. ५. पे. नाम. जिनदास कृत लावणि, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #466 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ४४९ औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: तुमे भजो जिनेसर देव; अंति: जिनदास० जिन सरणा रे, गाथा-४. ६. पे. नाम. भरतजीनी सज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण. भरतचक्रवर्ती सज्झाय, मु. कनककीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: मनही में वैरागी भरत; अंति: कनककीर्ति० मे मागी, गाथा-५. ७. पे. नाम. थूलीभद्रनी सज्झाय, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण.. स्थुलिभद्र सज्झाय, मु. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीथुलिभद्र मुनिगुण; अंति: तेहने करीये वंदणाजो, गाथा-१६. ५१८४८. लघु शांति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४११,१३४२८). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. ५१८५०. पाखीपडिकमण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले.पं. कस्तूरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १२४३७). प्रतिक्रमणविधि संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम सामायक लेणी; अंति: कहै पछै सामायक पारै. ५१८५१. सिवपुर नगर स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२५.५४१२, ९४२९). शिवपुरनगर सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: गोतमस्वामी पुछा करै; अंति: जिम पांमा सुख अथाग, गाथा-१६. ५१८५२. (#) पार्श्वनाथजी छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. वा. यशःसोम गणि (गुरु ग. कनकप्रिय, बृहत्खरतगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०, ११४३३-४२). पार्श्वजिन छंद, मु. नारायण ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: वामामात उअरि जग वंदह; अंति: नारीयणघाट टालै विघन, गाथा-१४. ५१८५३. (#) स्तुति व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८६०, आश्विन शुक्ल, २, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१२, ३१४१९). १.पे. नाम. पार्श्वस्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित, सं., पद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञ ज्योति; अंति: सद्बुद्धि वैदुष्यं, श्लोक-४. २. पे. नाम. मुनिसुव्रतजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिसुव्रतजिन वांदता; अंति: पणिमन मांहि परखाय रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. सहस्रफणापार्श्वनाथजी स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-सुरतमंडन, ग. जिनलाभ, मा.गु., पद्य, वि. १८१७, आदि: जयत्रिभुवन स्वामि सह; अंति: जिनलाभ० सुख दीजै, गाथा-९. ४. पे. नाम. सीमंधरजी स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन विनती स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीसीमंधर जिनवर; अंति: देवचंद्र पद पावेरे, गाथा-९. ५१८५६. (+#) ऋषभ देव छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४११.५, १३४४७). आदिजिन छंद, मु. लाल कवि, मा.गु., पद्य, आदि: बे कर जोडी वीनवू; अंति: एम लाल कवि उच्चरै, गाथा-८. ५१८५७. (-2) स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८६६, मार्गशीर्ष कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. सरीयारी, प्रले. मु. राजाराम; पठ. मु. जयचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२.५, २३४१८). १. पे. नाम. उदयपुर नगर दोहा, पृ. १अ, संपूर्ण. दीनानाथ, पुहिं., पद्य, आदि: मेरे मन में एक उठी; अंति: तेरी खूब देखी असवारी, गाथा-२. २. पे. नाम. युगमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #467 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४५० www.kobatirth.org मु. जिनसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजुगमंधर भेटवा रे, अंतिः जिनसागर० अविचल राज, गाथा ६. ३. पे. नाम. सामान्य जैन कृति संग्रह. पू. १ आ. संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जैन सामान्यकृति, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५१८५८. स्तवन व बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे ३, प्रले. मु. उदयचंद्र पठ मु हयकरण, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२५४११, १३x२३). १. पे. नाम. पदमनाभतिर्थ स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. पद्मनाभजिन स्तवन, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्म, वि. १८४६, आदि: जंबूद्वीपना भरतक्षेत अंति: जैमल० लील विलास, गाथा १५. २. पे. नाम. चौद गुणस्थानक नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. १४ गुणस्थानक नाम, मा.गु, गद्य, आदि: मिध्यात्व१ सास्वादन: अंतिः केवली अजोगिकेवली. ३. पे. नाम. बीस विहरमान नाम पू. १आ, संपूर्ण. 3 २० विहरमानजिन नाम, मा.गु., गद्य, आदि: सीमंधर १ युगमंधर, अंति: १९ अजितवीर्य २०. ५१८५९. विंशति स्थानक नमस्कार संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. १, कुल पे. २, प्रले. मु. दोलतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, वे.. (२५X११, १२X३४). १. पे. नाम. विंशतिस्थानकनाम गर्भित नमस्कार, पृ. १अ, संपूर्ण. ! २० स्थानकतप चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी आदि पहेले पद अरिहंत नमः अंतिः नमतां होय सुख खाणी, गाथा ५. २. पे. नाम. विंशति स्थानक काउसग्गगर्भित नमस्कार, पृ. १आ, संपूर्ण. २० स्थानकतप काउसरण चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९९वी, आदि: चोवीस पन्नर, अंति: नमी निज कार साधे, गाथा-५. ५१८६०. (4) पार्श्व जिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२४.५४१०.५, ११×३९). पार्श्वजिन स्तवन, पा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिणंदा हो साहिब, अंति: राजरत्न० काज सुखाकर, गाथा- १०. ५१८६१. अष्टमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५X११.५, १३X३३). अष्टमीतिथि स्तवन, मु. नयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१८, आदि: जय हंसासणी शारदा, अंति: नय० आनंद अति घणो, ढाल - २, गाथा - २०. ५१८६२. रहनेमी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८७४, कार्तिक शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५X११.५, ९X३१). रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: काउसण ध्याने मुनिः अंतिः रूपविजय० देहरे, गाथा-८. ५१८६३. मांन विखंडन गीत, संपूर्ण, वि. १८१४, वैशाख शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. श्राव. भाउ, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५X१०.५, १२X३२). मानपरिहार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: मान न करिज्यो रे मान, अंति: मुक्ति सुख लेय रे, गाथा-२०. (#) गुहली संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, वे (२५.५x११, १३X३६). १. पे नाम औपदेशिक गुहली, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक गहुली, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर मारगमां वसिया, अंतिः श्रीशुभवीर चरण नमती, For Private and Personal Use Only गाथा - ९. २. पे नाम. गुरुगुण गुहली, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. गुरुगुण भास, आ. विजयमहेंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अहो सखि संयममां रमता, अंतिः महेंद्रसूरि सुख पावे, गाथा-७. ५१८६५. (+) हितोपदेशमाला, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४४१०.५, १७x४२-४६). Page #468 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५४ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: उवएसरयणकोसं नासिअ; अंति: पावइ रमए यसेच्छाए, गाथा-३६. ५१८६६. जिन चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२५४११.५, ९४२५). १. पे. नाम. सुमति स्तव, पृ. १अ, संपूर्ण.. पंचमीतिथि चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, सं., पद्य, आदि: सुवर्ण वर्णो हरिणा; अंति: स्वांतमितो मदीयम, गाथा-३. २. पे. नाम. पद्मप्रभ स्तव, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ पद्मप्रभजिन स्तव, सं., पद्य, आदि: उदारप्रभामंडलैर्भास; अंति: को रवे धर्माभ रम्यम्, श्लोक-३. ३. पे. नाम. सुपार्श्व स्तव, पृ. १आ, संपूर्ण. सुपार्श्वजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: जयवंतमनंतगूणौर्निमृत; अंति: दयोद्भवभूरितरप्रमुदा, श्लोक-३. ५१८६७. (#) लघुशांति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११.५, १२४२८). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: सूरि श्रीमान् देवस, श्लोक-१७. ५१८६८. नवाणुं यात्रा स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४११.५, ९४२८). शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जात्रा नवाणुंकरीइं; अंति: पद्म कहें भवतरिइं, गाथा-१०. ५१८६९. डोहला अधिकार, संपूर्ण, वि. १८५३, चैत्र शुक्ल, ११, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. कालद्रीनगर, प्रले. पं. नायकविजय गणि (गुरु ग. सुबुद्धिविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४११, १२४३७). दोहला अधिकार, मा.गु., गद्य, आदि: गर्भवंती अस्त्री आंख; अंति: अति क्षुधा न राखे. ५१८७०. (+#) पार्श्व जिन छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४११.५, १५४३०). पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. दानविजय, पुहि., पद्य, आदि: वणारसि राया पास सुहा; अंति: थापे दानवीजे मुणंदाह, गाथा-५. ५१८७१. सरस्वती छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. कल्याण पार्श्वनाथ प्रसादात्., दे., (२५४११.५, १८४५२). सरस्वतीदेवी छंद, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सर्स वचन सुमता मन आण; अंति: ताहरी जेम ताजी माहरी, गाथा-३५. ५१८७२. (#) भगवती छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पठ. मु. महिमाविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, २०४५२). शारदामाता छंद, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, वि. १६७८, आदि: सकलसिद्धिदातारं; अंति: होउसया संघकल्याणं, गाथा-४३. ५१८७३. (#) रात्रिभोजन चउपइ सरससंबंधो, अपूर्ण, वि. १७६६, कार्तिक शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. ५-२(१ से २)=३, ले.स्थल. रटीखान, पठ. श्रावि. नाथीबाई; अन्य. श्राव. केशवजी नाणावटी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (९१६) जाद्रिसे पूस्तकं द्रिष्टा, जैदे., (२४.५४११, ११४३७-४०). रात्रिभोजन परिहार चौपाई, उपा. महिमोदय, मा.गु., पद्य, वि. १७३५, आदि: (-); अंति: यइ हेलखमी लील विलास, ___ ढाल-९, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., ढाल ३ अपूर्ण से है.) ५१८७४. (#) नमि राजर्षि सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. पं. कनकनिधान, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १४४३५). नमिराजर्षिरास, ग. समयसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: समय० जीवत जनम प्रमाण, (प्रतिपूर्ण, पू.वि. ढाल १५ व १६ लिखा है.) ५१८७५. (#) स्तवन वसझाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११.५, १५४४२). १.पे. नाम. सिद्धाचलजीरोस्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. राम, मा.गु., पद्य, वि. १८०१, आदि: साहिबा सेव॒जो; अंति: राम सफल सुजगीस, गाथा-११. २. पे. नाम. विजैधर्मसूरीश्वरजीरी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #469 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची विजयधर्मसूरि सज्झाय, मु. राम, मा.गु., पद्य, आदि: सदगुरु सोहम अवतारी; अंति: विजयधरमसूरि बंदो, गाथा-१८. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनपार्श्व जिनंद; अंति: (-), (पू.वि. गाथा २ अपूर्ण तक है.) ५१८७६. (+#) हारबंधस्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. ग. भीमविजय (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १७४४७). पंचजिन स्तवन-हारबंध, आ. कुलमंडनसूरि, सं., पद्य, आदि: गरीयो गुण श्रेण्यरीण; अंति: दयैकपर पारगबोधम्, श्लोक-२३. ५१८७७. (#) सौभाग्य पंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११.५, १५४३५). नेमिजिन स्तवन-ज्ञानपंचमीपर्व, ग. दयाकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: शारद मात पसाउले निज; अंति: दयाकुशल आणंद थयो, ढाल-३, गाथा-३०. ५१८७८. (#) बारमासी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४११,१५४३४). औपदेशिक बारमासा, मा.गु., पद्य, आदि: चेत कहे चेतज्यो रे; अंति: गलत न लागे वार रे, गाथा-१३. ५१८८१. अक्षर शिक्षा दोधक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२५.५४१२.५, १३४३४). ककाबत्रीसी, मा.गु., पद्य, आदि: कका क्रोध न कीजीइं; अंति: यौ वाधै विद्या विलास, गाथा-३४. ५१८८२. अष्टोत्तरी स्नात्र विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, दे., (२५४११.५, १०-१३४४८). अष्टोत्तरीस्नात्र विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: तथा प्रथम उपगरण; अंति: रक्ष रक्ष स्वाहा. ५१८८३. (+) नवपद स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४११.५, ११४४१). १.पे. नाम. नवपद स्तुति, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. __नवपद स्तवन, मु. कुशल, पुहिं., पद्य, आदि: तेरम गुण वसकै कंत; अंति: नवपद कुशलाकुं भासैरे, गाथा-४५. २. पे. नाम. नवपद स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र पद, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: नवपद ध्यान धरोरे; अंति: शिवतरु बीज खरोरे, गाथा-३. ५१८८४. यति प्रायश्चित विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२५४११.५, १५४५४). साधुप्रायश्चित विधि, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानादिचारे यथा; अंति: पंचकल्याणं उपवास १०. ५१८८५. (#) स्तवन व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०,१४४४०). १. पे. नाम. तीर्थ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. तीर्थमाला स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सैतुरंजै ऋषभ समोसर्य; अंति: समयसुंदर कहे एम, गाथा-१६. २.पे. नाम. पार्श्वस्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मु. राजसमुद्र, मा.गु., पद्य, आदि: नीलकमल दल सावरोरे; अंति: मन तूं ही वसैरे लाल, गाथा-७. ३. पे. नाम. सुभद्रासती सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. मु. परमसागर, मा.गु., पद्य, आदि: मन समरी रे अमरी कुमर; अंति: (-), (पू.वि. कल्पतणा सहु मारग- पाठ तक है., _ वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) ५१८८६. (+) मौन एकादशी कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४११, १३४३७). मौनएकादशीपर्व कथा, आ. सौभाग्यनंदिसूरि, सं., पद्य, वि. १५७६, आदि: अन्यदा नेमेरीशानो; अंति: हम्मीरपुरसंश्रितैः, श्लोक-११८. For Private and Personal Use Only Page #470 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ५१८८७. (+#) विवेकविलाशे पंच श्लोक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६०५, कार्तिक कृष्ण, ११, शनिवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. झोटाणा, प्रले. मु. पक्का ऋषि; पठ. मु. जयवंत ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पंचपाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२४४१०,५४२०). विवेकविलास-हिस्सा प्रतिमादोष वर्णन, आ. जिनदत्तसूरि, सं., पद्य, आदि: रौद्री निहंति; अंति: नीचौच्चस्था विदेशदा, श्लोक-५. विवेकविलास-हिस्सा-प्रतिमादोष वर्णन का बालावबोध, मु. वरसिंघजी, मागु., गद्य, आदि: प्रतिमायाः निर्मापणे; अंति: वरसिंघ० दिशिभम दि. ५१८८८.(+) साधु प्रतिक्रमण सूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४१०.५,११४३३). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: चत्तारि मंगलं अरिहंत; अंति: वंदामि जेणे चउवीसं, सूत्र-२१, (वि. गाथांक नहीं लिखा है.) ५१८८९. (+#) महावीर स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १५४५३). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंति: नामे पुण्यप्रकास ए, ढाल-८, गाथा-१०२. ५१८९०. (#) हरियाली संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४११, १३४३४). १. पे. नाम. आध्यात्मिक हरियाली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. वा. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: एक अचंभो जगमांहि मइं; अंति: श्रीकमलविजयगुरु सीस, गाथा-९. २. पे. नाम. औपदेशिक हरियाली, पृ. १आ, संपूर्ण. नारी प्रहेलिका हरियाली, वा. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: एक नारी अति दीपति रे; अंति: गुणविजय०मति संदेह रे, गाथा-९. ५१८९१. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२४४११.५, २४४६१). १. पे. नाम. चोढालीयो परदेशी, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, वि. १८५२, आश्विन शुक्ल, १०. प्रदेशीराजा चौढालियो, मा.गु., पद्य, आदि: हाथ जोडी करै वीनती; अंति: देवता उपना जाय रे, ढाल-४. २. पे. नाम. जीरण सेठ सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. __ महावीरजिन स्तवन-पारणागर्भित, मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि: अनंतबल अरिहंतनारे; अंति: मेरा भा अनोपम थाय, गाथा-२५. ३. पे. नाम. मेघकुमार सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. मा.गु., पद्य, आदि: वांदे वांदे रे हो; अंति: ए तो धमोतर सुख खेम, गाथा-१४. ५१८९२. चंद्रगुप्त राजा सोल सुपन, संपूर्ण, वि. १८७५, वैशाख कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४११.५, १९४३६). चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, ऋ. रायमल्ल, मा.गु., पद्य, आदि: वीरनाथ अंतम जिणंद; अंति: विध ब्रह्म रायमल कही, गाथा-२६. ५१८९३. (+#) वाक्यप्रकाश, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १५४४०-४६). वाक्यप्रकाश, ग. उदयधर्म, सं., पद्य, वि. १५०७, आदि: प्रणम्यात्मविदं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ९९ अपूर्ण तक है.) ५१८९४. रतनचंद स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. थादला, प्रले. सा. फुली (गुरु सा. पनाजी); गुपि. सा. पनाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४११, १४४४३). ___ रतनचंदगुरु स्तवन, ऋ. हीरालाल, रा., पद्य, आदि: नंनण जसधारी होवा छे; अंति: होवो गणो उपगार हो, गाथा-१३. ५१८९५. सज्झाय व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२५४११.५, १४४४५). For Private and Personal Use Only Page #471 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. म. नितलाभ, रा., पद्य, आदि: संसारि लोकां आतम; अंति: नितलाभ० पार उतरणारे, गाथा-१३. २.पे. नाम. नारीनेह निवारण पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नारीनेहनिवारण पद, मु. रायचंद, पुहि., पद्य, आदि: अहो लाला नारी नेह; अंति: रायचद० नेह नीवारीए, गाथा-५. ३. पे. नाम. नेमराजुल सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, मु. लालचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: जादव कुल सीरदार; अंति: धार प्रणमुं नेमकुमार, गाथा-८. ५१८९६. (+) जिन वीनती संग्रह, संपूर्ण, वि. १८२१, माघ शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. संनेर, प्रले. पंन्या. तत्त्वविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, १५४४६). १.पे. नाम. वीरजिन विनती, पृ. १अ, संपूर्ण. आत्महितविनंति छंद, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु पाय लागी करूं; अंति: सामी सदा सुख देस्ये, गाथा-१०. २. पे. नाम. शांतिजिन विनती, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सुणो शांतिजिणंद; अंति: उदय० प्रभुजीने तोले, गाथा-९. ५१८९७. पांचबोल गर्भित वीर स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२४४११, १५४४३). ५ कारण छ ढालिया, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: सिद्धारथसुत वंदिये; अंति: विनय कहै आणंद ए, ढाल-६, गाथा-५८. ५१८९८. (-#) रास वसझायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १४४४८). १. पे. नाम. बुद्धि रास, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, प्रले. पं. सौभाग्यवर्धन गणि, प्र.ले.पु. सामान्य. आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पणमवि देवि अंबाई; अंति: धरीए सफल करो संसार, गाथा-५६. २.पे. नाम. सिद्धांतविचार स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. मा.गु., पद्य, आदि: संसारि फरिता जीविहि; अंति: फिरइं ते भवि भूरे, गाथा-१५. ३. पे. नाम. सामान्य जैन कृति, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. जैनकाव्य संग्रह*, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५१८९९. (+) अनंत व्रत कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ११४३९). अनंतव्रत कथा, मु. ललितकीर्ति, सं., पद्य, आदि: वंदे देवमनंताख्य; अंति: प्राप्यते विश्वमंगलं, गाथा-४५. ५१९०१. (-) नेमिजिन स्तवन व सद्गुरुभक्ति पद, संपूर्ण, वि. १८८१, माघ शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. जेतारण, अन्य. श्राव. सीवलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रत की लिखावट से संवत २०वी की प्रत प्रतीत होती है., अशुद्ध पाठ., जैदे., (२५.५४१०.५,१४४३८). १. पे. नाम. नेमराजीमति स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. कुसालचंद, रा., पद्य, आदि: अहो अहो उग्रसेन घर; अंति: वांद्या तणी वार, गाथा-१५. २. पे. नाम. गुरुभक्ति पद, पृ. १आ, संपूर्ण. सद्गुरुभक्ति पद, पुहि., पद्य, आदि: मेर सगूर पकडी बाह; अंति: सतगुर वन्या लूहार, गाथा-१. ५१९०२. (+#) अष्टादश प्रत्याख्यान, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, अन्य. पं. मेघविजयजी पंडीत, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११.५, ११४३४). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: गारेणं वोसिरामि, (वि. गंठसी मुंठसी विंटसी घरसहियं सहित प्रत्याख्यान का उल्लेख है.) ५१९०३. अयवंति सुखमाल चौपाइ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४१२.५, १५४३६). For Private and Personal Use Only Page #472 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ४५५ अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: मुनिवर आर्य सुहस्ति; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल ३ गाथा १ अपूर्ण तक लिखा है.) ५१९०५. (+#) जिन स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १०४३६). १.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मन मधुकर मोही रह्यउ; अंति: जिनराज कर जोडैरे, गाथा-५. २.पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १अ१आ, संपूर्ण. आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: तार करतार संसार सागर; अंति: जिनराज० जे रहइ पासइ, गाथा-५. ३. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८९४, आदि: विणजारा रेलाइ नायक; अंति: जिनराज० मूल न को कलइ, गाथा-५. ५१९०७. चतुर्विशति जिन स्तवन पंचषष्टीयंत्र गर्भित, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४१०.५, १०x२९). २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्टियंत्रगर्भित, मु. सुखनिधान, सं., पद्य, आदि: आदौ नेमिजिनं नौमि; अंति: सुखनिधान० निवास, श्लोक-८. ५१९०८. स्तवन व आरती संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२५.५४११.५, १९x४४). १.पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: नरेंद्र फणिंद्र; अंति: मिले करो सदा गिहघट, गाथा-११. २. पे. नाम. शांतिजिन आरती, पृ. १अ, संपूर्ण. सेवक, पुहिं., पद्य, आदि: जय जय आरती शांति; अंति: सेवक० अमर पद पावे, गाथा-६. ३. पे. नाम. पंचपरमेष्टी आरती, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ५ परमेष्ठी आरती, जै.क. द्यानतरायजी, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: एविधि मंगल आरती कीजै; अंति: वंछित फल निश्चे पावै, गाथा-९. ४. पे. नाम. साधारणजिन आरती, पृ. १आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतरायजी, पुहिं., पद्य, आदि: आरती श्रीजिनराज; अंति: द्यानत० सुख दीजै, गाथा-८. ५१९०९. ऋण धन चक्र सह टीका, स्तवन व नक्षत्र फल वर्णन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२५.५४११, १६x४८). १. पे. नाम. ऋण धन चक्र सह टीका, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. साथ में यंत्र दिया हुआ है. ऋण धन चक्र, सं., पद्य, आदि: कोष्टात्येकादशान्येव; अंति: शेषमृणं धनस्याज्ञ, श्लोक-४. ऋण धन चक्र-टीका, सं., गद्य, आदि: साध्यवर्णानस्वर; अंति: चेन्न शुभदायको भवति. २.पे. नाम. ३४ अतिशय स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ३४ अतिशय छंद, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसुमतिदायक कुमति; अंति: पद सेव मागु भवोभवे, गाथा-११. ३. पे. नाम. नक्षत्र फल वर्णन, पृ. १आ, संपूर्ण. __ ज्योतिष, मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ५१९१०. (+#) अनिट्कारिक, संपूर्ण, वि. १८०८, चैत्र कृष्ण, १४, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. श्राव. जीवणदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, १२४३५-३८). __ अनिट्कारिका, सं., पद्य, आदि: अनिट् स्वरांतो भवतीत; अंति: जिमिच्यनिट् स्वरान्, श्लोक-११. ५१९११. () सज्झाय व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. मूल पाठ का अंशखंडित है, दे., (२३.५४१०.५, २१४३७-५८). १.पे. नाम. पंचागुली मंत्र व मंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #473 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पंचांगुलीमाता मंत्र, सं., गद्य, आदि: ॐनमो पंचांगुली परसर; अंति: ॐ ठः ठः ठः स्वाहा. २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-पुण्योपरि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पारकी होडि तुंम करे; अंति: समयसुंदर कोटान कोटी, गाथा-३. ३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. ग. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: मैं तेरी प्रीत पिछा; अंति: जिनहरष० पीछाणी हो, गाथा-३. ४. पे. नाम. जिनदत्तसूरि गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जयचंद, रा., पद्य, आदि: जसु रिदय कमल गुरु; अंति: पामै चंद दौलत चढती, गाथा-१३. ५१९१३. (+#) अजितशांति स्तव, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. अजमेर, प्रले. मु.रूपचंद (पार्श्वचंदसूरि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १२४३२). अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-४०. ५१९१४. सुबाहुकुमार संधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२५.५४११, १५४३७-४०). सुबाहकुमार संधी, मु. मेघराज, मा.गु., पद्य, आदि: वंदी वीरजिनेसर केरा; अंति: मेघराज कहि० कल्याण, गाथा-७५. ५१९१५. काल ज्ञान भाषा, संपूर्ण, वि. १९०५, ज्येष्ठ कृष्ण, १०, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. सदाचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११.५, १५४४०). कालज्ञान-भाषा, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: सकति संभु संभू सुतंन; अंति: लिख्यो अर्थ लवलेश, समुद्देश-५, गाथा-१७७. ५१९१६. (2) आरती, स्तोत्र व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. १०, ले.स्थल. गुडल, पठ.पं. वालजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२३४१०, १४४३०-३४). १.पे. नाम. पद्मावती द्वादश आरती, पृ. १अ, संपूर्ण. पद्मावतीदेवी आरती-राशिगर्भित, जै.क. भूधरदास, पुहि., पद्य, आदि: मेष मेषान्मेषे करी; अंति: भूधर० द्रव्य वास्यै, गाथा-१३. २. पे. नाम. पद्मावतीनी वीनती स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पद्मावतीदेवी स्तोत्र, जै.क. भूधरदास, पुहिं., पद्य, आदि: आइनो आण्यो आसरो आसरो; अंति: भूधर० भली सीरी, गाशा गाथा-९. ३. पे. नाम. पद्मावती स्तुति पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पद्मावतीदेवी स्तुति, जै.क. भूधरदास, पुहिं., पद्य, आदि: आई की आसकरु मनमे; अंति: भूधर० गाइने वंदे हो, गाथा-९. ४. पे. नाम. पद्मावतीदेवी आरती, पृ. २अ, संपूर्ण. जै.क. भूधरदास, पुहि., पद्य, आदि: माया माहि रूचीर कोडि; अंति: भूधर० ऋद्धि सीद्धी, गाथा-१३. ५. पे. नाम. सातवारनी आरती, पृ. २आ, संपूर्ण. सातवार आरती, जै.क. भूधरदास, पुहिं., पद्य, आदि: समरण आई आई दिनेमा; अंति: भूधर० अंबा मल पाखी, गाथा-९. ६. पे. नाम. त्रिपुरासुंदरी स्तोत्र, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. बालत्रिपुरासुंदरीदेवी स्तोत्र, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: आई आनंदवल्ली अमृतकर; अंति: णमई सुंदरी ऐं नमस्ते, गाथा-५. ७. पे. नाम. पात्रशुद्धिकरण विधि, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. जैनेतर सामान्य कृति , प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ८. पे. नाम. अंबिका स्तोत्र, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #474 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ४५७ अंबिकादेवी स्तोत्र, शंकराचार्य, सं., पद्य, आदि: कनगोरी राज सूचिरुचंद; अंति: गोपाल शिविततकमंबिके, श्लोक-६. ९. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण.. पार्श्वजिन स्तोत्र-समंत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो भगवते; अंति: सुभगतामतिवांछितानि, श्लोक-९. १०. पे. नाम. शारदा स्तोत्र, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. शारदादेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: अविरल शब्द मयौघा; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक ६ अपूर्ण तक है.) ५१९१७. (#) वीसस्थानकतप गणर्नु, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. यंत्र दिया गया है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४११, ११४३१). २० स्थानकतप गणj, प्रा.,मा.गु., को., आदि: ॐ नमो अरिहंताणं २०००; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पद १२ तक लिखा है.) ५१९१८. (#) सझाय व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२, १०४३०). १. पे. नाम. प्रसन्नचंद रुषी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमु तुमारा पाय; अंति: जिणे दीठा ए प्रतिष्य, गाथा-७. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: मूरत मन मोहन रे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ३ अपूर्ण तक लिखा है.) ५१९१९. जोग प्रदीपक, संपूर्ण, वि. १८५२, श्रावण कृष्ण, १, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. वल्लभीनगर, जैदे., (२५.५४११.५, १६x४२). योगप्रदीप, सं., पद्य, आदि: यावन्न ग्रस्यते रोगै; अंति: कल्ल्याण कारणं, श्लोक-९२. ५१९२०. (#) आठ सिद्धि विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२४४१०, ९४३३-३८). अष्टसिद्धि विचार, मा.गु., गद्य, आदि: अणिमा सिद्धि १ हुलह; अंति: लोक वशि करवानी शक्ति. ५१९२२. पच्चक्खाण सूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४११,१३४३९). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: वत्तियागारेणं वोसिरइ. ५१९२४. (+) नंदीसूत्र थेरावली, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ३, पठ. मु. हीर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१०.५, ११४३५). नंदीसूत्र-स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: (१)नाणस्स परूवणं वुच्छं, (२)केवलनाणं च पंचम, गाथा-५१. ५१९२५. (#) दानशीयलतप भावना संवाद, संपूर्ण, वि. १८२४, श्रावण शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. डुंगरपुर, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०.५, १४-१५४३८-४२). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय नमी; अंति: समयसुंदर० प्रसाद रे, ढाल-४, गाथा-९२, ग्रं. १३५. ५१९२६. महावीर द्वात्रिशिंका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. पं. श्रीपतिसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीमदर्ह प्रसादात्, जैदे., (२४.५४१०.५, १३४३५). महावीरद्वात्रिंशिका, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: सदा योगसात्म्यात; अंति: तांश्चक्रिशक्रश्रियः, श्लोक-३३. ५१९२८. (+) अजितशांति स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. श्रावि. जसोदा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१०.५, १३४४१). अजितशांति स्तव, आ. जिनदत्तसूरि, सं., पद्य, आदि: शक्रः सहस्रनयनोपि; अंति: शर्मास्तकर्मा भवेत, श्लोक-१५. ५१९३०. (+) गौतमस्वामी अष्टापद गमन कथा, महावीर संवत्सरी दान कथा व महावीर दीक्षा पालकी कथा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-२(२ से ३)=२, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२३.५४११, १४-१७४४०-४४). For Private and Personal Use Only Page #475 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. गौत्तमअष्टापद गमन कथा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ कल्पसूत्र-गौतम अष्टापद गमन कथा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीइंद्रभूतीगौतम; अंति: केवलज्ञान उपजसे. २. पे. नाम. श्रीवीर संवछरी दान कथा, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. कल्पसूत्र-महावीरजिन संवत्सरीदान कथा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: पुण्यरवी लोगं तीणहे; अंति: वीरे संवच्छरी दीपो. ३. पे. नाम. महावीरस्वामी दीक्षा पालकी कथा, पृ. ४आ, संपूर्ण. जैन सामान्यकृति , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५१९३१. (#) परमार्थ हरियाली सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११, ७४४१). औपदेशिक सज्झाय-परमार्थ, मु. शिवचंद, मा.गु., पद्य, आदि: अचरिज एक अपूरव दिठो; अंति: शिवचंद०अविचल पालोरै, गाथा-९. औपदेशिक सज्झाय-परमार्थ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अचरिज एह भव्य जीवनी; अंति: अरथ जाणिज्यो सही. ५१९३३. (+) सिंदूरप्रकर का पद्यानुवाद, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२४४१०, २२४६४-६८). सिंदूरप्रकर-पद्यानुवाद, मु. राज, पुहि., पद्य, आदि: तप करि कुंभमध्य शोभा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ५२ अपूर्ण तक ५१९३४. (#) अर्हन्नाम सहस्र समुच्चय, संपूर्ण, वि. १७९८, कार्तिक शुक्ल, ७, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. वासिणीग्राम, प्रले. श्राव. सांवलदास शेठ; पठ. पं. गुलालविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२५४११, १५४५०). अर्हन्नामसहस्र समुच्चय, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी-१३वी, आदि: अर्हन्नामापि कर्ण; अंति: सानंद महानंदैककारणं, प्रकाश-१०. ५१९३५. (+#) चोवीसजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १८४४४). २४ जिन स्तवन, उपा. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशिवपद्मातेहनो; अंति: (-), (पू.वि. पद्मजिन स्तवन तक है.) ५१९३६. (#) पार्श्वजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १८८०, आश्विन कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, ६४३०). पार्श्वजिन स्तवन-जेसलमेर मंडन, मु. धीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३२, आदि: त्रिभुवनपती तेवीसमा; अंति: धीर० जयोजयो दिन कारण, गाथा-११. ५१९३७. (#) ज्ञानपंचमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पठ. मु. खुश्यालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १४४३८). नेमिजिन स्तवन-ज्ञानपंचमीपर्व, ग. दयाकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सारद मात पसाउले निज; अंति: दयाकुशल आणंद भयो, ढाल-३, गाथा-३०. ५१९३८. (+) थूलिभद्र राजऋषि सझाय, संपूर्ण, वि. १७४१, ज्येष्ठ कृष्ण, ७, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. पं. कनकसोम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४१०.५, १४४३५). स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, पंडित. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: कोश्या कामिनी कहिं; अंति: नय० करई निसदीसरि, गाथा-२२. ५१९३९. (#) दानशीलतपभावना संवाद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्रले. मु. राजसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १५४४६). For Private and Personal Use Only Page #476 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिणेशर पाय नमी; अंति: रसादोरे धरम हईडइ धरू, ढाल-४, गाथा-१०१, ग्रं. १३५. ५१९४०. आदिनाथ विनती, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पठ. श्रावि. श्यामबाई; श्रावि. प्रेमबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१०.५, ११४३४). आदिजिनविनती स्तवन, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १६६६, आदि: श्रीआदीसर वंदं पाय; अंति: बोलइ पाप आलोउं आपणां, ढाल-५, गाथा-५४. ५१९४१. () जिनपति स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १५४४९). चतुर्विंशतिजिन स्तुति, क. कमलविजय, सं., पद्य, आदि: जयतु वासववार विलासिन; अंति: कमलाद्विजय स्तुताः, श्लोक-२९. ५१९४२. () स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. मूल पाठ का अंशखंडित है, जैदे., (२५.५४१०.५, १९४६०). १. पे. नाम. जिनपंजर स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं अहँ, अंति: श्रीकमलप्रभाख्यः , श्लोक-२५. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र नवग्रहगर्भित, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहगर्भित, प्रा., पद्य, आदि: अरहं थुणामि पास; अंति: पति पुरतो वतिष्टता, गाथा-१३. ३. पे. नाम. जिनरक्षा स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण... सं., पद्य, आदि: सर्वातिशयसंपूर्णान; अंति: जैनेन्द्र० तथालिखत्, श्लोक-१७. ४. पे. नाम. चंद्रप्रभ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. चंद्रप्रभजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ चंद्रप्रभः; अंति: दायिनी मे फलप्रदा, श्लोक-५. ५१९४३. (#) स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३६-३३(१ से ३३)=३, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४१०, ११४३७-४०). १.पे. नाम. नवग्रहस्तुतिगर्भित पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. ३४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: (-); अंति: जिणप्पहसूरि० पीडंति, गाथा-१०, (पू.वि. अंतिम गाथा अपूर्ण मात्र है.) २.पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. ३४अ-३६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ४२ तक है.) ५१९४४. (-#) सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११.५, १०-१२४४३). १. पे. नाम. अयमताऋषि सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. __ अइमुत्तामुनिसज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंद वांदीनै; अंति: लखमीरतन० वरना पाय, गाथा-१८. २.पे. नाम. सर्वार्थसिधमुक्ताफल स्वाध्याय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जगदानंदन गुणनीलो रे; अंति: गुणविजय० फल आस रे, गाथा-१६. ५१९४५. पाक्षिक चैत्यवंदन व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२५४११.५, १३४३१). १.पे. नाम. चुतर्विंशती जिनपक्षी चैत्यवंदन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलाहत्प्रतिष्ठान; अंति: श्रीवीरजिननेत्रयोः, श्लोक-२९. २. पे. नाम. चतुर्दशीपाखी स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #477 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४६० www.kobatirth.org पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्या प्रतिमस्य, अंति: सर्वकार्येषु सिद्धं, श्लोक-४. ५१९४६. (#) साधुपाक्षिक अतिचार व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८३७, ज्येष्ठ कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, पठ. मु. अनोपचंद साधु, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२४.५४११.५, १३x२९). १. पे. नाम. साधु पाक्षिक अतिचार, पृ. १अ - ३आ, संपूर्ण. " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची साधुपाक्षिक अतिचार श्वे. मू. पू., संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मिय; अंति: अनेरो जे कोई अतिचार. २. पे. नाम. सुभाषित श्लोक संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह *, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-३. ५१९४७ (४) साधुपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फेल गयी है, जैवे. (२५४१०.५, १२X४०). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः उग्गए सूरे नमुक्कार, अंति: गारेण वोसिरामि. २. पे. नाम. मुहपत्ती बोल, पृ. ३आ, संपूर्ण साधुपाक्षिक अतिचार छे.मू. पू. संबद्ध, प्रा. मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि०: अंति: हुआइ होय ते सवि०. ५१९४८. (#) दश पच्चक्खाण सूत्र व मुहपति बोल, संपूर्ण, वि. १८८०, मार्गशीर्ष शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, ले. स्थल. सीरोही, प्रले. मु. लालचंदजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५X११.५, १२X३३). १. पे. नाम. दश पचक्खाण, पृ. १अ - ३अ, संपूर्ण. मुहपति पडिलेहण ५० बोल, रा., गद्य, आदि: प्रथम दृष्टि पडिलेहण, अंति: ५ त्रसका ६ जेणी करु. ५१९४९. (#) ऋषिभाषित कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५४११.५. ६४३५). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंतिः सेवित्तु सुहं लहंति, गाथा-२०. गौतम कुलक-वार्थ, मा.गु, गद्य, आदि लोभीवा मनुष्य अर्धन, अंतिः सेव्याथी सुख पामीजइ. ५१९५०. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५.५X११, १२-१७x४३). १. पे नाम वीर स्तवन, पृ. १अ २आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन छट्टाआरागर्भित, श्राव. देवीदास, मा.गु., पद्य, वि. १६११, आदि: सकल जिणंद पाए नमी, अंतिः देवीदास० संघमंगल करो, ढाल - ५, गाथा-६६. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वरतीर्थ, मु. नित्यविजय, मा.गु, पद्य, आदि ध्यान धर्यो प्रभु पह अंतिः नव नीधी रीधी धनपावै, गाथा-८. ५१९५१. (+) चउवीस दंडक विचार, संपूर्ण, वि. १८४९ ज्येष्ठ कृष्ण १४, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ३ ले. स्थल, सुरतिबंदर, पठ. मु. किसनचंद (गुरु पंन्या. केसरविजय); गुपि. पंन्या. केसरविजय (गुरु मु. सुमतिविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैदे. (२५.५x१२ १२४३६). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चउवीस जिणे तस्; अंति: विन्नत्ति अप्पहिया, गाथा ४४. ५१९५२. (+) अध्यात्म गीता, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे., (२५x११.५, ११x४२). For Private and Personal Use Only अध्यात्म गीता, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रणमियै विश्वहित, अंति: रंगी मुनि सुप्रतीता, गाथा-४८. ५१९५३. (४) जिनकुशलसूरि स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, " 1 १२X३४). जिनकुशलसूरि स्तोत्र, मु. क्षमाकल्याण, सं., पद्य, आदिः श्रीमज्जिनाधीश, अंति: गणैः संसेव्यमानः सदा, श्लोक-२२. Page #478 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ४६१ ५१९५४. (4) बारमासा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंशखंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११, १३४४०). १.पे. नाम. नेमिनाथजीरो बारमासो भावना सहित, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. नेमराजिमती बारमासो, मा.गु., पद्य, आदि: प्रेम विलुधी पदमणी; अंति: नाथ सिरे सुर नेम, गाथा-४८. २. पे. नाम. कृष्णजीरो बारमासो, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. कृष्ण बारमासो, वल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: मृगसिर मास सोहामणो; अंति: वल्लभजी० प्रेम विलास, गाथा-२४. ५१९५५. (+#) दंडक स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४१०.५, १०४३५-३८). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीसजिणे तस्स; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-३८. ५१९५६. (#) द्वादश व्रतोच्चार आलापक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंशखंडित है, जैदे., (२५४११, १२४४३). सम्यक्त्वादिद्वादशव्रत आलापक संग्रह, प्रा.,सं., गद्य, आदि: अहन्नं भंते तुम्हाणं; अंति: उवसंपजताणं विहरामि. ५१९५७. (#) नंद बहोत्तरी, संपूर्ण, वि. १७९०, कार्तिक शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. पीसांगुण, प्रले. मु. पीतांबर ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १४४४३). नंद बहुत्तरी, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७१४, आदि: सबैनयर सिरि सेहरो; अंति: जसराज० बीला वास मझार, गाथा-७३. ५१९५८. (+) चवदै गुणस्थानक स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२, ११४३२). सुमतिजिन स्तवन-१४ गुणस्थान विचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सुमतिजिणंद सुमति; अंति: कहे एम मुनि धरमसी, ढाल-६, गाथा-३४. ५१९५९. पडिलेहण कुलक सह स्वोपज्ञ टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२५.५४१२, ५४३८). पडिलेहण कुलक, ग. विजयविमल, प्रा., पद्य, आदि: पडिलेहणाविसेस; अंति: सीसेण विजयविमलेण, गाथा-२८, संपूर्ण. पडिलेहण कुलक-टबार्थ, ग. विजयविमल, मा.गु., गद्य, आदि: प्रतिलेखनाना विशेष; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा १० अपूर्ण तक का टबार्थ लिखा है.) ५१९६०. (+) पद्मावती आराधना, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४११, ११४३६). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिव राणी पदमावती; अंति: कहइ पापथी छुटइ ततकाल, ढाल-३, गाथा-३५. ५१९६१. (#) साधु समाचारी अतिचार, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंशखंडित है, जैदे., (२५४११.५, ११४४२). साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मिय; अंति: करि मिच्छामि दुक्कडं. ५१९६२. (+) षड्दर्शन समुच्चय, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२४.५४११, २१४४८). षड्दर्शनसमुच्चय, आ. राजशेखरसूरि, सं., पद्य, आदि: नत्वा निजगुरून भक्त; अंति: राजशेखर० कथयां बभूव, श्लोक-१५०. ५१९६३. पूज्यानां विज्ञप्ति व जिनप्रतिष्ठा विवाद विवरण, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, जैदे., (२४४१०.५, १८४४६-५२). १.पे. नाम. पूज्यानां विज्ञप्ति, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. जिनभद्रसूरि विज्ञप्ति, रा., पद्य, आदि: (-); अंति: गुरु वादा इण सहि रे, गाथा-११, (पू.वि. गाथा १ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ जिनप्रतिष्ठा विवाद विवरण, पृ. २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #479 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची रा., गद्य, आदि: प्रथम मरुधर हुती; अंति: खरतर गछपती अडग रहिया. ५१९६५. बृहत्शांति, संपूर्ण, वि. १८६५, पंचरसाष्टशसि, आश्विन शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. सुमतिवर्द्धन, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४१०.५, १३४४०-४२). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: पूज्यमाने जिनेश्वरे. ५१९६६. (#) चउशरण प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४१०.५, १०४४१). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावजजोग विरई; अंति: कारणं नियसुहाणं, गाथा-६३. ५१९६७. (#) कुसुमांजलि विधि, संपूर्ण, वि. १८०८, वैशाख शुक्ल, ६, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १५४३४). कुसुमांजलि श्लोक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: मुक्तालंकारसारसौम्यक; अंति: मेलो सयल जिणंदो, गाथा-१३. ५१९६८. स्तवन व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९१९, पौष शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. आहोर, प्रले. उपा. देवीचंद; पठ. श्राव. फतेचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४१०.५, १३४४१). १.पे. नाम. राणपुराजी श्रीऋषभदेवजी स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-राणपुरमंडण, वा. जयसिंह गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७९८, आदि: श्रीरांणपुरै रसिहेस; अंति: जैसिंघ० ते सहु पावै, गाथा-१३. २. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., पद्य, आदि: विश्वस्यापि सवल्लभो; अंति: यः सत्यवादी जनः, श्लोक-१. ५१९६९. (+) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११.५, ६४३७). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवा१जीवार पुण्णं३; अंति: अणंतभागो असिद्धिगओ, गाथा-४७, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीश्रेष्ठ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा २ अपूर्ण तक का टबार्थ लिखा है.) ५१९७०. पद्मावती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. भेसवाडा, प्रले. मु. जालमसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११, ११४४३-४९). पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंति: जगत्पदमावतीस्तोत्रम्, श्लोक-२३. ५१९७२. स्तोत्र संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, ५४३१). १.पे. नाम. संतिकरं स्तोत्र सह टबार्थ, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने कृति नाम शांतिनाथ स्तवन लिखा है. संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: संतिकरं संतिजिणं जग; अंति: सलहइ सुह संपयं परमं, गाथा-१३. संतिकरं स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: शांतिनो करणहारश्री; अंति: सुख संपदा प्रति पामइ. २.पे. नाम. तिजयपहुत्त स्तवन सह टबार्थ, पृ. २आ-४आ, संपूर्ण. तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्त पयासीयं; अंति: निब्भंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. तिजयपहुत्त स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: त्रिणि जगना जीव; अंति: सर्व काय सिझइ. ५१९७३. (+) स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १५४४०). १. पे. नाम. सरस्वती स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ भारती स्तोत्र, ऋ. दुर्वासा ऋषि, सं., पद्य, आदि: अंतः कुंडलनि; अंति: पूजनीया सरस्वती, श्लोक-१२. २. पे. नाम. भारती स्तोत्र, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: राजते श्रीमती देवता; अंति: मावहति बुद्धिविभवेन, श्लोक-९. For Private and Personal Use Only Page #480 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ३. पे. नाम. यथास्थित सरस्वती स्तोत्र, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. शारदाष्टक, जै.क. बनारसीदास, पुहि., पद्य, वि. १७वी, आदि: नमो केवल रुप भगवान; अंति: वनारसी० संसार कलेस, गाथा-१०. ४. पे. नाम. आदिजिन स्तोत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तोत्र-सारसोपारक, सं., पद्य, आदि: जयानंदलक्ष्मीलसद्वल; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक २ अपूर्ण तक लिखा है.) ५१९७४. सज्झाय व उत्तराध्ययन सूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१९, १४४३४). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-लोभोपरि, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: धंधो करि धन मिलियो; अंति: प्पामाइ भव नो पार रे, गाथा-१०. २. पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र-विनय अध्ययन सह बालावबोध, पृ. १आ, संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा विणयसुयं प्रथमअध्ययन, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., पद्य, आदि: संजोगा विप्पमुक्कस्स; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ३ तक लिखा है.) उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा विणयसुयं प्रथमअध्ययन-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: उत्तर प्रधान जे; अंति: (-), __ अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ५१९७५. सत्तरभेदी पूजा, संपूर्ण, वि. १८३२, माघ शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. ४, पठ. उपा. रत्नविमल गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१०, १६x४६). १७ भेदी पूजा, वा. साधुकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६१८, आदि: ज्योति सकल जग जागती; अंति: लीला सवि सुख साजई, ढाल-१७. ५१९७६. (+#) रतनगुरु गुण स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १८२५, आश्विन कृष्ण, ९, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. श्राव. गुमान, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १६४४०). रतनकुमार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सरस कमल श्रीभगवंतजी; अंति: दसमी ढाल रसाल, ढाल-१०, गाथा-६३. ५१९७७. सज्झाय, कवित व दूहा, संपूर्ण, वि. १८५६, वैशाख शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. य. वीरचंद्र ऋषि, पठ. सा. खुसाला (गुरु सा. जामा); गुपि.सा. जामा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०.५, १२४३२). १. पे. नाम. रहनेमिजीकी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: काउसग व्रत रहनेम; अंति: अजरामर पद लेसी रे, गाथा-११. २.पे. नाम. औपदेशिक कवित्त, प्र. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: समर एक अरिहंत रयण; अंति: अवर आल मम उच्चरो, गाथा-२. ३. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: जोजाको गुन जान है; अंति: कागनी चोरी लेत, गाथा-१. ५१९७८. (+#) स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १५४३९). १.पे. नाम. परमेष्ठिरक्षा जिनरक्षा नाम स्तोत्र, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. जिनपंजर स्तोत्र, आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह, अंति: सः कमलप्रभाख्यः, श्लोक-२५. २.पे. नाम. व्रज्रपंजरनाम स्तोत्र, पृ. २अ, संपूर्ण. वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ परमेष्ठि; अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक-८. ३. पे. नाम. पार्श्वनाथमष्टोत्तरशत नाम महामंत्रमय स्तोत्र, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन मंत्राधिराज स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्री पार्श्वः पातु; अंति: प्राप्नोति स श्रियं, श्लोक-३३. For Private and Personal Use Only Page #481 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५१९८०. धर्म आराधना सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४१२, १२४३३). धर्म आराधना सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: धरम धरम बोहला कहे ए; अंति: ए आवागमण निवार कि, गाथा-३३. ५१९८१. (#) शांतिजिन स्तवन व दोहा संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. कुल पे. २, प्रले. देवीचंद; पठ. मु. खुसाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीशांतिनाथजी प्रशादात्, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४११, १२४२७). १.पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सोलमा श्रीजिनराज उलग; अंति: मोहण० पंडित रूपनो, गाथा-५. २.पे. नाम. दोहा संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: लटकूहारा बाभणा जो; अंति: श्री न पूछे कोय, गाथा-१. ५१९८२. (+) सज्झाय व लेख, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४११, १८-२१४४५-५०). १.पे. नाम. चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामिनि वीनवउं; अंति: धन धन ते नर नार, गाथा-१७. २. पे. नाम. नेमराजुल लेख, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती लेख, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: स्वस्ति श्रीरेवंतगिर; अंति: रुपविजय तुह्म दास, गाथा-१८. ५१९८३. सिखरजी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२४.५४११.५, ५४१५). सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. रूप ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८८९, आदि: समेत सिखरगिर चालो भव; अंति: रूप ऋषि सुवखांणोजी, गाथा-७. ५१९८४. (#) पच्चक्खाण भांगा व सम्यक्त्व विचार, संपूर्ण, वि. १७०९, वैशाख कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. ग. जससागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०,१६x४६-४८). १. पे. नाम. पच्चक्खाण भांगा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रा.,सं., प+ग., आदि: तिविहं तिविहेणं मणेण; अंति: भंगकाः सर्वमिलिताः. २.पे. नाम. सम्यक्त्व विचार, पृ. १आ, संपूर्ण.. जैन प्रश्नोत्तर संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ५१९८५. (+#) साधारणजिन स्तुति सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७२१, पौष शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. सादडीनगर, पठ. मु. कर्पूरसागर (गुरु पं. यशसागर); गुपि.पं. यशसागर; पठ. श्रावि. गोरीया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, २०४४९). साधारणजिन चैत्यवंदन, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि: जयश्रीजिनकल्याणवल्ली; अंति: वृद्धितराचिरात्ममापि, श्लोक-५. साधारणजिन चैत्यवंदन-अवचूरि, ग. कनककुशल, सं., गद्य, आदि: श्रीजिनेत्यादिनि; अंति: एकवचनं हीति, (वि. श्लोक-४९, अक्षर-१९.) ५१९८६. (+) २४ जिनवंदना, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित., दे., (२५४१२, ९४३०). २४ जिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: शाश्वत्यात्मर; अंति: नतां च चिरादियम्, श्लोक-२५. ५१९८७. (#) नवलखा पार्श्वनाथ स्तवन व भद्राविचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२, ११४२९). १.पे. नाम. नवलखा पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-नवलखा, मु. चंद्रसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८२९, आदि: पर पीयारो प्रभुजी; अंति: मृगशिर चौथ प्रधान, गाथा-८. २. पे. नाम. गुरु-शुक्रास्त व भद्राविचार, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #482 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ४६५ ज्योतिष*, मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., आदि: वापी कूप तडाग जाग; अंति: भद्रा सदा ग्राह्यते. ५१९८८. (-#) स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४१०, १४४३३-३८). १. पे. नाम. थूलिभद्र स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतडली न कीजई नार; अंति: समयसुंदरनी वाणि, गाथा-५. २. पे. नाम. वर्धमानजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: जयसिरिजिणवर तिहुअणजण; अंति: मुणिसुंदर० दाणउ अयरा, गाथा-५. ३. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. पुण्यरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सकल गुण भरिया ते; अंति: पूनिरत्न नितेडि अरहा, गाथा-४. ४. पे. नाम. टाकरिआ पच्चीसी, पृ. १आ, संपूर्ण. टाकरिया पच्चीसी, मा.गु., पद्य, आदि: लांबा जुहार करे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा १० ___ तक लिखा है.) ५१९८९. क्षमाकल्याण मुनि का पत्र शिवचंद्र मुनि के नाम, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४४१०.५, २३४२५-३३). क्षमाकल्याण मुनि का पत्र शिवचंद्र मुनि के नाम, मु. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८३५, आदि: स्वस्ति श्रीमदनंत; अंति: दिने व्यलेख्य दोदलम्. ५१९९०. (+) कर्मप्रकृतिनिदान स्तवन व अढारसहस्र शीलना भेद, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२४.५४११, १५४३३). १.पे. नाम. कर्मप्रकृति निदान स्तवन, पृ. २अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. कर्मप्रकृति निदान सज्झाय, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: लक्षमीवल्लभ०एह विचार, ढाल-४, गाथा-४७, (पू.वि. गाथा २ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. अढार सहस्र शीलना भेद, पृ. ३आ, संपूर्ण. १८ हजार शीलांग भेद, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम स्त्रीना ४ भेद; अंति: अढार सहस्त्र भेद थाई. ५१९९१. (2) नवपदजीरो गुणणो, संपूर्ण, वि. १८६५, चैत्र कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. सोजत, प्रले. पं. क्षमासौभाग्य; अन्य. मु. प्रेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १४४४८). नवपद गुण, सं., गद्य, आदि: स्वर्णसिंघासणस्थिताय; अंति: उत्सर्गतपसे नमः. ५१९९२. द्वार नाम, सज्झाय व मुंहपत्ति बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. लुणावा, प्र.वि. द्विपाठ., दे., (२४.५४११, १३४४७). १.पे. नाम. २९ द्वार २४ दंडक नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नामद्वार १ बीज; अंति: अल्पबहुत्व द्वार २९. २. पे. नाम. चेलणानी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. चेलणासती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर वखाणी राणि; अंति: समयसुंदर० भवतणो पार, गाथा-७. ३. पे. नाम. मुहपत्ति पडिलेहण के २५ बोल, पृ. १आ, संपूर्ण. मुहपति पडिलेहण के २५ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: सूत्र अर्थ सद्दहु; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रारम्भिक अंश लिखा है.) ५१९९३. शारदाष्टक व विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२४.५४१०.५, १३४४८). १. पे. नाम. सारदाष्टक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #483 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४६६ www.kobatirth.org भुवनेश्वरी अष्टक, सं., पद्य, आदिः ॐ ऐं ह्रीं मंत्ररूपे, अंति: निर्मलं ज्ञानरत्नम्, श्लोक ८. २. पे. नाम. मूठचक्र विचार, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२ राशि दोषनिवारण, सं., पद्य, आदि: पितृकृत तनुदोषो; अंति: पुन्यदानं महारोगनाशं, श्लोक-१२. ३. पे. नाम. योगिनी विचार, प्र. २अ २आ, संपूर्ण. योगिनी विचार दशा, सं., पद्य, आदिः स्वकीयं चकी रुद्र, अंतिः सकटं राजयक्षात् श्लोक ८. ५१९९४. औपदेशिक गीत, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. खीमविजय (गुरु पं. वृद्धिविजय गणि); गुपि. पं. वृद्धिविजय गणि, पठ. श्रावि. केसरी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २४४१०.५, १३४३९). औपदेशिक गीत, जै. क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: मेरा मनका प्यारा जो अंति: यह परमारथ निदान, गाथा - ३१. ५१९९५. साधारणजिन स्तुति सह टीका चतुष्टयी, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. सुखरल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रतिलेखन सं. में मात्र २५ लिखा है., जैदे., ( २४४१०.५, ११४४२-४४). 3 साधारणजिन स्तुति, आ. सोमतिलकसूरि, सं., पद्य, आदिः श्रीतीर्थराजः पदपद्म, अंतिः ददतां शिवं वः श्लोक-१. साधारणजिन स्तुति - चतुष्टयी टीका, सं., गद्य, आदि: श्रीतीर्थराज इत्यत्र अति ध्वरेणय प्रभावदाता. ५१९९६. सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. मु. मेघसोम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२४४१०.५, १६४५१). १. पे. नाम. हितशिक्षा सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक छंद, पंडित. लक्ष्मीकल्लोल, मा.गु., पद्य, आदि: भगति भारती चरण नमेव; अंति: लक्ष्मी० मन धरजो चोल, गाथा - १६. २. पे. नाम. नामगच्छ चउरासी सज्झाय, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. ८४ गच्छ सज्झाय, मु. गुणविजय, मा.गु, पद्य, आदि: नामगच्छ चासि तणा; अंति: गुणविजय विचोरो सहु, गाथा - १४. ३. पे नाम. कुशिष्य स्वरूप सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: सरसतीनई करुं जुहार, अंति: (-), (पू.वि. गाथा ६ अपूर्ण तक है.) ५१९९७, सज्झाय संग्रह, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे २, जै. (२४४१०, १४४३८-४२). १. पे. नाम. शीलोपदेश सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-विषयरागनिवारणे, मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मन आणी जिनवाणी, अंतिः मेरुविजय० निरधार, गाथा - १७. २. पे. नाम. सातव्यसन स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण. सप्तव्यसन सज्झाय, पं. रत्नकुशल गणि, मा.गु., पद्य, आदि सिद्धारथ कुल तिलोजी, अंतिः जिम पोचे सवि आस, गाथा - १०. ५१९९८. (०) अवंतीसुकुमाल स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे.. (२४४१०.५, १९x४८-५२). For Private and Personal Use Only अवंतिसुकुमाल सज्झाय, मु. कीर्तिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामणि मया, अंति: कीरतिविजय० मंगल करो, गाथा - २८. ५१९९९, (७) स्तवन व सज्झाच संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) -१, कुल पे. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे.. (२३.५x१०, १८४४२). १. पे. नाम. अंतरीक पार्श्व उत्पति स्तवन, पृ. २अ अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. पार्श्वजिन छंद - अंतरीक्षजी, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५८५, आदि: (-); अंति: लावण्य० गाथा - ५२, (पू. वि. गाथा ४० अपूर्ण से है.) वांछु सदा Page #484 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ ४६७ २.पे. नाम. पांचेद्री स्वाध्याय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. ५ इंद्रिय सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: काम अंध गजराज अगाज; अंति: सुजाण लहो सुख सासता, गाथा-६. ३. पे. नाम. १३ काठिया सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. आ. आणंदविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीगौतम गण; अंति: हेमविमलसूरि सीसे कही, गाथा-१५. ५२०००. (#) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११.५, १२४३६). __ भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामर प्रणत मौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मीः , श्लोक-४४. ५२००१. (#) सझाय संग्रह व आरती, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-१(१)=४, कुल पे. ५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १५४३१). १.पे. नाम. च्यार ध्याननी सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., वि. १८८२, ले.स्थल. वलादग्राम, प्रले. मु. खुशालरतन (गुरु मु. शिवरत्न, तपागच्छ); गुपि. मु. शिवरत्न (गुरु पं. प्रतापरत्न, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. श्री अजितनाथ प्रसादात् ४ ध्यान सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७९५, आदि: (-); अंति: विभंजणि उदयरतन भणि, गाथा-५, (पू.वि. प्रथम गाथा अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. तिष्यकुरुदत्त सज्झाय, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चोखे चिति चारित्र; अंति: मानविजय० सज्झाय हो, गाथा-१०. ३. पे. नाम. अभक्ष्य तथा अनंतकायनी सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. अभक्ष्य अनंतकाय सज्झाय, वा. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: वड पेंपल उंबर फला; अंति: उदय० सुजगीसो रे, गाथा-८. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन आरती, पृ. ३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन आरती-खेटकपुर मंडण, मु. उदय, पुहिं., पद्य, आदि: जय जय आरती पास; अंति: उदय पद परभुता जागि, गाथा-११. ५. पे. नाम. पंचमहाव्रत सज्झाय, पृ. ४अ-५आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पापथानेक पहेलु; अंति: साधुसुजस समकंद, ढाल-५, गाथा-३७. ५२००२. (#) खेमा छत्रीसी स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. माडल, प्रले. मु. लखमीचंद्र ऋषि (पासचंदगच्छ); दत्त. सा. बीजकोरश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीपार्श्वनाथ प्रसादात्., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२, १०४२२). क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदरी जीव खेमा गुण आद; अंति: चतुर्विध संघ जगीस जी, गाथा-३६. ५२००३. सज्झाय संग्रह व आलोयणा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, जैदे., (२५४११.५, २१४६४). १.पे. नाम. सीता को सिज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, ले.स्थल. दिली. सीतासती सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: माता सरसत वीनवू; अंति: जिनहरष० पाय रे, ढाल-५. २. पे. नाम. सती सीता आलोयणा, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण. सीतासती कृत आलोयणा, मु. कुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सती न सीता सारिखी; अंति: शाश्वता केवलकुशल कहत, ढाल-६, गाथा-९३. ३. पे. नाम. सीतासती की ढाल, पृ. ३आ, संपूर्ण. सीतासती गीत, मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: छोडी हो पीउ छोडि चल; अंति: जिनरंग० हीयइ धरीजी, गाथा-११. ५२००४. (#) सज्झाय स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. १०, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४१०, २०४४८). १. पे. नाम. चतुरदश गुणथांन वृद्धस्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. For Private and Personal Use Only Page #485 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४६८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सुमतिजिन स्तवन- १४ गुणस्थान विचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: (-); अंति: कहे एम मुनि धरमसी, दाल-६, गाथा- ३४ (पू. वि. गाथा ३१ से है.) २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. जै. क. द्यानतरायजी, पुहिं., पद्य, आदि: चेत चेत क्या सुयेगा, अंति: दांनतराज० फल लेतावे, गाथा-५. ३. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. २अ संपूर्ण. मु. ,रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: बाजी नगारा की ठोर; अंति: रूपचंद० न पुजुं ओर, गाथा-५. ४. पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. शांतिजिन पद, पुहिं., पद्य, आदि: एक ध्यान संतजी का अंतिः उतरना खतरा दूर करणा, गाथा ५. ५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. जै.क. भूधरदास, पुहिं., पद्य, आदि: अहो जगत गुरुराय, अंति: भूधरदास० ढील न कीजे, गाथा- १२. ६. पे. नाम. ऋषभनाथरो छंद दोअखरी, पृ. २आ- ३अ, संपूर्ण. आदिजिन छंद, पुहिं., पद्य, आदि: पेली प्रणमुं प्रथम, अंति: जुगल्या धर्म निवारण, गाथा-११. ७. पे. नाम. २४ जिन स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: जे जे ऋषभदेव आदि; अंति: अष्टकर्म मुक्तिगामी, गाथा-७. ८. पे नाम, कलियुग सज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. प्रीतिविमल, पुहिं., पद्य, आदिः यारो कूडो कलियुग आयो, अंतिः प्रीतिविमल०एक न वायो, गाथा- ११. ९. पे. नाम. चवदे थानक सज्झाय, पृ. ३अ- ३आ, संपूर्ण. १४ गुणस्थानक सज्झाय, रा., पद्य, आदि: चवदे धानकरा जीव अंतिः आवे केवली तणी ए गाथा-८. १०. पे. नाम. सम्यग्दृष्टी सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. सम्यग्दृष्टि सज्झाच, रा., पद्य, आदिः समदृष्टी साचो इम अंतिः इम समगत उजवालो हे, गाथा- २३. ५२००५ () आर्द्रकुमार सज्झाय, संपूर्ण वि. १८९६, आषाद कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल, नागोर, प्र. वि. अशुद्ध पाठ, जैदे., (२५X१०.५, १५X४१). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आर्द्रकुमार सज्झाय, मा.गु., पद्म, आदि: मंगलनी परमालता विचर, अंतिः मोहणगारा हो साधजी, गाथा-२२. ५२००६. पार्श्वचिंतामणी धरणेंद्रपद्मावती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२२.५X१०.५, १०X२७-३०). ५२००७ (# ) पार्श्वजिन स्तोत्र - जीरावला महामंत्रमय, आ. मेरुतुंगसूरि, सं., पद्म, वि. १५वी, आदिः ॐ नमो देवदेवाय नित्य, अंतिः लभेत् ध्रुवम् लोक-१४. मृगापुत्तर सझाव, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अशुद्ध पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२५x१०.५, १६५३९). "" मृगापुत्र सज्झाय, मा.गु, पद्य, आदि: सुगीरीव नागर सुहोमणो अंतिः (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा १३ अपूर्ण तक है.) 13 ५२००८ (4) सुगुरु पचीसी, संपूर्ण वि. १९वी जीर्ण, पृ. २. प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२५४११.५, १०३८). सुगुरुपच्चीसी, मु. जिनहर्ष, मा.गु, पद्य, आदिः सुगुरू पछाणो ए अंतिः शांतिहर्ष उछरंग जी, गाथा २५. ५२००९. गहुली, शांतिस्नात्रविधि व सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २- १ ( २ ) =१, कुल पे. ३, जैदे. (२५५१२.५, , १४४३५). १. पे. नाम. षडावश्यकसूत्रनी गहुँली, पृ. २अ, संपूर्ण. पडावश्यकसूत्र गहुली, संबद्ध, मु. मुक्ति, मा.गु., पद्य, आदि: अहो मुनि संजममा अंतिः कहे मुक्ति० धरो भाई, गाथा-८. २. पे नाम, शांतिस्नात्र विधि, पृ. २अ, संपूर्ण, गु., प्रा., मा.गु. सं., पग, आदिः ॐ नमोहंत, अंतिः (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. मात्र प्रारम्भिक अंश लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #486 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ - www.kobatirth.org ३. पे. नाम. भगवतीसूत्र सज्झाय, पृ. २अ संपूर्ण. भगवतीसूत्र गहुली, संबद्ध, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि सेअर सुंणीईरे, अंतिः दीपविजय० कोटी वधाई, गाथा- ७. ५२०१०. स्तवन व चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२२x१०, १३X३५). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण. मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि सूगण सनेही प्रभूजी अंतिः जिनचंद० भविजन तारो, गाथा- ६. २. पे. नाम. पंचमी चैत्यवंदन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवंदन, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिगडे बेठा वीर जिन, अंति: रंगविजय सुख सास, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा - ९. ३. पे. नाम. अष्टमी चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि नमस्कार, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदिः आठम तप आराधीए भाव, अंति: क्षय करी आठे कर्म गाथा - ७. 7 ५२०११ (१) चेला सझाय, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२४.५X११, ११५३०). शिष्य सज्झाय, मु. जिनभाण, मा.गु, पद्य, आदि: चेला रहे गुरुने पास अंतिः सेवो इम कहे जिनभाण, गाथा-७, ५२०१२. सरस्वती स्तोत्र व मंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५x१२, १२x३२). १. पे. नाम. सरस्वती स्तोत्र, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. भुवनेश्वरी अष्टक, सं., पद्य, आदिः ॐ ऐं हाँ मंत्ररूपे, अतिः कल्पासा च दीव्यं मम श्लोक ८. २. पे. नाम. सरस्वती मंत्र. पू. १आ, संपूर्ण. ( २२x९.५, १५X३४). १. पे. नाम. अष्टापद चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि जयादिनाथ प्रथितार्थ अंतिः बलं जयाजितं लोक- ८. सरस्वतीदेवी मंत्र, सं., गद्य, आदिः ॐ नमो ऐं ह्रीँ, अंति: प्रते विद्या आवे सही. ५२०१३. दानकुलक वालावबोधे कयवन्ना कथा, संपूर्ण, वि. १९२४, श्रवण शुक्ल, ६, शनिवार, मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल. लिंबडी, जैवे. (२४.५x११.५, १५४४०). " कयवन्ना कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (१) जम्मंतर दाणाओ, (२) राजगृही नगरी श्रेणिक, अंति: मोक्ष पुहचस्ये. ५२०१४ (१) चैत्यवंदन व स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पू. १, कुल पे. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फेल गयी है, दे., २. पे. नाम. चतुर्विंशति तीर्थंकर स्तोत्र, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. - २४ जिन स्तव चतुःषष्टियंत्रगर्भित मु. जयतिलकसूरि-शिष्य, सं., पद्य, आदि; आदौ नेमिजिनं नौमि अंति लक्ष्मीर्निवासम्, श्लोक-८. ३. पे नाम प्रभाति स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण प्रभाती स्तवन, सं., पद्य, आदि: ब्राह्मी १ चंदनबालिक, अंति: जननी श्रीथूलभद्रमुनि, लोक-२. ५२०१५. (#) स्तवन व गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ५, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., गाथा ५. ३. पे. नाम. आदि स्तवन, पृ. २अ संपूर्ण. (२४.५X१२.५, १२-१५X३१) १. पे. नाम. नेमराजिमती लेख, पृ. १अ १आ, संपूर्ण मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदिः स्वस्तश्री रेवंतगिर, अंति: रूपवजय गुण गाय, गाथा १६. २. पे नाम, नेम स्तवन, पृ. ९आ- २अ, संपूर्ण, नेमिजिन स्तवन, मु. रूचिरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सिवादेवी सुत सुखदाया; अंति: रूचिरविमल जयकारा रे, ४६९ For Private and Personal Use Only Page #487 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४७० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आदिजिन स्तवन, मु. जीतचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जिणंदजी श्रीआदेसर; अंति: लाल जीत नमे कर जोर, गाथा - ७. ४. पे. नाम. अजितनाथ स्तवन, पृ. २आ. संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अजितजिन स्तवन, मु. साधुविजय, मा.गु, पद्य, आदि अजित जिणेसर पूज्यो; अंतिः साधविजि० दीजिरे, गाथा-५. ५. पे. नाम. नेम गीत, पृ. २आ, संपूर्ण. नेमिजिन गीत, मु. पृथ्वीसागर, मा.गु, पद्य, आदिः प्रणमुं माता सरसती, अंतिः पृथ्वीसागर० नेमकुमार, गाथा-७. ५२०१६. (+४) पगामसज्झाय सूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. ३, प्र. वि. संशोधित अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैसे., (२५x११, ११४३३). पगामसज्झावसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि इच्छामि पडिकमिउ, अंतिः वंदामि जिणे चडवीसं सूत्र- २१. ५२०१७. सूत्राचार स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., ( २४.५X१२, १४४५४). सूत्राचार सज्झाय, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजीनेसर पव नमी कहि, अंतिः जीम पामो सिवपुर ठाण, गाथा - २१. ५२०१८. चरण करण सित्तरी सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., ( २४.५X११.५, ९×३९). चरणसित्तरीकरणसित्तरी सज्झाय, मु. सुजस, मा.गु., पद्य, आदि: पंच महाव्रत दसविध, अंति: ज्ञानविमल० जस वाधोजी, गाथा-७. ५२०१९. (#) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२३४११ १५४१-४२). १. पे. नाम. काकंदीवासी धनामहामुनिश्वरनी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. मु. अणदा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. धन्ना अणगार सज्झाय, मु. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि जिन वचने वैरागीवोरे, अंतिः श्रीदेव० जय जयकार हो, गाथा - १३. २. पे. नाम. जीवकाया उपर धर्मोपदेश देवा सज्झाच, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. मनोहर, मा.गु., पद्य, आदि: लख चौरासी जीवा जोनमै अंतिः मनोहर० मन माहिला रे, गाथा - ११. ५२०२०. (+#) आहारना छन्नू दोष सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३७, फाल्गुन शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. पंडित. जैतसोम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५. ५X११.५, ४४४८). आहार के ९६ दोष, प्रा., गद्य, आदिः आहाकम्मु१ उद्देशिक२; अंति: स्साए९५ पारियासियए९६. आहार के ९६ दोष-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: आ० आधाकरमी आहार; अंतिः घणी वार राखी करइ ते. ५२०२१. असज्झाय विचार, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल, सूरतिबंदिर, प्रले. ग. तेजविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५X११, १४X४० ). असज्झाय विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सूक्ष्म रज आकाश थकी अंतिः पुनिमइ सझाइ न सुझइ. ५२०२२. (+#) पार्श्वनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११. १५४४५). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार, अंतिः कुमुदचं० प्रपद्यते, श्लोक-४४. ५२०२४. (+) स्तोत्र व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८४४, माघ शुक्ल, १, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, ले. स्थल. सोझितनगर, प्रले. पं. मनरंगसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्री शांतिजिन प्रसादात् संशोधित, जैवे. (२५x११.५, १६४४५). १. पे. नाम. सरस्वत्याष्टक, पृ. १अ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी छंद, ग. हेमविजय, मा.गु., पद्य, आदिः ॐकार धरा उधरणं; अंति: करे वदे हेम इम वीनती, गाथा-८. २. पे. नाम. आशीर्वचन, पृ. १अ, संपूर्ण. लोक संग्रह प्रा. सं., पद्य, आदि: लक्षं लक्षं, अंतिः काले पालने यो भवद्भि श्लोक-२. For Private and Personal Use Only Page #488 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ www.kobatirth.org १४-१७x४२-५४). १. पे. नाम. उपदेशमाला यंत्र, पृ. १अ - ३आ, संपूर्ण. ३. पे. नाम. सरस्वती छंद, पृ. १अ संपूर्ण सरस्वतीदेवी छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु, पद्य, आदि: शशिकरनिकर समुज्वल, अंतिः पुजो नित सरस्वति, ढाल ३, गाथा - १४ (वि. मात्र प्रतीक पाठ दिया गया है.) ४. पे. नाम जिनचैत्यवंदन स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्ता देवलोके रवि, अंतिः सततं चित्तमानंदकारि, श्लोक - ९. ५२०२५. (# ) खंधकमुनि सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, वे. (२४४१०.५, १२x२७-३०). खंधकमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: तिण अवसर मुनिराय, अंति: (-), (पू.वि. गाथा १९ तक है.) ५२०२६. (#) मौन एकादशी कथा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. आ. जिनचंद्रसूरि (खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जै, (२५x१२, १७x४८). " मौनएकादशीपर्व कथा, आ. सौभाग्यनंदिसूरि, सं., पद्य, वि. १५७६, आदि: अन्यदा नेमिरीशाने, अंति: हम्मीरपुरसंश्रितैः श्लोक-११८. ५२०२७. उपदेशमाला यंत्र, अनशन गाथाक्रम व शकुनावली, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११, उपदेशमाला - उत्कृष्ट-मध्यम गाथा व अक्षरसंख्या यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. उपदेशमाला अनशन गाथाक्रम, पृ. ४अ ४आ, संपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. उपदेशमाला शुकनावली, पृ. ४आ, संपूर्ण. उपदेशमाला गाथा शकुन, संबद्ध, प्रा., मा.गु., पद्य, आदिः आदौ षट् शुन्ये; अंति: दिन २४ एतत् कल्पना. ५२०२८. (#) सौभाग्य पंचमी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., " ४७१ (२५.५५११, २१X५३). सौभाग्यपंचमीस्तोत्र, मु. कुंअरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसतिमात पसाउलै गुरु; अंतिः कुअर० ज्ञान सदा भजउ, गाथा - ३५. ५२०२९. संबोहसत्तरी, संपूर्ण, वि. १८७७, पौष शुक्ल, १०, शनिवार, मध्यम, पृ. ४, पठ. मु. राजा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५X१०.५, १४-१५X२८-३२). " संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि प्रा. पद्य, आदि; नमीऊण तिलोअगुरु, अंतिः सो लहइ नत्थि संदेहो, गाथा-७५. ५२०३०. जिन नमस्कार व स्तुति, संपूर्ण वि. १७वी, मध्यम, पृ. १. कुल पे, २ जै. (२५.५x११, १२४३८). , १. पे. नाम चतुर्विंशतिजिन नमस्कार, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. २४ जिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: जिनर्षभप्रीणितभव्य, अंति: हृदये च मास्ताम्, श्लोक - ५, (वि. प्रतिलेखक ने दो श्लोकों को एक श्लोक गिना है. ) २. पे. नाम. वीरजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंतिः कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. ५२०३१, () भोजन छत्तीसी, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५.५x१०.५, १६X६३). पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: श्रीमङ्गीर्वाणचक्र, अंतिः स्तुता दानवेंद्र, श्लोक-२१. महावीरजिन सुखडी, आ. दयासागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिशला राणी कहै, अंतिः दयासागर० भोजन छत्तीस, गाथा - ३६. ५२०३२. पद्मावती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., ( २५X११, १५x५२). For Private and Personal Use Only Page #489 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४७२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५२०३३. (#) जिन नमस्कार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ४, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे. (२३.