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जैनमंत्र साहित्यः एक परिचय
. प्रो. डॉ. संजीव प्रचंडिया 'सोमेन्द्र'
नंज, मन को केन्द्रीयभूत करने का साधन होता है और जब मन नियंत्रित हो जाता है तो लक्ष्य की सिद्धि सहज हो जाती है। लौकिक जीवन में, जगत् के व्यामोह से सामान्यतः व्यक्ति का मन स्थिर नहीं रह पाता है। कभी परिवार की समस्याओं में उसका रहना, कभी व्यवसाय की जोड़-बाकी में घुल-मिल जाना और कभी व्यावहारिक, सामाजिक समस्याओं में जुड़ जाना, मानो व्यक्ति का पर्याय ही बन गया है। उन सभी से मुक्ति पाने के लिए मंत्र मय होना आवश्यक है। यहाँ मैं एक बात अवश्य उल्लेख करना चाहूँगा। वह यह, कि मंत्रों का प्रयोग प्रायः दो रूपों में किया जाता है -एक, लौकिक जीवन में अभावों की समृद्धि करने के लिए तथा दूसरा आत्म कल्याणार्थ। इसे हम निम्न चित्र द्वारा सहज ही समझ सकते
मंत्र
लौकिक जीवन के लिए
अलौकिक जीवन के लिए
लिए
स्व-अभावों पर-अभावों को दूसरों को आत्मकल्याणार्थ अर्जित कर्मों को को समृद्ध समृद्ध करने के दुःख पहुँचाने
क्षय करने के लिए करने के लिए
या बदला लेने
के लिए लौकिक जीवन के लिए : लौकिक जीवन में मंत्रों का प्रयोग बहुत प्रचलित हो गया है। प्रत्येक व्यक्ति कुछ न कुछ ‘चाह' में मंत्रों के प्रताप का सकारात्मक प्रभाव चाहता है और किसी न किसी सीमा तक वह उसे मिलता भी है। व्यवहार में मंत्रों की आवश्यकता निम्न कार्यों के निष्पादन के लिए अपेक्षित होती है
स्व-अभावों को समृद्ध करने के लिए: व्यक्ति की 'चाह और 'इच्छा' असीमित होती है। वह 'आवश्यकीय आवश्यकता' की पूर्ति के अतिरिक्त साधारण एवं असाधारण आवश्यकताओं की पूर्ति चाहता है। विलासिता पूर्ण आवश्यकताओं की पूर्ति वह मंत्रों की सहायता से प्राप्त करने की कोशिश करता है। स्थूल कार्यों की सम्पूर्ति उसे मंत्रों की सहायता से प्राप्त हो सकती है।
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पर-अभावों को समृद्ध करने के लिए : दूसरों की भी मंत्रों के प्रयोग से विद्यमान कमियों को दूर करने की कोशिश की जाती है। जैसे पुत्रवान होने ‘चाह', मकान दुकान, रोजगार आदि होने की 'चाह'। मंत्रों के प्रयोग से दूसरों के समृद्ध होने की घटनाएँ सुनने को प्रायः मिलती है।
दूसरों को दुःख पहुँचाने या बदला लेने के लिए : कुछेक व्यक्ति इस वृत्ति के लिए प्रसिद्ध हो जाते हैं जो दूसरों के अहित के लिए मंत्रों का प्रयोग करते हैं। वे ऐसा इसलिए करते हैं जिससे कि उनके मन की ईर्ष्या कम हो जाए, किन्तु ऐसा हो नहीं पाता। तो बुरी भावनाओं के लिए मंत्रो का प्रयोग किया जाता है। (२)
