Book Title: Jain Dharm ka Udgam Kshetra Magadh
Author(s): Krushnadatta Vajpai
Publisher: Z_Kailashchandra_Shastri_Abhinandan_Granth_012048.pdf
Catalog link: https://jainqq.org/explore/211029/1

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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनधर्मका उद्गम क्षेत्र -मगध प्रो० कृष्णदत्त वाजपेयी, सागर (म०प्र०) भारतके आद्यैतिहासिक कालमें मगध क्षेत्रकी प्रायः अवमानना दृष्टिगोचरु होती है । वैदिक आर्याने मगधकी अपेक्षा पञ्चनन्द देश तथा उसके आगे मध्यदेशको वरीयता प्रदान की । वैदिक सूक्तोंमें उन क्षेत्रोंके विषय में सम्मानका भाव प्राप्त होता है | वहाँके पर्वतों, नदियों, जनपदों तथा नगरोंके उल्लेख इस बातको सूचित करते हैं कि ई० पू० सातवीं शतीतक भारतका उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र तथा मध्यदेश पुण्यभूमिके रूप में मान्य थे । वैदिक विचार परम्परा मगध क्षेत्रमें वैदिक कालके पश्चात् पहुँची । काशी तथा अङ्गके पूर्ववाले भू-भागमें स्थानीय स्वतन्त्र परम्परायें विकसित थीं । यह क्षेत्र मध्यप्रदेश में अमरकण्टकसे लेकर वस्तरतकके भू-भागकी अपेक्षा सांस्कृतिक दृष्टिसे अधिक उन्नत था । स्वतन्त्र चिन्तन के फलस्वरूप वहाँ आर्य परम्परा के प्रतिकूल अनेक विचार पल्लवित हो चुके थे । परवर्ती वैदिक साहित्य में मगधके निवासियोंको कीकट, व्रात्य आदि शब्दोंसे सम्बोधित किया गया । मगधका एक प्रसिद्ध आद्य ऐतिहासिक शासक जरासंध हुआ । महाभारत तथा कतिपय पुराणों में इस प्रतापी शासकके बारे में विस्तृत विवरण उपलब्ध है । आर्य संस्कृतिके अनुयायी राजाओंसे जरासंधकी विचारधारा अलग थी । राजनीतिक क्षेत्रसे जरासंधकी यह विद्रोही परम्परा ऐतिहासिक कालमें भी देखनेको मिली है । ई० पू० सातवीं शतीके बाद मगध क्षेत्रका आर्थिक एवं राजनीतिक विकास हुआ । व्यवसाय तथा व्यापारकी वृद्धि के फलस्वरूप मगधके अनेक नगर समृद्ध हो गये । इसका प्रभाव प्रशासन तथा अनेक सांस्कृतिक क्षेत्रोंपर पड़ा । शाक्य, लिच्छवि, मल्ल आदि गणोंने शक्तिशाली गणतन्त्र शासन व्यवस्था चलायी । जनक, याज्ञवल्क्य, मैत्रेयी आदि प्रसिद्ध स्वतन्त्रचेता उनके पहले हो चुके थे । उनकी विचार परम्परा ऐतिहासिक काल में भी मगध क्षेत्रपर व्याप्त रही । ई० पू० छठी शतीमें भगवान् महावीर तथा गौतम बुद्धका आविर्भाव हुआ । उनका मुख्य कार्यक्षेत्र मगध ही रहा। इन दोनों महानुभावोंके अतिरिक्त अन्य स्वतन्त्र विचारशील व्यक्तियोंमें पुराण कश्यप, अजित केशकंबली, प्रबुद्ध कात्यायन, आलारकालाम, रुद्र करामपुत्र, मक्खल गोशाल आदिके नाम उल्लेखनीय हैं। इन सभीने अपनी बुद्धि और ज्ञानके अनुसार पृथक्-पृथक् मतोंकी स्थापना की । मक्खलिगोशाल, आजीवक सम्प्रदाय के जन्मदाता हुए। गया तथा उसके आसपासका क्षेत्र स्वतन्त्र तार्किक विचारोंका मुख्य केन्द्र बना । सिद्धार्थको वहीं सम्यक्ज्ञानकी प्राप्ति हुई। फिर गौतम बुद्ध रूपमें उन्होंने एक नये धर्मको प्रारम्भ किया । महावीर स्वामी के पहलेके अनेक जैन तीर्थकरोंके जन्म, ज्ञान प्राप्ति तथा निर्वाण स्थल मगध क्षेत्रमें ही हैं । इस भू-भाग में विहारोंके अत्यधिक संख्यामें हो जानेसे यह क्षेत्र बिहार कहलाया । बौद्धोंके अतिरिक्त, जैनोंके भी संघाराम राजगृह, पाटलिपुत्र, गया तथा अन्य अनेक स्थलोंमें प्रतिष्ठित हुए । महावीर स्वामीने मगधकी प्रचलित लोक भाषामें अपने प्रवचन दिये । यह मागधी भाषा धीरे-धीरे अधिकांश भारतकी राजभाषा बन गयी । मौर्य सम्राट अशोकने इसी भाषामें अपनी राजाज्ञायें लिखायीं । परवर्ती लेखोंमें एक दीर्घ कालतक इसी भाषाका उपयोग होता रहा । - १९१ - Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कौटिल्यके अर्थशास्त्रसे विदित होता है कि उसके पहले सत्रह प्रमुख आचार्य हो चुके थे जिन्होंने धर्म तथा राजनय आदि विषयों पर अपने स्वतन्त्र मत स्थापित किये गये थे। प्रतीत होता है कि इनमेंसे अधिकांश आचार्य मगधके ही थे। महावीर स्वामीके सन्देशका प्रचार जैन आचार्य परम्पराने विशुद्ध रूपमें किया / गुप्त शासन कालमें मुख्य राजधानी मगधके पाटलिपुत्र नगरमें रही। गुप्तकालके शासकोंने प्राकृतके स्थान पर संस्कृतको राजभाषा बनाया। जैनाचार्यों तथा अन्य लेखकोंने समयकी माँगके अनुरूप अपनी रचनाओंका माध्यम संस्कृतको बनाया। इसी प्रकार, ब्राह्मी लिपिको देशकी मुख्य लिपि बनानेका सौभाग्य प्राप्त हुआ। जैनाचार्योंके अलावा मगध क्षेत्रके समृद्ध जैन श्रेष्ठियोंने जैन धर्मके विस्तारमें महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। अनेक श्रेष्ठि महोदधि (बंगालकी खाड़ी)के मार्गसे दक्षिण-पूर्व एशियाके देशों में व्यापारके लिए जाने लगे / विदेशोंसे अजित धनका विनियोग उन्होंने देशके विभिन्न भागों में जैनधर्मके प्रसार हेतु किया / उन जैन व्यापारियोंका दृष्टिकोण राष्ट्रवादी था। राष्ट्र की राजनीतिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक उन्नतिको उन्होंने अपने धर्मका अङ्ग मान लिया था / -192 -