५x११, १५X३७-३९). १. पे नाम, बीसविहरमाण नमस्कार, पृ. १अ संपूर्ण. २० विहरमानजिन नमस्कार, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: स्वामी वंदु विहरमान, अंति: पासचंदसूरि० तांण, गाथा-५. יי २. पे नाम, कंसारीपुरमंडण श्री पार्श्वनाथ नमस्कार, पृ. ९अ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- कंसारीपुर मंडन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पूरण आस पास कंसारी, अंति: चंद्रेण प्रस्तुतः, गाथा- ७. ३. पे. नाम. संगीतबद्ध नमस्कार, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण. " पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि दें दें कि धप, अंतिः पातु पूज्योपचासः, श्लोक-६. ४. पे, नाम, सर्वजिन नमस्कार, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके; अंति: सततं चित्तमानंदकारी, श्लोक - ९. ५२०३४. (#) जीवविचार सूत्र, संपूर्ण, वि. १७७७, कार्तिक शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल. सुद्धदंति, पठ. मु. जिनदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११.५, १६X३७). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुदाउ सूयसमुद्दाओ, गाथा - ५१. ५२०३५. (४) स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, वे (२६x१०.५, १३x४० ). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अश्वसेन नरेसर वामा, अंति: कलित्त बहु वित्त, गाथा-४. २. पे नाम, नेमि स्तुति, पृ. १अ संपूर्ण. नेमिजिन स्तुति, मा.गु, पद्य, आदि: सुर असुर बंदु पाव, अंतिः मंगल करे अंजक देवी गाथा ४. ३. पे नाम, पंचजिन स्तुति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, कलाकंद स्तुति, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि कलाकंद पडम, अंतिः अम्म सवा पसथा, गाथा-४. ४. पे. नाम. लेश्या विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. 2 लेश्या फलस्वरूप लक्षण, प्रा. सं., पद्य, आदि अतिरौद्रः सदाक्रोधी, अंतिः सीद्धगई सूकजाणेणं, गाथा- १०. ५२०३६. (+) साधारणजिन स्तव सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. १०-९ (१ से ९) = १ ले, स्थल, विद्यापुर, प्र. मु. धर्ममंगल गणि शिष्य, पठ. मु. विजयधर्म, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत क्रियापद संकेत- अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, जैदे. (२५.५x११, ८४३२). साधारणजिन स्तव, आ. जयानंदसूरि, सं., पद्य, आदि देवाः प्रभो यं विधिना अंतिः भावं जयानंदमवप्रदेया, श्लोक ९, संपूर्ण. साधारणजिन स्तव - अवचूरि, सं., गद्य, आदि: अत्र प्रथमा उक्तिः; अंतिः सूत्रेण एकारः, संपूर्ण. ५२०३७. (+) वैराग्य शतक, संपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. ४, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैदे., (२५.५४११.५, १२x४२). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि, अंति: लहइ जिउ सासचं ठाणं, गाथा १०४. ५२०३८. स्याद्वाद नय व स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., ( २४.५X११.५, १३x४२). १. पे, नाम, स्याद्वाद नय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, १० बोल सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदिः स्यादवादमति श्रीजिन, अंतिः श्रीसार० रतन अणमोल, गाथा-२१. २. पे नाम, चतुर्दशी स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण For Private and Personal Use Only Page #490 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१२ www.kobatirth.org पार्श्वजिन स्तुति - नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: हैं कि धपमप; अंतिः दिशतु शासनदेवता, श्लोक-४. ५२०४०. (+#) भलेना सवाईआ, संपूर्ण, वि. १७८७, ज्येष्ठ कृष्ण, ९, गुरुवार, मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल. कंडोरणाग्राम, प्रले. पं. जीतरुचि गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५४११. १९४४८). יי , अक्षरबावनी, मु. जसराजजी मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, वि. १७३८, आदिः ॐकार अपार जगत आधार, अंति: गुण चितकुं रिजाय ए. गाथा ५७. ५२०४१. (#) नीसाणी व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैटे. (२४.५x११.५ १५४४१). १. पे. नाम. पास निसाणी, पृ. १अ २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन निसाणी-घरघर, मु. जिनहर्ष, पुडिं, पद्य, आदिः सुखसंपति दायक सुरनर, अंतिः गुण जिनहरष गहंदा है, गाथा - ५३, (वि. प्रतिलेखक ने एक गाथा को दो गाथा गिना है.) ५२०४३. वैराग्यपच्चीसी व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५X१२, २३X३६). १. पे. नाम. वैराग्यपच्चीसी, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे. नाम. सीमंधर स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण, सीमंधरजिन स्तवन, ग. शांतिविजय पंडित, मा.गु., पद्य, आदि: साहिबीया रे० सीमंधर, अंति: संतिविजय० जे लहेरे, गाथा - ११. ४७३ मु. रायचंद ऋषि, रा. पद्य वि. १८२१, आदि: सासणनायक श्रीव्रधमान, अंतिः रायचंद० जीवने समजाव, गाथा-२७. २. पे. नाम. अध्यात्म सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि आज आधार छे सुत्रनो अंतिः पालने ते पोचे निरवाण, गाथा ९. ५२०४४. (+) जीवविचार सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १६६४ आश्विन शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ४-१ ( २ ) = ३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४X१०, ७X४२-४४). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य वि. ११वी आदि भुवण पईवं वीरं नमुऊण; अंतिः संतिसूरि० समुद्धाओ, गाथा - ५०, ( पू. वि. गाथा १७ अपूर्ण से ३२ अपूर्ण तक नहीं है.) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मा.गु. सं., गद्य, आदि: त्रिभुवनदीप निभ; अंतिः श्रीशांतिसूरि कहिउ ५२०४६. शांतिनाथ अष्टक, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४७.५, ९४४७). " (ले. स्थल. महेमदाबाद, प्रले. ग. भक्तिचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य वि. प्रारंभिक दो गाथाओं की संस्कृत छाया दी गई है.) शांतिजिन अष्टक, सं., पद्य, आदि: सकल सुरासुर सेवित: अंतिः शांतिनाथाष्टकं भोः, श्लोक ९. ५२०४७. स्तवन व पद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ८, दे., (२५X११.५, १८×५८). १. पे नाम, नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. हीरालाल, रा., पद्य, आदि: ओ अलवेसर बाल दीनदयाल अंति: हीरालाल० महाराज, गाथा - ९. २. पे. नाम. पशु आत्मवेदना पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: पसु पुकार सुण तू अंति: वेद पुराण हम गावे हे, गाथा ४. ३. पे. नाम. सत्संगति पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रत्न ऋषि शिष्य, पुहिं., पद्य, आदि: संगत कर ले रे साधु, अंति: साल गुणंतर वासो रे, गाथा-४. ४. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, मु. देवीलाल, पुहिं., पद्य, आदि: चेतन फूलो रे यो मोहर, अंतिः देवीलाल ० तो चेतो रे, गाथा-४. ५. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #491 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. देवीलाल, पुहिं., पद्य, आदि: जीवडा रस्ते चाल थारे; अंति: देवीलाल० दीजे रे, गाथा-५. ६. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. देवीलाल, पुहि., पद्य, वि. १८६६, आदि: श्रीवीरप्रभुजी वकसो; अंति: देवीलाल मुजार, गाथा-५. ७. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. नंदलाल शिष्य, पुहि., पद्य, आदि: आणंद वर्ते हो जिणंद; अंति: नंदलाल० सुख की आस, गाथा-५. ८.पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. चौथमलजी म., पुहिं., पद्य, आदि: कहे व्रामी सुंदरी; अंति: कहे चौथमलजी धन धन्य, गाथा-५. ५२०४८.(+) देवदतारो वखांण, संपूर्ण, वि. १९२५, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. कुचरा, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२, २१४५३). देवदत्ता चौपाई, मु. रत्नधर्म, रा., पद्य, वि. १८९१, आदि: एकादसमां अंग मै नवमो; अंति: रत्नधर्म शुद्ध लीध, ढाल-७. ५२०४९. (+) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, १४४४९). १.पे. नाम. पनरमा धर्मनाथ स्वामीनो स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.. धर्मजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२२, आदि: रतनवंती नगरी अति; अंति: रायचंद० लीजो सुण, गाथा-१४. २.पे. नाम. गोतम स्तवन, प्र. १आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२७, आदि: जंबूदीप माहि नानो; अंति: रायचंदजी० प्रणमीजै, गाथा-१०. ५२०५०. (#) नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. नागोर, पठ. मु. उगरा (गुरु मु. राजसी ऋषि); प्रले. मु. राजसी ऋषि; अन्य. आ. हीराजी; आ. रूपचंदजी; आ. दीपागरजी; आ. वैरागरजी; आ. वस्तुपालजी; आ. कल्याणजी; आ. भेरुदासजी; आ. नेमिदासजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४११, १३-१५४२४-२८). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुनापावा; अंति: बुद्धबोहि करणिक्काया, गाथा-५०. For Private and Personal Use Only Page #492 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७५ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ४ मिथ्यादृष्टि अज्ञान भेद गाथा, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (नो जाणइ नो आयरइ नो), ४९३०२-३(+#) ५ तीर्थजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रीशत्रुजयमुख्य), ४९८४९-२(+#), ५०६२२-१(+), ५१७२७-२(+), ४८७६१-२, ५१०४३-२(#), ५११७५-५ (2) ५ तीर्थस्तव, प्रा., गा.६, पद्य, मूपू., (पंचधणुस्सयमाणं), ५०४१८-४(+) ५ परमेष्ठि नमस्कार स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (अहँतो भगवंत इंद्र), ४८५४९-२, ४८६७५-२ ५ परमेष्ठि स्तोत्र, प्रा., गा.७, पद्य, मूपू., (परमिट्ठमंतसारं सारं), ४८४७९-१(+), ४९९४५-२(+#) ५ समकित स्वरूप, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिलो उपशम समकित), ४८७३४(+$) ५ समवाय विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (काल सभाव नियति पुव्व), ४८५८२-१(+#) ६ दर्शन विचार, सं., श्लो. ६६, पद्य, मूपू., (जैनं मैमासिकं बौद्ध), ४९६१९ ६ द्रव्यपरिणाम विचार, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (परिणामि जीव मुत्ता), ४९९३३ (२) ६ द्रव्यपरिणाम विचार-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (तत्त्वार्थप्रकीर्णके), ४९९३३ ६ लेश्या परिणाम गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (किण्हाइ जाए ते नर ए), ५०७७७-८(+) (२) ६ लेश्या परिणाम गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (कृष्ण लेश्यानो धणी), ५०७७७-८(+) ७ भय ८ मद, प्रा., गा. १, पद्य, श्वे., (इह परलोगादाणं य), ४८३७५-९(+) ७ मांडला गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, श्वे., (सुत्ते१ अत्थे२ भोयण३), ५१०९९-४(+#) ८ कर्मस्थिति विचार, प्रा., गा. ३, पद्य, श्वे., (नाणे दंसणावरणे वेयणि), ४९२६३-२(+$) (२)८ कर्मस्थिति विचार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (नाणावरणीकर्म १ दर्शन), ४९२६३-२(+$) ८ प्रकारी पूजा, मु. देवचंद्र, मा.गु.,सं., ढा. ८, श्लो. ८, वि. १७२४, पद्य, मूपू., (गंगा मागध क्षीरनिधि), ५००४७-२ ८ प्रकारी पूजा काव्य, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (विमलकेवलभासनभास्कर), ४९३५२-१ ८ प्रातिहार्य श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (असोखवृक्ष्यसूरपुष्फ), ४८६९५-१ (२)८ प्रातिहार्य श्लोक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अशोकवृक्ष १ देवता), ४८६९५-१ ९ ग्रह वेदिकास्थापनादि विधि, सं., प+ग., मूपू., (वृत्तमंडलमादित्ये), ५१६४४-२(#) ९ ग्रह स्तोत्र, ऋ. वेद व्यास, सं., श्लो. १२, पद्य, वै., (जपाकुसुमसंकाशं काश्य), ४९८८४-३(+), ५०३८७-१०(+-#) ९ पुण्य प्रकार, प्रा., गद्य, मूपू., (नवविहे पुन्ने पन्नत), ४८४९२-६(+) १० आश्चर्य वर्णन, प्रा.,मा.गु., ग्रं. ११३, प+ग., मूपू., (उवसग्ग १ गब्भहरणं २), ४८४८१-२(+) १० क्षेत्र वर्तमानचौवीसी नाम, सं., गद्य, श्वे., (जंबूद्वीपे भरत), ४८८१३-१ १०दिक्पाल आवाहन विसर्जन विधि, मा.गु.,सं., पद. १०, प+ग., श्वे., (ॐ नमो इंद्राय पूर्व), ५०३५८ १० दीक्षा प्रकार, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (दसविहा पवज्जा पन्नता), ४८४९२-७(+) १० पच्चक्खाण तप गणणु विधिसहित, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (श्रीसमकीतपारंगताय नम), ४८७५९-१ १० यतिधर्म भेद गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (खंती मुत्ती अज्झबे), ४९१६५-१ ११ गणधर देववंदन, प्रा.,मा.गु., स्त. ११, पद्य, मूपू., (गोयम गणहर गोयम गणहर), ४९४७९-१(+#) ११ गणधर स्तुति, सं., स्तु. ११, श्लो. ४४, पद्य, मूपू., (श्रीइंद्रभूति), ४९४७९-२(+#) १२ तपभेद विवरण, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (अणसण उमोयरिया), ४९३४५-१(+) १२ राशि दोषनिवारण, सं., श्लो. १२, पद्य, वै., (पितृकृत तनुदोषो), ५१९९३-२ १२ व्रतउच्चारण विधि, प्रा.,सं., गद्य, श्वे., (सम्यक्त्वदंड भणंति), ४९०६६ १२ व्रत पूजाविधि, पं. वीरविजय, मा.गु.,सं., ढा. १३, गा. १२४, वि. १८८७, पद्य, मूपू., (उच्चैर्गुणैर्यस्य), प्रतहीन. (२) १२ व्रत पूजाविधि- अष्टमंगल पूजा ढाल, हिस्सा, पं. वीरविजय, मा.गु.,सं., गा. ९, वि. १८८७, पद्य, मूपू., (व्रत सातमें वीरती आद), ४८७७५ परिशिष्ट परिचय हेतु देखें खंड ७, पृष्ठ ४५४ For Private and Personal Use Only Page #493 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४७६ १३ दुर्लभगुण श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, श्वे., (मानुष्यकर वंसजत्व), ४८७५५-२ १४ पूर्व नाम, प्रा.मा.गु., गद्य, भूपू (१ श्रीउत्पादपूर्व), ४९३४५-३०) ५१४५३-२(+४) १४ पूर्व परिमाण विचार, सं., गद्य, मूपू. (पूर्वगतं श्रुतं चतुर), ४९६४८-१(०) १४ विद्या नाम, सं., श्लो. १, पद्य, वै., (षडांगी६ वेद चत्वारि ४), ४९२४०-३(#) (२) १४ विद्या नाम - बालावबोध, मा.गु., गद्य, वै., (षटां अग्निशिख्या १), ४९२४०-३(#) १५. परमाधामी भेद गाधा, प्रा., गा. २, पद्य, श्वे. (पणरस परमाहम्मिया यं), ५०७७७-३(१) , (२) १५ परमाधामी भेद गाथा - टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (हिवइ पनरमई ठाणइरो), ५०७७७-३(+) १५ बोल - गुरु शिष्य प्रश्नोत्तर, माग. गा. १५, पद्य, ., (--), ४८२८७(१) १५. सिद्धभेद गाथा, प्रा., गा. ६, पद्य, भूपू (भविवजणविहियबोहे हवमो), ४९९३५-३(०) (२) १५ सिद्धभेद गाथा - बालावबोध, मा.गु., गद्य, भूपू (भविय भविकजन विहित ), ४९९३५-३(०) १६ विद्यादेवी वर्णन, सं., श्लो. १६, पद्य, भूपू (रोहिणी श्वेतवृषयाना), ५००६६ (१) '1 १६ सती स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, भूपू (ब्राह्मी चंदनबालिका), ४९८०३-२ (+), ४८३३२-२, ४८४८६-२, ४९१६६-३, ५१२८४-३ "" १८ नातरा सज्झाब, सं., श्लो. १३, पद्य, वे (आतासि तनुजन्मासि), ५०४३३-२(०) . יי कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१२ (२) १८ नातरा सज्झाय - बालावबोध, मा.गु., गद्य, श्वे., (भाई माता एक पुत्र), ५०४३३-२(+) १८ भार वनस्पति मान, मा.गु. सं., गद्य, श्वे. (३८ अडत्रीस कोड ११), ५१४३७-४ " १८ हजार शीलांगर, प्रा. मा.गु., गा. २, पद्य, भूपू (जे नो कंति मणसा निज), ४८७३६ १८ हजार शीलांगादिरथ संग्रह, प्रा., गा. २, पद्य, २० विहरमानजिन स्तवन, सं., श्लो. ६, पद्य, श्वे. २० विहरमानजिन स्तुति, सं., श्लो. ५, पद्य, श्वे. मूपू., (जोए करणे सन्ना इंदिय), ५०००३-२ (वंदे सीमंधरं भक्त्या), ४९१६७-५ (सीमंधरो नाम युगंधरो), ५१२७३-२ (४) २० स्थानकतप आराधनाविधि, प्रा., मा.गु., प+ग, मूपू., ( नमो अरिहंताणं अरिहंत), ४८२२७ (+#), ४८४१७ (+), ५१४३६-३(+) २० स्थानकतप उच्चारणविधि, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, मूपू., (प्रथम इरियावहि पडिकम), ४९३२९-७(+) २० स्थानकतप गणणुं, प्रा., मा.गु., को. भूपू., (नमो अरिहंताणं १ नमो) ५१९१७ (४४), ५०५४१-२) " २० स्थानकतप गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (अरिहंत सिद्ध पवयण), ५१४३६-२ (+), ४९२०९-१, ५०१०८-३ (२) २० स्थानकतप गाथा - बालावबोध, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (अरिहंतना गुण कीर्तन), ४९२०९-१ २० स्थानकतप जापकाउसग्ग संख्या, प्रा., गद्य, मूपू., ( नमो अरिहंताणं २०००), ४८७८२ २० स्थानकतप विधि, सं., गद्य, म्पू., (ॐ नमो अरिहंताणं), ४८८७१ (+) २० स्थानकतप विधि, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, मूपू.. (१ नमो अरिहंताणं २०००), ४९८९८-१(०), ५०११९-१, ५०५०४ नमो अरिहंताणं १२) ४८८०४-४ २० स्थानक नाम, प्रा., मा.गु., गद्य, म्पू, २१ प्रकार के पानी, प्रा., गा. २, पथ, भूपू (उस्सेयम संसेयम उदल), ५०७७७-४(+) (२) २१ प्रकार पानी टवार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू (पीठानो धवण ते पाणी), ५०७७७-४(का २१ स्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा. गा. ६६, पद्य, मूपू. (चवण विमाणा नयरी जणया), ४९१५२(+), ५१०८०(+) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४ जिन १२० कल्याणक कोष्टक, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, मूपू., (कार्तिकसुदि १ सुविधि), ५०१८०-१, ५०३३१-१ २४ जिन गर्भस्थितिकाल, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू (दु चत्थ नवम बारस), ४९२९२-३(०) 13 (रवौ श्रीपद्मप्रभस्य), ४९८५७- २(ख) २४ जिन ग्रहानुसारी पूजाविधि, सं., गद्य, भूपू "" २४ जिन चैत्यवंदन, सं., श्लो. १०, पद्य, भूपू (जिनर्षभप्रीणितभव्य), ५२०३०-१ "" २४ जिननाम अनागत, सं., श्लो. १३, पद्य, श्वे. (दुःखमामतीतायां), ४८८९५-२(१), ५०६९६-१(०) २४ जिननाम अनागत, प्रा., गद्य, श्वे. (पउमाभं १ सुरदेवो २), ५१६८२ (#) (२) २४ जिननाम अनागत-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (पद्मनाभ ते श्रेणिक), ५१६८२(#) २४ जिन पंचकल्याणक तिथि व जाप, सं., गद्य, म्पू. (कारतीक वदि ५ श्रीसंभ), ४९९३९-१(०) २४ जिन पद, प्रा. गा. २, पद्य, भूपू (दोइ उज्जल दोह सामला), ४९६०७-४(१) " For Private and Personal Use Only Page #494 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ २४ जिन राशि, सं., गद्य, श्वे. (आदिनाथ धन उतराषाढ), ४८७२०-१ २४ जिन राशि नक्षत्र, सं., गद्य, मृपू., (नक्षत्र योनि षडाष), ४८७२०-२ २४ जिन विचारसार गाथा, प्रा., पद्य, भूपू., (-), प्रतहीन. (२) २४ जिन विचारसार गाधा टीका, सं., गद्य, मृपू., (--), ४९०१२ (३) २४ जिन शरीरमान, सं., गद्य, वे., (ऋषभनाथ पांच सौ ५००), ४९९५०-२ (+) २४ जिन शुकनावली, मा.गु., सं., गद्य, श्वे., (शीघ्र सकलाकार्यसिद्ध), ४८५६२, ४९५३२, ५०४२० ($) २४ जिन स्तव, मु. अजबसागर, सं., श्लो. २५, पद्य, मूपू., (सनाभिराजांगज आदिदेवो), ५०४६८(+#) २४ जिन स्तव चतुःषष्टियंत्रगर्भित मु, जयतिलकसूरि-शिष्य, सं., श्लो. ८, पद्य, भूपू (आदौ नेमिजिनं नौमि ), ४८९६९-२, ५२०१४-२०१ २४ जिन स्तवन, क. श्रीपाल, सं., श्लो. २९, पद्य, मूपू., (भक्त्या सर्वजिन), ४९८१२ (+) २४ जिन स्तवन, सं., श्लो. ९, पद्य, भूपू (प्रणम्याप्रनाथं सनीर), ४९९२२-१-४) २४ जिन स्तवन - चत्तारिअट्ठदसदोय गर्भित, प्रा., गा. १८, पद्य, श्वे., (अट्ठावयंमि सेले भरह), ४८८१३-२ (२) २४ जिन स्तवन चत्तारिअट्ठदसदोष गर्भित -अवचूरि, सं. गद्य, क्षे., (चत्ता० दाहिणिदुवारे), ४८८१३-२ יי २४ जिन स्तुति, आ. जिनकुशलसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (नाभेयाजितवासुपूज्यसु), ५१०४३-१(#) २४ जिन स्तुति, आ. सोमप्रभसूरि, सं., श्लो. २७, पद्य, म्पू, ( जनेन येन क्रियते), ५०८०३(०१) २४ जिन स्तुति, सं., श्लो. २४, पद्य, म्पू, (ऋषभदेवमहं जिननायक), ४८६८५ २४ जिन स्तुति, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू. (पणमह मस्देविजाय), ५१८३६-३(०) २४ जिन स्तुति, अप., गा. २, पद्य, मूपू., (भरहेसरकारिय देव हरे), ४९८५०-१ (२) २४ जिन स्तुति टीका, सं., गद्य, म्पू, (भरहेसरत्यादि व्याख्य), ४९८५०-१ २४ जिन स्तुति, सं., श्लो. ९, पद्य, श्वे. (मुनीनामनीसं हि नमामि), ४९१७५-३ २४ जिन स्तुति, सं., श्लो. २५, पद्य, श्वे. (शाश्वत्यात्मर), ५१९८६ (+) २४ जिन स्तुति, सं., श्लो. ५, पद्य, भूपू (सुरकिन्नरनागनरेंद्र), ४९३९८ " २४ जिन स्तोत्र, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., ( नतसुरेंद्रजिनेंद्र), ५०९४३-४ (+), ४८४०४, ४८५६०-१, ४८७५३-२, २४ मांडला, प्रा., गद्य, भूपू ( आघाडे आसन्ने उच्चारे), ४८५७२-१, ५१५४४-२०१ " ४९७७२ २४ जिन स्तोत्र, सं., श्लो. ४, पद्य, भूपू (ऋषभजिनमजितनाथ), ५०४१८-१(१) २४ जिन स्तोत्र, सं., श्लो. ५, पद्य, भूपू (श्रीआदिनाथाजितसंभवेश), ५०४१८-२(कन २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्टियंत्रगर्भित, मु. सुखनिधान, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (आदौ नेमिजिनं नौमि ), ४८५८४-२(+), ४८८५९(+#), ४९५४४-२(+), ४९६०७-२ (+), ४९८८९-१ (+), ५०९४३-७ (+), ५१८४४-२ (#), ५१९०७, ५१४००-२(#) २८ लब्धि विचार, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., ( आमोसहि विप्पोसहि), ५१०१९-१(#) (२) २८ लब्धि विचार -बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (आहव० हस्तपादादिकना), ५१०१९-१(#) २८ लब्धि स्तवन, प्रा. गा. १८, पद्य, मृपू., (जा जस्स तुह पसाया), ५०९६० २(क) " " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९ भावना प्रकरण, प्रा. गा. ३०, पद्य, वे. (संसारम्मि असारे), ४९३२० (+३), ५१२७३-३ (४७) " (२) २९ भावना प्रकरण - बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (ए संसार असार रूप छइ), ४९३२० (+$) (२) २९ भावना प्रकरण -टबार्थ *, मा.गु., गद्य, श्वे., (संसार असाररूप छइ), ५१२७३-३(#$) ३१ जीव बोल थोकडा, प्रा., गद्य, खे, गाई १ जाय २ काय), ५०५६१-१(ख) (२) ३१ जीव बोल थोकडा - बालावबोध, मा.गु., गद्य, श्वे., (गति ४ नर्कगति), ५०५६१-१(+) ३२ असझाय गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, भूपू (उक्कावाए दिसावाहे), ५०२२९-१, ५०५७७-२ (२) ३२ असज्झाय गाथा - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (उका० तारा तुटै ते), ५०२२९-१, ५०५७७-२ ३५ जिनवचनातिशय नाम, सं., गद्य, म्पू, (संस्कारवत्वर मौदात्य२) ४९८८०-३ For Private and Personal Use Only ४७७ Page #495 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१२ ३६ बोल संग्रह, प्रा.,मा.गु., गा. ३६, गद्य, मूपू., (एगविहे असंयमे एगे), ५०३४९(१) ४२ भाषाभेद गाथा, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (जणवय सम्मय ठवणा नामे), ५०५७७-३, ५१५५८ (२) ४२ भाषाभेद गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (कइ विहाणं भासा), ५०५७७-३ (२) ४२ भाषाभेद गाथा-टबार्थ, रा., गद्य, मूपू., (क कतरी कारइत्त), ५१५५८ ६४ योगिनी स्तोत्र, मु. धर्मनंदन, प्रा., गा. १५, पद्य, मूपू., (जगमज्झिवासिणीण), ५०४२२-१ ६४ योगिनी स्तोत्र, सं., श्लो. ११, पद्य, वै., (ॐ दिव्ययोगी महायोगी), ५०४२२-२ ७२ कला नाम-पुरुष, प्रा., गद्य, श्वे., (तंजहा लेहं१ गणिय२), ४९०३५ (२) ७२ कला नाम-पुरुष-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (ते जिम छइ लखवानी कला), ४९०३५ ८४ आशातनासूत्र, प्रा., गद्य, मूपू., (काव्यखेल केलि कलिं), ४९५२२-३ ३६३ पाखंडी भेद, सं., को., श्वे., (अस्तिजीव: २०), ४९५९९-१ ३६३ पाखंडी भेद, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (एकसौ असी क्रियावादीन), ५१११३-७(+), ५१०२८ (२) ३६३ पाखंडी भेद-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (च० च्यार वा० वादी), ५१०२८ अंबिकादृष्टांत कथा, सं., गद्य, मूपू., (सोरठदेशमध्ये कोडीनार), ४८२०५-२ अंबिकादेवी स्तवन, आ. जिनेश्वरसूरि , सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (देवगंधर्वविद्याधरैर), ४८१७९-२ अंबिकादेवी स्तोत्र, शंकराचार्य, सं., श्लो. ६, पद्य, वै., (कनगोरी राज सूचिरुचंद), ५१९१६-८(#) अक्षयतृतीयापर्व व्याख्यान, प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (उसभस्स पारणणे इखुरसो), ४८६६५-४($) अक्षौहिणीसैन्य मान, सं., श्लो. १, पद्य, (दशलक्षदंति त्रिगुणां), ४८४९२-४(+), ५०२९१-४ अक्षौहिणीसैन्यमान प्रमाण संग्रह, प्रा.,सं., श्लो. २, पद्य, श्वे., (एकेभैकरथा अश्वाः पंच), ५१११३-८(+) अचित्त धान्य स्वरूप, प्रा., गा. १, पद्य, श्वे., (जवगोहूमाससाली वरिस), ४८३७५-४(+) अजितजिन स्तुति, पं. गुणविनय गणि, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (अजितेश जिताशते वराते), ५०८९५-५(+) अजितशांति स्तव , आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., गा. ४०, पद्य, मूपू., (अजियं जियसव्वभयं संत), ५१९१३(+#), ४९२७६, ४९७०१, ४९७२९, ४९७३०, ५००८०, ४९६८९(#), ५०९११(२) (२) अजितशांति स्तव-छंद संग्रह, संबद्ध, प्रा., गद्य, म्पू., (नेयामत्ताछंदे दुतिचउ), ४८५५३-१(+) (३) अजितशांति स्तव-छंद संग्रह की अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (तत्रद्विमात्रः कगणो), ४८५५३-१(+) (२) अजितशांति स्तवन, संबद्ध, उपा. मेरुनंदन, मा.गु., गा. ३२, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (मंगल कमलाकंद ए), ४८४९७-१(+), ५१६७७ अजितशांति स्तव (खरतरग.), आ. जिनदत्तसूरि, सं., श्लो. १५, पद्य, मूपू., (शक्रः सहस्रनयनोपि), ५१९२८(+) अजितशांति स्तवबृहत्-अंचलगच्छीय, आ. जयशेखरसूरि, सं., श्लो. १७, पद्य, मूपू., (सकलसुखनिवहदानाय सुर), ४८६४४(+$) अजितशांति स्तवलघु-अंचलगच्छीय, क. वीर गणि, प्रा., गा. ८, पद्य, मूपू., (गब्भ अवयार सोहम्मसुर), ४९०८३ (२) अजितशांति स्तवलघु (अंचलग.) की अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (गर्भावतारे सौधर्मसुर), ४९०८३ अजितशांति स्तुति, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (पणयजणजणिय सुहसिद्धि), ५०१७७-१(#) अढीद्वीप ३२ विजय जिन नाम, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (श्रीजयदेवनाथाय), ४९११४ ।। अतीतअनागतवर्तमान २४ जिननाम प्रशस्ति, सं., श्लो. ११२, पद्य, मूपू., (चतुर्विंशतयोतीता), ५१८४२-१ अध्यात्मबिंदुद्वात्रिंशिका, उपा. हर्षवर्द्धन, सं., द्वात. ४, श्लो. १२८, पद्य, मूपू., (ब्रूमः किमध्यात्ममहत), ५१७०१(+$) अध्यात्मस्वरूपाष्टक, उपा. रामविजय, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (प्रशमरसमयार्हद्विंब), ५१०५८-१(+) अनंतकल्याणकर स्तोत्र, मु.रूपसिंह, सं., श्लो.५, पद्य, श्वे., (अनंतकल्याणकर), ५१७८०(+), ५१६४१-१ अनंतजिन चैत्यवंदन, सं., श्लो. ३, पद्य, श्वे., (यस्य भव्यात्मनो दिव), ४८५६३-२ अनंतव्रत कथा, मु. ललितकीर्ति, सं., श्लो. ४५, पद्य, म्पू., (वंदे देवमनंताख्य),५१८९९(+) अनध्याय श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, वै., (अष्टमी गुरुहंती च), ४९८९८-२(+) अनशन आलापक, प्रा., गद्य, मूपू., (अहन्नं भंते तुम्हाणं), ४८३७५-१(+), ५०७७५-५ For Private and Personal Use Only Page #496 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ४७९ अनशन पच्चक्खाण सूत्र, प्रा., गद्य, मूपू., (भव सचरिमं पच्चक्खाइ), ४९१६६-२ अनशन विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (आराधनापताकापइन्ना), ४९८४६-१ अनानुपूर्वीयंत्र, सं., गद्य, मूपू., (पुव्वाणुपुव्विहिट्ठा), ४९६४८-४(#) अनिट्कारिका, सं., श्लो. ११, पद्य, (अनिट् स्वरांतो भवतीत), ५१९१०(+#) अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. ३३, ग्रं. १९२, प+ग., मूपू., (तेणं कालेणं० नवमस्स), ४९३३६(१), ४८९७५(६) (२) अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र-टीका , आ. अभयदेवसूरि , सं., वर्ग. ३, वि. १२वी, गद्य, मूपू., (अथानुत्तरौपपातिकदशा), ४९३३६(#), ५००१९(#$) अनुयोगद्वारसूत्र , आ. आर्यरक्षितसूरि, प्रा., प्रक. ३८, प+ग., मूपू., (नाणं पंचविह), प्रतहीन. (२) अनुयोगद्वारसूत्र-हिस्सा संख्याभेद विचार, आ. आर्यरक्षितसूरि, प्रा., प+ग., मूपू., (से किं तंगणणसंखा एक), ५०२२४ (३) अनुयोगद्वारसूत्र-संख्याभेद विचार, मु. पार्श्वचंद्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (हिवं गण संख्याना), ५०२२४ अनुयोग विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (मुहपत्ती पडिलेही), ४९२६७-२ अनुयोग विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (वसतिशोधन प्रमार्जन), ४९३५८ अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. ३२, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (अनंतविज्ञानमतीत), ४९५९८(+), ५०९०४(+), ५१३८८ अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., कां. ६, ग्रं. १४५२, वि. १३वी, पद्य, म्पू., (प्रणिपत्यार्हतः), ४९४२५(+#S), ४९३३८#) (२) अभिधानचिंतामणि नाममाला-शिलोंछ, संबद्ध, आ. जिनदेवसूरि, सं., कां. ६, श्लो. १३९, वि. १४३३, पद्य, मूपू., (अहँ बीज ___नमस्कृत्य), ४९९४४(+$), ४८९७० अभिनंदनजिन स्तोत्र, मु. विजयसेनसूरि-शिष्य, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (इंद्रोपेंद्रशुकेभभेक), ४९२९४-१ अमरसेनवज्रसेन कथा, सं., गद्य, मूपू., (दानं सुपात्रे विशद), ४९२२०(१) अमृतफलदायी मंत्र-यंत्र विधि सहित, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (ॐ नमो अमृते अमृतो), ५०५८९-३ अरिष्टाध्याय, प्रा.,सं., गा. २०२, पद्य, मूपू., (पणमंत सुरासुर), ५०७४९(+#) अरिहंतचेइआणं सूत्र, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (अरिहंत चेइआणं करेमि), ४९४५७-२(+#) (२) अरिहंतचेइआणं सूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (तीर्थंकरनी प्रतिमा), ४९४५७-२(+#) अर्बुदाचलस्थितप्रशस्तयः, सं., श्लो. ७५, प+ग., मूपू., (वंदे सरस्वती देवीं), ४९५४८-१ अर्हन्नामसहस्र समुच्चय, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., प्रका. १०, वि. १२वी-१३वी, पद्य, म्पू., (अर्हन्नामापि कर्ण), ४९०३२(+), ५१८४२-२,५१९३४(#) अशुभ योग, सं., श्लो. १५, पद्य, वै., (हस्तोत्तरा त्रयंमूल), ५०३५९-१(१) अष्टाध्यायी, ऋ. पाणिनि, सं., अ. ८, गद्य, वै., (अइउण् कलुक् एओङ), प्रतहीन. (२) लघुसिद्धांतकौमुदी, वरदराज दीक्षित, सं., ग्रं. १५००, वि. १५५०, गद्य, वै., (नत्वा सरस्वती देवीं), ५०५५६-१(६) अष्टापदतीर्थ स्तुत्यष्टक, सं., श्लो. ८, पद्य, श्वे., (अष्टापदाद्रौ भरतेश), ४९१७०-१ अष्टोत्तरीस्नात्र विधि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (ते माहिली शांतिकविध), ४९४७६-३(+#), ५१८८२, ५१६४४-१(2) असज्झाय विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (महिया जाव पडंति), ४८३६७-२($) आगम योगोद्वहन आलापक, प्रा., गद्य, श्वे., (अहन्नं भंते तुम्हाणं), ५०८८८-२(+) आगम वाचनालेखन पाठन विधि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (गुरुणा रजोहरणो), ५०७७४(#$) आगमिकपाठ संग्रह, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (कप्पइ निग्गंथाण वा),५०२६५-३-#) आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्य. २५, ग्रं. २६४४, प+ग., मूपू., (सुयं मे आउसं० इहमेगे), ४९५८६-२ (२) आचारांगसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीजिनाधीश), ४९००५ आचारांगसूत्र योगविधि, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (अध्ययन १ श्रीआचारांग), ५०२४१-४(+) For Private and Personal Use Only Page #497 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४८० www.kobatirth.org आचारोपदेश, उपा. चारित्रसुंदर, सं. वर्ग. ६, श्लो. २४६, वि. १५वी, पद्य, म्पू, (चिदानंदस्वरूपाय), प्रतहीन. , (२) अष्टप्रकारीपूजा काव्य, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (तीर्थोदकैर्धुतमलैरमल), ५०१०५ आदिजिन चैत्यवंदन, सं., श्लो. ८, पद्य, भूपू " (जयादिनाथ प्रतितर्थसर) ५२०१४-११ (वंदे देवाधिदेवं तं). ४८६६१-४(क) आदिजिन नमस्कार, सं., श्लो. ३, पद्य, भूपू आदिजिन महिम्न स्तोत्र, आ. रत्नशेखरसूरि, सं. लो. ३८, वि. १५वी, पद्य, म्पू (महिम्नः पारं ते परम), ४९४७८ "" कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१२ आदिजिन स्तव, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा. गा. ११, पद्य, मूपू (नवगमभंगपहाणा विराहिआ), ५०४४९-१ (+), ५०६४८, ५१३४७ " " आदिजिन स्तव, आ. पुण्यरत्नसूरि सं., श्लो. ३३, पद्य, भूपू (अष्टापदरुचिमष्टापद), ४८८१४(+) (२) आदिजिन स्तव - अवचूरि, ग. सत्यराज, सं., गद्य, मूपू., (अष्टा० अष्टापदं), ४८८१४(+) आदिजिन स्तव -कुल्पाकपुरमंडन, मु. जिनकीर्त्ति, सं., श्लो. २५, पद्य, मूपू., (जिनं कुल्यपाकावनीतार), ५१२१६(#) आदिजिन स्तवन, आ, जिन्राजसूरि सं . २६, वि. १६७२, पद्य, मूपु (सकलशैवशिव प्रविधायक), ४९५७१ , " आदिजिन स्तवन, मु. देवगुप्त, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (भविक जाने वंदितं), ४९०५५-२(#) आदिजिन स्तवन, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (भत्तिभरनमिरसुरिंदविं), ४९१०६-२ आदिजिन स्तवन-शत्रुंजयतीर्थमंडन, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., श्लो. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (आदिजिनं वंदे गुणसदनं), Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५११९७-२+४) (२) आदिजिन स्तवन - शत्रुंजयतीर्थमंडन - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., ( अहं आदिजिनं वंदे हु), ५११९७-२ (+#) आदिजिन स्तवन- शत्रुंजयमंडन, मु. मंडन, सं., श्लो. ६, पद्य, मृपू., (मानव वंछित दायकं सकल), ५१३४८-१ आदिजिन स्तव -षड्भाषामय, आ. जिनप्रभसूरि, अप. पै., प्रा., माग. शौ., सं., श्लो. ४०, पद्य, मूपू., (निरवधिरुचिरज्ञानं), ४९५७२ (+#), ५००७७-१(+४) " י: (२) आदिजिन स्तव - भाषामय-अवचूरि, पं. मतिविजय, सं., गद्य, म्पू, (१ज्ञानातिशयः (राग), ५००७७-१(००) (२) आदिजिन स्तव भाषामय-अवधूरि, मु. शुभतिलक, सं., गद्य, म्पू., (-), ४९५७२(+०) आदिजिन स्तुति, मु. पचनंदि, सं., श्लो. १५, पद्य, दि. ? (यस्य प्रसादवशतो वृषभ), ५०१६६-२(*) आदिजिन स्तुति, मु. विजयप्रभ, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (कल्याणकोटिजननी जननी), ५१३८६-७(+#) आदिजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, भूपू. (आनंदानम्रकम्नत्रिदशा), ५११७५-३(१) आदिजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, म्पू. (ऋषभनाथ भनाधनिभानन), ५१२८१-१शक आदिजिन स्तुति, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., ( जय जय जगदानंदन जय), ४९४६६-१(#) आदिजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, म्पू (युगादिपुरुषेंद्राय), ४८६८२-२(+), ५१०७९-४/+), ४९६३३-७, ५०८८९-२(१), ५०९१६-२०१ आदिजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (श्रियं दिशतु वो देवः), ५०४४९-२ (+) आदिजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, भूपू (सुवर्णवर्ण गजराज). ४८६६१-५(का + आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमंडन, प्रा. गा. ४, पद्य, मूपू (वरमुक्तिवहार सुतार), ५१०७९-२(५), ४९६७९-६ आदिजिन स्तुति चतुर्थी तिथि, सं., लो. ४, पद्य, भूपू (उद्यत्सारं शोभागार), ५१०९५-२ आदिजिन स्तुति-शत्रुंजयमंडन, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (शैले शत्रुंजयाख्ये), ५११७५-४(#) आदिजिन स्तोत्र, आ. धनेश्वरसूरि सं. लो. १७ पद्य, म्पू.. (काहं बुद्धिधनेः), ४९३५७-१ " आदिजिन स्तोत्र - शत्रुंजयतीर्थ, सं., श्लो. १०, पद्य, भूपू (पूर्णानंदमयं महोदयमव), ४८७५३-३ आदिजिन स्तोत्र - सारसोपारक, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (जयानंदलक्ष्मीलसद्वल), ५१९७३- ४(+$), ५०९८३(#) आदित्य स्तोत्र, सं., श्लो. ४, पद्य, वै., (आदित्यः प्रथमं नाम), ५०३८७-१ (+#) आधाकर्मी ४७ आहारदोष गाथा, प्रा., गा. ६, पद्य, भूपू (आहाकम्मु १ देसिय २) ५०५७७-१ (२) आधाकर्मी ४७ आहारदोष गाथा -टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (यतिने काजे रांधीने), ५०५७७-१ आयुष्य विचार, अप., गा. ५, पद्य, मूपू., (मणुआण वीसोत्तरसयं), ४९३६३-१(+) (२) आयुष्य विचार -टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (मनुष्य १२० वर्ष आयु), ४९३६३-१(+) For Private and Personal Use Only Page #498 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ आराधक-विराधक भांगा, प्रा., गद्य, श्वे., (नोजाणै नवि आदरै नो), ४८५८२-३(+#) आलोचना विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., श्वे., (एगिदियाणंज कहवी), ५१८२८(#) आलोचनासूत्र-देवसिसिप्रतिक्रमणगत, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (इच्छाकारेण संदेसह), ५०५३३(-) आलोयण रथ, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (आलोयण वय मणे मणस), ५०४३१-२($) आलोयणा आराधना, प्रा.,मा.गु., प+ग., म्पू., (एगेंदियाण जं कहवी), ४९३१७(#) आलोयणा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (प्रथम मुहूर्त), ५००६१(१) आवश्यकसूत्र, प्रा., अध्य. ६, सू. १०५, प+ग., मूपू., (णमो अरहताण० सव्व), प्रतहीन. (२) आयरियउवज्झायसूत्र-प्रतिक्रमणसूत्रगत, हिस्सा, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (आयरिय उवज्झाय सीसे), ५११३४-३($) (२) आवश्यकसूत्र-हिस्सा वंदनकअध्ययन, प्रा., सू. ०१, गद्य, मूपू., (इच्छामि खमासमणो वंदि), ५१३१२-४ (२) शक्रस्तव, हिस्सा, प्रा., गा. १०, पद्य, मूपू., (नमुत्थुणं अरिहंताणं), ४९४५७-१(+#), ४८४३४ (३) शक्रस्तव-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (नमोत्थुणं नमो), ४८८९०-१ (३) शक्रस्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार हो अरिहंतने), ४९४५७-१(+#) (२) सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (सकलकुशलवल्ली), ४९६३६-१ (३) सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदन-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत भगवंत), ४९८७८-२(+#) (३) सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अल्त भगवंत अशरण), ४९६३६-१ (२) १९ कायोत्सर्ग दोष विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (घोडानी परि एकई पगि), ५१४९०-१० (२) आवश्यकसूत्र-देशावगासिक विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (निरारंभ रहीइ जिम), ५१५००-१ (२) आवश्यकसूत्र-षडावश्यकसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, मूपू., (नमो अरिहताणं नमो), प्रतहीन. (३) षडावश्यकसूत्र गहुंली, संबद्ध, मु. मुक्ति, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (अहो मुनि चारित्रमा), ५२००९-१ (२) इरियावही सज्झाय, संबद्ध, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (इरियावही पडिक्कमशं), ४९३६०-१,५१७४९ (२) इरियावही सज्झाय, संबद्ध, मु. मेरुविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (सकल कुशलदायक अरिहंत), ५०२५०-१(2) (२) कल्लाणकंद स्तुति, संबद्ध, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (कल्लाणकंदं पढम), ४८७६१-३, ४९०४३-२,५०६१०-२,५१३०८-२(#), ५२०३५-३(#), ५१०१३-१(-) (२) गुरुवंदनसूत्र-श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा., गद्य, मूपू., (इच्छा० संदि० अब्भु), प्रतहीन. (३) गुरुवंदनसूत्र-टीका, आ. यशोदेवसूरि, सं., वि. ११८०, गद्य, मूपू., (सांप्रतं शेषप्रतिक्र), ५१४७३-२ (२) गुरुस्थापना सूत्र, संबद्ध, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (पचिदिय संवरणो तह), ४८२७०-६ (२) जगचिंतामणि सूत्र, संबद्ध, आ. गौतमस्वामी गणधर, प्रा., गा. ७, प+ग., मूपू., (जगचिंतामणी जगनाह), ४८४५७-३(+), ५१३७४(#) (२) दिवसगत प्रतिक्रमण गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (जिणमुणिवंदण अइयार), ५०२४९-४(#) (२) देवसिराईप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-अंचलगच्छीय, संबद्ध, गु.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं० पढम), प्रतहीन. (३) श्रावकलघुअतिचार-अंचलगच्छीय, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (इच्छा० भगवन्० अरिहंत), ४८४६२ (२) पंचप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताण), प्रतहीन. (३) पंचप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय की व्याख्या, मा.गु., गद्य, मूपू., (पडिकमणु ते केहनइ कही), ५१४९०-११ (३) पंचप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय का संक्षिप्त अर्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (करेमिभंते सामायक), ५१४९०-१२ (३) पौषध प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (करेमि भंते पोसह), ४९४३७-२(#) (३) मन्हजिणाणं सज्झाय-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (मन्हजिणाणं आणं मिच्छ), ४८८५२-२(+), ५०९७२-२(+), ४८४९५, ५०६१०-१ (२) पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीतप आलापक, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (इच्छाकारेण संदिसह), ५०३२७-१(#), ५०५१७-३(#), ५१२७९-३(#) For Private and Personal Use Only Page #499 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१२ (२) पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (मुहपत्तिवंदणयं), ४८६५४-१(+), ४९००१-१(+), ५०२४९-५(३), ५०६००-२(#), ५१६९२(#) (३) पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम देवसी पडिकमणो), ४८६५४-१(+), ५१६९२(#) (३) क्षुद्रोपद्रवनिवारण स्तुति, संबद्ध, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (सर्वे यक्षांबिकाद्या), ५११५१ (३) छींक विचार, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (पाखी पडिकमणा करता), ४९८५३-२,५०३७७-३ (२) पौषध विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम इरियावही पडिक), ४९१०४(+), ४८३७८-१, ४८९७४ (२) पौषधविधि-अष्टप्रहरी, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (रात्रि पिछली घडी २), ५१३३८-२(#) (२) पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, म्पू., (इरियावहि चार नवकारनो), ४८२७०-२ (२) पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (खमासमण देइने इरिया), ४९७५१ (२) प्रतिक्रमण विधि , संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, भूपू., (श्रीप्रवचनसारोद्धार), ५११४१-२(#), ५१३३८-१(#) (२) प्रतिक्रमणविधि संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (देवसिय आलोइय पडिक्क), ५१००८-१(+), ४८२७०-१, ५१७१७, ५१८५०, ४९९४१-१(#S), ५०२५९(२), ५०५१७-२(#), ५१५८७(-) । (२) प्रतिक्रमण सज्झाय, संबद्ध, मु. धर्मसिंह मुनि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (कर पडिकमणुंभावशु), ४८९६३-७(+), ५०३६८-२(#) (२) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह , संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहताणं नमो), ४८३१७-१ (२) प्रतिलेखनकालमान गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. २२, पद्य, मूपू., (आसाढे मासे दुप्पया), ४८६३८-२ (२) प्रतिलेखनबोल गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुतत्थतत्थदिट्ठी), ४९९३२-१(+#), ५१०९९-१(+#), ५१४५२(+#), ___ ५०९४१ (#) (३) प्रतिलेखनबोल गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिली पडिलेहणानु), ५१०९९-१(+#), ५१४५२(+#), ५०९४१(#) (३) प्रतिलेखनबोल गाथा छाया, सं., गद्य, मूपू., (सूत्रार्थ तत्त्व), ४९९३२-१(+#) (२) प्रतिलेखन विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (इरियावही पडिकमी), ४९९३२-२(+#), ४८२७०-३ (२) प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, मूपू., (उग्गए सूरे नमुक्कार), ४९९१६-२(+), ५१४३६-१(+), ५१९०२(+#), ४९४१६-१, ___४९५५२-२, ४९७५८, ५००४८, ५०१९२-२, ५०४१४-२, ५०५९२-१,५०६११-१, ५०८२९-२, ५१९२२, ४९९६३(#), ५०४७९(#), ५०७०५-१(#), ५०९८९(#), ५१२२१(#), ५१९४८-१(#) (२) महावीरजिन स्तुति, संबद्ध, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (विशाललोचनदल), ४९३३०-२(+), ५१२१५-२(+#$) (३) महावीरजिन स्तुति-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (वीरजिणंदस्य मुखपद्म), ४९३३०-२(+), ५१२१५-२(+#) (२) मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन के ५० बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (तत्त्वदृष्टि सम्यक्त), ४८७६०, ४८८५१-१, ५०८७६-१, ५०९९३-३ (२) मुखवस्त्रिका प्रतिलेखन गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (दिट्ठपडिलेह एगा नव), ४९५९५-१(#) (२) मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन सज्झाय, संबद्ध, मु. दयाकुशल, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (जिन वचन सदा अणुसरी), ५०२५०-३(2) (२) राईप्रतिक्रमणनिरूपक गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (इरियाकुसुमिणुस्सग्गो), ५०२४९-३(#) (२) राईप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो), प्रतहीन. (३) भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., गा. १३, पद्य, मूपू., (भरहेसर बाहुबली अभय), ४८८८६-१(+), ४९५८७-१(+#), ४८५८७, ५०४९१,५०६६७,५०८२७-१,५०९२९, ५१६७५, ४९७४४(#), ५०२६२(2) । (४) भरहेसर सज्झाय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (दानविषये श्रीभरत), ४९५८७-१(+#S) (२) लघुप्रतिक्रमणविधि-संध्याकालीन, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम इरियावही पडिक), ४८६००-२(#), ५१२९९-२(#) (२) वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., गा. ५०, पद्य, मूपू., (वंदित्तु सव्वसिद्धे), ४८३५२(+$), ४८४५७-१(+), ४९२६०(+), ४८३१७-२, ४९१४५, ४९३८१, ४९३९५, ५११३४-१, ५१७०६, ४८४४०(#), ५१८२९(#) (३) वंदित्तुसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (वंदितु क० वांदीने), ४९२६०(+) (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (णमो अरिहंताणं णमो), प्रतहीन. (३) पौषध सज्झाय-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., गा. ३३, पद्य, मूपू., (जगचूडामणिभूओ उसभो), ४९६७९-२ (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह (श्वे.मू.पू.), संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (नमो अरिहं० सव्वसाहूण), ४९२८६-२, ५१२९९-१(#) For Private and Personal Use Only Page #500 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ४८३ (३) पंचाचार अतिचार गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. ८, पद्य, मूपू., (नाणम्मि दंसणम्मिअ), प्रतहीन. (४) अतिचारकाउसग्ग गाथा-टीका, सं., गद्य, मूपू., (सयणा सण अस्या व्याख), ५१२१७-२(#) (३) श्रावक देवसिकआलोयणासूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, गु., पद्य, मूपू., (सातलाख पृथ्वीकाय), ५१४३७-२, ५०६७०-२(2), ५१०११-३(#) (३) श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (नाणमि दसणमि०), ४८२०४(+), ४८९७६(५), ५१६८९(+), ४९२८६-१,५०४०६ (२) श्रावकसंक्षिप्त अतिचार*, संबद्ध, मा.गु., प+ग., मूपू., (पण संलेहणा पनरस), ५०८३६ (३) श्रावकसंक्षिप्त अतिचार* -टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (चारित्राचार८ तप), ५०८३६ (२) संसारदावानल स्तुति, संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा.,सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (संसारदावानलदाहनीर), ५०९२१-१(+#), ५०९९६-२(+#), ५१०१३-२(-) । (३) संसारदावानल स्तुति-टीका, ग. साधुसोम, सं., गद्य, म्पू., (श्रीवीरं नमामि प्रणम), ५०९२१-१(+#) (२) साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो), ४९७५६(+), ५०४१२-२(+), ४८६६५-१, ४९२८७-१, ५०६७०-१(#), ५१२१७-१(#) (३) साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (अंतः प्रतिक्रमणं), ५१२१७-१(#) (३) साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमो अरिहंताण० हिवे), ४९७५६(+) (२) साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो), प्रतहीन. (३) क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., आला. ४, गद्य, मूपू., (इच्छामि खमासमणो पियं), ४८६५४-२(+), ४८३७८-२, ४९३१४, ५११०६, ५११३४-२, ५१३१२-२, ५०७७१(#) (३) पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., सू. २१, गद्य, मूपू., (करेमि भंते० चत्तारि०), ५०१६२(+), ५१८८८(+), ५२०१६(+#), ४९१५४, ४९३१५-१, ४९५४६-१, ४९९९६, ५०५०१, ५१३१२-१, ४९३४२(#) (४) पगामसज्झायसूत्र-अर्थनिर्णयकौमुदी टीका, आ. जिनप्रभसूरि, सं., वि. १३६४, गद्य, मूपू., (नत्वा श्रीवीरजिन), ४९३४२(#) (४) पगामसज्झायसूत्र-लघुटीका, आ. तिलकाचार्य, सं., ग्रं. २९६, गद्य, मूपू., (श्रीवीरजिनाधिपति), ४९१५४ (४) पगाम सज्झायसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (निवर्तवा वांछुउ प्रक), ५०१६२(+$) (३) प्रतिक्रमण अष्टप्रकार गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (पडिक्कमणा परियरणा), ४८८५० (४) प्रतिक्रमण अष्टप्रकार गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (पडिकमणा उपरि राजाना), ४८८५० (३) साधुअतिचारचिंतवन गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (सयणासणन्नपाणे), ४९३३०-३(+), ५१३५०-२(+), ५१३८५-३(+), ४९७८१-२, ५०३७७-१,५०२४९-१(#) (४) साधुअतिचारचिंतवन गाथा-टीका, सं., गद्य, स्पू., (शयनीयं संस्तारकादि १), ४९३३०-३(+) (४) साधुअतिचारचिंतवन गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (सयणा क० सोवाना संथार), ५१३८५-३(+) (४) साधुअतिचारचिंतवन गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (शयन क० शय्या), ५१३५०-२(+), ५०३७७-१ (३) साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (नाणम्मि दंसणम्मि०), ४८२११(+), ४८५६७-१, ४९१५०, ४९७०५, ४९७८१-१, ५०२५१, ४८४२५(#), ५१२७९-१(#), ५१८२६(#), ५१९४६-१(#), ५१९४७(#), ५१९६१(#) (३) साधुराईप्रतिक्रमण अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (संथारा उवट्टणकि परिय), ४८६६५-२, ४९२८७-२ (२) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो), प्रतहीन. (३) पार्श्वजिन चैत्यवंदन, हिस्सा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (चउक्कसायपडिमलुल्लरण), ५१३५०-४(+) । (४) पार्श्वजिन चैत्यवंदन-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (भुवनत्रयस्वामी पार्श), ५१२१५-३(+#), ५१२१७-३(#) (४) पार्श्वजिन चैत्यवंदन-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (च्यारि जे कषायरूपजे),५१३५०-४(+) (२) सामायिक पारने की विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम खमासमण देई), ५१००८-२(+),५१०५३-१(+#) आवश्यकसूत्र योगविधि, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (आवस्सगम्मि एगो सुय), ५०२४१-१(+) आशीर्वचन, सं., श्लो. १०, पद्य, श्वे., (भाले भाग्यकला मुखे), ५०६२२-२(+$) आहार के ९६ दोष, प्रा., गद्य, मूपू., (आहाकम्मे१ उद्देसिकर), ५२०२०(+#) For Private and Personal Use Only Page #501 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४८४ " (२) आहार के ९६ दोष -टबार्थ, मा.गु., गद्य, मृपू, (आ० आधाकरमी आहा), ५२०२० (०) आहार पच्चक्खाण फल, प्रा. गा. १७, पद्य, मूपू., ( नमुबाई दसमेहि मुणि), ४९५४९-१ आहारादिमान गाथा भरतादिक्षेत्रे, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू (बत्तीसं कवलाहारो), ४९८९१-२ (०) ५११९८-३ (२) महाविदेहक्षेत्रे आहारमानादि गाधा टीका, सं., गद्य, भूपू (इह विदेहेषु च ४९८९१-२(*) (२) आहारादिमान गाथा - भरतादिक्षेत्रे -टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (बत्तीस के० भरतक्षेत्), ५११९८-३ आह्वान विसर्जन मंत्र, सं., श्लो. २, पद्य, मूपू. (आवाहनं न जानामि न), ५०२३७-४ " इंद्रजाल विद्या, मा.गु., सं., गद्य, वै., (जलस्थंभ लिखीत्वा), ५१२१०-२(३) , इंद्रियवाद स्थल, सं., गद्य, मूपू., (इंद्रियत्वं जातिर्वा), ५१४३१(+#) " इरियावही कुलक, प्रा. गा. १०, पद्म, भूपू (चउदस पय अडचत्ता तिगह), ४९३५३(+), ५१११३-३(५) (२) इरियावही कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (चउद भेद नारकीना), ४९३५३(+) इरीयावही कुलक, प्रा., गा. १२, पद्य, श्वे. (पणमीअ सिरिवीरजिणं), ४९४६०-१ ईर्यापथिकी कुलक, प्रा. गा. १२, पद्य, भूपू (पणमिअ सिरिवीरजिण), ४९३६७(+) (२) ईर्ष्यापथिकी कुलक-टवार्थ, मा.गु, गद्य, मूपू (प्रणमिय कहतां प्रणाम), ४९३६७(*) ईयापथिकीभंग गाथा, प्रा. गा. १, पद्य, म्पू, (चउदससय अडचत्ता तिसय), ४९६४८-२(१) " कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१२ (२) ईर्यापथिकी गाथा -टीका, सं., गद्य, मूप, (पर्याप्तामा ४९६४८-२शन उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., अध्य. ३६, ग्रं. २०००, प+ग. म्पू. (संजोगाविप्यमुक्कस्स), ४९०७६ (+), ४८३२५ (२) उत्तराध्ययनसूत्र-वार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू (प्रणम्य श्रीमहावीर), ४९०७६ (+४) יי Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) उत्तराध्ययनसूत्र एवार्थ+कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू (वर्द्धमानजिनं नत्वा० ), ४९०७६ (०६) (२) उत्तराध्ययनसूत्र - अध्ययन ९ हिस्सा, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा. गा. ६२, पद्य, म्पू. (चइऊण देवलोगाओ उवयन्न), ५१०७७(+), % ५१०८१-१ (३) उत्तराध्ययनसूत्र - अध्ययन ९ का आधारित, सं., गद्य, म्पू, (मालव मंडल मंडन ), ४९४९५ (२) उत्तराध्ययनसूत्र - हिस्सा अध्ययन ३ चतुरंगिकाध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. गा. २०, पद्य, भूपू., (चत्तारि परमंगाणी), ४८५०९, ४८५९९(#) (३) उत्तराध्ययनसूत्र - हिस्सा अध्ययन ३ चतुरंगिकाध्ययन का टवार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू (चत्तारि च्यारि परमाग), ४८५९९(# ) (२) उत्तराध्ययनसूत्र - हिस्सा विणयसुयं प्रथम अध्ययन, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा. गा. ४८, पद्य, मूपू (संजोगा विप्यमुक्कस्स), ५१९७४-२६) (३) उत्तराध्ययनसूत्र - हिस्सा विणयसुयं प्रथमअध्ययन - बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (उत्तर प्रधान जे), ५१९७४-२ ($) (२) ब्रह्मचर्यसमाधि, हिस्सा, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, मूपू., (सुअं मे आउसं तेणं), ४९०८७ + (२) उत्तराध्ययन सूत्र चयनितगाथा संग्रह, प्रा., गा. ३८, पद्य, मूपू (संजोगाविष्यमुकस्स), ४९७१४ उत्तराध्ययनसूत्र योगविधि, प्रा. सं., गद्य, भूपू (सुत्ते अत्थे भोयणकाल), ५०२४१-३(०) उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., गा. ५४४, पद्य, भूपू (नमिऊण जिणवरिंदे इंद), प्रतहीन. . (२) उपदेशमाला - अनशन गाथाक्रम, संबद्ध, प्रा., पद्य, भूपू (-), ५२०२७-२ (२) उपदेशमाला गाथा शकुन, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (सच्वं भासह अरिहा), ४९६५२, ५२०२७-३ For Private and Personal Use Only (२) उपदेशमाला -उत्कृष्ट मध्यम गाथा व अक्षरसंख्या यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (--), ५२०२७-१ उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि प्रा. गा. २६, पद्य, मूपू (उवएसरयणकोसं नासिअ), ४८३७५-२(+), ५१८६५ (०), ५०६२६, ५०९७९, ४८७७२-१(१), ५००२८-१(०) ५१५०९(१ (२) उपदेशरत्नमाला चालावबोध, मा.गु., गद्य, म्पू, (श्रीमहावीर चडवीसमुं), ५१५०९ (२) उपदेशरत्नमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., ( उपदेशरूप रतन तेहनो), ५०६२६, ५०९७९ उपदेश रसाल, सं., अ. ५२, गद्य, मूपू (एसो मंगलनिलओ भयविलओ), ४८६६८-२(३) उपधानतप मालारोपणोपदेश, सं., श्लो. १७, पद्य, मृपू., (यस्याः स्यात् फलममृत), ४८१७६ Page #502 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८५ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ उपधानतप विधि, सं.,प्रा., गद्य, मूपू., (तत्र प्रथमोपधान प्रे), ५१०३३(+) उपधानतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (पहिलं नवकारर्नु), ५०७७५-१ उपधानतपविधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (प्रथम शुभदिवसे पोषध), ४९०८४(+), ४९३३४(+#), ५०८६३(+), ५१३८२-१(+) उपधानमालारोपण विधि, सं.,प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (शुभमुहूंते पूर्व), ५१३८२-२(+), ५०७७५-४ उपधानादि विधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (पहिलइ नउकारनइ उपधानइ), ४९३२९-११(+) उपस्थापना विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (खमासमण० मुहप० खमा०), ४९२६७-३ उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (उवसग्गहरं पासं पास), ५०३३५, ५०७३३-२, ५०७५५-२, ५०८७५-३ (२) उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (उपसर्गजे विघ्न तेहन), ५०३३५, ५०७३३-२ उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ९, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ९, पद्य, मूपू., (उवसग्गहरं पासं पासं०), ४९२१५, ४९८८३-१(#), ५१७०२(#) ऋण धन चक्र, सं., श्लो. ४, पद्य, (कोष्टात्येकादशान्येव), ५१९०९-१ (२) ऋण धन चक्र-टीका, सं., गद्य, (साध्यवर्णानस्वर), ५१९०९-१ ऋषभपंचाशिका, क. धनपाल, प्रा., गा. ५०, वि.११वी, पद्य, मूपू., (जयजंतुकप्पपायव चंदाय), ४९२०६(+), ४९२८८ (२) ऋषभपंचाशिका-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (अत्र जंतुशब्देन), ४९२८८ (२) ऋषभपंचाशिका-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (जयजंत्वित्यादि व्याख), ४९२०६(+) ऋषिदत्तासती कथा, सं., गद्य, म्पू., (शीलं नाम नृणां), ५०८५९(+) ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., श्लो. ९२, ग्रं. १५०, पद्य, मूपू., (आद्यंताक्षरसंलक्ष्य), ४९८६३-१(+#), ४९८७३(+), ५०३८३(+#), ४९११८, ४९७७७,५०४९२,५०५४३, ५१३३१,५०१५७(#) ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., श्लो. ६३, पद्य, मूपू., (आद्यताक्षरसंलक्ष्य), ५१०७०(+), ५११७६(+#), ५१२२०(+), ५०५८६ (२) ऋषिमंडल स्तोत्र-आम्नाय, संबद्ध, सं., गद्य, मूपू., (ॐ ह्रां हिँ हूं), ४९८६३-३(+#) ऋषिमंडल स्तोत्र-लघु, सं., श्लो. ३१, पद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं णमो अरिहंताण), ४९८६३-२(+#) एकाक्षर नाममाला, मु. सुधाकलश मुनि; आ. हिरण्याचार्य, सं., श्लो. ५०, पद्य, श्वे., (श्रीवर्धमानमानम्य), ५०८०८(+), ४९०३१ एकेंद्रियशरीरावगाहना विचार, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (द्वधा वनस्पतिः), ४९९७३-२(+) ओसवाल पोरवाल उत्पत्ति कवित, मा.गु.,सं., प+ग., श्वे., (वर्द्धमानजिन पछी वरस), ४९७८९-४(+) औपदेशिक गाथा, प्रा., गा. २८, पद्य, श्वे., (--), ४९१२४-१(+$) (२) औपदेशिक गाथा-(मार.)टबार्थ, म., गद्य, श्वे., (-), ४९१२४-१(+$) औपदेशिक दहा संग्रह, पुहिं.,प्रा.,मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (काम वली सवही पुरहे), ५१३८४-२(+#), ४८१९७-४, ५००२५-२, ४९८९५-४(२), ४९९००-२(#) औपदेशिक श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, म्पू., (क्रोध मान यथा लोभ), ४८६३४-५, ४९२४०-४(#) औपदेशिक श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (जिनेंद्रपूजा गुरु), ५१७०५-४(2) औपदेशिक श्लोक, सं., श्लो. ३, पद्य, श्वे., (दानं सुपात्रे विसद), ५१२८४-१ (२) औपदेशिक श्लोक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, श्वे., (अरिहंत भगवंत वीतराग), ५१२८४-१ औपदेशिक श्लोक संग्रह, ग. सौभाग्यसुंदर, सं., श्लो. २, पद्य, मूपू., (हं हो शंकः सुराचलः), ४९९३५-२(#) औपदेशिक श्लोक संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., श्लो. ६१, पद्य, श्वे., (धर्मे रागः श्रुतौ), ५१३२२-२(+), ५००१४-४, ५०४९०-४, __ ५१३५५-२, ४९८८१-३(#), ५०८३३-३(#), ५१३८१-४(#) औपदेशिक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., श्लो. २६९, पद्य, जै., वै., (महतामपि दानानां काले), ५१०१२-२,५१९६८-२,५१३७६-३(#) औपपातिकसूत्र, प्रा., सू. ४३, ग्रं. १६००, पद्य, मूपू., (तेणं कालेणं० चंपा०), प्रतहीन. (२) औपपातिकसूत्र-अंबडपरिव्राजक आलापक, हिस्सा, प्रा., गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं तेणं), ५०२९०(+$) For Private and Personal Use Only Page #503 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१२ (३) अंबडपरिव्राजक आलापक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अम्मडनामा परिव्राजक), ५०२९०(+$) औषध-यंत्र-मंत्रसंग्रह, मा.गु.,सं., गद्य, (--), ५०३६२-३(#) औषधवैद्यक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, (अनार दाणा टां.८०), ४८३९६-३(+#), ४९०२९-२(+), ५१००८-३(+), ४८३७७-३, ४८५१९-२, ४८८०४-३, ४८८११-३, ४९८१८-३, ४९८५०-३, ५०८९१-५, ४९४६६-५(#), ५०२०३-२(#), ५१३३७-५८) औषध संग्रह *, सं., गद्य, (--), ५१७९०-३ । औष्ट्रिकमतोत्सूत्रोद्घाटन कुलक, उपा. धर्मसागरगणि, प्रा., गा. १८, पद्य, मूपू., ते., (पणमिय वीरजिणदं सुरि), ५१७४४ (२) औष्ट्रिकमतोत्सूत्रोद्घाटन कुलक-अवचूरि, उपा. धर्मसागरगणि, सं., गद्य, मूपू., ते., (सुरेंद्रैः पूजितं पद), ५१७४४ कथा संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (हिवे छ आरानुं नाम), ४९२७७, ४९४९२-४(#) कमलश्रेष्ठिकथा, आ. राजशेखरसूरि मलधारी, सं., गद्य, म्पू., (अस्ति श्रीभारभासुरं), ४९३०७(+#) करकंडुमुनि सज्झाय, प्रा., गा. १३, पद्य, मूपू., (करकंडु कलिंगेसु), ५१७७२-२(#) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा.६०, वि. १३वी-१४वी, पद्य, मूपू., (सिरिवीरजिणं वंदिय), ५०१२२(+#), ४९३७१ कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ३४, वि. १३वी-१४वी, पद्य, भूपू., (तह थुणिमो वीरजिणं), ५१२८७(+#), ४९३१९, ५१८१९(६) (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध , मा.गु., गद्य, मूपू., (तिम श्रीमहावीर प्रति), ५१२८७(+#) (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (त्रिजगत् सृष्टिसंतान), ५१८१९() कलशप्रतिष्ठा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (प्रथम भूमिशुद्धिकरण), ४९९८४(१) कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., व्याख. ९, ग्रं. १२१६, गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं० समणे), ४८२६१(+$) (२) कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंतनइ माहरो), ४८२६१(+$) (२) कल्पसूत्र-व्याख्यान कथा *, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमः श्रीवर्द्धमानाय), ४९२७८-१(+) (२) कल्पसूत्र-हिस्सा १४ स्वप्न विचार, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., व्याख. ३, गद्य, मूपू., (इमेए आरसे सुभे सोमे), ४९९६९(#) (३) कल्पसूत्र-हिस्सा १४ स्वप्न विचार की अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (एतान् चतुर्दश महा), ४९९६९(2) (२) कल्पसूत्र-गौतम अष्टापद गमन कथा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीइंद्रभूतीगौतम), ५१९३०-१(+) (२) कल्पसूत्र-पीठिका, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अहँत भगवंत उत्पन्न), ४९१०९(१), ५०४०९(-) (२) कल्पसूत्र-महावीरजिन संवत्सरीदान कथा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (पुण्यरवी लोगं तीणहे), ५१९३०-२(+) (२) नवम व्याख्यान सज्झाय, संबद्ध, मु. माणेकविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (संवत्सरी दिन सांभलो), ५०३९२ (२) कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य, सं., गद्य, मूपू., (पुरिमचरिमाणकप्पो), ४९९४१-३(#) कल्पसूत्र व्याख्यान फलश्रुति, सं., गद्य, मूपू., (यद्रेणुर्विकलीकरोति), ४९९४१-२(#) कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., श्लो. ४४, वि. १वी, पद्य, मूपू., (कल्याणमंदिरमुदार), ४८६१२-२(+), ४८८५६(+#), ४९२११(+), ४९३३५(+#), ५२०२२(+#), ४८४५५, ४९०६०, ५१८१२-१, ४८९४० (#), ४९३२७-१(#), ५१४७५-२(#) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-सौभाग्यमंजरी टीका, सं., ग्रं. ३४६, गद्य, मूपू., (किलेति सत्ये एषः), ४९३३५(+#) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-बालावबोध, मु. उदयहर्ष, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम मंगलीक भणी), ४९८६९(#$) कल्याणसागरसूरि गुरु स्तुति, मु. कल्याणसागरसूरि-शिष्य, अप., गा. ११, पद्य, मूपू., (सयल सुहदायगं कुसलवर), ४९९०४-१ कवि चातुर्य, मा.गु.,सं., गा. ११, पद्य, श्वे., (नेहभर नयणे नरखे), ४८६६८-१ कविशिक्षा, श्राव. अरिसिंह , सं., प्रता. ४, वि. १३वी, पद्य, मूपू., (वाचं नत्वा महानंदकर), ४९२५८+) (२) कविशिक्षा-काव्यकल्पलतावृत्ति, य. अमरचंद्र, सं., ग्रं. ३३५७, वि. १३वी, गद्य, मूपू., (विमृश्य वाङ्मय), ४९२५८+) कस्तूरी प्रकरण, मु. हेमविजय, सं., श्लो. १८२, पद्य, म्पू., (कस्तुरीप्रकरः कृपाकम), ४८९५४(६) काकपींड विधि, मा.गु.,सं., श्लो. ९, प+ग., वै., (काकपींड प्रवक्षामि), ४९८५७-१(#) कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमंडनसूरि, प्रा., गा. २४, पद्य, मूपू., (जह तुह दसणरहिओ काय), ४८८९२-१(+#), ४९२७५(+), ५११०५(+), ४८३८५-२(६) For Private and Personal Use Only Page #504 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - १ (२) कायस्थिति प्रकरण - टीका, आ. कुलमंडनसूरि, सं., वि. १५वी, गद्य, मूपू., (वर्द्धमानं जिन), ४८८९२-१(+#), ५११०५(+) (२) कायस्थिति प्रकरण -टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (जिम ताहरे दर्शनइ), ४९२७५ (+) कारक विवरण, पं. अमरचंद्र पंडित, सं., का. ७२, पद्य, मूपू., (कारकाणि कर्ता कर्म), ५०२४३(+#) (२) कारक विवरण - टिप्पण, सं., गद्य, भूपू., (--), ५०२४३(००) कार्तिकश्रेष्ठि कथा, प्रा. सं., गद्य थे. (पृथिवीभूषण पूर्व), ४८८९०-३ " कालज्ञान, शंभूनाथ, सं., श्लो. २५५, पद्य, वै., (कालज्ञानं कलायुक्त), प्रतहीन. "" (२) कालज्ञानभाषा ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु, समु. ५, गा. १७७, वि. १७४१, पद्य, भूपू वै. (शकति शंभू संभूसुतन), ५१९१५ कालमांडला विधि, प्रा. मा.गु., गद्य, भूपू (प्रथम पाटलि पडिलेहि), ४८८४०, ४८८७० कालसप्ततिका, आ. धर्मघोषसूरि प्रा. गा. ७४, पद्य, मूपू. (देविंदणवं विजानंद), ४९०८१(+), ४९७२८(+) , , कुशलसूरि गुर्वष्टक, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (पद्मा कल्याणविद्या), ४८५२६-२(#) कुसुमांजलि श्लोक, प्रा., सं., गा. ९, पद्य, मूपू., (मुक्तालंकारसारसौम्यक), ५१९६७(#) केवलिभुक्तिनिषेध प्रकरण, सं., गद्य, मृपू., (झटिति प्रकटतीना), ५०२७९-२(+) खरतर तपागच्छ ३० उत्सूत्र बोल, मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (तपः यतयः उत्सूत्र), ४८६२३ गंगा तै दृष्टांत, सं., गद्य, श्वे. ?, (सत्यमेतत् यद्यूयं), ५०८४७ (#) गंगाष्टक स्तोत्र, क. देवेश्वर, सं., श्लो. ११, पद्य, वै.. (गंगा नंगारि संगासरि) ५१०१७/० " י: क्षमाकल्याण मुनि का पत्र शिवचंद्र मुनि के नाम, मु. क्षमाकल्याण, सं., वि. १८३५, गद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीमदनंत), ५१९८९ खंडित प्रतिमा फलकथन, सं., श्लो. ६, पद्य, वे (आरभ्येकांगुलं बिंब), ४९३०१-३(+) खरतरगच्छ पट्टावली, सं., गद्य, मूपू., (श्रीगौतमस्वामी), ४९४८४(+#), ५१७०८(#) खरतरगच्छ साधुगुण वर्णन श्लोक सं., श्लो. २, पद्य, श्वे. (खरतरांयती: खरमूर्तिक) ५१६२४-२(४) " ', Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) गंगाष्टक स्तोत्र टीका, आ. पार्श्वचंद्रसूरि सं., गद्य, भूपू वै., (सा गंगा नदी अद्याज), ५१०१७(५) गच्छाचार प्रकीर्णक, प्रा., गा. १३७, पद्य, मूपू., (नमिऊण महावीरं), ४९६९४($) (२) गिरनारतीर्थ कल्प-वार्थ, मा.गु., गद्य, मूपु (श्रीशत्रुंजयनो तीर्थ), ५०६३४ "" " " गणधर होरा, प्रा., श्लो. ३१, पद्य, वे (जीवाजीवाइ पएयत्थ), ४८८२४, ४८५०६(४) गणपति पूजन विधि, मा.गु. सं., गद्य, वै., (श्वेतार्क श्वेतचंदन), ५१३३६-२(४) गणफलाफल, सं., श्लो. ३, पद्य, श्वे. (मस्त्रि गुरु स्त्रि), ४८५५३- २ ( +$) गणिविद्या प्रकीर्णक, प्रा., गा. ८६, पद्य, भूपू (बुच्छं बलाबलविहिं), ५०५८८) गणेश स्तुति, मा.गु. सं., श्लो. ३, पद्य, वै., ( अभिप्सीरतं सिद्धिरित), ४८२८२-३ गणेशाष्टक, सं., श्लो. ९ प बै. (लंबोदरं परमसुंदरमेक), ४८२८२-१ "" गर्द भिल्ल राजा युद्ध प्रसंग, मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (तत्र केन प्रकारेण), ५०८७८ गांगेयभंग प्रकरण, मु. श्रीविजय, प्रा. गा. २५, पद्य, मूपू (वंदित्तु वद्धमाणं), ४९४४८(१) (२) गांगेयभंग प्रकरण -अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (वंदित्तु इति), ४९४४८ (+) गाथा संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, वै., (कज्जल विज्जल गुंद), ४९१२७-३, ५०३५७-१ गाथा संग्रह में, प्रा., पद्य, वे (सत्तइ रत्ता मतइ), ५०९९५-३(+०), ४९२२३-३, ४९९३१-३, ५०८९६-२, ५१३४५-३, ४९३१२-२(१) 3 "" ४८७ गाहारचणकोस, आ. जिनेश्वरसूरि, प्रा., वर्ग. ५८, गा. ८२२, प्रं. १०००, वि. १२५१, पद्य, मूपू. (पणमह पुरिसोत्तमनाहित) प्रतहीन. (२) गाहारयणकोस चयन जिनस्तुति, प्रा., गा. ६०, पद्य, मूपू., (पढमचिय पढमजिणस्स णमह), ४९३०४(+#) (३) गाहारयणकोस -चयन जिनस्तुति - टिप्पण, सं., गद्य, मूपू., ( प्रथम जिनस्य चरणकमल), ४९३०४(+#) गिरनारतीर्थ कल्प, मु. ब्रह्मेद्र सरस्वती, सं., श्लो. २३, पद्य, मूपू (श्रीविमलगिरेस्तीर्था), ५०६३४ " For Private and Personal Use Only गुणमालिनीनाम अध्यात्मोपनिषत्, मु. रक्तचंद्र शिष्य, प्रा. सं., प+ग, मूपू (गुणरत्नाकरं वंदे), ४९९६१ (+) गुणरत्नम् क, भवभूति, सं., श्लो. १२, पद्य, वै. सानंद नंदिहस्ताहतमु), ५१३३२-८(३) गुणस्थानक्रमारोह, आ. रत्नशेखरसूरि सं., श्लो. १३५, वि. १४४७, पद्य, म्पू, गुणस्थानक्रमारोहहत), ४९२२१-१(+) " Page #505 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४८८ www.kobatirth.org गुरुवंदनभाष्य, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ४१, पद्य, मूपू., (गुरुवंदनणमह तिविह), ४८१८३-१ गुरु स्तोत्र, सं., श्लो. ७, पद्य, वै., (वृहस्पतिमहं नौमि), ४८२७९-२(#) गोरी आलोअण गाथा, प्रा. गा. १, पद्य, भूपू (कालेणय गोअरिआ), ५०२४९- २(क) " गोचरी आलोयण गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (अहो जिणेहिं असावज्जा), ५१३५०-३ (+), ४८६६५-३, ४९९०९-४, ५०३७७-२ (२) गोचरी आलोअण गाथा -टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (मोटु आश्चर्य वीतरागे), ५१३५०-३(+), ५०३७७-२ गोचरी के ५३ दोष बोलगाथा, प्रा., गा. ५३, पद्य, मूपू., (उद्देसियर कीवगड२) ४९२२३-१ (२) गोचरी के ५३ दोष बोलगाथा - ( मागु.) अर्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (उद्देसि कहता विकल्प), ४९२२३-१ गोचरी दोष, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (अहाकम्मु १द्देसिअ २), ४८१९१-१, ४९९६०, ५१३७९-१ (२) गोधरी दोष चालावबोध, मा.गु., गद्य, म्पू, (आधाकर्मी ते कहीई), ४९९६० (२) गोचरी दोष -टवार्थ, मा.गु, गद्य, म्पू., (आ० आधाकरमी ते कहीह), ४८१९१-१, ५१३७९-१ गौतम कुलक, प्रा., गा. २०, पद्य, मूपू., (लुद्धा नरा अत्थपरा), ४८६०२ (+#), ४९०६१ (+), ४९५१७ (+), ४९७२१, ४९४९३(#), ५११४१-१०१, ५१८१३(१), ५१९४९(१) (२) गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (लोभीया मनुष्य अर्थनइ), ४८६०२ (+#), ४९०६१ (+), ४९५१७(+), ५११४१-१(#), ५१८१३(#), ५१९४९(#) (२) मम्मणश्रेष्ठ कथा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (लुद्धा नराः अर्थ), ५१०४७-२ (#) नमो भगवओ गोयमसामि), ४९८८९-४(+) गौतमगणधर बीज मंत्र, प्रा.सं., गद्य, भूपू (ॐ गौतमपृच्छा, प्रा. प्रश्न ४८ गा. ६४, पद्य, भूपू (नमिऊण तित्थना), ४८८९८ " " (नरिंद देविंद नमंसिअस), ५०८९० गौतमभाषित, प्रा., गा. ४२, पद्य, श्वे. गौतमस्वामि होरा, सं., श्रो, ५७, पद्य, चे, (नमस्कृत्य महावीरं), ४९९२८ (+) " गीतमस्वामी अष्टक, सं., श्लो. १०, पद्य, भूपू (श्रीइंद्रभूर्ति वसु, ४८१७४ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१२ गौतमस्वामी छंद, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, प्रा., मा.गु., सं., गा. १७, पद्य, जै., (सिरिवसुभुई पुत्तो), ५१२४६ (#), ५१६५६ (#) गौतमस्वामी स्तुति, क. कमलविजय, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (विजय परमागम देवता), ५१३८६-९(+०), ५०९१६-३(१ गीतमस्वामी स्तुति, आ. ज्ञानसूरि सं., श्लो. ४, पद्य, भूपू (श्रीइंद्रभूर्ति), ४८९६६-१२ गौतमस्वामी स्तुति, मा.गु., सं., गा. ६, पद्य, मूपू., (मंगलं भगवान वीरो), ४८४८६-१ गौतमस्वामी स्तोत्र, आ. देवानंदसूरि, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (इंद्रभूतिं वसुभूति), ५१७२७-१ (+), ४८२८२-२, ४८६८६-१, ४९३६५-१, ५०५८९-२, ५१७७२-१००० ग्रहदृष्टि श्लोक, सं., श्लो. २, पद्य, वै., (ज्ञार्केदु शुक्रात), ५०७९७-२(+) (२) ग्रहदृष्टि श्लोक -टबार्थ, मा.गु., गद्य, वै., (सूर्य चंद्र बुध शुक), ५०७९७-२ (+) ग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू (जगद्गुरुं नमस्कृत्य), ४९६०७-१(+), ५०९४३-६(+), ४९५०२-१, ४९५०३-१, ५०२००-१, ५१०४९-९, ५०४९६-२०१, ४९७२३-४३१ घंटाकर्ण मंत्र, सं., श्लो. ४, पद्य, भूपू (35 घंटाकर्णमहावीर), ४८२२५-१ घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, सं., श्लो. ४, पद्य, मूप. (ॐ घंटाकर्णो महावीरः), ४८४७९-४(+), ४९८७७-३(+), ५१२२६-१(+), चंद्रसूर्यमंडल विचार प्रकरण, आ. महेंद्रसिंहसूरि चक्रवर्ती विचार गाथा, प्रा. गा. ३, पद्य, भूपू (उसभा भरहो अजीए सगर), ५११९८-२ (२) चक्रवर्त्ति विचार -टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (आदिनाथनें वारे भरत), ५११९८-२ चक्रेश्वरीदेवी बीज मंत्र, सं., गद्य, म्पू., (ॐ च ह्रीं श्रीं ह्रीं), ४८७२१-२ ४८४७१-१, ४९३००-२, ५००६०-३, ५०८७५-२, ५१३३७-१(-) घंटाकर्ण महावीर पद्मावतीदेवी मंत्रजाप विधि, मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं श्रीं घंटा), ५१३३७-२ (-) चंद्रप्रभजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (ॐ चंद्रप्रभः), ४८६०८-१ (+), ४९९२३-१, ५००१४-२ ५०९१५-२, ५१९४२-४(#), ५१३३७-३) , י प्रा. गा. २४, पद्य, मूपू (इह दीवे दुन्नि रवी), ४९३८६-१ (+) For Private and Personal Use Only Page #506 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ४८९ चक्रेश्वरीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (श्रीचक्रे चक्रभीमे), ४८१७५, ४८३०७, ४८७२१-१, ४९४५०, ५०३०३, ५०६७८, ५०३९३(#), ५१३७२(#) चतु:शरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., गा. ६३, वि. ११वी, पद्य, मूपू., (सावजजोग विरई), ४९४८८(+), ४८६२९, ४९३३१, __४९४७७(#), ५१९६६(#), ४९८४७-१(६) चतुर्विंशतिजिन स्तुति, क. कमलविजय, सं., श्लो. २९, पद्य, मूपू., (जयतु वासववार विलासिन), ५१९४१(2) चतुर्विंशतिजिन स्तुति, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. ८, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (जिनर्षभ प्रीणितभव्य), ५०१२०(#), ५११९५-२(#) चतुर्विंशतिजिन स्तुति, आ. धर्मघोषसूरि , सं., श्लो. २८, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (जय वृषभजिनाभिष्ट्रयसे), ५१०४० चतुर्विंशतिजिन स्तुति, मु.सागरचंद्र, सं., श्लो. २५, पद्य, मूपू., (जगति जडिमभाजि व्यंजि), ४९०१७(+) चतुषष्ठिदेव्याष्टक स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, श्वे., (ईश्वरी विजया गौरी), ४८४६५-३ चर्पट वाक्य, मा.गु.,सं., श्लो. १८, पद्य, जै.?, (अभितोवलिभिर्भाल), ५०१९८-२(+) चलप्रतिमा मान श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (एकांगुल भवेत्), ४८८९५-४(+) चातुर्मास मध्य जिनपूजाफल गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (सो जयउ जेण विहीया), ४९५८२-३(+) चातुर्मासिक व्याख्यान, रा.,सं., पद्य, मूपू., (सामायिकावश्यकपौषधानि), ५०९५५(#$) चारित्रमनोरथमाला, आ. धनेश्वरसूरि, प्रा., गा. ३०, पद्य, मूपू., (केसिंच स उन्नाणं), ४८७७२-२(#) चैत्यवंदन संग्रह, प्रा.,मा.गु., गा. ३, पद्य, म्पू., (सुरनरकिन्नर किन्नरी), ४८६०७-२ चैत्रीपूर्णिमापर्व देववंदन विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (उस्सप्पिणीहि पढम), ४८६०९-१(+#), ५०१५३(+) छमासी देववंदन विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (नवकार ३ कही इच्छाकार), ४९३२९-९(+) जंबूद्वीपक्षेत्र विचार, सं., गद्य, श्वे., (जंबूद्वीप १८० योजना), ४९३८६-२(+$) जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., गा. ३०, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (जय तिहुयणवरकप्परुक्ख), ४८४८८(+), ४९४३४-१(+), ४९४४६(+), ४९६१८(+), ४९७०६(+#s), ५०१५९(+#), ५०४२९(+), ५१५६३(+), ४८३२६, ४९२९०, ५१७६६(#) (२) जयतिहुअण स्तोत्र-टीका, सं., ग्रं. २५०, गद्य, मूपू., (अत्रायं वृद्धसंप्रदा), ४९७०६(+#$), ५०४२९(+), ४९२९० (२) जयतिहुअण स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (जयतिहुअणेत्यादि अत्र), ४९४५२(+#) (२) जयतिहुअण स्तोत्र-बालावबोध, पं. गुणविनय गणि, मा.गु., गद्य, मूपू., (राजत्सुदर्शनमहानंदक), ४९९११(#$) (२) जयतिहअण स्तोत्र-टबार्थ ,मा.गु., गद्य, म्पू., (जयवंतो वर्ति), ५०१५९(+#) (२) जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (जय तिहुयणवरकप्परुक्ख), ५०३५५ जरासंध युद्ध वर्णन, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (आदित्यवारे द्वयोरपि), ४९२७८-२(+$) जलयात्रा विधि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (जलयात्रा योग्य उपगरण), ५१५७५() जाह्नवीस्तोत्र द्विपदी, सं., श्लो. ७, पद्य, वै., (सर्व लघूक्षरे चारु), ४९२९१-२(+) जिनकुशलसूरि अष्टक, मु. रत्नसोम, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (देवराजपुरमंडनमाप्त), ४८५२६-१(#) जिनकुशलसूरि अष्टप्रकारी पूजा, मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (प्रथमस्तोक जलसुंअंग), ४९८७७-१(+) जिनकुशलसूरि गुर्वष्टक, उपा. समयसुंदर गणि, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (नतनरेश्वरमौलिमणिप्रभ), ४८५२६-३(#) जिनकुशलसूरिस्तोत्र, मु. क्षमाकल्याण, सं., श्लो. २२, पद्य, मूपू., (श्रीमज्जिनाधीशमुख), ५१९५३(#) जिनदत्तोपज्ञ कुलक, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., श्लो. ३०, पद्य, मूपू., (लिंगी जत्थ गिहिव्व), ५१३५२(+$), ४९२३३(#) जिनदर्शनपूजा फल, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (यास्याम्यापतन), ४९५८२-४(+) जिनपंचकल्याणक स्तवन, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (निलिंपलोकायित भूतलं), ५०४१८-८(+) जिनपंजर स्तोत्र, आ. कमलप्रभसूरि, सं., श्लो. २५, पद्य, मूपू., (ॐ ह्रीँ श्रीँ अर्ह), ४८८५८(+), ४९५४५(+), ५१११८(+#), __५१२२६-३(+), ५१९७८-१(+#), ५१९४२-१(#) जिनपूजा महिमा पद, सं., श्लो. ४, पद्य, पू., (स्नात्रं विलेपन), ४९६१५-५ जिनपूजा विशे जोणास कथा, सं., गद्य, म्पू., (सीमंधरजिनादिष्टा), ५०६७३ For Private and Personal Use Only Page #507 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४९० www.kobatirth.org "" जिनप्रतिमा शिल्प विचार, प्रा. सं., श्लो. २४, पद्य, भूपू (धर्मस्थाने ततो गम्य), ४९५२७-२ जिनप्रतिमा स्तोत्र, आ. हरिभद्रसूरि प्रा. गा. ७, पद्य, भूपू (नमिउणं सव्वजिणे), ४९६०७-३(+) जिनबिंब गण नक्षत्र योनि आदि विचार, मा.गु., सं., गद्य, मूपू., ( इह देवस्य तद्विबकार), ४९५३७ जिनबिंबप्रवेशस्थापना विधि, मा.गु. सं., गद्य, मूपू., (पहिलु मुहूर्त भलुं), ५१०७१ (#) जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा, प्रा., गा. ४, पद्य, भूपू (खेलं १ केलि २ कलि ३) ४९६३२(+), ५१९८४-१(+) " (२) जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा - अवचूरि, सं., गद्य, भूपू (श्लेष्मार क्रीडार), ४९६३२(+) (२) जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा -टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्लेष्मा क्रीडा हासा), ५११८४-१(+) जिनभुवनगमनारंभफल गाथा, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (मणसाहेइ चउत्थं छ). ५१२१९-५(40) (२) जीवविचार प्रकरण-टिप्पण सं., गद्य, भूपू (--), ४९३०८ (ख) " जिनरक्षा स्तोत्र, सं., श्लो. १८, पद्य, मूपू (श्रीजिनं भक्तितो), ४८४६४-२(५०), ४८१७९-३ " जिनरक्षा स्तोत्र, सं., श्लो. १७, पद्य, मूपू., (सर्वातिशयसंपूर्णान्), ५१९४२-३(#) जिनस्तुत्यादि संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (श्रीअर्हतो भगवंत), ५०६१९-२ (+), ५१२१३-३ जिनाभिषेक विधि शांति गर्भित, सं., गद्य, भूपू (पितापितामहप्रपितामह), ४९५०२-२ - जीवद्रव्यादि लक्षण, सं., श्लो. ४५, पद्य, मूपू., (तत्त्वातत्त्व स्वरुप), ५०८८३(+) जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., गा. ५१, वि. ११वी, पद्य, मूपू., (भुवणपईवं वीरं नमिऊण), ४९२७४-१(+), ४९३०८(+#), ५०२३८(+४), ५०९७१(+०), ५१३१८(*), ५२०४४(+३), ४८४३६, ४९०५३, ५०२४४, ५०२७७, ५१३५८, ४८८८४-२ (१), ५०१४६०९, ५०३५४४), ५१२९३-२ (०३), ५१५११(०), ५२०३४८० (२) जीवविचार प्रकरण - बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (भवन कहीइं त्रिभोवन), ४८५८१(s) (२) जीवविचार प्रकरण - बालावबोध *, मा.गु., गद्य, मूपू., (स्वर्ग मृत्यु पाताल), ५०१४६ (#S) (२) जीवविचार प्रकरण -टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (तीन भुवन रै विषै), ५०२३८ (#), ५०९७१(+#) (२) जीवविचार प्रकरण -टबार्थ, मा.गु. सं., गद्य, म्पू (त्रिभुवनदीप निभ) ५२०४४(8) जीवाभिगमसूत्र, प्रा., प्रतिप. १०, सू. २७२, ग्रं. ४७५०, गद्य, मूपू., ( णमो उसभादियाणं चउवीस), प्रतहीन. (२) जीवाभिगमसूत्र - जीवभेद विचार, संबद्ध, मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (एक एव जीवः चेतना), ४८६३३-१ जुम्मनिमित्त, प्रा., गा. ८, पद्य, श्वे., (वंदिय जिणुत्तमाणं), ४९९७७ जैन कथा वार्ता चरित्रादि, पुहिं., प्रा., मा.गु., सं., प+ग., श्वे., (--), ५००१०-३($), ५००१३-२ ($) जैन गाथा, प्रा., पद्य, वे., ( उस्सासट्ठारमे भागे), ४८४२४-४(+) י कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१२ जैनगाथा संग्रह *, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, मूपू., (सललमथघ्रतकाज निक्खु), ४८५६६-३ (+), ४९०२३-२ (+), ४९५०९-२ (+), ५०४७६-३(+), ५१३५०-६(+४), ५१५३२-२ (+४), ४८५९५-२, ४९३४३-३, ४९५२५-२, ४९५४६-२, ४९५४८-२, ४९५४९-२, ५०८६९-२, ५०९०७-५११, ५१५४०-४००, ४९८६०-४४), ५०२६५-४१०) ५०३१५-४४), ५०३२६-२८), ५०५४१-३) जैन गायत्री जाप विधान, सं., प+ग., मूपू., (अथ चतुर्विंशति अहं), ४९५५९-२ जैनदुहा संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., पद्म, वे., (चिह्न नारी नर नीपजइ), ४८१८३-२, ५००२६-३, ५०६९९-२(७) जैन पारिभाषिक शब्दसंख्या, मा.गु. सं., गद्य, वे. (तत्वानि ९ व्रत ५ / १२) ५१३९७-१ יי Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) जैन पारिभाषिक शब्दसंख्या - बालावबोध, मा.गु., गद्य, श्वे., (तत्वानि नवतत्व जीव१), ५१३९७-१ जैन प्रतिमा प्रमाण, विश्वकर्मा, सं., भो. ७५, पद्य, जै. वै., (श्रृणु वत्स), ४९५२७-१ जैन प्रश्नोत्तर संग्रह, प्रा. मा.गु., सं., गद्य, वे (--), ५१९८४-२ (३), ५०२६५-२ (-१) जैन मंत्र संग्रह सामान्य, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, वे (ॐ नमो अरिहंताणं), ४९८४५-२ (५), ४८४१५-२, ५१०८९-३, ५१३३७-४१) " जैनविधि संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, भूपू (उतरासण नांखी चावलदान), ५०५१७-४(०) For Private and Personal Use Only जैन सामान्यकृति, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, वे. ( त्रीणि स्थानानि), ४८४९२-२ (+), ४९८८४-२(१), ५०४५८-२(१), ५०६६४-३(१०), " ५१९३०-३(+), ५०९८१-२, ५०८०७-३, ५०८३८-२, ५११७०-४, ५१७९०-२, ४८८०६-२ (०३), ५०६७०-४१०), ४८१८१-४१, ५१८५७-३चा Page #508 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ४९१ जैनेतर सामान्य कृति, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., वै., (--), ५१३७३-२(#), ५१९१६-७(#) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्य. १९, ग्रं. ५५००, प+ग., मूपू., (तेणं कालेणं० चंपाए), प्रतहीन. (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-हिस्सा चतुर्थ कुर्मअध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., मूपू., (जइ णं भंते समणेणं भग), प्रतहीन. (३) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र का हिस्सा चतुर्थ कुर्मअध्ययन-सज्झाय, संबद्ध, पा. राजरत्न, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (अरथथी आगमजन कहि), ५०८६८ (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. लालविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (सहगुरु पाय प्रणमी), ४८१६५-२ ज्ञानपंचमीतपउच्चरावण विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (तिहां प्रथम खमा० इरि), ४९६२५-२(+) ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (पंचानंतकसुप्रपंचपरमा), ४८८२६-२(+), ५०८८९-७(2) ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रीनेमिः पंचरूप), ४९५२३-१,५०१४३,५११७५-२(#), ५१४६५-२(#) (२) ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीनेमीनाथ पांच), ५०१४३ ज्ञान पहिरावणी गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (नमंत सामंतमही विनाह), ५०२४९-६(2) ज्ञानप्रबोध श्लोक संग्रह, सं., श्लो. १९, पद्य, म्पू., (येषां न विद्या न तपो), ४९७२४ (२) ज्ञानप्रबोध श्लोक संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जेहमांही विद्या नही), ४९७२४ ज्ञानवृद्धिकर दस नक्षत्र-स्थानांगसूत्रोद्भुत, प्रा., गद्य, मूपू., (दसनक्खत्त णाणस्स), ४९५२६-२ ज्योतिष, मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., (--), ४९४४३-२(+#), ५१७२७-३(+), ४९३८५-३, ४९५५९-३, ५०३१४-१, ५१६१०-३, ५१८४७-२, ५१९०९-३, ४९९३६-२(#), ४९९८५-२(#), ५०६८६-३(#), ५०९३१-३(#), ५१४८८-१(#), ५१९८७-२(#), ४८५०३-१(६) ज्योतिष श्लोक, मा.