Book Title: Jinruddhisuriji
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Z_Manidhari_Jinchandrasuri_Ashtam_Shatabdi_Smruti_Granth_012019.pdf
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रभावक आचार्य श्रीजिनऋद्धिसरि [भंवरलाल नाहटा ] सुविहित शिरोमणि महामुनिराज श्री मोहनलाल जी प्रतिष्ठा समय आगंतुक लोगों ने उत्सव में ग्रामोफोन के महाराज के स्वहस्त दीक्षित प्रशिष्य श्री जिनऋद्धिसूरि जी अश्लील रिकार्ड बजाने प्रारंभ किये। और मना करने पर विद्वान, सरल-स्वभावी और तप जप रत एक चरितवान् भी न माने तो आप मौन धारण कर बैठ गए। ग्रामोफोन भी महात्मा थे। उनका जन्म चूरु के ब्राह्मण परिवार में हुआ मौन हो गया और लाख उपाय करने पर भी ठीक न हुआ। था और वहीं के यतिवर्य चिमनीरामजी के पास आपने आखिर आपसे प्रार्थना की और अहाते से बाहर जाने पर ठीक दीक्षा ली थी, आपका नाम रामकुमारजी थो। आपके हो गया। सं० १९६३ में मोहनलालजी महाराज का स्वर्गबड़े गुरु भाई ऋद्धिकरणजी भी उच्चकोटि के त्याग वास हो गया तो कठोर चौमासा कर आपने गुजरातीवैराग्य परिणाम वाले थे इन्होंने देखा कि उनसे पहले मैं मारवाड़ी का क्लेश दूर कर परस्पर संप कराया। मोहन त्यागी बन जाऊ अन्यथा गद्दी का जाल मेरे गले में आ लालजी म. के चरणों की प्रतिष्ठा करवाई। मारवाड़ी जायगा। आप चुरू से निकल कर बीकानेर गये, मंदिरों व साथ का नया मन्दिर हुआ, चमत्कार पूर्ण प्रतिष्ठा करवाई नाल में दादा साहब के दर्शन कर पैदल ही चलकर आबू यहीं यशोमुनि जी को आचार्य पद पर स्थापित करने का जा पहुंचे क्योंकि रेल भाड़े का पैसा कहां था? वहाँ से मोरे साधु समुदाय ने निर्णय किया। झगडिया संध में एक यतिजी के साथ गिरनारजी गये। और फिर सिद्धा- यात्रा कर बड़ोद में सं० १९६४ माघ में शांतिनाथ भ० चलजी आकर यात्रा करने लगे। श्रीमोहनलालजी महाराज की प्रतिष्ठा कराई। व्यारे में अजितनाथ भ० को वैशाख के पास सं० १९४६ आषाढ़ सुदि ६ को दीक्षित होकर में तथा सरभोण में जेठ महीने में प्रतिष्ठा करवायी। रामकुमारजी से श्रीऋद्धिमुनि जी बने, आपको श्रीयशो- सूरत-नवापुरा में शामला पार्श्वनाथ की प्रतिष्ठा की। मनि जी का शिष्य घोषित किया गया । आपने दत्त चित आपके उपदेश से उपाय का जीर्णोद्धार हुआ। गुरु होकर विद्याध्ययन किया, तप जप पूर्वक संयम साधना महाराज की आज्ञा से मांडवगढ़ पधार कर योगोद्वहन करते हुए गुरु महाराज श्री सेवा में तत्पर रहे जब तक किया । सं० १६६६ मार्गशीर्ष शुक्ल ३ के दिन ग्वालियर में मोहनलालजी महाराज विद्यमान थे, अधिकांश उन्होंने आपको गुरुमहाराज ने पन्यास पद से विभूषित किया। आपको अपने साथ रखा, और उनका वरद हाथ आपके गुरुमहाराज पूर्व देश यात्रार्थ पधारे आपने जयपुर आकर मस्तक पर रहा। सात चौमासे