Book Title: Jin Puja Hetu Sat Shuddhiya Author(s): Ajaysagar Publisher: Z_Aradhana_Ganga_009725.pdf Catalog link: https://jainqq.org/explore/229248/1 JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLYPage #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिन पूजा हेतु सात शुद्धियाँ 1. अंग शुद्धि- देह के सभी अंग शुद्ध करें. तालाब में, कुएं में, होज में गिरकर के अथवा नल के नीचे बैठकर स्नान करने से अनेक जीवों की विराधना होती है. छाना हुआ पानी बालटी में लेकर स्नान करना चाहिये. यह प्रथम शुद्धि हैं. 2. वस्त्र शुद्धि- सुगंधित धूप से वासित करके पूजा के वस्त्रों को धारण करना चाहिए. परमात्मा की पूजा के लिए वस्त्र स्वच्छ, सुन्दर बिना फटे, बिना सिले और बिना लघु शंका व बड़ी शंका वाले पहनने चाहिए. वस्त्र नित्य धोने चाहिए क्योंकि अपने पसीने आदि से गंदे होने पर आशातना होती है. 3. मन शुद्धि- मन को साध लेने वाला सर्व को साध लेता है. मन के प्रसन्नता भावों में पूजा को अखंडित समझना क्योंकि परमात्मा की पूजा से ही मन प्रसन्न होता है. विषय विकार और आकांक्षाओ रहित प्रभु की शरण में सरल भावों से (निष्कपटी होकर) समर्पित हो जाना, ये मन शुद्धि है. 4. भूमि शुद्धि- नया मंदिर बनवाते समय भूमि लक्षण युक्त लेनी चाहिए, व देने वाले के दिल की प्रसन्नता पूर्वक की लेनी चाहिए, और काफी गहराई तक नींव खोदनी चाहिए. जमीन के नीचे रही हुई हड्डी, क्लेवर आदि अशुचि पदार्थों को बहार करना चाहिए. मंदिर में स्वच्छता होनी चाहे. जिससे पूजा भक्ति में आनंद आए. 5. पूजा उपकरण शुद्धि- पूजा हेतु उत्तम व शुद्ध साधनों के उपयोग से भी भावों की वृद्धि होती है एवं चैत्य व प्रतिमा का तेज बढ़ता है. जैसे स्वर्ण थाली में भोजन करने पर अलग ही आनंद होता है, वैसा आनंद स्टील, पीतल की थाली में भोजन करने से नहीं आता है. 6. द्रव्य शुद्धि- प्रभु की सेवा भक्ति में न्याय से उपार्जित किया हुआ द्रव्य होना चाहिए, अगर न्याय से अर्जित किया थोड़ा भी द्रव्य परमात्मा की पूजा व भक्ति में लगता है तो वह वृद्धि वाला व सुफल को देने वाला होता है. 7. विधि शुद्धि- महिलाए रसोई बनाते समय विधि का ख्याल रखती है, तो रसोई कितनी सुंदर और स्वादिष्ट बनती है. इसी तरह विधिपूर्वक देवाधिदेव की पूजा, भक्ति करने से उत्तम फल की प्राप्ति होती है, और आध्यात्म की अनुभूति होती है. परमात्मा की पूजा तथा चैत्यवंदन आदि शास्त्रोक्त विधिपूर्वक शुद्ध भावों के त्रिकरण योग से करने चाहिए. #दुनिया में काव्यको मुची कोण? मिले बुट ओपन के लिए प्रभु के सिवाय जिसे किसी का SITE मामले की जमत मो.X