गु.,सं., पद्य, (ज्येष्टार्क पश्चिमो), ४९७६५-२ ज्योतिष श्लोकसंग्रह, सं., पद्य, (--), ४९२९२-४(+) ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., श्लो. २९४, पद्य, मूपू., (श्रीअर्हतजिनं नत्वा), ४९९९९(+#$) ज्योतिषसार, मुंजादित्य विप्र, सं., गा. २८४, पद्य, वै., (विघ्नराजं नमस्कृत्य), ४८३९६-७(+#$) ज्वालामालिनी स्तोत्र, सं., गद्य, मूपू., (ॐ नमो भगवते श्रीचंद), ४८७९४-१(+), ४८२७९-१(#) तत्त्व विचार श्लोकसंग्रह, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (तत्त्वानि७ व्रत१२), ५१३५०-५(+), ५१२६२-३(#$) (२) तत्त्वव्रतधर्मादिभेद श्लोक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीव तत्त्व १ अजीव),५१३५०-५(+) तपउच्चारणविधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम ठवणीमाडि ईरीय), ५०११९-२ तपगणणु संग्रह, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (अथ सिद्धाचलना एकविस),४९७५७ तप संग्रह, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (चतुविंशति तीर्थंकराण), ४९१३७ तपावली, सं., तप.५७, पद्य, मूपू., (उपधानानि सर्वाणि), ५००२०(#$) तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., गा. १४, पद्य, मूपू., (तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ), ४८४७९-३(+), ४९६०३-१(+), ४९९४५-१(+#), ५०३२०(+#), ५०४७६-१(+), ५०८४०(+), ५१२४९(+), ४८७६२-१, ४९६५४, ५०४२५-२,५०६२३, ५०७५५-३,५१९७२-२, ५०५७२-१(३), ५०७०७), ५०९६२(#), ५१२९२-१(#$), ५१४००-१(३), ४९५७०(-2) (२) तिजयपहुत्त स्तोत्र-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, मूपू., (कृत्वा चतुर्णा), ४९२९३($) (२) तिजयपहुत्त स्तोत्र-टबार्थ, मु. लालकुशल, मा.गु., गद्य, मूपू., (त्रिण लोकनु ठकराइपणु), ५०९६२(#) (२) तिजयपहुत्त स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (तीन जगत्रन प्रभुताना), ५१९७२-२ तीर्थंकरसमवसरण विचार, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीतीर्थकृत), ४८६९७(+#) तीर्थमाला स्तव, सं., श्लो. २३, पद्य, म्पू., (पंचानुत्तरशरणाग्रैवे), ५०५६६-४(+#) तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (सद्भक्त्या देवलोके), ४८४९१(+), ४९२२७(+), ४९८३७-१(+),५१५४१(+#), ५२०२४-४(+), ४८१७३, ४८४५४, ४८४८०, ४८४९८, ५१७०९, ४९५७७-२(#), ५०८४८(#), ५१३७६-१(#), ५१७६३(#), ५२०३३-४(#) तुंगियानगर जिनभक्ति श्रावकोपदेश वर्णन, प्रा., गद्य, स्पू., (तेणं कालेणं तेणं समए), ५०६२४-२ (२) तुंगियानगर जिनभक्ति श्रावकोपदेश वर्णन-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ते काल ते समय वीर), ५०६२४-२ For Private and Personal Use Only Page #509 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४९२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१२ (२) त्रिपुराभवानी स्तोत्र - फलदर्शक श्लोक, संबद्ध, सं., श्लो. ७, पद्य, वै., (आनंदोद्भव कंपघूर्ण), ४८३७९-२(#) त्रिशलामाता दोहद श्लोक, सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू., (सत्पात्रपूजां किमहं), ५१६३७-२(+) त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं. पर्व १०+परिशिष्ट, ग्रं. ३५०००, वि. १२२०, पद्य, मूषू, (सकलार्हत्प्रतिष्ठान), प्रतहीन. त्रिपुराभवानी स्तोत्र, आ. लघ्वाचार्य, सं., श्लो. २४, पद्य, वै. (ऐंद्रस्यैव शरासनस्य), प्रतहीन. ,, (२) नंदनऋषेः अंतिमाराधना, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. ५५, पद्य, मूपू., (अर्हद्भक्त्यादिभिः), ४९०८२(#$) (२) सकलार्हत् स्तोत्र, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. २६, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (सकलार्हत्प्रतिष्ठान), ४८२९५(+१), ४९०३७(+), ४९५३५ (+), ५०९५२(+), ५१५६० (+), ४८४५२, ४८७६७ ४९६०१-१, ४९६९६, ४९८१४-१, ५००३९, ५०६९२, ५०८८२, ५१८१८, ५१९४५-१, ४८५७३, ५११९४०१, ५१६७६-११४), ५००५४-२३) ५०७२९) (३) सकलार्हत् स्तोत्र -टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., ( नमः श्रीपार्श्वनाथाय), ४९०३७ (+) वीसपदवी, प्रा., गा. ४, पद्य, श्वे. (चऊदस्स रवणा चक्की), ४८५८२-४(+का , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir त्रैराशिक दृष्टांत, सं. गद्य थे. (अंतरंजिकापुर्वी), ४८८९०५ 1 " दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा. गा. ४५, वि. १५७९, पद्य, म्पू, (नमिडं चडवीसजिणे तस्स), ४९०४१-१(+), ५०२११(+०), , ५०९६०-१(०३), ५१९५१(+), ५१९५५ (००), ४८५३४, ४९३१२-१(१), ४९६७९-१(६) दक्षिणावर्त्तख विधि, सं., गद्य, वै., (ॐ ह्रीं श्रीधर), ४९९२३-२ दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., अध्य. १० चूलिका २, वी. रवी, पद्य, मूपू., (धम्मो मंगलमुक्किट्ठ), ४९०८८(+$), ४९८३६(०) " (२) दशवैकालिकसूत्र नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा. गा. ४४५, पद्य, म्पू (सिद्धिगइमुवगयाण), प्रतहीन. (३) दशवेकालिकसूत्र नियुक्ति की संकलित गाथा, प्रा. गा. ७, पद्य, मूपू (सिद्धिगइमुवगवाणं). ४९१५१क (४) दशवैकालिकसूत्र -निर्युक्ति की संकलित गाथा की टीका, सं., गद्य, मूपू., (सिद्धिगति मुपगतिभ्यो), ४९१५१ (+) (२) दशवैकालिकसूत्र -वार्थ में, मा.गु., गद्य, मूपू., (ध० जीवन दुर्गति), ४९०८८(०९) 7 (२) दशवैकालिकसूत्र - हिस्सा द्रुमपुष्पिका प्रथम अध्ययन, आ. शय्यंभवसूरि प्रा. गा. ५, पद्य, मूपू (धम्मो मंगलमुक्किङ), 5. " ४८५८४- ३ (+), ५०१०८-४, ५०५५५-२ (२) दशवेकालिकसूत्र सज्झाय-अध्ययन २, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु. गा. १५, पद्य, मृपू., (नमवा नेमि जिणंदने), ५१४६६-२ (२) दशवैकालिकसूत्र सज्झाय-अध्ययन ३, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु.. गा. १२, पद्य, मृपू., (आधाकरमी आहार न लीजिय), ५१४६६-३ (२) धम्मोमंगल सज्झाय, संबद्ध, मु. जेतसी, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (धम्मो मंगल महिमा), ५१०२१-२ (२) साधुसाध्वी के बोलने योग्य गाथा, संबद्ध, आ. शय्यंभवसूरि प्रा. गा. १७. वी. रवी, पद्य, मूपू (धम्मो मंगल मुकिङ), "3 ५१०९१ दशाश्रुतस्कंधसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा. दशा. १०. ग्रं. १३८०, पद्य, म्पू, नमो अरिहंताणं० हव), ४८९५३(३) " (२) दशाश्रुतस्कंधसूत्र टवार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू, ( श्रीदशाश्रुतस्कंध ), ४८९५३(४) दानशीलतपभावना कुलक, मु. अशोकमुनि, प्रा., गा. ५०, पद्य, स्था., (देवाहिदेवं नमिऊण), ४९१३८(+), ५०७४५(+#), ४९३००-१, ५०१५४-१, ५१०२० (२) दानशीलतपभावना कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (देवाधिदेवनई नमस्कार), ४९१३८ (+), ५०७४५ (+#) दिक्चतुष्कजीवाल्पबहुत्व, प्रा. गा. २, पद्य, भूपू (पपुदंड कमसो जीवा जल), ४९१३०-२(४०), ४९९७३-३(+) + (२) दिक्चतुष्कजीवाल्पबहुत्व टीका, सं., गद्य, भूपू (पपुदउत्ति पश्चिम), ४९९७३-३(+) , (२) दिक्चतुष्कजीवाल्पबहुत्व वालावबोध, मा.गु., गद्य, मृपू. (पश्चिम पूर्व दक्षण), ४९१३०-२ (+) दिनज्ञान श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (तर्जनी मेरु मादा), ४९५९३-५(#) दीक्षाग्रहण विधि, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (संध्यायां चारित्रो), ४८५३६-२ दीक्षा विधि, प्रा., गद्य, मूपू., (पुच्छा वासे चिइ वेसे), ४८९०० -२ (+), ४९११२-२, ४९२६७-१ दीक्षा विधि, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, म्पू, (पूर्व शुभवेलायां), ५१६८८(+), ५१००९(१) 3., स.. יי For Private and Personal Use Only Page #510 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - १ दीक्षा विधि, मा.गु. सं., गद्य, भूपू (मूलपुनर्वसुस्वाति), ४९३५९-१ दीक्षा विधि, प्रा.मा.गु. सं., प+ग, भूपू (यथाशक्ति श्रीसर्वज्ञ), ४९५८०-३ (+) " दीपावलीपर्व स्तुति, गच्छा. जिनचंद्रसूरि सं. वो ४ वि. १७वी, पद्य, म्पू, (पापायां पुरि चारु), ४९६३३-५ (३) दीवालीपर्व आराधना विधि, मा.गु. सं., गद्य, मृपू., (कार्तिक वदि ३० री), ५०१८०-२ दुरिअरयसमीर स्तोत्र, आ जिनवल्लभसूरि प्रा. गा. ४४, पद्य, भूपू (दुरिअरयसमीरं मोहपंको), ४९९३५-१(4) "" (२) दुरिअरयसमीर स्तोत्र - अवचूरि, सं. गद्य, मूपू (दुरियरय० दुरित), ४९९३५-१११ दुर्गादेवी कवच, सं., पद्य, वै., (प्रथमं शैलपुत्री च), ४९५४०-३($) दुहा संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, 2, (--), ५०४१२-३(+), ५१४०९-१(+) ४८९७३-२, ५०८१२-२ दृष्टांतकथा संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, मूपू. (रे वालिदविवक्खणवत्) ५१६३७-३(+) देववंदन अधिकार, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, मूपू (अर्हस्तनोतु स श्रेय), ४८७५२ . देववंदन विधि, प्रा.मा.गु., गद्य, मूपू, नमोत्थुणं कहीने भगवन), ५०३२८-२(+), ४८२७०-४, ५०८६९-३, ४९०९२-३(४), ५००९२.२ (-१६) देशावगासिक पच्चक्खाण, प्रा., पद्य, मूपू., (देसावगासिय उवभोगं), ५०४१४-३($) देह प्रतिलेखन विधि, सं., गद्य, मूपू., (पुरुषानाश्रित्या), ४९९३२-३ (+#) देहस्थज्ञान विवरण, सं., पद्य, मूप, (नत्वा वीरं प्रवक्ष्य), ४९९५७-१(०३) देहस्वरूप कुलक, प्रा., गा. २३, पथ, भूपू (नमिऊण जिणं वीरं किंच), ४९०२३-१(+) द्रव्य विचार, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू (परिणामी जीव मुत्ता), ५१०५५-१(+) , (२) द्रव्य विचार - विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीव पुगल परिणामी), ५१०५५-११) द्विजवदनचपेटा, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, मूपू. (कूर्मवामनमीनाद्यैरवत), ४८६३७(+) धन्नाशालिभद्रादि स्वर्ग नरक गमन विचार, सं., गद्य, श्वे., (धन्नाशालिभद्रः), ५०९२६-१ धरणोरगेंद्र महाविद्या स्तोत्र, सं. १ ३९, प+ग, जे. बी. (अथातो जांगुलीनाम महा), ४९७२३-१ धर्ममूल लोक-जिनोपदिष्ट, सं., श्लो. १, पद्य, श्वे., (त्रैकाल्यं द्रव्यषड), ५१३९७-२ (२) धर्ममूल श्लोक -जिनोपदिष्ट -बालावबोध, मा.गु., गद्य, श्वे. (त्रैकाल्यं त्रिकाल३), ५१३९७-२ धर्मसूरि पट्टावली, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (सुलभ विबुध लब्धिः), ४९३८८(+) ध्वजारोहण विधि, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, मूपू., ( तिहां प्रथम भुमी), ५१२०७-२(#) नंदनभव विराधना, मु. धर्महंसगणिशिष्य, प्रा., गा. ४५, पद्य, भूपू (वीरजिणंद वंदिअ जईण), ४९७२७(+) नंदि विधि, प्रा., मा.गु., गद्य, म्पू., ( नांदि मांडीह खमासमण), ४९२६७-४ नंदीदशवैकालिक योगविधि, प्रा. सं., गद्य, भूपू., (नंदीए दसवैकालिकश्रुत), ५०२४१-२(०) , नंदी विधि, सं., पद्य, मूपू. (प्रथमं पवित्रनेपथ्य), ४९३२९-८(+) नंदीश्वरद्वीप कल्प, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. ४८, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (आराध्य श्रीजिनाधीशान), ५०५६६-६(+#) नंदीश्वरद्वीप स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, थे. (), ५१८३६.१ (००६) नंदीश्वरद्वीप स्तोत्र, मु. मेरु, अप., मा.गु., गा. २५, पद्य, भूपू (सिरि निलय जंबुदीवो), ४८५४२-१(+४) नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा. सूत्र. ५७ गा. ७००, प+ग. म्पू.. (जयइ जगजीवजोणीवियाणओ), प्रतहीन. " For Private and Personal Use Only ४९३ " (२) नंदीसूत्र -मंगल गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. १०, पद्य, मूपू., (जयइ जगजीवजोणीवियाणओ), ५००६०-१ (२) नंदीसूत्र सज्झाय, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., गा. २७, पद्य, मूपू., (जयइ जगजीवजोणीवियाणओ), ४८८३४(#), ४८८८३(#) (२) नंदीसूत्र - स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., गा. ५०, पद्य, मूपू., (जयइ जगजीवजोणीवियाणओ), ४८६०४ (+), ५०२७०-२ (+$), ५१९२४(+), ५१५५९ नंद्यावर्त्तपूजा विधि, सं., गद्य, मूपू., (परमेष्टि मुद्रां), ४८९६५-२ ($) नमस्कार महामंत्र, शाश्वत, प्रा. पद. ९, पद्य, मूपू. (णमो अरिहंताण), ४८५८४-१ (५), ४८१६४, ४९४०९-२, ५०७३३-१, ५०७५५-१, ४९३१६(७) ५१५१० ५१५९७) Page #511 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१२ (२) नमस्कार महामंत्र-पंचपद बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (माहरउ नमस्कार), ४८१६४ (२) नमस्कार महामंत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंतनइ माहरउ), ५१५९७(#) (२) नमस्कार महामंत्र-बालावबोध",मा.गु., गद्य, मपू., (बारसगुण अरिहंता), ५०१८७,४९३१६(#), ५१५१०(#) (२) नमस्कार महामंत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार अरिहंतनइ काज), ५०७३३-१ (२) नमस्कार महामंत्र-विपरीत, संबद्ध, शाश्वत , प्रा., पद. ९, पद्य, मूपू., (लंगमं इवह मंढप), ५१२२६-२(+) नमस्कार महामंत्र स्तोत्र, पा. धर्मसिंह, प्रा.,मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (कामितसंपय करणं तिम), ४९८४०-१(#) नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., गा. २४, पद्य, मूपू., (नमिऊण पणयसुरगण), ४८३७०(+), ४९१४१(+#), ५०४७६-२(+), ४८७९२, ५००००, ५१३३३-४, ५०३१०-१(#), ५१२७२-१(#) (२) नमिऊण स्तोत्र-अभिप्रायचंद्रिका टीका, आ. जिनप्रभसूरि, सं., ग्रं. ३००, वि. १३६५, गद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वस्वामिन), ५००००, ५०३८४ (२) नमिऊण स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (आदौ कविर्मंगलाभिधान०), ४९१४१(+#$) (२) नमिऊण स्तोत्र-टबार्थ, पं. शुभकुशल गणि, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमिऊण क० नमस्कार करी), ४८७९२ नयकर्णिका, उपा. विनयविजय, सं., श्लो. २३, वि. १७उ, पद्य, मूपू., (वर्द्धमानं स्तुमः), ५१६१९(+) नवग्रह मंत्र, सं., गद्य, मूपू., (ॐ आदित्य सोम मंगल), ५१४४९-२(#) नवग्रह स्तोत्र-मंत्रगर्भित, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं सांशुकः), ५०१२६-२,५१६१६-२ नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., गा. २९, पद्य, मूपू., (जीवा अजीवा पुन्न), ४८७७८(+-#$) नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., गा. ६०, पद्य, मूपू., (जीवाजीवा पुण्णं पावा), ४८४७३(+), ४९०३०(+), ४९०७९-१(+), ४९०८०(+), ४९१९९(+), ४९२००(+), ४९२०१(+), ४९२०२(+), ४९२६३-१(+), ५०२७०-१(+), ५०४०५(+),५१०५५-३(+), ५११०३-१(+), ५१९६९(+), ४८५४६, ४९१९७, ४९१९८, ४९६९७, ४९६९८, ५०४७४, ५०४९३, ५११०४-१, ४८५११-१(#), ४८८८४-१(#), ४९०३३(#), ४९४३७-१(#), ५१२९३-१(#$), ५२०५०(#) (२) नवतत्त्व प्रकरण-अवचूरि, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, मूपू., (जयति श्रीमहावीरः), ५०४०५(+) (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, ग. हर्षवर्द्धन, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानप्रभु), ४८५११-२(#) (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवतत्त्व१ अजीव), ४९१९७ (२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ *मा.गु., गद्य, मूपू., (जीव कहतांच्यार), ४९२००(+), ५१०५५-२(+), ५१९६९(+$) (२) नवतत्त्व प्रकरण- २५ क्रिया गाथा, हिस्सा, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (काइअ१ अहिगरणीया २), ५०८४३-१(#) (३) नवतत्त्व प्रकरण-२५ क्रिया गाथा का-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (कायिकी क्रिया काया), ५०८४३-१(#) नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., गा. १०७, पद्य, मूपू., (जीवाजीवापुन्नं पावा), ४९५८९, ४९३६६($) (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मु. मेरुतुंगसूरि-शिष्य, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीव १ अजीव), ४९३६६(5) नवनिदान कुलक, प्रा., गा. १६, पद्य, मूपू., (निव१ धणी२ नारी३ नर४), ५०६७६(+) (२) नवनिदान कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नृपनो नियाणो१ धनवंत), ५०६७६(+) नवपद गणना, प्रा.,मा.गु., गद्य, श्वे., (ॐ ह्रीं नमो अरिहताण), ५०३२८-५(+), ४८८०४-५, ५०३२४-२,५०८६९-४ नवपद गुण, सं., गद्य, मूपू., (अरिहंत के १२ गुण), ५१९९१(१) नवपद नाम वर्णन, प्रा.,सं., पद. ९, गद्य, मूपू., (ॐ ह्रीँ नमो अरिहंताण), ४९१०६-३ नवपद पूजाविधि, मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नवपद मंडल विधि लिख्य), ४९५७९-२ नवस्मरण, भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., स्मर. ९, प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं० हवइ), ५०८९७-२($) नाणाचित्त प्रकरण, आ. हरिभद्रसूरि , प्रा., गा. ८२, पद्य, मूपू., (नमिऊण जिणं जगजीवबंधव), ४९२९१-१(+) (२) नाणाचित्त प्रकरण-विषमस्थल टिप्पण, सं., गद्य, मूपू., (--), ४९२९१-१(+) नारिकेल कल्प-विधिसहित, मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (ॐ ह्रीं श्रीं क्ली), ४९९२३-३ निरंजनाष्टक, सं., श्लो. ८, पद्य, वै., (स्थानं न मानन च), ४९४९१-२, ४९८५९-३(#) निशीथसूत्र, प्रा., उ. २०, ग्रं. ८१५, गद्य, मूपू., (जे भिखु हत्थ कम्म), प्रतहीन. For Private and Personal Use Only Page #512 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ४९५ (२) निशीथसूत्र-हिस्सा जिनालयादि में आचारभंग आलोयणा, प्रा., गद्य, मूपू., (से भयव्वं तहारूव समण), ५०६२४-३ (३) निशीथसूत्र-हिस्सा जिनालयादि में आचारभंग आलोयणा का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (वली गोतमस्वामीइं पूछ), ५०६२४-३ (२) निशीथसूत्र चर्चा, संबद्ध, मु. रतनचंद ऋषि, पुहि., वि. १८९९, गद्य, मूपू., स्था., (संवत १८९९ चतुर्मास), ५११३३-३(+) नेमिजिनद्वयक्षर स्तोत्र, मु. शालिन, सं., श्लो. ९, पद्य, दि., (मानेनानून मानेनानोन्), ४९६२६-२(+#), ५१५५७(+), ५०५७३(#) (२) नेमिजिनद्वयक्षर स्तोत्र च्याख्या, सं., गद्य, दि., (आनुमः स्तुमः के), ४९६२६-२(+#) नेमिजिन स्तव, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (श्रीनेमीशशमिने), ५०६३६-२ (२) नेमिजिन स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (हे नेमीश भवंतं त्वां), ५०६३६-२ नेमिजिन स्तवन, मु. मंडन, सं., श्लो. ६, वि. १६३०, पद्य, म्पू., (जयाग्रादि जंबालिनीना), ५१३४८-२ नेमिजिन स्तवन, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (सुविशाल शिवालयजातलसं), ५०९०२-२ नेमिजिन स्तुति, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (नेमि विशालनयनो नयन), ५०३८७-११(+-#) न्यायसिद्धांतदीपिका, शशधर शर्मा, सं., प्रक. २६, ई. १२वी, गद्य, वै., (ध्वंसितपर सिद्धांत), ५०१६७-३(+$) पंचकल्याणक गणन, सं., गद्य, मूपू., (श्रीपरमेष्ठिने नमः), ४९९३९-३(#) पंचकल्याणक स्तुति, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (नाभेयं संभवंतं अजिय), ५०६२१-२(+) पंचजिन स्तवन-हारबंध, आ. कुलमंडनसूरि, सं., श्लो. २३, पद्य, मूपू., (गरीयो गुण श्रेण्यरीण), ५०३३६-३(+#), ५१८७६(+#) पंचनदी साधन विधि, सं., गद्य, मप्., (संघेन सहासन्न ग्रामे), ४९६२२-१ पंचपरमेष्टि स्तोत्र, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (स्वश्रियं श्रीमद), ४८४६४-१(+#), ५०४१८-५(+) पंचपरमेष्ठि १०८ गुणवर्णन, प्रा.,सं., गा. १, पद्य, मूपू., (बारसगुण अरिहंता), ४८१५३, ४८१९८-२ (२) पंचपरमेष्ठि गुणविवरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (बार गुण अरिहंतना), ४८१५३ पंचमीतपउच्चारण विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम गुरु आगल आवी), ५१०९७-१(#) पंचमीतिथि चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (सुवर्ण वर्णो हरिणा), ५१८६६-१ पंचवस्तुक, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. १७१४, पद्य, मूपू., (णमिऊण वद्धमाणं सम्म), प्रतहीन. (२) पंचवस्तुक के अनुज्ञावस्तु का हिस्सा-द्रव्य स्तव, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. १३, पद्य, मूपू., (दव्वत्थयभावत्थय रूव), ४९०७५-१ (३) पंचवस्तुक के अनुज्ञावस्तु का हिस्सा-द्रव्य स्तव की स्वोपज्ञ टीका, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, मूपू., (यतेरपि द्रव्यस्तवभेद), ४९०७५-१ (२) संलेखनादि विचार, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (उवसमसेढीए खलु वेए उव), ४९०७५-२ पंचसंग्रह, आ. चंद्रमहत्तराचार्य, प्रा., गा. ९९१, पद्य, मूपू., (नमिउण जिणं वीरं सम्म), प्रतहीन. (२) पंचसंग्रह-हिस्सा बंधकद्वारे जीवस्थानगत जीवोत्पत्त्यंतर गाथा, आ. चंद्रमहत्तराचार्य, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (तस बायर साहारण असन्न), ४९९७३-१(+) । (३) पंचसंग्रह का हिस्सा बंधकद्वारे जीवस्थानगत जीवोत्पत्त्यंतर गाथा-व्याख्या, सं., गद्य, मूपू., (त्रसत्वे सागरोपम), ४९९७३-१(+) (२) पंचसंग्रह-चयन, प्रा., गा. ३३, पद्य, मूपू., (तग्गयणु पुग्विजाई), ४८७८४(+#) पंचांगुलीमाता मंत्र, सं., गद्य, जै.?, (ॐनमो पंचांगुली परसर), ४८४७९-५(+), ५१९११-१(#) पंचाशक प्रकरण, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पंचा. १९, गा. ९४०, ग्रं. ११८७, पद्य, मूपू., (नमिऊण वद्धमाण सावग), प्रतहीन. (२) पंचाशक प्रकरण-हिस्सा प्रथम पंचाशक, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. ५०, पद्य, मूपू., (नमिऊण वद्धमाणं सावग), प्रतहीन. (३) पंचाशक प्रकरण हिस्से के प्रथम पंचाशक की चूर्णि, हिस्सा, आ. यशोदेवसूरि, प्रा., वि. ११७२, गद्य, मूपू., (नमिय भुवणेक्कभाणु), ५०६९६-5(#) पंद्रहियायंत्र निर्माण विधि, मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (चिंतामणि विधि), ५०१०१-२ पक्खीचौमासीसंवच्छरी तप विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (चउत्थेणं एक उपवास), ४९७८१-३,५१२७९-४(#) For Private and Personal Use Only Page #513 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४९६ पक्वान्न दिनमान, सं., श्लो. १, पद्य, श्वे. (वासासु पनर दिवस), ४८३७५-७(+) " पक्वान्न विचार संग्रह, प्रा., गा. ५, पद्य, वे (सिसिरे पाउसे गिम्हे), ४८३७५-८(क) पच्चक्खाण पारने की विधि, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (खमा० इरिया० पडिकमी), ५०३२८-३(०), ५०५९२-२ पच्चक्खाण भांगा, प्रा. सं., प+ग, श्वे. (तिविहं तिविहेणं मणेण), ५१९८४-१(७) "" पट्टावली*, प्रा.मा.गु. सं., गद्य, भूपू (श्रीमहावीर), ४८७१८(१) पट्टावली खरतरगच्छीय, सं., श्लो. १४, पद्य, मूपू., ( नमः श्रीवर्द्धमानाय), ४९६२१-१, ४९४८९-१(#) पट्टावली खरतरगच्छीय, सं., गद्य, मूपू. (महावीर मोक्षं प्राप) ५०२८७-३(+) पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु. सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य त्रिविधं), ४९४९० (+#), ४९०२१ पट्टावली तपागच्छीय, सं., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानस्वामी), ५०२८८, ५०९८७, ४८५२३ (#) पडिलेहण कुलक, ग. विजयविमल, प्रा., गा. २८, पद्य, म्पू. (पडिलेहणाविसेसं), ५१९५९ , (२) पडिलेहण कुलक-टबार्थ, ग. विजयविमल, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रतिलेखनाना विशेष), ५१९५९ ($) पद्मप्रभजिन स्तव, सं., श्लो. ३, पद्य, भूपू (उदारप्रभामंडलैर्भास), ४८६३४-२, ५१८६६-२ पद्मावतीदेवी अष्टक, मु. क्षमाकल्याण, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., ( चिदानंदसंपद्विलासैक), ५१६३४-१(#) पद्मावतीदेवी अष्टक, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (नाकापगाशीतल जीवनानां), ५१५४९-२(#) पद्मावतीदेवी कवच, सं., श्लो. १५, पद्य, मूपू., (भगवन् सर्वमाख्यातं), ५१४६२-१(#) पद्मावतीदेवी छंद, मु. हर्षसागर, मा.गु., सं., गा. १०, पद्य, मूपू., (ॐ ह्रीँ कलिकुंडदंड), ४८७६५ पद्मावतीदेवी जापमंत्र, सं., गद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं श्रीं क्राँ), ५०२३७-२, ५१२५६-१(#) पद्मावतीदेवी पूजा सविधि, सं., प+ग, मूपू., (श्रीमद्गीर्वाणचक्र), ५०६८३ पद्मावतीदेवी शतनाम स्तोत्र, सं., श्रो. १७, पद्य, मूप. (ॐ देवी पद्मावती), ५०५९१-१ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१२ पद्मावतीदेवी स्तव, सं., श्लो. २७, पद्य, भूपू (श्रीमङ्गीर्वाणचक्र), ५००६९ ( +०), ४८१४३, ५०२३७-१, ५०५७५, ५१९७०, ५२०३२, ४९४५८(०), ५०९४९(४), ५०८७४(६) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पद्मावतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, श्वे., (मातः पद्मनि पद्मराग), ५१२५६-२(#) " + पद्मावतीदेवी स्तोत्र - सबीजमंत्रयुत, मु. मुनिचंद्र, सं., श्लो. २६, पद्य, भूपू., (ॐ ॐ ॐकार बीजे), ४९२६९-१, ५१६१२(१) परमानंद स्तोत्र, उपा. यशोविजयजी गणि सं. २५, वि. १८वी, पद्य, मूपू (परमानंदसंपन्न), ५०८०९-१ परहेतुतमोभास्करनामस्थल, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, मूपू., ( इह हि सकलतार्किकचक्र), ५०२७९-१(+) परिपाटीचतुर्दशक, उपा. विनयविजय, प्रा., गा. २७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (नमिऊण वद्धमाणं), ४८३१४ पर्वत आराधना विधिसहित, प्रा. मा.गु., गद्य, भूपू. ( अहन्नं भंते तुमाणं), ४९८४६-३ पर्यंताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., गा. ७०, पद्य, मूपू., (नमिउण भणइ एवं भयवं), ४९७०३ (+), ४८८४५, ४९५८३, ४९८४७-३, ५०७८४(#) (२) पर्यंताराधना -बालावबोध *, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमीनइ नमस्करीनई), ४९५८३ पर्याप्तिकालभेद गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, खे, (वेउब्विय पज्जत्ति), ५०२०९-२ , पर्युषण पर्व स्तुति, मु. चतुर, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (भो भो भव्यजनाः सदा), ५०४२४, ५१५२८ पांडव चरित्र, ग. देवविजय, सं., स. १८, ग्रं. १००००, वि. १६६०, गद्य, म्पू. (ॐ नमो वृषभस्वामियोग), ४८५९१ (७) יי पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि सं., श्लो. ४, पद्य, भूपू (स्नातस्याप्रतिमस्य), ५००७१ (+), ४९०९२-२, ४९१३९, ४९५२३-२, १ ४९६६१, ४९७६८, ५०३५३, ५०८३९, ५१९४५-२, ५२०३०-२, ४८८०६-१ (# ), ४८९२९(#), ५११७५-१(#), ५१४६५-४(#), ४८३३१-३ (-), ५१०१३-३ (-) (२) पाक्षिक स्तुति बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू (स श्रीवर्द्धमानो जिन), ५००७१(M) (२) पाक्षिक स्तुति -टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (स्नान कराव्यु छे), ४९१३९ पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमंत्री कथानक, सं., प+ग., मूपू., (धर्मतः सकलमंगलावली), ४८८२१-२ ($) पार्श्वजिन १० भव वर्णन संक्षिप्त, प्रा. सं., गद्य, थे. (तेणं कालेणं तेणं समए), ५०४९४ For Private and Personal Use Only Page #514 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - १ पार्श्वजिन १० भव स्तवन, प्रा. गा. १५, पद्य, मूपु (नमिऊण चलणजुअलं पास), ५०४२७(+) पार्श्वजिन अष्टक, मु. रत्नसिंह, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (कल्याणकेलिसदनाय नमो), ४८७५३-५ पार्श्वजिन अष्टक, सं., श्लो. ९, पद्य, भूपू (ॐ नमो भगवते). ४९७२३-२ " पार्श्वजिन अष्टक मंत्रगभिंत, सं. लो. ८, पद्य, भूपू (श्रीमन्नागेंद्ररूद्र), ४८१५२ " पार्श्वजिन पद्मावतीदेवी छंद, मा.गु. सं., गा. ११, पद्य, मूपू., (कलिकुंडंदड ), ४९१०१(#) पार्श्वजिन परमेश्वराष्टक, सं., श्लो. ८, पद्य, श्वे., (त्रैरूप्यमस्ति), ४९५५६ - २(+) पार्श्वजिन अष्टक - महामंत्रगर्भित सं. श्री. ८, पद्य, भूपू (श्रीमदेवेंद्रवृंदा), ५१५४९-१(क) "" पार्श्वजिन अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र, मु. क्षेमराज, सं., श्लो १३, पद्य, मूपू (सिद्धक्षेत्रगोपाचल), ४८६६१-१(+) पार्श्वजिन घोघापुरमंडण स्तवन भवखंडा, ग. सोम गणि, सं., श्लो. २५, वि. १५०१, पद्य, मृपू. (श्रीइक्ष्वाकुकुल), ५०४६७- १(१) पार्श्वजिन घोघापुरमंडण स्तुति भवखंडा, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (श्रीमान् कल्पद्रुम), ५०४६७-२ (०) पार्श्वजिन - चिंतामणि मंत्र साधनाविधि, मा.गु, सं., गद्य, भूपू (ॐ ह्रीं श्रीं अर्ड), ४९८८३-२(१) पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., श्लो. ५, पद्य, म्पू, (ॐ नमः पार्श्वनाथाय), ४८६१२-३ (०), ५१३८६-१(+०), ५१८४४-३(+), ४८८३३-२, ५०५७८-२, ५०९०१-१, ५१८१२.२, ४९५७७-१०१, ५०५७२-२(१ पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वनाथ नमः), ५०३८७-१३(+#) पार्श्वजिन चैत्यवंदन - यमकबद्ध, मु. शिवसुंदर, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (वरसं वरस वरस वरसं), ४९२७३ (+), ४९४३४-२ (+) (२) पार्श्वजिन चैत्यवंदन - यमकबद्ध-अवचूरि, सं., गद्य, भूपू (वरा प्रधाना संवरस्य), ४९२७३ (+) "" पार्श्वजिन मंत्रजाप, मा.गु., सं., गद्य, म्पू, ( ओं नमो भगवते श्रीपार), ४९८४५-३+) पार्श्वजिन मंत्राधिराज स्तोत्र, सं., श्लो. ३३, पद्य, मूपू., (श्री पार्श्वः पातु), ५१९७८-३(+#), ४९९४३-१, ५०४२८ पार्श्वजिनमहिम्न स्तोत्र, आ. रघुनाथ, सं., श्लो. ४१, वि. १८५४, पद्य, स्था., (महिम्नः पारं ते परम), ५०७१६ पार्श्वजिन लघुस्तवन, मु. विनय, सं., गा. १०, पद्य, मूपू., (लोकालोक दिवाकर करुणा), ४९६३४-१(+) पार्श्वजिन स्तव - कलिकुंड, आ. मुनिचंद्रसूरि सं., श्लो १० पच मूपु. ( नमामि श्रीपाध), ४८८७७-२(+) " י* Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्श्वजिन स्तव कृष्णदुर्गमंडन, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (श्रीमत्पार्श्वसमस्त), ५०१६७-१(+) पार्श्वजिन स्तव गोडीजी म. धर्मवर्धन, सं., . ११, पद्य, भूपू (प्रणमति यः श्रीगोडी), ५०९४३ - १(०) पार्श्वजिन स्तव चिंतामणि, उपा. देवकुशल पाठक, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू (स्फुरदेवनागेंद्र ), ४८७६९ (+), ४९९९२ (०), ५०८८४, मु. ५१०८९-२, ५११४६-१ पार्श्वजिन स्तव जीरापल्ली, आ. लक्ष्मीसागरसूरि सं., श्लो. १३, पद्य, मूषू (श्रीवामेयं विधुमधुसु), ४९२३५, ४८४०५ (०), " "" ४९८५९-११ पार्श्वजिन स्तवन, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. २२, पद्य, मूपू., (नमिरासुरसुरविलसिरसिर), ५१२३२-१(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. देवसुंदर, सं., श्लो. १८, पद्य, मूपू., (भास्वन्महाः सुमहिमाव), ४९६१७-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. सौभाग्यमाणिक्य, सं., श्लो. १८, पद्य, मूपू., ( जय श्रीपार्श्वतीर्थे), ५०७७६ (+) पार्श्वजिन स्तवन, सं., श्लो. ५, पद्य, भूपू (अजपुरावनि वक्र), ४९२९४-३ पार्श्वजिन स्तवन, सं., पद्य, श्वे., ( गवां विलासे कुशलो), ५१२७७-३ (#$) पार्श्वजिन स्तवन, सं., गा. ८, पद्य, श्वे., (जयश्रिय निधौ स्वामि), ४८८०४-२ पार्श्वजिन स्तवन, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (तं नमह पासनाहं धरणिं), ४९८८९-२(+), ५०४१८-६(+), ५१३३३-५ ४९७ पार्श्वजिन स्तवन, सं., श्लो. ९, पद्य, श्वे., (समवशरणं स्वामिन्), ४९५५६ - १ (+) पार्श्वजिन स्तवन - अष्टमहाप्रातिहार्य गर्भित. मु. विनय, सं., श्लो. ७, पद्य, भूपू (सकल सुरासुर मानवनत), ४९६३४-२ (+) पार्श्वजिन स्तवन एकस्वरवर्णवृत्त, ग. पद्मराज, सं., श्लो. ७, पद्य, म्पू, (अमल कमल समतमकमल घन), ५११९८७-१(+) पार्श्वजिन स्तवन -गोडीजी, मु. जिनभक्ति, सं. श्री. ९, पद्य, मूपू. (जय जय गोडीजी महाराज), ४८२२२-१ " पार्श्वजिन स्तवन -जीरापल्लि, मु. मेरुनंदन, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (असुरनरसुरेंद्रश्रेणि), ४८६०८-२(+) पार्श्वजिन स्तवन - जीरावला, आ. जयशेखरसूरि, प्रा. गा. १६, पद्य, मूपू (देव दरिसणि देव दरिसण), ४८६७८-२(+) For Private and Personal Use Only Page #515 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१२ पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, प्रा., गा. ४, पद्य, श्वे., (पुण्णसंपुण्ण चंदाणणो), ४९९१९-२(+#) पार्श्वजिन स्तवन-भवखंडा, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (भावभासुरा सुरनम्रा), ४९६२३-३ पार्श्वजिन स्तवन-महीशानपुर मंडन, सं., श्लो. ८, पद्य, श्वे., (श्रीनाभेयोः वृषांकः), ४८८९५-६(+) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर मंडण, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (नमः पार्श्वनाथाय), ५०५०३(#) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरमंडन, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., श्लो. २६, वि. १६६७, पद्य, मूपू., (समभिनम्य गुरु), ५०४२३(+) पार्श्वजिन स्तवन-शृंखलाबंध, मु. जैनचंद्र, सं., श्लो.७, पद्य, मूपू., (सर्वदेवसेवितपदपद्म), ४८४१६ पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभन, आ. अभयदेवसूरि, सं., गा. ५, पद्य, मूपू., (कल्याणकेलि कमला), ५०९४३-२(+) पार्श्वजिन स्तव-फलवर्द्धि, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (ॐ नमो हरउ जरं मम हरो), ४९३८०-२, ५०५५१-२, ५००६२-२(#) पार्श्वजिन स्तव-लघु, मु. शिवसुंदर, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (गुणश्रेणिरत्नावली), ४८६६१-२(+) पार्श्वजिन स्तव-स्तंभनतीर्थमंडन, मु. जयसागर, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (योगात्मनां यं मधुरं), ४९०५५-१(#), ४९९५५(#) (२) पार्श्वजिन स्तवन-अवचूरि, मु. जयसागर, सं., गद्य, मूपू., (योगो ज्ञानदर्शनचारित), ४९०५५-१(#), ४९९५५(#) पार्श्वजिन स्तव-स्तंभन मंत्रगर्भित, ग. पूर्णकलश, प्रा.,सं., गा. ३७, ई. १२००, पद्य, मूपू., (जसु सासणदेवि वएसकया), ४९८४५-१(+) (२) पार्श्वजिन स्तव-स्तंभनक मंत्रगर्भित-स्वोपज्ञ वृत्ति, ग. पूर्णकलश, सं., गद्य, मूपू., (जं संथवणं विहिय तस्स), ४९८४५-१(+) पार्श्वजिन स्तव-स्थंभनतीर्थ नवग्रहगर्भित, सं., श्लो. १२, पद्य, मूपू., (जीयाज्जगच्चक्षु), ४९६२६-१(+#) (२) पार्श्वजिन स्तव-स्थंभन नवग्रहगर्भित-अवचूर्णि, सं., गद्य, मूपू., (सूर्यपक्षे छायाभार्य), ४९६२६-१(+#) पार्श्वजिन स्तुति, मु. कमलोदय, सं., श्लो. १, पद्य, म्पू., (ब्रह्मेन्द्रनीलमणि), ५१३८६-८(+#) पार्श्वजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (विशदसद्गुणराजिविराजि), ५१२२४-१(+#) पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (कल्याणानि समुल्लसंति), ५१३३२-५ पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (कल्याणोदय पुष्प), ५००७७-२(+#) पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (देवदेवाधिपैः सर्वतो), ५०८८९-५(2) पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (निष्ठुरकमठमहासुर), ५०८८९-६(#) पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (प्रोद्यत्पादारविंद), ५०६२१-१(+) पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (हर्षनतासुरनिर्जरलोक), ४९१३४-४(+#), ४९८४९-३(+#) (२) पार्श्वजिन स्तुति-टिप्पण, सं., गद्य, मूपू., (--), ४९१३४-४(+#) पार्श्वजिन स्तुति-२४ महादंडक, आ. भुवनहितसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (जिनपति विततिस्तनोतु), ५१८३६-४(+#$) पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (नै दें कि धप), ४८४४१-१(+), ४९६८१(+), ४९९४२-१(+-), ५०७५६(+),५१३२२-१(+), ४८२२३-२,४८६६४-२,५१३६४,५२०३८-२,५२०३३-३(#), ४९६३३-६($) पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रीसर्वज्ञ ज्योति), ४९१३४-५ (+#$), ५११७२-१,५१८५३-१(#), ४८६६४-४(६) पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित जेसलमेरमंडन, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (शमदमोत्तमवस्तुमहापणं), ५१०७९-३(+), ४९६३३-२, ५१६३६-२ पार्श्वजिन स्तुति-समवसरणभावगर्भित, आ. जिनकुशलसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (हर्षनतासुरनिर्जरलोक), ४९६७९-३ पार्श्वजिन स्तोत्र, आ. शिवनाग, सं., श्लो. ३९, पद्य, मूपू., (धरणोरगेंद्रसुरपति), ५०२३९(+), ५१६२०(+#), ५१७५६-१ पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ३९, पद्य, मूपू., (धरणोरगेंद्र सुरपति), ५०६७४ । पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, श्वे., (स्यामावरम विराजतोपि), ४९३८०-१, ५००६२-१(#) पार्श्वजिन स्तोत्र-कलिकुंड, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं तं नमह), ४९६८४-२, ५१६००-१, ५१६००-२, ५१६१३ पार्श्वजिन स्तोत्र-गोडीजी, मु. रामविजय, मा.गु.,सं., गा. १४, पद्य, मूपू., (नमु सारदा सार), ५१८४६-२, ५१४४३-२(#) पार्श्वजिन स्तोत्र-गोडीजी, मा.गु.,सं., गा. ९, पद्य, मूपू., (सकल भविकचेतः कल्पना), ४८४२७(-), ५०७५९-१(-) पार्श्वजिनस्तोत्र-गौडीजी, पं. ज्ञानतिलक, सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू., (शास्वतलक्ष्मीवल्ली), ५०३८०-२(#) For Private and Personal Use Only Page #516 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९९ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (किं कर्पूरमयं सुधारस), ५०६८२-२(+$), ५१४०३-१(+#), ५००२३, ५०६०५-२, ५०९४४(#), ५१५३७-१(#), ५१६१७(#) पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि देवकुलपाटकस्थ, सं., श्लो.७, पद्य, मूपू., (नमो देवनागेंद्रमंदार), ४८६८७ पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणिमहामंत्रगर्भित, धरणेंद्र, सं., श्लो. ३२, पद्य, मूपू., (ॐ ह्रीँ श्रीँ अर्ह), ४८२२५-२(5) पार्श्वजिन स्तोत्र-जीरापल्लिपुरमंडन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (प्रणम्य परमात्मानं), ५०८५५-१(+) पार्श्वजिन स्तोत्र-जीरावला महामंत्रमय, आ. मेरुतुंगसूरि, सं., श्लो. १४, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (ॐ नमो देवदेवाय नित्य), ५२००६, ५०१४९(#) पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., गा. १०, वि. १४वी, पद्य, मपू., (दोसावहारदक्खो नालिया), ४९१३४-१(+#$), ४९९४५-४(+#), ५०९१३(+#), ५१३०५(+), ५१७७१-२(+#), ४८४३३, ४९६५९, ५०४२५-१, ५०९१५-१,५१२२५, ५१९४३-१(#$) (२) पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहगर्भित-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (दोषादीनां भूतादीनां), ५१३०५(+), ५१७७१-२(+#) (२) पार्श्वजिन स्तोत्र-मवग्रहगर्भित छाया, सं., गद्य, मूपू., (दोषापहारदक्षो), ५०९१३(+#) पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहगर्भित, प्रा., गा. १२, पद्य, मूपू., (अरिहं थुणामि पास), ५१९४२-२(#) पार्श्वजिन स्तोत्र-लक्ष्मी, मु. पद्मप्रभदेव, सं., श्लो. ९, पद्य, दि., (लक्ष्मीर्महस्तुल्य), ५०८५५-२(+), ५१७१२ (२) पार्श्वजिन स्तोत्र-लक्ष्मी-टीका, आ. मुनिशेखरसूरि, सं., गद्य, मूपू., दि., (लक्ष्मी इत्यादि), ५१७१२ पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, मु. लब्धिरूचि, मा.गु.,सं., गा. ३२, वि. १७१२, पद्य, मूपू., (जय जय जगनायक), ५१४४५-१(+#), ४९७९९ पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वनाथो), ४९२९४-२ पार्श्वजिन स्तोत्र-समंत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (ॐ नमो भगवते), ५१९१६-९(2) पार्श्वधरणेद्रपद्मावती स्तोत्र, सं., गद्य, मूपू., (नमो भगवते श्रीपार्श), ५१२६३(+#), ४८९६४ पाशाकेवली, मु. गर्ग ऋषि, सं., श्लो. १९६, पद्य, श्वे., (महादेवं नमस्कृत्य), ४९६६५, ५०३०४ (२) पाशाकेवली-पाशा ढालन विधि, संबद्ध, सं., श्लो. ५, पद्य, श्वे., (ॐ नमो भगवती कुष्मांड), ४८३७१-२ (२) पाशाकेवली-भाषा*,संबद्ध, मा.गु., गद्य, श्वे., (१११ उत्तम थानक लाभ),५१५१३, ४९९८५-१(2) पिंडविशुद्धि प्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. १०३, पद्य, मूपू., (देविंदविंदवंदिय पयार), ५०५१० पिंडस्थाध्याने पंचधारणा, सं., श्लो. ३१, पद्य, म्पू., (तस्मिन्पिंडस्थसध्यान), ५०६७७(#) पुंडरीकगणधर स्तवन, आ. लक्ष्मीसागरसूरि, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (शत्रुजय शैलराज शिखर), ५०२५७(+#) पुंडरीकगिरि पूजाविधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (पूर्वं सकल श्रीसंघ), ४९३२९-६(+) पुण्य कुलक, प्रा., गा. १०, पद्य, मूपू., (सपुन्न इंदिअत्त माणु), ४९६७५(+), ५०७४४(+), ५०७७७-१(+), ५११०३-२(+$), ५११२६(+), ५१३३३-१ (२) पुण्य कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पुरु पंचिन्द्रियपणो), ४९६७५(+), ५०७४४(+), ५०७७७-१(+), ५११२६(+) पुण्यपाप कुलक, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., गा. १६, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (छत्तीसदिवस सहस्सा), ४९२९२-१(+), ४९५९२-१(+#), ५०१००(+#), ५१५९५(+),४९२६२, ४९५६३, ४९८४७-२, ५०५०५(#) (२) पुण्यपाप कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवै सो वर्षना दिन), ५०१००(+#$), ४९२६२ पुद्गलपरावर्त स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (श्रीवीतराग भगवंस्तव), ५१७८३(+), ४८३०८ (२) पुद्गलसंख्या स्तवन-अवचूरि, सं., गद्य, म्पू., (हे श्रीवीतराग हे), ४८३०८ (२) पुद्गलपरावर्त स्तोत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, म्पू., (हे वीतरागदेव ताहरा), ५१७८३(+) पुद्गलपरावर्तस्वरूप विचार-चतुर्विध, सं., गद्य, मूपू., (स्यात्पुद्गलपरावर्त), ४८७३५-२(+#) पुद्गलपरावर्त विचार, प्रा., गा. ११, पद्य, मूपू., (दव्वे खित्ते काले०), ४८७३५-१(+#) (२) पुद्गलपरावर्त विचार टीका, सं., गद्य, मूपू., (कम्मा० सर्वस्तोकः), ४८७३५-१(+#) (२) पुद्गलपरावर्त विचार-टिप्पण, सं., गद्य, मूपू., (औदारिक वर्गणा१), ४८७३५-१(+#) पुलाकबकुशकुशीलादि पंचभेद विवरण, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (गमे तु पुलाकबकुश), ४८८७४(+#) For Private and Personal Use Only Page #517 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५०० www.kobatirth.org पुस्तकप्रतिक्रमण स्थापन विधि, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (पुस्तकपूजनं ईर्यापथ), ४९३२९-४ (+) पूर्वाचार्य पट्टावलीनामा, सं., श्लो. ८, पद्य, भूपू (श्रीवर्धमानय श्रीमते), ५११७३-१(१) पौषदशमीपर्व कथा, सं., गद्य, मृपू., (अभिनवमंगलमालाकरण), ५१८०२ पौषध पारने की विधि, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (सामाइक पोसो सिंठियस), ४८७६८-२ ($) पौषधप्रतिक्रमण स्थापन गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (पाणिवह मुसावाए अदत्त), ४९३२९-५ (+) पौषध विधि, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू (प्रथम इरियावही पडीकम), ४८९१० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१२ " प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा. पद. ३६, सू. २१७६ ग्रं. ७७८७, गद्य, म्पू, नमो अरिहंताणं० ववगव), प्रतहीन. (२) प्रज्ञापनासूत्र - हिस्सा २१पद आनतदेवादि शरीरमान, वा. श्वामाचार्य, प्रा., गद्य, मूपू.. ( आणवदेवस्स णं भंते ), ४९०७५-४ (३) प्रज्ञापनासूत्र - हिस्सा २१ पद आनतदेवादि शरीरमान की टीका, सं., गद्य, मूपू (आनतदेवस्वापि जयन्यतो), ४९०७५-४ (२) प्रज्ञापनासूत्र - हिस्सा पद १ से ४, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, मूपू., (कहिणं भंते आसालिआ), ५०५१५ (+) (३) प्रज्ञापनासूत्र - हिस्सा पद १ से ४ की टीका, सं., गद्य, म्पू, (अत्र प्रज्ञापनासूत्र), ५०५१५ (+) "" (२) प्रज्ञापनासूत्र -सज्झाय, संबद्ध, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (कहजो रे पंडित ते), ४८३५१-३ प्रज्ञाप्रकाशषट्त्रिंशिका, मु. रूपसिंह, सं., श्लो. ३७, पद्य, वे. (प्रज्ञाप्रकाशाय नवीन), ४९२१७ (+३), ५०१६०(4) (२) प्रज्ञाप्रकाशषट्त्रिंशिका टबार्थ, मा.गु., गद्य, वे (प्रज्ञा क० बुद्धि), ४९२१७(+३), ५०१६० (क) प्रतिक्रमण समाचारी, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. ४०, पद्य, मूपू., (सम्मं नमिउं देविंद), ४९११०-२(+#), ५०८१६ (+) प्रतिलेखनादि कालमान गाथा, प्रा., गा. ६, पद्य, म्पू, (आसाढे मासे दुपया पोस), ४९३२९-३(+) प्रतिष्ठा विधि, मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (पूर्वोक्त शुभ दिवसे), ५१३०१ प्रतिष्ठा विधि संग्रह, मा.गु., सं., पद्य, मूपू., (मूल गुंभारेकुं आछीतर), ४९३५०-१ प्रत्याख्यान भाष्य, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा. गा. ४८, पद्य, मूपू. (दस पच्चक्खाण चउविधि), ४९११०-१(+४६), ४९०७२(5) " " प्रत्येकविंशति पूजा भेद, सं., श्लो. १, पद्य, वे (स्नानं १ विलेपनं २), ४८६८६-२ प्रदेशीराजा प्रश्नोत्तरी, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (अज्जय १ अज्जा २ कुंभ), ५१६२८ (२) प्रदेशीराजा प्रश्नोत्तरी - टीका, सं., गद्य, मूपू., (केवई देशे श्वेतांबि), ५१६२८ प्रभातिमंगल स्तुति, प्रा. गा. १८, पद्य, मूपू. (गोयम सोहम जंबू पभवो), ५१३३३-७ प्रभाती स्तवन, सं., श्लो. २, पद्य, वे., (ब्राह्मी १ चंदनबालिक), ५२०१४-३(#) प्रमत्ताप्रमत्त निरूपण भगवतीसूत्र तृतीयशतक तृतीयोदेशगत, सं., गद्य, मूपू., (अथ संयतस्व प्रमत्त), ५०७१२-२(+) प्रव्रज्या कुलक, प्रा., गा. ३४, पद्य, भूपू (संसारविसमसायर भवजल), ५१३१२-३ प्रव्रज्या विधि, प्रा., मा.गु., प+ग., मूपू., (दीक्षा लेतां एतला), ४९९५८, ४८३७६ (#) प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. १०, गा. १२५०, ग्रं. १३००, प+ग, मूपू., (जंबू अपरिग्गहो संवुड), प्रतहीन. (२) २१ सबला नाम व्याकरण पंचमसंवरद्वारगत, संबद्ध, सं., गद्य, भूपू (एकविंशतिः सबला), ४९०७५-३ (२) प्रदेशी प्रश्न, प्रा., गद्य, मूपू.. (अजयसुरीकंता १ तह), ५१६५४-१(०) (३) प्रदेशी प्रश्न -टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (दादो मोह करतो ते मरि), ५१६५४-१(#) प्रश्नोत्तर - एकोत्तरा गर्भित, प्रा. मा.गु. सं., प्रश्न. ५८, प+ग. जे. ? (-), ४८७९६ -१(5) " प्रश्नोत्तररत्नमाला, आ. विमलसूरि सं . २९, पद्य, भूपू (प्रणिपत्य जिनवरेंद्र), ४८६७६ (+), ४९६६८, ५०८२४-१, ५०२४७१ , (२) प्रश्नोत्तररत्नमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमी करी श्रीमहावीर), ५०२४७(#) प्रस्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., गा. ६१, पद्य, भूपू (धर्माज्जन्मकुले शरीर), ५१०५३-४(+४), ५११४९-३ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रहेलिका हरियाली, मा.गु. सं., गा. ३, पद्य, श्वे., (अपदो दूरगामी च), ५०५९८-१(+-#), ४९९०४-३ प्राचीन जैनेतर धर्मग्रंथों से उद्धृत जैन संदर्भ, पुहिं. प्र. सं., गद्य, क्षे. वै., (--), ५०७७३ " " प्राणातिपात भेद विचार, प्रा. सं., गद्य, म्पू, (अज्ञानं संशयश्चैव), ४९६३८-९ " " प्राणातिपातविरमण १७६ भेद विचार, प्रा. मा.गु, गद्य, म्पू, (सव्वाउ पाणाइवायाउ), ५१११३-४(+) प्राणीबध के २४३ भेद, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (भूजल जलणा निलवर्णा), ४९६३८-२ For Private and Personal Use Only Page #518 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ . प्रास्ताविक गाथा संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., गा. २८, पद्य, भूपू (पंचमहव्वयसुव्ववमूल), ४८७७१-२ (+) प्रास्ताविक लोक संग्रह, प्रा., सं., श्लो. ५७, पद्य, जै. ?, (दाता दरीद्री कृपणो ), ४९६३६-२, ५०३६४-३ बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि प्रा. गा. २५. वि. १३वी १४वी, पद्य, मूपू. (बंधविहाणविमुकं), ५०२७१(+) (२) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथवार्थ, मा.गु, गद्य, भूपू (कर्म बंधना प्रकारथी), ५०२७१(+) बलभद्रमुनि रास, मु. यशोभद्रसूरिशिष्य, प्रा. मा.गु., पद्य, मूपू (वीर जिणंदह पय पणमेवी), ४८७७४ बालत्रिपुरासुंदरीदेवी स्तोत्र, मा.गु. सं., गा. ६, पद्य, वै., (नित्यानंदकरी आई आणंद), ५१९१६-६(#) बिंबपूजा परीक्षा, सं., श्लो. २७, पद्य, श्वे. (पित्तलसुवन्नरुप रयणा), ४९३०१-२(+#) बिंबप्रवेश विधि, मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (गुरु शुक्रोदये भव्यं), ५१३८७(+) बिंबप्रवेश विधि, मा.गु., सं., प+ग, मूपू., (पहिलं मूहूर्त), ५०२७६ (#) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बीजतिथि स्तुति, प्रा. गा. ४, पद्य, भूपू (महीमंडणं पुन्नसोवन्न), ४९९४५-५ (+), ५१०७९-१(०), ४९६७९-५ " बुध स्तोत्र, सं., श्रो. ३, पद्य, वै., (बुधः चतुर्थग्रह), ५०३८७-४(+) बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., उ. ६, ग्रं. ४७३, गद्य, मूपू., (नो कप्पइ निग्गंथाण), प्रतहीन. (२) बृहत्कल्पसूत्र-प्रायश्चित्तादि विधि संग्रह, संबद्ध, सं., गद्य, मूपू., (गिरिनइ तलागमाई एमेवा), ५०४३०-२(+) बृहत्शांति स्तोत्र - खरतरगच्छीय, सं., प+ग., मूपू., (भो भो भव्याः शृणुत), ४८२२१ बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., मूपू., (भो भो भव्याः शृणुत), ४९१६९ (+), ४९५७४ (+), ४९८४२ -१(+), ४८८०५, ४९२८१-१, ४९६६६, ४९६६७, ५०९७०, ५१९६५, ४८३०३ (#S), ५१५९४(#) बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि प्रा. गा. ३४९, वि. १२वी, पद्य, म्पू., (नमिउं अरिहंताई ठिङ), ५०४६३ (+) बृहस्पति स्तोत्र, सं., श्लो. ५, पद्य, वै., ॐ बृहस्पतिः सुरा), ४९१३४-२ (००), ५०३८७-५ (+०) ५१५७४-२०१ बोल संग्रह, प्रा. मा.गु. सं., गद्य, भूपू ( जीवाय १ लेसा ८ पखीय), ५०६६४-५ (+), ४९४६८-१, ५१३९७-३ बोल संग्रह प्रा. मा.गु. सं., गद्य, थे. (हिवे शिष्य पूछे), ४९६४२(३) 1 "1 *, , ब्रह्मचर्यव्रतप्रत्याख्यान आलापक, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., ( प्रथम इरियावही), ४९७४५ (+), ४८५३६-३, ५०७७५-३, ५१२०९ ब्रह्मद्वीपिकशाखा तापस कथा, सं., गद्य, श्वे., (अचलपुरं नामनगरं तत्र), ४८८९०-४ भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., श्लो. ४४, पद्य, मूपू. (भक्तामरप्रणतमौलि), ४८९६२ (+), ४८९६८ (+), ४९०५२(+), ४९८६६-१(+), ५११५३(५), ४९७७५, ५०४१०, ५१३११-१०) ५१४७५-१४), ५१९४३-२ (४७), ५२०००) (२) भक्तामर स्तोत्र -टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (भक्तिवंत अमर कहेता), ४८९६८(+) (२) भक्तामर स्तोत्र-शेषकाव्य, हिस्सा, आ. मानतुंगसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., दि., (गंभीरताररवपुरिदिग्वि), ५१३११-२(#) (२) भक्तामर स्तोत्र आम्नाय संबद्ध, मा.गु. सं., गद्य, भूपू (भक्तामरेति प्रथम), ४८७२८ (०) (२) भक्तामर स्तोत्र-मंत्र, संबद्ध, सं., मंत्र. ४८, गद्य, मूपू., (ॐ ह्रीँ अर्हणमो), ५११९९ भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., शत. ४१, सू. ८६९, ग्रं. १५७५२, गद्य, मूपू., (नमो अरहंताणं० सव्व), ५०२९७(+) (२) भगवतीसूत्र- टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं. शत. ४९ ग्रं. १८६९६, वि. १९२८, गद्य म्पू (सर्वज्ञमीश्वरमनंत), प्रतहीन. (३) भगवतीसूत्र टीका का हिस्सा परमाणुखंडषट्त्रिंशिका प्रकरण, प्रा. गा. १५, पद्य, भूपू (खित्तोगाहणदव्वे भावट), ', 1 ४९१७१-१ (+) (४) परमाणुखंडषट्त्रिंशिका प्रकरण- टीका, आ. रत्नसिंहरि, सं., गद्य, मूपू., (यथास्थिताणुजीवादिपदा), ४९१७१-१(+) (२) भगवतीसूत्र - उदायणराव कहा, हिस्सा, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं० सिंधु), ५०१०३ (२) कालादेसीसप्रदेशादि विचार, संबद्ध, प्रा., गा. ५, पद्य, भूपू (कालावेसेण जीवाण), ४९३९२ (+) (३) कालादेसीसप्रदेशादि विचार-टवार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवि समुचि जीव आश्री), ४९३९२ (+) (२) भगवतीसूत्र -आलापक संग्रह *, संबद्ध, प्रा., गद्य, मूपू., (कहण्णं भंते जीवा गुर), ४९०४८ (+$) (३) भगवतीसूत्र -आलापक संग्रह टीका, सं., गद्य, भूपू (येस सम्यक्त्वा), ४९०४८ (+३) " (२) भगवतीसूत्र - हिस्सा शतक३ उद्देश३ मंडितपुत्र दृष्टांत, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, मूपू., (जीवेणं भंते सयासमियं), ५१५४५ (३) भगवतीसूत्र - हिस्सा शतक३ उद्देश३ मंडितपुत्र दृष्टांत की टीका, सं., गद्य, मूपू (इह जीवग्रहणेपि सयोग), ५१५४५ " For Private and Personal Use Only ५०१ Page #519 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१२ (३) भगवतीसूत्र-आलापक संग्रह-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (सदा सर्वदा समियंति), ४९०४८(+$) (२) भगवतीसूत्र-गहुली, संबद्ध, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सहियर सुणीये रे भगवत), ५०४५४, ५२००९-३ (२) भगवतीसूत्र-भास, संबद्ध, मु. राजविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सिरीवीरजिणंद वंदिजे), ४८८६३-२ (२) भगवतीसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. २१, वि. १८४३, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर अरथ), ५०६८१(+) (२) भगवतीसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. २४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (आवो आवो रे सयण भगवती), ४८७०६ (२) भगवतीसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. २०, वि. १७३८, पद्य, मूपू., (वंदि प्रणमी प्रेमस्य), ५००४३(+), ४८१६५-१, ५१४५१, ५११२५(#) (२) समवसरण विचार-भगवतीसूत्रे-शतक३०, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवाय लेश पखी दिट्ठी), ५१८०० भडली संग्रह, मा.गु.,सं., पद्य, (अथ पुनम के विचार।), ४९८९३-२ भवचरिम पच्चक्खाण, प्रा., गद्य, मूपू., (भवचरिमं पच्चखामि), ४९८४६-२ भवनपति गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (सिग्ध गमिस्संति), ५०९५१-१(+#) भवस्थिति स्तोत्र, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., गा. १९, पद्य, मूपू., (सिरिधम्मकित्ति कुलहर), ४८३८५-१ भारती स्तवन, सं., श्लो. ९, पद्य, स्पू., (राजते श्रीमती देवता), ४९६२९-१(#) भारती स्तोत्र, ऋ. दुर्वासा ऋषि, सं., श्लो. १२, पद्य, वै., (अंतः कुंडलनि), ५१९७३-१(+) भावना कुलक, प्रा., गा. २२, पद्य, मूपू., (निसाविरामे परिभावयाम), ४८८३८ (२) भावना कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नि० रात्रीनइ अंतिइ), ४८८३८ भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., श्लो. १७०, वि. १३पू, पद्य, मूपू., (सारस्वतं नमस्कृत्य), ४८८९४(#) भुवनेश्वरी अष्टक, सं., श्लो. ८, पद्य, श्वे., (ॐ ऐं ह्रीं श्रीं), ५१९९३-१, ५२०१२-१ भूतबलि मंत्र, प्रा., गद्य, श्वे., (ॐ नमो अरिहंताण), ५०१२६-१, ५१६१६-१ भूमिशुद्धि मंत्र, सं., गद्य, मूपू., (ॐ भूरसि भूतधात्री), ५०२३७-३ भैरवाष्टक, शंकराचार्य, सं., श्लो. ११, पद्य, वै., (एकं खट्वांगहस्तं), ४९८५९-२(2) मंगल स्तोत्र, सं., श्लो. ४, पद्य, वै., (मंगलो भूमिपुत्रश्च), ५०३८७-३(+-#) । मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, उ.,पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., वै., (श्री ॐ नमः आदि सुदिन), ४८५१९-३, ४९८३८-२, ५०२१८-२(#), ५१६३४-२(#) मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मपू., (--),४८४९७-३(+), ४९८३७-३(+),४९८७७-२(+),५०२३०-२(+#), ५१४०५-१(+#), ४९२६९-२, ५१२७८-५(#),४८४५८-१(६) मंत्र संग्रह, सं., गद्य, मूपू., (--), ५०५०८-५, ५०५३७-३(#) मदनभ्रम महाराज प्रबंध, सं., प+ग., म्पू., (बंगालदेशे कात्यांप), ५१२९४ मनःस्थिरीकरण प्रकरण, आ. महेंद्रसिंहसूरि, प्रा., पद्य, मूपू., (--), प्रतहीन. (२) मनःस्थिरीकरण प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ५१३६९(+#$) मनुष्यभवदुर्लभता १० दृष्टांत काव्य, प्रा.,सं.,मा.गु., श्लो. ११, पद्य, श्वे., (चुल्लग पासग धन्ने), ५१११०, ५०९५६(#S) (२) मनुष्यभवदुर्लभता १० दृष्टांत गाथा-कथा, मा.गु., गद्य, श्वे., (कपिलपुरनगरे ब्रह्मदत), ५०९५६(#$) महादंडक स्तोत्र, प्रा., गा. २०, पद्य, मूपू., (भीमे भवम्मि भमिओ), ४८८९२-२(+#), ४९३३३(#) (२) महादंडक स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (भीमे भवेति० १ गब्भ०), ४८८९२-२(+#S), ४९३३३(#) महादेव स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. ४४, पद्य, मूपू., (प्रशांतं दर्शनं यस्य), ४९०७० महानिशीथसूत्र, प्रा., अध्य. ६ चूलिका २, ग्रं. ४५४४, गद्य, मूपू., (ॐ नमो तित्थस्स ॐ), ४९०११, ४९१२६(७) (२) महानिशीथसूत्र-टिप्पण, सं., गद्य, मूपू., (--), ४९१२६(क)। महापुराण, आ. जिनसेनाचार्य, सं., पर्व. ४७, वि. ९वी, पद्य, दि., (श्रीमते सकलज्ञानसाम्), प्रतहीन. (२) महापुराण-जयपताकायंत्र कल्प, संबद्ध, सं., श्लो. ४५, पद्य, दि., (पूर्वावायू यमश्चैव), ४९४९८ For Private and Personal Use Only Page #520 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ महालक्ष्मी स्तव, सं., श्लो. ११, पद्य, भूपू., (आद्यं प्रणवस्ततः), ४९७७४ महाविदेहस्वरूपमान गाथा, प्रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (एगा कोडाकोडी तेसट्ठि), ४९८९१-३(+) महाविद्या जप साधना, सं., प+ग, वे., (श्री हीँ क्लीँ एँ), ४८४५८-३ (७) महावीरजिन अर्ध लोक चमकमय, सं., श्लो. १, पद्य, मृपू., (वीरो वीर जिनो वीरो), ४८५६१(+) (२) महावीरजिन अर्ध श्लोक -यमकमय -वृत्ति, सं., गद्य, मूपू., (विविधा अनेक प्रकारईत), ४८५६१(+) महावीरजिन कलश, आ. मंगलसूरि, प्रा., मा.गु. सं., श्लो. १८, पद्य, मूपू (श्रेयः पवयतु वः), ४८२३०-१(+) こう महावीरजिन चैत्यवंदन, सं., श्लो. ३, पद्य, श्वे. (जयति शततोदय), ५०३८७-१२शक् महावीर जिनद्वात्रिंशिका स्तव, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि. सं., श्लो. ३३, वि. १वी, पद्य, मूपू (सदा योगसात्म्यात्) ५०१९९, ५१९२६ महावीर जिन बालप्रसंग दृष्टांत, प्रा., गा. १७, पद्य, मूपू. (चलिय मेरु सलसलिय सेस), ५१६३७-१(+) महावीरजिन विशेषण, प्रा., गा. ८, गद्य थे. (नमिऊण असुरसुरगुरल), ४८७९४-२(०) महावीरजिन स्तव, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. १७, पद्य, मूपू., (निस्तीर्णविस्तीर्णभव), ५१५४७ (+) महावीर जिन स्तव, आ. पादलिप्तसूरि, प्रा. गा. ४, पद्य, मूपू., (गाहाजुयलेण जिणं मय), ५०४१८-७(+) , महावीरजिन स्तव, प्रा., गा. ६, पद्य, म्पू, (जय नवनलिन कुवलय), ४९३८०-३, ५००६२-३(०) महावीरजिन स्तव, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (त्रिलोकीपतिं निर्जित), ४८८९५-१(+) महावीरजिन स्तव, सं., श्रो. १०, पद्य, भूपू (सिद्धपुराभिध नगर), ५१९३८-१ महावीरजिन स्तवन, मु. देवसुंदर, सं., श्लो. १२, पद्य, मृपू. (तवगुण कणव्रत्यां वीर), ४९६१७-१ (२) महावीरजिन स्तवन - टीका, आ. जयचंद्रसूरि सं., गद्य, म्पू, (अत्र कण शब्दोनुरोधेन), ४९६१७-१ " , महावीरजिन स्तवन, वा. राजविमल, सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानं घन), ५१२२८(+#) महावीरजिन स्तवन, मु. लब्धिसागर शिष्य, मा.गु., सं., श्लो. १२, पद्य, मूपू., (जयसि साकर मोदक हे), ५००४९-१(+) महावीरजिन स्तवन, आ. शीलरत्नसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (सकल कलकुशल फलक कमलवन), ४९६२३-२ महावीरजिन स्तवन- चक्रबंध, आ. कुलमंडनसूरि, सं., श्लो. २१, पद्य, मूपू., (विश्वश्रीद्ध रजश्छिद), ५०३३६-१(+#) (२) महावीरजिन स्तवन- टिप्पण, सं., गद्य, भूपू (विश्वश्रद्ध चतुस्त), ५०३३६-११००) "3 महावीरजिन स्तवन- द्वात्रिंशत्कमलदलबंध, ग. उदयधर्म, सं., श्लो. १८, पद्य, मूपू (सन्नमत्रिदशवंद्यपदं), ४९९३०(१) महावीरजिन स्तव बृहत् आ. अभवदेवसूरि, प्रा. गा. २२, पद्य, मूपू., (जइज्जा समणे भगव), ४८६८२-१ (५), ४९१२४-२(०), ५०१४४(+), ५०२८६(+#), ४९४०२, ५०६३०, ५१४३३-१(#) (२) महावीरजिन स्तव - बृहत् - बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (जय क० कल्याण जा क०), ५०१४४(+) (२) महावीरजिन स्तवन - बृहत्-टवार्थ, मा.गु, गद्य, भूपू (जइज्जा समणेनो अर्थ), ४९१२४-२ (+), ५०२८६ (+) י Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महावीरजिन स्तव - समसंस्कृत, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., सं., श्लो. ३०, पद्य, मूपू., (भावारिवारणनिवारणदारु), ४९०५१(+) (२) महावीरजिन स्तवन -टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अंतरंग वयरी क्रोधादि), ४९०५१ (+) महावीरजिन स्तुति, मु, गुणोदय, सं., श्लो. २८, पद्य, मूपू (सोल्लास सिद्धं कमला), ४९४८७(१) महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (नमोस्तु वर्द्धमानाय), ४९३३०-१(+), ५१२१५-१(+#), ४८७६८-१, ५१०१९-३(#) (२) महावीरजिन स्तुति - टीका, सं., गद्य, मूपू., (वर्धमानाय नमोऽस्तु), ४९३३०-१(+), ५१२१५-१(+#), ५१०१९-३(#) महावीरजिन स्तुति, प्रा., मा.गु. सं., गा. ११, पद्य, मृपू (पंचमहव्ववसुव्वयमूल), ४९२१२-२(+), ४८९३२-२, ५०१०८-२, ५१०८१-३ (२) महावीरजिन स्तुति -टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पं० पंच महाव्रत अने), ४८९३२-२ महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (पापा धाधानि धाधा), ४८२७७(+) . महावीर जिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, श्वे. (यदंहि नमनादेव), ५०८८९-१(#) महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (यदंहिनमनादेव देहिन), ४९९४५-६(+#) For Private and Personal Use Only ५०३ Page #521 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१२ महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (वीरं देवं नित्यं), ५१०७९-५(+), ५१३८६-६(+#), ४८७६१-५, ४९६७९-४, ५११७२-२, ५१३१२-६, ५०१५२-२(#) महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (श्रीदेवार्यं विश्ववर), ५१२२४-३(+#) महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, श्वे., (श्रीवीरोदितवाचश्च), ५१३३२-७ महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (संप्राप्तसंसारसमुद्र), ५०५९८-२(+-#$) महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (सुवर्ण सद्वर्ण सवर्ण), ५०६२१-३(+) महावीरजिन स्तुति दीपावलीपर्वगर्भित, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (दीपालिका पर्वणि), ४९८६०-२(-) महावीरजिन स्तुति-द्विरूप साफल्योपदर्शक, मु. पुरुषोत्तम, सं., श्लो. २२, पद्य, मूपू., (श्रीवीरत्वां स्तुवे), ४९४५१ (२) महावीरजिन स्तुति-द्विरूप साफल्योपदर्शक-टीका, सं., गद्य, मूपू., (श्रीभुवः कामस्य जये), ४९४५१ महावीरजिन स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., गा. ५, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (जयसिरिजिणवर तिहुअणजण), ४९८२७-१, ५१६७६-२(#), ५१९८८-२(-2) महावीरजिन स्तोत्र, मु.रूप, सं., श्लो.७, पद्य, स्था., (विबुधरंजकवीरककारको), ४९९१८(+), ५०८९१-१ (२) महावीरजिन स्तोत्र-टिप्पण, मा.गु., गद्य, स्था., (क १ ख २ ग ३ घ ४ च ५), ४९९१८(+) महावीरजिन स्तोत्र-पाखंडीविचारगर्भित, प्रा., गा. ९, पद्य, श्वे., (सिरिवज्जसेण पणयंति), ४९५९९-२ मांगलिक श्लोक, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (ॐकार बिंदु संयुक्त), ५०५५२-२(#) मांगलिक श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (सर्वमंगल मांगल्य), ४९५८०-४(+) मांगलिक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., पद्य, मूपू., (कृतापराधेपिजने कृपा), ४८९५६-२(+$) माणिभद्रवीर जाप मंत्र, सं., श्लो. १, पद्य, म्पू., (ह्रीं श्रीं क्लीं), ५१५६१-२(+#), ४८७२१-३ माणिभद्रवीर बलि विधि, सं., गद्य, मूपू., (श्रीपंचनदि साधनायां), ४९६२२-२ माणिभद्रवीर मंत्र विधिसहित, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (नमो माणिभद्राय कृष्ण), ५१३७०-२(2) मायाबीज विधि, सं., गद्य, मूपू., (विधिना ह्रींकार), ४८४५८-२ मालारोपण विधि, प्रा.,मा.गु., पद्य, मूपू., (महरत प्रथम दिवसे), ४८५१९-१,५०४१९ मासप्रवेशचंद्रार्कीमते, सं., पद्य, श्वे., (कोष्टेष्ट सूर्य विवर), ५१०४१-३(#$) मिथ्यात्व २१ भेद, प्रा.,मा.गु., गद्य, पू., (जे लौकिक देवता हरिहर), ५११७०-२ मिथ्यात्व भेद विचार संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (अभिग्रहि मिथ्यात), ५१११३-६(+) मिथ्यात्वमथन प्रकरण, प्रा., गा. २६, पद्य, मूपू., (न गुले मणिए गुलिय), प्रतहीन. (२) मिथ्यात्वमथन प्रकरण-दानविधि, संबद्ध, प्रा., गा. २५, पद्य, मूपू., (धम्मोवग्गह दाणं दिज), ५१२१२ मिथ्यात्वस्थान कुलक, प्रा., गा. २६, पद्य, म्पू., (लोइअलोउत्तरिय देवगय), ५१२१८(+#) मुक्तियुक्ति निरूपण, सं., गद्य, जै.?, (प्रणम्य शिरसा पूर्व), ४८७९८(६) मुनिसुव्रतजिन स्तोत्र-शनिग्रह, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (श्रीसुव्रतजिनेंद्र), ४८७८५ मूलशांति विधि, सं., गद्य, श्वे., (बालानां मूल विधान), ४९४७६-१(+#) मृत्यु महोत्सव, सं., श्लो. १८, पद्य, दि., (मृत्युमार्गे प्रवृत), ४९५९०-२(+#) मेघकुमार कथा, सं., गद्य, श्वे., (राजगृह नगरे श्रेणिक), ४८८९०-२ मौनएकादशी गणना, सं., गद्य, मूपू., (श्रीमहाजससर्वज्ञाय), ४९२३०, ४९१०२(१) मौनएकादशीपर्व कथा, आ. सौभाग्यनंदिसूरि, सं., श्लो. ११६, वि. १५७६, पद्य, मूपू., (अन्यदा नेमिरीशाने), ५११८५(+), ५१८८६(+), ५२०२६(#) मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, मूपू., (अरस्य प्रव्रज्या नमि), ४८३१५, ४९१५६, ५०२८१ मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, मपू., (श्रीवीरं नत्वा गौतमः), ४८३१२(+), ५०४४८(+) मौनएकादशीपर्व कथा, प्रा., गा. १५७, पद्य, मूपू., (सिरिवीरं नमिऊण पुच्छ), ४९२९९ मौनएकादशीपर्व गणj, सं., को., मूपू., (जंबूद्वीपे भरते), ४८७५७, ५००८२-१, ५०४३९, ५०४८१, ४९४७२(#), ५०२६५-१(-2) For Private and Personal Use Only Page #522 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ५०५ मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, म्पू., (अरस्य प्रव्रज्या नमि), ४८६१३ युगादिदेव स्तोत्र, प्रा., गा. २५, पद्य, श्वे., (सयल सुरासुर महिअं), ४९३५५-१ योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., अ.७, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (यत्र वित्रासमायांति), प्रतहीन. (२) योगचिंतामणि-विकाराधिकार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (नालेयरविकारे गोधृतपल), ४८२६६ योगनंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., सू. ९, गद्य, मूपू., (नाणं पंचविहं पण्णत्त), ५०७८३-१ योगप्रदीप, सं., श्लो. १४३, पद्य, मूपू., (यावन्न ग्रस्यते रोगै), ५१९१९ योगप्रवेश विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (ठवणी कांबलीइं पडिलेह), ५१२५४-१(+) योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., प्रका. १२, श्लो. १०००, वि. १३वी, पद्य, म्पू., (नमो दुर्वाररागादि), ४८६६६(+$), ४८९५५(+$), ५०२४३(#) योगिनी विचार दशा, सं., श्लो. ८, पद्य, वै., (स्वकीयं चकी रुद्र), ५१९९३-३ योगोद्वहनविधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (श्रीआवश्यक सुअक्खंधो), ५०७८३-२, ५०८९४-१ योनिस्वरूप-आचारांगवृत्तिगत, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (सीआई जोणीओ चउरासीई), ४८६४५-२(+) रजस्वला स्त्री विचार, प्रा., गा. ६, पद्य, मूपू., (जा पुप्कुपवह जाणिउण), ४९२२३-२ रत्नचूडश्रेष्ठीपुत्र कथा, सं., श्लो. १६२, पद्य, मूपू., (कषाय विषया क्रांता), ४९५१३ रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., श्लो. २५, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (श्रेयः श्रियां मंगल), ५०९३७(+), ४८२५६, ४८९३८, ४९२०३, ४९८५३-१,५०८६०,५१२६१-२,५११३९-१(2) (२) रत्नाकरपच्चीसी-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (अहो कल्याणक लक्ष्मी), ५१२६१-२, ४९२०३($) राईप्रतिक्रमण विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (प्रथम इरियावही पडिक), ५०३२८-१(+) राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., सू. १७५, ग्रं. २१००, गद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं० तेणं), प्रतहीन. (२) राजप्रश्नीयसूत्र-हिस्सा सूर्याभदेवकृत जिनप्रतिमा पूजन अधिकार, प्रा., गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं तेण), ४९८४९-१(+#) राजसोमाष्टकम्, मु. क्षमाकल्याण कवि, सं., श्लो. ९, पद्य, श्वे., (श्रेयस्कारि सता), ५१६३४-३(#$) राज्य की २७ शोभा गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, श्वे., (वापी १ वप्र २ विहार), ५०७७७-५(+) (२) राज्यकी २७ शोभा गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (वावि कोट प्रासाद), ५०७७७-५(+) रूपीअरूपी जीवअजीव भेद गाथा, प्रा., गा. ४, पद्य, श्वे., (धम्माधम्मागासा तिय), ४९२५६, ५०८४३-२(#) (२) जीवअजीव भेद गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, श्वे., (धर्मास्तिकाय १ अधर्म), ४९२५६ रोग शोकादि निवारण मंत्र, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (ॐ रक्खं तुम सरीरं), ४९५४४-१(+) रोहिणीतपफल कथा, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (श्रीवासुपूज्यमानम्य), ५१४३५ लक्ष्मीनृसिंहकवच, सं., प+ग., वै., (अनेक मंत्र कोटीस), ५१७५६-२ लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., अधि. ६, गा. २६३, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (वीरं जयसेहरपयपयट्ठिय), ४९४२८(+$) लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., श्लो. १७+२, पद्य, मूपू., (शांति शांतिनिशांत), ४९०४१-२(+), ४९९४५-३(+#), ५०८१४(+), ५१०३९-२(+#), ४८५७४, ४८९३१, ४९०१९, ४९०२०, ४९०२६, ४९०९२-१, ४९६०२-१, ४९६६४,५०८६७,५१८४८, ४९०२७(#), ५०३१०-२(#), ५०९७८(#), ५१२९२-३(#$), ५१५९६(#), ५१८६७(१), ४९४२४(२) (२) लघुशांति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीशांतिनाथ शांति), ४९६०२-१,५०९७८(#) लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. ३०, पद्य, मूपू., (नमिय जिणं सव्वन्न), ५०२६७(+), ५१२३३(+#), ४९९४८, ५०२६८, ___ ५०३३९, ४९९३६-१(#), ५०४९६-१(#), ५१४५७(#) (२) लघुसंग्रहणी-१० द्वार विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (खंडा जोयण वासा पव्वय), ५०८४२ (२) लघुसंग्रहणी-गणितपद विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (त्रणलाखने सो गुणा), ५०३७९ लेश्या फलस्वरूप लक्षण, प्रा.,सं., गा. १३, पद्य, मूपू., (मूलं साहपसाहा गुच्छ), ५२०३५-४(#) लेश्या विचार, सं., श्लो. १, पद्य, श्वे., (मूलं १ साह २ साहा ३), ४८३७५-५(+) For Private and Personal Use Only Page #523 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१२ लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., गा. ३२, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (जिणदसणं विणा जं), ५०१२४-१(+#), ५०४४७, ५०२४९-७(#) (२) लोकनालिद्वात्रिंशिका-टीका, सं., गद्य, म्पू., (जिणदसणं गाथा जिन), ५०४४७ (२) लोकनालिद्वात्रिंशिका-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (जिणहंस वइसाह प्रसारि), ५०१२४-१(+#) लोकस्वरूप गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, श्वे., (लोए असंख जोअण माणेपइ), ४९५४९-४, ४९९३५-४(#) (२) लोकस्वरूप गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, श्वे., (लोक चतुर्दश), ४९५४९-४, ४९९३५-४(#) लोकांतिकदेव विवरण, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (--), ४९७२६(क) लोकांतिकदेव स्तवन, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., गा. १६, पद्य, मूपू., (थोसामि जिणे जेहि), ४८८९३-१(#) (२) लोकांतिकदेव स्तवन-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (यैर्देवैविज्ञप्ता), ४८८९३-१(१) लोच विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (इच्छाकारेण संदिसह), ४९३२९-२(+), ४८७०९-२ वज्रपंजर स्तोत्र, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (ॐ परमेष्ठि), ४८४६४-३(+#), ४८४७९-२(+), ४९८८९-३(+), ५०९४३-५(+), ५१८४४-१(+#), ५१९७८-२(+#), ४८५६५, ४८७०४-२, ४९७२३-३, ४९७७१, ५०१०१-१, ५०५५१-१, ५१०४९-२, ५१४५५-२, ४९८६०-१(-) वडीदीक्षा अनुयोग विधि, प्रा.,सं.,मा.गु., गद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं० करेमि), ५१२५४-२(+), ५१११७ (२) वडीदीक्षा अनुयोग विधि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पुंजी काजओ उद्धरी), ५१२५४-२(+) वनस्पतिसप्ततिका, आ. मुनिचंद्रसूरि, प्रा., गा. ७१, पद्य, मूपू., (उसभाइ जिणिदे पत्तेय), ५०३३८-१(+) वर्णमालाशुकनावली, सं., श्लो. ५०, पद्य, श्वे., (अकारे विजय विद्यात्), ५१२५८-१(#S) वर्द्धमानविद्या जापमंत्र, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (ॐ नमो भगवओ अरहओ), ४८५३६-१ वसुधारा-लघु, सं., गद्य, श्वे., (ॐ नमो रत्नत्रयाय ॐ), ५०६६५(#) वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, मूपू., बौ., (संसारद्वयदैन्यस्य), ४८७९५(+), ५१२५७(+#$), ४९०२८, ४९७९१, ४९३१८(#) वाक्यप्रकाश, ग. उदयधर्म, सं., श्लो. १२५, वि. १५०७, पद्य, मूपू., (प्रणम्यात्मविद), ४९२१८(+), ५१८९३(+#$) वासक्षेप मंत्र, सं., गद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं नमो अरिहंताण), ४८९००-१(+) वास्तुसार प्रकरण, ठक्कुर फेरु, प्रा., प्रक. ३, गा. २०५, वि. १३७२, पद्य, मूपू., (सयलसुरासुरविंदं दसण), ४९३०१-१(+#) विंशतिचंद्रनाम स्तोत्र, सं., श्लो. ६, पद्य, वै., (हिमांशु प्रथमं नाम), ५०३८७-२(+-#) विकुर्वण देहमान, प्रा., गा. १, पद्य, श्वे., (लक्खमुदाण अहियनराणं), ४८३७५-६(+) विचारपंचाशिका, ग. विजयविमल, प्रा., गा. ५१, पद्य, मूपू., (वीरपयकयं नमिउं देवा), ४९८९५-१(#$) (२) विचारपंचाशिका-अवचूरि, ग. विजयविमल, सं., गद्य, मूपू., (वीरपदकजं श्रीमहावीर), ४९९४९ विचार संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (समरवीर राजा महावीरनउ), ४९३४६-३(+-), ४९५१८-१,५०५२३-२(#) विचारसार प्रकीर्णक, आ. महेश्वरसूरि, प्रा., गा. ८८, वि. १५७३, पद्य, मूपू., (नमिऊण वद्धमाणं धम्म), ४९०९३ विजयजिनेंद्रसूरि प्रशस्ति, सं., गद्य, मूपू., (सिध श्रीअमुकनगरसुस्थ), ४८४१०(#$) विजयप्रभसूरि स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (नयविभूषणपारगतागमः), ५१३३२-६ विजययंत्र कल्प, सं., श्लो. २६, पद्य, श्वे., (पुव्वं चियने रइए), ५१११४-२(+#$) विद्वज्जनमदभंजन काव्य, सं., श्लो. २५, पद्य, श्वे., (जजोजोजाजिजिज्जाजीतंत), ४९७७३ विद्वद्गोष्ठी, पंडित. सुधाभूषण गणि, सं., श्लो. २१, पद्य, मूपू., (येषां न विद्या न तपो), ४९९१९-१(+#) विधिपंचविंशतिका, मु. तेजसिंघ ऋषि, सं., श्लो. २६, पद्य, श्वे., (यदुकुलांबरचंद्रक नेम), ५०७४१ विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., श्रु. २ अध्ययन २०, ग्रं. १२५०, गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं तेणं), ४९६५३(#$) विमलजिन चैत्यवंदन, सं., श्लो. ३, पद्य, श्वे., (संसारेस्मिन् सन्महति), ४८५६३-१ विविधविचार संग्रह, प्रा., गा. ११०, पद्य, मूपू., (वासासु सगदिण उवरि), ४८६४५-३(+) विविधविचार संग्रह*, गु.,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (--), ४८१९१-४ विविधविषयसंबद्ध साधु पत्राचार पत्रसंग्रह, मु. भुवनकीर्ति, सं., गद्य, मूपू., (स्वस्तिश्रीमदभीष्ट), ५०६४५ For Private and Personal Use Only Page #524 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०७ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ विवेकविलास, आ. जिनदत्तसूरि, सं., उल्ला. १२, पद्य, मूपू., (शाश्वतानंदरूपाय तमस), प्रतहीन. (२) विवेकविलास-हिस्सा प्रतिमादोष वर्णन, आ. जिनदत्तसूरि, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (रौद्री निहति), ५१८८७(+#) (३) विवेकविलास-हिस्सा-प्रतिमादोष वर्णन का बालावबोध, मु. वरसिंघजी, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रतिमायाः निर्मापणे), ५१८८७(+#) विष्णु स्तुति संग्रह-गूढार्थ, सं., पद्य, वै., (पायाद्वः करुणा रणा), ४९२०७(+$) (२) विष्णु स्तुति संग्रह-गूढार्थ-व्याख्यान, मु. राजशेखरसूरि शिष्य, सं., गद्य, मूपू., वै., (विष्णुः कृष्णो वो), ४९२०७(+$) विहरमान २० जिन स्तव, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (द्वीपेत्र सीमंधर), ५०३८७-१४+-#) विहरमानजिन २१ स्थानक प्रकरण, आ. शीलदेवसूरि, प्रा., गा. ४०, पद्य, मूपू., (संपइ वट्टताणं नाम), ५०२०९-१ वीतराग वाणी, प्रा., गा. १, पद्य, श्वे., (जयसिरिवंछियसुहए), ४९८२२-१ (२) वीतराग वाणी-बालावबोध, मा.गु., गद्य, श्वे., (भगवंत श्रीवीतरागदेव), ४९८२२-१ ।। वीतराग स्तव-हरिशब्दार्थगर्भित, पं. विवेकसागर गणि, सं., श्लो. १०, वि. १५वी, पद्य, पू., (इंद्रेभास्वशुकप्लव), ५०१०६(+#) वीतराग स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., प्रका. २०, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (यः परात्मा पर), ४८६७८-१(+$) (२) वीतराग स्तोत्र-दुर्गपदप्रकाश विवरण, आ. प्रभानंदसूरि, सं., ग्रं. २१२५, गद्य, मूपू., (अनंतदर्शनज्ञानवीर्या), ४९३०५ (२) वीतराग स्तोत्र-सप्तम प्रकाश, हिस्सा, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. ८, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (धर्माधर्मी विना), ५०११० (३) वीतराग स्तोत्र-प्रकाश-७-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (धर्म अधर्म विना अंग), ५०११० वीतरागाष्टक, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (शिवं शुद्धबुद्ध), ४८७५३-६, ४९८८५-२,५०९०२-१ वीरजिन स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रीमते वीरनाथाय), ४९८१४-२ वृहस्पति स्तोत्र, सं., श्लो. ४, पद्य, वै., (वृहस्पतिर्देवगुरुं),५१४४९-१(१) वैराग्यशतक, प्रा., गा. १०५, पद्य, मूपू., (संसारंमि असारे नत्थि), ४९७१३(+), ५२०३७(+), ५०३७४-३($) वैरोट्यादेवी स्तोत्र, अप., गा. ३२, पद्य, मूपू., (नमिउण पासनाहं असुरिं), ४९५२१ व्याकरण परिभाषा कारिका, सं., पद्य, श्वे., (प्रणम्य परया भक्त्या), ४८५७६(5) व्याख्यान वांचन विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, श्वे., (प्रथम इरियावहियं), ४९३५९-२ व्याख्यानश्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (जिनेंद्रपूजा गुरू), ५१६७९-२ व्याख्यान संग्रह, मा.गु.,प्रा.,सं., प+ग., श्वे., (जयइ जगजीवजोणी वियाणओ), ५१४६२-२(#$) व्याख्यान संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,रा.,सं., गद्य, मूपू., (देवपूजा दया दान), ४८१८४ शकुन प्रदीप, सं., श्लो. १२०, पद्य, मूपू., (--), प्रतहीन. (२) शकुन प्रदीप-पद्यानुवाद, श्राव. गोरधनदास नंदलाल, मा.गु., गा. १२०, वि. १७६२, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीजिनराज), ४९००० शक्र स्तव-अर्हन्नामसहस्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., प+ग., मूपू., (ॐ नमोर्हते भगवते), ४८५३७(+#), ४८९६९-१, ४९०५०, ४९६८४-१ शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. १००, वि. १३वी-१४वी, पद्य, मूपू., (नमिय जिणं धुवबंधोदय), प्रतहीन. (२) शतक नव्य कर्मग्रंथ-कोष्ठक, संबद्ध, मा.गु., यं., मूपू., (ध्रुवबंधनी प्रकृति), ४९५११ (२) शतक नव्य कर्मग्रंथ-प्रकृति यंत्र, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (४७ ध्रुवबंधनी प्रकृत), ५०२४६(2) शत्रुजयतीर्थ कल्प, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., गा. ३९, पद्य, मूपू., (सुअधम्मकित्तिअंत), ५०२४५(+) शत्रुजयतीर्थ कल्प, सं., श्लो. १८, पद्य, मूपू., (नंदीश्वरे तु यत्), ४८९४६-४(+), ४९८९१-१(+) शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (श्रीआदिनाथ जगन्नाथ), ४८९४६-१(+), ५०९१७-८, ५१३५४-२(#) शत्रुजयतीर्थ लघुकल्प, प्रा., गा. २५, पद्य, मूपू., (अइमुत्तयकेवलिणा कहिअ), ४८८२६-१(+), ४९४३३, ५००८५ शत्रुजयतीर्थ स्तव, सं., श्लो. १३, पद्य, मूपू., (धरणेंद्रप्रमुखानागाः), ४९३५७-२ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (शत्रुजयः पर्वत एवधी), ५१६४१-२ शत्रुजयतीर्थ स्तुति, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (सेव॒जयगिरी१ पुरंग), ५०३२४-३ For Private and Personal Use Only Page #525 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५०८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१२ शत्रुंजयतीर्थ स्तोत्र - जिनबिंबसंख्यागर्भित, आ. सोमतिलकसूरि, प्रा., गा. २२, पद्य, मूपू., (सिरि रिसहेसरसामीअ), ४९३५५-२ शनिश्चर मंत्र जप विधिसहित, मा.गु., सं., श्लो. १, प+ग, वै., (क्रूरश्चपिंगलो रुद्र), ४८२७९-३(#) शनिश्चर स्तोत्र, सं., श्लो. १०, पद्य, वे. (यः पुरा राज्यभ्रष्टा), ४९११३४-३(+), ४९८३७-२(१), ५०३८७-७(+४), ५१४४९-४११ शनि स्तुति, सं., श्लो. २, पद्य, मूपू., (सुव्रतजिनेंद्रस्य), ५१४४९-३(#) शब्दनय निरूपण - विशेषावश्यकवृत्ति नयद्वारगत, प्रा. सं., गद्य, मूपू (अहवा पच्चुप्पन्नो), ५०७१२-१(+) "" शांतिचक्र पूजा, सं., गद्य, वे ( अहंडीजमनाहतं च). ४९०२९-१(+) " शांतिजिन अष्टक, सं., श्रो. ९, पद्य, थे. (सकल सुरासुर सेवित), ५२०४६ शांतिजिन स्तव, सं., श्लो. ५, पद्य, मृपू वासवानतदेवेन रंगागार). ५०६३६-१ (२) शांतिजिन स्तव अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., ( वासवः शक्रस्तेन नत), ५०६३६-१ शांतिजिन स्तवन, सं., श्लो. १५, पद्य, मूपू., (सकल सुख नवीयदानाय), ५०४८२(#) शांतिजिन स्तुति, मु. शोभनमुनि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (राजंत्या नवपद्मरागरु), ५०८७६-३ शांतिजिन स्तुति, मु. सेवक, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (सांतिकरं करुणाकर), ५११३८-२ शांतिजिन स्तुति, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (किं कल्पद्रुमसेवया), ५१५३७-२(१) शांतिजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (देवदेवाधिपैः सर्वतो), ५१२८१-२(#) शांतिजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, श्वे., (नाभेयाद्या जिनेंद्रा), ५१८३६-२(+#) शांतिजिन स्तुति, सं., पद्य, म्पू. (रागद्वेषविजेतारं), ४९९२२-२ (-१) , शांतिजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (राज्यकुंजरचामरादि), ५१७९२-३(#) शांतिजिन स्तोत्र, मु. गुणभद्र, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., ( नानाविचित्रं बहुदुख ), ४८५४८-३ शांतिजिन स्तोत्र, आ. पुण्यरत्नसूरि, सं. लो. २१, पद्य, मूपु. ( अमल मंजुल मंगलमालिनं), ४८८१५ (+) (२) शांतिजिन स्तोत्र - अवचूरि, सं., गद्य, म्पू (निर्मल मनोन्यकल्याण), ४८८१५ (+) शांतिजिन स्तोत्र - १२ भव गर्भित, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., गा. १०, पद्य, मूपू., (सिरिविस्ससेणअइरासुअं), ४९३५५-३($) शांतिजिन स्तोत्र - कर्मबंध विचार गर्भित, प्रा., गा. २१, पद्य, मूपू., (जस्सपरिसाइ एगिंदियाण), ५०९३३ (+) शांतिस्नात्र विधि, गु., प्रा., मा.गु. सं., पग, मृपू. (प्रथम पाट उपर रातु), ५२००९-२ (६) शारदादेवी स्तुति, सं., श्लो. ८, पद्य, वै., (प्रथमं भारती नाम), ५१३३३-२ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शारदादेवी स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, वै., (ह्रीँ ह्रीँ ह्रीँ), ५०९०१-४ शारदादेवी स्तोत्र, सं., श्लो. १०, पद्य, वे (अविरल शब्द मयीघा), ५१९१६-१० (१४), ५०९०१-३(३) शाश्वतचैत्य मान गाथा, प्रा., गा. ६, पद्य, क्षे., (चउवणमुह सिल ४ दारपवर) ५०५६६-२(+०) शाश्वतचैत्य स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. २४, पद्य, मूपू., (सिरिउसहवद्धमाणं), ४९१६८ (+), ५०५६६-३ (+#), ५१७६०(+), ५०३३२, ५०५७६(4) (२) शाश्वतचैत्य स्व-अवचूरि, सं., गद्य, भूपू (ज्योतिष्कव्यंतरेष्वस), ५१७६० (+), ५०३३२, ५०५७६ (०) शाश्वतजिन स्तवन, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., गा. ३२, पद्य, मूपू., (सासयति जय जिणहरे), ५०५६६-१(+#) शाश्वतप्रतिमा वर्णन, आ. देवेंद्रसूरि प्रा. गा. १२, पद्य, भूपू (चत्तारिअट्ठवसवोइ), ५०३३८-३(+४), ५०७५२(+), ४९६९३ " (२) शाश्वतप्रतिमा वर्णन - अवचूरि, प्रा.सं., गद्य, भूपू (बोहिणदारे चरो), ४९६९३ शाश्वताशाश्वतजिन स्तव, आ. धर्मसूरि, सं., श्लो. १५, पद्य, मूपू., (नित्ये श्रीभुवना), ५०५६६-५ (+#), ५०६३२, ५०५२७(#) शिलास्थापनादि विधि, मा.गु. सं., गद्य, मूपू., (तस्य पंच मुहूर्ता), ४९३५०-२ (६) शिव स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, वै. (वाश्वारे ध्वजधक्), ५१०१९-२(४) . (२) शिव स्तुति - टीका, सं., गद्य, वै., (वाश्वारेट् अस्य), ५१०१९-२(#) (२) शिव स्तुति -बालावबोध, मा.