साथ करने के बाद अलग चौमासा किया बड़े भारी उत्सव हुए । दीक्षा के बाद प्रथम विचरने की भी आज्ञा देते थे। सं० १९५६ में गुरु श्री यशोमुनि जी के साथ रोहिड़ा प्रतिष्ठा कराई। अनेक बार चूरु में आकर २० दिन स्थिरता की तेरापंथियों को स्थानों में विचर कर तीर्थ यात्राएं की। सं० १९६१ में शास्त्र चर्चा में निरुत्तर किया। नागोर के संघ में अनैक्य बुहारी में प्रतिष्ठा कराने आप और चतुरमुनि जो गए। दूर कर संप कराया, दीक्षा महोत्सवादि हुए । Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सं० १९६७ का चातुर्मास पन्यास जी ने कुचेरा खंभात व १९८० कड़ोद चातुर्मास किया। वहाँ लाडुआ किया । यज्ञ-होम, शांतिपाठ और ठाकुरजी जो सवारी श्रीमाली भाइयों को संघ के जीमनवार में शामिल नहीं निकलने पर भी बूंद न गिरी तो आपश्री के उपदेश से किया जाता था, पन्यासजी ने उपदेश देकर भेदभाव दूर जेन रथयात्रा निकली, स्नात्र पूजा होते ही मूसलधार वर्षा कराया। सं० १९८१ वलसाड़ करके नंदरबार पधारे से तालाब भर गए। वहां से तीन मील लूणसर में भी आपके उपदेश से नवीन उपाश्रय का निर्माण हुआ। प्रभु इसी प्रकार वर्षा हुई तो कुचेरा के ३० घर स्थानकवासियों प्रतिष्ठा, ध्वजदंडारोहण आदि बड़े ही ठाठ-माठ से हुए। ने पुनः मन्दिर आम्नाय स्वीकार कर उत्सवादि किए, सं० १९८२ व्यारा चौमासे में भी उपधान आदि प्रचुर दोडसौ व्यक्तियों के संघ ने प्रथमबार शत्रुञ्जय यात्रा की। धर्मकार्य हुए। टांकेल गाँव में मन्दिर और उपाश्रय निर्माण तदनन्तर फलौदो, पुष्कर, अजमेर होकर जयपुर पधारे, उद्याप- हुए, और भी नामानुग्नाम विचरते अनेक प्रकार के शासनोनादि उत्सव हुए। पंचतीर्थी कर अनेक नगरों में विचरते न्नति के कार्य किये। सं० १९८३ वैशाख में सामटा बन्दर बम्बई पधारे। दो चातुर्मास कर पालीताना पधारे ८१ में मन्दिर की प्रतिष्ठा करवाई। सं० १९८३-८४ के चातु आंबिल और ५० नवकारवाली पूर्वक निन्नाणुं यात्रा की। सि बम्बई हुए । घोलवड़ में मन्दिर व उपाश्रय उपदेश सं०१९७१ का चातुर्मास खंभात में करके मोहनलालजी जैन देकर करवाया। सं० १९८५ सूरत, १९८६ कठोर में हुन्नरशाला और पाठशाला स्थापित की। सं० १९७२ चौमासा किया। आपने चार और पाँच उपवास से एकमें सूरत चातुर्मास में उपधान तप एवं अनेक उत्सव हुए। एक पारणा करने की कठिन तपस्या तीन महीने तक की। सं १९७३-७४ लालबाग बम्बई का उपधान कराया, फिर सायण होकर सूरत आदि अनेक स्थानों में विचरते उत्सवादि हुए । पालीताना पधार कर एकान्तर उपवास हुए सं० १९८७ का चातुर्मास दहाणु किया। बोरड़ी और पारणे में आंबिल पूर्वक उग्रतपश्चर्या को कई वर्षों से पधार कर उपाश्रय के अटके हए काम प्रति श्रद्धान्तु बने स्थानकवासी मुनि रूपचन्दजी फणसा में उपाश्रय-देहरासर बना । गुजरात में