अलौकिक जीवन के लिए: (३) जिस प्रकार लौकिक जीवन के लिए मंत्रों का अपना महत्व है ठीक उसी प्रकार अलौकिक जीवन के लिए मंत्रों का महत्व है। शुभ उपयोग के लिए मंत्रों का किया गया प्रयोग अलौकिक-जीवन के लिए अच्छा माना गया है। (४)
आत्म कल्याणार्थ : 'अलौकिक जीवन' के लिए मंत्रों की महिमा महत्वपूर्ण बतायी गयी है। (५) मंत्रों के द्वारा व्यक्ति का विवेक जग सकता है और विवेक के जागने पर समूचा उद्यम आत्म कल्याण के लिए उन्मुख हो जाता है। णमोकार महामंत्र इसी का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है। (५)
अर्जित कर्मों को क्षय करने के लिए : कर्म का भोग प्रत्येक प्राणी को भोगना पड़ता है। मंत्रों के माध्यम से भोगे जा रहे विगत कर्मों के समय, 'भावों' की शुचिता का महत्वपूर्ण योगदान, कर्मों के क्षय करने में मिल जाता है। 'भावों' के बिगड़ने पर कर्म पुनः संक्रामक रोग की तरह फैलते जाते हैं, अतः मंत्रों के माध्यम से उनमें शुचिता विद्यमान हो जाती है।
व्यवहार में, चूँकि आज का युग भौतिकवादी युग है अतः लौकिक जीवन के लिए मंत्रों की उपयोगिता आवश्यक हो गयी है। कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं जो अपने निजी जीवन के लिए मंत्रों की सिद्धि करते हैं। वे अभावों में गरीबी के प्रभावों के दर्शन खोज लेते हैं। किन्तु, कुछ मंत्र ऐसे भी होते हैं जो अपने लिए ही नहीं, अपितु प्राणिमात्र के लिए प्रयोग किये जाते हैं। वास्तव में जैन धर्म में ऐसे ही मंत्रों की चर्चा की जाती है, जो अपेक्षित ही नहीं, अनिवार्य भी हैं। (७
जैन साहित्य और मंत्र : जैन साहित्य में उन मंत्रों का भी उल्लेख मिलता है जो जीवन के बहुमुखी क्षेत्रों में प्रयोग किये जाते हैं। (८) वास्तव में जैन धर्म में रूढ़िगत स्थितियाँ नहीं होती। यहाँ तो व्यक्ति के स्थान पर उसके गुणों की वंदना का पाठ पढ़ाया गया है। हम उनके गुण को धारण कर उन जैसे हो जाएँ, ऐसी स्थिति जैनधर्म और साहित्य के मूल में है। कुछेक मंत्रों का उल्लेख निम्न प्रकार किया जा सकता है। (९ अ)
१. गर्भाधान क्रिया के मंत्र - “सज्जाति भागी भव, सद्गृहि भागीभव, मुनीन्द्र भागीभव, सुरेन्द्र भागीभव, परम राज्य भागी भव, आर्हन्त्यभागी भव, परम निर्वाण भागीभव" ।
२. प्रीति क्रिया के मंत्र - “त्रैलोक्यनाथो भव, त्रैकाल्वज्ञानी भव, त्रिरत्नस्वामी भव”
३. सुप्रीति क्रिया के मंत्र - "अवतार कल्याण भागीभव, मंदरेन्द्राभिषेक कल्याण भागीभव, निष्क्रान्ति कल्याण भागीभव, आर्हन्त्य कल्याण भागीभव, परमनिर्वाण कल्याण भागीभव"
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४. पति क्रिया के मंत्र - "सज्जाति दात् भावीभव, सद्गृहिदातृभागीभव, मुनीन्द्रदातृभागी भव, सुरेन्द्रदातृभागीभव, परमराज्य दातृभागीभव, आर्हन्त्यदातृभागीभव, परम निर्वाण दातृ . भागीभव।" ..