गु., गद्य, वै., (ते मृड् इश्वर तुम्ह), ५१०१९-२(#) शिष्य वहिस्तिष्ठन् विधि, सं., गद्य, वे (तत्राथ प्रतिपन्नाः), ५०४३०-१ (+) " शीलगुप्ति कुलक, प्रा. गा. २२, पद्य, भूपू (नमिऊन महावीरं भणामिह), ४९४७१ (०) " For Private and Personal Use Only Page #526 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) शीलगुप्ति कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (भणु हुं शिलगुप्तीनो), ४९४७१(१) शीलव्रत पाठ, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (अहं भंते तुम्हाण), ४९६२५-१(+), ५०८८८-१(+) शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., कथा. ४३, गा. ११५, वि. १०वी, पद्य, मूपू., (आबालबंभयारि नेमि), ५१०७८(#) शुकराज कथा-शत्रुजयमाहात्म्ये, आ. माणिक्यसुंदरसूरि, सं., गद्य, मूपू., (श्रीशत्रुजयतीर्थेशः), ४९०७३(+$) शुक्र स्तोत्र, सं., श्लो. ३, पद्य, वै., (प्रथमं शुक्रनामश्च), ५०३८७-६(+-#) शृंगारवैराग्यतरंगिणी, आ. सोमप्रभसूरि, सं., श्लो. ४६, वि. १३वी, पद्य, मूपू., (धर्मारामदवाग्निधूम), ४९०६५-१(+) (२) शृंगारवैराग्यतरंगिणी-अवचूरि, सं., गद्य, म्पू., (यमिनान् बंधं प्रापित), ४९०६५-१(+) श्रावक ११ प्रतिमा गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (दसण वय सामाई पोसह), ४९६०२-२, ५०७७५-२, ५१६५४-२(#) (२) श्रावक ११ प्रतिमा गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिली दर्शन प्रतिमा), ५१६५४-२(#) श्रावक १४ नियम गाथा, प्रा., गा.१, पद्य, मूपू., (सच्चित्त दव्व विगई), ४८६१०-१(+), ४९२७४-२(+), ४९६०२-३ (२) श्रावक १४ नियम गाथा-(पु.हि.)बालावबोध, रा., गद्य, मूपू., (श्रावके जीवजी पांच), ४८६१०-१(+) श्रावक २१ गुण गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (धम्मरयणस्स जुग्गो), ५०७७७-११(+) । (२) श्रावक २१ गुण गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (धर्मनै जोग्य ते), ५०७७७-११(+) श्रावक आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, सं., अधि. ५, ग्रं. १६६, वि. १६६७, गद्य, मूपू., (श्रीसर्वज्ञ प्रणिपत), ५०६५५(#) (२) श्रावक आराधना-बालावबोध, उपा. राजसोम, मा.गु., वि. १७१५, गद्य, मूपू., (इहां आराधनाने विष), ४८७५१(६) श्रावक आलोयणा, प्रा.,सं., पद्य, श्वे., (तिव्वार पनरठारस इग), ५०२२८ श्रावक आलोयणा विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (प्रथमं मुहूर्त), ४९२१०-१, ५०४८८ श्रावक पाक्षिकादि अतिचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (नाणमिदंसणमि अचरण), ५१२७९-२(#) श्रावकविधि रास, मु. पद्मानंदसूरि शिष्य, अप., गा. ४९, वि. १३७१, पद्य, मूपू., (पाय परम पणमेवि चउवीस), ४९०४७ श्रावकव्रत १२४ अतिचारभेद वर्णन, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (अथ ५ अतिचाराः अथ), ४९५८२-१(+) श्रावकव्रतभंग प्रकरण, प्रा., गा. ४१, पद्य, मूपू., (पणमिअसमत्थपरमत्थवत), ४९२०५(+), ४९३०२-१(+#) (२) श्रावकव्रतभंग प्रकरण-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (व्रतं नियमविशेषः), ४९२०५(+), ४९३०२-१(+#) (२) श्रावकव्रतभंग संक्षिप्त विवरण, संबद्ध, प्रा.,सं., गद्य, म्पू., (नमिऊणं चरमजिणं पुव्व), ४९३०२-२(+#) श्रावक षटकर्म श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, म्पू., (देवपूजा गुरुपास्ति), ५०६४१-२(+) श्रावकाराधना, सं., प+ग., श्वे., (श्रीसर्वज्ञ प्रपंपण), ४९५८०-१(+) श्रुतदेवी स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (कमलदल विपुलनयना कमल), ५०१४२-२(+), ५०८२७-३ श्रुतदेवी स्तुति, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (सुयदेवयाय जक्खो कुंभ), ५०८२७-२ श्रेयांसजिन स्तुति, मु. शोभनमुनि, सं., गा. ४, पद्य, मूपू., (कुसुमधनुषा यस्मादन्य), ४८६९४-१ श्लोक संग्रह, सं., श्लो. ११, पद्य, (अस्मान् विचित्रवपुषि), ४९०६५-२(+), ५११३९-२(#), ५१७३८-२(#) श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., श्लो.५, पद्य, मूपू., (कलकोमलपत्रयुता), ४९१२४-३(+), ४९२२१-२(+), ४९३०१-४(+#), ४९३६३-२(+$), ४९९५०-१(+-), ५०७७७-१०(+), ५१२७५-३(+), ४८२३४-१, ४९२०९-२, ४९३८५-४,५००२४-३, ५११४६-५, ५१२६१-१, ५१३१७-३, ५१७९१-३, ४९२४०-२(#), ४९४६६-२(#), ५०३२७-३(#), ५१०४१-४(#), ५१५६९-२(#), ५१७७२-३(#), ५१९४६-२(#), ४८१६३-२($), ५०२९४-२(-2) (२) श्लोकसंग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, (--), ५०७७७-१०(+) श्लोक संग्रह- सं., पद्य, जै., वै., (जिनेंद्र पूजा गुरु), ५१११२-२(#) श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., श्लो. ४१, पद्य, मूपू., (नेत्रानंदकरी भवोदधि), ४९१९२-३(+), ५०८५१-१, ५१०६५-३ श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., पद्य, (--), ४८३९६-६(+#), ४८८९५-३(+), ५१२८२-२(+), ५१४०९-५(+-#), ५२०२४-२(+), ४८५५४-२, ५०१२३-२, ५०९०२-३, ५०९१८-५, ४९५७७-३(#), ५१२३२-२(#) श्लोक संग्रह-गूढार्थगर्भित, सं., श्लो. २५, पद्य, मूपू., वै., (गोश्रावः किमयंग), ५१४४५-२(+#), ४८६६८-३, ४९८७४-४ For Private and Personal Use Only Page #527 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५१० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१२ लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा. सं., पद्य, चे., (देहे निर्ममता गुरौ), ४९२४१-६ (+), ४९२९१-३(+), ४९२९२-२(+), ४९६०३-२(+), ५००४९-२(+), ५०५६२(५०), ५०७७७-९(+), ५०९९५-२ (५०), ५११८४-२ (+), ५१७२८(१), ४८७५९-२, ४९४८०-२, ४९९१५-४, ५०००२-२, ५०९१८-४, ५००२८-२(#), ५१३११-३(#), ५१६६७-२ (#S), ४९१५७ (S) (२) श्लोक संग्रह जैनधार्मिक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (एकाग्रचित्ते जिन), ५०५६२(+#) (२) श्लोक संग्रह जैनधार्मिक स्वार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (--), ५०७७७-९(+) लोक संग्रह - समस्यागर्भित, सं., श्लो. २५, पद्य, वै. (यत्कंठे गरलं विराजति), ४८८५७-४(+3) " भाषा स्तवन, आ, जिनप्रभसूरि प्रा. सं., श्लो १३, पद्य, म्पू, नमो महसेन नरेंद्र), ४९२३६(+) " , षट्लेश्या लक्षण, प्रा., सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू., (अतिरौद्र सदा क्रोधी), ५०७७७-७(+) (२) षट्लेश्या लक्षण -टवार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू., (घणा भूडा कर्म करई), ५०७७७-७(+) षड्दर्शनसमुच्चय, आ. राजशेखरसूरि, सं., श्लो. १८०, पद्य, मूपू., वै., (नत्वा निजगुरून भक्त), ५१९६२(+) षड्दर्शन समुच्चय आ. हरिभद्रसूरि सं., अघि ७, श्लो. ८७, पद्य, भूपू वै. बौ., (सदर्शनं जिनं नत्वा), ५१३६३(+), ४९४५६, " . " ४८८८१(क) संघपट्टक, आ जिनवल्लभसूरि सं., श्लो. ४०, पद्य, मूपु. ( वह्निज्वालावलीढं), ४९११०-३(+#$) संज्ञा विचार, सं., गद्य, मूपू., (संज्ञास्यास्तीति), ४९६४८-३(#) संज्ञास्वरूप विचार गाथा, प्रा., गा. ५, पद्य, भूपू (आहार भयर परिग्गाह३), ४८६४५-१(०) "3 संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., गा. १४, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (संतिकरं संतिजिणं जग), ४८८५२-१(+), ४८२२४, ४८२९४, ४८५७०, ४९६५६, ४९९८७, ५०७११, ५१३३३-३, ५१४४७, ५१९७२-१, ५१२९२-२(१) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) संतिकरं स्तोत्र टवार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू (जगमांहि शांतिनो करण ), ५१४४७, ५१९७२-१ . संथारापोरसीसूत्र, प्रा., गा. १४, पद्य, भूपू., (निसिही निसिही निसीहि), ४९७९४(१), ५०९७२-१(+), ५१३५०-१(+), ४८३२८, ४८५६८-१, ४९१६६-१, ४९५२६-१, ४९७९५, ५०९८१-१, ५०३२३, ५०७२८, ५०८७३, ५१३००, ५१५३५, ५१०११-१), ५१११२-१ (२) संथारापोरसीसूत्र -टबार्थ, मा.गु., गद्य, मृपू., (चिहुं कषाय रुपिया), ४८३२८ (२) संथारापोरसीसूत्र -टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार विना बीजो), ५१३५०-१(+) (२) संथारापोरसीसूत्र -टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार हुउ क्षमा), ४९७९४(+), ४९७९५ संधारा विधि, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू.. (प्रथम नवकार तीन भणी), ४९३२९-१(+), ४९५८०-२(+) " संबोधप्रकरण, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., अधि. ११, गा. १६१७, पद्य, मूपू., (नमिऊण वीयरायं सव्वन), प्रतहीन. (२) अभव्य कुलक, हिस्सा, प्रा., गा. ९, पद्य, मूपू., (जह अभवियजीवेहिं न), ५१५८६ (३) अभव्य कुलक चालावबोध, मा.गु, गद्य, भूपू (अनादि कालमें अभव्य), ५१४७३-१ (३) अभव्य कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जह क० जिम अभव्यनो), ५१५८६ संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा. गा. १२५ + २, पद्य, मूपू., (नमिऊण तिलोअगुरुं), ५१६९९(+), ४९७६४, ५२०२९, ५१०२५००, ५१०४५१, ४९७७८(४) संमूर्च्छिम पंचेंद्रिय जीवोत्पत्ति विचार- विविध आगमोद्धृत, प्रा., गद्य, मूपू.. (कहनं भंते जीवा), ५०९२६-२ संविज्ञसाधुयोग्यनियमकुलक, आ. सोमसुंदरसूरि, प्रा., गा. ४७, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (भुवणिक्कपइवसमं वीरं), ४९९९४(+), ५०१८३(+#), ५०८९२ संस्तारक प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा. गा. १२२, पद्य, भूपू (काऊण नमुक्कारं जिणवर), ४८५८८(३) " " (२) संस्तारक प्रकीर्णक चालावबोध, मु. जयमल्ल ऋषि, मा.गु, गद्य, भूपू (श्रीसंस्तारंग पवन्नान), ४८५८८) सचित्त अचित्त जल विचार, प्रा., मा.गु. सं., प+ग., श्वे., (अपर समोसरणने विषइ), ४९५९५-२(#) सच्चिदानंद स्तोत्र पंचरत्न -सत्संहितायां, क्र. वेद व्यास, सं., श्लो. ५, पद्य, वै., (गजवदनमचिंत्यं), ५१३३६-३(०) सज्जनचित्तवल्लभ काव्य, आ. मल्लिषेण, सं., श्लो. २५, पद्य, दि., (नत्वा वीरजिनं जगत्त्), ५०२५८(+#) (२) सज्जनचित्तवल्लभ काव्य-टबार्थ, मा.गु., गद्य, दि., (नमस्कार करकै श्रीवीर), ५०२५८(+#) सन्मतितर्क प्रकरण, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, प्रा., कां. ३, गा. १६८, वि. ११वी, पद्य, मूपू., (सिद्धं सिद्धट्ठाण), ४९९७८ (+) For Private and Personal Use Only Page #528 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ सप्तनय विचार, मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (प्रथम प्रमाण नय), ५१४६३(+) सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., स्मर.७, पद्य, मूपू., (णमो अरिहंताणं हवइ), ४८६१२-१(+$) समयसार, आ. कुंदकुंदाचार्य, प्रा., अधि. ९, गा. ४१५, पद्य, दि., (वंदितु सव्वसिद्धे), प्रतहीन. (२) समयसार-आत्मख्याति टीका, आ. अमृतचंद्राचार्य, सं., अधि. ९, श्लो. २७८, प+ग., दि., (नमः समयसाराय स्वानुभ), प्रतहीन. (३) समयसार-आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश टीका, आ. अमृतचंद्राचार्य, सं., अधि. १२, श्लो. २७८, पद्य, दि., (नमः समयसाराय), प्रतहीन. (४) समयसार नाटक, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., अधि. १३, गा. ७२७, ग्रं. १७०७, वि. १६९३, पद्य, दि., (करम भरम जग तिमिर हरन), ४८१६९(७), ४८१९४(), ५०२९६(६) समवसरण प्रकरण, प्रा., गा. २१, पद्य, मूपू., (तिहुयणकुलसिरतिलय), ५०३३८-२(+) समवसरण यंत्र स्थापन विधि, सं., गद्य, म्पू., (प्राणां बाह्य प्रतो), ५१०७५-२(+#) समवसरण स्तव, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., गा. २४, पद्य, मूपू., (थुणिमो केवलीवत्थं), ५१०७५-१(+#), ४९२३४-१(#) (२) समवसरण स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (तीर्थंकरं समवसरणस्थ), ५१०७५-१(+#) । समस्या प्रक्रम, पं. मतिसागर, सं., श्लो. ५२, पद्य, मूपू., (उच्चैर्विग्रहधारिणाप), ४८८५७-२(+#) समस्या प्रक्रम, सं., श्लो. ४८, पद्य, श्वे., (कल्पादिकाले गुरुदेहद), ४८८५७-३(+#) समस्या श्लोक संग्रह, सं., श्लो. ४४, पद्य, श्वे., (वंध्याः योधः कुहुनि), ४८८५७-१(+#) सम्मेतशिखरतीर्थ स्तोत्र, उपा. हंसराज गणि, सं., श्लो. २३, वि. १७६२, पद्य, मूपू., (समेतशैलंसुकृताब्धि), ४९७६०(+) सम्यक्त्व पच्चीसी, प्रा., गा. २५, पद्य, मूपू., (जह सम्मत्तसरूव), ४९३२३(+#), ४९५९०-१(+#), ५१११३-१(+), ५१४७२-१(+), ४९३४८ (२) सम्यक्त्वपच्चीसी-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (यथा येन औपशमिकत्वादि), ४९३२३(+#), ५१११३-१(+) (२) सम्यक्त्वपच्चीसी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ज०जे रीते स०समकितनु), ५१४७२-१(+$) (२) सम्यक्त्वपच्चीसी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जिम सम्यक्तवनउ), ४९५९०-१(+#) सम्यक्त्व विवरण, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (प्रथम सम्यक्त्व लाभ), ४९९८८(+) सम्यक्त्वसप्ततिका, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. ७०, पद्य, मूपू., (दसणसुद्धिपयासं), ५१५०५(+#) सम्यक्त्वादिद्वादशव्रत आलापक संग्रह, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (अहन्नं भते तुम्हाणा), ४९८४६-४, ५१९५६(2) सम्यक्त्वादिव्रत आरोपण विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., म्पू., (तच्छाईए सम्मत्तारोवण), ४९३२९-१०(+), ५१२३९(+#) सरस्वतीदेवी २५ नाम स्तोत्र, सं., श्लो. ५, पद्य, वै., (ॐ देवी सरस्वती), ५०५९१-२,५०५९१-५ सरस्वतीदेवी अष्टक, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (जिनादेशजाता जिनेंद्र), ४८६९६-१ सरस्वतीदेवी के १६ नाम स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., वै., (नमस्ते शारदा देवी), ४८८१६-१(+), ५०३२१-१ सरस्वतीदेवी छंद, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ४४, वि. १६७८, पद्य, श्वे., (सकलसिद्धिदातार), ४९७९२,५१८७२(#) सरस्वतीदेवी बीजमंत्र, सं., गद्य, मूपू., (एँ क्लीं ह्रौं वद वद), ४८६९३-२, ४९८८६-२, ५०२५६-२ सरस्वतीदेवी मंत्र, सं., गद्य, श्वे., (ॐ ऐं ह्रीं श्रीं वद),५०८७७-२(+) सरस्वतीदेवी मंत्र, सं., गद्य, जै., वै.?, (ॐ नमो एँ ह्रीं), ५२०१२-२ सरस्वतीदेवी मंत्र, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (ॐहीश्रीझौँ वद), ४८४८६-३ सरस्वतीदेवी महास्तोत्र, सं., श्लो. १२, पद्य, वै., (देवी सरस्वति नमू), ५०१३६-१(-2) सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. मलयकीर्ति, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (जलधिनंदनचंदनचंद्रमा), ४८५५७-२ सरस्वतीदेवी स्तोत्र, उपा. विद्याविलास, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (त्वं शारदादेवी समस्त), ४८७५५-१ सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. १२, पद्य, मूपू., (ॐ श्रीअर्हन्मुखांभो), ४८६९३-१ सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. १३, पद्य, जै., वै., (धातुश्चतुर्मुखीकंठ), ४८७५३-४ सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, वै., (राजते श्रीमती देवता), ५१९७३-२(+), ४८४६५-२, ४८५५७-१, ४९१६७-१, ४९९०५-१(२), ५१४८८-२(#), ५१७४२-२(#) For Private and Personal Use Only Page #529 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५१२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१२ सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ७, पद्य, वै., (वाग्वादिनी नमस्तुभ्य), ४८१४९-१ सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (व्याप्तानंतसमस्तलोक), ५१७७६-२ सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ६, पद्य, वै., (सरस्वती नमस्यामि), ४८८१६-२(+), ५०३२१-२, ४८४८६-४($) सरस्वतीदेवी स्तोत्र-१०८ नाम गर्भित, सं., श्लो. १५, पद्य, वै., (धिषणा धीमतिर्मेधा), ४८७०४-१ सरस्वतीदेवी स्तोत्र-अष्टोत्तरशतनामगर्भित, सं., श्लो. १६, पद्य, मूपू., (धिषणा धीर्मतिर्मेधा), ४८१७९-१ सरस्वतीदेवी स्तोत्र-मंत्रगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (ॐ नमस्त्रिदशवंदित), ५०८७७-१(+), ५१६०३(+), ४८४६५-१ सरस्वतीदेवी स्तोत्र-षोडशनामा, सं., श्लो. १२, पद्य, जै.?, (नमस्ते शारदादेवी), ४९५४०-१,५०९०१-२ सरस्वतीसूत्र, सं., पद्य, वै., (--), प्रतहीन. (२) सारस्वत व्याकरण, आ. अनुभूतिस्वरूप, सं., गद्य, वै., (प्रणम्य परमात्मान), ४८८०४-१(६) (२) सिद्धांतचंद्रिका, आ. रामाश्रम, सं., गद्य, वै., (नमस्कृत्य महेशानं मत), प्रतहीन. (३) सिद्धांतचंद्रिका टीका, सं., गद्य, जै., वै., (प्रणम्य प्रणायात्पूर), ५१३०३(5) सर्वजिन स्तव, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (जिनपते द्रुतमिद्रिय), ५१०१८(+) (२) सर्वजिन स्तव-अवचूर्णि, सं., गद्य, मपू., (हे जिनपते दमवता), ५१०१८(+) सर्वज्ञसिद्धि प्रकरण, सं., गद्य, मूपू., (इह हि केचिदज्ञान), ५०३०६ सर्वज्ञाष्टक, मु. कनकप्रभविजय, सं., श्लो. ९, पद्य, म्पू., (जयति जंगमकल्पमहीरुहो), ५०४१८-९(+) सर्वतपोच्चारण आलापक, प्रा., गद्य, मूपू., (अहण्ह भंते तुम्हाण), ४९६२५-३(+) सर्वतीर्थ स्तवन, प्रा., गा. १०, पद्य, मूपू., (जत्थसरवइकोडिअसंखसंपत), ५११९५-१(#) सर्वसाधारण फल, सं., श्लो. १४, पद्य, श्वे., (चैत्रस्य निर्मला), ५१२५२ सर्वसाधु क्षमापना गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (अढाइजेसु दिवसमुदेस), ४८५६८-२ सांज का पच्चक्खाण, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (चउविहार उपवास पारिट), ५०५९२-३ साधर्मिक कुलक, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., गा. २६, पद्य, मूपू., (नमिऊण पासजिणं वुच्छ), ४९४८०-१ साधर्मिकवात्सल्य कुलक, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., गा. २५, पद्य, मूपू., (नमिऊण जिणं पास), ५०६०३(+) साधारणजिन अभिषेक श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (चक्रे देवेंद्रराज), ४९३३२-२(+#) साधारणजिन चैत्यवंदन, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (जयश्रीजिनकल्याणवल्लि), ५१९८५ (+#) (२) साधारणजिन चैत्यवंदन-अवचूरि, ग. कनककुशल, सं., गद्य, मूपू., (श्रीजिनेत्यादिनि), ५१९८५(+#) साधारणजिन चैत्यवंदन, प्रा., गा. २६, पद्य, मूपू., (जयइ जगजीवजोणीवियाणओ), ५१७३०(+#) साधारणजिन चैत्यवंदन-३४ अतिशय, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (तेषां च देहोद्भुतरूप), ४८६९५-२ (२) साधारणजिन अतिशय चैत्यवंदन-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ते भगवंतनी देह रूडी), ४८६९५-२(5) साधारणजिन चैत्यवंदन-मामविशेषणगर्भित, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (तीर्थकृत तीर्थसृट), ५०५८२-२(#) साधारणजिन नमस्कार-स्तुति संग्रह, सं., श्लो. १७, पद्य, मूपू., (कल्याणपादपाराम), ५०९२६-४, ५०९४५-२(#) साधारणजिन पद, प्रा., गा. १, पद्य, श्वे., (दुरियं हरतु अहरा),५१२६८(२) (२) साधारणजिन पद-अक्षरगमनिकाटीका, सं., गद्य, श्वे., (अहिरेति अ: कृष्णो), ५१२६८(#) साधारणजिन शतार्थी स्तुति, आ. सोमतिलकसूरि , सं., श्लो. १, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (कल्याणसारसवितानीय), ५०९१६-४(#) साधारणजिन स्तव, आ. जयानंदसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (देवाः प्रभो यं), ४९०४९(+), ५०४५८-१(+), ५०४८४(+#), ५०६१५(+), ५२०३६(+), ५०६२९, ५१७३७(#) (२) साधारणजिन स्तव-टीका, सं., गद्य, मूपू., (पार्श्वनाथं नमस्कृत), ५०६१५(+) (२) साधारणजिन स्तव-वृत्ति, मु. कनककुशल, सं., ग्रं. १४२, गद्य, जै., (देवाः प्रभो. द्याख्य), प्रतहीन. (३) साधारणजिन स्तव-वृत्ति की अवचूरि, ग. कनककुशल, सं., ग्रं. १४२, गद्य, मूपू., (हे प्रभो सत्वमया), ५१७३७(#) (२) साधारणजिन स्तव-अवचूरि, ग. वानर्षि, सं., गद्य, मूपू., (देवाः प्रभोयमित्यादि), ५०४८४(+#) For Private and Personal Use Only Page #530 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - १ (अत्र प्रथमा उक्ति:), ५२०३६(*) (२) साधारणजिन स्तव -अवचूरि, सं., गद्य, भूपू साधारणजिन स्तव, आ. मुनिसुंदरसूरि सं श्लो ६ वि. १५वी, पद्य, म्पू, (त्रिजगत्प्रभुता), ५०९२६-३ साधारणजिन स्तव, सं., गा. ५, पद्य, श्वे., (परम मंगल मंगलयोद्यतं), ४८६६१-३ (+) " साधुयोग्य चातुर्मासक्षेत्रादिविचार गाथा, प्रा., गा. १२, पद्य, मूपू., ( ० ववेयं तु खित्तं होइ), ४९५८२-२ (+) साधुविधि प्रकाश, उपा. क्षमाकल्याण, प्रा.सं., वि. १८३८, गद्य, म्पू. (प्रणम्य तीर्थेशगणेश), ४८३६५ (+३) सापराध निरपराध सापेक्ष निरपेक्ष विचार, प्रा. मा.गु., गा. १, प+ग. म्पू., (-), ४८५६०-३ साधारणजिन स्तवन, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., ( नमो ते छिन्नसंसार), ५०४१८-३(+) साधारणजिन स्तवन - यमकबंध, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू (जिनसदानसदासदाभवान्), ४८९४६-२ (+) साधारणजिन स्तुति, आ. मुनिचंद्रसूरि, सं. लो. ९, पद्य, मूपू (जिनत्वदीयांहि), ५०९२६-५ साधारणजिन स्तुति, क. रूपचंद, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (वितत्पापिसंत्तिमात्म), ५१०५८-२(+) साधारणजिन स्तुति, आ. सोमतिलकसूरि, सं., श्लो. १, पद्य, मूपु. ( श्रीतीर्थराज पदपद्य), ५१३८६-५ (१), ४८९०३-२, ५१९९५, ५०१५२-३००, ५११७५-६(१) " (२) साधारणजिन स्तुति -चतुष्टयी टीका, सं., गद्य, मूपू., (श्रीतीर्थराज इत्यत्र), ५१९९५ साधारणजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, म्पू, (अविरलकमलगवल), ४९६३३-४ साधारणजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, म्पू, (आत्मारामो रामाकामो) ५१३८६ ४(१४) साधारणजिन स्तुति, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (गब्भावयारजम्मण), ५०९१६-१(#) साधारणजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, भूपू., (जिनो जयति यस्यांही), ५०८८९-४११ साधारणजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, वे न क्रोधो न मानो), ४८३९६-५ (+४) साधारण जिन स्तुति, सं., श्लो. १३, पद्य, मूपू., (नेत्रानंदकरी भवोदधि), ४८७५३-१ साधारणजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (वंदे जगत्याजनकोपमानं), ५१३३३-६ साधारणजिन स्तुति, सं., श्लो. १०, पद्य, भूपू (स्वस्तिश्रियायुक्पद), ५०१६७-२(१) " साधारणजिन स्तुति - अष्टप्रातिहार्यगर्भित, सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू., (प्रातिहार्यंकलितासम), ५०३३६-२(००), ५०९२६-६ साधारणजिन स्तुति नैवेद्यगर्भित, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (घात्या घेवर लापसी), ४८८९५-५ (+) साधारणजिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, प्रा. मा.गु. सं., गा. ८, पद्य, भूपू (मंगलं भगवान वीरो), ४८२७४-१, ४९६०१-२, ५०८२४-२, ५०५३७-४(#), ५१५८८-४(#) साधारणजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, श्वे. (सर्वज्ञ सर्वहित ), ४८९४६-३ (+), ५०९४५-१(#) "" साधु उपमा पत्र, मा.गु., सं., गद्य, वे., ( अनेक हृद्यानवद्योद्य), ५१३०६ (#) साधु कालधर्म विधि, मा.गु. सं., गद्य, मूपू., (ज्यारे साधु काल करे ), ५०३७६, ५०८६६ साधु कालधर्म विधि, सं., गद्य, वे हस्तांगुष्ठच्छेदः), ४९९३२-४(+) " 5 सामाचारी खरतरगच्छीय, आ जिनपतिसूरि, प्रा. गा. ६०, पद्य, भूपू (आयरिय उवज्झाए इच्छाइ), ४९९७१-१ (क) सामाचारी व्यवस्थापत्र - खरतरगच्छीय, आ. जिनप्रभसूरि, सं., गद्य, मूपू., (यथा सर्वं वस्त्र), ४९९७१-२ (#) सामान्य कृति, प्रा.मा.गु. सं., प+ग. १, (-), ५०८३४-३(१) सामायिक ३२ दोष सज्झाय, प्रा., मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू. (पहिलूं प्रणमूं जिन), ४९४६३-१ सामुद्रिक शास्त्र, प्रा., पद्य, म्पू. ( अकूरसरा पडीयमत्त), ४९९५७-३०) , י Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सामुद्रिकशास्त्र, सं., अ. ३६, श्लो. २७१, पद्य, मूपू (आदिदेवं प्रणम्यादी), ४९२७९(३) सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि सं. द्वा. २२, श्लो १००, वि. १३वी, पद्य, मूपू (सिंदूरप्रकरस्तपः), ४९४४५ (+०), ५०४८३(१६), ४९८२८-२(३) ', (२) सिंदूरकर - (पु. हि. ) पद्यानुवाद, मु. राज, पुहिं., पद्य, मृपू., ( तप करि कुंभमध्य शोभा), ५१९३३(+४) (२) सिंदूरप्रकर- पद्यानुवाद भाषा, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., अधि. २२, गा. १०१, वि. १६९१, पद्य, मूपू., दि., (सोभित प सीस), ४९१२३ ($) For Private and Personal Use Only ५१३ Page #531 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५९४ सिद्ध के १५ भेद, प्रा., गद्य म्पू (तित्वसिद्धा १ अतित्थ), ५०५६१-२ (+), ४९४९० (२) सिद्ध के १५ भेद - बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (तीर्थसिद्धा १ तारी), ५०५६१-२ (+) (२) सिद्ध के १५ भेद - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (तिर्थसिधा तिरीये), ४९४१० सिद्धचक्र उद्यापन विधि, सं., गद्य, भूपू (पंचवर्ण धान्ये सिद्), ४८९३३ (+) "3 www.kobatirth.org ४८९६६-१, ४९२२६, ४९७७०, ४९८७१-२, ५१३७६-२(#) सिद्धचक्र माहात्म्य, सं., गद्य, मृपू, (मगधदेशे राजगृहे श्री. ४८५२७ (१) सिद्धचक्र यंत्र, सं., मा.गु., प+ग, भूपू. (--), ४९८७१-१ सिद्धचक्र स्तवन, प्रा., गा. ६, पद्य, मूपू., (अरिहंतसिद्धायरिया), ४९१०६-१ सिद्धचक्र चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा., मा.गु गा. ६. वि. १८वी, पद्य, भूपू (उप्पन्नसन्नाणमहोमयाण), ५०९३०-२(+०), ;, सिद्धचक्र स्तुति, प्रा., गा. ४, पद्य, भूपू (भत्तिजुत्ताण सत्ताण), ५०९३०-१(+), ४९८७१-३ सिद्धदंडिका यंत्र, सं., को. मूपू (अनुलोमसिद्धिदंडिका १) ४९८११-२ (+), ५०२३४-१(७), ५०३६२-१(०) " " ', सिद्धदंडिका स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. १३, पद्य, मूपू., (जं उसहकेवलाओ अंत), ४९१३०- १ (+#), ४९४७०(+), ४९८११-१(+), Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१२ ५०८५८(+), ५११५४(+#), ४९१९५, ५०१२१, ४८८९३-२ (#), ५०२३४-२(#), ५०३६२-२(#) (२) सिद्धदंडिका स्तव - अवचूरि, सं., गद्य, मूपू. (आदित्ययशोनृपप्रभृतयो), ४९४७०(०), ५११५४(+), ४९१९५, ४८८९३-२(०) (२) सिद्धदंडिका स्तव -टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जं क० जे उसभ क० ऋषभ), ४९१३०-१ (+#), ५०८५८(+) सिद्धदत्त कथा, सं. गद्य, म्पू, ( प्राप्तव्यमर्थं लभते), ५१२५८-२ (०३) , " सिद्धपंचाशिका प्रकरण, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ५०, पद्य, भूपू (सिद्धं सिद्धत्वसु, ५०१२४-२ (+) (२) सिद्धपंचाशिका प्रकरण-अवचूरि, सं., गद्य, मृपू. (नवरं सिद्धं निष्ठिता) ५०१२४-२(+४४) सिद्धपद स्तवन, मा.गु., सं., गा. १७, पद्य, श्वे., (तंत जगमइ सार मंत्र), ५०७२५ (#) सिद्धसारस्वत स्तव, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., श्लो. १३, वि. ९वी, पद्य, मूपू., (करमरालविहंगमवाहना), ४९४२३(+#), ४९४४३-१(+#), ५०२३०-१(००), ४८३५५, ४८४६३, ४९७३७, ४९६२९-२ (०१), ४९९०५-२०१, ५१५३७-३(०), ४८५७८-१(३) सिद्धिप्रिय स्तोत्र, आ. देवनंदी, सं., श्लो. २६, ई. ६वी, पद्य, दि., (सिद्धिप्रियैः प्रति), ५१६२२(+#), ४९८३८-१ , सिद्धों के १५ भेद उदाहरण, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., ( जिणसिद्धा अरिहंता), ४९०७९-२(+) सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि प्रा. गा. १३४१ ग्रं. १६७५. वि. १४२८, पद्य, मूपू., (अरिहाइ नवपवाई झायित), प्रतहीन. " " (२) सिरिसिरिवाल कहा- सिद्धचक्रयंत्रोद्धार गाथा, हिस्सा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., गा. १२, पद्य, मूपू., (गयणमकलियायंत उद्दाह), सुखडी काल, प्रा., मा.गु., प+ग., श्वे. (--), ५१४४४-१(#) " ४८८७७-१(+) (३) सिरिसिरियाल कहा -सिद्धचक्रमंत्रोद्धार गाथा की व्याख्या, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, भूपू (अथ गगनादिसंज्ञा), " ४८८७७-१(+) सीमंधरजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, वे. (सेवापर सुनासीर), ५०८८९-३(४) सीमंधरजिनाष्टक, आ. शीलरत्नसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (कल्याणलतासुवसंत), ४९६२३-१ , सुपात्रदानफल स्तोत्र, प्रा., गा. ६, पद्य, मूपू., (उसभस्सय पारणए इक्खुर), ४८१९८-१ सुपार्श्वजिन स्तव, उपा. क्षमाकल्याण, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., ( जयवंतमनंतगुणैर्निभृत), ४८६३४-३ सुपार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लो. ३, पद्य, भूपू (जयवंतमनंतगुणौर्निमृत), ५१८६६-३ सुभाषित श्रोक, मा.गु. सं., श्लो. २, पद्य, वे (अपुत्रस्य गृहं सुनं), ४८१४९-३ सुभाषित श्लोक संग्रह, पुहिं., प्रा., मा.गु., सं., गा. ४०, पद्य, श्वे., (दानं सुपात्रे विशुद), ४९५८७- २ (+#), ५०१६६-१(+), ५०७७७-२(५), ५१११३-२(+), ५१४०३-२+०), ५१७५०-२(३), ४८२६७-२, ४९१८३-३, ४९५२३-३, ५०२८४-२, ५०७८०-४, ५०८७५-४, ५१६९५-३, ५१५४०.५ (१), ५१९८१-२१ ५०३३४-३) (२) सुभाषित लोक संग्रह टिप्पण, सं., गद्य, थे., (--), ५१११३-२(+) (२) सुभाषित श्लोक संग्रह - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सकल क० समस्त कुसल), ५०७७७-२ (+) सुभाषित श्लोक संग्रह *, सं., पद्य, (विद्यालक्ष्मीसंपन्ना), ४९१९२४-४ (+), ५१६७० (+#), ५०३५७-२, ५०६४०-३ For Private and Personal Use Only Page #532 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ सुमतिजिन स्तुति, मु. शोभनमुनि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (मदमदनरहितनरहितसुमते), ५०४९९-२ सूतक विचार, सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू., (सूतकं वृद्धिहानिभ्या), ४८३७५-३(+) सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. २३, ग्रं. २१००, प+ग., मूपू., (बुज्झिज्ज तिउट्टेज), ४९५८६-१ (२) सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गा. २९, पद्य, मूपू., (पुच्छिसुणं समणा माहण), ४८७७१-१(+), ४९२१२-१(+), ५१०८२(+), ४८९३२-१,४९४०९-१,५०१०८-१, ५१०८१-२,५०५५५-३($) (३) सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन का टबार्थ, पुहि., गद्य, मूपू., (पु० नरकर विभत्ति सुण), ४९२१२-१(+) (३) सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन-टबार्थ, मु. सुशील, मा.गु., गद्य, मूपू., (नर्कना दुख सांभली), ४८९३२-१ (२) इरियावहि क्रियास्थान के १३ दंडभेद गाथा, संबद्ध, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, मूपू., (अट्ठादंडे १), ४९१६५-३ सूरिमंत्र स्तव, प्रा., गा. २०, पद्य, मूपू., (पढमपय सुपयट्ठा० भत्त), ५१४७७ सूरिमंत्र स्तोत्र, आ. मानदेवसूरि, प्रा., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (रागाइरिउजइण, नमो), ४८१७७,५१८४२-३ सूर्य मंत्र, सं., गद्य, वै., (ॐ नमो सूर्यदेवताय), ५०३८७-९(+-#) सूर्य स्तोत्र, सं., श्लो. ५, पद्य, वै., (यस्य सूर्यो महातेजो), ५०३८७-८(+-#) स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., स्तु. २४, श्लो. ९६, पद्य, मूपू., (भव्यांभोजविबोधनैक), ४९३४९(+), ५१७७१-१(+#$), ५०१५२-१(#$), ५०९७४($) (२) स्तुतिचतुर्विंशतिका-अवचूरि, सं., गद्य, स्पू., (धनपालपंडितबांधवेन०), ५१७७१-१(+#$) स्त्रीयोनिमध्य पंचेंद्रियजीव गाथा, प्रा., गा. १०, पद्य, श्वे., (पंचदिय जीवा इत्थी), ५०६२४-१ (२) स्त्रीयोनिमध्य पंचेंद्रियजीव गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (ति स्त्रियाने पंचींद), ५०६२४-१ स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., स्था. १०, सू. ७८३, ग्रं. ३७००, प+ग., मूपू., (सुयं मे आउसं तेणं), प्रतहीन. (२) स्थानांगसूत्र-प्रव्रज्याभेदादि विवरण, प्रा., गद्य, मूपू., (दसविहा पव्वज्जा), ४९७१५(+#) (३) स्थानांगसूत्र-प्रव्रज्याभेदादि विवरण की टीका, सं., गद्य, मूपू., (छंदात्स्वाभिप्राया), ४९७१५(+#) स्थापना कल्प, मा.गु.,सं., श्लो. ७, प+ग., मूपू., (श्रीभद्रबाहुस्वामि), ५१३३६-१(१) स्थापनाचार्यजी १३ पडिलेहण गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (कट्ठ २५ वत्थं २५), ५१०९९-२(+#) (२) स्थापनाचार्यजी १३ पडिलेहण गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पाटपाटलानी पडिलेहण), ५१०९९-२(+#) स्थापनाचार्य विधि, सं., प+ग., मूपू., (स्थापनाविधि), ५१३४३-१(+#) (२) स्थापनाचार्य विधि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (थापनानोविधि ते प्रति), ५१३४३-१(+#) स्थापनाचार्य विशेषविधि, सं., गद्य, मूपू., (संध्यायां दुग्ध मध्य), ५१३४३-२(+#) (२) स्थापनाचार्य विशेषविधि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सांजे दुधमांहि थापना), ५१३४३-२(+#) स्नात्रपूजा संग्रह , भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो), ४९३३२-१(+#), ४८९४९(#) स्नात्रपूजा सविधि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (पूर्वे तथा उत्तरदिसे), ४९४७६-२(+#) स्नात्रविधिपंजिका, आ. शांतिसूरि, सं., पर्व. ५, गद्य, मूपू., (श्रीमत् पुण्यपवित्र), ४९८७२(#) हंसपाल कथानक-दानोपरि, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (संसारजलहिजाणुं दाणं), ४८२०५-१(६) हस्तकांड, मु. पार्श्वचंद्र, सं., श्लो. १००, पद्य, मूपू., (वर्धमानं जिनं नत्वा), ४९९५७-२(#$) हेमसोमसूरिस्तुति, मु. ज्ञानसोम, सं., गा.८, पद्य, मूपू., (सकल कला पूरण शशिवदन), ४८३४१-२ हैमविभ्रम, सं., श्लो. २१, पद्य, मूपू., (कस्य धातोस्तिवादीनाम), ४८८६५(+#) (२) हैमविभ्रमसूत्र-टीका, सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य परमं ज्योति), ४८८६५(+#) होलिकापर्व कथा, मु. गुणाकरसूरि शिष्य, सं., श्लो. ६९, पद्य, मूपू., (ऋषभस्वामिनं मन्ये), प्रतहीन. (२) होलिकापर्व कथा-श्लोकार्थ, क. किलोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (ऋषभजिन करसणी एक बलदन), ४९०६४(#) होलिकापर्व कथा, आ. जिनसुंदरसूरि, सं., श्लो. ५३, पद्य, मूपू., (वर्द्धमानजिनं नत्वा), ४९३२४ For Private and Personal Use Only Page #533 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१२ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ३ तत्त्व सज्झाय, मु. राममुनि, मा.गु., गा. २८, पद्य, श्वे., (परम पुरुष परमेश्वर), ५१४०७-१(-2), ५१३५१-१ ४ कषाय परिहार सज्झाय, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुणि उपदेश सुहामणो), ४९४१२-४ ४ गति २४ लक्षण, मा.गु., गद्य, मूपू., (कषाय घणी हुइ अमेलता), ५११३३-४(+) ४ गति विरहकाल समय, मा.गु., गद्य, श्वे., (च्यारुगत कौ समचौविरह), ५१३५९-१(१) ४ गति सवैया, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (श्रीराम मनषसै मनुष्य), ४८६८३ ४ गोला पंचढाल, मा.गु., ढा. ५, गा. ५५, पद्य, श्वे., (अमृतवाणी साधुतणी रे), ४८२१३ ४ जिनस्तुति-प्रार्थना, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (तुझ तरनतारन भव), ४८९२६-२(#) ४ ध्यान सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५, वि. १७९५, पद्य, मूपू., (--), ५२००१-१(#$) ४ निक्षेप विचार, मा.गु., गद्य, पू., (पिस्तालीस आगमने साखे), ५१३५७ ४ निक्षेप विचार-६ आवश्यक विशे, मागु., गद्य, मूपू., (सामाइक एहव नाम कहीय), ५१४९०-३ ४ निक्षेपा-काउसग्ग, मा.गु., गद्य, मूपू., (नाम काउसग१ थापना), ५१४९०-६ ४ निक्षेपा-चउवीसत्थो, मा.गु., गद्य, मूपू., (ऋषभादि २४ तिर्थंकर), ५१४९०-४ ४ निक्षेपा-पचक्खाण, मा.गु., गद्य, मूपू., (नाम पचखाण१ थापना पचख), ५१४९०-७ ४ निक्षेपा-चांदणा, मा.गु., गद्य, मूपू., (नाम वांदणा ते नाम), ५१४९०-५ ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चिहुं दिसथी च्यारे), ५०२०५-४($) ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ५, पद्य, मूपू., (नगर कंपिलानो धणी रे), ५११७८-२, ५०३८०-१(#) ४ मंगल पद, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (चारो मंगल चार आज), ५०५०८-३ ४ मंगल पद, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. २०, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सिद्धार्थ भूपति सोहे), ५१५२६ ४ मंगल सज्झाय, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., गा. २६, पद्य, स्था., (पहिलो मंगल अरिहंतनो), ४८१८५ ४ मंगल सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (मंगलिक पहिल्क हुं ए), ५१०४२-२(2) ४ मंगल सज्झाय, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (मंगलिक पहिलो कह एह), ५०१६८-२(#) ४ शरणा, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., अ. ४, गा. १२, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (मुजने चार शरणा होजो), ४९०४४, ४९५७५ ५ इंद्रिय चौपाई, पुहिं., ढा. ६, गा. १५४, वि. १७५१, पद्य, मूपू., (प्रथम प्रणमी जिनदेव), ४८९०२(-) ५ इंद्रिय विषयत्याग गीत, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (नागनि चिंतवसे रे), ५०००८-४(+), ४९४०४ ५ इंद्रिय सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (काम अंध गजराज अगाज), ५१९९९-२(#), ५०३३४-१८) ५ कारण छ ढालिया, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ५८, वि. १७३२, पद्य, मूपू., (सिद्धारथसुत वंदिये), ४८५०२(+), ___ ५१३९२, ५१८९७ ५ कुगुरु सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. ६, गा. ३९, पद्य, मूपू., (सेवो सदगुरु गुण), ५०६६६(#) ५ जिन स्तवन, उपा. उदय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पंच परमेसरा परम), ५१४६७-२ ५तीर्थजिनचैत्यवंदन, म.कमलविजय, मा.ग.,गा.६, पद्य, मप., (धर समरु श्रीआदिदेव), ४८५४८-२, ५०९१७-७,५१५८८-३(2) ५ तीर्थजिन स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (आदि हे आदिजिणेसरु ए), ४८२१९, ५००९०, ५०६९७-२(#), ५१०२९(#) ५ तीर्थ स्तवन, मु. लाभ, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (आदऐ आदऐ आदजिनेस्वरुऐ), ५१७५१(-) ५ परमेष्ठिगुण संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंत के गुण१२ अशोक), ४८६९९-१ ५ परमेष्ठी आरती, जै.क. द्यानतरायजी, पुहि., गा. ८, वि. १८वी, पद्य, दि., (इहविधि मंगल आरती), ५१९०८-३ ५ पांडव सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (हस्तिनापुर नगर भलो), ५०१२५-१, ५०५१४ ५ पांडव सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (हस्तीनागपुर अतिभलो), ५०९५८-१ ५ पांडव सज्झाय, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (हस्तिनागपुर दीपतौ), ४९८१८-१ For Private and Personal Use Only Page #534 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५ प्रतिक्रमण नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (देवसी१ राई२ पखी३), ५१४९०-१३ ५भाव नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (औदयिक भाव १ औपशमिक), ४९६३०-२ ५ महाव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., ढा. ५, पद्य, मूपू., (सकल मनोरथ पूरवैरे), ४९०१८-१, ४९०६८-२, ५०७०९ ५ महाव्रत सज्झाय, आ. देवसूरि, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (सुरतरुनी परि दोहिलो), ५१७४७(+) ५ मूलभाव ५३ उत्तरप्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, भूपू., (प्रथम उदयिकभाव), ५०६६९-२(+), ५०६३७-१ ५ मेरुपर्वत नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (सुदर्शनमेरु विजयमेरु), ४८३३९-२ ६ अट्ठाइ स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., ढा. ९, गा. ५४, वि. १८३४, पद्य, मूपू., (श्रीस्याद्वाद शुद्धो), ४८२०८,५०६९५ ६ आरास्वरूप विवरण*, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम भरतादि दश), ४८२३५ ६ आवश्यक के गुण, मा.गु., गद्य, मूपू., (सामायक कीया हुता), ५१४९०-२ ६ आवश्यक प्रमाण, मा.गु., गद्य, श्वे., (सामायिक १ चोवीसत्थो), ४८८०१-२(+) ६ आवश्यकविचार स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ४४, पद्य, मूपू., (चोवीसइं जिन चीतवीं), ४८७२६, ४९६१२(#) ६ भाई सज्झाय, मु. प्रेम, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सीयल शिरोमणि नेमजिण), ५००१४-१, ५०६३८-१ ६ लेश्या दृष्टांत गाथा, पा., गा. १, पद्य, मूपू., (मूल साहा पसाहा गुच्छ), ५०७७७-६(+) (२)६ लेश्या दृष्टांत गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (छ लेस्या उपर), ५०७७७-६(+) ६ लेश्या सज्झाय, पुहिं., गा. १६, पद्य, म्पू., (ग्यानई दीवो रेलोका), ५०५२०-१ ६ लेश्या सज्झाय, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (लेश्या छ जिनवरे कही), ५१४४१-१(#) ६ संवर सज्झाय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर गोयमनें कह), ४९८५८ ७ नय नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (निगम नइ १ संगर २), ४९१६५-८ ७ भय नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (इहलोक भय १ परलोक भय), ४९१६५-९ ७ व्यसन कवित्त, मु. भीव, पुहि., गा.८, पद्य, श्वे., (जूवा सुरा ताजिके), ४८५१३ ७ व्यसन लावणी, मु. राम, पुहि., गा.८, पद्य, श्वे., (चोरी जुवा मास मद), ५०५९३-३(+) ७ व्यसन सज्झाय, मु. जिनरंग, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (पर उपगारी साध सुगुरु), ४८३६२, ४८७०७(#) ७ व्यसन सज्झाय, उपा. रत्ननिधान, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सिद्धारथनृप कुलतिलो), ४९३८२-२ ७ समुद्धात विचार-भगवतीसूत्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (वेदनी १ कसाय २ मरणा), ५१७९८ ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (मूल कर्म आठ तेहनी), ५०६६९-१(+), ४८९४७, ५०५६४ ८ कर्म उपार्जना विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम ज्ञानावरणीकम), ५१७७४(#) ८ कर्मबंध सज्झाय, मु. लक्ष्मीकीर्ति, मा.गु., गा. १७, पद्य, भूपू., (कस्य बंध विधि बंधे), ४९३६०-२ ८ चैत्य स्तवन-जेसलमेरस्थित, आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., ढा. २, गा. २३, वि. १७७१, पद्य, मूपू., (जिनवर जेसलमेर जुहारी), ४९९३४-१(+#) ८ दृष्टि सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (चिदानंद परमातमरूप), ४९८१५-१(#) ८ प्रकारी पूजा, मु. उत्तमविजय, मा.गु., ढा. ८, गा. ३७, वि. १८१३, पद्य, मूपू., (श्रुतधर जस समरें सदा), ४९३७४ ८ प्रकारी पूजा, मु. देवविजय, मा.गु., ढा. ९, गा.७७, वि. १८२१, पद्य, मूपू., (अजर अमर निकलंकजे), ५०२१२-१ ८ प्रवचनमाता विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (इर्यासमितिना ४ भेद), ४९०६२-१ ८ मद नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (जाति १ लाभ २ कुलमद), ४९१६५-१० ८ मद नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (जातिमद), ४८८०१-३(+) ८ मद परिहार सज्झाय, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (सुगुरु शिखरे जीव संभ), ५०८२५(+) ८ मद सज्झाय, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (मद आठ महामुनि वारीइं), ४९८२३-२, ५०४५२, ४९८०८-१(#), ५१०३७(#) ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. ८, गा. ७६, पद्य, मूपू., (शिवसुख कारण उपदेशी), ४९७२५(+$), ५१३७७ For Private and Personal Use Only Page #535 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१२ ९ नागकुल चौपाई, मु. देवशील, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूपू., (वाद्यवाणि पय प्रणमि), ५०३४०-१(#) ९वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., ढा. १०, गा. ४३, वि. १७६३, पद्य, मूपू., (श्रीगुरुने चरणे नमी), ४८८६१,५१७६४(#), ५१८०७(#), ५०४८०(६) ९ वाड सज्झाय, वा. जयविमल, मा.गु., गा. ३९, वि. १७३८, पद्य, मूपू., (चोविसमो जिनवीर होजी), ४९७००-१ ९ वाड सज्झाय, क. धर्महंस, मा.गु., ढा. ९, गा. ५६, पद्य, मूपू., (आदि आदि जिणेसर नमुं), ४८९९२, ५०१८४-१(#) ९वाड सज्झाय, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (नववाडि मुनिसर मनधरो), ४८१३६, ५११४९-१ ९ सम्यक्त्व प्रकार, मा.गु., गद्य, मूपू., (एहवू सांभलीनै शिष्य), ४८३४७ १० दृष्टांत गीत, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., ढा. १०, पद्य, मूपू., (सरसति मझ मति दिउ), ५११८८-१(#) १० पच्चक्खाण नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (नवकारसी सागार पोरसी), ५०३३१-२, ५१४६५-५(#), ५०४४५-२(5) १० पच्चक्खाण फल, मा.गु., गद्य, मूपू., (पच्चक्खाणना नाम नवका), ४८४९२-३(+) १० पच्चक्खाणफल सज्झाय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (दसविह प्रह उठी), ४८३५३-२, ४९५७९-१,५०२५०-२(#), ५११६६-१(#), ५१८३१-१(#) १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. ३३, वि. १७३१, पद्य, भूपू., (सिद्धारथनंदन नमु), ४८७२९, ५१२१३-१ १० बोल सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (स्यादवादमत श्रीजिनवर), ४८८६६, ५११०१, ५२०३८-१ १० श्रावकबत्रीसी, आ. नंदसूरि, मा.गु., गा. ३२, वि. १५५३, पद्य, मूपू., (जिन चोविसे करु), ५००५६(+#) १० श्रावक सज्झाय, आ. नन्नसूरि, मा.गु., गा. ३२, वि. १५५३, पद्य, मूपू., (जिण चुवीसी करुं), ५१३७१(+#) १० श्रावक सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (प्रह उठि प्रणमुं दसे), ५१२१४-२, ४९५९३-३(#) १० श्रावक सज्झाय, मु. सौभाग्यरत्न, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (दश श्रावक भगवंतना), ५०६०४(+) ११ अतिशय गीत, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (केवलन्यान जंब उपर्नु), ४९६४९-४(#) ११ गणधर गहुली, मु. दीपविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (पहेलो गोयम गणधर), ५१५०३(#) ११ गणधर देववंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, मूपू., (बिरुद धरी सर्वज्ञनु), ५००३५(+) ११ गणधर नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (इंद्रभूति अग्निभूति), ५०२८७-१(+), ५००८२-२ ।। ११ गणधर सज्झाय, मु. विद्याचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (पहुढं इंद्रभूति), ४९८१६-२(+) ११ गणधर सवैया, ग. ज्ञानतिलक, पुहिं., सवै. १, पद्य, मूपू., (इंद्रभूति गणधार अगनि), ४९८८८-९(#) ११ गणधर स्तवन, मा.गु., स्त. ११, गा. ६०, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर पय पणमेवि), ४९४७९-३(+#$) १२ आरा विचार, रा., गद्य, मूपू., (प्रथम सूसमसूसम नामा), ४८३०५(+) १२ देवलोक नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (पहिलो सौधर्मइ देवलोक), ५१५७८-१(#) १२ बोल सज्झाय, मु. विजयतिलकसूरि शिष्य, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (सरसति मात मया करउ), ४९५१६ १२ भावना, उपा. जयसोम, मा.गु., ढा. १२, गा. ७२, वि. १६४६, पद्य, मूपू., (आदिसर जिणवर तणा पद), ४९५५०,५११३७, ५१८२० १२ भावना नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (अनित भावना १ असरण), ४९१६५-६ १२ भावना बारमासो, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (श्रीजिनपद पंकज नामो), ४८४५१ १२ मत नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (आमलीमत १ पासचमती २), ५०६६४-२(+#) १२ मास दूहा, मु. जसराज, पुहिं., गा. १२, पद्य, मूपू., (पीउ चाल्यौ पदमण कहे), ५०५२९-२(#) १२ व्रत कथानक, मा.गु., गद्य, श्वे., (समकित सूधउं पालता), ४९०६२-२(६) १२ व्रत टीप, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम सम्यक्त्व देव), ४९९९०-१(#) १२ व्रत नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्राणातिपातव्रत मृषा), ४८३७५-१०(+), ५०९१८-७ १२ व्रत सज्झाय, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (श्रुत अमरी समरी), ४९४००(+) १२ व्रत सज्झाय, मु. तिलकविजय, मा.गु., ढा. १२, पद्य, पू., (जिनवाणी धन वुठडो भवि), ४८९३४-३(#$) For Private and Personal Use Only Page #536 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ १२ व्रत सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १५, वि. १६८२, पद्य, मूपू., (श्रावकना व्रत सुणिज), ५१२५५-२ १२ व्रत सज्झाय, मु. सूरविजय, मा.गु., गा. ३८, पद्य, श्वे., (प्रणमीअसुमति जिणेसर), ५०४३७(+) १२ व्रत सज्झाय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (गौतम गणधर पाय नमीजे), ४८४९३-२ १२ व्रत सज्झाय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सरसति सामिनि करो), ५१६९०-२(4) १३ काठिया नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (आलस १ मोह २ बने ३), ४९१६५-७ १३ काठिया सज्झाय, आ. आणंदविमलसूरि, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (पहिला प्रणमुंगौतम), ५१०६६-१(#), ५१९९९-३(#) १३ काठिया सज्झाय, मु. आसकरण ऋषि, रा., गा. २२, वि. १८६१, पद्य, श्वे., (रतन चिंतामण जे एवोजी), ५१६०२(#) १४ गुणठाणे ५७ कर्मबंधहेतु, मा.गु., गद्य, मूपू., (मिथ्यात्व १ सास्वादन), ४८४९२-१(+) १४ गुण सज्झाय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (जिन सवेनइ करु प्रणाम), ५०९८८-१(१) १४ गुणस्थानक १०४ द्वार विचार, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., गद्य, श्वे.?, (प्रथम नामद्वार लक्षण), ४८२६४(६) १४ गुणस्थानक २५ द्वार, मा.गु., गद्य, मूपू., (नामद्वार लक्षणद्वार), ४८८८७(+#) १४ गुणस्थानक नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (मिथ्यात्व गुणठाणो १),५१८५८-२ १४ गुणस्थानक विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (बंधप्रकृतयस्तासां), ४९४६८-२ १४ गुणस्थानक सज्झाय, मु. कर्मसागरशिष्य, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (पासजिनेसर पय नमी रे), ५१७५०-१(+), ५००२४-१ १४ गुणस्थानक सज्झाय, उपा. जयसोम, मा.गु., गा. ६४, वि. १७६८, पद्य, मूपू., (चंद्रकला निर्मल सुह), ४८२५८-१(+) १४ गुणस्थानक सज्झाय, मु. धर्मसागर, मा.गु., गा. १८, पद्य, म्पू., (पासजिणेसर पाअनमोरे), ५०९३२-२(#) १४ गुणस्थानक सज्झाय, रा., गा.८, पद्य, श्वे., (चवदे थानकरा जीवए), ५२००४-९(१) । १४ गुणस्थानक सज्झाय, मा.गु., सज्झा. गुणस्थानक १४, पद्य, मूपू., (--), ४८२५९-१(#$) १४ गुणस्थानके कर्मबंधउदयसत्ता व उदीरणा विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ५०२१४(#) १४ नियम सज्झाय, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (सारदाय प्रणमि करीजी), ५१५७१-१(-#) १४ रत्न उत्पत्तिस्थान, मा.गु., गद्य, श्वे., (चक्र १ छत्र २ असि ३),५०२९१-३ १४ राजलोक नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (--), ४८९८९-२ १४ स्वप्न सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., ढा. ४, गा. २०, पद्य, मूपू., (श्रीदेव तीर्थंकर केर), ५०१८५, ४९७५९(#) १४ स्वप्न सज्झाय, मा.गु., पद्य, श्वे., (समरुंजी सायर नाम), ४९३८३(+) । १५ तिथि ७ वार चरित्र, मु. लब्धिविजय, मा.गु., ढा. १५, पद्य, मूपू., (श्रीमत् गौडी जगधणी), ४८९३४-१(#) १६ आगार कायोत्सर्ग, मा.गु., गद्य, मूपू., (१६ आगारे करी कावसग), ५१४९०-८ १६ सती लावणी, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., गा.७, पद्य, श्वे., (श्रीवीरणी तणांतु),५०५९३-१(+) १६ सती सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., गा. १७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (आदिनाथ आदि जिनवर), ४८३३२-१, ५०३९० १६ सती सज्झाय, मु. प्रेमराज, पुहि., गा. १४, पद्य, श्वे., (सील सुरंगी भालि ओढी), ५१४०४-३ १६ सती सज्झाय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (शीतल जिणवर करी), ५१०४२-३(#) १६ सत्यवादी सज्झाय, मु.खेम, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (ब्रह्मचारी चूडामणी), ५११३५-२ १६ स्वप्न सज्झाय, मु. विद्याधर, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (सरसति सामणि वीनवू), ४९३८२-१ १६ स्वप्न सज्झाय, मा.गु., ढा. २, गा. २७, पद्य, श्वे., (सरस्वति सामिण विनवू), ४९१८४ १७ भेद जीवअल्पबहुत्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. १८, पद्य, मूपू., (अरिहंत केवलज्ञान), ४९८३० १७ भेदी पूजा, वा. सकलचंद्र, मा.गु., ढा. १७, गा. १०८, पद्य, मूपू., (अरिहंत मुखपंकजवासिनी), ५०३५०-३(#) १७ भेदी पूजा, वा. साधुकीर्ति, मा.गु., ढा. १७, वि. १६१८, पद्य, मूपू., (भाव भले भगवंतनी पूजा), ५१९७५ १७ भेदी पूजा, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (रयण कंचण रयण कंचण), ४९२१३-३(+) १७ भेदी पूजा वर्णन, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (न्हवण विलेवण वच्छ), ५१४७४-२(+#) १७ भेदी पूजा सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सत्तरभेद पूजा फल), ५१४८०-२ १८ नातरा गीत, मु. भुवनकीर्ति, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (गीगारे रहि तुंरोवत), ५१६२३ For Private and Personal Use Only Page #537 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org 5 ५२० १८ नातरा विचार, मा.गु., गद्य, मृपू, (मथुरा नगरी मे कुबेर), ५०३१४-२ १८ नातरा सज्झाय, मु. ऋद्धिविजय, मा.गु. दा. ३, गा. ३२, पद्य, मूपू (पहिलो प्रणमुं पास), ५१८३३-२ (७) " १८ नातरा सज्झाय, मु. वीरसागर, मा.गु., ढा. ३, गा. ३७, पद्य, मूपू., (सरसति माता रे निज), ५१७१३ (+), ५१४४८(#) १८ नातरा सज्झाय, मु. हेतविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. ३६, पद्य, मूपू., (पहेला ते समरूं पास), ४८३३०-१ १८ नातरा सज्झाय, मा.गु., ढा. ३, गा. ३५, वि. १५६६, पद्य, मूपू., ( मिथुलानगरी शोभती), ४९८५२ - २ (+#) १८ पापस्थानक नाम, मा.गु. गद्य, मृपू. (पहली प्राणातिपात). ४८५०४-१ (+४) ५१४३७-३, ५०६७०-३(०) ५१०११-२(४) १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., सज्झा. १८, ग्रं. २११, पद्य, मूपू., (पापस्थानक पहिलुं कहि), ४९९८६ (६) י' कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१२ १८ पापस्थानक सज्झाय, मु. विनयचंद, पुहिं., गा. २१, पद्य, श्वे., (एक पाप कर सारी आलम), ४८२४८-७ १८ पौषध दोष, मा.गु., गद्य, भूपू.. (१ बोले पोसानी रातने), ४८८६४-१ १८ भार वनस्पतिमान कवित, मु. धर्मसी, मा.गु., गा. २, पद्य, श्वे. (तीन कोडि तरु जात), ५०३८०-४(#) १८ हजार शीलांग भेद, मा.गु., गद्य, भूपू (प्रथम स्त्री भेद ४), ५१९९०-२ (+) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २० बोल विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिले बोले श्रीअरिहं), ५०३२७-२(#) २० बोल सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १९, वि. १८३३, पद्य, स्था., (किणसुं वाद विवाद न), ४९९५१), ५०२६९-३(-) २० विहरमानजिन नमस्कार, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु, गा. ५, पद्य, मूपू., (स्वामी बंदु विहरमान), ५२०३३-११) २० विहरमानजिन नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (सीमंधर १ युगमंधर), ५१४५३ - ३ (+#), ५०६७१-२, ५१८५८-३ २० विहरमानजिन विवरण, मा.गु., को., मूपू., (श्रीमंधरस्वामी), ५१०६०-१(#) २० विहरमानजिन स्तवन, मु. खेम, मा.गु., ढा. २ गा. २१, वि. १७६२, पद्य, मूपू., (सासणनायक मुझ सदा), ५०२८० २० विहरमानजिन स्तवन, मु. गुणसागर, मा.गु गा. ७, पद्य, मृपू., (वछ वीजय सोहामणो रे), ५११३६-२ "" , २० विहरमानजिन स्तवन, मु. तेजरुचि, मा.गु., गा. १५, वि. १७५१, पद्य, मूपू., (संप्रति सामइ जिनवीसा), ५१८२१-२(#) २० विहरमानजिन स्तवन, मु. प्रेम, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर युगमंधर), ५०१९१-३($) २० विहरमानजिन स्तवन, मु. लीबो ऋषि, मा.गु., गा. १८, पद्य, श्वे. (पहिला स्वामी सीमंधर), ४९०३६ २० विहरमानजिन स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु, गा. ४, पद्य, मूपु. ( वीस विहरमान जिनवरराय), ४८४११ १ ५०८८०-२ २० विहरमानजिन स्तवन, मु. सेवक, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे. (प्रथम सीमंधर स्वाम), ४९९६७-६ २० विहरमानजिन स्तवन, मा.गु., गा. २०, पद्य, म्पू, (पेला बांबु श्रीमोंदर), ५०७४० (+) २० विहरमानजिन स्तवन, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (श्री जंबुदीप विदेह), ४९१९२-२(+) २० विहरमानजिन स्तवन, मा.गु., गा. ९, पद्य, भूपू (श्रीजंबूद्वीप विदेह), ४९८२२-२ For Private and Personal Use Only २० वीहरमानजिन स्तवन, मु. नेत, मा.गु., गा. २१, वि. १७४७, पद्य, मूपू., (मीमंधर सुणीया पछइ रे), ५०५३८(#) २० श्रावक कर्तव्य, मा.गु., गद्य, श्वे., (सरावगजी समकतधारी होइ), ४८८६४-२ २० स्थानकतप काउसग्ग चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ५, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (चोवीस पन्नर), ५१८५९-२ २० स्थानकतप गणणं, मा.गु., गद्य, खे, (ॐ नमो अरिहंताणं), ५०३२८-४(+), ५०३२४-१ २० स्थानकतप चैत्यवंदन, पंन्या, पद्मविजय, मा.गु., गा. ५. वि. १९वी, पद्य, मूपू. (पहेले पद अरिहंत नमु), ५१८५९-१ २० स्थानकतप सज्झाय, आ. लक्ष्मीसागरसूरि, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., ( पास जिणेसर प्रणमी), ५०६००-१(#) २० स्थानकतप स्तवन, मु. कांति, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सरसत हां रे मारे), ५०७३६ २० स्थानकतप स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू. (सुअदेवी समरी कहुँ), ५०३६० २० स्थानकतप स्तवन, मु. बखतचंद्र, मा.गु, डा. ३, गा. १९, पद्य, म्पू, (वीशस्थानक तप सेवी), ५१८२७-१००) २० स्थानक पूजा, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., ढा. २०, वि. १८४५, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर पासजी), ४८६८१ (+$) २१ बोल प्रत्युत्तर, मा.गु, गद्य, खे, (मतीये प्रश्न २१ बोल), ४८८९७ - १ २१ श्रावकगुण सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (प्रणमी श्रुतदेवी), ५०९८६ Page #538 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२१ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय सज्झाय, आ. देवरत्नसूरि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (जिनसासन रे सूधी सद्द), ४९५७८, ५१६६३-१(#) २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय सज्झाय, आ. नंदसूरि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (देव गुरु केरुं लीजि), ४८३३६, ५१७८७ २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (जिनशासनरेशुद्धि), ४८३८०-१(+) २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय सज्झाय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (जिनशासन रेशुद्ध), ४८१८१-१(-) २२ आहार द्वार-सचित्तअचित्त, मा.गु., गद्य, मूपू., (सचित अतित मिश्र त्रण), ५०००७-१ २३ पदवी वर्णन स्वाध्याय, मु. केशव, मा.गु., गा. २१, पद्य, श्वे., (प्रथम नमी श्रीवीरजिण), ५१२७७-१(2) २३ पदवी विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (सात एकेंद्री रत्ननी), ५१०२७(+), ४८२१५, ४९३७७-१ २३ पदवी सज्झाय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (गणधर गौतमस्वामी जी), ४९२५२-६ २३ पदवी स्तवन, आ. उदयप्रभसूरि, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवर पाय), ४९८४४-२ २३ बोल विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (पहिलो बोले भणिवा), ४८८०८ २४ जिन अंतरकाल स्तवन, मु. श्रीदेव, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (जिनचउवीस त्रिकाल ए),५०९८८-३(#) २४ जिन-अनागत स्तवन, ग. गजरत्न, मा.गु., गा. ३२, वि. १६७९, पद्य, मूपू., (हृदय कमले समरी सरसती), ५०४६९(+) २४ जिन आंतरा, मा.गु., गद्य, मूपू., (५० कोडिलाख सागर), ५००३१,५०५२३-१(#), ५१२७१(#) २४ जिन आंतरा स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., ढा. ४, वि. १७७३, पद्य, मूपू., (सारद सारदना सुपरे), ४८५०१, ४८९०८-१(-) २४ जिनआयु समवसरणमान गाथा, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सुविध अनंत श्रीनेम), ५१६५०-२(#) २४ जिनआयु स्तवन, मा.गु., गा.७, पद्य, श्वे., (वदीइ वीरजणेसर राय), ५०९६४, ४९५४७(-) २४ जिन कल्याणक तिथि, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम आदिनाथजी आसाड), ४८८२७ २४ जिन गणधरसंख्या चैत्यवंदन, मु. कल्याणविमल, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (प्रथमतीर्थंकरनि नमु), ५०७०१(+) २४ जिन गणधरसंख्या स्तवन, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सरसती आपे सरस वचन), ४८९२०, ४९५७६, ५१७३२-१,५०३२६-१(-) २४ जिन गणधर स्तवन, मु. हर्षसागर, मा.गु., गा. १५, पद्य, म्पू., (पास जिणेसर प्रणमी), ४८३६९ २४ जिन गर्भवास विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्री आदिनाथ नव मास), ४८४३७ २४ जिन चैत्यवंदन, मु. ऋद्धिचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आदि अजित संभवनाथ), ५०६११-२,५१५८८-५(#) २४ जिन चैत्यवंदन, ग. शुभविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (धोरी १ कुंजर २ अश्वन), ४८२५७-१ २४ जिन चैत्यवंदन-अनागत, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पद्मनाभ पहेला जिणंद), ५१२०४(#) २४ जिन चैत्यवंदन-दीक्षातपगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सुमतिनाथ एकासगुंकरी), ५०२००-५ २४ जिन चैत्यवंदन-दीक्षास्थानादिगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (विनीतानगरीए लीये दीक), ५०२००-६ २४ जिन चैत्यवंदन-देहमानगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (पंचसया धनुमान जाण), ५०२००-३ २४ जिन चैत्यवंदन-भवसंख्यागर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (प्रथम तीर्थंकरतणा), ४९८८७-३, ५०२००-८, ५०९१७-६ २४ जिन चैत्यवंदन-भवसंख्यागर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सत्तरिसयठाणइं कह्या), ५०२००-९ २४ जिन चैत्यवंदन-लंछनगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (वृषभ गज हय कपि), ५०२००-४ २४ जिन चैत्यवंदन-वर्णगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पद्मप्रभने वासपूज्य), ५०२००-२, ५१६६३-२(#), ४८३९२-३($) २४ जिन चैत्यवंदन-सहदीक्षितसंख्यागर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (चार सहस्सथी ऋषभदेव), ५०२००-७ २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (शत्रुजे ऋषभ समोसय), ४८४९७-२(+), ४८४४३-२, ५१७७०-२(#), ५१८८५-१(#) २४ जिन पंचकल्याणक विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (कार्तिक वदि ५), ५०३२५ २४ जिन पद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (जीउ जपिजपि जिनवर), ४८४३२-४(+) For Private and Personal Use Only Page #539 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५२२ २४ जिनपरिवार संख्या गणणं, मा.गु., गद्य, भूपू (--). ४९२१३-१(+) २४ जिनपरिवार स्तवन, मा.गु गा. ७, पद्य, मृपू., (चोवीस तीर्थंकरनो), ५०१६८-३(१) " " २४ जिन पूर्वभव स्तवन, मा.गु., ढा. २, गा. १६, पद्य, श्वे., (एहिज जंबूदीप वर), ४८८८९-२ २४ जिन प्रभाती, आ. समरचंद्रसूरि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (प्रह समइ ऊठी जिन समर), ५११४६-२ २४ जिन प्रभाती -अतीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (केवलन्यानीनइ१ ), ४८४३२-३(+) २४ जिन भववर्णन स्तवन, मु. श्रीदेव, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रणमीय चोवीसे जिन), ५०९८८-२(#) २४ जिन मोक्ष कल्याणक गणनुं, मा.गु., को. भूपू (काती वदि मुक्खो), ४९९३९-२(क) " २४ जिनलंछन चैत्यवंदन, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (ऋषभ लंछन वृषभ अजित), ५०८१५-२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१२ २४ जिनलंछन चैत्यवंदन, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू (वृषभ लंछन ऋषभदेव), ४८९०९-२(१) , २४ जिन स्तवन, पंडित. खीमाविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (भावे वंदो रे चोवीसे), ४९८८५-१ २४ जिन स्तवन, मु. खेमो ऋषि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (पहिला प्रणमुं प्रथम), ४८६०६ (+), ४९५८४, ४९९७०-१, ५१५८८-१(#) २४ जिन स्तवन, मु. जिनदास, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., ( रिषभ अजित जिनदेव), ४९७८३-२ २४ जिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (--), ५१२०८-१(#$) २४ जिन स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., गा. २७, पद्य, मूपू., (सगवीसे ढाले करी थुण), ५०४५३ (#) २४ जिन स्तवन, उपा. देवविजय, मा.गु, पद्य, भूपू (श्रीशिवपद्यातेहनो) ५१९३५ (+०७) २४ जिन स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., ढा. ८, गा. १९, पद्य, मूपू., (पंचगुण पंचाएगूणजिण), ४८४४२ २४ जिन स्तवन, मु. भीम ऋषि, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (आदि आदिजिणेसरदेव), ४९७६९ "" २४ जिन स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू. (ऋषभजिणंदा ऋषभजिणंदा), ५०९५९-१(5) २४ जिन स्तवन, मु. लालविनोद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जय जय आदि नमुं अरिह), ४८१५९ २४ जिन स्तवन, वा. सकलचंद्र, मा.गु, गा. ३७, पद्य, मूपू (करि कच्छपी धरती), ४८७३० २४ जिन स्तवन, मु. साधुरंग, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (पहिलुं प्रणमुं आदिजि), ५०९३६ २४ जिन स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आदि जिणेसर पहेला), ५११३०-२ () २४ जिन स्तवन, पुहिं., गा. ७, पद्य, श्वे., (ऋषभादिक तीर्थंकर राय), ४९९४६-४ २४ जिन स्तवन, मा.गु., गा. १२, पद्य, श्वे., (चौवीसुं जीणवर गावो), ४८८८९-३ २४ जिन स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (जे जे ऋषभदेव आदि), ५२००४-७(#) २४ जिन स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पहिला प्रणमु आदि), ५१०६३(#) (वंदू श्रीआदजिनंद किओ), ५१२५०-४ २४ जिन स्तवन, मा.गु., गा. २५, पद्य, श्वे. (वरतमान चौवीसी बंदु), ५१५४०-३(४) २४ जिन स्तवन, मा.गु, गा. ३, पद्य, भूपू "" २४ जिन स्तवन, पुहिं., गा. ३२, पद्य, मूपू., (श्रीआदिनाथ करिजे), ४९७९६, ४८८६४-३(१) २४ जिन स्तवन, मा.गु., गा. २५, पद्य, श्वे., (समरुं श्रीआदिजिणंद), ४८८८९-४ २४ जिन स्तवन - अनंत, मु. मनोहर, मा.गु., गा. १८, पद्य, श्वे. (सबल जिणेसर पाव नमुं), ५११३६-१ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४ जिन स्तवन - अनागत, मु. देवकलोल, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (परषद बइठी बार जिवार), ४८२६७-१, ४९८२७-२ २४ जिन स्तवन - अनागत, पंन्या मानविजय, मा.गु. गा. २२, पद्य, भूपू (--), ५०६८६-२ (०३) + २४ जिन स्तवन - अनागत, मु. विवेकसुंदर शिष्य, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (शांतिजिनेसर पय नमी), ५१७६७(#) २४ जिन स्तवन निर्वाणभूमिगर्भित, श्राव. लाधो साह, मा.गु., गा. ९, पद्य, भूपू (सकल तीरथ राजीउ), ४९८९७-३(१) २४ जिन स्तवन- मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., गा. २९, वि. १५६२, पद्य, म्पू, (सयल जिणेसर प्रणम्), ४९४२२, ५१७५५, ४९४७५ (०), ५००७३-१(०), ५०३३०-२(४), ५१४४३-१(१) २४ जिन स्तवन -वर्णविचार गर्भित, मु. कविराज, रा., गा. १८, पद्य, श्वे., (देवतणा गुण वर्णवु), ५१४७०-२(#) २४ जिन स्तुति, ग. अमृतधर्म, मा.गु, गा. ३, पद्य, मूपु. ( तीरथपति त्रिभुवन सुख), ४९५६४-१ , For Private and Personal Use Only Page #540 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट २ २४ जिन स्तुति, मु. चंद्रभाण ऋषि, मा.गु., गा. ३०, वि. १८५१, पद्य, वे., (ऋषभ जिणेसर रूडा), ५१२६५-१(-) २४ जिन स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु. गा. २८, पच, भूपू (ऋषभजिन सुहाया), ४९७१२ י' २४ जिन स्तुति, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, मूपू., (ऋषभ जिणेसर केसर चरचि), ४९३६८ २४ जिन स्तुति, मु. लावण्यसमय, मा.गु गा. २७, पद्य, मूपू (कनक तिलक भाले हार), ५१६८७-१ २४ जिन स्तुति, मा.गु गा. १, पद्य, मृपू. (अष्टापदगिरि आदिजिणेस), ५१२२४-२ (००) २४ तीर्थंकर गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु. स्त. २४ वि. १६९८, पद्य, मूपु (ऋषभदेव मेरा हो ऋषभदे), ५०८४५-४(१०) " 7 , २४ तीर्थंकर स्तवन, मु. शुभविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सहगुरु चरणे नमी करीए), ५०८४९-३(A) २४ दंडक २९ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम नामद्वार बीजु), ५११४६-४ २५ आवश्यक विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (पहिलुं वि वांदणे थई), ५१३१२-५ २५ क्रिया सज्झाय, मु. कान्हजी, मा.गु., गा. २१, पद्य, श्वे. (तीरथपतिरे वीर जिणंद), ५०७६६-२ . २५ बोल, मा.गु., गद्य, श्वे., ( नरकगति १ तिर्यंचगति), ५०३५६ २५ भावना विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (मनोगुप्ति १ एषणासमित), ४९९६५-५ २६ भाव भांगा, मा.गु, गद्य थे. (उपशम भाव क्षायक भाव), ५०२९३-१(-) 1 २८ लब्धि नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., ( आमोसही विप्पोसही), ५०७५३-२(+) י: २९ द्वार २४ दंडक नाम, मा.गु., ग्रं. २८०, गद्य, मूपू., (प्रथम नामद्वार बीजू), ५१९९२-१ २९ भावना छंद, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (अविचल पद मन थिर करी), ४९५८१, ५०८६२ ३० उपमा - साधु की, मा.गु., गद्य, श्वे. (कांसी के भाजनकी १) ५१६०९ " ३२ असज्झाय विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (उकाबाई कहता तारो तूट), ५१३९६ ३२ सामायिकदोष सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (संगम घर सुगुरु प्राय), ४८३५८(क) ३३ आशातना विचार - गुरुसंबंधी, मा.गु., गद्य, भूपू (पहलो बोल गुरु आगल), ४९५२२-१, ५१४९०-१ ३४ अतिशय छंद, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (श्रीसुमतिदायक कुमति), ५०५०६, ५१९०९-२ ३४ अतिशय विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहेलो अतिशय तीर्थंकर), ४९८८०-१ ३५ जिनवाणी गुण, मा.गु., गद्य, भूपू (केलवणि घणी सक्त्वरी), ४९८८०-२ ३५ बोल, मा.गु., गद्य, भूपू (पहेले बोले गति चार), ४८८८५ () ', ४५ आगम नाम, मा.गु., गद्य, मूपु. ( आचारांगर सुयगडांग२), ४८५३३-२ ४५ आगम पूजा स्तवन, मा.गु., गा. ४५, पद्य, श्वे. (नंदीसूत्र भणि नमो), ४८८२९(+) ४५ आगम स्तवन, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (भवि तुमे वंदो रे ए आ), ४८८७८ ४८ जिन स्तवन भरत महाविदेहक्षेत्रगत, मा.गु गा. २१, वि. १६७२, पच, भूपू (श्रीजिनपाय प्रणमीय), ४९२४२(१) ५२ वीर चौपाई, मु. जसराज, रा., गा. ४, पद्य, श्वे., (घुघरा घमके पाय बावन), ४८३३१-४ (-) ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (देवगति मनुष्यगति), ५०४४१ (+), ४९५०६, ५०१४८ ६३ शलाका पुरुष नाम संग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे., ( आवति चोईसी वर्त्तमान), ५१००३-१ वसतौ, मा.गु., गा. १८, पद्य, श्वे. (सदगुरु चरणकमल मन), ५१०३६ (#) (चमरेंद्र धरणेंद्र), ५०५९१-४ ६३ शलाकापुरुष स्तवन, मु. ६४ इंद्र नाम, मा.गु., गद्य, वे ६७ समकित बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (परमार्थ जाणवानो अभ्य), ४८५७१-१ ६७ समकित बोल नाम, मा.गु.. गद्य, भूपू (सदहणा ४ लिंग ३ एवं), ४८५७१-२ ५११७०-३ ६७ सम्यक्त्व भेद विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (तीन सुद्ध मन सुद्ध), ५१४७२-२(+) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८४ आशातना विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्लेष्मा नाखवो १ राम), ४९५२२-२ ८४ आशातना स्तवन, उपा. धर्मसिंह, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (जय जय जिण पास जग), ४८२६२ - १ (+) ८४ गच्छ नाम, मा.गु, गद्य, म्पू (ओसवालगच्छ १ खरतरगच्छ), ५०६६४-१(+), ५१५१५/०१ For Private and Personal Use Only ५२३ Page #541 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१२ ८४ गच्छ सज्झाय, मु. गुणविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (नामगच्छ चउरासि तणा), ५१९९६-२ ८४ वायु नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (सायकबाय१ सीतबाय२ दत), ५०६१७ ९६ जिन नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (केवलज्ञानी सर्वज्ञाय), ५१४५३-१(+#) ९६ जिन स्तवन, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., ढा. ५, गा. २३, वि. १७४३, पद्य, मूपू., (वरतमान चोवीसै वंदु), ५१००१(+), ५१६५२(+) ९८ बोल-जीवअल्पबहुत्व विषयक, मा.गु., गद्य, मूपू., (अहमंते सव्व जीवा), ४९६३०-१, ५०००३-१, ५०८११ ९८ बोल यंत्र, मा.गु., को., श्वे., (सरवथी थोडा गर्भज), ४८९६७, ५०४४५-१ १०८ पार्श्वजिन नामावली, मा.गु., को., मूपू., (कोका पार्श्वनाथ), ५०४४६, ५१५२४ १५० जिनकल्याणक चैत्यवंदन, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (शासननायक जगजयो वर्धम), ५०४०१ १५८ प्रकृति स्थिति भास, मा.गु., ढा. ७, गा. ६५, पद्य, श्वे., (आदिस्वर त्रिसलासुत), ४९००३(+#) १७० जिन नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीप्रसन्नचंद्र), ४८५८५, ४९७६३ १८० देश नाम, मा.गु., अंक. १८०, गद्य, मूपू., (मगधदेश१ वंगदेश२ अंग), ५०८५० २५० अभिषेक विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (एक कोड साठ लाख कलसा), ४८७३२-१ ५६३ जीवभेद ६२ मार्गणा विचार, पुहि., गद्य, श्वे., (७ नारकी का प्रजाप्ता), ५०२२६(+) ५६३ जीव भेद यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (--), ४८७५८-१ ५६३ जीवभेद विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (उंचा लोक में ५६३), ५०३५२ ५६३ जीवविचार बोलसंग्रह *, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीव का भेद बेइंद्री), ४९८४१-२(+) ५६३ जीवों के साथ मिच्छामिदुक्कडं, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवना पांचसइंत्रिसठ), ४८१५६ १४५२ गणधर सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सुखकर सद्गुरुना पद), ४८९४५ १४५२ गणधर स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (पुंडरिक गोयम पमुह), ५०१३३-२(+#) अंगफुरकण चौपाई, पं. हेमाणंद, मा.गु., गा. २३, वि. १६३९, पद्य, मूपू., (श्रीहर्ष प्रभु गुरू),५१४७६ अंगस्फुरन विचार, मा.गु., गद्य, (माथउ फुरकइ पृथ्वीनउ), ४८३६७-१ अंग्रेज जैन साधु प्रश्नोत्तर, पुहिं., गद्य, श्वे., (अकबरावाद में संवत), ४९४२०(+) अंजनासती रास, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), ४८२६३($) अंजनासुंदरी रास, मा.गु., गा. १६५, पद्य, मूपू., (शील समो वड को नही), ५०६५४($) अंबिकादेवी छंद, मु. हर्ष, मा.गु., गा. ९, पद्य, पू., (आदि सकति अंबाविसु), ५१३२४-२(#) अइमुत्ता गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, रा., गा. १३, वि. १८३०, पद्य, श्वे., (सासणनायक सिद्ध कीधी), ५११८०-२(-) अइमुत्तामुनि सज्झाय, मु. कहानजी ऋषि, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (इक दिन रित वरसातनी), ४९२४५-१ अइमुत्तामुनि सज्झाय, मु. कान्ह, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (एक दिन रति वरसातनी), ५०५४५ अइमुत्तामुनि सज्झाय, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. २७, पद्य, मूपू., (सासण स्वामी रे), ४९१७४(+) अइमुत्तामुनि सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (वीरजिणंद वांदीने), ४८५९५-१, ५००६०-४, ५०५६०, ५१६५९,५१९४४-१(-2) अक्षरबत्रीसी-आत्महितशिक्षागर्भित, मा.गु., गा. ३५, पद्य, मूपू., (कक्का तें किरिया), ४९१८२ अक्षरबावनी, मु. जसराजजी; मु. जिनहर्ष, पुहिं., गा. ५६, वि. १७३८, पद्य, भूपू., (ॐकार अपार जगत आधार), ५२०४०(+#) अक्षरबावनी, मु. धर्मवर्धन, पुहिं., गा. ५७, वि. १७२५, पद्य, मूपू., (ॐकार उदार अगम अपार), ४९८२१-२, ४९८७४-१(६), ५०९९२(६) अज दृष्टांत सज्झाय, वा. रामविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सातमे अध्ययने इसी), ५१५१४-२(#) अजितजिन चैत्यवंदन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (श्रीजितसत्रु नरेसर), ५१४९९-२(+) अजितजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जगजीवन जगतार रे विजय), ४९२५४-२(+) For Private and Personal Use Only Page #542 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २ अजितजिन स्तवन, मु. खुशालमुनि, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (अजित जिणेसरदेव मोरा), ४८२९६-२ अजितजिन स्तवन, मु. खुशालचंद ऋषि, रा. गा. ७. वि. १८६३, पद्म, वे. वारी वारी अजितजिणंद), ५००१६-३ () , "" अजितजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू., (तार किरतार संसार), ५१९०५-२ (००), ५०८९९-२, ५११५८-८) अजितजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अजित जिनराज सुणि आज), ५०३४७ अजितजिन स्तवन, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (रूडी कोसलदेशे दीपती), ५०३७१-३(#) अजितजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अजित जिणंदस्यु प्रीत), ४८२९६-४ अजितजिन स्तवन, मु. साधुविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अजित जिणेसर पूज्यो), ५२०१५-४(#) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अजितजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, वे., (अजित जीणेसर विनवें), ४९८१८-२(७) अजितजिन स्तवन -तारंगातीर्थमंडन, पंन्या. मोहनविजय, मा.गु., गा. ८, वि. १९५५, पद्य, मूपू., (श्रीतारंगा धाममां), ५०३९८-२ अजीव ५६० भेद यंत्र, मा.गु., यं., मूपू., (--), ४८७५८-२ अणखीया पद मा.गु. गा. ७, पद्य, मूपू (माहेमास नई उची मेडी), ४८१८१-३ (१ "1 अणगस गीत, मु. माणिक, रा. गा. २३, पद्य, मूपू., (अणगास करवो कालि बाई), ५०००६-१ अतीतचौवीसी चैत्यवंदन, मु. अमृत, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अतीतचोवीसी वंदीए आतम), ४८९०६-१ अध्यात्म गीता, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ४९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (प्रणमियै विश्वहित), ५१९५२ (+#), ५१५९१ अध्यात्म पद, मु. कुशल, पुहिं. गा. १०, पद्य, म्पू (चितानंद मनकहारे मेरा), ५१२६६-५ (०) अध्यात्मबत्तीसी, मु. बालचंद मुनि पुहिं. गा. ३३, वि. १६८५, पद्य, स्था. (अजर अमर पद परमेसर ), ५०८३४-१( अध्यात्मभावना विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (धन्य हो प्रभु संसार), ४८१७२ अध्यात्म सज्झाय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (आज आधार छै सूत्रनो), ४९९५० -५(+), ५२०४३-२ अनंतकाय सज्झाय, मु. भावसागर, मा.गु. गा. १२, पद्य, भूपू (अनंतकायना दोष अनंता), ५०५९५ (+), ५०४६०-१(१) अनंतजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (अनंत प्रभुशुं आसिकी), ५०३४६-२ (-) अनंतजिन स्तवन, मु. प्रेम, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुकलपखि जिम दीपतो रे), ५००२९-३ अनंतजिन स्तवन, उपा यशोविजयजी गणि, मा.गु, गा. ५, पद्य, मूपू (अनंतजिनशुं करो), ५०६४०-२ अनंतजिन स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (अनंत तेरे गुण अनंत), ५०८८५-६ (+) अनागत चीवीशी स्तवन, मु. अमृत, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुप्रभात प्रणमीए), ४८९०६-३ " अनाथीमुनि सज्झाय, पंन्या. रामविजय, मा.गु., गा. ३०, पद्य, भूपू. (मगधाधिप श्रेणिक), ५१०८४-२ अनाथीमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु. गा. ९, पद्य, म्पू, (श्रेणिक रयवाडी चड्यो), ४९९७९, ४९८२६-२, ५०१७९-४ (#), ५१३८१-१(#) अनाथीमुनि सज्झाय, मु. सिंहविमल, पुहिं गा १९, पद्य, मृपू., (मगध देश को राज राजे), ५१३१३(१) अनादि बीसी, श्राव. भैया, पुहिं., गा. ३३, वि. १७५०, पद्य, श्वे. (अष्टकर्म अरिजीतकै भए), ५१५३०-१ अनुभव आध्यात्मिक पद, मु. चिदानंद, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (अनुभव आनंद प्यारो), ४९८६१-६(+) अनुष्ठाण लक्षण, मा.गु., गद्य, श्वे. (स्त्री तो बेई कही छे), ५१२९५-२ (+) " अभक्ष्य अनंतकाय सज्झाय, वा. उदय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (वड पेंपल उंबर फलां), ५२००१-३(#) अभयकुमारमंत्री सज्झाव, मा.गु, गा. १८, पद्य, वे. (श्रीवीरजिणंद समोसर्य), ५०११३-१(१) अभव्य सज्झाय, मु. उदय, मा.गु., गा. ६, पद्य, भूपू (उपदेश न लागे अभव्यने), ४९८५४-१, ५००७९-१(१), ५१४४९-३(१) अभिनंदनजिन स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अभिनंदनजी अरज हमारी), ४९८६२-१(#) अभिनंदनजिन स्तवन, मु. गुणशेखर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (अभनंण अरदास कि महारी), ५१६६०-३(#) अभिनंदनजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (बे करजोडी वीनवु रे), ५०८९९-३ अभिनंदनजिन स्तवन, वा. मानविजय, मा.गु. गा. ७, पद्य, भूपू (प्रभु तुम दर्सण मलिय), ४९५८५-१ अभिनंदनजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, म्पू, (तु करुणारस सिंधु), ५०१२५-३ "" For Private and Personal Use Only ५२५ Page #543 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१२ अभिनंदनजिन स्तवन, ग. समयसुंदर, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (मेरे मन अभिनंदन देवा), ४९४८२-६(#) अमरसागरसूरि बारमासो, मु. भक्तिसागर, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (पंथी करि अरदास रे), ४९९०३-२(#) अमरसागरसूरि भास, उपा. उदयतिलक, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (हुं सरसति पाए ले), ४९९०३-१(#) अमृतध्वनि, पं. भानुविजय, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (तुहि तुहि त्रिभुवन), ४८२७०-५ अरजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (धरम परम अरनाथनो केम), ५०५५७ अरजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (अरनाथ कुं सदा मेरी), ५०१९६-३(#) अरजिन स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (अरनाथ अरिगम गंजना), ५०८८५-१०+$) अरणिकमुनि गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (विहरण वेला पांगुर्यउ), ४८४३२-१(+), ४९८३९-२, ५०१७९-२(#) अरणिकमुनि रास, मु. आणंद, मा.गु., ढा. ८, वि. १७०२, पद्य, मूपू., (सरसति सामिणि वीन, ५१५३३-३(+#) अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. १५, वि. १८५९, पद्य, श्वे., (चंपानगरथी चालिया), ५०७२३(+#) अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (अरणिक मुनिवर चाल्या), ४८९२२(+), ५०४११-१(+), __ ४९१७५-२ अरणिकमुनि सज्झाय, मु. विद्यारत्न, मा.गु., ढा. ६, वि. १७७७, पद्य, मूपू., (समरी सरसति सामिनी), ४९२७१(+#) अरिजितजिन स्तवन, आ. भावप्रभसूरि, पुहि., गा. २२, पद्य, मूपू., (पघडीचा पेचा देखो जाम), ५०९५७ अरिहंतपद सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वारी जाउं श्रीअरिहंत), ४८६५५-१(+), ४८६४०,५१३५६-१ अर्बुदगिरि चैत्यपरिपाटी स्तवन, उपा. राजरत्नविजय, मा.गु., गा. २४, वि. १६९७, पद्य, मूपू., (अर्बुदगिरि रलियामणउ), ४८९३५-१(#) अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. १३, गा. १०७, वि. १७४१, पद्य, मूपू., (मुनिवर आर्य सुहस्ति), ५१७१४(+#$), ५१७७०-१(#), ५१९०३(६) अवंतिसुकुमाल सज्झाय, मु. कीर्तिविमल, मा.गु., गा. २८, पद्य, श्वे., (सरसति सामणि मया), ५१९९८(#) अवंतिसुकुमाल सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (श्रीजिनसासन नायको जी), ४९७२०(+) अवंतिसुकुमाल सज्झाय, मु. शांतिहर्ष, मा.गु., ढा. १३, वि. १७४१, पद्य, मूपू., (पास जिनेश्वर सेविये), ५१६४८(#$) अवधिज्ञान स्तवन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पूजो पूजो अवधिज्ञान), ४९२२८-१ अविनीत शिष्य सज्झाय, मु. रामविजय, मागु., गा. ९, पद्य, मूपू., (शिष्य अविनित उवेखीये), ५१५१४-१(#) अविनीत शिष्य सज्झाय, मा.गु., गा. ४१, पद्य, मूपू., (मातपीतारो अवनीत छौ), ४९६७७ अष्टगंध नाम, मा.गु., गद्य, (रतांजणी, सुकड वीली,), ४९०२९-३(+) अष्टप्रकारी पूजा दुहा, पं. वीरविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (जल पूजा जुगते करो), ५१४०१-२ अष्टभंगी सज्झाय, ग. उदयविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सुविहित गुरुपद अनुसर), ५०५९९-२(2) अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, पं. खिमाविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (चैत्र वदी आठम दिने), ५००९३ अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा.७, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (महा सुदी आठमने दिने), ४९८२३-१ अष्टमीतिथि नमस्कार, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १२, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (आठिम तप आराधिइं भाव), ४९७८९-२(+), ५२०१०-३ अष्टमीतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (आठम कहे आठिम दिने), ५०४०४ अष्टमीतिथि स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., ढा. २, गा. २४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (हां रे मारे ठाम धर्म), ४८५६६-१(+), ४८९७९(+), ५०६४१-१(+), ४९०१३, ४९०४३-१, ४९५१८-२, ४९६९२, ५००५२, ५०८८६-३, ४८७३८(#), ५१४३९-१(#) अष्टमीतिथि स्तवन, ग. देवविजय वाचक, मा.गु., ढा. ४, गा. १०, पद्य, मूपू., (सरसती सामिणि गजगति), ४९६८० अष्टमीतिथि स्तवन, मु. नयविजय, मा.गु., ढा. २, गा. २०, वि. १७१८, पद्य, मूपू., (जय हंसासणी शारदा), ५०१५१, ५१८६१ अष्टमीतिथि स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., ढा. २, गा. १३, पद्य, मूपू., (श्रीराजगृही शुभ ठाम), ५०४३५ For Private and Personal Use Only Page #544 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५२७ अष्टमीतिथि स्तवन, मु. लावण्यसौभाग्य, मा.गु., ढा. ४, गा. २४, वि. १८३९, पद्य, मूपू., (पंचतिरथ प्रणमुं सदा), ४८९२५-१, ४८९५०, ५०३८५ अष्टमीतिथि स्तवन, ग. शुभविजय, मा.