स्थान-स्थान के शिष्य गुलाबचन्द जी ने अपने शिष्य गिरीधारीलालजी में विचर कर विविध धर्म कार्य कराये । मरोली में उपाश्रय के साथ आकर आपके पास सं० १९७५ वै० शु. ६ को हुआ। खंभात की दादावाड़ो को चारों देहरियों का दीक्षा ली। उनका श्री गलाबमनि और उसके शिष्य का जीर्णोद्धार होने पर सरत से विविध गांवों में विचरते हए गिरिवर मुनि नाम स्थापन किया । तदनन्तर सं० १९७६ का खंभात पधार कर दादावाड़ी की प्रतिष्ठा सं० १९८८ चौमासा बम्बई कर भात आये और अठाई-महोत्सवादि ज्येष्ठ सुदि १० को की। कटारिया गोत्रीय पारेख छोटालाल के बाद सूरत पधारे। मगनलाल नाणावटी ने प्रतिष्ठा, स्वधर्मीवत्सल आदि में सूरत में दादागुरु श्रीमोहनलालजी के ज्ञानभंडार को अच्छा द्रव्य व्यय किया। चातुर्मास के बाद मातर तीर्थ सुव्यवस्थित करने का बीड़ा उठाया और ४५ अलमारियों को यात्रा कर सोजिते पधारने पर माणिभद्रवार की देहरी को अलग-अलग दाताओं से व्यवस्था की। आलोशान से आकाशवाणी हुई कि खंभात जाकर माणेकची के मकान था, उपधान तप में माला की बोली आदि के उपाश्रय स्थित माणिभद्र देहरी को जीर्णोद्धार का उपदेश मिलाकर ज्ञानभण्डार में तीस हजार जमा हुए। मोहन- दो। खंभात में पन्यासजी उपदेश से सं० १९८६ फा० सु० लालजी जैन पाठशाला को भी स्थापना हुई। सं० १९७६ १ को जीर्णोद्धार सम्पन्न हुआ। कार्तिक पूर्णिमा के दिन Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ / 146 j महोदयमुनि को दीक्षा देकर श्री गुलाबमुनिजी के शिष्य बम्बई संघ पन्यासजी महाराज को आचार्य पद पर प्रतिबनाये / अनेक गाँवों में विचरते हुए अहमदाबाद पधारे। ष्ठित करने का विचार करता था पर पन्यासजी स्वीकार संघ की वीनति से जीर्णोद्धारित कंसारी पाश्वनाथजी की नहीं करते थे। अन्त में रवजो सोजपाल आदि समस्त श्री प्रतिष्ठा खंभात जाकर बड़े समारोह से कराई। अहमदा ___ संघ के आग्रह से सं० 1965 फागुण सुदि 5 को बड़े भारी बाद पधार कर दादासाहबकी जयन्ती मनाई, दादावाड़ी समारोह पूर्वक आपको आचार्य पद से अलंकृत किया गया। का जीर्णोद्धार हमा। अनेक स्थान के मन्दिर-उपाश्रयों के सम जीर्णोद्धारादि के उपदेश देते हुए दवीयर पधार कर प्रतिष्ठा अब पन्यास ऋद्धिमुनिजी श्रीजिनयश:सूरिजी के पट्टधर कराई / घोलवड में जैन बोडिंग की स्थापना करवायी। जैनाचार्य भट्टारक श्रीजिनऋद्धिसूरिजी नाम से प्रसिद्ध हुए। सं० 1991 का चातुर्मास बम्बई किया। पन्यास श्रीकेशर- सं में जब आप दहाण में विराजमान थे तो मनिजी ठा० 3 महावीर स्वामी में व कच्छी वीसा ओस- गणिवर्य श्री रत्नमनिजी, लब्धिमनिजी भी आकर मिले / वालों के आग्रह से श्रीऋद्धिमुनिजी ने मांडवी में चौमासा अपर्व आनन्द हआ। आपश्री की हार्दिक इच्छा थी ही किया / वर्द्धमानतप आंबिल खाता खुलवाया / अनेक धर्मकार्य