Book Title: Jaisalmer ke Mahattvapurna Gyanbhandar Author(s): Punyavijay Publisher: Z_Manidhari_Jinchandrasuri_Ashtam_Shatabdi_Smruti_Granth_012019.pdf Catalog link: https://jainqq.org/explore/210557/1 JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLYPage #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जेसलमेर के महत्त्वपूर्ण ज्ञानभंडार [ आगम प्रभाकर मुनिश्रीप्नुण्यविजय जी ] . [जैसलमेर के ज्ञानभण्डारों में श्रीजिनभद्रसूरि ज्ञानभण्डार ही प्राचीन एवं प्रमुख है। जैसलमेर को सुरक्षित व जैन समाज का केन्द्र समझकर अन्य स्थानों की प्राचीन प्रतियाँ भी मंगवा कर वहीं सुरक्षित की गई और श्रीजिनभद्रसूरिजी ने सैकड़ों नवीन प्रतियाँ भी लिखवायी इस भण्डार का समय-समय पर अनेक विद्वानों ने निरीक्षण किया। इस ज्ञानभण्डार के महत्त्व से आकृष्ट हो विदेशी विद्वान भी यहाँ कष्ट उठाकर पहुंचे। बड़ोदा सरकार ने पं० ची० डा० दलाल के भेजकर सूची बनवायी जो ला० भ० गांधी द्वारा संपादित होकर प्रकाशित की । श्रीजिनकृपाचन्द्रसूरिजी हरिसागरसूरिजी ने इस ज्ञानभण्डार का उद्धार करवाया मुनिजिनविजय ने भी अनेक ग्रन्थों की प्रेस कापियां ६ मास रह कर करवायो इसे वर्तमान रूप देने में मुनिपुण्यविजयजी ने सर्वाधिक उल्लेखनीय कार्य किया उन्हीं के गुजराती लेख कासार यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है सम्पादक] जेसलमेर अपने प्राचीन और महत्त्वपूर्ण ज्ञानभडार विशेष रूप से उल्लेखनीय है । ताड़पत्रीय प्रतियों में ऐसे के लिये विश्व-विश्रुत है। कहा जाता है कि अब से डेढ़सो बहुत से ग्रन्थ हैं जिनकी अन्यत्र कहीं भी प्रतियां प्राप्त वर्ष पूर्व वहां जैनों के २७०० धर थे। जेपलमेर के किले नहीं हैं। प्राचीनतम और महत्त्वपूर्ण प्रतियों का संशोधन में खरतरगच्छोय जेनों के बनवाये हुए भव्य कलाधाम रूप की दृष्टि से बड़ा महत्त्व है। आठ शिखरबद्ध मन्दिर हैं। इनमें अष्टापद, चिन्तामणि यहां के ज्ञानभंडारों में चित्रसमृद्धि और प्राचीन पार्श्वनाथ का युगल मन्दिर और दूसरे दो मन्दिर तो भव्य काष्ठपट्टिकाए आदि विपुल परिमाण में संगृहीत हैं। शिल्प स्थापत्य के उत्कृष्ट नमूने हैं। विशेषत: मन्दिर में १३वों से १५वीं शताब्दी तक को चित्रित काष्टपट्टिकाएं प्रवेश करते हो तोरण में विविध भावों वाली भव्याकृतियां व सचित्र प्रतियों में तोथंकरों के जोवन-प्रसङ्ग, प्राकृतिक शालभजिकाएं आदि दर्शनीय हैं। दृश्य व अनेक प्रागियों की आकृतियां देखने को मिलती जैसलमेर में सब मिलाकर दस ज्ञानभण्डार थे। - है। १३वीं की चित्रित एक पट्टिका में जिराफ का चित्र जिनमें से तपागच्छ और लौंकागच्छ के दो ज्ञानभंडारों को है जो भारतीय प्राणी नहीं है। इन चित्र पट्टिकाओं के छोड़कर सभी खरतरगच्छ की सत्ता ओर देखरेख में हैं। रङ्ग इतने जोरदार हैं कि पांच-सातसौ वर्ष बीत जाने जेसलमेर के भंडारों में ताड़पत्र को चारसौ प्रतियां हैं। पर भी फीके और मेले नहीं हुए। ताड़पत्रीय प्रतियों दो मन्दिरों के बीच के गर्भ में जिनभद्रसूरि ज्ञानभण्डार में भी तीर्थकरों, जैनाचार्य और श्रावकों आदि के चित्र सुरक्षित है जिसमें प्राचीनतम ताड़पत्रोय एवं कागज को हैं वे आज भी ज्यों के त्यों देखने को मिलते हैं। ताड़प्रतियां विशेष महत्त्वपूर्ण हैं। जेसलमेर के ताड़पत्रीय ज्ञानभंडार में काष्ठ चित्र- पत्रीय प्रतियोंमें काली स्याही से चक्न, कमल आदि पट्टिकाए एवं स्वर्णाक्षरो रौप्याक्षरी एवं सचित्र प्रतियां सुशोभन रूप चित्राङ्कित हैं। Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राचीन ताडपत्रीय प्रतियों की संख्या को दृष्टि से मल्लवादी की व्याख्या की प्राचीन ओर शुद्ध प्रति भी पाटण के भडार बढ़े-चढ़े हैं पर जैसलमेर के भण्डारों में कई यहीं है / आगम साहित्य में दशवकालिक की अगस्त्यसिंह ऐसी विशेषताए हैं जो अन्यत्र कहीं नहीं हैं। जिनभद्रसूरि स्थविर की चूर्णि भी यहाँ है जो अन्य किसी भी ज्ञानभंडार ज्ञान भडार में जिनभद्रगणि क्षमायमण के विशेषावश्यक में नहीं है। पादलिप्तसूरि के ज्योतिष करण्डक टीका की महाभाष्य को प्राचीनतम ताडपत्रीय प्रति नौंवीं दसवीं अन्यत्र अप्राप्त प्राचीन प्रति भी इसी भंडार में है। जयदेव शताब्दो का है। इतना प्राचीनतम और कोई भी प्रति के छंद शास्त्र और उस पर लिखी हुई टोका तथा कइसिट्ट किसी भी जैनभण्डार में नहीं है। अतः यह प्रति इस भंडार सटीक छंद ग्रंथ भी यहीं है। वक्रोक्तिजीवित और प्राकृत के गौरव की अभिवृद्धि करती है। प्राचीन लिपियों के का अलङ्कारदर्पण, रुद्रट काव्यालंकार, काव्यप्रकाश की अभ्यास की दृष्टि से भी प्राचीन प्रतियों का विशेष सोमेश्वर की अभिधावृत्ति, मातृका, महामात्य अम्बादास महत्त्व है। की काव्यकल्पलता और संकेत पर की पल्लवशेष व्याख्या ___ ताड़पत्रीय प्राचीन प्रतियों के अतिरिक्त कागज पर को सम्पूर्ण प्रति भी इसी भण्डार में सुरक्षित है। इस लिखी हुई विक्रम सं० 1246-1278 आदि को प्रतियाँ प्रकार यह ग्रन्थ-भण्डार साम्प्रदायिक दृष्टि से ही नहीं विशष महत्वपूर्ण हैं। अब तक जैन ज्ञानभण्डारों में कागज व्यापक दृष्टि से भी बड़े महत्व का है। यहाँ के ग्रन्थों के पर लिखी हुई इतनी प्राचीन प्रतियाँ कहीं नहीं मिलीं। अन्त में लिखी पुष्पिकाए भी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक इस प्रकार यह ज्ञानभण्डार साहित्य संशोधन को दृष्टि से दृष्टि से बड़े महत्त्व की हैं। इनमें से कई प्रशस्तियों और अत्यन्त महत्वपूर्ण है। पुष्पिकाओं में प्राचीन ग्राम-नगरों का उल्लेख है जैसे मल्ल___ व्याकरण, प्राचीन काव्य, कोश, छंद, अलंकार, धारी हेमचन्द्र की भव-भावनाप्रकरण को स्वोपज्ञ टोका साहित्य, नाटक आदि विषयों की अलभ्य विशाल सामग्री सं० 1240 की लिखी हई है उसमें पादरा, वासद आदि यहां है। केवल जैन ग्रन्थों की दृष्टि से ही नहीं वैदिक और गांवों का उल्लेख है। इस तरह अनेक ऐतिहासिक और बौद्ध साहित्य संशोधन के लिए भी यहां अपार और अपूर्व सांस्कृतिक सामग्री जेसलमेर के ज्ञानभण्डारों में भरी पड़ी सामग्री है। बौद्ध दार्शनिक तत्व-संग्रह ग्रन्थ को बारहवीं है, इसीलिए देश-विदेश के जन-जेनेतर विद्वानों के लिए ये के उत्तराई की प्रति यहां है. उसकी टीका और धर्मोत्तर पर आकर्षण केन्द्र हैं।