गु., ढा. २, गा. १२, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (जय हंसासणी शारदा), ४८१४५, ५१२२७ अष्टमीतिथि स्तुति, आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (चोवीसे जिनवर प्रणमु), ५१६३६-१(६) अष्टमीतिथि स्तुति, उपा. राजरत्न, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अष्टमीदिन चंद्रप्रभु), ४८३००, ४९००९, ५०६६२, ५०७३५, ५१०९२ अष्टमीतिथि स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अष्टमी अष्ट परमाद), ४८२४४-२, ५०७६५-१(-) अष्टमीतिथि स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (चंद्रकंति चंद्रप्रभ), ५१२१९-४(+#) अष्टमीतिथि स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (महामंगलं अष्ट सोहै), ४९६३३-३ अष्टसिद्धि विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (अणिमा सिद्धि १ हुलह), ५१९२०(#) अष्टापदतीर्थ स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मनडु अष्टापद मोह्यु), ५१६७३-१ अष्टापदतीर्थ स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (तिरथ अष्टापद नित), ५१२५९-१(+) अष्टापदतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अष्टापदगिरि जात्रा), ५०५४६(-) अष्टापदतीर्थ स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मनडो अष्टापद मोह्यो), ५०५५९-२(#) असज्झाय विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (सूक्ष्म रज आकाश थकी), ४८८४२-१, ५११०९-१, ५२०२१ असज्झाय विचार सज्झाय, मु. गुणसागरशिष्य, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (वंदिइ वीर जिणेसर राय), ४९२४०-१(#) असज्झाय सज्झाय, मु. ऋषभविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सरसति माता आदे नमीइ), ५१४१३, ५१४१५ असज्झाय सज्झाय, मु. हीर, पुहि., गा. १५, पद्य, मूपू., (श्रावण काती मिगसिर), ५०९१०-१, ५१२१४-१, ५०९३२-१(#) असज्झाय सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (पवयण समरी सासणमाता), ४८७५०-१,५००५७, ५१५१८,५१७८४, ५१७८५ असज्झाय सज्झाय, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (वांद वीर जिनेश्वर), ४८१९३(+-) असनादिक कालप्रमाण सज्झाय, मु. वीरविमल, मा.गु., गा. १८, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (प्रणमु श्रीगौतम), ५१०७९-८(+), ५१०९९-३(+#), ४८५८०, ४९६०९, ५१७३३,५१८१५(#) आगम स्तवन, ग. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (श्रुत अतिहि भलो संघ), ४८६३४-१ आगम स्तवन, वा. लालचंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (वीर जीणंदनी वाणी), ४८५३३-१, ४८६३२ आचार्य ३६ गुण वर्णन, मा.गु., गद्य, श्वे., (एकविध असंयमना), ४८८२१-१ आचार्यपद सज्झाय-नवकार पदाधिकारे तृतीय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (आचारी आचार्यनुजी), ५१३५६-३ आत्मद्रव्य गुण पर्याय भावना सज्झाय, मु. लाधो, मा.गु., गा. १२, पद्य, श्वे., (एक समे रुचिवंत शिष्य), ४९५०९-१(+) आत्मद्रव्य वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (अनंत नये अनेक), ४८९८३-२ आत्मनिंदा भावना, मु. ज्ञानसार, रा., गद्य, मूपू., (हे आत्मा हे चेतन ऐ), ५०२६६() आत्मप्रबोध सज्झाय, मु. भावप्रभ, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (सासरीइं इम जइइं रे), ५०४००-१ आत्मशिक्षा सज्झाय, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (श्री यति मारग आदर्यो), ५०१९५ आत्महितविनंति छंद, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (प्रभुपाय लागी करूं), ५१८९६-१(+) आत्महितशिक्षा सज्झाय, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (जीव जगावो आपणो रे), ४८५५८(#) आत्मा की आत्मता, मा.गु., गद्य, श्वे., (असंख्यातप्रदेशी अनंत), ४८९८३-१ आत्मा के ६५ गुण, मा.गु., गद्य, भूपू., (असंख्यात प्रदेशी), ५०४१५, ५००९२-१(-#) आत्मा के ८ नाम भगवतीसूत्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (द्रव्यात्मा १ कषाय), ५१०६०-२(१) आत्मोपदेश सज्झाय, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (मैं तो प्रणमु सद्), ४८५०० आत्मोपदेशिक पद, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (हारे इस सहर विच), ५०९०७-१(2) आत्मोपदेशिक सज्झाय, रा., गा. १७, पद्य, श्वे., (चैतन अनंत गुणरो रे), ५१०८६-१ आदिजन स्तवन, मु. भावहर्ष, मा.गु., गा. ३३, पद्य, मूपू., (नमवि सिरिरिसहजिण भाव), ४९८४८ For Private and Personal Use Only Page #545 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१२ आदिजिन १३ भव ढाल, ग.प्रेमविजय, मा.गु., ढा. ६, गा.५७, पद्य, मूपू., (पुरीसादाणी पासजिन बह), ४८५५० आदिजिन अतिशय गीत, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (नाभिराय मरुदेविनंदन), ४९६४९-३(#) आदिजिन आरती, मा.गु., पद्य, श्वे., (जे जे अरीहता भगवंता), ४८६९६-२($) आदिजिन गीत, मु.सौभाग्यविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिन गजपुर पधार्य), ४९६४९-१(#) आदिजिन गीत, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (भजो श्रीऋषभ जीणंद), ४८४४६-३(#) आदिजिन चैत्यवंदन, क. ऋषभ, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (आदिदेव अरिहंत नमु), ५०९१७-१ आदिजिन चैत्यवंदन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (जय जय जिनवर आदिदेव), ५१४९९-१(+) आदिजिन चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (आदिदेव अलवेसरु), ५०७८०-२ आदिजिन चैत्यवंदन-चंद्रकेवलिरासउद्धृत, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा.८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अरिहंत नमो भगवंत), ४९८४२-२(+$) आदिजिन छंद, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (सत्यगुरू कहि सुगुररा), ५०७५७-२(#) आदिजिन छंद, मु. लाल कवि, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (बे कर जोडी वीन), ५१८५६(+#) आदिजिन छंद, पुहिं., गा. ११, पद्य, श्वे., (पेली प्रणमुंप्रथम), ५२००४-६(#) आदिजिन छंद-धुलेवा, क. दीपविजय, मा.गु., गा. ६३, वि. १८७५, पद्य, मपू., (आदि करण आदि जग आदि), ४९७०८-१, ५०९७६ आदिजिन छंद-धुलेवामंडन, आ. गुणसूरि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (प्रमोदरंगकारणी कला), ५१२८३, ५०७५७-१(#) आदिजिन जन्मवर्णन सज्झाय, मु. माधवजी ऋषि, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (परभू सवारतसीधथी चवि), ४८८१७-२ आदिजिन नमस्कार, मु. प्रीतिविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (नाभि नरेसर कुल कमल), ४९८८७-४ आदिजिन पद, मु. अभयचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (अब तो निभायै बनेगी), ४८५३१-२ आदिजिन पद, मु. आनंदवर्द्धन, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (आदि जिणंद मया करो), ४९१९३-४ आदिजिन पद, आ. कीर्तिसूरि, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (दरिसण देखन रिषभ को), ५१०६८-२(#) आदिजिन पद, मु. चौथमलजी म., पुहि., गा.५, पद्य, स्था., (कहे व्रामी सुंदरी), ५२०४७-८ आदिजिन पद, मु. जिनचंद, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (नित ध्यावो रे रिषभ), ५१२७४-५ (#) आदिजिन पद, मु. विनयचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (आदिजिनराज अविनासी सत), ५०२७४-१२(+-) आदिजिन पद, मु. विमल, मा.गु., गा. ४, पद्य, स्पू., (चालो सखी वंदन जाइये), ५०४७५-४(+) आदिजिन पद, मु. शिवचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (सफल घडी रे मोरी सफल), ५०८०६-२ आदिजिन पद, मु.सौभाग्यविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (ऋषभदेव का हयरी विवाह), ४९६४९-२(#) आदिजिन पद, पुहि., गा. ६, पद्य, मूपू., (बाबा ऋषभ बैठै अलबेली), ४९२८०-१ आदिजिन पद-धुलेवामंडन, पं. ऋषभदास, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (धूलेवा नगर मारो ऋषभ),५१४८३-३(+#) आदिजिन पद-विक्रमपुरमंडन, मु. धर्मसिंह, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (नाभिनंदन प्यारो लागै), ५०९९८-२ आदिजिन पारणा स्तवन, नानु, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मारी रस सेलडी आदि), ४९३६४-३ आदिजिन प्रभातीयु, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सारकर सारकर श्रीऋषभ), ५१३४५-१ आदिजिन बृहत्स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, मु. प्रेमविजय, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (प्रणमवि सयल जिणंद), ५१५७६-२($) आदिजिन महावीरजिन स्तवन-जीर्णगढमंडण, मु. कुशलहर्ष, मा.गु., ढा. ७, गा. ३९, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (आदिह आदिजिणेसर प्रणम), ५०६१६ आदिजिन लावणी, मु. ऋषभदास, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सुणीयेरे वातां सदा), ४९८७५-२(+) आदिजिन लावणी, नान, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (नाभराय के नंद करो), ४८५४१(+) आदिजिन लावणी, मु. नान्हू, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (आदि जिनेसर कियो पारण), ४९९०९-२ आदिजिन लावणी, पुहिं., गा. २४, वि. १८६०, पद्य, मूपू., (सरस्वतीमाता सुमत की), ४९६३५-१(#) For Private and Personal Use Only Page #546 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ आदिजिन विनतिरूप स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ३४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (श्रेय श्रीरतिगेह छो), ४८९४८-१ आदिजिन विनती, मा.गु, गा. २५, पद्य, म्पू, (योगनमां मो मै घर केर). ५१३६१(०) आदिजिनविनती स्तवन, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., ढा. ५, गा. ५७, वि. १६६६, पद्य, मूपू., (श्रीआदीसर वंदु पाय), ५१९४० आदिजिनविनती स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु. गा. १९, पद्य, भूपू (सुण जिनवर शेडुंजा), ४८९८७, ५०९४७-१ आदिजिनविनती स्तवन- शत्रुंजयतीर्थ, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ४५, वि. १५६२, पद्य, मूपू., (जय पढम जिणेसर), ४९८०७, " आदिजिन विवाहलो, मा.गु., ढा. ३, गा. २४, पद्य, मूपू., (अवझापुरि नयरि नाभि), ५१७३५ आदिजिन सवैचा. ग. ज्ञानतिलक, पुर्हि सबै १, पद्य, मृपू., (मरुदेवि कि नंदन दुख), ४९८८८-२(१) आदिजिन सवैया, पं. माणक्यविजय, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (रखभेसरदेव करु अंतेरी), ५१८४७-३ ५०३३०-१(#) आदिजिनविनती स्तवन-शत्रुंजयतीर्थ, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. ५७, वि. १७३, पद्य, मूपू (आदिश्वरप्रभुने विनंत), ४९७५५, १ ५०३८१ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . "" आदिजिन स्तनव - शत्रुंजय मंडन, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीगुरुचरण नमीजइ), ५१५८९(+#) आदिजिन स्तवन, मु. अक्षयचंदसूरि शिष्य, मा.गु, गा. ५, पद्य, भूपू (प्रभुजी आदीसर अलवेसर), ४९६८८ आदिजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिणेसर प्रीतम), ४९४३८, ५०९२७-२(#) आदिजिन स्तवन, मु. कविराज, मा.गु., गा. १५, पद्य, मृपू., (वचन विलास दीऐ ब्रह्म), ४८५१६-१(+) आदिजिन स्तवन, मु. कृष्णविमल, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (आदिजिणेसर साहिबो), ४८१५८-२ आदिजिन स्तवन, मु. केसर, मा.गु, गा. ५, पद्य, भूपू (जे जगनायक जगगुरु जी), ५१७५३-१ आदिजिन स्तवन, मु. केसर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., ( सारद सार दया करी दया), ४८१५४-३ आदिजिन स्तवन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु.. गा. ५, पद्य, भूपू (श्रीरिषभ जिनेसर), ५०८९३-२ (+) आदिजिन स्तवन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सूरति स्वामि तिहारी), ४८४१२-२ आदिजिन स्तवन, ग. गुणशेखर, मा.गु., गा. ७, वि. १७६१, पद्य, मूपू., (आदीसर हो सुण यो अरदा), ५१६६०-५(#) आदिजिन स्तवन, मु. चंदकुशल, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (देखोने आदेसर बाबा), ५१८०९-३ आदिजिन स्तवन, मु. चंद्रविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मृपू, (अतुलीबल अरिहंत आदीसर) ५१३९४ आदिजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आदिसर अवधारीजी), ४९३५१-४ आदिजिन स्तवन, आ. जिनहर्षसूरि, पुहिं. गा. ५, पद्य, मूपू (जिनराज नाम तेरा राख), ४९१९३-६ " आदिजिन स्तवन, मु. चौथमलजी म., मा.गु., गा. ३२, वि. १९६८, पद्य, श्वे. (श्रीरीखभ कीरतार रे), ४९५०४(+) आदिजिन स्तवन, मु. जसराज, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (आज आनंदगन जोगसर आयो), ५१६४६-१(+#) आदिजिन स्तवन, आ. जिनप्रभसूरि, फा., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (अल्ला ल्लाहि तुराह), ५१६०५ (+#) (२) आदिजिन स्तवन-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (हे पूज्य तवाहं कर्मक), ५१६०५ (+#) आदिजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मन मधुकर मोही रह्यउ), ५१९०५-१ (+#), ४९७००-२, ५०८९९-१, ५११५८-५१ ५२९ आदिजिन स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आदिसर सुखकारी हो), ४८२२८ आदिजिन स्तवन, मु. जीतचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (जिणंदजी श्रीआदेसर), ५२०१५-३(#) आदिजिन स्तवन, मु. ज्ञानचंद, मा.गु, डा. २ गा. २६. वि. १८वी, पद्य, थे. (श्रीनाभिकुलगुर), ४८८८९-९, ४९८२५-१(१६) , आदिजिन स्तवन, पंडित. टोडरमल, पुहिं., गा. ६, पद्य, दि., ( उठ तेरो मुख देखुं), ५०९९१-४ आदिजिन स्तवन, आ. दयासागरसूरि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., ( श्रीरिषभ जिणेस्वर जग), ४८५६७-२ आदिजिन स्तवन, मु. नेमिविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (सुखकरण तन्न दूखहरण), ५०४८७-१ आदिजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू. (श्रीऋषभनुं जन्म कल्य), ५००७९-२(१६) आदिजिन स्तवन, बंसी, पुहिं. गा. ५, पद्य, वे (श्रीआदिनाथ पणमेर), ४८९२६-३(१) For Private and Personal Use Only Page #547 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१२ आदिजिन स्तवन, वा. मतिवर्धन, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (नमवि जिणराय सुगुरूण), ५०४६६(#) आदिजिन स्तवन, मु. महिमाविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (बालुडो निःस्नेही थइ), ५१०८८ आदिजिन स्तवन, मु. माणिक, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रथम प्रभुप्रथम), ५१०७९-६(+) आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (पीउडा जिनचरणानी सेवा), ४८२०२-२ आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (बालपणे आपण ससनेहि), ४८६७५-१, ५०२१५ आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, रा., गा.७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (राज मरुदेवी केरा), ४८१५८-१ आदिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (जगजीवन जगवालहो मरुदे), ५१६२४-३(#) आदिजिन स्तवन, मु. राज, मा.गु., गा. २३, पद्य, पू., (अलख अगोचर अजर अरूपी), ४८२७३ आदिजिन स्तवन, मु. राजसमुद्र, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (मनमोहन महिमा निलउ), ५०७२२-१ आदिजिन स्तवन, मु. राम, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (आज भले दिन उगो हो), ४८३५९-३ आदिजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (ओलगडी आदिनाथनी जो), ५०३५०-१(#) आदिजिन स्तवन, मु. लालचंद, मा.गु., गा. ११, वि. १८३९, पद्य, श्वे., (ऋषभ जिणेसर त्रिभुवन), ५१८२७-२(+#), ४८५३१-१ आदिजिन स्तवन, मु. श्रीपति, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (श्री श्री श्री), ५१२९७-२(१) आदिजिन स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (ऋद्धि सिद्धि नवैनिध), ५०९२०-५(#) आदिजिन स्तवन, आ. सुबुद्धिसूरि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सुण साहिब हो प्रभुजी), ४९८२०-१ आदिजिन स्तवन, मु. हर्षविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (पहिला श्रीऋषभजिणंद), ५१००५-२(2) आदिजिन स्तवन, मा.गु., गा.८, पद्य, श्वे., (डोर हो दीजै सामी पीय), ५०७८६-१(-) आदिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (प्रणमी सरसतिरे समरी), ५१४४०-१(#) आदिजिन स्तवन, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (सेत्तुंजि वंदउ रिसह), ५०९१२(१) आदिजिन स्तवन, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (हांजी नाभीनंदण कोल), ४९६९१-२(-) आदिजिन स्तवन-१४ गुणस्थानविचारगर्भित, वा. पद्मराज, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (जगपसरंत अनंतकंत गुण), ४९१५५(+) आदिजिन स्तवन-२८ लब्धिगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., ढा. ३, गा. २६, वि. १७२६, पद्य, मूपू., (प्रणमुंप्रथम जिनेसर), ५०७५३-१(+) आदिजिन स्तवन-३४ अतिशयगर्भित, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (नाभिनरिंदमल्हार), ४८१७० आदिजिन स्तवन-आडपुरमंडन, मु. गुणसागर, मा.गु.,गा. २५, पद्य, मूपू., (जिन जीम जाणे होते), ४९३५६ आदिजिन स्तवन-केसरीयाजी, मु. रत्न, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सखि रे जागती जोत), ५०७४२(#) आदिजिन स्तवन-चौदगुणस्थानकविचार गर्भित, उपा. वच्छराज वाचक, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (जगपसरंति अनंतकंति), ५१६५७(#) आदिजिन स्तवन-देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित, ग. विजयतिलक, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (पहिलु पणमिअ देव), ४९८४१-१(+) (२) आदिजिन स्तवन-देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (हं पहिलु धुरि), ४९८४१-१(+) आदिजिन स्तवन-धुलेवा, मु. रूपविजय, रा., गा. ११, वि. १८९६, पद्य, मूपू., (तुमे आतमरामी छो सामी), ४८१७८ आदिजिन स्तवन-यांचोटमंडन, मु. हेमविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीपांचोट ग्राम), ४९८७६-२(#) आदिजिन स्तवन-फलवर्द्धिपुरमंडण, क. रूप, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (जय जय हो सामी जैनराय), ४८२५९-८(2) आदिजिन स्तवन-राणकपुरमंडण, ग. जीवसागर, मा.गु., गा. ९, वि. १९०५, पद्य, मूपू., (राणपुरो जिन भेटीयो), ५१६६२-२(#) आदिजिन स्तवन-राणकपुरमंडन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, वि. १७९३, पद्य, मूपू., (जगपति जयो जयो), ५१६२६-२ आदिजिन स्तवन-राणकपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा.७, वि. १६७६, पद्य, मूपू., (राणपुरे रलीयामणो रे), ४८६५३-२, ५११९३-१, ५१५४६-२, ५००७३-५(#), ४९३५१-३() आदिजिन स्तवन-राणपुरमंडण, वा. जयसिंह गणि, मा.गु., गा. १३, वि. १७९८, पद्य, मूपू., (श्रीरांणपुरै रसिहेस), ५१९६८-१ For Private and Personal Use Only Page #548 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २ आदिजिन स्तवन -शत्रुंजय, आ. शांतिसूरि, मा.गु गा. ९, पद्य, मूपू (दइ सरसति सामणि बुद्ध), ५०८२३-२ आदिजिन स्तवन - शत्रुंजयतीर्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु गा. ८, पद्य, भूपू (दइ तस मानने अर्थ समा), ५०९८० (+) आदिजिन स्तवन शत्रुंजयतीर्थ, पं. नायकविजय, मा.गु, गा. ११, पद्य, म्पू, (श्रीआदिजिनेश्वर), ४८७४०(१) आदिजिन स्तवन - शत्रुंजयतीर्थमंडन, मु. आणंदरुचि, मा.गु., ढा. ३, गा. २६, पद्य, मूपू., (श्रीसिद्धाचल नित नमु), ५१२४४(+) आदिजिन स्तवन - शत्रुंजयतीर्थमंडन, मु. कांति, मा.गु, गा. ५, पद्य, भूपू (धुनी ग्रहकती ग्राहकती) ४८२२३-१ आदिजिन स्तवन - शत्रुंजयतीर्थमंडन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु "3 गा. १५. वि. १८६६, पद्य, मूपू (अविकल कुल इक्ष्वाकु), ४८९९८-४९०४) आदिजिन स्तवन -शत्रुंजयतीर्थमंडन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु गा. १४. वि. १८६६, पद्य, मूपू (श्रीआदीसर साहिब सेवि), ५०९०६-१ आदिजिन स्तवन -शत्रुंजयतीर्थमंडन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., ( नमो नमो श्रीआदि), ५१०९३ आदिजिन स्तवन - शत्रुंजयतीर्थमंडन, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (--), ४८४४३-१ ($) आदिजिन स्तवन- सम्यक्त्वगर्भित, मु. क्षमाविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (समकित द्वार गभारे), ५०१३०-२(४०) आदिजिन स्तवन-सिद्धाचलमंडन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (तुम दरिसण भले पायो), ४८१५७-३ आदिजिन स्तवन -सेत्रावामंडण, मु. लखमीचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू. (सेत्रावापुरमंडणउ ऋषभ), ५०६९९-१(क) आदिजिन स्तवन- सौभाग्य पंचमी उत्सवगर्भित, ग. सुजयसौभाग्य वाचक, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिनेश्वर प्रभु), ४९६१५-२ आदिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. ४. वि. १७वी, पद्य, म्पू, (प्रह उठी बंदु ऋषभदेव), ५०६३१-२, ५१७७३ आदिजिन स्तुति, मु. खेम, उ., ढा. ३, पद्य, वे., (साहिब तुं सच्चा धणी), ५०९५०(#) आदिजिन स्तुति, मु. जिनहर्ष, मा.गु, गा. ४, पद्य, भूपू (प्रणमुं परमपरुष परम), ५१२२४-५ (+०) आदिजिन स्तुति, मा.गु, गा. ४, पद्य, मूपू., ( कनक तिलक भाले हार), ५०१५२-४ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५१३२२-३(+) आदिजिन होरी, मु. जिनचंद्र, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (दयामिठाई अति भलीरे), ५०४७५-२(+) आदिजिन होरी, मु. जिनचंद्र, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (होरी खेलियै नर बहुर), ५१५२९-६($) आदिजिन होरीपद, मु. जिनरंग, पुहिं. गा. ४, पद्य, मूपू., (होरी खेलीये ० दया मिठ), ५०९९१-२ आदिजिन स्तुति-उन्नतपुर, मु. भावसागर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू (उन्नतपुर मंडण जगतधणी), ५१३८६-३ (+) आदिजिन स्तुति-नवतत्त्वगर्भित भुजनगरमंडन, मु. मानविजय, मा.गु, गा. ४, पद्य, मूपु (जीवाजीवा पुण्यने पाव), ४८९०३-१, 13 ५०९८५-१ आदिजिन स्तुति-मरुदेवामाता केवलज्ञान, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (गजकुंभे बेसी आवे), ४९८७९-२ (#) आदिजिन स्तुति-सुधर्मदेवलोकभावगर्भित, ग. कांतिविजय, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सुधर्म देवलोक पहिलो), आदिमाता छंद, मु. कुशललाभ, मा.गु., गा. ४५, पद्य, म्पू. (ॐकार आदि अपरम पर नाद), ४९४९१-१, ४९५००(0) आधाशीशी मंत्र, पुहि., गद्य, वै., (ॐ नमो हनुवंतबीर के), ४९८५९-१ " आधासीसी कथा, पुहिं. गद्य, वै., (35 नमो पैठाणपुर पाटण), ५०५०८-१ , " आध्यात्मिक औपदेशिक हरियाली, उपा. विनयसागर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू (सेवक आगळ साहेब नाचे), ४८२८९ (२) आध्यात्मिक औपदेशिक हरियाली -टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (हिवई भव्यजीवनै), ४८२८९ आध्यात्मिक जकडी, मु. जिनराज, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., ( कबहुं न करि हुरी), ५०८९९-१० आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (क्यारे मने मलस्ये), ५०९०७-८(#) आध्यात्मिक पद, मु. चिदानंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अवधु खोल नयन अब जोवा), ४९८६१-२(+) आध्यात्मिक पद, मु. चिदानंद, पुहिं. गा. ३, पद्य, मूपू (आज सखी मेरे बालमा), ४९८६१-१(+) आध्यात्मिक पद, मु. चिदानंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जोग जुगति जाण्या), ४९८६१-४(+) For Private and Personal Use Only ५३१ Page #549 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची१.१.१२ आध्यात्मिक पद, मु. चिदानंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (ज्ञान कला घट भासी), ४९८६१-९(+) आध्यात्मिक पद, मु. चिदानंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (मंदविषय राशिदीपतो), ४९८६१-३(+) आध्यात्मिक पद, मु. चिदानंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (सोहं सोहं सोहं सोह), ५१४२५-४ आध्यात्मिक पद, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, दि., (चेतन तूं तिहुं काल), ४९४८२-२(#) आध्यात्मिक पद, जै.क. बनारसीदास, पुहि., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, दि., (तुं आतमगुण जाण रे), ५११०८-८(#) आध्यात्मिक पद, उपा. मानविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अलख अगोचर अकलरूप), ५०६०५-१ आध्यात्मिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., गा. ६, पद्य, मूपू., (जब लगे आवे नही मन), ४९९३४-२(+#) आध्यात्मिक पद, मु.रूपविजय, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अविनाशीनि सेजडीयें), ४८२४६-३ आध्यात्मिक पद, मु. विनय, पुहि., गा. ७, पद्य, मूपू., (किसके बेचेले किसके), ५०३६६-१, ५१४४१-२(#) आध्यात्मिक पद, सूरदास, पुहि., पद. १, पद्य, वै., (अलीरी मननी लपट उटीय), ४९१२७-४ आध्यात्मिक पद, सूरदास, पुहि., गा.४, पद्य, वै., (पिया बिन लागत बुंद), ५१२०८-७(#) आध्यात्मिक पद, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (अजलू समै मजलू जरूर), ५१२५९-४(+) आध्यात्मिक पद, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (जालम जोगीडा से लागी), ४९१९३-२, ५०६७२-२, ५०८९१-४ आध्यात्मिक सज्झाय, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सदगुरु निज पर उपगारी), ५०८७२-१(+) आध्यात्मिक सज्झाय, मु. धर्मसी, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (सिज्या भली रे संतोष), ५१६४२-३(#) आध्यात्मिक सज्झाय, मु. महिमाविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सासरडे इम जइ जइरे), ५०६८६-१(#) आध्यात्मिक सज्झाय, मु. सुमति, पुहिं., गा.८, पद्य, मूपू., (ऐसा विलोवना विलोव), ४९५५९-६ आध्यात्मिक सज्झाय-ज्ञानगर्भित, मु. माणेक, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (ज्ञानरस पीजो रे सजना), ४९६०८-३ आध्यात्मिकसासरीया सज्झाय, आ. खिमाविजयसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सासरडे ईम जयइरे), ४८१८८ आध्यात्मिक स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (सवारे उठी सामायक), ४९५९३-२(2) आध्यात्मिक हरियाली, वा. गुणविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (एक अचंभो जगमां मे), ५१८९०-१(#) आध्यात्मिक हरियाली, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., गा. ६, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (वरसे कांबल भींजे), ४८३२०(+), ४९१००-१(+), ५१४३८-२(+#), ५१७९९, ५०५५३-२(#) (२) आध्यात्मिक हरियाली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (कांबली कहतां इंद्री), ५१७९९ (२) औपदेशिक हरियाली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (वरसई कांबलि कहताइ), ४८३२०(+), ४९१००-१(+) (२) हरीयाली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (कांबली क० इंद्री), ५१४३८-२(+#) आध्यात्मिक होरीपद, आ. जिनलाभसूरि, पुहिं., गा. ८, पद्य, भूपू., (होरी के खिलइया प्रभु), ५१२७४-१४(#) आबुतीर्थ स्तवन, मु. धीरविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सागवाडानी पाजे चढता), ५१४५०-२(-2) आयंबिलतप सज्झाय, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. ११, वि. १७उ, पद्य, मूपू., (समरी श्रुतदेवी सारदा), ४९३७५-१(+) आयुष्य विचार*, मा.गु., गद्य, मूपू., (१२० हाथीनो आयु १२०), ४९८०२-२, ५११९८-१ आयुष्य सज्झाय, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (आऊ तूटीनै सांधो लागै), ५०७२२-२ आराधक-विराधक विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (न जाणेन आदरें न), ४८५८२-२(+#) आराधना, मु. हंस, मा.गु., गा. ९६, पद्य, मूपू., (पहिलउ नमस्कार अरिहंत), ४९१४२ आर्द्रकुमार चोढालियो, उपा. रत्नविमल, मा.गु., ढा. ५, गा. ९१, पद्य, मूपू., (चरमजिणेसर नित नमी), ४९९७४(+), ५१२९१(+#) आर्द्रकुमार चौपाई, मु. मानसागर, मा.गु., ढा. ३, गा. २६, वि. १७३१, पद्य, मूपू., (संतिकरण संतीसरु), ५०७२४#) आर्द्रकुमार सज्झाय, मा.गु., गा. २२, पद्य, श्वे., (मंगलनी परमालता विचर), ५२००५(२) आलस काठिया सज्झाय, मु. मेघराज ऋषि, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (पुण्यतणे बल नरभव पाम), ५०१७२(2) आलोयणा विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (ज्ञाननी आशातना जघन्य), ५१३८५-२(+), ४८९५१ आलोयणा विधि, मा.गु., गद्य, श्वे., (अतीत काल अठार पाप), ५०२३५-१(#) आलोयणा विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमो अरिहताण ३), ४९७७९ For Private and Personal Use Only Page #550 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ आलोयणा सज्झाय, मु. जिनसंभव, मा.गु, गा. १०, पद्य, भूपू (श्रीजिनवर भव्यजीवसुं), ४८५०४-३(००) आषाढाभूतिमुनि चरित्र, वा. कनकसोम, मा.गु., गा. ६७, वि. १६३८, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवदन निवासिनी), ४८६८४, ५०४४३-२, ४९१२७-२(s) ५११०४-२(३), ४८४००-५(१) इलापुत्र सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. २७, पद्य, मूपू., (नाम इलापुत्र जाणीये), ५०२१०-२(+) उत्तम पुरुष सज्झाय, मा.गु, गा. २२, पद्य, भूपू (दान दवा कर जीवडा रे), ४९६७६ उदयपुर नगर दोहा, दीनानाथ, पुहिं. गा. २. पद्य, वै. मेरे मन में एक उठी), ५१८५७-१८ י: आषाढाभूतिमुनि चौपाई, मु. मानसागर, मा.गु., ढा. ७, वि. १७३७, पद्य, मूपू., (सासणनायक सुरवरूं वंद), ५०२७३(#$) आषाढाभूतिमुनि पंचढालियो, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ७, वि. १८३६, पद्य, श्वे., (दरसण परिसोह बावीसमो), ४९०७८-१ आषाढाभूतिमुनि रास, मु. धर्मरुचि, मा.गु., गा. ५७, पद्य, मूपू., (श्रीसंति जिणेसर भुवण), ५०१७६(#) , आषाढाभूतिमुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु. दा. ५, गा. ३७, वि. १८वी, पद्य, मूपू (श्रीश्रुतदेवी हिइ), ४९९८१, ५११०७ आषाढाभूतिमुनि सज्झाय, मु. रूपवल्लभ, मा.गु., गा. २५, पद्य, क्षे., (एकाकी आषाढमुनि सुमति), ५११७८-१ आसीकपच्चीसी, य. जिनचंद्र, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (आसिक मोह्यो तुझ रूप), ५१६२५(#) " इंद्रकृत महावीरजिन जन्मोत्सव वर्णन, मा.गु., गद्य, श्वे., (ए भगवंतनई जन्म हुइ), ४९९३७ इक्षुकारराजा कमलावती राणी सज्झाय, मु. चौथमल ऋषि, मा.गु., गा. ९, वि. १९६०, पद्य, वे., (एद्धनपुर सज्यो सजम), ५१५९९(#) इक्षुकारराजा ढाल, मा.गु., ढा. ७, पद्य, श्वे., (देव हुंता पूर्व भवे), ५०७६९ (#$) , इरियावही मिच्छामिदुक्कडं संख्या स्तवन, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., डा. ४, गा. १५, पद्य, मूपू. (पद पंकज रे प्रणमी), ५१८३७-१(३) इरियावही सज्झाय, मु. मेघचंद्र- शिष्य, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (नारी मे दीठी इक आवती), ५०७०२-२(#) इलाचीकुमार चौडालिया, मु. प्रेम ऋषि, रा. डा. ४, पद्य, क्षे. (प्रथम गणधर गुणनिलो), ५११८१-२ " इलाचीकुमार सज्झाय, मु. कीर्तिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (नामे एलापुत्र जाणीए), ५००६०-२, ५०६३८-२ इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु, गा. ९, पद्य, मूपु. ( नाम इलापुत्र जाणीए), ४९२४१-४(+), ५१०५७-१, ५१०८९-१, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उदाइराजा सप्त ढालीयो, मा.गु., ढा. ७, गा. ६५, पद्य, मूपू., ( तिण कालेने तिण समे), ५१५२१ उपदेशछत्तीसी, ऋ. रतनचंद, मा.गु., गा. ३६, वि. १८६६, पद्य, स्था., (सादकरी सदगुरु समझावै), ४९२२५ उपदेश छत्रीसी, ऋ. रतनचंद, मा.गु., गा. ३६, वि. १८६६, पद्य, स्था. (सवाद करी सतगुरु समझाव), ५१०९४(१) उपदेशछत्रीसी, पं. वीरविजय, मा.गु, गा. ३७, पद्य, मूपू (सांभलज्यो सज्जन नर), ४८८६२ " , उपदेश रहस्य, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ४०, पद्य, श्वे., (सिद्धचक्रपद वंदोरे), ४९९१२ उपधानतप स्तवन-वृद्ध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. १८, पद्य, मूपू., (श्रीमहावीर धरम), ४८१८० - ३ (+), ५०९५१-३ (+#), ५१२५५-३ उपवास फल, मा.गु., गद्य थे. (एक उपवासे १ उपवास), ४८३६४, ४८९९४ " उपशमश्रेणि रचना यंत्र, मा.गु., यं., श्वे., (संज्वलन लोभः), ४९१७७-३ उपाधिमति गुरुलोपी सज्झाय, मु. कल्याणविजय - शिष्य, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (प्रणमिय वीर जिणेसर), ४९८३४(+) उपाध्याय पद सज्झाच, मु. ज्ञानविमल, मा.गु. गा. ५, पद्य, मृपू, (चोथे पद उवज्झायनुं ग) ५१३५६-४ For Private and Personal Use Only ऋतुवंती स्त्री विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., ( आ जगतमां समस्त), ५०३४१-२ एकादशी तिथि चैत्यवंदन, मु. खिमाविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (शासननायक वीरजी प्रभु), ४८५४८-१ एकादशी तिथि चैत्यवंदन, ग. शुभविजय, मा.गु., गा. १२, वि. १९वी पद्य, मूपू. (नेमि जिणेसर गुणनीलो), ५१४९७ (एकादसी तप किजीये), ५०७९२- ४(का (वीनय करी नेमिसर बंदी), ४८७६८-५ " एकादशीतिथि स्तवन, मु, मानविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, भूपू एकादशीतिथि स्तुति, मु. भीमविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू एकादशीपर्व सज्झाय, मु. विशालसोमसूरि शिष्य, मा.गु. गा. १५, वि. १७वी, पद्य, भूपू. (गोयम पूछे वीरने सुणो), ४८७१२(+), ४८२७५, ५०७६२, ५०८६५ ५१२५१ " ५३३ Page #551 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची१.१.१२ एकादशीव्रत गीत, मा.गु., गा. ११, पद्य, वै., (मेरुशिखरि सोनानु), ४८८५५-२ ओसियामाता छंद, मु. हेम, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (देवी सेवी कोड कल्याण), ४९६२९-३(#) औपदेशिक ६३ बोल, मा.गु., गद्य, श्वे., (शिष्ये पूछ्यो गुरुने), ५००५९ औपदेशिक कथा-सिंहवानर, मा.गु., गा. ११, पद्य, जै.?, (एक समै सुणि सिंघकुं), ४८७९६-२ औपदेशिक कवित, क. गद, पुहि., गा. १, पद्य, श्वे., (गउ विकल मत ग्रही), ५०३३४-२(-) औपदेशिक कवित, सेख, पुहिं., गा. ३, पद्य, वै., (इंद्र के अगराज आगे), ५१३४५-२ औपदेशिक कवित-धडाबद्ध, मा.गु., का. १, पद्य, वै., (वंशत्रिण वाजित्र), ५११९७-१(+#) (२) औपदेशिक कवित-धडाबद्ध-टबार्थ, मा.गु., गद्य, वै., (वंशत्रिण क० ब्रह्मा), ५११९७-१(+#) औपदेशिक कवित्त, क. गद, पुहिं., पद्य, श्वे., (अजेचंद चंदणो अजे मही), ४८२१८-२($) औपदेशिक कवित्त, क. रूप, पुहि., गा. १, पद्य, पू., (वीण संघ अहिवार हंस), ४९८३५-५ औपदेशिक कवित्त, व्यासदास, पुहि., गा. १, पद्य, वै., (अजब बनावै वात मनमे), ४९८८१-२(#) औपदेशिक कवित्त, मा.गु., गा. २, पद्य, श्वे., (समर एक अरिहंत रयण), ५१९७७-२ औपदेशिक कवित्त संग्रह*, पुहि.,मा.गु., पद्य, मूपू., (कीमत करन बाचजो सब), ४९८९५-३(#) औपदेशिक गँहुली, मु. विशुद्धविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (संसारता संसारमा रे), ५०६२७-२(+) औपदेशिक गहुँली, मु. ऋषभविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मुनिवर शिव हेली रागी), ५११९६-२ औपदेशिक गहुंली, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (मुनिवर मारगमां वसिया), ५१८६४-१(#) औपदेशिक गाथा संग्रह, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (रवि उगै परकज जोति), ५०६८४-२ औपदेशिक गीत, मु. आनंदवर्द्धन, पुहि., गा. २३, पद्य, मूपू., (देह देह नणद हठीली), ४९८२०-२ औपदेशिक गीत, जै.क. बनारसीदास, पुहि., गा. ३१, वि. १७वी, पद्य, दि., (मेरा मन का प्यारा), ५१९९४ औपदेशिक गीत, मु. लालचंद, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (दया बिन करनी दुख), ४८८७९-२ औपदेशिक गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (कहेज्यो पंडित ए), ५०९८४-१ औपदेशिक गीत, मु. सहजसुंदर, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (एक पंथ विसमा दूरि), ५००३०-३(१) औपदेशिक गीत, मु. सेवक, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (आपके अवगुण ढांकि करि), ५००३०-२(#) औपदेशिक गीत, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (जीव मोडामोडि न कीजीइ), ५००३०-४(#) औपदेशिक गीत, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (जीव वधतुं मुखि मुगति), ५१४०९-३(+-#) औपदेशिक गीत, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (पाणी माहि पाषाण वसि), ५००३०-१(१) औपदेशिक गीत-काकसु, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. १२, वि. १५५०, पद्य, मूपू., (पाणी विहरी पाधरा जात), ५१६२१-२(+-2) औपदेशिक गीत-जीवदया, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (दुलहे नरभव भमता दुलभ), ५०८८६-१ औपदेशिक गीत-फुहड नारी, मु. कवियण, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (गण गण हांडी सांभण), ५०००४-२(+) औपदेशिक चौपाई, श्राव. परबत भावसार, मा.गु., गा. ३८, पद्य, श्वे., (पहिलू पणमू अंबिकिमाइ), ५०१७१(#) औपदेशिक छंद, पंडित. लक्ष्मीकल्लोल, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (भगवति भारति चरण), ५१७३१(+), ४८१६७, ५०६३१-१, ५१९९६-१, ५१२४१-१(#) औपदेशिक जकडी, मु. रामकिसन, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (अरिहंत चरणे चित्त), ४८६५१-२(+), ४९३६२ औपदेशिक झूलणा, मु. हेम यति, पुहि., गा. १३, पद्य, श्वे., (ईस देह दीदार की), ४८८३०-२(+) औपदेशिक दोहा, मु. उदय, पुहिं., दोहा. ३, पद्य, मूपू., (धन विन तन कुंद हीत), ४९४९६-२ औपदेशिक दोहा, पुहिं., गा. १, पद्य, श्वे., (समय समझे के कीजीऐ), ४८२४७-२ औपदेशिक दोहा, पुहिं., दोहा. १, पद्य, वै., (सिद्ध कसिवै कुंकाल), ४८६२५-२(+) औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहि., दोहा. ४६, पद्य, वै., (चोपड खेले चतुर नर), ४८४११-२, ४९८२१-४, ५१८११-२, ४९८९५-५(#), ४९९७२-१(#), ५१२४१-३(#$), ५१४३३-२(#), ५०७८८-२(-) औपदेशिक पद, श्राव. अगर, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (तेरी उमर विहांनी जाय), ४९५६७-१ For Private and Personal Use Only Page #552 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ औपदेशिक पद, मु. अमृत, रा. गा. ५, पद्य, थे. (मनरे तु मन रे तु सर), ४८४७५-१) " औपदेशिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं. पद ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू (रे धरिया रे बाउरे), ४८४४६ - २(४) औपदेशिक पद, आनंदराम, पुहिं., गा. ४, पद्य, वै., (छीटीसी ग्यान जरासी), ५०६७२-४ औपदेशिक पद, मु. उदयरत्न, पुहिं. गा. ६, पद्य, म्पू.. (चतुर नर मन कुं समझा), ५०९९१.६ औपदेशिक पद, मु. उदय, मा.गु., गा. ५, पद्य, से., (बातडलीइ वेध लगाइयो), ५०४१३-२ औपदेशिक पद, कबीर, पुहिं., पद. ७, पद्य, वै., ( एताइ क्या हाट भराणा), ४८८५५-३ औपदेशिक पद, कबीर, पुहिं. गा. ७, पद्य, वै., (माटी की गणगोर बनाइ), ५०७९६-२ औपदेशिक पद, मु. केसवदास, मा.गु., गा. २, पद्य, वे. (कुटन तेरो बाप जाय), ५१०९०-२(१) औपदेशिक पद, मु. क्षमाकल्याण, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (रसना सफल भई में तो), ४९९००-३ (#) औपदेशिक पद, क. गद, पुहिं., गा. १, पद्य, वे., ( गई मान मरजाद गई लोड), ५०३२६-३) औपदेशिक पद, मु. चंदुलाल, मा.गु., गा. ८, पद्य, वे औपदेशिक पद, मु. चिदानंद, पुहिं. गा. ५, पद्य, भूपू "" (सिमर श्रीसतगुरु के), ४९२५०१) " . (कथनी कथे सहं कोई), ४९८६१-७(+) औपदेशिक पद, मु. चिदानंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (निरपक्ष विरला कोई), ४९८६१-८ (+) औपदेशिक पद, मु. चिदानंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., ( मारग साचा कोउ न बताव), ४९८६१-५ (+) " " औपदेशिक पद, मु. चेनविजय, पुहिं. गा. ४, पद्य, मूपू. (कोण नींद सुतो मन), ५१९५५-३० औपदेशिक पद, मु. चेनविजय, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (कोन नीद सुता मन मेरा), ५०२७४-४(+), ४८२९३-२ औपदेशिक पद, मु. चौथमलजी म. रा. गा. ९. वि. १९६४, पद्य, वे. (एक ही ईंट से दीवाल), ४९१३२-३(क) औपदेशिक पद, मु. चौथमलजी म. रा. गा. ५, पद्य, क्षे., (मुगट सीस कानो कुंडल), ४९१३२-४(+) ३, पद्य, मूपू., ( कहारे अग्यानी जीव), ५१०६८-४(१) " "" औपदेशिक पद, मु. जिनराज, पुहिं, गा. औपदेशिक पद, मु. दिलहर्ष, मा.गु. गा. ९. वि. १८३२, पद्म, वे. (मनधर सारद मातजी वली), ५०७९४-१ औपदेशिक पद, मु. देवीलाल, पुहिं., गा. ४, पद्य, स्था., (चेतन फूलो रे यो मोहर), ५२०४७-४ " औपदेशिक पद, मु. देवीलाल, पुहिं. गा. ५, पद्य, स्था. (जीवडा रस्ते चाल थारे), ५२०४७-५ "" ', (रे औपदेशिक पद, मु. नवल, पुहिं, गा. ३, पद्य, म्पू, औपदेशिक पद, नामदे, मा.गु., गा. ४, पद्य, वै., औपदेशिक पद, मु. पेम, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., औपदेशिक पद, मु. भूधर, पुहिं. गा. २, पद्य, वे. औपदेशिक पद, मु. भूधर, पुहिं., गा. ३, पद्य, वे., (ज्ञानामृत प्यालो भवि), ४८२५८-२(१) मन मंखीया म पडिस), ४९४८२-११(#) (ममत मत कीज्यो राज), ५०२७४-६(+) (काया की कुंडी मन का), ५०७८८-४) (जब लग बहे बनीया का). ५०३१७-४८-०१ (कुंभ काचो रे काया), ४८९६३-२(+) औपदेशिक पद, माधोदास, पुहिं., पद. १, पद्य, वै., (दरदवंत का इलाज कीजै), ४९८२१-३ "" औपदेशिक पद, महमद, मा.गु., गा. १०, पद्य, जे. , (नर जनम कीए आथ साथ), ४८२४८-५ (प्राणीक दवा तुरत), ५०२७४-११(+) " औपदेशिक पद, क. मान, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., औपदेशिक पद, मु. रतनचंद, पुहिं. गा. ५, पद्य, भूपू औपदेशिक पद, मु. रत्नसागर, पुहिं., गा. ८, पद्य, श्वे. (असुभ करम मल झाड के), ४९१३३-३(+#) औपदेशिक पद, मु. राज, मा.गु, गा. ३, पद्य, भूपू (तुं भ्रम भुल्यो रे), ५०८९९-९ औपदेशिक पद, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, म्पू., (जाग रे जाग रे जलदि), ५१२३७-३ औपदेशिक पद, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, श्वे., ( जीय परसु कन प्रीति), ५०६१९-४(+) औपदेशिक पद, मु. रूपचंद, पुहिं, गा. ४, पद्य, भूपू (तुम गरीवन के नीवाज), ४९८५१-३, ५१०३४-२ औपदेशिक पद, मु. विनयचंद, पुहिं. गा. ३, पद्य, मूपू., (इण तनकी अवध जरासी रे ), ५०२७४-२ (+) " , औपदेशिक पद, मु. विनय, पुहिं, गा. ८, पद्य, थे, (डरो रे नर अशुभ बंधन), ४८२४८-१ (मे हुं पाप अधम की), ४८२४८-३ औपदेशिक पद, मु. विनय, पुहिं. गा. ५, पद्य, थे. औपदेशिक पद, मु. विनय, पुहिं., गा. ११, पद्य, श्वे. (या तन का काहा गरब कर), ४८२४८-२ וי For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३५ Page #553 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५३६ www.kobatirth.org औपदेशिक पद, शंकरदास, पुहिं., गा. ३, पद्य, वै., (नर किला तेरा सही), ४९१७८-२(#) औपदेशिक पद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., ( जागि भाई तूं जागि), ५०८४५-२ (+#) औपदेशिक पद, रा., गा. ४, पद्य, श्वे., ( आयो आयो रे नणदल जोगी), ५०९९०-२(#) औपदेशिक पद, पुहिं., पद. ४, पद्य, वै., (कहेर की नजर दल बचसे), ५१०१०-३ (+) औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ६, पद्य, वे किस दूतीने भोलायां), ५११९०८-२००) औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (कुड कपट छल छिद्र करी), ५०२७४-९(+) औपदेशिक पद, पुर्हि, गा. ४, पद्य, श्वे. (चेतन एक बात सुणी), ५१२६४-३ "3 " औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ८, पद्य, मूपू., (चेतन जब तुं ग्यान), ४९९७६-२ औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जाग रे जंजाली जीवडा), ४९८५१-४ औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (दिन नीके बीत जाते हे), ५०२७४-१४(+) औपदेशिक पद, पुहिं., गा. २. पद्य, वै., (नमे तुरी बहु ते गन), ४८२७८-२ औपदेशिक पद, पुहिं., गा. २, पद्य, मूपू., (नाथ नाम का मे वंदा), ५०२७४-१६ (+) औपदेशिक पद पुहिं. गा. ४, पद्य, म्पू, (नार सव असुच तणो आगार), ५०२७४-१३(+) 3 " कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१२ औपदेशिक पद पु,ि गा. २. पथ, वे. " "" (नो मास ते गरभावास), ५०३१७५चा औपदेशिक पद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., ( प्रभु वचन मेरो मन हर), ४८२५८ - ३ (+) " ', औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., औपदेशिक पद, मा.गु गा. ३, पद्य, मूपू औपदेशिक पद, पुहिं., गा. २, पद्य, मूपू., औपदेशिक पद, मा.गु., पद. १, पद्य, श्वे. औपदेशिक पद पुहिं. गा. २, पद्य, भूपू औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (मन पिसते इह ओसर वीते), ५०२७४-१५ (+) (मानव भव लाघो राज), ५०२७४-७(क) (मेरा साइ नाथ हो तो), ५०२७४-१७(+) (रूपवंत गुणहीण सो तो), ४८४४३-३ (लगन मेरी लागी लागी), ४८२५८-४(+ (वे दिन तुं भुलो राज), ५०२७४-८(+) पदेशिक पद पु,ि गा. ५, पद्य, मूपू (होरी खेलो रे भविक), ४९३४६-२ (+), ४८१८७-२, ५०९९१-१, ४८२५९-४(क), " ५१२७४-४(१ औपदेशिक पद - दुर्मतिविषये, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (हो दुरमतडी वेरण थइ), ५१४२५-२ औपदेशिक पद- निद्रात्याग, मु. कनकनिधान, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू, (निंदरडी वेरण हुई), ४८३९६-४(+) औपदेशिक पद निद्रात्याग, भरथरी, पुडिं, गा. ३, पद्य, वै., (जिहा पर जावो है वेरण), ५०१३९-६(१) " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir औपदेशिक पद-पुण्योपरि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (पारकी होड मत कर रे), ४९८३५-४, ५१९११-२(#) पदेशिक पद-बुढ़ापा, मु. भूधर, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., ( आयो रे बुढापो वेरी), ५११०८-९(#) औपदेशिक पद - योवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (योवनीयानी फोजा मोज), ५१०८७-२ (+#) औपदेशिक पद -सत्य असत्य, पुहिं., गा. २, पद्य, श्वे., (झूठ पाप मत बोलो भाई), ५०७९४-२ औपदेशिक पद - सुमतिविषये, मु. महानंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (हो सुमतीजी ए वडो मुझ), ५१४२५-३ औपदेशिक प्रभाती, मु. भानुचंद, पुहिं., पद. २, पद्य, मूपू., (भोर भयो भोर भयो जाग), ४८४४६-५ (#) "" औपदेशिक प्रहेलिका मा.गु. गा. ८, पद्य, मूपू (जिणे दीठे मन उसे), ५०७७८-२ (-१) औपदेशिक बारमासा, मा.गु. गा. १३, पद्य, मूपू (चेत कहे चेतज्यो रे), ५१८७८) औपदेशिक बारहमासा, मु. दीन, पुहिं., गा. १३, पद्य, श्वे., (काती मास कहुं करजोरी), ४८२५२-३ (+) औपदेशिक बावनी, मु. हेमराज, पुहिं. गा. ५१, पद्य, वे (--), ४८२७८-१(३) औपदेशिक रेखता, गंगलाल, पुहि., गा. ७, पद्य, थे. (फकीर वडा पातस्याह), ४८८३०-१(+) औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहिं. गा. ४, वि. १७वी, पद्य, भूपू (तुम भजो निरंजन नाम), ५९८४७५ " . औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहिं, गा. ४, पद्य, मृपू., (लाभ नहि लियो जिणंद), ५०३१७-३(-) औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, भूपू (सुगुरु की सिख हइये). ५१८४७-४ For Private and Personal Use Only Page #554 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३७ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ औपदेशिक लावणी, मु. नेमजी, पुहि., गा.६, पद्य, श्वे., (इस देही का गर्व न कर), ४९७०८-२ औपदेशिक लावणी-धर्म, मु. जिनदास, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (कीसी की भुंडी नही कह), ५१७१५-२(+) औपदेशिक व्याख्यान, मा.गु., गद्य, श्वे., (णमो अरिहंताणं० णमो), ४९७८२, ५१४९८-२(#) औपदेशिक सज्झाय, मु. अमोलकऋषि, मागु., गा. २१, पद्य, स्था., (ग्यान गोदड़ी कहानकु), ४९१९१ औपदेशिक सज्झाय, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (हुं तो प्रणमुसदगुर), ४९६८३, ५०४०३ औपदेशिक सज्झाय, उपा. उदयविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पांडुर पान थके परिपा), ५१३८०-१ औपदेशिक सज्झाय, पंन्या. ऋषभसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (करो रे कसीदा इण विधि), ४९७१६ औपदेशिक सज्झाय, मु. कमलकीर्ति, पुहिं., गा. ९, पद्य, मूपू., (करुंजी कसीदो ग्यान), ५०३१६-२(#) औपदेशिक सज्झाय, मु. खोडीदास, मा.गु., गा. २३, वि. १८२०, पद्य, श्वे., (परम देवनो देव तुं), ४९७८७ औपदेशिक सज्झाय, मु. गोरधन ऋषि, मा.गु., गा. १२, पद्य, श्वे., (मन रेतू जीवनै समजाय), ५०१४०-२ औपदेशिक सज्झाय, मु. जयसोम, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (परभणी तात तुम करि हो), ५१०३५-२(#) औपदेशिक सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मूपू., (रतन चिंतामणि नर भव), ४९१८३-१ औपदेशिक सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (तीरथ सोई करें रे), ४९१६४(+) औपदेशिक सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (ते सुखिया भाई ते), ४९८८२-२ औपदेशिक सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (नरभव नयर सोहामणो), ४८३९६-२(+#), ५०७१८-२(#) औपदेशिक सज्झाय, मु. दयासागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सुणी मुज प्राणी सीख), ४९४०५-२ औपदेशिक सज्झाय, मु. दीप, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (प्रानीडारे कर्म), ५१७४०-१(+) । औपदेशिक सज्झाय, जै.क. द्यानतरायजी, पुहि., गा. ५, पद्य, दि., (चेत चेत क्या सुयेगा), ५२००४-२(2) औपदेशिक सज्झाय, मु. धनीदास, पुहिं., गा.८, पद्य, श्वे., (तु तोड करम जंजीर), ५०६०२-३(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. धनीदास, पुहि., गा. ७, पद्य, श्वे., (दगा कोइ कीन से नहीं), ४८८७९-१ औपदेशिक सज्झाय, पा. धर्मसिंह, पुहि., गा. ११, पद्य, मूपू., (करयो मती अहंकार तन), ४९८४०-३(#), ५०२८५-५ (#$) औपदेशिक सज्झाय, पं. धीरविमल गणि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सुमति सदा सुकुलिणी), ४९४५३, ५०२८५-३(#), ५०५३९-२(#) औपदेशिक सज्झाय, मु. नितलाभ, रा., गा. १३, पद्य, मूपू., (संसारि लोकां आतम), ५१८९५-१ औपदेशिक सज्झाय, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. २३, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (अभिमानी जीवडा इम किम), ४९४९६-१ औपदेशिक सज्झाय, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (--), ५०२६९-१(-६) औपदेशिक सज्झाय, मु. प्रेमविजय, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (जीभडलिसुण बापडलरि), ५१३१४-२(-2) औपदेशिक सज्झाय, ग. प्रेमविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (जोय जतन करी जीवडा,), ५१७९०-१ औपदेशिक सज्झाय, मु. बुद्धि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (जिणचउवीसइ पइ नमी), ५००२४-२ औपदेशिक सज्झाय, मु. भावविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सासरडे इम जइरे बाइ), ४९३९७(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. भुवनकीर्ति, पुहिं., गा. ८, पद्य, मूपू., (चतुर विहारी आतम माहर), ४९८६५-२, ५०८७५-५, ५०२८५-४(#) औपदेशिक सज्झाय, जै.क. भूधरदास, पुहिं., गा. १२, पद्य, दि., (अहो जगत गुर एक सुणिय), ५२००४-५(2) औपदेशिक सज्झाय, मु. मनोहर, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (लाख चोरासीजी नमे रे), ५२०१९-२(#) औपदेशिक सज्झाय, महमद, मा.गु., गा. ११, पद्य, जै.?, (भूलो ज्ञान भमरा काई), ५१७४०-२(+), ५००१२-१,५१३८१-३(#) औपदेशिक सज्झाय, महम्मद, मा.गु., गा. १८, पद्य, (भूलो मन भमरा काइ), ४८४००-३(-2) औपदेशिक सज्झाय, क. मानसागर, मा.गु., ढा. २, गा. ११, पद्य, मूपू., (मानव भव पामीयो पाम्य), ४९७८९-६(+), ५०३१८ औपदेशिक सज्झाय, मु. माल, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (जगत सुपनो जाण्ण रे), ५०३६६-३ औपदेशिक सज्झाय, मु. माल, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (रे मन धर्मसु चित लाई), ५०६१९-३(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. माल, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (वाडी फूली अति भली), ४८८०७ औपदेशिक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ४१, पद्य, मूपू., (चड्या पड्यानो अंतर), ५१६१८, ५१०१६(#) For Private and Personal Use Only Page #555 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५३८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१२ औपदेशिक सज्झाय, मु. रंग, मा.गु., गा. ९, पद्य, भूपू (निद्रा तोयने बेचस्या), ४८२९१-१ औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यकीर्त्ति, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पंथिया विदेशी वाल्हा), ५०९१४-२ औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (आदित्य जोइने जीवडा), ४९६५०-२ औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ९, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (सुधो धर्म मकिस विनय), ५१००२(+#), ४९२८०-२, ५१६२४-१(१) औपदेशिक सज्झाय, मु. विजयभद्र, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (मंगल करण नमीजे चरण), ५०३७४-१ औपदेशिक सज्झाय, मु. विनय, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (क्या करूं मंदिर क्या), ५१५७८-४(#) औपदेशिक सज्झाय, मु. विनयचंद, मा.गु., गा. १६, पद्य, वे. (पाम्बो नर अवतार घर), ४८२४८-६ औपदेशिक सज्झाय, मु. विनयचंद, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (या मीठी वीर की वानी), ५०२७४-१(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. विशुद्धविमल, मा.गु. गा. ८, पद्य, मूपू., (व्यापार कीजे वाणीया), ५०७३०-१(४) औपदेशिक सज्झाय, मु. शांतिविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., ( शिवानंद हितकारी तुमे), ४८७१० औपदेशिक सज्झाय, मु. शुभवर्द्धन, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (मइ सेवी रे देवी सरसत), ४९४४२ (+) औपदेशिक सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, श्वे., (साचे मन जिन धर्म), ४८३३८ " , " औपदेशिक सज्झाय, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (करीह पर ऊपगार मुंकी), ४८१६६ (+) औपदेशिक सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (गुण छे पुरा रे), ५०७९२-२ (#) औपदेशिक सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (धोबीडा तुं धोजे मननु), ४८४९९ औपदेशिक सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., ( बूढा ते वली कहीये), ४९९२३ -४ ($) औपदेशिक सज्झाय, मु. सौभाग्यलक्ष्मी, मा.गु, गा. ८. पद्य, मूपू (त्यजि परपरिणित रमणता), ४९७६५-१ औपदेशिक सज्झाय, मु. हंस, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सुगण सनेही रे सीखामण), ४९९५४ औपदेशिक सज्झाय, मु. हंस, मा.गु., गा. १३, पद्य, म्पू., (सुणि जीव पहलुं उपसम), ५००४१-१(+) औपदेशिक सज्झाय, क. हजारी दास, पुहिं., गा. ८, पद्य, श्वे., (प्रथम प्रणी जिनदेवनै), ५०८००-१() औपदेशिक सज्झाय, मु. हरिसागर, पुहिं, गा. ९, पद्य, म्पू. (कहो करणी कैसे करूं), ५१६९३-२(4) औपदेशिक सज्झाय, मु. हीराचंद, पुहिं. गा. ६, पद्य, भूपू , (देखी संपत पुत गर्भ), ५१६०१-२ " "" औपदेशिक सज्झाय, मु. हुकम, पं., दोहा १०, पद्य, श्वे. (--), ४९८०५-३ () औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ४७, पद्य, श्वे., (इम सद्गुरु जीवने), ४९०२२-१ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (काया बोलै जीवस्यूं), ५१११५-२ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (गर्भावासमां चिंतवे र), ४९१८३-२ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु, पद्य, थे. (चेतो रे भव प्राणीया), ४९०२२-२ (३) औपदेशिक सज्झाय, रा., गा. ५, पद्य, श्वे., (चेला पांचा बलदो गाडल), ५०६५२-२(#) औपदेशिक सज्झाय, रा. गा. ६, पद्य, थे, च्यार गत न चोरासी) ५१०८६-२ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु, गा. ४७, पद्य, औपदेशिक सज्झाय, रा., गा. २५, पद्य, श्वे., (दलाली लालन की म्हारे ), ५०३१६-३(#) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु, गा. ६, पद्य, वे., (देह बुढाणी मइ जाणी), ५०२१३-२ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. १४, पद्य, भूपू (मानवभव खेत्र भलो जिन), ५०८१३-३ " " י चे., (जीव सरवे आतमा धर्म), ५०३५१ " औपदेशिक सज्झाय, रा., गा. ११, पद्य, श्वे., ( मिथ्यातने दीयो मोसरा), ४८५८३-२ (रे जीव भ्रमवश तु), ४८९७३-१ "" औपदेशिक सज्झाय, मा.गु, गा. १८, पद्य, भूपू औपदेशिक सज्झाय, मा.गु.. गा. १३, पद्य, श्वे. (विषिया लालच रस तणो), ४९९७२-४(क) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु, पद्य, मूपू (श्रीआदिशर प्रणमु पाय), ४९४९२-१() औपदेशिक सज्झाय, रा. गा. १४, पद्य, श्वे. (सतगुर कने व्रत जलीध), ४८५८३-१ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, मृपू. " (सम्यक्दृष्टि जिवडा), ४८९४३-२ (०३) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only Page #556 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५३९ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. १२, पद्य, श्वे., (सरसति सामणि करूं), ५०५२२ औपदेशिक सज्झाय, रा., गा. २१, पद्य, श्वे., (सासण नायक श्रीव्रधमा), ५१६०६(-) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. १७, पद्य, श्वे., (सुण काया जीवडो), ४९९५०-४(+-) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ४९४९२-३(#) औपदेशिक सज्झाय-आत्मोपरि, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (सुमति सुंदरी वीनवि), ४९७१०,५१३५५-१ औपदेशिक सज्झाय-कायदृष्टांतगर्भित, मु. उदय ऋषि, पुहिं., गा. ७, पद्य, श्वे., (कायारूप रचो मे वासी), ४८८५५-१ औपदेशिक सज्झाय-कायदृष्टांत गर्भित, मु. रतनचंद, पुहिं., गा.५, पद्य, श्वे., (तेरी फुल सी देह पलक), ४८८७९-३ औपदेशिक सज्झाय-काया, मु. उदयधर्म, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (काया जीवाडी कारमी), ४८६४८-१(-) औपदेशिक सज्झाय-कायाजीवशिखामण, मु. जयसोम, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (कामनी कहे निज कंतने), ५०५४९(#) औपदेशिक सज्झाय-कायोपरि, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ९, पद्य, पू., (तो सुख जो आवै संतोष), ४८३८०-२(+), ४९४६०-२ औपदेशिक सज्झाय-कायोपरि, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (काया पुर पाटण मोकलौ), ५०४६१-३(#), ४८८३१-२(-) औपदेशिक सज्झाय-क्रोध निवारण, मु. गुणसुंदर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (क्रोध महारिपुजाणो), ५१६४२-१(#) औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (कडवां फल छे क्रोधना), ४९६०४,५०३०२-१, ५०३६३-१,५०४३२-१,५०७३७-१,५०३८०-३(#) औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. भावसागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (क्रोध न करिये भोला), ५१७६१-१ औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. ७२, पद्य, मूपू., (उत्पति जोज्यो आपणी), ४९२४९(+), ४९०९५, ५००३२, ५०३४४-१, ५०३४५, ५१७६९, ५१६९६-१(#), ४८३२२-१(६) । औपदेशिक सज्झाय-घृत विषये, मु. लालविजय, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (भवियण भाव घणो धरी), ५०००४-१(+) औपदेशिक सज्झाय-जिह्वा, मु. अमरविजय, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (जीभडली सुणि बापडली), ५१२४२ औपदेशिक सज्झाय-जीवकाया, मु. कुशल, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (सदगुरु भाखे देसना), ५१४८३-१(+#) औपदेशिक सज्झाय-जीवकाया, मु. जयसोम, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (कामिनी कहइं निज), ५१०३५-१(#) औपदेशिक सज्झाय-जीवकाया, पुहि., गा. ९, पद्य, मूपू., (तुं मेरा पिय साजणा), ५००११-१, ५०३६६-२ औपदेशिक सज्झाय-जीवशीखामण, मु. रतनचंद ऋषि, पुहि., ढा. २, गा. २९, वि. १९०१, पद्य, श्वे., (मनुष्य देह दुलबलही), ५११३३-१(+) औपदेशिक सज्झाय-तमाकुत्याग, मु. आणंद, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (प्रीतम सेती विनवे), ४८५२९(+), ५०३६८-१(#) औपदेशिक सज्झाय-दानफल, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. १४, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (एक घर घोडा हाथीया जी), ५१२८५(+), ४९२९८-३, ४९६५०-३() औपदेशिक सज्झाय धर्मखेती, रा., गा. ७, पद्य, श्वे., (धर्मरी खेती कीजेजी), ५१३९८-२(#) औपदेशिक सज्झाय-मवघाटी, मु. चोथमल ऋषि, रा., गा. १५, पद्य, श्वे., (नवघाटी मे भटकता रे), ५१२६६-२(+) औपदेशिक सज्झाय-मारी, पुहि., गा. १७, पद्य, श्वे., (मुरख के मन भावे नही), ५१५२२(-) औपदेशिक सज्झाय-नारीत्याग, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (बेटी से विलुधो जुवो), ४९९१३-१८) औपदेशिक सज्झाय-निंदात्यागविषये, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (निंदा म करजो कोईनी), ५०१३०-३(+#), ५०३६३-५ औपदेशिक सज्झाय-परनारीपरिहार, ग. कुमुदचंद्र, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सुण सुण कंता रे सिख), ५१०५९, ५१४४०-२(#) औपदेशिक सज्झाय-परनारीपरिहार, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सीख सुणो रे पीया), ४८५१६-२(+#) औपदेशिक सज्झाय-परमार्थ, मु. शिवचंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (अचरिज एक अपूरव दिठो), ५१९३१(#) (२) औपदेशिक सज्झाय-परमार्थ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अचरिज एह भव्य जीवनी), ५१९३१(2) औपदेशिक सज्झाय-परस्त्री त्याग, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (नर चतुर सुजाण परनारी), ५०७९२-३(#) औपदेशिक सज्झाय-प्रमाद परिहार, मु. मेघराज ऋषि, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (विनय करीजे रे भवियण), ५०००२-१ औपदेशिक सज्झाय-बुढापा, मु. मान कवि, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (सुगण बुढापो आवीयो), ५१०८७-१(+#) For Private and Personal Use Only Page #557 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१२ औपदेशिक सज्झाय-बुढ़ापा, मु. हेमविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (गढपण किणे तुज तेडीओ), ५१३४२-२ औपदेशिक सज्झाय-मांकण, मु. माणेक, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (मांकणनो चटको दोहिलो), ४८२९६-३ औपदेशिक सज्झाय-मानपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (रे जीव मान न कीजीए), ५०३०२-२, ५०३६३-२, ५०४३२-२,५०७३७-२,५१४८५-३ औपदेशिक सज्झाय-मानपरिहार, पंडित. भावसागर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (अभिमान न करस्यो कोई), ५१७६१-२ औपदेशिक सज्झाय-मायापरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (समकितनुं मुल जाणीये), ५०३०२-३, ५०३६३-३, ५०४३२-३, ५०७३७-३ औपदेशिक सज्झाय-मायापरिहार, मु. भावसागर, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (माया मूल संसारनो), ५१७६१-३ औपदेशिक सज्झाय-लीखहत्यानिषेध, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. १२, वि. १६७५, पद्य, मूपू., (सरसति मति सुमति द्यो), ५१६९०-१(#) औपदेशिक सज्झाय-लोभपरिहार, मु. उदयरत्न कवि, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (तमे लक्षण जो जो लोभ), ५०३०२-४, ५०३६३-४, ५०४३२-४,५०७३७-४ औपदेशिक सज्झाय-लोभोपरि, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (धंधो करी धन मेलीउ), ४९९५०-७(+-), ५१९७४-१ औपदेशिक सज्झाय-लोभोपरि, पंडित. भावसागर, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (लोभ न करीये प्राणीया), ४८३४२-१(+), ५१७६१-४ औपदेशिक सज्झाय-वाणिया, मु. विशुद्धविमल, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (वाणीओ वणज करे छे रे), ५०७३०-२(#) औपदेशिक सज्झाय-विषयपरिहार, मु. सिद्धविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (रेजीव विषय नराचीई),५१४२२-१(#), ५१७८६(2) औपदेशिक सज्झाय-विषयरागनिवारणे, मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (मन आणी जिनवाणी जिनवा), ५१९९७-१ औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. जैमल ऋषि, पुहि., गा. ३५, पद्य, स्था., (मोह मिथ्यात की नींद), ५०६०२-१(+), ४८३३३ औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. राजसमुद्र, रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (आज की काल चलेसी रे), ४९५९६-२(+), ५०६१९-१(+), ५०६०९-२, ४९३२६-२(#) औपदेशिक सज्झाय-श्रावक, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (--), ५११४७($) औपदेशिक सज्झाय-षड्दर्शनप्रबोध, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ९, पद्य, मूपू., (ओरन से रंगन्यारा), ५१२७८-४(#) औपदेशिक सज्झाय-सोगठारमत परिहारविषये, मु. आणंद, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सुगुण सनेही हो सांभल), ५१४०२(#), ५१५४४-१(#) औपदेशिक सज्झाय स्त्री, श्राव. लाधाशाह, मा.गु., गा. २२, पद्य, श्वे., (पूरव पाप प्रकारथी), ५०१९७ औपदेशिक सज्झाय-हंसी परिहार, मा.गु., पद्य, श्वे., (नही हंसवोरे प्यारे), ४८२९१-२() औपदेशिक सवैया, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (श्रीसद्गुरु उपदेश), ५१०५३-३(+#), ५१२६२-१(#) औपदेशिक सवैया, पुहि., गा. २, पद्य, श्वे., (जैसे कोउ कूकर क्षुध), ४८६६२-२(+) औपदेशिक सवैया, पुहिं., सवै. १, पद्य, श्वे., (तात करे धन जोवन कारन), ५१२४१-२(#) औपदेशिक सवैया *, पुहि., पद. १, पद्य, श्वे., (देह अचेतन प्रेत धरी), ४८६२०-३(+), ४८६१४-२, ४८६३४-४ औपदेशिक सवैया, पुहि., सवै. १, पद्य, वै., (सुंदर रूप अनोप शिया), ४८५७८-२ औपदेशिक सवैया, मा.गु., गा. १०, पद्य, (सुख को सागर राम का), ४९२५२-४ औपदेशिक सवैया संग्रह, मु. धर्मसी, मा.गु., गा. १६, पद्य, श्वे., (कहै रिख वाण भली), ५०९३८(#) औपदेशिक सवैया संग्रह , भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहिं.,मा.गु., पद्य, जै., वै.?, (पांडव पांचेही सूरहरि), ४९७८९-५(+), ४९८९५-६(#), ५१०४७-१(#) औपदेशिक स्तुति, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (उठी सवेरे सामायिक), ४८७२२, ४८८४९, ४९६१४-२, ४९६६२, ५०५११(#) (२) औपदेशिक स्तुति बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (महिमाप्रभसूरीस गुरु), ४९६६२ (२) औपदेशिक स्तुति बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (संसारि जीव छइ प्रकार), ४८८४९ For Private and Personal Use Only Page #558 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४१ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ औपदेशिक स्वाध्याय, मु. तेजसिंघ, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (पंचप्रमाद तजी पडिकमण), ४९८०३-३(+) औपदेशिक हरियाली, मु. जिनवर्द्धमान, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (कहज्यो पंडित ए हीआली), ५०७०३-२ औपदेशिक हरियाली, मु. जिनवर्द्धमान, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चित्त विचारी कहो तो), ५०७०३-१ औपदेशिक हरियाली, मु. देवचंद, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सकल मनोरथ पूरणे रे), ४८९५२ औपदेशिक हरियाली, ग. मेघचंद कवि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पाणी पंकथी पुरुष पात), ५१७३६-१ औपदेशिक हरियाली, ग. मेघचंद कवि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (भमरडोजाणइ धवलसेठनो), ५१७३६-४ औपदेशिक हरियाली, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (कहेयो रे पंडित ते), ४९१००-२(+),५१४३८-१(+#), ४९५८५-३, ५०४१७, ५०५५३-१(#) (२) औपदेशिक हरियाली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूप., (दिसे जाणिइं ते चेतना), ४९१००-२(+), ५१४३८-१(+#) औपदेशिक हरियाली, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (हरीआली दीसै जाणै ते), ५००२२-२ औपदेशिक हरियाली, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पंखी एक वन उपनो हो), ५०९८४-२ औपदेशिक हरियाली, मु. हीरचंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (एकदंतो गणपति नही रे), ५१७३६-३ औपदेशिक हरियाली, मु. हीरचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, पू., (वननी जाइ कोयलडी नगर), ५१७३६-२ औपदेशिक हरियाली, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (चतुर विचारोए हरियाल), ५००६०-६ औपदेशिक हरियाली-वज्रस्वामीगुणगर्भित, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सखिरे में कौतक दीठु), ४८३५१-१ (२) औपदेशिक हरियाली-वज्रस्वामीगुणगर्भित-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवयरस्वामी बमासने), ४८३५१-१(६) औपदेशिक हरीयाली, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (चेतन चेतो चतुर), ४८३५१-२, ४९३५४-३ (२) औपदेशिक हरीयाली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (हे चेतन चतुर नाच), ४९३५४-३($) औषध संग्रह*, मा.गु., गद्य, वै., (--), ५०६५३-२(+), ४९६१५-६ ककाबत्रीसी, मु. जिनवर्द्धन, मा.गु., गा. ३३, पद्य, मूपू., (कका करमनी वात करी), ५०१४२-१(+), ४९५०१, ५१४७१, ५१५७९, ५१०४८(#) ककाबत्रीसी, मा.गु., गा. ३४, पद्य, श्वे., (कका क्रोध निवारीय), ५१८८१ कठियारादृष्टांत सज्झाय, मु. गुणविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (वीरजिनवर रे गोयम गण), ४९२९८-१ कनकध्वज राजा रास, मु. नान्हू, मा.गु., गा. ४४, पद्य, मूपू., (सब मली सही असमाणडी), ४९८३३ कमलावतीरानी इक्षुकारराजा भृगुपुरोहित सज्झाय, मा.गु., गा. ३४, पद्य, मूपू., (महिला में बैठी राणी), ५१४३२ कमलावतीसती रास, मु. विजयभद्र, मा.गु., ढा. ४, गा. ४४, पद्य, मूपू., (नमिय वीरि जिणेसर), ५१७५८(+#), ५१७१९(#) कमलावतीसती सज्झाय, ऋ. जैमल, पुहि., गा. २९, पद्य, श्वे., (महिला में बेठी राणी), ५०४४३-३(s) कमलावतीसती सज्झाय, मु. सुगुणनिधान, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (कहे राणी कमलावती), ५१६२१-१(+#) कयवन्ना कथा, मा.गु., गद्य, श्वे., (जम्मंतर दाणाओ), ५२०१३ करकंडुमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (चंपानगरी अतिभली हु), ४९८०५-१,५०२०५-१, ४९३११-२(-2) कर्मछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३६, वि. १६६८, पद्य, मूपू., (कर्म थकी छूटे नही), ४९२५२-५, ४९७८४, ५०५८१-१ कर्मपच्चीसी, मु. हर्ष ऋषि, मा.गु., गा. २६, पद्य, मूपू., (देव दानव तिर्थंकर), ४८९६३-८(+) कर्मप्रकृति निदान सज्झाय, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., ढा. ४, गा. ४७, पद्य, मूपू., (--), ५१९९०-१(+$) कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (देव दाणव तीर्थंकर), ५०५८३, ५११३२-३, ५०९४०-२(#), ४९३११-१(-#5), ५०५२६(-) कर्म सज्झाय, मा.गु., गा. १७, पद्य, श्वे., (करम तणी गति विसम), ४९९०६-१ कर्महींडोल सज्झाय, मु. हर्षकीर्ति, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (कर्म हीडोल नामाई), ५०७६८(+-) कलावतीसती चौढालियो, मु. रंग, मा.गु., ढा. ४, गा. ६२, वि. १८३५, पद्य, स्था., (माळव देश मरोहरु), ५१५५५ कलावतीसती सज्झाय, मु. यादव ऋषि, मा.गु., गा. २३, पद्य, श्वे., (सुमति जिणेसर पाय), ४९१९६-१(६) For Private and Personal Use Only Page #559 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५४२ www.kobatirth.org कलावतीसती सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, भूपू (नगरि कोसंविनो राजा), ५००३८ कलावतीसती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु, गा. १३, पद्य, म्पू, (नगरी कोसंबीना राजा), ५१०५१, ५१५५१ कलियुग सज्झाय, मु. प्रीतिविमल, पुहिं. गा. १२, पद्य, मूपू.. ( यारो कूडो कलियुग) ५२००४-८(४) कवित संग्रह, पुहिं., मा.गु., रा., पद्य, श्वे. (आसराज पोरवार तणै कर), ४९१०३-२, ५००२५-३, ५०३१५-५), ५०७८८-५ () "" कवित संग्रह, मा.गु., गा. ५, पद्य, ?, (लाल विल बेकी हौँ वधा), ५०८३३-२(#) कागविचार, मा.गु., गद्य, वे (ईसानकूण १ जयपामइ २) ५१५६६-२ (०) " कान्हडकठियारा रास, मु. मानसागर, मा.गु., ढा. ९. वि. १७४६, पद्य, मूपू., (पारसनाथ प्रणमुं सदा), ५१७७९ (+३) कायस्थिति २२ द्वार वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., ( जीव १ गई २ इंदिय ३), ४९४०७, ५०००७-२ कायस्थिति बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीव गइ इंद्रिय काय), ४९३७९ (+) कायोत्सर्ग दोष, मा.गु., गा. ३६, पद्य, श्वे. (कवि कहइ घोटक लक्षण), ४८५१४ " कायोत्सर्ग समय मर्यादा, मा.गु., गद्य, मूपू., (जाव अरिहंताणं भगवंता), ५१४९०-९ कार्तिकसेठ कथा, मा.गु., गद्य, श्वे., ( सो वार प्रतिमा वही), ५११६०-१ (+) कालिकाचार्य कथा *, मा.गु., गद्य, मूपू., ( तिहां पूर्वइ स्थविरा), ४९६२१-२(s) काव्य / दुहा/कवित्त / पद्य, मा.गु, पद्य, 2 (--), ५०६६८-२२०, ५००१२-२ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१२ "" कीर्तिरत्नसूरि निभद्रसूरि स्तुति, पं. गुणविनय गणि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (श्रीकीर्तिरतनसूरि के), ५०८९५-३(+) कुंथुजिन पद, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं. गा. ३, पद्य, मूपू (कुंथुनाथने करुं), ५०८४५-३(००), ५०८८५-९(+) " " कुंथुजिन स्तवन, मु. प्रेमविजय शिष्य, मा.गु. गा. १५, पद्य, भूपू (सूरराया कुल कमल), ४८३९८ कुगुरुपच्चीसी, मु. तेजपाल, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मूपू., (जिनवर प्रणमी सदा), ५१७२९, ५०१६८-१(#) कुगुरुवत्रीसी, मु. भीम, रा. गा. ३१, पद्य, ओ., (भांति भांति की टोपी), ४९६७८ . कुमतिसंगनिवारण जिनबिंबस्थापना स्तवन, श्राव, लधो, मा.गु., गा. २५, पद्य, मृपू. (श्रीजिनपंकज प्रणमीने), ४८६८८ कुशलसूरि गीत, मु. भुवनकीर्ति, मा.गु. गा. ९, पद्य, म्पू, (कुशल करो जिन कुशल), ४८४८३-३ कुशिष्य स्वरूप सज्झाय, मा.गु., पद्य, क्षे., (सरसतीनई करुं जुहार), ५१९९६-३ (३) कृष्ण पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, वै., (वाई जसोदाजी इवडो), ४९३४३-२($) कृष्ण बलभद्र जोड, मा.गु., ढा. ४, गा. ६१, पद्य, श्वे. (नगरि साहमु जोयने रे), ४८९५८-१ कृष्ण बलभद्र रास, मा.गु., ढा. ४, गा. २७, पद्य, श्वे., (भावी भाव मिटे नहि), ४८९५८-२ कृष्ण बारमासो, वल्लभ, मा.गु., गा. २४, पद्य, वै., (मृगसिर मास सोहामणो), ५१९५४-२(४) कृष्णभक्ति कवित्त, द्वारिकानाथदेव, पुहिं., गा. १, पद्य, वै., (जो मन रखुं ठोर चित्त), ५०९९३-२ कृष्णभक्ति गीत, क. नरसिंह महेता, पुहिं, सबै ४, पद्य, वै. (धूंधूंकटी धूंधू), ५१०५३-२(१) कृष्णमहाराजा सज्झाय, मु. इंद्र, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (नयरी द्वारीकामां नेम), ५१२०१ कृष्णराजा बारमासो, मु. कुसलसमय, मा.गु., गा. १२, पद्य, क्षे., (गुडलाबाद गरजीया काली), ४८६६९ कृष्णव्रजनारी पद, क. नरसिंह महेता, मा.गु., गा. ३, पद्य, वै., (वाल्हा ब्रीजना रे), ४९४८२-८(०) केश कल्प, मा.गु., गद्य, वे. (आंबारी अंबी पहसा ८), ४९९७२-२(१) , " केश गौतम गणधर गहुली, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सावथी उद्यानमा रे), ५१६४५-१ केशी गौतम गणधर संवाद, मु. जसकीर्ति, मा.गु, गा. १०५, पद्य, मूपू., (केसी पास संतानीया), ५०३१५-१(*) केशी गौतमगणधर संवाद, मु. विजयपार्श्वसूरि शिष्य, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सीस जिणेसर पास), ४९१९६-२ केशीगीतमगणधर सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. १६, पच, भूपू (ए दोय गणधर प्रणमीये), ४८३२७ कोशास्थूलभद्र बारमासो, पं. चतुरविजय, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (सुडा प्रति कोसा भणि), ५०००९-४(+) " (गुरुजी कौतक दीठ हाथ), ५१३८५-१०) , "" कौतुक सज्झाय, मा.गु., गा. २३, पद्य, वे (२) कौतुक सज्झायटवार्थ, मा.गु., गद्य, क्रिया के २५ भेद बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे. वे. (गुरु भणे कौतकनु अरथ), ५१३८५-१(+) (क्रिया दोय प्रकारनी), ४९६४१ "3 For Private and Personal Use Only Page #560 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ क्रोधपचीसी, मु. चंद्रभाण ऋषि, मा.गु., गा. २५, पद्य, वे., (भवियण हो भवियण करोध), ५१७३९ क्रोधमानमायालोभ सज्झाय, मु, गुणसागर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू.. (भजीय छे श्रीजिन चरण), ५१६५३-२, ५१५४८ क क्रोधमानमावालोभ सज्झाब, मु. सुंदर, मा.गु., सज्झा. ४, गा. ३२, पद्य, वे (मनधी क्रोध तजो नरनार), ५१६५३-१ क्षपकश्रेणि स्वरूप, मा.गु., गद्य, मूपू., (अणमिछमीससम्मतिआऊ), ४८४९० क्षपकश्रेणी रचना यंत्र, मा.गु., पं., थे. (संज्वलन लोभः), ४९१७७-२ गंगाली दृष्टांत कथा, मा.गु., गद्य, श्वे., (कोई एक ब्राह्मण), ४९५१२-२(+) गच्छोत्पत्ति वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., ( दसकुंमतना नाम लख्या), ५०८५६-२ क्षमाछत्रीसी, उपा. समवसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (आदर जीव क्षमागुण), ४८६९० (+०), ४८९९१, ४९५९४, ४९७२२, ५०६४९, ५०८१५-१, ५१०८४-१, ४८३९१-१(#), ५०२८३(#), ५२००२(#) क्षेत्रपाल मंत्र, मा.गु., गद्य, वै., (ॐ क्षेत्रपाल मंत्र, मा.गु., गद्य, वै., (ॐ क्षेत्रपाल छंद, माधो, मा.गु., गा. ५, गद्य, वै., (धूवै मादलां मृद), ४८६२८-१(+) नमो कालीया गोरीवा), ४९३७८-२(+) नमो खोडीया), ५१४७८-३(+#) खंधकमुनि चौढालियो, रा., ढा. ४, वि. १८११, पद्य, श्वे., ( नमूं वीर शासनधणी जी), ५११८३ (+) खंधकमुनि सज्झाय, मु. जयसिंघ ऋषि, मा.गु., ढा. ४, गा. २८, वि. १७५५, पद्य, वे., ( गौयम गणधर मन धरु), ४९२४१-१(+) खंधकमुनि सज्झाय, मा.गु. गा. २५, पद्य, भूपू (तिण अवसर मुनिराय), ५२०२५ (१६) " खरतरगच्छ के ४९ गोत्र और जातियाँ, मा.गु., गद्य, मूपू., (रायभणसाली० आभू संतान), ५०६६४-४(+#) खामणा सज्झाय, मु. गुणसागर, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (प्रथम नमुं अरिहंतने), ४९९९८-२ (+$), ५०९०३-१, ४९१४७(#) खामणा सज्झाय, मु. गुणसुंदर, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., ( प्रथम नमो अरिहंतनैजी), ४८३५६-२ खामणा सज्झाय, ग. पद्मविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (पंच परमेष्ठि ध्याईए), ४९७४१ , गजसिंहकुमार रास, मु. मानविजय, मा.गु., ढा. ६४, वि. १८५३, पद्य, मूपू., (श्रीजिन चोविसे नमुं), ५०१७८($) गजसुकुमालमुनि रास, मु. शुभवर्द्धन शिष्य, मा.गु.. गा. ९१, पद्य, मूपु., (देस सोरठ द्वारापुरी), ५०७८२(४) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. खेमकुशल, पुहिं. गा. ७, पद्य, भूपू (द्वारापुरी नगरी के), ५१४८३-२(१०) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (प्रभू प्रणमी घरि ), ५०५६८(#) गणधर स्तवन प्रभाती, आ. समरचंद्रसूरि, मा.गु., गा. १९१, पद्य, मूपू (गणधर इग्यारह तणा नाम), ५११४६-३ गणेश छंद, मु. हेमरत्न, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू. वै., ( जय जय गूणपति गुण), ४८२२९ " गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. २४, वि. १८५८, पद्य, श्वे., (गजसुकुमाल देवकिरो), ५१३९१, ५११६१() गजसुकुमालमुनि सज्झाय, ग. देवचंद्र, मा.गु., डा. ३, गा. ३८, वि. १८वी, पद्य, मूपू. (द्वारिकानगरी ऋद्धि), ४९७५४, ५०१८२ गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. न्याय, मा.गु, गा. ८, पद्य, मूपू. (एक द्वारकानगरी राजे), ५०७३१-१, ५१०२४-१ गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. सिंहसौभाग्य, मा.गु., गा. ५०, पद्य, मूपू., (सोरठ देश मझार), ५०५१२(#) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, सेवक, मा.गु., गा. १३, पद्य, भूपू (श्रीजिननायक वांदीयि), ५१३१७-२ गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मा.गु., गा. ४१, पद्य, म्पू, (वाणी श्रीजिनराजतणी), ४८८४१ गणधरगुण हली, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (गणधर हे के गणधर चारि), ५१५८१-५ (#) गणधर महिमा पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (चवदे पूर्वधार कहीये), ५१०८१-४ " गणेश निसांणी, मा.गु., गा. ३, पद्य, वै., (सब देवा नायक तु), ४८४००-२(-#) गणेश स्तुति, मा.गु, पद्य, वे. (33 गवरीपुत्र तु जपा), ४८४००-४-०६) " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गणेश स्तोत्र, मा.गु., गा. ६, पद्य, वै., (नर सुरनायक आदि), ४९९७०-२ गम्मा यंत्र, मा.गु., को., श्वे., (संख्याता जीव उपजै ते), ५१६३८ गली विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (गाम चालतां आगल स्वर ), ५०८०४ गांगेयभंग संख्या आनयन विधि, मा.गु., गद्य, वे., ( किणही पूछयो दोय), ५०७९९(+#) गांधार स्वर-परिचय, पुहिं. गद्य, वे (--) ५०५९१-३ " " ५४३ For Private and Personal Use Only Page #561 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५४४ www.kobatirth.org गाथापति सज्झाय, मा.गु.. गा. ११, पद्य, वे (वसंतपुर नामा नगर), ५००२५-१ " गिरनारतीर्थ नमस्कार, मु. उत्तम, मा.गु., गा. ३, पद्य, भूपू (श्रीगिरनार सोहामणो), ४८९९८-१(+) गिरनारशत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सारो सोरठ देश देखाओ), ४९११३-१, ५०९२०-४(०), ५१२०८-४१ गुणव्रत उपभोग परिभोग परिमाण विचार, मा.गु., गद्य, म्पू, (श्रावके सर्वधा निरवद), ४९९९०-३(४) गुणसारऋषिराज स्वाध्याय, क. कमलविजय, मा.गु., गा. २७, पद्य, म्पू., (स्वस्ति श्रीलतावन), ४८५५२ गुणस्थानक सज्झाय, मु. सुंदरविजय, मा.गु., गा. २३, पद्य, भूपू (समरवि वीरजिणेसर देव), ५१५०७ गुणस्थानक स्तुति, मु. मेघविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पहेलुं मिथ्यात्व), ५०१४१-१ , कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१२ गुरुगुण गहुंली, मु. आत्माराम, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., ( सजि नव सत शणघार सखि ), ४९८१०-१, ४९६२८-४(#$) गुरुगुण गहुंली, मु उत्तम, मा.गु, गा. ७, पद्य, भूपू (तुमे शुभ परिणामें), ४८६३१-१, ५१४६६.५, ५१५८१-१(४) गुरुगुण गहुली, पन्या, उत्तमविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आतिम धरम शुणण भणी), ५१५८१-४) गुरुगुण गहुली, वा. रामविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (आवो सहिरो उपासरे आवो), ५०४५७-२(#) गुरुगुण गहुली, आ. विबुधविमलसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मृपू., (सुंदरी हे सुंदरी शुभ). ४९२१९ गुरुगुण गहुली, मु. विशुद्धविमल, मा.गु., गा. ७. पद्य, मूपू.. (सुचि रुचि गुहली करो), ५०६२७-१०) गुरुगुण गहुली, मु. शुभवीरविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चरण करणशुं शोभतां), ५०८१३-१ गुरुगुण गहुली, मु. सौभाग्यलक्ष्मी, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (जिनवयणे अनुरंगी मुनि), ४८२४१-३ गुरुगुण गहुली, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सहियर सवि सवि सरखी), ४९६२८-३(#) गुरुगुण गहुली, मा.गु.. गा. ९, पद्य, भूपू (सुण साहेली सतगुरु), ५०६२० ६) गुरुगुण दोहा, मु. नथमल, मा.गु., गा. १, पद्य, वे., (जसधारी जीवराज लाल), ४९८३१-२ गुरुगुण भास, आ. विजयमहेंद्रसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., ( अहो सखी संजममां रमता), ५१८६४ -२ (#) गुरुगुण भास, मु. सेवक, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (कूंकम चंदन केसर भेली), ५११८८-२(#) गुरुगुण भास, मा.गु., गा. ९, पद्य, भूपू. (आज रहो धण वीनवे कठ), ४८६४७-३ गुरुगुण भास, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सदगुरु हे सदगुरु), ५१६४५-२ गुरुगुण सज्झाय, मु. मोतीचंद, मा.गु., गा. १९, वि. १८४७, पद्य, वे., (जंबूद्वीप भरतमै), ५१२९६ (#) गुरुगुण सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. २१, पद्य, श्वे., (पुण्य जोगे गुरु), ४९४१२-२ गुरुशिष्य कथन निसानी, मु. धर्मसी, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे. (इण संसार समुद्र को), ४९२६८-३ गुरु स्तुति, मा.गु. गा. १४, पद्य, भूपू. (सुणो साहिब गपति भां), ४८५६६-२(+) गृहगोधा विचार, मा.गु, गद्य, वे (धिरो ली जो माथै पडि), ४९९४२-२(+) "" गृहचैत्य प्रतिमा लक्षण विचार, मा.गु., गद्य, जे., (रौद्र प्रतिमा करावना), ४९५२७-३ गोचरी ४२ दोष, मा.गु., गद्य, मूपू., ( उद्गम दोष श्रावकथी), ५०८३०(+#) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गोचरी ४७ दोष, मा.गु., गद्य, मूपू., (१ अहाकमे १ उपवा० वरा), ४८१९१-२, ५०८९६-१ गौतम गणधर चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मृपू. ( जीव केरो जीव केरो), ४८९६६-१० गौतमपृच्छा चौपाई, मु. नयरंग, मा.गु., गा. ४४, पद्य, मूपू., (वीरजिणंदतणा पय वंदि), ५०६४४ (+$), ५१५३१ गीतमपृच्छा चौपाई, मु. लावण्यसमय, मा.गु. गा. १२४, वि. १५४५, पद्य, मूपू (सकल मनोरथ पूरवे), ४८६५७(+), ४९९६८(३) , . ५११५५-१०१ गौतमस्वामी गहुँली, मु. अमृत, मा.गु., गा. ११, पद्य, म्पू, (राजग्रहि शुभ ठाण), ४८३६१-२ गौतमपृच्छा दोहा, मु. सोभचंद ऋषि, मा.गु., दोहा. ६४, पद्य, श्वे., (महावीर पाय अनुसरी), ५०४७०-१, ४९४०८-१(#) गीतमपृच्छा सज्झाय, मा.गु, गा. ३८, पद्य, भूपू (गौतमस्वामी पृच्छा ), ४८४८७, ५११४५.२(७) " गौतमस्वामी अष्टक, मु. धीरविजय, मा.गु, गा. ८, पद्य, मूपू (पहिलो गणधर वीरनो रे), ५११२१-१(७) गौतमस्वामी अष्टक, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (प्रह ऊठी गौतम प्रणमी), ४८१९८-३, ४९५५९-१, ५०८३५, For Private and Personal Use Only Page #562 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २ गौतमस्वामी गहुली, मु. ज्ञान, मा.गु, गा. ६, पद्य, म्पू.. (चरणकरण व्रत धारता), ५१३७५ गौतमस्वामी गहली, मु. रंग, मा.गु, गा. ७, पद्य, म्पू. (-), ४८६४७-१३) गौतमस्वामी गहुली, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., ( बिंहनी अपापानयरी), ५०८१३-२ गीतमस्वामी गहुली, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू (वर अतिशय कंचनवाने), ४९८१०-२, ४९६२८-१(७) गौतमस्वामी गीत, उपा. समवसुंदर गणि, मा.गु गा. ३, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (गीतम नाम जपो परभाते), ५०८४५- १(००) गौतमस्वामी चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., ( नमो गणधर नमो गणधर ), ४८९६६-८ गौतमस्वामी छंद, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मात पृथ्वी सुत प्रात), ५१४४२-१ (#) गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ९. वि. १६वी, पद्य, भूपू., (वीरजिनेश्वर केरो शिष), ४९२५४-१(०), ५०१३३-१(+०), ४९१६७-२, ५०५८९-१, ५०८८०-१, ५१०४२-१(#) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गौतमस्वामी छंद, मा.