५. जन्म संस्कार की क्रिया के मंत्र - योग्य आशीर्वाद आदि प्रदान करने के पश्चात् विभिन्न क्रिया पर भिन्न-भिन्न मंत्र पढ़े जाते हैं जो कल्याणदायी होते हैं -
नाभिनाल काटते समय - “घातिजयो भव" उबटन लगाते समय • “हे जात, श्री देव्यः ते जाति क्रियां कुर्वन्तु" स्नान कराते समय - “त्वं मन्दराभिषेका) भव" सिर पर अक्षत क्षेपण करते समय - "चिरं जीव्या:" आदि
६. नाम कर्म क्रिया के मंत्र - "दिव्याष्टसहस्र नाम भागीभव, विजयाष्ट सहस्र नाम. भागीभव, परमाष्ट सहस्रनाम भागीभाव"। इसके अतिरिक्त -
७. ऋषि मण्डल मंत्र {९ (ब)} ८. अग्नि मंडलमंत्र (९) अर्हन्मंडल मंत्र (१०) कर्मदहन मंत्र (११) गणधरवलयमंत्र (१२) चिन्तामाणि मंत्र (१३) चौबीसी मंडल मंत्र (१४) जलाधिवासन मंत्र (१५) दशलाक्षाणिक मंत्र (१६) बोधि समाधि मंत्र या समाधि मरण मंत्र (१७) मृत्युञ्जय मंत्र (१८) मोक्षमार्ग मंत्र (१९) रलत्रय मंत्र (२०) रत्नत्रय विधानमंत्र (२१) शान्ति मंत्र (२२) सारस्वत मंत्र (२३) सरस्वती मंत्र (२४) णमोकार महामंत्र
णमोकार महामंत्र : जैन साहित्य में णमोकार म.मंत्र को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। मूल बात है कि यह महामंत्र, किसी व्यक्ति विशेष की पूजा अर्चना का मंत्र नहीं है। यहाँ अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु की वंदना की गई है। 'अरिहंत' वे जिन्होंने अपने चार घातिया कर्म को काट लिया है, उन्हें क्षय कर लिया है। 'सिद्ध' वे जिन्होंने चार घातिया और चार अधातिया कर्मों (ज्ञानावरण,
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________________ दर्शनावरण, वेदनीय, मोहनीय, आयु, नाम कर्म, गोत्र और अन्तराय) अर्थात् अष्टकर्म को क्षय कर लिया है। 'आचार्य' वे जिन्होंने दुष्कर्मों पर विजय पा ली है, किन्तु उन्हें वे अभी क्षय नहीं कर पाये हैं। 'उपाध्याय' वे जो दर्शन, ज्ञान, और चारित्र की त्रिवेणी के ज्ञात परम विद्वान, साधुओं के शिक्षक कहे जाते हैं। ‘साधु' वे जो साधना में लीन है, संयमी है, सधे हैं। __ अतः णमोकर महामंत्र में पंच परमेष्ठि को नमस्कार किया गया है। यद्यपि णमोकार मंत्र का लक्ष्य मुक्ति प्राप्त करना है तथापि लौकिक दृष्टि से यह समस्त कामनाओं को पूर्ण करता है। उपसर्ग, पीड़ा, कष्ट आदि अनेक आधि व्याधि से मुक्ति दिलाता है। अतः कल्याणकारी है। संदर्भ सूची - 1. ज्ञानावर्ण अधिकार 40/10, राज चन्द्र ग्रंथमाला प्रकाशन, ई. 1907 में निम्न उल्लेख मिलता है - "क्षुद्रध्यान पर प्रपञ्चचतुरा रागानलोद्दीपिताः, मुद्रामंडल यंत्र मंत्र करणे शराघयन्त्याहताः। पतन्ति नरके भोगार्ति भिर्वञ्चिताः।" 2. वही, 4/52, 4/53, 4/54, 4/55 3. महापुराण, भारतीय ज्ञानपीठ, काशी, संवत् 1951 4. पाण्डव पुराण, जीवराज प्रकाशन, शोलापुर, संवत् 1962 5. राजवार्तिका, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, वाराणसी संवत् 2008 6. भावपुराण, माणिकचंद्र ग्रंथमाला प्रकाशन, संवत् 1917 7. धवलापुस्तक, अमरावती प्रकाशन में निम्न उल्लेख मिलता है - (13/5, 5, 82/349/8) “जोणिपाहुड़े भणिदमंत-तंतसत्तीयो पोग्गलाणु भागो नि छेत्ताव्यो।" 8. उप-आचार्य देवेन्द्र मुनि जीः नमस्कार महामंत्रः एक चिंतन, सुधर्मा; श्री तिलोक रल स्था. जैन धार्मिक परीक्षा बोर्ड, अहमदनगर -414001. 9. (अ) दशकालिक सूत्र देखिए तथा उत्तराध्यपन देखिए। (ब) 'जैन मंत्र एवं यंत्र साहित्य: एक अध्ययन' डॉ. संजीव प्रचंडिया 'सोमेन्द्र' अलीगढ़। 10. पर्यावरण, प्रदूषण, और णमोकार महामंत्र -डॉ. संजीव प्रचंडिया 'सोमेन्द्र' ट्रेक्ट, प्रकाशन विश्वकल्याण णमोकार समारोह समिति, ग्वालियर मंगल कलश, 394 सर्वोदय नगर अगिरा रोड़, अलीगढ़ -202001 * * * * *