कि सयोग्य चारित्र-चडामणि रलमनिजी को आचाये पद हुए। सं० 1662 लालवाड़ी चौमासा किया भाद्रव दो होने और श्रीलब्धिमनिजी को उपाध्याय पद दिया जाय। बम्बई से खरतरगच्छ और अंचलगच्छ के पर्दूषण साथ हुए। दूसरे संघने श्री आचार्य महाराज के व्याख्यान में यही मनोरथ भाद्रव में गलाबम निजी ने दादर में व पन्यासजी ने लाल- प्रकट किया। आचार्य महाराज और संघ की आज्ञा से वाड़ी में तपागच्छीय पर्युषण पर्वाराधन कराया। पन्यास रत्नमनिजी और लब्धिमनिजी पदवी लेने में निष्पृह होते केशरमुनिजी का कातो सुदि 6 को स्वर्गवास होने पर हुए भी उन्हें स्वीकार करना पड़ा / दश दिन पर्यन्त महोत्सव पायधुनी पधारे। करके श्रीजिनऋद्धिसरिजी महाराज ने रत्नमनिजी को जयपुर निवासी नथमलजी को दीक्षा देकर बुद्धि आचार्य पद एवं लब्धिमनिजी को उपाध्याथ पद से अलंकृत मुनिजी के शिष्य नंदनमुनि नाम से प्रसिद्ध किये / पन्यासजी जो किया। मिती आषाढ़ सुदि 7 के दिन शुभ मुहूर्त में यह का 1963 का चातुर्मास दादर हा। ठाणा नगर में पद महात्सव हुआ। पधार कर संघ में व्याप्त कुसंप को दूर कर बारह वर्ष से तदनंतर अनेक स्थानों में विचरण करते हुए आप राजअटके हुए मन्दिर के काम को चालू करवाया। सं० 1994 स्थान पधारे और जन्म भूमि चूरु के भक्तों के आग्रह से मिती वै० सु०६ को ठाणा मन्दिर की प्रतिष्ठा का महत वहां चातुर्मास किया। उपधान तपके मालारोपण के अवसर निकला। यह मन्दिर अत्यन्त सुन्दर और श्रीपाल चरित्र पर बीकानेर पधार कर उ० श्रीमणिसागरजी महाराज को के शिल्ल चित्रों से अद्वितीय शोभनीक हो गया। प्रतिष्ठा आचार्य-पद से अलंकृत किया। फिर नागोर आदि स्थानों कार्य वै० ब० 13 को प्रारम्भ होकर अठाई महोत्सवादि में विचरण करते हए जोर्णोद्ध द्वारा बड़े ठाठ से हुआ। वै० सु० 12 को पन्यासजी महा. शासनोन्नति कार्य करने लगे। राज विहार कर बम्बई के उपनगरों में विचरे। माटुंगा अन्त में बम्बई पधार कर बोरीवली में संभवनाथ जिनामें रवजी सोजपाल के देरासर में प्रतिमाजी पधराये। लय निर्माण का उपदेश देकर कार्य प्रारम्भ करवाया। सं० मलाड़में सेठ बालूभाई के देरासर में प्रतिमाजी विराजमान 2008 में आपका स्वर्गवास हो गया। महावीर स्वामी के को / सं० 1994 का चातुमास ठाणा संघ के अत्याग्रह मन्दिर में आपकी तदाकार मूत्ति विराजमान की गई। से स्वयं विराजे / दादासाहब की जयन्ती-पूजा बड़े ठाठ से आपका जीवन वृतान्त श्रीजिनऋद्धिसूरि जीवन-प्रभा में हुई। वर्द्धमानतप आयंबिल खाता खोला गया। साहमी सं० 1665 में छपा था और विद्वत शिरोमणि उ० लब्धिपच्छलादि में कच्छी, गुजराती और मारवाड़ी भाइयों का मुनिजी ने सं० 2014 में संस्कृत काव्यमय चरित कच्छ सहभोज नहीं होता था, वह प्रारम्भ हुआ। ठाणा और मांडवी में निर्माण किया जो अप्रकाशित है।