गु., पद्य, थे. (मगधदेशमां राजगृहीनी), ४९१७०-२(६) " गौतमस्वामी रास, मु. रायचंद ऋषि, रा. गा. १४, वि. १८३४, पद्य, स्था., (गुण गाउ गौतम तणा), ४८४०८ गौतमस्वामी रास, आ. विजयभद्रसूरि, मा.गु., ढा. ६, गा. ६६, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर चरणकमल कमल), ४८५९३, ५०६१८, ४८४६०-११४) गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., गा. ६३, वि. १४१२, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर चरणकमल कमल), ४८६०१(+), ५१४२९(+), ४८२५३.१. ५१६८४१ गौतमस्वामी स्तवन, मु. जयसागर मा.गु. गा. १२, पद्य, भूपू (गोयमस्वामि गुण निलो), ४८५९६ गौतमस्वामी स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (वीर मधुरी वाणी भाखे), ४८९६६-१३ गौतमस्वामी स्तवन, मु. पुण्यउदय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (प्रभाते गोतम प्रणमी), ५०२२२ (+#), ४८२९३-१ गौतमस्वामी स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १०, वि. १८२७, पद्य, स्था., (जंबूदिप दिपा रे बिचम), ५२०४९-२ (+) गौतमस्वामी स्तवन, मु. वीर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (पहेलो गणधर वीरनो रे), ५०९५९-२, ५०३२२-२ (#$) गौतमस्वामी स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (इंद्रभूति अनुपम गुण), ४८९६६-११ गौतमस्वामी स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, क्षे. (गीतम नाम प्रभात जपो), ५०६३१-३ " घोडाचूली, मु. विमलशील, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (प्रणमवि श्रीशारद), ५०५७४ (#) चंदनवालासती गीत, मु. लब्धिविजय, मा.गु, गा. ३६, पद्य, मृपू. (कांसांबित नगरी पधार), ५००८३ . ५४५ चंदनबालासती चौढालिया, मु. विनयचंद, मा.गु., ढा. ४, गा. ८२, वि. १८८५, पद्य, मूपू., (अविन्यासी अविकार), ५०७४७-१ चंदनवालासती ढाल, मु. दुर्गादास, मा.गु. गा. ८५, पद्य, वे. (फणमण मंडत नीलतन मंगल), ५१०००(+) "" चंदनबालासती सज्झाच, मु. कुंअरविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (बालकुंआरी चंदनबाला), ४८८१८(१), ४९५९३-४१०) चंदनबालासती सज्झाय, ग. चतुरसागर, मा.गु., डा. ३. गा. ४८, वि. १७८२, पद्य, म्पू., (सरसती केरारे पय), ५०८४९-२०१ चंदनबालासती सज्झाय, मु. नीतिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (धन चंदनबाला सति रे), ५१२१३-२ चंदनबालासती सज्झाय, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. २०, पद्य, श्वे., (अंगदेस चंपानगरी आठो), ५०३१७-६(#) चंदनवालासती सज्झाय, पं. विनयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ९, पद्य, भूपू (कोसंवियापुर नयरि), ५००१३-१ . चंदनबालासती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु. गा. १९, पद्य, मूपू (धनि धनि दिन महारे आज), ५०००८-१(+) चंदनबालासती सज्झाय, मु. सिंहविमल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., ( आज हमारे आंगणडे हु), ५०२५६-१ चंदनमलयागिरि सज्झाय, मु. चंद्रविजय, मा.गु. गा. १०, पद्य, मूपू (विजय कहे विजया प्रति), ४८३२९(+), ५११६७, ५०७५४(१) " . For Private and Personal Use Only चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., गा. ४०, पद्य, स्था., (पाडलीपुर नामे नगर), ५१७१५-१(+), ५०३१६-१(#) चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाब, मु. तेजसिंघ ऋषि, मा.गु. बा. २ गा. २१, पद्य, खे, (सद्गुरुने चरणे नमी), ५०७६६-१ चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, ऋ. रायमल्ल, मा.गु., गा. २६, पद्य, वे., (चोवीसमो श्रीवीर जिणं), ५१८९२ चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, मा.गु., गा. १७, पद्य, श्वे. ( सरसति सामिनि वीनवउं), ५१९८२-१ (+) चंद्रप्रभजिन पद, मु. राजनंदन पुहिं. गा. ३, पद्य, थे. (छवि चंद्राप्रभु की) ४९१९३-१ "" " चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ७. वि. १८वी, पद्य, मूपू (चंद्रप्रभु मुखचंद), ५१४८२ Page #563 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५४६ www.kobatirth.org चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. खेमराज, मा.गु, गा. ६, पद्य, भूपू (चिहुं रूप चउमुख देहर), ५०९७७-२(१) चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. गुलाब, मा.गु., गा. १५, पद्य, भूपू (चंद्रप्रभूजिन वीनती), ४८७६४ चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. जैत, पुहिं. गा. ६, पद्य, मूपू (श्रीचंदाप्रभु जिनवर), ४८६१६-१ " , कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१२ चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. दौलत, मा.गु., गा. १३, वि. १८६०, पद्य, मूपू., (हां रे मारे अष्टमा ए), ५१३०७(#) चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. नारायण, मा.गु., गा. ३३, पद्य, ओ., (सकल सुरासुर जेहना), ५१०५४(+) चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीशंकर चंदाप्रभु), ५०५८४-२ ($) चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु, गा. १२, वि. १८५४, पद्य, स्था (चंद्रप्रभु चितमोह), ४८७४३ चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु., डा. १०, गा. ७६, वि. १६८७, पद्य, मूपू., (सरसति वरसति सकतिरूप), ५०२४८(१०) चंद्रप्रभजिन स्तवन -पाजावाडीमंडन, आ. हर्षसंयमसूरि, मा.गु., ढा. ६, गा. ३०, पद्य, मूपू., (सरसति सामिणि प्रणमुं), ४९३८९-१ चंद्रबाहुजिन स्तवन, मु. कल्याणसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, भूपू (हरिनि ते घरि पामीयो), ५०००६-२ " चंद्रबाहुजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, रा., गा. ८, पद्य, मूपू., (चंद्रबाहु जिनराज), ४९५६७-२ चंद्रराजा रास, मु. विद्यारुचि, मा.गु., खं. ६ ढाल १०३, गा. २५०५, ग्रं. ३०५५, वि. १७१७, पद्य, मूपू., (श्रीजिननायक समरी ), १०११७-२०१ 2(#) चंद्रलेखा रास, मु.] मतिकुशल, मा.गु., डा. २९, गा. ६२४, वि. १७२८, पद्य, भूपू. (सरसति भगवति नमी करी), १०११७- १(क) चंद्रसूर्यग्रहण असज्झाय, मा.गु., गद्य, मूपू., (असज्झाइ ते किम किणहि), ५११०९-२ चंद्रावतीभीमसेन सज्झाय, मु. विवेकहर्ष, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., ( जिन मुख सोहे सरस्वति), ४९३७६ चक्रेश्वरीदेवी स्तुति, मा.गु., गा. ५, पद्य, वे., (श्रीचक्रेश्वरी देवी), ५०८३८-३ चतुराड़ की वात, पुहिं., गद्य, वै., (एक दिन माघ पंडित ने), ५१५४०-१(#) चतुराई सवैया, मु. हीरानंद, पुहिं., गा. ८, पद्य, वे., (चातुरी तेरी झेरा), ५०८९१-२ " , चतुर्थी तिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सर्वारथसिद्धथी चवी ए), ५१०५२-१ चरणसित्तरीकरणसित्तरी सज्झाय, मु. रतनचंद ऋषि, पुहिं., गा. १९, वि. १९०४, पद्य, श्वे. (श्रीजिणवर वाणी कही), ५११३३-२(+) चरणसित्तरीकरणसित्तरी सज्झाय, मु. सुजस, मा.गु., गा. ७, पद्य, भूपू (पंच महाव्रत दशविधि), ५१०२१-१, ५२०१८ चित्रसंभूति सज्झाय, मु. कविवण, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू (चित्त कहे ब्रह्मराय), ४८४५९, ५१६०८(१) "" चित्रसंभूति सज्झाय, रा., गा. १७, पद्य, श्वे., (चीत्र कहइ ब्रह्मराय), ५००१०-१ चेतन वृतांत, श्राव. भगवतीदास पुहिं. गा. २९८ वि. १७३६, पद्य, मूपू (जिनचरण प्रणाम करि), ५०१२७ (5) " चेलणारानी सज्झाय, मु. रायचंद, मा.गु. गा. ११, पद्य, वे (धन चेलणा वीर वखाणी), ४८४२४-३(+), ५१२९७-३(७) "" चेलणासती चौडालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा. डा. ४, गा. ३७, वि. १८३३, पद्य, स्था., ( अवसर जो नर अटकलो ते), ५१८२५(१) चेलणासती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू (वीरे वखाणी राणी), ४८९६३-१(+), ५१०७९-७(+), ४८९३०, ५१३४२-१, ५१४८५-२, ५१९९२-२, ५०१७९-३ (# ), ५०४६०-३(#), ५१२९७-४ (#) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चेलणासती सज्झाय, रा., गा. १२, पद्य, मूपू., (सुण रा सामीजी सुण रा), ४९०९४ चैत्यवंदन चौवीसी, मु. रूपविजय, मा.गु. चैत्यव. २५, गा. ७५, पद्य, मूपू (प्रथम नमुं श्रीआदि), ५०९२८, ५१२६९ (४) " चैत्र पूर्णिमापर्व देववंदन विधि, मु. दानविजय, मा.गु., देवजो. ५, पद्य, मूपू., (प्रथम चौमुख प्रतिमा), ५१६२९($) चोया चक्र, मा.गु., गद्य, (उद्वेगवेला चलवेला), ५१७०५-३(#) יי चौपटखेल सज्झाय, आ. रत्नसागरसूरि, पुहिं., गा. २३, पद्य, मूपू., (प्रथम अशुभ मल झाटिके), ५०९०७-४ (#) छंदज्ञान, आ. पिंगलाचार्य, मा.गु., गा. २, पद्य, (पंच दी लहू अंकडो), ५१२७५-२ (+) छ आवश्यक नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (१ सामाइक २ चउविस्तो), ५१२९५ -१(+) छकाय सज्झाय, मा.गु, गा. २२, पद्य, थे. (होवा होसी आदज है जी), ४९९५०- ३(+) छमासीतपचितवन विधि, मा.गु., गद्य, मूपू. (रे जीव महावीर भगवंत), ५००७४ छिनालपच्चीसी, मु. लालचंद, मा.गु, गा. २६, पद्य, भूपू (परमुख देखी अपण मुख), ५०५४१.११) जंबूस्वामी ५ भव सज्झाय, मु. राम, मा.गु., गा. ३३, पद्य, मूपू., (सारद प्रणमु हो के), ४९०९६, ५०३९५, ५०६०८ For Private and Personal Use Only Page #564 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४७ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ जंबूस्वामी गहुंली, पं. पद्मविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (सोल वरसें संयम लिओ), ५०४६४ जंबूस्वामी रास, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ६४, ई. १५१६, पद्य, मूपू., (सरसति सहि गुरु पय), ४९६०६(६) जंबूस्वामी सज्झाय, मु. जयचंद, मा.गु., गा. १२, वि. १६२६, पद्य, मूपू., (सरसति सामीने वीनवु), ५१३२७-२(#) जंबूस्वामी सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (संयम लेवा संचर्या), ४८९९७ जंबूस्वामी सज्झाय, मु. दुर्गादास, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (सुधर्मास्वामि तनी), ५१२६४-१ जंबूस्वामी सज्झाय, आ. भाग्यविमलसूरि, मा.गु., गा. १४, वि. १७६६, पद्य, मूपू., (सरसत सामीने विनवू), ४८८२५, ४९६८२, ५१५०४, ५११९०(#) जंबूस्वामी सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (राजग्रही नयरी वसे रे), ५०५९९-१(#) जंबूस्वामी सज्झाय, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (राजग्रही नगरी वसे), ४९१७२, ५०५३९-१(#) जंबूस्वामी सज्झाय, रा., गा. २०, पद्य, मूपू., (राजगृही नगरीरा वासी), ५१६४६-२(+#) जंबूस्वामी सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (श्रेणिक नरवर राजिओ), ४८४३५ जगत्सृष्टिकृत परमेश्वरप्रश्न गीत, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (पुछु पंडित कहुं का), ५०९८४-४ जयरत्नसूरि गुरुगुण गहुँली, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (मारो गुरुजी छै मोहन), ५११५६-२ जसवंत आचार्य विवाहलुं, मा.गु., गा. १६, पद्य, श्वे., (जेहनउ जिनवर सुसरु), ५१३८३ जांगुलीमंत्र विधिसहित, मा.गु., गद्य, वै., (ॐनमो संभलिहो डंक), ५०३४०-२(#) जिनकुशलसूरि गीत, मु. उदयरत्न, पुहि., गा. १५, वि. १८७४, पद्य, मूपू, (सदगुरु गछनायक वंछित), ५१५८३(+) जिनकुशलसूरि गीत, मु. कनककीर्ति, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (कुशल करि कुशल करि), ५०१८८-२ जिनकुशलसूरि गीत, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आयो सहु श्रीसंघ आस), ५१२४३-१(+), ४८४८३-४ जिनकुशलसूरि गीत, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सदगुरु श्रीजिनकुशलसू), ४८४८३-६, ४८६५६, ५०८४४-१(#) जिनकुशलसूरि गीत, आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (श्रीजिनकुसलसूरीसरू), ४८२२२-२, ४९३४३-१ जिनकुशलसूरि गीत, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मनडौ तुमाख्यौ दादा), ५०९०८ जिनकुशलसूरि गीत, पंडित. रत्नविनय, पुहि., पद्य, भूपू., (चरणकमल प्रणमति सदा), ४९२७२-१(६) जिनकुशलसूरि गीत, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (आयो आयो री समरंतो), ५००२१-२ जिनकुशलसूरि गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (देरावर दादो दीपतोरे), ४८४८३-५ जिनकुशलसूरि गीत, पा. साधुकीर्ति, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (विलसे रिद्धि समृद्धि), ४८३९५(#), ५१६३२-१(#) जिनकुशलसूरि गीत, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (आज पंचम अरइ नयरि), ४९३८७ जिनकुशलसूरि पद, मु. कनककीर्ति, पुहि., गा. २, पद्य, मूपू., (दादो दोलत दाता सुख), ४८४२०-४ जिनकुशलसूरि पद, मु. कविराज, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (श्रीगणधर जिनकुशलसूरि), ४८४८३-१ जिनकुशलसूरि पद, आ. जिनचंदसूरि, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (ध्यावौ जिनकुशलसूरिंद), ४८४२०-३ जिनकुशलसूरि पद, मु. जिनराज, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (कुशल गुरु अब मोहि), ४८४२०-२ जिनकुशलसूरि पद, मु. शिवचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (दादा कुशलसूरिंद तुम), ४९५६६-१(+) जिनकुशलसूरि सज्झाय, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (वर्धमान जिनेसरू शासन), ५०८४६-२ जिनकुशलसूरि सवैया, ग. ज्ञानतिलक, पुहिं., सवै. १, पद्य, मूपू., (कुसल विषम वाटि कुसल), ४९८८८-११(#) जिनकुशलसूरि सवैया, मु. धर्मसीह, पुहिं., गा. २, पद्य, मूपू., (राजै थूभ ठौर ठौर ऐसौ), ४८३११-४(+) जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. अमर, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (भक्ति जिनांकी भीर), ४८६५५-३(+) जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. कुसल कवि, रा., गा. ६, पद्य, मूपू., (हाजी काइ अरज करु), ५१२४३-२(+), ४८४८३-२,५०८४४-३(#) जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. राजसागर कवि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (अरे लाला श्रीजिनकुशल), ४८४२०-१, ५०८४४-२(#) जिनकुशलसूरि स्तुति, पं. गुणविनय गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पूनिमि पूनिमि गुरुजी), ५०८९५-४(+) जिनकुशलसूरि स्तुति, मु. ज्ञानतिलक, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (जिनकुसलमुनीस खरतर), ५०८७१-२(+) जिनकुशलसूरि स्तोत्र, उपा. जयसागर गणि, मा.गु., गा. १९, वि. १४८१, पद्य, मूपू., (रिसहजिणेसर सो जयो), ५०८३२ For Private and Personal Use Only Page #565 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५४८ www.kobatirth.org जिनगुण बिरदावलीबत्रीसी, मा.गु., गा. ३२, पद्य, श्वे., (जय संसार सागर सकल), ४९५९५-३(#) जिनचंदरि गीत, मु. हर्षवल्लभ, पुहिं. गा. १४, पद्य, म्पू. (खरतरगच्छ जगि चिर जयउ), ५०२९८-२ जिनचंद्रसूरि गीत, मु. हर्षवल्लभ, पुहिं., गा. १०, पद्य, मूपू., (श्रीजिनचंदजतीसर खरतर), ५०२९८-१ जिनचंद्र भट्टारक सवैया, क, सोम, पुहिं, सवै १, पद्य, मूपू. (मृगनेणी चली गुर वंदन), ४८५७८-३ " יי जिनचंद्रसूरि गहुली, मु. कस्तूर, मा.गु., गा. १०, पद्य, मृपू., (सरसत सामिनी विन), ५१२६७-२ जिनचंद्रसूरि गीत, ग. समयहर्ष, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अंग उमाहउ अति घणउ), ५०५४७-२(+#) जिनचंद्रसूरि गीत, ग. समयहर्ष, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आज सुधन दिन माहरइ), ५०५४७-१(+#) जिनचंद्रसूरि जकडी, वा. कनकसोम, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू. (श्रीजिनवदन निवासिनी), ५०१३३-३(+४) जिनचंद्रसूरि जिनसिंहसूरि पद, पं. गुणविनय गणि, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (मेरइ रे सुगुरु की), ५०८९५-६ (+) जिनचंद्रसूरि भास, वा. चंद्र, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे. (आवौ सहेल्यां वांदीयै), ५१८१७(+#) जिनदत्तसूरि गीत, मु. क्षमाकल्याण, पुहिं. गा. ३, पद्य, मूपू., (सदगुरु की ध्यान हृदै), ५०८४६-३ जिनदत्तसूरि गीत, मु. जयचंद, रा., गा. १३, पद्य, मूपू., (जसु हरिदयकमल गुरुनाम), ५१९११-४(#) जिनदत्तसूरि गीत ग. साधुकीर्ति, मा.गु., गा. ८, पद्य, भूपू (करि कमलइ कमलासु वसइ), ५०९८८-१ , " कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१२ जिनदत्तसूरि गीत, ग. सूरचंद, मा.गु., गा. १७, वि. १२११, पद्य, मूपू., (आसापूरण कामगवी भवियं), ४९३६५-२ जिनदत्तसूरि छंद, मु. रूपचंद, फा., मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., ( केही गल्लांक पीयां), ५०८७९ जिनदत्तसूरि जिनकुशलसूरि स्तुति, पं. गुणविनय गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., ( राजनगरि गुरु चरण), ५०८९५-११) जिनदत्तसूरि जिनकुशलसूरि स्तुति, पं. गुणविनय गणि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सुगुरु कउ दरसन दिन), ५०८९५-२(+) जिनदत्तसूरि पद, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू.. (दादा चिरंजीवो सेवक), ५००२१-३(३) जिनदत्तसूरि सवैया, ग. ज्ञानतिलक, पुहिं. सवे. १, पद्य, मूपू., (जगमाहि जयउ जिनवत्त), ४९८८८-१० (क) " जिनदत्तसूरि सवैया, मु धर्मसी, पुहिं, सबै १, पद्य, मूपू (बावन वीर कीए अपने वस), ४८३११-५ (+) " . जिनपतिसूरि बधाई गीत, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (आसी नयरि वधावणउ आयउ), ५१५२५ जिनपालजिनरक्षित चौडालियो, रा. डा. ४, गा. ६८, पद्य, मूपू (अनंत चोवीसी आगे हुई), ५१०७६(४०), ५०४४३-१, ५०६७१-१ "" Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनपूजा अष्टक, पुहिं, गा. ११, पद्म, दि., (जलधारा चंदन पुरुष), ५०२९२-४ जिनपूजा नमस्कार पद, वा. जयसौभाग्य, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (आदर करी अरिहंतनी करो), ४९६१५-४ जिनपूजाफल स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु गा. १३, पद्य, मूपू (सरसती सामण समरी माय), ५०९१९(०) जिनपूजा महिमा, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (इम गायो रे जिन भाव), ५०५२८-४ जिनपूजाविधि छंद, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू. (सुविधिनाथनी पूजा), ५०७६४-२(+-०३) जिनप्रतिमा प्रतिष्ठा सज्झाय, मा.गु., गा. १५, पद्य, भूपू (जिनशासन नायक अरिहंत), ४८७१७(+) जिनप्रतिमा मतस्थापना सज्झाब, ग. गुणरंग, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू (सकल विमल जिनवर तणा), ४९९२१-१(१) जनप्रतिमा स्तवन, मु. मानविजय, मा.गु., ढा. २, गा. २१, पद्य, मूपू., (जिन जिन प्रतिमा वंदण), ४९१६०-२, ५०२९४-१(-#) जिनप्रतिमा स्तवन - सहस्रकूट, पं. रामविजय पाठक, मा.गु., गा. १७, पद्य, म्पू.. (सिद्धाचल हो तीरथराइ), ५१२२३-१(+) जिन प्रतिमास्थापना सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (जिन जिन प्रतिमा वंदन), ४८१८९, ४९१६०-३, ५१४८०-१, ५१३१६ (#) ', + जिनबिंबपूजा स्तवन, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (भविका श्रीजिनबिंब), ५०८६९-१ जिनबिंबप्रवेश विधि, मा.गु. गद्य, भूपू (हवें पूर्वोक्त शुभ), ५१२०७-१७) , जिनप्रतिमाहुडि रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ६७, वि. १७२५ पच, भूपू (सुवदेवी हीडे घरी, ४८६४३, ४८७१९ (६) , जिनबल विचार, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे. (सुणो वीर्य बोलु), ४९८५७-३(०) . For Private and Personal Use Only जिनबिंबप्रवेशस्थापना विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (बिंब प्रवेश विध जिण), ५१६४३ जिनबिंब संख्या -१२ देवलोक स्थित, मु. चंद्रविजय, मा.गु., ढा. ३, पद्य, मूपू., (जिनवर बिंब नमो भव), ४९०९९ जिनबिंबस्थापन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपु. ( भरतादिके उद्धारज), ४८४६९ Page #566 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ जिनभक्ति पद, मु. जिनदास, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (जिनचरण उपर गंद्रप), ५१०८५-२ जिनभद्रसूरि विज्ञप्ति, रा., गा. ११, पद्य, मूपू., (--), ५१९६३-१(६) जिनभवन ८४ आशातना नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्लेष्म न नांखे १), ५१५९२ जिनमंदिरदर्शनफल चैत्यवंदन, मु. विनयविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (प्रणमी श्रीगुरुराज), ५०३६९ जिनराजसूरि गीत, मु. समयप्रमोद, पुहिं., गा. ९, पद्य, मूपू., (ग्रह गण नायक संभले), ५०२७८-२(-) जिनराजसूरि गीत-आचार्यपद पदस्थापन गर्भित, मु. समयप्रमोद, मा.गु., गा. ९, वि. १६७४, पद्य, मूपू., (संवत सोल चिडोतरइरे), ५०२७८-१(२) जिनराजसूरि विनती, मु. भुवनकीर्ति, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (पंथीडा संदेसो जिनजीन), ५०९१४-१ जिनलाभसूरि भास, रूपचंद, रा., गा.७, पद्य, मूपू., (देसडलै पधारो म्हारा), ५००३७ जिनवंदनफल स्तवन, मु. कीर्तिविमल, मा.गु., गा.११, पद्य, मूपू., (जिन चोवीसे करु),५०६२५ जिनवंदनविधि स्तवन, मु. कीर्तिविमल, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सयल तीर्थंकर करु), ४९५५१, ५०७१८-१(#) जिनसहस्रनाम स्तोत्र, जै.क. बनारसीदास, पुहि., शत. १०, गा. १०१, वि. १६९०, पद्य, दि., (परम देव परनाम करि), ४८९०१-१(+) जिनसागरसूरि गीत, मु. राजसुंदर, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (जीहो प्रह उठी प्रणमु), ४८३१०(+) जिनागमभक्ति पद, पुहि., गा. ६, पद्य, श्वे., (टुक दिल ही चसम खोल), ५१२५९-२(+) जिनेंद्रसूरि गहूंली, मु. वल्लभसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (चालो सहेली सहु मिलि), ४९२०८-२ जिनेंद्रसूरि सज्झाय, मु. वल्लभसागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (आज गच्छराज महाराज), ४९२०८-१ जीव आयुष्यविचार सज्झाय, मु. भावसागर, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (गुरु चरण कमल प्रणमीन),५१५३९ जीव कालस्थिति विचार, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (पर्याप्तो असन्नीयो), ५०२८९ जीवदया सज्झाय, मा.गु., गा. २६, पद्य, श्वे., (सयल जिणेसर करुं प्रण), ५०२१८-१(#) जीवविचार सज्झाय-चतुर्गति गर्भित, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, पू., (ऋषभादिक जिनवर चउवीस), ५०२८२ जीव स्वभाव विचार, पुहि., गद्य, श्वे., (१ सिंह १ साहिसिक १), ४८७३२-२ जीवहित सज्झाय-गर्भावासगर्भित, मु. क्षमाविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (गरभावासमे चिंतवइ है), ४९०७८-२, ५०४६०-२(#) जीवोत्पत्तिकारण सज्झाय, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मपू., (उतपति जोइनइ आपणी), ५०००७-३($) जीवोत्पत्तिस्थान विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (काचा दूध माहे), ५०९१८-३ जैनकाव्य संग्रह, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), ५१४०४-४, ५११७३-२(#), ५१३५९-३(#), ५१८९८-३-#) जैन गाथा, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ५१४५५-४ जैनधर्म दीपक सज्झाय, उपा. मेघविजय, मा.गु., अ. ३, गा.४५, पद्य, मूपू., (अरिहंत धरम प्रथम), ५१५६७(#) जैनयंत्र संग्रह(कोष्ठक), मा.गु., यं., मूपू., (--), ४८९६५-१, ४९१७०-३, ५०८९४-२, ४९२३४-२(#) जैनलक्षण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., गा.१०, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (जैन कहो क्युं होवे), ४८५२४, ४९७४२-२ ज्ञान धमाल, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (चेतन ना गर हो चेतन), ४९२५२-१ ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवंदन, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (त्रिगडे बेठा वीर), ४९७८९-१(+$), ५२०१०-२ ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीसौभाग्यपंचमी), ५१४१७ ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. २५, पद्य, मूपू., (प्रणमुं श्रीगुरु पाय), ५००१५-१(+), ४८२१०, ४८३५९-१, ४८९५९, ५१२५५-४, ५०२२३(#), ५०८४९-१(#), ५१६६०-१(#), ४९६४३($) ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, मु. अमृत, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (अनंतसिद्धने करूं), ४८९९६, ५०५२४, ४९९६५(#) ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., ढा. २, गा. १५, पद्य, मूपू., (सयलमति संपजइ नेमजिन), ५०९८२(#) ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, उपा. देवविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सद्गुरुना प्रणमुं), ५१४१०-३(#) ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., ढा. ५, गा. १६, पद्य, मूपू., (श्रीवासुपूज्य जिणेसर), ४८२३८(+), ४८३९३, ४८७००, ५०५८४-१, ४८७३१(#) For Private and Personal Use Only Page #567 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१२ ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ४९, पद्य, मूपू., (प्रणमी पास जिणेसर), ४९३९१(+), ४९५३०, ५०३०५, ५११८६, ४९४५९(#) ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ६८, वि. १७९३, पद्य, मूपू., (सुत सिद्धारथ भूपनो), ४९२३२ ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (थुणिमु श्रीनेमिजिण), ५१२३४(#) ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, उपा. राजरत्नविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (नेमीसर समुद्रविजयसुत), ४८९३५-२(#) ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन-लघु, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पंचमीतप तुमे करो रे), ४८४१५-१, ४९५५३, ४९५५५-१,५०८०७-२, ५१३९३, ५०२३५-७(#$) ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, पंडित. देवचंद्र, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सौभाग्यपंचमी पर्व), ५०४७१-२ ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीतीर्थंकर वीर), ५०१४१-२ ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, ग.सुजयसौभाग्य वाचक, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रावण शुदिनी पंचमी), ४९६१५-३ ज्ञानपच्चीसी, जै.क. बनारसीदास, पुहि., गा. २५, वि. १७वी, पद्य, दि., (सुरनर तिर्यग जग जोनि), ४९५३६, ५१३२९, ५००७३-२(#), ४८५९७(६) ज्ञानपद पूजा, मा.गु., प+ग., मूपू., (ज्ञान स्वभाव जे जीवन), ४९०६९ ।। ज्ञानविमलगुरु गहुली, मु. सुखसागर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सोभागि सदगुरु दिउ), ५०४५७-१(#) ज्योतिषसार, पंन्या. हीरकलश, मा.गु., त. २, गा. ९१६, वि. १६२७, पद्य, मूपू., (सहगुरु सांनिधि सरस्व), ५१७२६(#$) ज्योतिषसारणी संग्रह, अज्ञा., को., ?, (--), ५१५३३-२(+#) ज्वर छंद, मु. कांति, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (ॐ नमो आनंदपुर अजयपाल),५१५४२(+#), ४८७९१ ज्वर छंद, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (ॐ नमो आनंदपुर नगर), ५०६५३-१(+), ४८८११-१, ५०३२९ ज्वर छंद, मा.गु., गा. १६, पद्य, जै., (नमो आनंदपुरनगर अजयपा), ४८३७२ ज्वर मंत्र, मा.गु., गद्य, श्वे., (ॐ नमो ज्वर हुंजा), ४८८११-२ झांझरियामुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु., ढा. ४, गा. ४३, वि. १७५६, पद्य, मूपू., (सरसति चरणे शीश नमावी), ४८६०३(#), ५१८३३-१(#) झाझरियामुनि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ३८, पद्य, मूपू., (महियलिमाहि मुनिवर), ५०४६२ झांझरियामुनि सज्झाय, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ७८, वि. १६७७, पद्य, मूपू., (सरस सकोमल सारदा वाणी), ५१८२१-१(#) टाकरिया पच्चीसी, मा.गु., गा. २५, पद्य, श्वे., (लांबा जुहार करे), ५१९८८-४(-#$) ढंढणऋषि सज्झाय, आ. कल्याणसूरि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (शासन श्रुतदेवी सेवी), ५०३०८(+#) ढंढणऋषि सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (ढंढणऋषिने वंदणा), ४८७६३-१(+), ४८५५४-१, ५१४८५-६, ५०९९९-१(#) ढंढणऋषि सज्झाय, मु. प्रेम, मा.गु., गा. २१, पद्य, श्वे., (प्रथम जिनेशर वादिने), ४९०६७ ढंढणऋषि सज्झाय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (क्रसन नरसर पुछीयो जी),५१३०९(#) ढुंढक औपदेशिक पद, श्राव. रामचंद्र, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (सदा मुज सूत्र लगे), ४९०९७-२ ढुंढकपच्चीसी-स्थानकवासीमतनिरसन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (श्रीश्रुतदेवी प्रणमी), ४८४३०(+) ढुंढक पद संग्रह, श्राव. रामचंद्र, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (कोइ निंदा मत करो), ४९०९७-१ ढुंढक रास, मु. उत्तमविजय, मा.गु., ढा. ७, वि. १८७८, पद्य, मूपू., (सरसती चरण नमी करी), ४९३९६(5) ढुंढियाउत्पत्ति चौढालियो, मु. हेमविलास, मा.गु., ढा. ४, गा. ९६, वि. १८७६, पद्य, मूपू., (सरसति माता समरि करि), ५०३०७-१ ढुंढियामत खंडण दोहा, मु. रतन, पुहिं., दोहा. ५, पद्य, मूपू., (मुहडै बांधै मुहपत्ती), ५०३०७-२ ढूंढीया कौ बैदो, रा., गा. २२, पद्य, श्वे., (मर्दोरा भी बैहदा बेह), ५११६३(#) णमोत्थुणं गीत, मु. विनयचंद, पुहि., गा. ९, पद्य, श्वे., (श्रीमहावीर धीर वीरो), ४८२४८-४ तपसीपच्चीसी, मु. धनसीराम, रा., गा. २७, वि. १८९९, पद्य, श्वे., (धन धन धन श्रीसेवगराम), ५०६१२ तमाकू गीत, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (समकित लक्ष्मी पामी), ४९८३९-१, ५०३७५, ५०२०४-१(६) For Private and Personal Use Only Page #568 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५१ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ तमाकू परिहार सज्झाय, ग. उत्तमचंद, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (प्रीतम सेती वीनवइ), ५१८११-१, ४९९०७(#) तारातंबोल नगरी वार्ता, मा.गु., गद्य, श्वे., (संवत १६८४ वर्षे महा), ५१४२३(2) तिष्यकुरुदत्त सज्झाय, उपा. मानविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (चोखइ चित्तइ चारित्र), ५२००१-२(#) तीर्थंकर परिवार सज्झाय, मु. सुखलाल ऋषि, मा.गु., गा. १४, वि. १८३६, पद्य, श्वे., (राजाराणीरो कटुंबो), ४८२०६ तीर्थंकरबल वर्णन, मु. केशव, मा.गु., गा. २, पद्य, श्वे., (वार पुरुष बलवान वृषभ), ४९२४६-१(#) तीर्थंकरबल वर्णन श्लोक संग्रह, मु. धर्मसंघ, मा.गु., पद्य, श्वे., (बार पूरष बलमान सबल१), ५१३५३-२ तीर्थमाला स्तवन, मु. जयसागर, मा.गु., गा. ५५, पद्य, मूपू., (सरस्वती मात नमी कहूं), ४८८३७ तीर्थमाला स्तवन, ग. दयाकुशल, मा.गु., गा. ४८, वि. १६४८, पद्य, मूपू., (पहिलुं प्रणमुंभाव), ५०११६-१(+) तीर्थयात्रावर्णन स्तवन-विमलमंत्रीकारापित, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (श्रीपाटण में पांचासर), ५०७९५(+#) तृष्णा सज्झाय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (क्रोध मान मद मच्छर), ४८३४८-२(+) त्रिपुरा माता अमृत ध्वनि, सदारंग पंडित, मा.गु., गा.५, पद्य, वै., (गन चित्त महि अति), ५०९१०-२ त्रिशलामाता १४ स्वप्न स्तवन, मु. कहान, मा.गु., पद. ४, पद्य, श्वे., (स्त्रीए सफल सुपन), ४९९७९ त्रिषष्टिशलाकापुरुषविवरण व नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (९ वासुदेव. ९ बलदेव.), ४८९८९-१ थावच्चाकुमार चोढालीयो, मु. हर्ष, मा.गु., ढा. ४, गा. ५६, वि. १७९५, पद्य, श्वे., (द्वारामती नयरी वसो), ४८८६७ दयापच्चीसी, मु. विवेकचंद, मा.गु.,गा. २५, पद्य, मूपू., (सयल तीर्थंकर करु रे), ५०३४४-२($) दयाबत्तीसी, मु. सोभचंद ऋषि, मा.गु., गा. ३३, पद्य, श्वे., (परम पुरुष पय अनुसरी), ४९४०८-२(#) दलाली सज्झाय-धर्मदलाली, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मूपू., (दलाली इस जीवन कीधी अ), ५०१५५(#) दश मुंड नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (श्रौतेंद्रिय मुंड चक), ४८५७२-२ दशवैकालिकसूत्र सज्झाय-अध्ययन १, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीगुरुपदपंकज नमीजी), ५१४६६-१ दशार्णभद्रराजर्षि चौपाई, मु. कुशल, मा.गु., ढा. ४, वि. १७८६, पद्य, मूपू., (सारदमात मनरली समरु), ५१२८२-१(+) दशार्णभद्रराजर्षि सज्झाय, पा. धर्मसिंह, मा.गु., ढा. ६, वि. १७५७, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर वंदिने), ५०४७३(#) दशार्णभद्र सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सारद बुधदाइ सेवक), ५०१३५(+#), ५१०९८(#) दशार्णभद्र सज्झाय, मु. वीरविजय, मा.गु., ढा. ५, गा. ६२, वि. १८६३, पद्य, मूपू., (पंकजभूतनया नमी), ४८८१० दान के १० प्रकार विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (अणुकंपा दाणे कृपण), ५१४४४-४(#) दानशीलतपभावना चौपाई, मा.गु., पद्य, मूपू., (श्रीजिनसासनि जिण जयउ), ५०७१७(+#$) दानशीलतपभावना प्रभाति, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (रे जीव जिन धरम कीजीय), ५१७५३-२, ४९२४६-३(#) दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ४, गा.१०१, ग्रं. १३५, वि. १६६२, पद्य, मूपू., (प्रथम जिनेसर पाय), ४९३२२(+$), ४९६१६(+), ५०१७४(+#), ५०३३३-१(+#), ५१६९७, ४९४३९(#S), ५०७०६(#$), ५१५३८(#), ५१९२५(#), ५१९३९(2) दानशीलतपभावना सज्झाय, मु. रामविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (अरिहंत देवने उलख्यो), ५०६०२-२(+) दानाधिकार सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (समरूं सरसति सामिणीजी), ५१३५४-१(#) दिनमान चौपाई, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (सरसति सामिणि समरी मा), ५०३७३-२(#) दिपावलीपर्व स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (मारे दीवाली थई आज), ५११५६-१ दिशा आदि २७ द्वार अल्पबहुत्व विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (दिसि गति इंदिय काए), ५०७४८ दीपावलीपर्व चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (ईद्रभूति पहीला भणु), ४८९६६-९ दीपावलीपर्व चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (दुःखहरणी दीपालिका रे), ४८९६६-१४ दीपावलीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., वि. १८वी, पद्य, मूपू., (वीरजिनवर वीरजिनवर), ४८९६६-२, ५१४७९ दीपावलीपर्व पद, बिहारीदास, पुहिं., गा. १, पद्य, वै., (आई ए दिवाली भैडी), ५०५९४-३(+) For Private and Personal Use Only Page #569 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५५२ www.kobatirth.org दीपावलीपर्व सज्झाय, मु. कुसल, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (दिवाली दुसमन दुखदाई), ५०५९४-२ (+) दीपावलीपर्व सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (भजन करो भगवंत रो गण), ५०५९४-१(+) दीपावली पर्व स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूपू ( श्रीमहावीर मनोहरु), ४८९६६-७ दीपावलीपर्व स्तुति, पंडित, देवचंद्र, मा.गु, गा, ४, पद्य, भूपू (ए दीवाली मंगलमाली), ४९३७७-२ " , दीपावली पर्व स्तुति, मु. भालतिलक, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (जयजय कर मंगलदीपक), ४८७६१-४, ४९८६०-३) दीपावलीपर्व स्तुति, मु. रत्नविमल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सासननायक श्रीमहावीर), ५०२९२-१(-) दूहा संग्रह, पुहिं., मा.गु., पद्य, जै. ?, (गांमंतरुं घर गोरडी), ५१७९२-४(#) दृष्टांत छत्तीसी, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., गा. ५७, पद्य, मूपू., (श्रीगुरु को शिक्षा व), ५१७६५ (+) दृष्टिरागनिवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ११, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (दृष्टि रागइ विरागीइ), ५१००६ देवदत्ता चौपाई, मु. रत्नधर्म, रा., ढा. ७, वि. १८९१, पद्य, श्वे., (एकादसमा अंग मै नवमो), ५२०४८ (+) देवमनुष्यादि उदयस्वामी भांगा संग्रह, मा.गु, गद्य, मूपू (२१ना उदयना स्वामी), ४८३६६ (+) देवसूरि लेख, मु. उदयविजय, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीजिनपय नम), ५०२६१ देवानंदा माता विलाप, मा.गु., गद्य, मूपू., (हिवै मनमांहि चिंतवै), ४९५१२-१(+) देवानंदा सज्झाय, उपा. सकलचंद्र गणि, पुहिं., गा. १२, पद्य, मूपू., (जिनवर रूप देखी मन), ४९१९० -१, ४९८३१-१, ५०५४८, ५१६७९-१, ५११८२(#) दोहला अधिकार, मा.गु., गद्य, श्वे., (गर्भवंतस्त्री आंख्या), ५१८६९ दोहा संग्रह, पुहिं, पद्य, (ओस ओस सबको कहें मरम), ४८८९७-२, ५०१२३-३, ५१२८४-२, ५१८०९१, ५१२७२-२ (१) " दोहा संग्रह, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (दसे बालो वीसे भोलो), ४९९२३-५, ५०२२०-३, ५१४३९-२(#), ४९८५०-२ ($) दोहा संग्रह, मा.गु., पद्य, (सजन तोरा गुण घणा), ४९९४७-२(+४६), ४९८६०-७(-) द्रौपदीसती कथा - पंचमअछेरा कृष्ण अमरकंकागमन, मा.गु., गद्य, मूपू., ( द्रोपदी पाछलै भवै), ५१६३०(#) द्रौपदीसती सज्झाय, मु.मयाचंद, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (आव्या नारद मुनिवर), ४८७३३, ५०४५० द्रौपदीसती सज्झाय, मा.गु, गा. २१, पद्य, मूपू (चंपानगरी बखाणीइजी) ५१४०७-२२+०१ द्वादशभाव फल, फा., गा. ४, पद्य, (मालखानै चस्मकोरा), ५१८४७-१ "" (२) द्वादशभाव फल-टबार्थ, मा.गु., गद्य, (धन भवन शुक्र होइ), ५१८४७-१ धन्ना अणगार ढाल, ऋ. चोथ, पुहिं, डा. ७, पद्य, वे (अरिहंत सिध साधां भणी), ४९३२५ " יי कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१२ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धन्ना अणगार संधि, उपा. कनकतिलक, मा.गु., गा. ६५, पद्य, मूपू., (समरीय समरसतणउ निहाण), ४९९५६(#) धन्नाअणगार सज्झाय, मु. अमरविजय, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (वीर वचन चित्तधारी), ४८६१९ धनाअणगार सज्झाय, आ. कल्याणसूरि, मा.गु., ढा. २, गा. १५, पद्य, म्पू., (काकंदीवासी सकज भद्रा), ४८४०१ धन्नाअणगार सज्झाय, मु. ठाकुरसी, मा.गु., गा. २२, पद्य, श्वे. (जिनवाणी रे धना अमीय), ५००७३-६(#) धन्ना अणगार सज्झाय, मु. श्रीदेव, मा.गु. गा. १२, पद्य, मूपू (जिनवचने वयरागी हो), ५०२१०-१(+), ४८३९४, ५२०१९-१ (४), ५११८०-१(३) धन्ना अणगार सज्झाय, मु. सिंघ, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (सरसति सामिनि वीनवु), ५००१३-३ " धन्नाकाकंदी सज्झाय, मु. तिलोकसी, मा.गु., गा. २२, पद्य, श्वे. (श्रीजिनवाणी रे धन्ना), ५१५३०-२, ५०९४०-१(#) धनाकाबंदी सज्झाय, मु. विद्याकीर्ति, मा.गु., गा. ७, पद्य, भूपू (धन धन्नो ऋषि वंदीय), ५१४८५-४, ५०२३५-२(क) धन्नाकाकंदी सज्झाय, श्राव. संघो, मा.गु. गा. १४, पद्य, वे. (सरसति सामिणी विनवु), ५१३९५ " For Private and Personal Use Only धन्नाकाकंदी सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवाणी रे धना ), ४९८३५-३ धन्नाकाकंदी सज्झाय, रा. गा. ६, पद्य, वे. (मुनिवर धनाजी महाराज), ५०७४७-२ धन्नाशालिभद्र गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (धन्नौ सालिभद्र बेउ), ४८४३२-२ (+) अनाशालिभद्र सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, भूपू (अजीया जोरावर कारमी), ४८९३४-२(४) " धन्नाशालिभद्र सज्झाय, उपा. उदय वाचक, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., ( अजिया मुनि० वैभारगिर) ५०५५८-१, ५०५६३-२०१ Page #570 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २ " अन्नाशालिभद्र सज्झाय, मु. कर्मचंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू (श्रेणिक वछ ताहरड़ घरि), ५१६२१-३(+) धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (धन धन धन्ना सालिभद्र ), ४८८१७-३ धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (धन धन धनो सालभद मुन), ५००४४-२ (+S) धर्म आराधना सज्झाय, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (धर्म धर्म बहुला कहे), ५१९८० धर्मकरणी बारमासो, श्राव. कवियण, मा.गु. गा. १३, पद्य, श्वे. (असाढ मासे रे उनइवो), ४९९८०-१ धर्मजिन कवित्त, मु. उदय, पुहिं., गा. १, पद्य, श्वे., ( आनन जास अनोपम राजत), ५०३६१-२ धर्मजिन गीत, मु. केसर, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (आज अम्हारे अंगणि सुर), ४८६२२ . धर्मजिन गीत, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., गा. ४, पद्य, भूपू., (मोरा स्वामी रे सुणो), ५०३७१-४(१ धर्मवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (धरमजिनेश्वर गाउं रंग), ५१७१५-३ (+), ४८५४५ धर्मजिन स्तवन, पंडित. खीमाविजय, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., ( इक सुणलौ नाथ अरज), ४८९६३-५ (+), ४८२५९-६(#) धर्मजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (हां रे मारे धरमजिणंद), ४८७९० धर्मजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १४, वि. १८२२, पद्य, श्वे., (रतनवंती नगरी अति), ५२०४९-१(+) धर्मजिन स्तवन, उपा. समवसुंदर गणि, पुहिं. गा. ३, पद्य, मूपू., (अलख अगोचर तू), ५०८८५-७(+) , भावना, मा.गु., गद्य, श्वे., ( धन्य हो प्रभु संसार), ५१३७८, ५१५२७ " धर्ममूर्त्तिसूरि गीत, मु. मंगल ऋषि, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे. धर्ममूर्तिसूरि गीत, मु. मंगल ऋषि, मा.गु., गा. ४, पद्य, वे. " (आवु रे सखी गुरु वंदी), ४९९०१-१ (वंदिनिजी तुमइ भाव), ४९९०१-३ (सारद माय तुझ विन), ४९९०१-२ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " धर्ममूर्तिसूरि गीत, मु. मंगल ऋषि, मा.गु, गा. ५, पद्य, वे धर्मरुचिअणगार सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (धर्मरुचि मुनिवर भणी), ५०१०९-२ ध्यानवत्रीसी, श्राव. बनारसीदास पुहिं. गा. ३६, वि. १७वी, पद्य, दि. (ग्वान सरूप अनंतगुन), ५१७७५ नंद बहुत्तरी, मु. जिनहर्ष, मा.गु, गा. ७३. वि. १७१४, पद्य, मूपु. ( सचैनवर सिरि सेहरो), ५१९५७(१) 1 . नंदिषेणमुनि रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु. बा. १६. ग्रं. ४२१, वि. १७२५, पद्य, म्पू, (सुत सिद्धारथ भूषनो), ४९०५९०) नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. गंग कवि, मा.गु. गा. १३, पद्य, श्वे. (मुनिवर महियल वीचरै), ५०२०६ (४) , " (वालिंभ विनता वीनतडी), ५१०१२-१ יי नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. चंद, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. जिनराज, मा.गु. गा. १०, पद्य, मूपू., (साधुजी न जइए रे परघर), ४८२३२-१(+), ५०८७६-४, ५१४५९०१ नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. दशरथ, मा.गु.. गा. ११, पद्य, मूपू. (नंदिषेण नयर मझार), ५१६७४, ५११००(१) ५१६६८) नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. १६, पद्य, मूपू., (राजगृही नयरीनो वासी), ४८६५५-२(+), ४९९८८-१(+), ४८१९२, ४८१९६, ५०९८१ नंदी भास, मा.गु., गा. ४, पद्य, भूपू ( वेशाख सुदि एकादसी), ५०८६४-१ " नंदीश्वरद्वीपजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (नंदिसर वरद्वीप संभार), ५१०५२-२ नंदीश्वरद्वीप विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (पूर्व दिसइ दिव रमणि), ५१५३४ "" नंदीश्वरद्वीप स्तवन, मु. जैनचंद्र, मा.गु गा. १५, पद्य, भूपू (नंदीसर बावन जिनालये), ४९८४४-३, ४८२५९-२(१) नंदीश्वरद्वीप स्तवन, पं. हेमहंस गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (नंदीसरदीविहि मणहराई), ४९१७७-१ नमस्कारचौवीसी, मु. लखमो, मा.गु., गा. २५, वि. १६वी, पद्य, श्वे., (पढम जिणवर पढम जिणवर), ४८९२७ नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु गा. १८, वि. १७वी, पद्य, मूपू. (वंछित० श्रीजिनशासन), ४८३८७, ४९६७२, " ४९५५२-१(३) नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू (सुखकारण भवियण समरो), ४८४२२-१ नमस्कार महामंत्र छंद, क. लाधो, मा.गु, गा. १८, पद्य, वे (भोर भयो ऊठो भवि), ५०८३३-१(०) "" नमस्कार महामंत्र पद, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., गा. १३, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (किं कप्पतरु रे आयाण), ५१४७४-१(+#) नमस्कार महामंत्र रास, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (पहिलो लीजि), ४९००४, ४९२८९-१, ४९८६५-१ नमस्कार महामंत्र रास, मा.गु., गा. ११९, वि. १६२१, पद्य, मूपू., (सकल मनोरथ पुरवो त्रि), ५०१७३ For Private and Personal Use Only ५५३ Page #571 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१२ नमस्कार महामंत्र रास, मा.गु., गा. २५, पद्य, भूपू (सरसति सांमिने दो मुझ), ४९९८३, ५००६५ नमस्कार महामंत्र सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू., (ए पंचपरमेष्टि पद), ५१३५६-६ नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. प्रभुसुंदर शिष्य, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सुखकारण भवियण समरो), ५०६८० (+), ५००७३-४(#) नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (कहेजो चतुर नर ए कोण), ५१४८५-५ नमस्कार महामंत्र सज्झाच, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, भूपू (बार जपुं अरिहंतना), ४८३९० (+), ४८७२७/(१), ४९३२७-२(०३), ५०९८८-५) नमस्कार महामंत्र स्तोत्र, मु. पद्मराज, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., ( श्रीनवकार जपो मनरंग), ५००७२-२, ५०४७०-२ नमिजिन स्तवन, मु. अमृत, पुहि., गा. ५, पद्य, थे. (सीबत० नमीजन सीव ए), ४८४७५-७६) नमिजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (छइ दुखि हुं तुम्हनइ), ५११५८-७/१ नमिराजर्षि ढाल, ऋ. आसकर्ण, मा.गु., डा. ७. वि. १८३९, पद्य, वे (सासण नायक समरीये), ५०४५९ नमिराजर्षि रास, ग. समयसुंदर, मा.गु. बा. १६, पद्य, भूपू (--), ५१८७मा " नमिराजर्षि सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (जी हो मिथिला नगरी), ५१०५७-२ मिराजर्षि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु गा. ८, पद्य, मूपू (जी हो मिथीला नगरीनो), ४९८०५-२, ५०१७९-५ (०६) " मिराजर्षि सज्झाच उपा. समवसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (नयर सुंदरसण राय हो), ५०२०५-२ नरक विचार, मा.गु., गद्य, श्वे. (पहिली नरग एक लाख), ४८४८१-१(+$) " नरकविस्तार स्तवन, मा.गु., ढा. ६, गा. ३५, पद्य, मूपू., (वर्द्धमानजिन विनवुं), ४८८५३ (+), ४८७२४, ५१७८९ नलदमयंती रास, मा.गु., गा. ६३, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (सरसति सामणि सुगुरु), ५०९९४(१) नवअंगपूजा दुहा, मु. वीरविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (जल भरी संपुट पत्रमा), ४८२५७-२ नवकार प्रभाती स्तवन, क. जगमाल, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (पहेले पद नमुं अरीहंत), ४८४४६-१(#) नवकारवाली स्तवन, मु. रिषभदास, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू (श्रीनवकार मन ध्याइये), ५०८००-२१ नवकार संगीत पद, मा.गु., गा. १, पद्य, वे., (रण चरतखां नवकारवली), ५१२९०-३ नवकार सज्झाय, मु. आनंदहर्ष, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (श्रीनवकार महिमा घणो), ४९२४१-२(+) नवकार सज्झाय, गोपाल, मा.गु, गा. ४, पद्य, वे (भवजल तारणो जयनवकारो), ४८९२६-१(४) १०-३(#) " नवग्रह दशदिक्पाल पूजन कोष्टक, मा.गु., को., श्वे., (--), ४८९७२ नवग्रह यंत्र, मा.गु., को., (-), ५१७७६-१ नवग्रहशांति पूजा विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., ( प्रथम स्नान तेल कंको), ४९५०३-२ नवतत्त्व २७६ भेद विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवतत्त्व १४ भेद), ५१०५५-४ (+), ४८७५६ (S) नवपद गहुली, मु. आत्माराम, मा.गु., गा. ७, पद्य, वे., (सहियर चतुर चकोरडी), ४९६२८-२ (#) नवपद गहुली, मु. शुभविजय, मा.गु. गा. १०, पद्य, मृपू. ( आतमरामी मुनिराजीया), ४९०१६ नवपद चैत्यवंदन, मु. विनयविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सिद्धचक्र आराधतां), ५१०५६-१(+#) नवपद नमस्कार, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. २१, पद्य, भूपू (नमोनंत संत प्रमोद), ४८९२१(०) " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नवपद महिमा सज्झाय, मु. विमलविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सरसती माता मया करो), ५००७६, ५१५५० नवपद वासक्षेप पूजा स्तवन, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (अरिहंत पद ध्यातो थको), ५१०७४ नवपद स्तवन, मु. कुशल, पुहिं., स्त. ९, गा. ४५, पद्य, मूपू., (तेरम गुण वसकै कंत), ५१८८३-१(+) नवपद स्तवन, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (तीरथनायक जिनवरू रे), ४८२६२-२ (+) नवपद स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु., गा. २३, वि. १७६२, पद्य, मूपू., (सकल कुशल कमलानो), ४८५२१ नवपद स्तवन, पंन्या पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, म्पू, (बारगुणे अरिहंत नम), ५०७८०-३ नवपद स्तवन, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (नवपद के गुण गाय रे), ४८६३०-३ नवपद स्तवन, मा.गु. गा. ६, पद्य, म्पू. (शासननायक सुखकरु रे), ४८६४९ नवपद स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (अरिहंत सिद्ध आचार्ज), ५११८९-३(#) For Private and Personal Use Only Page #572 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ नववाड सज्झाय, मु. केशरकुशल, मा.गु., ढा. ९, वि. १८वी, पद्य, म्पू., (वीर जिणेसर इम भणे), ४९५२० नववाड सज्झाय, मु. पुण्यसागर, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (श्रीजिनशासन नंदनवन), ४९९२५ (+#) नववाड सज्झाय, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (अस्त्रीपसु पिंडकतणा), ५०११३-२(2) नववाड सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (नववाड सही जिनराज), ५१७६२ नागकेतु कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (चंद्रकाता नाम नगरी), ५०६३३ नागिलाभवदेव सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (भवदेव भाई घेर आवीया), ४८७०९-१, ४९२२९, ४९२४४-२ नाटकपच्चीसी, मा.गु., गा. २५, पद्य, श्वे., (कर्मना नृत तारिकै भय), ५१३५९-२(2) नारकी १५ भेद, मा.गु., गद्य, मूपू., (अधरमी ते १५ भेद अबे), ४९१६५-४ नारीगुण सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (सर्व सरीखा नर नही सर), ५१३२० नारीनिरास फास, मा.गु., गा. २६, पद्य, श्वे., (रति पहुती मधुमाधवी), ५०१८६(+) । (२) नारीनिरास फास-टीका, सं., गद्य, श्वे., (सकल कमलाकेली धाम),५०१८६(+) नारीनेहनिवारण पद, मु. रायचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (अहो लाला नारी नेह), ५१८९५-२ नारी प्रहेलिका हरियाली, वा. गुणविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (एक नारी आती दीपती रे), ५१८९०-२(#) नारी सज्झाय, पुहि., गा. २३, पद्य, मूपू., (मूरख के भावै नहीं), ५०७८८-१(-) नालंदापाडा सज्झाय, मु. हरखविजय, मा.गु., गा. २१, वि. १५४४, पद्य, मूपू., (मगध देशमाही बिराजे), ५०१३१(-2) निंदा परिहार सज्झाय, मु. लब्धि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चावत म करो परतणी), ५०४९०-३ निर्मोही ढाल, मु. रतनचंद, मा.गु., ढा. ५, वि. १८७४, पद्य, श्वे., (निरमोही गुण वरणवू), ५०५७१,५०७४३ निश्चयव्यवहार सज्झाय, आ. हंसभुवनसूरि, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (श्रीय जिनवर रे देशना), ५०५०९ नीगइराय-प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (पुंडपुर वर्धन राजीयो), ५०२०५-३ नीलवणि नाम, मा.गु., गद्य, श्वे.?, (नालेरनीला सोपारी), ४८४९२-५(+) नेमजिन पद, मु. लालचंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (देखो नेमनाथ की वातै), ४९२५२-२ नेमजिन भ्रमर गीत, उपा. उदयविजय, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूपू., (भारती भगवती चित्तआणी), ४९७९७ नेमराजिमति पद, पुहिं., गा. १, पद्य, श्वे., (जरद अंग रंग बंग जरद), ४८६१४-३ नेमराजिमति सज्झाय, मु. केवलविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (राजुल गोरी बेठां छे), ४८२०३ नेमराजिमति सज्झाय, मु. धरम, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (जिणजी तो जिणजी मेहे), ४८२३४-२ नेमराजिमति हरियाली, मु. कवियण, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सहस सखीने झूलरे जी), ४८४२४-१(+) नेमराजिमती गीत, मु. अमर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सहीयां मोरी करुं निह), ५०८४१-१ नेमराजिमती गीत, मु. आणंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (केडवो कंतो बसु निहाल),५०७८७-४(-) नेमराजिमती गीत, ग. आनंदनिधान, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (ऊभी जोवुरे वाट कदि), ५०८४१-२ नेमराजिमती गीत, मु. गोपाल, पुहिं., गा. ७, पद्य, श्वे., (नेमि पियारा लाल समुद), ५१७२२-२(#) नेमराजिमती गीत, मु. चतुरऋषि, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (राजुल कहइ सुणि नेमि), ४८४१९-१ नेमराजिमती गीत, मु. जिनवर्द्धमान, मा.गु., गा. ८, पद्य, मपू., (जीव करीने जाणती वलि), ५०७०३-३ नेमराजिमती गीत, ग. जीतसागर, पुहि., गा. १५, पद्य, मूपू., (तोरण आया हे सखी कहे), ५०५२९-१(#$), ५०७७२-२(-), ५१५५६-३(-2) नेमराजिमती गीत, मु. नवल, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सरस सुजन सामी सामलु), ५१३५३-१ नेमराजिमती गीत, मु. भद्रसेन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (रायकुंयरि लीला लहरि), ५११५७(#) नेमराजिमती गीत, मु. रामविजय, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (सुन साई प्याराबे), ५०९१८-१ नेमराजिमती गीत, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (मोहल चढि माहरा नाथनी), ५११०८-५(#) नेमराजिमती गीत, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा.५, पद्य, म्पू., (सामलीआ घर आव कि राजु), ४८२७६-१,५०१९३-१(#) For Private and Personal Use Only Page #573 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१२ नेमराजिमती गीत, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (संयम नवरंग कंचूउ), ४९१७५-१ नेमराजिमती गीत, रा., गा. १२, पद्य, मूपू., (समदवीजजीरा लाडला रे), ४८६५२(-) नेमराजिमती घग्घर निसानी, मु. प्रेम, पुहि., गा. २३, पद्य, मूपू., (श्रीजिणनायक संपति), ५०७२६ नेमराजिमती नवरसो, मु.रूपचंद, मा.गु., ढा. ९, गा. ४०, पद्य, मूपू., (समुद्रविजय सुत चंदलो), ५०२६० नेमराजिमती पद, मु. चंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (यादव मन मेरो हर लीयो), ४८९६३-४(+), ४८२५९-५(#), ५१२७४-१०(#) नेमराजिमती पद, मु. जिनदास, रा., गा. ४, पद्य, श्वे., (मे तो थान जाणछांजी),५१४७०-१(१) नेमराजिमती पद, मु. धर्मभूषण, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (मन कोई नेमिजी मिलावै), ४९४८२-९(#) नेमराजिमती पद, मु. प्रमाणसागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (नव भव केरी प्रीत), ४८२१८-१,५०५०८-२ नेमराजिमती पद, पंन्या. भूधर, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (री माय विलम न लाय), ४९२५२-३ नेमराजिमती पद, मु. राज, पुहि., गा. ३, पद्य, श्वे., (दीया दरसण देअइ ए), ५१७२२-३(#) नेमराजिमती पद, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (मत जाओरे पीया तुम), ५१४७८-४(+#), ५०७९२-१(2) नेमराजिमती पद, मु. शिवरतन, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (बावीस सुभटने जीपवा), ४९१६३-२(+) नेमराजिमती पद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (चंद्र मंडल दोइ मृगले), ४८१८१-२() नेमराजिमती पद, मु. हरखचंद, मा.गु., गा.७, पद्य, श्वे., (नेमजी थे काई हठ माड), ५१०३४-९($) नेमराजिमती पद, रा., गा.४, पद्य, श्वे., (आज्योजी आज्योजी थेतो), ४९५७३-१ नेमराजिमती पद, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (मे तो गिरनार गढ देखण), ५१४८३-४(+#) नेमराजिमती फाग, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (एक सुणले नाथ अरज), ५१२७४-९(१) नेमराजिमती बारमासा, श्राव. रूपचंद कल्याणजी, मा.गु., गा. २९, पद्य, श्वे., (सरसतीने चरणे नमी सत), ५०४९०-१ नेमराजिमती बारमासा, मु. सुंदर, मा.गु., गा. २७, पद्य, मूपू., (प्रणमी सरसती मातने), ५१६९३-१(#) नेमराजिमती बारमासो, मु. अगरा ऋषि, मा.गु., गा. १८, पद्य, श्वे., (सावण मास सुहावणो), ४९४१३ नेमराजिमती बारमासो, मु. अमरविशाल, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (यादव मुझनैं सांभरे), ४९५६५-१ नेमराजिमती बारमासो, श्राव. कपूरसिंह, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (आसाढि अति आकुली), ५०५२५(+#) नेमराजिमती बारमासो, मु. कवियण, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सांवण मासे स्वाम), ५०१३२,५११२३ नेमराजिमती बारमासो, मु. कविराज, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (अलि विज्जल कज्जल), ४९८८८-१(#) नेमराजिमती बारमासो, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (राणी राजुल इण परि), ४८१५४-१, ४८४००-१(-2) नेमराजिमती बारमासो, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (वेसाखे वन मोरिया), ५०९६६-२ नेमराजिमती बारमासो, वा. भानुचंद, मा.गु., दोहा. १०, पद्य, मूपू., (सावन विरहेनी सकुंचथी), ५१०६६-२(#) नेमराजिमती बारमासो, मु. लालविनोद, पुहि., गा. २६, पद्य, श्वे., (विनवे उग्रसेन की), ५०११२ नेमराजिमती बारमासो, मु. विनयचंद, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (चढी सांवणें सामि), ४९४११ नेमराजिमती बारमासो, मु. विनयविजय, मा.गु., गा. २८, वि. १७२८, पद्य, मूपू., (मागसर मासे मोहिनीयो), ४८३६३ नेमराजिमती बारमासो, मु. हर्षकीर्ति, पुहिं., गा. २६, पद्य, मूपू., (हो सामी क्युं आये), ५१६९३-३(#) नेमराजिमती बारमासो, मा.गु., गा. ५०, पद्य, मूपू., (प्रेम गहेली पदमणी), ५१९५४-१(#) नेमराजिमती बारहमासा, मु. लावण्यसमय , मा.गु., गा. ४७, पद्य, मूपू., (आसाढा धुरिऊनजी गयणो), ४९३२६-३(#) नेमराजिमती रास, मु. पुण्यरत्न, मा.गु., गा. ७०, पद्य, मूपू., (सारद पय पणमी करी), ५१५३२-१(+#), ४८२४९, ४८९३९ नेमराजिमती रेकता, मु. चंदविजय, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (राजुल पुकारे नेम), ४८२४६-२ नेमराजिमती लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (--), ४९३६४-१() नेमराजिमती लावणी, मु. नंदराम, रा., गा. १२१, पद्य, श्वे., (छपन कोटी जान लेई आया), ४९१३२-२(+-) नेमराजिमती लेख, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीजिनपद पंकज नमी), ४९४८२-१०(#) नेमराजिमती लेख, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीरेवंतगिर), ५१९८२-२(+), ५१८२२, ५२०१५-१(#) नेमराजिमती विंझणो, मु. अमरविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (आव्या आव्या उनालाना), ५१४२५-६ For Private and Personal Use Only Page #574 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २ 9 "" नेमराजिमती लोक, मु. कुशलविजय, मा.गु., गा. २० वि. १७५९, पद्य, मूपू (समरु गणपतिनै सारिद), ५१५५६-१(०) मराजिमती संवाद, मु. ऋद्धिहर्ष, रा. गा. ३२, पद्य, मूपु. ( हठ करी हरीय मनावीर्य), ४८२३७, ५०१२३-१ नेमराजिमती संवाद, मु. लालविनोद, पुहिं सबै ४, पद्य, क्षे. (व्याहनेकुं आया सिरसे), ४८२८६-२ नेमराजिमती सज्झाय, मु. अमरविमल, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (गोरी गोरीनी बाहू री), ४८३९६-१(+#) राजिमती सज्झाय, मु. आनंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू. (नेमकुमर परणण चल्या), ५१७०५-२(७) राजिमती सज्झाय, मु. उदय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (डुंगर घेर्यो वादले), ५१७९१-२ नेमराजिमती सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., ढा. २ गा. २७, पद्य, मूपू., (दवारकानगर सोहामणो रे), ५१७०३ नेमराजिमती सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू. (म्हारा सांवलीया रे), ४८२०२-३ . " राजिमती सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., ( कांइ रिसाणो हो नेम), ४८३९१-३(#) मराजिमती सज्झाव, ऋ. भीमजी - शिष्य, मा.गु., गा. ६, पद्य, वे (रंगमोहोल रलियामणो), ५०००९-३(+) नेमराजिमती सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (थे तो माहरे जीवन), ४८३९१-२(#) नेमराजिमती सज्झाय, मु. रत्नविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपु. ( नेम नेम करती नारी), ५०४५१-१(क ', राजिमती सज्झाय, मु. राम, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पंचमहाव्रत मोती जडीउ), ४९५४६-३ नेमराजिमती सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पियुजी पियुजी रे ), ५००४२, ५०५३० राजिमती सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (गोखे रे बेठी राजुल), ५१०६४ राजिमती सज्झाय, मु. लालचंद ऋषि, रा., गा. ८, पद्य, श्वे. (जादव कुल सीरदार), ५१८९५-३ नेमराजिमती सज्झाय, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू (ससनेहि राजी भइ नेम), ४९२९५-३(4) नेमराजिमती सज्झाय, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मृपू., (कपूर होवे अति उजलो), ४९६५०-१, ४९९०४-२, ५०००७-४, ५०१२५-२ नेमराजिमती सज्झाय, आ. हेमविमलसूरि, मा.गु गा. ८. पद्य, मूपू (कपूर हुवे अति उजलोरे), ५१६४२-२ (१ राजिमती सज्झाय, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (इतरा दिन हूं जाणती), ४९८२९ मराजिमती सज्झाव, रा. गा. ३४, पद्य, म्पू. (म्हे धावाला प्रभू), ५१२६६-३(+) . " नेमराजिमती सज्झाय, रा. गा. १६, पद्य, श्वे. (ये जि हस कर भाभीजी), ५११६२ (-१) , יי Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राजिमती सज्झाब, मा.गु., गा. १०, पद्य, वे., (सरसति सामण वीनवु लाग), ४८२७२ नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू (सुनि सुनि सहेलडी हे), ५१११५-१ नेमराजिमती स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ८, पद्म, मूपू (हां रे एतो तोरण आवी), ५०४८९-२ नेमराजिमती स्तवन, मु. कुसालचंद, रा., गा. १५, पद्य, श्वे., (अहो अहो उग्रसेन घर), ५१९०१-१(-) नेमराजिमती स्तवन, मु. ज्ञानविबुध, मा.गु. गा. ११, पद्म, मूपू (सारदनई समरी करी रे), ५०९६६-१ नेमराजिमती स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (लूंबी झुंबी रह्यो), ५०८१२-१ नेमराजिमती स्तवन, मु. देवविजय, मा.गु., गा. ८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अवल गोखने अजब जरोखे), ५०१५४-२, ४९४६१-२(#) " नेमराजिमती स्तवन, मु. नित्यविजय, मा.गु. गा. ११, पद्य, मूपू (राजुल सहियानै कठै), ५०५२९-३(०) नेमराजिमती स्तवन, मु. भक्तिविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (राजुल कहे सुणो नेमजि), ५०३९७-१(#) राजिमती स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (यादवजी हो समुद्रविजय), ५०४१३-१ मराजिमती स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (तोरणथी रथ फेरी गया), ५१२८९ राजिमती स्तवन, वा. रामविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (राजुल उभी मालीए जंपे), ५०५४०-१(-) राजिमती स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (राजुल कहे सुणो नेमजी), ५१११६-१ (+#), ५१४४६-३(+#) नेमराजिमती स्तवन, ग. वल्लभकुशल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मारा सामलीयानी वात र), ५०५४०-२ (-) राजिमती स्तवन -लघु, मु. हर्षचंद, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (कांइ हठ मांड्यो छे), ४९३६४-२ नेमराजिमती होरीपद, ग. रत्नविमल, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (मेरी अरज सुणो नेम), ५०२३५-३(#) नेमराजिमती होलीपद, क. उदय, मा.गु., गा. ४, पद्य, भूपू., (होली को खेले खेले), ४८६२६-३(०) For Private and Personal Use Only ५५७ Page #575 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५५८ नेमिजिन गहुली, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु गा. ११, पद्य, म्पू, (जी रे नयरी द्वारीका), ५०५८२-११०१ नेमिजिन गीत, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (नेमजी हो पेखि पशु रथ), ५०९२७-१(#) नेमिजिन गीत, मु. दयानंद, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (साहिबीआ रे हुं आठ भव), ५१२९८ नेमिजिन गीत, मु. पृथ्वीसागर, मा.गु गा. ७. पच, भूपू (प्रणमुं माता सरसती), ५२०१५-५(१) मिजिन गीत, मु. राजेंद्र, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (हेली श्रावणीयो आयो), ४९५६५-२ नेमिजिन चैत्यवंदन, मु. ऋषभ कवि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., ( नेमि नमुं निशदिश जन्), ५०९१७-३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१२ मिजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रह सम प्रणमूं नेम), ४९९१७-३(+#) नेमिजिन नवरसो क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., डा. ४, गा. ७२, वि. १६६७, पद्य, म्पू., (सरसति सामिनी पाय नमी), ४८५९४, , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८७२५ "" नेमिजिन पद, मु. ऋद्धिहर्ष, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (गढ गिरनार की तलहटी), ५०४७५-३ (+), ५०९०५, ५१५२९-२, ४८६२६-१(#) नेमिजिन पद, मु. चारित्रसुंदर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (नेमजी मिले तो वारिया), ५०९४८-२(#) नेमिजिन पद, आ. जिनभक्तिसूरि पुष्टिं गा. ५, पद्य, म्पू, ऐसे नेम कुंवर खेले), ५१५२९-५ नेमिजिन पद, मु. जिनरंग, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (नेम निरंजण ध्यावो रे), ५०९९१-८ नेमिजिन पद, मु. जिनराज, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्यारे नेम प्रयाण), ५१२५९-३(+) नेमिजिन पद, मु. भूपत, रा., गा. ३, पद्य, श्वे., (नेम निरंजन ध्यावो रे), ५१२७४-१(#) नेमिजिन पद, मा.गु., गा. ३, पद्य, श्वे., (नेम मनाईवा कोई जाई), ५१४०९-४(+#) नेमिजिन पद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपु. ( मत छोडो म्हांने), ५१२७४-२(१) नेमिजिन पद - गूढार्थगर्भित, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (सखी कोउ मोहनलाल मनाव), ५०९८४-३ नेमिजिन फाग, मु. राजहर्ष, मा.गु., गा. ३०, पद्य, मूपू., (भोगी रै मन भावीयो रे), ४९४५४(#) नेमिजिन वारमासो, मु. कवियण, मा.गु., गा. ४५, पद्य, थे. (प्रेम बिलूधी पदमणी), ५१४६४-१(७) नेमिजिन बारमासो, जीवो, मा.गु., गा. २६, पद्य, श्वे., (श्रीऋषभजिणंद प्रणमीज), ४९१८०-२ י नेमिजिन बारमासो, मु. लाभउदय, मा.गु., गा. १६, वि. १६८९, पद्य, मूपू., (सखीरी सांभलि हे तूं), ४९०५६-२, ४९४३६(#) ', नेमिजिन वारमासो, मा.गु गा. १२, पच, भूपू नेमिजिन भ्रमरगीता, उपा. विनयविजय, मा.गु. ५०३६५(१) ४८६६७) (सरस श्रावण केरो सखडा), ४९०५६-१ गा. २७, वि. १७३६, पद्य, मूपू., (समुद्रविजय कुलचंदलो), ५०७०८ (+०), नेमिजिन लावणी, मु. माणेक, मा.गु, ढा. ४. गा. १६, पद्य, मूपु. ( श्रीनेमि निरंजन बाल), ५०४५५ नेमिजिन लावणी, श्राव. सुगनचंद, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (रेवतगिरि पर मिल्या), ४८६७५-३ नेमिजिन सज्झाय, मु. ऋषभ, मा.गु., गा. १०, पद्य, भूपू (नगरि द्वारिका नेमि), ५००९६ नेमिजिन सलोको, क. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५७, पद्य, भूपू (सिद्धि बुद्धि दाता), ५१२९० २(१), ४९७८० (5) नेमिजिन सवैया, ग. ज्ञानतिलक, पुहिं. सबै १, पद्य, मूपू., (चित केरि चिंता चूरि), ४९८८८-४(४) नेमिजिन सवैया, ग. ज्ञानतिलक, पुहिं., सवै. १, पद्य, मूपू., (सकल सोवन गिरिमुखरु), ४९८८८-५ (#) नेमिजिन स्तवन, मु. अमृत, मा.गु., गा. ८, पद्य, भूपू., (एतो बाल थकी ब्रह्म), ५११७१-१(१) नेमिजिन स्तवन, मु. अमृतविमल, मा.गु., गा. ७. वि. १९वी पद्य, भूपू (सखी आई रे नेम जान), ४८७४७) नेमिजिन स्तवन, मु. आनंदघन, पुडिं, गा. ६, पद्य, म्पू. (जै जै देव अरिहंत), ४८९२६-४(१) " नेमिजिन स्तवन, ऋ. उदयसिंघ, मा.गु., ढा. ४, वि. १७६५, पद्य, वे., ( श्रीनेमीसर नित नमुं), ५०५७९-१(+) नेमिजिन स्तवन, मु. कांति, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (कालीने पीली वादली), ५०७१४-५ नेमिजिन स्तवन, मु. कुशल, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (द्वारापुरी नगरी कै), ५०५५५-१ , नेमिजिन स्तवन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु. गा. ११, पद्य, मूपू., (जगपति नेम जिणंद प्रभ), ५०५०२-४(३) नेमिजिन स्तवन, मु. खिमाविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (तोरण आवी कंत पाछा), ५०८५२ (+), ४८७१३-२, ५०६४३ नेमिजिन स्तवन, मु. चोथमल रा. गा. ७, वि. १८५२, पद्य, से. (श्रीनेमीसर साहिबा ), ५१२६६-१ (+) " For Private and Personal Use Only Page #576 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ नेमिजिन स्तवन, मु. ज्ञानअमृत, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (कोई आन मिलावो श्याम), ५११७१-२(#) नेमिजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहि., गा.७, पद्य, मूपू., (दोय घडीया बेवारी), ४९३४४-३ नेमिजिन स्तवन, पं. धर्मकुशल, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (रंगमुहल राजिमती रे), ५१२२२ नेमिजिन स्तवन, आ. नंदसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (उज्जलगिरी अमहे जाइ), ५१६८७-४ नेमिजिन स्तवन, पं. पद्मविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (नेमी नीरंजन साहिबो), ४८३४८-१(+) नेमिजिन स्तवन, मु. प्रेम, पुहि., गा. ६, पद्य, मूपू., (उदधिविजयसुत नेम को), ५००२९-२ नेमिजिन स्तवन, ग. भक्तिविजय, रा., गा.५, पद्य, मूपू., (राजुल बेठी गोखमां रे), ५०९९०-३(#) नेमिजिन स्तवन, पं. मनरूपसागर, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सौरीपुर नगर सुहामणो), ४८४४९(+) नेमिजिन स्तवन, मु. मोहन, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (सजेलार जलधार सुखकार), ५१२०८-३(#) नेमिजिन स्तवन, मु. रंग, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (प्रीतम संभालो हो निज), ५१४४६-२(+#) नेमिजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ३२, पद्य, भूपू., (प्रीउडा यादव कुलना), ५०९९०-४(#) नेमिजिन स्तवन, मु. रूचिरविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सिवादेवी सुत सुखदाया), ५२०१५-२(#) नेमिजिन स्तवन, श्राव. लाधो साह, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (बावीसमा श्रीनेमिजिण), ४९८९७-१(2) नेमिजिन स्तवन, मु. वेलजी, मा.गु., गा. ११, वि. १८वी, पद्य, श्वे., (कंचनवरणी तारुणी हो), ४९१९२-१(+) नेमिजिन स्तवन, मु. सबलदास, मा.गु., गा. १३, वि. १७७७, पद्य, मूपू., (समुद्रविजय सुत लाडलो), ४९१३५(-) नेमिजिन स्तवन, मु. हीरालाल, रा., गा. ९, पद्य, स्था., (ओ अलवेसर वाल दीनदयाल), ५२०४७-१ नेमिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (नेमिनाथ आपणइ रंगि), ५०८९९-८ नेमिजिन स्तवन, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (समुद्रविजय सुत नेम), ४८६५०, ५१५५६-२(-#) नेमिजिन स्तवन-गिरनारमंडन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. १३, वि. १८६६, पद्य, मूपू., (श्रीनेमीश्वर वंदीय), ४८९९८-३(+) नेमिजिन स्तवन-गिरनारमंडन, मु. गुणसागर, मा.गु., ढा. ८, गा. ३७, पद्य, मूपू., (सरसति सामिणि गजगति), ४९३८९-२ नेमिजिन स्तवन-ज्ञानपंचमीपर्व, ग. दयाकुशल, मा.गु., ढा. ३, गा. ३४, पद्य, मूपू., (शारद मात पसाउले निज), ५१८७७(#), ५१९३७(#) नेमिजिन स्तवन-समवसरणविचारगर्भित, मु. सोमसुंदरसूरि-शिष्य, मा.गु., कडी. ३६, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (जायवकुल सिणगार सिरि), ५०११६-२(+), ५०४७७(+#), ५१६०७(#), ५१६८३(#) नेमिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (श्रावण सुदि दिन), ५१६२६-४, ४८३३१-१(-) नेमिजिन स्तुति, मु.रंग, मा.गु., गा. २, पद्य, श्वे., (समरी सदगुरु पायने रे), ५०१०१-३ नेमिजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सुर असुर वंदित पाय), ४८५३५-१, ४८७१३-१,५२०३५-२(#) नेमिजिन स्तोत्र-पंचमीविधि गर्भित, पं. रंगसार मुनि, मा.गु., गा. १७, पद्य, म्पू., (नमवि सिरिनेमि जिणराय), ४८३८४(+) नेमिजिन होरी, पुहिं., गा.८, पद्य, मूपू., (एसे स्यांम सलुणे), ५१२७४-१३(#) पंचकल्याणक मंगल, मु.रूपचंद्र, मा.गु., ढा. ५, गा. २५, पद्य, श्वे., (पणमवि पंच परम गुरु), ४९९०२ पंचजिन आरती, मु. चिदानंद, मा.गु., गा.११, पद्य, मूपू., (वनीतानगरीहो नाभिराय), ४८३५६-१ पंचतीर्थ चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (नमो नमो ऋषभजिनेसरु), ४९७८९-३(+) पंचतीर्थ चैत्यवंदन, मा.गु., गा.८, पद्य, स्पू., (विहरमान जिणंद वंद), ५०४५१-२(#) पंचतीर्थजिन पूजा विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम शुभ दिन जोइ), ४८८४४ पंचतीर्थ स्तवन, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (धुरि समरू तीरथ अभि), ४९८७९-१(#) पंचतीर्थ स्तुति, मु. वीरमुनि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (आबु अष्टापद विमलाचल), ५१०४३-३(#) पंचपद महिमा, मु. राम ऋषि, पुहिं., गा. ५९, पद्य, स्था., (सरव आगमसार श्रीनवकार), ४८२५१-२(+) पंचपरमेष्ठि गुण, मा.गु., गद्य, मूपू., (बारगुण अरिहंता सिद्ध), ४८३२२-२ पंचपरमेष्ठिफल स्तवन, आ. वल्लभसूरि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (कयकलप नर रे हीयाण), ५०९९५-१(+#) पंचमआरा सज्झाय, मु. जिनहस, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (वीर कहै गौतम सुणो), ४९५६२-१(#), ५०७००(#) For Private and Personal Use Only Page #577 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५६० www.kobatirth.org " पंचमआरा सज्झाय, उपा. समवसुंदर गणि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू (वीर कहे गोयम सूणो), ५१३१०) पंचम महाव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, भूपू. (आज मननो मनोरथ अति), ५१८९६-१(+) पंचमहाव्रत सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. ५, गा. ३७, पद्य, मूपू., (पापथानेक पहेलु), ५२००१-५(#) पंचमीतिथितप उजमणा विधि, मा.गु, प+ग, वे. (पांचम अथवा छठिन), ५१०९७- २(क) , " पंचमीतिथि पद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., ( श्रीनेमिसर प्रमी करि), ५०१३९-७ (#) पंचमी तिथि सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सगुरू चरण पसाउले), ५०८०७-१, ५१४८४ पंचमीतिथि सज्झाय, मु. शुभवीर, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू (धन धन श्रीअरिहंतने) ५१४१२-२ (+) " पंचमी तिथि स्तवन, ग. दयाकुशल, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (सरसति मात पसाउलि निज), ४९७१८(#) पंचमीतिथि स्तवन, मा.गु., गा. १५, वि. १४६६, पद्य, मूपू., (पहिला समरुं गोयम), ५१६७८ पंचमीतिथि स्तुति, मु. कृपाविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (सकल सूचीपति सुरगुसा), ४८१४१-२ पंचमीतिथि स्तुति, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पंच अनंत महंत गुणाकर), ४८३११-३(+) पंचमीतिथि स्तुति, मु. महिमरंग, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पंचमि पंचमजिणवर नमिय), ५१२१९-१(+#) पंचमीतिथि स्तुति, मा.गु, गा. ४, पद्य, म्पू, (पंचरूप करि मेरुशिखर), ५०६६१, ५१३३२-१ पंचांगुलीदेवी छंद, मा.गु., गा. २६, पद्य, वे (भगवति भारति पाए नमि), ४९३७८-१(+) पंचेंद्रिय विजय पद, मा.गु., गा. १, पद्य, थे. (प्रथम इंद्रीया पांच), ५०८९१-३ " कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१२ पकवान आदि कालमान विचार संग्रह, पुहिं., गद्य, श्वे., (वासु सु पनर दिवसो), ४८८४२-३, ५११०९-४ पच्चक्खाणकल्पमान यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (आसाढ मासे दुपया कहता), ४८६३८-१ पच्चक्खाण छंद, मु. उत्तम, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (दसमे प्रे उठी पचखांण), ५१२९५-३(+) पच्चक्खाण फल, मु. सोभचंद ऋषि, मा.गु., गा. ६, पद्य, थे. (वाहे विकसे भविजन करइ), ४९४०८-४१०) " पट्टावली, मा.गु., गद्य, भूपू (वर्द्धमानस्वामी चोथा) ५१६८६ (+३) " पट्टावली *, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानतीर्थं), ४९४८९-२(#), ४९०९८($) पट्टावली खरतरगच्छीय, मा.गु., गद्य, मूपू., (गुबरग्रामवासी वसुभूत), ५०२८७-२(+) पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमान तीर्थं), ५०८५६-१, ४९४८५ (#), ४९७३५ ($) पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, भूपू (श्रीवर्द्धमानसामी), ४९७९०(०) + पट्टावली लोंकागच्छीय, मा.गु., गद्य, श्वे., (हिवै अनुक्रमै पाट), ५०८५६-३ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पट्टावली सज्झाय -तपागच्छीय, पं. मेघकुशल पंडित, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (गुरु परिपाटी सुरलता), ५०२३६(+) पद्महस्थ श्रीदेवी कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (जंबुदीप भरत खेत्र रे), ४९४७४(क) पद्मनाभजिन चैत्यवंदन, उपा. कल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू (प्रथम महेसर पद्मनाभ), ४९९१७-७(+) + For Private and Personal Use Only पद्मनाभजिन स्तवन, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., गा. १५, वि. १८४६, पद्य, मूपू., (जंबूद्वीपना भरतक्षेत), ५१८५८-१ पद्मनाभजिन स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. ८, वि. १८४५, पद्य, मूपू., (जगचिंतामणी जगगुरु जग), ४९७५० (#) पद्मप्रभजिन पद, मु. जैनरतन, पुहिं. गा. ३, पद्य, म्पू. (ग्रह सम समरीजै सामि), ५१५२९-४ " पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (दिवस थया केतलाइक), ५१७९२-१(#) " पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू (कागलीवु करतार भणी), ५०८९९-४, ५११५८-२१ पद्मप्रभजिन स्तवन, पंन्या. रत्नविजय, पुहिं. गा. ५, पद्य, मूपू (पचप्रभुजिन साहिब), ५१६६४-३(४) पद्मप्रभजिन स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु. गा. ५, पद्य, मूपू. (पद्मप्रभु प्राणसे, ४८९०८-२) " "" पद्मप्रभजिन स्तवन संप्रतिराजावर्णनगर्भित, मु. कनक, मा.गु, गा. ९, पद्य, वे (धन धन संप्रति साचो), ५१६९५-४ पद्मप्रभवासुपूज्यजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १४, वि. १८४९, पद्य, श्वे., (रंगभर राता हौ दाता), ५१२५०-२ पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. ३६, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (हवे राणी पद्मावती), ४८५०४-२(+#), ४८५३८(०), ४९४८३(०), ५१०३९-१(+), ५११२० (+), ५१४१९(+), ५१८०४(4) ५१९६० (+), ४८५५१, ४९१८६, ४९४०५-१, ४९५०८, ४९६६०, ४९७८६, ५११७९-१, ५१६३९, ४८३९७(१), ५१४९२(०१ Page #578 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५६१ पद्मावती ढाल-जीवराशीक्षमापना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. ८२, पद्य, मूपू., (हिवे राणी पद्मावति), ४९८०२-१ पद्मावतीदेवी आरती, जै.क. भूधरदास, पुहिं., गा. १३, पद्य, दि., (माया माहि रूचीर कोडि), ५१९१६-४(#) पद्मावतीदेवी आरती-राशिगर्भित, जै.क. भूधरदास, पुहिं., गा. १३, पद्य, दि., (मेषे मेषान्मेषेकरी), ५१९१६-१(#) पद्मावतीदेवी स्तुति, जै.क. भूधरदास, पुहिं., गा. ९, पद्य, दि., (आई की आसकरु मनमे), ५१९१६-३(#) पद्मावतीदेवी स्तोत्र, जै.क. भूधरदास, पुहि., गा. ९, पद्य, दि., (आइनो आण्यो आसरो आसरो), ५१९१६-२(#) परंपराबत्रीशी, मा.गु., गा. ३४, पद्य, मूपू., (गछवासी छइ गुणभंडार), ४९९९५(१) परदेशीराजा सज्झाय, मु. उत्तमविजय, मा.गु., गा. १८, पद्य, म्पू., (सूरिवर श्वेतांबी), ४८७०८ परदेशीराजा सज्झाय, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (तथा व्रत पालता सूरीय), ४८६७७-२ परनारी परिहार सज्झाय, मु.रूपविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सुण चतुर सुजाण पर), ४९४६५ परमात्मछत्रीसी, मु. चिदानंद, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (परमदेव परमातमा परम), ५०३८८ परमार्थ अष्टपदी, पुहिं., गा.८, पद्य, दि., (ऐसै ज्यौं प्रभु पाईइ), ५११९३-२ परिसह सज्झाय-उत्तराध्ययन २, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (उत्तराध्ययनसूत्र माह), ४८८४६-२ पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. प्रमोदसागर, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सकलपर्व शृंगारहार), ५०७१९ पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (कल्पतरुवर कल्पसूत्र), ५०५५१-५ पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रणमु श्रीदेवाधिदेव), ५०५५१-४ पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (श्रीशत्रुजय शृंगार), ५०५५१-३, ५०५३७-२(#) पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. जगवल्लभ, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (प्रथम प्रणमुं सरस्वत), ४९५२८(+), ४८९०५, ५०४९९-१, ५०५४४(#) पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. फतेसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वरस दिवसमां सार), ५०४८६-१(#) पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. मतिहस, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (पर्व पजुषण आवीया रे), ४८२४४-१, ५०९७५ (#) पर्युषणपर्व सज्झाय, ग. हंस, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (पर्व पजुसण आवीया रे), ५००४६-१ पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. हीरविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (शीख सुणो सखी माहरी), ५००४६-२ पर्युषणपर्व स्तवन, मु. विबुधविमल, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सुणजो साजन संत पजुसण), ४८२५० पर्युषणपर्व स्तुति, मु. अमरविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (परव पजुसण पुण्ये), ४८४९४-२, ४८८०३-१(-) पर्युषणपर्व स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, भूपू., (वली वली हुं ध्यावू), ४८३११-१(+), ४८५३५-३, ४८६६४-३, ४९४६६-३(#), ५१७५४(#), ४९६३३-१०() पर्युषणपर्व स्तुति, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पुण्यनु पोषण पापर्नु), ५०४३४-२, ५१४३७-१ पर्युषणपर्व स्तुति, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (वरस दिवसमा अषाड), ५०७६५-४(-) पर्युषणपर्व स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पर्व पजुसण पुण्ये), ५१४१६(+) पर्युषणपर्व स्तुति, मु. बुधविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर अतिअलवेसर), ४८७६८-४ पर्युषणपर्व स्तुति, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सत्तरे भेदे जिन पूजा), ४८१४९-२, ४९५६८-१, ५१२१०-१ पशु आत्मवेदना पद, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (पसु पुकार सुण तू), ५२०४७-२ पश्चिमाधीश छंद, बीदर, मा.गु., गा. २५, पद्य, (माता दश मातंगनी पिता), ५११०२-१(-2) पांडव सज्झाय, मु. हीर, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (बारे वर्स वनवास पांड), ५१६०१-१ पाक्षिकप्रतिक्रमण विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (देवसी अर्धनु वंदेतु), ४८९७१, ५०५१७-१(#) पाप परिमाण विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (छिन वे जीव हणोजि तो), ५१५००-२ पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमंत्री सज्झाय, मा.गु., गा. २७, पद्य, श्वे., (श्रीजिनगजराज हरि), ५०७६७(-#) पार्श्वजिन १० भव स्तवन, मु. आनंदोदय, मा.गु., गा. ४९, पद्य, मूपू., (--), ४९९६२(#$) पार्श्वजिन अमृतधुन-गोडी, मु. जिनचंद, पुहि., गा.८, पद्य, मूपू., (झिगमग झिगमग जेहनी), ५१७३४(+), ५१२९०-४(#) पार्श्वजिन अष्टोत्तरनाम छंद, मु. उत्तमविजय, मा.गु., गा. २१, वि. १८८१, पद्य, मूपू., (पास जिनराज सुणी आज), ५१२७५-१(+) For Private and Personal Use Only Page #579 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org יי ५६२ पार्श्वजिन आरती - खेटकपुर मंडण, मु. उदय, पुहिं. गा. ११, पद्य, भूपू (जय जय आरती पास), ५२००१-४१ पार्श्वजिन कलश-नवपल्लव मांगरोलमंडन, श्राव. वच्छ भंडारी, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (श्रीसौराष्ट्र देश), ५१६६५ पार्श्वजिन केरवो, श्राव, भूधर, पुहिं, गा. ४, पद्य, मूपू (केरवो मुरत देखी पारस), ४९६३५-२(१) " पार्श्वजिन गीत, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मेरे एही ज चाहीइं), ५१०६८-६(#) पार्श्वजिन गीत ग. समयसुंदर, पुहिं, गा. २, पद्य, भूपू (मुख नीको गोरी पास को), ४९४८२-३ (०१) " पच, भूपू (--), ४८९४०-१(5) " पार्श्वजिन गीत शंखेश्वर, मु. धनजी, मा.गु., गा. ५ पार्श्वजिन चैत्यवंदन, मु. ऋषभ कवि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (बंदु पासजिणंद कमठ), ५०९१७-४ , पार्श्वजिन चैत्यवंदन - गोडीजी, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु.. गा. ३, पद्य, भूपू (पुरसादाणीय पासनाह), ४९९१७-४०) पार्श्वजिन चैत्यवंदन - शंखेश्वरतीर्थ, पंन्या. रुपविजय, मा.गु., गा. ९, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (सकल भविजन चमत्कारी), ५१२०२ पार्श्वजिन चौडालिया, मा.गु., डा. ४, वि. १७२१, पद्य, वे., (मंगलदायक गाईये), ५०५८० Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्श्वजिन छंद. मु. नारायण ऋषि, मा.गु. गा. १०, पद्य, थे. (वामामात उयर जगवंदन), ५१८५२(१) "1 पार्श्वजिन छंद - अंतरीक्षजी, पं. भावविजय वाचक, मा.गु., गा. ५१, पद्य, मूपू. (सरसत मात मना करी), ४९४६९, ५०११८, ५१८०५. ५१७७८) पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ५५, वि. १५८५, पद्य, मूपू., (सरस वचन दियो सरसति), ४९६७०, ५१३३०(#), ५१९९९-१(#$) पार्श्वजिन छंद - अमीझरा, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (उठत प्रभात अमीझरो), ५०९०९-१ पार्श्वजिन छंद - गोडीजी, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (धवल धिंग गोडी धणी), ५०१९६-२(#) पार्श्वजिन छंद गोडीजी, उपा. कुशललाभ, मा.गु, गा. २२, पद्य, मूपू., (सरसति सुमति आप), ५१४३०(१) कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१२ पार्श्वजिन छंद गोडीजी, मु. दानविजय, पुहिं. गा. ५, पद्य, मूपू (वाणारसी रावा पास), ४८३४२-२(+), ५१८७० (+४), ४९१६०-१(३) " + पार्श्वजिन छंद - गोडीजी, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., ( जय जय गोडि पास धणी), ५०९०९-२ पार्श्वजिन छंद -गोडीजी, मु. प्रीतविमल, मा.गु, गा. ५५, पद्य, मूपू., (ॐ नमः दुहा वाणी), ४८२८०(१) पार्श्वजिन छंद गोडीजी मा.गु., गा. ४६, पद्य, भूपू ५००४५, ४८४४८ (#$) (सुवचन आपो शारदा मया), ५१४७८-१(००) ५१६१५(५), ४९४९४, ४९७३३, पार्श्वजिन छंद-चिंतामणि, श्राव. चेतन, मा.गु., ढा. २, गा. २६, वि. १८३७, पद्य, मूपू., ( कल्पवेल चिंतामणि), ५०१५० पार्श्वजिन छंद-नाकोडातीर्थ, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ८, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (आपण घर बेठा लील करो), ४८२३२-२ (+), ४९२४१-५ (+), ४८१५० יי 13 पार्श्वजिन छंद - शंखेश्वर, मु. उदयरत्न, मा.गु. गा. ५, वि. १८वी, पद्य, भूपू (पास शंखेश्वरा सार), ५१०३४-५, ५१७८२-१(१) पार्श्वजिन छंद - शंखेश्वर, ग. कनकरल, मा.गु., गा. २५, वि. १७११, पद्य, भूपू (सरसति सार सदा बुध), ४८४२८(4) पार्श्वजिन छंद -शंखेश्वर, पंडित. जयवंत, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (शारदाई सार करि हर अख), ५१३२४-१(#) पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, मु. शील, मा.गु., गा. ६४, पद्य, मूपू., (प्रणव पणव प्रहु पय), ४९१६१-३ () पार्श्वजिन छंद - शंखेश्वरतीर्थ, मु. उदयरत्न, मा.गु. गा. ७, पद्य, म्पू, (सेवो पास शंखेधरो, ४८५६०२, ५०३८९, ४८९४३ - १(०) पार्श्वजिन थाल, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (माता वामादे बोलावे), ४९३४६-१(+) पार्श्वजिन नमस्कार - स्थंभनपुर, मु. कल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू. (श्रीसेडी तट मेरुधाम), ५०८७२-६+६) पार्श्वजिन निसाणी घरघर, मु. जिनहर्ष, पुहिं. गा. २७, पद्य, भूपू (सुखसंपत्तिदायक सुरनर), ४८९६१(+), ४९१५९(*), ४८९४४. ४९२६८-१, ५०६८८, ५१३४६, ४९८९४-३(०३), ५१८०१०१, ५२०४१-१(०), ४८२०१६) पार्श्वजिन पद, मु. अमृतधर्म, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू. (त्रिभुवन त्रिभुवनपति), ४८६३०-१ पार्श्वजिन पद, मु. अमृत, पुहिं, गा. ३. वि. १८९३, पद्य, वे (नजर भरी रे मारी अखिय), ४८४७५-२) पार्श्वजिन पद, मु. उदयसागर, पुहिं., पद. ७, पद्य, मूपू., (अब हम कुं ज्ञान दीयो), ५१२७४-७(#) पार्श्वजिन पद, मु. जिनचंद्र, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (आज हमारे आनंदा), ४९५५९-५ पार्श्वजिन पद, आ. जिनभक्तिसूरि पुहिं, गा. ४, पद्य, भूपू (माई रंगभर खेलेगे), ५०४७५-१(+), ५१५२९-१, ४८२५९-७(१) For Private and Personal Use Only Page #580 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५६३ पार्श्वजिन पद, श्राव. देवब्रह्मचारी, पुहि., गा.७, पद्य, दि., (काशीदेश बनारस नगरी), ५१२६६-४(+) पार्श्वजिन पद, मु. पुण्य, पुहिं., गा. १, पद्य, म्पू., (पारसनाथ आथ के नाथ), ५१४२५-५ पार्श्वजिन पद, मु. राज, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (मान भायौरीमान भायौ), ४८२१२-३(+#) पार्श्वजिन पद, मु. लालचंद, पुहि., गा.५, पद्य, मूपू., (मेरो मन वश कर लीनो), ५०६७२-५ पार्श्वजिन पद, मु. वृद्धिकुशल-शिष्य, रा., गा. ६, पद्य, मूपू., (जोडी थारी कोन जुंडे), ५१०३४-४ पार्श्वजिन पद, रा., गा.७, पद्य, श्वे., (आवौ म्हारा रसीया), ४८६४२-२($) पार्श्वजिन पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (जालम जोगीडासु लागी), ५०७८७-२(२) पार्श्वजिन पद, मा.गु., गा. २, पद्य, श्वे., (श्रीपासजिणवर नमीय), ५०७१५-२(+) पार्श्वजिन पद-उपदेशगर्भित, मु. अमृत, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (जागि सकइ तो जागिरे), ५०८९९-११ पार्श्वजिन पद-गोडीजी, अभयचंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (गोडी गाइएं मन रंग), ५०९०७-२(#) पार्श्वजिन पद-गोडीजी, मु. धरमसी, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूपू., (सरस वचन दे सरसती एह), ४९८४०-२(#), ४९१६१-२(-) पार्श्वजिन पद-गोडीजी, मु.रूपविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (मुजरो मानि न लीज्यो), ५०९०७-७(#) पार्श्वजिन पद-गोडीजी, मु. सुजाण, रा., गा. ४, पद्य, श्वे., (टुक भिख्या फकीरकु), ४९५७३-२ पार्श्वजिन पद-गोडीजी, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (जलवट थलवट जंगमै दुसम), ४९२७२-२ पार्श्वजिन पद-चिंतामणि, मु. ऋषभविजय, पुहि., गा.४, पद्य, मूपू., (वारी जाउंरे चिंतामण), ४८६४२-१ पार्श्वजिन पद-चिंतामणि, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (चिंतामणिसामी साचा), ४९१४६-३ पार्श्वजिन पद-शंखेश्वर, मु. सिंघ, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (श्रीसंखेश्वर पार्श्व), ५०७३९-१(#) पार्श्वजिन पद-शंखेश्वरतीर्थ, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (प्यारो पारसनाथ), ५०९२०-३(#) पार्श्वजिन परिवार संख्या, पुहि., गद्य, श्वे., (गणधर आठ हुआ सोलै), ४८२३१-२(#) पार्श्वजिन पालj, ग. उत्तमविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (माता वामादे झूलावे), ४८८२३ पार्श्वजिन रेखता, मु. लालचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (जगतपति पास जिणराज), ५०४७५-५(+) पार्श्वजिन लघुस्तवन, मु. भक्तिलाभ, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (जीरावलौ छइ कलिकाल), ४९२८९-२ पार्श्वजिन लघुस्तवन-सोवनगिरि, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सोवनगिरवर मंडणो रे), ४८१४०-२ पार्श्वजिन लावणी, पुहिं., गा. १८, पद्य, श्वे., (अगडदम अगडदम वाजै), ५०७९७-१(+$), ४८२८६-१ पार्श्वजिन लावणी-गोडीजी, पंन्या. रूपविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (जगत भविक जिन पास), ४९८७५-१(+), ४९७८३-१ पार्श्वजिन सलोको, श्राव. जोरावरमल पंचोली, रा., गा. ५६, वि. १८५१, पद्य, श्वे., (प्रणमुं परमातम अविचल), ५०५८७(+), ५१०२६ पार्श्वजिन सलोको, मु. हरख, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (चरम जिणेसर प्रणमी), ४९४६२-१(#) पार्श्वजिन सवैया, मु. जीत, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (एक किन्नर सोल सणगार), ५१४५५-३ पार्श्वजिन सवैया, ग. ज्ञानतिलक, पुहिं., सवै. १, पद्य, मूपू., (सबही जन चित्त कि), ४९८८८-६(2) पार्श्वजिन स्तवन, मु. अमृत, पुहि., गा. ७, पद्य, श्वे., (ए घनसाम मंदिर मेरे), ४८४७५-५(-) पार्श्वजिन स्तवन, मु. अमृत, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (ए सुनो मेरे पासजी), ४८४७५-३(-) पार्श्वजिन स्तवन, मु. अमृतरंग, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (साहिबा पास जिणंदने), ४८९९९ पार्श्वजिन स्तवन, मु. अमृतविजय, पुहि., गा. २, पद्य, मूपू., (एरी तुम सुरतरू दरसे), ४९५५५-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (सुण सोभागी हो साहिब), ५०६९१-१ पार्श्वजिन स्तवन, मु. उत्तमविजय, मा.गु., गा. १३, वि. १८८०, पद्य, मूपू., (सुखसंपतिदायकदेव सदा), ५०३२२-१(#) पार्श्वजिन स्तवन, पंन्या. ऋषभसागर, पुहि., गा. ६, पद्य, मूपू., (प्यारे देहु दीदार वो), ४८६३५ पार्श्वजिन स्तवन, मु. कनकविमल, मा.गु., गा. ११, वि. १७४२, पद्य, मूपू., (वागवाणि प्रणमी करी), ४८३५७ पार्श्वजिन स्तवन, मु. कमलविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पार्श्वनाथ दुःख कापो), ४८९०९-१(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. कविराज, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आज अरदास निजदास जाणी), ४८२९८ पार्श्वजिन स्तवन, मु. कीरत, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (श्रीसुगुरु चिंतामणि), ५०९९६-१(+#), ४९३२८, ५१०३२, ५१६७२ For Private and Personal Use Only Page #581 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१२ पार्श्वजिन स्तवन, मु.खेमो ऋषि, मा.गु., गा. २६, वि. १७३२, पद्य, मूपू., (परम पुरुष जग परगडो), ५१३७३-१(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. चरणप्रमोद, म., गा. ३, पद्य, मूपू., (ॐह्रींश्रीरै असिआ), ४९६५८ पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सुगण सनेही जिन जी), ५२०१०-१, ४९९००-१(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनचंद्र, पुहि., गा. ७, पद्य, मूपू., (जय बोलो पास जिनेसर), ४८९६३-३(+), ४८२४६-४, ५१२७४-१२(#) पार्श्वजिन स्तवन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अश्वसेननंदन वंदता), ४८६१५(+) पार्श्वजिन स्तवन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आ आछी वेला औ आछौ साज), ५१२२३-२(+) पार्श्वजिन स्तवन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ९, वि. १८१७, पद्य, मूपू., (आज आनंदघनन मट्यो जी), ५०२३५-६(#) पार्श्वजिन स्तवन, आ. जिनलाभसूरि-शिष्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (त्रिभुवननाथ अनाथ सुह), ४८५०३-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. ज्ञानतिलक, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वामानंदन वंदियइ मोहन), ५०८७१-१(+) पार्श्वजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (अंखीयां हरखण लागी), ५१४४२-३(2) पार्श्वजिन स्तवन, आ. दुर्गादास, मा.गु., गा. १६, वि. १६३१, पद्य, श्वे., (पासजिणेसर पाय नमु), ४९२१४, ४८२३१-१(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. देवविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (हारे श्रीपास), ४८७४५-४ पार्श्वजिन स्तवन, मु. धनराजशिष्य, मा.गु., ढा. २, गा. ३४, वि. १७२१, पद्य, श्वे., (सुखकरो स्वामि सदा), ५०२१९(2) पार्श्वजिन स्तवन, मु. धरमचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (धरणेद्रा करे सेवना), ५०५३४-३ पार्श्वजिन स्तवन, पं. नायकविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चालो सखि जिनवंदन),४८७४१-१(#) पार्श्वजिन स्तवन, पं. नायकविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीपुरुषादानी पास), ४८७४१-२(#) पार्श्वजिन स्तवन, ग. पुण्यविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (जय जिनवर तेवीसमोरे), ४९५८८ पार्श्वजिन स्तवन, मु. भाग्यउदय, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (साचो पारसनाथ कहावै), ५००१५-२(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. माणेक, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (काशीदेश बनारसी सुखका), ४८५४९-१ पार्श्वजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, रा., गा.५, पद्य, मूपू., (शंखेश्वर स्वामी आप), ५०३९८-१ पार्श्वजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (पास वामाजु के नंद), ४८४७६-३ पार्श्वजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मेरे साहिब तुम ही), ५१२७८-२(#) पार्श्वजिन स्तवन, वा. रत्न, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (त्रेवीसम त्रिभुवनपति), ५०२३५-४(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. रत्ननिधान, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (पासजिणंद जुहारीय), ५११८७-२(+) पार्श्वजिन स्तवन, पा. राजरत्न, मा.गु., गा.१०, पद्य, मूपू., (पासजिणंदा हो साहिब), ५१८६०(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. रामचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वामानंदन साहिबारे), ४९५६०-२(5) पार्श्वजिन स्तवन, उपा. रामविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (पासजी जगधणी रे साहिब), ५०५५२-१(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (पासजी वामाजीना जाया), ४९६६३ पार्श्वजिन स्तवन, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ९, पद्य, मूपू., (आज सफल दिन धन प्रते), ४८२१७(#) पार्श्वजिन स्तवन, ग. लक्ष्मीवल्लभ, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (आखंदा मै हुं तइंडी), ४९५५९-४ पार्श्वजिन स्तवन, गच्छा. विजयप्रभसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सूनी अरदास प्रभु पास), ४९३४४-१ पार्श्वजिन स्तवन, मु. श्रीधर, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (नीकी मूरति पास जिणंद), ५१२०८-५(#) पार्श्वजिन स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५१, पद्य, मूपू., (पुरसादाणी परगडउ जेसल), ५०५३६ पार्श्वजिन स्तवन, मु. हरखविजय, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (केवल कमलावास पास जिण), ५१४११-३(#) पार्श्वजिन स्तवन, पुहिं., पद्य, मूपू., (इतला दिन हुं जाणति), ४८१५८-३($) पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (नरेंद्र फणींद्र), ५१९०८-१ पार्श्वजिन स्तवन, पुहि., पद्य, श्वे., (मूरत मन मोहन रे), ५१९१८-२(#$) पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (श्रीजिनपार्श्व जिनंद), ५१८७५-३(#$) पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वनाथ तुझ), ४९२४५-२ पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (श्रीरिषभ जिणंद चरणे), ४९४५५-२(+#) For Private and Personal Use Only Page #582 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ पार्श्वजिन स्तवन, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (सांवरो सुखदाई जाकी), ४८९६३-६ (+) पार्श्वजिन स्तवन -१० भववर्णन, मु. मतिविसाल, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (श्रीसारद हो पाय), ४९८८१ -१(#) पार्श्वजिन स्तवन २४ दंडकविचारगर्भित, आ. पार्धचंद्रसूरि, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू.. (प्रणमुं पारसनाथ प्रह), ४८४४४(५), ४९८०३-१(०), ५१२४५०), ५०९७७ पार्श्वजिन स्तवन- अंतरीक्षजी, मु. आनंदवर्द्धन, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (प्रभु पासजी ताहरो), ५१२३८(#) पार्श्वजिन स्तवन- अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु. बा. ५, गा. ५५, वि. १७वी, पद्य, मूपू. (वाणी ब्रह्मवादिनी), ४८४६८, ५०६१३, ५१५६६-१(#) י पार्श्वजिन स्तवन- अहिछत्रपुरमंडन, मु. उत्तम, मा.गु., गा. १०, पद्य, भूपू (सांमल पारस सांभलो रे), ४९६५१ (चरण लागु पाव गोडी), ४८३८३ (+) " पार्श्वजिन स्तवन - उदयपुरमंडन, आ. उदयसमुद्रसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पास सवि नाते मन मोहि), ४८४४१-२(+) पार्श्वजिन स्तवन -कंसारीपुर मंडन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पूरण आस पास कंसारी), ५२०३३-२(#) पार्श्वजिन स्तवन -गंभीरा, मु. धर्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आव्यो सरणे तुमारे जी), ४८९११ पार्श्वजिन स्तवन -गोडी, मु. हीर, मा.गु, गा. ७, पद्य, मूपू पार्श्वजिन स्तवन -गोडीजी, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., ( पासजी तोरा रे पलक न), ४९८०९ -२ ( पार्श्वजिन स्तवन - गोडीजी, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्यारो पारसनाथ पूजा), ४८३८२(#) पार्श्वजिन स्तवन - गोडीजी, मु. कनकमूरत, मा.गु., गा. १५, वि. १७६२, पद्य, म्पू, (जैसाणे जिनराज हो लाल), ४८२०२-१ पार्श्वजिन स्तवन - गोडीजी, मु. कनकसुंदर, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (साचो साहिब निरधारी), ४८६२० - १(+), ५०९०७-३(#) पार्श्वजिन स्तवन -गोडीजी मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू (अहो त्रिभुवन जन बंधो), ५०५०७-२ पार्श्वजिन स्तवन -गोडीजी, मु. केसर, मा.गु., गा. ८, पद्य, वे (साहिब गोडी पास रे मन), ५१७८२-२ (४) . पार्श्वजिन स्तवन - गोडीजी, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (जगगुरु श्रीगोडीपुर), ५०९४८-१ (#) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५१४०४-२ (S) पार्श्वजिन स्तवन -गोडीजी, मु. सुरचंद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, वे (बारी जाउ गोडी गांमने), ५१४५०-४(४) पार्श्वजिन स्तवन -गोडीजी, मा.गु., पद्य, मूपू., ( आजुणो दिवस धन उगीयो), ४९३११-३(०३) (नाथजी मने मेहेर करी), ४९०४६ " पार्श्वजिन स्तवन - गोडीजी, मा.गु., गा. १२, पद्य, वे पार्श्वजिन स्तवन - गोडीजी मा.गु., गा. ७, पद्य, भूपू (सांभल साहिब पासजी), ५१७५७-२०१ पार्श्वजिन स्तवन - गोडीजी, रा., गा. ९, पद्य, मूपू., (सुगण सनेहा प्रभुजी), ४८४३८ पार्श्वजिन स्तवन - गोडीजी मंडन, मा.गु., गा. ९, पद्म, मूपू (सरसति सामिणि चितधरी), ४९३२६-१(०) " पार्श्वजिन स्तवन - गोडीजी, मु. जयरत्न, मा.गु., गा. ३१. वि. १७०२, पद्य, मूपू (सासनदेवी मनिधरी), ५०८५४- १(ख) पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपु, (वाल्हेसर मुझ विनती), ५१७७०-३(०) पार्श्वजिन स्तवन - गोडीजी, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अमउ नेहडो कंदि गोडिच), ५०७५९-२(-) " पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. जीतचंद, मा.गु, गा. २३, पद्य, म्पू, (ॐकाररूप परमेश्वरा), ५०५३२(+), ५१४०५-२(+४), ५१६९५-१ पार्श्वजिन स्तवन - गोडीजी, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (लाखीणो सोहावें जिनजी), ४९३५१-२ पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. नेमविजय, मा.गु., ढा. १५, गा. १३७, वि. १८१७, पद्य, मूपू., (प्रणमुं नित परमेश्वर), ४८७२३(+) , पार्श्वजिन स्तवन -गोडीजी, मु. न्यानसागर, मा.गु., गा. १५, पद्य, भूपू (सरसती मति आपी मात), ४८४९४-१ पार्श्वजिन स्तवन - गोडीजी, मु. पद्म, रा., गा. ८, पद्य, मूपू., (प्यारो गोडीसापासजी), ५११५९(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्राण थकी प्यारो), ५१७९२-२(#) पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. मोहनविजय, रा. गा. ५, पद्य, मूपू (मुजरो थें मानो हो), ५०५५९-४(१), ५०९२०-१(०) " ', " पार्श्वजिन स्तवन - गोडीजी, मु. मोहनविजय, फा., गा. ५, पद्य, म्पू.. (श्रीगोरी पास गरिब), ५१५६६-३(४) पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ५, पच, मृपू, (प्रभु श्रीगोडीचा), ५१०६८-३(१) पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ४१, वि. १६६७, पद्य, मूपू., ( वदन अनोपम चंदलो गोडि), ५०९२२ पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. श्रीचंद, पुहिं, गा. ९, वि. १७२२, पद्य, मूपू.. ( अमल कमल जिम धवल), ५१४८७, ५००५३-१(७), For Private and Personal Use Only ५६५ Page #583 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१२ पार्श्वजिन स्तवन-घृतकलोल, मु. तिलकहंस, मा.गु., गा. ११, वि. १८७४, पद्य, मूपू., (परमगुरु जिनराजने जाण), ५००७८(#) पार्श्वजिन स्तवन-घोघामंडन, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (समतारस शीतल छाया), ५०५३४-१ पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मु. कनकमूर्ति, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (एक अरज अवधारीयैरे), ४८२००-२(5) पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मु. चतुर ऋषि, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (श्रीचिंतामणि साहिबा), ४८४१९-२ पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (प्रभु पास चिंतामणि), ४८३०४(+) पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मु. भावरत्न, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (चिंतामणि चित धर रे), ४९५५५-३ पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मु. राजसमुद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (नीलकमल दल सामली रे), ५१८८५-२(#) पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा.७, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (आणी मनसुध आसता देव), ५००७३-३(#), ५१३०८-१(#) पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (श्रीपास चिंतामणि जेम), ५१७३८-१(#) पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सूकडि मिलीआ गिर तणी), ४८७७० पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (जीराउला देव करउं), ५०००९-१(+), ५०४७२(+#), ४९१६७-४, ५०८७५-१,५१४५५-१, ५१५७०(-#) पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (महानंद कल्याणवल्ली), ४९३७५-२(+), ५०७१५-१(+) पार्श्वजिन स्तवन-जीरावलामंडण, मु. धवलचंद्र, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (सहिजि सुहकर सवि), ५१४८६(#) पार्श्वजिन स्तवन-जेसलमेर मंडन, मु. धीरविजय, मा.गु., गा. ११, वि. १८३२, पद्य, मूपू., (त्रिभुवनपती तेवीसमा), ५१९३६(#) पार्श्वजिन स्तवन-नवखंडामंडन, मु. कांतिविजयजी, गु., गा. ५, वि. २०वी, पद्य, मूपू., (नवखंडाजी हो पास मनडु), ५०५३४-२ पार्श्वजिन स्तवन-नवलखा, मु. चंद्रसागर, मा.गु., गा. ८, वि. १८२९, पद्य, मूपू., (पर पीयारो प्रभुजी), ५१९८७-१(#) पार्श्वजिन स्तवन-पंचासरा, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (इंदु किरण सम तुम्ह), ५१५०२(#) पार्श्वजिन स्तवन-पंचासरातीर्थ, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (परमातम परमेश्वर), ४८६६२-१(+), ४८७६३-२(+) पार्श्वजिन स्तवन-पोसीना, मु. कल्याणसागर शिष्य, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सरसति मति आपो मात), ४९९१६-१(+) पार्श्वजिन स्तवन-प्रभाति, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सारद वदन अमृतनी वाणी), ५०९३१-२(2) पार्श्वजिन स्तवन-प्रभाति, मु. लाभउदय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (उठो रे मारा आतमराम), ४८४२३-२ पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, ग. उदयविजय वाचक, मा.गु., गा. २७, पद्य, मूपू., (श्रुत अमरी समरी हो), ५०२८५-२(#) पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (फलवर्द्धिमंडण पास), ५१२५५-१ पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धितीर्थ, मु. अभयसोम, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सरसति माता सेवकां), ४९१६१-१(-) पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धितीर्थ, मु. उत्तम, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वंछित फलदायक स्वामी), ५०५५६-३ पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धिपुरमंडन, उपा. ज्ञानसिंह गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, पू., (फलवधिपुर सिणगार सदा), ४८६३९-१ पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धिमंडण, आ. जिनसंभवसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आज भयो रे आणंद जीव), ५०९३१-१(#) पार्श्वजिन स्तवन-भाभा, उपा. उदयरतन, मा.गु., गा. ५, वि. १७७९, पद्य, मूपू., (त्रिभुवन नायक त्रीवि), ५१६२६-३ पार्श्वजिन स्तवन-भाभा, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वालाजी पांच मंगलवार), ५१००५-१(#) पार्श्वजिन स्तवन-भीडभंजन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (स्या माटे साहिब सामु), ४८२९६-१ पार्श्वजिन स्तवन-भीडभंजन, उपा. उदय, मा.गु., गा. ५, वि. १७७८, पद्य, मूपू., (श्रीभीडभंजन प्रभु), ५१४४२-२(#) पार्श्वजिन स्तवन-भीडभंजन, मु. विनयसागर, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (भीडभंजन प्रभु भेटीया), ५१७०५-१(#) पार्श्वजिन स्तवन-मंडोवरपुर, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आतम संपति अधिपती रे), ५०९०६-२ पार्श्वजिन स्तवन-मगसी, मु. सुखलाल, रा., गा. ६, वि. १९१२, पद्य, मूपू., (अश्वसेनजी तात ज कहिय), ४८१४६-२(+) पार्श्वजिन स्तवन-मनमोहन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मनमोहन पावन देहडीजी), ४८४२४-२(+) पार्श्वजिन स्तवन-मोह पराजय, मु. उदय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (जालमगढमां जोध मच्यो), ५०९१८-२ पार्श्वजिन स्तवन-रूपवर्णन, मु. ब्रह्म, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (सकल सुरासुर वैक्रिय), ४९७३२ पार्श्वजिन स्तवन-लघु, मु. वसतो, मा.गु., गा.७, पद्य, श्वे., (त्रिभुवन साहिब सांभल), ५०९९८-१ For Private and Personal Use Only Page #584 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ पार्श्वजिन स्तवन -लोडण, मु. सेवक, मा.गु. गा. ६, पद्य, मूपू.. (आससेन राय कुलतिलउरे), ५०४९७-२ पार्श्वजिन स्तवन लोद्रपुरचिंतामणि, मु. धर्ममंदिर, मा.गु, गा. ६. वि. १७३०, पद्य, मू, (सामि सोभागी सांभलो), ४८२१२-२ (+), ४८२००-१ पार्श्वजिन स्तवन -लोद्रवपुर, मु. चंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., ( लोद्रपुरे रलीयामणो), ४८६२०-२ (+) पार्श्वजिन स्तवन - लोद्रवपुर, मु. हरखनिधान, मा.गु., गा. ६, वि. १७४४, पद्य, मूपू., (प्रह सम पूजो पासजी), ४८२१२-१(+#) पार्श्वजिन स्तवन - लोद्रवपुरचिंतामणि, आ. पद्मसूरि, मा.गु. गा. ७, वि. १९०८, पद्य, म्पू, (धन्य दिवस मुझ आजनो), ४८२४७-१ पार्श्वजिन स्तवन - लोद्रवपुरमंडन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (हो सुणि सांवलिया), ४८६१०-२(+) पार्श्वजिन स्तवन -चटप्रदमंडन चिंतामणि, मु. गुणसागर, मा.गु., गा. १४, पद्य, मृपू. ( जय जय गुरु देवाधिदेव), ४८७८६-२(+), " ५०३१९ "" पार्श्वजिन स्तवन -चरकाणा, ग. गुणशेखर गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीपासजी श्रीवरकाणा), ५१६६०-२०१ पार्श्वजिन स्तवन -वरकाणा, मु. जिण, मा.गु, गा. १०, पद्य, भूपू (वरकाण वरमंडण पास), ४८९४२(४) पार्श्वजिन स्तवन -वरकाणा, मु. नित्यप्रकाश, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सारद हो पाय प्रणमवी), ५०४७१-१ पार्श्वजिन स्तवन -चरकाणामंडन, मु, गुणशेखर, मा.गु., गा. ७, पद्य, भूपू (श्रीवरकाणै वांदीइ), ५१६६०-४(A) पार्श्वजिन स्तवन स्वरकाणामंडन, उपा. जसकुशल, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मन मोह्यौ मन मोह्यौ), ४९५९६-१(+) पार्श्वजिन स्तवन -चरकाणामंडन, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, म्पू.. (कांइरे जीव तुं मन), ४८६००-१(म) पार्श्वजिन स्तवन -वाडी, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. ५, पद्य, मूपू., (झिरमर वरसेलो मेह), ५१२६२-२ (#) पार्श्वजिन स्तवन वाडी, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (जिनजी ए गुन मेरो जान), ५१५१७-२ पार्श्वजिन स्तवन चाडी, उपा. राजसोम, मा.गु., गा. १०. वि. १७२१, पद्य, मूपू (जिनजी लाल ग्रह ऊठीनड़), ५०३३३-२ (+) पार्श्वजिन स्तवन - विचारगर्भित, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (पणमिय पास जिणंद), ५०४७८ (+), ५०४३८ पार्श्वजिन स्तवन -शंखेश्वर, मु. अमृत, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., पार्श्वजिन स्तवन -शंखेश्वर, मु. अमृत, पुहिं., गा. ७, पद्य, श्वे. पार्श्वजिन स्तवनशंखेश्वर, मु. उदय, मा.गु, गा. ७, पद्य, मूपू. (मेरा मन मोहिया० शंखे), ५०२१६-३(०४), ५१५७६-१ पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, वा. उदयरतन, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (आप अरुपी होय नय प्रभ), ५१४४६-१(+#) पार्श्वजिन स्तवन - शंखेश्वर, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (मास वसंत सरस रितु आय), ५०५०७-१ पार्श्वजिन स्तवन -शंखेश्वर, जगरुप, रा., गा. ६, पद्य, से. (वामासुत म्हाने लागे) ५१८२७-३(+४), ५०९२०-२(१) (ए जन तोरी मुरती मोहन), ४८४७५-४ (-) (संखेसर सुखकारी भला), ४८४७५-६(-) , " पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर पासजिन), ४८१४६-१ (+), ४८५१८(+), ५१६८१-२, ४८९२६.५(१) पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (भवि तुमे वंदो रे), ५१२६७-१ पार्श्वजिन स्तवन -शंखेश्वर, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (संखेश्वर वीनती), ५०३९८-३ पार्श्वजिन स्तवन -शंखेश्वर, मु. रंग, मा.गु., गा. ७, पद्य, म्पू, (दिलरंजन जिनराजजी), ५०८०६-३ , पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, मु. विद्याचंद, मा.गु. गा. ४३, वि. १६४३, पद्य, भूपू. (श्री जिवरसदाओल ए), ४९५१४ " पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, आ. हंसभुवनसूरि, मा.गु गा. ४६, वि. १६१०, पद्य, मूपू (सासना देवी मन धरीए), ५१४१४(३) पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वरतीर्थ, ग. कुंअरविजय, मा.गु, गा. ११, पच, मूपू (प्रह उठी प्रणमे), ४८३४८-३(+), ५०१०४(+) पार्श्वजिन स्तवन -शंखेश्वरतीर्थ, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ७, वि. १८६६, पद्य, मूपू., (श्रीसंखेसर पासजी रे), ४८९९८-२ (+) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अंतरजामी सुण अलवेसर), ५११५५-२(#) पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वरतीर्थ, मु. नित्यविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू (ध्यान धरी प्रभु), ५१९५०-१ पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वरतीर्थ, मु. रंगविजय, मा.गु. गा. ६, पद्य, मूपू. (जी प्रभु पासजी पासजी), ४९४६१-१) पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वरमंडण, मु. कांति, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (तत थेई तत थेई राज), ५०५२८-५ पार्श्वजिन स्तवन -शंखेश्वरमंडण, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (मुझनै परतो ताहरो रे), ४८३९९-२ (+) " For Private and Personal Use Only ५६७ Page #585 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१२ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरमंडण, मु. विद्याचंद्र, मा.गु., गा. २७, वि. १६६०, पद्य, मूपू., (सरसति मात पसाउले एतो), ५१३२३(+), ४८३५३-१ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरमंडन, मु. केसरविमल, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सुणि रे साहिब माहरा), ४८२७६-२ पार्श्वजिन स्तवन-शामला, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (सामल पार्श्वजिनेश्वर), ५००९७ पार्श्वजिन स्तवन-शामला, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पूजाविधि माहे भावीय), ४९९६७(#) पार्श्वजिन स्तवन-समवसरणविचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., ढा. २, गा. २७, पद्य, मूपू., (श्रीजिनशासन सेहरो जग), ४९८४४-१ पार्श्वजिन स्तवन-सम्मेतशिखरतीर्थ, मु.खुशालचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (तुम तो भले विराजो जी), ५०७८७-३() पार्श्वजिन स्तवन-सहस्रफणा, मा.गु., पद्य, म्पू., (गंगातट तपोवन माहे),४९१९०-२(5) पार्श्वजिन स्तवन-सुरतमंडन, ग. जिनलाभ, मा.गु., गा. ९, वि. १८१७, पद्य, मूपू., (सहसफणा प्रभु पासजी), ५१८५३-३(#) पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभन, ग. अमृतधर्म, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (थंभण पास जुहारीयैरे), ४८६३०-२ पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, उपा. कुशललाभ, मा.गु., ढा. ५, गा. १८, पद्य, मूपू., (प्रभु प्रणमुंरे पास), ४८१८०-१(+$), ४८४३९(+#), ५०४०७ पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, आ. नंदसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सकल मूरत त्रेवीसमो), ५१६८७-५ पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, मु. भुवनकीर्ति, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (तूं ज्ञानी तुझनै कहू), ४९५६१-२ पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, मा.गु., गा. १६, पद्य, मपू., (थंभणपुर श्रीपास जिणं), ५१००४ पार्श्वजिन स्तवन-स्थंभन, उपा. शांतिचंद्र, मा.गु., ढा. २, गा. २३, पद्य, मूपू., (मंगलमाला मंदिर केवल), ५०१७०(#) पार्श्वजिन स्तवन-स्यावानगरमंडन, पं. सुगणकीर्ति, मा.गु., गा. ९, वि. १७८९, पद्य, मूपू., (प्रभुजी अरज करुं कर), ५०६५२-१(#) पार्श्वजिन स्तुति, आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अश्वसेन नरेसर वामा), ४९५९३-१(#), ५२०३५-१(#) पार्श्वजिन स्तुति, मु. नयविमल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (शंखेश्वर पासजी पूजीए), ५०८२८-३(#), ४८८०३-२) पार्श्वजिन स्तुति, मु. महिमरंग, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पुरुषादानी पासजिणंदो), ५१२१९-२(+#) पार्श्वजिन स्तुति, मु. वीरविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पासजिणंदा वामानंदा), ५११९२-२ पार्श्वजिन स्तुति, ग. हेमविजय, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (भवीयण भाव धरीने रे), ५०५६३-१(#) पार्श्वजिन स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (गवडि फलवधि सामी), ५०१५६-२(+#) पार्श्वजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, श्वे., (टीलरी मुखमंडण सोहे), ५०८५१-२($) पार्श्वजिन स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (श्रीसंखेश्वर समरता), ५००४७-१ पार्श्वजिन स्तुति-उन्नतपुरअजाहरा, मु. भावसागर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीअजाहर पासजिणंद), ५१३८६-२(+#) पार्श्वजिन स्तुति-गोडीजी, ग. शिवचंद्र, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (निशमय गवडीश्वर), ५०८९७-१ पार्श्वजिन स्तुति-ब्राह्मणवाड, पुहि., गा. २, पद्य, मूपू., (पारसनाथ के नामसे सब), ५०१४२-३(+$) पार्श्वजिन स्तुति-शंखेश्वर, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (पाश संखेश्वरा साज्य), ५०३९७-२(#) पार्श्वजिन स्तोत्र-गोडीजी, उपा. उदयविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीजिनमुख पंकज), ५१८४६-१ पार्श्वजिन स्तोत्र-रावण, ग. रंग, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (मुझ आज कल्याणनी वेलि), ४९९२१-२(+) पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वरतीर्थ, मु. मेघराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीसकल सार सुरतरु), ५१०९०-१(+) पार्श्वजिन होरी, मु. रत्नसागर, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (रंग मच्यो जिनद्वार), ४८६२६-४(#), ५११०८-६(#) पार्श्वजिन होरीपद, मु. जिनरंग, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (मेरे पारसप्रभुजी के), ५०९९१-७ पार्श्वपुराण, जै.क. भूधरदास, पुहिं., अ. ९, पद्य, दि., (मोह महातम दलन दिन,), प्रतहीन. (२) पार्श्वपुराण-प्रतिमापूजन वर्णन, पुहिं., गा. २२, पद्य, दि., (प्रतिमा धातु पाषाण), ४८९८८ पुण्यछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३६, वि. १६६९, पद्य, मूपू., (पुण्यतणां फल परतखि), ४८३७१-१($) पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा.८, गा. १०२, वि. १७२९, पद्य, मूपू., (सकल सिद्धिदायक सदा), ५१८८९(+#), ५११४२(2) पुद्गलगीता, मु. चिदानंद, मा.गु., गा. १०८, पद्य, मूपू., (संतो देखीयें बे प्रग), ४९७४८($) For Private and Personal Use Only Page #586 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट २ - पुद्रलपरावर्त विचार, मा.गु., गद्य, भूपू (नाम १ गुण २ तिसंख ३), ४९६३९ 1 पुष्पमंजरी, मा.गु., पद्य, वै., (सीस मुकुट कुंडल झलक), ४९८७४-२($) पृथ्वीचंद गुणसागर वेली, मा.गु., गा. ५४, पद्य, मूपू., (सिरिनेमि जिणेसर नमिय), ४९८४७-४ ($) पृथ्वीचंद्रनरेंद्र चरित्र, आ. माणिक्यसुंदरसूरि, मा.गु., ग्रं. २१००, वि. १४७८, गद्य, मूपू., (श्रीमहीपाला या विश्व), ४९५१० ($) पोषदशमी तिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु. गा. ४, पद्य, मूपू., (इहलोक परलोके पूरे), ५१३३२-२ पौषध के २१ दोष, मा.गु., गद्य, मूपू., (वासी विना पाणी आणी), ५०२९१-१ पौषधसामाइक सज्झाय, पंडित. सुमतिकमल, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (वीर जिणवर रे पासि), ५१८३१-२(#) प्रजनकंवर लावणी, मु. खूबचंद ऋषि, पुहिं. गा. २२, वि. १९६४, पद्य, खे, (वे प्रजनकंवर कि), ४८२२० (+) प्रतिक्रमण सज्झाय, मु. आणंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू (दोय घडी मन समरस आणी), ५१४२२-२(१) प्रतिक्रमण सज्झाय, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे. (आज एकादशी रे नणदल), ४९१८७ प्रत्याख्यान ४९ भांगा, मा.गु., गद्य, मूपू., (मनई न करूं वचने न ), ४९७६७(+) " प्रत्याख्यान सज्झाय -दुविहार, मु. मानविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (पहिला प्रणमी सरसति), ५०२५५ प्रदेशीराजा कथा, मा.गु., गद्य, भूपू. (बुद्धिवंतनर क्षमानि), ५१०४७-४(5) प्रदेशीराजा चौडालियो, मा.गु., डा. ४, पद्य, भूपू (हाथ जोडी की वीनती), ५१८९१-१ प्रभु स्तुति, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे. (प्रभु दर्शन सुख संपद), ४८८८६-२ (+) प्रश्नोत्तर विचार, मा.गु., प्रश्न. १९, गद्य, म्पू, (कोई कहे तप संयमथी), ५१०६१ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रदेशीराजा चौपाई, मु. जेमल, मा.गु., ढा. २७, वि. १८०७, पद्य, मूपू., (रायप्रसेणीसूत्रमे), ५१२०५ ($) प्रदेशीराजा सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (सेतंबिका नयरि सोहांम), ४८४७७ प्रभंजनासती सज्झाय, ग. देवचंद्र, मा.गु, ढा. ३, गा. ४९, वि. १८वी, पद्य, मूपू (गिरि वैताढ्यने उपरे), ४८९५६-१(१), ४९१४४-२ प्रभात वंदना, मु. चंद्रकीर्ति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (प्रभाते उठि करुं), ५११२१-२(#) प्रभात सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु गा. ५, पद्य, मूपू (जोबनीयानी मोजो फोजो), ४९९४३-३, ५०१४०-१ " प्रभु दर्शनपूजनफल चैत्यवंदन, उपा. विनयविजय, मा.गु, गा. १४. वि. १८वी, पद्य, मूपू (प्रणमुं श्रीगुरूराज), ४९१२०, ५०८२८-१(#) प्रसन्नचंद्र राजर्षि सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (प्रणमुं तुमारा पाय), ५१२७८-१(०), ५१९१८-१) प्रहेलिका कवित, पुहिं. गा. १, पद्य, चे. (सूर आयो सिरपर छांट), ५०४८७-२ " प्रहेलिका रहस्य, पुहि., गा. १, पद्य, खे, (एक नर आव्यो नगर में). ४८५४७-३ (+) " प्रहेलिका श्लोक संग्रह, मा.गु., गा. २, पद्य, जै. ?, (एक अनोपम देस नगर), ५१६१०-२, ५०७८८-३) " प्रहेलिका संग्रह, पुहिं, गा. ४, पद्य, थे. (पवन को करें तोल गगन), ४९९३९-२, ५००६०-५, ५०५७८-३, ५१५४०-२(४) प्रहेलिका हरियाली, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (एक नारी बहुं पुरुष), ४८५४७-१ (+), ५०७०२-१(#), ५०५५० () प्राणातिपात विरमणव्रत स्वाध्याय, मु, तिलकविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू (जी हो पहिला समकित ) ५१४५४-२ प्रायश्चित विधि यंत्र, मा.गु. को.. .. (--), ५१३५१-२ " प्रासुक जल सज्झाय, मु. ज्ञानभूषण, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (सरसति चरणकमल नमीय), ५१६७१(#) प्रास्ताविक आत्मबोधक दहा, पंन्या, प्रेमविजय, मा.गु.. गा. ६५, पद्य, भूपू (माया जाल मूकी परि सु. ५००२७ प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पुर्हि, मा.गु., गा. ७१, पद्य, खे, (पडिवन्नइ माछा भला बग), ५०२१०-३(+), ४९८२७-३, ५०२२९-२, ५१९७७-३ प्रास्ताविक दोहा संग्रह, मा.गु., रा., गा. २५, पद्य, वै., ( बुरी प्रती भमर की), ४९१७१-२(+$), ५१०१२-३, ५०९२७-३(#), ५१४६४-२१०१ ४९८६०-६) प्रियमेलक चौपाई -दानाधिकारे, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ११, गा. २२०, वि. १६७२, पद्य, मूपू., (प्रणमुं सद्गुरु पाय), ५०६२८-१ फूलडा सज्झाय, पुहिं., रा., गा. २२, पद्य, मूपू., (बाई रे कोतिग दीठ), ५०४३३-१(+), ५०२३३-१, ५०२८४-१, ५१५५३(#) For Private and Personal Use Only ५६९ Page #587 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१२ (२) फूलडा सज्झाय-टीका, सं., गद्य, मूपू., (श्रीवीर निर्वाणात्), ५०४३३-१(+), ५०२३३-१, ५०२८४-१ (२) फूलडा सज्झाय-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीमहावीर मोक्ष), ५१५५३(#) फूलमाला सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (कहेयो पंडित ते कुण), ४८५४७-२(+) बंधादिकरण भेद, मा.गु., गद्य, श्वे., (बंधनकरण संक्रमणकरण), ५०२९३-३(-) बलदेवमुनि सज्झाय, मु. भूपति, मा.गु., ढा. ३, गा. ३०, वि. १७४४, पद्य, श्वे., (श्रीचिंतामणि गच्छपति), ४९६४५(#) बलदेवमुनि सज्झाय, मु. सकलमुनि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (बलदेव महामुनि तप तपइ), ५०००८-२(+) बलभद्रकृष्ण सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (द्वारकानगरथी नीसा), ५०८१७-१(+#) बलभद्रमुनि सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. ३०, पद्य, मूपू., (द्वारिका हुंती निकल), ४९६१०(2) बलभद्रमुनि सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (मासखमणने पारणे तपसी), ५०७४६-२(+) बारराशिवर्णमाला, मा.गु., गद्य, (चुचे चो ला लि लु), ४८४७१-३ बारहखडी छंद, पुहि., गा. ७७, पद्य, श्वे., (प्रथम नमो अरिहंत को), ४९२५१ बालकृष्णभक्ति पद, चंद्र सखी, पुहिं., गा. ४, पद्य, वै., (मातपिता मल जनम दिआ), ५१२०८-८(#) बावनी भले अर्थ, मा.गु., गद्य, श्वे.?, (भले कहितां अरे बापडा), ४८५३०(१), ४९४४४-१(#) बाहुबली सज्झाय, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (वीराजी मानो वीनती), ५०१७९-१(#) बीजतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (बीज कहे भव्य जीवने), ४९११९-२(+), ४८८३३-१, ५०६०१, ५१०५०, ५०२७५(2) बीजतिथि स्तवन, उपा. ऋद्धिविजय, मा.गु., गा. १६, वि. १८७१, पद्य, मूपू., (सरसति माता नमी करी), ५०७०४ बीजतिथि स्तवन, ग. गणेशरुचि, मा.गु., गा. १९, वि. १८१९, पद्य, मूपू., (श्रीश्रुतदेवि पसाउले), ५०१९१-१, ५१६६२-१(#) बीजतिथि स्तवन, मु. चतुरविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. १६, वि. १८७८, पद्य, मूपू., (सरस वचन रस वरसती), ४८९०४ बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (दिन सकल मनोहर बीज), ४९४४९-१(+), ४८१४१-१, ४८२७४-२, ५१३३२-४,५१४६५-१(2), ५१०१३-५-) बीजतिथि स्तुति, मु. वीरसागर, मा.गु., गा. ४, पद्य, म्पू., (पूर्वदिसि उत्तरदिशि), ५००८१ बुढ़ापा चौपाई, मा.गु., ढा. १२, वि. १८४५, पद्य, मूपू., (जंबुद्वीपनै भरतमै), ४९१२८(5) बुद्धि रास, आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., गा. ६२, पद्य, मूपू., (प्रणमु देवी अंबाई), ४९३४१(+#), ५१०१५(२), ५१२९०-१(#$), ५१८९८-१(-2) ब्रह्मदत्त कथा, मा.गु., गद्य, श्वे., (शाकेतपुर नगर वीरचंद), ५०५६९(#$), ५१०४७-३(#) ब्राह्मीसुंदरी सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. २१, वि. १८४३, पद्य, श्वे., (रिखभ राजा रे राणी), ५०९५८-२($) भरतचक्रवर्ती सज्झाय, मु. कनककीर्ति, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (मनमें ही वैरागी भरत), ५१८४७-६ भरतचक्रवर्ती सज्झाय, मु. सुंदरमुनि, मा.गु., ढा. २, गा. २९, पद्य, मूपू., (सरसति मात पशाउले पाम), ४९६९१-१(-) भरतचक्रवर्ती सज्झाय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (भरत प्रत देखी आणंदे), ५१५७८-३(#) भरतबाहुबली संवाद, मु. कुशल, मा.गु., गा. ६४, पद्य, मूपू., (सारद माता समरीW), ४९०९१-१, ४९२४७ भरतबाहुबली सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मूपू., (आदे आदि जिणेसरु रे), ४९४४० भरतबाहुबली सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (राजतणा अति लोभीया), ४९०९१-३, ५१४८५-१ भरतमहाराजा सज्झाय, मु. हीरालाल, मा.गु., गा. ११, वि. १९४५, पद्य, श्वे., (मुगतपद पाया हो), ४९१३२-१(+-) भरतराजा ऋद्धिवर्णन सज्झाय, ऋ. आसकर्ण, मा.गु., गा. २६, वि. १८३५, पद्य, श्वे., (प्रथम सीवरीये ऋषभजिण), ४९९८९ भले अर्थ की वार्ता, मा.गु., गद्य, मूपू., (भले ते स्युं अरे जीव), ५१४२१ भवदेवनागिला सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (जंबू भरत भू भामिनी), ४९७९३ भवानीदेवी घघर निसाणी, भवानी, मा.गु., गा. १६, पद्य, वै., (खेजडले थान भवानी), ४९२६८-२ भावपूजा सज्झाय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (ज्ञाननीर नीरमल आणी), ४९९५०-६(+-) For Private and Personal Use Only Page #588 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७१ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ भावपूजा स्तवन, मु. सोभचंद ऋषि, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (पूजा श्रीजिनराज की), ४९४०८-३(१) भृगुपुरोहित चौढालियो, मा.गु., ढा. ४, पद्य, श्वे., (देव हुंता भव पाछलै), ४८२४८-८ भैरव कथा, मा.गु., गद्य, श्वे., (मारग चालता डावी भइरव), ४९९१३-२(-) भैरवीमाता छंद, मु. सुमतिरंग, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., वै., (सांभलि माता संकरी),४८६२८-२(+) भोजनछत्रीसी-महावीरजिनस्तुतिगर्भित, आ. दयासागरसूरि, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू, (त्रिशला राणी कहै), ५२०३१(#) मंगल दीवो, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (दीवो रेदीवो मंगलिक), ५०५२८-३ मंडक चोर कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीतीर्थंकर करु), ४९४९२-२(#) मंडक चोर दृष्टांत कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (चोरी पसथ ससरी नासो), ४९४९२-५(#) मंत्र संग्रह*, मा.गु., गद्य, वै., (लीली बलकी तुंबडी), ५०९०३-२, ५०९९९-२(#) मंदोदरीरावण संवाद सज्झाय, मु.खीवराज, रा., गा. १०, वि. १९३२, पद्य, श्वे., (ईण लंकगढ मे आइ असवार), ५१३९८-१(#) मदनरेखासती चौपाई, मा.गु., गा. १७९, पद्य, मूपू., (वापै सु आपै धनन्नी), ४८८४६-१, ४८२८१-२($) मदनरेखासती रास, मु. विनयचंद, मा.गु., ढा. ६, वि. १८७०, पद्य, स्था., (आदि धरम धोरी प्रथम), ५११५० मदनरेखासती संधि, मा.गु., गा. ४१, पद्य, मूपू., (पण सामिणि सारद), ५०१६१(१) मधुकैटभ पूर्वभव ढाल, मा.गु., ढा. ३, गा. ४९, पद्य, श्वे., (राय अयोध्या आवीयो), ५०८८७ मधुबिंदु सज्झाय, मु. चरणप्रमोद-शिष्य, मा.गु., ढा. ५, गा. १०, पद्य, मूपू., (सरसति मुझने रे मात), ४८८१९-१(+#), ५०१६९-२, ५०५६५, ५११४८,५११६५, ५०१८४-२(#) मनपंखीया सज्झाय, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (रे मन माहरा म पडि), ५०५४२(-) मनवशीकरण सज्झाय, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मनाजी तुं तो जिन), ५१०३४-७ मनुष्यजन्म सज्झाय, मु. विजयदेव, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (सुरतरूनी परो दोहिलोज), ४८२५२-२(+) मयणासुंदरीसती सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सरस्वती माता मया करो), ४९५१५ मरुदेवीमाता सज्झाय, क. ऋषभ, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (तुझ साथे नहीं बोलु), ४९९०९-१ मरुदेवीमाता सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (एक दिन मरुदेवी आइ), ५१४९४ मल्लिजिन अच्छेरा वर्णन-तीसरा, मा.गु., गद्य, मूपू., (एहि जंबुद्वीपे माहा), ५१६३१(#) मल्लिजिन जन्मोत्सव स्तवन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मल्लिजिणेसर ध्याउं), ५००१४-३ मल्लिजिन पद, मु. मोहण, रा., गा.५, पद्य, श्वे., (मीथलानगरी देस विदेह), ४८५८३-३ मल्लिजिन-पार्श्वजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १३, वि. १८४२, पद्य, श्वे., (हरिआने रंग भरिआ हो), ५१२५०-१ मल्लिजिन स्तवन, मु. कुशललाभ, मा.गु., ढा. ५, वि. १७५६, पद्य, मूपू., (नवपद समरी मन शुद्ध), ५०३८६(+), ५१२६० मल्लिजिन स्तवन, मु. क्षमाविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (मल्लि जिनेसर धर्म), ५००३४-२ मल्लिजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चीत कुंण रमे चित कुण), ४९८९६-२ मल्लिजिन स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (त्रिभुवन प्रभु रे), ४८१५५(+), ४९९३१-१,५११२८ मल्लिजिन स्तवन, आ. बुद्धिसागरसूरि, मा.गु., गा.८, वि. २०वी, पद्य, मूपू., (मल्लिजिन लाग्यु), ५००७५ महाकालीदेवी गरबो, मा.गु., गा. १३, पद्य, वै., (माताजी ओ पावारी), ४९१७६-२ महापरिठवण विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (स्नानपूर्वक नवो वेष), ५१४२६ महावीरजिन २७ भव स्तवन, मु. सोमसुंदरसूरि शिष्य, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (सरसति सामिणि पाए), ५०४४० महावीरजिन २८ उपमा, मा.गु., गद्य, श्वे., (सूर्यानी उपमा १ अग्न), ५११४५-१(-$) महावीरजिन ५ कल्याणक विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीमहावीरना ५ क०), ४९९९०-२(#) महावीरजिन गहुंली, मु. अमृतसागर, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (जी रे जिनवर वचन),४८५६९, ४८८०९-१ महावीरजिन गहुंली, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (प्रभु मारो दीइ छे), ४८३३०-३ महावीरजिन गहुँली, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वीतभय पाटण वीरजी), ५०५२०-२ महावीरजिन गहुंली, मु. राजेंद्र, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (जी रे गुणसील चैत्य), ४९११९-१(+), ५०७०५-२(#) For Private and Personal Use Only Page #589 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५७२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१२ महावीर जिन गहुली, मु. विशुद्धविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (बहिनी अपापानयरी), ५०६२७-३(+) महावीर जिन गहुली - प्रथम देशनागर्भित, मु. ज्ञानउद्योत, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू (गुणशिलवनमा देशना ), ५०७७८-१( महावीरजिन चातुर्मास विवरण, मा.गु., गद्य, श्वे. (पहेलो चौमासो मारवाड), ५०१९२-१($) महावीर जिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, भूपू (बंदु जगदाधार सार सिव), ४९९९७-६(१) महावीरजिन चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु. गा. ३, पद्य, भूपू (श्रीसिद्धारथ नृपकुल), ४८९६६-४ महावीरजिन चैत्यवंदन - दीपावलिपर्व, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (देव मलिया २ करे उछर), ४८९६६-३ יי महावीरजिन चौढालिया, मु. रायचंद ऋषि, रा. डा. ४, गा. ६३, वि. १८३९, पद्य, स्था. (सिद्धार्थकुलमई जी), ४८४०३(+) महावीरजिन जन्मकुंडली स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. १०, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (सेवधी संचउ घेरियां), ५००९४ महावीरजिन जन्मोत्सव वर्णन, मा.गु., गद्य, श्वे., (बारमइ दिवसे आपणां), ५००६४(#$) महावीरजिन देशना गहुँली, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वीर जिणंद समोस), ४८५२८-२ महावीरजिन नमस्कार, मु. ऋषभ कवि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (वंदु वीरजिणंद महियल), ५०९१७-५ महावीरजिन निसाणी - बामणवाडजीतीर्थ, मु. हर्षमाणिक्य, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मूपू., (श्रीमाता सरसती सेवक), ४९८९४-१ (#) महावीरजिन पट्टावली, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीमहावीर पछै एकसो), ५१०६९ (+#) महावीर जिन पद, मु. जिनचंद, पुहिं, गा. ४, पद्य, भूपू (अखियां मेरे जिनजी से), ५०७८७-१८) " महावीरजिन पद, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद. ४, पद्य, मूपू., (मारे भलो रे उगो), ५०३५७-३ महावीरजिन पद, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु गा. ३, पद्य, भूपू (सचे दुख टालोगे), ५१०३४-३ ', 11 महावीरजिन पद, मु. देवीलाल, पुहिं., गा. ५, वि. १८६६, पद्य, स्था., (श्रीवीरप्रभुजी वकसो), ५२०४७-६ " महावीरजिन पद, मु. फकीरचंद, पुहिं. गा. ४, पद्य, मूपू. (मेरो मन लागी रह्यो) ५०१३९-८(१) महावीरजिन पद, मु. भुवनकीर्ति, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (मो मन वीर सुहावै), ५०२३५-५(#) महावीरजिन पद, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (चालो राजा श्रेणिक), ४९१९३-७ ( ७ ($) महावीरजिन पद, पुहिं., गा. ३, वि. १८३९, पद्य, मूपू., ( लाग्यो म्हांरो वीर), ४८६१६-२ महावीरजिन पद पावापुरीतीर्थ, मु. नवल, पुहिं, गा. ५, पद्य, थे. (पावापुरी मुकरा), ५०६७२-१ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महावीरजिन परिवार वर्णन, मा.गु., गद्य, श्वे., (श्रीमहावीरने), ५१६५८-१(#) महावीरजिन परिवार स्तवन, क. कमलविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वीरजिनेसर सासनसार), ४९१८९-२(+), ४८८५१-२ महावीरजिन पूजाविधि स्तवन - दिल्लीमंडन, मु. गुणविमल, मा.गु., गा. २७, पद्य, मूपू., (प्रणमी वीर जिणेसर), ५००५४-१ महावीरजिन भास, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वीरजी आया रे गुणशैल), ४८२४१-४, ४९८९२-१(#) महावीरजिन भास, मा.गु, गा. ५, पद्य, मृपू., (सहीयर म्हारी अरिहंत) ५१२११-१(०) महावीर जिन विनती स्तवन- जेसलमेरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु.. गा. १९, पद्य, भूपू (वीर सुणो मुज विनती), ४९५५७(१), + ५१२५५-६, ५१३२८(#) महावीर जिन सज्झाय, मु. सकल, मा.गु. गा. १२, पद्य, मृपू (एक वरसीजी ऋषभ करी), ४९७५२, ५०३१३ महावीरजिन सज्झाय- गौतम विलाप, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (आधारज हुं तो रे एक), ४८८४७ (+), ४९२०४ महावीरजिन समवसरण स्तवन, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू (मोवण कुंडलनरना अवदात), ५१२३५ महावीरजिन सलोको, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सरसती सांवण तुज पाइज), ४९४६२-२(#) महावीरजिन सवैया, ग. ज्ञानतिलक, पुहिं., सवै. १, पद्य, मूपू., (त्रिभुवजन तात निरमल), ४९८८८-७ (#) महावीरजिन स्तवन, मु. अमृत, पुहिं, गा. ६, पद्य, थे. (तु जगतारन राजा अव), ४९५६७-३ 5 , महावीरजिन स्तवन, मु. अमृत, मा.गु. गा. ११, पद्य, वे (त्रिसला देवीनो नंद), ५१४६७-१ महावीरजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वीरजीने चरणे लागु), ५०६९१-२ महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५, वि. १७८९, पद्य, मूपू., (जगपति तारक श्रीजिनदे), ५१६२६-१ महावीर जिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू.. ( में तो नजीक रहस्याजी), ४९८३५-२ For Private and Personal Use Only Page #590 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५७३ महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. १२, पद्य, स्पू., (श्रीप्रभुजी तुमे तो), ५१७००, ५०१९३-३(#) महावीरजिन स्तवन, मु. गमानसंग ऋषि, रा., गा. ११, पद्य, श्वे., (सर्णो जे मोटोश्रीजुग), ४९७८८-२ महावीरजिन स्तवन, मु. जयसागर, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (सूरत बंदर महावीर), ५१४५०-३(-#) महावीरजिन स्तवन, मु. जिनउत्तमविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (रूडी ने रढीयाली रे), ५१६७३-३(5) महावीरजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (भविक कमल पडिबोहतो), ५०८९९-६ महावीरजिन स्तवन, ऋ. जैमल, मा.गु., गा. १८, पद्य, श्वे., (सिद्धारथनंदन मुख चंद), ५०३१५-३(-) महावीरजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (दरिसण आव्या रे हो दर), ४९००७-१ महावीरजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (वाटडी विलोकुं रे), ४९९१५-२ महावीरजिन स्तवन, मु. दुर्गादास, मा.गु., गा. १६, वि. १८४९, पद्य, श्वे., (जोग लेइनै वीर जिणेसर), ५१२६४-२ महावीरजिन स्तवन, मु. देवविजय, मा.गु., गा. ७, वि. १८१६, पद्य, मूपू., (श्रीसिद्धारथनंदनो), ५१०१०-२(+) महावीरजिन स्तवन, मु. धर्मकीर्ति, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (तिसलानंदण सांभलो रे), ५१४२८ महावीरजिन स्तवन, आ. नंदसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (साचुंरि परवर्या जगत), ५१६८७-६ महावीरजिन स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (रुडीने रढीयाली रे), ४८२४१-१ महावीरजिन स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (वीर हमणां आवे छे), ४८९३६-२ महावीरजिन स्तवन, मु. प्रीतिविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (नणदल हे नणदल सीधारथ), ५१७०७-३($) महावीरजिन स्तवन, मु. भूधर, पुहि., गा.७, पद्य, श्वे., (--),५१५३३-१(+#) महावीरजिन स्तवन, मु. मुक्तिविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (त्रसलानंदन विरजी रे), ४८७४८ महावीरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (गिरुआरे गुण तुम), ४९४०३-२(+) महावीरजिन स्तवन, मु.रंग, मा.गु., गा. ९, वि. १६९८, पद्य, मूपू., (मान धरीनि भेटस्युरे), ५१६६०-६(#) महावीरजिन स्तवन, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रभुजी वीरजिणंदने), ५१६६४-१(#) महावीरजिन स्तवन, पंन्या. रंगविजय, म., गा. ६, पद्य, मूपू., (सिधार्थसुत वंदिय), ४९६५५ महावीरजिन स्तवन, मु. रतनचंद, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे., (सवि दुख टालेगे महावी), ५०३१६-४(#) महावीरजिन स्तवन, मु. रामजी ऋषि, मा.गु., गा.११, वि. १८२८, पद्य, श्वे., (श्रीसरसती सुप्रसाया), ४८९९३-३(+) महावीरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १२, वि. १८३७, पद्य, श्वे., (सिद्धारथ कुल दीपक), ५०२२१ महावीरजिन स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (भक्ति तुमारोवीनवे), ५०६९० महावीरजिन स्तवन, मु. रूपसिंघ, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रथम दीपे दीपता रे), ५०००९-२(+) महावीरजिन स्तवन, उपा. लक्ष्मीरतन, मा.गु., ढा. १, गा. २३, वि. १६८१, पद्य, मूपू., (केवल दरपण संक्रमैजे), ४८४८४ महावीरजिन स्तवन, मु. विनयचंद, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (जगतगुरु वीर जिणेसर), ५०२७४-३(+-) महावीरजिन स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (चरमप्रभु मुख चंद्रमा), ५१४०१-१ महावीरजिन स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा.७, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (जय जिनवर जग हितकारी), ४९८०६(+) महावीरजिन स्तवन, मु. वीर, मा.गु., गा.१०, पद्य, मूपू., (वीरकुंवरनी वातडी), ५१४०१-३ महावीरजिन स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १०, पद्य, भूपू., (सरसती सामण दीयो), ४९८९०-३(+) महावीरजिन स्तवन, मु. सुख, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे., (तुमे चार दुरे करी), ४८४७५-८(-) महावीरजिन स्तवन, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (पुत्र मोहाइंदोजी तस), ५१७४०-३(+) महावीरजिन स्तवन, मा.गु., गा.११, पद्य, श्वे., (मननो वाहलो वीरजी), ४९३९३ महावीरजिन स्तवन, रा., गा. १९, पद्य, श्वे., (सीधारथ कुल उपना तसला), ५००१६-१(-) महावीरजिन स्तवन-१४ स्वप्नगर्भित, क. जैत, मा.गु., गा. २८, पद्य, मूपू., (एक मन वंधु श्रीवीर), ४८३३५ महावीरजिन स्तवन-२७ भव, मु. लालविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ८१, वि. १६६२, पद्य, मूपू., (विमल कमलदल लोयणा), ५०६८७ महावीरजिन स्तवन-४५ आगम संख्यागर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., ढा. ३, गा. २८, वि. १७७३, पद्य, मूपू., (देवांना पिण जेह छै), ४९४७३-१(+#) For Private and Personal Use Only Page #591 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१२ महावीरजिन स्तवन-५ कल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. ५६, वि. १७७३, पद्य, भूपू., (शासननायक शिवकरण वंदु), ४८१९७-१,४८३४६, ४८८८२, ४८९२८, ४९६७१, ४९६९० महावीरजिन स्तवन-अल्पबहुत्वविचारगर्भित, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. १४, वि. १८२३, पद्य, मूपू., (विलहल वीर जिणंदना पद), ५१५७२(#) महावीरजिन स्तवन-उपधानतपविधिगर्भित, मु. विनयविजय, मा.गु., गा. २७, वि. १७उ, पद्य, मूपू., (श्रीवीरजिणेसर सुपरे), ४९७०४, ५००५५(#), ५०३७३-१(2) महावीरजिन स्तवन-छट्ठाआरागर्भित, श्राव. देवीदास, मागु., ढा. ५, गा. ६६, वि. १६११, पद्य, मूपू., (सकल जिणंद पाय नमी), ४९८५२-१(+#), ४९१२७-१, ५१९५०-१ महावीरजिन स्तवन-ज्ञानदर्शनचारित्रसंवादरूप नयमतगर्भित, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., ढा. ८, गा. ८१, वि. १८२७, पद्य, मूपू., (श्रीइंद्रादिक भावथी), ४९१४६-१ महावीरजिन स्तवन-ज्ञानदर्शनसंवादरूपगर्भित, ग. रत्नविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर भुवन), ५१५८१-७(#) महावीरजिन स्तवन-डीगरी, पुहिं., गा. २०, वि. १९२८, पद्य, मूपू., (तिर्थकर महावीरने), ५११४० महावीरजिन स्तवन-तपगर्भित, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (बारे वरसी वीरजीए तप), ५१३१४-१(-2) महावीरजिन स्तवन-दीपावलीपर्व, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (मारग देशक मोक्षनोरे), ४८६५१-१(+), ४८५८६, ४८७८९, ५१२०३ महावीरजिन स्तवन-दीपावलीपर्व महिमा, मु. भावविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (तीरथमा है जगवडो), ५०७८६-२(-) महावीरजिन स्तवन-निगोदविचारगर्भित, मु. न्यायसागर, मा.गु., ढा. २, गा. ४३, पद्य, मूपू., (उपकारी असमान मोहन), ४८७४४ महावीरजिन स्तवन-निसालगरगुं, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (त्रिभुवन जिण आणंदा), ५१६९१, ४९७३१(२), ५०५२१०) महावीरजिन स्तवन-पताशापोल अहमदाबाद चैत्यप्रतिष्ठा व जिनबिंबप्रवेशगर्भित, मु. सरूपचंद, मा.गु., गा. ३६, वि. १९२२, पद्य, मूपू., (चौवीसमा जिनवर गुण), ४९१०५(१) महावीरजिन स्तवन-पारणागर्भित, मु. माल, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत अनंत गुण), ४८२८८, ५१८९१-२,५०१९०(#) महावीरजिन स्तवन-पावापुरमंडन, गच्छा. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., गा. १७, वि. १८४८, पद्य, मूपू., (वीर जिनेसर सांभल), ५१४९३ महावीरजिन स्तवन-बामणवाडजी, मु. कमलकलशसूरि-शिष्य, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (समरवि समरथ सारदा), ५१५२०(१), ५१७४२-१(2) महावीरजिन स्तवन-मोहराजा कथागर्भित, उपा. मानविजय, मा.गु., गा. ५५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर भुवन), ४९३१०(+) महावीरजिन स्तवन-समवसरण, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (त्रिशलानंदन वंदीये), ५००९९, ५१३१९ महावीरजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मुरति मनमोहन कंचन), ४९६३३-९, ५१६३६-५ महावीरजिन स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा.४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (जय जय भवि हितकर वीर), ४८९६६-६ महावीरजिन स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मनोहर मुरति महावीर), ४८९६६-५ महावीरजिन स्तुति, मु. विशुद्धविमल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर माता सार), ४८५१७ महावीरजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (दया तणो सायर मुक्ति), ५०६१०-३ महावीरजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (बालपणे डाबो पाय चांप),५१६३६-४ महावीरजिन स्तोत्र-प्रभाती, मु. विवेक, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सेवो वीरने चित्तमा), ४९८२८-१ महावीरजिन हालरडु, पं. दीपविजय कवि, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (माता त्रिशला झुलावे), ४८१६१ मांडण बंधाणा के उठां, मांडण बंधारा, मा.गु., गा. १०, पद्य, जै.?, (हरषिं होम कह्या अति), ५०१९८-१(+) माणिभद्रवीर छंद, मनो, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (साचो मणिभद्र वीर), ४८४६०-२(#$) माणिभद्रवीर छंद, मु. लालकुशल, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (सरसति भगवती भारती), ५११०२-२(-2) माणिभद्रवीर छंद, आ. शांतिसूरि, मा.गु., गा. ४३, पद्य, मूपू., (सरसति सामनि पाय), ५१५६१-१(+#), ४९७६२, ५१३७०-१(#) माणिभद्रवीर छंद-मगरवाडामंडन, पा. राजरत्न, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (सूरपति सेवित शुभ खाण), ५१८३० For Private and Personal Use Only Page #592 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २ माणिभद्रवीर स्तोत्र, उपा. उदय वाचक, मा.गु, गा. २२, पद्य, भूपू (नित समरुं त्रिपुरा), ५०३६१-१ मातामहिमा सज्झाय, मु. सिंघ, मा.गु, गा. १४, पद्य, श्वे. (माय गिरद माय गिरुद), ४९४४७(४) , मातृकाक्षर शकुन विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (अकार होइ तो विजय लाभ), ४९५४१ मात्रिका पाठ, मा.गु., गद्य, श्वे., (ककु केवलु ते करिमां), ४९४४४-२ (#) मानतुंगमानवती रास, अनुपचंद - शिष्य, मा.गु., डा. ८, वि. १८७०, पद्य, मूपू (सरी संत जणेसरु नमतां), ४८९२४(४६) मानतुंगमानवती रास - मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., ढा. ४७, गा. १०१५, वि. १७६०, पद्य, मूपू., (ऋषभजिणंद पदांबुजे), ५०८३१ (#S) मानपच्चीसी, मु. चंद्रभाण, पुहिं. गा. २५, पद्य, ओ., (मानपचीसी करवा मनमै ५०७९६-१ मानपरिहारछत्रीसी, मा.गु., गा. ३७, पद्य, म्पू., (मान न कीजे रे मानवी), ४८६४८-२८-३) मानपरिहार सज्झाय, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (मान न कीजै रे मानवी), ५१८६३ माया सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १०, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (माया कारमी रे माया), ४९११५ मासप्रवेश विधि, मा.गु., गद्य, वे., (प्रथम इष्ट स्पष्ट), ५१०४१-२(#) मुक्तावलीतप विधि, मा.गु.. गद्य म्पू., (बारी ११ मांहे पडिकमण), ४९११२-१ मुक्तिगमन सज्झाय, पुहिं., गा. २० ई. १९२८, पद्य, श्वे. (तीर्थंकर महावीरने), ४९२४८ " मुनिगुण गहुँली, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (अहो मुनि संजम स्युं), ४८५२८-३ मुनिगुण स्वाध्याय, ग. देवचंद्र, पुहिं. गा. ४. वि. १८वी, पद्य, मृपू., (जगतमें सदा सुखी मुनि), ४८९९५-२(१) " मुनिधर्म सज्झाय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (श्रीसदगुरुने चरणे नम), ४८४५६ (+) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुनिमालिका स्तवन, ग. चारित्रसिंह, मा.गु., गा. ३६, वि. १६३६, पद्य, मूपू., (ऋषभ प्रमुख जिन पय), ५१७१६ (+), ४९५३१(#) मुनिशिक्षा स्वाध्याय, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (शांति सुधारस कुंडमा), ४८९२३, ५०१३४ मुनिसुव्रतजिन पद, पु िपद. ४, पद्य, भूपू (मुनीसुव्रतनाथ जिणेसर) ५१२७४-८) ७ मुनिसुव्रतजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., ( अधिका ताहरा हुता जे), ५०८९९-५ मुनिसुव्रतजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू. (मुनिसुव्रतजिन बांदता), ५१८५३-२३(०) मुनिसुव्रतजिन स्तवन, मु. हंसरतन, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (वरसे वरसे वचन सुधा), ५१४९५ मुनिसुव्रतजिन स्तवन - उडाइमंडन, मु. विद्याविजय, मा.गु., गा. ६, वि. २०वी, पद्य, मूपू., (श्रीमुनिसुव्रत), ४८२३०-२ (+) मुनिहित स्वाध्याय, मु, ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू (एहवा मुनीगुण रयणना), ४९३५१-१ मुहपति पडिलेहण ५० बोल, रा. गद्य, मृपू., (प्रथम दृष्टि पडिलेहन), ४९४९६-२, ५१९४८-२(१) मुहपति पडिलेहण के २५ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (सूत्र अर्थ साचो सह), ५१९९२-३ (६) मूर्ख के ७२ बोल, हिं., गद्य, श्वे. ?, (जो बच्चों का साख करे), ५११७७(#) मूर्खछत्रीसी, मु. चौथमलजी म. रा. गा. ३६, वि. १९३५, पद्य, स्था., (सरावक धर्म करो), ४९१३३-१ (+#) " मूर्खशतक, मा.गु., गा. १००, पद्य, श्वे., (धारानगरीइ भोज राजा), ४९०८५-१ (#) ५१८२४ मृगापुत्र सज्झाय, आ. हेमविमलसूरि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (सुग्रीनयरी सोहामणीजी), ४८४७० मृगापुत्र सज्झाय, मा.गु.. दा. २०, पद्य, वे तिण काले ने तिण समै), ४९६९९/-४) " मृगापुत्र सज्झाय, मा.गु., ढा. २, गा. ४+३४, पद्य, मूपू., (प्रणमी पास जिणंदने), ५००७२-१ मृगापुत्र सज्झाय, मा.गु., गा. २७, पद्य, मूपू., (सुग्रीवनगर सुहामणों), ४९२४१-३(+), ५०४३६ (-) मृगापुत्र सज्झाय, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे. (सुग्रीवनवर सोहामण), ५२००७/-) "3 मृगापुत्र सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (पुरसुग्रीव सोहामणो), ४८३१६, ५०३७२ मृगापुत्र सज्झाय, मु, कानजी ऋषि, मा.गु. गा. १२ पद्य श्वे. (पुर सुग्रीव सुहामणो), ४८२१६-१(+) मृगापुत्र सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (सुगरीपुर नगर सोहामणी), ४८९९३-१ (+) " मृगापुत्र सज्झाय, मु. सिंहविमल, मा.गु. गा. २४, पच, मूपु. ( सुग्रीवनयर सुहामणो), ५०७२१(१०), ५१३६८(१), ४८७५४,५०४०२, " , For Private and Personal Use Only ५७५ Page #593 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१२ मृगावती चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., खं. ३ ढाल ३७, गा. ७४५, ग्रं. ११००, वि. १६६८, पद्य, मूपू, (समरु सरसति सामिणी), ५०२१३-१ मृगावतीजेवंती सज्झाय, मु. चोथमल, मा.गु., गा. १७, पद्य, श्वे., (कहे जे वती भोजाइ), ५१८०९-२ मृत्यु सबंधी सुतक विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (जेने घरे जन्म तथा), ५०३४२ मेघकुमार कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (महावीरजीनी वाणी), ५११६०-२(+) मेघकुमार चौढालिया, क. कनक, मा.गु., ढा. ४, गा. ४७, पद्य, मूपू., (देस मगधमाहे जाणीयइ), ५१७२५(+#) मेघकुमार सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (धारणी मनावे रे मेघ), ४८१३९-२ मेघकुमार सज्झाय, क. कुसल, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (वीर जिणेसर आवी समोसर), ५१००७ मेघकुमार सज्झाय, मु. पुनो, रा., गा. २२, पद्य, श्वे., (वीरजिणंद समोसर्या जी), ५०१३७(#) मेघकुमार सज्झाय, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (धारणी मनावे रे मेघ), ५०८५७-१, ५१६६७-१(2) मेघकुमार सज्झाय, मु. प्रेम मुनि, पुहिं., ढा. ३, गा. २३, पद्य, श्वे., (वीर जिणेसर आवीया राज), ५११२९(#) मेघकुमार सज्झाय, मु. लालचंद, मा.गु., गा. २०, पद्य, श्वे., (मुनिवर मेघकुमारजी), ५०३१५-२(-) मेघकुमार सज्झाय, मा.गु., पद्य, श्वे., (वरदे तुं वरदाइनी), ५०७५८(६) मेघकुमार सज्झाय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (वादे वादे रे हो),५१८९१-३ मेघपद संगीत, श्राव. गोकल नवरंग शाह, पुहि., गा. १, पद्य, श्वे., (अगगगग कोह कबाण वरष), ५१२०८-६(#) मेघरथराजा सज्झाय-पारेवडाविनती, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. २१, वि. १७वी, पद्य, म्पू., (दशमे भवे श्रीशांतिजी), ४८१५१ मेघरथराजा सज्झाय-पारेवा रक्षा, वा. श्रीकरण, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (एक पसु पारेवा कारणि), ५०००८-३(+) मेतारजमुनि सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (समदम गुणना आगरु जी), ४९११७, ४९८३५-१, ५१३२७-१(#) मेवाडदेश वर्णन छंद, रा., गा. ४५, पद्य, श्वे., (प्रणमु हुं गुरुपद सद), ५००९१ । मोक्ष सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मोक्षनगर मारु सासरु), ४९४६४ मोहनमुनि गहुंली, श्राव. ललु, मा.गु., गा. ११, वि. १९५०, पद्य, मूपू., (मोहनमुनी ज्ञान गुणे), ५००४० मोह निवारण सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (संसार नयरीइंछे मोहर), ५१४३८-३(+#) (२) मोह निवारण सज्झाय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नीरुपम नगरनी गोद), ५१४३८-३(+#) मोहवल्ली भास, आ. पद्मचंद्रसूरि, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (मोह लाग्योरे चरम), ४९७१७(+) मौनएकादशीतिथि स्तुति, मु. महिमरंग, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (इग्यारसि अरनाथ नमेवउ), ५१२१९-३(+#) मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. २५, वि. १७६९, पद्य, मूपू., (द्वारिकानयरी समोसर्य), ५०२४०(+#), ५१४८१(+#), ५१३०४(#), ४९७०७(s) मौनएकादशीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., ढा. ४, गा. ४२, वि. १७९५, पद्य, मूपू., (जगपति नायक नेमिजिणंद), ४८९३७(#) मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. माणेक, मा.गु., गा. १३, वि. २०वी, पद्य, मूपू., (विश्वनायक मुक्तिदायक), ४८३८६(+) मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १३, वि. १६८१, पद्य, मूपू., (समवसरण बेठा भगवंत), ४८२३९, ४८४०६, ४८४१४, ४९५५४, ४९५५८, ५१२५५-५ मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (एकादशी अति रुअडी), ४९४४९-२(+), ५१३३२-३, ५१४६५-३(२), ५०७६५-२८), ५१०१३-४(-) मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. जिनचंद्र, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अरनाथ जिनेश्वर), ४८३११-२(+) मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (गौतम बोले ग्रंथ), ४९००८, ५००८४,४८३३१-२(-) मौनएकादशीपर्व स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (नेमिजिन उपदेशी मौनएक), ५१६३६-३ यंत्रफल चौपाई, पंडित. अमरसुंदर, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (जिन चउविसइ पाय प्रणम), ५१११४-१(+#), ४८३७७-२, ४९४०१ (२) यंत्रफल चौपाई-बीजक, सं., गद्य, मूपू., (वांच्छा कृतार्थिकृत), ५१११४-१(+#) यंत्रफल वर्णन, मा.गु., गा. २२, पद्य, श्वे., (सरसइ सुगुरु नमिय), ४८३७७-१ For Private and Personal Use Only Page #594 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५७७ यतिमृत्यु विधि, मा.गु., गद्य, श्वे., (कोटिकगणवइरी शाखा), ५०४३१-१,५०५१८ । यशोधरजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा.४, पद्य, मूपू., (वदन परिवारि हो यशोधर), ४९८१३-१(+) युगप्रधान आराधनाविधिकोष्टक-बीजाउद्देशा, मा.गु., को., मूपू., (वयरशेनसूरिने नमः), ५००३६ युगमंधरजिन स्तवन, पं. जिनविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (काया रे पामी अति), ४९४६७-२, ५०३६४-२, ५०३९१ युगमंधरजिन स्तवन, मु. जिनसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (श्रीयुगमिंधर भेटवार), ५१८५७-२(-2) युगमंधरजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (हीयडो मीलवारे प्रभु), ५१७०४-२ युगमंधरजिन स्तवन, मु. नयविजयजी-शिष्य, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (श्रीयुगमंधर माहरे रे), ५०५५९-६(#) युगादिजिन स्तवन, मा.गु., गा. २५, पद्य, श्वे., (श्रीपुंडरीकाचल), ५०४४२(+) रंगबहुत्तरी, आ. जिनरंगसूरि, पुहि., गा. ७३, पद्य, मूपू., (लोचन प्यारे पलक को), ५१६४९(#) रक्षाबंधनपर्व कथा, पुहि., गद्य, दि., (हथनापुर महापद्म चक्र), ४९८२१-१ रतनकुमार सज्झाय, मा.गु., ढा. १०, गा. ५३, पद्य, मूपू., (रतन गुरु आगलीजी आगली), ५१९७६(+#) रतनचंदगुरु स्तवन, ऋ. हीरालाल, रा., गा. १३, पद्य, श्वे., (नंनण जसधारी होवा छे), ५१८९४ रतनचंदजीपाधरी संवाद, मु. रतनचंद ऋषि, पुहिं., वि. १९०३, गद्य, श्वे., (अकब्बराबाद में १९०३), ४८८७६ रत्नपाल-रत्नावती रास-दानाधिकारे, मु. सूरविजय, मा.गु., खं. ३ ढाल ३२, गा. ७७४, वि. १७३२, पद्य, मूपू., (रीषभादिक जिनवर नमु), ४९३३७(#$) रत्नवतीसती चौपाई, मा.गु., गा. २४, पद्य, श्वे., (सकल सिद्धि नव निधि), ४९८१७ रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. दानविजय, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (मेहि भीनी जइ गुफामा), ५०३५९-२(#) रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. देवविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (काउसग व्रत रहनेम), ५०५५६-२,५१९७७-१ रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (काउसग्ग ध्याने मुनि), ५०१११(+), ४९११६, ५१८६२ रथनेमि सज्झाय, मु. प्रतापविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (वेगलोरे वरणागीया), ५०५३१ रागचितवन कवित्त, मा.गु., गा.६, पद्य, वै., (वेदे भेवर वसंत राग), ४९८७४-३ राचा बत्तीसी, श्राव. राचो, मा.गु., गा. ३२, पद्य, श्वे., (जीवडा जागरे सोवे), ५१२५५-८(5) राजसागरसूरि निर्वाणमहोत्सव सज्झाय, उपा. रत्नसागर, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सकल सुखदायको वीरजिन), ५१७४१(#) राजिमतीपच्चीसी, मु. लालचंद, मा.गु., गा. २६, पद्य, पू., (प्रथम हि समरुं अरिह), ५११७९-२(६) राठौर महाभड बिरुदावली, रा., पद्य, (कवि राव कहो जस), ४९२२८-२($) रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सकल धरममा सारज कहिइ), ४९०१८-२, ४९०६८-३ रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मु. वसता मुनि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (ग्यान भणो गुण खाणी), ४९८९०-२(+) रात्रिभोजन निवारण सज्झाय, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (अवनितलि वारू वसइजी), ४८३०९(+) रात्रिभोजन परिहार चौपाई, उपा. महिमोदय, मा.गु., ढा. ९, वि. १७३५, पद्य, मूपू., (--), ५१८७३(#$) रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, उपा. आनंदनिधान, मा.गु., गा. ६९, वि. १६७५, पद्य, मूपू., (सरसती करुं संसारमैं), ५१८४५(#) रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, ग. मणिचंद, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (सहइ गुरु चरण नमु निस), ४८१६८-२, ५११५२ रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, मु. विनय, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (अवनीतल नयरी वसैं जी), ४९२९८-२ रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, मु. सेवक, मा.गु., गा. १७, पद्य, श्वे., (इम गुरु ज्ञानी भविने), ५०९७३(#) रात्रिभोजन परिहार सज्झाय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (वर्द्धमान जिन वंदीयइ), ४९२५५ रामलक्ष्मण लावणी, पुहि., गा. ११, पद्य, मूपू., (जनकसुता कहै जायनें), ५०७१४-२ रामविलाप पद, मु. विनयचंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (हे बंधवजी इण अवसर मे), ५०७१४-३ रुक्मणीसती सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (विचरता गामोगाम नेमि), ४८२१६-२(+$), ५१४१२-१(२), ४८६१८-२, ४८६५३-१, ५१०२४-२ रूपसिंहगुरु भास, श्राव. भीम कल्याणमल शाह, मा.गु., गा. ९, पद्य, स्था., (प्रथम श्रीसंतिजिणेसर), ५०२२०-१ रेंटिया सज्झाय, श्रावि. रतनबाई, मा.गु., गा. २५, वि. १६३५, पद्य, मूपू., (बाई रे अमनें रेंटीयो), ४८३८८ For Private and Personal Use Only Page #595 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५७८ www.kobatirth.org रोहिणीतप चैत्यवंदन, मु. मानविजय, मा.गु गा. ६, पद्य, मूपू (रोहिणी तप आराधीए), ५०८५७-२ रोहिणीतप रास, उपा. उदयविजय, मा.गु, ढा. ८, पद्य, मूपु (श्रीजिनमुखकजवासिनी), ५१५६५ (०) रोहिणीतप सज्झाय, मु. अमृत, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., ( श्रीवासुपूज्य नमी), ४९९६६ रोहिणीतप सज्झाय, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (वंदो हियडे हरख धरेवी), ४८८२० (+), ५०४३४-१ रोहिणीत सज्झाय, आ. विजयलक्ष्मीसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, भूपू ( श्रीवासुपूज्य जिणंद), ५१७३२-२ रोहिणीत स्तवन, मु. दीपविजय कवि, मा.गु., ढा. ६, गा. ३१, वि. १८५९, पद्य, मूपू., (हां रे मारे वासुपूज), ४९९९८ - १ (+), ४८१६० रोहिणीतप स्तवन, मु. लाभउदय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपु. ( इम रोहिणीतप आदरो), ४८४२१(०) ५०८७०(१) " रोहिणीत स्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु., डा. ४, गा. ३२, वि. १७२०, पद्य, भूपू (सासणदेवता सामणीए मुझ), ५०६८२-१(+), ४९५३८-१ रोहिणी नमस्कार, मु. ऋषभविजय, मा.गु गा. ११, पद्य, भूपू (पद्मप्रभू जिन विहरता), ५१९९६-१ लंका आगत वानरमान, मा.गु., गद्य, श्वे., (अढार पद्म वानर ४९६), ५०२३३-२ लक्ष्मीपति सज्झाय, मु. अमोलक ऋषि, रा. गा. ३०, वि. १९५६, पद्य, वे (पुन्य चीज है बड़ी जगत), ५०४६५ क , कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१२ ५१५६४(+) लुकागच्छोत्पत्ति सज्झाय, मा.गु., पद्य, थे, (संवत् पनर अठावीसो), ५०८५६-४(३) लूण उतारण, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., ( लूण उतारो जिनवर अंगे), ५०५२८-१ लोकनालि स्वाध्याय, मु. सकल, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे. (ज्ञाननयन मांहि), ५०९१८-६ " वखतु अमणीजी रास, मा.गु., वि. १८७७, पद्य, वे (श्रीजिनचरण कमल नम), ४८४५०-२ (६) " लब्धि के २१ द्वार २२२ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (पांच ज्ञानना भेद), ४९५३३ लालऋषि शिष्य गच्छाधिपति चौडालियो, मु, बन्नु, मा.गु. डा. ४, गा. ५१, वि. १६६४, पद्य, श्वे. (गोयम गणहर पाय नमी), " ,י वज्रधरजिन पद, मु. जिनराज, मा.गु. गा. ५, पद्य, मूपू (एक सबल मननो धोखो), ४९९७६-३ वज्रधरजिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (विहरमान भगवान सुणो), ५१४९६ वज्रस्वामी रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु. बा. १५, गा. ८९, वि. १७५९, पद्य, मूपू., ( अरध भरतमांहि शोभतो). ५१५५४ वज्रस्वामी रूखमणी सज्झाय, मु, लब्धिविजय, मा.गु गा. १९, पद्य, मूपू (पदमिणी पोईणी पातली), ५०२६३(*) वणजारा गीत, आ. कुमुदचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ५१, पद्य, मूपू., ( वणजारा रे एह संसार), ४९१०७ (बिणजारा रे तु तो नगर), ४९३४४-४ " वणजारा सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं, गा. ९, पद्य, भूपू. वणजारा सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु, गा. १९, पद्य, भूपू (विणजारा रे भाई देखी), ४८२८१-१, ५०३१६.५(१) वरदत्तकुमार गहुँली, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (विचरता नेमि जिमेसर), ४८५२८-१ वरसिंघऋषि बारहमासा, मा.गु., गा. ५०, वि. १६१२, पद्य, चे. (सरसतीय भगवती गुणहती). ४८९१२ (०) ५१५३६(*) वर्णमाला, , मा.गु., गद्य, (ॐ नमः सिद्धं अ आ ई), ४९८९५-२(#) "" Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वर्णमाला, मा.गु., गद्य, श्वे. (अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ लृ), ४९५९२-२ (+#), ५०८३७, ५११७०-१, ४९८०८-२(#) वर्तमानचोवीसीजन स्तवन, मु. अमृत, मा.गु. गा. ५, पद्य, मूषू, (चिदानंद चितमां घरजो), ४८९०६-२ " वर्त्तमानचौवीसीजिन मातापितानाम, मा.गु., गद्य, वे., ( श्रीनाभि जितशत्रु), ५०५९१-६ वसंतऋतु वर्णन पद, मु. जिनलाभ, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (जिन मिंदिर जयकार ऐसे), ५१५२९-३ वस्तुपालतेजपाल रास, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ८५, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (जिण चउवीसइ चलण नमेवी), ४९२७०(#) वांकडीकथन कवित, मा.गु., गा. १, पद्य, वै., ( वांकी करहा कोटि वांक), ५०२२०-२ वासक्षेप भास, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (झमकारो रे मादल वाजै), ५०८६४-२ वासुपूज्यजिन पद, मु. रूपचंद्र, मा.गु., गा. ३, पद्य, म्पू, (मेरो मन वस किनो हो), ४८३८१-१, ५०६७२-३ " वासुपूज्यजिन पद, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वासुपूज्य मेरो नंदन ), ४९२२२-२ (+) वासुपूज्यजिन स्तवन, ग. गुलाबविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सरसति मातने सीर नमी), ४९७४९(+) वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, मृपू, (नायक मोह नचावीयो), ५११५८-४) For Private and Personal Use Only Page #596 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८७२ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. जीतचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वासुपूज्य जिन बारमा), ५१०६८-५(#) वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (चांपानामि नयरीइं रे), ५०३७१-१(#) वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. भक्तिविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (वासव पूजित वासुपूज्य), ४८९२५-२ वासुपूज्यजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (स्वामि तुमे काइ), ४९११३-२ वासुपूज्यजिन स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (भविका तुम वासुपूज्य), ५०८८५-४(+) वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. हीरधर्म, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (जिणंदवा मिल गयो रे), ४८२५२-४(+) वासुपूज्यजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (श्रीवासुपूजनी मोह), ४८४२२-२(६) । वासुपूज्यजिन स्तवन-रोहिणीतप गर्भित, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (प्रणमिय परमाणदए), ५१५४६-१ वासुपूज्यजिन स्तवन-वालोचरपुरमंडन, वा. अमृतधर्म, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वासुपूज्य जिनरायजी), ४८४२३-१ वासुपूज्यजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीवासुपूज्य नरेसर), ५१२२४-४(+#) विचारचोसठी, आ. नन्नसूरि, मा.गु., गा. ६०, वि. १५४४, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर प्रणमी पाय), ४९८९०-१(+), ५१५८५(#) विचार संग्रह *मा.गु., गद्य, श्वे., (ठाणांगमाहिंत्रीजे), ४९२१३-२(+), ५११११(+-), ४९५४९-३ विजयक्षमासूरि गली, मु. कल्याण, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (श्रीविजयखिमासूरी वंद),४८६४७-२ विजयक्षमासूरि गीत, वा. विमलविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (विजयक्षमासूरिंद साच), ४८२९० विजयदानसूरि सज्झाय, ग. सत्यसागर, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सेवउ सेवउ गछपति राज), ४९७०२ विजयदेवसूरि सज्झाय, मु. देवविमल, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीविजयदेवसूरिंद), ५११९१ विजयधर्मसूरि के नाम पत्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (कामं ददाति भविनां तु), ५०२९१-५($) विजयधर्मसूरिगुरु गहुंली, मा.गु., पद्य, मूपू., (थोकै मली रे सोहागण), ४८६४७-४($) विजयधर्मसूरि सज्झाय, मु. रंगविनोद, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सरसति करोने पसाव), ५०७५१ विजयधर्मसूरि सज्झाय, मु. राम, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (सदगुरु सोहम अवतारी), ५१८७५-२(#) विजयप्रभसूरिसज्झाय, ग. कमलविजय, पुहिं., गा. २७, पद्य, मूपू., (सरसति भगवति मात तुं), ४९१६२(#) विजयरत्नसूरि गीत, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अमिरस पाउं थाने दाडि), ५१७९१-१ विजयरत्नसूरि सज्झाय, मु. जिनविजय, मा.गु., गा. ९, वि. १७५७, पद्य, मूपू., (विद्यागुरू चरण नमीने), ४९४९७-२(#) विजयरत्नसूरिसज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (वराईना वर थकी अमे), ४९४९७-१(#) विजयरत्नसूरि सज्झाय, मु. रामविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (वीनतडी अवधारो हो पउध), ४९८६२-२(#) विजयरत्नसूरि सज्झाय, मु. सुखविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (भावइ गच्छपति वंदीइ), ५०९४२-२(+#) विजयरत्नसूरि सज्झाय, मु. सुखविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू., (सरसति सामिनी केरा), ५०९४२-१(+#) विजयलक्ष्मीसूरि गहुंली, मु. सौभाग्यलक्ष्मी, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (आर्यदेश नरभव लह्यो), ४८२४१-२ विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. कुसल, मा.गु., ढा. ३, गा. २८, पद्य, मूपू., (भरतक्षेत्रे रे), ५०३६३-६ विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., गा. १७, वि. १८६१, पद्य, स्था., (प्रथम नमु श्रीअरिहत), ५०१८९(#) विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, आ. हर्षकीर्तिसूरि, मा.गु., ढा. ३, गा. २४, पद्य, मूपू., (प्रह उठी रे पंच), ५१८३२(+), ४८९८५, ४९५३८-२, ५१५८४(#) विजयसेनसूरि गीत, मु. प्रेमविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (विजयसेनसूरि सरू), ४९०५४ विजयसेनसूरि भास, पं. प्रेमविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (शांति जिणेसर पाए नमी), ४८८३१-१(-) विजयसेनसूरि सज्झाय, मु. कीर्तिहर्ष, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (चरण कमल श्रीजिन तणा), ४९१४०-२ विजयसेनसूरि सज्झाय, मु. कृष्ण शिष्य, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (समरसि समरसिभर सरसति), ५०८१८ विजयसेनसूरि सज्झाय, मु. रत्नहर्ष, मा.गु., गा.११, पद्य, मूपू., (समरिय सरसति भगवती), ४९१४०-१ विजयसेनसूरिसज्झाय, मु. विशालसुंदर-शिष्य, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (श्रीशांतिजिणेसर पय), ५००५१(#) विजयसेनसूरि सज्झाय, मु. हेमविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (विजयसेनसूरि० शिरोमणि), ४९८७६-१(#), ५१५७७-२(#) विजयसेनसूरि सज्झाय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (जय जय तपगण चंद्रमा), ४९३७०-१ For Private and Personal Use Only Page #597 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५८० www.kobatirth.org י " विद्यासागर सज्झाय, उपा. शांतिसागर, पुहिं, गा. ७, पद्य, भूपू (विद्यासागर विद्या), ५१५७७-१(१) विनय सज्झाय, आ. विमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (विनय करो चेला गुरु), ४९६०८-१ विमलजिन पद, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जिनपतिराज हयरी विमल), ४९२२२-४(+) विमलजिन पद, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, भूपू (मोहन जगगुरु तुं तो), ४९२२२-३ (+) विमलजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू., (घर आंगण सुरतरु फल्यी), ५११५८-६() विमलजिन स्तवन, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (बे कर जोडी वीनवुं रे), ५०३७१-२(#) विमलजिन स्तवन, मु. देवचंद्रजी, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (विमलजिन विमलता ताहरी), ५१६४० (#) विमलजिन स्तवन, मु. देवविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू. (तेरमा विमल जिनेशरू), ४८७४५-३ विमलजिन स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (जिनकुं देखि मेरो मन), ५०८८५-५ (+) विमलसोमसूरिगुरु सज्झाय, मु. कल्याणसोम, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (शशिवदना सरसति चिति), ५०७१० विवाह पद्धति, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ३७, पद्य, खे, (श्रीसद्गुरु वाणी), ५१०७३ (+5) विविधतप यंत्र संग्रह, मा.गु.. को.. म्पू.. (--). ५०११४ " विशालजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (घातकीखंडे हो के पछिम), ५०५५९-७(#) विशालसोमसूरि गुरुगुण गंहुली, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू (उरंगि रातीरे गहुली), ५१०६५-१ विशालसोमसूरि गुरुगुण भास, ग. हर्षविमल, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सरसति सांमिण वीनवुं), ५१०६५-२ " विहरमान २० जिन चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ८, वि. १८वी, पद्य, मूपू. (पहेला जिनवर बिरमान), ४९४०६ (+) विहरमान २० जिन चैत्यवंदन, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (विहरमान ते जिनवर), ५१२७३-१ (#) विहरमान २० जिन स्तवन, उपा. अनंतहंस, मा.गु., गा. ९, पद्य, भूपू (सरसति देवि नमउं). ५०९९३-१ विहरमान २० जिन स्तवन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वीसे विहरमान जिनराया), ४९५६४-२ विहरमान २० जिन स्तवन, पा. धर्मसिंह, मा.गु., ढा. ३, गा. ३६, वि. १७२९, पद्य, मूपू., (वंदु मन सुध विहरणमाण), ४८५२० (#), ५१२८० (#) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१२ विहरमानजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. ११, वि. १८३५, पद्य, श्वे. (पूर्व महाविदेह विराज), ५१२५०-५ विहरमानजिन स्तवनवीसी आ जिनराजसूरि, मा.गु. स्त. २०, पद्य, मूपु (मुज हीवडी हेजालूवी), ४९३४०(३) विहरमानजिन स्तवनवीसी, ग. देवचंद्र, मा.गु., स्त. २०, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर जिनवर), ५०९५४($) विहरमानजिन स्तवनवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., स्त. २०, पद्य, मूपू., (पुखलवई विजये जयो रे), ४९४६७-१, ५०३११ वीतराग गुणवर्णन पद, मु. रूपचंद्र, मा.गु गा. ५, पद्य, मृपू., (जय वीतमोह जय वीतदोष), ५०९४३-३(+) " " वीतराग ध्यान विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (वीतराग ध्यान केहनो), ५०२९१-२ (तिण कारणे व्यार), ५१५००-३ " (जासु नहीं अन्नाण सोग), ५०८२३-१ वीतराग वाणी विचार, मा.गु., गद्य, थे. वीतराग स्तवन, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., वैराग्यगीत, ग. धनविजय गणि, मा.गु., गा. १६, पद्य, वे., (करम तणी गति दोहिली), ४९९०६-२ वैराग्य निशानी, मु. धर्मसी, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे. (काया माया कारमी दिन), ४९२६८-४ वैराग्यपच्चीसी, मु. गोपालदास पुहिं. गा. २५, पद्य, क्षे. (इह प्रमादी जीव जगा), ५११३२-२ वैराग्यपच्चीसी, मु. रायचंद ऋषि, रा. गा. २६. वि. १८२१, पद्य, स्था (सासणनायक श्रीवर्धमान), ५२०४३-१ वैराग्यपच्चीसी, मु. सदारंग, मा.गु., डा. २ गा. २५, पद्य, म्पू, (ए संसार अधिर कर जाण), ५१५१९(०) . " " वैराग्य पद, मा.गु., पद्य, वे., ( मारग वहइ रे उतावलो), ४९९५०-८ (+-$) वैराग्यबावनी, मा.गु गा. ६०, पद्य, श्वे. (सुगति कुगति हुई), ५०११५ " वैराग्यभावना सज्झाय, मु. रवचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू, (सुण चेतन अब शीखडी), ४९६०८-४ For Private and Personal Use Only वैराग्य सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (परषदा आगे दिये मुनि), ४८७११(#) वैराग्य सज्झाय, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु, गा. ५, पद्य, मूपू (औ जग कारमौ जाणी जो), ५०८७२-२ (+), ५०८४६-१ वैराग्य सज्झाय, मु. ज्ञानमुनि मा.गु., गा. ३६, पद्य, वे. (प्रणमु जिनवर गुरुना), ५०८६१ Page #598 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ वैराग्य सज्झाय, मु. रतनतिलक, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (काया रे वाडी कारमी), ४८६१८-१ वैराग्य सज्झाय, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (हक मरना हक जाना), ४८२४६-१ वैराग्य सज्झाय, मु. विद्याचंद, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सरसति सामनि पाय लागु), ४९८१६-१(+) वैराग्य सज्झाय, मु. विनय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (धर्मसखायत धर्म बल पर), ५१८३५(+#) वैराग्य सज्झाय, मु. विनयविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू., (सज्झाय भली संतोषनी), ५०४००-२ वैराग्य सज्झाय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (मयगल मातुरे वनमाहि), ५११६६-२(2) व्याख्यान पद्धति, मा.गु., गद्य, मूपू., (जय जय भगवान वीतराग), ४८८४८-१ व्याख्यान पीठिका, मा.गु., गद्य, मूपू., (अशरणशरण भवभयहरण), ४९८७८-३(+#), ४९१७६-१,५१४९८-१(#) व्याख्यान पीठिका, मा.गु., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं० अज्ञा), ४९८७८-१(+#), ४९३१३ व्याख्यान पीठिका, मा.गु., गद्य, मूपू., (भगवान वीतराग देव), ५१७९४, ४९७४६(#) व्याख्यान शैली, मा.गु., गद्य, मूपू., (ते माटें एहवो जाणवो), ४८८४८-२ शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., ढा. १२, गा. १२०, ग्रं. १७०, वि. १६३८, पद्य, मूपू., (विमल गिरिवर विमल), ४८८०२(+६), ५१७५७-१(#) शत्रुजयतीर्थ चैत्यपरिपाटी, उपा. देवचंद, मा.गु., ढा. ४, पद्य, मूपू., (नमवि अरिहंत पयणंत), ४८९४८-२($) शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (जय जय नाभिनरिंदनंद), ४९९१७-१(+#), ५०८७२-३(+), ५०७८०-१ शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मपू., (शत्रुजय सिद्ध), ५०१३९-३(#) शत्रुजयतीर्थ जिनप्रतिष्ठा विवाद विवरण, रा., गद्य, मूपू., (प्रथम मरुधर हुंती), ५१९६३-२ शत्रुजयतीर्थ पूजा सामग्री, मा.गु., गद्य, मूपू., (१०नवकार १० केसरटीली), ४८६०९-२(+#) शत्रुजयतीर्थ बृहत्स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (बे करजोडी विनवूजी), ४८५४३(+#), ५१६३२-२(#$) शत्रुजयतीर्थ माहात्म्य गहुँली, मु. विद्याविजय, मा.गु., गा. १३, वि. १९२४, पद्य, मूपू., (सुण शाहेली शेत्रुजा), ४९५३९(+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (आंखडीयेरे में आज), ४९४०३-३(+), ५०८९३-३(+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (डुंगर ठंडोरे डुगर), ४८७५०-२, ५०५५९-१(#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (शत्रुजागढना वासी), ५१४५०-१(-2) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. कनक, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (चालो सखी सिद्धाचल), ५११४९-२ शत्रुजयतीर्थस्तवन, मु. कवियण, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (पालिताणो रलियामणो), ५०१०२ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. कांतिविजयजी, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्री रे सिद्धाचल), ५०१३९-४(#), ५०५५९-३(#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. क्षमारत्न, मा.गु., गा. ५, वि. १८८३, पद्य, मूपू., (सिद्धाचलगिरि भेट्या), ५०८९३-१(+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (अंग उमाहो अति घणो), ५००२१-१ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (आज आपे चालो सहीयां), ४९८८६-१ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (भाव धर धन्य दिन आज), ५०८९३-५(+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., गा.१६, पद्य, मूपू., (करजोडी कहे कामनी), ४९५६९, ४९६१३(#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आवो भवि भविक), ४९९०८-२(#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (मोरा आतमराम कुण दिन), ४९४४९-३(+), ४९८८२-१, ५१६६४-२(2) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (संघपति भरत नरेसरु), ४९९०८-१(#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा.८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सिद्धगिरि ध्यायो), ५०८३८-१ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. दयातिलक, रा., गा.७, पद्य, म्पू., (कंत भणी कामिणि कहइ),५००५०-३ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (चालोने प्रीतमजी), ४८१९७-२ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (लोहो लीजे रे भविया), ५०८१७-२(+#) For Private and Personal Use Only Page #599 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५८२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१२ ', शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ११, पद्य, भूपू., (धन धन मुनिवर जे संजम), ४८९९५-३ (+), ४९७१९ शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (यात्रा नवाणु करीए), ५१८६८ शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वीरजी आव्या रे), ४९१६३-१(+), ५०४१२-१(+), ५०६९३ शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ. पायचंदसूरि, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (सफल संसार अवतार माह), ५१४०४-१, ४८५३२(#) शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, ग. प्रतापविजय, मा.गु., गा. १५. वि. १८०८, पद्य, भूपू (पुंडरगिर रलिआमणो जिह), ५०६८९ शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. भावसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. माणेक मुनि, मा.गु, गा. ६, पद्य, मूपू शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. राजसमुद्र, मा.गु., गा. ९, पद्य, भूपू शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, वा. रामविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मृपू. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. राम, मा.गु., गा. १२, वि. १८०१, पद्य, मूपु (साहिबा सेडुंजो), ४८६२५-१(+), ५१८७५-११) शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (चालो चालो विमलगिरि), ४९००६ शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (विवेकी विमलाचल वसीए), ४९३५४-२ + " शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ११, वि. १८७३, पद्य, मूपू., (सिद्धाचल सिद्ध सुहाव), ५१३६६(#) शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, वा. साधुकीर्ति, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (पव पणमी रे जिणवरना), ५००५०-१ (६) शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (मारुं डुंगरिये मन), ५०२७२, ५०७१३-१, ५०७३९-२(#), ५०८२१(#) शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (केवलज्ञानी प्रमुख), ५०६०९-१ शत्रुंजयतीर्थ स्तवन-९९ यात्रागर्भित, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (श्रीसिद्धाचलमंडण), ४९६३७, ५१५७१-२(#$) शत्रुंजयतीर्थ स्तवन - आदिजिन, आ. नंदसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सेत्रुंजा रलीआमणो), ५१६८७-२ शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, श्राव. ऋषभदास, मा.गु., गा. ४, पद्य, म्पू. ( श्रीशत्रुंजय तीरथसार), ४८२४०, ४९५६८-२, ४९५२४०), ५०७६५.३) शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (पहिलो बोले पंथीडा), ५०८९३-४(+) शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, मु. देवचंद्रजी, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू.. ( विमलाचलमंडण जिनवर), ४९४६६-४१०) शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, आ. नंदसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीशत्रुंजयमंडण), ४९६३३-१($) शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., ( आगे पूरव वार नीवाणु), ५०२६४-३ शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सकल मंगल लीला मुनि), ४८९३६-१, ५०५१६ शत्रुंजयतीर्थ होरी, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू (चालो सखी विमलाचल जइय), ४८१८७-१ शनिश्चर चौपाई, पंडित. ललितसागर, मा.गु., गा. ४७, वि. १७बी, पद्य, म्पू. (सरसती सामिणी मन दियो), ५०६६८-१(०), ५०७६४-१०-०१, ४९३७२, ५०५९७६) शनिश्चर छंद, मु. देवरत्न, मा.गु., गा. २२, पद्य, भूपू (शुभमतिदा गुरु शारदा), ५१०६७(१) शनिश्चर छंद, क. हेम, मा.गु., गा. १७, पद्य, श्वे., (अहि नर असुर सुरपति), ५०२१७, ५१६२७, ५१७१८, ५१८३८, ४८३७९-१(#) शनिश्चर छंद, मा.गु. गा. १६, पद्य, भूपू बै. (आनंदन जगजयो रविसूत), ५१५७३(०) शनिश्चर छंद, मा.गु, गा. १६, पद्य, वै., (छावानंदन जग जयो रवि), ४९८६६-२(+), ५१५७४-१(०) शरीररक्षा मंत्र, मा.गु., गद्य, वै., (ॐ नमो वज्रनो कोट), ५१४७८-२(+#) शांतिजिन आरती, सेवक, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (जय जय आरती शांति), ५०२१२-२, ५१९०८-२ शांतिजिन गीत, मु. भाणचंद, पुहिं., गा. २, पद्य, मूपू., (जै जै जै० भव भय भंजन), ४९४८२-१(#) शांतिजिन गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (शांतिनाथ तूं सुणहु), ५०८८५-८(+) शांतिजिन चैत्यवंदन, क. ऋषभ, मा.गु, गा. ३, पद्य, मूपु. ( समरुं शांति जिणंद), ५०९१७-२ शांतिजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सोलम जिनवर शांतिनाथ), ४९९१७-२(+#), ५०८७२-४(+) (सहिया सेडुंजगिर ), ४९३८५-१ (आदिश्वर अंतरजामी), ४९३१५-२ (पग पग आए समरता आज), ५०८५४-३क (उमैया मुजने घणीजी हो), ४८७३९(१) יי Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only Page #600 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५८३ शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (सारद माय नमुं सिरनाम), ४८२७१(+), ४८५२५, ५००२६-१,५०९३५ शांतिजिन त्रिभंगी छंद, जै.क. बनारसीदास, पुहि., गा. ५, पद्य, दि., (विश्वसेन कुल कमल), ५०८०१-२ शांतिजिन पद, मु. उदयरत्न, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (आंगण कल्प फल्योरी), ५०९९१-५ शांतिजिन पद, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (एक ध्यान संतजी का), ५२००४-४(१) शांतिजिन पद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (गिडी गिडी झा झा झा), ४८२९९-२ शांतिजिन सवैया, ग. ज्ञानतिलक, पुहिं., सवै. १, पद्य, मूपू., (जदती जनलोचन मोहन), ४९८८८-३(#) शांतिजिन सवैया, उपा. विनयरत्न, मा.गु., गा. २, पद्य, श्वे., (ग्यान अनंत अनंत दरसण), ४८६६३-३ शांतिजिन सवैया, आ. शांतिसूरि, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (जां लगि चंद्र सूर), ४८६६३-५ शांतिजिन सवैया, मा.गु., गा. २, पद्य, श्वे., (हयगयरथ संख चौरासी लख), ४८६६३-४ शांतिजिन स्तवन, मु. अमृतविमल, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (जीहो समीहित पूरण), ५१५८० शांतिजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सुणो शांतिजिणंद), ५१८९६-२(+), ५०१४७-२ शांतिजिन स्तवन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सेवयो रे शांति जिणंद), ५०३६४-१ शांतिजिन स्तवन, ग. कपूरविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (शांतिजिणंदस्युं चित), ५०८०६-१ शांतिजिन स्तवन, मु. कमलविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (हारे मारे शांति जिण), ५०५१३ शांतिजिन स्तवन, मु. केशव, मा.गु., गा. १९, पद्य, श्वे., (शांति जिनेश्वर सोलमा), ४९२४४-१(६) शांतिजिन स्तवन, ग. खिमाविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (देखत नयन सुहाय प्रभु), ५०८६४-३ शांतिजिन स्तवन, मु.खेम, मा.गु., गा. १३, वि. १७४२, पद्य, मूपू., (श्रीशांतिजिणेसर शांत), ५१०९६ शांतिजिन स्तवन, मु. जयमल ऋषि, मा.गु., गा. २९, पद्य, श्वे., (नगर हथिणापुर अतिहि), ४९४१२-१, ५१७०७-१ शांतिजिन स्तवन, मु. जिनरंग, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (तूं मेरा मन मे तूं), ४९८५४-३ शांतिजिन स्तवन, मु. जिनरंग, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू., (शांति जिनेश्वर साचो), ४८१९७-३, ४८४७१-२ शांतिजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुणो शांति जिनेसर), ५११६९(#) शांतिजिन स्तवन, मु. तेजपाल, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूपू., (अरिहंतदेव पाइ नमूए), ५११६८(#) शांतिजिन स्तवन, मु. तेजहर्ष, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (साहिब तारो रे), ४९३९९-१ शांतिजिन स्तवन, पं. धीरविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीजिन शांति प्रभु), ४८८४३ शांतिजिन स्तवन, आ. नंदसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (देउइहपुरी दीपई), ५१६८७-३ शांतिजिन स्तवन, मु. भोज, मा.गु., गा. १९, वि. १७२३, पद्य, श्वे., (श्रीसद्गुरूना चरण नम), ५१७४८ शांतिजिन स्तवन, वा. मेघविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (शांति करो जिन सांतजी), ५०९९०-१(#) शांतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (शांतिजिन एक मुज विनत), ४८१३९-१ शांतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (शांति जिनेश्वर साहिब), ५०८७६-२ शांतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सोलमा श्रीजिनराज), ४८८६३-१, ५१९८१-१(#) शांतिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू., (प्रभुजी शांति सदा), ४८४७६-२ शांतिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., गा.६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (हम मगन भए प्रभुध्यान), ४८१५७-१, ४९५८५-२, ५०२९२-२०) शांतिजिन स्तवन, पंन्या. रंगविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (शांतिकरण श्रीय शांति), ४९६१४-१ शांतिजिन स्तवन, मु. रतनचंद, रा., गा. ५, पद्य, श्वे., (तुं धन तुं धन तु), ५०३१७-२(-#) शांतिजिन स्तवन, मु. रतनचंद, मा.गु., गा.५, पद्य, श्वे., (प्रात उठ श्रीसंतिजिण), ५०३१७-१(-2) शांतिजिन स्तवन, ऋ. रुगनाथ, मा.गु., गा. १५, वि. १८३४, पद्य, श्वे., (श्रीसंतनाथजी का कीजे), ४९६७४(-) शांतिजिन स्तवन, श्राव. लाधो साह, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सांति जिनेसर साहाबा), ४९८९७-२(2) शांतिजिन स्तवन, उपा. विनयविजय, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (शांति तेरे लोचन है), ४८१५७-२ For Private and Personal Use Only Page #601 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५८४ www.kobatirth.org शांतिजिन स्तवन, आ. विवेकचंद्रसूरि, मा.गु., गा. १७, वि. १८३८, पद्य, मूपू., (शांति जिनेसर स्वामी), ५०८८६-२ शांतिजिन स्तवन, मु. सत्यसागर, मा.गु.. गा. १५, पद्य, मृपू., (जय जय संतिजिणचंद), ४९१२१ शांतिजिन स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (मेरइ आंगन कल्प फल्यो), ४९९४३-२ शांतिजिन स्तवन, वा. हर्षधर्म, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (सूरज उगमतइ नमुं संती), ५०१५६-१ (+#), ५०९६८ शांतिजिन स्तवन, मु. हीर, मा.गु. गा. ९, पद्य, मृपू., (एक अरज अवधारज्यो), ५०६२८-३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१२ शांतिजिन स्तवन, मु. हीरधर्म, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (अचिरानंदन स्वामीनौ), ४८६१७ शांतिजिन स्तवन, मा.गु., गा. १८, पद्य, भूपू (शांति जिणेसर सोलमा), ५००१०-२ शांतिजिन स्तवन - कुमरगिरिमंडण, ग. हर्षरत्न, मा.गु, गा. ३०, वि. १५६३, पद्य, मूपू., (संपइ सुहकारण दुरिअ), ५०४९७-१ शांतिजिन स्तवन -दीओजपुरमंडन, मु. देवविजय, मा.गु. गा. ५. वि. १८९६, पद्य, मूपू (श्रीदीओजपुरमंडणो रे), ५१०१०-१(+) शांतिजिन स्तवन-निश्चयव्यवहारगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. ६, गा. ४८, वि. १७३४, पद्य, मू., (शांति केसर), ५०७६०(+#), ५१८०३ (+), ४८२३६, ५१७६८ शांतिजिन स्तवन -पाटण, मु. रतनरूप, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., ( नमो अचिरादेवीनो नंद), ४९७६६-१ शांतिजिन स्तवन ब्राह्मीपुरमंडन, उपा. विनयरत्न, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (ब्राह्मीनगर मझारि), ४८६६३-२ शांतिजिन स्तवन - मुंबई बंदर, ग. मुक्तिसौभाग्य, मा.गु., गा. ८. वि. १८५३, पद्य, मूपू., (शांति जिणेसर विनती), ५०९९६-१(०) शांतिजिन स्तवन - रतनपुरी, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (रतनपुरी सणगार रे), ५००२६-२ शांतिजिन स्तवन - रागमाला, मु. सहजविमल, मा.गु., गा. ३०, पद्य, मूपू., (वंछित पूरण मनोहरु), ४९२४३ (+#) शांतिजिन स्तवन - सारंगपुरमंडन, आ. गुणसूरि, पुहिं., गा. २२, पद्य, मूपू., (सारद मात नमु सिरनामि), ४९९९७(#) शांतिजिन स्तुति, मु. मेघविजय, मा.गु गा. ४, पद्य, भूपू (शांतिजिणेसर अति अलवे), ४८७६८-३ " (ब्राह्मी पुरवर सोलम), ४८६६३-१ शांतिजिन स्तुति, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू. (सोलम जिनवर सेवियह रे), ५१८३७-२ शांतिजिन स्तुति, उपा. विनयरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, थे. शांतिजिन स्तुति - फलवर्धि, मु. देवीविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (फळविधि मंगळ शांति), ४९७६६-२ शांतिजिन स्तोत्र, ऋ. दुर्गदास, मा.गु., गा. ५, पद्य, वे., (मंगलदायक श्रीजिनराइ), ५०५७९-२१०), ४९१६७-३ शातिजिन छंद, मु. उदयरत्न, मा.गु. गा. ७, पद्य, मृपू (प्रेमेसुं करो पारखी), ५०३७४-२ " शारदामाता छंद, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ३५, पद्य, मूपू., (सकल वचन समता मन आणी), ४९३७३ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir י शारदाष्टक, जै. क. बनारसीदास पुहिं गा १० वि. १७वी, पद्य, दि., (नमो केवल रुप भगवान), ५१९७३-३(+), ४९२३७ " 3 יי " , शालिभद्रमुनि चौपाई, मु, मतिसार, मा.गु. दा. २९, गा. ५१०. वि. १६७८, पद्य, मूपू (सासननायक समरिय), ५१५६८(३) शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु. गा. १७, पद्य, भूपू (प्रथम गोवाल तणे भवे), ४८२२६ (-१), ५०४११-२(+४), ५०६९७-१(४) शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सुंदर, मा.गु., गा. १५, पद्य, म्पू (वीरवचन वयरागीयो जी), ५१९३२-१ शालिभद्रमुनि सज्झाय, रा., गा. १७, पद्य, श्वे., (मे तो पूरब सुक्रत न), ४९८२५-२(#) शाश्वतजिन प्रतिमा स्तवन, मु. नवरंग, मा.गु. गा. ४१, पच, मूपू (ऋषभ अजित संभव सदा), ५१०८३(+) शाश्वतजिनप्रतिमा स्तवन, मु. हर्षसागर, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (सयल जिणेसर पय नमि), ४९९५२ शाश्वतजिनबिंबसंख्या विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिले त्रि छेलो किं), ४८८०९-२, ५१५७८-२(#) शाश्वतजिनबिंब स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु. डा. ६, गा. ६०, पद्य, मूपू (सरसति माता मन धरि), ४९४७३-२ (+) " For Private and Personal Use Only शाश्वतजिन स्तुति, क. ऋषभदास, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (चार निक्षेपा श्रीजिन), ५०२९२-३ (-) शाश्वतजिन स्तुति, पंन्या पद्मविजय, मा.गु, गा. ४, वि. १९वी पद्य, मूपू (ऋषभ चंद्रानन वंदन), ४९८०९-१८) शाश्वताचैत्यनमस्कार स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ५, गा. २०, पद्य, मूपू., ( रिषभानन व्रधमान चंद), ५१०४१-१ (#) शाश्वताशाश्वतजिन नमस्कार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिलउ त्रिकाल अतीत), ४८१८२(७) शिवकुमार कथा - नमस्कार महामंत्र विषये, मा.गु., गद्य, भूपू (नवकारनइ प्रभाविइ), ५१७८८ (45) शिवपुरनगर सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (गोतमस्वामी पुछा करी), ५१२०६, ५१८५१, ५१६४७(#) Page #602 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २ शिष्य सज्झाय, मु. जिनभाण, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (चेला रहे गुरुने पास), ४९६०८-२, ५२०११(#) शीतलजिन सवैया, ग. ज्ञानतिलक, पुहिं. सबै १, पद्य, मूपू (सीतल चंदन चंद सीतल), ४९८८८-८ (०) शीतलजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (रामानंदन पाप निकंदन), ५०४९५-१ (#) शीतलजिन स्तवन, मु. केशरकुशल, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू (शीतल श्रीजिनराज साहब), ४८६२४ शीतलजिन स्तवन, मु. जिनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू. (शीतलजिन सहजानंदी थयो), ५००३४-१ शीतलजिन स्तवन, ग. फतेंद्रसागर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (घडी एक ढोलीयेने घडी), ५०१३८-२(+#) शीतलजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., ( सितलजिननी सेवना), ४९९८० (+#), ५०१६९-१ शीतलजिन स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३, पद्य, भूपू. (हमारे साहिब शीतलनाथ), ५०८८५- २(क) शीतलजिन स्तवन- अमरसरपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, रा., गा. १५, पद्य, मूपू., (मोरा साहेब हो), ४८१८०-२ (+), ५१२५५-७ शीयलछत्रीसी, मु. भवानीदास, पुहि., गा. ३६, पद्य, वे. (अतीत काल जे जिन हुए), ५०६२८-२ शीयल बोल सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, श्वे., (पेले बोले सुद्धे मने), ४८८१७-१ " शीयलव्रत १६ उपमा बोल, मा.गु., गद्य, श्वे. (पहली सुद्धैमन सील), ४९३४५-४(+) शीयलव्रत सज्झाय, मु. राममुनि, मा.गु., गा. २८, पद्य, श्वे., (पंचम गणधर वीरनो), ५१५०६ शीयलव्रत सज्झाय, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मूपू., (गीर नक्षत्र तारा माह), ४९७०९(#) शीयलव्रत सज्झाय, मा.गु., गा. ९, पद्य, भूपू (सोल वरसरा जंबुकुमरजी), ५१४७०-४१०) शीलबीसी, मु. राजसमुद्र, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मूपू. (सील रतन यतने करि), ५०२९५ " शीलव्रत ३२ उपमा बोल, मा.गु., गद्य, मृपू, (पहिली उपमा ग्रह), ४९३४५-२(१), ४८६९२-१, ४९१७८- १(ख) יי शीलव्रत सज्झाय, मु. चौथमलजी म. पुहिं. गा. ४, पद्य, स्था. (सील रतन का करो जतन), ४९१३३-२(+) , शीलव्रत सज्झाय, आ. यशोदेवसूरि, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (शीयल रतन जतने करि), ५१८४३ (+) शीलव्रत सज्झाय, मु. सुधनहर्ष, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (ते तरीया भाई ते), ५१४११-१(#) शीलव्रत सज्झाय, मा.गु., गा. ८, पद्य, थे. (आतमा राखे रे शील), ५१४०९-२(१०) , י शुद्ध आहारगवेषणा छत्रीसी, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (सुद्धा साध नमी करी), ५१५१७-१ शूर्पनखारावण संवाद पद, रा. गा. ८, पद्य, वे. (सूर्पनखा सुहासणी चित), ५०७१४-४ " शोभाचंद एकवीसी, रा. गा. २१, पद्य थे. (म्हे तो शोभमुनी गुण). ५१६०४ " 1 श्यामजी गुरु भास, मा.गु., गा. ९, वि. १८७२, पद्य, श्वे., (प्रणमी श्रीसारद पाया), ५०६४०-१ आवक ११ प्रतिमा, मा.गु., गद्य, मृपू., (दंसण १ वय २ सामाइय), ४९९६५-२ श्रावक ११ प्रतिमा विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिली प्रतिमा मास १ ), ५०९५१-२(+#) श्रावक १२ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (सरावक १ बोले जे साध), ५०७८१-२ (+#) श्रावक २१ गुण नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (धर्म रत्ने व्यवहारे ), ४८६९२-२ श्रावक २१ गुण वर्णन, मा.गु., अंक. २१, गद्य, भूपू (धर्मनई विषह १ मन वचन), ४८७८३, ५१४७०-३(०) श्रावक ३ मनोरथ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिलो मनोरथ समणोपासण), ४८३३९-१ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८५ श्रावक आचार पद, मु. कुसल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (बारह वरत पालै खरा), ४८६९९-२ श्रावककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (श्रावक तुं उठे परभात), ४८९६३-९(+), ५०८०९(#), ४९७३४, ५०२०३-१०१ ५०९९४०१ For Private and Personal Use Only श्रावककरणी सज्झाय, मु. नित, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे. (श्रावक धर्म करो), ४९७८८-१ श्रावक कर्त्तव्य, मा.गु., गा. ७, गद्य, श्वे., (सत्रभेद संजमतणा नवी), ५१६५८-२(#) श्रावक कर्त्तव्य सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर पय प्रणमे), ५१४११-२(#) श्रावकगुण सज्झाय, मु, रतनचंद्र, मा.गु, गा. १५. वि. १८९६, पद्य, म्पू. ( श्रावक करणी हो जिनवर). ५१४०६ (+) श्रावकगुण सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (कहिए मिलस्ये रे), ५१३८४-१(+#), ४८१६३-१, ५०६८४-१ Page #603 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१२ श्रावक लक्षण सज्झाय, मा.गु., पद्य, श्वे., (पलो तो खिला समान खील), ४८५५६ श्रावक व्रत १२४ अतिचार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (ज्ञानना ८ दर्शनना ८), ५१११३-५(+) श्रीकृष्णभक्ति पद, नंददास, पुहिं., गा. ४, पद्य, वै., (चिरीया चहिचानी चकवै), ५१२०८-२(#) श्रीचंद्रकेवली रास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., उल्ला. ४ ढाल १११, गा. २३९५, ग्रं. ६९३९, वि. १७७०, पद्य, मूपू., (सुखकर साहिब सेवीइ), प्रतहीन. (२) श्रीचंद्रकेवली रास-बीजक, मा.गु., गद्य, मूपू., (तापस प्रतिजागरण १), ५१४६१ श्रीदेवी कमलस्वरुप वर्णन, मा.गु., गद्य, श्वे., (हेमवंतपर्वत १०० जोजन), ४९२५३ श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., खं. ४ ढाल ४१, गा. १८२५, वि. १७३८, पद्य, मूपू., (कल्पवेल कवियण तणी), ५०५०८-४($) श्रेयांसजिन पद, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सुगुण सनेही श्रीजिन), ४९२२२-१(+) श्रेयांसजिन स्तवन, मु. देवविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (इग्यारमो जिनदेव मुझ), ४८७४५-२ श्रेयांसजिन स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सुरतरू सुंदर), ५०८८५-३(+), ४९४८२-४(2) श्रेयांसजिन स्तवन-बागोरपुरमंडण, आ. शांतिसूरि, मा.गु., गा. ९, वि. १७१०, पद्य, मूपू., (श्रीश्रेयांस जिनेसरस), ४८३९९-१(+) संख्यादि २१ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (१ जघन्य संख्याता २),५०२९३-२(-) संभवजिन पद, मु. गुणविलासजी, मा.गु., गा. ३, वि. १७९७, पद्य, मूपू., (सार जग श्रीजिननाम), ५०९९१-३ संभवजिन पद, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (तुं मनमोहन संभवजिन), ४९६४९-५(2) संभवजिन स्तवन, मु. अभयराज, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (प्रभु प्रणमुजी संभव), ४९२४६-२(#) संभवजिन स्तवन, मु. ऋद्धिकीर्ति, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (संभवजिनरी सेवा), ५०१९३-२(#) संभवजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (हां रे प्रभु संभव), ५०४९५-२(2) संभवजिन स्तवन, ग. कान्हजी, मा.गु., गा.८, वि. १७५१, पद्य, श्वे., (संभव नाम सोहामणो वर), ४९८८४-१(+) संभवजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा.७, वि. १८९४, पद्य, मूपू., (विणजारा रे नायक संभव), ५१९०५-३(+#) संभवजिन स्तवन, मु. नयविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, म्पू., (साहिब सांभलो रे संभव), ४८९८१ संभवजिन स्तवन, मु. न्याय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (साहिब सांभलोरेसंभव), ४९०४० संभवजिन स्तवन, मु. प्रेम, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (सुरपति जिम सुख भोगवे), ५००२९-१ संभवजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १७३०, पद्य, मूपू., (संभव जिनवर विनती), ४९४०३-१(+) संभवजिन स्तवन-बालोचरपुर मंडण, उपा. अमृतधर्म, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (श्रीसंभवजिनरायजी सुन), ५०५०२-१ संभवजिन स्तवन-सम्मेतशिखर मंडण, उपा. अमृतधर्म, मा.गु., गा. ७, वि. १८४४, पद्य, मूपू., (श्रीसंभवजिनराया जग), ५०५०२-२ संयती चौढालिया, मा.गु., ढा. ४, पद्य, मूपू., (चरम जिणेसर प्रणमी), ४९३८४($) संयोगद्वात्रिंशिका भाषा, मु. मान, मा.गु., अध्य. ४ उन्माद, गा.७४, वि. १७३१, पद्य, श्वे., (बुद्धिवचन वरदायनी), ४९२६६ संवत्सरिदान कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (दिन दिन प्रतै एक कोड), ५०७९१(१) संवर सज्झाय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (पहिलो संवर आदरोतजो), ४८६३३-२ संवर सज्झाय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर गौतमने), ५११३५-१ संवेगरसायण रागनिवास, मु. गोविंद, मा.गु., गा. ३४, पद्य, मूपू., (ज्ञानज्योति प्रकास), ५०९९७(#) संवेग सज्झाय, मु. प्रीतिविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (आतम चेत चेत रे सब), ४९४६३-२ सकलजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अरिहंत देवा चरणोनी), ४९१८८-२(+) सकलतीर्थ चैत्यवंदन, मा.गु., गद्य, मूपू., (सिद्धाचलने विषे कांक), ४९००२(+) सगपण व्यवहारपच्चीसी, मु. लालचंद, मा.गु., गा. २९, वि. १८६३, पद्य, श्वे., (श्रीअरिहंत सिद्ध), ४९०९१-२, ५०१०९-१, ५११४४(-#) सचित्त अचित्त वस्तु काल निर्णय, मा.गु., गद्य, श्वे., (आषाढे चोमासामांहे), ५१२७९-५(#) For Private and Personal Use Only Page #604 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २ सचित्तअचित्त सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (प्रवचन अमरी समरी), ४९७३९(#) सज्झाय व पाटली विधि, मा.गु., गद्य, मृपू., (पाटली थापी मुहपत्ती), ४९३९४ . सत्तरिसयजिन स्तवन, पं. विनयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६१, पद्य, मूपू., (समरी सरसति भगवति), ४९३०९(#) सत्संगति पद, मु. रत्न ऋषि शिष्य, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., (संगत कर ले रे साधु), ५२०४७-३ सद्गुरु अष्टपदी, मु. श्रीसार, पुहिं., गा. ९, पद्य, मूपू., (सदगुरु विनु कइसइ पाई), ५०२०४-३ सगुरुभक्ति पद, पुहिं. गा. १, पद्य, थे. (मेर सगूर पकडी बांह), ५१९०१-२० , י सनत्कुमारचक्रवर्ति धमाल, ग. महिमासुंदर, मा.गु. गा. १५१, वि. १६६१, पद्य, भूपू (प्रणमी चडवीसवि अरिह), ५०६५८ (०) सनत्कुमारचक्रवर्ति सज्झाय, मु. राज ऋषि, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., ( अमर तणी वाणी सुणी), ४९८९३-१, ५१७७७(#) सनत्कुमारचक्रवर्ति सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सांभलि सनतकुमार हो), ४८४२६ सनत्कुमार चक्रवर्ती सज्झाय, मु. आणंदविजय, मा.गु गा. १३, पद्य, मूपू., (देव तणी रे वाणी सुणी), ५१३१७-१ सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. लक्ष्मीमूर्ति, मा.गु., ढा. ७, गा. ४४, पद्य, मूपू., (जोए विमासी जीव तुं), ४९२३९() सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (सरसति सरस वचन रस), ५१८०८, ४९२९५-२(४०), ५०७७२-१(-) , सप्तव्यसन सज्झाय, पं. रत्नकुशल गणि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मृपू., (श्रीसिद्धारथ कुल), ५१९९७-२ समता सज्झाय, मु. चिदानंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू. (हो प्रीतमजी प्रीत) ५१४२५-१ समवसरण स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. २१, वि. १८२१, पद्य, मूपू., (मोरी वीनतडी अवधारो), ५०८५३ समवसरण स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू (समोसरणनी शोभा जेणे), ५१०२३ (०) ४८७४२ समवसरण स्तुति, मु. जयत, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मिलि चौविह सुरवर), ५०८९८ समाधि मरण विधि, मा.गु., गद्य, मृपू (प्रथम वस्त्र साधविने), ४९०४५ सम्यक्त्व आठ वचन भांगा, मा.गु., गद्य, मूपू., (न जाणइ न आदरइ न पालइ), ४९८१५-२(#) सम्यक्त्वगुण विचार, मा.गु, गद्य, मूपू., (सुमता आणवी उत्तम साधु), ५०७८१-१००) समुद्रपाल रास, मु. उदेसींघ, मा.गु., ढा. ४, वि. १७६४, पद्य, मूपू., (श्रीआदीसर आदि दे), ५१९८१-१ समेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. रामचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (साहिबा समेतशिखर गिर ), ४९५६०-१ सम्मेतशिखरतीर्थं चैत्यपरिपाटी, मु. हंससोम, मा.गु गा. ५०, पद्य, भूपू (संति जिणेसर नमीय पाय), ४९४९८ सम्मेतशिखरतीर्थ चैत्यवंदन, मु. कल्याण, मा.गु, गा. ३, पद्य, भूपू (पूरव दिसे दीपतो), ४९९९७-९(+) सम्मेतशिखरतीर्थ पद, मु. क्षमाकल्याण, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (मधुवन में जाय मची रे), ५१२७४-३(#) सम्मेतशिखरतीर्थ पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (दरसण कीयौ आज सीखरगीर), ५१२७४-६(#) सम्मेतशिखरतीर्थ फाग, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (चालो जइए समीतशिखरगिर), ५१२७४-११(#) सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, वा. उदय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., ( धन्य धन्य शिखर गिरिर), ४८५९०, ४९१८५ सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. ज्ञानविमलसूरि-शिष्य, मा.गु., गा. ७. पच, मूपु. ( समेत शिखर गिरि भेटीय), ४८८०६- ३(क) सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. रूप ऋषि, मा.गु., गा. ७, वि. १८८९, पद्य, मूपू., ( समेत सिखरगिर चालो भव), ५१९८३ सम्यक्त्व ६७ बोल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. १२, गा. ६८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सुकृतवल्लि कादंबिनी), ५०२५२(+#), ४९७४२-१, ५०२३२ सम्यक्त्वशुद्धस्वरूप विचार, मा.गु, गद्य, वे. (सम्यग् ज्ञान सम्यग् ), ४९९०९-३ " सम्यक्त्व सज्झाय, मु. तिलकविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (जिनवाणी घन वुठडो), ५१४५४-१, ५१४३४(#) सम्यक्त्व सज्झाय, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (समकितना पांच भेद ए), ५१२०० Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सम्यक्त्व सज्झाय, मु. शय्यंभवरत्नसूरि शिष्य, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (गोयम गणहर करुं), ५१०९५-१ सम्यक्त्वसुखडी सज्झाच, मा.गु, गा. ५, पद्य, म्पू. (चाखो नर समकित सुखडली). ४८५४२-२(+४) सम्यग्दृष्टि सज्झाय, रा. गा. २३, पद्य, श्वे. (समदृष्टी साचो इम), ५२००४-१०(०) " " For Private and Personal Use Only ५८७ Page #605 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१२ सरस्वतीदेवी छंद, आ. दयासूरि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (बुद्धि विमल करणी), ४९५४०-२,५००८६, ५११२७, ५१६९५-२ सरस्वतीदेवी छंद, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ३५, पद्य, मूपू., (सरस वचन समता मन), ४८५९८(+), ५०८२६(+#), ५१८७१ सरस्वतीदेवी छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., ढा. ३, गा. १४, पद्य, मूपू., (शशिकर जिनकर समुज्व), ५२०२४-३(+), ४८२५४, ५१०४६(#) सरस्वतीदेवी छंद, ग. हेमविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (ॐकार धुरा उच्चरण), ५२०२४-१(+), ५१४४३-३(#$) सरस्वतीदेवी छंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, वै., (वीणापुस्तकधारणी), ५०२५६-३ सरस्वतीदेवी स्तुति, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (देवी श्रीमद् भारती), ४९८८६-३ सरस्वतीदेवी स्तुति, पुहि., गा. २, पद्य, वै., (विद्या विनता नृप कुल), ४९८९२-२(#) सरस्वतीमाता छंद, मा.गु., गा. ४३, पद्य, जै., वै., (सरसति भगवती जग), ५०९६७ सरस्वती साध्वी सज्झाय, मु. श्रीपाल, मा.गु., गा. २१, पद्य, श्वे., (सरसत करुं पसाव एक), ४९४३२(-) सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय, मु. गुणविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (जगदानंदन गुणनीलो रे), ५१२३६(+), ४९३४४-२, ५०५९६, ४८५२२-१(२), ५०७७९(३), ५१९४४-२(-2) सर्वार्थसिद्धविमान सज्झाय, मु. भाग्यसागर, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (जगदानंदन गुणनीलो रे), ५०१२९ सवैया संग्रह, पुहिं., पद्य, वै., (अली आय खरी सन्मुख), ४९८६०-५(-) सहजानंदी सज्झाय, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ११, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (सहजानंदीरे आतीमा), ४८८३६(+) सागरचंद्र चौढालियो, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ४, वि. १८९८, पद्य, श्वे., (सागररायनी वारता कह), ५०६१४-१ सातवार आरती, जै.क. भूधरदास, पुहिं., गा. ९, पद्य, दि., (समरण आई आई दिनेमा), ५१९१६-५(#) साधारणजिन आरति, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (विविध रत्न मणि जडित), ५०५२८-२ साधारणजिन आरती, जै.क. द्यानतरायजी, पुहिं., गा. ८, पद्य, दि., (आरती श्रीजिनराज), ५१९०८-४ साधारणजिन चैत्यवंदन, मु. चिदानंदजी, मा.गु., गा. ३, वि. २०वी, पद्य, मूपू., (निज रूपे जिननाथ के), ५००९५-२ साधारणजिन चैत्यवंदन, मु. चिदानंदजी, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मन मोह्यं प्रभु गुण), ५००९५-३ साधारणजिन चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (चउजिन जंबूद्वीपमा), ५०२००-११ साधारणजिन चैत्यवंदन-१८ दूषणवर्जनगर्भित, आ. नयविमल, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (दान लाभ भोगोपभोग बल), ५०२००-१२ साधारणजिन चैत्यवंदन-५ परमेष्ठिगुणगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, वि. १८पू, पद्य, मूपू., (बार गुण अरिहंत देव), ५०२००-१०, ५१६६९-१ साधारणजिन जन्मकल्याणक स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (में जिन मुख देखण जाउ), ४८४४६-४(#) साधारणजिन पद, मु. कृष्णदास, पुहि., गा. ७, पद्य, मूपू., (पंचन कुंसमजाय दे),५०२७४-५(+-) साधारणजिन पद, मु. केशव, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (प्यारे रेजिन तुम्ह), ५०४६१-२(2) साधारणजिन पद, ग. जिनहर्ष, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (हो प्रभु मे तेरी), ५१९११-३(#) साधारणजिन पद, मु. नंदलाल शिष्य, पुहि., गा. ५, पद्य, स्था., (आणंद वर्ते हो जिणंद), ५२०४७-७ साधारणजिन पद, मु. राजसमुद्र, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (लीनउ लीनउरी मो मन), ४८६३९-२ साधारणजिन पद, मु. रामदास, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (नयना सफल भए प्रभु), ४९१४६-२,५००५०-२ साधारणजिन पद, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (देख्या दरसण तिहारा), ५११०८-१(#) साधारणजिन पद, मु.रूपचंद, पुहि., गा. ३, पद्य, म्पू., (देव निरंजन भव भय), ५१२३७-४ साधारणजिन पद, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (निरंजन यार वोरे अब), ५१०३४-८, ५१२७८-३(#) साधारणजिन पद, मु. लक्ष्मीराज, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (मै तो जिनंद परिवारी), ५०६७२-६ साधारणजिन पद, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (कब समरोगे जिन नाम), ५०७३१-२ साधारणजिन पद, मु. हर्षचंद, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (देखो महिमा अनुभव), ५११०८-७(#) For Private and Personal Use Only Page #606 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ " साधारणजिन पद, पुहिं., गा. १, पद्य, मूपू., साधारणजिन पद, पुहिं, गा. ३, पद्य, मूपू साधारणजिन पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., साधारणजिन पद, पुहिं, गा. ४, पद्य, चे., साधारणजिन पद, पुहिं, गा. ४, पद्य, वे. साधारणजिन पद, पुहिं., मा.गु., पद्य, श्वे., (--), ५०४७५-६ (+) (केई उदास रहै प्रभु), ४९९१५-३ (तुंही मेरा दिल मे), ५०२७४ १०+) (दिल दाम हरम जानी दोस), ५११०८-३(#) (प्यारो कौन बतावै रे), ५११०८-४९१ लागो मारो वीर जिणंदा), ४९१९३-३ " " " साधारणजिन पद - जिनेंद्रविज्ञभिगभिंत, मु. श्रीसार, पुहिं. गा. ३, पद्य, भूपू. (त्यार्यड तार्यउ जू), ५०२०४-२ साधारणजिन पूजास्तवन, मु. लालचंद, मा.गु. गा. १२, पद्य, मृपू (मेष प्रभुजीने पेमस्य), ५०१३८-१(+०) साधारणजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मृपू., (देखो रे जिणंदा प्यार), ५१२३७-२ " " साधारणजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु. गा. ३, पद्य, म्पू, (लय लागी प्रभुना), ४९४८२-७(१) , साधारणजिन स्तवन, मु. कनककीर्ति, पुहिं., गा. १२, पद्य, मूपू., (वंदु श्रीजिनराय मन), ४८३८१-२, ४८४७६-१, ५०२०३-३(#) साधारणजिन स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सूरति सलूणा हो साहिब), ४९८६२-३ (#) साधारणजिन स्तवन, मु. कुशलहर्ष, मा.गु., गा. ४३, पद्य, मूपू., (त्रिभुवन तारण तीरथ), ४९८९६-१ ($) साधारणजिन स्तवन, मु. केसर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू (अरज सुणो अलवेसरुजी), ४८१५४-२ साधारणजिन स्तवन, मु. चिदानंदजी, मा.गु, गा. ३, पद्य, भूपू (परमेसर परमातमा पावन), ५००९५-१ " साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (आज माहरा प्रभुजी), ५१३६५-२ साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (जब जिनराज कृपा होवे), ५१०६८-१(#) साधारणजिन स्तवन, मु. देवचंद्रजी, मा.गु, गा. ६, पद्य, मूपू. ( सेवा सारज्यो जिनजी), ४९८१३-२ (+) साधारण जिन स्तवन, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (हुं तो प्रभु वारि छु), ४९८१३-३(+) साधारणजिन स्तवन, मु. नवल, पुहिं, गा. ३, पद्य, मूपू (अटके नेणुवीजे जिन), ४८६१६-३ साधारणजिन स्तवन, मु. पुण्यरत्न, मा.गु गा. ४, पद्य, मूपू (सकल गुण भरिया ते), ५१९८८-३(४) साधारणजिन स्तवन, मु. ब्रह्मदयाल शिष्य, रा. गा. ९, पद्य, वे. (जिनजी थांकीजी सुरत), ४८३५९-२ साधारणजिन स्तवन, मु. राज, मा.गु., गा. ३, पद्य, श्वे., (धनिओ पीवी वाधनी), ५०८९९-७ साधारणजिन स्तवन, वा. रामविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (प्रभु तोरी वाणी सुणी), ५०६९४ साधारणजिन स्तवन, मु. रूपचंद, पुहिं. गा. ५, पद्य, भूपू (बाजी नगारा की ठोर, ५२००४-३(०) साधारणजिन स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु. गा. ५, पद्य, भूपू (आंगी चंगी आजनी सुख ल), ४९३५४-१ "1 "" Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir י יי साधारणजिन स्तवन, मु. वृद्धिविजय शिष्य, मा.गु., गा. १६, वि. १७९८, पद्य, मूपू., ( जय जय करण जिनेसर), ५१६५८-४(#) साधारणजिन स्तवन, मु. सेवक, मा.गु, गा. ६, पद्य, मूपू (श्रीअरिहंतजि चरणे ला), ४८२९९-१ , "" , साधारणजिन स्तवन, पुहिं. गा. २, पद्य, मूपू. (जिनंदा भगवान दे सफल), ५००५३-२(१) साधारणजिन स्तवन, पुहिं. गा. ५, पद्य, चे., (जिनराज के दरस कुं). ४९८५१-२ " साधारणजिन स्तवन, पुहिं., पद्य, भूपू., (तेरी दासी हो पीया मइ), ५१७४६-२(5) साधारणजिन स्तवन, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे. (ब्रह्मा नामधारी कहे), ५०१३६-२ (#) साधारणजिन स्तवन, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (हवे नीसुणो भगवंत रे), ५१६५८-३(#) साधारणजिन स्तवन, पुहिं., पद्य, श्वे., (हां रे मेरे जिणंदराय), ४९५६६-२ (+$) साधारणजिन स्तवन - जिनवाणी महिमा, मु. कांति, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., ( जिणंदा तोरी वाणीइ), ४९८५४-२, ५०४९०-२ साधारणजिन स्तवन - देवनाटकविचार, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (प्रभु आगल नाचे सुरपत), ५१४४४-३ (#) साधारण स्तुति, मु. कवियण, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (चंपक केतकी पाडल जाई), ४९९५९ (+), ४९६४६ (#) साधारणजन होली, मु. विमलचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (तुम्ह ऐसे खेलो रूत), ४८६२६-२ (#) साधु आचार विवरण, मा.गु., गा. ३०, पद्य, म्पू, (जाणइ अ नइ पुछइ पुन्य), ४९२२४ For Private and Personal Use Only ५८९ Page #607 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१२ साधु को कल्पनीय अकल्पनीय आहार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (खरडान होय हाथ भांजन),५१३७९-३ साधु को त्याग करने योग्य १२ प्रकार के आधाकर्मि आहार, पुहि., गद्य, मूपू., (१आधाकर्मि २ उद्देशिक), ४८१९१-३, ५१३७९-२ साधुगुण गहुंली, मु. उत्तम, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (षट्व्रत सुधा पालता), ४८६३१-३, ५१४६६-६, ५१५८१-२(#) साधुगुण सज्झाय, आ. आनंदविमलसूरि, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवरने करुं), ५१३२६,५१६८१-१ साधुगुण सज्झाय, मु. आसकरण, पुहिं., गा. १०, वि. १८३८, पद्य, श्वे., (साधुजीने वंदना नीत), ४९७८८-४ साधुगुण सज्झाय, उपा. उदयविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (दश आचार मुणिंदना बोल), ५१३८०-२ साधुगुण सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (ते मुनिने करूं वंदन), ५१३५६-५ साधुगुण सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सारदा सौख्यदा चित्त), ४८२९७ साधुगुण सज्झाय, ग. मणिचंद्र, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (श्रवण कीर्तन सेवन ए), ४८१६८-१,५१२७७-२(#) साधुगुण सज्झाय, मु. मान, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (ऐसा साधु नमु सदा), ५१०३४-१ साधुगुण सज्झाय, मु. वल्लभदेव, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (सकल देव जिणवर अरिहंत), ५११३०-१(-) साधुगुण सज्झाय, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (पांचे इंद्री रे), ४९४५५-१(+#) साधुधर्मपद, मा.गु., पद्य, श्वे., (जो जेह चित्ते सुविवे), ५०४८६-२(१) साधुपद सज्झाय, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. १३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (साधक साधज्यो रे निज), ४८९९५-१(+) साधुप्रायश्चित विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (ज्ञानना अतिचार कहै), ४९२१०-२,५१८८४ साधुवंदना, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., गा. ४१, वि. १८२२, पद्य, श्वे., (पो सम उठ्या भावस्यु), ५०६०६, ४९१८१(-) साधुवंदना, ग. भक्तिविजय, मा.गु., गा. २९, वि. १८७३, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर प्रणमु), ५००३३ साधुवंदना बडी, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., गा. १११, वि. १८०७, पद्य, स्था., (नमुं अनंत चोवीसी), ४८२५१-१(+) साधुवंदना लघु, ऋ. जेमल, मा.गु., गा. ५९, वि. १८०७, पद्य, श्वे., (नमुं अनंत चोविसी), ५१६५०-१(#) साधुश्रावक आचार लावणी, मु. राम, पुहि., गा. ६, पद्य, श्वे., (है जैन वही जो जैन), ५०५९३-२(+) साधु समाचारी, मा.गु., गद्य, श्वे., (आठ मास ताइ साधु मन), ४९१७३ साधुसाध्वीआचार ७ बोल विचार, आ. हीरविजयसूरि, मा.गु., वि. १६४६, गद्य, मूपू., (सं.१६४६ वर्षे पोषासि), ४९४३० साधुसाध्वी कालधर्म विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम स्नान करावयु), ५०७३८ सामायिक ३२ दोष, मा.गु., गद्य, मूपू., (पालखी न बेसे १ अथिरा), ४८६०९-३(+#) सामायिक ३२ दोष भास, वा. कमलशेखर, मा.गु., गा. २०, पद्य, म्पू., (समरसि भरि समता करउ), ५०८२२(2) सामायिक दृष्टांत, मा.गु., गद्य, श्वे., (सामाईयं १ समईयं २), ५०५५४ सामायिक सज्झाय, मु. कमलविजय-शिष्य, मा.गु., गा. १३, पद्य, म्पू., (प्रणमिय श्रीगौतम), ४८४९३-१ सामायिक सज्झाय, मु. नेमसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सामायिक मन सुधे करो), ५०८२८-२(#) सासबहु झगडा सज्झाय, मु. मेघराज, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सुण दुलहण हे तुरी बट), ५१७४६-१ सिचीयायदेवी छंद, हेम, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सानिधि साचल मात तणी), ४९६२९-४(#$) सिद्धगतिद्वार विचार कोष्टक, मा.गु., को., मूपू., (उरधलोकमाही एक सम ४), ४९५४२ सिद्धचक्र चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १५, वि. १८वी, पद्य, भूपू., (सिद्धचक्र आराधता), ५१४१०-२(#$) सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. मोहन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सिद्धचक्र महामंत्र), ४९८८७-२ सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. शांतिविजय शिष्य, मा.गु., गा.६, पद्य, मूपू., (पहेले दिन अरिहंतनु), ४९८८७-१ सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. साधुविजय शिष्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सिद्धचक्र आराधता), ५१६६९-२ सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. साधुविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (श्रीसिद्धचक्र आराधता), ५०६७९-१(), ५१५८८-६(#) सिद्धचक्र नमस्कार, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत उदार कांत), ४९९१७-६(+#), ४९९९३(#) सिद्धचक्र पद, मु. लालचंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, म्पू., (नवपद ध्यान धरो रे), ५१८८३-२(+) सिद्धचक्रमहिमा स्तवन, मु. कनककीर्ति शिष्य, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (नवपदनो ध्यान धरीजे), ४९१०३-१, ५१०३१ For Private and Personal Use Only Page #608 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ सिद्धचक्र सज्झाय, मु. उत्तमसागर शिष्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (नवपद महिमा सार सांभल), ५०३९६-२ सिद्धचक्र स्तवन, मु. अमरविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (समरी सारद माय प्रणमी), ४८७४६, ४८९७७, ४९०६८-१, ४९५२९ सिद्धचक्र स्तवन, मु. अमृतविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सिद्धचक्रनी करुं भव), ४८७३७ ।। सिद्धचक्र स्तवन, पंन्या. उत्तमविजय , मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (भावे कीजे रे नवपद), ४९३९० सिद्धचक्र स्तवन, पं. पद्मविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, म्पू., (चोत्रीस अतिशय सोहतो), ५१४१०-१(#) सिद्धचक्र स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सिद्धचक्र वर सेवा), ५११४३, ५१३०२ सिद्धचक्र स्तवन, मु. माणिकमुनि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (समरि सारदा शारद विधु), ५०३७८ सिद्धचक्र स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., ढा. ४, गा. २५, पद्य, मूपू., (जी हो प्रणमुं दिन), ५०८०५(+), ५१०५६-३+#) सिद्धचक्र स्तवन, मु. राम-शिष्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (ओ भविरे प्राणी रे), ४९७६१ सिद्धचक्र स्तवन, मु. शिवचंद्र, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सिद्धचक्र वंदो जयकार), ४८६२७, ५१५०८ सिद्धचक्र स्तवन, मु. सत्यसागर, मा.गु., गा.१३, वि. १८२३, पद्य, मूपू., (सिद्धचक्र आराहीय), ४९२८१-२ सिद्धचक्र स्तवन, मु. सुविधिविजय, मा.गु., गा. ११, वि. १४१७, पद्य, मूपू., (सकल सुरासुर सेवित), ५१०४४ सिद्धचक्र स्तवन, मु. हर्ष, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (एक आगमथी रो हो जउ), ५१२३७-१ सिद्धचक्र स्तवन, मु. हेम, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (अष्टकमलदलधारी नीजउर), ५०८१० सिद्धचक्र स्तुति, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अंगदेश चंपापुरी वासी), ४८१९५ सिद्धचक्र स्तुति, ग. कांतिविजय, मा.गु., गा. ४, वि. १८उ, पद्य, मूपू, (पहिले पद जपीइ अरिहंत), ५०२६४-१ सिद्धचक्र स्तुति, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जगनायक दायक सिद्ध), ५११८९-२(#) सिद्धचक्र स्तुति, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (प्रणमंत सुरनर पाय), ५११८९-१(#) सिद्धचक्र स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (निरुपम सुखदायक), ४८५३५-२, ४९६३३-८, ४८६६४-१(६) सिद्धचक्र स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अरिहंत नमो वळी सिद्ध), ४९७८९-७(+) सिद्धचक्र स्तुति, मु. नयविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर अति अलवेस), ५०२६४-२ सिद्धचक्र स्तुति, मु. विजयसिंह शिष्य, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवर भाख्यो महि), ५०८२९-१ सिद्धदंडिका स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., ढा. ५, गा. ३८, वि. १८१४, पद्य, मूपू., (श्रीरिसहेसर पाय नमी), ४८८०१-१(+), ४९१४४-१, ४९६११ सिद्धपद सज्झाय, मु. देवविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (आठ कर्म चूरण करी रे), ५०७१३-२ सिद्धपद स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (नमो सिद्धाणं बीजे पद), ५१३५६-२ सिद्धपद स्तवन, मु. नयविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (श्रीगौतम पृच्छा करे), ५०४५६, ५०७६५-५(-६) सिद्धपद स्तवन, मु. शुभवीरविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सिद्ध जगत शिरे शोभता), ४९१८९-१(+) सिद्धपद स्तवन, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (जगतभूषण विगत दूषण), ४८४६१, ४९०१५, ५०५८१-२ सिद्धसूरि स्तुति, मा.गु., पद्य, मूपू., (गुरु कीधा उपगार वात), ५१८४०-२ सिद्धांतविचार स्तवन, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (संसारि फरिता जीविहि), ५१८९८-२(-2) सीतासती कृत आलोयणा, मु. कुशल, मा.गु., ढा. ६, गा. ९३, पद्य, मूपू., (सती न सीता सारिखी), ५२००३-२ सीतासती गीत, मु. जिनरंग, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (छोडी हो पिउ छोडि), ५२००३-३, ५१३८१-२(#) सीतासती सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (जनकसुता हुं नाम), ४९९८२, ५११९२-१ सीतासती सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. ५, पद्य, मूपू., (माता सरसत वीनQ), ५२००३-१ सीतासती सज्झाय, मु. धनहर्ष, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (सीता आणी रावणिं वात), ४८३२३($) सीतासती सज्झाय, मु. लक्ष्मीचंद, पुहिं., गा. १६, पद्य, मूपू., (मुनिसुवरतस्यामी कुं), ५०९३९(#) सीतासती सज्झाय-शीलविषये, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (जलजलती मिलती घणी रे), ५०५७८-१ सीमंधरजिन चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (वंदं जिणवर विहरमाण), ४९९१७-८(+#), ५०८७२-५(+) For Private and Personal Use Only Page #609 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५९२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१२ सीमंधरजिन चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पहिला प्रणमु), ४८७६१-१ सीमंधरजिन चैत्यवंदन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मपू., (सीमंधर परमातमा शिव), ५००९८ सीमंधरजिन चैत्यवंदन, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., गा.६, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर जिनवरा), ५०५३७-१(#) सीमंधरजिन चैत्यवंदन, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. ३, वि. १७उ, पद्य, मूपू., (श्रीसीमधर वीतराग), ४८४५७-२(+$) सीमंधरजिन चैत्यवंदन, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (श्रीसीमधर साहिबा), ४८३९२-२ सीमंधरजिन चैत्यवंदन, मु. हर्षविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (पूरव दिशि इशान कुण), ४८३९२-१, ४८६०७-१, ५१५८८-२(#) सीमंधरजिन चैत्यवंदन, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (अहि कलिलोका लोका), ५०१३९-१(#) सीमंधरजिन दूहा, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अनंत चोवीशी जिन नमु), ५०६७९-२(2) सीमंधरजिन विज्ञप्तिस्तवन, क. कमलविजय, मा.गु., ढा. ७, गा. १०५, वि. १६८२, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीपुष्कला), ४९८१९ सीमंधरजिन विज्ञप्ति स्तवन-३५० गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. १७, गा. ३५०, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर साहिब), ४९८०१() (२) सीमंधरजिन विज्ञप्ति स्तवन-३५० गाथा-बालावबोध, क. पद्मविजय, मा.गु., ढा. १७, वि. १८३०, गद्य, मूपू., (पार्श्वनाथपदद्वद्व), ४९८०१(६) सीमंधरजिन विनती, मा.गु., गा. १६, वि. १८५०, पद्य, मूपू., (वाला एकमे ओलख्या सीम), ५१०८५-१ सीमंधरजिन विनती स्तवन, मु. अगरचंद, मा.गु., गा. २१, वि. १८६१, पद्य, मूपू., (त्रिभुवनस्वामी अरज), ५१६३३, ५०७६३(#) सीमंधरजिन विनती स्तवन, वा. उदय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (मनडु ते माहरु मोकलु), ४८५६४-१ सीमंधरजिन विनती स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (सीमंधर विनती सुणि), ४८२५२-१(+) सीमंधरजिन विनती स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सुण सीमंधर साहिबाजी), ४८४९६ सीमंधरजिन विनती स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर जिनवर), ५०१३०-१(+#), ५१८५३-४(#) सीमंधरजिन विनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (सफल संसार अवतार हुँ), ४९९४७-१(+#), ४९७११, __५१८४०-१,५०५३७-५(#), ५१६५५(#), ५१६६६(#) सीमंधरजिन वीनती, मु. शुभविजय शिष्य, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सुणि सुणि साहिबारे), ४९७४३(#) सीमंधरजिन स्तवन, मु. अगरचंद, मा.गु., गा. २३, वि. १८२१, पद्य, मूपू., (मारी वीनतडी अवधारो), ४९८६४(८) सीमंधरजिन स्तवन, आ. अजितदेवसूरि, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (जगबंधव जगमीया वीनतडी), ४८४८५(+) सीमंधरजिन स्तवन, मु. उत्तम, मा.गु., गा. ६, वि. १८६४, पद्य, मूपू., (श्रीश्रीमंदिरस्वामी), ५१२६५-२(-) सीमंधरजिन स्तवन, ग. उत्तमसागर, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर वीनवुरे), ४८२०९(+) सीमंधरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (स्वस्तिश्रीपुंडरीकिण), ५१३२१-१(#) सीमंधरजिन स्तवन, ग. ऋद्धिविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (चितडु संदेसो मोकलें), ४९००७-२ सीमंधरजिन स्तवन, मु. कान कवि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (महाविदेह क्षेत्रनो), ४८३३०-४ सीमंधरजिन स्तवन, ग. केशव, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे., (प्रथम जिनेशर तु परमे), ५०४६१-१(#) सीमंधरजिन स्तवन, मु. केशव, मा.गु., गा.४, पद्य, श्वे., (सकल सुरासुर सेवित), ५१२९७-१(#) सीमंधरजिन स्तवन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीसीमधर साहिबा), ४८४१३ सीमंधरजिन स्तवन, श्राव. गोरधन माली, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (आज भलो दिन उग्यो हो), ५०६३७-२ सीमंधरजिन स्तवन, मु. जिनचंद्र, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सुगुण सेनही साजन), ५०९२३(#) सीमंधरजिन स्तवन, आ. जिनरंगसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (विजयविदेह परगणो पुखल), ४९५६१-१ सीमंधरजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मुज हीयडुं हेजालवू), ४८३३०-२ सीमंधरजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा.७, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (पुंडरीकिणी नगरी वखाण), ५१७०४-१ सीमंधरजिन स्तवन, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., गा. २१, पद्य, श्वे., (पुखलावती विजय पूर्व), ४९४१२-३ सीमंधरजिन स्तवन, मु. नवलमल, रा., गा.८, वि. १८८१, पद्य, श्वे., (साम सीरीमंदरादेव), ५००१६-२) For Private and Personal Use Only Page #610 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २ सीमंधरजिन स्तवन, क. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सुणो चंदाजी सीमंधर), ४९५२५-१, ५०१३९-५(#) सीमंधरजिन स्तवन, मु. भक्तिलाभ, मा.गु गा. १७, पद्य, मृपू, (उत्सवि रंगि बधामणां), ४८७४९(१) " सीमंधरजिन स्तवन, पं. भाणविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर तुं मुझ), ५०४८९-१ सीमंधरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पुष्कलवइ विजये जयो), ५०१११-२, ५०५५९-५११, ५१४६८(१) सीमंधरजिन स्तवन, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (धनधन क्षेत्रविदेह), ४८४५०-१ सीमंधरजिन स्तवन, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, खे, (लील वसत पाटवी राजे), ५०६१४-२(३) " सीमंधरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा. गा. १०. वि. १८२५, पद्य, चे. पुरव माहाविदेह भलो), ५१२५०-३ " सीमंधर जिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. ११, वि. १८६८, पद्य, स्था., (महाविदेह विराजीया), ५०००५-१ (+) सीमंधरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, पुहिं. गा. ११, वि. १८३५, पद्य, स्था. (श्रीश्रीमंदर सायब मे), ५०००५-२(१) सीमंधरजिन स्तवन, मु. लालचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधरजी सुणजो), ४९३८५-२ सीमंधरजिन स्तवन, मु. विजयदेवसूरि शिष्य, मा.गु, डा. ७, गा. ४०, पद्य, भूपू (सुणि सुणि सरसती भगवत), ४८९५७, ४९०३९. "1 ५०५१९ सीमंधरजिन स्तवन, ग. शांतिविजय पंडित, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (साहिबीया रे० सीमंधर), ४९९५३(+#), ५२०४१-२(#) सीमंधरजिन स्तवन, मु. शांतिसूरि, मा.गु गा. ८, पद्य, मूपू (जंबूवरदीव महाविदेह), ४८२५३-२ सीमंधरजिन स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ९, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (धन धन क्षेत्र महाविद), ५०७३२ सीमंधरजिन स्तवन, मु. सौभाग्यहर्ष, मा.गु., गा. २५, पद्य, भूपू (सरसति पाय प्रणमी करी), ५१५६२ (+) सीमंधरजिन स्तवन, मु. हंस, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू. (श्रीसीमंधरस्वामीजी), ४९१०८ (१०) सीमंधरजिन स्तवन, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., ( ओ मारा सीमंधरस्वामी), ५०७३४ सीमंधरजिन स्तवन रा., गा. ९, पद्य, मूपू., (पूरव पुष्कलावती हो), ५०५८५ सीमंधरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, श्वे. (वालो मारो सीमंधर), ४८२६९, ४८७७६, ५११२२ " ५१२८६, ५१६१०-१ सीमंधरजिन स्तुति, मु. देवचंद्रजी, मा.गु गा. २१, पद्य, भूपू (प्रभुनाथ तुं तियलोक), ४८९९५-४(१), ५००८९ सीमंधरजिन स्तुति, मु. शुभवीरविजय, मा.गु., गा. ४, वि. १९वी पद्य, मूपू (श्रीसीमंधरदेव सुहंकर), १०९८५-३ सीमंधरजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, भूपू (अजवाली बीज सोहावे), ५०९८५-२ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सीमंधरजिन स्तवन- आलोयणा, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (आलोयण हो बोलुं बे कर), ५१३२१-२(#) सीमंधरजिन स्तवन-आलोयणाविनती, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ५६, वि. १५६२, पद्य, मूपू., ( आज अनंता भवतणां कीधा), सीमंधरजिन स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे. (सीमंधरस्वामी मोटा), ५०१३९-२(१) "" सुंदरीत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, भूपू (सरस्वती स्वामिनी), ५१८१६-२ (+), ४९०१८-३, ४९०६८-४ 13 सुजशवेली भास, मु. कांतिविजय, मा.गु., डा. ४, गा. ५२, पद्य, म्पू. (प्रणमी सरसति सामिनीज) ४९२५९ सुजातजिन स्तवन, मु. नयविजय - शिष्य, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (साचो स्वामी सुजात), ५०२८५-१(#) सुदर्शनशेठ सज्झाच, मु. प्रेम, मा.गु., डा. ४, गा. २१, पद्य, थे. (वीर जिणंद विराजता), ५१४०८ ५९३ सुकोशलमुनि चौपाई, श्राव. जगन, मा.गु., ढा. २१, गा. २७५, ग्रं. २७९, वि. १७६१, पद्य, श्वे. (श्रीवर्धमान चौवीसमा), ४९४२६ ($) सुकोसलमुनि चोडालीये, मा.गु., डा. ४, गा. ६८, पद्य, वे., (दशरथ से पहिली हुआ), ५०७१४-१ सुगुरुपच्चीसी, मु. जिनहर्ष, मा.गु, गा. २५, पद्य, भूपू (सुगुरू पिछाणो एणे), ५०९३४, ५२००८) सुधर्मदेवलोक सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सुधरमां देवलोकमां), ५१०२२ सुधर्मदेवलोक सज्झाय, मा.गु., गा. १०, पद्य, वे. (सुधमदिवलोकना रे), ५१७०७-२ सुधर्मागणधर सज्झाय, पंन्या. उत्तमविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (मुनिवरमां परधान), ५१५८१-६(#) सुधर्मास्वामी गहुली, मु. अमृत, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (गणधर वीरजिनवरतणो ), ४८३६१-३ For Private and Personal Use Only Page #611 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५९४ www.kobatirth.org 1 सुधर्मास्वामी गहुली, मु. अमृत, मा.गु., गा. ७, पद्य, भूपू (चंपानगरी उद्यानमा), ४८३६१-१ सुधर्मास्वामी गहुंली, मु. मुक्ति, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (राजग्रही नगरी सोहामण), ४९९६४ सुधर्मास्वामी गहुली, पं. हर्षविजय, मा.गु. गा. ७, पद्य, मृपू., (श्रीशुद्ध धरम परकासत), ५१५८१-८(१) सुधर्मास्वामी गहुली, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (ज्ञान दरसण गुण धरता), ४८६३१-२, ५१४६६-४, ५१५८१-३(#) सुधर्मास्वामी गीत, मु. रायचंद ऋषि, रा. गा. १३, वि. १८३९, पद्य, क्षे., (भरतक्षेत्रमे भलो), ४९७८८-३ सुधर्मास्वामी भास, ग. भक्तिविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (श्रीसोहमवर गणधर अतिश), ४८७६६ सुधर्मास्वामी भास, रा. गा. ७, पद्य, भूपू.. (कठडा आवा गुरुजी), ४८९७८ , י कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१२ सुपार्श्वजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सुपार्श्व जिन वंदीए), ४८८८० सुपार्श्वजिन स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सहज सलुणो हो मिलियो), ४९९७२-३(४) सुपार्श्वजिन स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (देह गेह सोहाविए मन), ५००३४-३ सुपार्श्वजिन स्तवन, मु. देवविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जगगुरु सांमी सुपास), ४८७४५-१ सुपार्श्वजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वाल्हा मेह बवीयडा), ४८५६४-२ सुबाहुकुमार संधी, मु. मेघराज, मा.गु., गा. ७५, पद्य, मूपू., (वंदी वीरजिनेसर केरा), ५१९१४ सुबाहुकुमार सज्झाच, मु. पानाचंद, मा.गु., गा. १३. वि. १८९५, पद्य, मृपू., (हवे सुबाहु कुंवर इम), ४९६२० सुबाहुकुमार सज्झाय, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., गा. १७, वि. १८९३, पद्य, मूपू., (हवे सुबाहुकुमार एम), ४८३८९ सुबाहुजिन स्तवन, मु. शांतिविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (हुं किम श्रीसुबाहु ), ५०२१६-२(+#) सुभद्रासती रास - शीलव्रतविषये, मु. मानसागर, मा.गु, डा. ४, वि. १७५९, पद्य, मूपू (सरसति सामणि वीनवें), ४८३७४(+) सुभद्रासती सज्झाय, मु. परमसागर, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (मन समरी रे अमरी कुमर), ५१८८५-३(#$) " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुभद्रासती सज्झाय, मु. विमलविजय, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., सुभद्रासती सज्झाय -सीयल, मु. सिंघो, मा.गु., गा. २१, पद्य, क्षे. सुमतिजिन गीत, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ४, पद्य, सुमतिजिन पद, मु. आनंदरूप, रा. गा. ३, पद्य, वे. सुमतिजिन पद, मु. हर्षचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (निरख वदन सुख पायो मै), ४८२५९-३(#) " (मुनी वसे जे धीरज जीव), ५०७२० (मुन्नीवर सोधे झवा), ४८९९३-२(+), ४८६७७-१, ५०९८८-४क मूपू., (कर तासुं तो प्रीत), ५११५८-१) (सुमति महाराज म्हांनु), ४९१९३-५ सुमतिजिन समवसरण गीत, ग. जीतविजय, मा.गु, गा. ७. पच, मूपू., (आज हुं गइती रे समवसर), ५१३६५-१, ५१६७३-२ सुमतिजिन स्तवन, ग. जिनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (कर जोडी करु विनती), ५१७८२-३(#) सुमतिजिन स्तवन, मु. विनीतविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सुमति जिणेसर रायजी), ४८६९४-२ सुमतिजिन स्तवन, ग. समयसुंदर, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (जिनजी तोरो जिसोजी), ४९४८२-५(१) सुमतिजिन स्तवन- १४ गुणस्थान विचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु. डा. ६, गा. ३४, वि. १७२९, पद्य, भूपू (सुमतिजिणंद . , सुमति), ५१९५८ (+), ५२००४-१ (#$) सुमतिदेवी के अठोत्तरशतनाम दोहरा, पुडिं, गा. ६, पद्य, दि., ( नमो सिद्धसाधक पुरुष), ४८९०१-२(५) सुमतिपार्श्वजिन स्तवन - अजीमगंज मंडन, पुहिं., सवै . ६, पद्य, मूपू., (श्रीजिनराज के सतरस), ५०३५०-२(#) सुरप्रियसाधु रास, मु. लक्ष्मीरत्नसूरि शिष्य, मा.गु., गा. ६८, पद्य, मूपू., (सरसति देवि सदा मनि), ५०५६७, ५०१७५ (#) सुलसामहासती अँड सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू., (आज माहरु भाग्य रे), ४९९१५-१ सुविधिजन गीत, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सेवा बाहिरउ कईयको), ५११५८-३(-) सुविधिजिन पद, ग. ऋद्धिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू. (विधिसु सुविधि जिन), ४९४४९-४(०) ,י सुविधिजिन पद, उपा. समयसुंदर गणि, पुडिं, गा. ३, पद्य, म्पू, (गुण अनंत अपार प्रभु), ५०८८५-१(०४), ५०९०७-६ (०) " सुविधिजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (ताहरी अजबशी योगनी मु), ५१०३४-६ सुविधिजिन स्तवन -महिमापुरमंडन, उपा. अमृतधर्म, मा.गु गा. ७. वि. १८४५, पद्य, भूपू (प्रभु सुविधिजिनिंद), ४८४१२-१, ५०५०२-३ For Private and Personal Use Only Page #612 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ सूतक विचार, पुहि.,मा.गु., गद्य, मूपू., (पुत्र जन्म होणेसे), ५११०९-५ सूतक विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पुत्र जन्म्यां १०), ४८८४२-२, ५०३४१-१, ५११०९-३ सूतक विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, मपू., (जेहने गृह मध्ये जन्म), ५१४४४-२(#) सूत्राचार सज्झाय, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (वीर जीनेश्वर पय नमी), ५२०१७ सूरजदेव सलोको, मु. ऋषभसुंदर, मा.गु., गा. २८, पद्य, भूपू., वै., (प्रणमु सारदा गणपतरा), ४८१४७(#) सूरप्रभजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सूरप्रभ जिनवर धातकी), ५०५५९-८(#) सूर्यचंद्र अंतर विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (मध्य मांडलाने विषई), ४९४३५(+) सौधर्मगणधर भास, ग. खिमाविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (चउनाणी चंपावने संयम),५१२११-२(#) सौभाग्यपंचमी नमस्कार पद, ग. सुजयसौभाग्य वाचक, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (सुमतिनाथ पंचम प्रभु), ४९६१५-१ सौभाग्यपंचमीपर्व स्तवन, मु. केशरकुशल, मा.गु., ढा. ५, गा. ७५, ग्रं. ११०, वि. १७५८, पद्य, मूपू., (श्रीगुरु चरणे नमी), ४८१३७ सौभाग्यपंचमी स्तोत्र, मु. कुंअरविजय, मा.गु., गा. ३५, पद्य, मूपू., (सरसतिमात पसाउलै गुरु), ५२०२८(2) स्तवनचौवीसी, क. पद्मविजय, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिनेश्वर ऋषभ), ४९८३२($) स्तवनचौवीसी, मु. प्रेम, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (मो मन मोह्यो नंदना), ५००११-२($) स्तवनचौवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., स्त. २४, गा. १२१, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (जगजीवन जगवालहो), ४८१९०(5) स्तवनचौवीसी, श्राव. विनयचंद्र कुमट, मा.गु., स्त. २४, वि. १९०६, पद्य, श्वे., (श्रीआदिश्वर सामी हो), ५०७४६-१(+) स्तवनवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., स्त. २०, पद्य, मूपू., (पुक्खलवई विजये जयो), ४९५१९() स्त्री दोष वर्णन, मा.गु., गद्य, वै., (ईश्वरोवाच सांभलिए), ५१२९०-५(#$) स्थापनाचार्यजीपडिलेहन १३ बोल, मा.गु., गद्य, श्वे., (१ सुद्ध स्वरुपना), ४९००१-२(+), ५०९२१-२(+#) स्थुलिभद्र सज्झाय, मु. ऋषभ, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (श्रीस्थूळिभद्र मुनिग), ४८९८६, ५१८४७-७ स्थूलिभद्रगीत, मु. शिवनिधान, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (थूलभद्र आयउ अंगणइ), ५१७२२-१(#) स्थूलिभद्रमुनि नवरसो, उपा. उदयरत्न, मा.गु., ढा. ९, वि. १७५९, पद्य, मूपू., (सुखसंपत्ति दायक सदा), ४९७३६(#), ५१११९(#) स्थूलिभद्रमुनि नवरसो ढाल व दूहा, उपा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., ढा. ९, गा. ७४, वि. १७५९, पद्य, मूपू., (सुखसंपति दायक सदा), ४८४८२(६), ५०२६९-२(-) स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. अमरचंद, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (लाछल दे सुत लाडलो), ५०४१४-१ स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. ऋषभ, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (श्रीस्थूलिभद्र मुनि), ५००८८(+) स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. तेजहर्ष, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (कोश्या जोई रे प्रिउ), ४९३९९-२ स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, पंडित. नयसुंदर, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (कोस्या कामिनि कहे), ५१९३८(+), ४९५०७, ४९९७६-१, ५०५७०(#) स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. रामजी, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (थुलिभद्र थिर जस करमी), ४८६१४-१ स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (चंपा मोर्यो हे आंगणे), ४९८२६-१ स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (वाट जोवंती निशदिनई), ५१४१८(#) स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (लाछल दे मात मल्हार), ५००२२-१, ५०४०८ स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. शांति, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (बोली गयो मुख बोल), ५०५५८-२ स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रीतडली न किजीये), ४९८४०-४(#), ५१९८८-१(-2) स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, क. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (चंदलीया तुं वेहलो), ४८५२२-२(#) स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सिंहसौभाग्य, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (भगवती भारती देवि चरण), ५१५६९-१(#) स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (थुलिभद्र मुनिसर आवो), ४८२८३(+) स्थूलिभद्र सज्झाय, मु. नयसुंदर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीथूलिभद्र योगेंद), ४८३४१-१ स्थूलिभद्र सज्झाय, आ. भावहर्ष, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (योग ध्यानमें जोडी), ४९५६२-२(#) For Private and Personal Use Only Page #613 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१२ स्थूलिभद्र सज्झाय, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (थुलिभद्र सउ कोश्या), ४९२९५-१(#) स्थूलिभद्र सज्झाय, मु. शिवचंद, मा.गु., गा.८, पद्य, श्वे., (श्रीथूलिभद्र मुनिवर), ४८७८६-१(+), ४९२९८-४ स्थूलिभद्र सज्झाय, मु. सेवक, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (चतुर चुमास्युं पडीकम), ५००४१-२(+) स्नात्र पूजा, मु. देवचंद्रजी, मा.गु., पद्य, मूपू., (चउत्तिसे अतिसय जुओ), ४८५४४(+) स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.गु., ढा. ८, गा. ६०, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (चोतिसे अतिसय जुओवचन), ४९३२१(#), ४९३५२-२(5) स्वप्न चौपाई, मु. सिंघकुल, मा.गु., गा. ४२, वि. १५६०, पद्य, श्वे., (पहिलो मन जोइ करि,), ५००६७(#) स्वयंप्रभजिन स्तवन, मु.शांतिविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (केवलनाण प्रमाणथी हो), ५०२१६-१(+#), ४८७६२-२(5) हनुमान कठियारा संवाद, मा.गु., गा. २, पद्य, श्वे., (कपी कहि सुणि रे), ४८८१९-२(+#) हनुमान झूलणा, गोपाल, पुहिं., गा. ५, पद्य, वै., (करु सात समुद के एक), ५१११६-२(+-#) हितोपदेश सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मनडा तुंमाहरी सुणि), ५००४४-१(+) हीररत्नसूरि सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ९, वि. १७६९, पद्य, मूपू., (सरसती माता सेवक जाणि), ५०३४६-१(-) हीरविजयसूरि १२ बोल सज्झाय, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (जी हो हीरविजयसूरीसरइ), ५०६७५ (#) हीरविजयसूरि कवित, क. सोम, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (सबे भृग नयन चलीगु), ५१४६४-३(#$) हीरविजयसूरि सज्झाय, मु. आनंदहर्ष, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (गोयम गणहर पाय नमिजी), ५०१०७(+#) हीरविजयसूरि सज्झाय, मु. जेसिंग, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (वाणि सरस गुरुजी तणी), ४९३७०-२ हीरविजयसूरि सज्झाय, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सरसती मती आपोजी सारी), ५०३९६-१ हुंडी सज्झाय, मु. मांडण ऋषि, मा.गु., गा. २२, पद्य, श्वे., (नेम कहे सेठ सांभलो), ४८८१७-४ होलीपर्व सज्झाय, मु. कुसल, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (होली रंड कहां ते आई), ५०५९४-४(+) होली विचार, मा.गु., गा. ४, पद्य, वै., (पूर्व वाय वहतो जोय), ५१६९६-२(#) ह्रींकारकल्प विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (अयोध्या के राजा दशरथ), ४८३७३ For Private and Personal Use Only Page #614 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir न आराधना का कन्द्र महावार श्री कोबा. 卐 卐 असतं तु विद्या Acharya Sri Kailasasagarsuri Gyanmandir Sri Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba Tirth, Gandhinagar E-mail: gyanmandir@kobatirth.org Website : www.kobatirth.org ISBN: 978-81-89177-4340 Set: 81-89177-00-1 For Private and Personal Use Only